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परिशिष्ट
भल्लटशतक का प्रस्तुत संस्करण ह प्रतिलिपि (विश्वेश्वरानन्द विश्वबन्धु
वैदिक शोध-संस्थान, होशियारपुर ) को आधार बनाकर तैयार किया गया है ।
इस प्रतिलिपि में मूल श्लोक तथा टीका भाग साथ साथ दिया हुआ है। इसकी
श्लोकसङ्ख्या ६६ तक श्लोक तथा टीका दोनों है। तदनन्तर १०० से १०५
तक श्लोक के प्रतीक देकर केवल टीका मात्र दी हुई है। इस संस्करण में कुल
१०३ श्लोक हैं। सभी प्रतियों में उपलब्ध होने वाले श्लोकों को ही इसमें
सम्मिलित किया गया है। [कि दीर्घ (२५) तथा न पादुभूति (२६) इत्यादि
कुछ श्लोक ही इसके अपवाद हैं।] इस संस्करण मे जिन श्लोकों को सम्मिलित
नहीं किया जा सका है उनकी सूची इस प्रकार है :
ww
(क) '' प्रति ( अडयार लाइब्रेरी, अडयार) में अतिरिक्त श्लोक :
१. छायामात्मन एव तां कथमसावन्यस्य कर्तुं क्षमः
ग्रीष्मोऽयं न तु शीतलस्तटभुवि स्पर्शोऽनलादेः कुतः ।
वार्ता वर्षशते गते किमफलं भावीति वा नैव वा
धिक् कष्टं मुषिताः कियच्चिरमहो तालेन बाला वयम् ॥४३॥
२. पाषाणजालजटिलोऽपि गिरि विशाल-
स्तोयस्य नित्यगमनादुपयाति भेदम् ।
कर्णेज पै रहरहः प्रतिपाद्यमानः
को वा न याति विकृति दृढसौहृदोऽपि ॥ १०६॥
३. प्रेङ्खन्मयूख नखशातशिखा विखात-
विख्यातवारणगजस्य हरे र्गुहायाम् ।
क्रोष्टा निकृष्टसरमायुतदृष्टनष्ट-
धाष्ट्र्यः प्रविष्ट इति कष्टमहोऽद्य दृष्टम् ॥ १०३॥
४. भावग्रस्तसमस्तचेतनमनो वैदग्ध्यमुग्धो जनः
कः स्पर्धामधिरोहति त्रिभुवने चित्रं त्वया तन्वता ।
भावानां सदसद्विवेककलनाभ्यासेन जीरर्णा तनु
दूरादेव न नाम येन हृदयं सोढुं कृतं न ग्रहः ॥६।
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri
भल्लटशतक का प्रस्तुत संस्करण ह प्रतिलिपि (विश्वेश्वरानन्द विश्वबन्धु
वैदिक शोध-संस्थान, होशियारपुर ) को आधार बनाकर तैयार किया गया है ।
इस प्रतिलिपि में मूल श्लोक तथा टीका भाग साथ साथ दिया हुआ है। इसकी
श्लोकसङ्ख्या ६६ तक श्लोक तथा टीका दोनों है। तदनन्तर १०० से १०५
तक श्लोक के प्रतीक देकर केवल टीका मात्र दी हुई है। इस संस्करण में कुल
१०३ श्लोक हैं। सभी प्रतियों में उपलब्ध होने वाले श्लोकों को ही इसमें
सम्मिलित किया गया है। [कि दीर्घ (२५) तथा न पादुभूति (२६) इत्यादि
कुछ श्लोक ही इसके अपवाद हैं।] इस संस्करण मे जिन श्लोकों को सम्मिलित
नहीं किया जा सका है उनकी सूची इस प्रकार है :
ww
(क) '' प्रति ( अडयार लाइब्रेरी, अडयार) में अतिरिक्त श्लोक :
१. छायामात्मन एव तां कथमसावन्यस्य कर्तुं क्षमः
ग्रीष्मोऽयं न तु शीतलस्तटभुवि स्पर्शोऽनलादेः कुतः ।
वार्ता वर्षशते गते किमफलं भावीति वा नैव वा
धिक् कष्टं मुषिताः कियच्चिरमहो तालेन बाला वयम् ॥४३॥
२. पाषाणजालजटिलोऽपि गिरि विशाल-
स्तोयस्य नित्यगमनादुपयाति भेदम् ।
कर्णेज पै रहरहः प्रतिपाद्यमानः
को वा न याति विकृति दृढसौहृदोऽपि ॥ १०६॥
३. प्रेङ्खन्मयूख नखशातशिखा विखात-
विख्यातवारणगजस्य हरे र्गुहायाम् ।
क्रोष्टा निकृष्टसरमायुतदृष्टनष्ट-
धाष्ट्र्यः प्रविष्ट इति कष्टमहोऽद्य दृष्टम् ॥ १०३॥
४. भावग्रस्तसमस्तचेतनमनो वैदग्ध्यमुग्धो जनः
कः स्पर्धामधिरोहति त्रिभुवने चित्रं त्वया तन्वता ।
भावानां सदसद्विवेककलनाभ्यासेन जीरर्णा तनु
दूरादेव न नाम येन हृदयं सोढुं कृतं न ग्रहः ॥६।
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri