अवन्तिसुन्दरीकथा /170
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मादि सामती भूमिं नाकारोहणा (म! बि)समिति (न!) कि (चि) देतत् मोक्षसु
......[^1]ज्यमारलामायित मिति तृणीकरणं मोक्षलक्ष्मीप्रत्यक्षदर्शनायितमिति सुतरा-
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मपक्षेपप्रकारो, महोत्सवायितमिति महद्वषनीयम् इन्दुमण्डलाप.....[^2]मानन्द-
मनुभूतपूर्वमद्भुततमं बभूव ।
देवी पुनराशाङ्क (स) स्वभागधेयतवान्तद पिताकृत माश्चर्यरूपमश्रद्धती बल-
......[^3
पर्युत्सुकैश्च मन्त्रिभिधैर्यषारितहर्षवेगैः यथा.....[^4] साञ्चके प्रचकमे च
वक्तुम् । एवंगतस्यापि मे नातिमुषितया शे (ष ? ) मुप्या पुष्पपुरनिर्गमादि-
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...
कुमारोबम्तदुस्खा .......[^5]व्यतिकरं सारेणेव पुनरनेन क्षतेषु दग्धस्यादिग्ध-
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शरज (टॉड जेवितस्येव केसरिणो य.......[^6]मिव पारावार कुक्षिमिवायसाण्डकपाल-
)
....
सम्पुटनिवौर्व (व ?) वह्निघूमलसम्मारकोशमिव निज
वत्सलो भैरवाकृतिरामर्दकः । स तु प्र ( मा ? ) णं तुमध्यपारयन्तमस्वातन्त्र्या-
द.......[^8] ष्टोऽस्मि तवामुना
बन्यस्तम मिनिमाचर्य कृपण......[^9] विधिविशारदेन शुरेण शमितस्त्वमसि ।
तु (तातो विद्विषस्ते प्रथमदत्तं वरमवितथी कुर्वता मया यस्पुन....[^10] नुम (इ) रूपमेव
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तु (तातो विद्विषस्ते प्रथमदत्तं वरमवितथी कुर्वता मया यस्पुन.... नुम (इ) रूपमेव
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रकरोद्भ
• रकरोद्भगवान् भक्त-
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