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भल्लटंशतकम्
 
अग्निना ज्वलिताः दीपिता: दग्धा इति यावत् । व्याधाः किराताः स्वाहितचापाः
अधिज्य वनुर्दधानाः सन्तः पदानि मृगपदचिह्नानि अनुसरन्ति अन्विष्यानुधावन्ति ।
एवं स्थिते मृगाणां यूथपति मृगयूथपतिः । सापेक्षत्वेऽपि गमकत्वात्समास: ।
कृष्णसारादिः कं देशं विषयं निर्बाधमाश्रयति प्राप्स्यति । बाधायाः सार्वत्रि-
कत्वान्न किमपीत्यर्थः । महान्तो विपत्स्वपिन धैर्यं परित्यजन्तीति भावः ।
 
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दिशायें रस्सी से व्याप्त हैं (इधर उधर जाल लगे हुए हैं), पानी विष से
मिश्रित है, पृथ्वी खोद दी गई है (गड्ढे बने हुए हैं ), वनप्रदेश आग से
प्रदीत है (और) पैरों का अनुसरण धनुषों को धारण करने वाले शिकारी कर
रहे हैं (शिकारी पीछा कर रहे है । अब) हरिणों के झुण्ड का स्वामी ( हरिण )
किस स्थान का आश्रय ले १
 
यूथपति के प्रारणापहरण के लिए एक ही कारण पर्याप्त था । किन्तु अनेक
कारणों का समवाय होने से यहां समुच्चय अलङ्कार है। यहाँ प्रस्तुत वाच्य
यूथपति हरिण के वृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य अपने स्थान को छोड़ने में असमर्थ
आपत्तिग्रस्त किसी नृपति के वृत्तान्त की प्रतीति होने से प्रस्तुतप्रशंसा
अलङ्कार है ।
 
The ropes are stretched in all the directions, the water is
mixed with the poison, the earth has been dug, the forests are on
fire and the hunters with their bows are following the footsteps
( of deers now), where, should the leader of the group of deers
 
go ?
 
अयं वारामेको निलय इति रत्नाकर इति
 
श्रितोऽस्माभिस्तृष्णातरलितमनोभि र्जलनिधिः ।
जानीते निजकरपुटोकोटरगतं
 
क एवं
 
क्षरणादेनं ताम्यत्तिमिनिकर मापास्यति मुनिः ॥१०० ॥
 
श्रयं जलनिधिः वाराम् एकः निलय इति, रत्नाकर इति तृष्णातर-
लितमनोभिः अस्माभिः श्रितः । क एवं जानीते यत् मुनिः निजकरपुटी-
1. म', म; मकर अ, क, ह
 
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