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भल्लटशतकंम्
 
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कारण) विजयाभिलाषी और राजा के महल के दरवाज़े पर दृष्टि गढ़ाने वाले
( सांसारिक लोभी) मनुष्य (है) वे क्रोध ( के प्रवेश के कारण) उद्दण्ड बेंतधारी
द्वारपालों से परे धकेले जा रहे हैं (परन्तु ) भोगों के भोगने में समाप्त रुचि वाले
जिन (वीतराग) पुरुषों ने धनों के प्रति सम्मान (आसक्ति) नहीं किया वे प्रशस्त
मनों वाले (महात्मा) लोग देवनदी गङ्गा सुरम्य तीर पर बैठे हैं ।
 
यहाँ सांसारिक विषयों में फंसे भोगी मनुष्यों तथा वीतराग मुनियों के
जीवन की वाच्य वस्तु से नि:स्पृह व्यक्तियों का जीवन ही स्तुत्य है इस व्यङ्ग्य
वस्तु की प्रतीति हो रही है । इस प्रकार यहाँ पर्यवसान में शान्त रस का अनु-
भव होता है ।
 
These ambitious persons who with a view to obtain wealth,
are looking at the doors of the palace of a king are being driven
off by the angry gatekeepers, while they who, desisting from
wealth and enjoyment of worldly objects, have not shown any
regard for wealth, are sitting on the banks of the Gangā, the
river of gods.
 
वाता वान्तु कदम्बरेणुशबला' नृत्यन्तु सर्पद्विषः
सोत्साहा नवतोयभारगुरवों मुञ्चन्तु नादं घनाः ।
मग्नां कान्त वियोगदुःखदहने मां वीक्ष्य दीनाननां
विद्युत् ! किं स्फुरसि त्वमप्यकरुणे' स्त्रीत्वेऽपि तुल्ये सति ॥१७॥
 
कदम्बरेणुशबलाः वाता: वान्तु सर्पद्विषः नृत्यन्तु, नवतोयभार-
-
गुरवः सोत्साहाः घनाः नादं मुञ्चन्तु । ( परन्तु हे) अकरुणे विद्युत् !
कान्तवियोगदुःखदहने मग्नां दीनाननां मां वीक्ष्य स्त्रीत्वे तुल्ये सति अपि
त्वम् अपि कि स्फुरसि ?
 
विजातीयकृत: क्लेशो भूयानपि क्षम्यते न सजातीयकृतः क्लेश: स्वल्पोऽपी.
 
1. अ, म1, ह; रेणुबहला क
 
2. म, ह; नववारिवाहगुरवो म; नवतोयभारभरतो अ; नवतोयपानगुरवो क
 
3. क; गहने ह; जलधो अ, म
 
4. म, म; प्रस्फुरसि अ, क, ह
 
5. अ, क, ह, म; मध्यकरुणा म
 
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