2023-04-07 14:51:04 by Pathan Vali Khan
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दिगङ्गनामुखे पत्राकुलिरिव सकलोज्ज्वलबर्णशोमिनी
श्रवणचामरमञ्जरीवाक्षीणदान
सन्तान जनित सौरम समृद्ध्या दक्षि
वोत्तमाङ्गनाहिता चक्रबर्तिक्षेत्र लक्ष्म्याः कामप्रसबोपदानक्षमा
कल्पद्रुमयष्टिरिग जम्बूद्वीपनन्दनस्य हेमरलाचितप
कोशसञ्च .
सद लिनीपीतगन्धक्षमुदपुण्डरीकावदातगाढसलिलया सुरानैक वासा नवा सवस्या गिनी
तया मदमञ्जुलहंसगद्गदरवया
चेयमित्यवज्ञाय वस्बोकसाराकोश
सन्निविष्टा
1.
2.
.
3.
3
युवतिजनक्षचक्षोद जनित वीचीवेगया वेगवत्या विरचितखातकृत्या क्रोडीकृत्य
सर्वसरित्समुद्रद्वीपपठनोत्पन्न
4
तुभूतमुत्सृज्य जलत्वं
स्वयमचलेभ्योऽपि स्थिरतरेणाबद्धपरिकरं स्थितेन शीतकालवदातसुधा ].
न्वितेन दुग्धजलधिनेव, कैलासशिख[र] मालाविडम्बिना प्राकारवलयेन
स (बैंश्व ) र्यग्रहग्रामं गगजाभोगमिव [ असमाना, दिग्गजैरिव दिगन्तस्थापि-
तैरम्बरसरिदम्बुधौत कुम्भमण्डलैश्चतुर्भि[]गपुरद्वारैरुपेता, गोपुरगुरुफ (ला? णा )
मण्डलस्फुरम्मणिस्त (म्ब ? ब ) करागरञ्जित वियद्विशालार्णवै
बहुगुण[ भागविस्तार-]
बाहिमि[ रनेकनागाङ्कन गमजनितर्द्धिमिः प्रशस्ततक्षकादि ]ष टितैर्मुजगरा जैरिव
मोगवतीमहापथैरुपशोभिता मणिमयसमप्रभूतलत्वादपरवियद्वितकी ...................णै
-----------------------------------------------------------------------------------------
The word may be उपादान.
This may be read कुमुद
Read कुच.
,
4. The first folio in our manuscript is missing. The correspond -
ing passage put in the double brackets is taken from the Avantisundarī
kathā (A) edited by Sri. S. K. Ramanatha Sastri, Dakshinabharati
Series No. 3, 1924. Other passages taken from the same book to fill
up the lacuna are also put in double brackets.
5. A ( Sri Sastri's edition ) reads भूमि and omits तलत्वात् to दिव्य,
page 4.
6. Lacuna [ L] about 6 letters.
श्रवणचामरमञ्जरीवाक्षीणदान
सन्तान जनित सौरम समृद्ध्या दक्षि
वोत्तमाङ्गनाहिता चक्रबर्तिक्षेत्र लक्ष्म्याः कामप्रसबोपदानक्षमा
कल्पद्रुमयष्टिरिग जम्बूद्वीपनन्दनस्य हेमरलाचितप
कोशसञ्च .
सद लिनीपीतगन्धक्षमुदपुण्डरीकावदातगाढसलिलया सुरानैक वासा नवा सवस्या गिनी
तया मदमञ्जुलहंसगद्गदरवया
चेयमित्यवज्ञाय वस्बोकसाराकोश
सन्निविष्टा
1.
2.
.
3.
3
युवतिजनक्षचक्षोद जनित वीचीवेगया वेगवत्या विरचितखातकृत्या क्रोडीकृत्य
सर्वसरित्समुद्रद्वीपपठनोत्पन्न
4
तुभूतमुत्सृज्य जलत्वं
स्वयमचलेभ्योऽपि स्थिरतरेणाबद्धपरिकरं स्थितेन शीतकालवदातसुधा ].
न्वितेन दुग्धजलधिनेव, कैलासशिख[र] मालाविडम्बिना प्राकारवलयेन
स (बैंश्व ) र्यग्रहग्रामं गगजाभोगमिव [ असमाना, दिग्गजैरिव दिगन्तस्थापि-
तैरम्बरसरिदम्बुधौत कुम्भमण्डलैश्चतुर्भि[]गपुरद्वारैरुपेता, गोपुरगुरुफ (ला? णा )
मण्डलस्फुरम्मणिस्त (म्ब ? ब ) करागरञ्जित वियद्विशालार्णवै
बहुगुण[ भागविस्तार-]
बाहिमि[ रनेकनागाङ्कन गमजनितर्द्धिमिः प्रशस्ततक्षकादि ]ष टितैर्मुजगरा जैरिव
मोगवतीमहापथैरुपशोभिता मणिमयसमप्रभूतलत्वादपरवियद्वितकी ...................णै
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The word may be उपादान.
This may be read कुमुद
Read कुच.
,
4. The first folio in our manuscript is missing. The correspond -
ing passage put in the double brackets is taken from the Avantisundarī
kathā (A) edited by Sri. S. K. Ramanatha Sastri, Dakshinabharati
Series No. 3, 1924. Other passages taken from the same book to fill
up the lacuna are also put in double brackets.
5. A ( Sri Sastri's edition ) reads भूमि and omits तलत्वात् to दिव्य,
page 4.
6. Lacuna [ L] about 6 letters.