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सम्पादकीय
 
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दिया हुआ है । ६६ से ८० पत्र किनारे से त्रुटित हैं । पत्र का आकार
…"x¾" है । प्रत्येक पृष्ठ पर ४ पंक्तियाँ तथा प्रत्येक पंक्ति में ३६ अर
हैं। इसकी साधारण अवस्था अच्छी नहीं है। पाठ शुद्ध तथा सुवाच्य है । कई
स्थानों में छिद्र और रिक्त स्थान हैं। यह लगभग ३०० वर्ष प्राचीन प्रतीत
होती है। कहीं भी लिपिकर्ता का नाम तथा समय नहीं बताया गया है ।
डा० वी० राधवन् ने इस हस्तलिखित प्रति का कोई उपयोग नहीं किया है ।
इसका प्रारम्भ 'कूटलूर मेलेटत्ते भल्लटशतकव्याख्यानम्' से होता है। इसका
अर्थ है कि भल्लटशतक की इस टीका को रखने का स्थान कूटलूर मेलतम्
का घर है । इसके तुरन्त बाद निम्नलिखित मंगल वचन हैं-
हरिः श्री गणपतये नमः । श्री गुरुभ्यो नमः ।
अविघ्नमस्तु । श्रीसरस्वत्यै नमः । श्रीदुर्गायै नमः ॥
 
टीका के अन्त की पंक्ति इस प्रकार है-
निक्षिपति चेत्यर्थः । तत्र दुः । वस्तु व्यज्यते । इति
श्रीमन्महेश्वरेण । ल + णाराध्य ।
 
(२) म प्रतिलिपि : यह जम्मू विश्वविद्यालय के विश्वविद्यालय
पुस्तकालय के कश्मीर विभाग ( प्रवेश सं० १५६७१८, २१५३ / बी० / ७७)
में सुरक्षित है। इसमें पूरे आकार के २० पृष्ठ हैं । मद्रास से लाई गई यह प्रति
मूलतः त्रिवेन्द्रम से उपलब्ध एक हस्तलिखित प्रति की प्रतिलिपि है । गवर्नमैन्ट
ओरियन्टल मैन्यूस्क्रिप्ट्स लाइब्रेरी, मद्रास में यह प्रति ( क्रमसंख्या
डी० १२१०६) विद्यमान है। इसमें कुल ११० श्लोक तथा २० पृष्ठ हैं ।
इसका प्रारम्भ ॥ श्रीः ॥ भल्लटशतक और 'तां भवानी' इस मंगलश्लोक
से होता है तथा इति 'भल्लटशतकं समाप्तम् ।' समाप्तञ्चेदम् ।' इस रूप में
पुष्पिका मिलती है ।
 
भल्लटशतक की भूर्जपत्र की एक और प्रतिलिपि (डी० १२११० )
ग्रन्थाकार रूप में उत्कीर्ण की गई है । यह गवर्नमैन्ट ओरियन्टल मैन्यूस्क्रिप्ट्स
लाइब्रेरी, मद्रास में इसी प्रतिलिपि के साथ सुरक्षित है । परन्तु वह उपलब्ध
नहीं हो सकी और इसी कारण इसका वतमान संस्करण में उपयोग नहीं हो
सका । इसमें कुल श्लोक संख्या १०५ है ।
 
(३) म' प्रतिलिपि : जम्मू विश्वविद्यालय के विश्वविद्यालयपुस्तकालय
 
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