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भल्लटशतकम्
 
प्रस्तुत सगुण निर्गुण व्यक्ति के वृत्तान्त की प्रतीति होने से अप्रस्तुतप्रशंसा
अलङ्कार है । "अप्रस्तुतात्प्रस्तुतं चेद् गम्यते अप्रस्तुतप्रशंसा स्यात् " ( सा०द०
१०, ५८-६०)। यहाँ काच शब्द गुरगहीन वस्तु और मणि शब्द गुणोपेत वस्तु
के अर्थ में सङ्क्रान्त हो गये हैं, इस कारण यहाँ अर्थान्तरसङ्क्रमितवाच्य
लक्षणामूलध्वनि है ।
 

 
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The wise differentiate between a jewel and a glass. Those
others are mere possessors of corporeal forms (lacking faculty of
discrimination) who mistake a glass for a jewel and a jewel for
a glass.
 
नन्वाश्रयस्थितिरियं तव कालकूट-
केनोत्तरोत्तरविशिष्टपदोपदिष्टा ।
प्रागणवस्य हृदये वृषलक्ष्मरणोऽथ
 
कण्ठेऽधुना वससि वाचि पुनः खलानाम् ॥ ५॥
 
(हे) कालकूट ! उत्तरोत्तर विशिष्टपदा इयम् आश्रयस्थितिः तव
ननु केन उपदिष्टा ? प्राक् अर्णवस्य हृदये अथ वृषलक्ष्मरणः कण्ठे प्रधुना
पुनः खलानां वाचि वससि ।
 
दुर्जनः किंचित् पदं लभते चेत् पुनरुपर्युपर्यारोढुमीहत एव । नन्वाश्रय स्थिति
रियमिति । हे कालकूट कालकूटाख्य महाविष केन तवेयमुत्तरोत्तर विशिष्ट-
पदोपदिष्टा उपर्युपर्यंभ्यधिक
कालावकाशा श्राश्रय स्थिति रवलम्बनहाने नान्यत्र
गतिः । कथमिति चेत् प्रागर्णवस्य हृदयेऽभ्यन्तरेऽभ्युषितोऽसि अथ वृषलक्ष्मणः
शिवस्य कण्ठे ह्युषितं पुनरघुना खलानां वाचि वससीति एतदुक्तं भवति
सोढुं शक्यं न दुर्जनवचन मिति ।
 
अरे हलाहल विष ! एक के पश्चात् दूसरे उत्कृष्ट पद ( को प्राप्त कराने )
वाली (इस ऊँचे स्थान में ) रहने वाली विधि का तुझे किसने उपदेश दिया है १
पहले तुम समुद्र के हृदय में (रहते थे), फिर शिव के कण्ठ में रहने लगे और
अब तो तुम दुष्टों की वाणी में बसते हो ।
 
यहाँ कालकूट विष नामक एक वस्तु की स्थिति समुद्रादि अनेक आधारों
 
1. क, म ह नृपलक्ष्मणो म
 
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