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भल्लटशतकम्
 
the world if it gets angry; all this greatness of Seșa is marvellous
in three worlds on account of which the bad nature of its being
related to serpents is completely eradicated.
 
वर्षे समस्त एवैक: श्लाघ्यः कोऽप्येष वासरः ।
 
जनै महत्तया नीतो यो न पूर्वे र्न चापरैः ॥६२॥
 
समस्ते एव वर्षे कः अपि एषः वासरः इलाध्यः यः न पूर्वैः न च
अपरैः जनैः महत्तया नीतः ।
 
दुःखसहचरिताच्चिरक।लजीवनादप्यनवद्यसुख सहचरितमल्पकालजीवितमेव
श्रेय इत्याह—वर्षे इति । समस्ते निखिले वर्षे संवत्सरप्रभवादिषष्टिसंवत्सर
इत्यर्थः । स्याद् वृष्टौ लोकधात्र्यंशे वत्सरे वर्षमस्त्रियाम् इत्यमरः । एवं कोऽप्यन्यो
वासरो दिवसः श्लाघ्यः स्तुत्यः। समौ दिवसवासरावित्यमरः । यो वासरः पूर्वैः
प्राचीनैः जनैः कपिलादियोगिवृन्दैरित्यर्थः । महत्तया दीर्घतरेण न नीतः । अपरै-
भविभिरन्यैर्महात्मभिश्च महत्तया न नयिष्यते । अल्पत्वेन न नीतः नयिष्यत
इत्यर्थः । स्वस्य रूपानुसन्धानजनितनिरतिशयसुखानुषङ्गान्महानपि कालोऽल्पः
 
प्रतीयत इत्यर्थः ।
 
सारे ही साल में अनिबर्चनीय श्रानन्द से परिपूर्ण यह एक ही ऐसा दिन
प्रशंसनीय है जिसे न तो प्राचीन पूर्वजों ने और न ही अर्वाचीन पुरुषों ने गौरव
(तथा ) स्वाभिमान के साथ बिताया है ।
 
किसी अत्याचारी शासक के शासन के अन्त होने की शुभ वेला के समय
का यह वचन है। दासता की समाप्ति के अनन्तर पन्द्रह अगस्त जैसे स्वाधीनता
दिवस पर ऐसी ही ग्रानन्दानुभूति होती है। ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसे
 
होगा । अथवा प्रसन्नता भरा थोड़ा सा जीवन दुःख भरे लम्बे जीवन से अच्छा है।
• निरतिशय ग्रानन्दोत्सव का वर्णन होने से यहाँ उदात्तालङ्कार है। उदात्तं
वस्तुनः सम्पत् - लोकोत्तर प्रभाव या समृद्धि का जहाँ वर्णन होता है वहाँ
 
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उदात्तालङ्कार होता है।
 
This single happy day is adorable even if it occurs only once
 
1. अ, प, ह; लोके क
 
2. संशोधित दिनो श्र, क, ह, दिन: म
 
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