देशी शब्दकोश जे लक्खणे ण सिद्धा ण पसिद्धा सक्कयाहिहाणेसु । णय गउालक्खणासत्तिसंभवा ते इह णिबद्धा ॥ - आचार्य हेमचन्द्र वाचना- प्रमुख आचार्य तुलसी Jain Education International प्रधान संपादक युवाचार्य महाप्रज्ञ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org देशी शब्दकोश वाचना-प्रमुख आचार्य तुलसी Jain Education International संपादक मुनि दुलहराज सहयोगी साध्वी अशोकश्री साध्वी विमलप्रज्ञा प्रधान सम्पादक युवाचार्य महाप्रज्ञ साध्वी सिद्धप्रज्ञा समणी कुसुमप्रज्ञा जैन विश्व भारती लाडनूं ( राजस्थान) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org प्रकाशक : जैन विश्व भारती लाडनूं – ३४१३०६ प्रबन्ध-सम्पादक : श्रीचन्द रामपुरिया प्रकाशन वर्ष : विक्रम सम्वत् २०४५ मार्च १९८८ पृष्ठांक : ५७० + ६८ मूल्य : १००-०० रुपये १२ डालर ( U.S.A.) मुद्रक : मित्र परिषद् कलकत्ता के आर्थिक सौजन्य से स्थापित जैन विश्व भारती प्रेस, लाडनूं ( राजस्थान) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org DEŚĪ ŠABDAKOŚA Vacand Pramukha ĀCĀRYA TULSI Jain Education International YUVĀCĀRYA MAHĀPRAJÑA Editor Chief Editor Muni Dulaharāj Assistants Sadhvi Asokaśrī Sadhvi Siddhaprajñā Sadhvi Vimalprajñā Samaņi Kusumprajñā JAIN VISHVA BHARATI LADNUN (RAJASTHAN) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Publisher: JAIN VISHVA BHARATI. Ladnun-341 306 Managing Editor: Shrichand Rampuria, Year of Publication : Vikram Samvat 2045 March 1988 Pages: 570-+-68 Price: Rs. 100 $ 12 Printers i JAIN VISHVA BHARATI PRESS, [Established through the financial co-operation of Mitra Parishad, Calcutta). Ladnun (Rajasthan) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org आशीर्वचन शब्दकोश का निर्माण जितना कठिन है, उसका उपयोग उतना ही महत्वपूर्ण है । संस्कृत, प्राकृत, अंग्रेजी, हिन्दी, राजस्थानी आदि सभी भाषाओं के शब्दकोश उपलब्ध हैं । आचार्य हेमचन्द्र ने संस्कृत शब्दकोश अभिधानचिन्तामणि के साथ देशी नाममाला की भी रचना की। इसके अतिरिक्त देशी शब्दों का कोई स्वतंत्र कोश प्राप्त नहीं है। आगम और उसके व्याख्या साहित्य में प्राकृत के साथ देशी शब्दों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग मिलता है । उस साहित्य के देशी शब्दों का चयन करना और उनके प्रामाणिक अर्थ का निर्णय करना काफी दुरूह काम था । पर हमारे आगम सम्पादन कार्य में संलग्न साधु-साध्वियां कठिन काम करने के अभ्यस्त हो चुके हैं । इस काम के लिए हमने विशेष रूप से साध्वियों को निर्देश दिया। लगभग पांच वर्ष के बाद उनके श्रम ने एक रूप लिया और 'देशी शब्दकोश' सुसम्पादित होकर सामने आ गया । इस कार्य में प्रवृत्त साध्वी अशोकश्री, विमलप्रज्ञा, और सिद्धप्रज्ञा तथा समणी कुसुमप्रज्ञा के श्रम को संवारने में मुनि दुलहराज ने पूरा समय लगाया । वह इस काम के साथ नहीं जुड़ता तो संभव है इसकी निष्पत्ति में कुछ और अवरोध आ जाता । मुझे प्रसन्नता है कि हमारे विनीत साधुसाध्वियां पूरे मनोयोग के साथ साहित्य-सेवा अथवा धर्म शासन की सेवा में संलग्न हैं। उनकी कार्यजाशक्ति निरन्तर विकसित होती रहे, इस शुभाशंसा के साथ मैं इस ग्रन्थ की समीक्षा का काम विद्वानों को सौंपता हूं । - आचार्य तुलसी १६ फरवरी, १९८८ भिवानी (हरियाणा) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org पुरोवाक् भगवान महावीर ने अर्धमागधी प्राकृत में प्रवचन किया था । जनता सरलता से उनकी बात समझ सके– यही प्रयोजन था । जनता के लिए जनता की भाषा में बोलना एक नया काम था। उस समय के अधिकांश धर्माचार्य पंडितों की भाषा में ही बोलते और लिखते थे। उनकी बात बड़े लोगों तक पहुंच पाती थी । पाद-विहार और जनता की भाषा में प्रवचन - इन दोनों प्रवृत्तियों के कारण महावीर जनता के बन गए थे। उनके शिष्य भारत के अनेक प्रान्तों में विहार करते थे और अनेक प्रान्तों के मुमुक्षु उनके शिष्य बनते थे । आगम साहित्य में एक अर्थबोध के लिए अनेक शब्दों एवं धातु-पदों का प्रयोग मिलता है। व्याख्याकारों ने उसका कारण बताया है कि अनेक देशों के शिष्यों को समझाने के लिए अनेक शब्दों और क्रिया-पदों का प्रयोग किया गया । में संस्कृत की एक सीमा बन चुकी थी। उसमें विभिन्न देशों में प्रचलित शब्दों के समावेश के लिए अवकाश नहीं रहा । प्राकृत जन-भाषा थी । उसका लचीलापन बना रहा । वह किसी घेरे में नहीं बंधी, इसलिए उसका सम्पर्क देशी शब्दों से बना रहा। देशी शब्द व्याकरण से बंधे हुए नहीं हैं। उनके लिए 'शेषं संस्कृतवत्' - इस सूत्र की कोई अपेक्षा नहीं है। उनके लिए 'प्रकृति: संस्कृतम्' इस विधि की भी अपेक्षा नहीं है । त्रिविक्रम देव ने प्राकृत के तीन प्रकार बताए हैं - तत्सम, तद्भव और देश्य । संस्कृत के समान शब्द 'तत्सम' और संस्कृत की प्रवृत्ति से सिद्ध शब्द 'तद्भव' कहलाते हैं। देश्य और आर्ष शब्द इन दोनों से भिन्न हैं प्राकृतं तत्समं देश्यं, तद्भवं चेत्यदस्त्रिधा । तत्समं संस्कृतसमं नेयं संस्कृतलक्ष्मणा ॥ वेश्यमार्षं च रूढत्वात् स्वतंत्रत्वाच्च भूयसा । लक्ष्म नापेक्षते तस्य संप्रदायो हि बोधकः ॥ प्रकृतेः संस्कृतात् साध्यमानात् सिद्धाच्च यद् भवेत् । प्राकृतस्यास्य लक्ष्यानुरोधि लक्ष्म प्रचक्ष्महे ॥ ' आचार्य हेमचंद्र ने देशी शब्द की बहुत सुन्दर परिभाषा की है । यह परिभाषा बहुत सार्थक और व्यापक है - १. श्रीत्रिविक्रमदेव, प्राकृतशब्दानुशासनम्, श्लोक ६-८ । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org 15 जे लक्खणे ण सिद्धा ण पसिद्धा सक्कयाहिहाणेसु । ण य गउणलक्खणासत्तिसंभवा ते इह णिबद्धा ॥ देस विसेसपसिद्धीइ भण्णमाणा अणंतया हुंति । तम्हा अणाइपाइअपयट्टभासाविसेसओ देसी ॥ प्राकृत के अध्ययन के लिए देशी शब्दों का अध्ययन बहुत आवश्यक है । उनके बिना प्राकृत भाषा संस्कृत आश्रित बन जाती है । इसी आधार पर कुछ विद्वानों ने प्राकृत को संस्कृत से अर्वाचीन बतलाया । प्राकृत का विशाल स्वरूप देशी शब्दों का भण्डार है । उनका सम्बन्ध प्राचीनतम जनभाषा से है । प्रस्तुत देशी शब्दकोश में कुछ शब्द कन्नड़ और तमिल के भी हैं, मराठी आदि भाषाओं के तो हैं ही । उत्तर और दक्षिण की सभी भाषाओं के शब्द आगम साहित्य में मिलते हैं। कुछ शब्द यूनान आदि विदेशी भाषाओं के भी संदृब्ध प्रस्तुत देशी शब्दकोश में आगम, नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि और टीका आदि में प्रयुक्त देशी शब्दों का संकलन किया गया है। आगम के व्याख्याकारों ने स्थान-स्थान पर देशी शब्दों का प्रयोग किया है और वे किस अर्थ में देशी हैं, इसका उल्लेख भिन्न-भिन्न शब्दावलियों में किया है। कुछ उदाहरण इस प्रकार हैंअतिराउल इति देशोपदं स्वामीकुलमित्यर्थः । अविहाड–देशीभाषया बालकः । आइंति (अव्यय) देशभाषायाम् । आरनाल-कंजियं देसीभासाए आरनालं भण्णति । उअपोते– देशीपदत्वात् आकीर्णे । उंड – देशीवयणतो उंडं मुहं । उग्गह- इति जोणिदुवारस्स सामइकी संज्ञा । उग्घाडपोरिसि- समयभाषया पादोनप्रहरे । अमाघाय - अमारिरूढिशब्दत्वात् । प्रस्तुत ग्रन्थ में आचार्य हेमचन्द्र की देशी नाममाला का भी अविकल संकलन किया गया है। अंगविज्जा आदि अन्य स्रोतों से भी देशी शब्दों का संग्रहण किया है । इसके मूल में लगभग दस हजार से भी अधिक शब्द संगृहीत हैं । आगम संपादन के साथ शब्दकोश की जो योजना है, उसके अन्तर्गत तीन कोश पहले प्रकाशित हो चुके हैं १. आगम शब्दकोश २. एकार्थक कोश ३. निरुक्त कोश १. देशी नानमाला, आचार्य हेमचन्द्र, ११३,४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org यह देशी शब्दकोश चतुर्थ कोश है । यह आगम तथा प्राकृत भाषा के अध्ययन के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण और उपयोगी है। इसमें अगमकारों के व्यापक दृष्टिकोण, संग्राही मनोवृत्ति और अर्थाभिव्यक्ति के लिए सक्षम शब्दों के चयन की प्रवृत्ति का निदर्शन मिलता है । मुनि दुलहराजजी ने इस कार्य में अत्यधिक निष्ठापूर्ण श्रम किया है । इस कार्य में साध्वी अशोकश्री, साध्वी विमलप्रज्ञा और साध्वी सिद्धप्रज्ञा तथा समणी कुसुमप्रज्ञा ने पूर्ण योगदान किया है। श्रद्धासिक्त भाव से किया गया यह श्रम दूसरों के लिए अनुसरणीय बनेगा । बृहद् आगम शब्दकोश का विशाल कार्य आचार्य श्री तुलसी के वाचना प्रमुखत्व में हो रहा है। उनके मार्ग दर्शन में अनेक साधु-साध्वियां इस कार्य में संलग्न हैं। देशी शब्दकोश उसी कार्य का एक अंग है। मैं आचार्यवर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर उनके ऋण से उऋण होने का प्रयत्न नहीं कर रहा हूं । यह प्रयत्न उनसे शक्ति-संबल पाने का प्रयत्न है । प्रस्तुत ग्रन्थ में जिन साधु-साध्वियों का योग है, उन सबको साधुवाद देता हूं और मंगलकामना करता हूं कि उनका श्रम इस कार्य की प्रगति में निरन्तर नियोजित रहे । एक लक्ष्य के लिए समान गति से चलने वालों की सम-प्रवृत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहारपूर्ति मात्र है । वास्तव में यह हम सबका पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है । -युवाचार्य महाप्रज्ञ १७ फरवरी १९८८ भिवानी (हरियाणा) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org भूमिका देशी शब्दों का प्रयोग वैदिक युग की भाषा से होता आ रहा है । ग्रामीण या जनभाषा का प्रभाव वैदिक भाषा पर परिलक्षित होता है । ब्राह्मणकाल की आर्यभाषा के तीन रूप देखे जा सकते हैं - उदीच्या, मध्यदेशीया एवं प्राच्या । उदीच्या परिनिष्ठित भाषा थी । प्राच्या भाषा पूर्व में रहने वाले बर्बर असुरवर्ग के लोगों की भाषा थी । मध्यदेशीया भाषा का स्वरूप उदीच्या और प्राच्या के बीचोबीच था । प्राचीन आर्यभाषा के इन तीनों रूपों के उदाहरण स्वरूप श्रीर, श्रील एवं श्लील - ये तीन शब्द लिए जा सकते हैं । ये तीनों शब्द क्रमशः उदीच्या, मध्यदेशीया एवं प्राच्या आर्यभाषा के माने जा सकते हैं । प्राकृत भाषाओं के अन्तर्गत पालि भाषा का भी एक विशिष्ट स्थान है । यह अवश्य एक बोलचाल की भाषा थी । इसे पूर्णरूपेण अकृत्रिम प्राकृत कहा जा सकता है, यद्यपि श्रीलंका एवं बर्मा जैसे देशों में इसमें कुछ कृत्रिमता भी आ गई थी, जो बर्मा में अपने प्रकर्ष को पहुंच गई थी। इसी प्रकार 'आयारों' जैसे जैन आगमों में हमें अकृत्रिम प्राकृतभाषा उपलब्ध होती है, जबकि उत्तरवर्ती प्राकृतसाहित्य में कृत्रिमता भी दिखाई पड़ती है । संस्कृत में शब्दों के दो विभाग किए गए हैं – व्युत्पन्न एवं अव्युत्पन्न । व्याकरण के नियमों से सिद्ध होने वाले शब्द व्युत्पन्न कहलाते हैं। जिनकी सिद्धि व्याकरण सम्मत न होकर लोक-परम्परा या व्यवहार से होती है, वे अव्युत्पन्न शब्द कहलाते हैं । प्राकृत वैयाकरणों द्वारा प्राकृत शब्द तीन भागों में बांटे गए हैंतत्सम, तद्भव एवं देश्य या देशी । इनमें देश्य शब्द व्युत्पत्ति- सिद्ध नहीं होते । देशी शब्दों के निर्धारण में आचार्य हेमचन्द्र ने कुछ कसौटियां प्रस्तुत की हैं । त्रिविक्रम ने देशी शब्दों का छह विभागों में वर्गीकरण किया है । आधुनिक भाषा वैज्ञानिकों की दृष्टि में ये कसौटियां एवं वर्गीकरण सही नहीं हैं। इन विद्वानों ने देशीशब्दों के निर्धारणार्थ कामी ऊहापोह किया है । इन विचार विमर्शों में जार्ज ग्रीयर्सन का मंतव्य काफी महत्त्वपूर्ण प्रतीत होता है। वे देशी शब्दों का संबंध आर्यों द्वारा वैदिक काल के पहले ही बोली जाने वाली जनभाषा से बताते हैं । इसके अतिरिक्त वे देशी शब्दों का संबंध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org १२ प्रांतीय बोलियों से भी बताते हैं । वे देशी शब्दों को आर्यों और आर्येतर जातियों के आपसी आदान-प्रदान से विकसित शब्द मानते हैं। उनका यह सुदृढ़ मत है कि देशी शब्दों में अधिकतर शब्द आर्यों की ही प्रारंभिक बोलियों से लिए गए हैं। इनमें कुछ शब्द निश्चित रूप से द्रविड़ भाषाओं के हैं । द्रविड़ भाषाओं के शब्द किस रूप में देश की विभिन्न आधुनिक भाषाओं में उपलब्ध होते हैं एवं आर्य भाषा के शब्दों में कैसे परिवर्तन होते हैं इसके दो दृष्टांत हम यहां प्रस्तुत करते हैं - अड् धातु (बाधा देना) से उत्पन्न शब्द तमिल — अटइ कन्नड - अड, अड्ड तुलु — अटक, अडक कुइ - अड ब्राहूई–अड् लहू न्दा -- -अड़ण्; अड़क पंजाबी --- अड्ना; अड्कणा कुमौनी-अड्णो हिन्दी — अड्ना गुजराती -- अड्डं; अव् W मराठी - अड्र्णे; अडकणे प्सा धातु (खाना, भूखा रहना ) से उत्पन्न शब्द शतपथ ब्राह्मण-प्सात ( मुक्त) पालि – छात, छातक ( भूखा ), छातता ( भूख ) प्राकृत - छाय ( भूखा ) सिंहली – सय, सा, साथ ( भूख, सुखा ) । इस प्रकार के अनेक शब्द उद्धृत किए जा सकते हैं जिनके आधार पर हम यह कह सकते हैं कि प्राचीन, मध्यकालीन एवं आधुनिक आर्यभाषाओं में देशी शब्द विभिन्न रूपों में प्रवेश पा गए, जिनका निर्धारण श्रम एवं गवेषणा साध्य है । प्रस्तुत कोश की संपादन मंडली को हम हार्दिक धन्यवाद देते हैं जिन्होंने अथाह परिश्रम पूर्वक इस विषय पर उपलब्ध सारी सामग्री का विद्वत्तापूर्ण उपयोग किया है तथा आचार्य हेमचन्द्र विरचित प्राकृत व्याकरण १. देखें - आर. एन. टर्नर : ए कोम्पै रेटिव डिक्शनरी ऑफ द इण्डो-आर्यन लेंग्वेजिज । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org एवं देशीनाममाला और इसके अतिरिक्त अन्य प्राकृत व्याकरण एवं कोशग्रंथों का यथेष्ट अनुशीलन किया है। समग्र जैन आगम तथा उन पर लिखे हुए व्याख्या ग्रंथ – नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीकाओं का सूक्ष्म एवं व्यापक परिशीलन द्वारा प्राप्त देशीशब्द भी इस कोष में संगृहीत हैं । 'अंगविज्जा' जैसे पारिभाषिक शब्दों से परिपूर्ण ग्रंथ से भी देशी शब्दों का इसमें चयन हुआ है। स्थान स्थान पर व्याख्या- ग्रन्थों में 'देशीपदत्वात्', 'देशीवचनत्वात्', 'देशीपदं'ऐसे उल्लेख मिलते हैं, जिनका अविकल उल्लेख इस कोष में किया गया है । यह इसकी एक नवीन विशेषता है। आधुनिक विद्वानों द्वारा वैज्ञानिक ढंग से सम्पादित प्राकृत एवं अपभ्रंश साहित्य में प्राप्त देशीशब्दों का संकलन भी ध्यानपूर्वक किया गया है । देशी शब्दों के संग्रह का ऐसा सर्वाङ्गीण उपक्रम पहली बार ही हुआ है । एक ही कोश में इतनी सामग्री का उपलब्ध होना भविष्य के शोधार्थियों के लिए देशी शब्दों पर गवेषणा के क्षेत्र में एक ठोस आधार प्रदान करेगा । हमारे संघ के प्रबुद्ध साधु-साध्वियों एवं समणियों के सम्मिलित प्रयास से ही यह महान् कार्य सम्पन्न हो सका है। सम्मिलित प्रयत्न के बिना ऐसे ग्रंथों का निर्माण होना संभव नहीं है । विविध कोश - निर्माण की मौलिक कल्पना परमाराध्य आचार्यश्री एवं युवाचार्यश्री की प्रतिभा की देन है । फलस्वरूप तीन महत्त्वपूर्ण कोश हमारे सामने आ चुके हैं। उसी क्रम में यह देशी शब्दकोश चतुर्थ है । यह धारा अविच्छिन्न है, एवं भविष्य में कई और अधिक उपयोगी कोश विद्वानों के समक्ष आएंगे । परमाराध्य आचार्यश्री की आध्यात्मिक प्रेरणा से कई दुःसाध्य कार्य आसानी से सम्पन्न हो जाते हैं। उनकी आध्यात्मिक प्रेरणा का प्रभाव हम पुनः पुन: अपने जीवन में अनुभव करते हैं, जिसका शब्दों में वर्णन करना संभव नहीं है । हमारे संघ में जो साहित्यिक एवं वैचारिक क्रांति आई है उसका उद्भव- स्थान परमाराध्य आचार्यश्री की आध्यात्मिकता ही है । प्रस्तुत कोश की सर्वांगीण समायोजना में मुनि दुलहराजजी का अविकल योग रहा है । मुनिश्री परम श्रद्धेय युवाचार्यश्री की साहित्यिक एवं दार्शनिक रचनाओं के सम्पादन में सतत सहयोग प्रदान करते रहे हैं । युवाचार्य श्री के सुदीर्घ सान्निध्य के फलस्वरूप मुनिश्री ने जो दक्षता प्राप्त की है उसका प्रतिफलन प्रस्तुत कोश में दृष्टिगोचर होता है । मूल ग्रंथों से देशी शब्दों के चयन का कार्य साध्वी अशोकश्रीजी, साध्वी विमलप्रज्ञाजी, साध्वी सिद्धप्रज्ञाजी एवं साध्वी निर्वाणश्रीजी तथा समणी कुसुमप्रज्ञाजी ने दक्षतापूर्वक सम्पन्न किया। यह गुरुभार वहन उनकी विद्वत्ता एवं स्थिर अध्यवसाय का ही सुपरिणाम है । इस कोश में दो परिशिष्ट संलग्न किए गए । पहले परिशिष्ट में आगम साहित्य के अतिरिक्त अनेक प्राकृत ग्रंथों तथा त्रिविक्रम के प्राकृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org १४ शब्दानुशासन से देशीशब्द चुने गए हैं। दूसरे परिशिष्ट में धात्वादेश संकलित हैं । देशीधातुएं तथा प्राकृत एवं अपभ्रंश के अध्ययन अध्यापन का क्षेत्र उत्तरोत्तर प्रसार लाभ कर रहा है। कई विश्वविद्यालयों एवं स्वतन्त्र शोध संस्थानों में शोधछात्र एवं अध्यापकगण इस क्षेत्र को समृद्ध बना रहे हैं। हमें पूर्ण विश्वास है, प्राकृत एवं जैन शास्त्रों के अध्येताओं के लिए यह कोश लाभप्रद होगा एवं और भी अधिक शोधपूर्ण ऐसे कोशों के निर्माण की दिशा में उन्हें प्रेरित करेगा । लाडनूं ( राजस्थान ) ६-३-८८ Jain Education International नथमल टाटिया निदेशक, अनेकांत शोधपीठ, जैन विश्व भारती For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org संपादकीय भाषा भाषा विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम है। संसार के कोने-कोने में निवास करने वाले मनुष्य किसी न किसी भाषा के माध्यम से अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं । भौगोलिक कारणों से मनुष्यों की भांति भाषा के भी अनेक भेद पाए जाते हैं। महाभारत में इसका स्पष्ट उल्लेख है । विद्वानों के मत से वर्तमान में १००० से अधिक जीवित भाषाएं प्रचलित हैं। इस विषय में सैंकड़ों पुस्तकें भी प्रकाश में आ चुकी हैं । ऐतिहासिक दृष्टि से भारतीय आर्यभाषाओं को तीन कालों में विभक्त किया जा सकता है १ प्राचीन भारतीय आर्यभाषा काल - - इसमें वैदिक एवं लौकिक संस्कृत आती है । २. मध्य भारतीय आर्यभाषा काल — इसमें पालि, प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषा का समावेश होता है । ३. आधुनिक भारतीय आर्यभाषा काल – इसमें हिन्दी, गुजराती, मराठी, उड़िया, बंगला, असमिया, तेलगू, कन्नड़, तमिल आदि भाषाएं आती हैं । प्राकृतप्रकृति शब्द के दो अर्थ हैं – स्वभाव और जनसाधारण । इन अर्थो के आधार पर प्राकृत शब्द के भी दो अर्थ समझे जा सकते हैं१. जो प्रकृति / स्वभाव से ही सिद्ध है, वह प्राकृत है । २. जो प्रकृति / साधारण लोगों की भाषा है, वह प्राकृत है । महाकवि वाक्पतिराज का अभिमत है कि जैसे पानी समुद्र में प्रवेश करता है और समुद्र से ही वाष्प के रूप में बाहर निकलता है। ठीक वैसे ही सब भाषाएं प्राकृत में प्रवेश करती हैं और इसी प्राकृत से सब भाषाएं निकलती हैं। इससे स्पष्ट है कि प्राकृत के आधार पर ही संस्कृत आदि का १. महाभारत, शल्यपर्व ४४०९७,६८: नानावर्मभिराच्छन्ना, नानाभाषाश्च भारत! । कुशला देशभाषासु, जल्पन्तोऽन्योन्यमीश्वराः ॥ २. गउडवहो ९३ : सयलाओ इमा वाया विसंति एत्तो य गति वायाओ । एंति समुद्दं चिय र्णेति सायराओ च्चिय जलाइं ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org १६ विकास हुआ है । प्राकृत भाषा के भेदों के विषय में विद्वानों के विभिन्न मत मिलते हैं । भरत ने अपने नाट्यशास्त्र में प्राकृत की सात भाषाओं का उल्लेख किया है १. मागधी २ अवन्तिजा ३. प्राच्या ४. शौरसेनी संस्कृत नाटकों में विभिन्न प्राकृत भाषा की बोलियां मिलती हैं । प्रसिद्ध वैयाकरण वररुचि ने महाराष्ट्री, पैशाची, मागधी और शौरसेनीइन चार भाषाओं को प्राकृत के अन्तर्गत माना है । हेमचन्द्र ने इन चारों के अतिरिक्त चूलिका पैशाची, आर्ष, अर्धमागधी और अपभ्रंश का उल्लेख भी किया है । त्रिविक्रम, लक्ष्मीधर, सिंहराज, नरसिंह आदि वैयाकरणों ने हेमचन्द्र का अनुसरण किया है । प्राकृत भाषा के दस भेद भी मिलते हैं१. पालि २. पैशाची ३. देशी । ३. चूलिका पैशाची ४. अर्ध मागधी ५. जैन महाराष्ट्री ५. अर्धमागधी ६. बाह्लीकी ७. दाक्षिणात्या मार्कण्डेय ने प्राकृत की सोलह भाषाओं का उल्लेख किया है । प्राकृत में तीन प्रकार के शब्दों का समावेश है—- १. तत्सम २. तद्भव ३. प्राकृतलक्षण १।१ । ४. वाग्भटालंकार २॥२ । ५. नाट्यशास्त्र १७।३ । ६. अशोकलिपि शौरसेनी Jain Education International ८. मागधी ६. महाराष्ट्री १०. अपभ्रंश संस्कृत-निष्ठ शब्द तत्सम हैं । ये बिना किसी रूप परिवर्तन के प्राकृत में प्रयुक्त हैं । जैसे— जल, कमल, देव आदि । संस्कृतसम, तत्तुल्य और समान' शब्द भी तत्सम के वाचक हैं । संस्कृत के जो शब्द वर्णागम, वर्णविकार या ध्वनि परिवर्तन से अपना स्वरूप बदल लेते हैं, वे तद्भव हैं । जैसे – कार्य - कज्ज, ऋषभ - उसभ, १. नाट्यशास्त्र १७/४८ : मागध्यवन्तिजा प्राच्या, शौरसेन्यर्षमागधी । बाह्लीका दाक्षिणात्याश्च सप्त भाषा: प्रकीर्तिताः ॥ २. नाट्यशास्त्र १७१३ : त्रिविधं तच्च विज्ञेयं नाट्ययोगे समासतः । समानशब्दं विभ्रष्टं देशागतमथापि च ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org वर्धमान - वड्ढमाण आदि । इसके लिए आचार्य हेमचन्द्र ने संस्कृतयोनि', वाग्भट ने तज्ज' तथा भरत ने विभ्रष्ट शब्द का प्रयोग किया है । देशी शब्द सामान्यतया ग्राम्य या प्रान्तीय अर्थ का वाचक है । निरुक्तकार यास्क तथा पाणिनि' ने देशी शब्द का प्रयोग प्रान्त अर्थ में किया है । वात्स्यायन ने कामसूत्र, विशाखदत्त ने मुद्राराक्षस, बाण ने कादंबरी तथा धनञ्जय ने दशरूपक में नाना देशों में बोली जाने वाली भाषाओं को देशी भाषा कहा है । कामसूत्र, महाभारत, नाट्यशास्त्र आदि ग्रंथों में देशभषा शब्द से देशी भाषा का अर्थ ग्रहण किया गया है । वैयाकरण चण्ड ने देशीभाषा के अर्थ में देशीप्रसिद्ध, भरत ने देशीमत तथा देशागत शब्द का प्रयोग किया है । अनुयोगद्वार में शब्दों को पांच भागों में विभक्त किया गया है। उनमें नैपातिक शब्दों को देशी के अन्तर्गत माना जा सकता है। १७ संस्कृत में तीन प्रकार की शब्द सम्पदा है रूढ़, यौगिक और मिश्र । इनमें रूढ़ शब्द देशी के अन्तर्गत आते हैं । कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्र ने देशीनाममाला में देशी शब्द को परिभा षित करते हुए लिखा है - जो शब्द व्याकरण ग्रंथों में प्रकृति, प्रत्यय द्वारा सिद्ध नहीं हैं, व्याकरण से सिद्ध होने पर भी संस्कृत कोशो में प्रसिद्ध नहीं हैं तथा जो शब्द लक्षणा आदि शब्द-शक्तियों द्वारा दुर्बोध हैं और अनादि काल से लोकभाषा में प्रचलित हैं, वे सब देशी हैं। महाराष्ट्र, विदर्भ आदि नाना देशों में बोली जाने वाली नाना भाषाएं होने से देशी शब्द अनंत हैं । इस विशाल दृष्टिकोण के बावजूद भी उन्होंने इन अंतहीन शब्दों के संग्रहण की दुरूहता को ध्यान में रखते हुए केवल प्राकृत भाषा से सम्बन्धित शब्दों को ही देशी मानकर उनका अविकल संकलन किया है । त्रिविक्रम के अनुसार आर्ष और देश्य शब्द विभिन्न भाषाओं के रूढ़ प्रयोग हैं । अतः इनके लिए व्याकरण की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने छह विभिन्न सूत्रों द्वारा देशी शब्दों को छह विभागों में विभक्त किया है-१. वा पुआय्याद्याः- इसके अन्तर्गत स्वर आदि की विशेष आयोजना से उत्पन्न १. प्राकृत व्याकरण १।१ । २. वाग्भटालंकार २।२ । ३. नाट्यशास्त्र १७।३ । ४. निरुक्त २॥ १ ॥ ८. प्राकृतशब्दानुशासन ७: ६. वही, ११२।१०६ । Jain Education International ५. अष्टाध्यायी १।१।७५ । ६. अनुयोगद्वार २७० । ७. देशीनाममाला १३,४ । देश्यमार्षं च रूढत्वात् स्वतंत्रत्वाच्च भूयसा । लक्ष्म मापेक्षते तस्य सम्प्रदायो हि बोधकः ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org १८ शब्द आते हैं । इनकी संस्कृत पर्याय खोजी जा सकती है। जैसे - पुआई इसका अर्थ है पिशाच । इसी प्रकार ऊणंदिअं - आनंदित, टोम्बरो तुम्बुरू आदि । २. गोणाद्या: '— ये वे देशी शब्द हैं जो प्रकृति, प्रत्यय, वर्णागम तथा वर्णविकार से रहित होते हैं । जैसे- गोणो–गाय, वणाइ–वनराजि, आओ-पानी । ३. गहिआद्या : --- इस सूत्र में शब्द निर्वचन के विषय बनते हैं तथा इनकी व्युत्पत्ति की जा सकती है । जैसे—णंदिणी — धेनु, वइरोड– जार, अजड -अनलस, संचारी - दूती । ३ ४. वरइत्तगास्तृनाद्यैः - इस सूत्र के अन्तर्गत वे शब्द संगृहीत हैं जो तद्धित के अनेक प्रत्ययों तथा स्वरों की विशेष आयोजना से युक्त होते हैं । जैसे— वरइत्त-वरयिता, नूतनवर, वाअड- शुक, मइलपुत्ती – रजस्वला, सद्दाल-नूपुर । ५. अपुण्णगाः क्तेन - इस सूत्र में सारे क्त प्रत्ययान्त शब्द संगृहीत हैं । जैसेअपुण्ण — आक्रान्त, उरुसोल्ल — प्रेरित, उक्खिण्ण– अवकीर्ण, णिसुद्धनिपातित । ६. झाडगास्तु देश्या: सिद्धा: ५ - इस सूत्र के अन्तर्गत वे शब्द संगृहीत हैं जो देश-विशेष में व्यवहृत होते हैं, जो सिद्ध हैं, प्रसिद्ध हैं और निष्पन्न हैं । जैसे- झाड -- लता आदि का गहन, गोप्पी-बाला, पाणाअअ - चांडाल, सोल्ल – मांस । आचार्य हेमचन्द्र ने 'गोणादय:' – इस सूत्र के अन्तर्गत देशी शब्दों का संग्रहण किया है । आधुनिक भाषावैज्ञानिकों ने भी देशी के बारे में पर्याप्त चिन्तन-मन किया है। जानबीम्स, हार्नले, जार्ज ग्रियर्सन, सुनीतिकुमारचाटुर्ज्या, पी. डी. गुणे आदि ने देशी शब्दों की स्वरूप मीमांसा की है । जानबीम्स का कहना है कि देशीशब्द वे हैं जो किसी भी संस्कृत शब्द से व्युत्पन्न नहीं किए जा सकते, इसलिए वे या तो आर्यों से पूर्व रहने वाले आदिवासियों की भाषा से लिए गए होंगे या फिर संस्कृत भाषा के विकसित होने से पहले ही स्वयं आर्यों द्वारा आविष्कृत होंगे । ' निष्कर्ष की भाषा में कहा जा सकता है कि देशी का अर्थ यह नहीं कि केवल वे शब्द जो देशविशेष में प्रचलित हों, किन्तु वे सभी शब्द देशी हैं, जिनका स्रोत संस्कृत में नहीं है चाहे फिर वे किसी देश-भाषा के क्यों न हों । १. प्राकृतशब्दानुशासन, १।३।१०५ । ४. वही ३।१।१३२ । २. वही, १९४११२१ । ५. वही ३१४१७२ । ३. वही २॥१॥ ३० । ७. कम्पेरेटिव ग्रामर आफ माडर्न आर्यन लेंग्वेजज, पृष्ठ १२ । Jain Education International ६. प्राकृत व्याकरण २।१७४ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org १६ एफ. आर. हार्नले', श्री आर. जी. भण्डारकर, डॉ. पी. डी. गुणे भी इस कथन से सहमत हैं । जार्ज ग्रियर्सन के अनुसार देशी शब्दों का संबंध वैदिक काल से पूर्व आर्यों द्वारा बोली जाने वाली जनभाषाओं से है । प्रथम प्राकृत से उद्भूत होने के कारण देशी शब्दों को तद्भव कहा जा सकता है । " ए. एन. उपाध्ये तथा पी. एल. वैद्य' ने भी देशीशब्दों की उत्पत्ति तथा उसके स्वरूप के बारे में पर्याप्त चिन्तन किया है । देशी शब्द का प्रयोजन प्राचीनकाल में गुरु के पास विभिन्न प्रदेशों के शिष्य दीक्षित होते थे । वे सूत्रों के गूढ़ रहस्यों को सरलता से समझ सकें, इस दृष्टि से प्रशिक्षक विभिन्न देशों में प्रचलित एक ही अर्थ के वाचक भिन्न-भिन्न शब्दों का प्रयोग करते थे। यहां दशवकालिक सूत्र का भाषा प्रयोग विषयक एक प्रसंग द्रष्टव्य है। वहां कहा गया है कि मुनि इन संबोधनों से स्त्री को सम्बोधित न करेहले हले त्ति अन्नेत्ति, भट्टे सामिणि गोमिणि । होले गोले वसुले त्ति, इत्थियं नेवमालवे ॥ ( ७॥१६) ये शब्द विभिन्न प्रदेशों में प्रचलित सम्बोधन - शब्दों का परिज्ञान कराते हैं । दशवैकालिक सूत्र की अगस्त्यचूर्णि के अनुसार तरुणी स्त्री के लिए महाराष्ट्र में 'हले' एवं 'अन्ने' संबोधन का प्रयोग होता था । लाट ( मध्य और दक्षिणी गुजरात) देश में 'हला' तथा 'भट्ट', गोल देश में 'गोमिणी' तथा 'होले', 'गोले', 'वसुले' – ये शब्द संबोधनरूप में प्रयुक्त होते थे । दशवै कालिक सूत्र की चूर्णि में भोजन के लिए प्रयुक्त संदेण, वंजण, कुसण, जेमण आदि शब्द भिन्न-भिन्न प्रान्तों में इनके प्रचलन का संकेत देते हैं – भिण्णदेसिभासेसु जणवदेसु एगम्मि अत्थे संदेणवंजणकुसणजेमणाति भिण्णमत्थपच्चायण समत्थमविप्पडिवत्तिरूवेण । S १. कम्पेरेटिव ग्रामर आफ गौडियन लेंग्वेजेज, पृ ३६-४० । २. विल्सन फिलोलोजिकल लेक्चर्स, पृ १०६ । ३. इन्ट्रोडक्शन टु कम्पेरेटिव फिलोलोजी, पृ २७५-२७७ । ४. लिंग्विस्टिक सर्वे आफ इण्डिया, पृ १२७,१२८ । ५. कन्नडीज वईज इन देशी लेक्सिकन्स, जिल्द १२, पृ १७१,१७२ । ६. औब्जर्वेशन आन हेमचन्द्राज देशीनाममाला, जिल्द ८, पृ ६३-७१ । ७. दशवैकालिक, अगस्त्यचूर्ण, पृष्ठ १६८ : हले अन्नेति मरहट्ठेसु तरुणित्थी मामंतणं । हलेति लाडेसु । भट्टति "लाडेसु । सामिणित्ति सव्वदेसेसु । गोमिणी गोल्लविसए । होले गोले वसुले त्ति देसीए । ८. दशवैकालिक, जिनदास चूर्णि, पृष्ठ १६० For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org २० ओदन शब्द के लिए निम्न पंक्तियां पठनीय हैं'पुव्वदेसयाणं पुग्गलि ओदणो भण्णइ, लाडमरहट्ठाणं कूरो, द्रविडाणं चोरो, आंध्राणं कनायुं ।" बृहत्कल्प भाव्य में आचार्यपद के योग्य शिष्य के लिए स्पष्ट निर्देश है कि वह देशी भाषाओं के परिज्ञान के लिए बारह वर्ष तक देशाटन करे । देशाटन का प्रयोजन और उससे होने वाली निष्पत्तियों पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि शास्त्रों में प्रसिद्ध शब्द जिन-जिन देशों और प्रान्तों में व्यवहृत होते हैं, देशभ्रमण के समय उन-उन देशों में उनका प्रत्यक्षीकरण हो जाता है पयः पिच्चं नीरमित्यादयश्च शास्त्र प्रसिद्धाः शब्दास्तेषु तेषु देशेषु लोकेन तथा तथा व्यवह्रियमाणा देशदर्शनं कुर्वता प्रत्यक्षत उपलभ्यन्ते । दूसरी बड़ी उपलब्धि यह होती है कि सतत परिव्रजन करने वाला परिव्राजक मगध, मालव, महाराष्ट्र, लाट, कर्णाट, द्रविड, गोड, विदर्भ आदि नाना देशों की देशीभाषाओं में कुशलता प्राप्त कर लेता है । इसमें एक बड़ी सुविधा यह हो जाती है कि वह नाना देशीभाषाओं में निबद्ध सूत्रों के उच्चारण और उनके यथार्थ अर्थकथन में दक्ष बन जाता है और जब वह आचार्यपद को अलंकृत करता है तो समस्त देशीभाषाओं में निष्णात होने से अभाषिकों ( केवल अपने ही प्रदेश की भाषा जानने वालों को भी उनकी अपनी भाषा में प्रतिबोध देकर प्रव्रजित कर लेता है । देशीभाषाओं के भेद आगमों में अनेक स्थलों पर अठारह प्रकार की देशीभाषाओं का उल्लेख मिलता है। राजकुमारों को भी अठारह भाषाओं का ज्ञान कराया जात था । गणिकाएं भी इन भाषाओं में निष्णात होती थीं । ये अठारह १. दशवैकालिक, जिनदासचूर्ण, पृष्ठ २३६ । २. बृहत्कल्प भाष्य, १२२३, टोका पृष्ठ ३८० । ३. बृहत्कल्पभाष्य, १२२६, १२३० : नाणादेसीकुसलो, नाणादेसीकयस्स सुत्तस्स । अभिलावअत्थकुसलो, होइ तओ णेण गंतव्वं ॥ कहयति अभासियाण वि, अभासिए आवि पव्वयावेइ । सव्वे वि तत्थ पीई, बंधंति सभासिओ णे ति ॥ ४. औपपातिक १४६; राजप्रश्नीय, ८०६ ५. ज्ञाताधर्मकथा, ११११८८ : एते णं से मेहे ६. वही, ११३८ : देवदत्ता नामं गणिया .. "अट्ठारसदेसीभासाविसारया । कुमारे.अट्ठारसविहदेसिप्पगारभासाविसारए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org २१ भाषाएं कौन-सी थीं-- आगमों में इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। बृहत्कल्प भाष्य की टीका में मगध, मालव, महाराष्ट्र, लाट, कर्णाट, द्रविड़, गोड और विदर्भ आदि देशों में बोली जाने वाली भाषाओं को देशी कहा गया है । ' कुवलयमाला में विजयपुरी के बाजार में एकत्रित अठारह देशों के व्यापारियों के मुंह से अपने-अपने देश की भाषा के शब्द कहलवाये हैं। उनके उदाहरण इस प्रकार हैंदेश ९. गोल्ल २. मध्यप्रदेश ३. मगध ४. अन्तर्वेद ५. कीर ( कश्मीर ) ६. ढक्क (पंजाब) ७. सिन्ध भाषा-शब्द अडड तेरे मेरे आउ एगे ले कित्तो किम्मो सरि पारि" एहं तेहं चउडय मे¨ 1 २. कुवलयमाला, पृष्ठ १५२, १५३ : अर्थ पशुओं को हांकने का शब्द तेरे, मेरे, आओ ऐसे ले ( ? ) यहां-वहां, सुन्दर ( ? ) १. बृहत्कल्पभाष्य, टोका पृ ३८२ : नानाप्रकारा– मगध-मालव-महाराष्ट्र-लाट-कर्णाट-द्रविड-गौड - विदर्भादि देशभवा या देशीभाषा: Jain Education International १. कसिणे गिट्ठरवयणे बहुक-समर-भुंजए अलज्जे य । 'अडडे' त्ति उल्लवंते अह पेच्छइ गोल्लए तत्थ ॥ २. जय-णीइ - संधि-विग्गह-पडुए बहुजंपए य पयईए । 'तेरे मेरे आउ' त्ति जंपिरे मज्झदेसे य ॥ यह वह ३. णीहरिय- पोट्ट-दुःवण्ण-मडहए-सुरय-केलि-तल्लिच्छे । 'एगे ले' जंपुल्ले अह पेच्छइ मगहे कुमरो ॥ ४. कविले पिंगलणयणे भोयणकहमेत्तदिण्णवावारे । 'कित्तो किम्मो' पिय-जंपिरे य अह अंतवेए य । ५. उत्तुंग -त्थूल-घोणे कणयव्वण्णे य भार वाहे य । 'सरि पारि' जंपिरे रे कोरे कुमरो पलोएइ ॥ दक्खिण्ण-दाण-पोरुस-विण्णाण-दया-विवज्जिय-सरीरे । 'एहं तेहं' चवंते ढक्के उण पेच्छए कुमरो ॥ ७. सललिय - मिउ - मद्दवए गंधध्व-पिए सदेसगयचित्ते । 'चउडय में' भणिरे सुहए अह सेंधवे ट्ठेि ॥ ६. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org २२ बेश ८. मारुक ( मरुदेश ) ६. गुर्जर १०. लाट ११. मालव १२. कर्णाटक १३. ताजिक (परशियन या अरबिक) १४. कोशल जल तल ले १४ दिण्णल्ले गहियल्ले" अटि पुटि रटिं इनमें १६ भाषाओं का उल्लेख है । द्राविडी होनी चाहिए । " उपर्युक्त उदाहरणों में का उदाहरण तेलगु का-सा प्रतीत होता है । १५. महाराष्ट्र १६- आन्ध्र भाषा - शब्द अप्पां तुप्पां णउ रे भल्ल उं अम्हं काउं तुम्हं" भाउय भइणी तुम्हे" अंडि पांडि मरे इसि किसि मिसि Jain Education International अर्थ हम-तुम अरे ! यह अच्छा नहीं है हमने किया, तुमने तुम भाई-बहिन हो दिया और लिया वह जाना आना शेष दो भाषाएं - - ओड्री और कर्णाटक की भाषा - कन्नड ८. बंके जडे य जड्डे बहु-भोई कढिण-पीण-सूणंगे । 'अप्पां तुप्पां' भणिरे अह पेच्छइ मारुए तत्तो ॥ ६. घय लोणिय-पुट्ठेगे धम्म-परे संधि-विग्गह-णिउणे । 'णउ रे भल्लउ' भणिरे अह पेच्छइ गुज्जरे अवरे ॥ १०. हाओलित्त - विलित्ते कय-सीमंते सुसोहिय-सुगत्ते । 'अम्हं काउं तुम्हं' भणिरे अह पेच्छए लाडे ॥ ११. तणु साम-मडह- देहे कोवणए माणजीविणो रोद्दे । 'भाउय भइणी तुम्हे' भणिरे अह मालवे ट्ठेि ॥ १२. उक्कड - दप्पे पिय-मोहणे य रोद्दे पयंग - वित्तीय । 'अडि पांडि मरे' भणिरे पेच्छइ कण्णाडए अण्णे । १३. कुप्पास-पाउयंगे मासरुई पाण-मयण - तल्लिच्छे । 'इसि किसि मिसि' भणमाणे अह पेच्छइ ताइए अवरे ॥ १४. सव्व-कला-पत्तट्ठे माणी पियकोवणे कढिण-देहे । 'जल तल ले' भणमाणे कोस पुलइए अवरे ॥ १५. दढ - मडह-सामलंगे सहिरे अहिमाण-कलह-सीले य । 'दिण्णल्ले गहियल्ले' उल्लविरे तत्थ मरहट्ठे ॥ १६. पिय-महिला-संगामे सुंदर गत्ते य भोयणे रोद्दे । 'अटि पुटि रटिं' भते अंधे कुमरो पलोएइ ॥ १७. इय अट्ठारस देसी-भासाउ पुलइऊण सिरिदत्तो । पुलएई खस - पारस- बब्बरादीए ॥ अण्णाइय For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org 1 २३ विभिन्न प्रांतीय सीमाओं के साथ देशी भाषाओं के उच्चारण के बारे में विशेष जानकारी देते हुए भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र में लिखा हैगंगा और सागर के मध्यवर्ती क्षेत्रों के निवासी एकारबहुल भाषा का प्रयोग करते हैं । जैसे- भंते, समणे, महावीरे आदि । ( गंगा और सागर के मध्य मगध क्षेत्र होने से यह एकारबहुल मागधी भाषा होनी चाहिए ) । विन्ध्य और सागर के मध्य जो देश हैं वहां ण के स्थान पर नकारबहुल भाषा का प्रयोग होता है । जैसे-- नकरं, मइकनो आदि । ( यह पैशाची प्राकृत होनी चाहिए ) । सौराष्ट्र, अवन्ती और वेत्रवती नदी के उत्तरी भाग में चकारबहुल भाषा का प्रयोग होता है । (यह प्राच्या या पैशाची प्रभावित प्राकृत भाषा होनी चाहिए ) । हिमवान्, सिन्धु और सौवीर में रहने वाले लोग उकारबहुल भाषा बोलते हैं । जैसे- अप्पणु, वक्कलु, फलु आदि ( अपभ्रंश प्राकृत उकारबहुल है ) । चर्मण्वती नदी के तट पर तथा अर्बुद पर्वतवर्ती क्षेत्रों में ओकार प्रधान भाषा का प्रयोग होता है । जैसे- सुज्जो, सीसो आदि । ( यह शौरसेनी प्राकृत होनी चाहिए ) । संस्कृत साहित्य-भाषा होने से उसमें देशी शब्दों का समावेश कम हुआ किन्तु प्राकृत जनभाषा होने के कारण उसमें देशी शब्दों का समावेश अधिक हुआ । निशीथ में भी यह उल्लेख मिलता है कि अर्धमागधी प्राकृत भाषा अठारह देशी भाषाओं से युक्त है । कुवलयमाला के रचनाकार लिखते हैं कि देशी भाषा को जानने वाला व्यक्ति ही इस ग्रन्थ को पढ़े । ४ इसी प्रकार तरंगवई कहा, लीलावई कहा, पउमचरिउ ५ १. नाटयशास्त्र, १७/५६-६३ । २. निशीथभाष्य, ३६१८, चूर्णि पृष्ठ २५३ : 'अट्ठारसदेसीभासाणियतं अद्धमागहं' । ३. कुवलयमाला, पृष्ठ २८१ : जो जाणइ देसीओ भासाओ लक्खणाई धाऊ य । वय-जय-गाहा छेयं, कुवलयमालं पि सो पढउ ॥ ४. जेकोबी, सनत्कुमार की भूमिका, पृष्ठ १७८ : पालित्तएण रइया वित्थरओ तस्स देसीवयहि । ५. लीलावई कहा, गाहा ४१ : एमेव युद्ध जुयई मनोहरं पाययाए भासाए । परिवलदेसी सुलक्खं कहसु कहं दिव्व माणुसियं ॥ ६. पउमचरिउ, १।२०३, ४ : सक्कयपाययपुलिणालंकिय देसी भासा उभय तडुज्जला । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org २४ णायकुमारचरियं' आदि के रचयिताओं ने अपने-अपने ग्रन्थों को देशी भाषा के प्रयोगों से युक्त बताया है । यद्यपि ये ग्रन्थ महाराष्ट्री प्राकृत या अपभ्रंश में रचित हैं, किन्तु इनमें देशी शब्दों की प्रचुरता है । अपभ्रंश तथा महाराष्ट्री प्राकृत को भी अनेक विद्वानों ने देशी भाषा माना है । लीलावई कहा' तथा कुवलयमाला में कवि महाराष्ट्री प्राकृत को देशी के रूप में स्वीकार करते हैं। महाराष्ट्र के संत कवि ज्ञानेश्वर ने भी देशी शब्द का प्रयोग मराठी के लिए किया है । शाबरभाष्य में देशी भाषा के संदर्भ में अपभ्रंश का उल्लेख हुआ है । इसके अतिरिक्त और भी अनेक उल्लेख इन भाषाओं को देशी मानने के सन्दर्भ में मिलते हैं । इनसे स्पष्ट है कि देशी शब्द का प्रयोग अपभ्रंश, महाराष्ट्री तथा जनपदीय बोलियों के लिए भी होता रहा है। ये दोनों अपभ्रंश और महाराष्ट्री भाषाएं देशी हैं या नहीं इसके विषय में विद्वानों ने पर्याप्त चिन्तन किया है । अधिक संभव लगता है कि यहां देशी या या उस देशविशेष के लिए किया हो । कीथ ने यह सिद्ध किया है कि अपभ्रंश गूजरों की भाषा थी । देशीशब्द का प्रयोग प्रान्त प्रसिद्ध भाषाविद् जूलब्लाक तथा डा० देशीभाषा नहीं थी किन्तु आभीर एवं अपभ्रंश के आज अनेकों ग्रन्थ मिलते हैं जिनमें प्रचुर देशी शब्दों का प्रयोग हुआ है। उदाहरण के लिए डा० देवेन्द्रकुमार शास्त्री द्वारा सम्पादित 'भविसयत्तकहा तथा अपभ्रंश कथाकाव्य' पुस्तक में उल्लिखित कुछ देशी शब्दों एवं धातुओं का नीचे निर्देश किया जा रहा है. ४ तलाय ( तलाब ), हंसि ( हंसिनी ), संड ( सांड ), धीवर, अट्ठारह, चउदह, चउसट्ठि, पासु (पास), आजु (आज), मंदलु, कायरा ( कायर ) , गवार ( गंवार ) ; अगवाणिय ( अगवानी), वणिजारिय ( बनजारा ) आदि । , इसी प्रकार इसमें देशी क्रिया-रूपों तथा सर्वनामों की भी प्रचुरता है । सर्वनाम के कुछ शब्द-रूप इस प्रकार हैं — जो, सो, ए, को, हउ, हउं, ( हौं), कवणु ( कौन ), मइं (मैं), हमारे, अम्हारिय, इह, यहि, किह ( कैसे ) इस, जिह (जैसे), जे, ता और जं इत्यादि । देशी क्रियापदों के कुछ रूप ---- पूछिय, आयउ, तोडिय, देखेवि, लग्ग ( लगे हुए ) घल्लिय, ढोइय, छोडइ, पडिउ, छूटउ, हक्क दिति ( हांक देते हैं ) , १. णायकुमारचरियं, १११ : णोसेसदेसभासउ चवंति । २. लीलावई कहा, गाहा १३३० : भणियं च पियय भाए, रइयं मरहट्ठ देसी भासाए । ३. कुवलयमाला, पृष्ठ ४ : पाइयभासारइया मरहट्ठय-देसि-वण्णय-णिबद्धा । ४. भविसयत्तकहा तथा अपभ्रंश कथाकाव्य, पृष्ठ ३११ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org 19 २५ चालावहि ( चलवाये), चलु (चलो), फिरइ, गइय, देइ, बुलावइ, खायइ, खुल्लय (खुला हुआ) इत्यादि । देशी कोशकार आज तक कितने देशी कोशकार हुए हैं, इसका ठीक-ठीक संकलन करना इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त दुरूह कार्य है । वर्तमान में देशी शब्दों का सबसे बड़ा कोश आचार्य हेमचन्द्र का मिलता है । त्रिविक्रम ने अपने प्राकृत शब्दानुशासन में लगभग १६०० देशी शब्दों का उल्लेख किया है । धनपाल ने पाइयलच्छीनाममाला में प्राकृत शब्दों के साथ कुछ देशी शब्दों का संग्रहण भी किया है। आचार्य हेमचन्द्र ने अनेक देशी कोशकारों का नामोल्लेख अपने ग्रन्थ – देशी नाममाला में स्थान-स्थान पर किया है। उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार हैअभिमानचिन्ह – इनका देशीकोश सूत्रात्मक था । इन्होंने शब्दसूची और उदाहरणों से शब्दों के अर्थ को स्पष्ट करने का प्रयास किया । इन सूत्रों की व्याख्या विद्वान् उदूखल ने की थी । अवन्तिसुन्दरी - यह भी कोई विदूषी महिला थी, जिसने प्राकृत में काव्य रचना कर, उसमें अनेक देशी शब्दों को प्रयुक्त किया था । इसके विषय में पर्याप्त जानकारी नहीं है । गोपाल – इन्होंने देशी शब्दकोश की श्लोकबद्ध रचना कर संस्कृत में उन शब्दों का अर्थ किया था। अनेक देशीकारों ने इनका उल्लेख किया है । देवराज – इन्होंने छन्दबद्ध देशीकोश की रचना की और शब्दों के अर्थ प्राकृत में दिये । इनका सम्पूर्ण कोश शब्दों की प्रकृति के आधार पर प्रकरणों में विभाजित था । द्रोण – इन्होंने देशीकोश की रचना अवश्य की थी और शब्दों का अर्थ प्राकृत भाषा में प्रस्तुत किया था । परन्तु उस ग्रन्थ का स्वरूप अज्ञात है । धनपाल ——– संभवतः पाइअलच्छीनाममाला के कर्त्ता धनपाल से ये भिन्न थे । इनका देशी कोश हेमचन्द्र के समय में प्रचलित रहा हो - ऐसी संभावना है । इनका विशेष परिचय ज्ञात नहीं है । पादलिप्ताचार्य - हेमचन्द्र के अनुसार ये भी देशीकोश के रचयिता थे । यह सम्भावना की जाती है कि इनके कोशगत विवरण से हेमचंद्र पूर्ण सहमत थे । राहुलक - इनके द्वारा रचित देशीकोश की कोई विश्वस्त जानकारी प्राप्त नहीं है । 'टोल' शब्द के सन्दर्भ में हेमचन्द्र इनके मत को स्वीकार कर, अन्यान्य कोशकारों के अर्थ का प्रतिषेध करते हैं। संभवतः इनका कोई कोश रहा हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org २६ शाम्ब – हेमचन्द्र इनके मत का उल्लेख करते हैं, पर इनके द्वारा रचित कोई देशीकोश था, यह स्पष्ट नहीं है । शीलांक – हेमचन्द्र ने इनके मत का उल्लेख तीन स्थानों पर किया है । संभवतः इन्होंने देशीकोश की रचना की थी । इन सभी देशी कोशकारों का इतिवृत्त और काल ज्ञात नहीं है । संभवतः इन सभी कोशकारों के देशीकोश हेमचन्द्र को प्राप्त थे और उन्होंने इन सभी कोशों में रही अपर्याप्तताओं को निकालकर देशीनाममाला को समृद्ध बना का प्रयत्न किया है । यह तो सुनिश्चित है कि हेमचन्द्र से पूर्व प्रणीत देशी कोशों से हेमचन्द्र का प्रस्तुत देशीकोश विशिष्ट व्यवस्थित और शब्द के सही अर्थ को प्रकट करने में सक्षम है । देशीनाममाला : एक परिचय देशीनाममाला देशी शब्दों का विशिष्ट कोश है । आचार्य हेमचन्द्र ने इसके प्रारम्भ में लिखा है- देशी दुःसन्दर्भा प्राय: संदर्भिताऽपि दुर्बोधा । आचार्य हेमचन्द्रस्तत् तां संदृभति विभजति च ॥ देशी शब्दों का चयन करना, उनके सन्दर्भों की समीचीनता को ढूंढना तथा उनके अर्थों के अवबोध को निश्चित करना दुरूह कार्य है । इसकी रचना आचार्य हेमचन्द्र ने अपने व्याकरण ग्रंथ सिद्ध हे शब्द नुशासन के अष्टम अध्याय की पूर्ति के लिए की । आचार्य हेमचन्द्र ने इस कोश के दो नामों का उल्लेख किया है – देसीसहसंगहो, रयणावली ।' किन्तु इन दोनों नामों के अतिरिक्त प्रत्येक अध्याय के बाद पुष्पिका में 'देशीनाममाला' नाम भी मिलता है । इसके रचनाकाल के बारे में भी भिन्न-भिन्न मान्यताएं हैं । यह तो स्पष्ट है कि इसकी रचना आचार्य हेमचन्द्र ने सिद्ध हेमशब्दानुशासन तथा संस्कृत के कोशों— अभिधान चिंतामणि, अनेकार्थं संग्रह आदि के पश्चात् की । डा० बूलर के अनुसार देशीनाममाला की रचना वि० सं० १२१४-१५ में होनी चाहिए । यह मत विद्वानों में मान्य भी है । डॉ. भयाणी ने अपने लेख में देशीनाममाला के अनेक शब्दों की २ संस्कृत छाया करके उनको तद्भव या तत्सम माना है । १. देशीनाममाला, ८१७७ : इय रयणावलीणामो, देसीसद्दाण संगहो एसो । वायरणसेसलेसो, रइओ सिरिहेमचन्दमुणिवइणा ॥ २. कालूगणि स्मृति ग्रंथ, संस्कृत प्राकृत जैन व्याकरण कोश की परम्परा, पू ८३-१०७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org २७ प्रस्तुत कोश ग्रंथ में ८ अध्याय तथा ७८३ गाथाएं हैं। इसमें ३९७८ शब्दों का संकलन है । सभी शब्द अकारादि क्रम से संगृहीत हैं । इस पर उनकी स्वोपज्ञ टीका भी है । शब्दों के अर्थावबोध के लिए उन्होंने ६३४ उदाहरण गाथाएं भी दी हैं । आचार्य हेमचन्द्र ने शब्दों को देशी मानने की कुछेक कसौटियां दी हैं । इन कसौटियों पर सभी शब्द खरे नहीं उतरते- -यह अवधारणा व्याख्याकार रामानुज, पिशेल और बनर्जी आदि विद्वानों की है। अनेक ऐसे शब्द भी हैं जिन्हें शब्दानुशासन में संस्कृत मानकर सिद्ध किया गया है तथा जो इस कोश में भी समाविष्ट कर दिये गये हैं। डॉ. शिवमूर्ति शर्मा ने इसके तत्सम, तद्भव एवं देशीशब्दों का लेखा इस प्रकार प्रस्तुत किया है तत्सम शब्द १०० । संशययुक्त तद्भव ५२८ । गर्भित तद्भव १८५० । देशीशब्द १५०० । -- इन १५०० देशीशब्दों में से प्राप्त होते हैं तथा ७०० शब्द आर्येतर 500 शब्द भारतीय आर्यभाषाओं में भाषाओं से संबंधित बताये जाते हैं । विद्वानों का मंतव्य है कि हेमचन्द्र द्वारा दी गई कसौटियों पर केवल १५०० शब्द खरे उतरते हैं। किन्तु आचार्य हेमचन्द्र ने प्राय: प्रत्येक शब्द को देशी मानने में तर्क प्रस्तुत किया है तथा अनेक आचार्यों के मतों का उल्लेख भी किया है । देशीनाममाला के कई शब्द संस्कृत से व्युत्पन्न किये जा सकते हैं, किन्तु अर्थ की दृष्टि से वे पूर्णतः देशी हैं । स्वयं आचार्य हेमचन्द्र ने अपनी स्वोपज्ञ वृत्ति में स्थान-स्थान पर स्पष्टीकरण दिया है तथा उन शब्दों को देशी मानने का कारण युक्तिपुरस्सर समझाया है । जैसे— व्यभिचारी अर्थ का द्योतक 'अविणयवर' शब्द संस्कृत के 'अविनयवर' शब्द से सहज व्युत्पन्न किया जा सकता है, किन्तु संस्कृत कोशों में इस अर्थ में अप्रसिद्ध होने से इसे देशी में संगृहीत किया है । अगुज्झहर- अगुह्यधर, अचिरजुवइ अचिरयुवति आदि शब्दों की भी यही स्थिति है ।' 'अण्णइअ' शब्द तृप्त अर्थ का वाचक है। इसे संस्कृत के 'अन्नचित' शब्द से निष्पन्न किया जा सकता है, किन्तु उसका अर्थ तृप्त न होकर 'अन्न से पुष्ट' होता है । अतः तृप्त अर्थ का वाचक 'अण्णइअ' शब्द देशी है । १. देशीनाममाला का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन, पृष्ठ ५६ । २. देशीनाममाला, १११८ वृत्ति । ३. वही, १।१६ वृत्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org २८ निमीलन अर्थवाची 'अच्छिवडण' शब्द संस्कृत के 'अक्षिपतन' शब्द से निष्पन्न हो सकता है, तथापि संस्कृत में इस अर्थ में अप्रसिद्ध होने से इसे देशी में निबद्ध किया है । 'अहिहाण' का अर्थ है – वर्णना, प्रशंसा । यह संस्कृत के अभिधान शब्द से व्युत्पन्न किया जा सकता है, किन्तु जो व्यक्ति संस्कृत से अनभिज्ञ हैं, स्वयं को प्राकृत के पंडित मानते हैं उनका ध्यान आकृष्ट करने के लिए ऐसे अनेक शब्दों का संग्रहण किया है । संस्कृत में 'अभिधान' शब्द वर्णना-- प्रशंसा के अर्थ में प्राप्त नहीं है । उल्लिखित संदर्भों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि देशी शब्दों के संग्रहण में आचार्य हेमचंद्र बड़े सतर्क एवं जागरूक रहे हैं । इस विषय में उनकी दृष्टि बहुत स्पष्ट एवं विशाल थी, चिंतन युक्तियुक्त एवं गंभीर था । अन्य आचार्यों द्वारा देशी रूप में स्वीकृत होने पर भी जहां आचार्य हेमचन्द्र को कोई शब्द युक्ति संगत नहीं लगा उसे संस्कृतसम या संस्कृतभव कह कर छोड़ दिया है । जैसे 'अच्छलं अनपराध इति संस्कृतसम: । 'अच्छोडणं मृगया, अलिंजरं कुण्डम्, अमिलायं कुरण्टककुसुमम्, अच्छभल्लो ऋक्षः' इत्यपि संगृह्णन्ति । तत् संस्कृतभवत्वादस्माभिर्नोक्तम् । शब्दों के यथार्थ अर्थ को पकड़ना एक कठिन कार्य है । उसमें देशी शब्दों का सही ढंग से निर्णय तथा अर्थ-निर्धारण तो और भी कठिन कार्य है । देशीनाममाला में आचार्य हेमचन्द्र ने देशी शब्दों के वाचक जिन संस्कृत शब्दों का प्रयोग किया है, उनके अनेक अर्थ होते हैं, हो सकते हैं । उनको कौनसा अर्थ अभिप्रेत था - इसका प्रसंग या संदर्भ के बिना निर्णय करना अत्यंत कठिन है । यही कारण है कि देशीनाममाला के अनेक शब्दों का भ्रमपूर्ण एवं अयथार्थ अर्थ भी कर दिया गया है । उदाहरण के लिए रामानुज स्वामी की शब्द सूची द्रष्टव्य है। उसमें कई शब्दों के अर्थ विमर्शणीय एवं संशोधनीय हैं । जैसेआचार्य हेमचन्द्र ने 'आउस' शब्द का संस्कृत अर्थ 'कूर्च' दिया है । कूर्च शब्द के दाढ़ी और कूंची - दो अर्थ होते हैं । रामानुज ने इसका अर्थ कूँची ( Brush) किया है, किन्तु इसका वास्तविक अर्थ दाढ़ी होना चाहिए । इसके सही या गलत अर्थ का निर्णय आचार्य हेमचंद्र द्वारा प्रस्तुत इस उदाहरण गाथा से हो सकता है— १. देशीनाममाला, १॥३६ वृत्ति । २. वही, ११२१ वृत्ति । ३. वही, १।२० वृत्ति । ४. वही, ११३७ वृत्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org "सआयाम आसयसेन्नं तुह पेच्छिय जाय-आउर आलीला । आलत्थपिच्छच्छत्ते छड्डिय रिउणो अणाउसा जंति ॥ १॥५३॥६५ । इसमें शत्रुओं की पराजय का सुन्दर चित्रण करते हुए कहा गया है कि हे राजन् ! तुम्हारी शक्तिशाली सेना को निकट आयी जानकर युद्ध के निकटवर्ती भय से भयभीत तुम्हारे शत्रु मयूरपिच्छीनिष्पन्न छत्रों को छोड़कर बिना दाढ़ी-मूंछ वाले मर्द बनकर युद्ध क्षेत्र से पलायन कर रहे हैं । इस वर्ण्य प्रसंग के आधार पर यह स्पष्ट है कि यहां 'आउस' का अर्थ कूंची नहीं, दाढ़ी मूंछ ही होना चाहिए । इसी प्रकार 'आहुंदुर' (१९६६) शब्द का अर्थ हेमचन्द्र ने 'बाल' किया है। रामानुजस्वामी ने 'बाल' का अर्थ पूंछ (T: il) किया है, जो ठीक नहीं है । निम्न उदाहरण गाथा के संदर्भ में इसका 'बालक' अर्थ उचित प्रतीत होता है— आमोरय ! सिरिआसंग ! तए आहुंदुरा करि-हरीण । मित्त-आसवण-अमित्तआलयण-दुवारेसु संघडिया ॥ १ ॥५४॥६६॥ 'हे विशेषज्ञ ! लक्ष्मी के वासगृह ! तुमने मित्रों के गृहद्वारों पर हाथी के बच्चों का तथा शत्रुओं के गृहद्वारों पर बंदर के बच्चों का संघटन / निर्माण किया है ।' डॉ. भयाणी का देशी शब्दों पर किया गया अनुसंधान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इन्होंने देशीनाममाला के शब्द - अनुक्रम में रामानुजस्वामी द्वारा दिये गए इंग्लिस अर्थों की समालोचना करते हुए १७५ शब्दों की नोंध प्रस्तुत कर उनके द्वारा कृत अर्थों को भ्रामक और अनभिप्रेत बताया है। इन्होंने इन शब्दों का अर्थ जो हेमचंद्र को अभिप्रेत था उसका निर्देश भी किया है । उनमें से कुछेक शब्द सही-गलत अर्थों के साथ इस प्रकार हैं 8 मूल शब्द सही अर्थ अच्छिविअच्छी परस्पर आकर्षण, आपसी खींचतान अजराउर आमलय आरंदर आलीवण इंदड्ढलअ इरमंदिर उअहारी २६ उष्ण नूपुर गृह, नूपुर रखने की पेटी १. अनेकान्त, जनसंकुल २. संकट, संकीर्ण Jain Education International प्रदीपनक, प्रदीप्त अग्नि इन्द्रोत्थान, इंद्रध्वज को हटाना करभ दोग्घी, दूध दुहने वाली स्त्री १ स्टडीज इन हेमचन्द्राज देशोनाममाला, पृ ५७-८२ । रामानुजकृत गलत अर्थ Mutual attraction Heat Dressing room Not alone Difficulty Illuminating Awakening Indra A young elephent A milch cow For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ३० ओरंपिअ कोट्टिब गणणाइआ चिच्च दोद्धिअ माणंसी आक्रान्त नौका द्रोणी, चण्डी, पार्वती कटिभाग चर्मकूप, दृति चंद्रवधू, वीरबहूटी कीट साहंजण गोखरू, एक पौधा देशी शब्दों का भाषाशास्त्रीय अध्ययन Jain Education International Seiged A Wooden tub An angry woman Charming A pore of the skin The wife of the moon A cow's hoof आगम-साहित्य शब्दों का विपुल भंडार है । धार्मिक, ऐतिहासिक, सामाजिक, भौगोलिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से तो इसका महत्व है ही, किन्तु भाषाविज्ञान की दृष्टि से भी इसके अनेक शब्द तुलनीय एवं विमर्शणीय हैं । आगम में समागत अनेक देशी शब्द अर्वाचीन हिंदी, राजस्थानी, गुजराती, मराठी, कन्नड, तमिल, तेलगु भाषा के शब्दों से तुलनीय हैं । भाषाविज्ञान की दृष्टि से प्रत्येक शब्द के अर्थ का उत्कर्ष एवं अपकर्ष होता रहा है। डा० हजारीप्रसाद द्विवेदी के भाषा-विज्ञान सम्बन्धी ये विचार उल्लेखनीय हैं- -' शब्दों के अर्थ की ह्रास और विकास की कथा दीर्घकाल से चली आ रही है । कुछेक शब्दों के अर्थ में विकास होता है, कुछेक का ह्रास और कुछेक के अर्थ में विकार आ जाता है । 'वंश' शब्द का विकास 'बांस' अर्थ में हुआ, किन्तु कुल के अर्थ में विकास न होकर 'वंश' शब्द ही बना रहा । इसी प्रकार 'पृष्ठ' शब्द का विकास / विकार 'पीठ' अर्थ के रूप में हुआ, पर पृष्ठ ( पन्ने ) के अर्थ में नहीं हुआ । 'पन्ने' के अर्थ में पृष्ठ शब्द ही प्रयुक्त होगा, पीठ नहीं । अमुक पुस्तक का पृष्ठ कहा जाएगा, पीठ नहीं । ' सूची' शब्द वस्त्र सीने के उपकरण के रूप में 'सूई' बन गया, किन्तु 'विषय सूची' के लिए 'विषय सूई' नहीं बन सका । इसी प्रकार शताधिक शब्दों की कहानी है ।' किन्तु कुछ शब्द सैंकड़ों-हजारों वर्षों के बाद भी अपने मूल अर्थ को सुरक्षित रखते हैं । आगमों में 'तुप्प' शब्द का अर्थ है— चुपड़ा हुआ, घी और स्निग्ध । कन्नड भाषा में आज भी 'तुप्प' घी का वाचक है तथा मराठी में घी के लिए 'तूप' शब्द का प्रयोग होता है। इसी प्रकार चिकनाहट या तेल का वाचक 'चोप्पड' शब्द राजस्थानी एवं हिन्दी में आज भी प्रसिद्ध है । यद्यपि सभी शब्दों का भाषाशास्त्रीय अध्ययन करना संभव नहीं था कि अमुक शब्द किस भाषा से आया है, किन्तु जहां भी हमें वर्तमान में प्रचलित अन्य भाषा से संबंधित शब्दों की जानकारी मिली वहां उन शब्दों के आगे कोष्ठक में हमने उस भाषा का उल्लेख किया है। नीचे कुछेक ऐसे शब्दों के उदाहरण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ३१ हैं जो अन्य भाषाओं में कुछ परिवर्तन से या मूल रूप में आज भी प्रयुक्त होते हैंअक्का- -बहिन ( कन्नड ) अच्चाइय–व्यथित (अच्चिग-व्यथा - कन्नड़ ) अज्जिआ - - दादी (अज्जी- कन्नड, आजी-मराठी) कण्ण – गोल (कण्णे - कन्नड ) गय्याल - जिद्दी (मूर्ख - कन्नड) डग्गल – घर के ऊपर का भूमितल ( डागला- राजस्थानी ) पत्थारी — शैया, बिछौना ( पत्यारी- गुजराती, पथरणा- राजस्थानी ) मग्गओ--पीछे (मग-मराठी) हडप्प – ताम्बूलपात्र ( हडप - ताम्बूल रखने की छोटी थैली - कन्नड) अनेक स्थलों पर तो स्वयं व्याख्याकार भी देश विशेष की भाषा या शब्द का उल्लेख करते हैं । जैसे-अण्णं इति मरहट्ठाणं आमंतणवयणं । अवसावणं लाडाणं कंजियं भण्णई । महाराष्ट्रमवोगिल्लमवाचालम् । उण्ण त्ति लाडाणं गड्डुरा भण्णंति । एआवन्ती सव्वावन्ती ति एतौ द्वौ अपि शब्दौ मागधदेशीभाषाप्रसिद्ध्या एतावन्त: ..……। लाडाणं कच्छा सा मरहट्ठयाणं भोयडा भण्णति । पेलुकरणादि लाटविषये रूतप्राणिका ( पूर्णिका ? ) महाराष्ट्रविषये सैव पेलुरित्युच्यते । किसी भी भाषा के विकास का महत्वपूर्ण सूत्र ग्रहणशीलता होता है । संस्कृत आदि भाषाओं के कोशग्रन्थ अन्य भाषाओं के शब्दों को ग्रहण करके ही समृद्ध बने हैं । आप्टे, मोनियर विलियम्स आदि विद्वानों ने अपने संस्कृत कोशों में अनेक देशी शब्दों का संग्रहण किया है । आप्टे के संस्कृत-इंग्लिश कोश में बर्बरीक, बर्कर, चिक्खल, लड्डू आदि शब्द संगृहीत हैं । ये शब्द देशी कोशों में इस प्रकार हैं—बब्बरी, बक्कर, चिक्खिल्ल (चिवखल्ल ), लड्डुग ( लड्डुय) आदि । अर्थ दोनों कोशों में समान हैं । n यहां डा० शिवमूर्ति का यह मंतव्य भी उल्लेखनीय है – 'कोई भी साहित्यिक भाषा लोक भाषा के स्तर से उठकर ही साहित्यिक भाषा बनती है । ऐसी स्थिति संस्कृत की भी रही है । पाणिनि जैसे वैयाकरणों ने इसका संस्कार किया। इस प्रक्रिया में कितनी ही देश्य शब्दावलि संस्कृत हो उठी । अष्टाध्यायी के उणादि प्रत्यय इसी तथ्य की ओर संकेत करते हैं । पाणिनि के समय में भी शिक्षितों की भाषा से अलग हटकर कुछ भाषाएं थीं जिन्हें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ३२ अधिकृत विद्वानों ने प्राकृत ( अशिक्षितों की) भाषा कहा है । इस बात का समर्थन पतंजलि और भरत भी करते हैं । पाणिनि के धातु पाठ में कई धातुएं ऐसी आई हैं जिनका प्रयोग उनके पूर्व की साहित्यिक भाषा में नहीं मिलता । इनका विकास आश्चर्यजनक रूप से आधुनिक आर्यभाषाओं, विशेषतया हिंदी में मिलता है। जैसेहिंदी अड़ना कड़ा बाढ जिमु जीमना, भोजन करना संस्कृत में घोड़े के लिए घोटक और अश्व - ये दो शब्द मिलते हैं । स्थिति के अनुसार प्रथम लोकभाषा से आया हुआ शब्द रहा होगा और द्वितीय शिक्षितों की भाषा का शब्द रहा होगा । शिक्षितों का अश्व शब्द आज हिंदी में भी उसी वर्ग के लोगों का शब्द है, जबकि घोटक-घोडअ-घोड़ा आदि रूपों में परिवर्तित होता हुआ सामान्यजनों द्वारा व्यवहृत होता है । इसी प्रकार कुत्ते के लिए कुक्कुर और श्वान, बिल्ली के लिए बिलाड़ी और मार्जारी शब्द व्यवहृत होते रहे हैं । गोसर्ग १।४।३ जलनीली १।१०।३८ डुलि १।१०।२४ संस्कृत अड्ड कड्डु वामन के मतानुसार 'जो देशी शब्द बहुत व्याप्त हों, उन्हें संस्कृत काव्यों में प्रयुक्त किया जा सकता है ।" यही कारण है कि सैकड़ों शब्द संस्कृत कोशों एवं देशी कोशों— दोनों में हैं। जैसेअमरकोश अभिधानचिन्तामणि कङ्कल्लि ११३५ तरस २।६।६३ तुङ्गी २१४।१३६ दाक्षाय्य २।५।२१ बाड Jain Education International गोस १३८ टी गोसर्ग १३८ टी जलनीलिका ११६७ दुलि १३५३ तम्पा, तंवा १२६६ तरस ६२२ तुङ्गी १४३ टी दाक्षाय्य १३३५ प्रखर, प्रक्षर १२५१ प्रतिसीरा ६८० देशीनाममाला अंकेल्लि १।७ कंकेल्लि २०१२ गोस २१९६ गोसग्ग २१६६ जलणीली ३४२ दुलि ५४२ तंवा ५०१ तरस ५१४ तुंगी ५०१४ दक्खज्ज ५।३४ पक्खरा ६।१० पडिसारी ६।२२ प्रतिसीरा २९६ । १२० १. देशी नाममाला का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन, पृष्ठ १७०-१७४। २. काव्यालंकार ५। १ । १३ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ३३ अभिधानचिन्तामणि कोश की स्वोपज्ञवृत्ति में कहीं-कहीं शब्दों के देशी और संस्कृत — दोनों होने का स्पष्ट निर्देश भी किया गया है । यथागोसो देश्याम्; संस्कृतेऽप्येके ( १३८ टी ) । तुङ्गो देश्याम्; संस्कृतेऽपि (१४३ टी) । विस्कल्लो देश्याम्; संस्कृतेऽपि ( १०९० टो) । इसी प्रकार दोहनपात्र के अर्थ में पारी शब्द का प्रयोग शिशुपालवध ( १२०४० ) और देशीनाममाला ( ६ । ३७ ) – दोनों में है । कृश अर्थ के वाचक 'छात' शब्द की भी यही स्थिति है। इस शब्द के बारे में हेमचन्द्राचार्य ने स्वयं प्रश्न उपस्थित कर उस पर पर्याप्त विमर्श किया है । वे लिखते हैं 'महाकवि माघ ने अपने संस्कृत महाकाव्य शिशुपालवध में 'छात' शब्द का प्रयोग कृश अर्थ में किया है । प्रश्न होता है फिर यह शब्द देशी कैसे ? संस्कृत में 'छोंच्' धातु अंतकर्म या छेदन अर्थ में प्रयुक्त है और लोक व्यवहार में भी इसी अर्थ में प्रचलित है। इस धातु मे निष्पन्न 'छात' शब्द कृश अर्थ का वाचक नहीं बन सकता । यद्यपि धातुएं अनेकार्थक होती हैं, किंतु उनका प्रयोग लोक व्यवहार या लोक-प्रसिद्धि पर निर्भर है । कृश अर्थ में 'छात' शब्द का प्रयोग माघकवि ने ही किया है। अन्यत्र छेदन अर्थ के अतिरिक्त इसका दूसरे अर्थ में प्रयोग देखने में नहीं आया ।" देशीनाममाला में 'दुल्ल' शब्द वस्त्र के अर्थ में प्रयुक्त है। दुकूल शब्द भी वृक्ष तथा वृक्ष की छाल से निष्पन्न वस्त्र के अर्थ में देशी होना चाहिये । बाद में संस्कृत कोशों में यह शब्द सूक्ष्म रेशमी वस्त्र के अर्थ में प्रयुक्त होने लगा हो - यह अधिक संभव लगता है। नालिकेर, ताम्बूल आदि शब्द भी देशी होने चाहिये । बाद में ये शब्द संस्कृत साहित्य में स्वीकृत कर लिए गये । ऐसे अनेक देशी एवं रूढ शब्द संस्कृत भाषा की सम्पत्ति बन चुके हैं जिन्हें आज देशी कहना कठिन लगता है । देशी धातुएं इस कोश में अनेक देशी धातुएं परिशिष्ट २ संगृहीत हैं। पाठक की सुविधा की दृष्टि से हमने (देशी धातु चयनिका ) में इन धातुओं को मूल देशी १ देशीनाममाला ३।३३ वृत्तिः 'छाओ बुभुक्षितः कृशश्च । ननु 'छातोदरी युवदृशां क्षणमुत्सवोऽभूत् ' ( माघ सर्ग ५ श्लोक २३) इत्यादौ 'छात' शब्दस्य कृशार्थस्य दर्शनात् कथमयं देश्यः ? नैवम्, छेदनार्थस्यैव 'छात' शब्दस्य साधुत्वात् । न च धात्वनेकार्थता उत्तरमत्र । अनेकार्थता हि धातूनां लोकप्रसिद्ध्या । लोके च 'छात' शब्दस्य छेदनार्थं मुक्त्वा अस्यैव कवेः प्रयोगः नान्येषाम् — इत्यलं बहुना ।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ३४. शब्दों के साथ न देकर इनका पृथक् [ संग्रहण किया है । भागों में विभक्त किया जा सकता है१. देशी धातुएं । २. आदेश प्राप्त धातुएं । प्रथम कोटि की धातुओं में कहीं-कहीं व्याख्याकारों ने यह देशी व है, यह देशी पद है - ऐसा स्पष्ट निर्देश किया है । जैसे-- इन धातुओं को दो खलाहि देशीपदमपस रेत्यस्यार्थी । जूहंति त्ति देशोशब्दत्वाद् आनयन्ति । णिण्णाइंति देशीपदत्वादधोगच्छति । फुराविति त्ति देशीपदमेतद् अपहारयन्ति । रूसेह त्ति देशीवच नत्वाद् गवेषयत । वाडुइत्ति देशीवचनमेतत् नश्यतीत्यर्थः । विष्फालेइ देशीवचनमेतत् पृच्छतीत्यर्थः । आदेश प्राप्त धातुओं को कुछ विद्वानों ने तद्भव के रूप में स्वीकार किया है । हेमचन्द्राचार्य ने पूर्वाचार्यों की देशी अवधारणा को उल्लिखित कर इन्हें धात्वादेश प्रकरण में समाविष्ट किया है । वे लिखते हैं - एते चान्यैर्देशीषु पठिता अपि अस्माभिर्धात्वादेशीकृताः' – हमारे पूर्ववर्ती देशीकारों ने इन धातुओं को देशीधातुओं के रूप में संगृहीत किया है, पर हमने इन्हें आदेश प्राप्त धातुओं के रूप में ग्रहण किया है । किंतु आचार्य हेमचन्द्र देशीनाममाला में स्थान-स्थान पर संकेत करते हैं कि अमुक धातु हमने धात्वादेश में बता दी है, इसलिए यहां उसका कथन नहीं किया है । जैसे-अइच्छइ, अक्कुसइ–गच्छति । अवबखइ- पश्यति । अप्पाहइ- संदिशति । अल्लस्थइ - उत्क्षिपति । एते धात्वादेशेषु शब्दानुशासने अस्माभिरुक्ता इति नेहोपात्ताः । (१।३७ वृ) उप्फालइ - कथयति उमाइ पूर्यते इत्यादयो धात्वादेशेष्वस्माभिरुक्ता इति नोच्यन्ते । (१।११७ वृ) ( ३११८ वृ ) (३।१६ वृ) जूरइ खिद्यते क्रुध्यति च इति धात्वादेशेषूक्तमिति नोक्तम् । ( ३१५२ व ) टिविडिक्कइ मण्डयति, टिरिटिल्लइ भ्राम्यति धात्वादेशेषूक्ताविति नोक्तौ । (४१३ व ) इन निर्देशों से यह सम्भावना की जा सकती है कि हेमशब्दानुशासन के १. प्राकृत व्याकरण ४।२ टीका । Jain Education International चुलुचुलइ -- स्पन्दते इति धात्वादेशेषूक्तमिति नोक्तम् । चोप्पडइ – प्रक्षति इति धात्वादेशेषूक्तमिति । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ३५ धात्वादेश प्रकरण में इन धातुओं का आख्यान यदि पहले नहीं किया होता तो वे अवश्य इन्हें देशीनाममाला में देशीरूप में स्वतंत्र स्थान देते । और यह वास्तविकता भी है कि टिविडिक्क, टिरिटिल्ल आदि सैंकड़ों शब्द ऐसे हैं जिनकी समानता / तुल्यता का वहन करने वाले शब्द संस्कृत में उपलब्ध नहीं हैं । आगम- व्याख्या ग्रंथों में आचार्य हरिभद्र आचार्य मलयगिरि आदि व्याख्याकारों ने कई स्थानों पर आदेश प्राप्त धातुओं के देशी होने का निर्देश भी किया है । जैसे- साहइ त्ति देशीवचनतः कथयति ( आवहाटी १ पृ १६०) । 