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भल्लटशतकम्
 
सत्यवादिनश्च । ये भुजङ्गाः । अगसं निरपराधं लोकं जनं हिंसितुं रन्ध्रेषु
वल्मीकादिषु । अन्यत्र विनिपातेषु । जाग्रति प्रबुद्धा भवन्ति । जागर्तेलेटि
अदभ्यस्तादिति झेरदादेशः । सदसतो: सुजनदुर्जनयोः गुणदोषयोश्च । अन्यत्र
मूढाः सदसद्विवेकरहिताः । तेऽमी व्याला अपि मूर्धभिः शिरोभिः मणिं दधति
विभ्रति । तस्माद् गुणशालिनां विद्यादिसद्गुणशोभिनामौचित्यात्सम्मानस्य
समुचितत्वात् । क्वचिदपि कुत्रापि भ्रंशः स्थानाच्च्युतिर्नास्ति । न विद्यते ।
तस्मात् स्वपदभ्र शशंका न कर्तव्येत्यर्थः ।
 
जो साँप मानों ज़हर में बुझाकर (डुबोकर) बनाये गये हैं, जिनकी टेढ़ी चाल
(दुष्टता) का कितना बखान किया जाय ? दो जीभों वाले बनकर जो निरपराध
व्यक्ति को मारने के लिए छेदों में (बैठकर) जागते रहते हैं । (इस प्रकार के)
बुरे भले आदमों के विषय में मूर्ख (विवेकरहित) वे ये साँप भी (अपने) सिरों
पर (इन चूड़ा) मणियों को धारण करते हैं । (सम्मान-प्राप्ति की) उपयुक्तता
होने के कारण गुणी पुरुषों का कहीं भी (अपने उचित पद या स्थान से) पतन
नहीं होता है (इसलिए किसी प्रकार की) चिन्ता नहीं करनी चाहिए ।
 
यहाँ प्रस्तुत वाच्य भुजङ्गचूडामणिवृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य दुर्गुणी
व्यक्तियों द्वारा भी गुणवानों का सम्मान किया जाता है—इस अर्थ की प्रतोति
होने से अप्रस्तुतप्रशंसा है। कुसृति, द्विरसनाः तथा रन्ध्रादि श्लिष्ट पदों के
प्रयोग के कारण यह अप्रस्तुतप्रशंसा श्लेषानुप्राणित है। प्रथम तीन पंक्तियों
के भीतर सर्पों द्वारा चूडामणि का सम्मान किया जाता है इस विशेष वचन का
चतुर्थ पंक्ति के गुणशालियों की पदच्युति नहीं होती है—इस सामान्य वचन
से समर्थन होने के कारण अर्थान्तरन्यास अलङ्कार है ।
 
Do not worry. The meritorious persons, as it is proper, do
not face a fall at any place. Even the evil serpents (wicked
people) who are born smeared with poison, whose evil actions
(bad movements)
are innumerable, who possess double tongue
 
to kill innocent people, who keep awake in holes (are keen to
find fault with others) keep the (fine crests) jewel (a noble
 
person) on their heads (in Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri
 
position).