2023-02-27 22:43:00 by ambuda-bot
This page has not been fully proofread.
१०४
भल्लटशतकम्
न संक्षयं प्राप्येत क्षि क्षय इत्यस्माद् भावे लिङ् । सरितस्समागता अपि समुद्रस्य
कार्श्यं कार्त्स्न्येन न परिहर्तुं शक्नुवन्ति । किमु वृद्धि प्रापयितुमिति भावः ।
सामाजिका अपि कस्मिश्चित् केनचित् क्लिश्यमाने दिदृक्षया समागता अपि क्लेशं
कर्तुं परिहतुं वा न शक्नुवन्ति । किन्तु माध्यस्थ्येन पश्यन्ति । तथा सरित्स्वाग-
तास्वपि समुद्रस्य वृद्धिः क्षयो न वेत्यवसेयम् ।
यदि प्रवृद्ध जल वाले समुद्र को लहरों की हिलोरों से शब्दायमान जो
जीवन चन्द्रमा से ही (मिलता है) तो वही (भला) क्या पहाड़ी नदियों के प्रवाह
देंगे ? अर्थात् वे वैसा जीवन नहीं दे सकेंगे । यदि यह बात मिथ्या है तो (लोक
में सुख-दुःख के श्रवसर पर)
प्रतिक्रिसे
विरहित) होकर साक्षाद् द्रष्टा बनकर आये हुए तटस्थ व्यक्तियों की भाँति
(पहाड़ी नदियों के उन्हीं प्रवाहों) के से
मिलने के लिए) ने पर भी (कृष्णपक्ष में) समुद्र को घटना नहीं चाहिए ।
(परन्तु उनके मिलने पर भी सागर में जलवृद्धि नहीं होती और उसमें जलाभाव
बना ही रहता है) ।
• स्रोतों को साक्षी के समान बताने के कारण यहाँ उपमालङ्कार है। प्रस्तुत
सामान्य तटस्थ व्यक्ति भी
नदी के वृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य प्रभावशाली व्यक्ति और
वाच्य समुद्र और क्षुद्र
If the sea with its rising waters gets life resounding with the
movement of waves, it is only due to the moon.
Could the
waters of the hilly streams give life to it? No, otherwise it
would not get diminished in their presence when they arrive
running hurriedly but being unable to take any counteraction
just watch like eye witnesses.
किलेकचुलुकेन यो मुनिरपारमब्धिं पपौ
सहस्रमपि घस्मरोऽविकृतमेष तेषां पिबेतु ।
न सम्भवति' किन्त्विदं बत विकासिधाम्ना विना '
4
सदप्यसदिव स्थितं स्फुरितमन्त ओजस्विनाम् ॥ ८८॥
1
चुके
2, छ, क, विकृत एप म; विकृतमेव म', ह
3. म), म, ह; स सम्भवति अ, क
4. म म ह किञ्चिदम्बरविकाधानिक रविका सिधाम्नाऽमुना अ
5. क; ऊजेस्विनाम् अ, म', मई, ह्
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri
भल्लटशतकम्
न संक्षयं प्राप्येत क्षि क्षय इत्यस्माद् भावे लिङ् । सरितस्समागता अपि समुद्रस्य
कार्श्यं कार्त्स्न्येन न परिहर्तुं शक्नुवन्ति । किमु वृद्धि प्रापयितुमिति भावः ।
सामाजिका अपि कस्मिश्चित् केनचित् क्लिश्यमाने दिदृक्षया समागता अपि क्लेशं
कर्तुं परिहतुं वा न शक्नुवन्ति । किन्तु माध्यस्थ्येन पश्यन्ति । तथा सरित्स्वाग-
तास्वपि समुद्रस्य वृद्धिः क्षयो न वेत्यवसेयम् ।
यदि प्रवृद्ध जल वाले समुद्र को लहरों की हिलोरों से शब्दायमान जो
जीवन चन्द्रमा से ही (मिलता है) तो वही (भला) क्या पहाड़ी नदियों के प्रवाह
देंगे ? अर्थात् वे वैसा जीवन नहीं दे सकेंगे । यदि यह बात मिथ्या है तो (लोक
में सुख-दुःख के श्रवसर पर)
प्रतिक्रिसे
विरहित) होकर साक्षाद् द्रष्टा बनकर आये हुए तटस्थ व्यक्तियों की भाँति
(पहाड़ी नदियों के उन्हीं प्रवाहों) के से
मिलने के लिए) ने पर भी (कृष्णपक्ष में) समुद्र को घटना नहीं चाहिए ।
(परन्तु उनके मिलने पर भी सागर में जलवृद्धि नहीं होती और उसमें जलाभाव
बना ही रहता है) ।
• स्रोतों को साक्षी के समान बताने के कारण यहाँ उपमालङ्कार है। प्रस्तुत
सामान्य तटस्थ व्यक्ति भी
नदी के वृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य प्रभावशाली व्यक्ति और
वाच्य समुद्र और क्षुद्र
If the sea with its rising waters gets life resounding with the
movement of waves, it is only due to the moon.
Could the
waters of the hilly streams give life to it? No, otherwise it
would not get diminished in their presence when they arrive
running hurriedly but being unable to take any counteraction
just watch like eye witnesses.
किलेकचुलुकेन यो मुनिरपारमब्धिं पपौ
सहस्रमपि घस्मरोऽविकृतमेष तेषां पिबेतु ।
न सम्भवति' किन्त्विदं बत विकासिधाम्ना विना '
4
सदप्यसदिव स्थितं स्फुरितमन्त ओजस्विनाम् ॥ ८८॥
1
चुके
2, छ, क, विकृत एप म; विकृतमेव म', ह
3. म), म, ह; स सम्भवति अ, क
4. म म ह किञ्चिदम्बरविकाधानिक रविका सिधाम्नाऽमुना अ
5. क; ऊजेस्विनाम् अ, म', मई, ह्
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri