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सम्पादकीय
 
अन्योक्ति प्रधान मुक्तकों का प्रमुख स्थान है। इनके अतिरिक्त शृङ्गार, नीति,
भक्ति, वैराग्य, उपदेश आदि विषयभेद से मुक्तकभेद देखे जाते हैं । कविता
यदि जीवन की आलोचना है तो अन्यापदेश मुक्तक अवश्य इस कसौटी पर खरे
उतरते हैं क्योंकि इनमें कविहृदय की वे गहरी अनुभूतियाँ प्रकट होती हैं जिन्हें
वह अभिधा से नहीं कह पाता है। व्यङ्ग्योक्तियों का सहारा लेकर कवि लता,
पुष्प आदि के माध्यम से मानव जीवन के मार्मिक सत्यों का प्रकाशन हृदय और
मस्तिष्क दोनों पर गहरी चोट करता है। इस शैली पर सर्वप्रथम लिखा गया
शतक कश्मीर के कवि भल्लट का भल्लटशतक है। इसके कुछ ही पद्य
अन्योक्ति शैली से बाहर हैं। शम्भु की अन्योक्तिमुक्तालता भी इसी श्रेणी
 
में आती है। आनन्दवर्धन का देवीश अवतार का ईश्वरशतक,
 
लोष्ठक का दीनाक्रन्दनस्तोत्र और कल्हण का अर्धनारीश्वर
भक्तिपरक मुक्तक काव्य हैं । क्षेमेन्द्र के चतुर्वर्गसङ्ग्रह और चारुचर्या
उपदेशात्मक हैं। शिल्हण का शान्तिशतक वैराग्यपरक है । मुक्तककोष -
ग्रन्थों में कश्मीर के जल्हण की सूक्तिमुक्तावली, वल्लभदेव की सुभाषिता-
वली तथा श्रीवर की सुभाषितावली प्रसिद्ध हैं । इन सङ्ग्रहों में से
संस्कृत कवि कश्मीर के हैं परन्तु दौर्भाग्य से उनकी समूची रचनायें उपलब्ध
नहीं होतीं। सुभाषित सङ्ग्रहों में बिखरे पद्यों से ही उनके विषय में अनुमान
लगाया जा सकता है ।
 
बहुत
 
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४. भल्लट का जीवन तथा समय
 
श्रानन्दवर्धन (सन् ८५०-६०० ई०) ने अपने ग्रन्थ ध्वन्यालोक में बिना
नाम दिये भल्लटशतक के 'परार्थे यः पीडामनुभवति भङ्गेऽपि मधुरः' इस
मुक्तक को लिया है। इससे प्रतीत होता है कि भल्लट आनन्दवर्धन के समकालीन
युवा कवि थे जिनकी रचनाओं से जनता को परिचित जानकर आनन्दवर्धन ने
नाम देने की आवश्यकता नहीं समझी। कल्हण ने राजतर्राङ्गणी में कश्मीर
के राजा शङ्करवर्मा के समय का वर्णन करते हुए भल्लट का उल्लेख किया है ।
गुणियों के सङ्ग से विमुख रहने वाले उस राजा के राज्य में भल्लट जैसे
कवियों को बड़ा कष्टमय जीवन बिताना पड़ रहा था। एक ओर बड़े बड़े कवि
वेतन रहित रहकर जीवन का भार ढो रहे थे, दूसरी ओर बोझा उठाने वाला
जडबुद्धि लवट दो हजार दीनार वेतन के रूप में पा रहा था। उसने अपने को
नीच कुल में उत्पन्न होने वाला प्रमाणित कर दिया था। उसने संस्कृत भाषा
 
1. भल्लटशतक, ५३; ध्वन्यालोक, ३, ४१ वृत्तिभाग
 
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