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भल्लटशतकम्
 
अरे मित्र साँप ! निश्चय ही यह क्या बात है ? (तुम्हारे) मस्तक पर श्रेष्ठ
मणियाँ हैं, पर्वत की गुफा तुम्हारा घर है, अपनी त्वचा (केंचुली) का ( तुम)
परित्याग करते हो और बिना किसी प्रयत्न से प्राप्त हवाओं से तुम अपना
जीवन चलाते हो – एक ओर तो तुम्हारा ऐसा ( प्रशंसनीय)
 
है
परन्तु दूसरी ओर तुम्हारी कुटिल चाल है, दो जीमें हैं और तुम्हारी आँख में
ज़हर है । जिस दिशा की ओर तुम देखते हो उसी में दीया जल जाता है अर्थात्
आग लग जाती है ।
 
यहाँ प्रस्तुत वाच्य सर्पवृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य गुण और दोष दोनों से
ही समान रूप में समन्वित, किसी विषयासक्त उच्च व्यक्ति की प्रतीति होने से
अप्रस्तुत प्रशंसा अलङ्कार है । भोगी, द्विरसना और आत्मत्वचा में शब्दशक्तिमूलक
ध्वनि हैं । परस्पर विरोधी गुरणों का एक ही स्थान में सन्निवेश होने के कारण
विषमालङ्कार भी है।
 
O friend snake ! what is this indeed ? On one hand you
have such a good character, you have jewels on your hood,
you live in hilly cave, you cast off your skin, you live on air
which is obtained without any effort but on the other hand
you have crooked gait, speech with double tongue, poison in
your eyes and a burning light in the direction in which you see.
 
कल्लोल वेल्लितदृषत्परुषप्रहारै-
रत्नान्यमूनि मकरालय मावमंस्थाः ।
कि कौस्तुभेन विहितो भवतो न नाम
 
याच्ञाप्रसारितकरः पुरुषोत्तमोऽपि ॥६०॥
 
हे मकरालय ! कल्लोलवेल्लित दृषत्परुषप्रहारै: अमूनि रत्नानि मा
अवस्थाः । कि नाम कौस्तुभेन पुरुषोत्तमः अपि भवतः यात्रा-
प्रसारितकरः न विहितः ।
 
यत् प्रभुर्दुष्टसङ्गवशेन दुर्भृत्यानिव मान्यानप्यवमानयति तबिडम्बनायाह-
कल्लोलेति । हे मकरालय समुद्र ! अनेन दुष्टपरिवेष्टितो दुष्प्रभुरपि प्रतीयते ।
कल्लोलैरूमिभिस्तरङ्गैः वेल्लिताश्चलिता दृषद: पाषाणा: ताभिर्ये परुषा
 
1. अ, क, म; मकराकर ह
 
CC-0 Shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri
 
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