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[ १६ ]
आदित्य, सविता, सूर्य, खग, पूपा, गभस्तिमान्, सुवर्ण के
समान, भानु और स्वर्णरेता, दिवाकर हैं। यही हरिदश्व, सहश्रार्चि
सप्त सप्ति, मरीचिमान, तिमिरोन्मथन शंभु, त्वष्टा, मार्तण्ड, अंशु-
मान्, हिरण्यगर्भ, शिशिर, तपन, भास्कर, रवि, अग्निगर्भ, अदिति
का पुत्र, शङ्ख और शिशिर नाशन हैं ॥ १०-११-१२ ॥
व्योमनाथस्तमोभेदि ऋग्युजुः सामपारगः ।
घनदृष्टिरपां मित्रं विन्ध्यवीथीसवङ्गमः ॥ १३ ॥
यही व्योमनांथ, तमोभेदी और ऋऋग्यजुः साम ।
वेदके पारंगत विद्वान्) यही घन वृष्टि, अपां मित्र और विन्ध्याटवी
(
के ऊपर उछलनेवाले हैं ॥ १३ ॥
श्रतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोद्भवः ॥ १४ ॥
०
( तीनों
bok
यही आतपी, मण्डली, मृत्यु, पिङ्गल, सर्वतापन, कवि, विश्व,
महातेजा, रक्त और सवभवोद्भव हैं ॥ १४ ॥
हैं
नक्षत्रग्रहतारांगामधिपो विश्वभावनः ।
तैजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्नमोऽस्तुते ॥ १५ ॥
यही नक्षत्र, ग्रह और ताराओंके राजा और विश्व की भावना
( स्थिति ) के कारण हैं। यह तेजोंमें तेजस्वी है, हे द्वादशात्मन्,
तुम्हें नमस्कार है ॥ १५ ॥
नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥ १६ ॥
पूर्व गिरि को नमस्कार, पश्चिमी पहाड़ को नमस्कार और
ज्योतिगणोंके पति तथा दिन के अधिपति को नमस्कार है ॥ १६ ॥
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।
CC-0. Mumukshu Bhawan Varanasi Collection. Digitized by eGangotri
आदित्य, सविता, सूर्य, खग, पूपा, गभस्तिमान्, सुवर्ण के
समान, भानु और स्वर्णरेता, दिवाकर हैं। यही हरिदश्व, सहश्रार्चि
सप्त सप्ति, मरीचिमान, तिमिरोन्मथन शंभु, त्वष्टा, मार्तण्ड, अंशु-
मान्, हिरण्यगर्भ, शिशिर, तपन, भास्कर, रवि, अग्निगर्भ, अदिति
का पुत्र, शङ्ख और शिशिर नाशन हैं ॥ १०-११-१२ ॥
व्योमनाथस्तमोभेदि ऋग्युजुः सामपारगः ।
घनदृष्टिरपां मित्रं विन्ध्यवीथीसवङ्गमः ॥ १३ ॥
यही व्योमनांथ, तमोभेदी और ऋऋग्यजुः साम ।
वेदके पारंगत विद्वान्) यही घन वृष्टि, अपां मित्र और विन्ध्याटवी
(
के ऊपर उछलनेवाले हैं ॥ १३ ॥
श्रतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोद्भवः ॥ १४ ॥
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( तीनों
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यही आतपी, मण्डली, मृत्यु, पिङ्गल, सर्वतापन, कवि, विश्व,
महातेजा, रक्त और सवभवोद्भव हैं ॥ १४ ॥
हैं
नक्षत्रग्रहतारांगामधिपो विश्वभावनः ।
तैजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्नमोऽस्तुते ॥ १५ ॥
यही नक्षत्र, ग्रह और ताराओंके राजा और विश्व की भावना
( स्थिति ) के कारण हैं। यह तेजोंमें तेजस्वी है, हे द्वादशात्मन्,
तुम्हें नमस्कार है ॥ १५ ॥
नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥ १६ ॥
पूर्व गिरि को नमस्कार, पश्चिमी पहाड़ को नमस्कार और
ज्योतिगणोंके पति तथा दिन के अधिपति को नमस्कार है ॥ १६ ॥
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।
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