'साह' धातु 'कथ' धातु के आदेशरूप में प्राप्त है ।' कुछ अन्य उदाहरण इस प्रकार हैंजोअ ( दृश् ) जोएइत्ति देशीवचनमेतद् निरूपयति । झोस ( गवेषय् ) झोसेह त्ति देशीवचनत्वाद् गवेषयत । दुरुह ( आ + रुह ) आरोहणे देशी । फव्वीह (लभ्) फव्वीहामो त्ति देशीपदत्वाद् लभामहे । इसी आधार पर हमने सभी आदेश प्राप्त धातुओं को देशी धातु के अन्तर्गत रखा है । यद्यपि अनेक आदेश ऐसे हैं जिनका संस्कृत रूप संभव है, वे देशी जैसे प्रतीत भी नहीं होते, जैसे- भञ्ज को 'सूड' आदेश होता है । सूदन विनाश के अर्थ में संस्कृत में भी प्रसिद्ध है, किन्तु आदेशप्राप्त होने से इसे देशी के अन्तर्गत रखा है। इसी प्रकार 'दुमण' शब्द दून् धातु का आदेशप्त रूप है । देशी धातुओं के पृथक् संग्रहण के संदर्भ में आचार्य हेमचन्द्र का अभिमत विशेष ज्ञातव्य है । उनका मन्तव्य है कि देशी शब्दसंग्रह में धात्वादेशप्रकरण का संग्रह उचित नहीं है, क्योंकि देशीसंग्रह में उन्हीं शब्दों का ग्रहण उचित है जिनका अर्थ सिद्ध या प्रसिद्ध है, जो साध्यमान नहीं है । धात्वादेशों का अर्थ साध्य है, सिद्ध नहीं । दूसरी बात, त्यादि, तुम्, तव्य आदि प्र की बहुलता के कारण धातुओं के अनेक रूप बनते हैं जिनका संग्रहण सम्भव नहीं है । देशीनाममाला में अनेक धातुमूल शब्दों का प्रयोग हुआ है । यथाआरोग्गिय, आहुडिय, आडुआलिय, आसरिअ । 'करवाना' अर्थ का सूचक 'णिच् ' प्रत्यय लगाने से ये नामधातु बन सकती हैं । यथा— आरोग्गं करोति आरोग्गइ । आहुडं करोति आहुडइ । आडुआलिं करोति आडुआलइ इत्यादि । १. प्राकृत व्याकरण, ४२ । २. देशीनाममाला, १।३७ वृत्तिः 'न च धात्वादेशानां देशीषु संग्रहो युक्तः । सिद्धार्थशब्दानुवादपरा हि देशी साध्यार्थपराश्च धात्वादेशाः । ते च त्यावि-तुम्-तव्याविप्रत्ययैर्बहुरूपाः संग्रहीतुमशक्या इति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org इस प्रकार इन नामों से धातु तथा धातु से भूतकृदन्त आदि क्रियावाचक शब्द बनाये जा सकते हैं । सर्वत्र क्रियावाची शब्दों में यह नियम लागू किया जा सकता है। उदाहरण के लिए कुछ अन्य शब्दों को लिया जा सकता हैअविय ( कथित ), अट्टट्ट ( गत ), अज्झत्थ ( आगत ) – यद्यपि ये तीनों शब्द क्रियावाचक भूतकृदन्त के रूप में हैं, तथापि त्यादि के रूप में इनका प्रयोग ग्रन्थों में उपलब्ध नहीं हुआ इसलिए धात्वादेश में हेमचन्द्राचार्य ने इन्हें निबद्ध नहीं किया । अवरुंडिय शब्द आलिंगन अर्थ में देशी है। इसके मूल में धातु हैअवरुंड । अवरुंडइ अवरुंडिज्जइ अवरुंडिऊण इत्यादि क्रियापदों का प्रयोग मिलने पर भी आचार्य हेमचन्द्र ने इसे धात्वादेश प्रकरण में समाविष्ट नहीं किया, क्योंकि उनके पूर्ववर्ती आचार्यों ने भी इसे धात्वादेश में स्थान नहीं दिया । आचार्य हेमचन्द्र अपना तर्क प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि अज्झस्सइ, अज्झसियं इत्यादि प्रयोगों के आधार पर अज्झस्स शब्द को धात्वादेश में ग्रहण करना चाहिए था । प्राचीन देशीसंग्रहकारों का अनुसरण करते हुए हमने इसे धात्वादेश में न लेकर अज्झस्स (आक्रुष्ट) शब्द के रूप में देशीसंग्रह में संगृहीत किया है । इन शब्दों एवं धातुओं को आधार मानकर इस कोश में हमने कुछ ऐसी धातुओं का ग्रहण किया है जो अन्य शब्दकोशों में नहीं हैं । जैसे— आलंक - लंगड़ा करना, पंगु करना । आस गल. -आक्रांत करना, प्राप्त करना । असर- सम्मुख आना । इंघ सूंघना । इग्घ - तिरस्कृत करना । इल्ल - आसिक्त करना, सींचना । इन धातुओं का निर्माण / संग्रहण सर्वथा मनगढंत या निराधार नहीं है। हेमचन्द्राचार्य के निम्नांकित संदर्भों को इनकी आधारशिला कहा जा सकता है । 'उग्गहिय' शब्द का अर्थ है रचित, जो 'रचि' धात्वादेश से ही सिद्ध है । अर्थात् रच् धातु को 'उग्गह' आदेश हुआ है । उस उग्गह धातु से ही 'उग्गहिय' शब्द रचित अर्थ में निष्पन्न हुआ है ।" १. देशी नाममाला, १९६९ वृत्ति ॥ २. वही, १।१० वृत्ति । ३. वही, ११११ वृत्ति । ४. वही, १११३ वृत्ति । ५. प्राकृत व्याकरण, ४१९४; देशीनाममाला, १११०४ वृत्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org रम् धातु को उब्भाव आदेश होता है। इसी उब्भाव से निष्पन्न हुआ है – उब्भाविय ( सुरत, रतिक्रीडा ) । इसी प्रकार ऊसलिय, ऊसुंभिय ( उल्लसित ) शब्द उल्लस् धात्वादेश द्वारा सिद्ध है ।' पच्चुद्धार और पच्चोवणी – ये दोनों क्रियाशब्द हैं । पच्चुद्धरिअ और पच्चोवणिअ इन्हीं क्रियाशब्दों से निष्पन्न हुए हैं । ' कुछ धातुमूल शब्द एवं धातुएं स्वरूप की दृष्टि से तद्भव प्रतीत होती हैं, पर अर्थ की दृष्टि से पूर्णतया देशी हैं । जैसे— आसरिअ का अर्थ है – सम्मुख आया हुआ, न कि आश्रित । आलंकिय का अर्थ है— लंगड़ा, न कि अलंकृत । गुंज का अर्थ है - हंसना, न कि गूंजना । हण का अर्थ है— सुनना, न कि हिंसा करना । प्रस्तुत कोश के संकलन को प्रक्रिया अनेक स्थलों पर आगम तथा आगमेतर ग्रंथों के व्याख्याकारों ने यह 'देशीशब्द' है ऐसा निर्देश किया है । यह निर्देश विभिन्न रूपों में मिलता पहकरो त्ति देशीशब्दोऽयं समूहवाची । पादाभरणं लोके पागडा इति प्रसिद्धा । कप्पट्ठ समयपरिभाषया बालक उच्यते । उत्तूइओ त्ति देशीपदमेतद् गर्ने वर्तते । इगमवि देशीपदं क्वापि प्रदेशार्थे वर्तते । अणोरपारम्भि देशयुक्त्या अपारे । अचियत्तं देशीवचनं अप्रीत्याभिधायकम् । उप्पित्यशब्दस्त्रस्त व्याकुलवाची देशीति क्वचित् । खोल्लं देशीशब्दत्वात् कोटरम् । लोकभाषायां अंबाडी इति प्रसिद्धा । चिचइअं ति देशीवचनतः खचितमित्युच्यते । चोल्लकं देशीभाषया भक्तमुच्यते । जगारीशब्देन समयभाषया रब्बा भण्यते । णगारो देसीवयणेण पायपूरणे । चेल्ललकानि देशीवचनाद् देदीप्यमानानि । चुल्लशब्दो देश्यः क्षुल्लपर्याय: । चुक्कारशब्दो देश्यां शब्दवाची । १. प्राकृत व्याकरण, ४१२०२; देशीनाममाला, १९४१, १४२ वृत्ति । २ देशीनाममाला, ६॥२४ वृत्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ३८ निहुयं ति आर्षत्वाद् नि, नुतम् । प्राकृते पुष्परजः शब्दस्य तिगिछ इति निपातः देशीशब्दो वा । तुंडियं थिग्गलं देसीभासाए सामयिगी वा एस पडिभासा । दिगिछ त्ति देशीवचनेन बुभुक्षोच्यते । दुवग्ग त्ति देशीवचनत्वाद् द्वावपि । अमाघातो रूढिशब्दत्वाद् अमारिरित्यर्थः । मरहट्ठविसयभासाए वा इत्थी माउग्गामो भण्णति । सहणं ति देसीभासा सहेत्यर्थः । वाउप्पइय त्ति वातोत्पतिका रूढ्यावसेया । वालग्गपोइयातो त्ति देशीपदं वलभीवाचकम् अन्ये त्वाकाशतडागमध्यस्थितं क्षुल्लक प्रासादमेव वालग्गपोइया य त्ति देशीपदाभिधेयमाहुः । संघाडिय त्ति देशीपदमव्युत्पन्नमेव मित्राभिधायि । वियडिशब्देन लोके अटवी उच्यते । विसालिसेहि ति मागधदेशीयभाषया विसदृशैः । संगेल्ली समुदायः देश्योऽयं शब्दः । सासेरा देशीपदत्वाद् यंत्रमयी नर्तकी । साहिशब्दो राजमार्गे देशी । सुत्तं मदिराखोल: देशविशेषप्रसिद्धो वा कश्चिद् द्रव्यः । सुरूची रूढिगम्या आभरणविशेषः इति केचित् । हुरत्या नाम देसीभासातो बहिद्धा । होले त्ति निठुरमामंतणं देसीए भविलवचनमिव । होला इति देशोभाषातः समवया आमन्त्र्यते । प्रारम्भ में हमने प्राय: उन्हीं शब्दों का संकलन किया जहां देशी आदि का उल्लेख था, किन्तु जब आचार्य हेमचंद्र की देशीनाममाला का पारायण किया तब अनेक दृष्टियां स्पष्ट हुईं । इसलिए सभी आगम एवं व्याख्याग्रंथों का पुनः अवलोकन किया। इससे हजारों शब्द इस कोश में और जुड़ गए । यहां कुछ ऐसे उदाहरण प्रस्तुत हैं जहां हमने देशीनाममाला को आदर्श मानकर शब्दों का चयन किया है— यद्यपि कोश में नञ् समास वाले शब्दों का संग्रहण प्राय: नहीं किया जाता, किन्तु देशीनाममाला में कुछ ऐसे शब्द भी मिलते हैं। जैसेअणच्छिआर (अच्छिन्न ), अभिखिय ( अनिंदनीय) । इस आधार पर हमने भी ऐसे शब्दों का संकलन किया है । जैसे— अतितिण, अचोक्ख, अच्छिक्क, अजढर आदि । आचार्य हेमचंद्र ने ऐसे अनेक शब्दों को देशी माना है जिनकी संस्कृत छाया संभव है, किन्तु संस्कृत में वे प्रसिद्ध नहीं हैं । जैसे-Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org अंक (अङ्क) निकट । अक्खलिय (अस्खलित) आकुल-व्याकुल । अदंसण ( अदर्शन) चोर । अमय (अमृत) चांद । इसी आधार पर प्रस्तुत कोश में भी अनेक शब्दों का समावेश किया गया है। जैसेअच्चिय (अचित) मूल्यवान् । अवतंस (अवतंस ) पुरुषव्याधि नामक रोग । आयंस (आदर्श ) घोड़े का आभूषण । तरमल्लिहायण (तरोमल्लिहायन) युवा । परिक्क ( प्रतिरिक्त) एकांत । ३६ देशीनाममाला में इल्ल और इर प्रत्यय वाले कुछ शब्दों का संग्रहण है । जैसे— अंबिर (आम), सच्चिल्लय ( सत्य ), तत्तिल्ल (तत्पर ) ; लोहिल्ल (लोभी), पच्चिर ( रमणशील ) । इसी आधार पर दिट्ठिल्लिय, गतिल्लिय आदि शब्दों को हमने भी देशी की कोटि में रखा है। आचार्य मलयगिरि ने पढमेल्लुग शब्द के लिए देशी का निर्देश किया है। इसलिए संभव लगता है कि किसी क्षेत्र विशेष में इल्लादि-प्रधान शब्दों का व्यवहार अधिक प्रचलित रहा हो, उसी के आधार पर इसे देशी माना हो । 'इर', 'इल्ल' प्रत्यय से सम्बंधित हजारों शब्द आगम एवं व्याख्याग्रंथों में मिलते हैं । किन्तु सबका समावेश इसमें नहीं हो सका है । प्राकृत शैली से जिन शब्दों का रूप परिवर्तित हो गया है, वैसे अनेक शब्द देशीनाममाला में संग्रहीत हैं। हमने भी कुछ शब्द इस कोश में सम्मिलित किए हैं, जैसे - आघविय, तिगिछ' आदि । देशीनाममाला में राजा तथा गांव-विशेष के नाम भी देशी रूप में लिए गए हैं। राजा सातवाहन के लिए तीन शब्द आए हैं - कुंतल, चउरचिंध और हाल तथा गुजरात के एक गांव 'मोढेरक' के लिए 'भयवग्गाम' शब्द प्रयुक्त हुआ है । इसी आधार पर हमने भी कुछ व्यक्तियों, देशों तथा नगरों के नामों को देशी के अंतर्गत लिया है । जैसे— गोब्बर, कुडक्क, कोक्कास, तुरक्क आदि । आचार्य हेमचंद्र ने संख्यावाची शब्दों को भी देशी के अंतर्गत समाविष्ट १. आवश्यक, मलयगिरि टीका पत्र ११६ : प्रथमा एव प्रथमेल्लुका देशीपदमेतत् । २. आघवियं ति प्राकृतशैल्या छांदसत्वाच्च गुरोः सकाशादागृहीतम् । ३. प्राकृते पुष्परजःशब्दस्य तिगिछ इति निपातः देशीशब्दो वा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४० किया है । जैसे—पंचावण्ण, पणवण्ण ( पचपन ) आदि । इसी आधार पर हमने भी पण, चालीस, पणयाल, अडयाल, पणपण्ण आदि संख्यावाची शब्द लिए हैं । संख्यावाची शब्दों के अंतर्गत अडड, अडडंग, हुहुय, हुहुयंग, अवव, अववंग आदि शब्द भी महत्त्वपूर्ण हैं । ये शब्द संस्कृत कोशों में तो अप्राप्त हैं ही, अन्य परम्पराओं में भी नहीं मिलते। ये जैन गणित के विशेष पारिभाषिक शब्द हैं । अतः इन्हें देशीशब्दों के रूप में स्वीकृत किया है । सामान्य कोशों में क्त्वा प्रत्ययांत शब्द नहीं मिलते। किन्तु हमने मूलरूप में प्रत्यय के साथ ही उन शब्दों का इस कोश में समावेश किया है । जैसे - अंगोहलेऊण, अप्पाहट्टु आदि । ऐसे शब्दों को लेने का कारण यह है कि कहीं-कहीं मूल शब्द का प्रयोग आगमों में नहीं मिलने से इन शब्दों द्वारा उन अर्थों का ज्ञान हो जाता है । अनुकरणवाची शब्दों के विषय में विद्वानों में मतभेद है। कुछ इन्हें देशी मानते हैं तथा कुछ इन्हें देशी रूप में स्वीकार नहीं करते। किन्तु हमने इस कोश में अनेक अनुकरणवाची शब्दों को देशी रूप में स्वीकार किया है । जैसे – घणघणाइय, चवचव, छडछडा, छु, छुक्कारण, थिविथिवित, दुहदुहग । वाक्यालंकार के रूप में प्रयुक्त अव्यय भी देशी शब्दों के अंतर्गत समाविष्ट हैं। क्योंकि कहीं-कहीं टीकाकारों ने भी इन्हें देशी रूप में स्वीकार किया है । जैसे— 'आई ति देशीभाषायां', 'खाइणं' ति देशीभाषया वाक्यालंकारे । प्राकृत के पादपूरक अव्ययों को भी देशी के रूप में स्वीकार किया है । जैसे जे, मो, र, से, अदुत्तरं, बले । इनके देशी होने के कुछ प्रमाण इस प्रकार हैं१. से शब्द: मागधदेशीप्रसिद्धो निपातस्तच्छब्दार्थः । २. ऊति णाम मरहट्ठादिसु णादि दुगुं छिज्जति । ३. णगारो देसिवयणेण पायपूरणे । ४. वाणमिति पूरणार्थी निपातः । यद्यपि 'क' प्रत्यय स्वार्थ में होता है किन्तु इस कोश में मूलशब्द के साथ जहां भी स्वार्थ का द्योतक क, अ, य, ग और त आदि जुड़ गए हैं उन्हें अर्थ भिन्न न होने पर भी पृथक् रूप से ग्रहण किया है । जैसेअंछण, अंछणय-विस्तार । कडच्छु, कडच्छुत, कडच्छुय- - चम्मच । इन्हें स्वतंत्र रूप से ग्रहण करने के दो कारण हैं१. इन शब्दों का ग्रंथों में ऐसा प्रयोग मिलता है । अतः पाठक की सुविधा की दृष्टि से उनको अलग-अलग ग्रहण किया है। यदि साहित्य में 'कुड' शब्द की अपेक्षा 'कुडग' का प्रयोग है तो पाठक 'कुडग' शब्द ही देखना चाहेगा । आचार्य हेमचंद्र ने देशीनाममाला में कहीं-कहीं ऐसे शब्दों का निर्देश भी किया है । जैसे--- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org उवकoयं कप्रत्ययाभावे उवयं सज्जितम् (१।११९ वृत्ति) । जच्छंदओ स्वच्छन्दः कप्रत्ययाभावे जच्छंदो (३।४३ वृत्ति) । इसी प्रकार कहीं-कहीं दीर्घ- ह्रस्व मात्रा के अंतर वाले, अ / आ /इ / उ / ग/ घ/ह के अंतर वाले तथा व्यञ्जन - द्वित्त्व वाले शब्द समानार्थक होने पर भी पृथक् रूप से ग्रहण किए गए हैं। जैसे— चुडलय, चुडलि, चुडलिय, चुडली, चुडल्लि, चुडिलीय – जलती हुई लकड़ी । गुम्मी, गुम्ही, गोमी, गोम्मी, गोम्ही— कनखजूरा । उयरिणिया, ऊरणिया, ऊरणीया- जंतु- विशेष । भिलुगा, भिलुघा, भिलुहा - भूमि की रेखा । २. इन्हें भिन्न ग्रहण करने का दूसरा कारण - कभी-कभी शब्द में अ / आ/क/य/ग आदि जुड़ने से अर्थ में बहुत भिन्नता आ जाती है। जैसे० अवल्ल - बैल । अवल्लय- -नौका खेने का एक उपकरण । • उद्धच्छवि विपरीत । उद्धच्छविअ - सज्जित । । ० उंड – १. मुख, २. ऊंडा । उंडअ - पांव में पिंड रूप में लगे उतना गहरा स्थण्डिल । कीचड़ । उंडग । • पयल- नीड । पयला - निद्रा । पयलाअ सर्प । पयल्ल प्रसृत । ● पडिसारिअ - स्मृत । पडिसारी - यवनिका । इस कोश के मूलभाग में आदि नकार वाले शब्दों को नहीं रखा गया है । आगमों में जहां कहीं आदि नकार वाले शब्द प्राप्त हुए, उनके स्थान में 'ण' कर दिया गया है। क्योंकि देशी शब्दों की आदि में नकार का सर्वथा अभाव है । हेमचंद्राचार्य के मतानुसार 'देश्य प्राकृत में आदि नकार असंभव ही है । प्राकृत व्याकरण में 'वा आदौ' सूत्र के द्वारा जो वैकल्पिक आदि ण का विधान किया गया है, वह तो मात्र संस्कृत शब्दों से निष्पन्न प्राकृत शब्दों की अपेक्षा से है ।" सामान्यतः संस्कृत या प्राकृत में उपसर्ग जुड़ने पर अर्थ परिवर्तित हो जाता है । हेमचंद्राचार्य के अभिमत में देशी शब्दों का उपसर्ग के साथ कोई स्वतंत्र सम्बंध नहीं है । जैसे—उच्छिल्ल – छिद्र ( दे १ / ९५ ) । छिल्ल – छिद्र ( दे ३/३५) । यहां उत्पूर्वक छिल्ल शब्द नहीं है, लेकिन छिल्ल और १. देशीनाममाला, ५॥६३ वृत्ति : नकार आदयस्तु देश्याम् असम्भविन एवेति न निबद्धाः । यच्च 'वा आदौ ' ( प्रा ११२२६) इति सूत्रितम् अस्माभिः तत् संस्कृतभवप्राकृतशब्दापेक्षया न देशी अपेक्षया इति सर्वमवदातम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org उच्छिल्ल – दोनों स्वतंत्र शब्द हैं। दोनों का अर्थ एक ही है—छिद्र । इसी प्रकार फेस- उप्फेस, उज्झिखिय-भिखिय आदि शब्दों की स्थिति है ।' साहित्य में हमें जो शब्द जिस रूप में प्रयुक्त मिला उसका संकलन हमने उसी रूप में किया है । जैसे- बौद्ध भिक्षु के लिए तच्चण्णिय पाठ प्रसिद्ध है, किंतु कहीं-कहीं ग्रंथों में तव्वण्णिय पाठ भी मिलता है। यहां बहुत अधिक संभावना है कि प्राचीन लिपि में च और व की समानता से तच्चण्णिय के स्थान पर तव्वण्णिय शब्द पढा गया हो । हमें दोनों रूप प्राप्त हुए हैं । अतः दोनों का संकलन कर दिया है। यह भी बहुत संभव है कि 'तव्वणिय' शब्द बौद्ध भिक्षु के अर्थ में अनेक स्थानों पर प्रचलित रहा हो । आचार्य हेमचंद्र ने 'च', 'व', 'ब' के व्यत्यय के अनेक शब्द देशीनाममाला में संगृहीत किए हैं । जैसे - चालवास - बालवास, चिट्विअ- विविअ, चुक्क-बुक्क, चुक्कड-बोक्कड आदि । इसी प्रकार मगदंतिया मालती के लिए प्रसिद्ध है किंतु मदगंतिया पाठ भी मिलता है। संभव है लिपिकार द्वारा वर्ण-व्यत्यय हो गया हो या इसी रूप में यह प्रचलित रहा हो । कल्पसूत्र में 'अवामंसा' शब्द अमावस्या के अर्थ में प्रयुक्त है। प्रथम दृष्टिपात में लगता है कि यह 'अमावस' शब्द में वर्णव्यत्यय होने से या लिपि दोष होने के कारण 'अवामंसा' रूप बन गया होगा। किंतु कल्पसूत्र की चूर्णि तथा टिप्पणक की सभी प्रतियो में 'अवामंसा' शब्द मिलने से लगता है कि उस समय अमावस के लिए अवामंसा शब्द ही प्रचलित रहा होगा । मुनि पुण्यविजयजी ने इस पर पर्याप्त विमर्श किया है । 'उत्तुहिय' के स्थान पर उड्डुहिय शब्द भी कहीं-कहीं मिलता है जो कि हेमचंद्राचार्य की दृष्टि में लिपिभ्रम ही है । इसी प्रकार अइरिप-अइरिप्प, अंबसमी-अंबमसी, उत्तम्पिअ- उत्तम्मिअ, भरंक-भरंत- इन शब्दों में भी लिपिभ्रम की संभावना की जा सकती है । इस विषय में आचार्य हेमचंद्र अपना अभिमत प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि हो सकता है लिपिभ्रम न भी हो । १. देशीनाममाला, १९९५ वृत्ति : न हि देशीशब्दानामुपसर्गसम्बन्धो भवति । २. कल्पसूत्र टिप्पनक, पृष्ठ १६: विश्वेष्वपि चूर्ण्यादर्शेषु टिप्पणकादशेषु च अवामंसा । इत्येव पाठो वरीवृत्यते इति सम्भाव्यते तत्कालीनभाषाविदां अमावसाऽर्थको अवामंसाशब्दोऽपि सम्मतः इति नात्राशुद्धपाठाशंका विधेयेति । ३. देशीनाममाला, १॥१०५ वृत्ति : उत्तुहियं तकारसंयोगस्थाने डकारसंयोगं केचित् पठन्ति । स च लिपिभ्रम एव इति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४३ दोनों रूपों में ही शब्दों का प्रचलन रहा हो । इसमें बहुश्रुत या सर्वज्ञ ही प्रमाण लिपि भ्रम के कारण कहीं-कहीं अर्थ का आमूलचूल परिवर्तन भी परिलक्षित होता है । 'पडीर' शब्द का अर्थ है - चोरणिवह अर्थात् चोरों का समूह । लिपिभ्रम के कारण किसी ने 'चोरणिवह' के स्थान पर 'बोरणिवह ' पढ़ लिया और इस संदर्भ में 'पडीर' का अर्थ बेरों ( बदरी फल ) का समूह हो गया २ देशीनाममाला की वृत्ति में आचार्य हेमचंद्र ने अन्य आचार्यों के • अर्थभेद, शब्दभेद तथा उनके मतों का भी उल्लेख किया है । जैसे— केचित् प्रिये कायरो इत्याहुः । अलमलवसहो सप्ताक्षरं नामेति गोपालः । ऊसाइअं उत्क्षिप्तमिति धनपालः । जंबुलं मद्यभाजनमिति सातवाहनः । टोलं पिशाचमाहुः सर्वे शलभं तु राहुलकः । खेआलु निःसह, असहन इत्यन्ये । पेढालं वर्तुलमिति द्रोणः । पेंडारो महिषीपाल इति देवराजः । हमने इन सबका समावेश कोश के मूलभाग में किया है । कहीं-कहीं आचार्य हेमचंद्र ने पूर्वज देशी कोशकारों द्वारा मान्य या प्रयुक्त देशी शब्द-संघटना के विषय में ऊहापोह किया है। जैसेअच्छिघरुल्ल, अच्छिहरिल्ल तथा अच्छिहरुल्ल – इन तीन शब्द प्रयोगों में उन्होंने केवल 'अच्छिहरुल्ल' को अपने ग्रंथ में स्थान दिया है। शेष दो के लिए 'बहुज्ञा: प्रमाणम्' कहकर छोड़ दिया है । हमने ऐसे सभी शब्दों का संकलन किया है । देशी शब्द विभिन्न ग्रंथों में भिन्न-भिन्न रूप से प्रयुक्त हुए हैं । व्याख्याकारों ने किसी एक रूप को मुख्य मानकर दूसरे रूपों को पाठभेद में उल्लिखित किया है । यत्र-तत्र हमने उन पाठभेदों में प्रयुक्त कुछेक देशी रूपों को टि और पा के उल्लेख के साथ इस कोश में समाविष्ट किया है । जैसे— उस्सलग-उच्छूलग । कुंडिल्लग - कुंटुल्लिग । फुग्गफुग्ग-फुग्गपुग्ग । भंभब्भूय - भंभाभूय । भुंभर-भुंभल-सुंभल । कहीं-कहीं मूलशब्द तो हमें जैसा मिला वैसा ही रखा है, किन्तु कोष्ठक १. देशीनाममाला, ११३७ वृत्ति : केषांचिद् भ्रमोऽभ्रमो वेति बहुदृश्वान एव प्रमाणम् । २. वही, ६१८ वृत्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४४ में उसका संभावित शुद्ध रूप भी दे दिया है । जैसे— ओट्टिय (दोट्टिय, दोद्धिय ? ) गोमाणसिया (गोमासणिया ? ) तल्लकट्ट ( तल्लवत्त ? ) तूमणय ( णूमणय ? ) जो शब्द आगम एवं मिले हैं, उन शब्दों के दोनों प्रमाण स्थलों का उल्लेख किया है । जैसेआगमेतर ग्रंथों तथा देशीनाममाला दोनों में अइराणी (अंवि पृ २२३; दे १९५५ ) अंगुट्ठी (उसुटी प ५४; दे ११६ ) अणह (ज्ञा ११९१८।२४ ; दे १ । १३ ) इसी प्रकार अणुय, पक्खरा, पडिहत्थ, पणवण्ण आदि आदि । अनेक स्थलों पर मूलपाठ में प्रसंग से शब्द का अर्थ भिन्न प्रतीत होता है तथा व्याख्याकार उसका भिन्न अर्थ करते हैं । ऐसी स्थिति में हमने दोनों अर्थों का सप्रमाण उल्लेख किया है । जैसे—आडोलिया । टीकाकार ने इसका अर्थ रुद्ध किया है जबकि प्रसंग से उसका अर्थ खिलौना होना चाहिए ।' कन्नड हिन्दी कोश में आदु-आडु शब्द खेलने के अर्थ में गृहीत है । इसी प्रकार संपादकों द्वारा किए गए अर्थों पर भी हमने विमर्श किया है । निशीथचूर्णि का एक शब्द है अत्यभिल्ल । पादटिप्पण में इसका अर्थ शस्त्रविशेष किया गया है। शब्द के आधार पर यह अर्थ ठीक भी लगता है - अत्थ अर्थात् अस्त्र, भिल्ल अर्थात् भाला । वहां जंगली जानवरों के प्रसंग में यह शब्द आया है, अतः अत्थभिल्ल का अर्थ भालू होना चाहिए । जिस किसी शब्द के एकाधिक अर्थ हैं उनमें से हमारे द्वारा निरीक्षित ग्रंथों में प्राप्त अर्थों के प्रमाण प्रस्तुत किए गये हैं। शेष अर्थ हमने 'पाइयसद्दमहण्णवो' से बिना प्रमाण के ग्रहण किए हैं, क्योंकि प्रमाण हमने उन्हीं ग्रंथों के प्रस्तुत किए हैं, जिनका हमने स्वयं निरीक्षण किया है । इस कोश में अनेक ऐसे शब्दों का भी संग्रहण है जो देशी हैं या नहीं, इस दृष्टि से विमर्शणीय हो सकते हैं । किन्तु अन्यान्य विद्वानों तथा कोशकारों द्वारा वे देशी रूप में मान्य रहे हैं, अतः हमने उनका उसी रूप में संकलन किया है। इस संकलन का एकमात्र उद्देश्य है कि विभिन्न विद्वानों द्वारा देशीरूप में स्वीकृत सभी शब्दों की उपलब्धि एक ही ग्रन्थ में हो जाए । १. ज्ञाताधर्मकथा, १११८१८ : अप्पेगइयाणं आडोलियाओ अवहरइ, अप्पेगइयाणं तिंदुसए अवहरइ । टीका पत्र २४४ : आडोलियाओ –रुद्धाः । २. निशीयचूर्ण २, पृष्ठ ६३ : अदेसिको वा अडविपहेण गच्छति, तत्थ वि तरच्छ-वग्घ-अत्यभिल्लादिभयं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org प्रस्तुत कोश की विशेषता एक ही अर्थ के वाचक भिन्न शब्दों के संदर्भ में अन्य कोशों की भांति 'देखो' का निर्देश न कर पाठक की सुविधा के लिए उस शब्द का अर्थ वहीं दे दिया गया है। कहीं-कहीं शब्द के अर्थ की विस्तृत जानकारी तथा तुलना की दृष्टि से दो-चार स्थानों पर 'देखो' का निर्देश भी किया है। जैसे— आणंदवड --- देखें वहूपोत्ति । उक्कोडभंग – देखें खोडभंग । ४५ कोशों में कहीं-कहीं एक शब्द का अर्थ देखने के लिए तीन-चार शब्द देखने पर भी अर्थ नहीं मिलता । पाइयसहमहण्णवो में अनेक स्थलों पर ऐसा हुआ है । जैसे- पज्जुसवणा देखो पज्जुसणा । पज्जुसणा देखो पज्जोसवणा । पलोहिय देखो पलोभिअ । पलोभिअ देखो पलोभविअ । रम्ह देखो रंफ । रंफ देखो रंप । अनेक स्थलों पर शब्दों के पास-पास आने से पुनरुक्ति दोष-सा प्रतीत हो सकता है किंतु सुविधा की दृष्टि से हमने सभी शब्दों का अर्थ प्रायः उनके सामने ही दे दिया है । जहां दो समस्त शब्द एक अर्थ के वाचक हैं वहां देशी शब्द को अलग से प्रदर्शित करने के लिए चिह्न लगा दिया है, जैसे- -'कन्न 'लइय', } 'अट्टण' साला आदि । इस कोश में अनेक ऐसे शब्द हैं जो अर्थ की दृष्टि से बहुत समृद्ध हैं । भिन्न-भिन्न प्रसंगों में उन शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ मिलते हैं। जैसे- अब्वो, कडिल्ल, भंड, वल्लर आदि । प्रस्तुत कोश में प्रयुक्त ग्रंथों में कुछ ग्रंथ देशी शब्दों की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । जैसे- अंगविज्जा, भगवती, आवश्यकचूर्णि, कुवलयमाला, नंदीचूर्ण, निशीथभाष्य एवं चूर्णि, व्यवहार भाष्य, बृहत्कल्पभाष्य आदि-आदि । इनमें नवीन एवं अप्रचलित देशी शब्दों का प्रयोग हुआ है । जैसे— अंबखुज्ज, अक्खु. इद्ध, चोप्प, चोरालि, तेह, वियडासय आदि । इस कोश में वनस्पति, जीवजंतु, आभूषण, खाद्यपदार्थ से संबंधित अनेक ऐसे शब्द हैं जो भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से संबंधित हैं । अनेक स्थलों पर स्वयं व्याख्याकार क्षेत्र विशेष का उल्लेख भी करते हैं। जैसेमूयग- मूयग त्ति मेदपाटप्रसिद्धस्तृणविशेषः । विरालिया- गोल्लविसए वल्ली । धरच्छ मगधकं धराक्षं च रूढिगम्यम् । देश विशेष में प्रचलित एवं व्यवहृत होने वाले शब्द देश्य की कोटि में आते हैं। क्योंकि इनका मूलरूप न संस्कृत में मिलता है और न प्राकृत में । हमने भी अनेक ऐसे शब्दों का समावेश इसमें किया है जो क्षेत्र विशेष से संबंधित हैं । जैसे- नारिकेल, ताम्बूल, घोडग आदि । यद्यपि ये शब्द संस्कृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org साहित्य एवं कोशों में भी मिलते हैं, किन्तु ये शब्द क्षेत्र विशेष में प्रचलित भाषाओं के हैं । बाद में इनका संस्कृत साहित्य में प्रयोग होने लगा । इसी प्रकार वारक / वारग शब्द संस्कृत में घड़े के लिए प्रसिद्ध है किन्तु यह शब्द मरुधर देश में मंगलघट के अर्थ में प्रसिद्ध था – 'वारकः मरुदेशप्रसिद्धनाम्ना मांगल्यघटः ।' पण्णवणा सूत्र में अनेक जीव-जंतुओं एवं वनस्पतियों का नामोल्लेख हुआ है। उनकी पहचान को कठिन बताते हुए स्वयं टीकाकार कहते हैंदेशतोऽवसेयाः । सम्प्रदायादवसेयः । लोकप्रतीतः । रूढ़िगम्यम् आदि । जहां हमें नाम के बारे में निश्चित जानकारी मिली उसका नामोल्लेख किया है । अन्यथा वनस्पति- विशेष, लता-विशेष, पुष्प- विशेष का उल्लेख किया है । इसी प्रकार आभूषणों के बारे में भी आभूषण- विशेष का उल्लेख किया है। इस कोश में ऐसे अनेक देशी शब्द सभ्यता एवं संस्कृति पर प्रकाश डालते हैं । संकलित हैं जो प्राचीन भारत की जैसेआवाह, विवाह, आहेणग, पहेणग, गिरिजन, करडुयभत्त, मडगगिह, एमिणिआ, अण्णाण, आणंदवड, वहूपोत्ति, भोयडा आदि आदि शब्द सामाजिक रीति-रिवाजों एवं परम्पराओं के संवाहक हैं। अधिक्कमणक, अवयार, इंदड्ढलय आदि शब्द उत्सवों तथा अइराणी, इंदियाली, उंत, उयणिसय, टिल, विंटल आदि शब्द विशेष अनुष्ठानों एवं मंत्रों के वाचक हैं । अप्पसत्थभ, आपुरायण, आमोसल, कंडूसी, ककितजाण, गल्लोल आदि अनेक शब्द विविध गोत्रों के वाचक हैं । इसी प्रकार नानाप्रकार के शिल्पकर्म, पुस्तकें, जातियां, सिक्के, यानवाहन, शस्त्र, रोग, खेल, जाल, वाद्य, वेशभूषा, खानपान, घर के अवयव, घरेलु उपकरण, पारिवारिक सम्बंध आदि के संसूचक सैंकड़ों शब्द इस कोष में संगृहीत हैं । अमोसली, कडजुम्म, उग्गह, अमुदग्ग, किट्टि, णिगोद, फड्डुग, पउट्टपरिहार आदि पारिभाषिक शब्द भी इसमें संग्रहीत हैं । इस कोश में अनेक एकार्थक देशी शब्दों का संकलन है । जैसे – छोटी तलाई के वाचक तीन शब्द हैं – खल्लर खिल्लूर छिल्लर शब्दा देश्या एकार्थकाः । इसी प्रकार और भी उदाहरण द्रष्टव्य हैं१. विदग्ध - छलिआ छइल्ल छप्पण्ण । २. मां- अल्ला अव्वा अम्मा । ३. दुष्टघोडा – तंडीति वा गलीति वा मरालीति वा एगट्ठा । ४. पैबंद-पडियाणिया थिग्गलयं छंदतो य एगट्ठे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org कोश परम्परा में प्राय: यह देखा जाता है कि पुल्लिंग शब्द लेने के बाद उसी का स्त्रीलिंग शब्द स्वतंत्ररूप में नहीं लिया जाता। किंतु हमने स्त्रीलिंग एवं पुल्लिंग दोनों प्रकार के शब्दों को संगृहीत किया है । जैसे – पिल्लक - पिल्लिका, सिंगक सिंगिका, कब्बट्ठ-कब्बट्टी आदि आदि । इनको संगृहीत करने का एक विशेष उद्देश्य यह भी था कि कहीं-कहीं शब्द में लिंगपरिवर्तन के साथ अर्थ - परिवर्तन भी हो जाता है । जैसे- हालाहल - स्वामी । हालाहला - ब्राह्मणी (कीट- विशेष ) । ओवासण, उवासणा और उपासना- ये तीनों एकार्थक हैं । इनका अर्थ है - क्षुरकर्म । उपासना टीकाकारों द्वारा प्रयुक्त संस्कृतनि शब्द है, किन्तु संस्कृत से अर्थ भिन्न होने के कारण यह देशी है । ऐसे अनेक संस्कृतनिष्ठ देशी शब्द इस कोश में संगृहीत हैं। जैसे - छेलापनक, परिपूणक आदि । कोश का बाह्य स्वरूप प्रस्तुत ग्रन्थ के मूल भाग में लगभग दस हजार देशी शब्दों का संकलन है । प्रायः शब्दों के साथ संदर्भ-स्थल भी निर्दिष्ट हैं जिससे पाठक उस अर्थ को भली-भांति हृदयंगम कर सके । जैसे१. अंतोवगडा नाम उवस्सयस्स अब्भंतरं अंगणं । २. एरंडइए साणे त्ति हडक्कायितः श्वा । ३. कुब्बंति निम्नं क्षाममित्यर्थः । ४. रज्जं कागिणी भण्णति । ४७ जहां अर्थ की स्पष्टता के लिए संदर्भ-स्थल अपेक्षित या अत्यावश्यक नहीं समझ गये, वहां केवल शब्द का अर्थ और प्रमाण का उल्लेख मात्र किया गया है । इस देशी शब्दकोश का उद्देश्य आगम एवं उसके व्याख्या-ग्रन्थों के देशी शब्दों को संकलित करना था किन्तु कुवलयमाला, पाइयलच्छीनाममाला, प्राकृत व्याकरण एवं सेतुबंध के देशी शब्द भी मूल भाग में संकलित हैं । प्रस्तुत कोश के साथ दो परिशिष्ट भी संलग्न हैं । प्रथम परिशिष्ट अवशिष्ट देशी शब्दों का है । इसमें आगमेतर प्राकृत तथा अपभ्रंश ग्रन्थों के ३३८१ देशी शब्दों का समावेश है । ग्रन्थ के मूलभाग में हमने मूल ग्रन्थों का दो या तीन बार पारायण किया तथा अर्थ-निर्धारण की दृष्टि से भी मूलग्रन्थों का अनेक बार अवलोकन किया। इस परिशिष्ट में हमने मूलग्रंथ को नहीं देखा, किन्तु उनके संपादकों ने जहां अन्त में देशी शब्दों की सूची दी है, अथवा शब्दसूची में जिन शब्दों को देशीचिह्न से चिह्नित किया है, उन शब्दों का इसमें संकलन कर दिया है । पाइअसद्दमहण्णवो के सैंकड़ों शब्द जो कोश के मूल भाग में नहीं आए उनको भी इसी के अन्तर्गत रखा है । त्रिविक्रम के प्राकृतJain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org शब्दानुशासन के अन्त में १६०० देशी शब्दों की सूची है। उनमें से कुछ शब्द हेमचन्द्र के देशी संग्रह में आ चुके हैं। शेष सभी शब्द इस परिशिष्ट में समाविष्ट हैं । यह ग्रंथ हमें बहुत बाद में प्राप्त हुआ अतः हम इसके शब्दों को ग्रन्थ के मूल भाग में समाविष्ट नहीं कर सके । समीक्षात्मक एवं आलोचनात्मक ग्रन्थों में भी यदि कहीं देशी शब्दों की सूची मिली है, उन शब्दों को भी हमने इस परिशिष्ट में सम्मिलित किया है । जैसे--- 'हरिभद्र के प्राकृत कथा साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन" में लेखक 'भाषा शैली और उद्देश्य ' --- अध्याय के अन्तर्गत कुछ देशी शब्दों का संकेत करते हैं । वे कहते हैं – 'यहां कुछ देशी शब्दों की तालिका दी जाती है । यद्यपि इन शब्दों में कुछ शब्दों को संस्कृत से व्युत्पन्न किया जा सकता है पर मूलत: इन शब्दों को देशी कहा गया है ।' ऐसा कह कर लेखक ने लगभग १६३ शब्दों का अर्थ सहित उल्लेख किया है, जिनमें कुछ शब्द देशीनाममाला के भी हैं । इस प्रकार जहां भी हमें देशी शब्द मिले, उनका बिना संदर्भ एवं प्रमाण के अर्थ सहित संकलन कर दिया है । इस परिशिष्ट में प्रयुक्त ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं१. मुणिचन्द कहाणयं, २. कंसवहो, ३. वज्जालग्गं, ४. हरिभद्र के प्राकृत कथा साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन, ५. जंबूसामिचरिउ, ६. पउमचरियं, ७, आख्यानकमणिकोश, ८. अपभ्रंश काव्यधारा, ६. चउप्पन्नमहापुरिसचरियं, १०. गउडवहो, ११. वड्ढमाणचरिडं, १२. सुदंसणचरिउ, १३. रावणवह महाकाव्यम्, १४. महापुराणम्, १५. णायकुमारचरिउ, १६. पउमचरिउ - भाग १ से ३, १७. पुहविचंदचरियं, १८. करकंडुचरिउ, १६. मयणपराजयचरिउ, २०. जसहरचरिउ, २१. सिरिवालचरिउ, २२. प्राकृतशब्दानुशासन । इस परिशिष्ट में एकत्रित कुछेक देशीशब्द विमर्शणीय हैं । किन्तु हमने तत् तत् ग्रन्थ के विद्वान् संपादकों के चिन्तन को मान्य कर उन शब्दों का यहां अविकल संकलन कर दिया है। अधिक से अधिक देशी शब्द एक ही ग्रन्थ में प्राप्त हों, यह इस संकलन का उद्देश्य है । प्रत्येक शब्द की समीक्षा हमें अभिप्रेत नहीं रही । सुधी पाठक इस बात को ध्यान में रखें । A दूसरा परिशिष्ट देशी धातुओं से सम्बन्धित है । इसमें १७४५ धातुएं हैं। हमने सन्दर्भ सहित तथा बिना सन्दर्भ वाली - दोनों प्रकार की धातुओं को साथ में ही रखा है । इनमें प्राकृत व्याकरण की सभी आदेशप्राप्त धातुओं का समावेश है तथा आगम तथा आगमेतर साहित्य में अन्य विद्वानों द्वारा मान्य देशी धातुओं का भी संकलन है । जिस संस्कृत धातु को आदेश हुआ है उसे भी कोष्ठक में दिया गया है । यह परिशिष्ट छोटा होते हुए भी व्याकरण एवं धातुज्ञान की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org पंचांग प्रणति विक्रम संवत् २०४० । नाथद्वारा की ऐतिहासिक भूमि । मर्यादा महोत्सव की सम्पन्नता । एक गोष्ठी का आयोजन । इसका उद्देश्य था आगम के कार्य को गति देना । उसी समय आचार्य श्री ने मुझे तथा कुछ साध्वियों को लाडनूं भेजा । एक दिन ग्रन्थागार में जब मैंने साध्वियों, समणियों एवं मुमुक्षु बहिनों द्वारा किए गए आगम कार्य के विविध पहलुओं को देखा तो चिन्तन उभरा कि इस बिखरे कार्य को समेटना आवश्यक है । उस समय तीन कोशों को सम्पन्न करने का निश्चय किया। एकार्थक कोश और निरुक्तकोश तो उसी वर्ष प्रकाश में आ गए। देशी शब्दकोश का कार्य चालू था । देशी शब्दों के चयन और अर्थ-निर्धारण के लिए शताधिक ग्रन्थों का अवलोकन आवश्यक था । अन्यान्य बाधाओं के कारण कार्य में गति नहीं आ सकी । कार्य स्थगित कर दिया गया । वि० सं० २०४३ के लाडनूं चातुर्मास में फिर कार्य प्रारम्भ किया, पर उसका नैरन्तर्य नहीं रहा । वि० सं० २०४५ का पूरा वर्ष (२०४४ चैत्र शुक्ला १ से २०४५ चैत्र शुक्ला १ तक ) इस कार्य की फलश्रुति / निष्पत्ति का वर्ष रहा । इसमें कार्य की निरन्तरता और सघनता भी रही । ४६ साध्वी अशोकश्री तथा साध्वी विमलप्रज्ञा इस कार्य में प्रारम्भ से ही संलग्न रही हैं । कुछेक अनिवार्य कारणों से इन दो वर्षों में इनकी संलग्नता व्यवहित रही, किन्तु इन दोनों की संपूर्ति कर दी साध्वी सिद्धप्रज्ञा ने । इन्होंने जिस निष्ठा, उत्साह और आनन्दप्रवणता से कार्य किया वह स्तुत्य है । शारीरिक अस्वास्थ्य के बावजूद भी इनका पूरा समय इसी कार्य में नियोजित रहा । ये तन्मना होकर कोश कार्य के प्रत्येक अवयव की संपूर्ति में संलग्न रहीं । इस कार्य से इन्होंने अपनी उपादेयता को बरकरार रखा । विधि-विधान के अनुसार आने-जाने में इन्हें एक साध्वी का सहयोग अपेक्षित था और वह अपेक्षा पूरी की साध्वी सूरजकुमारी ने । वे प्रसन्नता से इनके साथ आतीं और अपना पूरा समय आगम-स्वाध्याय में बितातीं । इनकी अनुपस्थिति में पूर्ण उत्साह एवं प्रसन्नता से सहयोग किया अस्सी वर्षीया साध्वी संवटांजी ने । साध्वी निर्वाणश्री ने भी प्रारम्भ में कुछेक ग्रन्थों के देशी शब्द-चयन में सहयोग दिया है । समणी कुसुमप्रज्ञा प्रारम्भ से ही देशी शब्द - संकलन में संलग्न रही हैं । इस बार लगभग ८-१० माह का अधिकांश समय इस देशी शब्दकोश को संवारने में लगाया । कोश की समायोजना में इनका सहयोग बहुत मूल्यवान है । समणी नियोजिका मधुरप्रज्ञा ने समणी श्रुतप्रज्ञा को इनके साथ नियोजित कर इनके कार्य को सुगम बना डाला । समणी श्रुतप्रज्ञा ने अपने समय का पूरा उपयोग किया और पूर्ण प्रसन्नता और उत्साह से सहयोग दिया । इनकी अनुपस्थिति में अन्यान्य समणियों का नियोजन भी रहा और सभी ने कर्तव्यJain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ५० भावना से सहयोग किया । मुमुक्षु बहिन निरंजना, इदु, अमिता, मधु, आशा, जतन, गुलाब आदिआदि ने देशीकोश के कार्डों की प्रतिलिपि करने तथा अन्यान्य कार्यों में पूर्ण सहयोग दिया । यह सारा कोश कार्य के सहभागियों का स्मरणमात्र है। इन सबके सहयोग का स्मरण आत्मतोष की अनुभूति कराता है । मैं श्रुत - परम्परा के संवाहक और संवर्धक प्राचीन आचार्यों तथा मुनिजनों के प्रति प्रणत हूं, जिन्होंने श्रुतपरम्परा को अविच्छिन्न रखने का सतत प्रयास किया है और उसे अपने ज्ञानकणों से सींचा है, विकसित किया है । उन सबकी श्रुतोपासना की ही यह फलश्रुति है कि जैन साहित्य भंडार उनके सारस्वत अवदान से भरा रहा है। उन्होंने श्रुतसागर का जो मंथन किया, वह अपूर्व है। उनकी ग्रन्थराशि से कुछेक ग्रन्थों का अवलोकन कर हमने इस कोश ग्रन्थ का निर्माण किया है। मैं सभी श्रुतसमृद्ध आचार्यों को श्रद्धासिक्त भाव से नमन करता हूं । इसी श्रुतपरम्परा के वर्तमान संवाहक तथा त्रिविध स्थविर भूमिकाओं के धनी अक्षर पुरुष हैं -- आचार्य तुलसी और युवाचार्य महाप्रज्ञ । तेरापंथ धर्मसंघ को इनका सारस्वत अवदान अपूर्व है । आगम-सम्पादन इनका शलाका कार्य है और है साहित्यिक प्रसाद जो तन-मन का कायाकल्प करने में समर्थ है । उसी आगन-सम्पादन महाकार्य का यह कोशकार्य एक स्फुलिंग है । ऐसे स्फुलिंग अनेक हैं । आचार्य श्री ने उन स्फुलिंगों के संवाहक अनेक गुनियों, साध्वियों और समणियों को तैयार किया है और अपने इन सहस्रकरों से कार्य करवा रहे हैं । नए-नए आयामों का सर्जन, पोषण और संरक्षण इन्हीं घटकों पर आधृत है। दोनों युगपुरुषों के मार्गदर्शन ने इस बहु आयामी आगम कार्य को सुगम बनाया है और कार्य की मंथरता में भी नई निष्पत्तियों की सर्जना की है। मैं उनके इस शाश्वतिक अवदान को सहस्रशः नमन करता हूं । तीन साध्वियों को इस कोश-कार्य में नियोजित करने और उन्हें निरंतर प्रोत्साहित करने में साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभाजी का महान् योग रहा है । कोश के यात्रापथ की निर्विघ्न संपूर्ति में उनकी मंगलभावना बहुत ही कार्यकर रही है । मैं उनके इस भावना -योग के प्रति प्रणत हूं । मैं उन सभी ग्रन्थकर्त्ताओं, व्याख्याकारों तथा कोशकारों के प्रति अपना आभार व्यक्त करता हूं, जिनके ग्रन्थों के अवलोकन से हमारा दुरूह कार्य सुगम बना, दृष्टि परिमार्जित हुई और नए-नए उन्मेष आते रहे । अनेकांत शोधपीठ के डाइरेक्टर डॉ० नथमल टाटिया ने इस ग्रन्थ की भूमिका लिखकर हमें उत्साहित किया है। अभी-अभी एक मेजर आपरेशन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ५१ से गुजरने के बावजूद भी उन्होंने समय निकाल कर भूमिका लिखी, यह उनका श्रुत सेवा के प्रति बनी हुई श्रद्धा का ही परिणाम है । श्रुत की उपासना उनका जीवनमंत्र है । इसी मंत्र ने उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज पर लाकर खड़ा किया है । मैं उनकी प्रेरणा का बहुत मूल्यांकन करता हूं । मुनि प्रमोदकुमारजी मेरे सहयोगी हैं। वे अपने कर्तव्य-पालन के प्रति जागरूक हैं । उन्होंने मुझे अन्यान्य कार्यों से मुक्त रखकर, निरंतर इसी कार्य में संलग्न रहने का अवकाश दिया। उनका सहयोग भी स्मरणीय है । इसी प्रकार मुनि सुदर्शनजी, मुनि श्रीचन्दजी 'कमल', मुनि राजेन्द्र कुमारजी, मुनि प्रशान्तकुमारजी आदि का सहयोग भी स्मृति पटल पर अंकित है। उन सवको प्रणाम । अन्त में पंचांग प्रणति उन सबको जिनका प्रत्यक्ष या परोक्ष सहयोग मुझे मिला है / मिल रहा है । वि० सं० २०४५, नूतन वर्ष का पहला दिन चैत्र शुक्ला १ / २, ता० १९-३-८८ जैन विश्व भारती, लाडनूं ( राजस्थान ) Jain Education International For Private & Personal Use Only - मुनि दुलहराज www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org प्रयुक्त ग्रन्थ सूची अंगविज्जा - ( प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, बनारस, सन् १९५७) । अंतकृद्दशा – ( अंगसुत्ताणि भाग ३, जैन विश्व भारती, लाडनूं, सन् १९७४) अंतकृद्दशा टीका - (आगमोदय समिति, बम्बई, सन् १९२० ) । अनुत्तरोपपातिकदशा – ( अंगसुत्ताणि भाग ३, जैन विश्व भारती, लाडनूं, सन् १९७४) । अनुत्तरौपपातिकदशा टीका - ( आगमोदय समिति, बम्बई, सन् १९२०)। अनुयोगद्वार - ( नवसुत्ताणि ( ५ ), जैन विश्व भारती, लाडनूं, सन् १९८६) । अनुयोगद्वार चूर्णि – ( श्री ऋषभदेव केशरीमल श्वेताम्बर संस्था, रतलाम, १९२८) । सन् अनुयोगद्वार मलधारीया टीका - ( श्री केशरबाई ज्ञानमन्दिर, पाटण, सन् १९३६) । अनुयोगद्वार हारिभद्रीया टीका – ( सेठ देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, बम्बई, संवत् १९७३) । अपभ्रंश काव्यधारा- (संपादक डॉ. प्रेमसुख जैन, डॉ. कृष्णकुमार शर्मा, सरस्वती पुस्तक भण्डार, अहमदाबाद, सन् १९७४) । अभिधानचिंतामणि नाममाला- ( श्री जैनसाहित्यवर्धक सभा, अहमदाबाद, वि. सं. २०३२ ) । अमरकोश – ( चौखम्बा संस्कृत सिरीज, वाराणसी, सन् १९६८) अल्पपरिचित शब्दकोश - (संपा. आचार्य आनन्द सागर सूरि, देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, सूरत, प्रथम संस्करण, १९७४) । अष्टाध्यायी - (पणिनिज ग्रेमेटिक, १९७७, जोर्ज ओल्म्स वरलेग, हिलडेशियम, न्यूयार्क ) । आख्यानक - मणिकोश – ( संपा. मुनि पुण्यविजय प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, वाराणसी, सन् १९६२ ) । आचारांग - - ( अंगसुत्ताणि भाग १, जैन विश्व भारती, लाडनूं, सन् १९७४) । आचारांग चूर्णि- ( श्री ऋषभदेव केशरीमल श्वे. संस्था, रतलाम, सन् १६४१) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org आचारांगचूला- (अंगसुत्ताणि भाग १, जैन विश्व भारती, लाडनूं, सन् १९७४) । आचारांग टीका - (मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, सन् १९७८ )। आचारांग निर्युक्ति – ( मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, सन् १९७८)। आवश्यक - ( नवसुत्ताणि ( ५ ), जैन विश्व भारती, लाडनूं, सन् १९८६) । आवश्यक चूर्णि १ – ( श्री ऋषभदेव केशरीमल श्वे. संस्था, रतलाम, सन् १९२८) । ( श्री ऋषभदेव केशरीमल श्वे. संस्था, रतलाम, सन् १६२६) । आवश्यक चूर्णि २ आवश्यक टिप्पणकम् - (शाह नगीनभाई घेलाभाई जवेरी, बम्बई ) । आवश्यक नियुक्ति – ( भैरुलाल कन्हैयालाल कोठारी धार्मिक ट्रस्ट, बम्बई, संवत् २०३८ ) । आवश्यक नियुक्तिदीपिका--- ( श्री विजयदानसूरीश्वर जैनग्रंथमाल, सूरत, सन् १९३९) । आवश्यक मलयगिरि टीका- (आगमोदय समिति, बम्बई, सन् १९२८ ) । आवश्यक हारिभद्रीया टीका १ – (भैरुलाल कन्हैयालाल कोठारी धार्मिक ट्रस्ट, बम्बई, संवत् २०३८) । (भैरुलाल कन्हैयालाल कोठारी धार्मिक ट्रस्ट, बम्बई, संवत् २०३८) । इन्ट्रोडक्शन टु कम्पेरेटिव फिलोलोजी - (सम्पा. पी. डी. गुणे ) । इसिभासियाई -- (सुधर्मा ज्ञान मन्दिर, बम्बई, सन् १९६३; श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई, प्रथम संस्करण, सन् १९८४) । आवश्यक हारिभद्रीया टीका २ उत्तराध्ययन - ( नवसुत्ताणि ( ५ ), जैन विश्व भारती, लाडनूं, द्वितीय संस्करण, सन् १९८६) । उत्तराध्ययन चूर्णि– ( देवचन्द लालभाई, जैन पुस्तकोद्धार, बम्बई, सं. १९६३) । उत्तराध्ययन नियुक्ति - ( देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, भांडागार संस्था, बम्बई, सं. १९७२, ७३) । उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य टीका – ( देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, भांडागार संस्था, बम्बई, सं. १९७२) । उत्तराध्ययन सुखबोधा टीका - (पुष्पचन्द्र खेमचन्द्र, वलाद, वीर सं. २४६७) । ( अंगसुत्ताणि भाग ३, जैन विश्व भारती, लाडनूं, सन् १९७४) । उपासकदशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org उपासकदशा टीका ( श्री हिन्दी जैनागम प्रकाशक सुमति कार्यालय, कोटा, सन् १९४६)। उर्दू हिन्दी शब्द कोश – ( अंजुमन तरक्की उर्दू (हिंद), नई दिल्ली, सन् १९५५) । ओघनियुक्ति – ( आगमोदय समिति, बम्बई, सन् १९१९, देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, सूरत, सं० १९८४ ) । ओघनियुक्ति टीका- (आगमोदय समिति, बम्बई, सन् १९१६, देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, सूरत, सं० १९८४) । ओघनिर्युक्तिभाष्य -- ( आगमोदय समिति, बम्बई, सन् १९१६ ! देवचन्द लालभाई, जैन पुस्तकोद्धार, सूरत, सन् १९८४) । • ओब्जर्वेशन्स ऑन हेमचन्द्राज देशीनाममाला- (सम्पा. पी. एल. वैद्य, एनेल्स औपपातिक - ( उवंगसुत्ताणि (४) खण्ड १, सन् १९८७) । औपपातिक टीका ५५ - (पण्डित दयाविमलजी ग्रन्थमाला, द्वितीय संस्करण, सं. १९६४) । कंसवहो- (सम्पा. डॉ. ए. एन. उपाध्याय, मोतीलाल बनारसीदास, द्वितीय संस्करण, १९६६) । ऑफ भण्डारकर ओरिएण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट ) । जैन विश्व भारती, लाडनूं कन्नड़ हिन्दी शब्दकोश – ( सम्पा. डॉ. एन. एस. दक्षिणामूर्ति हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, प्रथम संस्करण, सन् १९७१ ) । कन्नडीज वईज इन देशी लेक्सिकन्स ( सम्पा. ए. एन. उपाध्ये, एनेल्स ऑफ भण्डारकर ओरिएण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट ) । कम्पेरेटिव ग्रामर ऑफ गौडियन लेंग्वेजिज - (सम्पा. हार्नले ) i कम्पेरेटिव ग्रामर ऑफ मॉडर्न आर्यन लेंग्वेजिज- (सम्पा. जान बीम्स ) । करकंडचरिउ - (ले. मुनि कनकामर, सम्पा. डॉ. हीरालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, सन् १९६४) । Jain Education International कल्पसूत्र -- (सम्पा. मुनि पुण्यविजयजी, 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नवसुत्ताणि ( ५ ), जैन विश्व भारती, लाडनूं, सन् १९८६) । व्यवहार भाष्य टीका – ( वकील केशवलाल प्रेमचन्द, अहमदाबाद, सन् १९२६ ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org शब्दकल्पद्रुम भाग १ से ५(सम्पा. राधाकांतदेव, चौखम्बा संस्कृत सिरीज, वाराणसी, तृतीय संस्करण, वि. सं. २०२४) । शब्दार्थ कौस्तुभ – ( रामनारायणलाल अग्रवाल, प्रयाग ) । संक्षिप्त हिन्दी शब्दसागर( सम्पा. रामचन्द्र, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, प्रथम संस्करण, सन् १९६६) । संथारगप इण्णय – ( श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई, प्रथम संस्करण, सन् १९८४) । संस्कृत इंग्लिश डिक्शनरी - (सम्पा. वी. एस. आप्टे, प्रसाद प्रकाशन, पूना ) । संस्कृत इंग्लिश डिक्शनरी - (सम्पा. मोनियर विलियम्स ) । संस्कृत प्राकृत जैन व्याकरण और कोश की परम्परा - ( श्री कालूगणी जन्मशताब्दी समारोह समिति, छापर, सन् १९७७) । समवायांग – ( अंगसुत्ताणि भाग ३, जैन विश्व भारती, लाडनूं, सन् १९७४) । समवायांग टीका - ( कांतिलाल चुन्नीलाल, अहमदाबाद, सन् १९३८) । सारावलीपइण्णय – ( श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई, प्रथम संस्करण, सन् १९८४) । सिरिवालचरिउ – (ले. नरसेन देव, सम्पा. डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी, सन् १९४४) । सुदंसणचरिउ- (ले. नयनन्दी, सम्पा. डॉ. हीरालाल जैन, प्राकृत शोध संस्थान, वैशाली, सन् १९७०) । सूत्रकृतांग – (अंगसुत्ताणि भाग १, जैन विश्व भारती, लाडनूं, सन् १९७४) । सूत्रकृतांग चूर्णि ( प्रथमश्रुतस्कन्ध ) - ( प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, वाराणसी, सन् १९७५) । सूत्रकृतांग चूर्ण (द्वितीय श्रुतस्कन्ध ) ( ऋषभदेव केशरीमल श्वेतांबर संस्था, रतलाम, सन् १९४१) । सूत्रकृतांग टीका १ ( प्रथम श्रुतस्कन्ध ) - ( आगमोदय समिति, बम्बई, सन् १९१६) । सूत्रकृतांग टीका २ (द्वितीय श्रुतस्कन्ध ) - ( श्री गोडी पार्श्वनाथ जैन ग्रन्थमाला, सन् १९५३) । सूत्रकृतांग निर्युक्ति – (मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, सन् १९७८)। सूरशब्दसागर – (सम्पा. हरदेव बाहरी, स्मृति प्रकाशन, इलाहाबाद, प्रथम संस्करण, सन् १९८१ ) । सूर्य प्रज्ञप्ति- ( उवंग सुत्ताणि (४), जैन विश्व भारती, लाडनूं, सन् १९८८ ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ६२ सूर्यप्रज्ञप्ति टीका – ( आगमोदय समिति, बम्बई, सन् १९१९) । सेतुबन्ध -- (सम्पा. पण्डित शिवदत्त, भारतीय विद्या प्रकाशन, दिल्ली, सन् १९८२) । स्टडीज इन हेमचन्द्राज देशीनाममाला(सम्पा. हरिवल्लभ सी. भयाणी, पी. वी. रिसर्च इंस्टीट्यूट, जैनाश्रम हिन्दी यूनिवर्सिटी, बनारस ) । स्थानांग - (अंगसुत्ताणि भाग १, जैन विश्व भारती, लाडनूं, सन् १९७४)/ स्थानांग टीका ~~ (सेठ माणेकलाल चुनीलाल, अहमदाबाद, सन् १९३७) । हरिभद्र के प्राकृत कथा साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन - (सम्पा. डॉ. नेमीचंद शास्त्री, प्राकृत शोध संस्थान, वैशाली, सन् १९६५) । हिन्दीशब्दसागर ११ भाग - ( सम्पा. श्यामसुन्दर, शम्भुनाथ बाजपेयी, नागरी मुद्रण, वाराणसी, प्रथम संस्करण, वि. सं. २०२२) । हिन्दी शब्दानुशासन – (सम्पा. किशोरीदास बाजपेयी) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org अंत अंतटी अंवि अचि अनु अनुटी अनुद्वा अनुद्वाचू अनुद्वामटी अनुवाहाटी आ आचू आचूला आटी आनि आव आवचू- १ आवचू - २ आवटि आवदी आवनि आवमटी आवहाटी - १ आवहाटी - २ इ उचू उनि उपा Jain Education International संकेत सूची अंतकृद्दशा अंतकृद्दशा टीका अंगविज्जा अभिधानचितामणि नाममाला अनुत्तरौपपातिकदशा अनुत्तरीपपातिकदशा टीका अनुयोगद्वार अनुयोगद्वार चूर्णि अनुयोगद्वार मलधारीयटीका अनुयोगद्वार हारिभद्रीयटी का आचारांग आचारांगचूर्णि आचारांगचूला आचारांग टीका आचारांग नियुक्ति आवश्यकसूत्र आवश्यक चूर्णि १ आवश्यक चूर्णि २ आवश्यक टिप्पणकम् आवश्यक निर्युक्तिदीपिका आवश्यक नियुक्ति आवश्यक मलयगिरोटीका आवश्यक हारिभद्रीयटीका १ आवश्यक हारिभद्रीयटीका २ इसिभासियाई उत्तराध्ययन उत्तराध्ययन चूर्णि उत्तराध्ययन नियुक्ति उपासकदश। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ६४ उपाटी उशाटी उसुटी ओटी ओनि ओभा औप औपटी कु 160p ग चं चन्द्र जंबू जंबूटी जीत जीभा जीव जीवटी जीविप ज्ञा ज्ञाटी तंदु ति द दअचू दचूला दजिचू दनि दश्रु दश्रुचू दश्रुनि दहाटी दे नंदीचू नंदीटि Jain Education International उपासकदशा टीका उत्तराध्ययन शान्त्याचार्यटीका उत्तराध्ययन सुखबोधा टीका ओघनिर्युक्ति टीका ओघनियुक्ति ओघनिर्युक्तिभाष्य औषपातिक औपपातिक टीका कुवलयमाला गच्छाचारपइण्णय चंदावेज्झयपइण्णय चन्द्रप्रज्ञप्ति जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति टीका जीतकल्प जीतकल्पभाष्य जीवाजीवाभिगम जीवाजीवाभिगम टीका जीतकल्प विषमपदव्याख्या ज्ञाताधर्मकथा ज्ञाताधर्मकथा टीका तंदुलवेयालियपइण्णय तित्थोगालीपइण्णय दशवैकालिक दश वैकालिक अगस्त्य सिंहचूर्णि दशवैकालिकचूलिका दशवैकालिक जिनदासचूर्णि दशवैकालिक नियुक्ति दशाश्रुतस्कन्ध दशाश्रुतस्कन्ध चूर्णि दशाश्रुतस्कन्ध निर्युक्ति दशवैकालिक हारिभद्रीया टीका देशीनाममाला; देशीशब्दसंग्रह नंदी चूर्णि नंदी टिप्पणक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org नंदीटी नि निचू १, २, ३, ४. निभा निर निरटी पंक पंव पा पिटी पिनि पिभा प्र प्रज्ञा प्रज्ञाटी प्रटी प्रसा प्रसाटी प्रा प्राक बृ बृचू बृटी बृभा भ भटी भत्त म महा राज foo राजटी विपा विपाटी विभा विभाकोटी Jain Education International नंदी टीका निशीथ निशीथचूर्णि भाग १ से ४ निशीथभाष्य निरयावलिका निरयावलिका टीका पंचकल्पभाष्य पंचवस्तु पाइयलच्छीनाममाला पिण्डनियुक्ति टीका पिण्डनियुक्ति पिण्डनियुक्ति भाष्य प्रश्न व्याकरण प्रज्ञापना प्रज्ञापना टीका प्रश्नव्याकरण टीका प्रवचनसारोद्धार प्रवचनसारोद्धार टीका प्राकृतव्याकरण प्राचीनकर्मग्रन्थ टीका बृहत्कल्प बृहत्कल्प चूर्णि बृहत्कल्प टीका बृहत्कल्प भाष्य भगवती भगवती टीका भत्तपरिण्णापइण्णय मरणविभत्तिपइण्णय महापच्चक्खाणपइण्णय राजप्रश्नीय राजप्रश्नीय टीका विपाकश्रुत विपाकश्रुत टीका विशेषावश्यकभाष्य विशेषावश्यकभाष्य कोट्याचार्य टीका For Private & Personal Use Only ६५ www.jainelibrary.org विभाग हेटी वृ व्य व्यभाटी ९-१० सं सम समटी सा सू सूचू-१ सूचू-२ सूटी- १ सूटी-२ सूनि सूर्य सूर्यटी से स्था स्थाटी Jain Education International विशेषावश्यकभाष्य मलधारीहेमचन्द्रटीका देशीनाममालावृत्ति व्यवहार व्यवहारभाष्य टीका भाग १-१० संथारगपइण्णय समवायांग समवायांग टीका सारावलीपइण्णय सूत्रकृतांग सूत्रकृतांग चूर्णि, प्रथमश्रुतस्कंध सूत्रकृतांग चूर्णि, द्वितीय श्रुतस्कंध सूत्रकृतांग टीका प्रथमश्रुतस्कन्ध सूत्रकृतांग टीका द्वितीय श्रुतस्कंध सूत्रकृतांग नियुक्ति सूर्यप्रज्ञप्ति सूर्यप्रज्ञप्ति टीका से तुबन्ध स्थानांग स्थानांग टीका For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org १. आशीर्वचन २. पुरोवाक् ३. भूमिका ४. संपादकीय ५. प्रयुक्त ग्रन्थ सूची ६. संकेत सूची ७. देशी शब्दकोश परिशिष्ट १. अवशिष्ट देशी शब्द २. देशी धातु चयनिका Jain Education International अनुक्रम - आचार्य तुलसी – युवाचार्य महाप्रज्ञ -- डॉ० नथमल टाटिया - मुनि दुलहराज For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org अअंख -- निःस्नेह, स्नेह रहित ( दे १ । १३) । अइगय -- १ मार्ग का पश्चाद् भाग । २ समागत । ३ प्रविष्ट ( दे १।५७) । अइण -- गिरि-तट, तराई, पहाड़ का निम्न -भाग (दे १।१०) । अइणिअ -- लाया हुआ (दे १।२४) । अइर -- १ अतिरोहित (पिनि ५६० ) । २ गांव का मुखिया, राज्य द्वारा नियुक्त गांव का अधिकारी ( दे १।१६ ) । अइरजुवइ -- नववधू (१।४८) । अइराउल -- स्वामीकुल- 'देशीपदमेतत्' (प्रज्ञाटी प २५३ ) । अइराणी -- १ इन्द्राणी ( अंवि पृ २२३; दे १।५८) । २ सौभाग्य प्राप्त करने के लिए इन्द्राणी का व्रत करने वाली स्त्री ( दे १।५८ ) । अइरिंप -- कथाबंध, कहानी ( दे १ । २६ ) । अइरिका -- देवी - विशेष, इन्द्राणी (अंवि पृ ६९) । अइहारा -- विद्युत्, बिजली (दे १ । ३४) । अंक -- निकट ( दे १।५ ) । अंककरेलुय -- जलज-वनस्पति (आचूला १।११३) । अंकार -- सहायता, मदद ( दे १।९ ) । अंकिअ -- आलिंगन ( दे १।११ ) । अंकिल -- नर्तक (ज्ञाटी प ४४ ) । अंकिल्ल -- नट (औपटी पृ ४ ) । अंकुसइअ -- अंकुश के आकार वाला ( दे १।३८) । अंकेल्ल -- नट (निचू २ पृ ४६८) । अंकेल्लण -- चाबुक - विशेष ( जंबू ३।१०९) । अंकेल्लि -- अशोक वृक्ष (दे १।७) । अंकोल्ल -- १ अंकोठ वृक्ष (प्रज्ञा १।३५। १ ) । २ गुच्छ विशेष (प्रज्ञा १।३७।५) । ३ नर्तक (ज्ञाटी प ४६) । अंगवड्ढण -- रोग ( दे १।४७) । अंगवलिज्ज -- शरीर को मोड़ना ( दे १।४२) । अंगारइय -- घुण कीट द्वारा खाया हुआ— 'घुणकाणियं अंगारइयं वा वुत्तयं होति' (निचू ४ पृ ६६) । अंगालिअ -- ईख का टुकड़ा, गंडेरी ( दे १।२८) । अंगुजट्ठ -- अंगूठा (आचू पृ ३५२ ) । अंगुट्ठी -- १ घूंघट - 'रंगम्मि नच्चियाए, अलाहि अंगुट्ठिकरणेणं' ( उसुटी प ५४; दे १।६) । २ अंगूठा ( प्रसा २०० ) । अंगुत्थल -- अंगूठी (दे १।३१) । अंगुलिणी -- प्रियंगु, वृक्ष - विशेष ( दे १ । ३२ ) । अंगोहली -- १ देश-स्नान, शरीर को पोंछना, हाथ-मुंह आदि धोना (नंदीटि पृ १३४) । अंगोहलेऊण -- देश-स्नान कराकर - 'अंगोहलेऊण दारगं पेसेइ' ( व्यभा १० टी प ५२ )। अंघोलि -- देश-स्नान, शरीर को पोंछना, हाथ-मुंह आदि धोना (आवचू १ पृ ५४५) । अंचित -- दुर्भिक्ष - 'अंचितं नाम दुर्भिक्षम्' (आवटि प ५३ ) । अंचिय -- १ नाट्य का एक प्रकार - 'नटं चउव्विहं-अंचियं रिभियं आरभडं भसोलं ति' (निचू ४ पृ २) । २ दुर्भिक्ष ( निचू २ पृ ११९) । अंछण -- विस्तार, फैलाव (निचू २ पृ २२३) । अंछणय -- विस्तार, फैलाव ( निभा १५२९) । अंछणिका -- रज्जु- विशेष ( अंवि पृ ११५) । अंछिय -- आकृष्ट, खींचा हुआ ( प्र १।२९; दे १।१४) । अंजणइसिआ -- तमाल का वृक्ष ( दे १ । ३७) । अंजणई -- वल्ली विशेष (प्रज्ञा १।४०।५ ) । अंजणईस -- तमाल का वृक्ष (दे १ । ३७ ) । अंजणिआ -- तमाल का वृक्ष ( दे १ । ३७ )। अंजणी -- १ आभूषण - विशेष ( अंवि पृ १।८३ ) । २. भांड-विशेष ( अंवि पृ २६० ) । अंजणेकसक -- वनस्पति विशेष (अंवि पृ ७० ) । अंजस -- ऋतु ( दे १।१४) । अंडअ -- मत्स्य ( दे १।१६ )। अंतरिज्ज -- कटीसूत्र, करधनी ( दे १ । ३५ )। अंतरिया -- समाप्ति, अंत ( जंबू २ ) । अंतालूहण -- प्रिय-अंतालूहणो मम एस पुत्तो' (कु पृ ४७ ) । अंतोहरी -- दूती (दे १।३५ ) । अंतेल्ली -- १ मध्य । २ जठर, पेट । ३ तरंग ( दे १।५५ ) । अंतोखरियत्ता -- १ नगर में रहने वाली वेश्या । ( भ १५।१८६ ) -- अंतोखरियत्ताए त्ति नगराभ्यन्तरवेश्यात्वेन' विशिष्टवेश्यात्वेनेत्यन्ये ( टी पृ १२७६ )। अंतोवगडा -- घर का आंगन ( बृ २।१ ) – अंतोवगडा नाम उवस्सयस्स अब्भंतरं अंगणं' (चूप १४१)। अंतोहुत्त -- अधोमुख (दे १।२१) । अंधंधु -- कूप, कुआ (दे १।१८) । अंधक -- फल-विशेष, वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ २३८ ) । अंधग -- वृक्ष ( भ १८।९५) । अंधगवहि -- स्थूल अग्नि ( भ १८।६५ ) । अंधार -- अन्धकार ( पंव २५७ ) । अंधारइअ -- अन्धापन (आचू पृ ३७२) । अंधिया -- चतुरिन्द्रिय जंतु विशेष ( भ १५।१८) । अंबकधूवि -- खाद्यपदार्थ-विशेष (अंवि पृ ७१ ) । अंबकूणग -- आम्रफल (भटी पृ १२५७ ) । अंबकोइलिया -- १ आम्रविष्ठा । २ आम की छाल के टुकड़े (दअचू पृ २३ ) । अंबखुज्ज -- तलवे का मध्य भाग - 'यदाम्र कुब्जं पादतलमध्यम्' (बृटी पृ १०६२)। अंबट्टिक -- भोज्य-विशेष - अंब ट्ठिकघतउण्हे पोवलिका••••'(अंवि पृ २४६) । अंबड -- कठिन (दे १ । १६ )। अंबपिंडी -- भोज्य-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । अंबप्पहार -- प्रहार से दुःखी ( उशाटी प १९३ ) । अंबमसी -- गूंदा हुआ बासी गीला आटा - 'अंबसमीत्यत्र सकारमकारयोर्व्यत्यये अंब मसीति केचित् पठन्ति' (दे १।३७ वृ)। अंबर -- मत्स्य का मद - अम्बरशब्देनात्र मत्स्यमदोऽभिधीयते स हि किलात्यन्तसुगन्धो भवति' (आवटि प ६५)। अंबसमी -- गूंदा हुआ बासी गीला आटा ( दे १।३७ ) । अंबाडग -- बहुबीज वाला आम्रातक फल ( प्रज्ञा १।३६ ) । अंबाडगधूवि -- खाद्यपदार्थ-विशेष (अंवि पृ ७१) । अंबाडिय -- तिरस्कृत ( बूटी पृ ५४ ) । अंबिर -- आम्र ( दे १।१५ ) । अंबिलिका -- इमली ( अंवि पृ ७० ) । अंबुसु -- सिंह से भी अति बलवान पशु, शरभ ( दे १।११ ) । अंबेट्टिआ -- मुष्टिद्यूत, बालकों द्वारा मुट्ठी से खेला जाने वाला जूआ -- ' मा रम अंबेट्टिआइ पुत्त ! तुमं' ( दे १।७ वृ) । अंबेट्टी -- मुष्टिद्यूत, बच्चों की क्रीडा-विशेष जो 'एकीबेकी' के रूप में खेली जाती है (दे १।७) । अंबेल्ली -- खट्टी राब-'एहि किराइं सीतलीहोति अंबेल्ली' (आवचू १ पृ १११) । अंबेसी -- घर का द्वार-फलक (१।८)। अंबोच्ची -- फूलों को चुनने वाली स्त्री ( दे १।९) । अकंडतलिम -- १ नि:स्नेह । २ अविवाहित (दे १।६०) । अकरंडुय-मांस के उपचित होने के कारण जिसके पीठ के पास की हड्डी दिखाई न पड़े ( प्र ४।७ टी प ८१ )। अकारय -- भोजन की अरुचि, रोग-विशेष (ज्ञा १।१३।२८ ) । अकासि -- निषेध-सूचक अव्यय, पर्याप्त ( दे १।८ ) । अकोप्प -- रम्य ( प्र ४।८) । अक्क -- दूत ( दे १।६ ) । अक्कंत -- प्रवृद्ध, बढ़ा हुआ ( दे १।९) । अक्कंद -- परित्राता, रक्षा करने वाला ( दे १।१५ ) । अक्कबोंदि -- वल्ली विशेष ( भ २२।६ ) । अक्कसाला -- १ बलात्कार । २ उन्मत्त-सी स्त्री ( दे १।५८)। अक्का -- भगिनी, बहिन ( दे ११६ ) । अक्का (कन्नड)। अक्कुट्ठ -- अध्यासित, अधिष्ठित ( दे १।११ ) । अक्कोड -- बकरा (दे १।१२)। अक्कोडिय -- चुभाना, घुसाना- 'तंबियाओ सुईओ••••वीससु वि अंगुलीनहेसु अक्कोडियाओ' (बृटी पृ ५७)। अक्ख -- उत्कृष्ट उपकरण ( बृभा १५४५ )। अक्खक -- आभूषण विशेष ( अंवि पृ ६० )। अक्खणवेल -- १ मैथुन । २ संध्याकाल ( दे १।५९ ) । अक्खणिया -- विपरीत मैथुन ( पा ४३२ ) अक्खपूप -- खाद्यपदार्थ-विशेष ( अंवि पृ १८२ ) । अक्खर -- आंख का रोग विशेष ( आवचू २ पृ १०२ ) । अक्खरा -- आंख की पुतली-'आसमक्खिया अक्खिमि अक्खरा उकड्ढिज्जइ त्ति' ( आवहाटी २ पृ ९० ) । अक्खल -- १ अखरोट वृक्ष । २ अखरोट वृक्ष का फल ( प्रज्ञा १६ ) । अक्खलिअ -- १ प्रतिफलित, प्रतिबिंबित । २ आकुल-व्याकुल ( दे १।२७ ) । अक्खवाया -- दिशा (दे १।३५ )। अक्खिवण -- अपहरण ( बृभा २०५४) । अक्खु -- आम की छाल-'अक्खु-अंबसालमित्यर्थ:' ( निचू ३ पृ ४८२ ) । अक्खुय -- आम की छाल ( निभा ४७००)। अक्खेवि -- वशीकरण के द्वारा चोरी करने वाला ( प्र ३।३ ) । अक्खोड -- १ राजकुल में दातव्य द्रव्य, बेगार तथा सैनिक आदि की भोजनव्यवस्था (व्यभा २ टी प १० ) । २ वह भूभाग, जो बिना बोया हुआ तथा जनता से अनाक्रांत हो ( आवटि प ९० )। अक्खोडभंग -- राजकुल में दातव्य द्रव्य की राजा द्वारा दी जाने वाली छूट'खोडभंगोत्ति वा उक्कोडभंगोत्ति वा अक्खोडभंगोत्ति वा एगट्ठं' ( निचू ४ पृ २८० ) । देखें - खोडभंग । अक्खोल -- फल-विशेष ( अंवि पृ ६४ ) । अक्खोला -- ककड़ी ( अंवि पृ ७१ ) । अखरय -- भृत्य-विशेष (पिनि ३६७) । अगअ -- दानव ( दे १।६) । अगंडिगेह -- यौवन से उन्मत्त बना हुआ (दे १।४०) । अगड -- १ कूप (स्था २।३६० ) । २ कूप के पास पशुओं के जल पीने का गर्त्त। अगत्थि -- गुल्म-विशेष ( जीव ३।५८० )। अगय -- असुर ( प्रा २।१७४) । अगहण -- कापालिक, वाममार्गी ( दे १।३१ )। अगिला -- अवगणना, अवज्ञा ( दे १।१७) । अगुज्झहर -- रहस्यभेदी, गुप्त बात को प्रकाशित करने वाला ( दे १।४३ ) । अग्ग -- १ ताजा - 'अग्गेहि वरेहि पुप्फेहिं जक्खमच्चेइ' ( उसुटी प ३५ ) । २ परिहास । ३ वर्णन । अग्गक्खंध -- रणमुख, युद्ध का अग्रिम मोर्चा ( दे १।२७ ) । अग्गवेअ -- नदी का पूर ( दे १।२९ ) । अग्गहण -- अवगणना, अवज्ञा ( दे १।१७ ) । अग्गाधमक -- मत्स्य की एक जाति (अंवि पृ ६३ ) । अग्गाहार -- १ उच्च जीविका, बहुमान - 'दिट्ठो सक्कारिओ अग्गाहारो य से दिन्नो' ( उसुटी प २३) । २ छोटी बस्ती- अत्थि णाइदूरे सरलपुरं णाम बंभणाणं अग्गाहारं' ( कु पृ २५८ ) । अग्गिअ -- १ इन्द्रगोप कीट । २ मन्द ( दे १।५३ ) । अग्गिचुल्लक -- अग्नि का स्थान (अंवि पृ २४४) । अग्गिरस -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । अग्गिलिय -- आगे, पहले ( पंवटी प ५६ ) । अग्गुमर -- घर का प्रवेश द्वार - 'गिहमुहं अग्गुमरो' ( आचू पृ ३७० ) । अग्घाड -- अपामार्ग, लटजीरा ( दे १।८ ) । अग्घाडग -- अपामार्ग, लटजीरा ( प्रज्ञा १।३७।४ ) । अग्घाण -- तृप्त ( दे १।१९ ) । अग्घातित -- आख्यात ( आचू पृ ३०३ ) । अघ -- १ गढा । २ ह्रद - अघा गर्ता ह्रदो वा' ( बृटी पृ २०२ ) । अचल -- १ गृह । २ कहा हुआ । ३ घर का पिछला भाग । ४ निष्ठुर, निर्दय । ५ नीरस, विरस ( दे १।५३ ) । अचाइ -- अशक्त, असमर्थ ( आ ६।३० ) । अचिट्ठ -- अप्रगाढ-'अचिट्ठं कूरेहिं कम्मेहिं, णो चिट्ठं परिचिट्ठति' ( आ४।१५ ) अचियत्त -- १ अप्रीतिकर (द ५।१७) । २ अप्रीति - 'अचियत्तं देशीवचनं अप्रीत्याभिधायकम्' (आवहाटी १ पृ १२७) । अचोक्ख -- अपवित्र ( आवचू १ पृ १२२) । अचोक्खलिणी -- जल आदि से हाथ न धोने वाली ( पिनि ६०२ ) । अच्चंकारिय -- असत्कारित, अपूजित-'अच्चंकारिओ उवघातं करेस्सति' ( निचू ३ पृ ४१८ ) । अच्चाइय -- व्यथित-'अच्चाइओ सागडिओ' ( दहाटी प ६१ ) । अच्चिग -- व्यथा ( कन्नड़ ) । अच्छ -- १ प्रचुर । २ शीघ्र ( दे १।४९ ) । ३ वृक्ष ( से ९।४७ ) । अच्छंत -- आसीन ( उ १९।७८ ) । अच्छण -- १ बैठना ( अच्छणघर-विश्रामगृह ) ( ज्ञा १।३।१६ ) । २ अवस्थान, आसन ( उ २६।७ ) । ३ अपसर्पण-'अच्छणं ति ओसक्कणं' ( निचू १ पृ ८३ ) । ४ अवलोकन ( व्यमा ३ टी प १०२ ) । ५ सेवा, शुश्रूषा ( बृ ३) । अच्छमल्ल -- यक्ष, देव-विशेष ( दे १।३७) । अच्छराणिवात -- १ चुटकी । २ चुटकी बजाने जितना समय ( सूचू २ पृ ३५९ ) । अच्छरानिवाय -- चुटकी ( जीव ३।८६ ) -'अप्सरोनिपातो नाम चप्पुटिका' ( टी प १०९ ) । अच्छहल्ल -- रीछ (पा ३०२ ) । अच्छारिय -- नौकर, कर्मचारी -'तत्थ सरदकाले अच्छारियभत्ताणि दधिकूरेण णिसट्ठं दिज्जंति' ( आवचू १ पृ २९१ ) । अच्छिक्क -- अस्पृष्ट ( व्यमा ४।२ टी प २४ ) । अच्छिघरुल्ल -- १ अप्रीतिकर । २ वेश, पोशाक ( दे १।४१ वृ ) । अच्छिय -- फल-विशेष ( आटी प ३४९ ) । अच्छिरोड -- चतुरिन्द्रिय जंतु-विशेष ( प्रज्ञा १।५१ ) । अच्छिरोडय -- चार इन्द्रिय वाला जीव-विशेष ( उ ३६।१४७ ) । अच्छिल -- चार इन्द्रिय वाला जंतु- विशेष ( उ ३६।१४७ ) । अच्छिवडण -- निमीलन, आंखों का मूंदना ( दे १।३९ ) । अच्छिविअच्छि -- आपस की खींचतान, परस्पर आकर्षण ( दे १।४१ ) । अच्छिवेह -- चतुरिन्द्रिय जीव-विशेष ( प्रज्ञा १।५१) । अच्छिवेहय -- चार इन्द्रिय वाला जंतु विशेष ( उ ३६।१४७ ) । अच्छिहरिल्ल -- १ अप्रीतिकर, द्वेष्य । २ वेश, पोशाक ( दे १।४१ वृ ) अच्छिहरुल्ल -- १ अप्रीतिकर । २ वेश, पोशाक ( दे १।४१ ) । अच्छुल्लूढ -- निष्कासित, बाहर निकाला हुआ ( बृभा ५७५ ) । अज -- सर्प की एक जाति ( अंवि पृ० ६३ ) । अजढर -- नया, ताजा ( सूचू २ पृ ३१२) । अजराउर -- उष्ण, गरम ( दे १।४५ ) । अजिणविलाल -- पर्वत की गुफा में रहने वाले सिंह की एक जाति ( अंवि पृ २२७ ) । अजुअ -- सप्तच्छद, सतौना का वृक्ष ( दे १।१७) । अजुअलवण्णा -- इमली का वृक्ष ( दे १।४८ ) । अजुअलवन्न -- सप्तपर्ण, छितवन का पेड़ ( पा ८९५ ) । अजुंगित -- शरीर तथा जाति से अजुगुप्सित ( निचू ३ पृ ४५७ ) । अज्ज -- जिन, अर्हत्, बुद्ध ( दे १।५ ) । अज्जअ -- १ सुरस नामक तृण । २ गुरेटक नामक तृण ( दे १।५४ ) । अज्जणी -- भांड-विशेष ( अंवि पृ ६३ ) । अज्जय -- १ वनस्पति विशेष, लघु तुलसी का पौधा ( प्रज्ञा १।४४।३ ) । २ दादा । ३ नाना ( द ७।१८ ) । अज्जा -- १ वृक्ष विशेष (भ २१।२१) । २ दुर्गा देवी का प्रशांत रूप-'दुर्गायाः पूर्वरूपं अत्र कुष्मांडिवत् तधाठिता अज्जा भन्नति' ( अनुद्वाचू पृ १२ ) । ३ यह स्त्री ( पा ८४३ ) । अज्जिआ -- १ दादी । २ नानी ( द ७।१५ ) । आजी -- दादी ( मराठी ) । अज्जी (कन्नड़ ) । अज्जिड्डीय -- दिया, प्रस्तुत किया - 'आसेण हिसियं, पट्ठी अज्जिड्डीया' ( व्यभा २ टी प ९४ ) । अज्जुण -- तृण-विशेष ( भ २१।१९ ) । अज्जोरुह -- वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १ ) । अज्झ -- यह ( पुरुष ) ( दे १।५० ) । अज्झअ -- पड़ौसी ( दे १।१७ ) । अज्झत्थ -- आगत ( दे १।१० ) । अज्झवसिअ -- मुंडित मुख ( दे १।४० )। अज्झसिअ -- दृष्ट, देखा हुआ ( दे १।३० ) । अज्झस्स -- आक्रुष्ट, जिस पर आक्रोश किया गया हो वह ( दे १।१३ ) । अज्झा -- १ असती, कुलटा । २ प्रशस्त स्त्री । ३ नववधू । ४ तरुणी । ५ यह (स्त्री) ( दे १।५० ) । अज्झियक -- उपयाचित, मांगा हुआ ( बूटी पृ १३२७ ) । अज्झियग -- उपयाचित, मांगा हुआ (बृभा ४९६२ ) । अज्झीण -- अध्ययन, विभाग - अज्झयणं अज्झीणं आओ झवणा य एगट्ठा' ( निचू १ पृ ५ ) । अज्झेल्ली -- बार-बार दोहन योग्य गाय ( दे १।७ ) । अज्झोल्लिआ -- वक्षस्थल के आभूषण में की जाती मोतियों की रचना विशेष ( दे १ । ३३ ) । अज्झोस -- अध्यवसाय, भावना - अज्झोसो भावण त्ति एगट्ठं' (आचू पृ ३७३ ) । अझिंखिय -- अनिन्दनीय ( दे ३।५५ वृ ) । अटिट्टियाविज्जमाण -- टिट्-टिट् की आवाज नहीं करता हुआ ( ज्ञा १।३।२६ ) । अट्ट -- १ आकाश-'अट्टे इ वा वियट्टे इ वा आधारे इ वा ' ( भ २०।१६ ) । २ कृश । ३ महान् । ४ तोता । ५ सुख । ६ धृष्ट । ७ आलसा । ८ ध्वनि । ९ असत्य ( दे १।५० ) । अट्टग -- आटा ( सूचू १ पृ १७८ ) । अट्टट्ट -- गया हुआ ( दे १।१० ) । अट्टट्टहास -- खिलखिलाकर हंसना ( पंवटी प २३० ) । 'अट्टण' साला -- व्यायामशाला ( भ ११।१३८ ) । अट्टमट्ट -- १ निरर्थक, ऊटपटांग-अट्टमट्टं च सिक्खेज्जा, सिक्खियं ण णिरत्थयं । अट्टमट्टपसाएण, भुंजए गुडतुंबयं ॥' ( उशाटी प २४५ ) । २ आलवाल, क्यारी ( प्रा २।१७४ ) । ३ अशुभ संकल्प-विकल्प । अट्टयकल्ली -- कमर पर हाथ देकर खड़ा रहना ( पा ७२८ ) । अट्टरुसग -- गुच्छ वनस्पति विशेष ( प्रज्ञा १।३७।४ ) । अट्टालग -- प्राकार के भीतर आठ हाथ चौड़ा मार्ग (आचू पृ ३६९ ) । अट्ठिओ -- पुनः पुन:-'अट्ठिओ पुणो पुणो' ( निचू १ पृ १२४ ) । अट्ठित्तो -- पुनः पुनः ( निभा ३५७ ) । अट्ठिल्लिय -- बिनौला ( पिनि ६०३ ) । अट्ठीलय -- बिनौला ( पिनि ६०३ ) । अड -- १ लोमपक्षी ( जीवटी प ४१ ) । २ कूप, कुंआ ( पा ३०८ ) । ३ कूप के पास में पशुओं के पानी पीने के लिए बनाया हुआ गढा ( प्रा १।२७१ ) । अडउज्झिअ -- विपरीत मैथुन ( दे १।४२) । अडंबइल्ला -- देश-विशेष ( आवहाटी १ पृ ६६ ) । अडखम्मिअ -- जागरूकता, देखभाल ( दे १।४१ ) । अडड -- संख्या विशेष ( भ ५।१८ ) । अडडंग -- संख्या विशेष ( भ ५।१८ ) । अडणि -- धनुष्य का प्रांतभाग ( ? ) ( से १५।५६ ) । अडणी -- मार्ग ( इ २६।३ ; दे १।१६ ) । अडय -- १ आत्मवान् । २ प्रशंसनीय ( इ १।५ ) । अडयणा -- असती, कुलटा ( दे १।१८ ) । अडया -- कुलटा ( दे १।१८ ) । अडयाल -- १ अड़तालीस ( निभा २१३२ ) । २ प्रशंसा-'अडयालशब्दो देशीवचनत्वात् प्रशंसावाची ( प्रज्ञाटी प ८९ ) । अडयालग -- प्राकार का एक भाग-'अडयालग त्ति अट्टालक: प्राकारावयवः सम्भाव्यते' ( उपाटी पृ १०० ) । अडाड -- बलात्, जबरदस्ती-'अडाडाए बला हरंतो अक्कंतिओ' ( निचू ३ पृ २५९ ; दे १।१९ ) । अडिल -- चर्मपक्षी-विशेष ( जीवटी प ४१ ) । अडिला -- चतुष्पद प्राणी-विशेष ( अंबि पृ ६९ ) । अडिल्ल -- चर्मपक्षी का एक भेद ( प्रज्ञा १।७८ ) । अड्ड -- १ तिर्यक् ( आवटि प ४९ ) । २ जो आड़े आता हो, बीच में बाधक वनता हो, वह । अड्डग -- जो आडे आता हो, बीच में बाधक बनता हो -- गलए अड्डगं आट्ठा कट्ठं वा' ( सूचू २ पृ ३५५ ) । अड्डपलाण -- यान-विशेष, थिल्लि ( भटी पृ ७३० ) । अड्डपल्ल -- लाट देश में प्रसिद्ध खच्चरों से वाह्य यान ( ज्ञाटी प ४७ ) । अड्डपल्लाण -- लाट देश में प्रसिद्ध यान-विशेष ( औपटी पृ ११२ ) । अड्डवियड -- १ आडा-टेढा, अस्त-व्यस्त-'वितिकिण्णं विप्रकीर्णं अणाणुपुथ्वीए अड्डवियड्ड ति वृत्तं भवति' ( निचू ४ पृ ३७ ) । अड्डित -- चढ़ाया, आरोपित किया-खंधे अड्ड' ( व्यमा २ टी प ९६ ) । अड्डिय -- १ भिड़ने की क्रिया-विशेष ( निचू ३।४८ ) । २ आरोपित ( व्यभा २ टीप १४ ) । अड्ढपल्लाण -- लाट देश में प्रसिद्ध यान-विशेष ( अनुद्वाहाटी पृ १४६ ) । अड्ढयक्कली -- कमर पर हाथ रखना ( दे १।४५ ) । अड्ढेऊण -- रोककर-'अड्ढेऊण सणियं विगिंचइ, जह उज्जरा न जायंति' ( आवहाटी २ पृ ८७) । अड्डोरुग -- जैन साध्वी के पहनने का एक वस्त्र ( पंक १४८१ ) । अण -- पाप ( भटी प ३५ ) । अणंगण -- गुल्म-विशेष ( अंवि पृ ६३ ) । अणंत -- १ अंगूठी ( अंवि पृ ६५ ) । २ निर्माल्य देवता को चढ़ाया गया उपहार ( दे १।१० ) । अणंतग -- वस्त्र ( नि १।१३ ) । अणंतिक्क -- जुलाहा, बुनकर ( आवचू १ पृ १५६ ) अणक्क -- १ म्लेच्छ जाति । २ म्लेच्छ देश-विशेष ( प्र १।२१ ) । अणघ -- नीरोग ( निचू १ पृ १२७ ) । अणच्छिआर -- अच्छिन्न, नहीं छेदा हुआ ( दे १।४४ ) । अणड -- जार पुरुष ( दे १।१८ ) । अणत्त -- निर्माल्य, देवोच्छिष्ट द्रव्य ( दे १।१० ) । अणप्प -- खड्ग, तलवार ( दे १।१२ ) । अणप्पज्झ -- १ पराधीन - 'देशीपदमनात्मवशवाचकम्' ( बूटी पृ १०३३ ) । २ भूताविष्ट ( निचू २ पृ २९ ) । अणप्फुण्ण -- अव्याप्त, अस्पृष्ट ( अनुद्वाचू पृ ५९ ) । अणप्फुन्न -- अनापूर्ण, अस्पृष्ट ( अनुद्वा ४३८ )। अणफुण्ण -- अपूर्ण, अस्पृष्ट, अनाक्रांत (अनुद्वाहाटी पृ ८६ ) । अणरामय -- अरति, बेचैनी (दे १।४५) । अणराह -- शिर पर बांधी जाने वाली रंग-बिरंगी पट्टी ( दे १।२४ ) । अणरिक्क -- १ अवकाश रहित, व्यस्त ( दे १।२० ) । २ दधि, क्षीर आदि गोरस भोज्य ( निचू १६ ) । अणवदग्ग -- १ अनन्त, निस्सीम-'अणवदग्गं••••संसारकंतारं अणुपरियट्टई' ( भ १।४५ ) । २ अविनाशी ( सू २।५।२ ) । अणवयग्ग -- अनन्त, अपरिमित ( आचू पृ १५९ ) । अणव रिक्क -- अवकाश सहित ( दे १।२० वृ ) , अणह -- १ अक्षत, सुरक्षित-'कयकज्जे अणह-समग्गे' ( ज्ञा १।१८।२५ ; दे १।१३ ) नीरोग ( निचू १ पृ १२७ ) । अणहप्पणय -- अनष्ट, विद्यमान ( दे १।४८ ) । अणहारअ -- खल्ल, वह भूमी जिसका मध्यभाग नीचा हो ( दे १।३८ ) । अणागलिय -- अपरिमित ( उपा २।३४ ) । अणाड -- जार पुरुष ( दे १।१८ ) । अणाडिया -- १ कुचेष्टा, विक्रिया (आवचू १ पृ ४९७ ) । २ नटखटपन'एक्का वि मए पुत्तस्स अणाडिया न दिट्ठा' ( बूटी पृ ५७ ) । अणाढायमाण -- अस्मरण ( आचू पृ ३०३) । अणादुआल -- बिना हिलाये ( सूचू १ पृ १२२ ) । अणालिआ -- कुचेष्टा, विक्रिया-'अणालिआ करेइ' ( आवहाटी १ पृ २४७ ) । अणिट्ठुह -- अविगलक, नहीं थूकने वाला ( सू २।२।६६ ) । अणिट्ठुहअ -- १ अनिष्ठीवक । २ सचेष्ट, जागरूक ( भ २५।५७१ ) । अणिड्डगलित -- अत्यधिक लिप्त-'अणिड्डुगलिते अतीव लेत्थरियं' ( निचू २ पृ ३०१ ) । अणिदा -- अनुभव शून्य, ज्ञानशून्य-'सव्वे असण्णी असण्णीभूतं अणिदाए वेदणं वेदेति' (भ १।७८ )। अणिदाय -- ज्ञान का अभाव ( भटी पृ १४१७ ) । अणिदोच्च -- १ भय का होना । २ अस्वास्थ्य ( व्यभा ६ टी प ५१ ) । अणिय -- अग्रभाग ( प्र ७।२ ) । अणियण -- कल्पवृक्ष का एक प्रकार ( प्रसाटी प ३१४) । अणिलुक्क -- प्रकट, अतिरोहित-'अणिलुक्के णिलुक्कमिति अप्पाणं मण्णइ' ( भ १५।१०२ ) । अणिल्ल -- प्रभात ( दे १।१९ ) । अणिह -- १ सदृश । २ मुख ( दे १।५१ ) । अणु -- चावल की एक जाति ( दे १।५ )। अणुअल्ल -- प्रभात ( दे १।१९ ) । अणुआ -- यष्टि, लकड़ी ( दे १।५२ वृ ) । अणुइअ -- चना ( दे १।२१ ) । अणुज्जल -- अचंचल ( अंवि पृ ४ ) । अणुदवि -- प्रभात ( दे १।१९ ) । अणुद्धरी -- कुंथु आदि कीट-विशेष ( निचू ३ पृ १२४ ) । अणुबंधिअ -- हिक्का रोग, हिचकी ( दे १।४४ ) । अणुय -- १ धान्य विशेष ( दनि १५५; दे १।५२ ) । २ आकृति ( दे १।५२ ) । अणुरंगा -- गाड़ी-'अणुरंगा णाम घंसिओ' ( निचू ४ पृ १११ ) । अणुल्लय -- द्वीन्द्रिय जंतु- विशेष ( उ ३६।१२९ ) । अणुव -- बलात्कार ( दे १।१९ ) । अणुवज्जण -- सेवा-शुश्रूषा, देखभाल ( दे १।४१ वृ ) । अणुवज्जिअ -- १ जागरूकता, देखभाल ( दे १।४१ ) । २ गत ( वृ ) । अणुवहुआ -- नववधू ( दे १।४८ ) । अणुसंधिअ -- निरंतर हिचकी आना ( दे १।५९ ) । अणुसुत्ति -- अनुकूल ( दे १।२५ ) । अणुसूआ -- शीघ्र ही प्रसव करने वाली स्त्री ( दे १।२३ ) । अणेकज्झ -- चंचल ( दे १।३० ) । अणोभट्ट -- अप्रार्थित, अयाचित ( ओनि १४८ ) । अणोयविय -- अपरिकर्मित ( निचू २ पृ ४२६ ) । अणोरपार -- १ अनादि-अनन्त-'संसारे घोरम्मि अणोरपारे' ( सू २।६।४९ ) । २ प्रचुर-'अणोरपारमिति देशीवचनं प्रचुरार्थे' ( आवहाटी १ पृ २३० ) । ३ अपार-'अणोरपारम्मि देशयुक्त्या अपारे' ( आवदी प १६१ ) । अणोलय -- प्रभात ( दे १।१९ ) । अणोहट्टय -- उच्छृंखल ( ज्ञाटी प २४५ ) । अणोहट्टिय -- स्वच्छंद ( ज्ञा १।१८।१७ ) । अणोहट्ठ -- अनिच्छित, अप्रार्थित-'अणोहट्ठं अजाणियं' ( निचू २ पृ १९९ ) । अण्ण -- १ पुरुष के लिए प्रयुक्त सम्बोधन ( द ७।१९ )-'अण्णं' इति मरहट्ठाणं आमंतणवयणं' ( दअचू पृ १६९ ) । २ आरोपित । ३ खण्डित । अण्णअ -- १ तरुण । २ धूर्त्त । ३ देवर ( दे १।५५ ) । अण्णइअ -- तृप्त ( दे १।१९ ) । २ सर्वार्थ-तृप्त, सभी विषयों में तृप्त (वृ) । अण्णत्ति -- अवज्ञा, अनादर ( दे १।१७) । अण्णमय -- पुनरुक्त, पुनः कहा हुआ ( दे १।२८ ) । अण्णाण -- १ विवाह-काल में वधू को दिया जाने वाला उपहार-दहेज । २ विवाह के लिए वर को वधू का दान-कन्यादान ( दे १।७ )। अण्णाय -- आर्द्र, गीला ( से ४।९ ) । अण्णिआ --१ देवरानी । २ ननद । ३ फूफी ( दे १।५१ ) । अण्णी -- १ देवरानी, देवर की पत्नी । २ ननद, पति की बहिन । ३ फूफी, पिता की बहिन ( दे १।५१ ) । अण्णे -- १ महाराष्ट्र में प्रयुक्त तरुणी स्त्री के लिए संबोधन-शब्द-"अण्णे त्ति मरहट्ठेसु तरुणित्थीसामंतणं ( द ७।१६ ; अचूपृ १६८ ) । २ महाराष्ट्र में वेश्याओं के लिए प्रयुक्त चाटु वचन-'मरहट्ठविसए आमंतणं दोमूलइखरगाणं चाटुवयणं अण्णेत्ति' ( जिचू पृ २५० ) । अण्णोसरिअ -- अतिक्रान्त, उल्लंधित ( दे १।३९ ) । अण्हेअअ -- भ्रान्त ( दे १।२१ )। अतिंतिण -- बड़-बड़ न करने वाला, बकवास न करने वाला ( द ८।२९ ) । अतिकिमण -- अलस, मंथर-अलसमभारो भीरू अतिकिमणो मंथरो त्ति वा' ( अंवि पृ २४१ ) । अतित्थित -- अतिक्रान्त ( व्यभा १० टी प ९ ) । अतिप्पणया -- अश्रु न बहाना ( भ ७।११४ ) । अतिर -- निरन्तर-'अतिर णिरंतरं भण्णति' ( जीभा १६८० ) । अतिराउल -- स्वामीकुल-'अतिराउले इति देशीपदं, स्वामिकुलमित्यर्थः' ( प्रज्ञाटी प २५३ ) । अतिस -- अप्रीति ( अंवि पृ १२ ) । अतोत्थित -- अतिक्रान्त ( व्यभा १० टी प ६ ) अत्ता -- १ फूफी । २ सासू । ३ सखी ( दे १।५१ ) । अत्थ -- अनवसर, अकस्मात् ( दे १।१४ ) । अत्थक्क -- अकस्मात् ( से ११।२४ ) । २ अखिन्न । ३ अनवरत । अत्थग्ध -- १ मध्यवर्ती ( ओनि ३४ ) । २ अगाध, गहरा । ३ आयाम, लंबाई । ४ स्थान ( दे १।५४ ) । अत्थणिउर -- संख्या-विशेष ( भ ५।१८ )। अत्थणिउरंग -- संख्या-विशेष ( भ ५।१८ ) । अत्थभिल्ल -- रीछ ( निचू २ पृ ९३ ) । अत्थयारिआ -- सखी, सहेली ( दे १।१६ ) । अत्थावक -- अकस्मात् ( से ११।२४ ) । अत्थार -- सहायता, सहयोग ( दे १।१९ ) । अत्थारिय -- कर्मकर, मूल्य लेकर खेत में धान आदि काटने वाला नौकर'अत्थारिएहिं तु ये मूल्यप्रदानेन शालिलवनाय कर्मकरा:' ( व्यभा ६ टी प ३८ ) । अत्थाह -- १ अगाध, गहरा, ऊंडा । २ आयाम, लम्बाई । ३ स्थान । ४ मध्यवर्ती, बीच का ( दे १।५४ ) । अत्थिय -- १ वृक्ष-विशेष । २ बहुत बीज वाला फल ( भ २२।३ ) । अत्थिल -- क्षुद्र जंतु ( अंवि पृ २५३ ) । अत्थुड -- लघु ( दे १।९ ) । अत्थुरण -- आस्तरण ( निचू ३ पृ ३२३ ) । अत्थुरणग -- आस्तरण-विशेष ( निचू ३ पृ ५६८ ) । अत्थुरिय -- फैलाया हुआ, बिछाया हुआ ( बृभा ६१० ) । अत्थुवड -- भल्लातक, भिलावा वृक्ष का फल ( दे १ । २३ ) । अत्थेक्क -- आकस्मिक, अचिन्तित ( से १२।४७ ) । अथक्क -- १ अकस्मात्, अनवसर ( ओटी प ८७ ) २ प्रसरणशील, फैलने वाला । अदंतवणय -- अदन्तधावन, दतौन का निषेध ( स्था ९।६२ ) । अदंसण -- चोर ( दे १।२९ ) । अदक्खेयव्व -- ग्राह्य ( ओनि ) । अदिसल्ल -- अंधा ( निचू ४ पृ १०९ ) । अदु -- १ अब ( आ ९।३।१० ) । २ अथ, इसलिए ( सू १।२।२४ ) । ३ अथवा ( उ २।२३ ) । ४ अधिकारान्तर का सूचक । ५ इससे । अदुत्तरं -- आनन्तर्य सूचक अव्यय, अब ( सू २।२।१८ ) । अदुल -- आम आदि का रूंछा ( अनुद्वाहाटी पृ ७६ ) । अदुव -- अथवा ( द ६।२ ) । अदुवा -- अथवा ( द ५।७५ ) । अदूयालिय -- मिश्रित-'जत्तियाणि भरहे धण्णानि........ताणि सव्वाणि अदूयालियाणि ( उशाटी प १४६ ) । अद्द -- १ अभिमुख ( आवचू १ पृ २७८ ) । २ परिहास । ३ वर्णन । अद्दण -- आकुल ( दे १।१५ ) । अद्दण्ण -- १ व्याकुल ( पंक ६६१; दे १।१५ ) । २ असत्य ( व्यभा ६ टी प ३ ) । अद्दन्न -- आकुल-व्याकुल ( बृभा ३६३३ ) । अद्दाइअ -- आदर्श, पवित्र आचरण वाला ( बृ १ ) । अद्दाग -- दर्पण ( स्था ४।४३१ ) । अद्दाय -- १ दर्पण, आदर्श-'जे भिक्खू अद्दाए अप्पाणं देहति' ( नि १३।३२; दे १।१४ ) । २ वह विद्या जिससे दर्पण में प्रतिबिम्बित रोगी के बिम्ब को पोंछने से रोगी नीरोग हो जाता है। ( व्यभा ५ टी प २६ ) । अद्धंत -- १ पर्यन्त, अंतभाग ( दे १।८ ) । २ कतिपय, कई एक । अद्धक्खण -- १ प्रतीक्षा ( दे १।३४ ) । २ परीक्षण-'परीक्षणमिति केचित्' (वृ) । अद्धक्खिअ -- संकेत करना ( दे १३४ ) । अद्धजंघा -- 'मोचक' नाम का जूता-विशेष ( दे १।३३ ) । अद्धजंघिया -- पाद-रक्षक, जूता-विशेष ( दे १।३३ वृ ) । अद्धविआर -- १ मंडन, भूषण ( दे १।४३ ) । २ मंडल, गोल ( वृ ) । अद्धा -- १ समय ( स्था २।३९ ) । २ लब्धि, शक्ति-विशेष । ३ वस्तुतः । ४ साक्षात् । ५ दिन । ६ रात्रि । ७ संकेत । अद्धाण -- महान् अटवी-'अद्धाणं महंता अडवी' ( निचू १ पृ ८० ) । अद्भुट्ठ -- साढ़े तीन-'अद्भुट्ठणावि कुमारकोडीणं' ( प्र ४।५ ) । अधंकण -- अमायी ( सूचू १ पृ १८९ ) । अधवण -- अथवा ( बृभा ४१९३ ) । अधिकरणिखोडि -- अहरन को रखने का काष्ठ-विशेष ( भ १६।७ ) । अधिक्कमणक -- उत्सव-विशेष ( अंवि पृ १२१ ) । अनिदोच्च -- भयभीत, अस्वस्थ-'अणिदोच्चमित्यनिर्भयमस्वस्थमित्यर्थः ( व्यभा ७ टी प ५१ ) । अन्न -- पुरुष के लिए प्रयुक्त संबोधन-शब्द ( द ७।१९ ) । अन्नइलाय -- बासी भोजन करने वाला ( प्रटी प ११० ) । अन्नओहुत्त -- पराङ्मुख-'रोसेण य अन्नओहुत्तो जाओ राया' ( उसुटी प २९ ) । अन्नतिलाय -- बासी भोजन करने वाला ( प्रटीप प प ०६ ) । अन्ना -- १ तरुण स्त्री का सम्बोधन-शब्द ( द ७।१६ ) । २ माता । अपडिच्छिर -- जड़-मति, मूर्ख ( दे १।४३ ) । अपडिहत -- भोज्य पदार्थ-विशेष-'पूणे वा फेणके वा अक्खपूणे वा अपडिहते वा' ( अंवि पृ १८२ ) । अपलोकणिक -- सिर का आभरण-विशेष ( अंवि पृ १६२ ) । अपातय -- अकाल ( ? )-'अपातयं सस्सवापत्ति' ( अंवि पृ ११२ ) । अपारमग्ग -- विश्राम ( दे १।४३ ) । अपुप्फिय -- स्वच्छ, सुगंधित ( बृभा ४३८ ) । अपोल -- पोल रहित, अशुषिर ( पंवटी प ६७ ) । अपोल्ल -- अशुषिर, निबिड ( प्रसा ६७४ ) । अप्प -- पिता ( दे १।६ ) । अप्पगुत्ता -- कपिकच्छू, कवाछ, ( दे १।२९ ) । अप्पजूहिअ -- पके हुए चावल आदि ( आटी प ३३४ ) । अप्पज्झ -- आत्मवश, स्वस्थचित्त ( बृभा ३७३२; दे १।१४ ) । अप्पत्तिय - १ अप्रीति । २ अविश्वास ( दश्रु ६।४ )। अप्पद्दण्ण -- आत्मरक्षा में तत्पर, स्वयं को बचाने में तत्पर ( बृभा ११५३ ) । अप्पसत्थभ -- गोत्र विशेष ( अंवि पृ १५० ) । अप्पाह -- संदेश ( व्यभा ७ टी प २६ ) । अप्पाहट्टु -- जानकर, कहकर ( सू २।१।१२ ) । अप्पाहण -- संदेश ( बृभा २३९ ) । अप्पाहणी -- संदेश ( पिनि ४३० ) । अप्पाहित -- संदिष्ट ( बृभा ३२८४ ) । अप्पाहिय -- संदिष्ट ( बृढी पृ ७४ ) । अप्पोया -- आस्फोता, वल्ली-विशेष ( प्रज्ञा १।४० ) । अप्पोल -- पोल रहित ( निभा २१७० )। अप्पोल्ल -- पोल रहित, निगर ( ओभा ३२२ ) । अप्फचिय -- अपरिचित ( निचू ३ पृ ३३७ ) । अप्फच्चित - अपरिचित ( निचू २ पृ ११७ ) । अप्फाया -- वनस्पति-विशेष ( जीवटी प ३५१ ) । अप्फुण्ण -- १ पूर्ण, भरा हुआ ( विपा १।२।५३; दे १।२० ) । २ आक्रांत, स्पृष्ट ( अनुद्वाचू पृ ५९ ) । ३ आच्छादित ( से २।४ ) । अप्फुन्न -- आपूर्ण, स्पृष्ट, आक्रान्त ( अनुद्वा ४३६ )। अप्फेया -- आस्फोता, वल्ली-विशेष ( प्रज्ञा १।४० ) । अप्फोता -- वनस्पति-विशेष ( जीव ३।२९६ ) । अप्फोतिका -- वनस्पति-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । अप्फोय -- वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ६३ ) । अप्फोया -- १ वनस्पति-विशेष ( राज १८४ ) । २ वल्ली- विशेष ( प्रज्ञा १।४०।३ ) । अप्फोव -- १ लता ( उ १८।५ ) । २ वृक्ष आदि से आकीर्ण, गहन ( उशाटी प ४३८ ) । अफुण्ण - परिपूर्ण ( प्रज्ञा २६।५९ ) । अफुन्न -- स्पृष्ट ( प्रसाटी प ३०४ ) । अबीय -- दुर्भिक्ष ( निचू ४ पृ १२८ ) । अबोट -- अनाक्रमणीय ( ओटी प ६२ ) । अब्बुद्धसिरी -- इच्छा से भी अधिक फल की प्राप्ति ( दे १।४२ ) । अब्भ -- अध्यारोह वृक्ष, वृक्ष पर उत्पन्न होने वाला विजातीय वृक्ष'अब्भेति वृक्षे समुत्पन्नो विजातीयो वृक्षविशेषोऽध्यवरोहकः' ( भटी पृ १४७६ ) । अब्भंगिएल्लअ -- घी आदि से चुपड़े हुए शरीर वाला ( ओनि ८२ ) । अब्भक्खण -- अकीर्ति ( दे १।३१ ) । अब्भड -- आहत, टकराना ( आवहाटी १ पृ २८८ ) । अब्भडवंचिउ -- अनुगमन करके ( प्रा ४।३९५ ) । अब्भपिसाअ -- राहु ( दे १।४२ ) । अब्भवालय -- अभ्रक का चूर्ण ( उ ३६।७४ )। अब्भाकारिय -- कर्माजीवी ( ? ) ( अंवि पृ ६७ ) । अब्भायत्त -- प्रत्यागत, वापस आया हुआ ( दे १।३१ )-'अब्भायत्ता भमन्ति तुह रिउणो' (वृ) । अब्भायत्थ -- पश्चाद्गत, फिर गया हुआ-'अब्भायथो पश्चाद् गत इति तु गोपालः' ( दे १।३१ वृ ) । अब्भिडिअ -- १ सार, मजबूत । संगत, युक्त ( दे १।७८ )। अब्भिडिऊण – टकरा कर-'सो चक्के अब्भिडिऊण भग्गो' ( उशाटी प १४९ ) । अब्भुट्ठि -- हिंसक-'आउट्टि त्ति वा अब्भुट्ठि त्ति वा एगट्ठा' ( आचू पृ २७५ ) । अब्भुत्त -- प्रदीप्त, चमकदार ( निचू ३ पृ ३२१ ) । अब्भुत्तिअ -- १ प्रदीप्त, प्रकाशित । २ उत्तेजित ( से १५।३८ ) । अब्भूआण -- उफनता हुआ—'आकंठा आदाणस्स भरिया, तो तप्पमाणी भरिया अब्भूआणा छड्डिज्जति, अग्गिं पि विज्झावेति' ( निचू ३ पृ ८५ ) । अभिचार -- उच्चाटन आदि ( निचू १ पृ १६३ ) अभिणूम -- १ माया ( सू १।२।७ ) । २ कर्म ( सूचू पृ ५३ ) । अभिण्णपुड -- खाली पुडिया जिसको बच्चे लोगों को ललचाने के लिए रास्ते पर रख देते हैं ( दे १।४४ ) । अभिनिपिया -- प्रत्येक का पृथक्-पृथक् चूल्हा ( व्य ९।१०) । अभिनिव्वगड -- १ अनेक और निश्चित परिक्षेप वाला स्थान । पृथग्पृथग् परिक्षेप वाला स्थान ( बृ १।११ टी पृ ६४९ )। ३ वह परिक्षेप जिसमें प्रवेश और निष्क्रमण का एक द्वार हो पर भीतर अनेक घर हों ( व्यभा ८ टी प ४ ) । अमंगुल -- इष्ट ( निचू ३ पृ १४२ ) । अमज्जाइल्ल -- अमर्यादित, अव्यवस्थित ( निभा ४०३ ) । अमणाम -- मन के लिए अप्रिय ( स्था २ २३३ ) । अमय -- १ चन्द्रमा, चांद ( दे १।१५) । २ असुर, दैत्य । अमयणिग्गम -- चन्द्रमा ( दे १।१५ ) । अमाघाय -- अमारि-'अमाघातो रूढिशब्दत्वात् अमारिरित्यर्थ.' ( उपाटी पृ ९१ ) । अमिय -- प्राप्त-अमिया गावीतो, जुज्झं संपलग्गं' ( निचू ३ पृ १९७ ) । अमिल -- १ मेष, भेड़ ( ओनि ३६८ ) । २ भांड-विशेष ( अंवि पृ ७२ ) । अमिला – १ भेड़ की ऊन से बना वस्त्र ( आचूला ५।१४ ) । २ देश-विशेष में सूक्ष्म रोओं से निर्मित वस्त्र ( निचू २ पृ ३९९ ) । अमुदग्ग -- अतीन्द्रिय मिथ्याज्ञान-विशेष, जीव पुद्गलों से बना हुआ नहीं है -ऐसा ज्ञान ( स्था ७।२ ) । अमुय -- अस्मृत, अज्ञात ( भ १।४२९ )। अमोग्गतिया -- सम्मुख जाना, त्वरित गति से जाना— 'तस्सागमणवेलाए सव्वो परियणो पच्चोवणीए णिग्गतो अमोग्गतिया एति' ( निचू ३ पृ ४११ ) । अमोसली -- अप्रमादयुक्त प्रतिलेखना का एक प्रकार ( स्था ६।४६ )। अम्मका -- मां ( आवदी प ८० ) । अम्मगा - मां ( भ ६।१४८ ) । अम्मणअंचिअ -- अनुगमन, पीछे-पीछे जाना ( दे १।४९ ) । अम्मया -- माता, अम्बा ( ज्ञा १।९।४ ) । अम्मा -- मां ( अंत ५।१६; दे १।५ ) । अम्माइआ -- अनुगमन करने वाली, पीछे-पीछे जाने वाली ( दे १।२२ ) । अम्मिय -- प्राप्त ( बूटी पृ ७७९ ) । अम्मो -- १ माता का सम्बोधन (ज्ञा १।१४।२६) । २ आश्चर्यसूचक अव्यय ( प्रा २।२०८ ) । अम्मोगइया -- सम्मुख-गमन, स्वागत करने के लिए सामने जाना-'राया सयमेव अम्मोगइयाए निग्गओ' ( उसुटी प २३ ) । अम्मोगतिया -- सम्मुख-गमन ( आवचू १ पृ ३९५ ) । अय -- १ विस्मृत । २ आदरणीय । ३ परित्यक्त ( दे १।४९ ) । अयक्क - दानव ( दे १।६ ) । अयग -- दानव ( दे १।६ ) । अयड -- कुंआ, कूप ( दे १।१८ ) । अयतंचिअ -- हृष्ट-पुष्ट, मांसल ( दे १।४७ )। अयसा -- सुरा-विशेष ( अंवि पृ १८१ ) । अयालि -- मेघाच्छन्न दिवस, आकाश में बादलों के छा जाने से होने वाला अन्धकार, दुर्दिन ( दे १।१३ ) । अयोइल्ल -- कारावास-'डंडं पुरस्कृत्य राया अयोइल्लए ठवेति' ( दश्रुचू प ३९ ) । अरइय -- १ अर्श, मसा ( आचूला १३।२८ ) । २ अजीर्ण ( नि ३।३४ ) । अरंजरग -- जलघट ( सूचू १ पृ ११७ )। अरक -- कृमि विशेष ( अंवि पृ ६९ ) । अरतीअ -- मसा, अर्श ( आचू पृ ३७२ ) । अरबाग -- १ एक अनार्य देश, अरब देश ( प्रसा ८३ ) । २ अरब देश के वासी ( कु पृ ४० ) । अरल -- १ कीट विशेष, चीरी । २ मच्छर ( दे १।५२ ) । अरलाया -- चीरी, चार इन्द्रिय वाला छोटा प्राणी जो रात को लयबद्ध ध्वनि करता है, पर दृष्टिगोचर नहीं होता ( दे १।२६ ) । अरलूसा -- अडूसा का वृक्ष ( अंवि पृ ७० ) । अरविंदर -- दीर्घ ( दे १।४५ ) । अरहट्ठ -- रहट ( ओटी प १९ ) । अरिअल्लि -- व्याघ्र ( दे १।२४ ) । अरिज्ज -- अग्र, परिमाण ( आचू पृ ३३६ ) । अरिसिल्ल -- बवासीर रोग वाला ( विपा १।७।७ ) । अरिहइ -- निश्चित अवश्य ( दे १।२२ ) । अरुग -- व्रण, फोडा ( बृभा ६०२८ ) । अरुण -- कमल ( दे १।८ ) । अरुय -- व्रण ( बृभा २२२५ ) । अलंदक -- कटोरा ( अंवि पृ ६५ ) । अलंदिका -- थाली के आकार का पात्र ( अंवि पृ ७२ ) । अलंदिग -- पात्र-विशेष ( आचू पृ ३४५ ) । अलंप -- कुक्कुट ( दे १।१३ ) । अलक्कडअ -- पागल कुत्ता ( बृटी पृ ८२९ ) । अलग्ग -- कलंक, आरोप ( दे १।११ ) । अलमंजुल -- आलसी, सुस्त ( दे १।४६ ) । अलमल -- दुर्दान्त वृषभ, दुष्ट बैल ( दे १।२५ ) । अलमलवसह -- दुर्दान्त वृषभ, दुष्ट बैल-'अलमलवसहो सप्ताक्षरं नामेति गोपाल: ' ( दे १।२५ वृ ) । अलय -- विद्रुम, प्रवाल ( दे १।१६ ) । अलस -- १ मोम । २ कुसुंभ रंग से रंगा हुआ ( दे १।५२ ) । २ मंद-मधुर ध्वनि ( पा ६०२ ) । अलसंदक -- अतसी, धान्य-विशेष ( अंवि पृ २२० ) । अलाहि -- पर्याप्त, परिपूर्ण ( ज्ञा १।१।९१ ) । अलिय -- बिच्छू का डंक, कांटा ( विपा १।६।२३ ) । अलिअल्ली -- १ कस्तूरिका । २ व्याघ्र ( दे १।५६ ) । अलिआ -- सखी ( दे १।१६ ) । अलिआर -- दुग्ध ( दे १।२३ ) । अलिंजरअ -- रंगने का बड़ा पात्र ( पा ६२३ ) । अलिंद -- पात्र-विशेष ( अनुद्वा ३७५ ) । अलिंदिगा – एक प्रकार का जलपात्र ( आवचू २ पृ ७० ) । अलिण -- वृश्चिक, बिच्छू ( दे १।११ ) । अलित्तय -- नौका खेने का बड़ा बांस - अलित्तओ कोट्टिंबियाए फिट्टो महल्लो वंसो' ( आचू पृ ३५७ ) । अलियाण -- अकुशल ( प्र २।१४ ) । अलिसिंद -- धान्य-विशेष-'अलिसिंदा चवलागारा' ( निचू २ पृ १०९ ) । अलीपट्ट -- बिच्छू के डंक की आकृति वाली तीखी खूंटी ( विपा १।१६।२० ) । अलीसअ -- शाक वृक्ष ( दे १।२७ ) । अलेभड -- अस्थिर-'तत्थ नवमो वासारत्तो कओ, सो य अलेभडो जाओ' ( आवहाटी १ पृ १४१ ) । अल्ल -- दिन ( अंवि पृ २४२; दे १।५ ) । अल्लअ -- परिचित ( १।१२ ) । अल्लकम्म -- १ दैनिक व्यवहार की कला । २ सिंचन-कला ( कु पृ २३३ ) । अल्लट्टपलट्ट -- पार्श्व का परिवर्तन ( दे १।४८ )। अल्लट्टपलट्टया -- पार्श्व का परिवर्तन ( दे ११४८ वृ ) । अल्लत्थ -- १ पानी से भीगा हुआ । २ केयूर, बाजूबंद ( दे १।५४ )। अल्लपल्ल -- बिच्छू के डंक की आकृति वाली तीखी खूंटियां ( विपाटी प ७१ ) । अल्लमुत्था -- कंद-विशेष ( प्रसा २३८ ) । अल्लल्ल -- मयूर ( दे १।१३ ) । अल्लविय -- उठाना, भार ढोना-'तेण तस्स सत्थकोत्थलओ अल्लविओ' ( उसुटी प २७ ) । अल्ला -- १ जननी, माता ( दे १।५ ) । २ अवमीलन, आंख बंद करना ( से १३।४३ ) । अल्लिय -- पास में आना ( पंव ९३७ ) । अल्लियअ -- समीप-'गंतू साहूणमल्लियओ' ( पंक ६०० )। अल्लियाव -- १ छीना हुआ ( पंक ४९२ ) । २ प्रवेश ( आवचू १ पृ ४४६ ) । अल्लीण -- आया-'न कोइ कयगो अल्लीणो' ( व्यभा २ टी प ४६ )। अवअक्खिअ -- मुंडाया हुआ मुंह ( दे १।४० ) । अवअच्चिअ -- मांसल ( दे १।४७ वृ ) । अवअच्छ -- १ कौपीन, कक्षावस्त्र ( दे १।२६ ) । २ कांख, बगल ( वृ ) । अवअच्छिअ -- निवापित मुख, मुंडाया हुआ मुंह ( दे १।४० ) । अवअणिअ -- असंघटित, अयुक्त ( दे १।४४ )। अवअण्ण -- उदूखल, उलूखल ( दे १।२६ ) । अवइ -- अनंतकाय वनस्पति-विशेष ( भटी पृ १४८५ ) । अवउज्जिअ -- नीचे झुककर-'अवउज्जिअत्ति अधोऽवनम्य' ( आटी प ३४२ ) । अवएज -- पात्र-विशेष ( ज्ञाटी प ४८ ) । अवएड -- पात्र-विशेष ( ज्ञाटी प ४७ ) । अवएडय -- तापिकाहस्त, तवे का हाथा ( भ ११।१५९ ) । अवओडय -- गले को मरोड़ना ( विपा १।२।१४ ) । अवओडयबंधणय -- वह व्यक्ति जिसके गले और हाथों को मरोड़कर उनको पृष्ठभाग के साथ रस्सी से बांध दिया जाए ( अंत ६।२२ ) । अवंग -- कटाक्ष ( दे १।१५ ) । अवंगुणित्ता -- खोलकर ( भ १५।१४२ ) । अवंगणेत्ता -- खोलकर ( ज्ञा १।१६।६५ ) । अवंगुत -- उद्घाटित ( बृभा ४०७१ ) । अवंगय -- उद्घाटित ( भ २।९४ ) । अवकड्ढित -- पराजित-'अवकड्डिते पराहूते पराजित परम्मुहे' ( अंवि पृ १०८ ) । अवकोरिअ -- विरहित ( दे १।३८ ) । अवकोडक -- गले को मरोड़ना, कृकाटिका-गले के पिछले भाग को नीचे ले जाना ( प्र ३।१२ ) । अवक्करस -- मद्य, मदिरा ( दे १।४६ ) । अवग -- जलीय वनस्पति-विशेष ( सू २।३।४३ ) । अवगद -- विस्तीर्ण, विशाल ( दे १।४६ ) । अवगर -- कूड़ा ( भटी पृ ७३० ) । अवगूढ -- अपराध ( दे १।२० ) । अवचुल्ल -- छोटा चूल्हा ( निचू ३ पृ १०९ )। अवचुल्ली -- छोटा चूल्हा-'चुल्लीए समीवे अवचुल्ली' ( निचू ३ पृ १०९ ) । अवच्छुरण -- क्रोध के वशीभूत होकर अनर्गल बोलना-'किमिह जुत्तं पिअम्मि अवच्छुरणं' ( दे १ । ३९ वृ ) । अवछुरण -- क्रोध के वशीभूत होकर अनर्गल बोलना ( दे १।३९ ) । अवज्झर -- निर्झर-विशेष ( ज्ञाटी प १०६ )। अवज्झस -- १ कटि, कमर । २ कठिन ( दे १।५६ ) । अवठंभ -- ताम्बूल ( दे १।३६ ) । अवड -- १ कूप । २ आराम, बगीचा ( दे १।५३ ) । अवडअ -- १ तृण-पुरुष, घास की बनी हुई पुरुषाकृति ( दे १।२० ) । २ कूप । ३ बगीचा ( दे १।५३ वृ ) । अवडक्किअ -- कूप आदि में गिरकर मरा हुआ, जिसने आत्महत्या की हो वह ( दे १।४७ ) । अवडाहिअ -- १ अभिशप्त । ( दे १।४७ ) । २ उत्कृष्ट । अवडिअ -- खिन्न ( दे १।२१ ) । अवडिच्छि -- अनपेक्षित ( से १०।४१ ) । अवडुअ -- उलूखल, ऊखल ( दे १।२६ ) । अवड्डा -- कृकाटिका ( भटी पृ १२५७ ) । अवण -- १ पानी की तीव्र धारा जो नीचे से ऊपर की ओर निकलती है । २ घर का फल हक ( दे १।५५ ) । अवण्ण -- अवगणना, अवज्ञा ( दे १।१७ ) । अवतंस -- 'पुरुषव्याधि' नामक रोग-विशेष ( बृभा ६३३६ ) । अवतासाविय -- अवश्लिष्ट ( विपा १।१।५५ ) । अवतासित -- बलात् आलिंगित-'बलामोटिकया आलिंगित:' ( बृटी पृ १५१० ) । अवत्त -- उपलिप्त ( बृभा ५८४ ) । अवत्तय -- विसंस्थुल, अव्यवस्थित ( दे १।३४ ) । अवत्थरा -- पाद-प्रहार ( दे १।२२ ) । ऊखल, छाज आदि सामान्य उपकरण ( दे १।३० ) । अवधिका -- उपदेहिका, दीमक ( प्र १।३३ ) । अवपक्क -- तवा ( ज्ञाटी प ४७ ) । अवपुसिअ -- संघटित, संयुक्त ( दे १।३९ ) । अवमद -- भाजन-विशेष ( जंबूटी प १०० ) । अवमिय -- जिसको घाव हो गया हो वह, जख्मी ( बृ ३ ) । अवयक्का -- कड़ाही ( भ ११।१५९ ) । अवयक्खिअ -- मुंडित मुख ( दे १।४० ) । अवयग्ग -- अंत, अवसान-'अवयग्गं ति देशीवचनोऽन्तवाचकः' (भटी प ३५ ) । अवयच्छिय -- १ प्रपारित ( ज्ञाटी प १४४ ) । २ मुण्डित मुख ( दे १।४० ) । अवयड्डिय -- युद्ध-क्षेत्र में अपहृत ( दे १।४६ )। अवयत्थिय -- प्रसारित-'अवयत्थिय-महल्ल-विगय-बीभच्छरत्ततालुयं' ( ज्ञा १।८।७२ ) । अवयरिअ -- विरह, वियोग ( दे १।३६ ) । अवयाण -- आकर्षण-रज्जु, खींचने की डोरी ( दे १।२४ ) । अवयार -- माघ-पूर्णिमा का एक उत्सव-विशेष, जिसमें इक्षु-खंड से दतवन करना आदि क्रियाएं की जाती हैं ( दे १।३२ ) । अवयास -- आलिंगन ( पिनि ५८१ ) । अवयासण -- आलिंगन ( कु पृ १७३ ) । अवयासाविअ -- आलिंगित ( विपाटी प ६७ ) । अवयासिअ -- आलिंगित ( बृभा ५७१० ) । अवयासिणी -- नासा-'रज्जु, नाक में डाली जाती डोर ( दे १।४६ ) । अवयि -- रोग-विशेष ( अंवि पृ २०३ ) । अवरज्ज -- १ गत दिवस । २ आगामी दिवस । ३ प्रभात ( दे १।५६ ) । अवरत्तअ -- पश्चात्ताप ( दे १।४५ ) । अवरत्तेअ -- पश्चात्ताप, अनुताप (दे ११४५ वृ) । अवरद्धिग -- १ लूतास्फोट, मकड़ी के काटने से होने वाला फोड़ा । २ सर्पदंश ( पिनि १४ ) । अवराह -- कटि, कमर ( दे १।२८ ) । अवरिक्क -- अवकाश-रहित, व्यस्त ( दे १।२० ) । अवरिज्ज -- अद्वितीय ( दे १।३६ ) । अवरिद्धि -- १ मकड़ी के काटने से होने वाला फोड़ा । २ सर्पदंश ( पिटी प १६३ ) । अवरिहड्डपुसण -- १ अकीर्ति । २ असत्य । ३ दान ( दे १।६० ) । अवरुडण -- परिरंभण, आलिंगन ( पा ४६२ ) । अवरु डिअ -- आलिंगन ( आवहाटी १ पृ १८३; दे १।११ ) । अवरेय -- रिक्तता ( उशाटी प ३०५ ) । अवरोह -- कटि, कमर ( दे १।२८ ) । अवलय -- घर, मकान ( दे १।२३ ) । अवलंब -- १ बाहर के दरवाजे का प्रकोष्ठ (ओलिंद ? ) । २ दीमक का ढूह ( ओलिंभा दे १।१५३ ? ) । ( स्था २।३९१ ) । अवलिच्छिअ -- अप्राप्त-'अवलिच्छिअसेससाअरो मअरहरो' ( से ९।७८ ) । अवलिय -- असत्य ( दे १।२२ ) । अवलुआ -- कोप ( दे १।३६ ) । अवल्ल -- बैल ( आवचू २ पृ १५३ ) । अवल्लक -- नौका खेने का उपकरण-विशेष ( सूचू १ पृ ३९ ) । अवल्लय -- नौका खेने का उपकरण-विशेष ( आचूला ३।१९ ) । अवल्लाव -- असत्य कथन, अपलाप ( दे १।३८ वृ ) । अवल्लावअ -- अपलाप, असत्य कथन ( दे १।३८ ) । अवव -- संख्या-विशेष-'चतुरशीतिरववाङ्गा शतसहस्राणि एकमववम्' ( जीवटी प ३४५ ) । अववंग -- संख्या-विशेष ( भ ५।१८ ) । अवसंतुइय -- बाहर निकालकर ( दअचू पृ ११५ ) । अवसमिआ -- गूंदा हुआ बासी आटा ( दे १।३७ ) । अवसह -- १ उत्सव । २ नियम ( दे १।५८ ) अवसावण -- १ काञ्जिका-'अवसावणं लाडाणं कंजियं भण्णई' ( बृटी पृ ८७१ ) । २ भात वगैरह का पानी । अवह -- शरीर का अवयव ( अंवि पृ ६६ ) । अवहट्ट -- अभिमानी, अहंकारी ( दे १।२३ ) । अवहड -- मुसल ( दे १।२३ ) । अवहण्ण -- उलूखल ( दे १।२६ वृ ) । अवहत्थरा -- पाद-प्रहार ( दे १।२२ वृ ) । अवहन्न -- ऊखल ( बृभा २६३३ ) । अवहाअ -- विरह ( दे १।३६ ) । अवहित्था -- मन की अस्त-व्यस्तता, अकुलाहट ( से ११।९ टी ) । अवहेअ -- दया-पात्र, अनुकंपा का पात्र ( दे १।२२ ) । अवहेडग -- आधासीसी रोग ( उशाटी प १४३)। अवहेडय -- आधासीसी रोग, आधे शिर का रोग ( उनि १५० ) । अवहेडिय -- नीचे की तरफ मुड़ा हुआ, झुका हुआ-'अवहेडिय पिट्ठसउत्तमंगे' ( उ १२।२९ ) । अवहेरी -- तिरस्कार, अवहेलना ( उसुटी प १६२ ) । अवहोडय -- बन्धन का एक प्रकार, हाथ और सिर को पीठ से बांधना-'अवहोडएण जक्खस्सेव पुरओ बंधेऊण' ( उसुटी प ३५ ) । अवार -- बाजार, दुकान ( निचू २ पृ १६०; दे १।१२ ) । अवारी -- दुकान, बाजार ( दे १।१२ ) । अवालुआ -- होठ का प्रान्त भाग ( दे १।२८ )-'अवलुआ फुडं फुडइ' (वृ) । अविअ -- कहा हुआ ( दे १।१० ) । अविच्छिय -- प्रसारित ( ज्ञाटी प १४४ ) । अविणयवइ -- जार पुरुष ( दे १।१८ वृ ) । अविणयवर -- जार पुरुष ( दे १।१८ ) । अवियत्त -- अप्रीति ( व्यभा २ टी प ३४ ) । अवियाउरी -- १ प्रसव करने पर जिसकी संतान तत्काल मर जाती हो, वह स्त्री (ज्ञा १।२।८ ) । २ वन्ध्या ( आवचू १ पृ २९४ ) । अविरल्ल -- अविस्तारित, एकत्रित ( व्यभा ४।४ टी प १० ) । अविरल्लण -- अविस्तारित, एकत्रित ( व्यभा ५ टी प १० ) । अविराय -- अविध्वस्त ( जी ३।११८ ) । अविरिक्क -- अविभक्त ( व्यमा ९ टी प ९ ) । अविल -- १ पशु । २ कठिन ( दे १।५२ ) । अविला -- गड्डरिका ( पिटी प २० ) । अविहाड -- १ बालक, बच्चा-'देशीभाषया बालकः' ( बृटी पृ ६०८ ) । २ अप्रकट ( व्यभा ७ टी प ५ ) । अविहाविअ -- १ दीन । २ मौन ( दे १।५९ ) । अवेलि -- खाद्य पदार्थ-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । अवेसि -- द्वार-फलक ( दे १।८ ) । अवेसिण -- चौखट, द्वार-फलिह ( पा ७९१ ) । अवोगिल्ल -- अवाचाल-'महाराष्ट्रकमवोगिल्लमवाचालं' ( व्यभा ७ टी प २५ ) । अवोच्चत्थ -- अविपरीत ( निचू २ पृ १२९ ) । अवोवच्छ -- अविपर्यस्त ( व्यमा ८ टी प ६ ) । अव्वंग -- अक्षत ( व्यभा ६ टी प ६६ ) । अव्वा -- जननी, माता ( दे १।५ ) । अव्वो -- सम्बोधन-सूचक अव्यय ( उसुटी प २१ ) । अव्वोकड्ढ -- खींचा हुआ-'उक्कड्ढमोकड्ढे त्ति वा पुणो' ( अंवि पृ ८६ ) । अव्वोगड -- १ अविभक्त-'अव्वोगडमविभत्तं ' ( बृभा ४७६६ ) । २ अविकृत-'अव्वोगडं अविगड' ( व्यभा ७ टी प ९१) । असंखड -- वाचिक कलह ( निचू १ पृ ४६ ) । असंखडिय -- कलह करने वाला ( ओभा २२६ ) । असंखडी -- कलह ( प्रसाटी प २२८ ) । असंगय -- वस्त्र ( दे १।३४ ) । असंगिय -- १ अश्व । २ अनवस्थित, चंचल ( दे १।५५ ) । असंथड -- असमर्थ (आचूला ४।३२ ) । असंथडिय -- अतृप्त ( बृचू प २०८ ) । असंथडी -- अतृप्त ( बृभा ५८१७) । असंथर -- १ दुर्भिक्ष-'असंथरं दुब्भिक्खं' । २ असमर्थ ( निचू १ पृ ११९ ) । ३ अप्राप्ति । ४ अतृप्ति ( व्यभा ४ टी प ८ ) असंथरंत -- १ तृप्त न होता हुआ ( ओनि १८३ ) । २ समर्थ न होता हुआ ( ओनि २१० ) । असंथरण -- १ निर्वाह का अभाव ( आचू पृ ३३७ ) । २ असमर्थता ( निचू १ ) । ३ पर्याप्त लाभ का अभाव ( पंव ३ ) । असंथरमाण -- १ तृप्त न होता हुआ ( नि १०।३२ ) । २ समर्थ न होता हुआ । ३ खोज न करता हुआ ( व्यभा ४ टी प ७१ ) । असंफर -- नग्न पैर ( बृभा ३८६५ ) । असंफुर -- ऐसा रोगी जिसकी शक्ति क्षीण होने के कारण पैर सकुचा जाते हैं और जो ठीक से सो नहीं पाता ( बृभा ३९०७ ) । असण -- वृक्ष-विशेष, एकास्थिक वृक्ष ( भ ८।२१९ ) । असधीण -- प्रवास में गए हुए ( निचू २ पृ १४२ ) । असरमाण -- अनिर्वाह ( निचू १ पृ ४१ ) । असराल -- प्रचुर-'असराललोहपडिबद्धो' ( कु पृ ३७ ) । असरासअ -- कठोर हृदय वाला, निष्ठुर ( दे १।४० ) । असवत्तअ -- तृणविशेष-'दब्भो कुंभीचक्को वा गोल्लविसए असवत्तओ भण्णति' ( आचू पृ ३५७ ) । असहीण -- परदेश-गमन ( निचू २ पृ १६१ ) । असाढय -- तृण-विशेष ( प्रज्ञा १।४२ ) । असारा -- कदली वृक्ष, केले का वृक्ष ( दे १।१२ ) । असारिय -- निर्जन स्थान ( बृटी पृ १३७१ ) । असिअय -- दात्र, दांती ( भ १४।८५ ) । असिय -- दात्र, दांती-'असिएहि लुणंति' ( ज्ञा १।७।१५; दे १।१४ ) । असियग -- शस्त्र-विशेष, दांती-'सत्यं वा असियगमादी' ( सूचू २ पृ ३४१ ) । असिया -- मसा का रोग ( आचू पृ ३७२ ) । असीमालिका -- कंठ का आभूषण ( अंवि पृ १६२ ) । अह -- दुःख ( दे १।६ ) । अहट्ट -- आडम्बर, उपाधि ( आवचू १ पृ ४४६ ) । अहर -- असमर्थ ( दे १।१७ ) । अहवण -- १ अथवा-'अहवण' त्ति अखण्डमव्ययं अथवार्थे वर्त्तते' ( बृटी पृ ३०३ ) । २ वाक्यालंकार में प्रयुक्त होने वाला अव्यय । अहव्वा -- असती, कुलटा ( दे १।१८ ) । अहासंथड -- निष्कम्प, निश्चल-'अहासंथडं नाम णिप्पकंपं' ( निचू २ पृ १७० ) । अहिअल -- कोप, क्रोध ( दे १।३६ ) । अहिआर -- लोकयात्रा, लोक व्यवहार, जीवन-यात्रा ( दे १।२९ ) । अहिक्खण -- १ उपालंभ ( दे १।३५ ) । २ बार-बार-'अभीक्ष्णमित्यन्ये' ( वृ ) । अहिगर -- अजगर ( जीव १ ) । अहिगरणसाला -- लोहकारशाला ( भटी पृ १२८२ ) । अहिगरणिखोडि -- अहरन को रखने का काष्ठ-विशेष ( भटी पृ १२८२ ) । अहिंगरी -- अजगरी ( जीव २ ) । अहिड्डुय -- पीड़ित ( पा ५४९ ) । अहिणुका -- सांप की एक जाति ( अंवि पृ २२६ ) । अहिणूका -- सर्पिणी ( अंवि पृ ६९ ) । अहिपच्चुइअ -- १ अनुगमन, पीछे-पीछे चलना ( दे १।४९ ) । २ आयात, आगत । अहिमर -- १ वधक ( निचू ३ पृ ३७ ) । २ आघात करने वाले चोर, अश्व आदि को चुराने वाले चोर-'अहिमरा णाम दद्दचोरा, अस्सहरण वा मारणं वा काउकामा' ( निचू १ पृ ५३ ) । अहिमार -- पुष्प-फल वाला वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ २३२ ) । अहिमारु -- वृक्ष-विशेष-'एगं अहिमारुदारुयं' ( उशाटी प १४३ ) । अहिरिक्क -- उत्त्रास, भय ( व्यभा ३ टी प ९२) । अहिरीअ -- निस्तेज, फीका ( दे १।२७ ) । अहिरेमइअ -- पूर्ण, भरा हुआ ( पा १४२ ) । अहिलाण -- मुख का बन्धन-विशेष ( भटी पृ ८८२ ) । अहिलिअ -- १ अभिभव, पराभव । २ कोप ( दे १।५७ ) । अहिलूका -- चतुरिन्द्रिय जंतु-विशेष ( अंवि पृ २३७ ) । अहिलोडिका -- जीव-विशेष, गोपालिका ( बुटी पृ १५४८ ) । अहिलोढी -- सरटी, मादा गिरगिट-'अहिलोढी सरडी वि भण्णति' ( दश्रुचू प ६८ ) । अहिल्ल -- ईश्वर, धनवान् ( दे १।१० ) । अहिवण्ण -- पीले और लाल रंग वाला ( दे १।३३ ) । अहिविण्णा -- उपपत्नी ( दे १।२५ ) । अहिसंधि -- बार-बार, पुन: पुन: ( दे १।३२) । अहिसाय -- परिपूर्ण ( दे १।२० ) । अहिसिअ -- १ अनिष्ट ग्रहों की आशंका से खेद करना, रोना ( दे १।३० ) । २ अनिष्ट ग्रह से भयभीत । अहिहर -- १ देवकुल, पुराना मन्दिर । २ वल्मीक ( दे १।५७ ) । अहिहाण -- प्रशंसा, स्तुति ( दे १।२१ ) । अहोरण -- उत्तरीय वस्त्र ( दे १।२५ ) । आ आअ -- १ अध्ययन, परिच्छेद- 'अज्झयणं अज्झीणं आओ झवणा य एगट्टा' ( निचू १ पृ ५ ) । २ बहुत । ३ दीर्घ । ४ कठिन । ५ लोहा । ६ मुसल ( दे १।७३ )। आअड्डिअ -- दूसरे की प्रेरणा से चलित ( दे १।६८ ) । आअड्ढि -- आकृष्ट ( से १।१९ ) । आअर -- १ उदूखल । २ कूर्च, दाढी ( दे १।७४ ) । आअल्ल -- १ रोग । २ चंचल ( दे १।७५ )। आअल्लि -- लताओं से सघन प्रदेश ( दे १।६१ ) । आअल्ली -- लताओं से सघन प्रदेश ( दे १।६१ ) । आइं -- वाक्य की शोभा के लिए प्रयुक्त अव्यय-'आइं ति देशभाषायाम्' ( ज्ञाटी प १९५ ) । आइंखणा -- कर्णपिशाची देवी ( प्रसा ११३ ) । आइंखणिया -- १ कर्णपिशाचिका देवी । २ डोंबी, चांडाली-'आईखणिय त्ति ईक्षणिका दैवज्ञा आख्यात्री लोकसिद्धा डोंबी' ( पंवटी प २३२ ) । आइंखिणिया -- १ डोमिनी, चंडालिनी ( बृभा १३१२) । २ कर्ण-पिशाचिका देवी ( निभा ४२९० ) । आइण्ण -- १ कुलीन घोड़ा ( प्र ४।७ ) । २ पिरोना-'मोत्तियं आइण्णंतो आगासे उक्खिवित्ता' ( आवहाटी १ पृ २८५ ) । आइद्ध -- प्रेरित ( से ६।७ )। आइप्पण -- १ चूर्ण, आटा । २ उत्सव में गृह-शोभा के लिए चूना आदि की पुताई ( दे १।७८ ) । ३ उत्सव के प्रसंग पर गृह, गृहद्वार को सजाने के लिए गीले चावल के आटे से विभिन्न आकृतियों का निर्माण करना ( वृ ) । आइसण -- उज्झित, व्यक्त ( दे १।७१ ) । आउ -- १ नक्षत्र देव-विशेष ( स्था २।३२४ ) । २ जल ( सू २।१।२७ ; दे १।६१) । आउंबालिय -- आप्लावित (पा १३६) । आउट्ट -- १ आदर, सम्मान-'किं मम एद्दहेण आउट्टेण' ( उशाटी प १४६ ) । २ प्रणत ( व्यभा ६ टी प १८ ) । ३ करना-'करणार्ये आउट्ट शब्दः' ( दश्रुचूप ६८ ) । आउट्टण -- निवेदन (बृभा २९३) । आउट्टणा -- आराधना, प्रसन्न करना ( निचू २ पृ १०९ ) । आउट्टि -- असंयम ( व्यभा १ टी प २४ ) । आउट्टित -- आराधित-'आउट्टिता इट्ठदाणं देहिति' ( निचू २ पृ १०६ ) । आउट्टिया -- जानबूझकर-'आउट्टिया णाम आभोगो-जानान इत्यर्थः' ( निचू ३ पृ ३१७ ) । आउडिज्जमाण -- १ आसंबध्यमान । २ परस्पर आहन्यमान ( भटी प २१६ ) । ३ पीटे जाते हुए ( सू २।२।४० ) । आउर -- संग्राम ( दे १।६५ ) । आउल -- अरण्य ( दे १।६२ ) । आउलि -- वृक्ष-विशेष ( राजटी पृ ८९; दे ५।५ ) । आउस -- १ क्षुरकर्म ( नंदीटि पृ १३८ ) । २ कूर्च, दाढी ( दे १।६५ ) । आऊडिअ -- जुए में की जाने वाली प्रतिज्ञा ( दे १।६८ ) । आऊर -- १ अत्यधिक । २ उष्ण, गरम ( दे १।७६ ) । आऊसिय -- प्रविष्ट, संकुचित ( ज्ञा १।८।७२ ) । आएस -- अतिथि, पाहुना ( व्य ९।१ ) । आओडण -- मजबूत करना, दृढ करना ( से ९।६ ) । आओडिम -- दबाकर या कूटकर बिठाना, जैसे किसी धातु आदि में मूर्ति या अक्षर उकेरना,-'आओडिमं जहा रूवओ बिंबेण बिंबेओ ओवीलिज्जति' ( दअचू पृ ३९ ) । आओस -- सन्ध्या-'आओसे संगारो अमुइ वेलाए निग्गए ठाणं' ( ओभा ९१ ) । आंबिली -- इमली ( व्यभा ९ टी प ८ ) । आकर -- १ भाजन-विशेष-'आकरो नाम गृहस्थ सम्बन्धि सक्तुभृत-स्थाल्यादिभाजनम्' ( आवटि प ९९ ) । २ भीलों की बस्ती । ३ भीलों का कोट्ट, दुर्ग-'आकरो नाम भिल्लपल्ली भिल्लकोट्टं वा ' ( बृटी पृ ११०४ ) । आगत्ति -- कूपतुला-कूप से पानी खींचने का साधन ( दे १।६३ ) । आगर -- १ भीलों की बस्ती । २ भीलों का गांव या दुर्ग ( बृभा ४०३५ ) । आगल -- आगामी काल में होनेवाला-'आगलफलाणि वि मग्गइ त्ति' ( सूचू १ पृ ११८ ) । आगल्ल -- ग्लान-'से कम्मण तेण एस आगल्लो' ( बृभा ५३२१ ) । आघतण -- वध-स्थान ( आवहाटी २ पृ १९९ ) । आघयण -- वध-स्थान-'तत्थ णं महं एवं आघयणं पासंति' ( ज्ञा १।९।२५ ) । आघवण -- कथन ( अंत ३।८९ ) । आघविय -- गुरु के पास ग्रहण करना-'आघवियं ति प्राकृतशैल्या छांदसत्वाच्च गुरोः सकाशादागृहीतम्' । ( अनुद्वाहाटी पृ १५ ) । आचमणिका -- भाण्ड-विशेष ( अंवि पृ २५५ ) आडंबर -- पाणजातीय लोगों का यक्ष-विशेष ( व्यमा ७ टी प ५५ ) । आडा -- पक्षिणी-विशेष ( अंवि पृ ६९ ) । आडाडा -- बलात्कार ( दे १।६४ ) । आडुआलि -- मिश्रण ( दे १।६९ ) । आडुआलित -- मिश्रित ( आवहाटी १ पृ २२८ )। आडुताल -- मिश्रित करना, ठंडा करने के लिए हिलाना ( दअचू पृ २८; दे १।६९ ) । आडोलिया -- १ खिलौना-विशेष ( ज्ञा १।१८।८ ) । २ रुद्ध, रोका हुआ (?) ( टी प २४४ ) । आडोविअ -- कुपित ( दे १।७० ) । आढत्त -- १ आरब्ध ( उशाटी प २२३ ) । २ आक्रान्त । आढिअ -- १ अभीष्ट । २ माननीय । ३ अप्रमत्त । ४ गाढ, सघन ( दे १।७४ ) । आणंदवड -- आनन्दपट-प्रथम बार रजस्वला वधू के रक्त से रंजित वस्त्र। विवाह की सुहागरात्रि में पति अपनी नवोढा पत्नी के कुंवारेपन का अपहरण करता है । उस समय योनिद्वार से रुधिर निकलता है । उस रुधिर से रंगा हुआ वस्त्र अन्यान्य बंधुजनों को आनंदित करता है, इसलिए इस पट का नाम 'आणंदवड' है ( दे १।७२ ) । देखें-वहुपोत्ति । आणक्खिऊण -- परीक्षा करके ( आवहाटी १ पृ १९४ ) । आणाइ -- शकुनिका पक्षी, चील ( दे १।६४ ) । आणामा -- १ एक प्रकार की प्रव्रज्या । २ वैनयिकवादियों का एक भेद ( सूचू १ पृ २०७ ) । आणावचरणिग -- जलचर प्राणी-विशेष ( अंवि पृ २२७ ) । आणिअ -- १ अभीष्ट । २ माननीय । ३ अप्रमत्त । ४ गाढ, सघन ( दे १।७४ ) । आणिक्क -- १ तिर्यक् मैथुन ( दे १ । ६१ ) । २ तिरछा-'आणिक्क तिर्यगर्थे देशी' ( से ९।८६ टी ) । आणिमल -- हाथी का मल-'दिट्ठोऽणलगिरिस्स ( गंधहत्थिनो ) आणिमलो' ( निचू ३ पृ १४५ ) । आणुअ -- १ मुख । २ आकृति ( दे १।६२ ) । आणूव -- श्वपच, डोम ( दे १।६४ ) । आतिण्ण -- पूजित-'आतिण्णं ति वा पूजितं ति वा एगट्ठा' ( दजिचू पृ २०४ ) । आदंचण -- शुद्धि के साधन - गोमूत्र, गोबर, खारी मिट्टी आदि ( व्यभा ३ टी प १३) । आदण्ण -- आकुल ( दअचू पृ २५ ) । आदिल्ल -- आदि, प्रथम ( पंक १२१ ) । आदुयाल -- मथित, विलोडित ( आवचू १ पृ १२३ ) । आद्दहण -- श्मशान-'तत्त्वविगतं शरीरं आद्दहणं परेहि णिज्जू' ( सूचू २ पृ ३१६ ) । आधारिका -- तापसों का चर्ममय 'थोकनउ' जो कांख में धारण किया जाता है ( नंदीटि पृ १०१ ) । आपुरायण -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । आफकी -- वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । आफर -- द्यूत, जुआ ( दे १।६३ ) । आभट्ठ -- विज्ञप्त, संभाषित ( उशाटी प १७३ ) । आभोग -- उपकरण-'एगाभोग पडिग्गह केई सव्वाणि न य पुरओ', आभोगः उपकरणम्' ( ओनि ३६, टी प ३३ ) । आभोगिणी -- मानसिक निर्णय कराने वाली विद्या विशेष ( बृभा ४६३३ ) । आमंड -- आंवला ( आवहाटी १ पृ २९१ ) । आमंडण -- भाण्ड, पात्र ( दे १।६८ ) आमंथिय (ओमंथिय ? ) -- ओंधा किया हुआ ( कु पृ २७ ) । आमडाग -- १ कच्चे पत्ते । २ अर्द्धपक्व या अपक्व अरणिक-तंदुलक ( आटी प ३४८ ) । आमलक -- बहुबीजक वनस्पति-विशेष-'नवरमिहामलकादयो न लोक-प्रसिद्धाः प्रतिपत्तव्याः, तेषामेकास्थिकत्वात्, किन्तु देशविशेष-प्रसिद्धा बहुबीजका एव केचन' ( प्रज्ञाटी प ३१ ) । आमलय -- १ नूपुर रखने की पेटी । २ सज्जागृह ( दे १।६७) । आमलिता -- पूपिका ( ? ) ( आचू पृ ३४२ ) । आमली -- छोटे आंवलों का वृक्ष ( अंवि पृ ७० ) । आमिल -- समस्त प्रकार के रोम, केश-'आमिलं सव्वरोमजाति' ( दनि १५८, अचू पृ १४१ ) । आमेल -- केशों का एक प्रकार का जूडा, बालों को बांधने की एक पद्धति ( दे १।६२ ) । आमेलअ -- आमोडक, बालों को बांधने का पुष्प-निर्मित बंध-विशेष ( उशाटी प १४३ ) । आमेलिअ -- आपीड, पुष्पमाला ( से ९।२१ ) । आमोअ -- हर्ष ( दे १।६४ ) । आमोड -- केशों का एक प्रकार का जूडा, बालों को बांधने की एक पद्धति ( दे १।६२ ) । आमोरअ -- विशेषज्ञ, दक्ष ( दे १।६६ ) । आमोसल -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । आय -- १ कुहन वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।४७ ) । २ वनस्पति-विशेष से बना वस्त्र-'आयं णाम तोसलिविसए सीयतलाए अयाणं खुरेसु सेवालतरिया लग्गंति, तत्थ वत्था कीरंति ' ( निचू २ पृ ३९९ ) । ३ देश-विशेष की अजा-बकरी के सूक्ष्म रोम से निर्मित वस्त्र ( आटी प ३९३ ) । आयंचण -- गोमूत्र, गोबर, मेंगनी तथा खारी मिट्टी आदि ( निचू ४ पृ ३५८ ) । आयंचणिया -- कुंभकार का वह पात्र, जिसमें वह घड़ा आदि बनाते समय मिट्टी का पानी रखता है ( भटी पृ १२५७ ) । आयंस -- बैल आदि के गले का आभूषण-'आदर्शस्तु वृषभादिग्रीवाभरणं' ( अनुद्वामटी प ४३ ) । आयड्ढि -- विस्तार ( दे १।६४ ) । आयल्ल -- रोग ( पा ८२ ) । आयल्लय -- बेचैन करने वाला, दर्दनाक-'आयल्लयवुत्तंतो जइ वि तए साहिओ' ( कुपृ १८१ ) । आयाबल --- बाल-आतप, प्रातःकालीन सूर्य का आतप ( दे १।७० ) । आयाम -- १ बल । २ दीर्घ ( दे १।६४ ) । आयावल -- सुबह की धूप ( दे १।७० ) । आयावलय -- सुबह की धूप ( पा ६०९ ) । आयासतल -- प्रासाद का पिछला भाग ( दे १।७२ ) । आयासलव -- पक्षिगृह, नीड ( दे १।७२ ) । आयुस -- क्षुरकर्म, हजामत-'ण्हाविता पुच्छिता–केण आउसं कारितं ?' ( नंदीटि पृ १३९ ) । आयोइल्लाग -- कैदी ( दश्रुचू प ३९ ) । आरंदर -- १ जनसंकुल । २ संकीर्ण ( दे १।७८ ) । आरंभिअ -- मालाकार, माली ( दे १।७१ )। आरकुड -- धातु-विशेष, पीतल ( अंवि पृ १६२ ) । आरडिअ -- १ विलाप, ऋन्दन । २ सचित्र ( दे १।७५ वृ ) । आरण -- अधर, होठ ( दे १।७६ ) । आरणाल -- १ कमल ( दे १।६७ ) । २ कांजी ( वृ ) । आरद्ध -- १ प्रवृद्ध । २ उत्सुक । ३ घर में आया हुआ ( दे १।७५ ) । आरनाल -- १ कांजी-'कंजियं देसीभासाए आरनालं भण्णति' ( निचू १ पृ ७४ ) । २ कमल ( दे १।६७ ) । आरबी -- देश-विशेष की दासी, अरब देश की दासी ( ज्ञा १।१।८२ ) । आराइअ -- १ स्वीकृत । २ प्राप्त ( दे १।७०) । आराडि -- क्रन्दन ( आवचू २ पृ १६५ ) । आराडी -- १ विलाप । २ चित्रों से मंडित ( दे १।७५ ) । आरिग -- आरी, शस्त्र-विशेष ( पंक २०२४ ) । आरिल्ल -- तत्काल उत्पन्न ( दे १।६३ ) । आरेइअ -- १ मुकुलित । २ मुक्त । ३ भ्रान्त । ४ रोमाञ्चित, पुलकित ( दे १।७७ ) । आरोग्गिअ -- भक्षित, खाया हुआ ( दे १।६९ ) । आरोट्ट -- १ 'अरोडा' जाति-विशेष । २ छात्रजाति का संबोधन ( कु पृ १५१ ) । आरोस -- म्लेच्छ जाति-विशेष ( प्र १।२० ) । आरोह -- स्तन ( दे १।६३ ) । आल -- १ व्यर्थ, निरर्थक-'मए आलो अब्भुवगओ, किं सक्का इयाणिं निव्वहिउं ?' ( बृटी पृ ५६ ) । २ कंलक, दोषारोपण ( प्रसाटी प १४५ ) । ३ छोटा प्रवाह । ४ कोमल, मृदु ( दे १।७३ ) । आलइअ -- पहना हुआ, आविद्ध-'आलइअमालमउडो' ( आवहाटी १ पृ १२३ ) । देखें - लइअ । आलंकिअ -- लंगड़ा किया हुआ ( दे १।६८ )। आलंब -- भूमिछत्र, वनस्पति-विशेष जो वर्षा में उत्पन्न होती है ( दे १।६४ ) । आलक -- चतुरिन्द्रिय जंतु-विशेष ( अंवि पृ २३७ ) । आलजाल -- ऊलजलूल, निरर्थक-'आलजालं अणेगविहाइं सदेसकहं तेसि दूरं' ( निचू ३ पृ ३५५ ) । आलत्थ -- मयूर ( दे १।६५ ) । आलप्पाल -- १ आल-जंजाल-'एयं आलप्पालं अव्वो दूरं विसंवयइ ' ( उसुटी प २१ ) । २ दुराचार, कलंक-'आलप्पालं आढत्तं' ( कु पृ ४७ ) । आलयण -- शय्यागृह ( दे १।६६ ) । आलास -- वृश्चिक, बिच्छू ( दे १।६१ ) । आलि -- वनस्पति विशेष ( जंबूटी प ४५ ) । आलिंगिणी -- १ जानु, कूर्पर आदि के नीचे रखने का तकिया ( बृभा ३८२४ ) । २ रूई का बड़ा बिछौना ( व्यभा १० टी प ७१ ) । आलिसंद -- धान्य-विशेष ( प्रज्ञा १।४५।१ ) । आलिसंदग -- धान्य-विशेष, चवला ( भ ६।१३० ) । आलीघरय -- वनस्पति-विशेष ( ज्ञा १२।२० ) । आलील -- निकट भविष्य में होने वाला भय ( दे १।६५ ) । आलीवण -- प्रदीप्त अग्नि ( दे १।७१ ) । पलेवणुं ( गुज ) । आलु -- आलू, कन्द-विशेष ( भ २३।२ ) । आलुका -- कुण्डिका, छोटा घड़ा ( अनुटी पृ ५ ) । आलुगा -- छोटा घड़ा ( सूचू १ पृ ११७ ) । आलुय -- आलू, कंद-विशेष ( भ २३ ) । आलुया -- कुंडिका ( अंतटी पृ ५ ) । आवंग -- अपामार्ग का वृक्ष ( दे १।६२ ) । आवट्टिआ -- १ नववधू । २ परतन्त्र स्त्री ( दे १।७७ )। आवडिअ -- १ संबद्ध । २ सार ( दे १।७८ ) । आवरेइअ -- कारिका, मद्य परोसने का पात्र ( दे १।७१ ) । आवलिका -- कंठ का आभूषण-'हार-अद्धहार-आवलिका' ( अंवि पृ १६२ ) । आवल्ल -- बलीवर्द, बैल ( उशाटी प १९२ ) । आवल्लक -- १ नौका चलाने का एक साधन । २ वलयबाहा-नौका का लंबा काष्ठ जिस पर ध्वजा बांधी जाती है-'दीर्घकाष्ठलक्षणबाहुषु आवल्ल केष्विति सम्भाव्यते' ( ज्ञाटी प १४३ ) । आवाडा -- चिलात, एक अनार्य जाति- 'आवाडा नाम चिलाता परिवसंति' ( आवचू १ पृ १९४ )। आवाल -- जल के निकट का प्रदेश ( दे १।७० वृ ) । आवालय -- जल के निकट का प्रदेश ( दे १।७० ) । आवाह -- १ वरपक्षसंबंधी भोज ( व्यभा ९ टी प ८ ) । २ नव विवाहित वर-वधू को लाना-आवाह: अभिनवपरणीतस्य वधूवरस्यानयनम्' ( प्रटी प १३९ ) । आवि -- १ प्रसव-पीड़ा । २ नित्य । ३ दृष्ट, देखा हुआ ( दे १।७३ ) । आविंग -- १ इन्द्रगोप, क्षुद्र कीट-विशेष । २ मथित ( दे १।७६ ) ३ पिरोया हुआ ( पा ३५५ ) । आविअज्झा -- १ नववधू । २ पराधीन स्त्री ( दे १।७७ ) । आविद्ध -- प्रेरित ( दे १।६३ ) । आवेल्लक -- नौका चलाने का साधन, डांड ( ज्ञाटी प १४३ ) । आवेल्लय -- यानपात्र चलाने का साधन-'चालियाईं आवेल्लयाइं" ( कु पृ ६७ ) । आसंग -- शयनकक्ष, वासगृह ( दे १।६६ ) । आसंघ -- १ अध्यवसाय, परिणाम ( से १।२५ ) । २ श्रद्धा । ३ आशंसा । आसंघा -- १ इच्छा ( दे १।६३ ) । २ आस्था ( वृ ) । ३ आसक्ति । आसंघिअ -- १ अध्यवसित । २ अवधारित ( से १०।६६ ) । ३ संभावित । आसक्खअ -- पक्षि-विशेष ( दे १।६७ ) । आसय -- निकट ( दे १।६५ ) । आस'मिंठ' -- अश्व-प्रशिक्षक ( नि ९।२५ ) । आसरिअ -- सम्मुख आया हुआ ( दे १।६९ ) । आसल -- स्वादिष्ट ( जीवटी प ३५१ ) । आसवण -- शयनकक्ष, वासगृह ( दे १।६६ ) । आसातिका -- कृमि-विशेष ( अंवि पृ २२९ ) । आसालिका -- द्वीन्द्रिय जन्तु ( अंवि पृ २३७ ) । आसिअअ -- लोहमय, लोह-निर्मित ( दे १।६७ ) । आसित्तिया -- खाद्य विशेष-'विसाहाहि आसित्तियाओ भोच्चा कज्जं साधेति' ( सूर्य १०।१२० ) । आसिय -- जाना, निकलना - आसियं ति णिग्गच्छति' ( निचू २ पृ २७६ ) । आसियग -- लोह निर्मित शस्त्र विशेष ( सूचू १ पृ ११६ ) । आसियावण -- अपहरण-'तुच्छलोभेण य आसियावणादी भवे दोसा' ( निभा २४५२ ) । आसियावित -- अपहृत ( निचू ३ पृ २१ ) । आसीवअ -- दरजी, वस्त्र सीने वाला ( दे १।६९ ) । आसीसा -- आशीर्वाद ( प्रा ३।१७४ ) । आसूणिय -- श्लाघा, प्रशंसा-'आसूणिकं णाम श्लाघा, येन परैः स्तूयमानः सुज्जति' ( सूचू १ पृ १७८ ) । आसूय -- औपयाचितक, मनौती ( पिनि ४०५ ) । आसेक्क -- नपुंसक-विशेष ( अंवि पृ २२४ ) । आहच्च -- १ आकर, उपस्थित होकर - 'संति संपाइमा पाणा, आहच्च संपयंतिय' ( आ १।१६४ ) । २ कदाचिद् ( प्रज्ञा १७।२ ) । ३ अत्यधिक ( दे १।६२ ) । ४ शीघ्र । ५ व्यवस्था करके । ६ छीनकर । ७ अन्यथा । ८ निष्कारण । आहट्ट -- प्रहेलिका,पहेलियां-'तेसु न विम्हयइ सयं, आहट्ट - कुहेडएहि च' ( बृभा १३०१ ) -'आहट्ट त्ति प्रहेलिका ( प्रसाटी प १८० ) । आहरणा -- खर्राटे, घोरण-'आहरणा-घोरयति घोरणं करोति महता शब्देन ' ( ओटी प ५८ ) । आहाडक -- बिलाशयी प्राणी ( अंवि पृ २२९ ) । आहाडीय -- बार-बार आना-जाना ( आवटि प २४ ) । आहित्थ -- १ आकुल-'आहित्थं उप्पिच्छं च आउलं रोसभरियं च' ( जीवटी प १९४; दे १।७६ ) । २ कुपित । ३ चलित ( दे १।७६ ) । आहिरिक्क -- प्रतीकार ( दश्रुचू प ४३ ) । आहु -- उल्लू ( दे १।६१) । आहुंदुर -- बालक-'आहुंदुरा करि-हरीण' ( दे १।६६ ) । आहुंदुरु -- बालक ( दे १।६६ वृ ) । आहुड -- १ अनुराग की आवाज, सीतकार-'रति में 'सी' 'सी' की ध्वनि । २ बेचने योग्य वस्तु ( दे १।७४ ) । आहुडिअ -- निपातित, गिराया हुआ ( दे ६९ ) । आहेण -- १ विवाह के बाद वधू-प्रवेश के समय किया जाने वाला भोज । २ अन्य घरों से लाई जाने वाली भोजन-सामग्री । ३ जो भोज्य-पदार्थ वधू के घर से वर के घर में ले जाया जाता है, वह । ४ वरपक्ष और वधूपक्ष का पारस्परिक लेन-देन-'जमन्नगिहातो आणिज्जति तं आहेण, जं बहूगिहातो वरगिहं णिज्जति तं आहेणं, अहवा वरवहूण जं आभव्वं परोप्परं णिज्जति तं सव्वं आहेणकं' ( निचू ३ पृ २२२-२३ ) । आहेणक -- देखें-आहेण ( निचू ३ पृ २२३ ) । आहोडिय -- संप्रधूमित, धूप-वासित (आचू पृ ३६३ ) । इ इंखिणि -- कर्ण पिशाचिका देवी-'विज्जाभिमंतिया घंटिया कण्णमूले चालिज्जति, तत्थ देवता काधिति, कहेंतस्स पसिणापसिणं भवति, स एव इंखिणि भण्णति' ( निचू ३ पृ ३८३ ) । इंखिणिया -- १ अवहेलना-'अदु इंखिणिया उ पाविया' (सू १।२।२४) । २ घुघरु, घंटिका-इंखिणियाओ-घंटियाओ' ( आवचू १ पृ १५७ ) । इंखिणी -- १ खिंसणा, निन्दा-'अहsसेयकरी अण्णेसि इंखिणी' ( सू १।२।२३ ) -'इंखिणी णाम खिंसणा निन्दणा हीलणा' ( सूचू १ पृ ५९ ) । २ किंकिणी, छोटी घंटिका ( आवदी प ६० ) । इंगाली -- इक्षुखण्ड ( दे १।७९ )। इंघिय – घ्रात, सूंघा हुआ ( दे १।८० )। इंचक -- मत्स्य-विशेष ( अंवि पृ २२८ ) -'इंचका कुडुकालक सित्थमच्छका••••' इंदगाइ -- वे कीट जो युक्त होकर एक के ऊपर एक चढ़कर घूमते हैं ( दे १।८१ ) । इंदग्गि -- हिम, बर्फ ( दे १।८० ) । इंदग्गिधूम -- हिम, बर्फ ( दे १।८० ) । 'इंदट्ठलअ -- 'इन्द्रमह' उत्सव की संपन्नता पर विधिपूर्वक 'इन्द्रध्वज' को हटाना ( दे १।८२) । इंदड्ढलय -- 'इन्द्रमह' उत्सव की संपन्नता पर विधिपूर्वक 'इन्द्रध्वज' को हटाना ( दे १।८२ ) । इंदमह -- १ कार्तिकेय । २ कुमारावस्था ( दे १।८१ ) । इंदमहकामुय -- कुत्ता ( दे १।८२ ) । इंदिआलि -- भूमीकर्म की विद्या का अभीष्ट शब्द, मंत्र - विशेष का शब्द-'इमा भूमीकम्मस्स विज्जा-इंदिआली इंदिआालि माहिंदे मारुदि स्वाहा' ( अंवि पृ ८ )। इंदिआली -- भूमिकर्म की विद्या का अभीष्ट शब्द, मंत्र-विशेष का शब्द ( अंवि पृ ८ ) । इंदिंदिर -- भ्रमर ( दे १।७९ ) -'कैश्चित् इंदिंदिर शब्दोऽपि देश्य उक्तः' । इंदोवत्त -- इन्द्रगोपक, वर्षाऋतु में होने वाला लाल या सफेद रंग का कीट-विशेष ( दे १।८१ ) । इक --- प्रवेश-'इकमप्पए पवेसणमेयं ' ( विभा ३४८३ ) -'इकशब्दो देशीवचनः क्वापि प्रवेशार्थे वर्तते' ( टी पृ ३४३ ) । इक्कड -- तृण-विशेष-'वणस्सतिभेदो इक्कडा लाडाणं पसिद्धा' ( निचू २ पृ ४८१ ) । इक्कण -- चोर ( दे १।८० ) । इक्कलिया -- अकेली ( उसुटी प १४५ ) । इक्कल्लय -- अकेला ( उसुटी प ११२ ) । इक्कास -- १ रस-विशेष ( अंवि पृ १३४ ) । २ भोज्य ( अंवि पृ १०१ ) । ३ गुग्गुल वृक्ष का गोंद ( अंवि पृ २३२ ) । इक्कुस -- नीलोत्पल ( दे १।७९ ) । इग -- अवयव, प्रदेश-'इगमवि देशीपदं क्वापि प्रदेशार्थे वर्तते' ( आवहाटी १ पृ ३१६ ) । इग्ग -- भयभीत ( दे १।७९ ) । इग्घिअ -- भर्त्सित ( दे १।८० ) । इज्जा -- १ मां । २ देवी । ३ देवपूजा-'इज्जत्ति वज्जा माया मज्जा भणिया देवपूया वा इज्जा' (अनुद्वाचू पृ १३ ) ; 'देशीभाषया इज्येति माता' ( अनुद्वामटी प २६ ) । इट्टग -- खाद्य-विशेष, सेवई ( पिनि ४६१ ) । इट्टगा -- खाद्य-विशेष, सेवई ( जीभा १३९७ ) । इट्टाल -- ईंट ( द ५।६५ ) । इड्डकार -- वर्धकी, बढई ( अंवि पृ १६१ ) । इड्डर -- १ धान्य रखने का कोठा ( अनुद्वा ३७५ ) । २ गाड़ी का एक अवयव ( ओटी पृ ३७४ ) । ३ ढक्कन ( भटी प ३१३ ) । इड्डरक -- बड़ी पेटी-'इड्डरकं महत् पिटकं येन समस्तापि रसवती स्थभ्यते' ( राजटी पृ ३२५ ) । इड्डरग -- ढक्कन-'पईवं इड्डरयं अंतो अंतो ओभासेइ........, नो चेव डड्डरगस्स बाहिं' ( भ ७।१५९ ) । इड्डरय -- ढक्कन-'तं पईवं इड्डरएणं पीहेज्जा' ( भ ७।१५९ ) । इड्डरिका -- १ खाद्यविशेष, इडली-'रात्रिपरिवसनेन सम्पन्न इड्डरिकादिः, यतस्ताः पर्युषित-कलनीकृताः अम्लरसा भवन्ति' ( स्थाटी प २१३ ) । २ एक प्रकार की मिठाई ( प्रसाटी प ५१ ) । इड्डलिगे-'चावल का रवा और उड़द से निष्पन्न खाद्य-विशेष ( कन्नड़ ) । इड्डिर -- गाड़ी का एक अवयव ( ओनि ४७८ )। इड्ढिसिय -- याचक-विशेष ( भटी पृ ८८४ ) । इणं -- यह ( दे १।७९ वृ ) । इण्हिं -- अब ( पिनि ६३४; दे १।७९ वृ ) । इणमो -- यह ( दे १।७९ वृ ) । इतिपिंडि -- भोज्य-विशेष-'सत्तुपिंडि........तप्पणपिंडि त्ति इतिपिंडि त्ति' ( अंवि पृ ७१ ) । इत्ताहे -- इस समय ( व्यभा ४।३ टी प १९ ) । इत्तोप्पं -- इतः प्रभृति, यहां से लेकर ( पा ४४८ ) । इत्थीदोस -- व्यभिचारिणी-'इत्थीदोसो णाम व्यभिचारिणी' ( सूचू १ पृ १०८ )। इदूर -- सूत आदि से बुना हुआ धान्य रखने का साधन-विशेष-'सुम्बादिव्यूत ढञ्चनकादि तदिदूरं' ( अनुद्वामटी प १३९ ) । इद्दंड -- भ्रमर ( दे १।७९ ) । इद्ध -- चित्त-'इद्धं चित्तं भण्णति' ( जीभा २५२६ ) । इब्भ -- वणिक्, व्यापारी ( दे १।७९ ) । इय -- १ इस प्रकार ( बृभा २१५२ ) । २ प्रवेश । इर -- किल-संभावना, निश्चय आदि अर्थों का सूचक अव्यय ( प्रा २।१८६ ) । इरमंदिर -- करभ, ऊंट ( दे १।८१ ) । इरहा -- अथवा-'जइ रायवसेणं अन्नेणं समं वसेज्जा । इरहा बंभचारिणी' ( उसुटी प ३० ) । इराव -- हाथी ( दे १।८० ) । इरिआ -- कुटी, झोंपड़ी ( दे १।८० ) । इरिकाक -- पुष्प-विशेष-'तधा चंपगपुष्कं ति इरिकाकं ति वा पुणो' ( अंवि पृ ६३ ) । इरिण -- १ स्वर्ण ( दे १।७९ ) । २ सुन्दर-'रमणीयेसु इरिणं वा' ( अंवि पृ १३४ ) । इरिमंदिर -- लक्ष्मी-मंदिर-'इरिमंदिरि पत्तहारतो गततो मज्झ कंतो वणिजारतो' ( दअचू पृ २८ ) । इलअ -- छुरिका - 'इलएण छिहलिं छिंदित्ता भणति' ( निचू १ पृ २१ ) । इलिका -- क्षुद्र जंतु, इल्ली ( अंवि पृ २२९ ) । इलिया -- क्षुद्र जन्तु ( बृभा १२० ) । इल्ल -- १ दरिद्र । २ कोमल । ३ प्रतीहार, द्वारपाल । ४ लवित्र । ५ कृष्णवर्ण वाला ( दे १।८२ ) । इल्लि -- १ व्याघ्र । २ सिंह । ३ छाता ( दे १।८३ ) । ४ व्याघ्र-चर्म से बना प्रावरण ( अंवि पृ ७१ ) । इल्लीर -- १ गृहद्वार । २ वृषी, ऋषियों का साधन ( दे १।८३ ) । इसिय -- तृणमय शलाका ( सू २।१।१७ ) । इहरा -- अन्यथा ( उशाटी प १६० ) । ई ईय -- इस प्रकार ( बुभा २१५३ ) । ईस -- कीलक ( दे १।८४ ) । ईसअ -- 'रोझ' नामक मृग की एक जाति ( दे १।८४ ) । ईसर -- कामदेव ( दे १।८४) । ईसिअ -- १ भील के सिर पर बांधा जाने वाला पत्रपुट, पत्तों का वेष्टन । २ वशीकृत ( दे १।८४ ) । ईसिणिया -- देश-विशेष की दासी ( ज्ञा १।१।८२ ) । ईसी -- भूमि-'ईसि पाडेइ त्ति भूम्यां पातयति' ( भटी पृ १२९४ )। उ उअ -- १ देखो-'उअ निच्चल निप्फंदा भिसिणीपत्तंमि रेहइ बलाआ। निम्मल-मरगय-भायण-परिट्ठिआ संखसुत्तिव्व।।' ( प्रा २।२११ ) । २ सरल, ऋजु-'उअउण्णमदेहलिमुल्लंघिअ' ( दे १।८८ वृ ) उअअ -- ऋजु, सरल ( दे १।८८ ) । उअक्किअ -- पुरस्कृत ( दे १।१०७ ) । उअचित्त -- अपगत ( दे १।१०८ ) । उअचिय -- परिकर्मित ( औपटी पृ ३२ ) । उअट्टी -- नीवी, स्त्री का कटिवस्त्र या कटिवस्त्र के दी जाने वाली रस्सी की गांठ, नाडा ( नारा ) ( पा ४९१ ) । उअत्त -- निष्क्रांत, अतिक्रांत-'जाहे जलं वेलाए उअत्तं भवति' ( निचू ३ पृ १४० ) । उअपोत -- आकीर्ण, व्याप्त-'उअपोते देशीपदत्वाद् आकीर्णे' ( बूटी पृ ८८९ ) । उअरी -- शाकिनी, देवी-विशेष ( दे १।९८ )-'उंछयवाडे मज्जारिरूवयाओ भमन्ति उअरीओ' ( वृ ) । उअह -- देखो-'उअह त्ति पेच्छहत्थे' ( दे १।९८ ) । उअहारी -- दोहन करने वाली स्त्री ( दे १।१०८ ) । उआलि -- अवतंस, शिरोभूषण ( दे १।९० ) । उइंतण -- उत्तरीय वस्त्र, चादर ( दे १।१०३ ) । उंगुणी -- वनस्पति-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । उंचहिआ -- चक्रधारा ( दे १।१०९ ) । उंछ -- १ गर्ह्य, जुगुप्सनीय ( सूटी १ प १०८ ) । २ छींपा, कपड़ों को छापने वाला ( पा ७७० ) । उंछय -- वस्त्र छापने का काम करने वाला ( दे १।९८ ) । उंजण -- उत्सेचन ( दजिचू पृ १५६ ) । उंड -- १ मुख-'देसीवयणतो उंडं-मुहं' ( अनुद्वाचू पृ १३ ) । २ ऊंडा, गहरा ( औपटी पृ ५ ; दे १।८५ )-'खणिआ उड्डेहिं कूवया य अइउंडा' ( वृ ) । उंडअ -- पांव में पिण्डरूप में लग जाए उतना गहरा कीचड़ ( ओभा ३३ )-'उंडका-पिण्डकास्तद्रूपो यो भवति, पादयोर्यः पिण्डरूपतया लगति स पिण्डक इत्यर्थः ( टी प २९ ) । उंडे-मिट्टी, गोबर ( कन्नड़ ) । उंडग -- १ स्थण्डिल ( द ४।२३ ) । २ पिण्ड, लोथड़ा- 'बालाई मंसउंडग मज्जाराई विराहेज्जा' ( ओभा २४६ ) । उंडणाही -- अंतरिक्ष में होने वाले क्षुद्र जंतु-'अंतलिक्खेसु संताणका उंडणाही घुक्कभरधा वा वि विण्णेया' ( अंवि पृ २२९ ) । उंडय -- मांसपिण्ड-'तेसिं जीवंतगाणं चेव हिययउंडए गिण्हावेइ' ( विपा १।५।१४ ) । उंडरुक्क -- मुंह से वृषभ की भांति शब्द करना-'देसीवयणतो उंडं-मुहं तेण रुक्कंति सद्दकरणं, तं च वसभढिक्कियाइ' ( अनुद्वाचू पृ १३ ) । उंडल -- १ मंच, मचान । २ समूह ( दे १।१२९ ) । उंडि -- मुद्रा ( व्यभा ६ टी प ३५ ) । उंडिअ -- मुद्रा वाला ( व्यभा ६ टीप ३५ ) । उंडिय -- मांस-पिण्ड-'तेसि जीवंतगाणं चेव हिययउंडियाओ गिण्हावेइ' ( विपा १।५।१५ ) । उंडिया -- मुद्रा विशेष, पत्र पर लगाई जाने वाली मुहर ( बूभा १८९ ) । - उंडिया लेहस्स मुद्दा इति चूणौ ( टी पृ ६१ ) । उंडी -- पिंड, गोलाकार वस्तु-'तत्थ णं एगा वणमयूरी दो पुट्ठे परियागए पिट्टुंडीपंडुरे निव्वणे निरुवहए भिण्णमुट्ठिप्पमाणे मयूरी-अंडए पसवइ ( ज्ञा १।३।५ ) । उंडुय -- स्थान-'सपिडपायमागम्म उंडुयं पडिलेहिया' ( द ५।१।८७ ) । उंडेरग -- एक प्रकार का धान्य ( आवचू २ पृ ३१७ ) उंडेरय -- खाद्य वस्तु, बड़ा ( आवचू २ पृ १६८ ) । उंढिय -- संकुचित-'जह वा उंढियपादे पाअं काऊण हत्थिणो पुरिसे' ( व्यभा १० टी प ७३ ) । उंत -- मंत्र का अभीष्ट शब्द, देव-विशेष ( अंवि पृ ९ ) । उंदर -- चूहा ( उशाटी प १६९ ) । उंदु -- मुख-देशीवचनं उन्दु-मुखं' ( अनुद्वामटी प २६ ) । उंदुक -- स्थान-'उंदुकं इति स्थानम्' ( बृटी पृ ३८० ) । उंदुय -- स्थान ( बृभा १२२३ ) । उंदुर -- १ वृक्ष पर रहने वाला प्राणी-विशेष ( अंवि पृ २२६ ) । २ पर्वत की कन्दरा में रहने वाला प्राणी-विशेष ( अंवि पृ २२७ ) । उंदुरअ -- लम्बा दिन ( दे १।