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[ १२ ]
(शिकारी पशु ) पक्षी, कीडे और लताकी उत्पत्ति हुई है उस
गणेश को हम नमस्कार करते और सदा भजते हैं ॥ ४ ॥
यतो बुद्धिरज्ञाननाशो सुमुतोर्यतः संपदो भक्तसंतोषिकाः स्युः।
यतो विघ्ननाशो यतः कार्यसिद्धिः सदा तं गणेशं नमामो भजामः५
जिस से मुमुक्षु को बुद्धि होती है और अज्ञान का नाश होता
है, जिस से भक्त का संतोष देनेवाली संपदाएं उत्पन्न होती है।
जिस से विघ्न नाश होता है, जिस से कार्य की सिद्धि होती है सदा
हम उसी गणेश की ॥ ५
यतः पुत्रसंपद्यतो वाञ्छितार्थो यतोऽभक्तविघ्नास्तथाऽनेकरूपाः
यतः शोकमोहौ यतः काम एव सदा तं गणेशं नमामो भजामः ।६।
जिस से पुत्र की संपदा मिलती जिस से मन चाही चीज मिलती
है, जिस से अभक्तों को बहुत प्रकार के विघ्न होते हैं जिस से शोक
मोह होते हैं जिस से काम उत्पन्न होता है उसी गणेश को ॥ ६ ॥
यतोऽनंतशक्तिः स शेषो बभूव घराधारणेऽनेक रूपे च शक्तः ।
यतोऽनेकधा स्वर्गलोका हि नाना सदा तं गणेशं नमामोभजामः ७
जिस से अनंत शक्तिवाले शेष उत्पन्न हुए थे जो अनेक रूप से
पृथिवी को धारण करते हैं । जिस से अनेक प्रकार के स्वर्ग उत्पन्न
हुए हैं उसी गणेश का हम नस्कार करते हैं ॥ ७ ॥
यतो वेदवाचो विकुंठा मनोभिः सदा नेति नेतीति यत्ता गृणंति ।
परब्रह्मरूपं चिदानंदभूतं सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥ ८॥
जहां वेद की ऋचाएं भी कुंठित हो जाती हैं और वे भी जिसे
नेति नेति कह कर सदा बखानती हैं उस परब्रह्म रूप और चिदानंद
स्वरूप गणेश की हम सदा नमस्कार करते और भजते हैं ॥ ८ ॥
पुनरूचे गणाधीशः स्तोत्रमेतत्पठेन्नरः ।
CC-0. Mumukshu Bhawan Varanasi Collection. Digitized by eGangotri
(शिकारी पशु ) पक्षी, कीडे और लताकी उत्पत्ति हुई है उस
गणेश को हम नमस्कार करते और सदा भजते हैं ॥ ४ ॥
यतो बुद्धिरज्ञाननाशो सुमुतोर्यतः संपदो भक्तसंतोषिकाः स्युः।
यतो विघ्ननाशो यतः कार्यसिद्धिः सदा तं गणेशं नमामो भजामः५
जिस से मुमुक्षु को बुद्धि होती है और अज्ञान का नाश होता
है, जिस से भक्त का संतोष देनेवाली संपदाएं उत्पन्न होती है।
जिस से विघ्न नाश होता है, जिस से कार्य की सिद्धि होती है सदा
हम उसी गणेश की ॥ ५
यतः पुत्रसंपद्यतो वाञ्छितार्थो यतोऽभक्तविघ्नास्तथाऽनेकरूपाः
यतः शोकमोहौ यतः काम एव सदा तं गणेशं नमामो भजामः ।६।
जिस से पुत्र की संपदा मिलती जिस से मन चाही चीज मिलती
है, जिस से अभक्तों को बहुत प्रकार के विघ्न होते हैं जिस से शोक
मोह होते हैं जिस से काम उत्पन्न होता है उसी गणेश को ॥ ६ ॥
यतोऽनंतशक्तिः स शेषो बभूव घराधारणेऽनेक रूपे च शक्तः ।
यतोऽनेकधा स्वर्गलोका हि नाना सदा तं गणेशं नमामोभजामः ७
जिस से अनंत शक्तिवाले शेष उत्पन्न हुए थे जो अनेक रूप से
पृथिवी को धारण करते हैं । जिस से अनेक प्रकार के स्वर्ग उत्पन्न
हुए हैं उसी गणेश का हम नस्कार करते हैं ॥ ७ ॥
यतो वेदवाचो विकुंठा मनोभिः सदा नेति नेतीति यत्ता गृणंति ।
परब्रह्मरूपं चिदानंदभूतं सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥ ८॥
जहां वेद की ऋचाएं भी कुंठित हो जाती हैं और वे भी जिसे
नेति नेति कह कर सदा बखानती हैं उस परब्रह्म रूप और चिदानंद
स्वरूप गणेश की हम सदा नमस्कार करते और भजते हैं ॥ ८ ॥
पुनरूचे गणाधीशः स्तोत्रमेतत्पठेन्नरः ।
CC-0. Mumukshu Bhawan Varanasi Collection. Digitized by eGangotri