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[ ११ ] .
गणेशाष्टकम्
 
यतोऽनंतशक्तेरन्ताश्वजीवा यतो निगु णादप्रमेया गुणास्ते ।
यतो भाति सर्व त्रिधा भेदभिन्नं सदा तं गणेशं नमामो भजामः १
 
जिस की शक्ति का कोई अन्त नही है, जिस से अनन्त जीव
उत्पन्न हुए हैं, जो ( स्वयं ) निर्गुण है पर जिस से तेरे असंख्य
गुरण उत्पन्न हुए हैं, जिस के कारण ही यह सब ( जगत् ) सत्त्व,
रज, तम के तीन भेदों में बंटा हुआ मालुम पड़ता है उस गणेश
को सदा प्रणाम करते हैं ॥ १ ॥
यतश्चाविरासीज्जगत्सर्वमेतत्तथान्जासनो
 
विश्वगो विश्वगोप्ता
 
तथेंद्रादयो देवसंघा मनुष्याः सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥२॥
जिस से यह सब जगत् उत्पन्न हुआ था, स्वयं ब्रह्मा, और
विश्व व्यापी विष्णु उत्पन्न हुए, और जिस से इन्द्रादि देव संघ के
साथ मनुष्य भी उत्पन्न हुए उस गणेश को प्रणाम करता हूं,
भजता हूँ ॥ २ ॥
 
यतो वह्निभानू भवो भूर्जलं च यतः सागराचंद्रमा व्योम वायुः ।
यतः स्थावरा जंगमा वृक्षसंघाः सदा तं गणेशं नमामो भजामः ३
जिस से अग्नि, सूर्य, शंकर, पृथिवी, जल, सागर, चन्द्रमा,
आकाश, वायु उत्पन्न हुए हैं जिससे स्थावर और जंगम, ( सभी
प्रकार के ) वृक्ष उत्पन्न हुए हैं उस गणेश को हम सदा प्रणाम
करते हैं और भंजते हैं ॥ ३ ॥
 
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यतो दानवाः किन्न रा यक्षसंघा यतश्चारणा वारणाः श्वापदाच.
यतः पतिकीटां यतो वीरुधंथ सदा तं गणेशं नमामो भजामः ४।
 
जिससे दानव, किन्नर, यक्ष, चारण, वारण ( हाथी ) श्वापद
 
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