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भल्लटशतशम्
 
पूर्वं न चेद् विरचिता तव देव सेवा
तैनैव नैव दयसे श्रयतो ममातिम् ।
कि प्रागसंस्तुत इति प्रतिपन्नमूल-
च्छायं गतश्रमरुजं न तरुः करोति ॥
 
( दी०स्तो०, ३५ )
 
ठीक है मैंने पहले आपकी सेवा नहीं की। प्रभो, क्या इसी कारण मुझ
दुःखी पर दया नहीं कर रहे हो ? क्या वृक्ष अपनी छाया तले आये जीव की
थकान इसलिए दूर नहीं करता कि उसने उस वृक्ष की पहले प्रशंसा नहीं की ?
कवि आगे चलकर अपनी कृपापात्रता जतलाते हुए कहता है कि मैं यदि
पापी हूँ तो शंकर आप पाप नष्ट करने में निपुण हैं अतः मुझ पर दया
अवश्य करो-
अहं पापी पापक्षपणनिपुरण: शंकर भवा-
नहं भीतो भीताभयवितरणे ते व्यसनिता ।
अहं दीनो दीनोद्धरणविधिसज्जस्त्वमितर-
न्न जानेऽहं वक्तुं कुरु सकलशोच्ये मयि दयाम्॥ (दी०स्तो०)
पाप नष्ट करने में निपुण हैं । आप
 
मैं यदि पापी हूँ तो हे शङ्कर
सब दृष्टियों से शोचनीय मेरे ऊपर दया करें ।
 
स्थानाभाव के कारण कश्मीर के कतिपय अन्य
विचार नहीं किया जा सका है।
 
मुक्तकों के सम्बन्ध में
 
७. भल्लटशतक के प्रस्तुत संस्करण में प्रयुक्त हस्तलिखित प्रतियाँ- मूल-
श्लोकों तथा महेश्वरकृत संस्कृत टीका से समन्चित भल्लटशतक का
सम्पादन करने के लिए निम्नलिखित हस्तलिखित प्रतिलिपियों का उपयोग
 
किया गया है ।
 
(१) ह् प्रतिलिपि : क्योंकि भल्लटशतक की इस हस्तलिखित
प्रतिलिपि में मूल श्लोक तथा संस्कृत टीका संयुक्त रूप से विद्यमान है, इसी
कारण प्रस्तुत संस्करण के सम्पादनार्थ इसी प्रतिलिपि को आधारग्रन्थ के रूप
में स्वीकार किया है। यह प्रतिलिपि पंजाब विश्वविद्यालय के विश्वेश्वरानन्द
वैदिक शोध संस्थान पुस्तकालय, होशियारपुर के लालचन्द संग्रह में सुरक्षित है।
इसकी हस्तलिखित प्रतिलिपि क्रम संख्या ३८०० है । यह मूलतः भूर्जपत्र पर
मलयालम लिपि में लिखी गई है। इसमें पद्यसंख्या ६६ तक पद्य तथा टीका
दोनों हैं । पद्यसंख्या १०० से १०५ तक श्लोक प्रतीक मात्र
 
टीका भाग
 
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani
 
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