2023-02-27 22:42:08 by ambuda-bot
This page has not been fully proofread.
२
भल्लटशतकम्
के अनुसार मुक्तक शब्द का प्रयोग नपुंसक लिङ्ग में होता है तथा यह काव्य-
विशेष का वाचक है । यह स्वयं मुक्त होता है अर्थात् एक मुक्तक का दूसरे से
सम्बन्ध नहीं होता है । अग्निपुराण में इस मुक्तक का प्रमुख वैशिष्ट्य
।
।
में
चमत्कार को उत्पन्न करना बताया है—
मुक्तकं श्लोक एवैकश्चमत्कारक्षमः सताम् ।
सहृदयों के लिए चमत्कार उत्पन्न करने में समर्थ एक ही श्लोक मुक्तक
होता है। किन्तु यह चमत्कृति किन किन बातों पर निर्भर रहती है इसकी
चर्चा पुराणकार ने नहीं की। केवल 'श्लोक एवैकः' कहकर मुक्तक को अनन्या-
पेक्षी स्वीकार किया गया है। इसे कथावस्तु, रस, गुण, चमत्कार आदि के
लिए अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ता है। काव्यादर्श में दण्डी ने मुक्तक का
प्रतिपादन करते हुए बताया है कि मुक्तक महाकाव्य के अन्तर्गत ही आ
जाता है -
मुक्तकं कुलकं कोषः सङ्घात इति तादृशः ।
सर्गबन्धाङ्गरूपत्वादनुक्तः
पद्यविस्तरः ॥2
वस्तु की
मुक्तक, कुलक, कोष और सङ्घात भेद सर्गबन्ध (महाकाव्य) के
हैं। इसलिए यहाँ इन पद्यरूपों का विस्तार नहीं किया गया है । 'मुक्तकं पद्यान्तर
मुक्तं श्लोकान्त र निरपेक्षम् एकमेव पद्यम्' अर्थात् मुक्तक अन्य पद्य से
(निरपेक्ष या स्वतन्त्र) होता है। एक ही पद्य जब वाक्य और वर्ण्य
दृष्टि से पूर्ण हो अर्थात् वाक्यान्वय और विषय की पूर्णता की दृष्टि से अन्य पच
की अपेक्षा न रखता हो तो वह मुक्तक कहलाता है । अमरुशतक और
भल्लटशतक के अलग अलग श्लोक मुक्तक के उदाहरण हैं । कुल
वाक्यान्वय की दृष्टि से परस्परसम्बद्ध श्लोकसमूह का नाम है । सामान्यत:
• श्लोकों के वर्ग को कुलक कहा जाता है। मुक्तक पद्यों के विषयानुसार संग्रह
का नाम कोष है। जैसे आर्यासप्तशती और सुभाषितावली आदि
परिमित कथावस्तु से युक्त एवं एक ही छन्द में ग्रथित मेघदूत आदि प्रबन्धात्मक
पाँच
रचनायें
सङ्घात कहलाती हैं ।
साहित्यदर्पण के अनुसार भी मुक्तक छन्दोबद्ध स्वतन्त्र पद्य होता है-
छन्दोबद्धपदं पद्यं तेन मुक्तेन मुक्तकम् 14
1. अग्निपुराण, ३३७, २३-२४
2. काव्यादर्श, १, १३
3. वही १, १३ वृत्तिभाग
4. साहित्यदर्पण, ६,३१४
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri
भल्लटशतकम्
के अनुसार मुक्तक शब्द का प्रयोग नपुंसक लिङ्ग में होता है तथा यह काव्य-
विशेष का वाचक है । यह स्वयं मुक्त होता है अर्थात् एक मुक्तक का दूसरे से
सम्बन्ध नहीं होता है । अग्निपुराण में इस मुक्तक का प्रमुख वैशिष्ट्य
।
।
में
चमत्कार को उत्पन्न करना बताया है—
मुक्तकं श्लोक एवैकश्चमत्कारक्षमः सताम् ।
सहृदयों के लिए चमत्कार उत्पन्न करने में समर्थ एक ही श्लोक मुक्तक
होता है। किन्तु यह चमत्कृति किन किन बातों पर निर्भर रहती है इसकी
चर्चा पुराणकार ने नहीं की। केवल 'श्लोक एवैकः' कहकर मुक्तक को अनन्या-
पेक्षी स्वीकार किया गया है। इसे कथावस्तु, रस, गुण, चमत्कार आदि के
लिए अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ता है। काव्यादर्श में दण्डी ने मुक्तक का
प्रतिपादन करते हुए बताया है कि मुक्तक महाकाव्य के अन्तर्गत ही आ
जाता है -
मुक्तकं कुलकं कोषः सङ्घात इति तादृशः ।
सर्गबन्धाङ्गरूपत्वादनुक्तः
पद्यविस्तरः ॥2
वस्तु की
मुक्तक, कुलक, कोष और सङ्घात भेद सर्गबन्ध (महाकाव्य) के
हैं। इसलिए यहाँ इन पद्यरूपों का विस्तार नहीं किया गया है । 'मुक्तकं पद्यान्तर
मुक्तं श्लोकान्त र निरपेक्षम् एकमेव पद्यम्' अर्थात् मुक्तक अन्य पद्य से
(निरपेक्ष या स्वतन्त्र) होता है। एक ही पद्य जब वाक्य और वर्ण्य
दृष्टि से पूर्ण हो अर्थात् वाक्यान्वय और विषय की पूर्णता की दृष्टि से अन्य पच
की अपेक्षा न रखता हो तो वह मुक्तक कहलाता है । अमरुशतक और
भल्लटशतक के अलग अलग श्लोक मुक्तक के उदाहरण हैं । कुल
वाक्यान्वय की दृष्टि से परस्परसम्बद्ध श्लोकसमूह का नाम है । सामान्यत:
• श्लोकों के वर्ग को कुलक कहा जाता है। मुक्तक पद्यों के विषयानुसार संग्रह
का नाम कोष है। जैसे आर्यासप्तशती और सुभाषितावली आदि
परिमित कथावस्तु से युक्त एवं एक ही छन्द में ग्रथित मेघदूत आदि प्रबन्धात्मक
पाँच
रचनायें
सङ्घात कहलाती हैं ।
साहित्यदर्पण के अनुसार भी मुक्तक छन्दोबद्ध स्वतन्त्र पद्य होता है-
छन्दोबद्धपदं पद्यं तेन मुक्तेन मुक्तकम् 14
1. अग्निपुराण, ३३७, २३-२४
2. काव्यादर्श, १, १३
3. वही १, १३ वृत्तिभाग
4. साहित्यदर्पण, ६,३१४
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri