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भल्लटपातकम्
 
में स्थित कश्मीरविभाग ( प्रवेश सं० १५६७१६, २१५३/बी० / ७७) में
यह प्रति सुरक्षित है । गवर्नमैन्ट ओरियन्टल मैन्यूस्क्रिप्ट्स लाइब्रेरी, मद्रास में
स्थित मूलतः मालाबार लिपि वाली हस्तलिखित प्रति सं० २६०७ से इस
प्रतिलिपि को तैयार किया गया है । इस प्रति में केवल संस्कृत टीका भाग ही है
जिसमें १०५ श्लोकों की व्याख्या की गई है। पूरे आकार के सफेद पृष्ठों की
संख्या ९४ है । प्रतीत होता है कि मालाबार से उपलब्ध संस्कृत टीका भाग
वाली इस प्रति को होशियारपुर की ह प्रति के गद्य भाग से तैयार किया
गया है क्योंकि ६६ से ८० पत्र तक जो भाग ह प्रति के किनारे से त्रुटित है उस
अंश काम में प्रभाव है तथा स्थान खाली छोड़ा गया है। शेष टीका ह की
तरह है । इसके आरम्भ में श्रीरस्तु । भल्लटशतकव्याख्या । हरिः ।
श्रीगणपतये नमः मंगलाचररण है तथा अन्त में अगाघे गर्ते निक्षिपति चेत्यर्थः ।
तत्र दुः । वस्तु व्यज्यते । इति श्रीमन्महेश्वरेण ।
 
यादृशं पुस्तकं दृष्टं तादृशं लिखितं मया ।
अबद्धं वा सुत्रद्धं वा मम दोषो न विद्यते ॥
ओं तत् सत् ।
 
(४) श्र प्रतिलिपि : यह हस्तलिखित प्रति जम्मू विश्वविद्यालय के
विश्वविद्यालयपुस्तकालय के कश्मीरविभाग ( प्रविष्टि सं० १५६७२०,
२१५३/बी०/७७) में विद्यमान है। इसमें बड़े आकार के २४ पृष्ठ हैं । इसे
भूर्जपत्र की प्रति से सफेद पृष्ठों पर लिखवाकर मंगाया गया है । भूर्जपत्र पर
मलयालम में लिखी हुई यह हस्तलिखित प्रति अड्यार लाइब्रेरी, अड्यार ( सं०
४० सी० ८ सूचीपत्र 11 पृ०८ बी० ) में सुरक्षित है । इसमें १०८ श्लोक हैं ।
इसका प्रारम्भ श्रीः । भल्लटशतकम् । भल्लट: । तां भवानीं से होता है
और अन्त में इति भल्लटशतकम् समाप्तम् । लिखा है ।
 
(ङ) क प्रतिलिपि : भल्लटशतक का यह संस्करण सन् १८९६ में
निर्णयसागर प्रैस, बम्बई में ( काव्यमाला शृङ्खला का चतुर्थ गुच्छक) छपा
था । इसमें इस बात का कोई संकेत नहीं है कि यह ग्रन्थ किस हस्तलिखित
प्रति से तैयार किया गया है। प्रस्तुत भल्लटशतकीय संस्करण को तैयार करने
में इस ग्रन्थ का उपयोग के प्रति के रूप में किया गया है। इसमें कुल १०८
श्लोक हैं । इसके प्रारम्भ के शब्द इस प्रकार हैं- महाकविभल्लटकृतम्
मल्लटशतकम् । युष्माकमम्बरमणेः प्रथमे मयूखाः । पुष्पिका इस तरह है-
इति रत्नत्रये भल्लटशतकम् समाप्तम् ।
 
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri