This page has not been fully proofread.

भल्लटशतकम्
 
परिणामस्वरूप गुणियों ने अपने गुणों को छिपा लिया है। शङ्करवर्मा के
शासन के अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाने की बुद्धि रखने वाले मनीषी
घनापहरण की शंका से चुप बैठे हैं कि यदि कहीं हमारे आन्तरिक गुणों का
पता चल गया तो यह राजसी ठाठ क्षरण भर में छिन जायेंगे। ऐसे किसी
सुप्तात्मा को सम्बोधित करते हुए कवि कमल के प्रतीक का प्रयोग करता है-

 
कि
 
कि दीर्घदीर्घेषु गुणेषु पद्म सितेष्ववच्छादनकारणं ते
अस्त्येव, तान्पश्यति चेदनार्या त्रस्तेव लक्ष्मी र्न पदं विधत्ते ॥
 

 
( भ०श०, २५ )
 
अरे कमल ! तुमने अपने श्वेत लम्बे लम्बे तन्तुओं को क्यों छुपा रखा
है ? कोई कारण तो अवश्य है । हाँ है, यदि दुष्टा लक्ष्मी इन्हें देख ले तो डर
के मारे यहाँ कदम न रखे ।
 
भल्लट ऐसे व्यक्तियों को धिक्कारता है जो निरन्तर निरादर सहते हुए
भी अयोग्य स्वामी की सेवा किये जा रहे हैं। भ्रमर और हाथी के प्रतीकों के
माध्यम से और श्लेषयुक्त विशेषणों का प्रयोग करते हुए यह कहता है-
सोऽपूर्वो
 
रसनाविपर्ययविधिस्तत्कर्णयोश्चापलं
 
दृष्टिः सा मदविस्मृतस्वपरदिक् कि भूयसोक्तेन वा ।
पूर्वं निश्चितवानसि भ्रमर हे यद् वारणोऽद्याप्यसा-
वन्तःशून्यकरो निषेव्यत इति भ्रातः क एष ग्रहः ॥
( भ०श०, १६ )
 
अत्याचारी शासक के शासन में राष्ट्र की भावी दुर्गति की कल्पना से
सिहर उठता हुआ कवि शिकारी के प्रतीक के माध्यम से
मृत्योरास्यमिवाततं धनुरिदं चाशीविषाभाः शराः
" कहता है-
-
 
शिक्षा सापि जितार्जुनप्रभृतिका सर्वाङ्गलग्ना
अन्तः क्रौर्यमहो शठस्य मधुरं हा हारि गेयं मुखे
 

 
व्याघस्यास्य यथा भविष्यति तथा मन्ये वनं निर्मृगम् ॥
( भ०श०, ६४ )
 
मौत के खुले मुँह सा यह इसका धनुष, तेज ज़हर सने ये इसके बारण,
अर्जुन को मात करने वाला इसका हुनर, सारे ग्रङ्गों की यह चुस्ती, दिल में
 
ज़ुल्म और अधरों पर मीठे मीठे गीत,
 
बस जंगल
 
बचा रहेगा ?
 
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitizedb