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[ १४ ]
आदित्य हृदयम्
 
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥ १ ॥
राम युद्ध करते करते थक गए थे। रावण को अपने सामने
 

 
युद्ध के लिए तैयार देखकर वे चिन्तासे युद्धस्थल में खड़े थे ॥ १ ॥
दैवतैश्च समागम्य दृष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपागम्याब्रवीद्राममगस्त्योभगवानृषिः ॥ २ ॥
 
देवताओं के साथ रण देखने को भगवान् अगस्त ऋषि भी
आए हुए थे। वे राम के पास जाकर वोले ॥ २ ॥
राम राम महाबाहो भृणु गुह्यं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसि ॥ ३ ॥
 
हे राम, तुम्हारी बाहें तो बहुत बड़ी है (तुम बहुत बली हो पर)
मैं एक पुराना रहस्य बताता हूँ उसे सुनो जिस से, वेटा, तुम युद्ध में
सव शत्रुओं को जीत सकोगे ॥ ३ ॥
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपेन्नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥ ४ ॥
 
आदित्य हृदय स्तोत्र पुण्य कर और सभी प्रकार के शत्रुओं को
नाश करनेवाला है। ऐसे परम शिव और जय लाने वाले अक्षय्य
स्तोत्र का नित्य जप करना चाहिए ॥ ४ ॥
सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिन्ताशोकमशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ॥ ५ ॥
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥ ६ ॥
 
CC-0. Mumukshu Bhawan Varanasi Collection. Digitized by eGangotri
 
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