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भल्लट शतकम्
झटिति कथं न दद्युः । (अर्थान्तरवितरकाः) अतिमृदवः चौरा इव महतां
• यत् अर्पण रसेन विमर्दपूर्व बद्धा (अतः ते) तान् प्रकृतान् अर्थान्
कवीनामतिमृदवः शब्दाः अर्थान्तराण्यपि हठात् वितरन्ति ।
• कविकाव्यप्रशंसापदेशेन चोरप्रमुषितार्थं प्रत्याहरणे विमर्द विनान्यन्न्यायान्तरं
न विद्यत इत्याह ।
वद्धा यदर्पणरसेन विमर्दपूर्वमिति । यदर्पणरसेन विवक्षितो यो
प्रयोगोचिता अतिमृदवोऽत्यन्तमृदवः महतां कवीनां शब्दास्तान् अर्थान् विवक्षितान्
प्रकृतान् प्रस्तुतान् विमर्दपूर्वमालोचनपुरस्सरं कथं भटिति सपदि मनीषिया
बुद्धया विमृश्य विमृश्यालोचयन्ति तेषां सर्वदा सपदि दद्युरेव किच हठात्
प्रसह्य पुनः पुनः विमर्दनेन अर्थान्तराण्यपि च ( वितरन्ति ) पश्चादन्यानप्यर्थात्
प्रबोधयन्ति । यथा चोराः प्रमुषितार्थप्रत्यानयन हेतोर्बद्धा स्वभावधैर्यविहीनत्वा-
पुनः
पुननिबध्यमानभयेनार्थान्तराण्यपि हठात्कारेण वितरन्ति तथेति ।
क्योंकि (काव्य में महाकवियों द्वारा) ये शब्द र सार्पणसहित निबद्ध किये
विचारपूर्वक (चिन्तन किये जाकर सामाजिक औौर श्रालोचकों को) उन उन प्रस्तुत
जाते हैं ( अर्थात् ये शब्द रसात्मक बनाकर रखे जाते हैं इसलिए ये )
( वाच्यार्थं और व्यङ्ग्यार्थरूप उभयविध) ग्रथों को तत्काल क्यों न देवें ?
दूसरे (गुप्त) धनों को देने वाले धैर्यविहीन चञ्चल स्वभाव वाले बहुत ही कच्चे
चोरों की भाँति महाकवियों के बहुत अधिक कोमल शब्द (अनुरणनात्मक ध्वनि
से) दूसरे ग्रथों को भी बलपूर्वक दे देते हैं ।
है । अर्थान् तथा अर्थान्तराण्यपि इन दोनों पदों में भी पदश्लेष है । अर्थ का
यहाँ विमर्दपूर्वम् में (विचारपूर्वक तथा ताडनापूर्वक अर्थ होने से ) पदश्लेष
इव इस ग्रंश में उपमा है इस प्रकार यहाँ श्लेषानुप्राणित उपमाल कार है।
शब्दार्थ – वाच्यार्थ, लक्ष्यार्थ श्रीर व्यङ्ग्याथ रूप त्रिविध अर्थ तथा धन है । चौरा
किन्तु व्यङ्ग्यार्थों का ज्ञान आलोचनात्मक बुद्धि से ही सम्भव ह
महाकवियों के इन शब्दों से वाच्यार्थ का ज्ञान तो आसानी से हो जाता है
के अपराध में जब किसी चोर को रंगेहाथ पकड़ लिया जाता है तो वह उस
चुराई वस्तु को तो आसानी से उसी समय दे देता है किन्तु यदि उसे मारा
पीटा जाता है तो पहले चुराई हुई वस्तुओं की चोरी स्वीकार करके उन्हें भी
वापिस कर देता है । चोर जैसे दबाव में आकर गुप्त धनों को वापिस कर
देता है उसी प्रकार शब्द भी विचार के विषय बन जाने पर नानाविध अर्थों
चोरी
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri
