अवन्तिसुन्दरीकथा /171
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बहुधुनीतट विशङ्कट... गुराक्षचक्रः क्रमेतायं रथ । कथं वैवं वैरिशतशरनि
र्मनिवहरोमशायास्तेन त.... स्यैव जम्बूद्वीपस्य जाम्बूनकिरीटपुत्र पत्रिका -
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प्रतिमाघरनखरादर्शदत्तचरण इनो ना(म नन्द्रिय मानन्द ) वर्धनस् विवा
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तेनैष चायं ज (र्जु ? ल ) चरापाः कुमारो इंसा
च पुत्रकः पृथ्वीभ्रमणाय मुक्त निश्रेष्काम
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हाकाळवासी । समग्रा मी मनोरथाः 1 मनी-
1. L about 36 letters.
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3. L about 35 letters.
4. Space for 8 letters left blank
5. L. about 38 letters.
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उत्थितम्बाहमुपरतानि च प्रण
स्थानामध्यभूमयो भवन्तमत्यतिना प्राप्ता न का निकामचञ्चलापि निश्चला
जातेदानीं लक्ष्मीः । (हृश्यास्म ? द्रष्ट(स्मि) देवं पुत्रपौत्रिणमित्यपि । तथाहि —
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.... त्यार्थन्तु सर्वाशिषः । प्रसन्ना मे भगवती । अक्त्यव (न्योन्थ्यो)पास्या
विन्ध्यवासिनी । परमानुगृहीतं वसई निवास्तिरिम साहू सोया ।
दग्घशोकशमितसर्बेन्द्रियपटबायास्तु मे नामुरूकोतवापरा सुरक
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सकलगात्रमुत्कण्ठभारभङ्गविशद मुत्फुल्लक पोलरेस्खमुलसितविले. कोटिर्यस्या-
म (सा ! ) वर्तत। परिजनस्य चासीदत्युद्दा मप्रमोदकीलांघो रवः । ता (थ) च सा विभाष
न पटीयसा प्रकाशेन लोकमुद्दोषयन्ती बभौ । मूभुज इव मोह-
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इत्येकान्तर्षाअमममस् ।
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[^2]. Space for 4 letters left blank. [^9]. ,, 34
[^3]. L. about 35 letters. [^10]. ,, 34
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