१०५ ) । उंदुरी -- चुहिया ( अंवि पृ ६९ ) । उंदुरुक्क -- मुंह से वृषभ की भांति शब्द करना-'उंदुरुक्क त्ति देशीवचनं उन्दु-मुखं तेन रुक्कं-वृषभादिशब्दकरणमुन्दुरुक्कं देवतादिपुरतों वृषभगर्जितादिकरणमित्यर्थ:' ( अनुद्रामटी प २६ ) । उंदोइया -- चुहिया ( बूटी पृ ३६० ) । उंबभरिया -- एकास्थिक वृक्ष-विशेष ( भ ८।२१९।२ ) । उंबर -- प्रचुर ( दे १।९० ) । उंबरउफ -- नवीन अभ्युदय, अपूर्व उन्नति ( दे १।११९ ) । उंबा -- बन्धन ( दे १।८६ ) । उंबी -- पका हुआ गेहूं ( दे १।८६ ) । उंबेभरिया -- एकास्थिक वृक्ष-विशेष ( प्रज्ञा १।३५ ) । उकरड -- कूडा-करकट डालने का स्थान-'भाषायाम् उकुरडो इति प्रसिद्धं मलनिक्षेपणस्थानम्' ( राजटी पृ २६ ) । उकुरटिका -- अकुरड़ी, कूड़ा डालने का स्थान ( ओटी प १६२ ) । उक्क -- पाद-पतन, पैरों में गिरना ( दे १।८५ ) । उक्कंचण -- १ बंधन-'वंसग कडणोक्कंचण छावण छेवण दुवार भूमी य' ( बृभा ५८३ ) । २ माया ( दश्रुचू प ४० ) । ३ झूठी प्रशंसा, चापलूसी, अगुणी के गुण बताना ( ज्ञाटी प ८६ ) । ४ घूंस, रिश्वत । ५ मूर्ख या भोले पुरुष को ठगने वाले धूर्त का, समीपस्थ विचक्षण व्यक्ति के भय से, कुछ समय के लिए निश्चेष्ट रहना ( ज्ञाटी प २४५ ) । ६ मानोन्मान में कुटिलता करने वाले ठग का, अधिकारी की उपस्थिति में, कहीं यह राजा को मेरी शिकायत न कर दे, इस चिन्तन से छुप जाना ( सूचू २ पृ ४६२ ) । उक्कंठुलय -- उत्सुक ( कु पृ १३४ ) । उक्कंडा -- रिश्वत, लंचा ( दे १।९२ ) । उक्कंति -- कूपतुला, कुएं से पानी खींचने का साधन ( दे १।८७ ) । उक्कंती -- कूपतुला ( दे १।८७ ) । उक्कंदि -- कूपतुला, कूप से पानी खींचने का साधन ( दे १।८७ )। उक्कंदी -- कूपतुला ( दे १।८७ ) । उक्कंपित -- बांस की खपचियों से बांधा हुआ ( दश्रुचू प ६५ ) । उक्कंबिय -- बांस की खपचियों से बांधा हुआ - 'कडिए वा उक्कंबिए वा छन्ने वा लित्ते वा' ( आचूला २।१० ) । उक्कड -- त्रीन्द्रिय जंतु-विशेष ( प्रज्ञा १।५० ) । उक्कडिअ -- तोड़ा हुआ, छिन्न ( पा ४९६ ) । उक्कल -- मकड़ी ( उ ३६।१३७ ) । उक्कलिय -- १ त्रीन्द्रिय जन्तु, मकड़ी ( प्रज्ञा १।५० ) । २ उबला हुआ। उक्कली -- मकड़ी, लूता ( दअचू पृ १८८ ) । उक्का -- कूपतुला, कुएं से पानी खींचने का साधन ( दे १।८७ )। उक्कारिका -- खाद्य पदार्थ-विशेष ( अंवि पृ १८२ ) । उक्कारिग -- अलग होने का भेद-विशेष, जैसे एरंड के बीज से छिलका अलग होता है ( सूचू १ पृ १३० ) । उक्कासिअ -- उत्थित, उठा हुआ ( दे १।११४ ) । उक्किट्ठि -- निन्दा-'पाणिए निब्बुड्डो, उक्किट्ठी कया, एवं डंभएहिं लोगो खज्जइ त्ति' ( आवहाटी १ पृ २७५ ) । उक्कुंड -- उन्मत्त ( दे १।९१ ) । उक्कुट्ठ -- आनन्द की महाध्वनि-'उत्कृष्टिनाद-आनन्दमहाध्वनिरित्यर्थः' ( प्रटी प ४९ ) । उक्फुट्ठि -- १ खुशी की ध्वनि ( ति १३५ ) । २ ऊंचे स्वर से पुकारना-'उक्कुट्ठी पुक्कारो' ( जीभा १७२२ ) । ३ निंदा-'ण य कोलाहलं करे, ण उक्कुट्टिबोलं वा करेज्ज रायसंसारियं वा' ( सूचू १ पृ १८२ ) । उक्कुडनिक्कुडिया -- बार बार उठ बैठकर झांकना-'उक्कुडनिक्कुडियाहिं पलोएति कं वेलं देसकालो भविस्सइ त्ति' ( आवमटी प २८१ ) । उक्फुडिक -- कूडा-करकट डालने का स्थान ( अंवि पृ २०६ ) । उक्कुडुनिउडिया -- बार बार उठ-बैठकर झांकना-'उक्कुडुनिउडियाहिं पलोएति कं वेलं देसकालो भविस्सइ त्ति' ( आवचू १ पृ २८९ ) । उक्कुरुड -- १ ईंट, काठ आदि का ढेर ( बृभा २६५३ ) । २ अकुरडी, घूरा, कचरा डालने का स्थान ( बृभा १९२५; दे १।११० ) । ३ रत्नों की राशि - 'उक्कुरुडो रत्नादीनामपि राशि:' ( वृ ) । उक्कुरुडय -- ढेर, कूडा डालने का स्थान ( अनुद्वा ३४६ ) । उक्कुरुडिक -- घूरा, कूडा डालने का स्थान ( अंवि पृ २०६ ) । उक्कुरुडिया -- कूडा डालने की जगह - एयं तुमं दारगं एगंते उक्कुरुडियाए उज्झाहि' ( विपा १।१।६५ ) । उक्कुरुडी -- घूरा, कचरा डालने का स्थान ( दे १।११० ) – 'णच्चसि चडिअ उक्कुरुडि' ( वृ ) । उक्कुलिंणी -- गृह-उपकरण, भांड-विशेष ( अंवि पृ ७२ ) । उक्केर -- १ समूह (ओनि ७०४) । २ उपहार, भेंट ( दे १।९६ )। उक्केलाविय -- उकेलाया हुआ, खुलवाया हुआ - 'राइणा उक्केलावियाईं चोल्लयाईं, निरूवियाईं समंतओ' ( उसुटी प ६५ ) । उक्केल्ल -- उकेलना, एक-एक कर उखाडना ( दजिचू पृ १२४ ) । उक्कोड -- १ राज्यकर ( प्र ३।११ ) । २ रिश्वत ( आचू पृ २३७ ) । ३ राजकुल में दातव्य द्रव्य, बेगार तथा सैनिक आदि की भोजन-व्यवस्था ( निचू ४ पृ २८० )। उक्कोडभंग -- राजकुल में दातव्य की राजा द्वारा दी जाने वाली छूट, देखें-'खोडभंग' ( निचू ४ पृ २८० ) । उक्कोडा -- रिश्वत, लंचा ( विपा १।१।४९; दे १।९२ ) । उक्कोडी -- प्रतिशब्द, प्रतिध्वनि ( दे १।९४ )। उक्कोल -- घाम, गरमी ( दे १।८७ ) । उक्कोस -- अरुण रंग का पक्षी-विशेष ( अंवि पृ २२५ ) । उक्ख -- जैन साध्वियों के पहनने के वस्त्र-विशेष का एक अंश-'परिधाण-वत्थस्स अब्भिंतरचूलाए उवरिकण्णो नाभिहेट्ठा उक्खो भण्णइ' ( बृटी पृ ३३४ ) । उक्खंड -- १ संघात । २ विषमोन्नत प्रदेश ( दे १।१२६ ) । उक्खंडिय -- आक्रांत ( दे १।११२ ) । उक्खंद -- छावनी, घेरा डालना ( निचू २ पृ ४२७ ) । उक्खडमड्डा -- पुनः पुन: -'उक्खडमड्डा इति देशीपदमेतत् पुनः पुनः शब्दार्थश्च' ( व्यभा २ टी प ४७ ) । उक्खणण -- खांडना, निस्तुषीकरण ( दे १।११५ वृ ) । उक्खणिअ -- कंडित, निस्तुषीकृत ( दे १।११५ ) । उक्खल -- ओखली ( निचू ३ पृ ३७८ ) । उक्खलित -- उन्मूलित, चलित ( आचू पृ ३३९ ) । उक्खलिय -- उन्मूलित, उत्पाटित ( से ६।२९ ) । उक्खलिया -- १ स्थाली, पात्र-विशेष ( पिनि २५० ) २ उलूखल, ऊखल ( आवचू २ पृ ३१७ ) । उक्खली -- थाली, पिठर-'अलिंदक त्ति पत्ति त्ति उक्खली थालिक त्ति वा ' ( अंवि पृ ७२ ; दे १।८८ ) । उक्खलुंपिय -- खुजला कर-'णो गाहावईं अंगुलियाए उक्खलुंपिअ उक्खलुंपिअ जाएज्जा'- ( आचूला १।६२ ) उक्खल्लय -- अंगूठे को आच्छादित करने वाला जूता ( आचू पृ ३५२ ) । उक्खा -- पिठर, स्थाली-'दोहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए' ( आचूला १।२१ ) । उक्खिण्ण -- १ अवकीर्ण । २ गुप्त, आवृत । ३ पार्श्व में शिथिल, एक तरसे से ढीला ( दे १।१३० ) । उक्खिन्न -- व्याप्त ( बृचू प १४१ ) । उक्खिरण -- दान, उपहार-'रहग्गतो य विविधफले खज्जगे य कवड्डगवत्थ-मादी य उक्खिरणे करेति' ( निचू ४ पृ १३१ ) । उक्खिरणग -- दान, उपहार ( निभा ५७५४ ) । उक्खुंड -- १ उल्मुक, अलात । २ समूह । ३ वस्त्र का एक भाग, अंचल ( दे १।१२५ ) । उक्खुडहुंचिय -- उत्क्षिप्त, उछाला हुआ ( दे १।४ वृ ) । उक्खुरुहुंचिय -- उत्क्षिप्त, उछाला हुआ ( दे १।४ वृ ) । उक्खुलंपिय -- खुजला कर ( आटीप ३४० ) । उक्खुलंबिय -- खुजला कर ( आचूला १९६२ पा ) । उक्खुलणियत्थ -- जिसके वस्त्र अस्त-व्यस्त हों, वह ( बृभा ४११२ ) । उक्खुलि -- ऊखली ( अंवि पृ १९३ ) । उखड्डमड्डा -- बार बार-उखड्डमड्ड त्ति वा बहुसो त्ति भूयो भूयो त्ति वा पुणो पुणो त्ति वा एगट्ठं' ( निचू ४ पृ ३०८ ) । उखलिका -- ऊखली ( अंवि पृ २२१ ) । उखली -- उलूखल, ऊखली ( आवहाटी २ पृ २४३ ) । उखा -- थाली ( भटी प ३२६ ) । उखुल -- अस्तव्यस्त ( बूटी पृ ११२१ ) । उगारिया -- क्षुद्र जन्तु, दीमक ( सूचू १पृ १४५ ) । उगाल -- फलक ( व्यभा ४।४ टी प १०२ ) । उगाली -- फलक ( व्यभा ४।४ टी प १०२ ) । उग्गह -- योनिद्वार-'उगह इति जोणिदुवा रस्स सामइकी संज्ञा' ( निचू २ पृ १८६ ) । उग्गहिय -- अच्छे प्रकार से ग्रहण किया हुआ ( दे १।१०४ ) । उग्गाल -- पान की पिचकारी ( पंव ३८ ) । उग्गाहिय -- १ गृहीत । २ उत्क्षिप्त । ३ प्रवर्तित ( दे १।१३७ ) । ४ उच्चालित ( पा ५४६ ) । उग्गुंडिय -- धूल से सना हुआ- 'पंसुउग्गुंडियंगमंगा' ( भ ७।११९ ) । उग्गुतिय -- उत्तेजित-'सिंगाररसुग्गुतिया मोहकुवितफुंफगा' ( दअचू पृ ५९ ) । उग्गुलुंछिआ -- हृदय रस का उछलना - १ भावोद्रेक । २ वमन के संवेदन के कारण होने वाली उथल-पुथल ( दे १।११८ ) । उग्घट्टि -- अवतंस, शिरोभूषण ( दे १।९० ) । उग्घाडपोरिसि -- प्रहर का तीन चौथाई भाग-'उद्घाटपौरुष्यां समयभाषया पादोनप्रहरे' ( प्रसा ५९० टी प १६६ ) । उग्घाय -- १ संघात । २ विषमोन्नत प्रदेश ( दे १।१२६ ) । उग्घुट्ट -- १ पौरुष, शूरता ( दे १।९९ ) । २ लुप्त, विनष्ट । उचूलयालग -- नीचा सिर और ऊपर पांव कर पानी में डुबोना ( विपाटी प ७२ ) । उच्च -- नाभितल ( दे १।८६ ) । उच्चंतग -- दंतराग, दांतों को रंगने की मसी-'उच्चंतगो दंतरागो भन्नइ' ( प्रज्ञाटीप ३६२ ) । उच्चंपिअ -- १ दबाया हुआ, रौंदा हुआ - 'सीसं उच्चंपिअं कबंधम्मि' ( तंदु १४९ ) । २ दीर्घ ( दे १।११६ ) । उच्चड्डिय -- उत्क्षिप्त, ऊपर उछाला हुआ ( दे १।१०६ ) । उच्चत्त -- निश्चित अवधि तक स्वामी के कथनानुसार कार्य करने वाला ( भृतक ) -'एच्चिरकालोच्चत्ते, कायव्वं कम्म जं बेंति' ( निभा ३७२० ) । उच्चत्तवरत्त -- १ दोनों पार्श्व में स्थूल । २ अनियत भ्रमण ( दे १।१३९ ) । उच्चत्तवरत्तय -- दोनों पार्श्वो को ऊंचा-नीचा करना, इधर उधर करना ( पा ६६३ ) । उच्चत्थ -- दृढ़, मजबूत ( दे १।९७ ) । उच्चप्प -- आरूढ, ऊपर बैठा हुआ ( दे १।१०० ) । उच्चरग -- कमरा, कक्ष ( निचू १ पृ ६७ ) । उच्चाड -- विपुल ( दे १।९७ ) । उच्चाडिर -- १ रोकनेवाला । २ अफसोस करने वाला ( प्रा २।१९३ ) । उच्चात -- परिश्रान्त ( व्यभा ६ टीप २५ ) । उच्चाय -- परिश्रान्त ( ओनि ५१८ ) । २ आलिंगन, परिरम्भ । उच्चार -- विमल, स्वच्छ ( दे १।९७ ) । उच्चारिय -- गृहीत ( दे १।११४ ) । उच्चिइय -- आभूषण-विशेष ( जीवटी प १४७ ) । उच्चिंवलय -- गंदा पानी ( पा १५८ ) । उच्चिडिम -- मर्यादा रहित, निर्लज्ज-'उच्चिडिमं मुक्कमज्जायं' ( पा ५११ ) । उच्चुंच -- दृप्त, अभिमानी ( दे १।९९ ) । उच्चुप्पिय -- आरूढ़ ( दे १।१०० ) । उच्चुलउलिय -- कुतूहलवश त्वरता से जाना ( दे १।१२१ ) । उच्चुल्ल -- १ उद्विग्न । २ अधिरूढ़, चढ़ा हुआ । ३ भयभीत ( दे २।१२७ ) । उच्चूर -- विविध प्रकार-'उच्चूरपउरलंभे' ( व्यभा ४।२ टी प ८२ ) । उच्चेल्लर -- १ हल आदि से बिना जोती हुई भूमी । २ साथल के रोम ( दे १।१३६ ) । उच्चेव -- प्रकट ( दे १।९७ ) । उच्चोल -- १ विश्रान्त । २ नीवी, स्त्री के अधोवस्त्र के दोनों छोरों पर दी जाने वाली गांठ ( दे १।१३१ ) । ३ चुल्लू, चुलुक-'पाणिए उच्चोल-एहिं मारिज्जइ' ( आवहाटी २ पृ १२५ ) । उच्चोली -- गठरी-परिकरेण बंधह चुण्णस्स उच्चोलीओ' ( सूचू १ पृ १९३ टि ) । उच्छ -- आंतों का आवरण ( दे १।८५ ) । उच्छंगिय -- पुरस्कृत ( दे १।१०७ ) । उच्छंट -- जल्दी-जल्दी चोरी करना ( दे १।१०१ ) । उच्छंटअ -- शीघ्र चोरी करना ( पा ६७६ )। उच्छंद -- छीला हुआ, तोड़ा हुआ ( आचू पृ ३४४ ) । उच्छंदण -- मर्दन, अभ्यंगन-'मक्खणsब्भंगण उच्छंदण उव्वट्टण' ( अंवि पृ १९३ ) । उच्छट्ट -- चोर, डाकू (दे १।१०१) । उच्छडिय -- चुराई हुई वस्तु ( दे १।११२) । उच्छय -- व्याप्त-'देवेहि य देवीहि य समंतओ उच्छयं गयणं' ( आवहाटी १ पृ १२३ ) । उच्छल्लिउं -- एक ओर ले जाकर-'उच्छल्लिडं ति एकपार्श्वे नयित्वा' ( निचू १ पृ ६८ ) । उच्छल्लित्तु -- एक ओर ले जाकर ( निचू १ पृ ९८ ) । उच्छल्लिय -- १ एक ओर ले जाकर ( निभा २८१ ) २ जिसकी छाल छील दी गई हो वह ( दे १।१११ ) । उच्छविय -- शय्या, बिछौना ( दे १।१०३ ) । उच्छाह -- सूत का तंतु ( दे १।९२ ) । उच्छिंदण -- १ ब्याज पर लेना । २ उधार लेना ( पिनि ३१७ ) । उच्छिंपक -- चोरों का एक प्रकार ( प्र ३।३ ) । उच्छित्त -- १ विक्षिप्त । २ उत्क्षिप्त ( दे १।१२४ ) । उच्छिल्ल -- छिद्र ( दे १।९५ ) । उच्छु -- १ राई (उसुटी प ५९ ) । २ वायु, पवन ( दे १।८५ ) । उच्छुअ -- भय से की हुई चोरी ( दे १।९५ )। उच्छुअरण -- ईक्षु का खेत ( दे १।११७ ) । उच्छुआर -- संछन्न, ढका हुआ ( दे १।११५ ) । उच्छुआरिअ -- छादित, ढका हुआ ( दे १।११५ वृ ) । उच्छुंडिअ -- १ बाण आदि से अत्यन्त व्यथित । २ अपहृत ( दे १।१३५ ) । उच्छुच्छु -- दृप्त, अभिमानी ( दे १।९९ ) । उच्छुडु -- आहत-'ततो उच्छुड्डं फुमति रागो लग्गति' ( निचू २ पृ २२० ) । उच्छुद्ध -- १ विक्षिप्त-'उच्छुद्धणयणकोसे' ( अनु ३।५२ ) । २ रोगग्रस्त-'उच्छुद्धसरीरे वा, दुब्बलतवसोसिते व जो होज्जा' ( बृभा ४५५८ ) । ३ परित्यक्त ( बृभा ३१३२ ) । ४ बिखरा हुआ ( ओभा २२१ ) । उच्छुर -- अविनश्वर ( दे १।९० ) उच्छुरण -- १ ईख का खेत ( दे १।११७ ) । २ ईख-'उच्छुरणं इक्षुरिति केचित्' ( वृ ) । उच्छुल्ल -- १ अनुवाद । २ विश्रान्त ( दे १।१३१ ) । उच्छूढ -- चुराना, अपहरण करना-'सायं एकल्लयाईं जायाइं चोरेहि उच्छूढाई' ( बृटी पृ १०८ ) । उच्छूर -- १ असमय, विलंब-'रन्धनवेलां तामुच्छूर एव करोति येन साधोरपि भक्तं भवति' ( ओटी प १४८ ) ! २ प्रचुर ( निचू ३ पृ २०६ ) । उच्छूरिय -- सुप्रावृत-'उच्छूरिया णडी विव दीसति कुप्पासगादीहिं' ( बृभा ४१२५ ) । उच्छूलग -- परिखा, शत्रु सेना का नाश करने के लिए ऊपर से आच्छादित गर्त्त-विशेष ( उ ९।१८ पा ) । उच्छेव -- १ छत का नीचे गिरना_'परिपेलवच्छातिते णेव्वे गलणं उच्छेवो' ( निचू २ पृ ३३८ ) । २ दीवार का छेद ( व्यभा ४।४ टी प ६ ) । उच्छेवण -- घृत ( दे १।११६ ) । उच्छोलणा -- प्रचुर जल ( द ४।२६ ) -'उच्छोलणा-पभूओदगेण' ( जिचू पृ १६४ ) । उजल्ल -- बलवान् ( प्रा २।१७४ ) । उज्जंगल -- १ बलात्कार । २ दीर्घ ( दे १।१३५ ) । उज्जग्गिर -- जागृति अनिद्रा ( दे १।११७ ) । उज्जग्गुज्ज -- स्वच्छ ( दे १।११३ ) । उज्जड -- उजाड़, बस्ती-रहित स्थान ( दे १।९६ ) । उज्जणिअ -- टेढ़ा, वक्र ( दे १।१११ ) । उज्जर -- १ प्रवाह ( आवहाटी २ पृ ८७ ) । २ मध्यगत, भीतर का । ३ निर्जरण, क्षय । उज्जल -- अत्यधिक -'वेयणा पाउब्भूया-'उज्जला विउला कक्खडा....' ( अंत ३।९० ) । उज्जला -- छोटी संघाटी ( व्यभा ७ टी प ४५ ) । उज्जल्ल -- १ पसीने से लथपथ, मलिन-मुडां कंडू विणट्ठंगा, उज्जल्ला असमाहिया' ( सू १।३।१० ) । २ हठ ( प्रा २।१७४ ) । उज्जल्ला -- १ अत्यन्त मलिन ( बृभा २४५७ ) । २ बलात्कार ( दे १८६७ )। उज्जाण -- प्रतिलोमगामी नौका ( निभा १८३ ) । उज्जाणिय -- नीचा किया हुआ ( दे १।११३ ) । उज्जात -- (विवेक) शून्य ( सूचू १ पृ ६१ ) । उज्जीरिय -- अपमानित, तिरस्कृत ( दे १।११२ ) । उज्जुग -- बिल-'उज्जुगं बिलं' ( दश्रुचू प ६८ ) । उज्जूरिय -- १ क्षीण ( दे १।११२ ) । २ शुष्क ( वृ ) । उज्जूहिगा -- जंगल की ओर जाने वाली गायों का समूह-''गोसंखडी उज्जूहिगा भन्नति' ( निचू ३ पृ ३४८ ) । उज्जोमिआ -- रस्सी, डोरी ( दे १।११५ ) । उज्जोवण -- १ गायों को चरने के लिए खुला छोड़ना । २ गाड़ी आदि को चलाने में प्रवृत्त होना - उज्जोवणं ति गावीणं पसरणं सगडादीणं वा पट्टणं' ( निचू २ पृ १ ) । उज्झंखणी -- १ लोकापवाद ( निभा ६५८ ) । २ फुंहार, शीतल वायु-'दगवातो सीतभरो, सा य उज्झंखणी भण्णति' ( निचू २ पृ ३३८ ) । उज्झमण -- पलायन ( दे १।१०३ )। उज्झरिय -- १ टेढ़ी नजर से देखा हुआ, कानी आंख से देखा हुआ। २ विक्षिप्त पागल । ३ क्षिप्त, फेंका हुआ । ४ व्यक्त ( दे १।१३३ ) । उज्झस -- उद्यम, प्रयत्न ( दे १।९५ ) । उज्झाइ -- विरूप, मैला ( बृभा ३९१३ ) । उज्झाइग -- विरूप ( बृभा ३९९४ ) । उज्झिंखिअ -- लोकापवाद, लोक-निन्दा ( दे ३।५५ वृ ) । उट्ट -- १ जल-जंतु विशेष । २ सिंधु देश के कोमल चमड़ी वाले मत्स्य-विशेष-'उट्टा मच्छा सिंधुविसए, तेसिं चम्मयं मउयं भवति' ( आचू पृ ३६४ ) । ३ कुत्ते की आकृति वाले जलचर प्राणियों का चर्म ( निचू २ पृ ४०० ) देखें—'उद्द' । उट्टिक -- बड़ा भाजन-विशेष ( अंवि पृ २१४ ) । उट्टिया -- पात्र-विशेष ( अंवि पृ २२१ ) । उट्ठ -- १ घड़े आदि का किनारा, कांगरा-'बोडो जस्स उट्ठा णत्थि' ( आवचू १ पृ १२२ ) । २ कुत्ते की आकृति वाले जलचर प्राणियों का चमड़ा-'सुणगागिती जलचरा सत्ता तेसिं अजिणा उट्ठा ( निचू २ पृ ४०० ) । उट्ठल -- उल्लास ( दे १।९१ ) । उट्ठल्ल -- उल्लास ( दे १।९१ ) । उट्ठी -- १ मुट्ठी । २ अंश-'महीए एका उट्ठी छुब्भइ' ( आवहाटी २ पृ ९० ) । उट्ठोणा -- उठकर-'उट्टोणा ( ? उद्वित्ता ) से णं इमं लोगं तिरियं करेति' ( सूचू १ पृ २११ ) । उडद -- उरद, माष ( निरटी पृ २७ ) । उडिद -- उरद, माष ( दे १।९८ ) । उडु -- तृण का आच्छादन ( दे १।८६ ) । उडुक्किय -- दांतों से काट क दागी करना-'सव्वतउसाणि दंतेहिं उडुक्कियाणि' ( दअचू पृ २९ ) । उडि-काटना, टुकड़े करना ( कन्नड ) । उडुरुक्क -- मुंह से वृषभ की भांति शब्द करना ( अनुद्वाहाटी पृ १९ ) । उडुरुक्ख -- मुंह से वृषभ की भांति शब्द करना-'उडुरुक्खं ति देशीवचनं वृषभगर्जितकरणाद्यर्थम्' ( अनुद्वाहाटी पृ १९ ) । उडुहिय -- १ विवाहित स्त्री का कोप । २ जूठा, उच्छिष्ट ( दे १।१३७ ) । उड्ड -- १ दीर्घ, बड़ा ( सू १।५।३४ ) । २ उड़ीसा देश का वासी ( प्र १।२१ ) । ३ कुआ आदि खोदने वाला ( निभा ३७२०; दे १।८५ ) । ओडु ( कन्नड ) । ४ तीव्र ( आचू पृ १४३ ) । ५ कूप ( आवटि प २४ ) । उड्डंचक -- उड्डाह, उपहास-'देशीपदमेतत् ' ( बृटी पृ १६० ) । उड्डंचग -- १ उपहास करने वाला ( निभा १०६५ ) । २ याचक-'उदञ्चका याचका:' ( बृटी पृ १६० ) । उड्डनचय -- अवहेलना-'वंदणादिसु उड्डंचये करेज्ज' ( निचू २ पृ १७२ ) । उड्डंडग -- वे भिक्षु जो पाणिपात्र होते हैं ( आचू पृ १६९ ) । उड्डलग -- कोतवाल-'तत्थ चारियत्ति काऊण उड्डंबालगा अगडे पक्खि-विज्जंति' ( आवहाटी १ पृ १३६ ) । उड्डंस -- खटमल ( उ ३६।१३७ ) । उड्डण -- अंगीकार-'तत्थोड्डणं अप्पणो कुणति' ( व्यभा ४।३ टी प १८ ) । २ दीर्घ । ३ बैल ( दे १।१२३ ) । उड्डरुट्ट -- प्रद्विष्ट ( आचू पृ १४३ ) । उड्डस -- खटमल ( दे १।९६ ) । उड्डहण -- १ लोकापवाद ( निचू ३ पृ ४९८ ) । २ चोर ( दे १।१०१ )। उड्डाअ -- उद्गम, उदय ( दे १।९१ ) । उड्डाण -- १ प्रतिध्वनि । २ कुरर पक्षी । ३ विष्ठा । ४ अभिमानी । ५ मनोरथ ( दे १।१२८ ) । उड्डावणक -- आकर्षण-'तस्स कड्ढणट्टाए उड्डावणकं करोति' ( निचू ४ पृ ७६ ) । उड्डास -- संताप, परिताप ( दे १।९९ ) । उड्डाह -- निन्दा ( पिनि ४१४ ) । उड्डिआहरण -- छुरी के अग्रभाग पर रखे हुए फूल को पांव की अंगुलियों से लेकर ऊपर उछलना ( दे १।१२१) । उड्डिय -- १ उत्क्षिप्त, फेंका हुआ-'अस्सेण हेसियं पट्टी च उड्डिया' ( निचू ४ पृ ३४३ ) । २ बेचने के लिए रखना ( आवहाटी १ पृ २६४ ) । उड्डिहिअ -- ऊपर फेंका हुआ ( पा ५१७ ) । उड्डुय -- डकार ( आचूला ८।२९ ) । उड्डुयर -- जो मलमूत्र का विसर्जन करते हुए चंचलता के कारण हाथ आदि पर भी लेप लगा लेता है ( बृटी पृ ५१४ ) । उड्डुहिअ -- छिन्न ( दे १।१०५ वृ ) । उड्डोय -- १ डकार ( जीभा ९०८ ) । २ उबाक, ओकाई ( निचू ३ पृ ८० ) । उड्ढ -- १ दीर्घ, बड़ा ( सू १।५।३४ ) । २ वमन ( बूटी पृ १५३९ ) । ३ पात्र का किनारा ( निचू ४ पृ १५७ ) । उड्ढल -- उल्लास ( दे १।९१ ) । उड्ढल्ल -- उल्लास ( दे १।९१ ) । उणुयत्त -- अवस्थित, ठहरा हुआ-'सावि तं पलोएंती तहेव उणुयत्तेति' ( आवहाटी १ पृ १८२ ) । उण्णम -- समुन्नत ( दे १।८८ ) । उण्णलिय -- १ कृश, दुर्बल । २ ऊंचा किया हुआ ( दे १।१३६ ) । उण्णुइअ -- १ हुंकार । २ आकाश की ओर मुंह किए हुए कुत्ते की आवाज ( दे १।१३२ ) । ३ गर्वित ( व्यभा ४ । २ टी प ६९ ) । उण्हाली -- चतुष्पद प्राणी-विशेष-'मज्जारी मुंगसी व त्ति उण्हाली अडिल त्ति वा' ( अंवि पृ ६९ ) । उण्हिआ -- खिचड़ी ( दे १।८८ ) । उण्हेला -- कीट-विशेष, घृतपिपीलिका-'उण्हेला णाम तेल्लपाइयाओ, तातो तिक्वेहिं तुंडेहि अतीव दंसंति' ( आवमटी प २८९ ) । उण्होदयभंड -- भ्रमर ( दे १।१२० )। उण्होलक -- वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ६३ ) । उण्होला -- क्षुद्र जन्तु-विशेष-'उण्होला-तेल्लपातियाओ । तातो तिक्खेहिं अतीव दंसंति' ( आवचू १ पृ ३०४ ) । उतपोत -- आकीर्ण ( बृभा ३१७२ ) । उत्तइय -- उत्तेजित ( दअचू पृ ५९ पा ) । उत्तंपिअ -- खिन्न, उद्विग्न ( दे १।१०२ ) । उत्तप्प -- १ गर्वित । २ अधिक गुण वाला ( दे १।१३१ ) । उत्तम्मिअ -- खिन्न ( दे १।१०२ ) । उत्तरणवरंडिआ -- उडुप, नौका, जहाज आदि ( दे १।१२२ )-'समुद्रनद्यादौ जलतरणोपकरणं प्रवहणादि' ( वृ ) । उत्तरणवरंडी -- जलसंतरण के साधन नौका आदि - भवउत्तरणवरंडि संभर सव्वण्णुमण्णहा तुज्झ। णरगोत्तिरिविडिमज्के होही उत्थल्ल-पत्थल्ला ।।' ( दे १।१२२ वृ ) । उत्तरिविडि -- एक के ऊपर एक रखे हुए भाजनों का ढेर ( दे १।१२२ पा ) । उत्तलहअ -- वृक्ष ( दे १।११९ ) । उत्ताणपत्त -- एरण्ड से संबंधित, एरण्ड के पत्ते ( दे १।१२० वृ ) । उत्ताणपत्तय -- एरण्ड-संबंधी, एरण्ड के पत्ते ( दे १।१२० ) । उत्ताणय -- तत्पर ( आवचू १ ) । उत्ताल -- लगातार रुदन, अंतर रहित क्रन्दन की आवाज ( दे १।१०१ ) । उत्तावल -- १ उतावल, शीघ्रता । २ शीघ्रकारी, आकुल- 'उत्तावलो सहित्थयो' ( कु पृ १८० ) । उत्ताहिय -- ऊपर उछाला हुआ ( दे १।१०६ ) । उत्तिंग -- १ चींटियों का बिल ( आ ८।१०६ ) । २ सर्पच्छत्र वनस्पति ( द ८।९९ ) । ३ छिद्र-'उत्तिंगो पुण छिड्डं' ( निभा ६०१८ ) । उत्तिरिविडि -- एक के ऊपर एक रखे हुए भाजनों का ढेर ( दे १।१२२ ) । उतरड ( गुज ), उत्तरंड ( मराठी ) । उत्तुइय -- उत्तेजित ( दनि १११ पा ) । उत्तुण -- अभिमानी, गर्वयुक्त ( उसुटी प २३४; दे १।९९ ) । उत्तुपित -- चिकना किया हुआ ( प्रटी प ५९ ) । उत्तुपिय -- स्निग्ध, चिकना ( प्र ३।१६ ) । उत्तुयय -- उत्तेजित ( व्यभा ६ टीप ३२ ) । उत्तरिद्धि -- १ अभिमानी ( दे १।९९ ) । २ दर्प, गर्व ( वृ ) । उत्तुहिअ -- उत्खोटित, छिन्न, नष्ट ( दे १।१०५ ) । उत्तूइय -- गर्व-'एवं भणितो संतो उत्तूइओ सो कहेइ सव्वं-उत्तूइओ त्ति देशीपदमेतद् गर्वे वर्तते' ( व्याभा ४।२ टी प ६९ ) । उत्तह -- तटशून्य कूप ( दे १।९४ ) । उत्तेड -- बिन्दु – 'भंडगपासवलग्गा उत्तेडा बुब्बुया न सम्मंति' ( पिनि १९ ) । उत्थंघिय -- उत्थापित ( से ५।६० ) । उत्थग्घ -- संमर्द, उपमर्द ( दे १।९३ ) । उत्थरिय -- १ उत्थित ( दे ७।९२ ) । २ आक्रांत ( पा ५८५ ) । ३ निर्गत । उत्थलिअ -- १ गृह । २ ऊंचा गया हुआ ( दे १।१०७ ) । उत्थल्ल -- उथलना, पलटना ( दअचू पृ ११५ ) । उत्थल्लण -- धकेलना, उछालना ( प्र ३।१० ) । उत्थल्लपत्थल्लण -- उथल-पुथल-'उत्थल्ल-पत्थलणेण भुक्तम्' (ओटीप १९२ ) । उत्थल्लपत्थल्ला -- दोनों पावों से परिवर्त्तन, उथल-पुथल ( दे १।११२ ) । उत्थल्ला -- १ परिवर्त्तन ( दे १।९३ ) । २ उद्वर्तन । उत्थाण -- अतिसार रोग ( व्यभा ७ टी प ८५ ) । उदअ -- गढा, अवपात-'गर्त्ताविशेषेषु उदक इत्येवंरूढेषु' ( प्रटी प २२ ) । उदंक -- जल का पात्र-विशेष जिससे जल ऊंचा छिड़का जाता है ( जीवटी प १४६ ) । उदकघसर -- नाली, मोरी ( ओटी पृ ३६५ ) । उदग -- अनंतकायिक वनस्पति-'तत्थ उदगं नाम अणंतवणप्फई, से भणियं च उदए अवए पणए सेवाले' ( दजिचू पृ २७७ )। उदरिय -- १ आजीविका के लिए इधर उधर घूमने वाले । २ पाथेय युक्त यात्री-'उदरिया णाम जहिं गता तेहिं चेव रूवगावी छोढुं समुद्दि-संति पच्छा गम्मति। गहियसंबला उदरिया' ( निचू ४ पृ ११० ) । उदसी -- छाछ-'तक्कं उदसी छासि त्ति एगट्ठं' ( निचू १ पृ ९२ ) । उदाण -- वनस्पति का एक प्रकार ( अंवि पृ २६६ ) । उदूक्खल -- मुशल-'मुशलं उक्खलं वा' ( आचू पृ ३३९ ) । उद्द -- १ सिन्धु देश के मत्स्य-विशेष-'उद्राः सिन्धुविषये मत्स्याः' । २ मत्स्य-चर्म का बना हुआ वस्त्र-विशेष ( आचूला ५।१५; टी प ३९३ ) । देखें-'उट्ट' । ३ जल-मानुष । ४ ककुद, बैल के कंधे का कूबड़ ( दे १।१२३ ) । उद्दंसग -- मत्कुण, त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष ( प्रज्ञा १।५० ) । उद्दद्दर -- सुभिक्ष-'दुविधा दरा-धण्णदरा पोट्टदरा य, ते उद्दं जाव भरिया तं उद्दद्दरं भण्णति। पर्यायवचनेन सुभिक्षमित्यर्थ:' ( निचू ३ पृ ८० ) । उद्दरिअ -- १ उखाड़ा हुआ ( दे १।१०० ) । २ स्फुटित, विकसित ( पा ५१३ ) । ३ उद्दर्पित ( नंदीटि पृ १०१ ) । ४ युद्ध से पलायित । उद्दा -- ऊदबिलाव, जलमार्जार ( सू १।७।१५ ) । उद्दाइंत -- शोभमान ( ज्ञा १।१।३३ ) । उद्दाइय -- दीमक, कीट ( निचू १ पृ १५५ ) । उद्दाण -- १ परित्यक्त ( निचू २ पृ १४ ) । २ मृत-'उद्दाणे भोइयम्मि चेइयाइं वंदामि' ( उसुटी प २ ) । ३ चुल्हा ( दे १।८७ ) । उद्दाणग -- मृत-'उद्दाणगं जायं तं मए विगिंचियं' ( आवहाटी २ पृ १४० ) । उद्दाणभत्तारा -- पति के द्वारा परित्यक्त स्त्री-'उद्दाणभत्तारा भत्तारेण परिठविता' ( निचू २ पृ १४ ) । उद्दाम -- १ संघात । २ विषमोन्नत प्रदेश ( दे १।१२६ ) । उद्दाल -- वृक्ष-विशेष ( जीव ३।५८१ ) । उद्दालक -- वृक्ष-विशेष ( जीवटी प १४५ ) । उद्दिक -- घट का एक प्रकार ( अंवि पृ २५५ ) । उद्दिट्ठा -- अमावस्या (स्था ४।३६२ ) । उद्दिसिअ -- उत्प्रेक्षित ( दे १।१०९ ) । उद्दीढ -- भक्षित, खाया हुआ ( निचू ३ पृ ५८७ ) । उदुंडुग -- उपहास का पात्र ( बृभा ४००२ ) । उद्दूढ -- १ चुराया हुआ, मुषित-'देशीवचनत्वाद् मुषितं' ( बूटी पृ ८२५ ) । २ पराजित ( अंबि पृ २५० ) । उद्देसग -- जंतु-विशेष, दीमक ( जीवटी प ३२ ) । उद्देहि -- उपदेहिका, दीमक ( दे १।९३ ) । उद्देहिगा -- १ दीमक । २ दीमक द्वारा कृत वल्मीक की मिट्टी ( पिटी प २० ) । उद्देहिया -- दीमक-'उद्देहियाखइयं वा कट्ठं दुब्बलं' ( आचू पृ २१२ ) । उद्धइय -- आभ्यंतर-'उद्धइयाहिं देसीभासातो जं अब्भंतरं वुच्चति । ( आचू पृ २१५ ) । उद्धच्छवि -- विसंवादित, विपरीत, अप्रमाणित ( दे १।११४ ) । उद्धच्छविअ -- सज्जित ( दे १।११९ ) । उद्धच्छिअ -- निषिद्ध ( दे १।१११ ) । उद्धट्ट -- ऊंचा ( सूचू १ पृ १०४ ) । उद्धट्टक -- उपहास पैदा करने वाली भाषा या आवाज ( बृटी पृ १६७० ) । उद्धत्थ -- विप्रलब्ध, वंचित ( दे १।९६ ) । उद्धरण -- उच्छिष्ट, जूठा ( दे १।१०६ ) । उद्धवअ -- उत्क्षिप्त, ऊपर फेंका हुआ ( दे १।१०६ ) । उद्धविअ -- पूजित ( दे १।१०७ ) । उद्धाअ -- १ ऊबड़-खाबड़ प्रदेश, ऊंचा-नीचा प्रदेश । २ श्रान्त, थका हुआ । ३ संघात, समूह ( दे १।१२४ ) । उद्घाण -- उद्वसित, उजड़ा हुआ ( व्यभा ४।४ टी प ७० ) । उद्धाविय -- समुद्रचारी डाकू आदि अत्यन्त क्रूर मनुष्य-'किं वा अहं सभग्गोत्ति चिंतयंतो च्चिय सहसा उद्धाविएहिं बद्धो' ( कु पृ ६९ ) । उद्धि -- गाड़ी का एक अवयव ( सूर्य १०।३७ ) । उंध ( गुज ) । उद्धुमात -- व्याप्त ( नंदीचू पृ ६ ) । उद्धुमाय -- पूर्ण ( पा १४२ ) । उधेइ -- दीमक ( निचू ३ पृ १२४ ) । उदई ( राज ) । उन्नालिअ -- उन्नामित, ऊंचा किया हुआ ( पा ५०८ ) । उपघसर -- नाली, मोरी ( ओटी पृ ३६५ पा ) । उपासना -- नापित-कर्म, हजामत-'उपासना नाम श्मश्रुकर्त्तनादिरूपं नापित-कर्म' ( आवमटी प १९९ ) । उप्पंक -- १ कर्दम, पंक । २ ऊंचाई । ३ समूह । ४ अत्यधिक ( दे १।१३० ) । उप्पर -- ऊपर ( जीभा १४६२ ) । उप्पल -- संख्या-विशेष-'चतुरशीतिरुत्पलाङ्गा-शतसहस्राणि एकमुल्पलम्' ( जीवटी प ३४५ ) । उप्पलंग -- संख्या-विशेष ( भ ५।१८ ) । उप्पल्लाणित -- अश्व से पलाण उतारना-'उप्पल्लाणितो आसो । विस्सामितो राया' ( उसुटी प २५१ ) । उप्पाडक -- त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष ( अंवि पृ २६७ ) । उप्पातिका -- मत्स्य की एक जाति ( अंवि पृ २२८ ) । उप्पाय -- त्रीन्द्रिय जन्तु विशेष ( प्रज्ञा १।५० ) । उप्पाहल -- उत्कण्ठा ( पा ८०३ ) । उप्पिं -- ऊपर ( अनु ३।९ ) । उप्पिंगलिआ -- करोत्संग, हाथ को गोदरूप बनाना ( दे १।११८ ) । उप्पिंजल -- १ मैथुन । २ धूल । ३ अपकीर्ति, अपयश ( दे १।१३५ ) । उप्पिच्छ -- १ त्वरित । २ तीव्र श्वास - श्वासयुतं त्वरितं वा '( अनुद्वाचू पृ ४६ ) । ३ त्रस्त, भीत ( ज्ञाटी प १६८ ) । ४ आकुल । ५ कुपित - उप्पिच्छं नाम आकुलम् आहित्यं उप्पिच्छं च आउलं रोसभरियं च' ( जीवटी प १९४ ) । उप्पित्थ -- १ व्याकुल - 'उप्पित्थशब्दस्त्रस्त व्याकुलवाची देशीति क्वचित्' ( से ११।४० ) । २ लयबद्ध श्वास ( राजटी पृ १८९ ) । ३ कुपित । ४ विधुर ( दे १।१२९ ) । उप्पियण -- बार-बार श्वास लेना ( व्यभा ४।४ टी प ५० ) । उप्पीड -- समूह, राशि ( से ४।३७ ) । उप्पील -- १ संघात, समूह - 'पसरिओ बहुलो धूमुप्पीलो' (कुपृ १०८; दे १ । १२६) । २ विषमोन्नत - प्रदेश ( दे १ । १२६) । उप्पुय -- उत्सुक ( प्रटी प ५२ ) । उप्पेअ -- अभ्यंग, तैल आदि से मालिस - 'उप्पेअं देशीपदमेतत् अभ्यङ्गम्' ( व्यभा ६ टी प १०) । उप्पेस -- त्रास ( से १०।६१ ) । उप्पेहड -- १ उद्भट, तीव्र ( दे १।११६ ) । २ आडंबरयुक्त ( पा ९० ) । उप्फंदोल -- अस्थिर ( दे १।१०२ ) । उप्फल्ल -- दुर्जन, खल ( ति ९०१ ) । उप्फाल -- दुर्जन ( ति ९००; दे १।९०) । उफिस -- उफनना ( बृटी ) । उप्फुंकिआ -- धोबिन, कपड़ा धोने वाली ( दे १।११४ ) । उप्फुंडिअ -- बिछाया हुआ, आस्तृत ( दे १।११३ ) । उप्फुण्ण -- आपूर्ण, भरा हुआ ( दे १।९२ ) । उप्फुन्न -- स्पृष्ट, छुआ हुआ ( प्रसाटी प ३०४ ) । उप्फुरुहंसिगा -- प्रज्वलित अंगीठी ( सूचू १ पृ १२५ ) । उप्फेणउप्फेणिय -- क्रोध से उफनते हुए-'उप्फेणउप्फेणियं सीहसेणं रायं एवं वयासी' ( विपा १।९।१८ ) । उप्फेणओफेणीय -- क्रोध से उफनते हुए ( विपाटीप ८३ ) । उप्फेस -- १ मुकुट ( स्था ५।७२ ) । २ त्रास, भय ( दे १।९४) । ३ अपवाद, निन्दा ( वृ ) । उप्फेसण -- त्रास, भय ( उसुटी प ५८ ) । उप्फेसया -- निन्दा-'असरिसजण उप्फेसया ण हु सहियव्वा कुले पसू एण' ( दे १।९४ वृ ) । उप्फोअ -- उद्गम, उदय ( दे १।९१ ) । उप्फोस -- १ त्रास ( निभा १४८० ) । २ प्रक्षालन ( निभा ४०८५ ) । उप्फोसण -- सिंचन, छिड़काव - 'आवरिसणं पाणिएण उप्फोसणं' ( निचू २ पृ १६५.) । उबेड्ड -- अन्तःप्रविष्ट ( आव २ पृ १६५ ) । उब्बिब -- १ खिन्न । २ शून्य । ३ भयभीत । ४ उद्भट, उग्र । ५ क्रांत । ६ प्रकट वेष वाला ( दे १।१२७ ) । उब्बिबल -- कलुषित जल, मैला पानी ( दे १।१११ ) । उब्बुक्क -- १ प्रलपित । २ संकट । ३ बलात्कार ( दे १।१२८ ) । उब्बड -- अन्तःप्रविष्ट, गड़ी हुई - 'उब्बुड्डणयणकोसे' ( अनुटी प ७ ) । उब्बूर -- १ अधिक । २ संघात, समूह । ३ स्थपुट, विषमोन्नत प्रदेश ( दे १।१२६ ) । उब्भ -- १ खड़ा हुआ ( निचू १ पृ ५४ ) । २ ऊर्ध्व ( दे १।८६ वृ ) । उब्भंड -- फूहड, अस्त-व्यस्त वेशभूषा ( बृभा ६१५७ ) । उब्भंत -- ग्लान ( दे १।९५ ) । उब्भग्ग -- व्याप्त ( दे १।९५ ) – तिमिरोब्भग्गणिसाए' ( वृ ) । उब्भज्जी -- क्षीरपेया- 'कलमोतणो उ पयसा, उक्कोसो हाणि कोद्दवुब्भज्जी' ( ओभा ३०७ ) । उब्भट्ट -- मांगा हुआ - उब्भट्टपरिन्नायं अन्नं लद्धं पओयणे घेत्थी' ( पिनि २८१ ) । उब्भाअ -- शांत ( दे १।९६ ) । उब्भालण -- १ धान्य को छाज आदि से साफ-सुथरा करना ( दे १।१०३ ) । २ अपूर्व ( वृ ) । उब्भालिअ -- सूर्प आदि से साफ किया हुआ ( पा ५३८ ) । उब्भावण -- परिभव ( ओनि १४८ ) । उब्भावणा -- अपभ्राजना, तिरस्कार ( उशाटी प १६९ ) । उब्भाविअ -- मैथुन ( दे १।११७ वृ ) । उब्भासुअ -- शोभा-हीन ( दे १।११० ) । उब्भुआइअ -- उभरा हुआ ( दे १।१०५ वृ ) । उब्भुआण -- उफनता हुआ, अग्नि से तप्त दूध आदि का उछलना ( दे १।१०५ ) । उब्भुग्ग -- चल, अस्थिर ( दे १।१०२ ) । उब्भुत्तिअ -- उद्दीपित, प्रदीपित ( पा १६ ) । उब्भुभंड -- भांड-विशेष ( अंवि पृ १९३ ) । उब्भे -- तुम सब ( दे १।८६ वृ ) । उभज्झी -- क्षीरपेया ( ओटीप १९६ ) । उमत्थिय -- बांधकर - 'सव्वोवही ( एगट्ठा कज्जति भायणं उमत्थिए ) एगट्ठाणे पुढो कज्जति' ( निचू ३ पृ ३७४ ) । उमाण -- प्रवेश - 'उमाणं ति प्रवेशः' ( आटी प ३२६ ) । उमुत्तिल्लय -- १ बहु-मूत्र रोगवाला । २ मूत्राशय में सूजनवाला-जेण वा कट्ठाइणा संचालेति तं सविसं उमुत्तिल्लयं वा खयं वा कट्ठेण हवेज्जा' ( निचू २ पृ २८ ) । उम्मइअ -- मूढ़, मूर्ख ( दे १।१०२ ) । उम्मंड -- १ हठ, आग्रह । २ उद्वृत्त, बचा हुआ ( दे १।१२४ )। उम्मच्छ -- १ असंबद्ध । २ भंगयुक्त, विकल्प से कथित । ३ क्रोध ( दे १।१२५ ) । उम्मच्छविअ -- उद्भट, तीव्र ( दे १।११६ ) । उम्मच्छिअ -- १ रुष्ट । २ आकुल ( दे १।१३७ ) । उम्मड्डा -- बलात्कार ( दे १।९७ ) । उम्मत्त -- १ धतूरा ( दे १।८९ ) । २ एरण्ड ( वृ ) । उम्मत्थ -- अधोमुख, विपरीत ( दे १।९३ ) । उम्मर -- देहली ( आचू पृ ३६४; दे १।९५ ) । उम्मरिअ -- उत्खात ( दे १।१०० ) । उम्मल -- जमा हुआ, स्त्यान, कठिन ( दे १।९१ ) । उम्मल्ल -- १ नृप । २ मेघ । ३ पुष्ट, पीवर । ४ बलात्कार ( दे १।१३१ ) । उम्मल्ला -- तृष्णा ( दे १।९४ ) । उम्माल -- देवता को चढाई गई वस्तु, निर्माल्य ( पा ३५२ ) । उम्मुह -- अभिमानी ( दे १।९९ ) । उम्हाविअ -- मैथुन ( दे १।११७ ) । उयचित -- परिकर्मित, संस्कारित ( ज्ञाटी प १७ ) । उयचिय -- परिकर्मित ( ज्ञाटी प १७ ) । उयट्टिणी -- जंघा - उयट्टिणीए णीणेऊण दरिसिओ' - जंघाया निष्काश्य दर्शितः' ( उशाटी प ११८ ) । उयट्टी -- १ कटी । २ जंघा - 'जेण घेत्तुं उयट्टीए छूढो - येन गृहीत्वा कट्यां ( जंघायां ? ) क्षिप्त:' ( उशाटी प ११८ ) । उयणिसय -- रहस्य-कला, जादू-टोना, मुगटनी कला ( कु पृ २२ ) । उयरिय -- उतरकर - 'मज्झे वा उयरिय पाणियं पियह' ( ओटीपृ ३६२ ) । उयरी -- गर्भवती ( कु पृ १६२ ) । उयल्ल -- मृत - 'जाहे अदिस्सो जाओ ताहे तहठिया चेव रागसंमोहियमणा उयल्ला' ( आवहाटी १ पृ १८२ ) । उयविय -- जीत लेने पर - उयविए प्रसाधिते अर्धभरते' ( व्यभा ६ टीप ४५ ) । उर -- आरम्भ ( दे १।८६ ) । उरंउरेण -- साक्षात् -'रहबलेण वा चाउरंगेणं पि उरंउरेणं गिण्हित्तए' ( विपा १।३।५० ) ! उरंमुह -- ओंधेमुंह - 'परंमुहा पडंतु उरंमुहा पासेल्लिया (वा) ' ? ( आवहाटी १ पृ २८५ ) । उरच्छक -- मद्य का बड़ा पात्र ( अंवि पृ २५९ ) । उरणा -- वेणी में गूंथा जाने वाला ऊन का आभरण ( अंवि पृ ६४ ) । उरणि -- जन्तु- विशेष ( बृभा ५८८३ ) । उरणी -- त्रीन्द्रिय जंतु विशेष ( अंवि पृ २३७ ) । उरत्त -- खण्डित, विदारित ( दे १।९० ) । उरत्थय -- कवच, वर्म ( पा २७४ ) । उररि -- पशु, बकरा ( दे १।८८ ) । उरल -- १ स्थूल, बड़ा । २ असघन, विरल - 'उरलं तिविरलं न तु घनम्' ( प्रज्ञाटी प २६९ ) । उराल -- १ सुन्दर - 'अणुस्सुओ उरालेसु जयमाणो परिव्वए' ( सू १।६।३० ) । २ प्रधान ( स्था १०।१०३ ) । ३ भीषण - 'भीमा भय भेरवा उराला ( उ १५।१४ ) । ४ विशाल विस्तृत - 'भण्णइ य तहोरालं वित्थरवंतवणस्सति पप्प । पयतीय णत्थि अण्णं एद्दहमेत्तं विसालंति ॥' ( अनुद्वाहाटी पृ ८७ ) । ५ हरित वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।४४ ) । उरालक -- धान्य-विशेष ( अंवि पृ ६६ ) । उरालिय -- औदारिक शरीर- 'मंसट्ठिहारुबद्धं उरालियं समयपरिभासा' ( अनुद्वाहाटी पृ ८७ )। उरिणण -- कपास निकालना ( ओटी पृ ३७३ पा ) । उरुणण -- कपास निकालना ( ओटी पृ ३७३ ) । उरुणी -- गृह उपकरण ( अंवि पृ १४२ ) । उरुपुल्ल -- १ अपूप, पूआ । २ धान्यों के मिश्रण से बना खाद्य, खिचड़ी आदि ( दे १।१३४ ) । उरुमिल्ल -- प्रेरित ( दे १।१०८ ) । उरुलुंचग -- त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष ( प्रज्ञा १।५० ) । उरुसोल्ल -- प्रेरित ( दे १।१०८ ) । उलइय ( ओलइय ? ) -- लटका दिया ( व्यभा १० टी प ८० ) । उलग -- हल चलाने वाला - 'उलगादिभतओ भतीए घेप्पति' ( दश्रुचू प ३८ ) । उलणा -- देवी-विशेष ( अंवि पृ २२३ ) । उलवी -- पानी को सुगंधित करनेवाला एक प्रकार का घास ( पा ६२८ ) । उलाण -- बाज पक्षी - 'उलाणसिंगतससयाण जालच्छइयाए' ( निचू २ पृ २८१ ) । उलिअ -- निकूणित आंख वाला, टेढी आंख वाला ( १।८८ )। उलित्त -- ऊंचा कुंआ, ऊंची भूमी पर स्थित कुंआ ( दे १।८६ ) । उलुउंडिअ -- १ प्रलुठित । २ विरेचित ( दे १।११९ ) । उलुकसिअ -- पुलकित ( दे १।११५ ) । उलुखंड -- उल्मुक, अलात ( दे १।१०७ ) । उलुफुंटिअ -- १ विनिपातित । २ प्रशान्त ( दे १।१३८ ) । उलुहंत -- काक, कौआ ( दे १।१०९ ) । उलुहलिअ -- जो कभी तृप्त नहीं होता, अतृप्त ( दे १।११७ ) । उल्लअण -- अर्पण ( से ११।५१ ) । उल्लंकय -- काष्ठपात्र - उल्लंकओ कट्ठमओ पत्तो' ( निभा ४११३ ) । उल्लंचिय -- खाली करना - 'सो तस्स कए समुद्दं उल्लंचिउमाढत्तो' ( आवहाटी १ पृ २७६ ) । उल्लंठ -- उद्धत - 'उल्लंठवयणा विग्घाणि करेंति' ( उसुटी प ६६ ) । उल्लंडग -- मिट्टी का गोला- 'उल्लंडगा परिबज्झंति मृद्गोलकमित्यर्थः' ( निचू ३ पृ १६० ) । उल्लंडिअ -- बाहर निकाला हुआ, रिक्त किया हुआ ( पा ५९२ ) । उल्लग -- कृश, क्षीण - सा उल्लगसरीरा जाया' ( उशाटी प ३०० ) । उल्लढ -- शुष्क, सूखा ( ओटी पृ ३५६ पा ) । उल्लण -- छाछ से गीला किया हुआ ओदन, खाद्य- विशेष ( पिनि ६२४ ) । उल्लणिया -- शरीर पोंछने का वस्त्र, तोलिया ( उपा १।२९ ) । उल्लत्थपल्लत्थ -- असमंजस, उलट पलट, अव्यवस्थित - 'उल्लत्थपल्लत्था से आलावया दिज्जंति' ( आवहाटी २ पृ ९१ ) । उल्लद -- उतार कर - 'तत्थ बइल्ले उल्लदेत्ता उवक्खडेंति' ( आवहाटी १ पृ १९४ ) । उल्लरय -- कौडिओं का आभूषण ( दे १।११० ) । उल्ललिअ -- शिथिल, ढीला ( दे १।१०४ )। उल्लसिय -- पुलकित ( दे १।११५ ) । उल्लाय -- पाद-प्रहार ( तंदु १६२ ) । उल्लायक -- कर्माजीवी ( अंवि पृ ९० ) । उल्लिअ -- १ खींचा हुआ, छीला हुआ - 'उल्लिओ फालिओ गहिओ मारिओ य अणंतसो' ( उ १९।६४ ) । २ उपागत ( कु पृ १६१ ) । उल्ली -- काई, शैवाल - 'पणओ उल्ली' ( निचू २ पृ १९७ ) । २ दांत पर जमनेवाली पपड़ी - 'उल्ली दंतेसु दुग्गंधा' ( आवचू २ पृ ७२ ) । ३ चुल्हा, चुल्ली ( दे १।८७ ) । उल्लुंटिअ -- चूर्णित, चूरा-चूरा किया हुआ ( दे १।१०९ ) । उल्लुक्क -- त्रुटित, टूटा हुआ ( दे १।९२ ) । उल्लुग -- विकृत, त्रुटित ( प्रटी प २२ ) । उल्लुट्ट -- मिथ्या ( दे १।८६ ) । उल्लुरुह -- छोटा शंख ( दे १।१०५ ) । उल्लूड -- विध्वंस ( व्यभा ५ टी प ७ ) । उल्लूडित -- विध्वंसित, नष्ट ( व्यभा ५ टी प ७ ) । उल्लूढ -- १ आरूढ़ ( दे १।१०० ) । २ अंकुरित ( वृ ) । उल्लूरधूविता -- खाद्यपदार्थ-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । उल्लूरिया -- मिठाई ( उसुटी प ८६ ) । उल्लूह -- शुष्क, सूखा - 'उल्लूहं च नलवणं हरियं जायं' ( ओटी प ३५६ ) । उल्लेव - हास्य, हंसी ( दे १।१०२ ) । उल्लेवअ -- हंसी, हास्य ( दे १।१०२ वृ ) । उल्लेहड -- लम्पट, लुब्ध ( दे १।१०४ ) । उल्लोइय -- खड़ी आदि से भींत को पोतना ( जंबू १।३७ ) । उल्लोग -- थोड़ा, अल्प ( बृभा १६०५ ) । उल्लोच -- वितान, चंदोवा ( दे १।९८ ) । उल्लोट्ट -- अपवर्तन, मुडना ( प्रटी प ८६ ) । उल्लोपिक -- भोज्य पदार्थ विशेष ( अंवि पृ १८२ ) । उल्लोय -- चंदोवा, वितान ( बृभा ५६८१ ) । उल्लोल -- १ शत्रु ( ति ८८५; दे १।९९ ) । २ जलतरंग ( पा ५६ ) ३ कोलाहल । उल्लोहित -- पुता हुआ - 'उल्लोहितं उव्वलितं तधा उच्छाडितं ति वा' ( अंवि पृ १०६ ) । उल्हक -- छोटा चूल्हा ( पिनि ५४ ) । उल्हसिअ -- उद्भट, तीव्र ( दे १।११६ ) । उव -- पक्षी-विशेष ( अंवि पृ ६२ ) । उवअ -- हाथी को पकड़ने के लिए बनाया गया गढा ( पा ६०० )। उवइक -- दीमक ( बूटी पृ १६६९ ) । उवइग -- दीमक ( निचू १ पृ ९६ ) । उवइय -- त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष ( जीव १।८८ ) । उवउज्ज -- उपकार ( दे १।१०८ ) । उवएइआ -- मद्य परोसने का पात्र ( दे १।११८ ) । उवक -- गढा, खातिका ( बृटी पृ २२२ ) । उवकय -- सज्जित ( दे १।११९ ) । उवकयय -- सज्जित ( दे १।११९ वृ ) । उवकसिअ -- १ सन्निहित, पास में पड़ा हुआ । २ परिसेवित । ३ सर्जित, सृष्ट ( दे १।१३८ ) । उवक्खडाम -- कोरडू, जो धान्य-कण पकाने पर भी नहीं पकता -' उवक्खडामं णाम जहा चणयादीण उक्खडियाण जे ण सिज्भंति ते कंकडुया, तं उवक्खडामं भण्णति' देखें- 'कंकडुय' ( निचू ३ पृ ४८४ ) । उवग -- १ योग्य - उवगा नाम योग्या:' ( सूचू १ पृ ४५ ) । २ गढा ( निचू ४ पृ ४८ ) । उवचिक -- त्रीन्द्रिय जंतु-विशेष ( अंवि पृ २६७ ) । उवचुल्ल -- छोटा चूल्हा ( निचू १ पृ ८२ ) । उवचुल्लग -- छोटा चूल्हा ( निचू १ पृ ८२ ) । उवजंगल -- दीर्घ ( दे १।११६ ) । उवट्टिअ -- अनाथ, अशरण - उवट्टितो अणाहो असरणेत्यर्थः ' ( निचू १ पृ १२२ ) । उवतिग -- दीमक - संचारोवतिगादी, संजमे आयाऽहि विच्चुगादीया' ( बृभा ६३२२ ) । उवत्थवण -- अस्तमन ( वेला ) ( निचू १ पृ ८७ ) । उवदीव -- द्वीपान्तर, अन्यद्वीप ( दे १।१०६ ) । उवयिय -- त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष ( जीवटी प ३२ ) । उवर -- कक्ष, कोठरी, तलघर ( निभा १७३ ) । उवरिग -- माल का निरीक्षण करने वाला अधिकारी - 'सामि ! पेसेह उवरिगो जो भंडं निरूवेइ' ( उसुटी प ६५ ) । उवरिल्ल -- ऊपर ( पंक १४१ ) । उवरिल्लअ -- मजबूत वस्त्र, मोटा कपड़ा-'विरइओ उवरिल्लएण पासो, णिबद्धो य कीलए' ( कु पृ ५३ ) । उवरेग -- व्यापाररहित - 'तत्थ वरिसमेत्तं उवरेगं गओ' ( उसुटी प ७९ ) । उवलभत्ता -- कंगन ( दे १।१२० ) । उवलयभग्गा -- कंगन ( दे १।१२० ) । उवललय -- मैथुन ( दे १।११७ ) । उवलुअ -- लज्जायुक्त, लज्जालु ( दे १।१०७ ) । उवलेद्द -- सन्तुष्ट - 'तीसे महिलाए कप्पासमोल्लं दिन्नं, साय उवलेद्दा' ( उशाटी प १९२ ) । उवसग्ग -- मंद ( दे १।११३ ) । उवसेर -- रति-योग्य ( दे १।१०४ ) । उवहत्थिय -- समारचित, सज्जित ( दे १।११९ वृ ) । उवहा -- मच्छ ( निभा ४२२३ पा ) । उवहावण -- परिभव ( ओटीप १३१ ) । उवाई -- 'पोताकी' विद्या की प्रतिपक्षी विद्या ( उसुटी प ७३ ) । उवातिय -- खाद्य-विशेष ( निचू ३ पृ ५२१ ) । उवारस -- एक प्रकार का प्रावरण- 'उवारसा कंबला खरडगपारिगादि पावारगा' ( निचू २ पृ ४०० ) । उवासणा -- क्षौरकर्म, हजामत ( बृभा २०६७ ) । उविअ -- १ संस्कारित, परिकर्मित ( ज्ञा १।१।२४ ) । २ शीघ्र ( १।८९ ) । उव्वक्क -- धौत, दूध में भिगोकर निकाला हुआ - 'जह पुण ते चेव तिला उसिणोदगधोयखीरउव्वक्का' ( व्यभा ३ टी प ११० ) । उव्वट्ट -- १ नीराग, रागरहित । २ गलित ( दे १।१२९ वृ ) । उवट्टी -- नीवी, स्त्री के कटिवस्त्र की नाडी ( दे १।१५१ पा ) । उव्वण्ण -- उत्कण्ठित ( व्यभा ७ टी प ६ ) । उब्वत्त -- १ रागरहित । गलित ( दे १।१२९ ) । उव्वर -- १ कक्ष, तलघर - 'पुव्वखओ जो भूघरोव्वरो' ( निचू १ पृ ६७ ) । २ धान्य रखने का कोठा ( बृभा ३२९९ ) । ३ घाम, ऊष्मा ( दे १।८७ ) । उव्वरअ -- कोष्ठागार - 'उव्वरओ त्ति वा कोट्ठगो त्ति वा एगट्ठं' विशेषचूणौ' ( बूटी पृ ९२६ ) । उव्वरग -- कोठरी- 'सव्वोवगरणं उव्वरगे छुभंति, अह णत्थि उव्वरगो तो सव्वोवकरणं एगकोणे करेंति' ( निचू २ पृ १७८ ) । उव्वरिअ -- १ अधिक । २ अनीप्सित । ३ निश्चित । ४ ताप । ५ अगणित ( दे १।१३२ ) । ६ अतिक्रान्त, उल्लंधित । उव्वविय -- तीन इन्द्रिय वाला जन्तु-विशेष ( जीव १।८८ ) । उव्वहण -- महान् आवेश ( दे १।११० ) । उव्वा -- धर्म, ताप ( दे १।८७ ) । उव्वाअ -- खिन्न ( दे १।१०२ ) । उव्वाउल -- १ गीत । २ उपवन ( दे १।१३४ ) । उच्वाडुअ -- १ विपरीत मैथुन । २ मर्यादा - शून्य मैथुन ( दे १।१३३ ) । उव्वाढ -- १ विस्तीर्ण, विशाल । २ दुःखमुक्त ( दे १।१२९ ) । उव्वात -- श्रान्त, थका हुआ ( निचू ४ पृ २८७ ) । उव्वाय -- परिश्रान्त, थका हुआ - 'धावंतो उव्वाओ, मग्गन्नू किं न गच्छइ कमेणं' ( बृभा ३२० ) । उव्वाह -- धर्म, ताप ( दे १।८७ ) । उव्वाहिअ -- उत्क्षिप्त, ऊपर उछाला हुआ ( दे १।१०६ ) । उव्वाहुल -- १ कामासक्ति से उत्पन्न उत्सुकता । २ द्वेष्य, द्वेष-पात्र ( दे १।१३६ ) । उव्विडिम -- १ अधिक प्रमाणवाला । २ मर्यादारहित, स्वच्छंद ( दे १।१३४ ) । उव्विवार -- भूकंप - 'उव्विवारा जलोहंता तेतणीए मतोट्ठितं' ( इ ४५।१४ ) उव्विव्व -- १ उद्भट वेषयुक्त ( पा ५६७ ) । २ क्रुद्ध । उव्वीढ -- उत्खात, खोदा हुआ ( दे १।१०० )। उव्वुण्ण -- १ उद्विग्न । २ उत्सिक्त । ३ उद्भट, तीव्र । ४ शून्य ( दे १।१२३ ) । उव्वेताल -- निरन्तर रुदन ( दे १।१०१ ) । उव्वेल्लय -- त्वरा - 'एसो सो चेय मओ चल-चल्लुव्वेल्लयं करेऊण' ( कु पृ १८६ ) । उव्वेल्लिर -- १ उत्फुल्ल, चंचल ( कुपृ ७८ ) । २ शीघ्रगामी ( कु पृ २०१ ) । उव्वेहलिया -- वनस्पति-विशेष ( भ २३।४ ) । उव्वेहासित -- ऊंचा किया हुआ ( अंवि पृ १४८ ) । उसणसेण -- बलभद्र ( दे १।११८ ) । उसणी -- एक प्रकार का धान्य जिसमें से तेल निकलता है ( अंवि पृ २३२ ) । उसद्ध -- उत्कृष्ट – 'उसद्धं - उत्कृष्टं' ( आचू पृ ३६२ ) । उसध -- पुष्प-विशेष ( अंवि पृ २३२ ) । उसीर -- पद्मनाल, कमलनाल ( दे १।९४ ) । उसु -- बालक का इषु के आकार का एक आभरण ( पिनि ४२४ ) । २ तिलक - 'उसू तिलगा' ( निचू ३ पृ ४०७ ) । उसुअ -- दूषण, भूल ( दे १।८९ ) । उसुक -- तिलक, आभरण- विशेष ( निचू ३ पृ ४०७ )। उसुकाल -- उदूखल ( निचू ३ पृ ३७८ ) । उसुयाल -- ऊखल, उदूखल ( आचूला ५। ३६ ) । उस्स -- ओस ( स्था ४।६४० ) । उस्सण्ण -- १ प्राय: ( बृभा २०४ ) । २ प्रभुत ( व्यभा २ टी प ९२ ) । उस्सन्न -- प्रायः ( भ १५।१८६ वृ ) । उस्सयण -- अभिमान - पलिउंचणं च भयणं च थंडिल्लुस्सयणाणि च ( सू १।९।११ ) । उस्सरण -- वपन, बुआई - 'निच्चुदग नदी कुडंगमुस्सरणं' ( बृभा ४०३५ ) । उस्सा -- गाय ( दे १।८६ वृ ) । उस्सिंघण -- मर्दन- 'उस्सिंघण-मक्खणऽब्भंगण उच्छंदण उव्वट्टण' ( अंवि पृ १९३ ) । उस्सुग -- मध्य-भाग ( आचूला १।११६ पा ) । उस्सूलग -- परिखा, खाई ( उ ९।१८ ) । देखें-'उच्छूलग' । उस्सूलय -- १ परिखा । २ शत्रु सेना का नाश करने के लिए ऊपर से आच्छादित गर्त्त- विशेष ( उशाटी प ३१० ) । उस्सेल्लय -- सर्षपनाल से निष्पन्न शाक - 'एगेण साहुणा सासवणालुस्सेल्लयं सुसंभृतं लद्धं' ( निचू ३ पृ २६४ ) । उहर -- १ छोटा घर, उपगृह ( प्र १।१२ ) - 'उहर त्ति उपगृहाणि आश्रय-विशेषा:' ( टी प ११ ) । २ छोटा- 'उहरग्गाममयंमी' ( व्यभा ७ टी प ५६ ) । उहरक -- छोटा गांव ( व्यभा ७ टी प ५६) । उहावणा -- अपमान ( व्यभा ६ टी प ५ ) । ऊ ऊ -- १ गर्हा, निन्दा सूचक अव्यय - 'ऊति णाम मरहट्टादिसु णादिदुगुंच्छिज्जति' ( आचू पृ २३३ ) । २ प्रस्तुत वाक्य के विपरीत अर्थ की आशंका से उसे उलटना । ३ विस्मय । ४ सूचना । ऊआ -- यूका, जूं ( दे १।१३९ ) । ऊढिअय -- १ प्रावृत, आच्छादित । २ आच्छादन, प्रावरण ( पा ९३७ ) । ऊणंदिअ -- आनन्दित ( दे १।१४१ ) । ऊणिमा -- पूर्णिमा - 'तओ तीए चेव ऊणिमाए भरिऊण भंडस्स पत्थिओ' ( उसुटी प ६४ ) । ऊणिस -- तकिया 'सामायंति मुहाइं ऊणिसगहियाण व थणाण' ( कु पृ १७ ) । ऊमुत्तिअ -- दोनों पार्श्वों में आघात करना ( दे १।१४२ ) । ऊयरिणिया -- जंतु-विशेष - 'पत्तगबंधे ऊयरिणिया लग्गा' ( निचू १ पृ ९८ ) । ऊर – १ ग्राम । २ संघ ( दे १।१४३ ) । ऊरणिया -- जन्तु-विशेष ( निभा २८१ ) । ऊरणी -- मेष, भेड़ ( दे १।१४० ) । ऊरणीया -- जंतु विशेष । ( निचू १ पृ ९८ ) ऊल -- गतिभंग, उतावल ( दे १।१३९ ) । ऊसढ -- श्रेष्ठ, वर्ण आदि गुणों से युक्त, ताजा- 'ऊसढं ऊसढे ति वा, रसियं रसिए ति वा' ( आचूला १।५७ ) । ऊसण -- कामासक्ति से उत्पन्न उत्सुकता ( दे १।१३९ ) । ऊसत्थ -- १ जम्भाई । २ आकुल ( दे १।१४३ ) । ऊसय -- उपधान, तकिया ( दे १।१४० ) । ऊसल -- पीन, पुष्ट ( दे १।१४० ) । ऊसलिअ -- १ रोमांचित, पुलकित ( दे १।१४१ ) । २ उल्लसित ( वृ ) । ऊसविअ -- १ उद्भ्रांत । २ ऊंचा किया हुआ ( दे १।१४३ ) । ऊसाइअ -- १ विक्षिप्त ( दे १।१४१ ) । २ उत्क्षिप्त - 'ऊसाइअं उत्क्षिप्तमिति धनपाल:' (वृ ) । ऊसायंत -- खेद होने पर शिथिल ( दे १।१४१ ) । ऊसार -- विशेष प्रकार का गढा ( दे १।१४०) । ऊसिक्किअ -- प्रदीप्त (पा १६ ) । ऊसिग -- मध्यभाग ( आचूला १।११६ पा ) । ऊसुंभिअ -- १ अवरुद्ध गले से रोना, धीरे रोना ( दे १।१४२ ) । २ उल्लसित ( वृ ) । ऊसुक्किअ -- विमुक्त ( दे १।१४२ ) । ऊसुय -- मध्य भाग ( आचूला १।११६ ) । ऊसुर -- ताम्बूल, पान ( प्रा २।१७४ ) । ऊसुरुसुंभिअ -- अवरुद्ध गले से रोना, धीरे रोना ( दे १।१४२ ) । ऊहट्ट -- उपहसित ( दे १।१४० ) । ए एआवंती -- इतने - 'एआवन्ती सव्वावन्ती ति एतौ द्वौ शब्दी मगधदेशी-भाषाप्रसिद्धया एतावन्तः सर्वेऽपीत्येतत्पर्यायौ' ( आटी प २६ ) । एकल्ल -- अकेला ( ज्ञा १।१।१५७ ) । एकहेला -- एक साथ ( प्रटीप ४९ ) । एकाणंसा -- देवी-विशेष ( अंबि पृ २२३ ) । एकुडिया -- तीतर आदि का मांस पकाने की प्रक्रिया - 'आतंकाभिभूता रसगादिहेउं बगतित्तिरादीहि य एकुडियाओ पकरेंति' ( आचू पृ १६ ) । एक्क -- स्नेहिल ( दे १।१४४ ) । एक्कंग -- चन्दन ( दे १।१४४ ) । एक्कक्कम -- परस्पर ( से ५।५९ ) । एक्कघरिल्ल -- देवर, पति का छोटा भाई ( दे १।१४६ ) । एक्कणड -- कथिक, कथा कहने वाला ( दे १।१४५ ) । एक्कमुह -- १ धर्म रहित । २ दरिद्र । ३ प्रिय, इष्ट ( दे १।१४८ ) । एक्कमेक्क -- परस्पर ( प्रा ४।९ ) । एक्कयाण -- अकेला - 'किमंगरायं तुमं हरिणजातीण एक्कयाण परिनिव्विट्ठो ( व्यभा ४।३ टी प ८ ) । एक्कल्लग -- एकाकी ( अनुद्वाहाटी पृ ३५ ) । एक्कल्लपुडिंग- अल्प बिन्दु वाली वृष्टि ( दे १।१४७ ) । एक्कल्लय -- अकेला ( उसुटी प ८६ ) । एक्कल्लु -- अकेला ( उसुटीप ८० ) । एक्कवई -- रथ्या ( दे १।१४५ वृ ) । एक्कसरय -- एक बार ( व्यभा ६ टी प २ ) । एक्कसराए -- १ एक साथ । २ एक बार ( बृटी पृ ४६६ ) । एक्कसरिअं -- १ शीघ्र ( आवचू १ पृ २४९ ) । २ संप्रति, आजकल ( प्रा २।२१३ ) । एक्कसाहिल्ल – एक स्थान में रहने वाला, स्थिरवासी ( दे १।१४६ ) । एक्कसि -- एक बार ( व्यभा १० टी प ९० ) । एक्कसिंबली -- शाल्मली पुष्पों के साथ नूतन फली ( दे १।१४६ ) । एक्कसिय -- एक बार ( बृचू प २०८ ) । एक्कार -- लोहकार ( दे १।१४४ वृ ) । एक्कावण्ण -- इक्यावन ( निचू ४ पृ ११३ ) । एक्केक्कम -- अन्योन्य, परस्पर ( दे १।१४५ ) । एगओवत्त -- द्वीन्द्रिय जन्तु-विशेष ( प्रज्ञा १।४९ ) एगट्टिया -- नौका - 'एगट्ठियाए मग्गण-गवेसणं करेंति' ( ज्ञा १।१६।२८२ ) । एगल्ल -- एकाकी ( जीभा २१५ ) । एगसरग -- एक बार - 'एगसरगं ति एक्कं वारं दिज्जति' ( निचू ४ पृ ३४९ ) । एगायत -- अकेला - 'एगायताऽणुक्कमणं करेंति' ( सू १।५।४८ ) । एगाहच्च – एक ही प्रहार से मारना - 'तं पुरिसं एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोवेइ' (भ ७।२०२ ) । एगुणि -- उन्नीस ( उशाटी प ९ ) । एडण -- उत्सर्जन - 'तए णं सा नागसिरी••••तित्तालाउयस्स बहुसंभार-संभियस्स नेहावगाढस्स एडणट्ठयाए' ( ज्ञा १।१६।१४ ) । एडावण -- उत्सर्जन - 'अंबकूणग-एडावणट्ठयाए एगंतमंते संगारं कुव्वंति' ( भ १५।१३४ ) । एडिज्जमाण -- उत्सृज्यमान, उत्सर्जन करता हुआ ( ज्ञा १।१६।७५ ) । एडेत्ता -- उत्सृज्य, उत्सर्जन करके ( ज्ञा १।१६।७३ ) । एणुवासिअ -- मेंढक ( दे १।१४७ ) । एत्ताहे -- अब ( दे १।१४४ वृ ) । एत्तोप्पं -- यहां से लेकर, यहां से ( दे १।१४४ ) । एद्दह -- इतना ( दे १।१४४ वृ ) । एमाण -- प्रवेश करता हुआ ( दे १।१४४ ) । एमिणिआ -- वह स्त्री, जिसके शरीर को किसी देश के रिवाज के अनुसार, सूत के धागे से नाप कर उस धागे को फेंक दिया जाता है ( दे १।१४५ ) । एयावंति -- इतना ( आ १।७ ) । एरंडइअ— पागल - 'एरंडइए साणे त्ति हडक्कायित: श्वा' ( बृटी पृ ८२९ ) । एरंडइत -- पागल ( दश्रुचू प ५१ ) । एरग -- नागरमोथा ( बृभा १२२३ ) । एराणी -- १ इन्द्राणी । २ इंद्राणीव्रत का पालन करने वाली स्त्री ( दे १।१४७ ) । एरावण -- गुच्छ वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।३७।४ ) । एल -- कुशल ( दे १।१४४ ) । एलवालुंकी -- एक प्रकार की ककड़ी की बेल ( प्रज्ञा १।४०।१ ) । एलविल -- १ धनाढ्य । २ वृषभ, बैल ( दे १।१४८ ) । एलालुय -- आलू की एक जाति, कंद-विशेष ( अनु ३।५१ ) । एलालुग -- ककड़ी - 'एलालुग माउलिंग फलमादी' ( बृभा २४४२ ) । एलावालुंकी -- वनस्पति-विशेष ( भ २२।६ ) । एवड्ड -- इतना - 'एवड्डं आलावगं सक्केहिति गेण्हिउं' ( आवहाटी १ पृ ६९ ) । एवण्हं -- वाक्यालंकार - 'एवण्हमिति वाक्यालङ्कारे' ( बृटी पृ १४९१ ) । एव्वेल -- अधुना, अभी - 'एव्वेलं पहामोत्ति नमोक्कारं घोसंतस्सेव' ( आवहाटी १ पृ ३०३ ) । ओ ओअ -- वार्त्ता, कहानी ( दे १।१४९ ) । ओअंक -- गर्जारव, गर्जित ( दे १।१५४ ) । ओअग्गिअ -- १ अभिभूत । २ केश आदि को एकत्रित करना ( दे १।१७२ ) । ओअग्घिअ -- घात, सूंघा हुआ ( दे १।१६२ ) । ओअल्ल -- १ पर्यस्त, प्रक्षिप्त । २ प्रकंप, थरथराहट । ३ गौओं का बाडा । ४ लटकता हुआ ( दे १।१६५ ) । ५ खराब आचरण । ६ जिसकी आंखें निमीलित होती हों वह ( से १३।४३ ) । ओआअ -- १ गांव का स्वामी । २ अपहृत, जिसका अपहरण कर लिया गया हो वह । ३ आज्ञा । ४ हाथी आदि को बांधने के लिए बनाया हुआ गर्त्त ( दे १।१६६ ) । ओआअव -- अस्त-समय, अस्तमन-वेला ( दे १।१६२ ) । ओआल -- छोटा प्रवाह ( दे १।१५१ ) । ओआलित -- द्रवित किया, पिघाला- 'रण्णो चित्तं ओआलितं' ( आवहाटी १ पृ २३४ ) । ओआली -- १ खड्ग का एक दोष । २ पंक्ति ( दे १।१६४) । ओआवल -- बाल आतप, सुबह का सूर्य-ताप ( दे १।१६१) । ओइत्त -- परिधान, वस्त्र ( दे १।१५५ ) । ओइत्तण -- परिधान, वस्त्र ( दे १।१५५ ) । ओइल्ल -- आरूढ ( दे १।१५८ ) । ओउंबालग -- कोट्टपालक, आरक्षक ( आवचू १ पृ २८६ ) । ओएल्ल -- कुण्ठित - 'तत्थ वि य से धारा ओएल्ला' ( ज्ञा १।१४।७७ ) । ओंडल -- केश-रचना, धम्मिल्ल ( दे १।१५० ) । ओंडि -- मुट्ठी ( अवचू २ पृ १०१ ) । ओकड्ढक -- १ घर से धन आदि ले जाने वाले चोर । २ जो चोरों को बुला-कर चोरी कराते हैं । ३ चोरों के पृष्ठवाहक सहायक ( प्र ३।३ ) । ओकासक -- कर्ण का आभूषण जो नीचे लटकता रहता है ( अंवि पृ १६२ ) । ओक्कणी -- यूका, जूं ( दे १।१५९ ) । ओक्कतल्लिय -- चबाकर निकाला हुआ, वमन किया हुआ - 'अंबकोइलियाओ कुक्कुडएहिं ओक्कतल्लियाओ हरिएसेहिं णिज्जा इयातो' ( दअचू पृ २३ ) । ओक्करिसु ( कन्नड ) । ओक्किअ -- १ निवास, अवस्थान ( दे १।१५१ ) । २ वमन ( वृ ) । ओक्कुट्ठ -- सचित्त वनस्पति का चूर्ण - 'सचित्तवणस्सती चुण्णो ओक्कुट्टो भण्णति' ( निचू २ पृ २९० ) । ओक्खंडिअ -- आक्रान्त ( दे १।११२ ) । ओक्खंद -- शत्रु सेना द्वारा नगर का घेराव - 'कोसलेण रण्णा ओक्खंदं दाऊण भेल्लियं तं संणिवेसं ' ( कु पृ ९९ ) । ओक्खिण्ण -- १ अवकीर्ण । २ आच्छादित । ३ जिसके दोनों पार्श्व अत्यंत शिथिल हों, वह ( दे १।१३० वृ ) । ओखंद -- १ सेना का पडाव या सेना का घेराव ( निभा २४०१ ) । २ डाका, घाटी ( बृभा ४८३८ ) । ओगुंठी -- घूंघट, मस्तक पर डाला हुआ वस्त्र 'कंबलरयणोगुठि काउं रण्णो ठिओ पुरतो' ( ति ७९१ ) । ओग्गाल -- जल का लघु प्रवाह ( दे १।१५१ ) । ओग्गिअ -- अभिभूत, पराजित ( दे १।१५८ ) । ओग्गीअ -- हिम, बर्फ ( दे १।१४९ ) । ओघसर -- १ अनर्थ । २ घर से निकलने वाला जलप्रवाह ( दे १।१७० ) । ओचार -- धान्य रखने का कोठा या पात्र-विशेष - 'अपचारि-दीर्घतरधान्य-कोष्ठाकारविशेषः' ( अनुद्वामटी प १४० ) । ओचिय -- आरोपित ( जीवटी प १९९ ) । ओचुल्ल -- चुल्ली का एक भाग ( दे १।१५३ ) । ओचूलयालग -- नीचा सिर और ऊपर पांव कर पानी में डुबोना ( विपाटी प ७२ ) । ओच्चेल्लर -- १ खिल भूमि, ऊषर भूमि, हल आदि से बिना जोती हुई भूमि । २ साथल के रोम ( दे १।१३६ ) । ओच्छग -- वस्त्र ( आवहाटी २ पृ १२८ ) । ओच्छट्ट -- चोर ( दे १।१०१ वृ ) । ओच्छत्त -- दतौन, दतवन ( दे १।१५२ )। ओच्छविय -- आच्छादित ( ज्ञाटी प ३१ ) । ओच्छाइय -- आच्छादित ( प्रटी प १३४ ) । ओच्छिअ -- केशों को संवारना ( दे १।१५० ) । ओच्छुपीय -- बीज, धान्य - 'एगत्थ ओच्छुपीया णीणिज्जंति' ( आवचू १ पृ १११ ) । ओछाडित -- आच्छादित ( अंवि पृ २४४ ) । ओज्जल्ल -- बलवान्, प्रबल ( दे १।१५४) । ओज्जाय -- गर्जित ( दे १।१५४ ) । ओज्झ -- मैला, अस्वच्छ ( दे १।१४८ ) । ओज्झमण -- पलायन ( दे १।१०३ वृ ) ओज्झर -- निर्झर ( से १।५६ ) । ओज्झरिय -- १ टेढी नजर से देखा हुआ, कानी आंख से देखा हुआ । २ विक्षिप्त, पागल । ३ क्षिप्त, फेंका हुआ । ४ त्यक्त ( दे १।१३३ वृ ) । ओज्झरी -- ओझ, आंत का आवरण ( दे १।१५७ ) । ओज्झाय -- दूसरे को धक्का देकर छीन लेना ( दे १।१५९ ) । ओट्टिय ( दोट्टिय, दोद्धिय ? ) तुंबा ( आवहाटी १ पृ २८३ ) । ओड -- १ भूमि खोदने वाला ( स्थाटी प १९६ ) । २ कूप ( आवटि प २४ ) । ओडड्ढ -- अनुरक्त, रागी ( दे १।१५६ ) । ओडिका -- अंश, खंड ( आवटि प ९७ ) । ओड्ड -- वस्त्र-शिल्पी ( अंवि पृ १६१ ) । ओड्डय -- छिपाव, गुप्त - 'तेसिं च पोत्ताणि हीरंति, ओड्डएण अच्छंति' ( आवचू १ पृ १११ ) । ओड्ढण -- ओढन, उत्तरीय वस्त्र ( दे १ । १५५) । ओड्ढिय -- ओढा हुआ, धारण किया हुआ - 'परिहिअमोड्ढणमोड्ढिअमोइत्तं' ( दे १।१५५ वृ ) । ओणिव्व -- वल्मीक, कृमि पर्वत, चींटियों द्वारा खोदी गई मिट्टी का ढेर ( दे १।१५१ ) । ओणीवी -- नीव्र, छत का प्रान्त भाग ( दे १।१५० ) । ओणुणअ -- अभिभूत, पराभूत ( दे १।१५८ ) । ओणेज्ज -- सांचे में मोम आदि की विभिन्न आकृतियों की रचना - 'ओणेज्जं मदणविच्छित्ति-विसेसा' ( दअचू पृ ३९ ) । ओत्तलहअ -- वृक्ष ( दे १।११९ वृ ) । ओत्थइअ -- व्याप्त ( से ११।५९ ) । ओत्थय -- १ पिहित, ढका हुआ - 'अत्थरयमिउमसूरगोत्थयं' ( दश्रु ८।४२ ) । २ अवसन्न, खिन्न ( दे १।१५१ ) । ओत्थर -- उत्साह ( दे १।१५० ) । ओत्थरिअ -- १ आक्रांत, जिस पर आक्रमण किया हो वह । २ आक्रमण करता हुआ ( दे १।१६९ ) । ओत्थल्लपत्थल्ला -- उथल-पुथल, दोनों पार्श्वों से परिवर्तन ( दे १।१२२ वृ ) । ओथुक्कित -- अत्यंत जुगुप्सित-धिद्धि त्ति ओथुविकत तालियस्सा' ( बृभा ४११५ ) । ओद्दंपिअ -- १ आक्रांत । २ नष्ट ( दे १।१७१ ) । ओपल्ल -- कुण्ठित, अपदीर्ण ( ज्ञाटी प १९९ ) । ओपविका -- क्षुद्र जंतु ( अंवि पृ २२९ ) । ओपित -- संस्कारित, परिकर्मित ( प्रटी प ७६ ) । ओपुष्फ -- निष्फल, व्यर्थ - 'जुण्णं ओपुप्फनिप्फलं' ( अंवि पृ ८१ ) । ओपेसेज्जिक -- धान्य पीस कर आजीविका चलाने वाला ( अंवि पृ १६० ) । ओप्प -- चमक - 'तूवरिया सुवण्णस्स ओप्पकरणमट्टिया' ( दअचू पृ ११० ) । ओप्पा -- शाण आदि पर मणि आदि रत्नों का घर्षण करना ( दे १।१४८ ) । ओप्पिअ -- शाण पर घिसा हुआ ( दे १।१४८ वृ ) । ओप्पील -- समूह ( पा १८ ) । ओप्फिट्ट -- अलग होना, पृथक् होना - 'ताहे सो ( गोसालो ) सामिस्स मूलओ ओफिट्टो' ( आवचू १ पृ २९९ ) । ओब्भालण -- १ सूर्प आदि से धान्य को साफ करना । २ अपूर्व ( दे १।१०३ वृ ) । ओभंजलिया -- चतुरिन्द्रिय जीव-विशेष ( प्रज्ञा १।५१ ) । ओभट्ट -- प्रार्थित, वांछित ( ओनि १४७ ) । ओमंथ -- नत, अधोमुख ( बृभा ६६५ ) । ओमंथिय -- नमाया हुआ, अधोमुख किया हुआ - 'ओमंथियवयणन यणकमला' ( ज्ञा १।१।३४ ) । ओमच्छग -- अधोमुख ( निचू २ पृ १२७ ) । ओमत्थ -- अधोमुख ( अनुद्वाचू पृ ५० ) । ओमत्थग -- अन्तिम - 'चरिमस्स आदिसमयातो आरब्भ ओमत्थगं' ( नंदीचू पृ २५ ) । ओमत्थिय -- नत, अधोमुख किया हुआ ( ओनि ३८९ ) । ओमालय -- शोभित ( कु पृ २२८ ) । ओमालिय -- पूजित ( कु पृ २५ ) । ओमोदरिता -- दुर्भिक्ष - 'ओमोदरिता दुब्भिक्खं' ( निभा ३४२ ) । ओयड्ढिया -- चादर, दुपट्टा ( उसुटी प ४५ ) । ओयड्ढी -- दुपट्टा, चादर - 'घेत्तुं ओयड्ढीए छूढो' ( उसुटी प ४५ ) । ओयम -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । ओयल्ल -- मृत ( आवटि प ३८ ) । ओयविय -- १ परिकर्मित, संस्कारित - 'ओयविय-खोमियदुगुल्ल पट्टपडिच्छन्ने' ( दश्रु ८।२० ) । २ खेदज्ञ - 'ओयवियं खेदज्ञं' ( ओटी प ५१ ) । ओयाण -- अनुस्रोत में चलने वाली नौका ( निभा १८३ ) । ओयिंघण -- उपबृंहण, वृद्धि ( सूकू १ पृ ११५ ) । ओर -- १ चारु, सुंदर ( दे १।१४९ ) । २ समीप । ओरंपिअ -- १ आक्रान्त । २ नष्ट ( दे १।१७१ ) । ३ छिला हुआ ( पा ५८१ ) । ओरत्त -- १ विदारित । २ अभिमानी । ३ कुसुंभ रंग से रंगा हुआ ( दे १।१६५ ) । ओरल्ली -- दीर्घ और मधुर ध्वनि ( दे १।१५४ ) । ओराणि -- आभूषण-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । ओराल -- १ उदार, प्रधान ( स्था ४।४५१ ) । २ भयंकर - ओराले त्ति भीमो भयानक:' ( ज्ञाटी प ८ ) । ३ विस्तृत विशाल - 'ओरालं नाम वित्थरालं विसालं ति भणियं होई' । ४ मांस आदि से युक्त शरीर-समयपरिभाषया••••' ( प्रज्ञाटी प २६९ ) । ओरालिय -- १ व्याप्त । २ उपलिप्त - 'दिट्ठो रुहिरोरालियसिरो' ( उसुटी प ५ ) । ३ पोंछा हुआ । ४ फैलाया हुआ । ओरिल्ल -- अचिरकाल का, थोड़े समय का, नया ( दे १।१५५ ) । ओरुंज -- वह क्रीडा जिसमें बार-बार 'नहीं-नहीं' कहा जाता है ( दे १।१५६ ) । ओलअ -- १ बाज पक्षी ( दे १।१६० ) । २ अपलाप ( वृ ) । ओलअणी -- नववधू, नवोढा ( दे १।१६० ) । ओलइणी -- प्रिया, प्रिय पत्नी ( दे १।१९६०) । ओलइय -- १ संलग्न, लगा हुआ, चिपका हुआ ( जीभा ५३८ ) । २ छिपाया हुआ - 'आउहाणि ओलइयाणि' ( उशाटी प ११६ ) । ३ शरीर से सटा हुआ, पहना हुआ- 'अंगपिणद्धम्मि ओलइअं' ( दे १।१६२ ) । ओलंडण -- अवलंघन ( ज्ञा १।१।१८९ ) । ओलंडिय -- अवलंघित- 'तुमं मेहा ! राओ समणेहिं•••अप्पेगइएहिं ओलंडिए अप्पेगइएहिं पोलंडिए' ( ज्ञा १।१।१५५ )। ओलंभ -- उपालम्भ - 'भगवया महावीरेणं••••अप्पोलंभनिमित्तं पढमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते' ( ज्ञा १।१।२१३ ) । ( राज० ओलंभा ) ओलगय -- सेवक ( दजिचू पृ २९६ ) । ओलग्गअ -- सेवक - 'कुमारोलग्गएहिं सद्धि••••पव्वतितो' ( उशाटी प ११५ ) । ओलग्गग -- ग्रामवासी ( दश्रुचू प ६५ ) । ओलवणी -- छत - 'कडणं डंडगोवरि ओलवणी' ( पंवटी प ११२ ) । ओलायग -- बाज पक्षी - 'वीरल्लो ओलायगो' ( निचू २ पृ १३७ ) । ओलावय -- बाज पक्षी ( दे १।१६० ) । ओलावी -- मादा बाजपक्षी ( आवचू १ पृ ४२५ ) । ओलिंप -- खोलना - 'ओलिंपमाणे वि तहा तहेव काया कवाडंमि विभासियव्वा' ( पिनि ३५४ ) । ओलिंभा -- दीमक ( दे १।१५३ ) । ओलित्ती -- खड्ग आदि का एक दोष ( दे १।१५९ ) । ओलिप्प -- हास, हंसी-मजाक ( दे १।१५३ ) । ओलिप्पंती -- खड्ग आदि का एक दोष ( दे १।१५९ ) । ओलिया -- कुलपरिपाटी - 'अहं ओलिया कहिज्जामि' ( सूचू २ पृ ४१४ )। ओली -- १ फली - 'ओली सिंगा' ( आचू पृ ३४१ ) । २ कुलपरिपाटी, कुल का आचार ( दे १।१४८ ) । ३ पंक्ति ( वृ ) । ओलुंकी -- १ बालकों की क्रीडा विशेष, लुकाछिपी का खेल ( दे १।१५३ ) । २ आंखमिचौनी - 'ओलुंकी छन्नरमणम्। नंष्ट्वा यत्र शिशवः क्रीडन्ति । चक्षुःस्थगनक्रीडेति केचित्' ( वृ ) । ओलुंपअ -- तापिका-हस्त, तवे का हाथा ( दे १।१६३ ) । ओलुग्ग -- १ जीर्ण, रुग्ण ( ज्ञा १।१।३४ ) । २ कृश, निर्बल ( विपा १।२।२४ ) । ३ सेवक । ४ निस्तेज ( दे १।१६४ ) । ओलुट्ट -- १ अघटमान, अनुचित । २ मिथ्या, असत्य ( दे १।१६४ )। ओलेहड -- १ दूसरे में आसक्त । २ तृष्णापर । ३ प्रवृद्ध, बूढा ( दे १।१७२ ) । ओल्ल -- १ ओला, हिमपात ( जीचू पृ ९ ) । २ पति । ३ राजपुरुष-विशेष । ओल्लणी -- इलायची, दालचीनी आदि मसालों से संस्कारित दही, श्रीखंड ( दे १।१५४ ) । ओल्लरण -- सोना, शयन ( दे १।१६३ वृ ) । ओल्लरिअ -- सुप्त ( दे १।१६३ ) । ओव -- हाथी आदि को बांधने के लिए किया गया गर्त्त ( दे १।१४९ ) । ओवइय -- तीन इन्द्रियवाला क्षुद्र जन्तु विशेष ( जीव १।८८ ) । ओवग -- गढा - 'ओवग कूडे मगरा, जइ घुंटे तसे य दुहतो वि' ( बृभा २३९० ) । ओवग्गिअ -- आक्रांत, अभिभूत ( पा ५८५ ) । ओवट्टिअ -- खुशामद, चाटुकारिता ( दे १।१६२ ) । ओवट्टी -- नीवी, स्त्री के कटि-वस्त्र की नाडी ( दे १।१५१ पा ) । ओवट्ठ -- १ मेघ के पानी का सिंचन, छिड़काव ( दे १।१५२ ) । २ वृष्टि, बारिश ( से ९।२५ ) । ओवड -- गढा, गर्त्त - 'ओवड त्ति खड्डातीते पडेज्ज' ( निचू ४ पृ ४८ ) । ओवड्ढी -- पहनने के वस्त्र का एक भाग ( दे १।१५१ ) । ओवयण -- प्रोङ्खणक ( ज्ञा १।१।९०) । ओवर -- निकर, समूह ( दे १।१५७ ) । ओवरअ -- समूह ( दे १।१५७ वृ ) । ओवसेर -- १ चन्दन । २ मैथुन योग्य ( दे १।१७३ ) । ओवात -- आचार्य-निर्देश' - 'ओवातो णाम आचार्यनिर्देश:' ( सूचू १ पृ २२१ ) । ओवातिका -- जलचर प्राणी-विशेष ( अंवि पृ ६९ ) । ओवारि -- १ धान्य भरने का कोठा । २ भीतरी कमरा ( अंवि पृ १६५ ) । ओरी ( राजस्थानी ) । ओवारिया -- १ भीतरी अपवरक । २ धान्य भरने का कोठा ( व्यभा ७ टी प १०) । ओवास -- कान का आभूषण-विशेष - 'वतंसक ओवास कण्णपीलक कण्णपूरक' ( अंवि पृ १८३ ) । ओवासण -- नापित-कर्म, हजामत ( आवचू १ पृ १५६ ) । ओविय -- १ परिकर्मित ( ज्ञा १।१।२४ ) । २ सुन्दर ( ज्ञा १।१।६५ ) । ३ प्रकाशित - 'ओपितानां-उज्ज्वलितानाम्' ( ज्ञाटी प २२९ ) । ४ आरोपित (जंबूटी प ४३ ; दे १ । १६७ ) । ५ रुदित । ६ खुशामद । ७ मुक्त, परित्यक्त । ८ हृत, छीना हुआ (दे १ । १६७) । ९ व्याप्त, खचित (आवमटी) १० विभूषित । ओवुलीक -- प्राणी-विशेष ( अंवि पृ ६९ ) । ओव्वरग -- ओरी, भीतर का कमरा ( दअचू पृ ४२ ) । ओस -- ओस, निशाजल ( भ १५।१८६ ) । ओसअ -- ओस ( से १३।५२ ) । ओसक्क -- अपसृत, पीछे हटा हुआ ( दे १।१४९ ) । ओसट्ट -- ऐसा भोजन, जिसमें फेंकना अधिक होता है ( निभा २४९४ ) । ओसण -- उद्वेग, खेद ( दे १।