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[ ९ ]
तुम्ही कृष्ण की प्राणाधिदेवी हो, तुम्हीं गोलोक में स्वयं राधि-
का हो तुम्ही वृन्दावन के वन में रासकी रासेश्वरी हो ॥ ६ ॥
कृष्णप्रियां त्वं भांडीरे चन्द्रा चन्दन कानने ।
विरजा चंपकवने शतशृगे च सुन्दरी ॥ ७ ॥
mey
तुम भांडीर में कृष्ण की प्रिया हो चन्दन । के वन में चन्द्रा
हो चंपक वन में विरजा हो और शतशृंग में सुंदरी हो ॥ ७ ॥
पद्मावती पद्मवने मालती मालतीवने ।
कुन्ददन्ती कुन्दवने सुशीला केतकीवने ॥ ८ ॥
पद्मवन में पद्मावती, मालती वन में मालती, कुंदवन में कुंददन्ती
और कैतकी वन में सुशीला हो ॥ ८ ॥
कदंबमाला त्वं देवी कवकाननेऽपि च ।
राजलक्ष्मी राजगृहे गृहलक्ष्मी गृहेगृहे ॥ ६ ॥
Jai
हे देवि तुम कदंब कानन में कदंब माला हो, राजगृह में राज-
लक्ष्मी और घर घर में गृह लक्ष्मी हो ॥ ९ ॥
इत्युक्त्वा देवताः सर्वा मुनयोमनवस्तथा ।
रुरुदुर्नम्रवदनाः शुष्ककंठोष्ठ तालुकाः ॥ १० ॥
3751
ऐसा कह कर सभी देवता, मुनि और मनुष्य रोपड़े, वे मुख
नीचे किए हुए थे और उन के कंठ, ओठ और तालू सूख गएथे ॥१०॥
इति लक्ष्मीस्तत्वं पुण्यं सर्वदेवैः कृतं शुभम् ।
यः पठेत्प्रातरुत्थाय स वै सर्व लभेद् ध्रुवम् ॥ ११ ॥
इस प्रकार जिस पुण्य लक्ष्मी स्तव की सब देवताओं ने किया
था उसे जो सबेरे उठकर पाठ करेगा वह निश्चय ही सब कुछ
पावेगा ॥ ११ ॥
CC-0. Mumukshu Bhawan Varanasi Collection. Digitized by eGangotri
तुम्ही कृष्ण की प्राणाधिदेवी हो, तुम्हीं गोलोक में स्वयं राधि-
का हो तुम्ही वृन्दावन के वन में रासकी रासेश्वरी हो ॥ ६ ॥
कृष्णप्रियां त्वं भांडीरे चन्द्रा चन्दन कानने ।
विरजा चंपकवने शतशृगे च सुन्दरी ॥ ७ ॥
mey
तुम भांडीर में कृष्ण की प्रिया हो चन्दन । के वन में चन्द्रा
हो चंपक वन में विरजा हो और शतशृंग में सुंदरी हो ॥ ७ ॥
पद्मावती पद्मवने मालती मालतीवने ।
कुन्ददन्ती कुन्दवने सुशीला केतकीवने ॥ ८ ॥
पद्मवन में पद्मावती, मालती वन में मालती, कुंदवन में कुंददन्ती
और कैतकी वन में सुशीला हो ॥ ८ ॥
कदंबमाला त्वं देवी कवकाननेऽपि च ।
राजलक्ष्मी राजगृहे गृहलक्ष्मी गृहेगृहे ॥ ६ ॥
Jai
हे देवि तुम कदंब कानन में कदंब माला हो, राजगृह में राज-
लक्ष्मी और घर घर में गृह लक्ष्मी हो ॥ ९ ॥
इत्युक्त्वा देवताः सर्वा मुनयोमनवस्तथा ।
रुरुदुर्नम्रवदनाः शुष्ककंठोष्ठ तालुकाः ॥ १० ॥
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ऐसा कह कर सभी देवता, मुनि और मनुष्य रोपड़े, वे मुख
नीचे किए हुए थे और उन के कंठ, ओठ और तालू सूख गएथे ॥१०॥
इति लक्ष्मीस्तत्वं पुण्यं सर्वदेवैः कृतं शुभम् ।
यः पठेत्प्रातरुत्थाय स वै सर्व लभेद् ध्रुवम् ॥ ११ ॥
इस प्रकार जिस पुण्य लक्ष्मी स्तव की सब देवताओं ने किया
था उसे जो सबेरे उठकर पाठ करेगा वह निश्चय ही सब कुछ
पावेगा ॥ ११ ॥
CC-0. Mumukshu Bhawan Varanasi Collection. Digitized by eGangotri