2022-12-10 14:02:20 by lokesh.blue
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* श्री *
सिद्धमहामंत्रस्वरूपिणी
॥ श्रीपरशिवप्रार्थना ॥
आचार्य - श्रीमदमृतवाग्भवप्रणीता
1:0:1
प्रभो ! शम्भो ! दीनं विहितशरणं त्वच्चरणयो-
र्भवारण्यादस्माद्विषमविषयाशीविषवृतात् ॥
समुद्धृत्य श्रद्धाबिधुरमपि वद्धादरकरं
दयादृष्ट्या पश्यन्तिजतनयमात्मीकुरु शिव ! ॥१॥
अर्थ - हे सर्वशक्तिमान् ! समस्त संसारका कल्याण करने
वाले कल्याण रूप शिव भगवान् ! आपके चरणोंमें दीन भावसे
शरण आए हुये मुझको विषयरूपी भयंकर विषधर सर्पोंसे भरे
हुये इस संसाररूपी जगलसे वाहर निकाल कर अपनी दयादृष्टि
से देखते हुये इस अपने पुत्रको अपना आत्मीय बनाओ । यद्यपि
श्रद्धा आदिका मुझे ज्ञान नहीं है, तदपि चारों ओर से भयभीत
हो कर हाथ जोड़े हुये शरण में आया हूं । अतः अपने इस दीन
पुत्रको हे शिव ! अपने आप स्वीकार करो ।
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सिद्धमहामंत्रस्वरूपिणी
॥ श्रीपरशिवप्रार्थना ॥
आचार्य - श्रीमदमृतवाग्भवप्रणीता
1:0:1
प्रभो ! शम्भो ! दीनं विहितशरणं त्वच्चरणयो-
र्भवारण्यादस्माद्विषमविषयाशीविषवृतात् ॥
समुद्धृत्य श्रद्धाबिधुरमपि वद्धादरकरं
दयादृष्ट्या पश्यन्तिजतनयमात्मीकुरु शिव ! ॥१॥
अर्थ - हे सर्वशक्तिमान् ! समस्त संसारका कल्याण करने
वाले कल्याण रूप शिव भगवान् ! आपके चरणोंमें दीन भावसे
शरण आए हुये मुझको विषयरूपी भयंकर विषधर सर्पोंसे भरे
हुये इस संसाररूपी जगलसे वाहर निकाल कर अपनी दयादृष्टि
से देखते हुये इस अपने पुत्रको अपना आत्मीय बनाओ । यद्यपि
श्रद्धा आदिका मुझे ज्ञान नहीं है, तदपि चारों ओर से भयभीत
हो कर हाथ जोड़े हुये शरण में आया हूं । अतः अपने इस दीन
पुत्रको हे शिव ! अपने आप स्वीकार करो ।
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