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आदित्य, सविता, सूर्य, खग, पूपाषा, गभस्तिमान्, सुवर्ण के

समान, भानु और स्वर्णरेता, दिवाकर हैं। यही हरिदश्व, सहश्रार्चि

सप्त सप्ति, मरीचिमान, तिमिरोन्मथन शंभु, त्वष्टा, मार्तण्ड, अंशु-

मान्, हिरण्यगर्भ, शिशिर, तपन, भास्कर, रवि, अग्निगर्भ, अदिति

का पुत्र, शङ्ख और शिशिर नाशन हैं ॥ १०-११-१२ ॥

 
व्योमनाथस्तमोभेदि ऋग्युजुः सामपारगः ।

घनदृष्टिरपां मित्रं विन्ध्यवीथीप्लवङ्गमः ॥ १३ ॥

 
यही व्योमनांनाथ, तमोभेदी और ऋग्यजुः साम
( तीनों
वेदके पारंगत विद्वान्) यही घन वृष्टि, अपां मित्र और विन्ध्याटवी
(

के ऊपर उछलनेवाले हैं ॥ १३ ॥
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तपी मण्डली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः ।

कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोद्भवः ॥ १४ ॥
 

( तीनों
 
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यही आतपी, मण्डली, मृत्यु, पिङ्गल, सर्वतापन, कवि, विश्व,

महातेजा, रक्त और सर्वभवोद्भव हैं ॥ १४ ॥
हैं

 
नक्षत्रग्रहतारांगारणामधिपो विश्वभावनः ।

तैजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्नमोऽस्तुते ॥ १५ ॥

 
यही नक्षत्र, ग्रह और ताराओंके राजा और विश्व की भावना

( स्थिति ) के कारण हैं। यह तेजोंमें तेजस्वी है, हे द्वादशात्मन्,

तुम्हें नमस्कार है ॥ १५ ॥

 
नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।

ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥ १६ ॥
 

 
पूर्व गिरि को नमस्कार, पश्चिमी पहाड़ को नमस्कार और

ज्योतिगणोंके पति तथा दिन के अधिपति को नमस्कार है ॥ १६ ॥

 
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।
 
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