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त्रिसंध्यं त्रिदिनं तस्य सर्वकार्यंये भविष्यति ॥ ६ ॥
 
फिर गणेश जी बोले, इस स्तोत्र का तीनो सन्ध्याओं में
तीन दिवस तक पाठ करने वाले के सब कार्य सिद्ध हो
जांयगे ॥ ९ ॥
 
यो जपेदष्टदिवसं श्लोकाष्टकमिदं शुभम् ।
अष्टवारं चतुर्थ्यांयो तु सोऽष्टसिद्धीरवाप्नुयात् ॥ १० ॥

इन कल्याणप्रढ़ आठ श्लोकों का आठ दिवस तक या चतुर्थी
को ही आठ बार पाठ करने वाले को अष्ट सिद्धियाँ प्राप्त होती
हैं ॥ १० ॥
 
यः पठेन्मासमात्रं तु दशवारं दिनेदिने ।
स मोचयेद्बंन्धगतं राजवध्यं न संशयः ॥ ११ ॥
 
एक महीने तक प्रतिदिन दस बार पाठ करने से राजशासना-
नुसार वध दण्ड के योग्य बन्दी को भी छुड़ा लेता है ॥ ११ ॥
 
विद्याकामो लभेद्विद्यां पुत्रार्थी पुत्रमाप्नुयात् ।
वांछिताँल्लभ​ते सर्वानेकविंशतिवारतः ॥ १२ ॥
 
यो जपेत्परया भक्त्या गजाननपरो नरः ।
एवमुक्त्वा ततो देवश्चाचांन्तर्धानं गतः प्रभुः ॥ १३ ॥
 
भक्ति-पूर्वक श्रीगणेश का भजन करते हुए इस स्तोत्र के
इक्कीस आवृत्तियों से, विद्यार्थी विद्या, पुत्र की कामना करने वाला
पुत्र, तथा अन्य पदार्थों की इच्छा रखने वाला इष्ट वस्तु, प्राप्त
कर लेता हैं। समर्थ श्रीगणेश देव इस तरह फल श्रुति कहने के
बाद अन्तर्धान होगये ॥ १२-१३ ।
 
इति श्री गणेश पुराणे उपासना खण्डे गणेशाष्टकं सम्पूर्णम्