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सम्पादकीय
 
६. कश्मीरी मुक्तकों की परम्परा
 
१. मल्लटशतक : कश्मीर के मुक्तकों में प्रथम और प्रधान मुक्तक
भल्लटशतक है । भल्लट ने अपने मुक्तको में विशेष रूप से प्रस्तुतप्रशंसा
को अपनाया है किन्तु कहीं कहीं उन्होंने शृङ्गार, भावध्वनि तथा विविध
अलङ्कारों से अपनी कविता को चमत्कारक्षम बनाया है। उदीयमान सूर्य का
वर्णन इस प्रकार किया रहा है :
 
युष्माकमम्बरमणेः प्रथमे मयूखा-
स्ते मङ्गलं विदधतूदयरागभाज: 10

कुर्वन्ति ये दिवसजन्म महोत्सवेषु
 
११
 
सिन्दूरपाटलमुखीरिव दिक्पुरन्ध्रीः ॥ ( भ०श०, २)
 
भल्लटशतक के अन्यापदेश मुक्तकों के सम्बन्ध में ऊपर लिखा जा
चुका है।
 
२. प्रन्योक्तिमुक्तालता : यह मुक्तक काव्य महाकवि शम्भु की रचना है।
ये कश्मीर के प्रसिद्ध राजा हर्षदेव के सभाकवि थे जिसका शासन काल
१०८६ ई० से ११०१ ई० तक था । श्रीकण्ठ के यशस्वी रचयिता महाकवि
मङ्ख ने शम्भु को महाकवि के रूप में तथा उसके पुत्र प्रानन्द को विविधशास्त्रों
का ज्ञाता माना है । शम्भु की अन्य रचना राजेन्द्रकर्णपूर है जो मुक्तक न
होकर राजा हर्ष की प्रशंसा में लिखा स्तुतिकाव्य है। अन्योक्तिमुक्तालता
की १०८ अन्योक्तियाँ विभिन्न क्षेत्रों से ली गई हैं और कई मार्मिक तथ्यों का
उद्घाटन करती हैं। महाकवि शम्भु के मन में जहाँ अपने समय की कविता
के कटु आलोचकों के प्रति आक्रोश है वहाँ सत्कार्यों में अपने धन को न
खर्च करने वाले वैभवशाली व्यक्तियों के लिए निरादर की भावना है ।
 
किसी विद्वत्सभा में मूर्ख को सम्मानित होते देख कर कवि आश्रयदाता
को जतलाना चाहता है कि जिस सभा में नाना विद्याओं और कलाओं की
सुगन्धि बिखेरने वाले पण्डित शोभा देते हैं वहाँ निर्गन्ध जडबुद्धि को प्रधान
पद देना समुचित नहीं होता। किसी भी क्षेत्र में चाहे वह राजनीति का हो
या प्रशासन का, धर्म का हो या शिक्षा का अनुपयुक्त व्यक्ति को दी गई
 
1. अशेषभिषगग्रण्यं शरण्यं शास्त्रपद्धतेः ।
ववन्देऽथ तमानन्दं सुतं शम्भुमहाकवेः ॥
 
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- श्रोकण्ठचरित, २५, ६७