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श्री: 1
महाकविभल्लटकृतम्'
 
भल्लटशतकम्
 
तां भवानीं भवानी तक्लेशनाशविशारदाम् ।'
शारदां शारदाम्भोदसितसिंहासनां नुमः ॥ १॥
 
अन्वय :- भवानीतक्लेशनाशविशारदां शारदाम्भोदसितसिंहा-
सनां तां भवानीं शारदां दुर्गा पक्षान्तरे सरस्वतीं नुमः ।
 
3
 
श्रीरस्तु
 
मल्लटशतकव्याख्या :- हरिः । श्रीगणपतये नमः । श्रीगुरुभ्यो नमः
विघ्नमस्तु । श्रीसरस्वत्यै नमः । श्रीदुर्गायै नमः ।
 
श्यामं महस्तत्कुचभारन ग्रं
 
कामप्रदं कामरिपोरचिन्त्यम् ।
 
करोम्यहं भल्लटसूक्तिटीकां
 
बालप्रबोधाय सु
 
1. अ, म1 ह; क में नहीं
 
में
 
2. क, श्र, म; ह में नहीं
 
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श्रीः । प्रारिप्सितग्रन्थ इह खलु सदाचारानुष्ठानमनुकुर्वतास्य व्यपेतान्त-
रायाभीष्टसिद्धिहेतोरिष्टदेवतानमस्कारस्यावश्यविधेयत्वादाचार्येण तावत् इष्ट-
•शनोपनीतानामविद्यादीनां
देवता नमस्क्रियते । भवानीतक्लेशनाश विशारदां
क्लेशानां नाशक रणेन विशारदां समर्थां शारदाम्भोदसित सिंहासनां शरन्मेघघवल-
3. क, म), ह; भल्लटशतकं भल्लट : अ
 
4. अ, म, म और ह में यह श्लोक उपलब्ध है किन्तु क में नहीं मिलता। म2 में
 
इसे सङ्ख्या के बिना दिया गया है। अतः डा० वी० राघवन् ने इसकी प्रामाणिकता
 
में सन्देह प्रकट किया है। किन्तु म तथा ह में इसकी टीका उपलब्ध होती है तथा
क प्रति को छोड़कर शेष प्रतियों में इसका समावेश है। इस कारण इसे भल्लटकृत
मानने में किसी प्रकार की आपत्ति नहीं होनी चाहिए ।
 
5. ह; बालप्रबोधाय म टीकागत यह श्लोक दोनों प्रतियों में अपूर्ण
 
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