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[ ७ ]
१
हे कमल मुखी, तुम पद्मोंवाली हो, पत्ता भी तुम्हारा पद्मका
रहता, पद्मोंको तुम बड़ी प्यारी हो, तुम्हारी आंखे भी पद्म दलके
समान बड़ी बड़ी है, तुम सभीको प्यारी लगती हो, संसार भरके
मनके तुम अनुकूल लगती हो, तुम अपने चरणकमलों को मेरे
यहां भी धरो ॥ ८ ॥
आनन्द: कर्दमश्चैव चिक्कीत इति विश्रुताः ।
ऋषयस्ते त्रयः प्रोक्तास्वयं श्रोरेव देवता ॥ ६॥
आनन्द, कर्दम और चिक्कीत- ये जो तीन ऋषि कहे गये हैं
। वे स्वयं श्री देवता ही हैं। (ये तीन लक्ष्मी के ही तीन रूप हैं ) ॥९॥
ऋणरोगादिदारिद्रय पापं च अपमृत्यवः ।
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥ १० ॥ ३
ऋण, रोगादि, दारिद्रय, पाप और अप मृत्यु, (अकाल मृत्यु भय
शोक और मानसिक दुःख ये मेरे सर्वदा के लिए नष्ट हो जाएं ॥१०॥
श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते ॥
धनं धान्यं पशु बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥११॥
श्री, वर्चस्व (तेज पूर्ण शक्ति ) आयु, आरोग्य, धन, धान,
पशु, बहुत से लड़के और सौ वर्ष की आयु मुझे मिले ॥ ११ ॥
इति श्री लक्ष्मीसूक्तं समाप्तम्
11
-
देवकृतलक्ष्मी स्तोत्रम्
क्षमस्वभगवत्यंब क्षमाशीले परात्परे ।
शुद्धसत्वस्वरूपे च कोपादिपरिवर्जिते ॥ १ ॥
हे भगवती मा मुझे क्षमा करो तुम क्षमा शील हो बड़े से भी
CC-0. Mumukshu Bhawan Varanasi Collection. Digitized by eGangotri
१
हे कमल मुखी, तुम पद्मोंवाली हो, पत्ता भी तुम्हारा पद्मका
रहता, पद्मोंको तुम बड़ी प्यारी हो, तुम्हारी आंखे भी पद्म दलके
समान बड़ी बड़ी है, तुम सभीको प्यारी लगती हो, संसार भरके
मनके तुम अनुकूल लगती हो, तुम अपने चरणकमलों को मेरे
यहां भी धरो ॥ ८ ॥
आनन्द: कर्दमश्चैव चिक्कीत इति विश्रुताः ।
ऋषयस्ते त्रयः प्रोक्तास्वयं श्रोरेव देवता ॥ ६॥
आनन्द, कर्दम और चिक्कीत- ये जो तीन ऋषि कहे गये हैं
। वे स्वयं श्री देवता ही हैं। (ये तीन लक्ष्मी के ही तीन रूप हैं ) ॥९॥
ऋणरोगादिदारिद्रय पापं च अपमृत्यवः ।
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥ १० ॥ ३
ऋण, रोगादि, दारिद्रय, पाप और अप मृत्यु, (अकाल मृत्यु भय
शोक और मानसिक दुःख ये मेरे सर्वदा के लिए नष्ट हो जाएं ॥१०॥
श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते ॥
धनं धान्यं पशु बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥११॥
श्री, वर्चस्व (तेज पूर्ण शक्ति ) आयु, आरोग्य, धन, धान,
पशु, बहुत से लड़के और सौ वर्ष की आयु मुझे मिले ॥ ११ ॥
इति श्री लक्ष्मीसूक्तं समाप्तम्
11
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देवकृतलक्ष्मी स्तोत्रम्
क्षमस्वभगवत्यंब क्षमाशीले परात्परे ।
शुद्धसत्वस्वरूपे च कोपादिपरिवर्जिते ॥ १ ॥
हे भगवती मा मुझे क्षमा करो तुम क्षमा शील हो बड़े से भी
CC-0. Mumukshu Bhawan Varanasi Collection. Digitized by eGangotri