2023-03-01 09:07:45 by Jayashree
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इस क्षण
कहकर अगस्त्य जहां से आए थे वहीं लौट गए ॥ २७ ॥
एतछ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्तदा ।
धारयामास सुप्रीतो राघवः
इतना सुनकर महा तेजस्वी राम का शोक दूर हो गया
शुद्ध और आत्मवान् होकर प्रसन्नता से उन्होंने इसे धारण
किया ( इसका अनुष्ठान किया ) ॥ २८ ॥
'
आदित्
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादय वीर्यवान् ॥.२६ ॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत् ।
सर्वयत्नेन महता वधे तस्
॥
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमनाः पर
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥३१
आदित्यका दर्शन करके और इसका जप करके वे बड़े हर्षित
होकर तीनबार आचमन करके और शुचि होकर वीर्यवान् रामने
बु
आयुध उठाया। फिर रावणको देखकर हर्षसे भरी हुई आत्मावाले
राम युद्धके लिए चल पड़े। और सब उपायों से बड़े ध्यान से वे
उसके
रावणकी मृत्यु समझकर और रामको देखकर बड़े प्रसन्न म
हर्षित होते हुए कहा- 'जल्दी करो' ॥ २९-३०-३१ ॥
CC-0. Mumukshu Bhawan Varanasi Collection. Digitized by eGangotri