१५५ ) । ओसण्ण -- त्रुटित, खंडित ( दे १।१५६ ) । ओसण्णं -- १ अनेक बार - 'ओसण्णंति-अणेगसो एक्केक्कं पावायतणं हिंसादि आयरति' ( दश्रुचू प ४० ) । २ प्राय: ( जीभा १९० ) । ३ प्राचुर्य, बाहुल्य ( स्थाटी प १८३ ) । ओसद्ध -- पातित, गिराया हुआ ( पा ५६५ ) । ओसन्न -- १ प्राय: - 'ओसन्नदिट्ठाहडभत्तपाणे' ( दचूला २।६ ) । २ खंडित, अपूर्ण - 'ओसन्नो खुतायारो सबलायारो' ( दश्रुचू प ९ ) । ओसर -- छोटा कमरा ( अंवि पृ १३६ ) । आसरा ( राजस्थानी ) । ओसरिअ -- १ अधोमुख । २ आंख को संकुचित कर देखना, कानी आंख से देखना । ३ आकीर्ण, व्याप्त ( दे १।१७१ )। ओसरिआ -- अलिंदक, बाहर के दरवाजे का प्रकोष्ठ ( दे १।१६१) । ओसव्विअ -- १ शोभा-रहित । २ अवसाद ( दे १।१६८ )। ओसा -- १ ओस, निशाजल ( आव ४।४ ) । २ हिम ( दे १।१६४ ) । ओसाअ -- प्रहार की पीड़ा ( दे १।१५२ ) । ओसाणिहाण -- विधिपूर्वक अनुष्ठित ( दे १।१६३ ) । ओसायंत -- १ जंभाई खाता हुआ आलसी । २ दुःख करता हुआ । ३ वेदना-युक्त ( दे १।१७० ) । ओसार -- गो-वाट, गो-बाड़ा ( दे १।१४९ ) । ओसिअ -- १ बलरहित ( दे १।१५० ) । २ अपूर्व । ओसिंघिअ -- घात, सूंघा हुआ ( दे १।१६२ ) - ओसिंघिअशब्दोऽपि देश्य एवं ' ( वृ ) । ओसिक्खिअ -- १ गमन में व्याघात । २ अरति निहित ( दे १।१७३ ) । ओसित्त -- उपलिप्त ( दे १।१५८ ) । ओसीअ -- अधोमुख,अवनत ( दे १।१५८ ) । ओसीस -- अपवृत्त, दुश्चरित्र ( दे १।१५२ ) । ओसुंखिअ -- उत्प्रेक्षित, कल्पित ( दे १।१६९ ) । ओसुद्ध -- १ नीचे गिरा हुआ, विनिपतित ( दे १।१५७ ) । २ विनाशित ( से १३।२२ ) । ओस्स -- ओस, निशाजल ( नि १३।८ ) । ओहंक -- हास, हास्य ( दे १।१५३ ) । ओहंजलिया -- चतुरिन्द्रिय जीव की जाति-विशेष ( जीवटी प ३२ ) । ओहंस -- १ चंदन । २ चंदन घिसने का शिलापट्ट ( दे १।१६८ ) । ओहट्ट -- १ घूंघट । २ कटि-वस्त्र । ३ अपसृत ( दे १।१६६ ) । ओहट्टिअ -- दूसरे को धक्का देकर छीन लेना ( दे १।१५९ ) । ओहट्ठ -- १ प्रार्थित, वांछित - 'ओभट्ठमणोभट्ठं लब्भइ जं जत्थ पाउग्गं' ( ओटी प ६७) । २ हास्य ( दे १।१५३ ) । ओहडणी -- अर्गला ( दे १।१६० ) । ओहत्त -- अवनत ( दे १।१५६ ) । ओहरण -- १ विनाशन, हिंसा । २ असंभव अर्थ की संभावना ( दे १।१७४ ) । ३ अस्त्र । ४ आघ्रात । ओहरिय -- १ प्रहत - 'खुरधारे असी खंधंसि ओहरिए' ( ज्ञा १।१४।७७ ) । २ उत्तारित, उतारा हुआ - 'ओहरियभारोव्व भारवहे' ( उ २९।१३ ) । ३ प्रक्षिप्त, फेंका हुआ ( से १३। ३ ) । ४ नीचे गिराया हुआ ( से ३।३७ ) । ओहरिस -- १ घ्रात, सूंघा हुआ । २ चन्दन घिसने की शिला, चन्द्रौटा ( दे १।१६९ ) । ओहसिअ -- १ वस्त्र । २ कम्पित ( दे १।१७३ ) । ओहाइअ -- अधोमुख ( दे १।१५८ ) । ओहाडण -- १ प्रायश्चित्त का एक प्रकार । २ पिधानक ( निचू ४ पृ ४२८ ) । ओहाडणी -- पिधानक, ढकनी ( जीव ३।२६४ ; दे १।१६१ ) । ओहाडिअ -- ढका हुआ - 'ओहाडियचिलिमिलियागंसि' ( बृ १।१४ ) । ओहामिअ – १ तिरस्कृत ( ओनि ६० ) । २ तोला हुआ ( पा ५३९ ) । ३ स्थगित । ४ अभिभूत । ओहार -- १ जलजंतु-विशेष, मत्स्य ( प्र ३।७ ) । २ कछुआ । ३ नदी आदि का अन्तर द्वीप, मध्यद्वीप । ४ अंश, विभाग ( दे १।१६७ ) । ओहावण -- अपभ्राजन, तिरस्कार ( उशाटी प १९२ ) । ओहिंजलिया -- चतुरिन्द्रिय जंतु-विशेष ( उ ३६।१४८ ) । ओहिज्जंत -- अतीत, अतिक्रांत, क्षीण (अंवि पृ ८१ ) । ओहित्थ -- १ विषाद । २ वेग । ३ विचारित ( दे १ । १६८ ) । ओहीरमाणी -- नींद लेती हुई ( ज्ञा १।१।१८ ) । ओहोरिअ -- १ उद्गीत ( दे १।१६३ ) । २ अवसन्न, खिन्न - ओहीरिअं उद्गीतम् । अवसन्नमित्यन्ये' ( वृ ) । ओहुअ -- अभिभूत ( दे १।१५८ ) । ओहुड -- विफल ( दे १।१५७ ) । ओहुप्पंत -- जिस पर आक्रमण किया जाता हो, वह ( से ३।१८ ) । ओहुर -- १ खिन्न ( दे १।१५७ ) । २ अवनत । ३ स्रस्त, खिसका हुआ - 'ओहुरं खिन्नम् । 'ओहुरं अवनतं स्रस्तं चेत्यवन्तिसुन्दरी' ( वृ ) । क कइअंक -- निकर, समूह ( दे २।१३ ) । कइअंकसइ -- निकर, समूह ( दे २।१३) । कइउल्ल -- थोड़ा, अल्प ( दे २।२१ ) । कइक -- कोई ( अंवि पृ २५१ ) । कइतविय -- कृत्रिम ( सूनि ५९ ) । कइलबइल्ल -- स्वच्छन्दचारी वृषभ, चिन्हित सांड ( दे २।२५ ) - 'कइलबइल्लोव्व तुमं घरा घरं किं भमेसि णिल्लज्ज ! ( वृ ) । कइल्लिय -- कृत - 'अणुकंपा कइल्लिया होहित्ति' ( उशाटी प ८६ ) । कइवाह -- तत्काल, शीघ्र - 'सव्वं ते पज्जत्तं नणु कइवाहं पडिच्छामि' ( ति ६५६ ) । कइविया -- पात्र-विशेष, पीकदान ( ज्ञाटी प ४७ ) । कडअ -- १ प्रधान । २ चिह्न ( दे २।५६ ) । कउल -- १ करीष, कंडा । २ कंडे का चूरा ( दे २।७ ) । कउह -- नित्य ( दे २।५ ) । कंकडुय -- चना आदि धान्य जो अग्नि से नहीं पकता, कोरडू - 'चणयादीण उक्क्खडियाण जे ण सिज्झंति ते कंकडुया' (निचू ३ पृ ४८४) । देखें - उवक्खडाम कंकण -- चतुरिन्द्रिय जंतु-विशेष ( उ ३६।१४७ ) । कंकदुय -- कोरडू धान, वह धान जो पकाए जाने पर भी नहीं पकता ( कु पृ २१० ) । कंकिल्लि -- अशोक वृक्ष ( प्रसा ४४० ) । कंकेल्लि -- अशोक वृक्ष ( औपटी पृ १७ ; दे २।१२ ) । कंकोड -- १ वनस्पति विशेष, ककरैल की सब्जी ( दे २।७ ) । २ सांप की एक जाति । कंगु -- १ धान्य-विशेष - 'बृहच्छिरा कंगू' ( निचू २ पृ १०९ ) । २ पीत तण्डुल ( प्रसा ९९९ ) । कंगुलिया -- मलमूत्र – 'कंगुलिकां - लध्वीं महतीं च नीति विधत्ते' ( प्रसा ४३३ ) । कंचणिका -- भाजन-विशेष ( अंवि पृ ७२ ) । कंचणिया -- रुद्राक्ष की माला ( भ २।३१ ) । कंचिक्क -- नपुंसक – 'भेसेति कतो इधेस कंचिक्को' ( बृभा ५१८३ ) । कंची -- मुसल के मुख पर रहने वाला लोह-वलय ( दे २।१ ) । कंजुसिणोदेहि -- कांजिका - 'कंजुसिणोदेहि त्ति इह च लाटदेशेऽवश्रावणं काञ्जिकं भण्यते' ( बृटी पृ ८७१ ) । कंटउच्चि -- कण्टकप्रोत, कांटों से बींधा हुआ ( दे २।१७ ) । कंटक -- बिच्छु की विष-प्रधान पूंछ - 'वृश्चिकस्य महाविषलांगूलं कण्टक उच्यते' ( व्यभा ६ टी प ५७ ) । कंटाली -- वनस्पति-विशेष, कण्टकारिका ( दे २।४ ) । कंटासक -- फल-विशेष, पनस ( ? ) ( अंवि पृ ६४ ) । कंटिका -- करधनी - 'जंबूका मेखल त्ति वा कंटिक त्ति व जो बूया' ( अंवि पृ ७१ ) । कंटुल्ल -- ककरैल, एक प्रकार की सब्जी जो वर्षा में ही होती है ( पा ३८२ ) । कंटेण -- पशु-विशेष ( अंवि पृ ६२ ) । कंटोल -- ककरैल वनस्पति की सब्जी ( दे २।७ ) । कंठ -- १ सूकर, सूअर । २ मर्यादा, सीमा ( दे २।५१ ) । कंठकप्पड -- कंधे पर रखी जाने वाली चादर - 'णिबद्धं च णेण कंठकप्पडे तं पुट्टलयं' ( कुपृ १०५ ) । कंठकुंची -- १ वस्त्र आदि के अन्त में लगाई गई गांठ । २ कंठ के ऊपर उभरी नाडिग्रन्थि 'रसोली' ( दे २।१८ ) । कंठदीणार -- बाड़ का छिद्र ( दे २।२४ ) - 'आवंति कंठदीणारएण कुडिय' - भमिरा भुयंग त्ति ( वृ ) । कंठमल्ल -- १ शव को वहन करने का साधन ( दे २।२० ) । २ यानपात्र, वाहन ( वृ ) । कंठमुखी –₹-- आभूषण-विशेष ( भ ९।१९० ) । कंठाकंठि -- गले मिलना - 'अब्भुट्ठेत्ता कंठाकंठि अवयासेइ' ( ज्ञा १।२।६६ ) । कंठाकंठिय -- गले मिलना ( ज्ञा १।२।६० )। कंठाल -- मोटे कंठ वाला ( कु पृ १३५ ) । कंठिअ -- द्वारपाल, दौवारिक ( दे २।१५ ) । कंड -- १ दुर्बल । २ विपन्न । ३ फेन ( दे २।५१ ) । कंडपडवा -- यवनिका, परदा ( दे २।२५ ) । कंडरा -- शरीर का एक अवयव ( अंवि पृ ११९ ) । कंडरिय -- अनंतकाय वनस्पति विशेष ( भ २३।१ ) । कंडु -- पात्र-विशेष ( सूचू १ पृ १२४ ) । कंडूर -- बगुला ( दे २।९ ) । कंडूसग -- रजोहरण का बंधन-विशेष ( नि ५।७० ) - कंडूसगबंधो णाम जाहे रयहरणं तिभागपएसे खोमिएण उण्णिएण वा चीरेणं वेढियं भवति' ( निचू २ पृ ३६७ ) । कंडूसी -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५०) । कंतार -- मार्ग - 'कंतारं नाम अध्वानं' ( निचू १ पृ १६४ ) । कंतु -- कन्दर्प, कामदेव ( दे २।१ ) । कंथा -- टुकड़ा, अंश - कण्हेण भेरी जोयाविया जाव कंथा कया' ( बृभा ३५९ ) । कंद -- १ दृढ । २ उन्मत्त । ३ आच्छादन ( दे २।५१ ) । कंदल -- १ प्रत्यग्र लता ( ज्ञा १।९।२० ) २ कपाल ( दे २।४ ) । ३ पुष्प-विशेष ( अंवि पृ ६३ ) । कंदी -- मूला, कन्द-विशेष ( दे २।१ ) । कंदुग्घुसिय -- नील कमल (?) ( कु पृ ३५ ) । कंदुट्ट -- नील कमल ( पा ५७ ) । कंदोट्ट -- नील कमल ( दे २।९ ) । कंपड -- पथिक ( दे २।७ ) । कंबर -- विज्ञान, प्रज्ञा, कलाकौशल ( दे २।१३ ) । कंबलिक -- धान्य-विशेष ( अंवि पृ २२० ) । कंबिया -- पुस्तक का आवरण पृष्ठ ( जीव ३।४३५ ) । कंसार -- कसार, एक प्रकार की मिठाई ( बृटी पृ ४०३ ) । कंसारिआ -- त्रीन्द्रिय जंतु-विशेष ( बृटी पृ ८०० ) । कंसारिका -- कसारी, त्रीन्दिय जंतु-विशेष ( बृढी पृ ६६७ ) । कंसारी -- त्रीन्द्रिय जंतु-विशेष ( जीत १८ ) । कंसाल -- वाद्य-विशेष ( भटी पृ ८८३ ) । ककाणय -- गरदन - 'आरुस्स विज्झंति ककाओ से' ( सू १।५।४२ ) । ककितजाण -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । कको -- पक्षी-विशेष ( अंवि पृ २३९ ) । ककुलुंडि -- पात्र-विशेष ( अंवि पृ २१४ ) । ककुह -- १ राजचिन्ह - 'अवहट्टु रायककुहाई' ( प्रसाटी प १३ ) । २ प्रधान ( ज्ञाटी प २४० ) । कक्ककुरुय -- माया ( प्रसा ११५ ) । कक्कडग -- तर्कशास्त्रगत हेतु का एक प्रकार - 'कक्कडगहेऊ जत्थ भणिते उभयहा वि दोसो भवति' ( निचू ३पृ ३८० ) । कक्कडय -- वायु-विशेष जो पेट में उत्पन्न होती है- 'कक्कड़ए नाम वाए समुच्छइ जेणं' ( भ १०।३९ ) । कक्कडी -- ककडी ( बृभा १०५१ ) । कक्कडीय -- मत्स्य-विशेष ( अंवि पृ १८३ ) । कक्कब -- इक्षुरस का विकार, गुड की पूर्व अवस्था ( पिनि २८३ ) । कक्कय -- गुड़ की पूर्व अवस्था - 'गिल्लसन्निही-गुलकक्कयघयतेल्लाई' ( जीचू पृ १४ ) । कक्कर -- मधुर - 'कक्करं नाम महुरं' ( उचू पृ १६० ) । कक्करपिंडग -- खाद्य पदार्थ-विशेष ( अंवि पृ २४६ ) । कक्करी -- घट-विशेष ( जंबूटी प १०० ) । कक्कस -- दध्योदन, करंबा ( दे २।१४ ) । कक्कसार -- दध्योदन, करम्बा ( दे २।१४ ) - मयकरिअं लहसि कक्कसारं" (वृ) । कक्कावंस -- पर्व वनस्पति, बांस का एक प्रकार ( भ २१।१७ ) । कक्किंड -- कृकलास, गिरगिट ( दे २।५ ) । कक्कुस -- तुष - 'तुस त्ति कोंटको व त्ति कक्कुसो तप्पणो त्ति वा ' ( अंवि पृ १०६ ) । कक्खड -- पीन, पुष्ट ( दे २।११ ) । कक्खडंगी -- सखी, सहेली ( दे २।१९ ) । कक्खल -- कठोर, कर्कश - कक्खलफासाहिं कमणीहिं' ( निभा ९२९ ) । कक्खारुग -- फल-विशेष ( अंवि पृ ६४ ) । कग्घाड -- १ अपामार्गं, चिरचिरा, लटजीरा । २ किलाटी, मावा ( दे २।५३ ) । कग्घायल -- किलाटी, दूध का विकार ( दे २।२२ ) । कचक्खी -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० )। कच्च -- कार्य ( दे २।२ ) । कच्चग -- पात्र-विशेष ( व्यभा ८ टी प २२ ) । कच्चाल -- प्रवृत्ति या व्यापार का स्थान, कार्यालय ( दे २।५२ पा ) । कच्चोल -- कलश, पात्र-विशेष ( उसुटी प २८० ) । कच्छ -- गुठली का एक अवयव जो तुष रहित हो ( आचू पृ ३४० ) । कच्छभाणिया -- साधारण वनस्पति विशेष ( सू २।३।४३ ) । कच्छभाणी -- जलीय वनस्पति विशेष ( प्रज्ञा १।४६ ) । कच्छभी -- तापस का उपकरण-विशेष - 'हत्थकयकच्छभीए-कच्छपिका तदुपकरणविशेष:' ( ज्ञाटी प २२७ ) । कच्छर -- पंक, कीचड़ ( दे २।२ ) । कच्छवी -- पुस्तक का एक प्रकार जिसके दोनों किनारे छोटे तथा मध्यभाग मोटा हो - कच्छवि अंते तणुओ मज्झे पिहुलो मुणेयव्वो' ( प्रसा ६६५ ) । कच्छा -- कच्छा, लाट देश में पहना जाने वाला स्त्रियों का परिधान-विशेष- 'लाडाणं कच्छा सा मरहट्ठयाणं भोयडा भण्णति' ( निचू १ पृ ५२ ) । कच्छुरिअ -- ईषित, जिसकी ईर्ष्या की गई हो वह ( दे २।१६ ) । कच्छुरी -- कपिकच्छू, केवाच ( प्रज्ञा १।३७।१; दे २।११ ) । कच्छुल्ल -- १ गुल्म विशेष ( प्रज्ञा १।३८।२ ) । २ खाज रोग से ग्रस्त - 'तत्थं णं पासइ एगं पुरिसं - कच्छुल्लं कोढियं दाओयरियं' ( विपा १।७।७ ) । कच्छोटक -- लंगोटी धारण करने वाला ( भटी प ५० ) । कच्छोट्टग -- कच्छा, लंगोटी ( आवहाटी १ पृ २७६ ) । कज्ज -- कचरा ( ओटी प १६२ ) । कज्जउड -- अनर्थ ( दे २।१७ ) । कज्जत्थ -- कूड़ा-करकट डालने का स्थान, अकुरड़ी- 'कज्जत्थोकुरटिकास्थानम्' ( ओटी प १६२ ) । कज्जलमाणी -- डूबती हुई ( नि १८।१६ ) । कज्जलावेमाणा -- डूबती हुई - 'णावं कज्जलावेमाणं पेहाए' ( आचूला ३।२२ ) । कज्जव -- १ तृण आदि का समूह ( दे २।११ ) । २ विष्ठा ( वृ ) । कज्जवय -- कूड़ा-कचरा ( अनुद्वा ३४६ ) । कज्जूरी -- खजूर का वृक्ष ( अंवि पृ ७० ) । कज्जोव -- उल्का ( अंवि पृ २४५ ) । कज्झाल -- सेवाल, एक प्रकार की घास जो जलाशयों में होती है ( दे २।८ ) । कटार -- छुरी ( प्रा ४।४४५ ) । कट्ट -- १ खंड, टुकड़ा ( अनुटी प ५ ) । २ काट, जंग ( व्यभा ५ टी प ६ ) । कट्टर -- १ खंड, अंश - 'चित्तकट्टरे इ वा' ( अनु ३।४० ) । २ कढी में डाला हुआ घी का बड़ा - 'तीमनोन्मिश्रघृतवटिकारूपस्य देश विशेषप्रसिद्धस्य' ( पिटी प १७२ ) । कट्टरिगा -- शस्त्र-विशेष, छुरी ( निचू २ पृ ५९ ) । कट्टारिया -- कटार, छुरी ( निचू २ पृ ५९ ) । कट्टारी -- क्षुरिका, छुरी ( दे २।४ ) । कट्टित -- कटा हुआ ( अंवि पृ २५५ ) । कट्ठ -- आभूषण-विशेष, एक प्रकार का हार ( अंवि पृ ६५ ) । कट्ठंसालुक -- कंठ का रोग विशेष ( अंवि पृ २०३) । कट्ठकरण -- खेत - 'कट्ठकरणं णाम छेत्तं' ( आवहाटी १ पृ १५२ ) । कट्ठखोड -- आसन-विशेष - 'भद्दासणं पीढगं वा कट्ठखोडो नहट्ठिका' ( अंवि पृ १५ ) । कटुगंध -- नौका खेने का बड़ा बांस ( आचू पृ ३५७ ) । कट्ठाहार -- त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष ( प्रज्ञा १।५० ) । कट्ठिअ -- द्वारपाल ( दे २।१५ ) । कट्ठियव्वग -- खाद्य-विशेष ( निचू २ पृ २४१ ) । कट्ठेवट्टक -- कण्ठ का आभूषण ( अंवि पृ १६३ ) । कट्ठोरग -- कटोरा ( निचू १ पृ ५१ ) । कड -- १ क्षीण । २ मृत ( दे २।५१ ) । कडअल्ल -- द्वारपाल ( दे २।१५ ) । कडअल्ली -- कण्ठ, गला ( दे २।१५ ) । कडइअ -- स्थपति, बढ़ई ( दे २।२२ ) । कडइल्ल -- द्वारपाल ( दे २।१५ ) । कडंत -- १ मूली का शाक । २ मुसल ( दे २।५६ ) । कडंतर -- पुराना छाज आदि उपकरण ( दे २।१६ ) । कडंतरिअ -- विदारित ( दे २।२० ) । कडंब -- करटिका, वाद्य-विशेष ( राज ७७ ) । कडंभुअ -- १ कुम्भग्रीव नामक पात्र-विशेष ( दे २।२० ) । २ घड़े का कण्ठ-भाग - 'कडंभुअं घटस्यैव कण्ठ इति शीलाङ्कः' ( वृ ) । कडग -- १ यवनिका, परदा ( आवहाटी २ पृ १७८ ) । २ बांस की चटाई से बना घर ( व्यभा ४।४ टी प १०१ ) । कडच्छकी -- कडछी - 'दव्वी तध कवल्ली य दीविक त्ति कडच्छकी' ( अंवि पृ ७२ ) । कडच्छु -- लोहे की कर्छी डोई ( दे २।७ ) । कडच्छुत -- कर्छी ( निचू २ पृ २५१ ) । कडच्छुय -- चम्मच ( ज्ञा १।८।५५ ) । कडजुम्म -- युग्म राशि जिसमें चार शेष रहते हैं— सर्वासां दिशां प्रत्येकं ये प्रदेशास्ते चतुष्केनापह्रियमाणाश्चतुष्कावशेषा भवन्तीति कृत्वा तत्प्रदेशात्मिकाश्च दिश आगमसंज्ञया कडजुम्मत्ति शब्देनाभिधीयन्ते' ( आटी प १३ ) । कडणा -- १ छत ( भ ८।२५७ ) । २ त्रट्टिका, बाड ( भटी पृ ६९१ ) । कडतला -- लोहे का वह हथियार जो एक ओर से धारवाला और वक्र होता है ( दे २।१९ ) । कडपल्ल -- धान्यशाला - 'कडपल्ल त्ति वा तणपल्ल त्ति वा धन्नसालत्ति वा वलय त्ति वा एगट्ठा' ( बृचू प १४१ ) । कडप्प -- १ निकर, समूह ( बूटी पृ ५४; दे २।१३ ) । २ वस्त्र का एक भाग ( वृ ) । कडयडाविअ -- कड् - 'कड् आवाज से चबा जाना '( कु पृ ६८ ) । कडला -- पैर का आभूषण ( जंबूटी प १०६ ) । कडवय -- समूह ( बृटी पृ ५४ ) । कडवल्ल -- १ बांस की टोकरी ( निचू ४ पृ १९२ ) । २ सूखे मांस से बना भोज्य - 'मंसा सुक्खाविंति सुक्खस्स वा कडवल्ला कता' ( आचू पृ ३३५ ) । कडसक्करा -- बांस की शलाका - 'बहवे लोहखीलाण य कडसक्कराण य चम्म-पट्टाण य' ( विपा १।६।२० ) । कडसी -- श्मशान ( दे २।६ ) । कडार -- नालिकेर, नारियल ( दे २।१० ) । कडाली -- घोड़े के मुख को बांधने का उपकरण विशेष ( अनु ३।५२ ) । कडाहक -- कडाही ( अंवि पृ २१४ ) । कडाहपल्हत्थिअ -- दोनों पार्श्वों को बदलना, दोनों पार्श्वों का अपवर्तन ( दे २।२५ ) । कडिक -- खिड़की ( अंवि पृ २९ ) । कडिखंभ -- १ कमर पर रखा हुआ हाथ ( दे २।१७ ) । २ कमर पर किया हुआ आघात - 'कडिखंभो कटीन्यस्तो हस्तः । कट्याघात इति केचित्' (वृ) । कडिण -- तृण-विशेष ( सू २।२।४ ) । कडिल्ल -- १ मांड आदि पकाने का बर्तन (उपा २।२१) । २ तवा - 'तत्तकडिल्ले व जह बिंदु' ( पंक १८७४ ) । ३ गहन ( बृभा ५५९६; दे २।५२ ) । ४ कटीवस्त्र ( जीविप पृ ५३ ; दे २।५२ ) । ५ द्वारपाल । ६ शत्रु । ७ आशीर्वाद । ८ जंगल । ९ निश्छिद्र ( दे २।५२ ) । १० गहन - प्रदेश ( व्यभा ४।१ टी प ६० ) । कडिल्लक -- लोहे का बड़ा पात्र ( पिटीप १५८ ) । कडिल्लग -- अटवी, जंगल - 'सो अभिमुहेति लुद्धो संसारकडिल्लगम्मि अप्पाणं' ( पंक २३७८ ) । कडिल्लय -- कटि वस्त्र - 'अहवा रज्जसि पावे एयं पि कडिल्लयं णत्थि' ( कु पृ ८१ ) । कडिल्हक -- लोहे का बड़ा पात्र ( प्रसाठी प १५३ ) । कडुआल -- १ घण्टा । २ छोटी मछली ( दे २।५७ ) । कडुइया -- वल्ली-विशेष ( प्रज्ञा १।४० ) । कडुच्छ -- चम्मच ( भ ५।१८९ ) । कडुच्छ्य -- चम्मच ( भ ११।५९ ) । कडुच्छिका -- कर्छी डोई ( ओटी प १६९ ) । कडुच्छुग -- कर्छी ( जंबू १।४०) । कडुच्छुत -- चम्मच - 'कडुच्छुते घयं ताविज्जति' ( निचू २ पृ २५१ ) । कडुच्छुय -- चम्मच ( अनुद्वा ३९२ ) । कडुभ -- कूब, पीठ का उभरा हुआ भाग ( निचू २ पृ १९१ ) । कडुभंड -- मसाला - 'वेसणं कडुभंडं जीरयं' ( निचू २ पृ २५ ) । कडुमाय -- पशु-विशेष ( अंवि पृ ६२ ) । कडुय -- अपराधी को दंड का निर्देश देनेवाला - 'कडुओ उ दंडकारी' ( बृभा ३५७६ ) । कडुयाल -- छोटी मछली ( पा ३०१ ) । कडुयालय -- छोटी मछली ( कु पृ १६१ ) । कडुहुंड -- भोजन में प्रयुक्त सामग्री - विशेष - 'तत्थ भोयणे उवउज्जंति कडुहुंडाइ' ( आवचू १ पृ २८० ) । कडूकीका -- वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । कडेवर -- १ शरीर ( भटी पृ १२९० ) । २ निश्चेतन देह, शव । ३ द्वीन्द्रिय आदि जीव ( भटी पृ १३७१ ) । कड्ढिण -- तृण-विशेष ( निचू २ पृ ४३० ) । कढ -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । कढिआ -- कढी - 'तक्कोल्लणसूवकंजिककढियाई' ( पिनि ६२४; दे २।६७ ) । कढिण -- तृण-विशेष ( आवचू २ पृ १२७ ) । कढिणग -- तृण-विशेष ( प्र ८।१० ) । कढिय -- कढ़ी, खाद्य पदार्थ-विशेष ( जीभा ३९४ ) । कणइअ -- १ आर्द्र, गीला । २ किया हुआ । ३ चित्रित : ४ कण-धान्य से आकीर्ण ( दे २।५७ ) । कणइल्ल -- शुक, तोता ( दे २।२१ ) । कणई -- लता ( दे २।५ ) । कणंगर -- पाषाणमय लंगर ( विपा १।६।१७ ) । कणक -- बाण - 'नाराय-कणक-कप्पणि-वासि-परसु ' ( प्र १।२८ ) । कणकाली -- अस्तर-विशेष ( ज्ञाटी प १६ ) । कणग -- १ ग्रह - विशेष - 'कणगा गिम्हे सिसिरे पंच वासासु सत्त उवहणंति' ( निचू ४ पृ २४५ ) । २ चतुरिन्द्रिय जंतु-विशेष ( जीवटी प ३२ ) । कणय -- १ बाण ( भ २।८९; दे २।५६ ) । २ बिल्व, बेल ( उशाटी प १४२ ) । ३ अवचय, फूलों का चुनना ( दे २।५६ ) । कणयंदी -- पाटला, पाढर वृक्ष ( दे २।५८ वृ ) । कणिआरिअ -- कटाक्ष, टेढी नजर से देखना, कानी आंख से देखना ( दे २।२४ ) । कणिक्क -- मत्स्य की एक जाति ( जीवटी प ३६ ) । कणिक्का -- समित, आटा - 'समिता-कणिक्का सा महुघएहि तुप्पेउं मद्दिउं च भगंदले छुभति ते किमिया तत्थ लग्गंति' (निचू १ पृ १०० ) । कणिस -- शस्य का तीक्ष्ण अग्रभाग ( उपाटी पृ ९६; दे २।६ ) । कणिसवाया -- धान्य का अग्रभाग ( कु पृ १५३ ) । कणी -- फडकना, धड़कना ( पा ९८५ ) । कणुय -- १ त्वक् का अवयव-विशेष । २ गुठली का तुषरहित अवयव ( आचू पृ ३४० ) । कणेरु -- हथिनी ( अंवि पृ ६९ ) । कणोड्ढिआ -- गुंजा, घुङ्गची ( दे २।२१ ) । कणोवअ -- गरम किया हुआ जल, घृत, तैल आदि ( दे २।१६ ) । कण्ण -- १ गोल आकृति - 'जहानामए कण्णावली य गोलावली य वट्टावली य ( अनु ३।३९ ) । कण्णे - गोला, गोलाकृति (कन्नड़ ) । २ कोण ( निचू १ पृ ९९ ) । कण्णंबाल -- कान का आभूषण, कुण्डल आदि ( दे २।२३ ) । कण्णच्छुरी -- गृहगोधा, छिपकली ( दे २।१९ ) । कण्णत्तिय -- खेचर पंचेन्द्रिय प्राणी-विशेष ( जीवटी प ४१ ) । कण्णरोडय -- कानों को बहरा करने वाला ( शब्द ) - 'सो तीसे कण्णरोडयं असहंतो भणति' ( आवहाटी १ पृ ६० ) । कण्णविवोड -- कान खींचना ( बूटी पृ १५२३ ) । कण्णस्सरिअ -- कानी नजर से देखना, कटाक्ष ( दे २।२४) । कण्णाआस -- कान का आभूषण, कुण्डल आदि ( दे २।२३ ) । कण्णाइंधण -- कान का आभूषण, कुंडल आदि ( दे २।२३ ) कण्णाउडय -- कान मरोडना - 'कुंभकारेण तस्स खुड्डगस्स कण्णाउडओ दिण्णो' ( आवचू १ पृ ६१४ ) । कण्णाकण्णि -- आकंठ - 'कण्णाकण्णि भरिते' ( निचू ४ पृ १५९ ) । कण्णास -- पर्यन्त, अन्त भाग ( दे २।१४ ) । कण्णासय -- पर्यन्त - 'रच्छाकण्णासयम्मि दट्ठूण' ( दे २।१४ वृ ) । कण्णाहड -- कर्णाकणिकया - 'अम्हं आयरियाणं सुतीए कण्णाहडं च सोउं जे ' ( ति ७०७ ) । कण्णाहाडिय -- कानों से गुपचुप सुनकर जान लेना- तेण तेसिं पासओ विज्जा कण्णाहाडिया' ( आवहाटी १ पृ २७४ ) । कण्णाहेडित -- कान लगाकर सुनना - 'गुरुसमीवातो तेणागतं, ण कण्णाहेडितं' ( अनुद्वाचू पृ ८ ) । कण्णिवल्लि -- वनस्पति-विशेष ( अंवि पृ ५ ) । कण्णु -- मकान का अग्रभाग आदि ( ? ) - 'तत्थ जूयं खेल्लिमो, खत्तं खणिमो कण्णुं तोडिमो, पंथं मूसिमो' ( कु पृ ५७ ) । कण्णोच्छडिया -- १ दत्तकर्णा, ध्यानपूर्वक सुनने वाली स्त्री । २ प्रत्युत्तर करने के लिए दूसरे की बात को पकड़ने वाली ( दे २।२२ ) । कण्णोड्ढिया -- नीरंगिका, घुंघट, आवरण ( दे २।२० ) । कण्णोड्ढी -- घुंघट, नीरंगिका - 'मुंच कणोड्ढि' ( दे २।२० वृ ) । कण्णोढत्ती -- १ दत्तकर्णा, ध्यानपूर्वक सुनने वाली स्त्री । २ प्रत्युत्तर करने के लिए दूसरे की बात को पकड़ने वाली ( दे २।२२ ) । कण्णोल्ली -- १ चोंच । २ अवतंस, कलंगी ( दे २।५७ ) । कण्णोस्सरिअ -- १ कानी नजर से देखना, कटाक्ष, टेढ़ी नजर से देखना ( दे २।२४ ) । २ टेढ़ी नजर से देखा हुआ ( वृ ) । कण्ह -- १ वल्ली विशेष, जटामासी ( प्रज्ञा १।४० ) । २ हरित वनस्पति-विशेष, कृष्ण तुलसी ( प्रज्ञा १।४४ ) । कण्हगुलिका -- बिलाशयी जंतु-विशेष - 'तत्थ बिलासयेसु कण्हगुलिका सेतगुलिका खुल्लिका' ( अंवि पृ २२९ ) । कण्हाकडभु -- वनस्पति-विशेष ( भ २३।१ ) । कण्हाल -- काली मिट्टी की भूमी - 'जहा कण्हाले जं पाणियं पडति तं ण कतोवि ओलुटति' ( आवचू १ पृ १२१ ) । कण्हुइ -- १ कुतश्चित्, कहीं भी ( उ १।७ ) । २ किंचित् ( दश्रुचू प ९१ ) । कण्हेरी -- मादा पशु-विशेष ( अंवि पृ ६९ ) । कतवार -- तृण आदि का समूह ( दे २।११ ) । कत्ता -- अन्धिका द्यूत की कपर्दिका, कौड़ी ( दे २।१ ) । कत्तोइ -- कहीं ( विपाटी प ८३ ) । कत्थइ -- क्वचित् ( प्रा २।१७४ ) । कत्थभाणी -- जलीय वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञाटी प ३४ ) । कत्थलायण -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । कत्थूल -- गुल्म-विशेष ( जीव ३।५८० ) । कदुक्का -- नालिकाक्रीड़ा ( सूचू १ पृ १७९ ) । कद्दमिअ -- महिष, भैंसा ( दे २।१५ ) । कद्दुइय -- वल्ली विशेष ( प्रज्ञा १।४०।२ ) । कनंगर -- पाषाणमय लंगर ( विपाटी प ७१ ) । कन्न 'लइअ' -- कानों में पहिना हुआ, कानों में पिनद्ध ( पिनि ५९१ ) । कन्नामोडि -- कान मरोड़ना, कान खींचना ( बुचू प २०६ ) । कन्नारोडग -- कानों को बहरा करने वाला ( शब्द ) ( आवचू १ पृ ११० ) । कन्नारोडय -- कानों के लिए अवरोधक, रोड़ा ( बृटी पृ ५३ ) । कन्नोली -- कान का आभूषण ( पा ८४ ) । कपिह -- दुष्ट घोड़ा ( उचू पृ ३० ) । कप्पट्ट -- १ बच्चा ( व्याभा ७ टीप ४० ) । २ ईश्वर-पुत्र, धनिक-पुत्र ( व्यमा ४।२ टी प ४० ) । कप्पट्ठग -- बच्चा ( निभा ३८० ) । कप्पट्टिया -- श्रेष्ठिवधू । २ कुलपुत्री ( स्थाटी प २५३ ) । कप्पट्ठी -- १ तरुण स्त्री ( वृभा १८४२ ) । २ बालिका ( व्यमा ४।४ टी प १२ ) । ३ कुलवधू ( व्यभा ४।३ टी प ५२ ) । कप्पड -- कपड़ा, वस्त्र ( प्रसा ४३४ ) । कप्पणिय -- जाति-विशेष - 'मुरुंडोड्डगोडकप्पणिया' ( कु पृ ४० ) । कप्पयारी -- दासी - 'दासीओ कप्पयारीउ त्ति' ( सूचू १ पृ २०१ ) । कप्परिअ -- विदारित, फाड़ा हुआ ( दे २।२० ) । कंप्पांग -- डंडा, शस्त्र-विशेष - 'सो य मणिप्पहं कप्पागं मग्गइ' ( आवहाटी २ पृ १४० ) । कप्पासट्ठिमिंज -- त्रीन्द्रिय जंतु-विशेष ( उ ३६।१३८ ) । कप्पासट्ठिसमिंजिय -- त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष ( प्रज्ञा १।५० ) । कप्फाड -- कंदरा, गुफा ( पा ९६८ ) । कफाड -- गुफा, गुहा ( दे २।७ ) । कब्बट्ठ -- बालक - 'कल्पस्थ: समयपरिभाषया बालक उच्यते' ( बृभा ८६५ टी ) । कब्बट्ठी -- १ तरुण स्त्री ( बृभा १८४२ ) । २ छोटी लड़की - इह समयपरिभाषया कब्बट्ठी लघ्वी दारिका भव्यते' ( पिटी प ९१ ) । कब्बाल -- ठेके पर भूमि खोदने वाला - 'चत्तारि भयगा पण्णत्ता, तं जहादिवसभतए•••• कब्बालभयए' ( स्था ४।१४७ ) । कभल्ल -- १ मिट्टी का पात्र विशेष, खप्पर - 'भज्ज णय कभल्लेइ वा' ( अनु ३।३७ ) । २ खोल, कपाल - 'यथा कच्छभो••••अंगाणि कभल्ले संहरति' ( दअचू पृ १९५ ) । कभेइका -- कृमि-जाति ( अंवि पृ ७० ) । कम -- मार्ग - 'भणंति आयरिया - वेण्णे ! कमं देहि त्ति' ( निचू ३ पृ ४२५ ) । कमढ -- १ मैल - 'जल्लो तु होति कमढं' ( निभा १५२२ ), 'खरंटो उ जो मलो तं कमढं भण्णति' ( निचू २ पृ २२१ ) । २ साध्वियों का पात्र-विशेष ( पंव ७९० ) । ३ दही की कलशी । ४ बलदेव । ५ मुख, मुंह । ६ पिठर, स्थाली ( दे २।५५ ) । ७ कच्छप ( व्यभा ३ टी प ६२ ) । कमढग -- पात्र-विशेष (व्य २।२९ ) । कमढय -- पात्र-विशेष - 'लेपित तुम्बकभाजनरूपं कांस्यमयबृहत्तररोटिकाकारमैककं संयतीनां निजोदरप्रमाणेन विज्ञेयम्' ( प्रसाटी प १२५ ) । कमढित -- घूर्णित, निमग्न - 'निद्दाकर्माढतो जोहं मण्णमाणो दिवा' ( निचू ३ पृ २६७) । कमणिल्ल -- जूते पहने हुए ( निभा ९२५ ) । कमणी -- निःश्रेणी, सीढी ( दे २।८ ) । कमल -- १ हरिण, मृग ( अनुद्वहाटी पृ १६; दे २८५४ ) । २ पिठर, स्थाली । ३ पटह, ढोल । ४ मुख, मुंह ( दे २।५४) । ५ झगड़ा । कमिअ -- उपसर्पित, पास आया हुआ ( दे २।३ ) । कमेड -- छिपकली, गिलहरी ( ? ) - 'एमेव अडति बोडो लुक्कणिलुक्को जह कमेडो' (जीभा १२३७) । कम्मण्ण -- कंकड आदि ( अंवि पृ ५ ) । कम्हिअ -- माली, मालाकार ( दे २।८ ) । कयंत -- भाग्य ( प्र ३।२४ ) । कयग -- कैतव, माया ( निभा २१७४ ) । कयल -- अलिंजर, पानी भरने का बड़ा घड़ा ( दे २।४ ) । कयवर -- कचरा ( आ १।८५ ) । कयार -- १ कचरा ( विभा ११६७; दे २।११ ) । २ धूल- 'कयारो त्ति व जो बूया••••••••धूली रयो त्ति रेणु त्ति' ( अंवि पृ १०६ ) । कयाह -- उत्तम जाति का अश्व ( कु पृ २३ ) । करइल्ली -- शुष्क वृक्ष, सूखा पेड़ ( दे २।१७ ) । करंक -- १ बड़ा बर्तन ( सूचू १ पृ ११९ ) । २ भिक्षापात्र । ३ अशोक वृक्ष ( दे २।५५ ) । करंज -- १ एक अस्थि वाला वृक्ष - विशेष ( प्रज्ञा १।३५ ) । २ सुखी छाल ( दे २।८ ) । करंडय -- पोठ के पास की हड्डीं - 'अणगारस्स पिट्ठिकरंडयाणं अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था' ( अनु ३।३९ ) । करंडुक -- पीठ के पास की हड्डी ( प्रटी प ८४ ) । करंडुय -- पीठ के पास की हड्डी ( जंबू २।४७ ) । करक -- शव - 'उक्खित्तं तं करक' ( कुपृ २२५ ) । करकर -- १ तृण-विशेष ( प्रज्ञा १।४२ ) । २ अत्यंत व्यक्त ( शब्द ) ( आवहाटी १ पृ १९५ ) । करकराण -- करकर शब्द करना ( व्यभा ४।३ टी प १९ ) । करकी -- भाजन-विशेष ( अंवि पृ ७२ ) । करगिल्ल -- पात्र ( आवमटी प ३९७ ) । करघायल -- दूध का विकार, मावा ( दे २।२२ ) । करच्छोडिया -- ताली बजाना - 'दिन्ना य करच्छोडिया' ( उसुटी प २८ ) । करटिका -- वाद्य-विशेष ( नंदीटि पृ ९९ ) । करड -- १ श्राद्ध - विशेष - 'सिवढोढसिवाइ करडं वा' ( निभा ३४८३ ) । २ व्याघ्र । २ चितकबरा ( दे २।५५ ) । करडयभत्त -- मृतभोज, श्राद्ध-विशेष ( आचू पृ ३३५ ) । करडा -- चिड़िया ( दे २।५५ वृ ) । करडाक -- धूम्रपान का साधन ( अंवि पृ २५४ ) । करडि -- वाद्य-विशेष ( जंबूटी प १०० ) । करडुयभत्त -- मृतभोज ( पिनि ४६४ ) । करणि -- १ शपथ, सौगंध - 'अण्णहा तेहिं भणितो - मज्जे णिज्जीवे को दोसो ? तेहिं य सो भणंतेहिं करणिं गाहितो लज्जमाणो एगंते परेण आणियं पियति' ( निचू ३ पृ ५२१ ) । २ क्रिया, कर्म ( आवचू २ पृ २८१ ) । ३ सादृश्य, समानता- 'तेण चाणक्कभज्जा ओलग्गिता, ताहे सो करणि गाहितो••••' (आवहाटी २ पृ २१८ ) । ४ रूप, आकार ( दे २।७ ) । ५ अनुकरण । ६ स्वीकार । करणी -- आकार, रूप ( पा ७८६ ) । करदुय -- मृत्यु के उपलक्ष में किया जाने वाला भोज - 'मरणे त्ति करदुयादीणि कारवेइ वा' ( आचू पृ १६ ) । करधाण -- वाद्य-विशेष ( आवचू १ पृ १८७ ) । करम -- क्षीण, दुर्बल ( दे २।६ ) । करमंद -- १ वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ २३१ ) । २ फल-विशेष ( अंवि पृ ६४ ) । करमद्द -- गुच्छवनस्पति, करौंदा ( प्रज्ञा १।३७।४ ) । करमरिअ -- बलात् अपहृत स्त्री ( पा २१२ ) । करमरी -- अपहृत स्त्री ( दे २।१५ ) । करयंदी -- मल्लिका, मोगरा ( दे २।१८ ) । करयडी -- स्थूल वस्त्र, मोटा कपड़ा ( दे २।१६ वृ ) । करयरी -- स्थूल वस्त्र, मोटा कपड़ा ( दे २।१६ ) । करल -- भोजन से संबंधित रोग विशेष - सव्वाहारगते खंडोट्ठं वा गुरुलं वा करलं वा बूया' ( अंवि पृ २०३ ) । करह -- धनुष का वह भाग जहां प्रत्यंचा आरोपित होती है ( पिटी प २० ) । कराइणी -- शाल्मली वृक्ष, सेमल का पेड़ ( दे २।१८ ) । कराटिया -- मिट्टी का बर्तन ( ज्ञाटी प ११७ ) । करायणी -- शाल्मली वृक्ष ( दे २।१८ वृ ) । कराली -- दतवन, दतौन ( दे २।१२ ) । करिआ -- मदिरा परोसने का पात्र ( दे २।१४ ) । करिण्हुका -- उद्भिज्ज जंतु विशेष ( अंवि पृ २२९ ) । करिमअर -- जलहस्ती ( से ५।५७ ) । करिलेग -- करील वृक्ष, करील ( अंवि पृ २३८ ) । करिल्ल -- १ वंशांकुर, बांस का कोपड़ ( दे २।१० ) । २ अंकुर ( अनु ३।३५ ) । ३ करैला ( विभा २९३ ) । ४ करील वृक्ष । ५ वंशांकुर के समान । करुल्ल -- कपाल, खप्पर, फूटे घड़े का टुकड़ा - 'गोवालाणं जेणं जं करुल्ल आसाइयं सो तत्थ पजिमिओ' ( आवहाटी १ पृ १३४ ) । करेडु -- कृकलास, गिरगिट ( दे २।५ ) । करेडुयभत्त -- मृतभोज - 'वणियकुले मयकिच्चं करेडुयभत्तं' ( निचू ३ पृ ४१८ ) । करोड -- १ कटोरा ( निभा ३२८३ ) । २ नारियल । ३ कौआ । ४ बैल ( दे २।५४ ) । करोडक -- कटोरा ( अंवि पृ ६५ ) । करोडय -- पात्र विशेष ( सूचू १ पृ ११८ ) । करोडि -- परोसने का एक उपकरण ( जीवटी प १४६ ) । करोडिया -- मिट्टी का पात्र ( भ २।३१ ) । करोडी -- १ एक प्रकार की चींटी ( दे २।३ ) । २ शव । ३ भाजन-विशेष, कटोरी ( अंवि पृ ७२ ) । कलअ -- १ फली ( आचू पृ ३४१ ) । २ अर्जुन वृक्ष । ३ स्वर्णकार ( दे २।५४ ) । कलंक -- १ बांस की बनाई हुई जालीदार बाड़ ( ज्ञा २।१।१९ ) । ( दे २।८ ) । कलंकल -- अनिष्ट, अशुभ - 'कम्मकलंकलवल्लिं छिंदइ संथारमारूढो' ( महा १३० ) । कलंकवई -- वृति, बाड़ ( दे २।२४ ) । कलंबचीरपत्त -- एक प्रकार का शस्त्र - 'खुरपत्ताण य कलंबचीरपत्ताण य' ( विपा १।६।१९ ) । कलंबचीरिया -- तृण-विशेष जिसका अग्रभाग अत्यंत तीक्ष्ण होता है ( जीव ३।८५ ) । कलंबु -- नालिका नाम की वल्ली ( दे २।३ ) । कलंबुया -- जलीय वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।४६ ) । कलकल -- चूने से मिश्रित जल - 'अप्पेगइया कलकलभरिएहिं अप्पेगइया खारतेल्लभरिएहिं महया महया रायाभिसेएणं अभिसिंचंति' ( विपा १।६।८ ) । कलम -- १ उत्तम चावल ( जीभा ३९८ ) । २ चना- 'कलमो चणगो भण्णति' ( निचू १ पृ ७० ) । ३ चोर ( पा १२४ ) । कलमल -- दुर्गन्ध, अशुचि ( तंदु १४९ ) । कलयंदि -- १ पाटला, पाढर वृक्ष । २ विख्यात ( दे २।५८ ) । कलव -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । कलवू – तुम्बी-पात्र ( दे २।१२ ) । कलह -- तलबार की म्यान ( दे २।५ ) । कलहिमी -- वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ २३८ ) । कलाय -- सुवर्णकार ( प्रटी प ३० ) । कलाल -- १ घोड़ों की देखरेख करने वाला ( आवहाटी २ पृ ६८ ) । २ मदिरा बनाने-बेचने वाला ( अनुद्वाहाटी पृ ७२ ) । कलासिक -- वाद्य-विशेष ( आवचू १ पृ ३०९ ) । कलि -- शत्रु ( दे २।२ ) । कलिअ -- १ अभिमानी । २ नेवला, नकुल । ३ मित्र, सखा ( दे २।५६ )। कलिआ -- सखी ( दे २।५६ वृ ) । कलिओअ -- वह युग्म-राशि जिसमें एक शेष रहता है - 'एगपज्जवसिए कलिओए' ( आटी प १३ ) । कलिंच -- बांस की खपाची ( नि १।२) । कलिंचि -- तृणपूलिका - 'कलिंचि त्ति तणपूलिया इति विशेषचूर्णां' ( बृटी पृ ४४३ ) । कलिंज -- १ बांस की टोकरी - 'कलिंजो णाम वंसमयो कडवल्लो सट्टती वि भण्णति' ( निचू ४ पृ १६२ ) । २ छोटी लकड़ी ( दे २।११ ) । कलिंदक -- गाय आदि पशुओं का भोजन-पात्र ( प्रसाटी प २७ ) । कलिंब -- सूखी लकड़ी ( कु पृ १७९ ) । कलिग -- कंगण ( उचू पृ १७९ ) । कलिम -- नीलकमल ( दे २।९ ) । कलिमाजक -- फल-विशेष( अंवि पृ ६४ ) । कलुय -- द्वीन्द्रिय जन्तु विशेष ( प्रज्ञा १।४९ )। कलेर -- १ कंकाल । २ भयंकर ( दे २।५३ ) । कलोवाइ -- पात्र-विशेष ( आचूला १।२१ ) । कल्किक -- मांस ( सूचू १ पृ २०१ टि ) । कल्पिक -- मांस - 'मांस कल्पिक इत्यपदिश्यते' ( सूचू १ पृ २०१ ) । कल्ल -- बीता हुआ कल - 'गयसुकुमालेणं अणगारेणं ममं कल्लं पच्चावरण्हकालसमयंसि वंदइ नमंसइ' ( अंत ३।१०१ ) । कल्लविअ -- १ भिगोया हुआ, आर्द्रित । २ विस्तारित ( दे २।१८ ) । कल्ला -- मद्य ( आवचू २ पृ २९७; दे २।२ ) । कल्लाकल्लि -- १ प्रतिदिन ( ज्ञा १।८।४१ ) । २ प्रातःकाल ( विपाटी प ८६ ) । कल्लाडक -- मत्स्य-विशेष ( अंवि पृ २२८ )। कल्लाण -- १ वृक्ष-विशेष ( आचू पृ ३४१ ) । २ चक्रवर्ती का आहार-विशेष ( निभा ५७२ ) । कल्लाणग -- चक्रवर्ती का आहार-विशेष - 'कल्लाणगं णाम आहारो' ( निचू २ पृ २१ ) । कल्लाल -- कलाल, मदिरा बेचनेवाला ( जीभा ४२६ ) । कल्लुग -- नुकीला - 'कोंकण विसए णदीसु अंतो जलस्स कल्लुगा पासाणा भवंति' ( निचू ३ पृ ३७० ) । कल्लूरिका -- मिष्ठान्न, मिठाई ( आवमटी प ३६० ) । कल्लेउय -- कलेवा - 'कल्लेउयं च करेइ' ( ओटी प १७२ ) । कल्लोल -- शत्रु ( दे २।२ ) । कल्हार -- सफेद कमल ( प्रज्ञा १।४६ ) । कल्होड -- बछड़ा ( दे २।९ ) । कल्होडक -- बछडा ( बूटी पृ ६६६ ) । कल्होडी -- वत्सतरी, बछिया ( दे २।९ ) । कवचिका -- उपकरण विशेष ( अंवि पृ ७२ ) । कवचिया -- पात्र-विशेष ( भ ११।१५९ पा ) । कवय -- वनस्पति-विशेष, भूमिच्छत्र ( दे २।३ ) । कवल -- प्राणी-विशेष ( अंवि पृ ६४ ) । कवल्ल -- १ तवा - 'तत्तंसि अयकवल्लंसि उदयबिंदुं पक्खिवेज्जा' ( भ ३।१४८ ) । २ कडाही ( सू १।५।१५ ) । कवल्लि -- कडाह - 'डज्झंतेण वि गिम्हे कालसिलाए कवल्लिभुयाए ( सं ११९ ) । कवल्ली -- १ पकाने का भाजन विशेष ( विपा १।३।२ ) । २ कडाह ( अंवि पृ ७२ ) । कवल्लुय -- कडाही ( ति ९५१ ) । कवल्लूर -- कडाही ( सूचू २ पृ ४४४ ) । कवास -- अर्धजंघा, एक प्रकार का जूता ( दे २।५ ) । कविचिया -- पात्र-विशेष, कलाचिका ( भ ११।१५९ ) । कविड -- घर का पिछला आंगन ( दे २।९ ) । कविल -- कुत्ता ( दे २।६ ) - 'अलस ! ण लज्जसि कविलोव्व कडसीए' ( वृ ) । कविल्ली -- पात्र-विशेष ( अनुद्वामटी प १४६ ) । कविल्लुय -- कडाही ( आचू पृ ३७३ ) । कविस -- मद्य, मदिरा ( दे २।२ ) । कविसा -- अर्धजंघा, एक प्रकार का जूता ( दे २।५ ) । कवेली -- पात्र-विशेष ( अनुद्वाचू पृ ५४ ) । कवेल्लक -- लोहे का पात्र विशेष ( भ ३।४८ ) । कवेल्लुअ -- खपरैल ( स्था ८।१० ) । कवेल्लुग -- १ तवा ( जंबू २।१४१ ) । २ खपरैल, खापड़ ( आवचू २ पृ २३ ) । कवेल्लुय -- कडाही ( जंबूटी प २२ ) । कवोडी -- कांवर ( निचू ३ पृ २१३ ) । कव्व -- १ पानी उलीचने का पात्र-विशेष - 'उत्तिंगादिणावाए चिट्ठमुदगं अण्णयरेण कव्वादिणा उस्सिंचणएण उस्सिंचइ' ( निचू ४ पृ २०९ ) । कव्वय -- काष्ठपात्र - 'कव्वयं तं पि कट्ठमयं ( पत्तं ) ' ( निचू ३ पृ ३४३ ) । कव्वाड -- १ ठेके पर भूमि खोदने वाला ( स्था ४।१४७ पा ) । २ दाहिना हाथ ( दे २।१० ) । कव्वाल -- १ ठेके पर भूमि खोदने वाला- 'कव्वालो खितिखणतो उड्डमादी' ( निचू ३ पृ २७३ ) । २ कर्म स्थान, प्रवृत्ति का स्थान । ३ घर ( दे २।५२ ) । कसई -- अरण्यचारी वनस्पति का फल ( दे २।६ ) । कसक -- बिल में रहने वाला जंतु-विशेष ( अंवि पृ २२९ ) । कसकी -- वनस्पति-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । कसट्ट -- कचरा ( ओनि ५५७ ) । कसणसिअ -- बलभद्र, वासुदेव का बड़ा भाई ( दे २।२३ ) । कसर -- खुजली ( भ ७।११९ ) । २ अधम बैल ( दे २।४) । कसरक्क -- १ चर्वण शब्द - 'खज्जइ न उ कसरक्केहिं' ( प्रा ४।४२३ ) । २ फूल की कली । कसरि -- मिष्ठान्न विशेष ( अंवि पृ १७९ ) । कसव्व -- १ अल्प । २ आर्द्र, गीला । ३ प्रचुर । ४ वाष्प, भाप ( दे २।५४ ) । ५ कर्कश । कसिआ -- अरण्यचारी नामक वनस्पति का फल ( दे २।६ ) । कसित -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १४९ ) । कसुग -- हीन वचन - 'भणंति कक्कसकसुगादीणि वा' ( सूचू १ पृ २२१ ) । कसोति -- खाद्य-विशेष - 'महाहिं कसोतिं भोच्चा कज्जं संघेंति' ( सूर्य १०।१७ ) । कस्स -- कर्दम ( दे २।२ ) । कस्सय -- उपहार, भेंट ( दे २।१२ ) । कहकहग -- 'कह-कह' की आवाज, खुशी की आवाज ( राज २८१ ) । कहक्कह -- अट्टहास - 'चलणे देहे पत्थर, सविगार कहक्कहे लहुओ' ( बृभा ६३१९ ) । २ आनन्द की ध्वनि ( ति १३५ ) । कहल्ल -- खप्पर, कपाल - 'चिययाओ फुल्लियकिंसुयसमाणे खइरिंगाले कहल्लेणं गेहइ' ( अंत ३।८९ ) । कहितेल्लय -- कहा ( आवचू १ पृ २३३ ) । कहेड -- तरुण ( दे २।१३ ) । कहेडय -- तरुण ( दे २।१३ वृ ) । काअ -- १ लक्ष्य बींधने योग्य । २ उपमानभूत पदार्थ या व्यक्ति ( दे २।२६ ) । काइणी -- गुंजा, लाल रत्ती ( दे २।२१ ) । काइय -- मूत्र - 'सणं काइयं च वोसिरंति' ( आवहाटी १ पृ १४५ ) । काउ -- कांवर ( निभा १४८६ ) । काउंबरि -- १ बहु बीज वाली वनस्पति विशेष ( प्रज्ञा १ । ३६ ) । औषधि-विशेष ( कु पृ ८९ ) । काउडी -- कांवर ( आवचू २ पृ ५५ ) । काउड्डावण -- उच्चाटन, मंत्र तंत्र से पर शरीर को आकृष्ट करना - 'कम्मजोए वा हियउड्डावणे वा काउड्डावणे वा' ( ज्ञा १।१४।४३ ) । काउल्ल -- बक, बगुला ( दे २।९ ) । काउल्ली -- बगुली ( सूचू १ पृ ५६ ) । काओलि -- वनस्पति-विशेष ( भ २३।८ )। कांचनिया -- रुद्राक्ष की माला ( ज्ञाटी प ११७ ) । काकंडक -- वर्ण-विशेष ( अंवि पृ १०५ ) । काकणि -- १ छोटे-छोटे टुकड़े - 'काकणिमंसाइं खावेंति' ( विपा १।३।१४ ) । २ राज्य - 'काकणि क्षत्रियभाषया राज्यम्' ( विभामहेटी १ पृ ३४९ ) । काकमज्जुक -- काले रंग का पक्षी विशेष ( अंवि पृ २२५ ) । काकुंथिका -- उद्भिज्ज जन्तु-विशेष ( अंवि पृ २२९ ) । काकुरुडी -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । कागणि -- १ कांगनी, वल्ली विशेष ( प्रज्ञा १।४०।५ ) । २ राज्य - 'राय-पुत्ताणं रज्जं कागणि भण्णति' ( अनुद्वाहाटी पृ ११ ) । कागिणी -- राज्य - 'रज्जं कागिणी भण्णति' (निचू २ पृ ३६२), 'चंदगुत्तपवोत्तोउ, बिंदुसारस्स णत्तुओ। असोगसिरिणो पुत्तो, अंधो जायति कागिणिं।।' ( अनुद्वाहाटी पृ ११ ) । काण -- १ सच्छिद्र, खाया हुआ ( आचू पृ ३४१ ) । २ चुराया हुआ । काणइल्ल -- प्रातिहारिक ( आवहाटी १ पृ १३४ ) । काणक -- १ चुराई हुई वस्तु ( प्रसाटी प २३२ ) । २ न्यून ( प्रटी प ५८ ) । काणग -- १ सच्छिद्र ( आचूला १।११६ ) । २ चुराई हुई वस्तु ( प्रसा ७९६ ) । काणच्छि -- कटाक्ष, टेढी नजर से देखना ( निभा ५१४४; दे २।२४ ) । काणच्छिया -- टेढी नजर से देखने की क्रिया - "काणच्छियाओ य जहा विडो तहा करेइ' ( आवहाटी १ पृ १४६ ) । काणटिट्टि -- कृमि जाति का प्राणी ( अंवि पृ ७० ) । काणत्थेव -- विरल जल-वृष्टि, बूंद-बूंद बरसना ( दे २।२९ ) । काणद्धी -- परिहास ( दे २।२८ ) । काणवी -- लता-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । काणिट्ट -- लोहे की ईंट ( पंक १०७९ ) । काणिय -- कीट द्वारा खाया हुआ - 'घुणकाणियं अंगारइयं वा वृत्तयं' ( निचू ४ पृ ६६ ) । कातरिया -- माया - 'कातरिया णाम माया' ( सूचू १ पृ ५५ ) । कातोदूक -- मंगूस की एक जाति ( अंवि पृ २२६ ) । कानंगर -- पाषाणमय लंगर ( विपाटी प ७१ ) । काम -- खेचर पक्षी-विशेष ( जीवटी प ४१ ) । कामकिसोर -- गर्दभ, गधा ( दे २।३० ) । कामगद्दभ -- काम प्रवृत्त - 'अवि कामगद्दभेसु वि ण णासए किं पुण जतीसु' ( निभा ४४२१ ) । कामजल -- स्नान-पीठ - 'कामजलं ण्हाणपीढं' ( निचू ३ पृ ३७८ ) । कामज्जेग -- जलकाक, बतख ( सूचू १ पृ १५८ ) । कामिंजुल -- जल पक्षी-विशेष ( दे २।२९ ) । कामेयग -- लोमपक्षी ( जीवटी प ४१ ) । काय -- १ कुहन वनस्पति विशेष ( भ २३।४ ) । २ वस्त्र-विशेष ( नि १७।१२ ) । ३ कांवर, कापोतिका ( बृभा २७८३ ) । ४ कायस्थ जाति ( कु पृ ४० ) । कायंचुल -- कामिञ्जुल, जल-पक्षी विशेष ( दे २।२९ ) । कायंदी -- परिहास, उपहास ( दे २।२८ ) । कायंधुअ -- कामिञ्जुल, जल-पक्षी-विशेष ( दे २।२९ ) । कायक -- इन्द्रनीलवर्ण वाले कपास से निष्पन्न वस्त्र - विशेष ( आचूला ५।१४ ) -- 'क्वचिद्देशे इन्द्रनीलवर्णः कर्पासो भवति तेन निष्पन्नानि कायकानि ( टी प ३९३ ) । कायपिउच्छा -- कोकिला, कोयल ( दे २।३० ) । कायमाइ -- गुच्छ वनस्पति विशेष, काकमाची ( प्रज्ञा १।३७।२ ) । कायमाण -- तृणकुटी -- 'तेहिरण्णो कायमाणं कयं' ( ओटी प ४६ ) । कायर -- १ प्रिय, स्नेहपात्र - 'केचित् प्रिये कायरो इत्याहु:' ( दे २।५८ वृ ) । २ पक्षी-विशेष ( अंवि पृ ६२ ) । कायल -- १ प्रिय, स्नेहपात्र । २ कौआ ( दे २।५८ ) । कार -- कटु, कड़वा, तीता ( दे २।२६ ) । कारंकड -- परुष, कठिन ( दे २।३० ) । कारंकडअ -- परुष, कठिन ( दे २।३० वृ) । कारा -- रेखा ( दे २।२६ ) । कारिअल्लिका -- करैले की लता ( अंवि पृ ७० ) । कारिम -- कृत्रिम, बनावटी, नकली ( दे २।२७ ) । कारियल्ल -- करैला की वल्ली ( प्रज्ञा १।४०।२ ) । कारियल्लई -- वल्ली विशेष, करैला का गाछ ( प्रज्ञाटी प ३३ ) । कारिया -- करैले का गाछ, गुच्छवनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।३७।५ ) । कारेल्लय -- करैला ( अनु ३।५० ) । कारेल्ला -- करैला ( अनुटी पृ ६ ) । कारोडिय -- कापालिक - •••••लाभत्थिया किव्विसिया कारोडिया कारवाहिया' ( भ ९।२०८ ) । काल --१ काला, अन्धकार (विपा १।८।१२; दे २।२६ ) । २ पुष्प-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । कालअ -- धूर्त, ठग ( दे २।२८ एऔ ) । कालंची -- भाजन-विशेष ( अंवि पृ ७२ ) । कालवट्ठ -- धनुष ( दे २।२८ ) । कालाडग -- मत्स्य की जाति ( अंवि पृ ६३ ) । कालापरण्णपिंडि -- खाद्य-विशेष ( अंवि पृ ५ ) । कालिआ -- १ शरीर । २ कालान्तर । ३ मेघ ( दे २।५८ ) । कालिंग -- तरबूज की वल्ली ( अंवि पृ २३९ ) । कालिंगी -- जंगली तरबूज की बेल ( प्रज्ञा १।४०।१ ) । कालिंजण -- तमाल का वृक्ष ( दे २।२९ वृ) । कालिंजणी -- तमाल की लता ( दे २।२९ ) । कालिंब -- १ शरीर । २ मेघ ( दे २।५९ ) । कालियवाय -- प्रतिकूल वायु - 'थणियसद्दे कालियवाए जाव समुट्ठिए' ( ज्ञा १६५६ ) । काली -- १ तृण-विशेष । २ काकजंघा नामक तृण - काली नाम तृणविशेषो, केइ काकजंघां भणंति' ( उचू पृ ५३ ) । कालेज्ज -- १ कलेजा, हृदयवर्ती मांस-खंड ( सूनि ७३ ) । २ तमाल वृक्ष का पुष्प ( दे २।२९ वृ ) । कालेयक -- फल-विशेष ( अंवि पृ २३२ ) । काव -- कांवर वहन करने वाला ( जीव ३।६१६ ) । कावलिअ -- असहिष्णु ( दे २।२८ ) । कावी -- नीलवर्ण वाली ( दे २।२६ ) । कावेल्ली -- पात्र-विशेष ( अनुद्वाहाटी पृ ७९ )। कावोडि -- कांवर ( आवहाटी २ पृ ४४ ) । कावोडी -- कांवर - #बालादिसल्लविद्धवहणट्ठा कावोडी' ( निचू ४ पृ १०९ ) । कावोय -- कांवर वहन करने वाला ( अनुद्वामटी प ४२ ) । कास -- गुच्छ वनस्पति विशेष ( प्रज्ञा १।३७।४ ) । कासार -- सीसकपत्र, सीसे की चादर ( Lead- Sheet ) ( दे २।२७ ) । कासिअ -- १ सूक्ष्म वस्त्र । २ श्वेत वर्ण ( दे २।५९ ) । कासिज्ज -- काकस्थल नामक देश ( दे २।२७) । काहल -- १ वाद्य-विशेष ( भटी पृ ८८३ ) । २ मृदु । ३ ठग ( दे २।५८ ) । काहली -- तरुणी ( दे २।२६ ) । काहल्ली -- १ प्रतिदिन उपभोग में आने वाला धान्य आदि । २ तपनी, तवी, रोटी आदि बनाने-सेकने का साधन ( दे २।५९ ) । काहार -- १ नक्षत्र का संस्थान विशेष ( सूर्य १०।२८ ) । २ कहार, जल आदि लाने वाला कर्मकर ( दजिचू पृ १२९ ; दे २।२७ ) । काहिल -- गोपाल, ग्वाला ( दे २।२८ ) । काहिल्लिआ -- तवा ( पा ६३९ ) । काहेणु -- गुंजा, लाल रत्ती ( दे २।२१ ) । किंकाणत -- कृकाटिका, गरदन का पिछला भाग ( सूचू १ पृ १३८ ) । किंकिअ -- सफेद, श्वेत ( दे २।३१ ) । किंखाइ -- फिर कैसे से किं खाइ णं भंते ! ' ( भ २ । १३४ ) - 'किं खाईं ति अथ किं पुनरित्यर्थ:' ( भटी प १४९ ) । किंखाति -- फिर कैसे ( भटी प १४८ ) । किंजक्ख -- शिरीष वृक्ष ( दे २।३१ ) । किंधर -- छोटी मछली ( दे २।३२ ) । किंपअ -- कृपण, कंजूस ( दे २।३१ ) । किंबोड -- स्खलित ( दे २।३१ ) । किक्किंड -- गिरगिट ( दे २।७४ ) । किक्किंडि -- सर्प ( दे २।३२ ) । किच्चण -- प्रक्षालन, धोना - 'किच्चणं च पोत्ताणं' ( ओनि १६८ ) । किज्जर -- भाजन-विशेष ( अंवि पृ २२१ ) । किट्ट -- लोह आदि धातुओं का मल -- 'अट्ठिरासिंसि वा किट्टरासिंसि वा, तुसरासिंसि वा' ( आचूला १।३ ) । किट्टि -- विभाग-विशेष की प्रक्रिया - 'किट्टयो नाम पूर्वस्पर्धकेभ्यः प्रथमादिवर्गणा गृहीत्वा विशुद्धिप्रकर्षवशादत्यन्तहीन रसाः कृत्वा तासामेकोत्तरवृद्धिमत्यागेन बृहदन्तरालतया व्यवस्थापनम्' ( प्रसाटी प १९८ ) । किट्टिका -- वनस्पति-विशेष ( जीव १।७३ ) । किट्टिया -- अनंतकाय वनस्पति विशेष ( भ ७।६६ ) । किट्टिस -- १ ऊन आदि का शेष बचा हुआ अंश । २ एक प्रकार का सूता - 'उण्णितादीणं अवघाडो किट्टिसमहवा•••••साणगादयो रोमा ते सव्वे किट्टिसं भन्नति' ( अनुद्वाचू पृ १५ ) । किट्टी -- समझा बुझा कर संभोग के लिए एकांत में ले जाई जाने वाली स्त्री ( व्यभा ४।३ टी प ५७ ) । किट्ठिया -- अनन्तकाय वनस्पति-विशेष ( भ ७।६६ ) । किडि -- १ वृद्ध - 'किडि खुड्ड वसभा वा' ( निभा ३०६० ) । २ सूअर ( दे २।३१ वृ ) । किडिका -- खिड़की ( अंवि पृ २७ ) । किडिकिडिया -- निर्मांस अस्थि के कारण उठने-बैठने से होने वाली ध्वनि - 'निम्मंसे किडिकिडियाभूए अट्ठिचम्मावणद्धे' ( ज्ञा १।१।२०२ ) । किडिग -- रोग-विशेष ( अंवि पृ २०३ ) । किडिभ -- कुष्ठविशेष - 'किडिभं कुट्ठभेदो सरीरेगदेसे भवति' ( निचू ३ पृ ३२४ ) - 'किडिभं जंघासु कालाभं रसियं बहति' ( निचू ३ पृ ६२ ) । किडिभक -- व्यापन्न शरीर वाला ( अंवि पृ २०३ ) । किडिभिल्ल -- कोढी - 'कच्छुल्ले किडिभिल्ले छप्पतिं गिल्ले य णिल्लोम' ( निभा ४०१८ ) । किडिया -- छोटाद्वार, खिड़की - ''सावयादिभए दुवारगुत्तीकरणं तेहिं देहाहि दंडएहिं किडिया कज्जति' ( निचू २ पृ ४० ) । किड्ढि -- वृद्धा - 'अणिच्छे किड्ढि साविया धोवति' ( निचू ३ पृ १०९ )। किड्ढी -- समझा बुझाकर संभोग के लिए एकांत में ले जाई जाने वाली स्त्री ( व्यमा ४।३ टी प ५७ ) । किढ -- वृद्ध, बूढा ( बृभा ४१४१ ) । किढग -- वृद्ध - 'जह किढगाण विमोहो समुदीरति किं तु तरुणाणं' ( व्यभा ७ टी प ४१ ) । किढि -- १ वृद्धा ( निचू २ पृ ३७९ ) । किढिण -- तापसों का पात्र विशेष जो बांस से बना हुआ होता है ( भ ११।६४ ) । किढिया -- वृद्धा ( निभा २२३२ ) । किढी -- १ काठ लाने वाली ( आवहाटी १ पृ १५८ ) । २ वृद्धा, स्थविरा ( बृभा १९५९ ) । किणिक -- वाद्यों को चर्म से मढने वाले शिल्पी ( व्यभा ४।३ टी प २१ ) । किणिकाण -- वाद्य-विशेष ( आवचू १ पृ ३०९ ) । किणिय -- १ जो वादित्रों को चर्म आदि से मढने का काम करते हैं । २ जो नगर में घुमाते हुए ले जाने वाले वध्य पुरुषों के आगे वादित्र बजाते हैं ( व्यभा ४।३ टी प २१ ) । किणिह -- कृमि की एक जाति ( अंवि पृ ७० ) । किणो -- क्यों, किसलिए ? ( प्रा २।२१६ ) । किण्ण -- शोभित, सुन्दर ( दे २।३० ) । किण्णि -- मदिरा का मैल - 'सुराए किण्णिमादिकिट्ठिसंपक्कसं' ( निचू ४ पृ २२३ ) । किण्ह -- १ सूक्ष्म वस्त्र । २ श्वेत वर्ण ( दे २।५९ ) । किण्हपत्त -- चतुरिन्द्रिय जीव-विशेष ( प्रज्ञा १।५१ ) । कित -- चुंगी लेने वाला ( व्यभा २ टी प ९५ ) । किपिल्लक -- प्राणी-विशेष ( अंवि पृ ६६ ) । किपिल्लिका -- कृमि की एक जाति ( अंदि पृ ७० ) । किमिराय -- लाख से रंगा हुआ वस्त्र ( दे २।३२ ) । किमिहरवसण -- कौशेय वस्त्र, रेशमी वस्त्र ( दे २।२३ ) । कियत -- चुंगी लेने वाला - 'सुंकठाणेसु कियतो उवट्ठितो भणइ' ( व्यभा २ टीप ९५ ) । कियाडिया -- कान का ऊपरी भाग - 'तं चेल्लगं कियाडियाए घेत्तुं सीसे खडुक्क दाउं••••' ( व्यभा १ टी प १३) । किर -- सूकर, सूअर ( दे २।३० ) । किराड -- खुदरा माल बेचने वाला व्यापारी ( कु पृ १०६ ) । किराडय -- व्यापारी - 'जाहि किराडयं उच्छिष्णं मग्गाहि' ( आवहाटी २ पृ २२१ ) । किरि -- ज्येष्ठ, बड़ा- 'सिरिओ वि किरि भायनेहेण कोसाए गणियाए घरमल्लियइ' ( उसुटी प ३० ) । किरिइरिआ -- १ कर्णोपकर्णिका, एक कान से दूसरे कान गई हुई बात । २ कुतूहल ( दे २।६१ ) । किरिकिरिया -- बांस आदि की कम्बा से निष्पन्न वाद्य-विशेष ( आचूला ११।३ ) । किरीडय -- रेशम का कीड़ा - 'किरीडयलाला मलयविसए मयलाणि पत्ताणि कोविज्जति' ( निचू २ पृ ३९९ ) । किलणी -- रथ्या, गली ( दे २।३१ ) । किलिंच -- बांस की खपची ( द ४ सू १८; दे २।११ ) । किलिम्मिअ -- कथित उक्त ( दे २।३२ ) । किविड -- १ खलिहान, अन्न साफ करने का स्थान । २ खलिहान में जो हुआ हो वह ( दे २।६० ) । किविडी -- १ पार्श्वद्वार । २ घर का पिछला आंगन ( दे २।६० ) । किविल्लिका -- कीट-विशेष ( अंवि पृ २५३ ) । किविल्लिग -- क्षुद्र जन्तु ( अंवि पृ २२९ ) । किसोर -- घोड़ी का गर्भस्थ बच्चा ( निचू ३ पृ ४११ ) । कीडी -- चींटी - 'जस्स कीडीओ खायंति उत्तमंगं' ( आवदी प १६८ ) । कीर -- शुक, तोता ( दे २।२१ ) । कील -- १ कंठ - 'कीलेहिं विज्झंति असाहुकम्मा' - कीलेषु - कण्ठेषु ( सूटी १ प १२९ ) । २ स्तोक, अल्प ( दे २।२१ ) । कीलणिआ -- रथ्या, गली ( दे २।३१ ) । कीलणी -- रथ्या ( दे २।३१ वू ) कीला -- नववधू, दुलहिन ( दे २।३३ ) । कुइग -- दही के ऊपर का नितरा हुआ पानी - 'कूचिका नाम दध्न उपरि द्रवस्वरूपो माथुशब्दतया ख्यातो वस्तुविशेषः, स च किल जीरकादिभिः संस्कृतोऽतीव स्वादुर्भवति ( आवटि प २४ ) । कुउआ -- तुम्बी पात्र ( दे २।१२ ) - 'भिक्खु ! को तुह कुउअं पूरिस्सइ पिण्डवाएण' ( वृ ) । कुऊल -- १ नीवी, अधोवस्त्र को बांधने का नाड़ा ( दे २।३८ ) । २ पहने हुए कपड़े का प्रांत भाग, अञ्चल - 'कुऊलं परिहितवस्त्रप्रान्त इति केचित्' ( वृ ) । कुंकुण -- चतुरिन्द्रिय जंतु विशेष ( उ ३६।१४६ ) । कुंचल -- मुकुल, कलिका ( दे २।३६ ) । कुंचवीरग -- जलयान-विशेष - 'कुंचवीरगो सगडपक्खसारिच्छं जलयाणं कज्जति' ( निचू ४ पृ ५० ) । कुंटल -- जादू-टोना ( दजिचू पृ २८२ ) । कुंटलविंटल -- १ मन्त्र-तन्त्र का प्रयोग ( व्यभा ४।३ टी प ९६ ) । २ मंत्र-तंत्र से आजीविका चलाने वाला । कुंटार -- म्लान ( दे २।८० ) । कुंटि -- १ गठरी । २ वस्त्र में बंधा हुआ ( दे २।३४ ) । ३ वस्त्र-विशेष । कुंटुल्लिग -- बच्चों का खिलौना ( सूचू १ पृ ११७ टि ) । कुंड -- १ गोत्र विशेष ( अंवि पृ १४९ ) । २ बास से बना हुआ ईख पेरने का जीर्ण काण्ड ( दे २।३३ ) । कुंडग -- तुष मिश्रित चावलों की भूसी - 'तुसमुहीकणिया कुक्कसमीसा कुंडग भण्णति' ( निचू २ पृ २३७ ) । २ कुंडा ( अंवि पृ ६५ ) । कुंडरोट्ट -- निस्तुषधान्य - 'कुंडरोट्टो पुण णितुसा' ( निचू २ पृ २३७ ) । कुंडिअ -- ग्राम का अधिपति, गांव का मुखिया ( दे २।३७ ) । कुंडिअपेसण -- ब्राह्मणविष्टि, ब्राह्मण को जबरदस्ती से दी जाने वाली सेवा ( दे २।४३ ) । कुंडिल्लगा -- बच्चों का खिलौना - 'कुंडिल्लगा चेडरूवरमणिका' ( सूचू १ पृ ११८ ) । कुंडुक्क -- वनस्पति विशेष ( आटी प ५७ ) । कुंडुल्लिग -- बच्चों का खिलौना ( सूचू १ पृ ११८ टि ) । कुंढ -- १ आलसी ( उशाटी प १०८ ) । २ मूर्ख ( उसुटी प ३२ ) । कुंढय -- १ चुल्ली, चुल्हा । २ छोटा बरतन ( दे २।६३ ) । कुंत -- १ ठेका, इजारा - 'कुन्तकम् - एतावद् द्रव्यं त्वया देयमित्येवं नियंत्रणया नियोगिकस्य देशादेर्यत् समर्पणमिति' ( विपा १।१।४६ टी प ३९ ) । २ शुक तोता ( दे २।२१ ) । कुंतक -- ठेका, इजारा (विपाटी प ३६ ) देखें - 'कुंत' । कुंतल -- सातवाहन, नृप-विशेष ( दे २।३६ ) । कुंतली -- करोटिका, परोसने का एक उपकरण ( दे २।३८ ) । कुंती -- मंजरी, मांजर ( दे २।३४ ) । कुंतीपोट्टलय -- चतुष्कोण ( दे २।४३ ) । कुंदअ -- कृश, दुर्बल ( दे २।३७ ) । कुंदीर -- बिम्बीफल, कुन्दरुन का फल ( दे २।३९ ) । कुंदुरुक्क -- मुर्गे की ध्वनि - 'सो गंतुकामो रयणिपज्जवसाणे भणइ कुंदुरुक्क पडिबोहियल्लओ' ( आवमटी प ५१२ ) । कुंदुल्लुय -- उल्लू ( पा ३९३ ) । कुंधर -- छोटी मछली ( दे २।३२ ) । कुंपल -- कोंपल ( पा ८८ ) । कुंबर -- छोटी मछली ( पा ३०१ ) । कुंभ -- ललाट - 'सिंगं पुण कुंभपासे हि, कुंभशब्देन ललाटमेव भण्यते' ( प्रसाटी प ३८ ) । कुंभकंडक -- वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ २३२ ) । कुंभकारिआ -- क्षुद्र जंतु विशेष ( अंवि पृ २३८ ) । कुंभिणी -- जल का गर्त्त ( दे २।३८ ) । कुंभिया -- लोहमय या ताम्रमय पात्र ( सूचू २ पृ ३७३ ) । कुंभिल -- १ चोर । २ पिशुन ( दे २।६२ ) । कुंभिल्ल -- खोदने योग्य ( दे २।३९ ) । कुंभी -- केश-रचना, केश-संयम ( दे २।३४ ) । कुंभेल्ल -- खाद्य-विशेष – 'कुंभेल्लसालिमाति पिहुखज्जा' ( दअचू पृ १७३ ) । कुकह -- थूभ, ककुद ( आवचू १पृ ३७२ ) । कुकुंदल -- शरीर का अवयव-विशेष ( अंवि पृ १२३ ) । कुकुड -- मत्त, उन्मत्त ( सूचू २ पृ ३१८ ) । कुकुला -- नववधू ( दे २।३३ ) । कुक्कयय -- तुम्बवीणा ( सू १।४।३८ ) । कुक्कस -- धान्य आदि का तुष ( निचू २ पृ २३७ ) । कुक्कुड - १ उन्मत्त, मत्त ( बृभा २०१६; दे २।३७ ) । २ शरीर का अवयव-विशेष ( अंवि पृ ११४ ) । कुक्कुडिगा -- ककड़ी ( अंवि पृ ७१ ) । कुक्कुरुड -- निकर, समूह ( दे २।१३ ) । कुक्कुस -- धान्य आदि का तुप ( आचूला १।३९ ; दे २।३६ ) । कुक्कुह -- चतुरिन्द्रिय जंतु-विशेष ( प्रज्ञा १।५१ ) । कुक्कुहग -- ताम्रवीणा - 'कुक्कुहगो णाम तंबबीणा' ( सूचू १ पृ ११६ ) । कुक्कुहाइय -- चलते समय के अश्व का शब्द-विशेष - सीहे कुडुंबयारस्स पोट्टलं, कुक्कुहाइयं अस्से । जाणंति बुद्धिमंता, महिलाहिययं न जाणंति ।।' ( तंदु १६४) । कुक्खलिका -- उपकरण-विशेष ( अंवि पृ १९१ ) । कुक्खि -- कुक्षि, पेट (दे २।३४ ) । कुच्चविच्च -- गृहस्थों की क्रियाएं - 'ण य ताण कुच्चविच्चाणि निज्झातियव्वाणि' ( आवचू १ पृ ३५४ ) । कुच्चोलि -- संवत्सर ( ? ) ( अंवि पृ २३६ ) । कुच्छर -- दक्ष ( दे २।१३ पा ) । कुच्छिमइ -- गर्भवती ( दे २।४१ ) । कुच्छिल्ल -- १ बाड़ का छिद्र ( दे २।२४ ) । २ छिद्र, विवर ( पा १०५ ) । कुट्टयरी -- चण्डी, पार्वती ( दे २।३५ ) । कुट्टविंद -- मिट्टी के साथ कूटी हुई वट, पीपल, आदि वृक्षों की छाल-वड-पिप्पल-असत्यमादियाण वक्को मट्टियाए सह कुट्टिज्जंति सो कुट्टविंदो भण्णति' ( निचू ४ पृ २०९ ) । कुट्टा -- १ इमली - 'कुट्टा चिञ्चनिका' ( बृभा १७०६ टी ) । २ गौरी, पार्वती ( दे २।३५ ) । कुट्टाअ -- चर्मकार, मोची ( दे २।३७ ) । कुट्टि -- नकल - 'कुट्टिं वा करोतीत्यर्थः' ( निचू ३ पृ ३९ ) । कुट्टिंब -- द्रोणी, नौका ( पा ३२६ ) । कुट्टिद -- नकल करने वाला, नकलची ( निचू २ पृ १२१ ) । कुट्टिया -- नकल ( निचू २ पृ १७२ ) । कुठारी -- कुठार ( अंवि पृ ७२ ) । कुठारीक -- भाजन-विशेष ( अंवि पृ ७२ ) । कुडंग -- १ बांस का झुरमुट ( ज्ञा १।१८।२१ ) । २ लतागृह, निकुञ्ज ( बृभा ६१४९ ; दे २।३७ ) । कुडंगअ -- लतागृह ( पा ७२१ )। कुडंगी -- १ वन, जंगल - 'अइगुविलगव्वरा वंसकुडंगी सिग्घं लंघियव्वा' ( आवहाटी १पृ २५६ ) । २ बांस की जाली ( प्राक १ टी पृ २१ ) । कुडंड -- बांस की डोरी, खपाची - 'अपवरकस्य द्वारं बहि: 'कुडण्डेन' वंशटोक्करादिना बध्यते येन न निर्गत्यापगच्छति' ( बृटी पृ १६४१ ) । कुडंडिता -- ताला लगाना, कूंटा लगाना - 'घरे छोढूण बाहिरि कुडंडिता' ( आवचू १ पृ ३१९ ) । कुडक्ख -- कुडक्क ( कुर्ग ) देश का निवासी ( कु पृ ४० ) । कुडग -- कुक्कसमिश्रित तुषमुखी कणिका ( निचू २ पृ २३७ ) । कुडपूरि -- मादा पक्षी विशेष ( अंवि पृ ६९ ) । कुडभी -- छोटी पताका ( उशाटी प ३०३ ) । कुडय -- १ लतागृह, लता से आच्छादित घर ( अनुद्वा ३५२; दे २।३७ ) । २ कुरैया का वृक्ष ( औप ९ ) । कुडा -- १ बांस का एक प्रकार, पर्व वनस्पति । २ वृक्ष - विशेष ( भ २१।१७ ) । कुडिअ -- कुब्ज, वामन ( पा ४११ ) । कुडिआ -- बाड़ का विवर ( दे २।२४ ) । कुडिच्छ -- १ बाड़ का विवर । २ कुटी, झोंपडी । ३ त्रुटित, छिन्न ( दे २।६४ ) । कुडिय -- चुराई हुई वस्तु की खोज करने वाला ( उशाटी प १०९ ) । कुडियंठ -- पाल - 'ततो कुविएण कुडियंठो मत्थए दाऊण अंगाराणं से भरिता' ( आवहाटी १पृ १८२ ) । कुडियंडी -- शिरोवेष्टन- 'कुडियंडी सीसकरणं वा ( आचू पृ ३५८ ) । कुडिल्ल -- छिद्र ( पा १०५ ) । कुडिल्लय -- कुटिल ( दे २।४० ) । कुडीर -- बाड़ का छिद्र ( दे २।२४ ) । कुडुंब -- महावत ( पिटी प ७२ ) । कुडुंबक -- १ वनस्पति विशेष, धनिया । २ कन्द-विशेष । ( अंवि पृ २४३ ) । कुडुंबिय -- ताला लगाना, कूंटा लगाना ( आवहाटी १ पृ १५० ) । कुडुंभग -- जलमंडूक की भांति फुदकना अथवा जल में मंडूक की भांति आवाज करना - 'कुडुंभगो जलमंडुओ भण्णति•••••सुंदरं कुडुंभगं करेसि त्ति मं पि सिक्खावेहि' ( निचू १ पृ ७०) । कुडुक -- कुरुदेश का वासी ( व्यमा ४।४ टी प ५२ ) । कुडुकालक -- मत्स्य की एक जाति ( अंवि पृ २२८ ) । कुडक्क – १ कुरु देश का वासी ( व्यभा ४।४ टी प ५२ ) । २ लतागृह ( व्यभा १० टीप १५ ) । ३ निर्दय, निष्ठुर (निचू २ पृ २६६; दे २।९३) । ४ देश-विशेष ( व्यभा ४ । ४ टी प ५२ ) । कुडुच्चिअ -- संभोग, मैथुन ( दे २।४१ ) । कुडुह -- उभरा हुआ भाग ( नंदीचू पृ ६४ ) । कुड्ड -- १ दीवार ( भ ८।२५७ ) । २ पात्र विशेष (निचू ३ पृ ३८९ ) । ३ कुतूहल, आश्चर्य ( आवमटी प ५३०; दे २।३३ ) । कुड्डगिलोई -- छिपकली ( दे २।१९ ) । कुड्डलेवणी -- चूना, खड़ी, खटिका ( दे २।४२ ) । कुढ -- १ चुराई हुई या छीनी हुई वस्तु की खोज करने वाला ( दअचू पृ ५१ ; दे २।६२ ) । २ चुराई हुई चीज को छुड़ानेवाला ( दे २।६२ ) । कुढारक -- घटाकार पात्र ( अंवि पृ ६५ ) । कुढावय -- अनुगमन - 'तुरयस्स कुढावयम्मि पडिलग्गो' ( विभामहेटी पृ ५३४ ) । कुढिय -- १ चुराई वस्तु को खोजने वाला ( पंक ५७४ ) । २ चुराई वस्तु को खोजकर लानेवाला ( निचू १ पृ १२२ ) । ३ ग्रामप्रधान । ४ आरक्षक ( आवहाटी १ पृ १८१ ) । कुढेरग -- कन्द-विशेष ( पंक ७३३ ) । कुण -- हास्यास्पद शब्द - 'वेयणचेट्ठाहि एवं कुणं••••वा करोतीत्यर्थः' ( निचू ३ पृ ३९ ) । कुणक्कय -- कुहन वनस्पति का एक प्रकार ( प्रज्ञा १।४७ ) । कुणिआ -- बाड़ का छिद्र ( दे २।२४ ) । कुणिक -- सेवक - विशेष - 'कुणिकाश्च सेवकविशेषा:' ( प्रटी प १५ ) । कुणिणह -- अक्षिरोग विशेष ( अंवि पृ २०३ ) । कुणिम -- १ मांस ( सू १।४।८ ) । २ रुधिर, मांस, वसा आदि से संकीर्ण अपवित्र स्थान ( सू १।५।२७ ) । ३ शव ( प्र ३।९ ) । ४ शव का रुधिर, वसा आदि -- 'तं च से कुणिमं गलति उवरिं' ( आवहाटी २ पृ ४८ ) । कुणिय -- हास्यास्पद शब्द - 'कुणियं वा भणंतो हसिज्जसि' ( निचू ३ पृ ३९ ) । कुतकिट्ट -- रोम-विशेष - 'कुतकिट्टा वि रोमविसेसा चेव देसंतरे, इह अप्पसिद्धा ( निचू ३ पृ ५७ ) । कुतत्ती -- मनोरथ, वांछा ( दे २।३६ ) । कुतलग -- छोटे-छोटे टुकड़े ( दअचू पृ ११५ ) । कुतव -- चूहे के रोमों से बना वस्त्र - 'कुतवं उंदररोमेसु ' ( अनुद्वाहाटी पृ २२ ) । कुतिपि -- बिल में रहने वाला क्षुद्र कीट ( अंवि पृ २२९ ) । कुत्त -- ठेका, इजारा ( विपा १।१।४९ पा ) देखें - 'कुंत' । कुत्तिका -- मधुनिष्पन्न करने वाली मक्षिका विशेष ( प्रसाटी प ५३ ) । कुत्तिय -- चतुरिन्द्रिय जन्तु विशेष ( आवचू २ पृ ३१९ ) । कुत्तुंबक -- वाद्य-विशेष ( जीव ३।७८ ) । कुत्थर -- १ विज्ञान, प्रज्ञा, कलाकौशल ( दे २।१३ ) । २ वृक्ष कोटर । ३ सर्व आदि का बिल । कुत्थुंबरी -- बहुबीजक वनस्पति-विशेष ( भ ८।२२० ) । कुत्थुहवत्थ -- १ नीवी, अधोवस्त्र को बांधने का नाड़ा ( दे २।३८ ) । कुत्थूंभरिय -- वनस्पति विशेष, धनिया ( भ २२।३ ) । कुदुक्का -- नालिका से खेला जाने वाला द्यूत - 'नालिकाक्रीडा कुदुक्का - क्रीडत्ति' ( सूचू १ पृ १७९ ) । कुदुव्वर -- वाद्य-विशेष ( आवचू १ पृ ३०९ ) । कुद्द -- प्रभुत, प्रचुर ( दे २।३४ ) । कुद्दण -- रासक, एक प्रकार का नृत्य ( दे २।३८ ) । कुधवा -- वल्ली विशेष ( प्रज्ञा १।४० ) । कुधुलूक -- पक्षी-विशेष, उलूक की एक जाति ( अंवि पृ ६२ ) । कुप्पढ -- १ गृहाचार, घर का रिवाज ( दे २।३६ ) । २ समुदाचार - 'कुप्पढो गृहाचारः समुदाचार इत्यन्ये' ( वृ ) । कुप्पर -- १ तीक्ष्ण, तीखा ( पिनि ४१८ ) । २ कीलाघात, रति-क्रीडा के समय छाती पर एक विशेष प्रकार का आघात करना । ३ समुदाचार, आचार-व्यवहार का सम्यक् पालन । ४ क्रीडा, उपहास ( दे २।६४ ) । कुप्पल -- जलयंत्र का एक भाग ( अंवि पृ २५५ ) । कुप्पासया -- केंचुली ( कु पृ १७० ) । कुप्पिस -- कञ्चुक, कांचली ( दे २।४० वृ ) । कुब्ब -- धंसा हुआ, क्षीण - 'कुब्बं ति निम्नं क्षाममित्यर्थ: कुभिंधि -- पुष्प विशेष ( अंवि पृ ७० ) । कुमार -- आश्विन मास, कुंआर का महीना ( स्था २।१ ) । कुमारी -- गौरी, पार्वती ( दे २।३५ ) । कुमारील -- केशमय बहुपदी जन्तु-विशेष ( अंवि पृ २२८ ) । कुमुली -- चुल्ली, चुल्हा ( दे २।३९ ) । कुम्मण -- म्लान, शुष्क ( दे २।४० ) । कुम्मरिय -- कसाई ( ओभा ९० ) । कुयवा -- वल्ली विशेष ( प्रज्ञा १।४० ) । कुरबक -- कर्णाभूषण, कुंडल ( अंवि पृ ६४ ) । कुरर -- मार्जार नाम का पक्षि-विशेष ( उशाटी प ५२१ ) । कुररी -- पशु ( दे २।४० ) । कुराइ -- सीमान्तवर्ती राजा - 'पच्चंत णिवो कुराया' ( निचू २ पृ ४६८ ) । कुरिण -- बड़ा जंगल - 'कुरिणमिव पोयाला जे मुक्का पव्वई मेत्ता' ( ओनि ४४९ ) । कुरिल -- कुरल पक्षी ( अंवि पृ २३७ ) । कुरुंडित -- जासूस, चर ( व्यभा १० टी प ७ )। कुरुंडिय -- जासूस, चर - 'कुरुंडितो नाम उवचरओ' ( व्यभा १० टी ॥ ८ ) । कुरुकया -- पाद-प्रक्षालन ( व्यभा ६ टीप २६ ) । कुरुकुया -- पाद-प्रक्षालन, शौचक्रिया ( ओनि ३१८ ) । कुरुकुरिअ -- कामासक्ति से उत्पन्न उत्कंठा, औत्सुक्य ( दे २।४२ ) । कुरुग -- माया ( आवहाटी २ पृ १९ ) । कुरुचिल्ल -- १ ग्रहण, उपादान । २ कुलीर, केकड़ा ( दे २।४१ ) । कुरुच्च -- अनिष्ट, अप्रिय ( दे २।३९ ) । कुरुड -- १ निपुण । २ निर्दय ( दे २।६३ ) । कुरुडूक -- पुष्प विशेष ( अंवि पृ ७० ) । कुरुण -- १ राजकीय अथवा अन्य खेत जिसमें बीज बो दिए गए हों ( व्यभा ४ । १ टी प ८ ) । २ राजा का या दूसरे का धन । कुरुमाण -- म्लान ( दे २।४० ) । कुरुमुयाग -- घर का एक उपकरण - 'उंमरो कुरुमुयागं उक्खलं मुसलं वा' ( आचू पृ ३६४ ) । कुरुय -- मायावी - 'णिंदा वा सा पसंसा वा पप्पाति कुरुए जगे' ( इ ४।२०) । कुरुल -- १ निर्दय । २ निपुण । ३ कुटिलकेश, घुंघराले बाल ( दे २।६३ ) । कुरुविंद -- तृण-विशेष ( प्र ४।७ ) । कुरुविल्ल -- केकड़ा ( पा ३०५ ) । कुलत्थ -- कुलथी, धान्य-विशेष ( जंबू २।३७ )। कुलफंसण -- कुलकलंक ( दे २।४२ ) । कुलसंतइ -- चुल्हा, चुल्ली ( दे २।३९ ) । कुलिंगवच्छा -- चींटी के सदृश जीव-विशेष ( भटी पृ १३८९ ) । कुलिच्चग -- क्रूर ( दश्रुचू प २४ ) । कुलित -- घास काटने के लिए दो हाथ प्रमाण का छोटा काठ जिसके अंत में लोहे की दंती लगी रहती है - 'कुलितं णाम सुरट्ठाविसते दुहत्थप्पमाणं कट्ठं, तस्स अंते अयकीलगा, तेसु एगायओ एगाहारो य लोहपट्टी अडिज्जति, सो जावतियं दोव्वादि तणं तं सव्वं छिंदंतो गच्छति' ( निचू १ पृ ३१ ) । कुलिय -- खेत में घास काटने का छोटा काष्ठ (निभा ६० ) । देखें 'कुलित' । कुलीयंधक -- आभूषण-विशेष ( अंबिपृ १८३ ) । कुल्ल -- १ नितंब ( उसुटी प १३० ) । २ ग्रीवा, गला । ३ असमर्थ । ४ छिन्नपुच्छ, जिसकी पूंछ कट गई हो वह ( दे २।