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'भल्लटशतकम्
 
भयरहिताः । गवां पशूनामुक्षादीनां मृगाणां कृष्णसारादीनां गरणा यूथानि पुर
एव तृणपुरुषस्याग्रत एव सस्यं शाल्यादिकम् । सम्यगश्नन्ति भक्षयन्ति । पश्या-
वलोकय । पश्येति जनः संबुद्धयते । न केवलमाकार एव कार्यसिद्धिहेतुरिति भावः ।
 
सस्यसंरक्षणार्थं तृणकृतपुरुषकरणात् स्वस्य भक्षणरूपस्य विरुद्धकार्य-
स्योत्पत्तेविषमालंकारः । तदुक्तम् – विरुद्धकार्यस्योत्पत्तिरपरं विषमं मतमिति ।
 
८५
 
देखो ! किसान ने अपनी खेती की रखवाली के लिए अपना नमूना यह
तिनकों का आदमी बनाया । ( परन्तु ) इस जड़ के क्रियाविहीन होने के कारण
समाप्त हुए डर वाले गौवों और हरिणों के झुण्ड निश्चय ही इसके सामने ही
अन्न को खा रहे हैं ।
 
किसान ने तृणपुरुष को खेती की रक्षा करने रूप इष्टप्राप्ति के लिए बनाया
था किन्तु इष्ट की प्राप्ति के स्थान पर खेती के भक्षण रूप अनिष्टाप्ति हो गई
अतः यहाँ विरुद्ध कार्य की उत्पत्ति होने से विषमालङ्कार है ।
 
अप्रस्तुतवाच्य कृषीवलतृणपुरुषवृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य राजा के द्वारा
दुर्बल अमात्यादि की नियुक्ति रूप वृत्तान्त की प्रतीति होने से अप्रस्तुतप्रशंसा
अलङ्कार भी है ।
 
Behold this man of straw, the image of whom was made by
the farmer to protect the farm. But due to the inactiveness of
that image, the fear of the herds of animals like cows and deer
is removed and they are eating corn in front (of the image).
 
कस्यानिमेषनयने' विदिते' दिवौको-
लोकादृते जगति ते अपि वै गृहीत्वा ।
पिण्डप्रसारितमुखेन तिमे किमेतद्
 
दृष्टं न बालिश विशद् बडिशं त्वयान्तः ॥७५॥
 
विदिते । ते वै गहीत्वा अपि पिण्डप्रसारितमुखेन त्वया अन्तः विशद्
हे बालिश तिमे ! दिवौकोलोकाद् ऋते जगति कस्य अनिमेषनयने
 
1. अ, म', ह; कस्यानिमेषवितते क
2. म), ह; नयने क; वितते अ
 
3. अ, क, ह; विशदे म
 
4. अ, क, ह; बालिशतया म
 
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