श्रीबिल्वमकुलविरचित श्रीगोविन्ददामोदरस्तोत्र भाषा-टीकाकार प्रभुदत्त ब्रह्मचारी मुद्रक तथा प्रकाशकघनश्यामदास जालान गीताप्रेस, नोरखपुर मूल्य ) एक आना सं० १९९२ प्रथम संस्करण ३२५० सं० १९९३ द्वितीय, संस्करण ४००० 3000000000000000000000 0000000000000000000000000 Linna * आनन्द -कन्द श्रीकृष्ण * DOENDE वंशी विभूषितकरान्नवनीरदाभात्पी ताम्बरादरुणबिम्बफलाधरोष्ठात् पूर्णेन्दुसुन्दर मुखादरविन्दनेत्रात्कृष्णात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने ॥ 5000013100000000000000031:0 00000000000000000000000000000000 PANSIONE श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव । पियस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ जिडे KHIARAM s हे जिहे ! तू 'श्रीकृष्ण ! गोबिन्द ! हरे ! मुरारे ! हे नाथ ! नारायण ! वासुदेव ! तथा हे गोविन्द ! दामोदर !! माधव !!!' नामामृतका ही निरन्तर प्रेमपूर्वक पान करती रह । श्रीबिल्वमङ्गलाचार्यविरचितं गोविन्ददामोदरस्तोत्रम् ( १ ) अग्रे कुरूणामथ पाण्डवानां दुःशासनेनाहृतवस्त्रकेशा । कृष्णा तदाक्रोशदनन्यनाथा गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( २ ) श्रीकृष्ण विष्णो मधुकैटभारे भक्तानुकम्पिन् भगवन् मुरारे । त्रायस्व मां केशव लोकनाथ गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ३ ) विक्रेतुकामाखिलगोपकन्या मुरारिपादार्पितचित्तवृत्तिः । दध्यादिकं मोहवशादवोचद् गोविन्द दामोदर: माघवेति माधवेति॥ ( ४ ) उलूखले सम्भृततण्डुलांश्च संघट्टयन्त्यो मुशलैः प्रमुग्धाः । गायन्ति गोप्यो जनितानुरागा गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ * श्रीहरिः * श्रीबिल्वमङ्गलाचार्यविरचित गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र ( १ ) [ जिस समय ] कौरव और पाण्डवोंके सामने भरी सभामे दुःशासनने द्रौपदीके वस्त्र और बालोंको पकड़कर खींचा उस समय, जिसका कोई दूसरा नाथ नहीं है ऐसी द्रौपदीने रोकर पुकारा - 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' ( २ ) 'हे श्रीकृष्ण ! हे विष्णो ! हे मधुकैटभको मारनेवाले ! हे भक्तोंके ऊपर अनुकम्पा करनेवाले ! हे भगवन् ! हे मुरारे ! हे केशव ! हे लोकेश्वर ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! मेरी रक्षा करो, रक्षा करो ।' ( ३ ) जिनकी चित्तवृत्ति मुरारिके चरणकमलोंमें लगी हुई है वे सभी गोपकन्याएँ दूध-दही बेचनेकी इच्छासे घरसे चलीं । उनका मन तो मुरारिके पास था; अतः प्रेमवश सुध-बुध भूल जानेके कारण 'दही लो दही' इसके स्थानमें जोर-जोरसे 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' आदि पुकारने लगीं। (४) ओखलीमें धान भरे हुए हैं, उन्हें मुग्धा गोपरमणियाँ मूसलोंसे कूट रही हैं, और कूटते-कूटते कृष्णप्रेममें विभोर होकर 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' इस प्रकार गायन करती जाती हैं। गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र ( ५ ) काचित्कराम्भोजपुटे निषण्णं क्रीडाशुकं किंशुकरक्ततुण्डम् । अध्यापयामास सरोरुहाक्षी गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ६ ) गृहे गृहे गोपवधूसमूहः प्रतिक्षणं पिञ्जरसारिकाणाम् । स्खलद्गिरं बाचयितुं प्रवृत्तो गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ७ ) पर्थ्यङ्किकाभाजमलं कुमारं प्रस्वापयन्त्योऽखिलगोपकन्याः । जगुः प्रबन्धं स्वरतालबन्धं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ (८) रामानुजं वीक्षणकेलिलोलं गोपी गृहीत्वा नवनीतगोलम् । आबालकं बालकमाजुहाव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ९ ) विचित्रवर्णाभरणाभिरामेऽभिधेहि वक्त्राम्बुजराजहंसि । सदा मदीये रसनेऽग्ररङ्गे गोविन्द दामोदर माघवेति ॥ गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र ( ५ ) कोई कमलनयनी बाला मनोविनोदके लिये पाले हुए अपने करकमलपर बैठे किंशुककुसुमके समान रक्तवर्ण चोंचवाले सुग्गेको पढ़ा रही थी – पढ़ो तो तोता ! 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' ( ६ ) प्रत्येक घरमें समूह-की-समूह गोपाङ्गनाएँ पींजरोंमें पाली हुई अपनी मैनाओंसे उनकी लड़खड़ाती हुई वाणीको क्षण-क्षणमें 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' इत्यादि रूपसे कहलानेमें लगी रहती थीं । ( ७ ) पालनेमें पौढ़े हुए अपने नन्हें बच्चेको सुलाती हुई सभी गोपकन्याएँ ताल-स्वरके साथ 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव' इस पदको ही गाती जाती थीं । (८) हाथमे माखनका गोला लेकर मैया यशोदाने आँखमिचौनीकी क्रीडामें व्यस्त बलरामके छोटे भाई कृष्णको बालकोंके बीचसे पकड़कर पुकारा - 'अरे गोविन्द ! अरे दामोदर ! अरे माधव !' ( ९ ) विचित्र वर्णमय आभरणोंसे अत्यन्त सुन्दर प्रतीत होनेवाली हे मुखकमलकी राजहंसीरूपिणी मेरी रसने ! तू सर्वप्रथम 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव' इस ध्वनिका ही विस्तार कर । गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र ( १० ) अङ्काधिरूढं शिशुगोपगूढं स्तनं धयन्तं कमलैककान्तम् । सम्बोधयामास मुदा यशोदा गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ११ ) क्रीडन्तमन्तर्व्रजमात्मजं स्वं समं वयस्यैः पशुपालबालैः । प्रेम्णा यशोदा प्रजुहाव कृष्णं गोबिन्द दामोदर माधवेति ॥ ( १२ ) यशोदया गाढमुलूखलेन गोकण्ठपाशेन निबध्यमानः । रुरोद मन्दं नवनीतभोजी गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( १३ ) निजाङ्गने कङ्कणकेलिलोलं गोपी गृहीत्वा नवनीतगोलम् । आमर्दयत्पाणितलेन नेत्रे गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( १४ ) गृहे गृहे गोपवधूकदम्बा: सर्वे मिलित्वा समवाययोगे । पुण्यानि नामानि पठन्ति नित्यं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ गोविन्द-दामोदर-स्त्रोत्र ( १० ) अपनी गोदमें बैठकर दूध पीते हुए बालगोपालरूपधारी भगवान् लक्ष्मीकान्तको लक्ष्य करके प्रेमानन्दमें मग्न हुई यशोदामैया इस प्रकार बुलाया करती थीं - 'ऐ मेरे गोविन्द ! ऐ मेरे दामोदर ! ऐ मेरे माधव ! ज़रा बोलो तो सही ?' ( ११ ) अपने समवयस्क गोपचालकोंके साथ गोष्ठमें खेलते हुए अपने प्यारे पुत्र कृष्णको यशोदामैयाने अत्यन्त स्नेहके साथ पुकारा - 'अरे ओ गोविन्द ! ओ दामोदर ! अरे माधव ! [कहाँ चला गया ? ] ' ( १२ ) अधिक चपलता करनेके कारण यशोदामैयाने गौ बाँधनेकी रस्सीसे खूब कसकर ओखलीमें उन घनश्यामको बाँध दिया, तब तो वे माखनभोगी कृष्ण धीरे-धीरे [ आँखें मलते हुए ] सिसक-सिसककर 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' कहते हुए रोने लगे । ( १३ ) श्रीनन्दनन्दन अपने ही घरके आँगनमें अपने हाथके कंकणसे खेलनेमें लगे हुए हैं, उसी समय मैयाने धीरेसे जाकर उनके दोनों कमलनयनोंको अपनी हथेलीसे मूँद लिया तथा दूसरे हाथमें नवनीतका गोला लेकर प्रेमपूर्वक कहने लगी - 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! [ लो देखो, यह माखन खा लो ] ।' ( १४ ) व्रजके प्रत्येक घरमें गोपाङ्गनाएँ एकत्र होनेका अवसर पानेपर झुण्ड-की-झुण्ड आपसमें मिलकर उन मनमोहन माघवके 'गोविन्द, दामोदर, माघव' इन पवित्र नामोंको पढ़ा करती हैं । ( १५ ) मन्दारमूले वदनाभिरामं विम्बाघरे पूरितवेणुनादम् । गोगोपगोपीजनमध्यसंस्थं गोविन्द दामोदर माघवेति माधवेति॥ ( १६ ) उत्थाय गोप्योऽपररात्रभागे स्मृत्वा यशोदासुतबालकेलिम् । गायन्ति प्रोच्चैर्दधि मन्थयन्त्यो गोविन्द दामोदर माघवेति माधवेति॥ ( १७ ) जग्धोऽथ दत्तो नवनीतपिण्डो गृहे यशोदा विचिकित्सयन्ती । उवाच सत्यं वद हे मुरारे गोविन्द दामोदर माघवेति माधवेति॥ ( १८ ) अभ्यर्च्य गेहं युवतिः प्रवृद्ध- प्रेमप्रवाहा दधि निर्ममन्थ । गायन्ति गोप्योऽथ सखीसमेता गोविन्द दामोदर माघवेति माधवेति॥ ( १९ ) क्वचित् प्रभाते दधिपूर्णपात्रे निक्षिप्य मन्थं युवती मुकुन्दम् । आलोक्य गानं विविधं करोति गोविन्द दामोदर माघवेति माधवेति॥ गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र ( १५ ) जिनका मुखारविन्द बड़ा ही मनोहर है, जो अपने विम्बके समान अरुण अधरोंपर रखकर वंशीकी मधुर ध्वनि कर रहे हैं तथा जो कदम्बके तले गौ, गोप और गोपियोंके मध्यमें विराजमान हैं उन भगवान्का 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' इस प्रकार कहते हुए सदा स्मरण करना चाहिये । ( १६ ) ब्रजाङ्गनाएँ ब्राह्ममुहूर्तमें उठकर और उन यशुमतिनन्दनकी बालक्रीड़ाओंकी बार्तोको याद करके दही मथते-मथते 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव' इन पदोंको उच्च स्वरसे गाया करती हैं। ( १७ ) [ दघि मथकर माताने माखनका लौंदा रख दिया था। माखनभोगी कृष्णकी दृष्टि पड़ गयी, झट उसे धीरेसे उठा लाये ] कुछ खाया कुछ बाँट दिया। जब ढूँढ़ते-ढूँढ़ते न मिला तो यशोदामैयाने आपपर सन्देह करते हुए पूछा - 'हे मुरारे ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! ठीक-ठीक बता माखनका लौंदा क्या हुआ ?' ( १८ ) जिसके हृदयमें प्रेमकी बाढ़ आ रही है ऐसी माता यशोदा घरको लीपकर दही मथने लगी । तब और सब गोपाङ्गनाएँ तथा सखियाँ मिलकर 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' इस पदका गान करने लगीं । ( १९ ) किसी दिन प्रातःकाल ज्यों ही माता यशोदा दहीभरे भाण्डमें मथानीको छोड़कर उठी त्यों ही उसकी दृष्टि शय्यापर बैठे हुए मनमोहन मुकुन्दपर पड़ी। सरकारको देखते ही वह प्रेमसे पगली हो गयी और 'मेरा गोविन्द ! मेरा दामोदर ! मेरा माधव !' ऐसा कहकर