६१ ) । कुल्लग -- कुल्हा, पुतभाग ( निचू ३ पृ ३२३ ) । कुल्लड -- १ चुल्ली । २ छोटा पात्र ( दे २।६३ ) । कुल्लडय -- कुलडी, छोटा बरतन ( पा ७३९ ) । कुल्लडिका -- मिट्टी का खिलौना ( सूटी १ प ११८ ) । कुल्लरिअ -- हलवाई, मिठाई बनाने वाला ( दे २॥४१ ) । कुल्लरिका -- एक प्रकार की मिठाई ( प्रसाटी प ५१ ) । कुल्लुरी -- खाद्य-विशेष ( प्रसाटी प ५६ ) कुलेर ( गुज )। कुल्लूरिक -- हलवाई ( आवहाटी १ पृ १८३ ) । कुल्ह -- शृगाल ( दे २।३४ ) । कुवण -- यष्टि, लाठी - 'कुवण त्ति लउडगो' ( निचू ३ पृ ५०१ ) । कुवणय -- यष्टि, लाठी ( बुभा ९१५ ) । कुविक -- होन अवयव वाला ( अंवि पृ १५३ ) । कुव्वरग -- खप्पर ( आवचू २ पृ २४७ ) । कुसण -- १ गोरस । २ पानक, मूंग की दाल आदि का पानी - 'कुसणं गोरसं पाणगं वा' (आचू पृ २५०) । ३ तीमन, कढी आदि व्यञ्जन ( पिनि २०२; दे २।३५ ) । ४ गोरस से बना हुआ करंबा आदि खाद्य ( पिनि २८२ ) । कुसत्त -- आस्तरण-विशेष ( ज्ञा १।१।१८ ) । कुसी -- कृमि की एक जाति ( अंवि पृ ७० ) । कुसुंभिल -- पिशुन, चुगलखोर ( दे २।४० ) । कुसुकुंडी -- मधुर सुरा विशेष (अंवि पृ २२१ ) । कुसुण -- दही आदि ( पिनि ६०७ ) । कुसुणित -- गोरस से बना हुआ करंबा आदि खाद्य - 'कुसुणितमपि करंबादिरूपतया कृतमपि' ( पिटी प ९१ ) । कुसुमण्ण -- कुंकुम ( दे २।४१ ) । कुसुमाल -- चोर ( दे २।१० ) । कुसुमालिअ -- अन्यमनस्क ( दे २।४२ ) । कुहंडिय -- ताला लगाना, ढकना - सा घरे छोढूण बाहिरि कुहंडिया' ( आवहाटी १ पृ १५० ) । कुहड -- कुब्ज, कूबड़ा ( पंव = ३२; दे २।३६ ) । कुहणय -- कुहन वनस्पति का एक प्रकार ( प्रज्ञा १।४७) । कुहव्वय -- कन्द-विशेष ( उ ३६।९७ ) । कुहाड -- कुल्हाड़ी, फरसा ( निचू २ पृ ५ ) । कुहावणा -- बहुरूपिये की वृत्ति से अर्थार्जन करना - वट्टादि इंदजालं, खेड्डा उ कुहावणा एसा' ( जीभा १७२१ ) । कुहिअ -- लिप्त, पोता हुआ ( दे २।३५ ) । कुहिणी -- १ कोहनी, कूर्पर । २ रथ्या, गली ( दे २।६२ ) । कुहिय -- वायु-विशेष, दौड़ते हुए अश्व के उदर प्रदेश के पास उत्पन्न होने वाला एक प्रकार का वायु-घणगज्जिय-हयकुहियं विज्जूदुग्गेज्झ गूढहियआओ' ( ग ९५ ) । कुहुण -- वनस्पति-विशेष ( भ २३।४ ) । कुहेड -- १ चमत्कार, मंत्र तंत्र के द्वारा झूठा चमत्कार ( उसुटी प २७१ ) । २ गुरेटक, एक प्रकार का हर्रे का गाछ ( दे २।३५ ) । कुहेडग -- १ अदरक ( प्रसा २१० ) । २ अजवायन । कूइय -- दुग्ध-वराटिका, खोआ, मावा ( आवटि प १३ ) । कूचित -- छेना, भोज्य पदार्थ विशेष ( अंवि पृ २२० ) । कचिया -- छेना ( नंदीटि पृ १८२ ) । कूड -- जाल, फंदा ( बृभा २३९०; दे २।४३ ) । कूडाहच्च -- कुचल कर मारना ( भ ७।२०२ ) । कूणिअ -- ईषद् विकसित ( दे २।४४ ) । कूभंड -- बड़ा फल, कुम्हडा ( अंवि पृ २३१ ) । कूभंडग -- कुम्हडा, कुष्मांडक ( अंवि पृ २३९ ) । कुभंडी -- वल्ली-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । कूय -- जहाज का मध्य-स्तंभ जहां पाल बांधा जाता है ( निचू १ पृ ७४ ) । २ कुतुप, तैल-भाजन ( ज्ञाटी प ६३ ) । कूर -- थोड़ा ( प्रा २।१२९ ) । कुरउंडिया -- खाद्य-विशेष ( आवचू २ पृ ९९ ) । कूरओडिया -- खाद्य-विशेष ( आवहाटी २ पृ ८८ )। कूरखोट्ट -- ओदन का भोजन ( ओटी पृ ३७९ ) । कूल -- १ तिनका - 'इतरोवि य तं नेड्डं घेत्तूणं पादवस्स सिहराओ । कूलं एक्केक्कं अंछिऊण तो उज्झती कुवितो ॥ ( आवचू १ पृ ३४५ ) । २ सेना का पिछला भाग ( दे २।४३ ) । कूव -- १ चुराई हुई चीज को लाने वाला ( ज्ञा १।१६।२०९ ) । २ चुराई हुई वस्तु की खोज में जाना ( दे २।६२ ) । कूवग्गाह -- तैलपात्र को धारण करने वाला ( भ ९।२०४ ) । कूवल -- जघन वस्त्र, अधोवस्त्र ( दे २।४३ ) । कूविय -- १ चोर की खोज करने वाला- सुबहुस्स वि कूवियबलस्स आगयस्स दुप्पहंसा यावि होत्था' ( ज्ञा १।१८।१८) । २ चुराई हुई वस्तु को खोजकर लाने वाला ( पिनि ११९ ) । कूवियत्त -- मुक्तता ( दिलाना ) - 'जो कुणति कूवियत्तं, सो वण्णं कुणति तित्थस्स' (निभा ३५१) । 'कूविय'बल -- १ मोष-व्यावर्तक सेना । २ चोरों की खोज करने वाली सेना ( ज्ञा १।१८।१८ ) । कसार -- गर्त्त, खड्डा ( दे २।४४ ) । केआरबाण -- पलाश वृक्ष ( दे २।४५ ) । केउ -- कन्द, कांदा ( दे २।४४ ) । केकर -- ऐंचाताना, आंख का रोग, जिसमें आंख की पुतली ताकते समय दूसरी तरफ खिंची रहे ( दअचू पृ १६७ ) । केचइ -- वलय-वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।४३ ) । केतरात -- मुद्रा विशेष, एक प्रकार का सिक्का ( निचू ३ पृ १११ ) । केदकंदली -- कन्द-विशेष ( उ ३६।९७ ) । केद्दह -- कितना - 'केद्दह त्ति किंप्रमाणानि' ( बृभा ७९८ टी ) । केयण -- १ माया । २ टेढ़ी वस्तु चंगेरी आदि - 'छज्जियालेवणगंडो केयणं ति भण्णति' ( निचू ३ पृ १४९ ) । केयर -- टेढ़े अंग वाला ( कुपृ १३० ) । केयवसक -- फल-विशेष ( अंवि पृ २३८ ) । केया -- रज्जु, रस्सी ( भ १३।१४९ ; दे २।४४ ) । केयाघडिया -- रज्जु के प्रान्त से बंधी हुई घटिका ( भ १३।१।१ ; टी पृ ११५२ ) । केर -- संबंधित वस्तु ( प्रा ४ । ३५९ ) । केला -- भांड-विशेष ( अंवि पृ ३० ) । केली -- कुलटा, व्यभिचारिणी स्त्री ( दे २।४४ ) । केवग -- कितना ( निचू ३ पृ १०४ ) । केवडिय -- १ पूर्वदेश में प्रचलित 'केतर' नाम का सिक्का ( बृभा १९६९ ) । २ कितना (पंक १८०१) । केसुक -- पलास ( अंवि पृ २३९ ) । कोआसित -- विकसित ( जंबूटी प ११३ ) । कोइलच्छद -- तैलकण्टक, वनस्पति-विशेष - 'जो एत्थ कोइलच्छदो सो तिलकंटओ भण्णइ' ( प्रज्ञाटी प ३६२ ) । कोइला -- कोयला ( दे २।४९ ) । कोउआ -- कंडे की अग्नि, करीषाग्नि ( दे २।४८ ) । कोऊहल्लिल -- कुतूहल करने वाला ( ओटी पृ २१६ ) । कोंटक -- तुष - 'तुस त्ति कोंटको व त्ति कक्कुसो तप्पणो त्ति वा ' ( अंवि पृ १०६ ) । कोंटल -- १ शकुन आदि की सूचना ( ओभा २२१ ) । २ जादू-टोना ( दश्रुचू प ७६ ) । कोंटलय -- १ ज्योतिष संबंधी सूचना । २ शकुन आदि निमित्त संबंधी सूचना - 'पउंजणे कोंटलयस्स य' ( ओभा २२१ ) । कोंटलवेंटल -- जादू-टोना- 'कोटलवेंटलेण कार्मणवशीकरणादिना' ( आवहाटी १ पृ १२९ ) । कोंटि -- शस्त्र-विशेष - 'कोंटिं आभामिऊणं पहाविओ' ( कु पृ ४७ ) । कोंड -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १४९ ) । कोंडइल -- पक्षि-विशेष ( निचू ३ पृ २६० ) । कोंडलिआ -- १ कुत्ते को बींधने वाला जंतु-विशेष, साही ( दे २।५० ) । २ कीट (वृ ) । कोंडल्लु -- उल्लू ( दे २।४९ ) । कोंडिअ -- ग्रामनिवासी लोगों के संगठन को छिन्न-भिन्न कर छल-कपट से गांव की उपज का उपभोग करने वाला ग्राम-भोक्ता ( दे २।४८ ) । कोंढुल्लु -- उल्लू ( दे २।४९ ) । कोंतिय -- १ तृण-विशेष ( भ २१।१९ ) । २ शहद का एक प्रकार ( निचू २ पृ २३८ ) । कोक -- वृक-विशेष ( प्रटी प ९ ) । कोकंतिका -- लोमड़ी ( प्रटी प ९ ) । कोकंतिय -- लोमड़ी - 'शृगालाकृतिर्लोमटक:' ( आटी प ३३८ ) । कोकंतिया -- लोमड़ी ( प्रज्ञा १।६६ ) । कोकासित -- विकसित ( जीव ३।५९६ ) । कोकासिय -- विकसित ( प्र ४।७ ) । कोकि -- मादा पक्षि-विशेष ( अंवि पृ ६९ ) । कोक्कास -- इस नाम का एक व्यक्ति जिसने यंत्रमय कापोत बनाकर शालि उत्पन्न की थी ( व्यभा ५ टी प २० ) । कोक्कासिअ -- विकसित ( दे २।५० ) । कोच्चप्प -- झूठा हित ( दे २।४६ ) । कोच्चित -- शैक्ष, नया शिष्य - 'कोच्चितो नाम शैक्षकः' ( व्यभा ६ टी प १४ ) । कोच्छ -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १४९ ) । कोच्छर -- दक्ष ( दे २।१३ पा ) । कोज्जक -- कमल की एक जाति - 'इंदीवरं कोज्जकं ति पाडलं कंदलं ति वा' ( अंवि पृ ६३ ) । कोज्जन -- पक्षि-विशेष ( भटी पृ ११५३ ) । कोज्जप्प -- स्त्री रहस्य, स्त्री-चरित्र ( दे २।४६ ) । कोज्झरिअ -- आपूरित, भरा हुआ ( दे २।५० ) । कोटिंब -- उडुप, नाव ( निचू ३ पृ ३६४ ) । कोटुंभ -- हाथ से आहत जल ( पा ३२७ ) । कोट्ट -- १ नगर (सूचू १ पृ १३८; दे २।४५) २ किला, दुर्ग ( प्रटी प १७ ) । ३ आक्रमण - 'परबलकोट्टं च वट्टति' ( निचू १ पृ ८ ) । ४ फल पकाने का स्थान - 'फलाणि व जत्थ पच्चंति तं कोट्टं' ( निचू ३ पृ २१४ ) । ५ क्रीडा । ६ दुर्गा ( प्रटी प १७ ) । कोट्टंब -- गौड देश में बना वस्त्र-विशेष - 'कोट्टंबानि गौडदेशोद्भवानि' ( व्यभा ७ टी प ७ )। कोट्टकवास -- वृक्ष-विशेष ( अवि पृ २३८ ) । कोट्टकिरिया -- दुर्गा - 'कोट्टकिरिया महिषावरूढदुर्गा' ( ज्ञाटी प १४६ ) । कोट्टग -- १ चण्डाल-बस्ती ( बृभा ९९३ ) । २ अटवी का वह स्थान जहां फलों के ढेर किए जाते हैं (बूटी पृ २७९ ) । ३ हरे फलों को सुखाने का स्थान विशेष ( निभा ४७३२ ) ४ बढ़ई ( जीभा ४२६ ) । कोट्टज्जा -- नगर की देवी ( कु पृ ८३ ) । कोट्टनी -- महिष का व्यापादन करने के पश्चात् उस रूप में अवस्थित दुर्गा देवी का एक नाम - 'दुर्गा महिषव्यापादनकालात् प्रभृति तद्रूपस्थिता कोट्टनी भण्णति' ( अनुद्वाचू पृ १२ ) । कोट्टपाल -- कोतवाल ( प्रटी प ४६ ) । कोट्टर -- पोला भाग - 'अज्झुसिरो जत्थ कोट्टरं णत्थि' ( निचू २ पृ १५२ ) । कोट्टा -- १ गला, गर्दन - 'पच्छा तेण कोट्टाए गहिओ' ( उसुटी प ५३ ) । २ पार्वती ( दे २।३५ ) । कोट्टाक -- वर्धकी, बढ़ई ( अंवि पृ १६० ) । कोट्टाग -- बढई, काष्ठतक्षक ( आचूला १।२३ ) । कोट्टिंब -- १ गाय - 'जह पढमपाउसम्मि, गोणो वातो उ हरितगतस्स। अणुमज्जति (अणुसज्जति) कोट्टिबं, वावण्णं दुब्भिगंधीयं ।' ( निभा ३५७८ ) २ गोशाला, ऐसा स्थान जहां गायों के लिए खाद्य रखा जाता है - 'कोट्टिंबे त्ति जत्थ गोभत्तं दिज्जति' ( निचू ४ पृ १२२ ) । कोट्टिगे -- गोशाला ( कन्नड़ ) । ३ नौका ( अंवि पृ १६६ ; दे २।४७ ) । कोट्टिंबिया -- नौका ( आचू पृ ३५७ ) । कोट्टिंबी -- गाय - 'गोणो अणुसज्जति कोट्टिंबि' ( बृभा ५१५५ ) । कोट्टित -- कूट कर पिंडीभूत किया हुआ ( अंवि पृ २३९ ) । कोट्टिल्ल -- छोटा मुद्गर-विशेष ( विपा १।६।२१ ) । कोट्टी -- १ दुर्दोहा, दुहते समय जो हैरान करती है वह गाय या भैंस । २ स्खलना, भुल ( दे २।६४ ) । कोट्टुंभ -- हाथ से आहत जल ( दे २।४७ ) । कोट्ठग -- पाठशाला - 'क्रोष्टका नाम वट्टानां ( चट्टानां ? ) शाला' ( व्यभा १० टी प ६६ ) । कोट्ठिंब -- नौका - 'उडुपे त्ति कोट्ठिंबो' ( निचू १ पृ ७० ) । कोठार -- धान्य का कोठा ( निभा १२८ ) । कोड -- वृद्ध ( अवहाटी २ पृ ३१ ) । कोडय -- छोटा शराव ( पा ७३९ ) । कोडलग -- पक्षि-विशेष ( औप ६ ) । कोडिअ -- १ मिट्टी का छोटा पात्र, लघु शराव ( दे २।४७ ) । २ दुर्जन । कोडित -- दबा दबाकर भरा हुआ ( बृभा ४०११ ) । कोडिय -- दबा दबा कर भरा हुआ - 'कोडियं ति गाढचम्पितम्' ( बूटी पृ १०९८ ) । कोडिल्ल -- पिशुन, चुगलखोर ( दे २।४० ) । कोडुंब -- १ प्रयोजन - 'कारणेसु य कोडुंबेसु य मंतेसु य रहस्सेसु य' ( भ १८।४०) । २ कार्य ( दे २।२ ) । कोड्ड -- १ स्पष्ट, प्रसिद्ध - दोण्हं भाउगाण एगा भज्जा लोगे कोड्डं दोण्ह वि समा' ( आवहाटी १ पृ २८० ) । २ आश्चर्य, कुतूहल, जिज्ञासा ( उशाटी प १२७; दे २।३३ ) । कोण -- १ लकड़ी, यष्टि ( जीभा ५०७ ) । २ श्याम वर्ण ( दे २।४५ ) । ३ वीणा - वादन-दंड-'वेयालियवीणाए••••चंदणसारनिम्मियकोणपरिघट्टियाए' ( राज १७३ ) । कोणय -- यष्टि - 'कोणओ लगुडो भण्णति' ( निचू २ पृ ५ ) । कोणु -- रेखा ( दे २।२६ ) । कोण्ण -- घर का कोना ( दे २।४५ ) । कोण्हुय -- गीदड़ - 'चुक्को मंसं च मच्छं च कलुणं झायसि कोण्हुया !' ( आवहाटी १ पृ २३४ ) । कोतव -- चूहों के रोओं से बना प्रावरण ( नि १७।१२ ) । कोत्तलंका -- मद्य परोसने का पात्र-विशेष ( दे २।१४ ) - 'मयकोत्तलंकसउणं' ( वृ ) । कोत्थ – उदर-प्रदेश - गणियारकणेरुकोत्यहत्थी - कोत्थं ति उदरदेशस्तत्र हस्तो यस्य कामक्रीडापरायणत्वात्' ( ज्ञाटी प ७४ ) । कोत्थकापल -- थैला - 'पडलं कोत्थकापलं मंजूसा कट्ठभायणं' ( अंवि पृ २७ ) । कोत्थर -- १ कोटर, गह्वर - 'खोल्लं कोत्थरं' ( निचू ३ पृ ५०० ) । २ विज्ञान, प्रज्ञा, कलाकौशल ( दे २।१३ ) । कोत्थल -- १ कपड़े का थैला - 'जहा दुक्खं भरेउं जे होइ वायस्स कोत्थलो' ( उ १९।४० ) । २ कुशूल, अनाज का कोठा ( दे २।४८ ) । ३ कीट-विशेष, भौंरी ( प्रज्ञा १।५० ) । कोत्थलकारी -- भौंरी, भ्रमरी ( बृभा १७८७ ) । कोत्थलग -- चमड़े की मशक, थैला ( पिटी प १८ ) । कोत्थलगारी -- भौंरी, कीट-विशेष ( पंव २७४ ) । कोत्थलय -- वस्त्र का थैला ( उसुटी प २७ ) । कोत्थलवाहग -- त्रीन्द्रिय जंतु-विशेष ( जीवटी प ३२ ) । कोद्दविया -- क्षुद्र कीट-विशेष, मातृवाहा ( उसुटी प २३६ ) । कोद्दालक -- वृक्ष-विशेष ( जीवटी प १४५ ) । कोनाली -- गोष्ठी - 'कोनाली त्ति गोष्ठी' ( बृभा २३९६ टी ) । कोप्प -- १ कुए का पानी ( अंवि पृ २६६ ) । २ अपराध ( दे २।४५ ) । कोप्पर -- १ सेना का पड़ाव, छावनी ( आवचू २ पृ १५५ ) । २ नदी का तट - 'णतिकोप्परो' ( निचू १ पृ ७२ ) । कोमुई -- पूर्णिमा ( दे २।४८ ) - 'कोमुइमाह च शाम्बो या काचित् पौर्णमासी स्यात्' ( वृ ) । कोमार -- मिट्टी - 'कोमारा मट्टिया' ( निचू २ पृ ४०७ ) । कोयर -- ( कोयव ? ) - 'कोयव' देश में निष्पन्न वस्त्र ( निचू २ पृ ३९८ ) । कोयव -- रूई से भरा कपड़ा, रजाई ( ज्ञा १।१७।२२) । कोयवग -- १ रूई से भरे हुए कपड़े का बना हुआ प्रावरण-विशेष, रजाईं ( निभा ४००२ ) । २ सिल्हक का सूता - 'कोयवगो वरक्को' ( निचू ३ पृ ३२१ ) । कोयवय -- रजाई ( ज्ञा १।१७।२२ ) । कोयवी -- १ रूई की रजाई ( जीभा १७७० ) । २ सिल्हक का सूता ( निभा ४००२ ) । कोयहा -- रजाई, रूई से भरे हुए कपड़े का बना प्रावरण ( आचूला ५।१४ ) । कोयासिय -- विकसित ( औप १९ ) । कोरण -- पात्र आदि का मुंह बांधना-भायणस्स मुहकोरणे णिक्कोरणे वा' ( निचू ३ पृ ४७२ ) । कोरिल्लय -- पुराना, जीर्ण-शीर्ण - 'कोरिल्लएणं धणुणा कोरिल्लयाए जीवाए कोरिल्लएणं उसुणा' ( राज ७५९ ) । कोल -- ग्रीवा, गला ( सू १।५।९ ; दे २।४५ ) । कोलंब -- १ पर्वत का अग्रभाग - 'गिरिकडकोलंब' ( ज्ञा १।१८।१८ ) । २ पात्र विशेष - 'कट्ठकोलंबए इ वा ( अनु ३।३७; दे २।४७ ) । ३ गुफा का प्रान्त-भाग ( विपा १।३।६ ) । कोलक -- वनस्पति-विशेष ( अंवि पृ २३१ ) । कोलज्जा -- नीचे गोल और ऊपर से खाई के आकार का धान्य-कोष्ठक ( आचूला १।८९ ) । कोलथ -- धान्य-विशेष ( अंवि पृ २२० )। कोलवाल -- डोरा - 'मोत्तियं आइण्णंतो आगासे उक्खिवित्ता तहा णिक्खिवइ जहा कोलवाले पडइ' ( आवहाटी १ पृ २८५ ) । कोलाहल -- १ पक्षियों का कलरव ( भ ७।११७; दे २।५० ) । कोलिक -- १ अधम जाति का मनुष्य - 'न व्यत्याम्रेडितं कोलिकपायसवत्' ( अनुवाहाटी पृ ९ ) । २ मकड़ी, जाल का कीड़ा ( अंवि पृ २३७ ) । कोलिज्जा -- नीचे गोल और ऊपर खाई के आकार का धान्य-कोष्ठक ( आचूला १।८९ पा ) । कोलित -- तंतुवाय, जुलाहा ( नंदीटि पृ १३९ ) । कोलित्त -- अलात, अधजली लकड़ी ( दे २।४९ ) । कोलिय -- १ जुलाहा, तन्तुवाय ( नंदी ३८।९ ; दे २।६५ ) । २ जाल बनाने वाला कीड़ा, मकड़ा ( बृभा १७०७; दे २।२५ ) । कोलियग -- जाल बनाने वाला कीड़ा, मकड़ा ( आवचू २ पृ ७२ ) । कोलियापुडग -- मकड़ी का जाला - 'कोलियापुडगो मक्कडसंताणओ' ( निचू २ पृ ४०७ ) । कोली -- मकड़ी ( अंवि पृ ६९ ) । कोलीर -- हिंगुल, कुरुविन्द ( दे २।४६ ) । कोलेज्जय -- नीचे गोल और ऊपर खाई के आकार का धान्य-कोष्ठक ( आचू पृ ३३९ ) । कोलेज्जा -- नीचे से वृत्त और ऊपर से खाई के आकार का धान्य भरने का कोठा ( आचूला १।८९ पा ) । कोल्ल -- १ शृगाल ( निभा १३४९ ) । २ कोयला ( निचू १ ) । कोल्लर -- १ हौदा ( भटी पृ ७३० ) । २ पिठर, स्थाली ( औपटी पृ ११२; दे २।४७ ) । कोल्लु -- कोल्हू ( बृभा ५७५ ) । कोल्लुक -- कोल्हू ( बूटी पृ १६७ ) । कोल्लुग -- सियार - 'कोल्लुगा णाम सिगाला' ( निचू २ पृ १७९ ) । कोल्हाहल -- कुन्दरुन का फल, बिंबीफल ( दे २।३९ ) - 'दट्ठु कुंदीरोट्ठिं पहिआ कोल्हाहलाइ चुण्टन्ति' ( वृ ) । कोल्हुक -- गीदड़ ( आवचू १ पृ ४६५ ) । कोल्हुग -- १ कोल्हू ( निचू ४ पृ ४३५ ) । २ सियार ( उसुटी प १८६ ) । कोल्हुय -- १ शृगाल, सियार ( उसुटी प १८६; दे २।६५) । २ कोल्हू, चरखी ( दे २।६५ ) । कोविआ -- शृगाली ( दे २।४९ ) । कोविडाल -- वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ६३ ) । कोविराल -- वृक्ष की एक जाति ( अंबि पृ ६३ ) । कोवीण -- एक प्रकार का कल्पवृक्ष जो आभरण देता है ( ति ५६ ) । कोस -- १ अंगुलियों एवं अंगुष्ठ को आच्छादित करने वाला जूता ( निचू २ पृ८७ ) । २ कुसुभ रंग से रंगा हुआ वस्त्र । ३ समुद्र ( दे २।६५ ) । कोसग -- १ उपकरण- विशेष (जीभा १७७२) । २ नाखूनों की सुरक्षा के लिए अंगूठे और अंगुलियों को आच्छादित करने वाला उपकरण - 'कोसग नहरक्खट्ठा' ( बृभा २८८५ ) । कोसट्ट -- आवरण, कोश - 'रुहिरे उप्पन्ना किमितो तत्थेव मलेत्ता कोसट्टं उत्तारेत्ता' ( अनुद्वाचू पृ १५ ) । कोसट्टइरिआ -- चंडी, पार्वती ( दे २।३५ ) । कोसय -- लघु शराव ( दे २।४७ ) । कोसल -- नीवी ( दे २।३८ ) । कोसलिअ -- भेंट, उपहार ( दे २।१२ ) । कोसलिआ -- भेंट ( दे २।१२ वृ ) । कोसल्ल -- उपहार, भेंट - 'तं पुरजणकोसल्लं, नरवइणा अप्पियं कुमारस्स' ( उसुटी प ८६ ) । कोसल्लिअ -- भेंट, उपहार ( दे २।१२ वृ ) । कोसेज्जा -- टसर, सूती वस्त्र - 'कोसेज्जा वडओ भण्णति' ( निचू २ पृ ६८; दे २।३३ ) । कोहलिआ -- कुष्मांडी, कोहंडा का गाछ ( पा ३७२ ) । कोहल्ली -- तापिका, तवा ( दे २।४६ ) । कोहिल्ल -- क्रोधी ( ओटी पृ २१६ ) । ख खइय -- स्वभाव ( स्थाटी प २६२ ) । खइव -- स्वभाव - 'खइव त्ति संवेगशुन्यधर्मकथनलक्षणो हेवाकः स्वभावो यस्यां सा तथा' ( स्थाटी प २६२ ) । खउर -- १ तापसों का पात्र-विशेष ( बृभा ३४५ ) । २ खैर आदि का गोंद ( निचू ४ पृ ६७ ) । ३ नीच- असूयपुत्ता ! खउरपुत्ता ! सुट्ठु अक्कोसामि' ( आवहाटी १ पृ १४१ ) । ४ कलुषित - 'दरदट्ठविवण्णविद्दुमरअक्खउरा' ( से ५।४७ ) । ५ व्याप्त ( से ६।११ ) । खउरकढिणय -- तापसों का उपकरण-विशेष, जो बांस, शुम्ब आदि द्रव्यों को अत्यंत कूट-पीसकर कमठ के आकार का बनाया जाता है । उसको बिल्व और भिलावे के रस से लिप्त कर देने पर उसमें से पानी भी परिस्रवित नहीं होता ( नंदीटि पृ १०५ ) । खउरल्लिय -- कलुषित, लिप्त ( जीभा ७०५ ) । खउरित -- निर्भर्त्सित, तिरस्कृत - 'खउरिता खरंटिता रोषेणेत्यर्थः' ( निचू २ पृ २६२ ) । खउरिय -- १ कलुषित ( बृभा ३७३० ) । २ मुण्डित । ३ धवलित ( से १०।४३ ) । खउस -- एक प्रकार का जूता ( निचू २ पृ ९० ) । खंजण -- १ कज्जल - 'खञ्जनं दीपादीनाम्' ( स्थाटी प २०८ ) । २ गाड़ी के पहिए के भीतर का काला कीच ( प्रज्ञाटी प ५२५ ) । ३ कर्दम, पंक ( दे २।६९ ) । खंजर -- शुष्क वृक्ष ( दे २।६८ ) । खंड -- १ मुंड । २ मदिरा-पात्र ( दे २।७८ ) । खंडई -- असती, कुलटा ( दे २।६७ ) । खंडरक्ख -- १ शुल्कपाल, चुंगी वसूल करने वाला ( प्र ३।३ ) । २ घुमक्कड़ ( बृभा ३४९६ ) । ३ कोतवाल ( प्रटी प ४६ ) । खंडिय -- १ स्तुतिपाठक ( भ ९।२०८; दे २।७८ ) । २ विद्यार्थी ( उ १२।३० ) । ३ जिसका निषेध न किया जा सके वह ( दे २।७८ ) । खंडियग -- भाट, विरुद-पाठक ( ज्ञा १।१।१४३ ) । खंडी -- १ किले का छिद्र ( ज्ञा १।२।११) । २ छोटा द्वार ( विपा १।३।६ ) । खंडोट्ठ -- भोजन से संबंधित रोग विशेष ( अंवि पृ २०३ ) । खंत -- १ पिता ( पिनि ४३२ ) । २ वृद्ध ( दअचू पृ ४१ ) । खंतग -- पिता ( निचू ४ पृ १२३ ) । खंतय -- पिता ( उसुटी प २४ ) । खंतिग -- पिता ( निभा ४३९९ ) । खंतिगा -- माता ( निचू ४ पृ १२३ ) । खंतिया -- माता ( षिनि ४३० ) । खंती -- माता, जननी ( पिनि ४३१ ) । खंध -- १ प्राकार । २ पीठ । ३ घर ( निचू ३ पृ ३७९ ) । ४ दीवार ( आचू पृ ३३९ ) । खंधग्गि -- स्थूल काष्ठ की अग्नि ( व्यभा ३ टी प ७; दे २।७० ) । खंधमंस -- बाहु, भुजा ( दे २।७१ ) । खंधयट्टि -- बाहु, भुजा ( दे २।७१ ) । खंधोधार -- अत्यन्त उष्ण जल की धारा ( दे २।७२ ) ।खंस -- १ ललाट का आभूषण बनाने वाला ( अंवि पृ १६० ) । २ कर्माजीवी ( अंवि पृ १६० ) । खक्खर -- १ घोड़े को संत्रस्त करने का साधन - हन्टर, चाबुक आदि । २ टूटे हुए बांस का टुकड़ा ( विपा १।२।१४ टी ) । ३ खर्ख र् आवाज ( आवहाटी १ पृ २८३ ) । खग्गिअ -- गांव का मुखिया ( दे २।६९ ) । खग्गूड -- १ निद्रालु ( बृभा १५४३ ) । २ रसलोलुप ( निभा ४४९२ ) । ३ धूर्त्त-सदृश - 'खग्गूडो शठप्रायो भवेत् । ४ नास्तिक 'खग्गूडत्ति निर्धर्मप्रायाः' ( ओटी प ४४ ) । ५ उच्छृंखल, स्वच्छंद ( व्यभा ४।३ टी प २३ ) । खघाणस -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । खच्चल्ल -- भालू, रींछ ( दे २।६९ ) । खच्चोल -- व्याघ्र, बाघ ( दे २।६९ ) । खज्जग -- जीर्ण ( आचू पृ ३२९ ) । खज्जिअ -- १ जीर्ण । २ उपालब्ध ( दे २।७८ ) । खज्जोअ -- नक्षत्र ( दे २।६९ ) । खट्ट -- १ खट्टा ( जीव १।६५ ) । २ खाट ( आवहाटी १ पृ २३६ ) । ३ तीमन ( दे २।६७ ) । खट्टंग -- छाया ( दे २।६८ ) । खट्टकि -- कसाई ( निचू ३ पृ २७१ ) । खट्टिक्क -- कसाई ( दे २।७० ) । खड -- १ तृण, घास - 'जह अग्गिम्मि वि पबले खडपूलिय खिप्पमेव झामेइ' ( म २९२; दे २।६७ ) । २ म्लेच्छ जाति विशेष । खडइअ -- संकुचित ( दे २।७२ ) । खडक्किका -- खिड़की, छोटा द्वार ( ओटी प १९८ ) । खडक्किया -- खिड़की, छोटा द्वार- तओ अज्जा खडक्कियाए नयरं पविट्टा' ( उसुटी प १४१ ) । खडक्की -- लघुद्वार, खिड़की ( दे २।७१ ) । खडखड -- खट्-खट् की आवाज ( निचू १ पृ १२ ) । खडखडग -- छोटा और लंबा ( जीव ३।१९२ पा ) । खडपूयय -- घास का पूला ( व्यभा ३ टी प १७ ) । खडपूलग -- घास का पुला- 'तेहि य ते दंता खडपूलगेहिं गोविता' ( निचू ४ पृ ३६१ ) । खडपूलय -- तृण का पूला - 'तेण तीसे सिंगे खडपूलओ बद्धो' ( विभाकोटी पृ ४१८ ) । खडफडा -- हलचल - 'किं एवट्टाए खडफडाए' ( आवचू २ पृ १३ ) । खडय -- टक्कर - 'ते भीता••••खडयं देज्जा' ( निचू ३ पृ ३४५ ) । खडयप्पयाण -- दौड़ना ( जीविप पृ ३४ ) । खडहड -- गीले गुड का एक प्रकार - 'फाणिओ गुलो भण्णति, सो दुविहोछिड्डगुडो खडहडो य' ( निचू २ पृ २३८ ) । खडहडअ -- खड-खड की आवाज - 'चालियमहल्ल घंटाखडहडओ कोट्टज्जाघरेसु ( कु पृ ८३ ) । खडहडग -- १ छोटा और लंबा (जीव ३।२९२ ) । २ गिलहरी ( ति ३१ ) । खडहडी -- गिलहरी ( दे २।७२ ) । खडियाचुप्पडिया -- जादू-टोना - 'कुंटलविंटलं नाम खडियाचुप्पडियादि' ( आवमटी प २७० ) । खडुआ -- १ मोती ( दे २।६८ ) । २ कंकड (?) ( कु पृ ४१ ) । खडुक्का -- मुंड सिर पर अंगुली का आघात, ठुनकाना, 'ठोला' मारना ( व्यभा १ टी प १३ ) । खडुग -- १ मुंड मस्तक पर अंगुली का प्रहार ( निचू ४ पृ ३१२ ) । हाथ का आभूषण ( अंवि पृ ६४ ) । खडुहा -- ठोकर, आघात - 'कण्णामोड-खडुहा-चवेडादी' ( जीभा २३७६ ) । खड्ड -- १ श्मश्रु, दाढीमूंछ ( दे २।६६ ) । २ बड़ा, महान् । ३ गर्त्त के आकार वाला । खड्डग -- बड़ा - 'खड्डगच्छगलमहिससूगरादिषु' ( सूचू २ पृ ३५९ ) । खड्डय -- गर्त ( आवचू २ पृ ७२ ) । खड्डा -- १ गर्त के आकार वाला ( उपा २।२१ ) । २ गर्त - 'जारिसियाओ इच्छिज्जंति तारिसा खड्डा खणंति' ( आवचू १ पृ ८१ ) । ३ खानि, आकर ( दे २।६६ ) । ४ पर्वत का गर्त्त - 'खड्डा-खानि: । पर्वतखातमित्यन्ये' (वृ ) । खड्डिअ -- मत्त, उन्मत्त ( दे २।६७ ) । खड्डुग -- मुद्रारत्न, राजमुद्रा से अंकित अंगूठी ( आवचू १ पृ ५४६ ) । खड्डय -- बालक ( अनुद्वाहाटी पृ ११ ) । खड्डुया -- आघात, मुंड मस्तक पर अंगुली का प्रहार - 'खड्डुया मे चवेडा मे ( उ १।३८ ) । खणय -- सेंध - 'रति खणओ णीहिति' ( आवचू १ पृ ३१३ ) । खणि -- खाली, रिक्त - 'भायणाणि खणी करेंतीए दोसीप छड्डेउकामाए' ( आवचू १ पृ ३०० ) । खणुसा -- मानसिक दुःख ( दे २।६८ ) । खण्ण -- १ सेंध - 'चोरो खण्णमुहेण पविट्ठो' ( दअचू पृ ८४ ) । २ संपूर्ण रूप से लुंटित, त्रस्त - 'खण्णा इति देशीपदमेतत् सर्वात्मना लूषिताः' ( व्यभा ३ टी प ७७ ) ३ खोदा हुआ ( दे २।६६ ) । खण्णवाय -- खनन-विद्या ( कुपृ १०४ ) । खण्णुअ -- १ स्थाणु ( ज्ञा १।२।६ ) । २ कीलक, खूंटी ( दे २।६८ ) । खतय -- राहु का नाम - राहुस्स णं देवस्स नव नामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा-सिंघाडए जडिलए खतए खरए•••' ( भ १२।१२३ ) । खत्त -- १ खाई, परिखा ( भ १५।१८६ ) । २ गोबर- विशेष ( पिनि १३ ) । ३ सेंध, चोरी के लिए दीवार में किया जाने वाला छेद ( दअचू पृ २७ ) । ४ खोदा हुआ ( नंदीटि पृ १३३; दे २।६६ ) । खत्तपक -- सिक्का-विशेष - 'काहापणो खत्तपको पुराणो त्ति' ( अंवि पृ ६६ ) । खत्तय -- १ ग्रह - विशेष, राहु ( भ १२।१२३ पा) । २ सेंध लगाकर चोरी करने वाला । ३ खेत खोदने वाला । खत्तोदय -- गोबर का पानी ( भ १५।१८६ ) । खत्थ -- विमना, भुंझलाया हुआ - 'स खत्थो भणति - मए पुव्वं भणितं' ( दअचू पृ २७ ) । खदुया -- कंकड (?) ( कु पृ ४१ ) । खद्ध -- १ शीघ्र ( आचूला १।४९ ) । २ प्रचुर - 'जस्स जस्स इच्छइ तस्स तस्स खद्धं खद्धं दलयइ' । ३ उच्च, उद्धततापूर्वक ( सम ३३।१ ) । ४ भुक्त, भक्षित ( ओनि १५२; दे २।६७ ) । ५ विशाल ( ओनि ३०८ ) । खद्धं खद्धं -- १ त्वरित । २ बहुत ( आचूला १।४९ ) । खद्धादाणिय -- धनी - 'खद्धिं आदाणिं जेसु गिहेसु ते खद्धादाणियगिहाईश्वरगृहा' ( निचू ३ पृ १४७ ) । खद्धाययण -- बड़े-बड़े ग्रास लेना ( प्रसाटी प ३३ ) । खन्न -- १ मत्स्य की एक जाति ( जीव ३।७८१ ) । २ खोदा हुआ ( पा ७०३ ) । खपल्लापाडण -- रूक्ष पदार्थ विशेष ( अंवि पृ १०६ ) । खपुसा -- १ शीत, कंटक आदि से पैर की सुरक्षा करने वाला जूता- 'हिमाऽहिकंटाइस उ खपुसादी' ( बृभा २८८५ ) । २ टखने को ढकने वाला जूता - 'या घुंटकं पिदधाति सा खपुसा' ( निचू २ पृ८७ ) । खप्पर -- रूक्ष ( दे २।६९ ) । खप्पुर -- रूक्ष ( दे २।६९ वृ )। खफुट्ट -- रूक्ष पदार्थ विशेष ( अंवि पृ १०६ ) । खम्मक्खम -- १ संग्राम । २ मानसिक दुःख ( दे २।७९ ) । ३ विशेष मनोदुःख, पश्चात्ताप के साथ निःश्वास छोड़ना - 'खम्मक्खमो संग्रामो मनोदुःखं च । मनोदुःखविशेषोऽनुशयनिःश्वसितमित्यन्ये' ( वृ ) । खयक्का -- कीलक, खैर का कांटा - 'सो खंतो पाए खयक्काए विद्धो ( उशाटी प ८५ ) । खर -- १ तैल - 'कि देमि त्ति नरवई, तुब्भं खरमक्खिया दुचक्कि त्ति' ( बृभा ४९८ ) । २ दास ( बृभा ३३७७ ) । ३ घास-विशेष ( व्यभा ८ टी प ५ ) । खरंट -- १ उपालंभ ( निभा ५४०९ ) । २ चिपका हुआ - 'खरंटो उ जो मलो तं कमढं भण्णति' ( निचू २ पृ २२१ ) । ३ तिरस्कार ( निचू ३ पृ ४९७ ) । खरंटणा -- निर्भर्त्सना - 'धी मुंडिओ दुरप्पा, धिरत्थु.......मुक्कोसि खरंटणा एसा ( निभा ४७५६ ) । खरंटिय -- तिरस्कृत ( निचू २ पृ ५२ ) । खरग -- कर्मकर, नौकर ( निचू ३ पृ २४५ ) । खरड -- १ हाथी की पीठ पर बिछाया जाने वाला आस्तरण-विशेष - 'हस्तिनः पृष्ठे यदास्तीर्यते खरड:' ( प्रसा ६८० टो ) । २ विकलांग ( अंवि पृ १५२ ) । ३ रोग विशेष ( अंवि पृ २०३ ) । खरडग -- प्रावरण-विशेष ( निचू २ पृ ४०० ) । खरडिअ -- १ रूक्ष । २ भग्न ( दे २।७९ ) । खरण -- बबूल की कण्टकमय डाली - 'खरकण्टं - बब्बूलादिडालं खरणमिति लोके यदुच्यते' ( स्थाटी प २३६ ) । खरत -- १ दास, नौकर ( बृचू प १४२ ) । २ इस नाम का एक वैद्य - 'तस्स य मित्तो खरतो नाम वेज्जो' ( आवमटी प २९७ ) । खरमुहि -- वाद्य-विशेष ( भ ९।१८२ ) । खरय -- १ राहु का एक नाम ( भ १२।१२३ ) । २ दास ( निभा ४०५० ) । ३ कर्मकर, नौकर ( ओनि ४४० ) । खरहिअ -- पौत्र ( दे २।७२ ) । खरिअ -- भुक्त ( दे २।६७ ) । खरिंसुय -- कंद-विशेष ( प्रसा २३८ ) । खरिगा -- दासी ( निभा ३६६५ ) । खरिमुही -- नपुंसक दासी ( व्यमा ६ टी प १७ ) । खरियत्ता -- वेश्या के रूप में - '••••रायगिहे नगरे बाहिं खरियत्ताए उववज्जिहिति' ( भ १५।९८६ ) । खरियमुही -- नपुंसक दासी ( व्यमा ६ टी प १८ ) । खरिया -- १ दासी ( बृभा २५१७ ) । २ वेश्या । खरी -- दासी ( बृभा ३३७७) । खरुल्ल -- १ कठिन । २ स्थपुट, विषमोन्नत ( दे २।७८ ) । खलइअ -- खाली, रिक्त ( दे २।७१ ) । खलक -- शरीर का अवयव विशेष - घूरीयाओ त्ति जंघाः खलका वा' ( सूटी प ३२३ ) । २ खलिहान, धान्य साफ करने का स्थान ( ज्ञाटी प १२६ ) । ३ पानक ( अंवि पृ ६४ ) । खलखल -- चूड़ियों की आवाज ( उशाटी प ३०३ ) । खलखलाविय -- क्षुब्ध होना, लड़खड़ाते चलना ( आवचू २ पृ ९४ ) । खलखिल -- निर्जीव - 'खलखिलं निर्जीव मित्यर्थ:' ( व्यभा ६ टी प ६६ ) । ख़लग -- मांस सुखाने का स्थान - खलगं जत्थ मंसं सोसंति' ( निभा ३४८१ ) । खलगंडिअ -- मत्त ( दे २।६७ वृ ) । खलय -- पुंज, राशि, ढेर- 'मच्छखलए करेंति - मत्स्यपुञ्जान् कुर्वन्ति' ( विपाटी प ८१ ) २ खलिहान- निद्धन्नयं च खलयं, पुप्फेहि विवज्जियं च आरामं' ( तंदु १६६ ) । ३ स्थान - 'जूयखलयाणि य पाणागाराणि य' ( ज्ञा १।२।११ ) । खलयारिय -- तिरस्कृत - 'डिंभेहि मुणिउ त्ति काऊण खलयारिओ' ( आवहाटी १ पृ १४३ ) । खलहल -- चूड़ियों का आपस के आघात से होने वाला 'खल-खल' शब्द ( उसुटी प १४१ ) । खलाविय -- नुकसान किया, हानि पहुंचाई ( आवचू १ पृ ४९३ ) । खली -- तिल-पिण्डिका, खली, तेल रहित तिलों की सीठी ( दे २।६६ ) । खलुंक -- १ अविनीत बैल । (स्थाटी प २४८) ! २ अविनीत शिष्य ( उ २७।१५ ) । खलुंकिज्ज -- १ अविनीत बैल संबंधी । २ उत्तराध्ययन सूत्र का सताइसके अध्ययन का नाम ( उ २७ ) । खलुंग -- अविनीत बैल ( सूचू २ पृ ३५६ ) । खलुक्का -- मुंड मस्तक पर अंगुली का प्रहार - 'खल्लाङसिरे खलुक्का दिण्णा' ( निचू ४ पृ ३१२ ) । खलुग -- टखना ( निभा १४०२ ) । खलुय -- गुल्फ, पांव का मणिबंध ( विपा १।६।२३ ) । खलुहय -- टखना ( निचू २ पृ ९१ ) । खल्ल -- १ गढा ( अनुद्वा ३६८) । २ बाड का छिद्र । ३ विलास ( दे २।७७ ) । ४ धंसा हुआ, निम्न-मध्य ( दे १।३८ ) । ५ खाली, रिक्त । खल्लइअ -- १ संकुचित । २ प्रकृष्ट ( दे २।७९ ) । खल्लग -- १ चमड़े का थैला ( जीभा १७७२ ) । २ पत्रपुट, दोना ( निचू ३ पृ ४३ ) । ३ जूता ( निचू २ पृ ८७ ) । खल्लय -- १ पत्र-पुट, दोना ( बुभा २७१४ ) । २ जूता-विशेष ( निचू २ पृ ८८ ) । खल्लर -- १ छोटी तलाई - 'खल्ल र खिल्लूर - छिल्लर - शब्दा देश्या एकार्थका: ' ( दअचू पृ८ ) । २ पाल - 'खल्लरं बद्धं' ( अनुद्वाहाटी पृ २९ ) । खल्ला -- १ खाल, चमड़ा ( भटी पृ १२८२; दे २।६६ ) । २ जूता ( निचू २ पृ ८७ ) । खल्ला ( राज ) । खल्लित -- टखने तक पहना जाने वाला जूता ( दहाटी प ९९ ) । खल्लिरी -- संकेत ( दे २।७० ) । खल्ली -- गंजा सिर - 'सा खल्ली उण्हेण डज्झति' ( उशाटी प १६५ ) । खल्लीड -- गंजा, खल्वाट ( आवचू १ पृ ४२३ ) । खल्लूड -- कंद-विशेष ( जीव १।७३ पा ) । खल्लूडक -- कंद-विशेष - 'खल्लूडकाःकन्दभेदा:' ( प्रसाटी प ५७ ) । खव -- १ बायां हाथ । २ गधा ( दे २।७७ ) । खवअ -- कंधा ( दे २।६७ ) । खवडिअ -- स्खलित ( दे २।७१ ) । खवलिअ -- १ आमंत्रित । २ कुपित - 'किह अकाले मच्चू खवलिओ' ( आवचू १ पृ २३३; दे २।७२ ) । खवल्ल -- मत्स्य की जाति विशेष ( प्रज्ञा १।५६ ) । खवुसा -- टखने तक पहना जानेवाला जूता - 'खवुसा उ खलुगमेत्तं' ( निभा ९१८ ) । खव्व -- १ बायां हाथ । २ गधा ( दे २।७७ ) । खव्वुल्ल -- मुख ( दे २।६८ ) । खसर -- रोग-विशेष, खुजली ( जंबू २।१३३) । खस्सिअ -- टखनों तक पहना जाने वाला जूता- 'उवरितला मे फुट्टंति । खस्सिताओ से कताओ' ( दअचू पृ ४१ ) । खाइ -- १ वाक्यालंकार में प्रयुक्त अव्यय । २ पुनः अर्थ का सूचक अव्यय - 'से कहिं खाइ णं भंते ! सिद्धा परिवसंति ?' ( औप १९२ ) । ३ परिखा ( आव १ पृ ३९ ) । खाइआ -- १ परिखा ( दे २।७३ ) । खाईं -- वाक्यालंकार के रूप में प्रयुक्त अव्यय - 'से केणं खाईं अट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चइ' ( भ १७।२१ ) । खाइणं -- वाक्यालंकार में प्रयुक्त अव्यस - 'खाइणं ति देशी-भाषया वाक्यालंकारे' ( औपटी पृ २१८ ) । खाइया -- खाई, खातिका ( भ ५।१९९ ) । खाखट्टिका -- सेवई आदि खाद्य पदार्थ विशेष ( अंवि पृ १८२ ) । खाडइअ -- प्रतिफलित ( दे २।७३ ) । खाडइला -- गिलहरी, वह प्राणी जिसके शरीर पर काली और श्वेत धाराएं होती हैं ( नंदी ३८।४ ) । खाडलिल्ल -- गिलहरी ( प्रटी प १० ) । खाडहिला -- गिलहरी ( प्र १।८ ) । खाडहिल्ला -- गिलहरी ( उपाटी पृ ९६ ) । खाडहेल्ला -- गिलहरी ( आवहाटी १ पृ २७८ ) । खात -- १ भूमिगृह ( निचू १ पृ ११४ ) । २ कूप, बावड़ी आदि ( आवटि प ५८ ) । खातिका -- खाई, परिखा ( प्र १।१४ ) । खातोदग -- खुदे हुए जलाशय का पानी ( भ १५।१८६ ) । खायं -- वाक्यालंकार में प्रयुक्त अव्यय - 'तो खायं अहमवि ओलग्गामि ( बृटी पृ ५३ ) । खायर -- खदिर वृक्ष सम्बंधी - 'खायरो य सूलो....पादो छिज्जए' ( निचू १ पृ १६ ) । खार -- गायों के विचरण करने का वह स्थान जहां तिक्त कुंतल आदि जलाए जाते हैं, जिससे कि गायों के कीट-जन्य उपद्रव शांत हो जाएं 'खारो जत्थ तित्तकुंतलया डज्झंति, गावीसु रमंतीसु मसगाईं सरीराइ उवसमणत्थं डज्भंति' ( आचू पृ ३७० ) । खारंफिडी -- गोधा, छिपकली ( दे २।७३ ) । खारक -- चतुष्पद प्राणी-विशेष ( अंवि पृ ६९ ) । खारय -- अर्ध विकसित फूल या कली ( दे २।७३ ) । खारा -- भुजपरिसर्पिणी ( जीव २।९ ) । खारापक -- राख - 'छगणि छारिक्खारापको' ( अंवि पृ २५४ ) । खालक -- १ वृक्षवासी प्राणी-विशेष - 'तत्थ वुक्खचरा विराला उंदुरा खालका ( अंवि पृ २२६ ) । २ छोटा पशु-विशेष ( अंवि पृ २२७ ) । खालग -- चतुष्पद जंतु-विशेष ( अंवि पृ २३८ ) । खाह -- खांसी - 'खाहुत्थूभाउ कुणइ जत्तेणं' ( बृभा २६२५ ) । खाहिया -- खाई, परिखा ( अनुवाहाटी पृ ७८ ) । खिंखिणी -- १ लघु घंटिका ( आवचू १पृ १८९ ) । २ शृगाली ( दे २।७४ ) । खिंखिय -- सियार की खिं-खिं आवाज ( उशाटी प १२१ ) । खिंग -- उद्दण्ड ( जीविप पृ ५२ ) । खिंसणा -- तिरस्कार ( ओनि ७१५ ) । खिंसा -- निष्ठुर और निःस्नेह वचन, निंदा, अवहेलना - 'णिट्ठुरं णिण्हेहवयणं खिंसा' ( निचू ३ पृ ६ ) । खिक्खिंड -- गिरगिट ( दे २।७४ ) । खिक्खिरी -- डोम आदि लोगों की चिह्नरूप लाठी जिसे देखकर लोग उनको न छूने का परिज्ञान कर लेते हैं ( दे २।७३ ) । खिच्च -- खिचड़ी ( दे १।१३४ ) । खिज्जिय -- १ रोष ( ज्ञा १।९।४१ ) २ उपालम्भ ( दे २।७४ ) । खित्तय -- १ अनर्थ । २ दीप्त, प्रज्वलित ( दे २।७९ ) । खिल्ल -- फोड़ा-फुंसी ( तंदु ११६ ) । खिल्लर -- १ तलैया ( निचू २ पृ ३०३ ) । २ चारों ओर गोलाकार पाल ( आवहाटी १ पृ ३७ ) । खिल्लूर -- छोटी तलाई - 'खल्लर-खिल्लूर छिल्लरशब्दा देश्या एकार्थकाः' ( दअचूपृ८ ) । खिवल -- ( नौका को ) खेना, आगे ले जाना - 'खिवलं ढोक्कणं णयणं वा' ( आचू पृ ३५७ ) । खीरपक -- मिट्टी विशेष ( अंवि पृ २३३ ) । खुइत -- १ खांसना । २ छींकना - 'खुत्ति कतं तं खुइतं छीयं वा होति इह उ खुइतं तु' ( जीभा ९०७ ) । खुंखुणअ -- नाक का छिद्र, नथुना ( दे २।७६ ) । खुंखुणक -- १ आभूषण-विशेष । २ वीणा-विशेष ( सूटी प ११६ ) । ३ टखना, गुल्फ - 'खुंखुणका नाम घुर्घुरुकास्ते धावतां पततां भज्यन्ते' ( आवटि प २४ ) । खुंखुणग -- गुल्फ, टखना - 'जाणूणि य फोडिज्जंति, अप्पेगइयाणं खुंखुणगा भज्जंति' ( आवहाटी १ पृ १३७ ) । खुंखुणी -- गली, मुहल्ला ( दे २।७६ ) । खुंडय -- स्खलित ( दे २।७१) । खुंडिय -- अर्जित, प्राप्त - 'वाणियएण छ रयणाणि खुंडियाणि' ( दजिचू पृ १३ ) । खुंपक -- वर्षा को रोकने वाला पलास पत्रों से बना हुआ उपकरण - 'कुडसीसगं पलासपत्रमयं खुम्पकम्' ( जीविप पृ ५० ) । खुंपा -- वर्षा के निवारण के लिए बनाया हुआ तृणमय उपकरण ( दे २।७५ ) । खुक्खुरक -- चमड़े का थैला ( आवटि प ५९ ) । खुखु -- खु खु शब्द, दौड़ते हुए घोड़े की आवाज - 'आसस्स धावमाणस्स 'खु-खु त्ति करेति' ( भ १०।३९ ) । खुज्जा -- देश-विशेष की दासी ( ज्ञा १।१।८२ ) । खुट्ट -- १ त्रुटित ( दे २।७४ ) । २ न्यून, कम ( कु पृ २०९ ) । खुट्टिमा -- गंधार स्वर की एक मूर्च्छना ( जीवटी प १९३ ) । खुडलग -- छोटा ( निचू ४ पृ १४८ ) । खुडि -- खंडित ( से १।३० ) । खुडिय -- स्खलित ( आवहाटी २ पृ ४४ ) । खुड्ड -- १ अधम, नीच ( स्था ६।६८ ) । २ छोटा ( उ १९६९; दे २।७४ ) । ३ कामचेष्टा ( निचू २ पृ २४ ) । ४ अंगूठी । खुड्डंत -- हंसी मजाक करते हुए क्रीडा करना ( बृभा ४९३८ ) । खुड्डक -- १ बालक ( अंवि पृ १६९ ) । २ अंगूठी ( ज्ञाटी प ३० ) । खुड्डग -- १ अप्राप्त वय वाले और काम करने में अयोग्य - 'खुड्डग त्ति अप्राप्तवयसः अकर्मयोग्या वा ( सूचू १ पृ ८४ ) । २ लघु, छोटा ( द ६।६ ) । ३ मुद्रिका, अंगूठी ( आवहाटी २ प २ , पृ १२१ ) । खुड्डगुल -- फाणित, गीला गुड़ ( बूटी पृ ९६९ ) । खुड्डगुल्ल -- गीला गुड़ - 'खुड्डगुल्लो त्ति फाणितं' ( बृटी पृ ९६९ ) । खुड्डमुह -- मधुरभाषी - 'खुड्डमुहा संति इहं, जे कोविज्जा जिणवईं पि' ( बृभा २१३९ ) । खुड्डय -- छोटा ( आ ३।५७ ) । खुड्डल -- छोटा ( निचू ४ पृ १४६ ) । खुड्डलग -- १ छोटा ( निचू ४ पृ १४८ ) । २ जंतु-विशेष ( अंवि पृ २३८ ) । खुड्डलय -- छोटा ( ओनि ९१ ) । खुड्डलिय -- स्वल्प ( आवचू २ पृ २८८ ) । खुड्डाखुड्डि -- अत्यंत छोटा ( आचूपृ ३५२ ) । खुड्डाखुड्डिया -- अत्यधिक छोटी ( जंबूटी प ४१ ) । खुड्डाग -- १ लघु ( भ ८ । १८७ ) । २ अंगूठी ( भटी पृ ८४३ ) । खुड्डालिंजर -- लघु पात्र, छोटा कुंडा ( जीव ३।७२६ ) । खुड्डिअ -- मैथुन ( दे २।७५ ) । खुड्डित्ता -- तोड़कर ( भ १५।७४ ) । खुड्डिमा -- गंधार स्वर की मूर्च्छना ( जंबूटी प ३८ ) । खुड्डिय -- छोटा ( राज ७७२ ) । खुड्डी -- छोटी ( निभा २३७७ ) । खुणक्खुडिआ -- नाक ( दे २।७६ ) । खुण्ण -- मढ़ा हुआ, परिवेष्टित ( दे २।७५ ) । खुण्णिय -- नमित ( भ ९।१६८ ) । खुत -- भिन्न, खंडित - 'भावसबलो खुतायारो' ( दश्रुचू प ९ ) । खुत्त -- निमग्न, डूबा हुआ ( प्र ३।१७ ; दे २।७४ ) । खुत्तग -- निमग्न, फंसा हुआ ( औप ९० ) । खुत्थ -- जीर्ण, खाया हुआ - 'कालेण वा खुत्थं परिजुण्णं' ( निचू २ पृ ३१७ ) । खुदुग -- छोटा (.व्यभा ४।४ टी प ६० ) । खुम्मिय -- नमित ( ज्ञा १।१।१०५ ) । खुरुखुरक -- चमड़े का पात्र ( बूटी पृ ७७९ ) । खुरुडुक्खुडी -- प्रणय-कोप ( दे २।७६ ) । खुल -- टखने के नीचे का भाग ( अंवि पृ ११९ ) । खुलखेत्त -- ऐसा क्षेत्र जहां कम भिक्षा मिलती हो या केवल रूखा आहार ही मिलता हो ( बृभा १५५६ ) । खुलग -- १ फोड़ा, फफोला ( निभा १०५९ ) । २ गुल्फ ( बृभा ४०८७ ) । खुलत्त -- वैसा गांव जहां पर्याप्त भिक्षा न मिलती हो अथवा घृत आदि पौष्टिक द्रव्य न मिलते हों - खुलत्तेणं णाम मंदभिक्खं जत्थ वा घयादि उवग्गहदव्वं न लब्भति' ( निचू ४ पृ ३०० ) । खुला -- फोड़ा, फफोला ( निचू २ पृ ११४ ) । खुलुक -- १ कीट-विशेष ( अंवि पृ ६३ ) । २ कर्माजीवी-विशेष ( अंवि पृ १६० ) । खुलुह -- गुल्फ, टखना ( दे २।७५ ) । खुल्ल -- १ छोटा ( निचू २ पृ ११५ ) । २ दो इन्द्रिय वाला जंतु-विशेष - 'खुल्लाः लघवः शंखा : सामुद्रशंखाकार : ' ( जीवटी प ३१ ) । ३ कुटी ( दे २।७४ ) । खुल्लक -- द्वीन्द्रिय जंतु-विशेष ( अंवि पृ २३७ ) । खुल्लय -- कौड़ी-विशेष - 'अप्पेगइयाणं खुल्लए अवहरइ' ( ज्ञा १।१८।८ ) । खुल्लिका -- बिल में रहने वाला प्राणी-विशेष ( अंवि पृ २२९ ) । खुल्लिरी -- संकत ( दे २।७० ) । खुवअ -- गंडुत् तृण के सदृश कंटकी-तृण ( दे २।७५ ) । खुवग -- दोना, पत्तों का पुडवा ( व्यभा ४।२ टी प ८४ ) । खुव्वग -- पत्तों का दोना, पुडवा ( व्य २।२९ ) । खुव्वय -- दोना, पत्तों का पुडवा ( व्यमा ४।२ टी प ८४ ) । खुसिय -- कुरेदा हुआ ( निचू ३ पृ ५८७ ) । खूण -- १ न्यून, कमी किमेत्थ खूणं' ( उसुटी प ६० ) । २ अपराध - 'तहाविहे खूणे जाए' ( उसुटी प १८६ ) । खेआलु -- १ निःसह, अधीर, आलसी ( दे २।७७ ) । २ असहनशील - 'खेआलू निःसहः । असहन इत्यन्ये' ( वृ ) । खेआलुय -- असहनशील ( पा ७०५ ) । खेड -- मिट्टी के प्राकार वाला छोटा गांव ( विपा १।१।४६ ) । खेडिय -- क्रम, वारी ( विभाकोटी पृ ३३१ ) । खेडखंड -- आसन-विशेष - 'कट्ठच्छगणपीढं वा खेडुखंडं समंथणी' ( अंवि पृ १७ ) । खेड्ड -- १ खेल ( प्रा २।१७४ ) । २ शस्त्र-विशेष ( कुपृ १५० ) । खेड्डा -- क्रीडा ( जीभा १७२१ ) । खेत्ताद -- क्षिप्तचित्त ( बृभा २७३१ ) । खेरि -- १ परिशाटन, बिखराव - 'रासी ऊणे दट्ठुं, सव्वं णीतं व धण्णखेरिं वा ' ( बृभा ३३५७) । २ खेद, उद्वेग । ३ उत्कण्ठा । खेलूड -- अनंतकाय-वनस्पति-विशेष (भ ७।६६) । खेल्लर -- पाल ( आवमटी प ९२ ) । खेल्लिय -- हंसी-ठट्ठा ( आवचू १ पृ ४५१; दे २।७६ ) । खेल्लूड -- कंद-विशेष ( प्रसा २३८ ) । खेविय -- खिन्न ( उसुटी प २६४ ) । खोइय -- विच्छेदित - 'संधी खोइया' ( उसुटी प २६ ) । खोखर -- चाबुक, त्राजन- 'खोखरेण पिट्टित्ता' ( आवहाटी १ पृ १७४ ) । खोटन -- खटखटाना, ठोकना ( व्यभा ८ टी प ४६ ) । खोट्टरिका -- खंड, अंश ( आवटि प ९७ ) । खोट्टिता -- खोरक, कटोरा - 'ते गता सुवण्णस्स खोट्टिताओ गहाय' ( नंदीटि पृ १३६ ) । खोट्टिया -- खोरक, कटोरा - 'ते रत्तपडगवेसेणं गता सुवण्णस्स खोट्टियाओ गहाय' ( आवचू १ पृ ५५० ) । खोट्टी -- दासी - 'किं वा कम्मं खोट्टिपुत्ताणं ?' ( दअचू पृ २७ ; दे २।७७ ) । खोड -- १ प्रमार्जन, प्रतिलेखन का एक प्रकार ( ओनि २६५ ) । २ लकड़ी का प्राकार ( बृभा ११२३ ) । ३ प्रदेश, स्थान ( ओभा ७६ ) । ४ लकड़ी का बड़ा फलक ( प्रटी प ५७ ) । ५ खूंटा ( आवचू २ पृ २२६ ) । ६ राजकुल में दातव्य द्रव्य, देखें – खोडभंग ( व्यभा १ टी प १० ) । ७ सीमानिर्धारक काष्ठ । ८ धार्मिक । ९ खंज, लंगड़ा ( दे २।८० ) । खोडक -- खाद्य पदार्थ विशेष, खाजा ( अंवि पृ १८२ ) । खोडपज्जाली -- स्थूल काष्ठ की अग्नि ( दे २।७० ) । खोडभंग -- राजकुल में दातव्य द्रव्य, बेगार तथा सैनिक आदि की भोजन-व्यवस्था में राजा के द्वारा दी जाने वाली छूट - 'खोडं नाम जं रायकुलस्स हिरण्णादि दव्वं दायव्वं वेट्ठिकरणं परं परिणयणं चारभडादियाण य चोल्लगादिप्पदाणं तस्स भंगो खोडभंगो । तं रायणुग्गहेणं मज्जायाए भंजंतो एक्कं दो तिण्णि वा सेवति जावतिय अणुग्गहो से कज्जति तत्तियं कालं सो दव्वादिसु परिहरिज्जति तावत् कालं न दाप्यतेत्यर्थ:' ( निचू ४ पृ २८० ) । खोडा -- खोटक, वस्त्र प्रतिलेखन की एक विधि ( उ २६।२५ ) । खोडित -- १ स्वीकृत - 'पडहओ खोडितो वहणं कारितं' ( आवचू १ पृ ३९७, ३९८ ) । २ खंडित ( अंवि पृ २१५ ) । खोडिय -- खण्डित, दूषित ( निचू ३ पृ ४४० )। खोडी -- १ बड़ा काष्ठ ( प्र ३।१२ ) । २ टुकड़ा - 'गोसीसचंदणक्खोडी हरिचंदणक्खोडी वा' ( आचू पृ १६८ ) । ३ काष्ठ-पेटी ( सूचू २ पृ ४३० ) । ४ कटोरा, पात्र-विशेष ( आवहाटी १ पृ २८१ ) ५ लकड़ी का बना हुआ बंधन-विशेष - 'विहाडेयव्वा खोडी' ( उसुटी प २५३ ) । ६ पोला काष्ठ ( उसुटी प २९२ ) । ७ काष्ठ-विशेष ( आवहाटी १ पृ १९९ ) । ८ काठ का गट्ठर ( व्यभा ४।३ टी प २० ) । खोमडक्खाय -- भिक्षु के लिए प्रयुक्त अपशब्द ( सूचू १ पृ २३१ ) । खोर -- १ खोरक, कटोरा ( आवचू १ पृ ५५२ ) । २ नट ( कु पृ १७१) । खोरक -- वृत्ताकार भाजन- विशेष ( व्यभा ३ टी प ४१ ) । खोरय -- पात्र-विशेष ( दअचू पृ २७ ) । खोरिय -- कटोरा ( व्यभा ३ टीप ४० ) । खोल -- १ मद्य के नीचे जमा हुआ कर्दम ( आचूला १ । ११२ ) । २ गुप्तचर, जासूस ( पिनि १२७ ) । ३ दूध से भावित वस्त्र ( बृटी पृ८१७ ) । ४ सिर पर बांधने का वस्त्र - 'विशेषचूर्णौ 'खोल' त्ति सीसखोला तीए सिरं वेढियव्वं' ( बृटी पृ८१९ ) । ५ वस्त्र का एक भाग ( बृटी पृ २३७; दे २।८० ) । ६ छोटा गधा ( दे २।८० ) । खोलकमालिका -- पुष्प-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । खोला -- १ कोशी, गोलाकार एक वस्तु - 'काञ्चनकोशी - सुवर्णमयी खोला ' ( भटी पृ ८८२ ) २ शिरोवेष्टन - 'खोला नाम शीर्षवेष्टनम्' ( बृटी पृ ८१९ ) । खोल्ल -- १ एक देश का नाम ( आचू पृ ३४० ) । २ कोटर, गह्वर - 'देशीशब्दत्वात् कोटरम्' ( बृटी पृ २८९ ) । खोसलअ -- दंतुर, बाहर निकले हुए दांत वाला ( दे २।७७) । खोसिय -- जीर्णप्राय: - मइलिय फालिय खोसिय हियनट्ठे वावि अन्न मग्गंते' ( पिनि ३२१ ) । ग गंगावडिय -- श्वेत रेशम से बना चीन देश का वस्त्र जो भारत में गंगाजुल नाम से प्रसिद्ध था - 'अहं चीण-महाचीणेसु गओ महिसगवले घेत्तूण, तत्थ गंगावडिओ णेत्तपट्टाइयं घेत्तूण लद्धलाभो णियत्तो त्ति' ( कु पृ ६६ ) । गंछ -- वरुड नाम की म्लेच्छजाति ( दे २।८४ वृ ) । गंछअ -- वरुड नाम की म्लेच्छ जाति ( दे २।८४ ) । गंछिअ -- तैली ( जंबूटी प १९४ ) । गंज -- १ खाद्य विशेष ( प्र १०।६ ) । २ गुच्छ वनस्पति विशेष ( प्रज्ञा १।३७।५ ) । ३ गाल ( दे २।८१ ) । गंजिल्ल -- विधुर, निरंकुश, पागल ( दे २।८३ ) - कामगंजिल्लो, भमिअ किमिमाइ गोसे करसि' ( वृ ) । गंजोल्लिय -- १ रोमांचित । २ हंसाने के लिए किया जाने वाला अंग-स्पर्श, गुदगुदी ( दे २ । १०० ) गंठिल्ल -- गांठों वाला ( भटी पृ १२९७ ) । गंड -- १ वस्त्र विशेष ( जीभा १७६९ ) । २ वन । ३ कोतवाल । ४ लघु मृग । ५ नापित ( दे २।९९ ) । ६ गुच्छा । गंडग -- १ भिक्षुक, याचक - पिंडेसु दिज्जमाणेसु उल्लंतीति पिंडोलगा, जं भणितं - 'दमगा गंडगा वा' (आचू पृ ३२३) । २ गांव के आदेश की उद्घोषणा करने वाला - गामतित्तिवाहगा' ( अचू पृ ३३१ ) । गंडमाणिया -- बांस का बना हुआ पात्र विशेष ( भ ७।१५९ ) । गंडय -- उद्घोषणा करने वाला पुरुष, नाई - 'तत्य अमावसा होहिति त्ति गंडओ उग्घोसेइ' ( आवहाटी १ पृ २४८ ) । गंडरिया -- श्वेत मिट्टी - 'सेडिया - गंडरिया' ( दजिचू पृ १७९ ) । गंडवाणिया -- बांस का पात्र-विशेष ( भटी प ३१३ ) । गंडाक -- नापित, नाई, उद्घोषणा करने वाला पुरुष- 'गण्डाक: - नापितः यो हि प्राम उद्घोषयति' ( आटी प ३२७ ) । गंडाग -- नापित ( आचूला १।२३ ) । गंडि -- १ यानविशेष ( अनुद्वाचू पृ ५३ ) । २ दुष्ट बैल या घोड़ा ( उशाटी प ४९ ) । गंडी -- पुस्तक का एक प्रकार जिसके चारों कोण समान तथा लम्बाई-चौड़ाई समान हो - 'बाहल्लपुहुत्तेहिं गंडीपोत्थो उ तुल्लगो दीहो' ( प्रसा ६६५ ) । गंडीरी -- ईख का टुकड़ा, गंडेरी ( २।८२ ) । गंडीव -- धनुष ( दे २।८४ ) । गंडूपक -- पैर का आभूषण, नूपुर - गंडूपकं ति वा बूया•••••तधा णोपूरगं व त्ति' ( अंवि पृ ६५ ) । गंडूपयक -- जंघा का आभूषण - 'गंडूपयकं णीपुराणि परिहेरकाणि' ( अंवि पृ १६३ ) । गंद -- जाति-विशेष - 'चंडाल-पुलिंद-गंद-गोपालादि च' ( सूचू १ पृ २३१ ) । गंदित -- गंदा कर दिया ( अंबि पृ १४८ ) । गंदीणी -- आंख मिचौनी का खेल ( दे २।८३ ) । गंधपिसाअ -- गंधिक, पंसारी ( दे २।८७ ) । गंधलया -- नासिका ( दे २।८५ ) । गंधिअ -- दुर्गन्ध ( दे २।८३ ) । गंधेल्ली -- १ छाया । २ मधुमक्खी ( दे २।१०० ) । गंधोल्ली -- १ इच्छा । २ रात्री ( दे २।९९ ) । गंभीर -- चतुरिन्द्रिय जीव विशेष ( प्रज्ञा १।५१ ) । गग्गर -- १ स्त्रियों के पहनने का वस्त्र, घाघरा (निचू ३ पृ ६० ) २ गद्गद्, अस्पष्ट आवाज - सरोवि से••••खूभियगग्गरो ( निचू ४ पृ ३०५ ) । गग्गरग -- घाघरा ( निभा ७८२ ) । गज्ज -- यव ( दे २।८१ ) । गज्जणसद्द -- पशुओं को निवारण करने की ध्वनि ( दे २।८८ ) । गज्जफल -- देश-विशेष में उत्पन्न वस्त्र विशेष ( आटी प ३९३ ) । गज्जर -- गाजर, कंद-विशेष ( प्रसा २३७ ) । गज्जल -- पहनते समय बिजली के समान कड़कड़ शब्द करने वाला वस्त्र - 'गज्जलाणि कडकडेंताणि कायकंठलपावारादीणि' ( आचू पृ ३६४ ) । गज्जह -- पश्चिमोत्तर दिशा का पवन ( आवचू १ पृ ५१२ ) । गट्ठि -- गुठली ( जीभा १७०१ ) । गट्ठिया -- गुठली ( अनु ३।४५ ) । गडगड -- चिंघाड, हाथी की आवाज ( जीवटी प २४७ ) । गडयडी -- वज्रनिर्घोष, मेघ की गड़गड़ाहट ( दे २।८५ ) । गडु -- स्तन, कुच ( उसुटी प १३२ ) । गडुअय -- काष्ठपात्र - 'मत्तो दगवारगो गडुअओ' ( निचू ३ पृ ३४३ ) । गडुक -- लघु कलश ( उपाटी पृ १८७ ) । गडुल -- चावल आदि का धावनजल ( प्रसाटी प ४९ ) । गडूल -- अलसिया, शिशुनाग - 'अलसो त्ति वा गडूलो त्ति वा सुसुणागो त्ति वा एगट्ठं' ( निचू १ पृ ६६ ) । गड्ड -- १ गढा, गर्त्त ( भटी पृ १२५५ ) । २ शकट, गाड़ी । गड्डक -- गाड़ी ( अनुद्वामटी प १४६ ) । गड्डरक -- भेड़ ( पिटीप २१ ) । गड्डरा -- भेड़ - 'उण्ण त्ति लाडाणं गड्डरा भण्णंति' ( निचू २ पृ २२३ ) । गड्डरिका -- १ भेड़ ( आटी प २२४ ) । २ कीट-विशेष ( जीवटी प १८७ ) । गड्डरी -- १ बकरी ( दे २।८४ ) । २ भेड़ । गड्डिक -- गाड़ी वाला ( अंवि पृ ६२ ) । गड्डिया -- गाड़ी ( जीचू पृ १७ ) । गड्डी -- गाड़ी, शकट ( आचू पृ ३५०; दे २।८१ ) । गड्डुय -- घड़ा ( दजिचू पृ १८१ ) । गड्ढ -- १ गढा ( भ ३।९५ ) । २ शय्या ( दे २।८१ ) । गढ -- दुर्ग, किला ( दे २।८१ ) । गणणाइआ -- चण्डी, पार्वती ( दे २।८६ ) । गणसम -- गोष्ठी में लीन ( दे २।८६ ) । गणायमह -- विवाह-गणक, विवाह का मुहूर्त्त आदि बताने वाला ज्योतिषी ( दे २।८६ ) । गणिकाखंसक -- कर्माजीवी-विशेष ( अंवि पृ १६० ) । गणियार -- समान शरीर वाले - 'गणियार त्ति गणिकाकारा: समकाया:' ( ज्ञाटी प ७४ ) । गणेत्तिया -- कलई में पहनी जाने वाली रुद्राक्ष की माला- 'जन्नोवइय-गणेत्तिय-मुंजमेहलावागलधरे-गणेत्रिका रुद्राक्षकृतं कलाचि-काभरणं' ( ज्ञा १।१६।१८५ टी प २२७ ) । गणेत्ती -- अक्षमाला ( दे २।८१ ) । गतिल्लिय -- गया ( उचू पृ ६९ ) । गतेल्लत -- गया ( आवमटी प २६६ ) । गत्त -- १ ईषा, चारपाई की लकड़ी-विशेष - 'जंबूणयमयाईं गत्ताईं' ( राज ३७ ) । २ अवयव ( भटी पृ १३८९ ) । ३ हलदंड । ४ कीचड ( दे २।९९ ) । ५ गया हुआ । गत्ताडी -- १ गवादनी - गायों के खाने के लिए घास, भूसा आदि रखने का बड़ा बर्तन या गोचर भूमी ( दे २।८२ ) । २ गायिका ( वृ ) । गद्द -- पक्षी-विशेष - 'गद्दो कुरलो••••भासा वीरल्लससघाती' ( अंवि पृ २३९ ) । गद्दत्तण -- लज्जा ( बृभा २३३८ ) । गद्दब्भ -- कटु-ध्वनि ( दे २।८२ ) । गद्दभ -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । गद्दभग -- कुमुद, चन्द्रविकासी कमल - कुमुदं गद्दभगं' ( दअचू पृ १२८ ) । गद्दभिया -- धान्य-विशेष ( आवहाटी १ पृ २९० ) । गद्दह -- कुमुद, चन्द्रविकासी कमल ( दे २।८३ ) । गद्दिअ -- गर्वयुक्त ( दे २।८३ ) । गद्दिका -- गादी, बिछौना ( बूटी पृ १०५५ ) । गद्दियाणग -- एक प्रकार का सिक्का - लग्गो वाडकम्मे, निप्फत्तीए विढत्ता दस गद्दियाणगा' ( उसुटी प २५१ ) । गप्पडिय -- बकवास करने वाला, गप्पें करने वाला ( कुपृ ४४ ) । गब्भिज्ज -- नौका में काम करनेवाला, खलासी - 'कण्णधार-कुच्छिधार-गब्भिज्ज-संजत्ता-नावावाणियगा' ( ज्ञा १।८।६९ ) । गब्भेल्लग -- जहाज में काम करने वाला - 'कुच्छिधारा य कण्णधारा य गब्भेल्लगा य' ( ज्ञा १।१७।९ ) । गम्मी -- विकल्प, भंग ( अंवि पृ ६ ) । गय -- १ नींद से घूर्णित । २ भ्रमण किया हुआ । ३ मृत ( दे २।९९ ) । गयणरइ -- मेघ, बादल ( दे २।८८ ) । गयमारिणी -- गुच्छ वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।३७।५ ) । गयसाउल -- विरक्त ( दे २।८७ ) । गयसाउल्ल -- विरक्त ( दे २।८७ वृ ) । गय्याल -- जिद्दी ( दअचू पृ २१७ ) । गय्याल - मूर्ख ( कन्नड़ ) । गरुलक -- मुकुट का एक प्रकार ( अंवि पृ ६४ ) । गल -- कांटा - 'मच्छोव्व गलं गिलित्ता' ( दचू १।६ ) । गलगाल - कांटा, मछलीं फंसाने की बंसी (कन्नड़ ) । गलंतिया -- गर्गरी - 'पाणिगलंतिया य दिज्जइ' ( आवहाटी २ पृ १३५ ) । गलच्छल्ल -- गला पकड़ना ( प्रटी प ५६ ) । गलत्थण -- १ क्षेपण । २ प्रेरण ( से ५।५३ ) । गलत्थलिअ -- बाहर निकाला हुआ ( दे २।८७ ) । गलत्थल्ल -- गलहत्थ, हाथ से गला पकड़ना ( ज्ञा १।९।४२ ) । गलत्थल्लिअ -- प्रेरित - 'सरवेअगलत्थल्लिअ' ( से ५।४३ ) । गलत्थिअ -- १ प्रेरित ( से १२।११ ) । २ बाहर निकाला हुआ, क्षिप्त ( दे २।८७ ) । गलि -- अविनीत - 'गिलत्येव केवलं न तु वहति गच्छति वेति गलिः' ( उशाटी प ४९ ) । गलिअ -- स्मृत, याद किया हुआ ( दे २।८१ ) । गलोलइय -- गले का आभूषण ( निचू २ पृ ३९८ ) । गल्ल -- १ गाल, कपोल ( उपा २।२१ ) । २ हाथी का कुम्भस्थलं । ३ गढा । ४ मलिन ( दअचू पृ ५२ ) - 'गल्लोदगेण गत्तोंदकेन यद्वा मलिनोदकेन' ( टी ) । गल्लत्थलिय -- क्षिप्त, फेंका हुआ ( से ८।६१ ) । गल्लप्फोड -- डमरुक ( दे २।८६ ) । गल्लर -- चपटा - 'मुहं च से पेल्लियं गल्लरं भविस्सति' ( निचू ३ पृ ४०६ ) । गल्लिका -- यान-विशेष ( अंवि पृ २६ ) । गल्लिवग -- गले में पहनने योग्य - 'गल्लिवगा व से णक्खत्तमालादी पाए कया' ( निचू ३ पृ ४०७ ) । गल्लोल -- गडुक, पात्र-विशेष - 'गल्लोलपाणिएणं ण्हवेति' ( निचू १ पृ १० ) । गवच्छ -- आच्छादन ( जंबूटी प ५८ ) । गवच्छिय -- आच्छादन - 'ते णं वायकरगा किण्हसुत्तसिक्कग-गवच्छिया णीलसुत्तसिक्कग-गवच्छिया' ( जीव ३।३२६ ) । गवत्त -- घास, तृण ( पिनि २२४; दे २।८५ ) । गवर -- वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १ टी ) । गहकंडुक -- क्षुद्र जंतु-विशेष ( अंवि पृ २३८ ) । गहकल्लोल -- राहु ( दे २।८६ ) । गहण -- १ निर्जल प्रदेश ( आचूला ३।४८; दे २।८२ ) । २ धरोहर । गहणी -- बलात् अपहृत स्त्री ( दे २।८४ ) । गहर -- गृध्र, गीध पक्षी ( प्रज्ञा १।७९ ; दे २।८४ ) । गहवइ -- १ ग्रामीण । २ चन्द्र ( दे २।१०० )। गहिअ -- मोड़ा हुआ, टेढा ( दे २।८५ ) । गहिआ -- १ कामभोग के लिए इष्ट स्त्री ( दे २।८५ ) । २ ग्रहण करने योग्य स्त्री । गहिक -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । गहिल्ल -- पागल, भूताविष्ट ( आचू पृ ३३७ ) । गाअ -- गाय- 'तहेव गाओ दुज्झाओ' ( द ७।२४ ) । गागर -- १ स्त्री का परिधान विशेष, घाघरा ( प्र ४।१४ ) । २ मत्स्य विशेष ( प्रज्ञा १।५६ ) । गागरक -- मत्स्य की एक जाति ( अंवि पृ ६३ ) । गागरी -- गगरी, कलशी - 'दोससयगागरीणं' ( तंदु १६१ ) । गागेज्ज -- मथित ( दे २।८८ ) । गागेज्जा -- नवोढ़ा, नवपरिणीता ( दे २।८८ ) । गाडिअ -- विधुर ( दे २।८३ ) । गाणी -- गवादनी - 'गायों के खाने के लिए घास, भूसा आदि रखने का बड़ा बर्तन या गोचर भूमी' ( दे २।८२ ) । गाधा -- घर - 'गाधा गृहमित्येकोऽर्थः इति चूणौ' ( बृटी पृ ७८८ ) । गामउड -- ग्राम-प्रमुख ( निचू २ पृ ५७; दे २।८९ ) । गामगोह -- गांव का मुखिया, ग्राम प्रधान ( दे २।८९ ) । गामचडय -- गांव का अधिकारी ( कु पृ १३ ) । गामणिसुअ -- ग्राम प्रधान, गांव का मुखिया - 'गामणिसुअशब्दोऽपि ग्रामप्रधानवाचीत्यन्ये' ( दे २।८९ वृ ) । गामणी -- गांव का मुखिया, ग्राम प्रधान ( दे २।८९ ) । गामापिंडोलग -- ग्रामभिक्षु, भिखारी ( आ ९।४।११ ) । गामरोड -- छल से गांव का मुखिया बन बैठने वाला, गांव के लोगों में फूट डालकर गांव का उपभोग करने वाला ( दे २।९० ) । गामवोद्रह -- गांव का युवक-अधिकारी ( कु पृ ५२ ) । गामेणी -- बकरी ( दे २।८४ ) । गायरी -- कलशी, छोटा घड़ा ( दे २।८९ ) । गार -- १ गीली मिट्टी, कर्दम ( निभा ४२३६ ) । २ कंकड़ ( व्यभा ४।४ टी प ९ ) । गारि -- गीली मिट्टी, कर्दम ( निचू ३ पृ ३७० ) । गावाण -- पर्वत ( प्रा ३।५६ ) । गाविआलोग -- जहां गायों को बांटा आदि खिलाया जाता है - 'गाविआलोगे जत्थ गाविओ लिहंति' ( आचू पृ ३७० ) । गावी -- गाय ( द ५।१२ ) । गाह -- घर - 'गाह त्ति वा गिह त्ति वा एगट्ठं' ( आचू पृ ३३८ ) । गाहा -- घर - 'गाहा घरं गिहमिति एगट्ठा' ( व्यभा ८ टी प १ ) । गाहावइ -- १ गृहपति, गृहस्थ ( बृ १।३२ ) । २ धनी कौटुम्बिक ( स्थाटी प २५८ ) । ३ आश्रयदाता ( स्थाटी प ३२२ ) । गाहुलि -- क्रूर जलचर प्राणी-विशेष ( दे २।८९ )। गाहुल्लिया -- गाथा - 'अण्णा गाहुल्लियं पढइ' ( कु पृ २६ ) । गिंधुअ -- स्तन पर गांठ देकर बांधा हुआ वस्त्र - 'कयगंठि थणोवरि विरइअंसुअं गिधुअं जाणं' ( पा ६५९ ) । गिंधुल्ल -- कञ्चुक, चोली ( पा ११६ ) । गिड्डिया -- गेंद को फेंकने वाली वक्र यष्टिका ( प्रसा ४३५ ) । गिणि -- स्वजन ( व्यभा ५ टी प २६ ) । गिर -- बीज-कोश ( निचू २ पृ १८५ ) । गिरि -- बीजकोश ( दे ६।१४८ ) । गिरिकण्णइ -- वल्ली विशेष ( प्रज्ञा १।४०।५ ) । गिरिजन्न -- १ कोंकण देश में होने वाला सायंकालीन भोज - 'गिरियज्ञो नाम कोंकणादिदेशेषु सायाह्नकालभावी प्रकरण विशेषः । आह च चूर्णिकृत् - 'गिरियज्ञ: कोंकणादिषु भवति उस्सुरे त्ति' । २ लाठ देश में वर्षा ऋतु में होने वाला भोज - गिरिजन्नो मत्तवालसंखडी भन्नइ सा, लाडविसए वरिसारत्ते भवइ त्ति । ३ भूमिदाह - 'गिरिकं ( ज ) न्न त्ति भूमिदाहो त्ति भणितं होइ' ( बृटी पृ ८०७ ) । गिरोलिया -- छिपकली, गृहगोधा ( कु पृ १८४ ) । गिल्ल -- गीला, आर्द्र - 'गिल्ल-सन्निही गुल-कक्कय घयतेल्लादिया मुणेतव्वा' ( जीचू पृ १४ ) । गिल्लि -- १ दो पुरुषों द्वारा उठाई जाने वाली पालकी, शिविका ( दश्रु ६।३ ) । २ अंबाडी, हौदा- 'हस्तिनः उपरि कोल्लररूपा या मानुषं गिलतीवेति । लोकभाषायां अंबाडी इति प्रसिद्धा' ( राजटी पृ १७ ) । गिल्लिरी -- जाल-विशेष ( विपा १।८।१९ ) । गिहेलुग -- दहलीज, देहली ( आचू पृ ३६४ ) । गिहेलुय -- दहलीज ( नि १३।९ ) - गिहेलुओ उंबरो उ णायव्वो' ( निभा ४२६८ ) । गुंगुयंत -- भय से आकुल-व्याकुल- ते गुंगुयंता अच्छंति' ( उशाटी प १७९ ) । गुंछा -- १ बिंदु । २ अधम । ३ मूंछ ( दे २।१०१ ) । गुंजेल्लिअ -- पिंडीकृत, एकत्रित किया हुआ ( दे २।९२ ) । गुंठ -- १ घोड़ा - 'गुंठो घोडगो' ( निचू ४ पृ १११ ) । २ महिष - 'गुण्ठो नाम घोटको महिषो वा' ( बृटी पृ ८६४ ) । ३ मायावी ( व्यभा ४।३ टी प ६९ ) । ४ दुष्ट घोड़ा ( दे २।९१ ) । गुंठा -- माया ( व्यभा ४।३ टी प ७० ) । गुंठी -- नीरंगी, घुंघट ( दे २।९० ) । गुंड -- मुस्ता से उत्पन्न होने वाला 'लचक' नाम का तृण-विशेष ( दे २।९१ ) । गुंदा -- १ बिन्दु । २ अधम ( दे २।१०१ ) । गुंपा -- १ बिन्दु । २ अधम ( दे २।१०१ ) । गुंफ -- गुप्ति, कारावास ( दे २।९० ) । गुंफी -- शतपदी, कनखजूरा ( दे २।९१ ) । गुज्झक्खिणी -- स्वामिनी ( बृभा ५७०४ ) । गुट्ठ -- स्तम्ब, तृण-काण्ड ( उपा २।२१ ) । गुट्टी -- मित्र - 'दो गुट्ठिओ गोट्ठिया वा पव्वाविता' ( निचू ३ पृ २८४ ) । गुट्ठीय -- मित्र ( निचू ३ पृ २८४ ) । गुडदालिअ -- पिंडीकृत, एकत्रित ( दे २।९२ ) । गुडधाना -- गुडपपडी - 'गुडपर्पटिका लोकप्रसिद्धा गुडधाना' ( भटी प ३२६ ) । गुडोलद्विआ -- चुंबन ( दे २।९१ ) । गुणनिया -- व्यायाम विशेष ( ज्ञाटी प २४ ) । गुण्हुपय -- कृमि विशेष ( अंवि पृ २२९ ) । गुत्तव्हाण -- पितृतर्पण, पितरों को जलांजलि देना ( दे २।९३ ) । गुत्ति -- १ बंधन, जेल । २ इच्छा । ३ वचन । ४ लता । ५ मुकुट की माला, शिरोमाल्य ( दे २।१०१ ) । गुत्थंड -- भासपक्षी ( दे २।९२ ) । गुप्पंत -- १ शय्या, बिछौना । २ रक्षित ( दे २।१०२ ) । ३ व्याकुल ( से १।२ ; दे २।१०२ ) । गुफगुमिअ -- सुगन्धयुक्त ( दे २।९३ ) । गुब्बर -- गांव-विशेष, गोबर गांव ( आवमटी प ३३७ ) । गुमिल -- १ मूढ । २ गहन । ३ प्रस्खलित । ४ आपूर्ण ( दे २।१०२ ) । गुम्म -- १ समूह - 'गुम्मो समूहो' ( दश्रुचू प ९१ ) । २ स्थान ( ओटी प ८१ ) । गुम्मइअ -- १ मूढ ( ओनि १३६ ; दे २ । १०३ ) । २ संचलित । ३ स्खलित । ४ विघटित । ५ पूरित ( दे २।१०३ ) । गुम्मिअ -- उन्मूलित, मूल से उखाड़ा हुआ ( दे २।९२ ) । गुम्मिय -- १ स्थान विशेष का रक्षक, कोतवाल ( ओनि १९३ ) । २ जेल-रक्षक, गुप्तिपाल ( ओनि ७६६ ) । ३ घूर्णित । गुम्मी -- १ कनखजूरी ( उ ३६।१३८ ) । २ राशि, ढेर ( दश्रुचू प ९१ ) । इच्छा ( दे २।९० ) । गुम्हि -- कनखजूरा-गुम्हि विच्छुग-सप्पादिया पविसंति' ( निचू २ पृ १९७ ) । गुरुल -- भोजन से संबंधित रोग विशेष ( अंवि पृ २०३ ) । गुल -- चुम्बन ( दे २।९१ ) । गुलइय -- गुल्मित, गुल्मवाला ( औप ५ ) । गुलखित -- चुंबित ( अंवि पृ १४८ ) । गुलगुलाइय -- हाथी का हर्ष से चिंघाड़ना ( जीव ३।४४७ ) । गुलमग -- गोल पात्र ( अंवि पृ ६५ ) । गुललावणिया -- गुड से निष्पन्न खाद्य विशेष ( पंक ७२८ ) । गुलिअ -- १ मथित ( दे २।१०३ ) । २ गेंद ( पा ८४६ ) । गुलिका -- १ पिटक । २ बुसपुञ्ज ( बृटी पृ ८०५ ) । गुलिया -- १ पिटक ( बृटी पृ ८०५ ) । २ बुसपुंज, भूसा ( बृटी पृ ८०५ ; दे २।१०३ ) । ३ वल्कल - 'विशेष-चूर्णौ-गुलियत्ति वक्कलाणि घेप्पंति' ( बृटी पृ ८१९ ) । ४ मथित, विलोडित । ५ गेंद । ६ गुच्छा ( दे २।१०३ ) । गुलुइय -- गुल्मित, लताओं से युक्त ( भ १।५० ) । गुलुगुंछिअ -- १ बाड से व्यवहित ( दे २।९३ ) । २ उन्नमित ( वृ ) । गुलुगुलिय -- हाथी की चिंघाड़ ( उसुटी प ६४ ) । गुलुच्छ -- १ घुमाया हुआ ( दे २।९२ ) । २ गुच्छा ( पा ३४७ ) । गुवित -- क्षुब्ध, उद्वेलित ( स्था ३।४६५ ) । गुविल -- १ गहन, सघन ( बृभा ६४८९ ) । २ जंगल - 'जर-मरण-चउग्गई-गुविलं' ( महा ४४ ) ३ चीनी से निष्पन्न वस्तु । गुहा -- १ समवाय, साधुओं का समूह । २ उपाश्रय - 'गुहास्तु समवायाः प्ररूपणगुहा वा गृह्यन्त इति' ( नंदीटी पृ ९ ) । गुहिर -- गम्भीर ( पा ३२३ ) । गेंठुअ -- स्तन के ऊपर के वस्त्र की गांठ ( दे २।९३ ) । गेंठुल्ल -- कञ्चुक, चोली ( दे २।९४ ) । गेंड -- स्तन के ऊपर की वस्त्र-ग्रन्थि ( दे २।९३ ) । गेंडुई -- क्रीडा ( दे २।९४ ) । गेज्ज -- मथित ( दे २।८८ ) । गेज्जल -- कंठ का आभूषण ( दे २।९४ ) । गेड्ड -- १ पंक, कर्दम । २ यव ( दे २।१०४ ) । गेण्हिअ -- मुक्ता-माला जो छाती पर लटकती है ( दे २।९४ ) । गेल्लि -- हौदा ( भटी प १८७ ) । गेहि -- आसक्ति, गृद्धि ( आ ६।३७ ) । गोअंट -- १ गाय के चरण ( दे २।९८ ) । २ जमीन पर उगने वाले सिंघाड़े - 'गोअंटी स्थलशृंगाट इत्यन्ये' ( वृ ) । गोअग्गा -- गली ( दे २।९६ ) । गोअला -- दूध बेचने वाली ( दे २।९८ ) । गोआ -- छोटा घड़ा, गगरी ( दे २।९६ ) । गोआलिआ -- वर्षा ऋतु में होने वाला कीट-विशेष ( दे २।९८ ) । गोंजी -- मंजरी ( दे २।९५ ) । गोंठी -- मंजरी ( दे २।९५ ) । गोंड -- कानन, वन ( दे २।९४ ) । गोंडी -- मंजरी, मांजर ( दे २।९५ ) । गोंदी -- मंजरी ( कु पृ ३२ ) । गोंदीण -- मोर का पित्त ( दे २।९७ ) । गोकिलंज -- पात्र-विशेष ( भटी प ३१३ ) । गोकिलिंज -- गाय को चारा आदि खिलाने के लिए बांस का बना हुआ भाजन-विशेष ( भ ७।१५९ ) । गोखलक -- गवाक्ष ( व्यभा ३ टी प ६३ ) । गोच्चअ -- कोड़ा ( दे २।९७ ) । गोच्चिय -- राज्य का अधिकारी, कोतवाल ( पिटी प ६९ ) । गोच्छणव -- १ कृषि का उपकरण-विशेष । २ खाद ( इ २६।११ ) । गोच्छ्य -- मुनि का एक उपकरण जो पात्र तथा वस्त्र का प्रमार्जन करने के काम आता है - 'होइ पमज्जणहेउं तु गोच्छओ भागवत्थाणं' ( पंव ८०० ) । गोच्छा -- मंजरी ( दे २।९५ ) । गोज्ज -- १ गायक ( जीभा ६१४ ) । २ शारीरिक दोष वाला बैल । गोज्झ -- नाटक, नृत्य-विशेष - 'गोज्झपेक्खिया-नृत्यविशेष प्रेक्षकाः' ( आवहाटी १ पृ ६२ ) । गोज्झक्खिणी -- स्वामिनी ( बृटी पृ १५०९ ) । गोट्ठ -- आभीरपल्ली ( कु पृ ७७ ) । गोट्ठग -- मित्र - 'गोट्ठगेहिं लड्डुगा सामण्णं कता' ( निचू ३ पृ ४३७) । गोट्ठिय -- मित्र ( निचू ३ पृ २८४ ) । गोट्ठी -- मित्र ( निचू ३ पृ २८४ ) । गोडी -- मिट्टी की गुटिका - 'गोडीए घडो भिण्णो' ( दअचू पृ ४४ ) । गोड्ड -- १ गुड़ से बनी मिठाई ( भ १८।१०७ ) । २ घुटना ( आवचू १ ) । गोड्डिका -- गेंद खेलने की लकड़ी जो अन्त में मुड़ी हुई होती है ( प्रसा ४३५ ) । गोण -- १ गाय ( प्रज्ञा १।६४ ) २ बैल ( इ २६।१२; दे २।१०४ ) । ३ साक्षी ( दे २।१०४ ) । गोणक -- पात्र-विशेष ( उपाटी पृ १०१ ) । गोणपोतल -- बछड़ा ( आवहाटी १ पृ १३२ ) । गोणिक्क -- गायों का समूह ( दे २।९७ ) । गोणिय -- गौओं का व्यापारी ( व्यभा ९ टी प ५ ) । गोणी -- १ गाय ( पिनि २२४ ) । २ पात्र-विशेष ( उपाटी पृ १०१ ) । गोतिहाणी -- गोवत्सा, बछिया - 'तिवासजायाए गोतिहाणीए' ( तंदु८८ ) । गोत्तफुसिया -- वल्ली-विशेष ( प्रज्ञा १।४०।५ ) । गोत्थूभग -- बकरा ( निचू १ पृ ६ ) । गोद्दह -- नट, नर्तक - 'गाममज्झयारे गोहे रममाणे... ( निचू १ पृ १०३ ) । गोध -- १ ग्रामीण । २ म्लेच्छ व्यक्ति ( उचू पृ १४८ ) । ३ राजपुरुष ( आवचू १ पृ ५१७ ) । गोधसालक -- सुरा-विशेष ( अंवि पृ ६४ ) । गोप -- चतुरिद्रिय प्राणी-विशेष ( निचू १ पृ ९७ ) । गोपच्छेलक -- प्राणी-विशेष ( अंवि पृ ९२ ) । गोप्फण्ण -- चमड़े की डोरी से बना पत्थर फेंकने का साधन - 'गोप्फण्णेण धणुएण वा वग्घादीण अभिभवंति' ( निचू २ पृ ६ ) । गोफणा -- पत्थर फेंकने का साधन - 'गोफणा चम्मदवरगमया पसिद्धा, ताए लेट्टुओ उवलओ वा घत्तिज्जंति' ( निचू २ पृ ६ ) । गोबर -- गोबर ( बूटी पृ ५११ ) । गोब्बर -- १ गोबर ( बूभा १७३१ ) । २ एक गांव का नाम - मगहा गोब्बरगामो' ( आवनि ४९३ ) । गोमद्दा -- गली ( दे २।९६ ) । गोमाणसिया (गोमासणिया ? ) -- शय्यारूप स्थान विशेष ( जीव ३।३९८ ; टी प २३० ) । गोमिणी -- स्त्री का संबोधन, चाटुवचन - 'गोमिणी गोल्लविसए, सामिणीगोमिणीओ चाटुवयणं' ( दअचू पृ १६८ ) । गोमिय -- १ आदरसूचक संबोधन ( द ७।