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भल्लट शतकम्
 
व्यतिरेकालंकार है। प्रस्तुत वाच्य अम्बुधिवृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य दान में
अक्षम धर्मात्मा व्यक्ति के वृत्तान्त की प्रतीति होने से अप्रस्तुत प्रशंसा अलंकार
भी है ।
 
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O sea ! may I ask you some thing, if you do not feel
annoyed and are willing to lend your ears to me for a while ?
Please give the reply after due consideration. How much more
(painful) than the submarine fire is the sight of those thirsty
travellers who
greatly disappointed silently sigh and gaze at
 
you ?
 
भिद्यतेऽनुप्रविश्यान्तर्यो
 
यथारुच्युपाधिना ।
विशुद्धिः कीदृशी तस्य जडस्य स्फटिकाश्मनः ॥४८॥
 
तस्य जडस्य स्फटिकाश्मन: ( इयं ) कीदृशी विशुद्धिः ? यः (स्फटि-
काश्मा) उपाधिना अन्त: अनुप्रविश्य यथारुचि भिद्यते ।
 
यः कश्चित्सुजनोऽपि कार्यवशेन खलमासाद्य स इव व्यवहरति । स सुजनो
न भवतीत्याह – भिद्यत इति । यत्स्फटिकाइम उपाधिना जपाकुसुमसम्बन्धेन
यथारुचि स्वकान्तिमनतिक्रम्य । जपाकुसुमाद्यसन्निधाने स्वच्छतयाऽनपायादिति
भाव: । अन्तः स्वमध्ये अनुप्रविश्य । विशतेरन्तर्भावितण्यर्थात् क्त्वो ल्यप् भिद्यते
भेदं नीयते यत्रापि भिदेरन्तर्भावितण्यर्थात् कर्मरिण लट् । जडस्य शीतलस्य
अन्यत्राज्ञस्य । स्फटिकाश्मनः स्फटिकशिलायाः । विशुद्धिः कीदृशी कथम्भूता ।
स्फटिको हि सङ्गवशेन विक्रियामेति । तथा सङ्गवशेन विकुर्वतः पुरुषस्य सुजनता
दूरादेवापास्तेत्यर्थः ।
 
उस जड बिल्लौर पत्थर की (यह ) कैसी स्वच्छता है ? जो (बिल्लौर मणि
किसी) उपाधि (भूत वस्तु जपाकुसुमादि) के द्वारा भीतर प्रवेश करके इच्छानुसार
विदीर्ण कर दिया जाता है ।
 
जब बिल्लौर मणि के निकट जपाकुसुम (एक प्रकार का लाल पुष्प ) रख
दिया जाता है तो यह श्वेत बिल्लौर मरिण अपनी श्वेतिमा छोड़कर जपाकुसुम
की लालिमा को धारण कर लेती है। यहाँ बिल्लौर मरिण द्वारा अपना गुण
छोड़कर दूसरी वस्तु के गुरण को ग्रहण करने के कारण तद्गुण अलङ्कार है ।
1. क, ह; स्फटिकात्मनः अ, म
 
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