तरह-तरहसे गाने लगी । ( २० ) क्रीडापरं भोजनमजनार्थ हितैषिणी स्त्री तनुजं यशोदा । आजूहवत् प्रेमपरिप्लुताक्षी गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( २१ ) सुखं शयानं निलये च विष्णुं देवर्षिमुख्या मुनयः प्रपन्नाः । तेनाच्युते तन्मयतां व्रजन्ति गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( २२ ) विहाय निद्रामरुणोदये च विधाय कृत्यानि च विप्रमुख्याः । वेदावसाने प्रपठन्ति नित्यं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( २३ ) वृन्दावने गोपगणाश्च गोप्यो विलोक्य गोविन्दवियोगविन्नाम् गोविन्दवियोगखिन्नाम्। राधां जगुः साश्रुविलोचनाभ्यां गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( २४ ) प्रभातसञ्चारगता नु गावस्तद्ररक्षणार्थं तनयं यशोदा । प्राबोधयत् पाणितलेन मन्दं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र ( २० ) क्रीडाविहारी मुरारि बालकोंके साथ खेल रहे हैं [ अभीतक न स्नान किया है न भोजन ] अतः प्रेममें विह्वल हुई माता उन्हें स्नान और भोजनके लिये पुकारने लगी - 'अरे ओ गोविन्द ! ओ दामोदर ! ओ माधव ! [ आ बेटा ! आ ! पानी ठण्डा हो रहा है जल्दीसे नहा ले और कुछ खा ले ] ।' ( २१ ) नारद आदि ऋषि 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' इस प्रकार प्रार्थना करते हुए घरमें सुखपूर्वक सोये हुए उन पुराणपुरुष बालकृष्णकी शरणमे आये; अतः उन्होंने श्रीअच्युतमें तन्मयता प्राप्त कर ली । ( २२ ) वेदज्ञ ब्राह्मण प्रातःकाल उठकर और अपने नित्यनैमित्तिक कमको पूर्णकर वेदपाठके अन्तमें नित्य ही 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' इन मञ्जुल नामोंका कीर्तन करते हैं । ( २३ ) वृन्दावनमें श्रीवृषभानुकुमारीको बनवारीके वियोगसे विह्वल देख गोपगण और गोपियाँ अपने कमलनयनोंसे नीर बहाती हुई 'हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माघव !' आदि कहकर पुकारने लगीं । ( २४ ) प्रातःकाल होनेपर जब गौएँ वनमें चरने चली गयीं तब उनकी रक्षाके लिये यशोदामैया शय्यापर शयन करते हुए बालकृष्णको मीठी-मीठी थपकियोंसे जगाती हुई बोलीं- 'बेटा गोबिन्द ! मुन्ना माधव ! लल्लू दामोदर ! [ उठ, जा गौओंको चरा ला ] ।' ( २५ ) प्रबालशोभा इव दीर्घकेशा वाताम्बुपर्णाशनपूतदेहाः । मूले तरूणां मुनयः पठन्ति गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( २६ ) एवं ब्रुवाणा विरहातुरा भृशं व्रजस्त्रियः कृष्णविषक्तमानसाः । विसृज्य लज्जां रुरुदुः स्म सुखरं सुस्वरं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( २७ ) गोपी कदाचिन्मणिपिञ्जरस्थं शुकं वचो वाचयितुं प्रवृत्ता । आनन्दकन्द व्रजचन्द्र कृष्ण गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( २८ ) गोवत्सबालैः शिशुकाकपक्षं बध्नन्तमम्भोजदलायताक्षम् । उवाच माता चिबुकं गृहीत्वा गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( २९ ) प्रभातकाले वरवल्लवौघा गोरक्षणार्थं धृतवेत्रदण्डाः । आकारयामासुरनन्तमाद्यं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र ( २५ ) केवल वायु, जल और पत्तोंके खानेसे जिनके शरीर पवित्र हो गये हैं, ऐसे प्रबालके समान शोभायमान लम्बी-लम्बी एवं कुछ अरुण रंगकी जटाओंवाले मुनिगण पवित्र वृक्षोंकी छायामें विराजमान होकर निरन्तर 'गोविन्द ! दामोदर ! माघव !' इन नामोंका पाठ करते हैं । ( २६ ) श्रीवनमालीके विरहमें विह्वल हुई ब्रजाङ्गनाएँ उनके विषयमें विविध प्रकारकी बातें कहती हुई लोक-लजाको तिलाञ्जलि दे बड़े आर्त्तस्वरसे 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' कहकर जोर-जोरसे रोने लगीं । ( २७ ) गोपी श्रीराधिकाजी किसी दिन मणियोंके पिंजड़ेमें पले हुए तोतेसे बार-बार 'आनन्दकन्द ! व्रजचन्द्र ! कृष्ण ! गोविन्द ! दामोदर ! माघव !' इन नामोंको बुलवाने लगीं। ( २८ ) कमलनयन श्रीकृष्णचन्द्रको किसी गोपबालककी चोटी बछड़ेकी पूँछके बालोंसे बाँधते देख मैया प्यारसे उनकी ठोढ़ीको पकड़कर कहने लगीं - 'मेरा गोविन्द ! मेरा दामोदर ! मेरा माधव !' ( २९ ) प्रातःकाल हुआ, ग्वाल-बालोंकी मित्रमण्डली हाथोंमें वेतकी छड़ी और लाठी ले गौओंको चरानेके लिये निकली । तब वे अपने प्यारे सखा अनन्त आदिपुरुष श्रीकृष्णको 'गोविन्द ! दामोदर ! माघव !' कह-कहकर बुलाने लगे । ( ३० ) जलाशये कालियमर्दनाय यदा कदम्बादपतन्मुरारिः । गोपाङ्गनाश्चुकशुरेत्य गोपाङ्गनाश्चुक्रुशुरेत्य गोपा गोविन्द दामोदर माघवेति माधवेति॥ ( ३१ ) अक्रूरमासाद्य यदा मुकुन्द- श्रापोत्सवार्थ श्चापोत्सवार्थं मथुरां प्रविष्टः । तदा स पौरैर्जयतीत्यभाषि गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ३२ ) कंसस्य दूतेन यदैव नीतौ वृन्दावनान्ताद् वसुदेवसूनू । करोद रुरोद गोपी भवनस्य मध्ये गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ३३ ) सरोवरे कालियनागबद्धं शिशुं यशोदातनयं निशम्य । चक्रुर्लुठन्त्यः पथि गोपबाला गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ३४ ) अक्रूरयाने यदुवंशनाथं संगच्छमानं मथुरां निरीक्ष्य । ऊचुर्वियोगात् किल गोपबाला गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र ( ३० ) जिस समय कालियनागका मर्दन करनेके लिये कन्हैया कदम्बके वृक्षसे कूदे, उस समय गोपाङ्गनाएँ और गोपगण वहाँ आकर 'हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माघव !' कहकर बड़े ज़ोरसे रोने लगे । ( ३१ ) जिस समय श्रीकृष्णचन्द्रने कंसके धनुर्यज्ञोत्सवमें सम्मिलित होनेके लिये अक्रूरजीके साथ मथुरामें प्रवेश किया, उस समय पुरवासीजन 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! तुम्हारी जय हो, जय हो' ऐसा कहने लगे । ( ३२ ) जब कंसके दूत अक्रूरजी वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण और बलरामको वृन्दावनसे दूर ले गये तब अपने घरमें बैठी हुई यशोदाजी 'हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माधव !' कह-कहकर रुदन करने लगीं । ( ३३ ) यशोदानन्दन बालक श्रीकृष्णको कालियहदमें कालियनागसे जकड़ा हुआ सुनकर गोपबालाएँ रास्तेमें लोटती हुई 'हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माधव !' कहकर जोरोंसे रुदन करने लगीं । ( ३४ ) अक्रूरके रथपर चढ़कर मथुरा जाते हुए श्रीकृष्णको देख समस्त गोपबालाएँ वियोगके कारण अधीर होकर कहने लगीं - ' हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माधव ! [ हमें छोड़कर तुम कहाँ जाते हो ] ?' ( ३५ ) चक्रन्द गोपी नलिनीवनान्ते कृष्णेन हीना कुसुमे शयाना । प्रफुल्लनीलोत्पललोचनाभ्यां गोविन्द दामोदर माघवेति माधवेति॥ ( ३६ ) मातापितृभ्यां परिवार्यमाणा गेहं प्रविष्टा विललाप गोपी। आगत्य मां पालय विश्वनाथ गोविन्द दामोदर माघवेति माधवेति॥ (३७) वृन्दावनस्थं हरिमाशु बुद्ध्वा गोपी गता कापि वनं निशायाम् । तत्राप्यदृष्ट्वातिभयादवोच्चद् तत्राप्यदृष्ट्वाऽतिभयादवोचद् गोविन्द दामोदर माघवेति माधवेति॥ ( ३८ ) सुखं शयाना निलये निजेऽपि नामानि विष्णोः प्रवदन्ति मर्त्याः । ते निश्चितं तन्मयतां व्रजन्ति गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ३९ ) सा नीरजाक्षीमवलोक्य राधां रुरोद गोविन्दवियोगखिन्नाम् । सखी प्रफुल्लोत्पललोचनाभ्यां गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र ( ३५ ) श्रीराधिकाजी श्रीकृष्णके अलग हो जानेपर कमलवनमें कुसुमशय्यापर सोकर अपने विकसित कमलसदृश लोचनोंसे आँसू बहाती हुई 'हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माधव !' कहकर क्रन्दन करने लगीं। ( ३६ ) माता-पिता आदिसे घिरी हुई श्रीराधिकाजी घरके भीतर प्रवेशकर विलाप करने लगी कि 'हे विश्वनाथ ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! तुम आकर मेरी रक्षा करो ! रक्षा करो !!' ( ३७ ) रात्रिका समय था, किसी गोपीको भ्रम हो गया कि वृन्दावनविहारी इस समय वनमें विराजमान हैं। बस फिर क्या था, झट उसी ओर चल दी । किन्तु जब उसने निर्जन वनमें वनमालीको न देखा, तो डरसे काँपती हुई 'हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माधव !' कहने लगी । ( ३८ ) [ वनमें न भी जायँ ] अपने घरमें ही सुखसे शय्यापर शयन करते हुए भी जो लोग 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' इन विष्णुभगवान्के पवित्र नामोंको निरन्तर कहते रहते हैं वे निश्चय ही भगवान्की तन्मयता प्राप्त कर लेते हैं । ( ३९ ) कमललोचना राघाको श्रीगोविन्दकी विरहव्यथासे पीडित देख कोई सखी अपने प्रफुल्ल कमलसदृश नयनोंसे नीर बहाती हुई 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माघव !" कहकर रुदन करने लगी । ( ४० ) जिहें जिह्वे रसशे रसज्ञे सत्यं हितं त्वां परमं वदामि । आवर्णयेथा मधुराक्षराणि गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ४१ ) आत्यन्तिकव्याधिहरं जनानां चिकित्सकं वेदविदो वदन्ति । संसारतापत्रयनाशबीजं गोविन्द दामोदर माघवेति माधवेति ॥ (४२) ताताशया ताताज्ञया गच्छति रामचन्द्रे सलक्ष्मणेऽरण्यचये ससीते । चक्रन्द रामस्य निजा जनित्री गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ [^*] ( ४३ ) एकाकिनी दण्डककाननान्तात् सा नीयमाना दशकन्धरेण । सीता तदाक्रन्ददनन्यनाथा गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ [^ *] (४४) रामाद्वियुक्ता जनकात्मजा सा विचिन्तयन्ती हृदि रामरूपम् । रुरोद सीता रघुनाथ पाहि गोविन्द दामोदर माघवेति माधवेति ॥ [^*] [^*] अत्र 'हे राम रघुनन्दन राघवेति' इति पाठान्तरम् । गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र ( ४०) हे रसोंको चखनेवाली जिह्वे ! तुझे मीठी चीज बहुत अधिक प्यारी लगती है, इसलिये मैं तेरे हितकी एक बहुत ही सुन्दर और सच्ची बात बताता हूँ । तू निरन्तर ' हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माघव !' इन मधुर मञ्जुल नामोंकी आवृत्ति किया कर । (४१ ) वेदवेत्ता विद्वान् 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' इन नामोंको ही लोगोंकी बड़ी-से-बड़ी विकट व्याधिको विच्छेद करनेवाला वैद्य और संसारके आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक तीनों तापोंके नाशका बढ़िया बीज बतलाते हैं । ( ४२ ) अपने पिता दशरथकी आज्ञासे भाई लक्ष्मण और जनकनन्दिनी सीताके साथ श्रीरामचन्द्रजी बीहड़ वनोंके लिये चलने लगे, तब उनकी माता श्रीकौसल्याजी 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! [ हे राम ! हे रघुनन्दन ! हे राघव ! ] ' ऐसा कहकर जोरोंसे विलाप करने लगीं । ( ४३ ) जब राक्षसराज रावण पञ्चवटीमें जानकीजीको अकेली देख उन्हें हरकर ले जाने लगा तब रामचन्द्रजीके सिवा जिनका दूसरा कोई स्वामी नहीं है ऐसी सीताजी 'हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माधव ! [ हे राम ! हे रघुनन्दन ! हे राघव ! ]' कहकर जोरोंसे रुदन करने लगीं । (४४) रथमें बिठाकर ले जाते हुए रावणके साथ, रामवियोगिनी सीता हृदयमें अपने स्वामी श्रीरामचन्द्रजीका ध्यान करती हुई 'हा रघुनाथ ! हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माधव ! [हे राम! हे रघुनन्दन ! हे राघव ! मेरी रक्षा करो ]' इस प्रकार रोती हुई जाने लगी । ( ४५ ) प्रसीद विष्णो रघुवंशनाथ सुरासुराणां सुखदुःखहेतो । रुरोद सीता तु समुद्रमध्ये गोविन्द दामोदर माघवेति माधवेति॥ [^*] ( ४६ ) अन्तर्जले ग्राहगृहीतपादो विसृष्टविक्लिष्टसमस्तबन्धुः । तदा गजेन्द्रो नितरां जगाद गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ४७ ) हंसध्वजः शङ्खयुतो ददर्श पुत्रं कटाहे प्रतपन्तमेनम् । पुण्यानि नामानि हरेर्जपन्तं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ४८ ) दुर्वाससो वाक्यमुपेत्य कृष्णा सा चाब्रवीत् काननवासिनीशम् । अन्तःप्रविष्टं मनसाजुद्दाव मनसाजुहाव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ४९ ) ध्येयः सदा योगिभिरप्रमेयः चिन्ताहरश्चिन्तितपारिजातः । कस्तूरिकाकल्पितनीलवर्णो गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ [^*] अत्र 'हे राम रघुनन्दन राघवेति' इति पाठान्तरम् । गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र (४५) जब रावणके साथ सीताजी समुद्रके मध्यमें पहुँचीं तब यह कहकर जोर-जोरसे रुदन करने लगीं - 'हे विष्णो ! हे रघुकुलपते ! हे देवताओंको सुख और असुरोंको दुःख देनेवाले ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! [हे राम! हे रघुनन्दन ! हे राघव !] प्रसन्न होइये, प्रसन्न होइये ।' (४६) पानी पीते समय जलके भीतरसे जब ग्राहने गजका पैर पकड़ लिया और उसका समस्त दुखी बन्धुओंसे साथ छूट गया तब वह गजराज अधीर होकर अनन्यभावसे निरन्तर 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' ऐसे कहने लगा । (४७) अपने पुरोहित शङ्खमुनिके साथ राजा हंसध्वजने अपने पुत्र सुघन्वाको तप्त तैलकी कड़ाहीमें कूदते और 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' इन भगवान्के परमपावन नामोंका जप ! करते हुए देखा । ( ४८ ) [ एक दिन द्रौपदीके भोजन कर लेनेपर असमयमें दुर्वासा ऋषिने शिष्योंसहित आकर भोजन माँगा ] तब वनवासिनी द्रौपदीने भोजन देना स्वीकार कर अपने अन्तःकरणमें स्थित श्रीश्यामसुन्दरको 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' कहकर बुलाया । ( ४९ ) योगी भी जिन्हें ठीक-ठीक नहीं जान पाते, जो सभी प्रकारकी चिन्ताओंको हरनेवाले और मनोवांछित वस्तुओंको देनेके लिये कल्पवृक्षके समान हैं तथा जिनके शरीरका वर्ण कस्तूरीके समान नीला है उन्हें सदा ही 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' इन नामोंसे स्मरण करना चाहिये । ( ५० ) संसारकूपे पतितोऽत्यगाधे मोहान्धपूर्ण विषयाभितप्ते । करावलम्बं मम देहि विष्णो गोविन्द दामोदर माघवेति माधवेति॥ ( ५१ ) त्वामेव याचे मम देहि जिहे जिह्वे समागते दण्डधरे कृतान्ते । वक्तव्यमेवं मधुरं सुभक्त्या गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ५२ ) भजस्व मन्त्रं भवबन्धमुक्त्यै जिहे जिह्वे रसशे रसज्ञे सुलभं मनोशम् मनोज्ञम् । द्वैपायनाद्यैर्मुनिभिः प्रजप्तं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ५३ ) गोपाल वंशीधर रूपसिन्धो लोकेश नारायण दीनबन्धो । उच्चस्वरैस्त्वं वद सर्वदेव सर्वदैव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ५४ ) जिह्वे सदैवं भज सुन्दराणि नामानि कृष्णस्य मनोहराणि । समस्तभक्तार्तिविनाशनानि गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र (५०) जो मोहरूपी अन्धकारसे व्याप्त और विषयोंकी ज्वालासे सन्तप्त है, ऐसे अथाह संसाररूपी कृपमें मैं पड़ा हुआ हूँ। हे मेरे मधुसूदन ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! मुझे अपने हाथका सहारा दीजिये । ( ५१ ) हे जिह्वे ! मैं तुझीसे एक भिक्षा माँगता हूँ, तू ही मुझे दे । वह यह कि जब दण्डपाणि यमराज इस शरीरका अन्त करने आवें तो बड़े ही प्रेमसे गद्गद स्वरमें 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' इन मञ्जुल नामोंका उच्चारण करती रहना । ( ५२ ) हे जिह्वे! हे रसज्ञे ! संसाररूपी बन्धनको काटनेके लिये तू सर्वदा 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' इस नामरूपी मन्त्रका जप किया कर, जो सुलभ एवं सुन्दर है और जिसे व्यास, वसिष्ठादि ऋषियोंने भी जपा है । ( ५३ ) रे जिह्वे ! तू निरन्तर गोपाल ! वंशीधर ! रूपसिन्धो ! लोकेश ! नारायण ! दीनबन्धो ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! इन नामोंका उच्च स्वरसे कीर्तन किया कर ! (५४) हे जिह्वे ! तू सदा ही श्रीकृष्णचन्द्रके 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' इन मनोहर मञ्जुल नामोंको, जो भक्तोंके समस्त सङ्कटोंकी निवृत्ति करनेवाले हैं, भजती रह । ( ५५ ) गोविन्द गोविन्द हरे मुरारे गोविन्द गोविन्द मुकुन्द कृष्ण । गोविन्द गोविन्द रथाङ्गपाणे गोविन्द दामोदर माघवेति माधवेति॥ ( ५६ ) सुखावसाने त्विदमेव सारं दुःखावसाने त्विदमेव गेयम् । देहावसाने त्विदमेव जाप्यं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ५७ ) दुर्वारवाक्यं परिगृह्य कृष्णा मृगीव भीता तु कथं कथश्चित् । सभां प्रविष्टा मनसाजुहाव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ५८ ) श्रीकृष्ण राधावर गोकुलेश गोपाल गोवर्धन नाथ विष्णो । जिले जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ५९ ) श्रीनाथ विश्वेश्वर विश्वमूर्ते श्रीदेवकीनन्दन दैत्यशत्रो । जिले जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र ( ५५ ) हे जिहे ! 'गोविन्द ! गोविन्द ! हरे ! मुरारे ! गोविन्द ! गोविन्द ! मुकुन्द ! कृष्ण ! गोबिन्द ! गोविन्द ! रथाङ्गपाणे ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' - इन नामोंको तू सदा जपती रह । ( ५६ ) सुखके अन्तमें यही सार है, दुःखके अन्तमें यही जानने योग्य है और शरीरका अन्त होनेके समय भी यही मन्त्र जपने योग्य है, कौन-सा मन्त्र ? यही कि 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' (५७) दुःशासनके दुर्निवार्य वचनोंको स्वीकारकर मृगीके समान भयभीत हुई द्रौपदी किसी-किसी तरह सभामें प्रवेशकर मन-ही-मन 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' इस प्रकार भगवान्का स्मरण करने लगी । (५८) हे जिह्रे ! तू श्रीकृष्ण ! राधारमण ! ब्रजराज ! गोपाल ! गोवर्धन ! विष्णो ! गोविन्द ! दामोदर ! माघव ! इस नामामृतका निरन्तर पान करती रह । ( ५९ ) हे जिह्रे ! तू श्रीनाथ ! सर्वेश्वर ! श्रीविष्णुस्वरूप ! श्रीदेवकीनन्दन ! असुरनिकन्दन ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! इस नामामृतका निरन्तर पान करती रह । ( ६० ) गोपीपते कंसरिपो मुकुन्द लक्ष्मीपते केशव वासुदेव । जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ६१ ) गोपीजनाह्लादकर व्रजेश गोचारणारण्यकृतप्रवेश । जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ६२ ) प्राणेश विश्वम्भर कैटभारे वैकुण्ठ नारायण चक्रपाणे । जिले जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ६३ ) हरे मुरारे मधुसूदनाद्य श्रीराम सीतावर रावणारे । जिले जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ६४ ) श्रीयादवेन्द्राद्विधराम्बुजाक्ष श्रीयादवेन्द्राद्रिधराम्बुजाक्ष गोगोपगोपीसुखदानदक्ष । जिले जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माघवेति ॥ गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र (६०) हे जिह्रे ! तू 'गोपोपते ! कंसरिपो ! मुकुन्द ! लक्ष्मीपते ! केशव ! वासुदेव ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' - इस नामामृतका निरन्तर पान करती रह । ( ६१ ) जो व्रजराज व्रजाङ्गनाओंको आनन्दित करनेवाले हैं, जिन्होंने गौओंको चरानेके लिये वनमें प्रवेश किया है; हे जिह्रे ! तू उन्हीं मुरारिके 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' - इस नामामृतका निरन्तर पान करती रह । ( ६२ ) हे जिह्रे ! तू 'प्राणेश ! विश्वम्भर ! कैटभारे ! वैकुण्ठ ! नारायण ! चक्रपाणे ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' - इस नामामृतका निरन्तर पान करती रह । ( ६३ ) 'हे हरे ! हे मुरारे ! हे मधुसूदन ! हे पुराणपुरुषोत्तम ! हे रावणारे ! हे सीतापते श्रीराम ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' - इस नामामृतका हे जिह्वे ! तू निरन्तर पान करती रह । (६४) हे जिह्वे ! तू 'श्रीयदुकुलनाथ ! गिरिधर ! कमलनयन ! गौ, गोप और गोपियोंको सुख देनेमें कुशल ! श्रीगोविन्द ! दामोदर ! माधव !' - इस नामामृतका निरन्तर पान करती रह । ( ६५ ) घराभरोत्तारणगोपवेष विहारलीलाकृतबन्धुशेष । जिह्वे पिबखामृतमेतदेव पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ६६ ) बकीबकाघासुरधेनुकारे केशीतृणावर्तविघातदक्ष । जिह्वे पिबखामृतमेतदेव पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ६७ ) श्रीजानकीजीवन रामचन्द्र निशाचरारे भरताग्रजेश । जिह्वे पिबखामृतमेतदेव पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माघवेति माधवेति॥ ( ६८ ) नारायणानन्त हरे नृसिंह प्रह्लादबाधाहर हे कृपालो । जिह्वे पिबखामृतमेतदेव पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माघवेति माधवेति॥ ( ६९ ) लीलामनुष्याकृतिरामरूप प्रतापदासीकृतसर्वभूप । जिह्वे पिबखामृतमेतदेव पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र ( ६५ ) जिन्होंने पृथ्वीका भार उतारनेके लिये सुन्दर ग्वालका रूप धारण किया है और आनन्दमयी लीला करनेके निमित्त ही शेषजीको अपना भाई बनाया है, ऐसे उन नटनागरके 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' - इस नामामृतका है जिह्वे ! तू निरन्तर पान करती रह। ( ६६ ) जो पूतना, बकासुर, अघासुर और धेनुकासुर आदि राक्षसोंके शत्रु हैं और केशी तथा तृणावर्तको पछाड़नेवाले हैं, हे जिह्वे ! उन असुरारि मुरारिके 'गोविन्द ! दामोदर ! माघव !' - इस नामामृतका तू निरन्तर पान करती रह। ( ६७ ) 'हे जानकीजीवन भगवान् राम ! हे दैत्यदलन भरताग्रज ! हे ईश ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' - इस नामामृतका है जिहे ! तू निरन्तर पान करती रह । (६८) हे प्रह्लादकी बाधा हरनेवाले दयामय 'नृसिंह ! नारायण ! अनन्त ! हरे ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' - इस नामामृतका हे जिह्वे ! तू निरन्तर पान करती रह । ( ६९ ) हे जिह्वे ! जिन्होंने लीलाहीसे मनुष्योंकी-सी आकृति बनाकर, रामरूप प्रकट किया है और अपने प्रबल पराक्रमसे सभी भूपोंको दास बना लिया है, तू उन नीलाम्बुज श्यामसुन्दर श्रीरामके 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' - इस नामामृतका ही निरन्तर पान करती रह । ( ७० ) श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव । जिले जिह्वे पिबखामृतमेतदेव पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ( ७१ ) वक्तुं समर्थोऽपि न वक्ति कश्चि- दहो जनानां व्यसनाभिमुख्यम् । जिले जिह्वे पिबखामृतमेतदेव पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ इति श्रीबित्वमङ्गलाचार्यविरचितं श्रीबिल्वमङ्गलाचार्यविरचितं श्रीगोविन्ददामोदरस्तोत्रं सम्पूर्णम् । गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र ( ७० ) हे जिहे ! तू 'श्रीकृष्ण ! गोविन्द ! हरे ! मुरारे ! हे नाथ ! नारायण ! वासुदेव ! तथा गोविन्द ! दामोदर ! माघव !' - इस नामामृतका ही निरन्तर प्रेमपूर्वक पान करती रह । ( ७१ ) अहो ! मनुष्योंकी विषयलोलुपता कैसी आश्चर्यजनक है ! कोई-कोई तो बोलनेमें समर्थ होनेपर भी भगवन्नामका उच्चारण नहीं करते; किन्तु हे जिह्वे! मैं तुझसे कहता हूँ, तू ' गोविन्द ! दामोदर ! माघव !' - इस नामामृतका ही निरन्तर प्रेमपूर्वक पान करती रह । इस प्रकार यह श्रीबिल्वमङ्गलाचार्यका बनाया हुआ गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र समाप्त हुआ । श्रीहनुमानप्रसाद पोद्दारकी पुस्तकें बिनय-पत्रिका - (सचित्र) तुलसीदासजीके ग्रन्थकी टीका मू० १ ) स० १ । ) नैवेद्य - चुने हुए श्रेष्ठ निबन्धोंका सचित्र संग्रह । मू० ॥) स० ॥) तुलसी दल - परमार्थ और साधनामय निबन्धोंका सचित्र संग्रह, मू० ॥ ) उपनिषदोंके चौदह रत्न - १४ कथाएँ, १० चित्र, मू० प्रेमदर्शन-नारद-भक्ति-सूत्रकी विस्तृत टीका, ३ चित्र, २०० पेज, मू० /- ) भक्त बालक - (सचित्र) इसमें भक्त गोविन्द, मोहन, धन्ना जाट, चन्द्रहास और सुघन्वाकी सरस, भक्तिपूर्ण कथाएँ हैं, मू० भक्त नारी - (सचित्र ) इसमें शबरी, मीराबाई, जनाबाई, करमैतीबाई और रबियाकी मीठी-मीठी जीवनियाँ हैं। भक्त-पञ्चरत्न-(सचित्र) इसमें रघुनाथ, दामोदर, गोपाल चरबाहा, शान्तोबा और नीलाम्बरदासकी प्रेमभक्तिपूर्ण कथाएँ हैं। मू० /- ) आदर्श भक्त - ७ भक्तोंकी कथाएँ, ७ चित्र, पृष्ठ ११२, मू० भक्त - चन्द्रिका - ७ भगवत्-प्रेमियोंकी कथाएँ, ७ चित्र, मू० भक्त-सप्तरत्न - ७ भागवतोंकी लीलाएँ, ७ चित्र, मू० भक्त-कुसुम - ६ भगवत्- अनुरागियोंकी वार्ताएँ, ६ चित्र, मु० प्रेमी भक्त - ५ प्रभु-भक्तोंकी जीवनियाँ, ७ चित्र, मू० यूरोपकी भक्त स्त्रियाँ-४ सेवापरायण महिलाओंके चरित्र, ३ चित्र, मू०।) कल्याणकुञ्ज - उत्तमोत्तम वाक्योंका सचित्र संग्रह, पृष्ठ १६४, मू० ।) मानव-धर्म-धर्मके दश लक्षण सरल भाषामें समझाये हैं । मू० साधन-पथ - (सचित्र) साधन-पथके विघ्नों, निवारणके उपायों तथा सहायक साधनोंका वर्णन किया गया है। पृष्ठ ७२, मू० भजन-संग्रह - भाग ५ बाँ (पत्र-पुष्प) सचित्र सुन्दर पद्य पुष्पोंका संग्रह, =) स्त्री - धर्म - प्रश्नोत्तरी - (सचित्र) स्त्री-शिक्षाकी पुस्तक है,६५००० छपी है =) आनन्दकी लहरें - सचित्र, उपयोगी वचनोंकी पुस्तक, मूल्य गोपी-प्रेम- (तुलसीदलसे) प्रचारार्थ अलग छापा है, सचित्र पृष्ठ ५०, मनको वश करनेके कुछ उपाय-सचित्र, मू० ब्रह्मचर्य-ब्रह्मचर्य की रक्षा के अनेक सरल उपाय बताये गये हैं। मू० समाज-सुधार-समाज के जटिल प्रश्नोंपर विचार, सुधारके साधन मू० वर्तमान शिक्षा-बचको कैसी शिक्षा किस प्रकार दी जाय ? पृष्ठ ४५, - ) नारदभक्तिसूत्र-सटीक मू० )। दिव्य सन्देश - भगवत्प्राप्तिके उपाय ) । पता-गीताप्रेस, गोरखपुर गीताप्रेसकी कुछ संस्कृत पुस्तकेंश्रीमद्भगवद्वीता (श्रीशांकरभाष्यका सरल हिन्दी अनुवाद ] इसमे मूल भाप्य तथा भाग्यके सामने ही अर्थ लिखा है। श्रुति, स्मृति, इतिहासांके उद्घृत प्रमाणीका अर्थ दिया गया । पृष्ठ ५१९, २ चित्र, मृ० साधारण जिन्द गा) बढ़िया जिन्द २१॥) श्रीमद्भगवद्गीता मूत्र, पदच्छेद, अन्वय, साधारण भाषाटीका, टिप्पणी, प्रधान और सृहम विषय एवं त्याग से भगवत्प्राप्तिसहित, मोटा टाइप. सजिल्द, चित्र ४,५०५७० १ । ) श्रीमद्भगवद्गीता प्रापः सभी विषय १।) तालीक समान. विशेषता यह है कि सिंम्पर भावार्थ छपा हुआ है, माइज और टाइप कुछ छोट. ४६८, मूल्य ॥ ), म० ॥।= ) श्रीमद्भगवद्गीता मूल मोटे अक्षरवाली मूल्य 1-) स० 1 ) श्रीमद्भगवद्गीता साधारण भाषाटीका पाकेट साइज, मभी w ५ . विषय ॥) वालीके समान पत्र २५२१ मूल्य )॥ स० गृह्णाझिकर्मप्रयोगमाला - हिन्दीहत, पृष्ठ १८२, मृ० पञ्चरत्न गीता - माचव, ३२८ मजिल्द मूल्य श्रीकृष्ण-विज्ञान श्रीमद्भगवदाना का मूलसहिन हिन्दीमयानवाद, २ चित्र पत्र १७५. मोटा कागज, मूल्य ॥1) मजिन्द १ ) विष्णसहस्त्रनाम शाकम्भाग्य हिन्दी टीकासहित, सचित्र, भाष्य के सामने ही उसका अर्थ छापा गया है। एए २७५, =) सूक्ति-सुधाकर - सचित्र, पृष्ठ २७६, मूल्य ॥=) श्रुतिरत्नावली लेखक स्वामीजी श्रीभोलेबाबाजी, एक पेजमे मूल श्रुतियाँ और उसके सामने के पेजमे उनके अर्थ है,पृष्ठ २८४॥) स्तोत्ररत्नावली - हिन्दी अनुवादसहित सचित्र, मूल्य मनुस्मृति द्वितीय अध्याय सार्थ, मूल्य विष्णुसहस्रनाम- मूल मृत्य )॥। सजिल्द शारीरकमीमांसादर्शन )॥। प्रश्नोत्तरी सटीक -)11 सन्ध्या हिन्दी विधिमाहेत )॥ पातञ्जलयोगदर्शन-मूल ) । बलिवैश्वदेवविधि )॥ सप्तश्लोकी गीता-आधा पैसा ) ॥ 1-) ======================£3+²==£§#▬▬▬▬▬£÷£^¯¯¤à²¯¯¯¤3-²-ñ£¯¯¯¯¯£÷²=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-52] 90008888881924 संस्कृत की कुछ सानुवाद पुस्तकेंश्रीविष्णुपुराण-सटीक, बड़ा आकार, पृ० ५५०, चित्र ८, मूल्य साधारण जिल्द २11), कपडेकी जिल्ट अध्यात्मरामायण - सटीक, बड़ा आकार, पृ०४०२, चित्र ८, मूल्य साधारण जिल्द १॥), कपडेकी जिल्द *** $ ... २॥) *) एकादश स्कन्ध-सटीक, सचित्र, पृ० ४२०, मृ० ॥) मजिल्द ईशावास्योपनिषद् - सानुवाद शाङ्करभाष्यसहित, मां-चत्र, पृ० ५०, केनोपनिषद् - सानुवाद शाङ्करभाष्यसहित, मचित्र, पृ० १४६, मू० ॥) कठोपनिषद् - सानुवाद शाङ्करभाष्यसहित, र्साचित्र, पृ० १७२, मू० ॥ ) मुण्डकोपनिषद् - सानुवाद शाङ्करभाष्यमहित, सचित्र, पृ० १३२,७) प्रश्नोपनिषद् - सानुवाद शाङ्करभाष्यमहित, सचित्र, पृ० १३०, ३) उपरोक्त पाँचों उपनिषद बुक जिल्दमें, सजिल्द [ उपनिषद्भाष्य खण्ड १ ] मू० २१) माण्डूक्योपनिषद् - श्रीगौडपादीय कारिकासहित सानुवाद शांकरभाष्यसहित, मनित्र, पृष्ठ ३००, मूल्य ऐतरेयोपनिषद्-सानुवाद शांकरभाग्यसहित, सचित्र, पृष्ठ १०४ia) तैत्तिरीयोपनिषद् - सानुवाद शाकरभाष्यसहित, सचित्र,ठ २५२॥॥-) उपरोक्त तीनों उपनिषद् एक जिल्दमें, सजिल्द [ उपनिषद् भाष्य खण्ड २] मूल्य २३५) मुमुक्षुसर्वस्वसार-भाषासहित, पृष्ठ ४१४, मृ० ) सजिल्द १-) विवेक-चूडामणि-सटीक, मचित्र, तीसरा संस्करण, १० १८५, मू०/-) प्रबोध सुधाकर-सटीक, दो चित्र, दूसरा संस्करण, पृ०८०, अपरोक्षानुभूति-सटीक, सचित्र, मू० रामगीता-सटीक, दूसरा संस्करण, मू० ॥ *) =)॥ २) १) १) पता-गीताप्रेस, गोरखपुर ------ 983-941198888345888898428848488222881948491364-28-34 [N/A]