१९ ) - 'भट्टि सामिय गोमिया पूयावयणाणि निद्देसातिसु सव्वविभत्तिसु' ( अचू पृ १६९ ) । २ कोतवाल ( निभा ३३७१ ) । ३ कारावास का आरक्षक, जेलर ( प्र २।१२ ) । गोमी -- १ शृगाली, सियारिन ( व्यभा ६ टी प ५७ ) । २ कनखजूरा ( व्यभा ८ टी प ७ ) । गोमुहिय -- वक्षस्थल का आच्छादक वस्त्र ( ज्ञाटी प २४६ ) । गोम्मि -- कनखजूरा, त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष ( अंवि पृ २६७ ) । गोम्मी -- कनखजूरा ( व्यभा ८ टी प ७ ) । गोम्हि -- कनखजूरा ( निभा १२४५ ) । गोम्हिय -- कनखजूरा ( अनुद्वा ५२५ ) । गोम्ही -- कनखजूरा, कर्णशृगालिका ( प्रज्ञा १।५० ) । गोर -- गेहूं - 'गोर ति गोधूमा' ( निचू ४ पृ १११ ) । गोरंफिडी -- गोधा, गोह ( दे २।९८ ) । गोरह -- वाहनयोग्य तथा रथयोग्य बैल ( आचूला ४।२७ ) । गोरहग -- १ तीन वर्ष का बैल ( द ७।२४ ) । २ रथ की भांति तीव्र गति से दौड़ने वाला बैल । ३ प्रसव-समर्थ ( दजिचू पृ २५३ ) । गोरा -- १ हल का दंड । २ चक्षु । ३ ग्रीवा ( दे २।१०४ ) । गोल -- १ युवा के लिए प्रयुक्त प्रिय संबोधन- 'गोल जुवाणप्रियवयणं' ( दअचू पृ १६९ ) । २ गोलदेश में व्यवहृत अवमानना सूचक शब्द - 'होल इति वा गोल इति वा एतौ च देशान्तरेऽवज्ञासंसूचकौ' ( आटी प ३८८ ) । ३ साक्षी ( दे २।९५ ) । ४ गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १४९ ) । गोला -- १ गाय । २ गोदावरी नदी । ३ नदी । ४ सखी ( दे २।१०४ ) । गोलिका -- रथ के आकार का यान-विशेष ( अंवि पृ १६६ ) । गोलिय -- छाछ आदि बेचने वाला-एमेव तेल्लि-गोलिय-पूविय- मोरंड-दुस्सिए चेव' ( बृभा ३२८१ ) । गोलिया -- १ गुटिका - 'तीए दासीए घडो गोलियाए भिन्नो' ( दनि २ ) । २ बड़ी थाली - 'भंडिका - स्थाल्य: ता एव महत्यो गोलिकाः' ( स्थाटी प ३९८ ) । गोलियालिंग -- विशेष प्रयोजनों के लिए बनाए जाने वाले चुल्ली-स्थान - 'अग्नेराश्रयविशेषाः । अन्ये तू देशभेदनीत्या पिष्टपाचनकाग्न्यादिभेदेनैतेषां स्वरूपं कथयन्ति तदप्यविरुद्धम्' ( जीवटी प १२३ ) । गोलियालिंछ -- विशेष प्रयोजनों के लिए बनाए जाने वाले चुल्लीस्थान ( जीव ३।११८ ) । गोली -- मंथनी ( दे २।९५ ) । गोलुकि -- वितत वाद्य का एक प्रकार ( नि १७।१३६ ) । गोलोम -- द्वीन्द्रिय जन्तु-विशेष ( प्रज्ञा १।४९ ) । गोल्ला -- बिम्बी फल, कुंदरुन का फल ( आवमटी प १९३ ) । गोल्हा -- १ बिम्बी, कुन्दरुन की वल्ली ( प्रटी ८१; २।९५ ) । २ बिंबीफल ( जंबूटी प ११२ ) । गोवर -- गोबर ( दे २।९६ ) । गोवहिया -- भुजपरिसर्पिणी ( जीवटी प ५२ ) । गोवालिया -- वर्षा ऋतु में उत्पन्न होने वाला अहिलोडिका नामक कीट ( बृभा ५८७० ) - 'गोवालिया णाम अहिलोडिकाख्यो जीवविशेषः' ( चूप २१३ ) । गोविअ -- अजल्पाक, नहीं बोलने वाला ( दे २।९७ ) । गोविल्ल -- कञ्चक, कांचली ( दे २।९४ ) । गोवी -- बाला ( दे २।९६ ) । गोव्वर -- गोबर ( दे २।९६ ) । गोस -- प्रभात, प्रातःकाल - 'गोसे य पभायम्मी' ( पंक ५७३; दे २।९६ ) । गोसंखडी -- जंगल की ओर जाने वाली गायों का समूह - गोसंखडी उज्जूहिगा भन्नति' ( निचू ३ पृ ३४८ ) । गोसग्ग -- प्रभातकाल - 'बिंती गोसग्गम्मी पभाते पव्वावइस्सामो' ( पंक ६०१ ; दे २।९६ ) । गोसण्ण -- मूर्ख ( दे २।९७ ) । गोह -- १ गांव का मुखिया ( दजिचू पृ ५५ ; दे २।८९ ) । २ राजपुरुष ( निचू १ पृ १०४ ) । ३ ग्रामीण ( निचू ३ पृ १३९ ) । ४ जार, उपपति ( आवहाटी १ पृ २७७ ) । ५ अधम ( आवहाटी २ पृ १३४ ) । ६ क्रूर मनुष्य ( उसुटी प ७५ ) । ७ योद्धा । ८ पुरुष ( दे २।८९ वृ ) । गोहट्ठाण -- प्रदेश-विशेष - जह ते गोहट्ठाणे वोसट्ठनिसट्ठचत्तदेहगा' ( व्यभा १० टी प ८० ) । गोहातक -- कोतवाल, राजपुरुष ( अंवि पृ १६१ ) । गोहिया -- वाद्य-विशेष ( नि १७।१३८ ) । गोही -- भुजपरिसर्पिणी ( जीव २।९ ) । गोहुर -- गोबर ( दे २।९६ ) । घ घंघ -- १ बृहत्, बड़ा ( आवहाटी २ पृ १०९ ) । २ गृह ( दे २।१०५ ) । घंघल -- १ झगड़ा ( प्रा ४।४२२ ) । २ घबराहट । घंघसाला -- १ अनाथालय ( निचू २ पृ १८ ) । २ कार्पटिक भिक्षुओं का आवास स्थल ( आवचू २ पृ २३० ) । घंघोर -- भ्रमणशील ( दे २।१०६ ) । घंसा -- भूमि की रेखा ( जीवटी प १५२ ) । घंसिय -- गाड़ी, यान ( निचू ४ पृ १११ ) । घंसिया -- गाड़ी ( बूटी पृ ८६४ ) । घग्गर -- घाघरा, स्त्रियों का वस्त्र-विशेष ( निचू ४ पृ १४३; दे २।१०७ ) । घच्चण -- उपमर्दन ( ओनि १६८ ) । घट्ट -- १ कुसुंभ रंग से रंगा हुआ वस्त्र । २ नदी का घाट । ३ वेणु, बांस ( दे २।१११ ) । घड -- मित्र, समवयस्क ( निचू ३ पृ ४९८ ) । घडभोज्ज -- गोष्ठी, मंडली - 'घडभोज्जं नाम महत्तरग-अणुमहत्तरग-ललिता-सणिता कडुगदंड-धारपरिग्गहिता गोट्ठी' ( दश्रुचू प ५० ) । घडा -- गोष्ठी ( निभा ११७५ ) । घडाभोज्ज -- गांव-प्रधान और अनुप्रधान द्वारा गांव के बाहर दिया जाने वाला भोज ( व्यभा १० टी प ९ ) । घडिअघडा -- गोष्ठी ( दे २।१०५ ) । घडिगा -- घंटी, बच्चों का खिलौना-घडिगा णाम कुंडिल्लगा चेडरूवरमणिका' ( सूचू १ पृ ११८ ) । घडिया -- गोष्ठी ( नंदीटि पृ १४२ ) । घडी -- गोष्ठी ( दे १।२०५ ) । घडुल्लय -- घडा ( दअचू पृ ११२ ) । घडोपल -- चतुष्पद परिसर्प-विशेष ( अंवि पृ २२६ ) । घढ -- टीला, स्तूप ( पा ९५६ ) । घण -- छाती, वक्षस्थल ( बृभा ६१६८ ) । घणघणाइय -- अनुकरणवाची शब्द, रथ की आवाज ( भटी पृ ८८७ ) । घणपिच्छिलिका -- आभूषण-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । घणवाहि -- इन्द्र ( दे २।१०७ ) । घणसंताण -- जाल का कीड़ा, मकड़ा ( पंक २७४ ) । घण्ण -- १ वक्षस्थल । २ रंगा हुआ ( दे २।१०५ ) । ३ घात्य, मार डालने योग्य । घतण -- भांड, विदूषक ( बुभा ६३२५ ) । घम्मकरक -- पानी छानने का कपड़ा-घम्मकरकादि परिपूयं घेप्पति' ( निचू १ पृ ७४ ) । घम्मोई -- तृण-विशेष ( दे २।१०६ ) । घम्मोडी -- १ मध्याह्न । २ मच्छर । ३ ग्रामणी नामक तृण ( दे २।११२ ) । घयगोलिय -- घी बेचने वाला ( निचू २ पृ ३६२ ) । घयघट्ट -- घी का मैल ( पंव ३७९ ) । घयण -- भाण्ड, बहुरूपिया ( नंदी ३८।३ ) । घयमढु -- घृतसार, ऊपर का घी ( व्यभा ३ टी प १०९ ) । घर -- गृह ( अनु ३।२४ ) । घरकुडी -- १ घर के बाहर का कमरा । २ घर के चौक में स्थित कमरा ( ओनि १०५ ) । घरकुडीरी -- स्त्री का शरीर - 'किह ताव घरकुडीरी कई सहस्सेहिं अपरितंतेहिं' ( तंदु १२० ) । घरघंट -- चिड़िया, गोरैया पक्षी ( दे २।१०७ ) । घरघुला -- छिपकली ( अंवि पृ २२६ ) । घरट्ट -- १ अरहट, पानी निकालने का यंत्र - 'घरट्टे वाहेऊण तुसे खवावेइ' ( उसुटी प ९६ ) । २ कच्चा चावल - 'लोट्ट: - घरट्टादिचूर्णः ( पिटी प १० ) । घरणी -- गृहिणी ( उ २१।४ ) । घरतोलिया -- छिपकली ( दश्रुचू प ६८ ) । घरत्थ -- गृहस्थ ( दअचू पृ ४ ) । घरपूपल -- बिलशायी जंतु-विशेष ( अंवि पृ २२६ ) । घरपोपलिका -- छिपकली ( अंवि पृ २३७ ) । घरयंद -- दर्पण ( दे २।१०७ ) । घरास -- गृहवास ( निभा १६८५ ) । घरिणी -- घरवाली, पत्नी, गृहिणी ( उसुटी प १३७ ) । घरिल्ली -- पत्नी ( दे २।१०६ ) । घरोइला -- छिपकली ( प्रज्ञा १।७६ ) । घरोल -- घर में बना हुआ भोजन- विशेष ( दे २।१०६ ) । घरोलिका -- छिपकली ( ओटी प १२६ ) । घरोलिया -- छिपकली ( प्र १।८ ) । घरोली -- छिपकली - भमइ जं उमत्ता घरोलिव्व' ( दे २ । १०५ ) । घल्ल -- अनुरक्त ( दे २।१०५ ) । घल्लिअ -- १ क्षिप्त, डाला हुआ ( दे ६।११६ वृ ) । २ निर्मित किया हुआ । घल्लित -- आक्रांत होना, दबना - 'सो रायगिहच्छणपिंडोलगो वेभारगिरिसिलाए घल्लितो' ( सूचू १ पृ २३२ ) । घसा -- १ पोली भूमि ( द ६।६१ ) - 'घसा नाम जत्थ एगदेसे अक्कममाणे सो पदेसो सव्वो चलइ सा घसा भण्णइ' ( जिचू पृ २३१ ) । २ भूमिरेखा । घसी -- १ पोली भूमि । २ पुराने भूसे का ढेर - गसति सुहुमसरीरजीवविसेसा इति घसी अंतोसाणो भूमिपदेसो पुराणभूसातिरासी वा ' ( दअचू पृ १५६ ) ३ ढालू भूमि - 'घसी नाम स्थलादधस्तादवतरणं' ( आटी प ३३७ ) । ४ भूमि-रेखा ( जीव ३।६२३ ) । ५ अवतरण, नीचे उतरना । घाड -- मस्तक के नीचे का भाग ( ति ९५३ ) । घाडा -- मस्तक के नीचे का भाग ( जंबूटी प १७० ) । घाडिय -- मित्र - 'घाडिउ त्ति वयंसो' ( निचू २ पृ ५२ ) । घाडियय -- मित्र ( ज्ञा १।२।६५ ) । घाण -- १ पावा, कडाही आदि में एक बार डालने का परिमाण ( प्रसाटी प ५३ ) । २ कोल्हू - 'तिलपीडनयन्त्रे' ( पिटी प ९ ) । घाणक -- कोल्हु, घानी ( प्रसाटी प १४३ ) । घाणी -- दुर्गन्ध ( निचू २ पृ ४१ ) । घायण -- गायक ( दे २।१०८ ) । घार -- प्राकार, परकोटा ( दे २।१०८ ) । घारंत -- घृतपुर, घेवर ( दे २।१०८ ) । घारिया -- मिष्टान्न विशेष ( दअचू पृ २१७ ) । घारी ( गुजराती ) । घारी -- १ चील पक्षी ( दे २।१०७ ) । २ छन्द-विशेष । घालइ -- एक प्रकार के तापस ( निरटी पृ २५ ) । घासिआ -- घास लाने वाली ( ओटी प ९७ ) । घिं -- १ ग्रीष्म ऋतु-घिं-सिसिरवासे' ( ओभा ३१० ) । २ गरमी । घिंघिणोपित -- घूर्णित ( ? ) ( अंवि पृ १४८ ) । घिंसु -- १ गरमी - 'घिंसु मे विहुयणं विजाणाहि' ( सू १।४।४१) । २ ग्रीष्म ऋतु । घिंसुरि -- गरमी ( सूचू १ पृ १४७ ) । घिट्ट -- कुब्ज ( दे २।१०८ ) । घिय -- निन्दित ( दे २।१०८ ) । घिरोलिया -- छिपकली ( आवहाटी १ पृ २१३ ) । घिसरा -- जाल-विशेष ( विपा १।८।१९ ) । घुंघुरुड -- उत्कर, ढेर ( दे २।१०९ )। घुंट -- घूंट ( बृभा २३९० ) । घुंटिय -- घूंट ( तंदु ११७ ) । घुंटिआ -- घूंट - 'जाव अइसाउरस त्ति अंजलीहि घुंटिया तेण' ( उसुटी प ३७ ) । घुंटित -- घुटा हुआ ( जंबूटी प २० ) । घुक्कभरध -- अंतरिक्ष में समुद्भूत क्षुद्रजंतु विशेष ( अंवि पृ २२९ ) । घुक्किय -- चपल, कपि चेष्टा - 'दे मंदभग्ग ! घुक्किय, तूससि तं णाम मे त्तेणं' ( जीभा ८३८ ) । घुग्घुच्छण -- खेद ( दे २।११० वृ ) । घुग्घुच्छणय -- खेद ( दे २।११० ) । घुग्घुरक -- टखना, गुल्फ ( आवहाटी १ पृ १३७ ) । घुग्घुरि -- मेंढक ( दे २।१०९ ) । घुग्घस्सुसय -- आशंका युक्त वचन ( दे २।२०९ ) । घुघुयंत -- 'घु-घु' आवाज करना, उल्लू का बोलना ( ज्ञा १।८।७२ ) । घुट्टघुणिअ -- पर्वत की बड़ी शिला ( दे २।११० ) । घुणघुणिआ -- कर्णोपकणिका, अफवाह ( दे २ । ११०) । घुणाहुणी -- कर्णोपकणिका, एक कान से दूसरे कान, कानाकानी ( उसुटी प १९२ ) । घुत्तिय -- गवेषित ( दे २।१०९ ) । घुरुघुरि -- मेंढक ( दे २।१०९ ) । घुल्ला -- द्वीन्द्रिय जन्तु-विशेष ( प्रज्ञा १।४९ ) । घुल्लिका -- द्वीन्द्रिय कीट-विशेष ( जीवटी प ३१ ) । घुसिणिअ -- गवेषित ( दे २।१०९ ) । घुसिरसार -- अवस्नान, विवाह आदि के अवसर पर किया जानेवाला मसूर आदि का उबटन ( दे २।११० ) । घुसुली -- बिलौना करने वाली स्त्री ( पिनि ५७३ ) । घूरा -- १ जंघा । २ खलक - 'शरीर का अवयव-विशेष ( सू २।२।२२ ) । घूरीया -- १ जंघा । २ खलक - शरीर का अवयव-विशेष ( सूटी २ प ६६ ) । घेइण -- बहुरूपिया - 'घेइणो इव अणेगसरीरकिरियाओ करेंतो कंदप्पा भवंति' ( निचू ४ पृ २५ ) । घेवर -- मिष्टान्न विशेष, घृतपूर ( दे २।१०८ ) । घोट्ट -- घूंट - 'आउक्काए जति सो घोट्टो करेइ ततिया चउलहुगा' ( निचू ४ पृ ४८ ) । घोड -- १ धूर्त्त ( निभा १७१३ ) । २ कामासक्त ( निचू २ पृ ४४० ) । ३ नीच जाति के लोग, डंगर आदि ( व्यभा ७ टी प ४१ ) । ४ राज्यकर्मचारी ( बृभा २०६६ ) । ५ सफाई करने वाले ( बृभा २६३४ ) । घोडग -- घोड़ा ( आचू पृ ३७३ ) । घोडा -- घोड़ा ( जीवटी प ३८ ) । घोडिय -- मित्र ( बृ ५ ) । घोर -- १ विनष्ट । २ गीध पक्षी ( दे २।११२ ) । घोरण -- खर्राटे भरना ( ओटी प ५८ ) । घोरि -- शलभ-विशेष ( दे २ । १११ ) । घोरुइणिया -- देश-विशेष की दासी ( ज्ञाटी प ४७ ) । घोल -- १ वेष्टित ( आवहाटी १ पृ २८३ ) । वस्त्र से छाना हुआ दही ( प्रसा २२९ ) । घोलचम्म -- एक प्रकार का थैला ( नंदीटि पृ १३८ ) । घोलवड -- खाद्य पदार्थ, दहीबड़ा ( प्रसा २२९ ) । घोलिय -- १ अत्यंत लीन - 'अज्ज रक्खिओ जविएसु अईव घोलिओ पुच्छइ' ( उसुटी प २४) । २ शिलातल । ३ बलात्कार ( दे २।११२ ) । घोलिर -- घूमने वाला ( उसुटी प ६० ) । घोसालई -- लता-विशेष ( प्रज्ञाटी प ३३ ) । घोसाली -- शरद् काल में होने वाली लता-विशेष ( दे २।१११ ) । घोसेडिय -- पटोल का शाक ( राजटी पृ ८९ ) । घोहणुमच्छ -- मत्स्य विशेष ( अंवि पृ २२८ ) । च चउक्क -- १ चौराहा ( औप १ ) । २ आंगन, चौक ( दे ३।२ ) - हिअयचउक्के' ( वृ ) । चउक्कर -- कार्तिकेय ( दे ३।५ ) । चउरचिंध -- राजा सातवाहन ( दे ३।७ ) । चउर -- पर्वत - 'पत्ता य इमे चउरसिहरम्मि' ( कु पृ १९२ ) । चंग -- सुन्दर, मनोहर ( दे ३।१ ) । चंगबेर -- १ काष्ठ पात्र - 'कट्ठमय समितातितिम्मणमलणं चंगेरिगासंठित चंगबेरं' ( दअचू पृ १७२ ) । २ बाँस से बना पात्र ( दजिचू पृ २५४ ) । चंगिमा -- सौन्दर्य ( विभा १०० ) । चंगेरि -- तृण से निर्मित पात्र, टोकरी ( जीभा २३९७ ) । चंगेरिया -- टोकरी ( राज १२ ) । चंगेरी -- १ बांस का पात्र ( दजिचू पृ २५४ ) । २ काष्ठ का बड़ा पात्र । ३ बड़ी पट्टलिका ( प्रटी प १३ ) । चंगोड -- सिक्के, रुपये आदि रखने का कोष्ठागार ( बृभा ५११६ ) । चंचइय -- १ उपचित, खचित । २ शोभित ( कु पृ २०८ ) । चंचट -- क्षुद्रकीट-विशेष ( जीवटी प २८२ ) । चंचपुड -- आघात, प्रहार ( जंबू ३।१०९ पा ) । चंचप्पर -- असत्य ( दे ३।४ ) । चंचुच्चिय -- कुटिल गमन, टेढी चाल ( औप ६४ ) । चंचुमालइय -- रोमांचित, पुलकित - 'धाराहयनीवसुरभिकुसुमचंचुमालइयतणुए' ( भ ११।१३४ ) । चंचुय -- जाति-विशेष ( कु पृ ४० ) । चंडातक -- अर्धोरुक, स्त्रियों का वस्त्र-विशेष ( दे ३।१३ ) । चंडिअ -- छिन्न ( दे ३।३ ) । चंडिकित -- क्रोधी ( निचू २ पृ ३८४ ) । चंडिक्क -- क्रोध, रौद्रता - 'कलहे चंडिक्के भंडणे विवादे' ( भ १२।१०३ ; दे ३।२ ) । चंडिक्कय -- अत्यधिक कुपित, भयंकर - 'रुट्ठा कुविया चंडिक्किया' ( भ ३।४५ ) । चंडिज्ज -- १ पिशुन, चुगलखोर । २ क्रोध ( दे ३।२० ) । चंडिल -- पीन, पुष्ट ( दे ३ । ३ ) । चंदइल्ल -- मयूर ( दे ३।५ ) । चंदट्ठिआ -- १ कंधा । २ गुच्छा ( दे ३।६ ) । चंदण -- द्वीन्द्रिय जंतु, बेहडा या रुद्राक्ष के पेड़ में होनेवाला जीव ( जीवटी प ३१ ) । चंदणि -- वर्चोगृह, शौचालय ( आवहाटी २ पृ १२८ ) । चंदणिउयय -- आचमन का पानी बहने का स्थान ( आचूला १।६२ ) । चंदणिका -- १ वर्चोगृह, शौचस्थान ( उशाटी प १०६ ) । २ पुष्प-विशेष ( अंवि पृ २३२ ) । चंदणिया -- १ गंदे पानी की नाली - 'ताए चंदणियाए छूढो-गृहस्रोतसि इत्यर्थ: ' ( उसुटी प ३१ ) । २ वर्चोगृह, शौचालय ( आवहाटी १ पृ २३९ ) । चंदणी -- रोहिणी, चांद की पत्नी - 'बंभदत्तो वि गुरुगुणवरधणुकलिओ त्ति माणिउं मणइ । रयणवइं रयणिवई चंदो इव चंदणीजोगो' ( उसुटी प १९२ ) । चंदवडाया -- वह स्त्री जिसका आधा शरीर ढंका हुआ हो ( दे ३।७ ) । चंदाणिउदय -- १ जूठे बर्तन धोने का स्थान - 'चंदाणिउदकं जहिं उच्छिट्ठभायणादि धुव्वति' ( आचू पृ ३३८ ) । २ कुल्ला करने का स्थान - 'चंदाणिउदयत्ति आचमनोदकप्रवाहभूमि:' (आटी प ३४० ) । चंदालग -- पूजा के लिए ताम्र पात्र ( सू १।४।४४ पा ) । चंदिल -- नापित, नाई ( दे ३।२ ) । चंदोज्ज -- चन्द्र विकासी कमल, कुमुद ( दे ३।४ ) । चंदोज्जय -- कुमुद ( दे ३।४ वृ ) । चंपय -- ढक्कन - 'गोयमा ! नो पदीवे झियाइ,••••नो तेल्ले झियाइ, नो दीव चंपए झियाइ, जोती झियाइ' ( भ ८।२५६ ) । चंपिय -- आक्रमण, दबाव ( तंदु १४९ ) । चंभ -- १ हल से जोतने योग्य खेत - 'करिसए एक्केक्कं हलचंभं देह' ( उसुटी प ४५ ) । २ हल द्वारा विदारित भूमिरेखा ( दे ३।१ ) । चकप्पा -- त्वक्, छाल ( दे ३।३ ) । चकोरित -- विद्योतित ( नंदीचू पृ ६ ) । चक्कणभय -- नारंगी का फल ( दे ३।७ ) । चक्कणाहय -- ऊर्मि, तरंग - 'णीसासचक्कणाहयताविय' ( दे ३।६ ) । चक्कल -- १ सिंहासन के चार पादों के नीचे का वर्तुलाकार भाग ( जंबूटी प ५५ ) । २ गोलाकार तकिया ( बूटी पृ १०५५ ) । ३ कुंडल । ४ वर्तुल । ५ झूले का फलक । ६ विशाल ( दे ३।२० ) । चक्कलंडा -- दुमुही सर्पिणी ( आवदी प १६३ ) । चक्कलित -- गोलाकार टुकड़ा ( आचू पृ ३४४ ) । चक्कलिय -- गोल ( निचू ३पृ ४८१ ) । चक्कवुंडा -- दुमुही सर्पिणी ( आवमटी प ४६७ ) । चक्किम -- अति उत्तम चक्किमातिउत्तमा ते णियमा तप्पमाणजुत्ता भवंति' ( अनुद्वाचू पृ ५२ ) । चक्किय -- समर्थ - 'चक्किया णं गोयमा ! केई तासु पदीवलेस्सासु आसइत्तए' ( भ १३।८७ ) । चक्कुलंडा -- सर्प-विशेष ( दे ३।५ ) । चक्कुलेंडा -- दुमुही सर्पिणी ( आवहाटी १ पृ २३८ ) । चक्कोडा -- अग्नि-विशेष ( दे ३।२ ) । चक्खडिअ -- जीवितव्य, जीवन ( दे ३।६ ) । चक्खणिक -- आस्वादनिक, चखने योग्य ( अंवि पृ २५८ ) । चक्खिअ -- चखा हुआ, आस्वादित ( प्रा ४।२५८ ) । चक्खुड्डण -- प्रेक्षणीय नाटक आदि ( दे ३।४ ) । चक्खुमेंट -- एक आंख को खोलना और दूसरी आंख को बंद करना - 'चक्खुमेंटा णाम एक्कं अच्छिं उम्मिल्लेति, बितियं णिमिल्लेति' ( निचू ४ पृ ३५४ ) । चक्खुरक्खणी -- लज्जा ( दे ३।७ ) । चच्च -- विलेपन ( दे ६।७६ ) । चच्चपुट -- घोड़ों का विशेष पादघात जिससे उनकी उन्मत्तता द्योतित होती हो ( जंबू ३।१०९ पा ) । चच्चपुड -- आघात, घोड़ों का पाद-प्रहार- 'खुरचलणचच्चपुडेहिं धरणियलं अभिहणमाणं अभिहणमाणं' ( जंबू ३।१०९ ) । चच्चय -- विलेपन - 'गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ ( राज ३५१ ) । चच्चरिक्का -- फोड़ा-फुन्सी ( आवचू २ पृ १६८ ) । चच्चसा -- वाद्य-विशेष ( राजटी प १२६ ) । चच्चा -- १ विलेपन, शरीर पर सुगंधित द्रव्य लगाना ( ज्ञा १।१।१२७ ) । २ हस्तबिंब, कुंकुम आदि से लिप्त हथेली का छापा । ३ हस्ततल का आघात, हथेली से धक्का मारना ( दे ३।१९ ) । चच्चाग -- सुगन्धित द्रव्य से उपलिप्त ( राज १३१) । चच्चाय -- सुगंधित द्रव्य से उपलिप्त ( जीव ३।४४६ ) । चच्चिक -- स्थासक, सुगंधित वस्तु का विलेपन ( प्रा २।१७४ ) । चच्चिक्क -- विभूषित - 'साहू गुणरयणचच्चिक्को' (चउ ३९; दे ३।४ ) । चच्चिर -- विलेपित ( कु पृ १२८ ) । चटुलग -- खंड-खंड किया हुआ ( आवटि प १०४ ) । चट्ट -- १ हर किसी का द्वार खोलने वाला व्यक्ति, धूर्त्त- 'चट्टा वारउग्घट्टगादि' ( आचू पृ ३२९ ) । २ विद्यार्थी ( आवचू २ पृ६० ) । ३ आवारा ( निचू ३ पृ २४५ ) । ४ सफाई करने वाले कर्मचारी ( बूटी पृ ७४० ) । ५ तंत्र मंत्र का ज्ञाता - राइणा वाहराविया गारुडिया भोइयभट्टचट्टाइणो' ( उसुटी प १७४ ) । ६ ब्राह्मण ( आवहाटी १ पृ २६६ ) । ७ बुभुक्षा । चट्टक -- काष्ठनिर्मित चम्मच ( नंदीटि पृ १३९ ) । चट्टसाला -- पाठशाला ( बूटी पृ १७१ ) । चट्टिय -- चाट गया - 'घयं••••सुणएहिं चट्टियं' ( बूटी पृ १०८ ) । चट्टु -- दारुहस्त, काठ का चम्मच ( दे ३।१ ) । चट्टुअ -- दारुहस्त, काष्ठ - चम्मच ( दे ३।१ वृ ) । चट्ठुक -- काठ की बड़ी कड़छी ( पिटी प ४९ ) । चड -- १ चोटी ( दे ३।१ ) । २ शीघ्र ( बूटी पृ १३१६ ) । चडकर -- १ समूह ( जंबू २।६५ ) । २ बार-बार कहना ( बूटी पृ १६१३ ) । ३ विस्तार ( विपाटी प ३६ ) । चडकक -- १ चटत्कार ( प्रा ४।४०६ ) । २ शस्त्र-विशेष । चडगर -- १ समूह - 'भडचडगरपहकरवंदपरिक्खित्ते' ( अंत ३।९४ ) । २ बहाना, आरोप ( जीभा ८७० ) । ३ अधिक कहना, बार-बार कहना ( बृभा ६१०५ ) । ४ बढ़ा-चढ़ा कर कहना - 'महता चडगरत्तणेण अत्थकधा हणति' ( सूचू १ पृ २३५ ) । ५ विस्तृत ( भटी पृ ८५२ ) । चडप्फडंत -- छटपटाना - 'चडप्फडंते य त्ति अभीक्ष्णमितस्ततो भ्राम्यतः' ( बृटी पृ १६६९ ) । चडफड -- हलचल ( आचू पृ ३५७ ) । चडवेला -- चपेटा ( प्रटी प ५७ ) । चडाविय -- प्रेषित - 'तिण्णिवि छिन्नकडए चडावियाणि' ( दहाटी प ९९ ) । चडिय -- चढा हुआ, आरूढ ( प्रा ४।४४५ ) । चडिआर -- आटोप, आडंबर ( दे ३।५ ) । चडुग -- पात्र-विशेष ( व्यभा ८ टी प २२ ) । चडुत्तर -- चढ़ना-उतरना ( बूटी पृ ११४५ ) । चडुलग -- खण्ड-खण्ड किया हुआ - 'विदुलगचडुलग छिन्ने' ( सूनि ६९ ) । चडुला -- रत्न-तिलक, तिलक के स्थान पर पहना जाने वाला मस्तक का आभूषण-विशेष ( दे ३।८ वृ ) । चडुलातिलय -- स्वर्ण - श्रृंखला में लटकता हुआ रत्न - तिलक, मस्तक का आभूषण-विशेष - 'चडुलातिलयं कंचणसंकलियालंबिरयणतिलयम्मि' ( दे ३।८ ) । चड्ड -- १ पिठर के आकार का पात्र ( बुभा १९५१ ) । २ उद्दंड । ३ बहुभक्षी ( ति ११९३ ) । चड्डग -- काष्ठपात्र-विशेष - 'कट्ठमयवारचड्डग' ( निभा ३०६० ) । चड्डय -- काष्ठपात्र - 'वारओ चड्डयं कव्वयं तं पि कट्ठमयं' ( निचू ३ पृ ३४३ ) । चणट्ठिया -- गुञ्जा ( अनुद्वाहाटी पृ ७६ ) । चणविका -- चना, धान्य-विशेष ( अंवि पृ २२० ) । चणा -- बुद्धि, निपुणता, चतुराई - 'दव्वं चणाए सव्वं आकड्ढितं' ( आवचू १ पृ ५२४ ) । चणोठिया -- गुंजा ( अनुद्वामटी प १४३ ) । चण्णाडीतय -- ऊर्ध्व ग्रीवा - 'दव्वुण्णतो जो चण्णाडीतएण विणिहालिंतो जाति' ( दअचू पृ १०२ ) । चत्त -- तकली, सूत कातने का उपकरण ( दे ३।१ ) । चत्ताल -- चालीस ( निचू ४ पृ ११३ ) । चत्थरि -- हास्य ( दे ३।२ ) । चदुलग -- तिर्यक् - 'चदुलगछिन्नं तिर्यक्छिन्नं' ( आवहाटी २ पृ १०७ ) । चप्पडग -- काष्ठ यंत्र-विशेष ( प्र ३।१२ ) । चप्पडय -- १ चार पल के भार वाला ( ? ) ( बृभा ५९७५ ) । २ चपटा ( निभा ८४४ ) । चप्पडिज्जंत -- आक्रान्त होता हुआ ( सूचू १ पृ १९१ ) । चप्पाचप्प -- ठूंस-ठूंस कर भरना - 'ताहे सुक्कस्स चप्पाचप्पं भरेइ' ( निचू ४ पृ १४६ ) । चप्पाचप्पि -- ठूंस-ठूंस कर भरना - 'चप्पाचप्पिं भरेमाणं दट्टुं भगति' ( निचू ४ पृ १५९ ) । चप्पुट्टिका -- जादू टोना - 'विंटलानि खिटिका चप्पुटिकादीनि प्रयुजते' ( व्यभा ७ टीप ४१ ) । चप्पुडिया -- चुटकी ( ज्ञा १।३।२९ ) । चप्पुडी -- चुटकी ( दे ८।४३ ) । चप्फल -- १ शेखर-विशेष, शिरोभूषण । २ असत्य, झूठ ( दे ३।२०) । ३ झूठा, मिथ्याभाषी ( कु पृ २२७ ) । चप्फलया -- मिथ्याभाषिणी ( प्रा३।३८ ) । चप्फलिग -- शेखर, मुकुट ( नंदीटि पृ १४२ ) । चप्फलिगाइय -- असत्य, कुतुहलपूर्ण - 'सो भणइ-चप्फलिगाइयं कहेइ ' ( आवहाटी १ पृ २८८ ) । चब्बच्चब -- भोजन करते समय चब-चब शब्द करना- पूवलियं खायंतो चब्बच्चबसद्दं सो परं कुणइ' ( बृभा २६२४ ) । चमढण -- १ खिन्नता, उद्विग्नता ( बृभा ५२९६ ) । २ गर्हणा, खिंसना ( ओनि ७९ ) । ३ कदर्थना ( ओनि १९३ ) । ४ जिसकी कदर्थना की जाय वह (ओनि २३७) । ५ मर्दन, अवमर्दन ( ओटी प १२६ ) । ६ आंखें बंद करना ( निभा १७३० ) । ७ आक्रमण । ८ भोजन । चमढणा -- १ उद्विग्नता ( बृभा १५८४ ) । २ पादप्रहार आदि ( ओनि १९३ ) । ३ मर्दन ( ओभा १८७ ) । चमढिय -- विनष्ट, विनाशित ( व्यभा ४।२ टी प २० ) । चमढेत्ता -- तिरस्कार कर - 'चमढेत्ता गओ - तिरस्कृत्य गतः' ( आवहाटी १ पृ १३६ ) । चम्मडिल -- पक्षी-विशेष ( अंवि पृ २२६ ) । चम्मरुक्ख -- पुरुष - 'दवावेसु इमस्स चम्मरुक्खस्स दीणाराणं अद्धलक्खं' ( कु पृ ३२ ) । चम्मिरा -- मत्स्य-विशेष ( अंवि पृ २२८ ) । चम्मिराज -- मत्स्य-विशेष ( अंवि पृ २२८ ) । चम्मेट्ठ -- व्यायाम में काम आने वाला उपकरण मुद्गर आदि ( भटी पृ १४१३ ) । चरक्खा -- पशु-विशेष ( दश्रु ७।२४ ) । चरु -- १ नाम, आख्या ( निचू ३ पृ २२५ ) । २ मंत्रित खाद्य-विशेष - 'मा मम पुत्तोवि एवं नासउत्ति तीए खत्तियचरू जिमिओ' ( आवहाटी १ पृ २६१ ) । ३ चरु पात्र में तैयार किया गया चावल आदि द्रव्य जो बलि के काम आता है ( निरटी पृ ३२ ) । चरुग -- १ नाम, आख्या ( निभा ३४९० ) । दाणरुई सड्ढो वा णिवेयणचरुववदेसं कातुं साधूण देति' ( चू ३ पृ २२५ ) । २ मंत्रित खाद्य-विशेष - 'अहं ते चरुगं साहेमि जेणं ते पुत्तो बंभणस्स पहाणो होहिति' ( आवहाटी १ पृ २६१ ) । चरुल्लेव -- नाम, आख्या ( दे ३।६ ) । चरेडिया -- छेना ( नंदीटि पृ १८२ ) । चलणि -- पैर तक लगने वाले कीचड़ का स्थान - पंकबहुला पणगबहुला चलणिबहुला' ( भ ७।११८ ) । चलणिया -- उपकरण-विशेष ( पंव ७८२ ) । चलणी -- पैरों का स्पर्श करने वाला कीचड़ - 'चलनी चरणमात्रस्पर्शी कर्दम:' ( जीवटी प २९२ ) । चलिका -- फल-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । चल्ल -- चरण ( अंवि पृ ६० ) । चवग -- भट्टी - 'महल्ले चवगे चुल्लीसु य दहंति ( सूचू १ पृ १२५ ) । चवचव -- चबाते समय होने वाली 'चव-चव' की आवाज ( भ ७।२५ ) । चवलग -- धान्य-विशेष ( दमचू पृ १४० ) । चवलय -- धान्य-विशेष ( दश्रुचू प ३८ ) । चवला -- अन्न-विशेष ( बूटी पृ ९० ) । चवला ( राज ) । चवलिका -- धान्य-विशेष, चवला ( भटी प २७४ ) । चवलिय -- भाजन-विशेष - 'थाल-मल्लग-चवलिय- दगवारक' (जीव ३।५८७ ) । चवेडी -- १ श्लिष्ट करसंपुट, बद्धांजलि ( दे ३।३ ) । २ संपुट ( वृ ) । चवेण -- निन्दा ( दे ३।३ ) । चसणिका -- बहुपाद प्राणी-विशेष ( अंवि पृ २२७ ) । चहित -- १ दृष्ट, वांछित । २ चन्दन आदि से चर्चित चहिता मनोरथदृष्टिदृष्टा अथवा गोशीर्षचन्दना दिचर्चिता' ( नंदीचू पृ ४९ ) । चहिय -- अभिलषित, वांछित, चाहा हुआ - 'सव्वण्णू सव्वदरिसी तेलोक्क-चहिय-महिय-पूइए' ( उपा ७।१० ) । चहुट्ट -- १ निमग्न, लीन - :चहुट्टणक्खो वि कुणइ चंडिक्कं' ( दे ३।२ ) । २ चिपका हुआ । चाउरंतय -- लग्न मंडप, चंवरी - 'तत्थ कयं धवलहरस्स बहुमज्झदेसभाए सव्वधण्णविरूढंकुरा चाउरंतयं' ( कु पृ १८१ ) । चाउल -- १ चावल ( स्था ३।३७६; दे ३।८ ) । २ चावल का, चावल से संबंधित - 'तहेव चाउलं पिट्ठं ( द ५।२।२२ ) । चाउलय -- चावल ( दे ३।८ वृ ) । चाडल्ल -- चपल ( अंवि पृ ३ ) । चाड -- १ चुगलखोर, धूर्त ( दअचू पृ २५५; दे ३।८ ) । २ पलायन-पलायनं चाडो णासणं इति चूर्णौ' ( बृटी पृ ४०८ ) । चाडय -- चुगलखोर ( निचू ३ पृ ४२ ) । चाय -- कंद-विशेष ( अंवि पृ १८१ ) । चार -- १ चिरौंजी का पेड़ ( अनुद्वामटी प ४२ ; दे ३ । २१ ) । २ बंधन-स्थान, कारावास । ३ इच्छा ( दे ३।२१ ) । ४ फल-विशेष ( प्रज्ञा १६।५५ ) । चारक्खापाल -- कैदखाने का अध्यक्ष, जेलर ( आवचू २ पृ १८२ ) । चारण -- ग्रन्थिच्छेदक ( दे ३।९ वृ ) । चारणअ -- ग्रन्थिच्छेदक, पॉकेटमार ( दे ३।९ ) । चारवाय -- ग्रीष्म ऋतु का पवन ( दे ३।९ ) । चारायण -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । चारि -- चारा ( ओनि २३८ ) । चारुपीणय -- पात्र विशेष ( जंबूटी प १०० ) । चालणा -- पूछताछ - 'ता किं करेमि किंचि से चालणं, अहवा ण करेमि, कज्जं पुणो विहडइ' ( कु पृ १५१ ) । चालवास -- मस्तक का आभूषण-विशेष ( दे ३।८ ) । चालीस -- चालीस ( उसुटी प १९१ ) । चावल्ल -- धान्य-विशेष ( निचू २ पृ १०९ ) । चाववंस -- पर्व-वनस्पति विशेष ( प्रज्ञा १।४१।१ ) । चास -- हल द्वारा विदारित भूमि-रेखा ( दे ३।१ ) । चाहित -- प्रेक्षित - 'चहितं ति चाहितं प्रेक्षितं निरीक्षितं दृष्टमित्य नर्थान्तरं' ( नंदीचू पृ ४९ ) । चिंच -- इमली ( दश्रुचू प ३८ ) । चिंचइअ -- १ खचित - 'चिंचइअं ति देशीवचनतः खचितमित्युच्यते' ( आवहाटी १ पृ १२३ ) । २ मण्डित, शोभित - 'समणो समण-गुणनिउणचिंचइओ' ( ति ७०२ ) । ३ चलित ( दे ३।१३ ) । चिंचणिया -- इमली ( व्यमा ९ टी प ८ ) । चिंचणी -- १ घरट्टिका, धान पीसने की चक्की ( दे ३।१० ) । २ इमली का पेड़ । चिंचा -- इमली, इमली का पेड़ ( विपा १।६।१६ ; दे ३।१० ) । चिंचिणिआ -- १ इमली ( ओनि २६ ) । २ इमली का पेड़ ( निभा २९१३ ; दे ३।१० ) । चिंचिणिचिंचा -- इमली - 'कैश्चित् चिंचिणिचिंचाशब्दः समस्त एव अम्लिकावाचकत्वेन प्रोक्तः' ( दे ३।१० वृ ) । चिंचिणी -- इमली का पेड़ ( निचू ६ पृ ७४; दे ३।१० ) । चिंचिय -- १ मेंढक की चिं चिं की आवाज ( उसुटी प ३०५ ) । २ मंडित, भूषित । चिंचिल्लिअ -- भुषित ( पा १४९ ) । चिंधाल -- १ रम्य । २ उत्तम ( दे ३।२२ ) । ३ नये रंगे वस्त्र की पगड़ी ( कु पृ ४७ ) । चिंफलक -- बैठने का आसन-विशेष - 'फलकी भिसी चिंफलको मंचकोऽथ मसूरको ( अंवि पृ १५ ) । चिंफुल्लणी -- अर्धोरुक, स्त्रियों का ऐसा अधोवस्त्र जो साथल तक आता हो ( दे ३।१३ ) । चिकिचिकि -- चिक्-चिक् करना, फुसफुसाना ( सूचू २ पृ ३९८ ) । चिक्कण -- १ चिकना, दारुण, सघन - 'विभूसावत्तियं भिक्खू कम्मं बंधइ चिक्कणं' ( द ६।६५ ) । २ श्लक्ष्ण ( भ १६।५२ ) । चिक्कदोरिया -- द्वार पर पर्दे के रूप में लगाई जाने वाली चटाई आदि ( दजिचू पृ २५९ ) । चिक्का -- १ अल्प वस्तु । २ पानी आदि की पतली धारा ( दे ३।२१ ) । चिक्खय -- परिष्कृत ( ? ) ( निचू ३ पृ ४४३ ) । चिक्खल्ल -- कर्दम, कीचड़ - 'चिच्चं करोति खल्लं च भवति चिक्खल्लं' ( अनुद्वा ३६८ दे ३।११ ) । चिक्खित -- खुला हुआ - 'चिक्खितदारं पिहए' ( पंक ५९९ ) । चिक्खिलिच्चिय -- कीचडयुक्त ( आवचू १ पृ १३१ ) । चिक्खिल्ल -- कर्दम - चिक्खिल्लशब्द: कर्दमे देशी ( से १०।४३ ) । चिगचिगंत -- चमकता हुआ, चकचकाहट करता हुआ - 'मुग्गसेलो चिगचिगंतो अच्छइ' ( बृटी पृ १०१ ) । चिच्च -- १ चिक् चिक् होना ( अनुद्वा ३९९ ) । २ त्याज्य ( पंक ३७१ ) । ३ चिपटी नासिका वाला ( दे ३।९ ) । ४ रमण, कटिभाग - 'चिच्चठिअचिल्ला उअ धावइ जणणी' ( दे ३।१० ) । ( रमण : The hip and the loins, Apte ) । चिच्चर -- चपटी नासिका वाला ( दे ३।९ वृ ) । चिच्चरय -- चपटी नाक वाला ( दे ३।९ ) । चिच्चि -- अग्नि ( दे ३।१० ) । चिच्ची -- चीत्कार - 'महया महया चिच्चीसद्देणं विधुट्ठे विस्सरे आरसिए' ( विपा १।२।३४ ) । चिट्ठं -- १ निश्चेष्ट ( आ ८।८।२० ) । २ गाढ - चिट्ठंति वा गाढंति वा' ( आचू पृ १४१ ) । चिट्ठणा -- अवस्था - 'अवस्थाणं अवस्था या एगट्ठा चिट्ठणा ति व' ( जीभा १९६६ ) । चिडग -- पक्षि विशेष ( प्रज्ञा १।७९ ) । चिडिग -- चटक पक्षी ( प्र १।९ ) । चिणोट्ठी -- गुंजा ( दे ३।१२ ) । चित्त -- काष्ठ-विशेष - 'चित्तशब्देन किलिञ्जादिकं वस्तु किञ्चिदुच्यते' ( अनुटी प ५ ) । चित्तठिअ -- परितोषित, सन्तुष्ट ( दे ३।१२ ) । चित्तदाउ -- मधुपटल, मधुमक्खियों का छाता ( दे ३।१२ ) । चित्तपक्ख -- चार इन्द्रिय वाला जंतु-विशेष ( प्रज्ञा १।५१ ) । चित्तपत्तय -- चार इन्द्रिय वाला जंतु-विशेष ( उ ३६।१४८ ) । चित्तपरिच्छेय -- लघु, छोटा ( औप ५७ ) । चित्तपरिच्छोक -- लघु, छोटा-चित्तपरिच्छोको - लघुः' ( भटी प ३१८ ) । चित्तपरिच्छोय -- लघु ( भटी प ३१८ ) । चित्तल -- १ गोलाकार टुकड़े ( दजिचू पृ १९८ ) । २ हरिण की आकृति वाला जंगली पशु-विशेष ( प्रटी प १० ) । ३ विभूषित ( दे ३।४ ) । ४ रमणीय ( वृ ) । ५ चित्रविचित्र, चितकबरा ( पा १६७ ) । चित्तविय -- प्रोत्साहित किया - 'चित्तविया आडत्तिया' ( कु पृ ६५ ) । चित्ताचिल्लडय -- जंगली पशु-विशेष ( आचूला १।५२ ) । चित्ताचेल्लरय -- जंगली पशु-विशेष ( आचूला १।५२ पा ) । चित्ति -- चिता - 'गहियाईं कट्ठाईं, रइया महाचित्ती, लाइओ जलणो' ( कु पृ १०८ ) । चिद्दविअ -- विनष्ट ( दे ३।१३ ) । चिप्पग -- कूटी हुई छाल ( बूटी पृ १०२१ ) । चिप्पिडय -- धान्य विशेष ( दश्रुचू प ३८ ) । चिप्पित -- १ नपुंसक-विशेष - 'चिप्पितो णाम जस्स जायमेत्तस्सेव अंगुट्ठपदेसिणीमज्झियाहिं चड्ढिज्जंति' ( निचू ३पृ २४९ ) । २ चिपका हुआ, आक्रांत - गृद्धा नरा कामेसु चिप्पिता' ( सुचू १ पृ ९३ ) । चिप्पिय -- नपुंसक विशेष, जन्म के समय अंगूठे से मर्दन कर जिसका अण्डकोष दबा दिया गया हो ( बृभा ५१६७ ) । चिप्पिस -- नपुंसक-विशेष - 'जातमेत्ताण चेद जेसिं मिलितेहिं चोतिआ ते चिप्पिसा' ( निचू २ पृ ४५२ ) । चिमिटा -- चपटी - 'पेल्लिया णासिका चिमिटा भविस्सति' ( निचू ३ पृ ४०६ ) । चिमिण -- रोमश, दाढ़ी आदि न बनाने के कारण जिसके केश लंबे हो गए हों वह - 'चिल्लिरि-डसिया तुह अरिणो चिमिणा' ( दे ३।११ ) । चियत्त -- १ सम्मत - 'चियत्तोवहि-साइज्जणया' ( स्था ३।३८२ ) । २ प्रीतिकर - 'चियत्तं पविसे कुलं' ( द ५।१।१७ ) । चियाय -- त्याग ( स्था १०।१६ ) । चिरंडिहिल्ल -- दही ( दे ३।१४ पा ) । चिरड्ढिहिल्ल -- दही ( पा २८१ ) । चिरया -- झोंपड़ी, कुटीर ( दे ३।११ ) । चिरिंचिरा -- जलधारा ( दे ३।१३ ) । चिरिंडिहिल्ल -- दही ( दे ३।१४ पा ) । चिरिका -- फोड़ा-फुन्सी - 'कोढियरूवेणं निविट्ठो तं चिरिका फोडित्ता सिंचइ' ( आवहाटी २ पृ १२७ ) । चिरिक्का -- १ छींटे - 'लोहियचिरिक्काहिं भरिज्जंतो-रुधिरच्छटाभिः' ( उशाटी प ११६ ) । २ मशक, पानी भरने का चर्म-भाजन । ३ प्रातः काल । ४ लघु प्रवाह ( दे ३।२१ ) । चिरिचिरा -- जलधारा, पानी का लघु प्रवाह ( दे ३।१३ ) । चिरिड्डिहिल्ल -- दही ( दे ३।१४ ) । चिरिहिट्टी -- गुंजा ( दे ३।१२ ) । चिलमीणि -- पर्दा ( पंक ८५० ) । चिलाई -- देश-विशेष की दासी ( ज्ञा १।१।८२ ) । चिलातिया -- किरात देश की दासी ( भ ९।१४४ ) । चिलिचिलि -- शब्द-विशेष - 'चिलिचिलिसद्दो पुन्नो सामए सुलिसूलि धन्नो उ' ( प्रसाटी प ४१० ) । चिलिचिलिय -- भीगा हुआ ( तंदु ११६ ) । चिलिचिल्ल -- कर्दमयुक्त ( प्रटी प ४९ ) । चिलिच्चिल -- कीचड़ से लथपथ ( मार्ग ) - कद्दमचिलिच्चिलपहे' ( प्र ३।५; दे ३।१२ ) । चिलिच्चील -- आर्द्र, गीला ( दे ३।१२ ) । चिलिण -- मलिन, आर्द्र- 'सेयागय रोमकूवपगलंतचिलिणगत्ता' ( भ ९।१६८ ) । चिलिमिणि -- पर्दा ( आवनि १४०१ ) । चिलिमिणी -- पर्दा ( पंक ७२३ ) । चिलिमिलि -- पर्दा ( नि १।१४ ) । चिलिमिलिका -- पात्र को प्रमार्जित करने का वस्त्र-विशेष ( प्रसाटी प ११८ ) । चिलिमिलिगा -- परदा ( सू २।२।२५ ) । चिलिमिलियाग -- परदा ( बृ १।१४ ) । चिलिमिली -- यवनिका, पर्दा ( आचूला २।४६ ) । चिलीन -- गीला, कर्दममय ( प्रटी प ९९ ) । चिलीय -- पर्दा ( बुभा ३५०१ ) । चिल्ल -- १ लड़का ( दे ३।१० ) । २ शिष्य, चेला । ३ सूर्प, छाज । चिल्लक -- १ देदीप्यमान ( आवचू १ पृ २५७ ) । २ वृक्ष-विशेष, चीड का वृक्ष ( अंवि पृ ६३ ) । चिल्लग -- १ चमकीला, देदीप्यमान - 'चिल्लगं दप्पणं गहेऊण ( ज्ञा १।१६।१६३ ) । २ बच्चा ( आवहाटी २ पृ १२० ) । ३ लीन ( प्रटी प ७१ ) । ४ नर्तकों की विशेष वेषभूषा ( कुट ४७ ) । चिल्लग्ग -- बच्चा, शिशु ( उसुटी प ५३ ) । चिल्लय -- १ अपचक्षु ( प्र १।३७ ) । २ देदीप्यमान ( औप ४९ ) । चिल्लल -- १ कर्दमयुक्त जलाशय ( भ ५।१८९ ) । २ चीता ( जीव ३।६२० ) । चिल्ललग -- १ देदीप्यमान - 'चिल्ललगानि देशीवचनत्वात् देदीप्यमानानि ' ( प्रज्ञाटी प ९६ ) । २ चीता ( भ ९।२५१ ) । चिल्ललय -- चीता, श्वापद पशु-विशेष ( प्रज्ञा ११।२१ ) । चिल्ला -- चील ( दे ३।९ ) । चिल्लिक -- नपुंसक का एक प्रकार ( अंवि पृ ७३ ) । चिल्लिका -- १ लीन, आसक्त । २ देदीप्यमान - 'चिल्लिकाहि' ति लीनैः दीप्यमानै' ( प्रटी प ७७ ) । चिल्लिय -- १ देदीप्यमान - 'विचित्तउल्लोगचिल्लियतले' ( भ ११।१३३ ) । २ लीन (ज्ञाटी प ६१) । चिल्लिया -- देदीप्यमान - 'देशीपदमेतत् दीप्यमानं ' ( जंबूटी प १०२ ) । चिल्लिरि -- मच्छर ( दे ३।११ ) । चिल्ली -- पत्ते वाली वनस्पति-विशेष ( आटी प ५७ ) । चिल्लूर -- मुसल, चावल आदि कूटने की मोटी लकड़ी ( दे ३।११ ) । चीड -- १ मांस के टुकड़े - 'मंसं चीडं वा आमिसं पुंजेसु ठविज्जइ' ( अनुद्वाचू पृ १५ ) । २ काले कांच की मणि वाला । चीण -- १ छोटा - 'चीणचिमिढ-वंकभग्गनासं ' ( ज्ञा १।८।७२ ) । २ धान्य-विशेष, व्रीहि का एक प्रकार - 'चीणाकूरं छेलियात क्केण दिन्नं' ( उसुटी प २४१ ) । चीप -- भौंह - 'चीपादीण पमज्जणं' ( निभा १५१६ ) । चीर -- चिथडों को जोड़कर बना वस्त्र, फीता ( कु पृ १४५ ) । चीवट्ठी -- भाला, शस्त्र-विशेष ( दे ३।१४ ) । चीही -- मुस्ता का तृणविशेष ( दे ३।१४ ) । चुंचुअ -- शेखर, मस्तक की माला, किलंगी ( दे ३।१६ ) । चुंचुण -- इभ्यजाति विशेष ( प्रज्ञा १।९४ ) । चुंचुणिअ -- चलित, कम्पित ( दे ३।२३ वृ ) । चुंचुणिआ -- १ च्युत, भ्रष्ट । २ गोष्ठी की प्रतिध्वनि । २ रमण, संभोग । ४ इमली का वृक्ष । ५ मुष्टिद्यूत । ६ यूका, जूं ( दे ३।२३ ) । चंचुमालइय -- रोमाञ्चित - 'चुचुमाल इयतणू ऊपवियरोमकूवे तं सुमिणे ओगिण्हइ' ( ज्ञा १।१।२० ) । चुंचुमालि -- आलसी ( दे ३।१८ ) । चुंचुलि -- १ चोंच । २ चुलुक ( दे ३।२३ ) । चुंचुलिअ -- १ अवधारित, निश्चित । २ सस्पृहता, लालच ( दे ३।२३ ) । चुंचुलिपूर -- चुलुक, चुल्लू ( दे ३।१८ ) । चुंचुली -- १ चोंच । २ चुल्लु ( दे ३।२३ वृ ) । चुंच्चु -- गुच्छ वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।३७।२ ) । चुंछ -- परिशोषित, सूखा हुआ ( दे ३।१५ ) । चुंटिर -- चुनने वाला ( दे ६।११६ वृ ) । चुंढी -- थोड़े पानी वाला अखात जलाशय - 'चुंढीसु य जूहेसु य कच्छेसु य नदीसु य' ( ज्ञा १।१।६७ ) । चुंदप्पडिय -- काठ से बना हुआ आच्छादन विशेष ( निचू २ पृ ३९६ ) । चुंपाल -- झरोखा, गवाक्ष ( कु पृ २४९ ) । चुंभल -- १ पुष्पनिष्पन्न आभरण- विशेष ( अंवि पृ ६४ ) । २ शेखर, कलंगी ( दे ३।१६ ) । चुक्क -- १ विस्मृत ( बृभा ५१८१ ) । २ स्खलना ( पंक ३६८ ) । ३ मुष्टि ( दे ३।१४ ) । ४ चूर्ण ( कुपृ २२३ ) । ५ अनवहित ( से १।९ ) । चुक्कय -- गलती - 'समायरीए किंचि चुक्कयं कयं खलितं वा' ( निचू ३ पृ २५२ ) । चुक्कार -- आवाज, सिंहनाद - 'चुक्कारशब्दां देश्यां शब्दवाची' ( से १३।२५ ) । चुक्कितक -- खाद्य-विशेष चूरमा ( अंवि पृ २४६ ) । चुक्कुड -- बकरा, छाग ( दे ३।१६ ) । चुचय -- अनार्य देश की एक जाति ( भ ३।९५ ) चुज्ज -- आश्यर्य ( दे ३।१४ ) । चुडण -- जीर्णता ( पिनि २५ ) । चुडलग -- खण्ड खण्ड किया हुआ ( सूनि ७१ ) । चुडलय -- अलात ( निचू १ पृ १६३ ) । चडलि -- उल्मुक, जलती हुई लकड़ी ( बृभा ३१०२) । २ जलता हुआ घास का पूला - 'चुडलि तणपिंडी अग्गे पज्जलिता' ( नंदीचू पृ १६ ) । चुडलिया -- जलता हुआ घास का 'पूला' ( नंदी १२ ) । चुडली -- अलात, जलती हुई लकड़ी ( उशाटी प ३३० ) । चुडल्लि -- जलता हुआ घास का पूला ( भटी पृ ८६३ ) । चुडिलीय -- उल्का, अलात ( अंवि पृ ९२ ) । चुडुप्प -- छाल उतारना ( दे ३।३ वृ ) । चुडप्पा -- त्वक्, छाल ( दे ३।३ ) । चुडुल -- उल्का, जलती हुई लकड़ी ( जीभा ४२ ) । चुडुलि -- गुरु-वन्दन का एक दोष ( आवनि १२११ ) । चुडुलिय -- गुरु वन्दन का एक दोष, रजोहरण को अलात की तरह घुमाते हुए वन्दन करना ( प्रसाटी प ३८ ) । चुडुली -- अलात, जलती हुई लकड़ी ( जीभा ४० ; दे ३।१५ ) । चुडुल्ली -- उल्का ( प्रज्ञाटी प २९ ) । चुणअ -- १ चंडाल । २ अल्प । ३ बालक । ४ मुक्त । ५ छंद, अभिप्राय । ६ अरोचक, अरुचिकर । ७ व्यतिकर, प्रसंग ( दे ३।२२ ) । ८ 'विअरअ' (?) । ९ आघ्रात, सूंघा हुआ - चुणओ विअरओ इति धनपालः । आघ्रातार्थेऽपीति केचित्' ( वृ ) । चुणय -- पुत्र ( व्यभा ७ टी प ८५ ) । चुणिअ -- निधारित, विशेष रूप से धारण किया हुआ (दे ३।१५) - 'सा अच्छइ आसतंतुचुणिअप्पा' (वृ) । ] चुण्णइअ -- चूर्ण से आहत, जिस पर चूर्ण फेंका गया हो वह ( दे ३।१७ ) । चुण्णय -- भयभीत, संत्रस्त ( विपा १।२।१४ ) । चुण्णाआ -- कला, विज्ञान ( दे ३।१६ ) । चुण्णासी -- दासी ( दे ३।१६ ) । चुप्प -- स्नेहिल, स्नेहयुक्त ( दे ३।१५ ) । चुप्पल -- शेखर, मस्तक की माला, कलंगी ( दे ३।१६ ) । चुप्पलिअ -- रंगा हुआ नया वस्त्र ( दे ३।१७ ) । चुप्पालअ -- वातायन, गवाक्ष ( दे ३।१७ ) । चुप्पुडिआ -- चुटकी ( उशाटी प १०८ ) । चुप्फुल -- शेखर-विशेष, शिरोभूषण । २ असत्य ( दे ३।२० पा) । चुब्भल -- कलंगी, शेखर ( पा ३४९ ) । चुरु -- कृमि-विशेष ( अंवि पृ २२९ ) । चुलचुल -- उत्कंठा, गुद्गुदी - 'तहमोहकम्मपामावियणाए चुलचुलेंत सव्वंगे' ( कु पृ २२१ ) । चुलुक -- हाथ के सम्पुट की आकृति वाला जलाशय - 'विकटाशयो जलाशय, अमुं च प्रस्तावात् चुलुकमाहुर्वृद्धा:' ( भटी पृ १२२७ ) । चुलुग -- चुल्लू - 'पसय मिति पसती चुलुगो भण्णति' ( निचू २ पृ २२० ) । चलुचुलिअ -- स्पन्दित ( पा ५५१ ) । चुलुप्प -- बकरा ( दे ३।१६ ) । चुल्ल -- १ भोजन ( पिनि ३८३ ) । २ चूल्हा ( जीभा १२०५ ) । ३ छोटा - चुल्ल शब्दो देश्य: क्षुल्लपर्याय:' ( जंबूटी प ६६ ) । ४ शिशु । ५ दास ( दे ३।२२ ) । चुल्लक -- १ चूल्हा ( अंबि पृ २५४ ) । २ भोजन-चुल्लको देशयुक्त्या भोजनम्' ( आवदी प १६० ) । चुल्लग -- १ भोजन ( आवनि १०७२ ) । २ बारी-बारी से भोजन - 'परिपाटी-भोजनम्' ( उशाटी प १४५ ) । चुल्लमाउया -- सौतेली मां, विमाता ( विपा १।६।१४ ) । चुल्लमातुय -- छोटी मां, चाची ( अंवि पृ २१९ ) । चुल्लि -- १ चूल्हा ( बृभा १९५९ ; दे १।८७ ) । २ चूल्हे की अग्नि ( अंवि पृ २५४ ) । चुल्ली -- १ चूल्हा ( सूचू १ पृ १२५ ) । २ शिला, पाषाणखंड ( दे ३।१५ ) । चुल्लोडअ -- जेठ, पति का बड़ा भाई ( दे ३।१७ ) । चूअ -- चूचुक, स्तन का अग्रभाग ( दे ३।१८ ) । चूचु -- दूधी ( उपाटी पृ २२ ) । चूड -- चूडा, बाहु-भूषण ( दे ३।१८ ) । चूडलिक -- १ उल्का, जलती हुई लकड़ी । २ वंदना का एक दोष । ( प्रसाटी प ३५ ) । चूरिम -- मिष्टान्न विशेष ( प्रसाटी प ५६ ) । चूरमा ( राजस्थानी ) । चूलय -- चूडा, बाहु-भूषण ( उचू पृ १५८ ) । चूलियंग -- संख्या-विशेष ( भ ५।१८ ) । चूलिया -- संख्या-विशेष - 'चतुरशीति चूलिकाङ्गशतसहस्राणि एका चूलिका' ( जीव ३।८४१ ; टी प ३४५ ) । चेच्च -- विशेषरूप से जड़ित ( जंबूटी प ५५ ) । चेट्ट -- बच्चा, बालक ( निचू ३ पृ ४०८ ) । चेड -- १ बालक ( पिनि ४१ ; दे ३ । १० ) । २ लघु, छोटा ( व्यभा ३ टी प ७ ) । चेडरूव -- शिशु, कुमार ( दश्रुनि ९७ ) । चेडी -- बालिका ( आवनि १३६ ) । चेढ -- राज्यकर्मचारी ( आवचू १पृ ४८० ) । चेला -- १ अनार्य देश में उत्पन्न स्त्री । २ दासी - 'चेलाहि ति चेटिकाभिः अनार्यदेशोत्पन्नाभिर्वा ( औपटी पृ १४५ ) । चेलिक -- वस्त्र ( अंवि पृ १८ ) । चेलुंप -- मुसल ( दे ३।११ ) । चेल्ल -- शिष्य ( आचू पृ १३३ ) । चेल्लग -- शिष्य ( दअचू पृ २१ ) । चेल्लय -- १ शिष्य ( आवचू २ पृ ९५ ) । २ बच्चा - 'एगो हत्थी जाए जाए हत्थिचेल्लए मारेइ' ( आवहाटी २ पृ १२८ ) । चेल्ललक -- देदीप्यमान - 'देशीवचनाद् देदीप्यमानानि' ( जीवटी प १७३ ) । चेल्लिक्क -- बालपुत्र - 'नलदामकोलियस्म य चेल्लिक्कं मक्कीडएण खतितं' ( दअचू पृ २६ ) । चेवइय -- अलंकृत, शोभित ( आचूला १५।२८।८ ) । चोअक -- सुगंधित द्रव्य ( जंबूटी प ८२ ) । चोंकण -- नोचना - 'करेति चोंकण-णत्थण-वाहण-मारणातिगं' ( दअचू पृ १७८ ) । चोंबग -- माया - 'चाड चोंबग-कूडसक्खिसमुब्भावित दुव्वरारंभं' ( दअचू पृ २५५ ) । चोक्ख -- पवित्र शुद्ध - 'चोक्खा परमसूईभूया' ( दश्रू ८।६६ ) । चोक्खतरय -- अच्छा - 'अणागए चेव तस्स कालस्स छड्डेति अण्णं चोक्खतरयं कसाइमं लद्धूणं ति' ( निचू ३ पृ ५६९ ) । चोक्खलिणी -- शुद्धता रखने वाली स्त्री ( पिनि ६०२ ) । चोज्ज -- आश्चर्य ( ज्ञा १।१८।१७ ; दे ३।१४ ) । चोट्टी -- चोटी ( दे ३।१ ) । चोढ -- बिल्व-फल या बिल्व का वृक्ष ( दे ३।१९ ) । चोत्त -- चाबुक ( दे ३।१९ ) । चोत्तय -- प्रतोद, बांस का बना हुआ प्राजन- दण्ड ( पा ६२४ ) । चोदग -- छाल - 'चोदगं उच्छ्रितोदय छल्ली' ( आचू पृ ३४४ ) । चोद्द -- पुत्र - 'चारभडचोद्दण पण्णे मग्गितो' ( निचू ४ पृ ३१२ ) । चोपग -- राज्याधिकारी -- 'चोर पारदारिय-सूय-चोपगादिबहुजणं' ( सूचू १ पृ १६७ ) । चोपलय -- गवाक्ष, वरण्डा ( दजिचू पृ १७४ ) । चोप्प -- मूर्ख - 'हिंडति चोप्पायरितो, निरंकुसो मत्तहत्थिव्व' ( बृभा ३७३ ) । चोप्पग -- राज्याधिकारी - 'राया रायअमच्चो वा चोप्पगसमीवातो सोउं' ( निचू ३ पृ १०३ ) । चोप्पड -- १ चिकनाहट ( पंव २६५ ) । २ घी, तैल ( प्रसाटी प ७५ ) ३ मलिन ( पंक ४९९ ) । चोप्पाल -- १ देवता की आयुधशाला -- जेणेव चोप्पाले पहरणकोसे' ( भ ३।११२ ) । २ वरण्डा ( जीव ३।६०४ ) । चोप्पालक -- देवता की आयुधशाला ( जीवटी प २३२ ) । चोप्पालग -- वरंडा ( जंबू २।१९ ) । चोप्पालय -- १ खिड़की । २ खुला आकाश - 'छिड्डाते पुणो लोए चोप्पालय भण्णति' ( निचू १ पृ८४ ) । चोप्फाल -- वरण्डा ( जंबूटी प १२१ ) । चोप्फुच्च -- स्नेहिल, प्रेमयुक्त ( दे ३।१५ ) । चोय -- १ छाल ( प्र १०।१६ ) । २ आम आदि का रुंछा -- 'ण्हारुणिभागा जे केसरा तं चोयं भण्णति' ( निचू ३ पृ ४८१ ) । ३ सुगन्धित द्रव्य-विशेष ( राज ३० ) । चोयग -- १ सुगंधित द्रव्य-विशेष ( भ ११।१५९ ) २ छाल ( आटी प ४०५ ) । चोयट्टि -- चौंसठ ( भ १३।१२१ ) । चोयय -- १ छाल ( भ १५।१३७ ) । २ फल-विशेष ( अनुद्वा ३७९ ) - चोयओ फलविशेषः' । ३ आम आदि का रुंछा ( निचू ३ पृ ४८१ ) । चोयाल -- चवालीस ( निभा ५६०५ ) । चोरग -- वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।४४ ) । चोरली -- श्रावण कृष्णा चतुर्दशी ( दे ३।१९ ) । चोरा -- वनस्पति-विशेष ( भ २१।२१ ) । चोरालि -- खाद्य-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । चोल -- १ पुरुषचिन्ह, लिंग - 'चोलस्य - पुरुषचिन्हस्य ( प्रसाटी प १२२ ) । २ ठिगना, वामन ( दे ३।१८ ) । चोलपट्ट -- जैन मुनि का कटिवस्त्र ( जीभा १७२७ ) । चोलाडिगा -- क्षुद्र जंतु-विशेष ( अंवि पृ २३८ ) । चोल्लक -- भोजन - 'देशी भाषया भक्तमुच्यते' ( प्रसाटी प १४३ ) । चोल्लग -- भोजन ( जीभा १२७७ ) । चोल्लय -- १ भोजन ( बृभा ३१२७ ) । २ थैला, बोरा - मम समक्खं तोलेह चोल्लए' ( उसुटी प ६५ ) । चोवालय -- ऊपर की मंजिल का कमरा ( दहाटी प ९८ ) । छ छइल्ल -- विदग्ध, पटुप्रज्ञ ( दे ३।२४ ) । छउअ -- पतला, दुबला ( दे ३।२५ ) । छंकुई -- कपिकच्छू, कवाछ का वृक्ष ( दे ३।२४)। छंछइय -- कुलटा - 'अण्णा छंछइओ इय परपुरिसदंसणे....' ( कुपृ ७ ) । छंट -- १ जल का छींटा । २ शीघ्रता करने वाला ( दे ३।३३ ) । छंटा -- जल का छींटा, जल का छिड़काव ( पा ६५० ) । छंटित -- ऊखल में कूटे हुए- उदुखले च्छंटितेषु तन्दुलेषु' ( व्यभा १० टी प ५ ) । छंटेउं -- छींटा देकर, छिड़काव कर - 'चालणीए पाणियं छोटूणं गंतुणं तिण्णि वारों छंटेउं उग्घाडाणि भविस्संति' ( आवहाटी २ पृ २०७ ) । छंदंत -- पैबंद - 'पडियाणिया थिग्गलयं छंदंतो य एगट्ठं' ( निचू २ पृ ५६ ) । छंदड़िया -- चर्ममय आसन-विशेष ( निचू १ पृ ६४ ) । छक्कट्ठ -- १ घर के बाह्य द्वार का प्रकोष्ठ । २ द्वार - षट्काष्ठकं गृहस्य बाह्यालन्दकं षड्दारुकमिति यदागमप्रसिद्धं, द्वारमित्यन्ये' ( ज्ञाटी प १६ ) । छक्किय -- छींक ( निचू १ पृ ८४ ) । छग -- पुरीष, विष्ठा ( बृभा ३७७० ) । छगण -- गोमय, गोबर ( पिनि २४६ ) । छगणि -- कंडा ( अंवि पृ २५४ ) । छगणिय -- गोबर ( ओनि ३९६ ) । छगणिया -- गोबर का ढेर ( अनु ३।४२ ) । छगली -- शरीर का एक अवयव ( अंवि पृ ६६) । छज्जिय -- १ टोकरी, पुष्प-पात्र ( राज १२ ) । २ राजित, शोभित I छज्जिया -- पुष्पपात्र, चंगेरी - 'पुप्फछज्जियाए अच्चणं काऊण वच्चइ' ( आवहाटी २ पृ १६ ) । छट्ठि -- छिद्र, दोष - 'जो जग्गइ परछट्टि, सो नियछट्ठीए कि सुयइ' ( उसुटी प ८८) । २ हृदय का रोग विशेष । ३ अतिसार ( अंवि पृ २०३ ) । छडक्खर -- स्कन्द, कात्तिकेय ( दे ३।२६ ) । छडछड -- वमन करते समय होने वाली ध्वनि ( विपा १।६।२३ ) । छडछडा -- सूर्प से अन्न को झाड़ते समय होने वाली अव्यक्त ध्वनि - 'अखंडाण अफुडियाणं छडछडायाणं सालीणं मागहए पत्थए जाए' ( ज्ञा १।७ १५ ) । छडा -- विद्युत् ( दे ३।२४ ) । छडुग -- बांस से बनी हुई टोकरी ( आचू पृ ३४४ ) । छड्डछड्ड -- सूर्प से अन्न को झाड़ते समय होने वाली अव्यक्त ध्वनि ( ज्ञा १।७।१५ पा ) । छड्डियल्लय -- बचा हुआ या छोड़ा हुआ ( बूटी पृ १०८ ) । छण्णालय -- त्रिदंड, संन्यासी का एक उपकरण ( भ २।३१ ) । छण्णी -- १ वाहन-विशेष, रथ - 'छण्णी सगडं वा' ( आचू पृ ३४७ ) । २ कंडा, छाणी ( अचूपृ ३४६ ) । छत -- १ आचार्य - 'छत्तो आयरिओ' ( निचू २ पृ १३३ ) । २ इन्द्रजाल - 'छत्तो कउग्गो भण्णति' ( निचू ३ पृ १६ ) । छत्तधन्न -- घास-विशेष ( पा २०४ ) । छद्दी -- शय्या ( दे ३।२४ ) । छन्नालय -- तिपाई, संन्यासियों का एक उपकरण ( ज्ञा १।५।५२ ) । छप्पंती -- नियम-विशेष जिसमें पद्म लिखा जाता है; छह रेखाओं में कमल का आलेखन करने का नियम ( दे ३।२५ ) । छप्पग -- पात्र विशेष ( आवचू २ पृ ७० ) । छप्पणय -- १ चतुर, चालाक । २ विदग्ध, गणितियों और चित्र वचनों के प्रयोग में दक्ष कवि ( कु पृ ३ ) । छप्पण्ण -- विदग्ध, चतुर, पटुप्रज्ञ ( दे ३।२४ ) । छप्पण्णय -- दक्ष ( पा १९३ ) । छब्ब -- १ पानक आदि छानने के लिए बांस का बना हुआ उपकरण विशेष ( आचूला १।१०४ ) । २ पात्र विशेष ( पिनि ५६१ ) । छब्बग -- पात्र-विशेष ( पिनि २७८ ) । छब्बय -- वंशपिटक - 'पानक आदि छानने का उपकरण विशेष-मूइंगाई-मक्कोड-एहिं संसत्तगं च नाऊणं । गालिज्ज छब्बएणं-वंशपिटकेन' ( ओनि ५६० ) । छमलअ -- सप्तपर्ण, सतौना का वृक्ष ( दे ३।२५ ) । छम्माणि -- गांव-विशेष का नाम - 'ततो भयवं छम्माणि नाम गामं गतो' ( आवमटी प २९७ ) । छलंत -- सेंटिका करता हुआ ( अंवि पृ १३५ ) । छलिअ -- विदग्ध, पटुप्रज्ञ ( दे ३।२४ ) । छलिक -- प्रिय ( अंवि पृ १२० ) । छल्लिया -- छाल - 'मूलाछल्लिया इ वा वालुंकछल्लिया इ वा' ( अनु ३।५० ) । छल्ली -- छाल, त्वक् ( अनु ३।३१ ; दे ३।२४ ) । छवडी -- चर्म ( ओटी प २१७; दे ३।२५ ) । छवण -- गोबर - 'छवणमट्टियाए लिंपणं उवलेवणं' ( निचू २ पृ ३३४ ) । छवाविय -- प्रावृत, ( घर को ) छवाया, आच्छादित किया - 'घरं.... छ्वावियं' ( आवहाटी १ पृ १७५ ) । छवि -- फली ( द ७।३४ ) । छव्विय -- १ चटाई आदि बनाने वाला ( प्रज्ञा १।९७ ) । २ पिहित, आच्छादित । छव्वी -- वेत्रासन ( आवहाटी २ पृ ७३ ) । छाअ -- १ भूखा । २ कृश ( दे ३।३३ ) । छाइ -- माता, देवी, ( दे ३।२६ वृ ) । छाइल्ल -- १ प्रदीप । २ सदृश । ३ न्यून । ४ सुरूप, सुन्दर ( दे ३ ।३५ ) । छाइल्लय -- दीप - 'जोइक्खं तह छाइल्लयं च दीवं मुणेज्जाहि' ( व्यभा ७ टी प ६२ ) । छाई -- जगदंबा आदि देवी माताएं ( दे ३।२६ ) । छाउव्वाय -- भूख से व्याकुल ( कु पृ ७६ ) । छाएल्लय -- छाया का इच्छुक ( उशाटी प ११९ ) । छाण -- १ छांद, दर्भपटल ( भ ८।२५७ ) । २ गोबर ( बृभा ३३१२ ; दे ३।३४ ) । ३ धान्य आदि का मलना ( दे ३।३४ ) । ४ वस्त्र ( जीव ३ ; दे ३।३४ ) । छाणन -- छानना ( प्रटी प २५ ) । छाणिय -- गालित, छानना ( बृभा ५१७ ) । छाणी -- १ छाणा, कंडा ( प्रसा ४३४ ) । २ धान्य आदि का मलना । ३ गोमय, गोबर । ४ वस्त्र, कपड़ा ( दे ३।३४ वृ ) । छात -- बुभुक्षित ( निभा १११७ ) । छातक -- भूखा, गरीब ( अंवि पृ २५१ ) । छातता -- भूख ( अंवि पृ १३५ ) । छातेल्लय -- भूखा, बुभुक्षित ( उचू पृ ७६ ) । छाद -- भूखा - 'छादो वेयावच्चं ण तरति काउं' ( जीभा १६५९ ) । छाय -- १ बालक ( भ १८।१५९ ) । २ बुभुक्षित, भूखा ( द ९।२।७ ; दे ३।३३ ) । ३ कृश ( दे ३।३३ ) । छाया -- १ कीर्त्ति । २ भ्रमरी ( दे ३।३४ ) । छायाल -- छयालीस ( निचू ४ पृ ३६७ ) । छार -- भालू ( दे ३।२६ ) । छारय -- १ ईख का टुकड़ा या ईख की छाल । २ मुकुल, कली ( दे ३।३४ ) । छासी -- छाछ, मट्ठा - 'उदसी छासि त्ति एगट्ठं' ( निचू १ पृ ९२; दे ३।२६ ) । छाही -- गगन, आकाश ( दे ३।२६ ) । छिंछ -- शलाटु-फल ( दे ३।३६ वृ ) । छिंछअ -- १ शरीर । २ जार पुरुष ( दे ३।३६ ) । ३ शलाटु-फल ( वृ ) । छिंछई -- कुलटा, व्यभिचारिणी ( उसुटी प २५० ) । छिंछटरमण -- आंखमिचौनी ( दे ३।३० ) । छिंछोली -- लघु जल-प्रवाह, छोटी नाली ( दे ३।२७ ) । छिंड -- १ चूड़ा, चोटी । २ छत्र । ३ धूपयंत्र ( दे ३।३५ ) । छिंडिका -- १ बाड का छिद्र ( ज्ञाटी प ८७ ) । २ अपवाद, आगार ( प्रसाटी प २७८ ) । छिंडिया -- अपवाद, छूट - 'छ छिंडियाओ जिणसासणम्मि' ( प्रसा १४८ ) । छिंडी -- वृत्ति छिद्र, बाड का छेद ( ज्ञा १।२।११ ) । छिंडीया -- छोटा द्वार ( बृभा २५७ ) । छिंपक -- वस्त्र छापने वाला ( व्यभा ३ टी प १० ) । छिंपा -- कपड़े रंगने व छापने का काम करने वाला ( प्रसाटी प २३० ) । छिक्क -- १ स्वीकृत ( निचू ३ पृ १४० ) । २ स्पृष्ट छुआ हुआ । ३ छींक ( दे ३।३६ ) । ४ गुल्म का एक प्रकार ( अंवि पृ ६३ ) । छिक्कप्परोइया -- वनस्पति-विशेष जो स्पर्शमात्र से संकुचित हो जाती है - 'छिक्कप्परोइया छिक्कमेत्तसंकोयओ कुलिंगोव्व' ( विभा १७५४ ) । छिक्का -- १ छीं-छों आवाज से पुकारना ( ओभा १२४ ) । २ छींक । छिक्कार -- छीं-छों की आवाज से बुलाना ( निचू २ पृ २४६ ) । छिक्कारिय -- छीं-छीं की आवाज से आहूत - 'वीरसुणिआछिक्कारिआ तित्तिराईणि गिण्हेइ' ( ओटीप ९६ ) । छिक्कोअण -- असहन, असहिष्णु ( दे ३।२९ ) । छिक्कोट्टली -- १ पैर की आवाज । २ पांव से धान्य का मलना । ३ गोमय खण्ड ( दे ३।३७ ) । छिक्कोलिअ -- पतला ( दे ३।२५ ) । छिक्कोवण -- असहिष्णु, असहनशील ( बृभा ६१५७ ) । छिग्गल -- मैल - 'छिग्गलं जल्लो भण्णति' ( निचू २ पृ २२१ ) । छिच्चोलय -- १ अरुचिप्रकाशक मुखविकार विशेष । २ विकूणित मुख' ( पा ६६७ ) । छिच्छिक्कार -- १ निवारणसूचक या घृणासूचक शब्द, छिः - छिः ( पिनि ४५१ ) । २ घोड़े की आवाज -- 'छिच्छिक्कार हयाणं' ( जीभा १३७७ ) । छिडु -- १ खुला आकाश । २ वरंडा, खिड़की ( निचू १ पृ ८४ ) । छिण्ण -- १ नि:स्नेह ( ज्ञाटी प १७५ ) । २ जार-पुरुष ( दे ३।२७ ) । छिण्णंगाल -- पक्षी-विशेष ( अंवि पृ २३९ ) । छिण्णच्छोडण -- शीघ्र ( दे ३।२९ ) । छिण्णयड -- टंक से छेदा हुआ (.पा ३६१ ) । छिण्णा -- कुलटा ( दे ३।२७ वृ ) । छिण्णाल -- जार-पुरुष ( दे ३।२७ ) । छिण्णालिंगा -- सुवर्ण वाला पक्षी-विशेष ( अंवि पृ २२६ ) । छिण्णाली -- कुलटा ( दे ३।२७ वृ ) । छिण्णोब्भवा -- दर्भ, दूर्वा ( दे ३।२९ ) । छित्त -- १ छींक ( निचू १ पृ ८५ ) । २ स्पृष्ट ( नंदीटि पृ १३४; दे ३।२७ ) । छित्तर -- १ बांस की खपचियां जिन पर घास आदि छाया जाता है ( भ ८।२५७ ) - 'छिंवराणि - वंशादिमंयानि छादनाधारभूतानि किलिञ्जानि' ( टी पृ ९६१ ) । २ पुराना छाज आदि गृह-उपकरण । छिद्द -- १ अवसर - 'हत्थिजूहेण समं चरंती छिद्देण आगंतूण थणं देइ' ( आवहाटी २ पृ १२३ ) । २ लघु मत्स्य ( दे ३।२६ ) । छिधा -- पत्र ( नंदीटि पृ १३४ ) । छिन्न -- व्यभिचारी, छिनरा ( बृभा २३१५ ) । छिन्नगाली -- पक्षी-विशेष की ध्वनि - विगतदारुणेसु छिन्नगालीय रतं । इति पक्खिगतरतं ति' ( अंवि पृ १८३ ) । छिन्नाल -- तुच्छ जाति का बैल, दुष्ट बैल ( उ २७।७ ) । छिप्प -- १ भिक्षा । २ पुंछ ( दे ३।३६ ) । छिप्पंती -- १ व्रत-विशेष । २ उत्सव-विशेष ( दे ३।३७ ) । छिप्पंदूर -- १ गोमय-खंड, कंडे का टुकड़ा । २ विषम ( दे ३।३८ ) । छिप्पाल -- धान्य खाने में आसक्त बैल ( दे ३।२८ ) । छिप्पालुअ -- पूंछ ( दे ३।२९ ) । छिप्पिय -- झरित, झरा हुआ ( पा १३९ ) । छिप्पिंडी -- १ व्रत-विशेष । २ उत्सव-विशेष । ३ पीसा हुआ आटा ( दे ३।३७ ) । छिप्पीर -- पलाल ( दे ३।२८ ) । छिप्पोली -- बकरी की विष्ठा - 'ततो जंमि पदेसे छगणछिप्पोली वरिसो-वट्ठाविया ततो घेप्पति ( निचू १ पृ ६६ ) । छिया -- लोहे की पतली छड़ी ( सू २।२।१२ ) । छिर -- प्राणी-विशेष ( अंवि पृ २३७ ) । छिरिया -- अनंतकाय वनस्पति-विशेष ( भ ७।६६ ) । छिल्ल -- १ छिद्र । २ कुटी ( दे ३।३५ ) । ३ बाड़ का छिद्र ( वृ ) । ४ पलाश का पेड़ । छिल्लर -- १ अखात जलाशय, छोटा तालाब - 'छिल्लराणि -- अखाताः स्तोकजलाश्रयभूताः भू प्रदेशा: गिरिप्रदेशा वा' ( प्रज्ञा २।४ टी; दे ३।२८ ) । २ असार । छिल्ली -- शिखा ( दे ३।२७ ) । छिवअ -- १ समूह । २ नीवी, अधोवस्त्र का नाड़ा ( दे ३।३६ ) । छिवा -- चिकना चाबुक ( प्र ३।१३ ) । छिवाडिआ -- फली ( जंबूटी प ३५ ) । छिवाडी -- १ फली - 'छेवाडी शब्दो देश्य:' ( राज २९ टी पृ ९० ) । २ पतले पन्नों वाली ऊंची पुस्तक - 'तणुपत्तेहिं उस्सीओ छेवाडी' ( निचू ३ पृ ३२१ ) । ३ जिसके पन्ने विशेष लंबे और कम चौड़े हों तथा जो मोटी हो ऐसी संपुट फलक वाली पुस्तक - 'दुमाइफलगसंपुडं दीहो हस्सो वा पिहुलो अप्पवाइल्लो छेवाडी' ( निचू ३ पृ ३२१ ) । छिविअ -- १ ईख का टुकड़ा ( दे ३।२७ ) । २ स्पृष्ट ( से २।८ ) । छिव्व -- कृत्रिम, बनावटी ( दे ३।२७ ) । छिव्वोल्ल -- १ निन्दासूचक मुख की आकृति-विशेष ( दे ३।२८ ) । २ विकूणित मुख ( वृ ) । छिहंडअ -- दही का बना हुआ मिष्टान्न, श्रीखंड - छिहंडेहि धवल ! पुट्ठोसि' ( दे ३।२९ ) । छिहंडि -- दही ( दे ३।३० पा ) । छिहंडिभिल्ल -- दही ( दे ३।३० पा ) । छिहली -- शिखा ( बृभा ५१७७ ) । छिहिंडिभिल्ल -- दही ( दे ३।३० ) । छु -- पशुओं को निषेध करने का अनुकरणवाची शब्द - 'छुत्ति हडि त्ति वाभन्नइ' ( निचू ४ पृ ६२) । छुई -- बलाका ( दे ३।३०) । छुंछिका -- छछूंदरी ( अंवि पृ ६९ ) । छुंछुई -- कपिकच्छू, कवाछ का वृक्ष ( दे ३।२४ ) । छुंछुमुसय -- कामासक्ति से होने वाली उत्सुकता ( दे ३।३१ ) । छुंद -- अधिक ( दे ३।३० ) । छुक्कारण -- निषेधकारक अनुकरणवाची शब्द ( निभा ५४०५ ) । छुट्ट -- १ मुक्त ( व्यभा ४।३ टी प ५७ ) । २ छोटा, लघु ( पा ४७ ) । ३ बन्धनमुक्त । छुट्टगुल -- गीला गुड़, फाणित - 'छुट्टगुलो फाणियं' ( बृभा ३४७६ ) । छुडु -- १ सुष्ठु - तेण भण्णति - 'छुडु अब्भासत्थो होउ तो सक्केमि' ( उशाटी प २४५ ) । २ यदि, जो ( प्रा ४।३८५) । ३ शीघ्र ( प्रा ४।४०१ ) । छुड्डिया -- आभरण-विशेष, अंगूठी ( प्र १०।१४ ) । छुद्दहीर -- १ शिशु । २ शशी, चन्द्रमा ( दे ३।३८ ) । छुद्दिया -- आभरण-विशेष ( प्र १०।१४ ) । छुब्भत्थ -- अप्रिय ( दे ३।३३ वृ ) । छुरमड्डि -- नाई, नापित ( दे ३।३१ ) । छुरहत्थ -- नाई, नापित ( दे ३।३१ ) । छुरिया -- मृत्तिका ( दे ३।३१ ) । छुस -- भूसा ( निचू २ पृ ४३२ ) । छुहिअ -- लिप्त ( दे ३।३०) । छेअ -- १ विशुद्ध ( आवनि ११३८ ) । २ अन्त, सीमा ( क १।३९ ) । ३ देवर ( दे ३।३८ ) । ४ एक देश, एक भाग ( से १।७ ) । ५ निर्विभाग अंश ( क ४।८२ ) । ६ कालोपयुक्त हित । छेंड -- १ चूड़ा, चोटी । २ छत्र । ३ धूपयंत्र ( दे ३।३५ वृ ) । छेंडा -- १ चोटी । २ नवमालिका, लता-विशेष ( दे ३।३९ ) । छेंडी -- छोटी गली ( दे ३।३१ ) । छेणक -- १ झाग, फेन । २ कल्लोल ( अंवि पृ २५५ ) । छेत्तर -- पुराना छाज आदि गृह उपकरण ( दे ३।३२ ) । छेत्तसोवणय -- खेत में जागना ( दे ३।३२ ) । छेध -- स्थासक - कुंकुम, चंदन आदि सुगंधित द्रव्यों से दिए गए हाथ के पांचों अंगुलियों के छापे, हस्तबिंब । २ स्थासक - चंदन आदि सुगंधित द्रव्य से शरीर का विलेपन करना । ३ चोर ( दे ३।३९ ) । छेप्प -- पूंछ ( विपा १।२।२४ ) । छेभअ -- हथेली का थापा, हस्तबिम्ब ( दे ३।३२ ) । छेरित्ता -- लीद करके - 'गद्दभी छेरिता गया' ( उसुटी प ७३ ) । छेल -- बकरा ( उसुटी प ५४; दे ३।३२ वृ ) । छेलअ -- बकरा ( दे ३।३२ ) । छेलण -- हर्ष ध्वनि, आनन्द की आवाज - 'छेलणं णाम उक्कट्ठी हसितादि' ( आवचू १ पृ १५७ ) । छेलापनक -- बालक्रीडा, उत्कृष्ट हर्षध्वनि, सीत्कार करना आदि - 'छेलापनकमिति देशीवचनमुत्कृष्टबाल क्रीडापनं सेण्टिताद्यर्थवाचकमिति' ( आवहाटी १ पृ ८६ ) । छेलावण -- १ उत्कृष्ट हर्षध्वनि । २ बाल क्रीडापन । ३ सीत्कार करना - 'छेलावणमुक्किट्ठाइ बालकीलावणं च सेंटाइ' ( आवमटी प २०१ ) । छेलावणय -- हर्ष-ध्वनि, हसना आदि - 'छेलणं णाम उक्कट्ठीहसितादि' ( आवचू १ पृ १५७ ) । छेलिंत -- सेंटिका करता हुआ ( अंवि पृ ४६ ) । छेलिका -- बकरी ( प्रटी प १५ ) । छेलिय -- सेंटित, सीतकार करना, अव्यक्त ध्वनि-विशेष ( प्र ३।५ ) । छेलिया -- बकरी ( उसुटी प २४१ ) । छेल्लिय -- नाक से छींकने का शब्द ( दजिचू पृ २३९ ) । छेली -- थोड़े फूल वाली माला ( दे ३।३१ ) । छेवग -- महामारी ( व्या ५ टी प १८ ) । छेवट्ट -- संहनन का एक प्रकार, अस्थि-रचना-विशेष ( जीव १।१७ ) । छेवट्ठ -- संहनन का एक प्रकार, अस्थि-रचना-विशेष ( स्था ६।३० ) । छेवडित -- महामारी से पीड़ित ( निचू २ पृ १७२ ) । छेवाडिया -- फली ( जीवटी प १९१ ) । छेवाडी -- १ फली - 'छेवाडी शब्दो देश्यः' ( राजटी पृ ९० ) । २ पुस्तक का एक प्रकार ( निचू ३पृ ३२१ ) । देखें - 'छिवाडी' । छेह -- क्षेपण, प्रेरण ( से ४।१७ ) । छोअ -- छिलका - 'अयमाउसो ! खोयरसे, अयं छोए' ( सू २।१।१७ ) । छोइअ -- दास, नौकर ( दे ३।३३ ) । छोइया -- छिलका, ईख आदि की छाल - 'उच्छुखंडे पत्थिए छोइयं पणामेइ' ( उसुटी प ६१ ) । छोटि -- उच्छिष्टता, जूठन - 'छोटिरिति कृत्वा लोके गर्हा स्यात्' ( पिटी प १०६ ) । २ नखच्छोटिका ( व्यभा १० टी प ३० ) । छोट्टि -- उच्छिष्टता, जूठाई - :भुंजंती आयमणे उदगं छोट्टी य लोगगरिहा य' ( पिनि ५८७ ) । छोढूण -- १ घुसेडकर - 'अवाणे सूलं छोढूण मुहेण णिक्कलिज्जति' ( सूचू २ पृ ३६५ ) । २ रखकर, भरकर - चालणीए पाणियं छोढूणं' ( आवहाटी २ पृ २०७) । छोति -- १ छिलका ( आचू पृ ३६७ ) । २ जुगुप्सा ( व्यभा ८ टी प ४७ ) । छोब्भ -- पिशुन, दुर्जन ( दे ३।३३ ) । छोब्भत्थ -- अप्रिय ( दे ३।३३ ) । छोब्भाइत्ती -- १ अस्पृश्य स्त्री, छूने के अयोग्य स्त्री । २ अप्रीतिकर स्त्री, द्वेष्या ( दे ३।३९ ) । छोभ -- १ निस्सहाय, दीन ( प्र ३।२४ ) । २ झूठा आरोप ( बृभा ३३५४ ) । ३ वंदन का एक प्रकार - नर्तन करते हुए वंदन करना ( आवनि ११२७ ) । ४ आघात । ५ पिशुन, दुर्जन । छोभग -- १ झूठा आरोप- 'छोभगो अब्भक्खाणं' ( निभा ४३८५ ) । २ अपयश ( निचू ४ पृ ५५ ) । छोय -- छिलका ( सू २।१।१७ ) । छोह -- १ आघात - 'ताव य सो मायंगो, छोहं जा देइ उत्तरिज्जम्मि' ( उसुटी प ९१ ) । २ समूह । ३ विक्षेप ( दे ३।३९ ) । ज जंकयसुकअ -- अल्प उपकार से अधीन होने वाला ( दे ३।४५ ) । जंगय -- शिविका-विशेष - 'अवरे जंपाणेसु, अवरे जंगएसु' ( कु पृ २४ ) । जंगल -- जंगल, वन ( उसुटी प २३७ ) । जंगलिक -- जंगली ( अंवि पृ २२९ ) । जंगा -- गोचर भूमी, पशुओं के चरने की भूमि ( दे ३।४० ) । जंगोल -- विषापहार विद्या, विषविघातक तन्त्र (विपा १।७।१५ ) । जंघाछेअ -- चौराहा ( दे ३।४३ ) । जंघामअ -- तीव्र गति से चलने वाला ( दे ३।४२ ) । जंघालुअ -- तीव्र गति से चलने वाला ( दे ३।४२ ) । जंपण -- १ अकीर्ति । २ मुंह ( दे ३।५१ ) । जंपिच्छअ -- जिसको देखे उसी को चाहनेवाला ( दे ३।४४ वृ ) । जंपुलिग -- कुल्माष-विशेष - :जंपुलिगादि कुम्मासा' ( दअचू पृ १२४ ) । जंपेच्छिरमग्गिर -- जो-जो देखता है, उसी की मांग करनेवाला ( दे ३।४४) । जंबाल -- १ जरायु, गर्भवेष्टन चर्म ( स्था २।३६६ ) । २ सेवाल ( दे ३।४२ वृ ) । जंबालय -- सेवाल ( दे ३।४२ ) । जंबुअ -- १ वेतसवृक्ष, बेंत । २ पश्चिम दिक्पाल ( दे ३।५२ ) । जंबुल -- १ वानीर वृक्ष, बेंत ( दे ३।४१ ) । २ मदिरा - पात्र - 'जंबुलं मद्यभाजनमिति सातवाहनः' ( वृ ) । जंबुल्ल -- वाचाल ( पा १११ ) । जंबूका -- करधनी ( अंवि पृ ७१ ) । जंबूलय -- पात्र-विशेष ( उपा ७।७ ) । जंभ -- तुष, भूसा ( ति ६६१; दे ३।४० ) । जंभणअ -- इच्छानुसार बोलने वाला, स्वच्छंदभाषी ( दे ३।४४ ) । जंभणभण -- स्वच्छंदभाषी ( दे ३।४४ वृ ) । जंभल -- जड, मन्द ( दे ३।४१ ) । जक्खरती -- यक्षरात्री, दीवाली ( दे ३।४३ ) । जग -- जीव - 'विरते गामधम्मेहिं, जे केई जगई जगा' ( सू १।११।३३ ) । जगडिअ -- १ कदर्थित ( दे ३।४४) । २ लड़ाया हुआ । जगडिज्जंत -- उत्तेजित होते हुए - 'धन्नाणं तु कसाया जगडिज्जंता वि परकसाएहि' (चं १४१) । जगडित -- प्रेरित ( निभा ३५१ ) । जगल -- १ पंकवाली मदिरा, मदिरा का नीचे का भाग ( दे ३।४१ ) । २ पंकिल सरका - 'पंकिलसरको जगलं इत्यन्ये' ( वृ ) । जगार -- राब, यवागू ( प्रसाटी प ५१ ) । जगारी -- राब, यवागू - 'जगारीशब्देन समयभाषया रब्बा भण्यते' ( प्रसाटी प ५१ ) । जग्गह -- जो मिले वह लूटने की राजाज्ञा -'रन्ना जग्गहो घोसितो' ( आवचू १ पृ ३१८ ) । जग्गिक -- जंगम जीवों के रोम का बना वस्त्र ( अंवि पृ २३२ ) । जच्च -- पुरुष ( दे ३।४० ) । जच्चंदण -- १ गंध द्रव्य-विशेष, अगर । २ कुंकुम ( दे ३।५२ ) । जच्छंद -- स्वच्छंद, स्वतंत्र ( दे ३।४३ वृ ) । जच्छंदअ -- स्वच्छंद, स्वतंत्र ( दे ३।४३ ) । जडिअ -- जड़ित, खचित ( दे ३।४१ ) । जडियाइल -- एक महाग्रह ( स्था २।३२५ पा ) । जडियाइलग -- एक महाग्रह ( स्था २।३२५ ) । जडियाइलय -- एक महाग्रह ( चन्द्र २० ) । जडिलय -- राहु, ग्रह-विशेष ( सूर्य २० ) । जड्ड -- १ हाथी ( पिनि ३८६ ) । २ मोटा ( निचू ३ पृ ३ ) । ३ अशक्त, असमर्थ ( ति ११९३ ) । जड्डतरी -- जाडी, मोटी ( निचू ३ पृ ५१५ ) । जड्ढ -- रहित, त्यक्त ( प्रसाटी प ३८ ) । जढ -- परित्यक्त - 'वाहिओ वा अरोगी, वा सिणाणं जो उ पत्थए । वोक्कंतो होइ आयारो, जढो हवइ संजमो ॥ ( द ६।६० ) । जणउत्त -- १ ग्राम प्रधान, गांव का मुखिया । २ विट, भांड ( दे ३।५२ ) । जणक -- कान का कुंडल जैसा आभूषण- विशेष ( अंबि पृ १६२ ) । जणत्ता -- बराती ( आवहाटी २ पृ ४६ ) । जण्णत्ता -- बराती ( आवहाटी २ पृ ४६ ) । जण्णोहण -- राक्षस ( दे ३।४३ ) । जण्ह -- १ छोटी थाली । २ कृष्ण, काला ( दे ३।५१ ) । जण्हली -- नीवी, नारा ( दे ३।४० ) । जण्हुआ -- जानु, घुटना ( पा ८५९ ) । जप्पसरीर -- अनेक रोगों से ग्रस्त शरीर ( निभा ६३३७ ) । जमइत्ता -- अति परिचित कर, स्थिर कर - 'पुन: पुनरावर्तनेन अतिपरिचितं कृत्वा' ( औप २६ वृ ) । जमग -- पक्षि-विशेष, शकुनी ( जीवटी प २८६ ) । जमगसमगं -- एक साथ ( भ ९।