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भल्लटशतकम्
५१
(इसके खारे जल के कारण ही कोई इसके पास नहीं जाता है। फिर भी) दाढ़ों
के कारण भयङ्कर मकरसमूह के द्वारा भीषण बनाई गई तरङ्गश्रेणियों से यह
दूसरे व्यक्तियों को क्यों डराता है ?
यहाँ दूसरों को भगाने के लिए अपेय ( खारा) जल हेतु ही पर्याप्त है ।
इसके साथ करालदंष्ट्रायुक्त मकरों तथा भयंकर तरङ्गों रूप अन्य भय के
हेतुओं के आ जाने से यहाँ समुच्चय अलङ्कार है । अप्रस्तुत वाच्य क्षाराम्बुधि-
वृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य दौवारिकादि से परिवृत कृपरगनृपवृत्तान्त की प्रतीति
होने से अप्रस्तुतप्रशंसा अलङ्कार भी है ।
It is well known to everybody including the women and the
children that the thirsty people keep away from the sea owing to
its water being unworthy of drinking. Why is it then frightening
others by its furious waves full of groups of crocodiles possess-
ing sharp teeth ?
स्वमाहात्म्यश्लाघा गुरुगहनगर्जाभिरभितः
क्रुशित्वा क्लिश्नासि' श्रुतिकुहरमब्धे किमिति नः ।
इहैकश्चूडालो ह्यजनि कलशाद्यस्य सकलैः
पिपासोरम्भोभिश्चुलुकमपि नो भर्तुमशकः ॥४५॥
हे अब्धे ! स्वमाहात्म्यश्लाघागुरुगहनगर्जाभिः अभितः त्रुशित्वा
नः श्रुतिकुहरं किमिति क्लिश्नासि ? इह एक: चूडालः कलशात् अजनि ।
पिपासोः यस्य चुलुकमपि त्वं सकलैः अम्भोभिः भर्तुं नो अशकः ।
यः स्वश्लाघानिरतस्सन् परान् नाद्रियते तद्दूषणायाह – स्वमाहात्म्य
श्लाघेति । हे श्रब्धे ! स्वमाहात्म्यश्लाघागुरुगहनगर्जाभिः स्वस्यात्मनो माहात्म्यं
महत्ता तस्य श्लाघा स्तुतिः तया गुरवो महत्यो या गहनगर्जा गम्भीरध्वनय-
स्ताभिरन्यत्र भर्त्सनादिभिरित्यर्थः । अभितः सर्वतः क्रुशित्वा ध्वनित्वा । अन्यत्र
समाहूय नोऽस्माकम् । श्रुत्योः कर्णयोः कुहरं रन्ध्र किमिति किमर्थं क्लिश्नासि
बाधसे ? कर्णकठोरं ब्रवीषीत्यर्थः । इह जगति । एकश्चूडाल: चूडा शिखा
1. अ; मुष्णासि क, म, ह
2. अ, मूढै बँ.shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri
क
५१
(इसके खारे जल के कारण ही कोई इसके पास नहीं जाता है। फिर भी) दाढ़ों
के कारण भयङ्कर मकरसमूह के द्वारा भीषण बनाई गई तरङ्गश्रेणियों से यह
दूसरे व्यक्तियों को क्यों डराता है ?
यहाँ दूसरों को भगाने के लिए अपेय ( खारा) जल हेतु ही पर्याप्त है ।
इसके साथ करालदंष्ट्रायुक्त मकरों तथा भयंकर तरङ्गों रूप अन्य भय के
हेतुओं के आ जाने से यहाँ समुच्चय अलङ्कार है । अप्रस्तुत वाच्य क्षाराम्बुधि-
वृत्तान्त से प्रस्तुत व्यङ्ग्य दौवारिकादि से परिवृत कृपरगनृपवृत्तान्त की प्रतीति
होने से अप्रस्तुतप्रशंसा अलङ्कार भी है ।
It is well known to everybody including the women and the
children that the thirsty people keep away from the sea owing to
its water being unworthy of drinking. Why is it then frightening
others by its furious waves full of groups of crocodiles possess-
ing sharp teeth ?
स्वमाहात्म्यश्लाघा गुरुगहनगर्जाभिरभितः
क्रुशित्वा क्लिश्नासि' श्रुतिकुहरमब्धे किमिति नः ।
इहैकश्चूडालो ह्यजनि कलशाद्यस्य सकलैः
पिपासोरम्भोभिश्चुलुकमपि नो भर्तुमशकः ॥४५॥
हे अब्धे ! स्वमाहात्म्यश्लाघागुरुगहनगर्जाभिः अभितः त्रुशित्वा
नः श्रुतिकुहरं किमिति क्लिश्नासि ? इह एक: चूडालः कलशात् अजनि ।
पिपासोः यस्य चुलुकमपि त्वं सकलैः अम्भोभिः भर्तुं नो अशकः ।
यः स्वश्लाघानिरतस्सन् परान् नाद्रियते तद्दूषणायाह – स्वमाहात्म्य
श्लाघेति । हे श्रब्धे ! स्वमाहात्म्यश्लाघागुरुगहनगर्जाभिः स्वस्यात्मनो माहात्म्यं
महत्ता तस्य श्लाघा स्तुतिः तया गुरवो महत्यो या गहनगर्जा गम्भीरध्वनय-
स्ताभिरन्यत्र भर्त्सनादिभिरित्यर्थः । अभितः सर्वतः क्रुशित्वा ध्वनित्वा । अन्यत्र
समाहूय नोऽस्माकम् । श्रुत्योः कर्णयोः कुहरं रन्ध्र किमिति किमर्थं क्लिश्नासि
बाधसे ? कर्णकठोरं ब्रवीषीत्यर्थः । इह जगति । एकश्चूडाल: चूडा शिखा
1. अ; मुष्णासि क, म, ह
2. अ, मूढै बँ.shashi Shekhar Toshkhani Collection. Digitized by eGangotri
क