2023-04-11 15:56:52 by Pathan Vali Khan
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दीप्तानिषून् चिक्षेप सहकारतरुतलास्तीर्ण कितलय शयनशायिनीनां कामय [^2](मान)-
कामिनीनां कामश(री ? )रक्षतेषु क्षारक्षेप इव मर्मसु मधुरसविसरः परभृतनख-
मुखोद्दलितकुडुलगर्भनिर्गल्तिः पपात । तस्मिंश्च समये रतिसमरविधिविशारद -
कुसुमशरशिबिर[^3]नीराजनज्वलनज्वालावलीषु च [^4]राजपुरन्ध्र
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यांशुकःपदीषु[^5] सकलजगत्प्लावनोद्वेलरागसागरतरङ्ग वेणिकासु विकसन्तीषु [^6]रक्तकुरवा-
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शोकशरमलीपलाशर्वादिभद्र[^7]डाडिमजपाराजिषु
प्रोत्साहिताशेषवनसमाहृतश शिकरकला विभ्रमेषु,
निरन्तर पतच्छिली मुखप्रकर-
अन्धकमथनमन्धुसन्युक्षितेच
जर्जरितन्यक्ष[^9]वनविविधवृक्षविग्रहधवळर्क्षपटुबन्धेषु
णाशुशुक्षणिक्षपितहृच्छ्रयोच्चयभस्मभासुरेषु
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दिष्टिवृद्धिपिष्ट।तक[^11]प्रकरेस्सुदन्तिक टकिङ्किरातकर्णिकार चम्पकत्र करे (?) स गंज ।
मत्तवा[रण इव वशामिर्मतकाशिनीभिः परिवृतो ] मधुमत्तमधुकरकम्बकान्ध
कारितक्रोडानि क्रीडावनान्यवगाहत ।
तत्र च
[ कवाक मिथुनकानि बघ्नत्पानगोष्ठीमण्डलानि ] त्रिदिवमेदिनी (म? मा) नोज्ञकान्तर-
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[^1]. A reads प्रकामानिषून्॰ page 14. [^7]. A reads पारिभद्र॰ page 14.
[^2]. See supra कामयमानकामिनी॰ page 20. [^8]. ,, रमणीय॰ ,,
[^3]. Our Ms. reads शिल्पिबिर॰ [^9]. ,, न्यश्मपवन॰ ,,
[^4]. A omits ज after राजपुरन्ध्रि॰ page 14. [^10]. Our Ms. reads मधुक्त॰
[^5]. A reads अंशुकवतीषु॰ ,,
[^6]. ,, कुरवक॰ ,,
[^11]. A reads वृद्धिविघातक (पिष्टातक?) प्रकरे (र)स्फुटन्निकट॰ page 14.
[^12]. ,, ततकामिनी॰ ,,