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सम्पादकीय
१५
स्मृति में खोए एक प्रेमी की स्थिति का अंकन भ्रमरान्योक्ति में इस प्रकार
हुआ है—
नानन्दं मुचुकुन्दकुड्मलकुले नो केतके कौतुकं
नोत्फुल्ले कुमुदे मदं न कुटजे कौटुम्ब्यमालम्बते ।
चोलीदन्तचतुष्किकाशुचिरुचिस्मेरां स्मरन् मालतीं
किं त्वास्ते तरुकोटिकोटरकुटीबद्धास्पदः षट्पदः ॥
( [अ००, ३० )
संसार भर के फूलों से विमुख हुआ केवल मालती की मुसकान को याद
करता हुआ वृक्ष की कोटर कुटीर में चुपचाप बैठा भ्रमर वियोगी सच्चे प्रेमी
का मार्मिक प्रतीक है।
३-४. चतुर्वर्गसंग्रह एवं चारुचर्या : ग्यारहवीं शती के उत्तरार्ध में हुए
क्षेमेन्द्र के प्रकाशित ग्रन्थों में चतुर्वर्गसंग्रह तथा चारुचर्या नीतिपरक
मुक्तक काव्य हैं । चतुर्वर्गसंग्रह के चार परिच्छेदों में क्रमश: धर्म, अर्थ,
काम, मोक्ष विषयक पद्य हैं। प्रथम परिच्छेद के २७ पद्यों में कवि ने धर्म के
विभिन्न अंगों— सत्य, अहिंसा, पवित्रता, दान, शान्ति, वैराग्य आदि पर
प्रकाश डाला है । आडम्बरहीन जीवन बिताने पर बल देते हुए कहा है —
तप्तैस्तीव्रव्रतैः किं विकसति करुणास्यन्दिनी यद्यहिंसा
।
कि दूरैस्तीर्थसारैर्यदि शमविमलं मानसं सत्यपूतम्
यत्नादन्योपकारे प्रसरति यदि धीर्दानपुण्यैः किमन्यैः
किं मोक्षोपाययोगैर्यदि शुचिमनसामच्युते भक्तिरस्ति ॥
(च०सं०, १,२७)
मनुष्य में यदि करुणा प्रवाहित करने वाली अहिंसा है तो उसे तीव्रतपों
से क्या ? यदि शान्ति से निर्मल हुआ मन सत्यपूत है तो दूर दूर के तीर्थों से
क्या वास्ता ? यदि बुद्धि परोपकाररत है तो दिखावे के दानपुण्यों से क्या ?
यदि पवित्र मन वालों की अच्युत (विष्णु) में दृढ़ भक्ति है तो मोक्ष के अन्य
उपायों से क्या ?
द्वितीय परिच्छेद के २५ पद्यों में धन के महत्त्व का प्रतिपादन तथा
उसकी वृद्धि और रक्षा के उपायों का वर्णन है । जीवन के कटु सत्य को
कितनी स्पष्टता से बताया है—
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri
१५
स्मृति में खोए एक प्रेमी की स्थिति का अंकन भ्रमरान्योक्ति में इस प्रकार
हुआ है—
नानन्दं मुचुकुन्दकुड्मलकुले नो केतके कौतुकं
नोत्फुल्ले कुमुदे मदं न कुटजे कौटुम्ब्यमालम्बते ।
चोलीदन्तचतुष्किकाशुचिरुचिस्मेरां स्मरन् मालतीं
किं त्वास्ते तरुकोटिकोटरकुटीबद्धास्पदः षट्पदः ॥
( [अ००, ३० )
संसार भर के फूलों से विमुख हुआ केवल मालती की मुसकान को याद
करता हुआ वृक्ष की कोटर कुटीर में चुपचाप बैठा भ्रमर वियोगी सच्चे प्रेमी
का मार्मिक प्रतीक है।
३-४. चतुर्वर्गसंग्रह एवं चारुचर्या : ग्यारहवीं शती के उत्तरार्ध में हुए
क्षेमेन्द्र के प्रकाशित ग्रन्थों में चतुर्वर्गसंग्रह तथा चारुचर्या नीतिपरक
मुक्तक काव्य हैं । चतुर्वर्गसंग्रह के चार परिच्छेदों में क्रमश: धर्म, अर्थ,
काम, मोक्ष विषयक पद्य हैं। प्रथम परिच्छेद के २७ पद्यों में कवि ने धर्म के
विभिन्न अंगों— सत्य, अहिंसा, पवित्रता, दान, शान्ति, वैराग्य आदि पर
प्रकाश डाला है । आडम्बरहीन जीवन बिताने पर बल देते हुए कहा है —
तप्तैस्तीव्रव्रतैः किं विकसति करुणास्यन्दिनी यद्यहिंसा
।
कि दूरैस्तीर्थसारैर्यदि शमविमलं मानसं सत्यपूतम्
यत्नादन्योपकारे प्रसरति यदि धीर्दानपुण्यैः किमन्यैः
किं मोक्षोपाययोगैर्यदि शुचिमनसामच्युते भक्तिरस्ति ॥
(च०सं०, १,२७)
मनुष्य में यदि करुणा प्रवाहित करने वाली अहिंसा है तो उसे तीव्रतपों
से क्या ? यदि शान्ति से निर्मल हुआ मन सत्यपूत है तो दूर दूर के तीर्थों से
क्या वास्ता ? यदि बुद्धि परोपकाररत है तो दिखावे के दानपुण्यों से क्या ?
यदि पवित्र मन वालों की अच्युत (विष्णु) में दृढ़ भक्ति है तो मोक्ष के अन्य
उपायों से क्या ?
द्वितीय परिच्छेद के २५ पद्यों में धन के महत्त्व का प्रतिपादन तथा
उसकी वृद्धि और रक्षा के उपायों का वर्णन है । जीवन के कटु सत्य को
कितनी स्पष्टता से बताया है—
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri