अवन्तिसुन्दरीकथा /175
This page has been fully proofread once and needs a second look.
परिवृतम् उत्क्षिपद्भिरिव शिखरलम्बिजलघरकुलमम्बरसरित्यायनाय
"
1
रिव नन्दनवनोद्देशं शाखानिलशकुनिशाश्व कानुमदभ्रमरसमर.....[^1] हीरुहण पैरि
भूतविट पान्तराळ मार्गैस्तपस्यावासप्रासादैरिव कुसुमपाण्डुमिर्वनस्पति (भिः क्षु भिरु)-
पशोभितं, यजितजनध्यानासनब (न्धु?न्ध)पू (व?) तवेदिकासनाथत लैरुशिलाभङ्ग-
बन्धचतुरश्रालवालकैरग्निहोत्रहविर्धूमसङ्ग सन्देहदायियोगविघातभीतिदूतेन कुसुम-
रजःकम्बुका ननिभ्रान्तपक्षपालिना मधुलिहां कुलेन सदयपरिलीयमान मकरदेव्यानजैः
प्रसरमिव मुनिशरीरातिरक्तकिसलयच्छला दुगिर द्भिर्लतामण्ट (पैरु) पेतम् (?) अञ्जलि -
पुटसम्भृतोपजातबीजतण्डुलैर्लोल कापलका कपक्षैर्वैखान सकुमारकै: संज्ञाहूयमान-
शाबकानुसरणलग्नहंसीपरित्यक्तपङ्कजास्वादरागया मुझकुशदर्भब (ल? लव) जशरपुञ्ज-
जटिलकूलया बिल्वपलाशखा (व:)दिरर्षलूदम्बमस्तम्बन्धपर्यन्ततया मतकारण्डव-
तुण्डखण्डित दलसम्पुटकर क्तकुवलयवनमघर मिव लज्जया तरळ (त) रङ्गहस्त-
न्नन्दसृष्टिगणाद् गाहनदूतदेह निषक्त तीर्थयात्रिकपुरतराशिमिव ( ? ) दर्शयन्त्या
शान्तशर्मदया नर्मदयोपगूढैक पार्श्वम् उ (भय?ट) जाजिरसुप्तह (र: रि) किशोरमशक-
वारण निरतवनवारणीकर(ण?)विधूयमानान्तेवासिवर्गदुर्भहाग्रविटपकप्रसूनम् उ (द?
ट) जीय सरलसारदारुभङ्गोपहारेणाराधितस्थविरतापसारब्धसामगानोपलभ्य मानवन-
गजकलभकम्, आदृतवनवराहवेत्रावबध्यमानबालवृक्षकालवालकम्, उप
शान्तशिखाण्डमण्डलबर्ह माजनकलालसन्धज्यमान सैकताजिरमा चार
चञ्चुसम्पुटप्रकीर्यमाणपद्मोत्पलदलोपहारम्, अतिनिभुतपारात्रतदत्तदावागर उन्मुख-
बहळधूपोद्गारसुरभी क्रियमाणदेव (!)......[^2] मारण्यकमहिषविषाणखात विमृदित विषम-
कण्टक (क्ष क्षु) पं विशोध्यमानतीर्थयात्रमारण्यकताम्र मूल संज्ञारुता इयमान पुष्पमात्रा-
,
2
-
-----------------------------------------------------------------------------------------
[^1]. Space for 3 letters left blank.
[^2]. L about 2 letters.
-