This page has been fully proofread once and needs a second look.

( १८ )
 

 
उत्पन्न करते हैं। यही अपनी किरणों से पिलाते हैं यही त​पते हैं
और यही ब​र
पते हैं
और यही वरसते हैं ॥ २२ ॥
 
एप
ते हैं ॥ २२ ॥
 
एष
सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।
एप

एष
एवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥ २३ ॥
 

 
यह सव प्राणियों के सो जाने पर सबके
भीतर बैठे हुए
जागते रहते हैं। यह अग्निहोत्र हैं और यही
फल हैं ॥ २३ ॥
 
भीतर बैठे हुए
अग्निहोत्रियों के
 

फल हैं ॥ २३ ॥
 
वेदाश् क्रतवथैश्चैव ऋतूनां फलमेव च ।
 
er
 

यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व दुपएष रविः प्रभुः ॥ २४ ॥
 

 
वेद, ऋतु, ऋतुका फल, और लोगों में जो कृत्य होते हैं वह

सब कुछ यही रवि प्रभु हैं ॥ २४ ॥
 

 
एनमापत्सु कृच्छ्रपुरेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
को

की
र्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥ २५ ॥
 

 
हे राघव, आपत्ति, कठिनाई, जंगल, और भयमें इनका नाम

लेनेसे कोई भी पुरुष दुःखी नहीं होता ॥ २५ ॥

 
पूजयस्वेनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।

एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥ २६ ॥

 
एकाग्र होकर इन जगत्पति देवदेवकी पूजा करो। इस स्तोत्र

का तीन बार जप करने पर युद्धोंमें विजयी हो जाओगे ॥ २६ ॥

 
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं वैधिष्यसि

एवमुक्त्वा तदागस्त्यो जगाम च यथागतम् ॥ २७ ॥
 
CC-0. Mumukshu Bhawan Varanasi Collection. Digitized by eGangotri