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परिशोषपीय मानक्षान्ति.
 
क मे पुत्रक इत्यावेगविवर्तमाना विह्वलं विलपमाना (?) बहुळखेदोद्भिद्य
घावदकृतार्थलोचना (उ ? त)
तक लविलीमवत्परिजना क्रन्दसूचितसुतापहारा
 
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हृतवत्से (व) गृष्टिः हा कष्टपरम्परा... तनिर्झरप्रतिविसर्गाय (बा ? मा)णबाप्पमुक्ति
मुक्तकण्ठं विररास । तस्याञ्च कलायामुपदत्तमस्तकाभिघातक्षरत्क्षतजाभ्युस्थिते-
क्षणान्धविकल . . . निविष्टकृष्ट तीक्ष्ण कौलेय कक्षेपक्षरितकु सिद्रव्य सर्वस्व..... भीषण -
भ्रूलतापतन प्रधाव मानभ्रान्तभृङ्गारधारिणीकनिर्दयकरण मुहून्धनरज्जु-

रचनसरूपं दिक्षु ज्वरजलजत स्रुतौ मज .... मनी कमजय्यदुःखानिलनिश्चय
 
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च्छत्रधारिकापृच्छयमानाच्छनिझरिणी ण प्रहरणाचकितचामरग्राहिणी-
समन्विष्यमाणदावप्रदेशमंशुकपटपर्यन्तो पधानविहतवेपनर सनोन्मूलनरमसकर निरु-
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द्धकलो(?) क्रन्द्यमान बन्धुनामधेयमुपलभ्यमान नानादैवतमनुवर्ण्यमान-
वर्गमुघुप्यमाणाथर्व मन्त्रवैफल्यमा
 
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अवन्तिसुन्दरी ।
 
दारकाकारमुपक्षिप्यमाणर।जविक्रम
 
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कुश्यमानदैवतचरितमपाबिध्यमान सकलगात्र मुक्षिष्यमाणभुजलघरणिपृष्ठ-
मुन्मत्तराष्ट्रमिव क्षणमन भिरामक्षोभमरण्याभोगमण्डलं तदभवत् ।
 
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सविच्छिन्नदुरुपलवा च वाचा (क्षक) मे. पुत्रकः
 
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