भल्लट शतकम्
झटिति कथं न दद्युः । (अर्थान्तरवितरकाः) अतिमृदवः चौरा इव महतां
• यत् अर्पण रसेन विमर्दपूर्व बद्धा (अतः ते) तान् प्रकृतान् अर्थान्
कवीनामतिमृदवः शब्दाः अर्थान्तराण्यपि हठात् वितरन्ति ।
• कविकाव्यप्रशंसापदेशेन चोरप्रमुषितार्थं प्रत्याहरणे विमर्द विनान्यन्न्यायान्तरं
न विद्यत इत्याह ।
वद्धा यदर्पणरसेन विमर्दपूर्वमिति । यदर्पणरसेन विवक्षितो यो
प्रयोगोचिता अतिमृदवोऽत्यन्तमृदवः महतां कवीनां शब्दास्तान् अर्थान् विवक्षितान्
प्रकृतान् प्रस्तुतान् विमर्दपूर्वमालोचनपुरस्सरं कथं भटिति सपदि मनीषिया
बुद्धया विमृश्य विमृश्यालोचयन्ति तेषां सर्वदा सपदि दद्युरेव किच हठात्
प्रसह्य पुनः पुनः विमर्दनेन अर्थान्तराण्यपि च ( वितरन्ति ) पश्चादन्यानप्यर्थात्
प्रबोधयन्ति । यथा चोराः प्रमुषितार्थप्रत्यानयन हेतोर्बद्धा स्वभावधैर्यविहीनत्वा-
पुनः
पुननिबध्यमानभयेनार्थान्तराण्यपि हठात्कारेण वितरन्ति तथेति ।
क्योंकि (काव्य में महाकवियों द्वारा) ये शब्द र सार्पणसहित निबद्ध किये
विचारपूर्वक (चिन्तन किये जाकर सामाजिक औौर श्रालोचकों को) उन उन प्रस्तुत
जाते हैं ( अर्थात् ये शब्द रसात्मक बनाकर रखे जाते हैं इसलिए ये )
( वाच्यार्थं और व्यङ्ग्यार्थरूप उभयविध) ग्रथों को तत्काल क्यों न देवें ?
दूसरे (गुप्त) धनों को देने वाले धैर्यविहीन चञ्चल स्वभाव वाले बहुत ही कच्चे
चोरों की भाँति महाकवियों के बहुत अधिक कोमल शब्द (अनुरणनात्मक ध्वनि
से) दूसरे ग्रथों को भी बलपूर्वक दे देते हैं ।
है । अर्थान् तथा अर्थान्तराण्यपि इन दोनों पदों में भी पदश्लेष है । अर्थ का
यहाँ विमर्दपूर्वम् में (विचारपूर्वक तथा ताडनापूर्वक अर्थ होने से ) पदश्लेष
इव इस ग्रंश में उपमा है इस प्रकार यहाँ श्लेषानुप्राणित उपमाल कार है।
शब्दार्थ – वाच्यार्थ, लक्ष्यार्थ श्रीर व्यङ्ग्याथ रूप त्रिविध अर्थ तथा धन है । चौरा
किन्तु व्यङ्ग्यार्थों का ज्ञान आलोचनात्मक बुद्धि से ही सम्भव ह
महाकवियों के इन शब्दों से वाच्यार्थ का ज्ञान तो आसानी से हो जाता है
के अपराध में जब किसी चोर को रंगेहाथ पकड़ लिया जाता है तो वह उस
चुराई वस्तु को तो आसानी से उसी समय दे देता है किन्तु यदि उसे मारा
पीटा जाता है तो पहले चुराई हुई वस्तुओं की चोरी स्वीकार करके उन्हें भी
वापिस कर देता है । चोर जैसे दबाव में आकर गुप्त धनों को वापिस कर
देता है उसी प्रकार शब्द भी विचार के विषय बन जाने पर नानाविध अर्थों
चोरी
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri