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आचार्यदण्डविरचिता
 
अनुवर्तिभिरनो कई मनोज्ञ माथी ज्यानजीबञ्जीवकां कूजस्कोकिलामाबुमुखर कोयटिका-

मागुलजालामचल गुहामतिविशालामभितस्तटशिलात

कर)

नरस्नो प्रस्तरो पत्रितबिन्दुमाल सारकित मूलया शैलफन्दर प्रतिरबो-

पबृंहितमा तह निर्घोपनिर्झरिण्या परिगृहीतं कमपि सुचिरशून्य मोगमे कहिंमध

सिकतिले वनस्पतिमूले प्राङ्मुखमासीनमक्षमालिका गणनगा किमपि जपन्तमनेक-

वणकिण (कने ) कर्कशकातराजिनबाक्षितेक्षणापा मनस्संस्कारपरुषं

नीमकालमूर्घजमग्रतपश्चरण रूक्ष का लवर्णमुन त मुखपालेखानु मे यद्विजातिभावं कमपि

चोरवाससं ददर्श ।
 

 
स च ढट्टै त्थाय पायमर्थ्यश्च पद्मपत्रपुढेन स्वागताभिषानोपक्रम -

मुपजहार । फलमूलेन बनपुलमेन स्वादुना निमन्त्रया चक्रे । तस्य च प्रणय-
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मनुरूप मखण्डयन्तोऽपि मर्तृभावाः सुचिरमैक्षन्त देवरक्षितं विताकृतयः

कुमाराः । स चैवमूचे – मोस्तपोधन । सोऽयं प्रमाबो यस्तो (प? पि) विसंस-
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तां परामुत्पादयति चिरदर्शनमपि नेतरत्र भुज्यते हि क्षणष्टोऽपि निर्वि-

शङ्कमार्गदुमो नाम ग्रामसीमानिन्योपवीरस्थानं वृक्षस्या व दुराधर्षम

पुमांसमापादयति स्वैरनियोज्यं जगतस्तत्क्रम खानुयोगा हि मार्षमाईकौतुकस्य

हृदयस्य वपुरिदमद्यापि विप्रजातो जातिशुक्लया यक्षादिसुलभमनुपलब्ध पूर्वमस्य (?)

शस्त्रकृतस्याश्चर्यमित्र प्रतिसन्धानं वावदवस्थानं च कारणं नाम
 
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