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भल्लट शतकम्
1
त्याह—वाता वान्त्विति । कदम्बरेणुशवला: कदम्बरेणुना नीपपुष्पपरागेरण
शबला धूसराः । वाता वायवो वान्तु सञ्चरन्तु । वातेरदादित्वाल्लोट् । वर्षासु
खलु कदम्ब: पुष्पितो भवति । सर्पद्विषो मयूराः सोत्साहाः मेघोदयदर्शनेन
हर्षिता नृत्यन्तु नर्तनं कुर्वन्तु । नवतोयभारगुरवः नवेन वाषिकत्वान्नूतनेन तोय-
गर्जन्त्वित्यर्थः
मुञ्चन्तु
भारेण जलनिवहेन गुरवो निश्चला घनाः जलदाश्च ना
वातादीनां तुल्यपुरुषत्वेन प्रातिकूल्याचरणमुचितमित्यर्थः । विद्युच्चञ्चले कान्त-
वियोगदुःखगहने कान्तेन वल्लभेन सह वियोगो विश्लेषस्तेन यदुःखं तदेव गहनं
सङ्कटम् अरण्यं वा तत्र मग्नां प्रविष्टाम् अतएव दीनाननां म्लानमुखीं तां
वीक्ष्य । उभयोः स्त्रीत्वे स्त्रीभावे तुल्ये साधारणे सत्यपि त्वमप्यकरुणा कृपा-
विहीना सती कि किमर्थं प्रस्फुरसि प्रकर्षेण विलससि । स्त्रीत्वाद् विद्युत: स्फुर
रणमनुचितमित्यर्थ: । सजातीयया हितैषिण्या भवितव्यत्वादिति भावः । यदाह
भारविः—बद्धकोपविकृतीरपि रामाश्चारुताभिरमतामुपनिन्ये । पश्यतां मधुमतां
दयितानामात्मवर्गहितमिच्छति सर्वः ।
११८
कदम्ब के पराग से मिले हुए पवन (भले ही) चलें, साँपों के शत्रु मोर
नाचें और नये जल के भार से भारी भरकम उत्साही बादल (भी) गजेंन करें
( परन्तु हे ) निर्दय बिजली ! ( अपने ) प्रियतम के वियोग की दुःखाग्नि में जलती
हुई ग्लानमुखी मुझे देखकर समान नारीरूप होने पर तुम भी क्यों चमक
रही हो ? (तुम्हारा यह चमककर मुझे चिढ़ाना अनुचित है।)
यहाँ स्फुरण के अनौचित्य में विद्युत् का स्त्रीत्व कारण है । अतः यहाँ
काव्यलिङ्ग है । विरहिणी नायिका के द्वारा अचेतन विद्युत् पर चेतन नायिका
तथा वातादि पर नायक के व्यवहार का आरोप होने के कारण समासोक्ति
अलङ्कार है । अप्रस्तुत वाच्य नायिका तथा विद्युत् के वृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य
सजातीय कष्टदाता व्यक्ति के वृत्तान्त की प्रतीति होने से यहाँ प्रस्तुतप्रशंसा
भी है ।
Let the winds, mixed with the polen of Kadamba flowers,
blow; let the peacocks dance; let the clouds filled with new
waters and full of vigour, thunder; but O merciless lightning !
how do you shine on seeing me of wretched face burning in
the fire of grief caused by the separation of my husband, you
who belong to the same female stock.
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri
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त्याह—वाता वान्त्विति । कदम्बरेणुशवला: कदम्बरेणुना नीपपुष्पपरागेरण
शबला धूसराः । वाता वायवो वान्तु सञ्चरन्तु । वातेरदादित्वाल्लोट् । वर्षासु
खलु कदम्ब: पुष्पितो भवति । सर्पद्विषो मयूराः सोत्साहाः मेघोदयदर्शनेन
हर्षिता नृत्यन्तु नर्तनं कुर्वन्तु । नवतोयभारगुरवः नवेन वाषिकत्वान्नूतनेन तोय-
गर्जन्त्वित्यर्थः
मुञ्चन्तु
भारेण जलनिवहेन गुरवो निश्चला घनाः जलदाश्च ना
वातादीनां तुल्यपुरुषत्वेन प्रातिकूल्याचरणमुचितमित्यर्थः । विद्युच्चञ्चले कान्त-
वियोगदुःखगहने कान्तेन वल्लभेन सह वियोगो विश्लेषस्तेन यदुःखं तदेव गहनं
सङ्कटम् अरण्यं वा तत्र मग्नां प्रविष्टाम् अतएव दीनाननां म्लानमुखीं तां
वीक्ष्य । उभयोः स्त्रीत्वे स्त्रीभावे तुल्ये साधारणे सत्यपि त्वमप्यकरुणा कृपा-
विहीना सती कि किमर्थं प्रस्फुरसि प्रकर्षेण विलससि । स्त्रीत्वाद् विद्युत: स्फुर
रणमनुचितमित्यर्थ: । सजातीयया हितैषिण्या भवितव्यत्वादिति भावः । यदाह
भारविः—बद्धकोपविकृतीरपि रामाश्चारुताभिरमतामुपनिन्ये । पश्यतां मधुमतां
दयितानामात्मवर्गहितमिच्छति सर्वः ।
११८
कदम्ब के पराग से मिले हुए पवन (भले ही) चलें, साँपों के शत्रु मोर
नाचें और नये जल के भार से भारी भरकम उत्साही बादल (भी) गजेंन करें
( परन्तु हे ) निर्दय बिजली ! ( अपने ) प्रियतम के वियोग की दुःखाग्नि में जलती
हुई ग्लानमुखी मुझे देखकर समान नारीरूप होने पर तुम भी क्यों चमक
रही हो ? (तुम्हारा यह चमककर मुझे चिढ़ाना अनुचित है।)
यहाँ स्फुरण के अनौचित्य में विद्युत् का स्त्रीत्व कारण है । अतः यहाँ
काव्यलिङ्ग है । विरहिणी नायिका के द्वारा अचेतन विद्युत् पर चेतन नायिका
तथा वातादि पर नायक के व्यवहार का आरोप होने के कारण समासोक्ति
अलङ्कार है । अप्रस्तुत वाच्य नायिका तथा विद्युत् के वृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य
सजातीय कष्टदाता व्यक्ति के वृत्तान्त की प्रतीति होने से यहाँ प्रस्तुतप्रशंसा
भी है ।
Let the winds, mixed with the polen of Kadamba flowers,
blow; let the peacocks dance; let the clouds filled with new
waters and full of vigour, thunder; but O merciless lightning !
how do you shine on seeing me of wretched face burning in
the fire of grief caused by the separation of my husband, you
who belong to the same female stock.
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri
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