१८२ ) । जमण -- विषम को सम करना - 'जमणं विसमाण समकरणं' ( निभा ६९४ ) । जमल -- एक साथ - 'महागइंददंतजुवल - जमलाहएण' ( कु पृ ५७ ) । जम्मपक्क -- मत्स्य-विशेष ( विपाटी प ८० ) । जयण -- घोड़े का बख्तर ( दे ३।४० ) । जयार -- एक प्रकार का अपशब्द - 'जत्थ जयार मयारं समणी जंपइ गिहत्थपच्चक्खं' ( ग ११० ) । जरंड -- वृद्ध ( दे ३।४० ) । जरड -- वृद्ध ( दे ३।४० वृ ) । जरढ -- १ जीर्ण, पुराना ( औप ५ ) । २ मजबूत ( से १।४३ ) । ३ कठिन ( ज्ञाटी प ५ ) । जरल -- चतुरिन्द्रिय जंतु-विशेष ( जीवटी प ३२ ) । जरलद्धिअ -- ग्रामीण ( दे ३।४४ ) । जरलविअ -- ग्रामीण ( दे ३।४४ ) । जरुला -- चतुरिन्द्रिय जीव-विशेष ( प्रज्ञा १।५१ ) । जलणीली -- सेवाल ( दे ३।४२ ) । जलूसक -- जलोदर रोग ( आवचू २ पृ १८१ ) । जल्ल -- १ शरीर का मैल ( भ १।४९ ) । २ रस्सी पर खेलने वाला नट ( जीव ३।६१६ ) । ३ स्तुति-पाठक ( नि ९।२२ ) -'जल्लाः राज्ञः स्तोत्रपाठकाः' ( चू २ पृ ४६८ ) । ४ एक म्लेच्छ देश । ५ जल्ल देश में रहने वाली जाति विशेष ( प्रटी प १५ ) । जल्लिय -- १ शरीर के मैल से खरंटित - 'वत्थस्स जल्लियस्स वा पंकियस्स वा ' ( भ ६।२३ ) । २ मल, शरीर का मैल - जल्लियं नाम मलो, णो कप्पइ उवट्टेउं' ( दजिचू पृ २७९ ) । जल्लिया -- शरीर का मैल - 'जल्लिया मलो' (दअचू पृ१८९ ) । जल्लूसत -- जलोदर ( आवहाटी २ पृ १३४ ) । जल्लूसय -- जलोदर रोग (आवहाटी २ पृ १३४ ) । जल्लोसहि -- एक तरह की आध्यात्मिक शक्ति जिसके प्रभाव से शरीर के मैल से रोग नष्ट होता है - 'खेलोसहिपत्तेहिं जल्लोसहिपत्तेहिं विप्पोसहिपत्तहिं सव्वोसहिपत्तेहिं' ( प्र ६।६ ) । जवअ -- यव अंकुर ( दे ३।४२ ) । जवण -- हल का ऊपरी भाग ( दे ३।४१ ) । जवरअ -- यव अंकुर ( दे ३।४२ ) । जहणरोह -- जंघा ( दे ३।४४ ) । जहणूसव -- अर्धोरुक, आधी साथल तक पहनने का वस्त्र, स्त्रियों का वस्त्र-विशेष ( दे ३।४५ ) । जहाजाअ -- जड, मूर्ख - 'जहाजायपसुभूया' ( प्र ३।२४; दे ३।४१ ) । जहिमा -- विद्वान् द्वारा रचित गाथा ( दे ३।४२ ) - 'तुह जहिमं तत्थ गायन्ति' ( वृ ) । जाइ -- १ गुल्म वनस्पति विशेष ( प्रज्ञा १।३८।२ ) । २ मदिरा ( दे ३।४५ ) । ३ मदिरा-विशेष - 'सुरं च महुं च मेरगं च जाई च' ( विपा २।२४ ) । जाइंभर -- मादक - 'जाइंभराइं मण्णे इमाइं णयणाइं होंति लोयस्स'( कु पृ २२४ ) । जाउ -- कपित्थ का फल ( बूटी पृ ५४ ) । जाउर -- कपित्थ वृक्ष ( दे ३।४५ ) । जाउलग -- गुच्छ वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।३७।५ ) । जाउलया -- क्षीरपेया ( ओटी प १९६ ) । जागु -- खाद्य-विशेष, लपसी आदि ( अंवि पृ ७१ ) । जाडी -- गुल्म, लता-प्रतान ( दे ३।४५ ) । जामइल्लय -- पहरेदार ( कु पृ १२३ ) । जामिलिका -- वस्त्र-विशेष ( अंवि पृ ७ ) । जार -- मणि का लक्षण-विशेष ( राज २४ ) । जारु -- अनंतकाय वनस्पति-विशेष ( भ २३।१ ) । जारुकण्ह -- गोत्र-विशेष ( स्था ७।३७ ) । जालगद्दह -- रोग-विशेष - 'एयस्स हत्थो पादो वा जालगद्दहमादिणा सडितो' ( निचू ३ पृ ४४८ ) । जालघडिआ -- अट्टालिका, अटारी ( दे ३।४६ ) । जाली -- सघन झाड़ी ( पा ८७६ ) । जावइ -- १ कन्द-विशेष ( उ ३६।९७ ) । २ गुच्छ वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।३७।५ ) । जावति -- वृक्ष-विशेष ( भ २२।१ ) । जाहे -- यदा, जब ( उशाटी प १४८ ) । जिंघिअ -- सूंघा हुआ ( पा ४९७ ) । जिंडह -- गेंद - 'जिंडहगेड्डिआइरमण' ( प्रसा ४३५ ) । जिंडुह -- कन्दुक ( प्रसा ४३५ ) । जिग्घिअ -- सूंघा हुआ ( दे ३।४६ ) । जिण्णोब्भवा -- दूब, दूर्वा ( दे ३।४६ ) । जिमिअ -- भुक्त ( बृभा ३६९५ ) । जिम्ह -- मंद - 'जिम्हीभवंति उदया कम्माणं' ( बृभा १२३ ) । जीण -- १ जीन, अश्व की पीठ पर बिछाया जाने वाला ऊनमय या चर्ममय आसन ( प्रसाटी प १९१ ) । जीणपोस ( फारसी ) । २ ऊन का बना वस्त्र-विशेष ( भटी पृ ११५२ ) । जीवयमई -- अन्य मृगों को आकर्षित करने के लिए शिकारी द्वारा बनाई गई कृत्रिम मृगी, व्याधमृगी ( दे ३।४६ ) । जुअल -- तरुण ( दे ३।४७ ) । जुअलिअ -- द्विगुणित, दुगुना ( दे ३।४७ ) । जुंगलिका -- त्रीन्द्रिय प्राणी-विशेष ( अंवि पृ २६७ ) । जुंगित -- जाति, कर्म या शरीर से हीन ( पंक २०१ )। जुंगिय -- १ खंडित ( पिनि ४४९ ) । २ जाति, कर्म या शरीर से हीन। ३ दूषित । जुंजिय -- बुभुक्षित, भूखा ( ज्ञाटी प ७३ ) । जुंजुरुड -- अपरिग्रही, परिग्रहरहित ( दे ३।४७ ) । जुक्कार -- प्रणाम ( बृटी पृ ५३ ) । जुगय -- पृथक् ( दहाटी प ४७ ) । जुण्ण -- विदग्ध, दक्ष ( दे ३।४७ ) । जुयक -- पृथक्, अलग ( दअचू पृ २५ ) । जुयग -- पृथक् - 'तओ जुयगं घरं कयं' ( आवहाटी २ पृ २०६ ) । जुरुमिल्ल -- गहन, निविड ( दे ३।४७ ) । जुरुमिल्लय -- गहन, गहरा ( दे ३।४७ पा ) । जुवय -- चन्द्र-प्रभा और संध्या-प्रभा का मिश्रण - 'सन्ध्याप्रभा चन्द्रप्रभा च यद्युगपद् भवतस्तत् जुयगोत्तिं भणितम्' ( स्थाटी प ४५१ ) । जुहार -- जयकार, जुहार, नमस्कार ( आवहाटी १ पृ ६७ ) । जुहार ( राज) । जूअअ -- चातक ( दे ३।४७ ) । जूयत - संध्या और चन्द्रमा की प्रभा का मिश्रण ( स्था १०।२० पा ) । जूरण -- खेदन ( सू २।२।३१ ) । जूरणया -- खेदन ( भ १२।५४ ) । जूरावणया -- खेदापन ( भ ३।१४५ ) । जूरिय -- खिन्न ( पा ५७५ ) । जूरुम्मिलय -- गहन ( दे ३।४७ वृ ) । जूवय -- १ ऐसा स्थान जिसके चारों ओर पानी हो - जूवय णाम विट्ठं (वीउं) पाणियपरिक्खित्तं ' ( निचू ४ पृ ५४ ) । २ द्यूतकार ( कु पृ १७२ ) । जूह -- कांजी, मांड या मूंग का पानी - जूहं च कांजिकं, तंदुलोदगं मुद्गरसो वा जूहं भण्णति' ( निचू ३ पृ १०३ ) । जे -- १ पाद पूर्ति में प्रयुक्त अव्यय ( उ २२।२१ ) २ अवधारण सूचक अव्यय। जेमण -- मीठा भोजन ( ओटी प ४९ ) । जेमणय -- दक्षिण अंग, दाहिना हाथ आदि ( दे ३।४८ ) । जोअ -- १ युगल ( ज्ञाटी प ४७ ) । २ चन्द्र, चांद ( दे ३।४८ ) । जोअण -- आंख, लोचन ( दे ३।५० ) । जोइंगण -- कीट-विशेष, इन्द्रगोप ( दे ३ । ५०) । जोइक्ख -- १ दीप - 'जोइक्खं तह छाइल्लयं च दीवं मुणेज्जाहि' ( व्यभा ७ टीप ६२ ) - 'जोइक्खशब्द: देश्यो दीपे वर्तते' ( प्रसाटी प ४६; दे ३।४९ ) । २ प्रदीप आदि का प्रकाश ( ओनि ६५४ ) । जोइज्जमाण -- दृष्ट ( अनु ३।५२ ) । जोइय -- १ दृष्ट, देखा हुआ ( आवचू १ पृ ५२८ ) २ खद्योत (दे ३।५०) । जोइर -- स्खलित ( दे ३।४९ ) । जोइल्लय -- कीट-विशेष, इन्द्रगोप ( आवचू २ पृ ८३ ) । जोइस -- नक्षत्र ( दे ३।४९ ) । जोई -- विद्युत् ( दे ३।४९ ) । जोक्ख -- मलिन ( दे ३।४८ ) । जोग्गा -- चाटु, खुशामद ( दे ३।४८ ) । जोड -- १ नक्षत्र ( दे ३।४९ ) । २ रोग विशेष । ३ जोड़ी, युगल । जोडिअ -- १ व्याध, शिकारी ( दे ३।४९ ) । २ जोड़ा हुआ, संयुक्त किया हुआ। जोडिऊण -- जोड़कर, संयुक्त कर - 'जोडिऊण करजुयलं कहिओ सुविणगवइयरो' ( उसुटी प ६३ ) । जोण्णलिआ -- धान्य-विशेष, जुआरि ( दे ३।५० ) । जोय -- युग्म, जोड़ा ( भ ११।१५९ ) । जोयण -- देखना - 'उवओग चंदजोयण, साहुत्ति विगिंचणे णाणं' ( जीभा १४१७ ) । जो रं - वाक्य के आदि में प्रयुक्त 'जो' का अर्थ है - यह तथा 'रं' का अर्थ है - निश्चय - 'जो रं च जो किरत्थम्मि' ( दे ३।४८ ) । जोव -- १ बिन्दु । २ अल्प ( दे ३।५२ ) । जोवण -- १ यन्त्र । २ धान्य का मर्दन । ३ धान की बुवाई - 'जोवणं-धान्यप्रकरः । प्रकरो मर्दनं धान्यस्य, लाटविषये जोवणं धण्णपइरणं भण्णइ ' ( ओटी पृ १६६ ) । जोवारि -- धान्य-विशेष, जुआरि ( दे ३।५० ) - 'जोवारी शब्दोऽपि देश्य एव ( वृ ) । जोव्वण -- मध्य भाग ( से २।१ ) । जोव्वणणीर -- वृद्धत्व, बुढ़ापा ( दे ३।५१ ) - 'जोव्वणणीरं तरुणत्तणे विजिएन्दिआण पुरिसाण' ( वृ ) । जोव्वणवेअ -- बुढ़ापा, वृद्धत्व ( दे ३।५१ ) । जोव्वणोवय -- बुढ़ापा, वृद्धत्व ( दे ३।५१ ) । जोहार -- जयकार, नमस्कार - 'जयोत्कारकरणं पित्रादीनाम्' ( प्रसाटी प १०५ ) । झ झंकक -- हाथ का आभूषण-विशेष - 'तधेव झंकको व त्ति कडगं खडुगं ति वा ' ( अंवि पृ ६४ ) । झंकारिअ -- अववयन, फूल आदि चुनना ( दे ३।५६) । झंख -- १ तुष्ट, तृप्त ( दे ३।५३ ) । झंखणय -- क्रोधी ( अनुद्वाहाटी पृ २९ ) । झंखर -- सूखा पेड़ ( दे ३।५४ ) । झंखरिअ -- फूलों को चुनना ( दे ३।५६ ) । झंझ -- कलह - 'अज्झीणझंझे पुरिसे, महामोहं पकुव्वइ' ( सम ३०।१।९ ) । झंझडिय -- डांट-फटकार - 'रिणे अदिज्जंते वणिएहिं अणेगप्पगारेहिं दुव्वयणेहिं झडिया - झंझडिया' ( निचू ३ पृ २७० ) । झंझा -- १ व्याकुलता ( आ ३।६६ ) । २ कलह ( स्था ८।१११) । ३ क्रोध । ४ माया ( सुटी १ पृ २४० ) । झंझिय -- बुभुक्षित ( ज्ञा १।१।१६० ) । झंटलिआ -- चंक्रमण, भ्रमण ( दे ३।५५ ) । झंटिय -- प्रहत, जिस पर प्रहार किया गया हो वह ( निचू ३ पृ २६४; दे ३।५५ ) । झंटी -- छोटे किन्तु खड़े केश ( दे ३।५३ ) । झंडली -- कुलटा, असती ( दे ३।५४ ) । झंडुअ -- पीलु का वृक्ष ( दे ३ । ५३ ) । झंडुली – १ असती, कुलटा । २ क्रीडा ( दे ३ । ६१) । झंपक -- बुझाने वाला - 'झंपको णिव्वावको' ( निचू १ पृ ७९) । झंपणा -- स्थगन, आच्छादन ( निमा २७०३) । झंपणी -- पक्षम, आंख की बरौनी, आंख के बाल ( दे ३।५४ ) । झंपिअ -- १ त्रुटित, टूटा हुआ । २ घट्टित, आहत ( दे ३।६१ ) । झंपित -- आहत ( व्यभा ७ टी प ३० ) । झंपुल्लिया -- ऊंची छलांग - 'झं पुल्लिया खेल्लणईं' ( कुपृ ११२ ) । झक्किअ -- लोकापवाद, लोक-निन्दा ( दे ३।५५ ) । झज्झरी -- स्वयं को कोई न छूए - 'यह बताने के लिए चांडाल आदि जाति के लोग अपने हाथ में एक यष्टि रखते हैं, वह । इखका दूसरा नाम 'खिक्खिरी' है ( दे ३।५४ ) । झड -- १ झडा हुआ - पत्र पुष्पों से रहित - 'वणसंडे••••जुणे झडे परिसडियपंडुपत्ते' ( राज ७८२ ) । २ शीघ्र ( बृटी पृ १३१६ ) । झडप्पड -- शीघ्र ( प्रा ४।३८८ ) । झडप्पिअ -- छीना हुआ ( दे ५।३४ वृ ) । झडिज्जंत– आहत होता हुआ, खिन्न होता हुआ वासेण झडिज्जंतं दट्ठूणं वानरं थरथरेंतं' (आवमटी प ३४५ ) । झडित -- झड़ा हुआ ( निचू ३ पृ २७० ) । झडिय -- १ डांटना, फटकारना ( निचू ३ पृ २७० ) । २ शिथिल, ढीला । ३ श्रान्त, खिन्न ( म ४४७ ) । ४ झड़ा हुआ, गिरा हुआ । झडी -- निरन्तर वर्षा ( दे ३।५३ ) । झड्ढरविड्ढरक्ष -- जादू-टोना ( व्यभा ४।३ टी प ४९ ) । झत्थ -- १ गत, गया हुआ । २ नष्ट ( दे ३।६१ ) । झपित -- कम्पित ( अंवि पृ १४३ ) । झमाल -- इन्द्रजाल ( दे ३।५३ ) । झरअ -- सुवर्णकार ( दे ३।५४) । झरंक -- तृण का बनाया हुआ पुरुष, चञ्चा ( दे ३।५५ ) । झरंत -- तृण पुरुष, चञ्चा ( दे ३।५५ वृ ) । झरक -- १ स्मरण करने वाला - 'सुत्तत्थे मणसा झायंतो झरको' ( नंदीचू पृ ८ ) । २ ध्यान करने वाला ( नंदी टी पृ १२ ) । झरणा -- १ स्मरण एवं सो झरणाए दुब्बलो जातो' ( आवचू १पृ ४१० ) । २ झरना, टपकना ( बृभा ६००७ ) । झरय -- ध्यान करने वाला - 'जो दुब्बलिओ सो झरओ' ( आवचू १ पृ ४०९ ) । झरुअ -- १ मच्छर, मशक ( दे ३।५४ ) । २ झींगुर - मशकवाचकशब्दाश्चीर्यामपि वर्तन्ते । यदाह - 'मशकाख्याश्चीर्यामप्युच्यन्ते काव्यत्तत्त्वज्ञैः' (वृ) । झलक्किय -- दग्ध, संतप्त ( प्रा ४।३६५ ) । झलज्झल -- पानी का शब्द ( ओटी प ३७६ ) । झलझलिआ -- थैली ( दे ३।५६ ) । झला -- मृगतृष्णा, मृगमरीचिका ( दे ३।५३) । झलुंकिअ -- जला हुआ, दग्ध ( दे ३।५६ ) । झलुसिअ -- जला हुआ ( दे ३।५६ ) । झल्लमल्ल -- परिपूर्ण, भरा हुआ ( विभाकोटी पृ २९४ ) । झस -- १ अयश, अकीर्ति । २ तट, किनारा । ३ छैनी से कटा हुआ । ४ तटस्थ, मध्यस्थ । । ५ दीर्घ - गंभीर, लंबा और गंभीर, बहुत गहन ( दे ३।६० ) । ६ शस्त्र-विशेष ( कु पृ १९८ ) । झसिअ -- १ पर्यस्त, उत्क्षिप्त । २ आक्रुष्ट, जिस पर आक्रोश किया गया हो वह ( दे ३।६२ ) । झसुर -- १ ताम्बूल, पान । २ अर्थ, प्रयोजन ( दे ३।६१ ) । झाउल -- कर्पास-फल, डोडा ( दे ३।५७ ) । झाड -- झाड़ी, निकुंज ( निचू ३ पृ २६७; दे ३।५७ ) । झाम -- दग्ध ( जीव ३।९६ ) । झामण -- जलाना ( जीभा २३२३ ) । झामणिक -- जलानेवाला (अंबिपृ २५४ ) । झामर -- वृद्ध, बूढा ( दे ३।५७ ) । झामल -- आंखों का रोग विशेष-पुत्तसोगेण य, से किल झामलं चक्खुं जायं रुयंतीए' ( आवहाटी १ पृ ९९ ) । झांवला ( राज ) । झामरो ( गुज ) । झामित -- दग्ध ( जीभा २३२१ ) । झामिय -- १ जलाया हुआ, दग्ध ( भ ५।५१; दे ३।५६ ) २ श्यामल । ३ कलंकित । झारुआ -- झींगुर, क्षुद्र कीट-विशेष ( दे ३।५७ ) । झिंखिअ -- लोकापवाद, लोक-निन्दा ( दे ३।५५ ) । झिंगिर -- त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष, झींगुर ( प्रज्ञा १।५० ) । झिंगिरिड -- त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष ( प्रज्ञा १।५० ) । झिंझिय -- बुभुक्षित, भूखा- 'आउरे झिंझिए पिवासिए तवस्सी' ( बृ ४।२८ ) । झिज्झिरि -- वल्ली-विशेष ( आचूला १।१०८ ) । झिज्झिरी -- वल्ली-विशेष (आचू पृ ३४१) । झिमिय -- जड़ता, शरीर के अवयवों का अकड़ जाना ( आ ६।८ ) । झिरिंड -- जीर्ण कूप (दअचू पृ १००, दे ३।५७) । झिल्लिय -- त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष, झिल्ली ( प्रज्ञा १।५० ) । झिल्लिरिआ -- १ 'चीही' नामक तृण । २ मशक, मच्छर ( दे ३।६२ ) । झिल्लिरी -- मछली पकड़ने का जाल-विशेष ( विपा १।८।१९ ) । झिल्ली -- १ अनंतकाय वनस्पति विशेष ( प्रज्ञा १।४८।४२) । २ तरंग । झीण -- १ अंग, शरीर । २ कीट ( दे ३।६२ ) । झीम -- मन्द - 'झी मीभवंति ति मंदीभवंति इति चूर्णौ' ( बृटी पृ ३८ ) । झीरा -- लज्जा ( दे ३।५७ ) । झुंख -- तुणय नामक वाद्य (आवचू १ पृ ३०९ ; दे ३।५८) । झुंझिडित -- सेवा करने वाला - 'झुंझिडिओ णाम उवचरतो' ( दश्रुचू प ५० ) । झुंझिय -- १ भूखा ( प्र ३।९ ) । २ मुरझा हुआ ( भ १६।४) । झुंझुमुसय -- मन का दुःख ( दे ३।५८ ) । झुंटण -- १ प्रवाह ( दे ३।५८ ) । २ पशु-विशेष । झुंपडा -- झौंपडी, कुटिया - मंहु कतहो गुट्ठट्ठिअहो कउ झुंपडा बलंति' ( प्रा ४।४१६ टी ) । झुंबनक -- लटकने वाला आभूषण, झूमका ( भंटी पृ ८७६ ) । झुझुरायित -- जीर्ण-शीर्ण (अंवि पृ १४८ ) । झुट्ठ -- असत्य ( दे ३।५८ ) । झुत्ती -- विच्छेद ( दे ३।५८ ) । झुपित -- दग्ध, झुलसा हुआ ( अंवि पृ १४८ ) । झुमुझुमुसय -- मन का दुःख ( दे ३।५८ वृ ) । झुरित -- क्षीण, मुरझाया हुआ ( भंटी पृ १२९७ ) । झुल्लुरी -- गुल्म ( दे ३।५८ ) । झुसिय -- बुभुक्षित - 'आउरे झुसि पिवासिए' ( भ १६।५२ ) । झूर -- टेढा, कुटिल ( दे ३।५९ ) । झूसरिअ -- १ अत्यन्त । २ स्वच्छ, निर्मल ( दे ३।६२ ) । झूसिय -- १ बुभुक्षित - 'आउरं झूसियं पिवासियं' ( अंत ३।९५ ) । २ परित्यक्त, क्षपित ( स्थाटी प २२५ ) । झेंडुअ -- गेंद, कन्दुक ( दे ३।५९ ) । झेर -- पुराना घण्टा ( दे ३।५९ ) । झोंडलिआ -- रास के सदृश एक प्रकार की क्रीडा ( दे ३।६० ) । झोट्टी -- अप्रसूत अवस्था वाली भैंस ( दे ३।५९ ) । झोड -- पत्रविहीन वृक्ष, ठूंठ ( ज्ञा १।११।२ ) । झोडण -- शाटन, पातन ( प्र १।३५ ) । झोडप्प -- १ चना ( दे ३।५९ ) । २ सूखे चने का शाक- 'झोडप्पो चणकधान्यम् । शुष्कचणकशा कमित्यन्ये' ( वृ ) । झोडय -- वीणा-विशेष ( नि १७।१३७ ) । झोडिअ -- बहेलिया, व्याध, शिकारी ( दे ३।६० ) । झोलिआ -- १ शिविका-विशेष ( कु पृ २४ ) । २ थैली, झोली ( दे ३।५६ ) । झोलिका -- झोली, थैली - 'झोलिकाशब्दो यदि संस्कृते न रूढस्तदायमपि देश्य:' ( दे ३।५६ वृ ) । झोस -- १ समीकरण - 'झोस त्ति वा समकरणं ति वा एगट्ठं' ( निचू ४ पृ ३२३ ) । २ झाड़ना, दूर करना । झोसण -- १ क्षपणा, छोड़ना - 'झोसण खवणा मुंचण एगट्ठा' ( जीभा २२७६ ) । २ आसेवन, मार्गण - आभोगणं ति वा मग्गणं ति वा झोसणं ति वा एगट्ठं' ( व्यभा ४।१ टी प २४ ) । ट टंक -- १ तलवार ( प्र १।२८; दे ४।४ ) । २ एक दिशा में छिन्न पर्वत - 'छिन्नं तडं टंकं' ( नंदीचू पृ ६४ ) । ३ किनारा ( निचू १ पृ ४४; दे ४।४ ) । ४ भित्ति ( उसुटी प १९५; दे ४।४ ) । ५. कुदाल । ६ छिन्न, काटा हुआ । ७ खात. खुदा हुआ जलाशय । ८ जंघा ( दे ४।४ ) । टंकण -- टंकण देश में रहने वाली म्लेच्छजाति, पर्वतीय लोग - 'अक्कोसे सरणं जंति टंकणा इव पव्वयं' ( सू १।३।५७ ) । टंका -- जंघा ( पा ८५१ ) । टंकिअ -- फैला हुआ ( दे ४।१ ) । टंबरअ -- भारी ( दे ४।२ ) । टक्क -- म्लेच्छ जाति ( कु पृ १५३ ) । टक्कर -- १ मुद्गरविशेष ( प्रटी प ४८ ) । २ ठोकर, आघात ( उसुटी प १३ ) । टक्करा -- टकोरा, मुंड - 'सिर पर अंगुली का आघात (निचू ४ पृ ३१२ ) । टक्कारा -- टकोरा, आघात ( व्यभा २ टी प ५२ ) । टक्कारिआ -- अरणि का फूल ( दे ४।२ ) । टक्कारी -- १ वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । २ अरणि का फूल ( दे ४।२ वृ ) । टट्टइआ -- पर्दा ( दे ४।१ ) । टप्पर -- १ विकराल कान वाला ( प्रटी प ८१ ) । २ छाज के आकार के कान ( उपाटी पृ ९६ ) । टप्परअ -- विकराल कान वाला ( दे ४।२ ) । टमर -- केशों का समूह ( कु पृ ७३ ; दे ४।१ ) । टसर -- १ सूती वस्त्र ( निचू २ पृ ६८ ) । २ मोड़ना ( दे ४।१ ) । टसरोट्ट -- अवतंस ( दे ४।१ ) । टार -- १ दुष्ट अश्व ( दे ४।२ ) । २ टट्टू, छोटा घोड़ा । टाल -- फल की वह अवस्था जिसमें गुठली न पड़ी हो ( द ७।३२ ) - 'टालाणि नाम अबद्धट्ठिगाणि भन्नंति' ( जिचू पृ २५६ ) । टिंबरु -- तेंदू का वृक्ष ( दे ४।३ ) । टिंबरुय -- तेंदु का वृक्ष ( दजिचू पृ १८४ ) । टिक्क -- १ तिलक ( दे ४ । ३ ) । २ सिर पर फूलों का गुच्छा ( वृ ) । टिक्किद -- तिलक वा 'टीकी' से विभूषित - मंडियटिक्किदविभूसिया एगा साहुणी' ( उसुटी प ५४ ) । टिग्घर -- स्थविर, वृद्ध ( दे ४।३ ) । टिट्टि -- टिट्-टिट् की आवाज, बछड़े आदि को प्रतिषेध करने का शब्द ( बृभा ७७ ) । टिट्टिभीय -- टिट्टिभ, टि-टि करने वाला प्राणी ( अंवि पृ १८३ ) । टिप्पी -- तिलक ( दे ४।३ ) । टिविडिक्किय -- अलंकृत, विभूषित - 'संजइं पासति मंडिय-टिविडिक्किया' ( उशाटी प १३८ ) । टुंट -- छिन्न-हस्त, कटे हुए हाथ वाला ( प्रसा ७९५; दे ४।३) । टुंटय -- छिन्न-हस्त ( दे ४।३ वृ ) । टेंकण -- चतुरिन्द्रिय जंतु-विशेष ( जीवटी प ३२ ) । टेंटा -- १ जुआ खेलने का स्थान ( दे ४।३ ) । २ अक्षि-गोलक । ३ छाती का शुष्क व्रण । टेंटिअ -- द्यूतक्रीडा के स्थान पर रहने वाला ( दे ४।३ वृ ) । टेंबरूय -- तेंदु का फल ( आटी प ३४९ ) । टेक्कर -- स्थल, प्रदेश ( दे ४।३ ) । टेक्करय -- स्थल ( दे ४।३ वृ ) । टेट्टिकालक -- पक्षी-विशेष ( अवि पृ २३८ ) । टेट्टिवालक -- चित्र विचित्र रंगों वाला पक्षी विशेष, तितली ( ? ) ( अंवि पृ २२५ ) । टेणग -- झाग ( अनुद्वाचू पृ १३ ) । टोक्कण -- दारू मापने का बर्तन ( दे ४।४ ) । टोक्कणखंड -- दारु मापने का पात्र ( दे ४।४ वृ ) । टोक्कर -- जाली या डोरी ( बृटी पृ १६४१ ) । टोप्परिया -- पात्र-विशेष ( आवहाटी १ पृ २७५ ) । टोल -- १ अप्रशस्त ( जंबू २।१३३ ) । २ ऊंट ( भटी प ३०८ ) । ३ टिड्डी -- 'टोलोव्व उप्फिडंतो' ( प्रसा १५७ ) । ४ शलभ - टोलोव्व मा पड तुमं उज्जाणे ( दे ४।४ ) । ५ पिशाच - 'टोलं पिशाचमाहुः सर्वे शलभं तु राहुलकः' ( वृ ) । ६ टोली, यूथ । टोलंब -- महुआ का पेड़ ( दे ४।४ ) । 'टोल' गति -- १ टेढ़ी-मेढ़ी गति ( भ ७।११९ ) । २ गुरुवंदन का एक दोष, टिड्डी की तरह फुदक- फुदक कर वंदना करना ( प्रसाटी प ३६ ) । टोला -- टिड्डी - 'टोला तिड्डया इति चूर्णौ विशेषचूर्णौ' ( बृटी पृ ६७५ ) । टोल्ल -- मुंड सिर पर अंगुली का आघात, ठुनकाना ( व्यभा १ टी प १३ ) । ठोला मारना ( राज ) । ठ ठइअ -- १ उत्क्षिप्त ( दे ४।५ ) । २ अवकाश ( वृ ) । ठक्कुर -- ठाकुर ( बृटी पृ ५४ ) । ठरिअ -- १ सम्मानित । २ ऊर्ध्वस्थित ( दे ४।६ ) । ठल्ल -- निर्धन ( दे ४।५ वृ ) । ठल्लय -- निर्धन ( दे ४।५ ) ठविआ -- प्रतिमा ( दे ४।५ ) । ठाग -- अवकाश, स्थान ( बृभा ४८५० ) । ठाण -- अभिमान ( दे ४।५ ) । ठाणइल्ल -- कोतवाल - 'ठाणइल्ला रायपुरिसा गहण-कड्ढणं करेज्ज' ( निचू ३ पृ १९९ ) । ठाणिज्ज -- १ सम्मानित ( दे ४।५ ) । २ गौरव । ठिअअ -- ऊर्ध्व, ऊंचा ( दे ४।६ वृ ) । ठिक्क -- शिश्न, पुरुष - चिह्न ( दे ४।५ ) । ठिक्करिया -- ठीकरी, कपाल - 'ठिक्करियं अच्चेहि' ( भावहाटी १ पृ २६४ ) । ठिक्किरिया -- ठीकरी, घड़े का टूटा हुआ अंश - 'सरक्खाणं ढुक्काहि ठिक्किरियं च अच्चेहि' ( आवचू १ पृ ५२२ ) । ठियल्ल -- अवस्थित ( उसुटी प ७२ ) । ठिविअ -- १ ऊर्ध्व । २ निकट । ३ हिचकी ( दे ४।६ ) । ठुंठ -- स्थाणु - 'छिन्नावशिष्टवनस्पतीनां शुष्कावयवाः ठुंठा इति लोकप्रसिद्धाः' ( जंबूटी प ६६ ) । ठोठिका -- एक प्रकार की मिठाई ( प्रसाटी प ५१ ) । ड डआलुय -- नौका-विशेष ( अंवि पृ १४६ ) । डउर -- जलोदर रोग ( निभा २६५ ) । डंक -- १ ( बिच्छू आदि का ) दंश ( प्र १।२३ ) । २ क्षत-विक्षत ( निचू २ पृ८८ ) । डंगर -- नीच जाति के लोग - 'डंगरा पादमूलिया' ( निचू ३ पृ ५२१ ) । २ लाठी रखने वाले चोर- लाकुटिका: डङ्गराः' ( बृटी पृ ११५७ ) । डंड -- वस्त्र के जोड़े हुए टुकड़े ( दे ४।७ ) । डंडअ -- रथ्या ( दे ४।८ ) । डंडपरिहार -- जीर्ण-शीर्ण बड़ी कंबल - 'महंता जुण्ण कंबली सरडिता डंडपरिहारो भण्णति' ( निचू २ पृ ३२२ ) । डंडि -- सांधा हुआ जीर्ण वस्त्र ( निचू ३ पृ ६० ) । डंडी -- सिले हुए वस्त्र-खण्ड ( दे ४।७ वृ ) । डंबर -- घर्म, गर्मी ( दे ४।८ ) । डंभण -- सूची की भांति तीक्ष्ण शस्त्र - विशेष ( विपा १ । ६।२१ ) । डंभिअ -- द्यूतकार ( दे ४।८ ) । डक्क --१ सांप द्वारा डसा हुआ ( निचू १ पृ ८२ ) । २ दन्तगृहीत ( दे ४।६ ) । ३ वाद्य-विशेष । डक्कुरिज्जंत -- पीड़ित होता हुआ - 'महाणगरडाहे वा डक्कुरिज्जंतेसु वा णगरगामेसु वा समंता हाहाकाररवा' ( सूचू १ पृ १३१ ) । डगण -- यान-विशेष ( बृभा ३१७१ ) । डगल -- १ फल का छोटा और विषम गोल टुकड़ा ( नि १५।७ ) । २ खण्ड - 'डगलं तु होइ खंडं' ( निभा ४६९८ ) । ३ आधाभाग - 'डगलं अद्धं भण्णति' (निचू ३ पृ ४८२) । ४ ईंट का टुकड़ा ( ओनि ३६० ) । ५ पाषाण-खंड ( ओभा ७८ ) । डगलग -- ईंट, पाषाण आदि के टुकड़े ( पिनि ३७ ) । डग्गल -- घर के ऊपर का भूमितल ( दे ४।८ ) । डागला ( राजस्थानी ) । डड्ढाडी -- दवमार्ग, अग्निमार्ग ( दे ४।८ ) । डड्ढाली -- दवमार्ग, दावानल से निर्मित मार्ग ( दे ४।८ पा ) । डप्फ -- सेल्ल नामक आयुध ( दे ४।७ ) । डब्ब -- बायां - 'चउरंगुल मुहपत्ती उज्जुए डब्बहत्थ रयहरणं' ( आवनि १५४५ ) । डमर -- अशोभनीय - 'पच्चंता करिति डमराईं' (आवहाटी २ पृ ४५) । डल -- लोष्ट, मिट्टी का ढेला ( दे ४।७ ) । डल्ल -- १ बांस की बड़ी छाबड़ी - ' गवां चरणार्थं यद्वंशदलमयं महद्भाजनं तद्गोकिलञ्जं डल्ले त्ति यदुच्यते' ( उपाटी पृ ९६ ; दे ४।७ ) । डल्ला -- बांस का बना हुआ भाजन-विशेष ( भटी प ३१३ ) । डव्व -- बायां हाथ ( दे ४।६ ) । डहर -- १ बालक ( सू १।२।२; दे ४।८ ) । २ छोटा - जे यावि नागं डहरं ति नच्चा आसायए से अहियाय होइ' (द ९।१।४ ) । ३ अकुलीन - 'डहरो अकुलीणोत्ति' ( जीवि प पृ ४१ ) । डहरप्फर -- हड़बड़ाहट ( दअचू पृ८ ) । डहरय -- छोटा (उसुटी प २४ ) । डहराक -- छोटा ( अंवि पृ ११९ ) । डहरिया -- छोटी, अठारह वर्ष तक की लड़की ( आवचू २ पृ १५४ ) । डहरी -- १ छोटी ( दश्रुनि ५ ) । २ अलिञ्जर, मिट्टी का घड़ा ( दे ४।७ ) । डाअ -- पत्ती वाला हरित शाक-विशेष ( दश्रु ३।३ ) । डाअल -- नेत्र, लोचन ( दे ४।९ ) । डाउ -- १ फलिहंसक वृक्ष । २ गणपति की प्रतिमा विशेष ( दे ४।१२ ) । डाग -- १ पत्ती वाला शाक ( जीभा १२१३ ) । २ हरा शाक - मूलफलं हरियगं डागो' ( पंक ७२८ ) । ३ डाली ( आटी प ४११ ) । डागल -- फल का गोल टुकड़ा ( नि १५।७ ) । डागवच्च -- पत्र प्रधान शाक सुखाने का स्थान ( आचूला १०।२६ ) । डामित -- झामित, जलाया हुआ ( व्यभा ७ टी प ५५ ) । डाय -- १ बैंगन, ककड़ी, चना, पत्ती आदि का शाक । २ मसालों से पकाई हुई बथुआ, राई आदि की भाजी ( प्रसा १३९ ) । डायलअ -- चक्षुष्मान्, आंख वाला - 'ता तरलिअडायलओ गुत्तिद्रहे डिड्डरोव्व डिंफेसु' ( दे ४।९ वृ ) । डायलअ -- हर्म्यतल, प्रासाद-भूमि ( निचू २ पृ ३६ ) । डाल -- वृक्षशाखा ( निचू ३ पृ २४ ) । डालग -- १ शाखा का एक भाग - 'डालग त्ति शाखैकदेश:' (आटी प ३५४ ) । २ सूक्ष्म खण्ड ( आटी प ४०५ ) । डालय -- शाखा ( ज्ञा १।३।१८ ) । डाला -- वृक्ष की शाखा ( पा ३३३ ) । डाली -- शाखा ( निचू ३ पृ ४७२ ; दे ४।९ ) । डाव -- वाम हस्त, बांया हाथ ( निर १।३८ ; ४।६ ) । डावो ( राज, गुज ) । डिअली -- स्थूणा, खम्भा ( दे ४।९ ) । डिंडि -- सिले हुए वस्त्र-खंड ( दे ४।७ ) । डिंडिबंध -- गर्भ-संभव ( पंक २४४ ) । डिंडिम -- १ कांस्य पात्र ( आचूला १।१४५ ) । २ गर्भ-संभव ( निचू २ पृ २६० ) । डिंडिल्लिअ -- १ तैल-किट्ट से व्याप्त वस्त्र, खलि - खचित वस्त्र ( दे ४।१० ) । २ स्खलित हस्त ( वृ ) । डिंडिल्लिअय -- स्खलित हस्त ( दे ४।१० वृ ) । डिंडुर -- मेंढक ( दे ४।९ वृ ) डिंफ -- जल - 'डिड्डुरो व्व डिंफेसु' ( दे ४।९ वृ ) । डिंफिअ -- पानी में गिरा हुआ ( दे ४।९ ) । डिक्क -- बालक ( आवचू १ पृ ४६९) । डिक्कर -- पुत्र ( आवहाटी १ पृ ६२ ) । डीकरो ( गुज) । डिक्करिका -- छोटी कन्या ( आटी प ४१३ ) । डीकरी ( गुज ) । डिक्करुका -- लड़की ( आवचू २ पृ २९० ) । डिक्करूव -- बालक - 'एए पव्वइया डिक्करूवाणि घेत्तुं मारेंति' ( उसुटी प २०५ ) । डिड्डर -- मेंढक ( दे ४।९ ) । डिड्डुर -- मेंढक ( दे ४।६ वृ ) । डिप्फर -- आसन-विशेष - 'डिप्फरो पीढफलकं सत्थियं तलियं ति वा' ( अंवि पृ ६५ ) । डिलय -- शाखा - 'डिलयम्मि ओलइया' ( जीभा ५३८ ) । डीण -- अवतीर्ण ( आचू पृ ८५ ; दे ४।१० ) । डीणोवय -- ऊपर ( दे ४।१० ) । डीर -- नया अंकुर, कन्दल ( दे ४।१० ) । डुंग -- १ शिलाओं का उपचय । २ चोरों का समुदाय - डुंगानि शिलावृन्दानि चोरवृन्दानि वा' ( जंबूटी प १६८ ) । डुंगर -- १ छोटी पहाड़ी । २ चोरों की बस्ती ( जंबूटी प १६८ ) । ३ पर्वत ( दे ४।११ ) । डुंघ -- नारियल का बना पात्र जो पानी निकालने के काम आता है ( दे ४।११ ) । डुंडुअ -- १ पुराना घण्टा ( दे ४।११ ) । २ बडा घंटा । डुंब -- १ महावत ( पिनि ३८७ ) । २ चाण्डाल ( सूचू २ पृ ३५७; दे ४।११ ) । डुंबिय -- चांडाल ( निचू २ पृ २६६ ) । डुपक -- नाव ( अंकि पृ ७९ )। डेप -- १ गहरा - 'डेपकूपे प्रतिबिम्बं मरुकूपसदृशमतीवोण्डं कूपं दृष्वेत्यर्थः' । २ प्रतिक्षेपण, गिराना ( व्यभा ४।३ टी प ९ ) । डेपन -- लंघन, अतिक्रमण ( व्यभा ४।३ टी प ६ ) । डेरग -- छोटा, लघु ( आवहाटी १ पृ २७० ) । डेवण -- कूदना - फांदना - 'डेवणं गत्तवरंडाई फडणं' ( जीविप पृ ३४ ) । डेवेमाण -- प्लवमान ( भ १३।१५५ ) । डोअ -- दाल-शाक आदि परोसने की काष्ठ - 'निर्मित बड़ी कड़छी ( नंदी ३८।९ ; दे ४।११ ) । डोयो ( गुज) । डोअण -- लोचन ( द ४।९ ) । डोंगर -- १ छोटी पहाड़ी ( जंबू २ । १३१) । २ ढेर, टीला - 'छारेण डोंगरा कता' (आवचू १ पृ २२३) । ३ पर्वत ( ओटी प २० ) । डोंगिली -- १ ताम्बूल का भाजन-विशेष ( दे ४।१२ ) । २ पान बेचने वाली स्त्री ( वृ ) । डोंगी -- १ स्थासक - 'कुंकुम आदि से लिप्त हथेली का छापा । २ पान रखने का पात्र-विशेष, पानदानी' ( दे ४।१३) । डोंडिणी -- ब्राह्मणी ( आवहाटी १ पृ ३७ ) । डोंब -- १ चाण्डाल, डोम ( प्र १।२१ ) । २ महावत ( बृभा ४१२४ ) । देश-विशेष ( प्रज्ञा १।८९ ) । ४ पटह बजाने वाला - किं कोइ डोंबडिंभो पडहयसद्दस्स उत्तसई' ( कु पृ ३८ ) । डोंबिल -- डोम, चाण्डाल ( जीभा ४२५ ) । डोंबिलग -- १ एक अनार्य जाति । २ म्लेच्छ देश-विशेष ( प्रज्ञा १।८९ ) । डोंबिल्लिय -- अनार्य जाति का नृत्य, वादन आदि ( कु पृ १५० ) । डोंबी -- कर्ण पिशाचिनी, चांडाली ( पंवटी प २३२ ) । डोड -- ब्राह्मण ( उसुटी प ५८ ) । डोडकित -- वनस्पति की वह अवस्था जिसमें अनाज के 'डोडे' उत्पन्न हो गये हों ( ज्ञाटी प १२५ ) । डोडिणी -- ब्राह्मणी ( अनुद्वा ९८ ) । डोड्डग -- आक का डोडा - 'अक्कडोड्डगाइ तूलभरिया वा तूली' ( निचू ३ पृ ३२१ ) । डोड्डिनी -- ब्राह्मणी ( स्थाटी प १४४ ) । डोतीय -- बड़ा चम्मच ( जीभा १२११ ) । डोभ -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । डोल -- १ चतुरिन्द्रिय जीव-विशेष, टिड्डी ( उ ३६।१४७ ) । २ फल-विशेष, मधूक ( प्रसा २१९ ) । ३ अक्षिगोलक- 'बेवि अक्खिडोलए पाडेति' ( आचू पृ २२६ ) । ४ आंख ( दे ४।९ ) । डो ला -- १ शिविका ( दे ४।११ ) । २ हिंडोला, झूला ( पा ७४१ ) । ३ टिड्डी - 'डोला : तिड्डका उच्यन्ते' ( बूटी पृ ६७५ ) । डोलिअ -- काला हिरण ( दे ४।१२ ) । डोलिका -- बैठने की डोली ( जंबूटी प १२३ ) । डोव -- १ म्लेच्छ जाति ( निचू १ पृ १०३ ) । २ कड़छी ( आवटि प ६१ ) । डोवलिय -- शाक आदि परोसने का काष्ठ-पात्र ( आवहाटी २ पृ २४४ ) । डोविलिय -- शाक आदि परोसने का काष्ठ-पात्र ( आवचू २ पृ ३१० ) । डोहल -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । डोहिय -- फल की अस्थिविहीन अवस्था ( आचू पृ ३४१ ) । ढ ढंक -- १ जंगली कौआ, मांसभक्षी पक्षी - 'सियाल- णंतिक्क-ढंकादी' ( जीभा २४६७ ) । २ जलचर पक्षि - विशेष -••••जातिरेव••••••एते हि न तृणाहाराः केवलोदकाहारा वा' ( सूचू १ पृ २०१ ) । ३ मांसभक्षी क्षुद्र जीव ( सूटी १ प २४९ ) । ४ कौआ ( दे ४।१३ ) । ढंकण -- ढक्कन, पिधानक ( अनुद्वा ) । ढंकणी -- पिधानिका, ढकनी ( दे ४।१४ ) । ढंकराली -- बडे पक्षी-विशेष - 'महासकुणा दिग्घग्गीवा••••पारिप्पव-ढंकरालीओ' ( अंवि पृ २३९ ) । ढंकुण -- १ वाद्य-विशेष ( आचूला ११।२ ) । २ खटमल ( जंबूटी प १२४; दे ४।१४ ) । ढंखरिअ -- विशेष प्रकार की वीणा रखने वाला ( दे ४ । १४ वृ ) । ढंखरी -- वीणा का एक प्रकार ( दे ४।१४ ) । ढंढ -- १ पङ्क । २ निरर्थक ( दे ४।१६ ) । ३ कपटी, दाम्भिक । ढंढणी -- १ तृण-विशेष ( बृटी पृ २०६ ) । २ कपिकच्छु का वृक्ष ( दे ४।१३ ) । ढंढर -- १ पिशाच । २ ईर्ष्या ( दे ४।१६ ) । ढंढरिअ -- कर्दम ( दे ४।१५ ) । ढंढसिअ -- १ ग्रामयक्ष ( दे ४।१५ ) । २ ग्रामवृक्ष ( वृ ) । ढंढा -- भेरी - 'णेहो त्ति णाम डड्ढं ( ढंढं ? ) भणियं मज्झण्हढंढाए' ( कु पृ १९९ ) । ढंसय -- अपयश ( दे ४।१४ ) । ढक्क -- म्लेच्छ जाति-विशेष ( कु पृ १५३ ) । ढक्कण -- ढक्कन - 'संवरं ढक्कणं पिहाणं ति एगट्ठा' ( जीचू पृ ५ ) । ढक्कय -- तिलक ( दे ४।१४ ) । ढक्करि -- अद्भुत ( प्रा ४।४२२ ) । ढक्कवत्थुल -- एक प्रकार की भाजी ( प्रसा २३९ ) । ढक्किय -- १ आच्छादित ( पिनि १६८ ) । २ वृषभ की आवाज ( उसुटी प १३५ ) । ढड्ढ -- भेरी ( दे ४।१३ ) । ढड्ढर -- १ तेज आवाज ( बृभा २५९१ ) । २ गुरुवन्दन का एक दोष - 'ऊंचे स्वर से वन्दन करना' ( प्रसा १७३ ) । ढमर -- १ पिठर, स्थाली । २ उष्णजल ( दे ४।१७ ) । ढयर -- १ पिशाच । २ ईर्ष्या ( दे ४।१६ ) । ढावरा -- बालक ( अंवि पृ ६६ ) । डावरा ( राजस्थानी ) । ढिउल्लिका -- पुतली ( पिटी प ६ ) । ढिंक -- बड़ा काक ( प्रटी प १० ) । ढिंकिय -- वृषभ की गर्जना - 'वसभं ढिंकिएणं' ( अनुद्वा ५२२ ) । ढिंकुण -- १ खटमल ( जंबू २।४० ) । २ गौ आदि को लगने वाला क्षुद्र जंतु विशेष 'चींचड' ( उ ३६।१४६ ) । ढिंढ -- जल में गिरा हुआ - 'दिट्ठो कह वि मह पई ढिंढो' ( दे ४।१५ वृ ) । ढिंढय -- जल में गिरा हुआ ( दे ४।१५ ) । ढिक्कय -- नित्य ( दे ४।१५ ) । ढिक्किय -- वृषभ का शब्द - 'वसभढिक्कियाइ' ( अनुद्वाचू पृ १३ ) । ढुंढुल्लिअ -- खोजा हुआ ( पा ५२९ ) । ढुक्कड -- उपस्थित, मिलित - 'इमं समोसरणं ढुक्कडं' ( सूचू २ पृ ४१४ ) । ढेंका -- १ ढेंकुवा पक्षी ( निचू १ पृ १०३ ) । २ हर्ष । ३ कूपतुला ( दे ४।१७ ) । ढेंकी -- बलाका ( दे ४।१५ ) । ढेंकुण -- खटमल ( दे ४।१४ ) । ढेंढिअ -- धूपित ( दे ४।१६ ) । ढेकुय -- कूप तुला - 'दो जणा ढेकुयादव रकेण•••••बद्धा' ( आवमटी प २७९ ) । ढेक्किय -- सांड की गर्जना- 'गोट्ठंगणस्स मज्झे ढेक्कियसद्देण जस्स भज्जंति' ( आवहाटी २ पृ १५३ ) । ढेणिआल -- टिड्डी ( अंतटी पृ ४ ) । ढेणिकाल -- कीट-विशेष ( अनुटी पृ ४ ) । ढेणियालग -- पक्षि-विशेष ( प्र १।९ ) । ढेणियालिया -- पक्षि-विशेष ( अनु ३।३३ ) । ढेल्ल -- निर्धन ( दे ४।१६ ) । ढेल्लिका -- नितम्ब (अंवि पृ ११४ ) । ढेल्लिय -- ढेला, मृत्खंड ( अंवि पृ २१५ ) । ढेल्लिया -- मिट्टी का ढेला ( अंवि पृ २१५ ) । ढोइत -- प्रविष्ट ( निचू २ पृ २८५ ) । ढोंघर -- भ्रमणशील ( दे ४।१६ वृ ) । ढोंघरय -- भ्रमणशील ( दे ४।१६ ) । ढोंढसिव -- भगवान् महावीर के समय से प्रचलित ग्राम देवता - 'ततो तप्पभिईं ढोंढसिवो पवत्तो' ( आवमटी प २९१ ) । ढोक्कणिय -- आच्छादन - 'कुतित्थाणि य जाणासि, अच्छिढोक्कणियाणि य' ( आवहाटी २ पृ ४८ ) । ढोय -- गमन, प्रवेश - 'चेल्लणाइ कयाइ ढोयं न देइ' ( आवहाटी २ पृ १२९ ) । ढोल्ल -- १ प्रिय ( प्रा ४।३३० ) । २ पटह, ढोल । ३ देशविशेष । ण णइकुक्कुडिका -- जलचर पक्षि-विशेष ( अंवि पृ २३८ ) । णइमासय -- पानी में होने वाला फल-विशेष ( दे ४।२३ ) । णउत -- संख्या-विशेष - 'चतुरशीतिर्नयुताङ्गशतसहस्राणि एकं नयुतम्' ( स्थाटी प ३४५ ) । णउलग -- नौली, रुपयों की थैली ( उसुटी प ११८ ) । णं -- पादपूरक अव्यय - 'णगारो देसिवयणेण पायपूरणे, जहा-समणे णं रुक्खा णं गच्छा णं ति' ( निचू १ पृ २९ ) । णंकार -- पादपूर्ति के लिए प्रयुक्त होने वाला शब्द - णंकार पूरणे देसीभाषातो वा' ( सूचू १ पृ १४२ ) । णंगणिगा -- नग्नभाव - 'नग्नभावो हि णंगणिगा स्यात्' ( सूचू १ पृ १५९ ) । णंगर -- लंगर, जहाज को जल-स्थान में थामने के लिए पानी में डाला जाने बाला लोहे या पत्थर का साधन ( ज्ञाटी प १६५ ) । णंगल -- लांगूल, पूंछ - 'गद्दभनंगलेण गाहाविया' ( आवहाटी २ पृ १३१ ) । णंत -- वस्त्र - 'णंतमिति देशीवचनं वस्त्रवाचकम् ( आवमटी प ८८ ) । णंतक -- कपड़ा ( आवचू २ पृ २११ ) । णंतग -- वस्त्र - 'उग्गह णंतग पट्टो अड्ढोरुग' ( पंक १४८१ ) । णंतिक्क -- १ बुनकर, जुलाहा - णंतिक्क- रयग- देवड-डोंबिल-पाडहिय रायपहे' ( जीभा ४२५ ) । २ पशु-विशेष - 'अण्णे वि अत्थि संघा, सियाल णंतिक्क ढंकादी' ( जीभा २४६७ ) । ३ वस्त्र छापने वाला, छींपा ( व्यभा १० टी प ६६ ) । णंतुका -- पक्षिणी-विशेष ( अंवि पृ ६९ ) । णंद -- १ ईख पेरने का काण्ड । २ कुंडा, पात्र विशेष ( दे ४।४५ ) । ३ लोहे, का वृत्त आसन-विशेष ( ज्ञाटी प ४७ ) । णंदण -- १ भृत्य, नौकर ( दे ४।१९ ) । २ एक प्रकार का सुगन्धित वृक्ष ( कु पृ १४९ ) । णंदा -- गाय ( दे ४।१८) । णंदिअ -- सिंहनाद, सिंह का दहाड़ना ( दे ४।१९ ) । णंदिक्ख -- सिंह ( दे ४।१९ ) । णंदिणी -- गाय ( दे ४।१८ ) । णंदिविणद्धण -- सिर का आभूषण-विशेष ( अंबि पृ १६२ ) । णंदी -- गाय ( दे ४।१८ ) । णंदीविणद्धक -- सिर का आभूषण-विशेष ( अंवि पृ १८३ ) । णक्क -- १ नाक ( विपा १।१।६२; दे ४।४६ ) । २ मूक ( दे ४।४६ ) । णक्खच्चण -- नखचूंटी, नहरनी ( पंक २०२४ ) । णक्खच्चणि -- नहरनी ( बृभा २८८३ ) । णक्खत्तणेमि -- विष्णु ( दे ४।२२ ) । णगर -- घर - 'णगरं घरं आश्रयेत्यर्थः' ( निचू १ पृ ९९ ) । णगरग -- घर ( निभा २८३ ) । णच्चिर -- रमणशील, उन्मत्त - 'ण सुणेसि णच्चिराणं जइ गीयं' ( दे ४।१८ ) । णच्छक -- रोग-विशेष ( अंवि पृ २०३ ) । णच्छोटि -- नाखून काटने का शस्त्र, नहरनी ( व्यभा १० टी प ३० ) । णज्जर -- मलिन ( दे ४।१९ ) । णज्झर -- निर्मल ( दे ४।१९ ) । णट्टुल्लग -- नाटक ( ज्ञाटी प १०२ ) । णट्टोसक -- नाटकाचार्य ( अंवि पृ ६८ ) । णड -- तृण-विशेष ( जीवटी प १२३ ) । णडइल्ल -- नाटकीय ( कु पृ ४२ ) । णडवेलंब -- कोलाहल, छीनाझपटी- 'तारिसं णडवेलंबं घरे दट्ठुं' ( निचू ३ पृ ४३३ ) । णडिअ -- १ वञ्चित, प्रतारित ( ज्ञा १।९।५४; दे ४।१८ ) । २ व्याकुलता, खिन्नता ( पा ५७५ ) । णडुली -- कछुआ ( दे ४।२० ) । णड्डरी -- पेंढक ( दे ४।२० ) । णड्डल -- १ रतिक्रीडा । २ दुर्दिन, मेघाच्छन्न दिवस ( दे ४।४७ ) । णड्डुली -- कछुआ ( दे ४।२० वृ ) । णण्ण -- १ कूप । २ दुर्जन । ३ बडा भाई ( दे ४।४६ ) । णत्तमाल -- वृक्ष की एक जाति ( अंवि पृ ६३ ) । णत्थक -- नासारज्जु ( अंवि पृ २०२ ) । णत्थण -- १ नाथना, नाक में छिद्र करना ( दअचू पृ १७८ ) । २ पशु के नाक में बांधी जाने वाली रस्सी ( अंवि पृ २१४ ) । णत्था -- नासारज्जु ( भ ९।१४१ ; दे ४।१७ ) । नाथ ( राज ) । णदीपुत्तक -- जलचर प्राणी-विशेष - 'अस्समच्छा णरमच्छा णदीसुत्तका सव्वचरा चेति' ( अंवि पृ २२८ ) । णदीसुत्तक -- जलचर प्राणी-विशेष ( अंवि पृ २२५ ) । णदुल्लग -- नाट्य - 'नदुल्लगं च सिक्खावेंति' ( ज्ञा १।३।२७ ) । णद्दिअ -- दुःखित ( दे ४।२० ) । णद्ध -- आरूढ ( दे ४।१८ ) । णद्धंबवय -- १ अघृणा । २ निन्दा ( दे ४।४७ ) । णमसिय -- मनौती ( दे ४।२२ ) । णरिदं -- पारे को बांधने वाला - 'जो उण बंधइ णिउणो रसं पि सो भण्णइ णरिंदो' ( कु पृ १९७ ) । णल -- मत्स्य की एक जाति - 'रोहित पिचक-णल-मीण- चम्मिराजो' ( अंकि पृ २२८ ) । णलक -- खस का तृण ( आवचू १ पृ ३७२ ) । णलथंभ -- वृक्ष-विशेष - 'सुचिरंपि अच्छमाणो नलथंभो उच्छुवाडमज्झंमि' । कीस न जायइ महुरो जइ संसग्गी पमाणं ते ॥' ( आवनि १११७ ) । णलय -- खस का तृण ( दे ४।१९ ) ॥ णलिअ -- गृह ( दे ४।२० ) । णल्लग -- पात्र-विशेष ( जंबूटी प १०० ) । णल्लय -- १ कर्दमित, कीचडवाला । २ बाड का विवर । ३ प्रयोजन । ४ निमित्त ( दे ४।४६ ) । णवणीइया -- गुल्म वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।३८।३ ) । णवतय -- बिना पिंजी हुई ऊन से बना आस्तरण-विशेष ( ज्ञा १।१।१८ ) । णवय -- बिना पिंजी हुई ऊन से बना आस्तरण- विशेष - 'अत्थुरणं पाउरणं वा अकत्तिय उन्नाए नवयं कज्जति' ( निचू ३ पृ ३२१ ) । णवर -- १ केवल, सिर्फ ( आचूला १।३४ ) । २ अनन्तर । णवरं -- १ केवल, इसके अतिरिक्त - ' एवं जहा महब्बले, नवरं - गोयमो नामेणं' ( अंत १।१७ ) । २ अनन्तर ( आवचू १ पृ २४९ ) । णवरि -- १ केवल ( प्र ९।१ ) । २ अनन्तर ( से ११।६८ ) । णवरिअ -- सहसा, शीघ्र ( दे ४।२२ ) । णवलय -- व्रत-विशेष - 'दोलाविलाससमए पुच्छंतीहि सहीहिं पइणामं' । लट्ठीहिं हणिज्जंती वहुया णवलयवयं भरइ ॥ ( दे ४।२१ वृ ) । देखें - 'णवलया' । णवलया -- नियम-विशेष, जिसके अनुसार सभी लोग पलाश की लताएं लेकर घूमते हैं तथा विभिन्न स्त्रियों को अपने-अपने पति का नाम पूछते हैं । जो स्त्री अपने पति का नाम नहीं बताती, उसे पलाश की लता से आहत करते हैं- 'जत्थ पलासलयाए जणेहि पइणाम पुच्छिआ जुवई । अकहन्ती णिहणिज्जइ णिअमविसेसो णवलया सा ।' ( दे ४।२१ ) । णवसिअ -- उपयाचितक, मनौती ( दे ४।२२ वृ ) । णवूहक -- चित्र विचित्र रंगों वाला पक्षी ( अंवि पृ २२५ ) । णवोद्धरण -- जूठा, उच्छिष्ट ( दे ४।२३ ) । णव्व -- आयुक्त, गांव का मुखिया ( दे ४।१७ ) । णव्वाउत्त -- १ ईश्वर, धनाढ्य ( दे ४।२२ ) । २ नियोगीपुत्र, सुबेदार का लड़का ( वृ ) । णव्वाउत्तय -- धनाढ्य ( दे ४।२२ वृ ) । णहट्ठिका -- आसन-विशेष - 'भद्दासणं पीढगं वा कट्ठखोडो नहट्ठिका' ( अंवि पृ १५ ) । णहमुह -- उल्लू ( दे ४।२० ) । णहरणि -- नहरणी, नाखून काटने का औजार ( बृभा ४०९६ ) । णहरणिया -- नाखून काटने का साधन विशेष ( आवटि प ८० ) । णहरी -- छुरिका ( दे ४।२० ) । णहवल्ली -- विद्युत् ( दे ४।२२ ) । णहिया -- कुहन-वनस्पति का एक प्रकार ( प्रज्ञा १।४७ ) । णाअ -- अभिमानी ( दे ४।२३ ) । णाइ -- निषेधार्थक अव्यय, नहीं ( भ ३।५० )। णाइं -- निषेधार्थक अव्यय, नहीं ( उपा २।४० ) । णाउड्ड -- १ सद्भाव । २ अभिप्राय ( दे ४।४७ ) । ३ मनोरथ ( वृ ) । णाउल्ल -- गोमान्, जिसके पास अनेक गायें हों ( दे ४।२३ ) । णाणग -- रुपया, सिक्का - 'ताम्र मयं वा जं णाणगं ववहरति तं दिज्जति' ( निचू ३ पृ १११ ) । णानिका -- नानी, माता की माता ( अंवि पृ ६८ ) । णामत -- पर्वत - 'णामतो गिरिको व त्ति तहा पव्वतको त्ति वा' ( अंवि पृ ७८ ) । णामिण -- मत्स्य जाति-विशेष ( अंवि पृ ६३ ) । णामुक्कसिअ -- कार्य, काम ( प्रा २।१७४ ) । णामोक्कसिअ -- कार्य, काम ( दे ४।२५ ) । णारुट्ट -- कूसार, गर्ताकार स्थान ( पा ३१६ ) । णारोट्ट -- १ बिल, विवर ( दे ४।२३ ) । २ कूसार, गर्त्तकार स्थान ( वृ ) । णालंपिअ -- आकन्दित ( दे ४।२४ ) । णालंबि -- कुंतल, केश ( दे ४।२४ ) । णालक -- भोजन करने का पात्र ( अंवि पृ ६५ ) । णालिअ -- मूढ, मूर्ख ( प्रा ४।४२२ ) । णालिएर -- नारियल ( आचूला १।१०४ ) । णालिएरी -- नारियल ( आचूला १।११५ ) । णावण -- वितरण, दान - 'नावण त्ति तस्य दानं' ( प्र ३ । १२ टी प ५७ ) । णावा -- प्रसृति, अंजलि - 'नावा पसई' ( प्रसाटी प २२९ ) । णावापूर -- चुलुक, चुल्लू - दोहिं तिहिं वा णावापूरेहिं अच्छिं धोवति' ( निचूं २ पृ २२० ) । णावापूरय -- चुल्लू - 'नावापूरओ नाम पसती' ( बृटी पृ १३३ ) । णाहिदाम -- चंदोवे के बीच में लटकती हुई माला ( दे ४।२४ ) । पाहिविच्छेअ -- जघन ( दे ४।२४ ) । णाहीए-विच्छेअ -- जघन, कटि के नीचे का भाग ( दे ४।२४ वृ ) । णिअंधण -- वस्त्र ( दे ४।३८ ) । णिअंसण -- वस्त्र ( दे ४।३८ ) । णिअक्कल -- वर्तुल, गोलाकार ( दे ४।३९ ) । णिअडि -- दम्भ ( सु २।२।५८ ; दे ४।२६ ) । णिअत्थ -- परिहित, पहना हुआ ( दे ४।३३ ) । देखें - णियत्थ । णिअय -- १ शाश्वत ( भ २।१२५ ; दे ४।४८ ) । २ मैथुन । ३ शय्या । ४ कलश ( दे ४।४८ ) । णिअरिअ -- राशि रूप से स्थित ( दे ४।३८ ) । णिअल -- नूपुर ( दे ४।२८ ) । णिआणिआ -- खराब तृणों का उन्मूलन ( दे ४।३५ ) । णिआर -- शत्रु का घर ( दे ४।२९ ) । णिइग -- प्रतिदिन - 'नैतिकं प्रतिदिन मिति यावत्' ( प्रटी प १४१ ) । णिउक्क -- मौनी, तूष्णीक ( दे ४।२७ ) । णिउक्कण -- १ कौवा । २ मूक ( दे ४।५१ ) । णिउर -- १ वृक्ष-विशेष ( ज्ञा १।९।२० ) । २ कटा हुआ । ३ जीर्ण । णिओद -- १ अनंत जीवों का एक शरीर- 'कतिविहा णं भंते ! निओदा पण्णत्ता ? ' ( भ २५।२७३ ) । २ कुटुम्ब, समूह - बावत्तरिं निओदा बीयं बीयमेत्ता बिलवासिणो भविस्संति ( भ ७।११९ ) । णिंदिणी -- खराब तृणों का उत्पाटन ( दं ४।३५ ) । णिंबोलिया -- नींबोली, नीम का फल ( ज्ञाटी प २०६ ) । णिक्क -- १ स्वच्छ ( ज्ञा १।१।१२५ ) । २ परिमाण - कायगमासज्ज तहा, कुत्तियमुल्लस्स णिक्कं ति' ( बृभा ४२१६ ) । णिक्कइला -- जीता हुआ ( दे १।४ वृ ) । णिक्कइल्ला -- जीता हुआ ( दे १।४ वृ ) । णिक्कज्ज -- अनवस्थित, चंचल ( दे ४।३३ ) । णिक्कड -- १ कठिन ( प्रटी प ६७ ; दे ४।२९ ) । २ निश्चय । णिक्कल -- सघन, पोलेपन से रहित - 'निम्मलं नित्तलं निक्कलं....मणिरयणं' ( भ १५।९१ ) । णिक्का -- १ जलमार्ग - णिक्का सारणी वा पाणियाहारिपंथो' ( आचू पृ ३६९ ) । २ नाली - कद्दम बहुलं पाणीयं सेओ भण्णति, तस्स आययणं णिक्का' ( निचू २ पृ २२६ ) । ३ वाम नासिका । णिक्काणित -- नाक की आवाज ( अंवि पृ १८१ ) । णिक्कार -- अधम जाति-विशेष ( पंक ५०१ ) । णिक्काल -- बाहर निकालने वाला - रिउजीवियनिक्कालं हत्थिं' ( ति ३०१ ) । णिक्कूइला -- जीता हुआ ( दे १।४ वृ ) । णिक्केसिज्जंती -- प्रसव करती हुई - 'तं ओव्वरए पवेसेऊणं णिक्केतिज्जंतीए अप्पसागारियनिमित्तं सयं चेट्ठति' ( दअचू पृ ५०,५१ ) । णिक्कोरण -- पात्र आदि के मुख का अपनयन - 'मुहस्स अवणयणं णिक्कोरणं' ( निचू ३ पृ ४७२ ) । णिक्ख -- १ चोर । २ कांचन, स्वर्ण ( दे ४।४७ ) । णिक्खय -- निहत, मारा हुआ ( दे ४।३२ ) । गिक्खसरिअ -- मुषित, अपहृतसार, जो लूट लिया गया हो वह ( दे ४।४१ ) । णिक्खड -- १ अकम्प ( दे ४।२८ ) । २ बिल - पइसंति णिक्बुडेसुं संकड कुडिलेसु दुक्खेण' (कु पृ ३६ ) । ३ गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । ४ भूमि-खंड ( आवचू १ पृ १९९ ) । णिक्खुरिअ -- अस्थिर ( दे ४।४० ) । णिगढ -- गरमी, घाम ( दे ४।२७ ) । णिगोद -- १ अनन्त जीवों का एक शरीर ( भ २५।२७४) । २ समूह, पिण्ड, कुटुंब - 'निगोदा कुटुंबानि ( भटी प ३०९ ) । णिग्गा -- हल्दी, हरिद्रा ( दे ४।२५ ) । णिग्गिण्ण -- १ बाहर निकला हुआ ( दे ४।३६ ) । २ वान्त, वमन किया हुआ ( से ५।२६ ) । णिग्घट्ट -- कुशल ( दे ४।३४ ) । णिग्घत्तिय -- क्षिप्त, फेंका हुआ ( पा ५४५ ) । णिग्घोर -- निर्दय ( दे ४।३७ ) । णिग्घोलिय -- खाली किया हुआ - 'णिग्घोलियं च पल्लं' निघोलितं - रिक्तीकृतम्' ( बृभा ३३९९ टी पृ ९५० ) । णिच्चुडु -- १ निर्दय ( पा १२५ ) । २ बाहर निकला हुआ । णिच्छ -- योग्य (?) ( आचू पृ ३७० ) । णिच्छक्क -- १ निर्लज्ज ( बृभा २२५६ ) । २ अवसर को नहीं जानने वाला, असमयज्ञ । णिच्छुंड -- निर्दय ( दे ४।३७ ) । णिच्छूढ -- निष्कासित ( उशाटी प १६९ ) । णिच्छोलित -- छीला हुआ, छाल उतारा हुआ ( अंवि पृ १७१ ) । णिज्ज -- सुप्त, सोया हुआ ( दे ४।२५ ) । णिज्जाअ -- उपकार ( दे ४।३४ ) । णिज्जूह -- १ द्वार के ऊपर बाहर निकला हुआ काष्ठ- विशेष ( प्र १।१८ ) । २ गवाक्ष ( व्यभा ३ टी प ६३ ) । ३ नीव्र, गृहाच्छादन ( दे ४।२८ ) । ४ द्वार । णिज्जूहअ -- द्वार का किनारा ( कु पृ ६७ ) । णिज्जोअ -- १ राशि, ढेर ( दे ४।३३ ) । २ पुष्पों का ढेर ( बु ) । णिज्जोमि -- रज्जू, रस्सी ( दे ४।३१ ) । णिज्जोय -- सामग्री, परिकर - 'एगाभरणवसणगहियनिज्जोया' ( भ ९।२०२ ) । णिज्झर -- जीर्ण ( दे ४।२६ ) । णिज्झाअ -- निर्दय ( दे ४।३७ ) । णिज्झूर -- जीर्ण ( दे ४।२६ वृ ) । णिट्टकं -- १ पर्वत से छिन्न भाग । २ विषम ( दे ४।५० ) । णिट्टुइय -- क्षरित, टपका हुआ ( पा १३९ ) । णिठ्ठुहण -- थूक - 'निट्ठुहणेण घसिऊण कणयवन्ना कया अंगुली दंसिया' ( उसुटी प २४२ ) । णिट्ठुहिअ -- निष्ठीवन, थूक ( दे ४।४१ ) । णिट्ठूढ -- निष्ठ्यूत ( दअचू पृ २२ ) । णिट्ठह -- स्तब्ध ( दे ४।३३ ) । णिड -- राक्षस ( दे ४।२५ ) । णिड्डील -- निलीन ( ? ) ( अंवि पृ १६९ ) । णिण्णार -- नगर से निष्कासित - सो पच्छा रण्णा पडिहओ, णिण्णारो य कओ, अण्णहिं नगरे एवं चेव करेइ' । ( अनुद्वाहाटी पृ १८ ) । णिण्णाला -- चञ्चु ( दे ४।३६ ) । णितण्णिक -- पुष्पजाति-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । णितरिंगी -- आभूषण-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । णित्त -- स्त्री-योनि ( बृभा २०७५ ) । णित्तिरडि -- निरन्तर ( दे ४।४० ) । णित्तिरडिअ -- त्रुटित, टूटा हुआ ( दे ४।४१ ) । णित्तुप्प -- बिना चुपड़ा या बिना बघारा हुआ ( बृभा १७०६ ) । णित्थक्क -- १ निर्लज्ज - 'सबषणित्थक्को णिल्लज्जो भवति' ( निचू ४ पृ ४४ )। २ अचानक ( ज्ञाटी प १७५ ) । णित्थरभल्ल – अस्त्र-विशेष, साधन-विशेष - णित्थरभल्लेण णहादिणा वा खयं करेज्ज' ( निचू ४ पृ १७८ ) । णिदा -- १ जानकर, प्राप्तकर - 'खणं णिदाए पविसिस्सामि ( सू २।४।४ ) । २ ज्ञानयुक्त वेदना ( समप्र १७२।१ ) । णिदाय -- ज्ञानयुक्त ( भटी पृ १४१७ ) । णिदोच्च -- १ भय का अभाव । २ संघर्ष का उपशमन । ३ स्वास्थ्य ( व्यभा ६ टी प ५१ ) । गिद्दाय -- कणिका, टुकड़ा ( आवहाटी २ पृ २४३ ) । णिद्धअ -- अविभिन्नगृह, एक ही घर में रहने वाला ( दे ४ । ३८ ) । णिद्धंधस -- १ अकृत्यसेवी- 'णिद्धंधसो देशीवचनमेतत् अकृत्यं प्रतिसेवमानः' ( व्यभा १ टी प १२) । २ निर्दय ( दे ४।३७ ) । ३ निर्लज्ज । णिद्धंस -- निर्लज्ज, दुष्ट ( आचू पृ ९५ ) । णिद्धम -- एक ही घर में रहने वाला ( दे ४।३८ ) । णिद्धमण -- नाली ( स्था ५।२१; दे ४।३९ ) । णिद्धमाअ -- एक ही घर में रहने वाला ( दे ४।३८ ) । णिद्धम्म -- एक तरफ जाने वाला ( दे ४।३५ ) । णिप्पट्ट -- अधिक ( दे ४।३१ ) । णिप्पिच्छ -- १ ऋजु । २ दृढ ( दे ४।४९ ) । णिप्फरिस -- निर्दय ( दे ४।३७ ) । णिप्फेस -- शब्द-निर्गम, आवाज निकलना ( दे ४।२९ ) । णिबुक्क -- निर्मूल ( प्रटी प ४९ ) । णिब्भग्ग -- उद्यान ( दे ४।३४ ) । णिब्भुग्ग -- खण्डित, भग्न ( दे ४।३२ ) । णिब्भेरिय -- प्रसारित, विस्फारित-निब्भेरियच्छे रुहिरं वमंते ( उ १२।२९ ) । णिभेलण -- घर, गृह ( दश्रू ८।२९ ) । णिमिय -- १ निवेशित ( से ६।७६ ) । २ आघ्रात, सूंघा हुआ । णिमेण -- स्थान ( दे ४।३७ ) । णिमेल -- दांत का मांस ( दे ४।३० ) । णिमेला -- दांत का मांस ( दे ४।३० वृ ) । णिम्मअ -- गत, गया हुआ ( दे ४।३४ ) । णिम्मंसा -- चामुण्डा देवी ( दे ४।३५ ) । णिम्मंसु -- तरुण ( दे ४।३२ ) । णियंसण -- १ परिधान, वस्त्र ( राज ६९; दे ४।३८ ) । २ उपभोग्य ( बृभा ६४४ ) । णियंसणिय -- १ पहनने का वस्त्र ( निचू ३ पृ ५७८) । २ उपभोग्य ( बृभा ६४५ ) । णियंसणो -- वस्त्र - 'अंतो णियंसणी पुण लीणा कडि जाव अद्धजंघातो' ( निभा १४०३ ) । णियत्थ -- १ परिहित, पहना हुआ - 'खोमयवत्थणियत्थो' ( आचूला १५।२८।९। ; दे ४।३३ ) । २ उत्तरीय वस्त्र -- 'दुहओ संवेल्लियग्गणियत्थाणं' ( राज ६९ ) । ३ परिधापित, जिसे वस्त्र पहनाया गया हो वह - 'संपत्थिया नियत्था तो गणियाए पुणो मुयइ' ( विभा २६०७ ) । णियल -- नूपुर ( आवचू १ पृ २५५ ) । णियल्ल -- महाग्रह-विशेष ( स्था २।३२५ ) । णियल्लय -- निकट का ( उसुटी प १३३ ) । णिरंगी -- घूंघट ( दे ४।३१ ) । णिरक्क -- १ चोर । स्थित । ३ पीठ ( दे ४।४९ ) । णिरग्घ -- १ पीठ । २ उद्वेष्टित ( दे ४।४९ ) । णिरद्दन्न -- आश्वस्त - 'अच्छह निरद्दन्नाओ' ( आवचू १पृ ८८ ) । णिरप्प -- १ पीठ । २ उद्वेष्टित ( दे ४।४९ ) । णिरागति -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० )। णिराद -- विनष्ट ( दे ४।३० ) । णिराय -- १ अत्यंत, प्रचुर ( आवचू १ पृ ३१२) । २ सरल । ३ प्रकट । ४ शत्रु ( दे ४।५० ) । ५ लम्बा किया हुआ ( से २।४० ) । ६ निरंतर - 'पिया य से रण्णो निरायं अच्छिओ' ( आवहाटी २ पृ १४७ ) । णिराह -- निर्दय ( दे ४।३७ ) । णिरिअ -- अविशेषित, साधारण ( दे ४।२८ ) । गिरिंक -- नत, झुका हुआ ( दे ४।३० ) । णिरिक्क -- १ चोर । २ स्थित । ३ पीठ ( दे ४।४९ ) । णिरित्ता -- बुझाकर - 'सए गेहे पलित्तम्मि कि धावसि परातकं । सयं गेहं गिरित्ताणं ततो गच्छे परातकं ।' ( इ ३५।१४ ) । णिरुत्त -- १ निश्चित ( दे ४ । ३० ) । २ निश्चिन्त । णिरुलि -- कुम्भीर, मगर की आकृतिवाला ग्राह-विशेष ( दे ४।२७ ) । णिरुवक्कय -- नहीं किया हुआ ( दे ४।४१ ) । णिरे -- पृष्ठतः, पीछे - निरे इति पृष्ठतः' ( सूचू १ पृ १९८ ) । णिलंक -- पतद्ग्रह, पात्र ( दे ४।३१ ) । णिलंजन -- करण, करना - 'निलंजनं नाम करणं' ( सूचू १ पृ १२० ) । णिलुक्क -- १ प्रच्छन्न, छिपा हुआ ( भ १५।१०२ ) । २ विरत, अनासक्त - 'खिप्पामेव निलुक्को जाहे पडिवज्जइ चरित्तं' । 'निलुक्को त्ति देशीवचन मेतत् विरत इत्यर्थ: ( आवमटी प २६६ ) । ३ लीन, आसक्त । णिलुक्कण -- छुपना (निचू १ पृ १०४) । णिल्लंक -- पतद्ग्रह, पात्र ( दे ४।३१ ) । णिल्लसिअ -- निर्गत, निःसृत ( दे ४।३६ ) । णिल्लूहित -- मांजा हुआ ( अंवि पृ १७६ ) । णिवच्छण -- अवतारण, उतारना ( दे ४।४० ) । णिवह -- समुद्धि ( दे ४।२६ ) । णिवाअ -- स्वेद, पसीना ( दे ४।३४ ) । णिवारेज्ज -- विवाह ( अनुद्वाहाटी पृ ७० ) । णिविद्ध -- १ सोकर उठा हुआ । २ निराश ।३ उद्भट । ४ नृशंस, निर्दय ( दे ४।४८ ) । णिवुक्क -- निर्मूल निवुक्कच्छिन्नधयभग्गरहवर' ( प्र ३।५ ) । णिवुर -- वृक्ष-विशेष ( अंबि पृ ६३ ) । णिव्व -- १ ककुद, थूभ । २ बहाना ( दे ४।४८ ) । णिव्वडिय -- १ पृथक्भूत ( से ६।८८ ) । २ स्पष्टीभूत । णिव्वढ -- नग्न ( दे ४।२८ ) । णिव्वमिअ -- परिभुक्त ( दे ४।३९ ) । णिव्वर -- १ निष्प्रकंप, अचल ( अंवि पृ ७९ ) । २ भग्न ( अंवि पृ १५५ ) । णिव्वलण -- १ प्रमोद - निर्वलनार्थं प्रमोदार्थम्' । २ स्फेटन, दूर करना - 'निर्वलनं स्फेटनम् ( व्यभा ४।२ टी प ८१ ) । णिव्वलिअ -- १ पानी से धोया हुआ । २ प्रविगणित । ३ विघटित ( दे ४।५१ ) । णिव्वलित -- १ पानी से धोया हुआ । २ वियुक्त ( विभा १३२० ) । णिव्वलीय -- विघटित, वियुक्त ( बृभा १०९ ) । णिव्वहण -- विवाह ( दे ४ । ३९ ) । णिव्वाण -- दुःख कथन ( दे ४।३३ ) । णिव्विट्ठ -- उचित ( दे ४।३४ ) । णिव्वित्त -- सो कर उठा हुआ ( दे ४ । ३२ ) । णिव्वूढ -- १ घर का पिछला भाग ( दे ४।२९ ) । २ स्तब्ध ( दे ४।३३ ) । णिग्वेढ -- नग्न ( दे ४।२८ ) । णिव्वेरिस -- १ निर्दय ( दे ४।३७ ) । २ अत्यर्थ, प्रचुर ( वृ ) । णिव्वोल्लिय -- क्रोधयुक्त - 'णिव्वोल्लिएण वयणेणं' ( कु पृ १८७) । णिस -- १ प्रचुर, अत्यन्त - 'णिस भोच्चा पादोसियं ण करेंति' ( निचू ३ पृ८३ ) । २ अन्धकार ( सूटी १ प १२८ ) । णिसका -- भाजन-विशेष (/अंवि पृ ७२ ) । १०८ ) । णिसट्ट -- प्रचुर ( बूटी पृ १०८ ) । णिसट्ठ -- १ बहुत ( ओनि ८७ ) । २ निर्लज्ज ( बुभा ३४९३ ) । णिसड्ढ -- निश्चित, निःशंक- 'तुमं जति सगणं ण सारेसि तो अम्ह णिसड्ढं चेक अण्णं आयरिक्षं पडिवज्जामो' ( निचू ३ पृ ३१ ) । णिसत्त -- संतुष्ट ( दे ४।३० ) । णिसामिअ -- श्रुत, सुना हुआ ( दे ४।२७ ) । णिसाय -- सुप्त, प्रसुप्त, भली भांति सोया हुआ ( दे ४।३५ ) । णिसुअ -- श्रुत, सुना हुआ ( दे ४।२७ ) । णिसुट्ट -- निपातित ( प्रा ४।२५८ ) । णिसुट्ठिय -- निपातित, गिराया हुआ ( से १० ३६ ) । णिसुढिअ -- नत, भार से नमा हुआ ( पा ५६६ ) । णिसुद्ध -- गिराया हुआ ( दे ४।३६ ) । णिस्संक -- निर्भर ( दे ४।३२ ) । णिस्सरण -- फिसलन - 'निस्सरणं नाम फेल्हसणं' (व्यभा ४।४ टी प ९ ) । णिस्सरिअ -- खिसफा हुआ ( दे ४।४० ) । णिस्साण -- १ अपवाद ( बुभा ७७१ ) । २ वाद्य-विशेष । णिहण -- कूल, किनारा ( दे ४।२३ ) । णिहत्तण -- निधत्त, कर्म की एक अवस्था ( भ १।२४।१ ) । णिहर -- किनारा, कूल ( दे ४।२७ ) । णिहस -- वल्मीक ( दे ४।२५ ) । णिहाअ -- १ स्वेद, पसीना । २ समूह ( दे ४।४९ ) । णिहिल्लय -- गाडा हुआ ( उसुटी प ५२ ) । णिहुअ -- १ अप्रवृत्त, निश्चेष्ट ( व्यभा ४।३ टी प ६५; दे ४।५० ) । २ तूष्णीक, मौन । ३ रति-क्रीड़ा ( दे ४।५० )। णिहुआ -- कामिता स्त्री, मैथुन के लिए प्रार्थित स्त्री (.दे ४।२६ ) । णिहुण -- व्यापार ( दे ४।२६ ) । णिहुत -- १ निष्क्रिय-णिहुता य जुद्धकाले, ण वुग्गहो णेव सज्झाओ' ( निभा २३८३ ) । २ उन्मत्त, पागल - णिहुतो त्ति णग्गायते पलवति णच्चइ वा' (निचू ४ पृ २२१) । ३ निमग्न । णिहुत्थिभगा -- वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञाटी प ३५ ) । णिहुय -- १ निष्क्रिय - 'णिक्कारणे वा सकप्पकंबलीए पाउया णिहुया सव्वब्भंत रे चिट्ठंति' ( निचू ४ पृ २३१ ) । २ थूहर का फूल ( प्रज्ञाटी प ३७ ) । णिहूय -- १ अकिंचित्कर- निहूयं ति देशीवचनं अकिञ्चित्करार्थे' ( आवहाटी १पृ २१७ ) । २ अपलाप - निहूय त्ति आर्षत्वात् निह् नुतम् ( आवमटी प ४२७ ) । ३ मैथुन ( दे ४।२६ ) । णिहेलण -- १ गृह, घर । २ जघन, स्त्री की कटि के नीचे का भाग ( दे ४।५१ ) । णिहेल्लय – निहित, गडा हुआ - भूमीए दव्वं निहेल्लयं ' ( उशाटी प १३०) । णीआरण -- बलि रखने का छोटा कलश ( दे ४।४३ ) । णीणिय -- १ चतुरिन्द्रिय जंतु-विशेष ( जीवटी प ३२ ) । २ गत, गया हुआ ( पा ५०६ ) । णीपुर -- द्वीन्द्रिय प्राणी-विशेष ( अंवि पृ २६९ ) । णीरंगी -- घूंघट ( दे ४।३१ ) । णीराणिका -- वनस्पति-विशेष (अंवि पृ २४३ ) । णीलकंठी -- बाण-वृक्ष ( दे ४।४२ ) । णीसंपाय - वह समय जब पूरा जनपद परिश्रान्त हो गया हो, हलचल बंद हो गई हो ( दे ४।४२ ) । णीसट्ठ -- अत्यर्थ, अत्यन्त ( बृभा ६११५ ) । णीसणिआ -- निःश्रेणी, सीढी ( दे ४।४३ ) । णीसणी -- सीढी, निःश्रेणी ( दे ४।४३ वृ) । णीसरण -- फिसलन ( व्यभा ४।४ टी प ९ ) । णीसा - पीसने का पत्थर - 'णीसा वा पीसणी' (द ५।१।४५) । णीसार -- मण्डप ( दे ४।४१ ) । णीसीमिअ -- निर्वासित, देश बाहर किया हुआ ( दे ४।४२ ) । णीहरिअ -- शब्द ( दे ४।४२ ) । णीहुज्ज -- अप्रवृत्त, निश्चेष्ट ( व्यभा ४।३ टी प ६५ ) । णीहू -- वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । णीहूत -- अकिञ्चित्कर ( विभा ३१०० ) । णीहूय -- अकिंचित्कर – 'नीहूयाणं इति देशयुक्त्या प्रवचनक्रियास्वकिञ्चित्कराणां' (आवदी प १४९ ) । णुत्तमालक -- बनस्पति-विशेष (अंवि पृ १४१ ) । णुवण्ण -- सुप्त ( दे ४।२५ ) । णूम -- १ प्रच्छन्न स्थान, गुफा आदि ( भ १।३६४ ) । २ प्रच्छादन, असत्य का एक पर्याय ( प्र २।२ ) । ३ माया । ४ कर्म - 'नूमं ति कर्म माया वा ' ( आटी प २९५ ) । ५ दूसरे को ठगने के लिए प्रच्छन्न स्थान में छुपना ( भटी प १०५२ ) । ६ अन्धकार । णूमगिह -- भूमिगृह, भौंहरा ( आचूला ३।४७ ) । णूमण -- गोपन, छिपाना - गूहण गोवण णूमण पलियंचणमेव एगट्ठं' ( जीभा १७७४ ) । णूमि -- गोपित ( से १।३२ ) । णूमिय -- १ छिपाया हुआ - 'सो वत्थं णूमियं' ( निचू १ पृ १११ ) । २ आच्छादित ( उशाटी प ११५ ) । णूला -- शाखा ( दे ४।४३ ) । णेउड्ड -- सद्भाव ( दे ४।४४ ) । णेउर -- १ द्वीन्द्रिय जंतु-विशेष ( प्रज्ञा १।४९ ) । २ चतुरिन्द्रिय जंतु-विशेष ( प्रज्ञा १।५१ ) । णेक्कार -- चांडाल विशेष - 'जुगुच्छितो कोलिगजातिभेदो णेक्कारो' ( निचू ३ पृ २७० ) । णेडाली -- सिर का भूषण-विशेष ( दे ४।३३ ) । णेड्ड -- घर ( आवहाटी १ पृ २६४ ) । णेड्डय -- नीड, घोसला ( आवमटी प ३४५ ) । णेड्डरिआ -- भाद्रव शुक्ला दसमी का उत्सव-विशेष ( दे ४।४५ ) । णेत्तपट्ट -- रंगीन रेशम का वस्त्र जो चीन से भारत में आता था - 'अहं चीणमहाचीणेसु गओ···· तत्थ गंगावडिओ णेत्तपट्टाइयं घेत्तूण लद्धलाभो णियत्तोत्ति' ( कु पृ ६६ ) । णेम -- कार्य - 'जह कारणं तु तंतू पडस्स तेसिं च होंति पम्हाइं । नाणाइतिगस्से वं आहारो मोक्खनेमस्स ! 'नेमशब्दो देश्य: कार्यवाची' ( पिनि ७० टी प १६ ) । णेम्म -- १ सदृश, तुल्य ( प्र ९।१ ) । २ चिह्न, उपलक्षण ( बुभा १७५५ ) । णेरित -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । णेलक -- सिक्का, रुपया - 'काञ्चीनगर्याः सम्बन्धी नेलको रूपक इत्यर्थ:' ( प्रसाटी प २३३ ) । णेलकता -- रंगीन मिट्टी, पुताई करने की मिट्टी- सुधा - सेडिका पलेपको णेलकता' ( अंवि पृ २३३ ) । णेलच्छ -- नपुंसक ( दे ४।४४ ) । णेलय -- रुपया ( निभा ९५९ ) । णेलिच्छी -- कूपतुला ( दे ४।४४ ) । णेल्लक -- सुरा-विशेष ( जीवटी प २६५ ) । णेवच्छ -- अवतारण ( नंदीचू पृ २७ ) । णेवच्छण -- अवतारण, नीचे उतारना ( दे ४।४० ) । णेसत्थि -- वणिक्-प्रधान ( दे ४।४४ ) । णेसत्थिय -- वणिक्-प्रधान, व्यापारी ( निचू ३ पृ १०६ ) । णेसत्थिया -- निक्षेपण से होने वाला कर्मबंध ( स्था २।२६ ) । णेसर -- रवि ( दे ४।४४ ) । णोमि -- रस्मी, डोर ( दे ४।३१ ) । गोलइसा -- चञ्चु ( दे ४।३६ ) । गोलच्छा -- चञ्चु ( दे ४।३६ ) । णोल्लण -- संस्पर्श ( निचू २ पृ २५६ ) । णोव्व -- आयुक्त, गांव-प्रधान ( दे ४।१७ ) । ण्हं -- पादपूर्ति में प्रयुक्त होने वाला अव्यय - 'हमिति निपात: पूरणार्थो वर्तते' ( आवमटी प २४४)। ण्होरय -- कृतज्ञता ( प्रसा १६२ ) । त तउसमिंजग -- त्रीन्द्रिय जंतु-विशेष ( उ ३६।१३८ ) । तउसमिंजिया -- त्रीन्द्रिय जंतु-विशेष ( प्रज्ञा १।५० ) । तंजतण -- वृक्ष-विशेष ( आचू पृ ३७० ) । तंट -- पीठ ( दे ५।१ ) । तंड -- १ लगाम में लगी हुई लार । २ मस्तकविहीन । ३ तेजस्वर ( दे ५।१९ ) । तंडी -- दुष्ट घोड़ा - 'तंडीति वा गलीति वा मरालीति वा एगट्ठा' ( उचू पृ ३० ) । तंत -- आसन-विशेष ( अंवि पृ १५ ) । तंतडी -- करम्ब, दही और चावल का बना भोजन- विशेष ( दे ५।४ ) । तंतव -- चतुरिन्द्रिय जीव-विशेष ( प्रज्ञा १।५० ) । तंतुक्खोडी -- तन्तुवाय का एक उपकरण ( दे ५।७ ) । तंतुय -- जलजंतु-विशेष, मगरमच्छ ( ? ) - 'सेतणओ गंधहत्थी णदीए तंतुएण गहितो' ( आवहाटी १ पृ २३७ ) । तंदूसय -- क्रीडा-विशेष । देखें - तेंदूसय ( आवचू १ पृ २४६ ) । तंबकरोडय -- ताम्रवर्ण का द्रव्य-विशेष ( प्रज्ञा १७।१२५ ) । तंबकिमि -- कीट-विशेष, इन्द्रगोप ( दे ५।६ ) । तंबकुसुम -- कटसरैया का वृक्ष, ताम्ररक्त पुष्पों वाला वृक्ष ( दे ५।९ ) । तंबछिवाडिया -- ताम्रवर्ण का द्रव्य-विशेष ( प्रज्ञा १७।१२५ ) । तंबटक्कारी -- शेफालिका, पुष्प प्रधान लता-विशेष ( दे ५।४ ) । तंबरत्ती -- गेहूं का ताम्ररक्त वर्ण ( दे ५।५ ) । तंबा -- गाय ( दे ५।१ ) । तंबिरा -- गेहूं का ताम्ररक्त वर्ण ( दे ५।५ ) । तंबेही -- शेफालिका, पुष्पप्रधान वृक्ष-विशेष ( दे ५।४ ) । तंबोल -- मुखवास की वस्तुएं, जैसे-इलायची, लवंग, सुपारी, कपूर आदि ( उपा १।२९ ) । तक्कणा -- इच्छा, अभिलाषा ( बृभा २०७४; दे ५।४ ) । तक्कलि -- १ वलयाकार वृक्ष-विशेष ( भ ८।२१७ ) । २ कदली वृक्ष केले गाछ ( आचूला १।११५ ) । तक्कुलि -- १ पुष्प-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । २ खाद्य-विशेष ( अंवि पृ १७९ ) । तग्ग -- सूत का कंकण ( दे ५।१ ) - 'तग्गं च सूत्रकङ्कणम्' ( वृ ) । तच्चणित -- बौद्ध भिक्षु ( पंक ३३१ ) । तच्चणिय -- बौद्ध भिक्षु ( जीभा १३६७ ) । तच्चन्निय -- बौद्ध भिक्षु ( आवचू १पृ८५ ) । तच्छिंड -- भयंकर ( दे ५।३ ) । तट्टक -- थाल - 'तट्टकं सरकं थालं' ( अंवि पृ ६५ ) । तट्टे ( कन्नड़ ) । तट्टिका -- १ बाड़ ( भटी पृ ६९१ ) । २ दिगंबर जैन सावु का उपकरण-विशेष । तट्टी -- वृति, बाड़ ( दे ५।१ ) । तडउडा -- वृक्ष-विशेष, आउली का वृक्ष ( जंबूटी प ३४ ) । तडप्फड -- व्याकुलता, छटपटाहट ( निचू २ पृ ७५ ) । तडफडिअ -- चारों ओर से प्रकम्पित, तडफड़ाया हुआ, आकुल-व्याकुल ( दे ५।९ ) - 'तुह विरहे तीइ इत्थ तडफडिअं' ( वृ ) । तडमड -- क्षोभप्राप्त, क्षुब्ध ( दे ५।७ ) । तडवडा -- वृक्ष-विशेष, आउली का पेड़ ( राज २८ ; दे ५।५ ) । तडिअ -- बद्ध - 'गणेऊण गंठी तडिओ, तओ न तीरइ सिव्वे उं' ( आवहाटी १ पृ २८१ ) । तडिग -- जूता ( ओटी प ३४ ) । तडिण -- विरल, तुच्छ ( से १३।५० ) । तडिम -- १ भींत । २ कुट्टिम, पाषाण से बंधा हुआ भूमितल ( से २।२ ) । ३ द्वार के ऊपर का भाग ( से १२।९० ) । तडिय -- बागवान्, मालाकार - 'तत्थ कुंभो पुप्फाण उट्ठेइ, तत्थ भगवतो पितिमित्तो तडिओ' ( आवहाटी १ पृ १९७ ) । तड्डविअ -- विस्तृत ( पा ५२१ ) । तडुविय -- विस्तीर्ण - 'आमुंच सुपट्टिकेसम्मि तड्डविय-सिहंडि कलाव - सच्छहं केसभारं' ( कु पृ २५ ) । तण -- कमल ( दे ५।१ ) । तणतण -- गर्जन ( आवमटी प १६९ ) । तणय -- संबंधी ( प्रा ४।३६१ ) । तणयमुद्दिआ -- अंगूठी ( दे ५।९ ) । तणरासि -- फैलाया हुआ ( दे ५।६ ) । तणरासिअ -- प्रसृत, फैलाया हुआ ( दे ५।६ व ) । तणवरंडी -- छोटी नौका ( दे ५।७ ) । तणसोल्लि -- पुष्प प्रधान वृक्ष, मल्लिका ( दे ५।६ ) । तणसोल्लिया -- मल्लिका, पुष्प-प्रधान वृक्ष-विशेष ( ज्ञा १।१६।२५६ ) । तणेसी -- तृण-राशि ( दे ५।३ ) । तण्ण -- आर्द्र ( से १।३१ ) । तण्णाय -- गीला, आर्द्र ( दे ५।२ ) । तत्तडिय -- रंगा हुआ वस्त्र - 'तत्तडियाणं च तह य परिभोगो' ( ग ८९ ) । तत्ति -- १ चिन्ता - 'कुतत्तीहिं विहम्मइ' (दचूला १।७ ) । २ प्रवृत्ति - 'भिक्खासज्झायमुक्कतत्तीया, तप्तिः - व्यापार : ' ( बृभा २४५९ ) । ३ आदेश । ४ तत्परता ( दे ५।२० ) । ५ दोष - परतत्तितग्गओ जणो' ( कु पृ १२७ ) । तत्तिल्ल -- १ तत्पर - 'तत्तिल्लशब्द: तत्परवाची देश्यः तत्तिल्लो तल्लिच्छो य तत्परे' (राजटी पृ १०५ ; दे ५। ३) । २ दक्ष - तत्तिल्लो विहिराया जाणति दूरेवि जो जहिं वसइ । जं जस्स होइ सरिसं, तं तस्स बिइज्जयं देइ ।' ( आवहाटी १ पृ १४१ ) । तत्तुडिल्ल -- संभोग, मैथुन ( दे ५।६ ) । तद्दिअचय -- नृत्य ( दे ५।८ ) । तद्दिअस -- प्रतिदिन ( दे ५।८ ) । तद्दिअसिअ -- प्रतिदिन ( दे ५।८ वृ ) । तद्दिअह -- प्रतिदिन ( दे ५।८ वृ ) । तद्दिवस -- प्रतिदिन (बृभा १९०५ ) । तपुस -- क्षुद्रकीट, श्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष ( अंवि पृ २६७ ) । तपुसेल्लालुक -- एक प्रकार का फल ( अंवि पृ ६४ ) । तप्पक -- डोंगी ( अंवि पृ १६६ ) । तप्पण -- १ सक्तु, सत्तु ( प्र १०।६ ) । २ भाजन या उपकरण-विशेष ( अंवि पृ १९१ ) । ३ तुष ( अंवि पृ १०६ ) । तप्पणाडुगालिया -- सक्तुप्रधान भोजन ( दअचू पृ २८ ) । तप्पणादुयालिता -- १ सक्तुमिश्रित भोजन । २ भोजन-विशेष - तप्पणादुयालिता भोजन-विशेषः, सक्तुप्रधानं वा भोजनम्' ( दअचू पृ २८ ) । तप्पोसणिया -- आच्छादन विशेष ( आचू पृ ३४७ ) । तम -- शोक ( दे ५।१ ) । तमण -- चूल्हा ( दे ५।२ ) । तमणि -- भुजा, बाहु । २ भूर्ज, भोजपत्र, वृक्ष-विशेष की छाल ( दे ५।२० ) । तर -- मलाई - 'सतरं दधि अन्वेषमाणस्तररहितं चागृह्णन्' ( ओटी प ४८ ) । तरपअट्ट -- शिल्पी-विशेष ( अंवि पृ १६० ) । तरमल्लिहायण -- युवा - 'तरो-वेगो बलं तथा भल्ल' - धारणे ततश्च तरोमल्लीः। तरोधारको वेगधारको हायन:- संवत्सरो वर्तते येषां ते.तरोमल्लिहायनाः - यौवनवन्त इत्यर्थ:' ( भटी पृ ८८१ ) । तरवच्च -- शस्त्र-विशेष ( अंवि पृ ११५ ) । तरवट्ट -- वृक्ष-विशेष, चकवाड, पगार ( दे ५।५ ) । तरस -- मांस ( दे ५।४ ) । तरिअव्व -- उडुप, नौका ( दे ५।७ ) । तरुणरहस -- राग-रागिनियां - 'जुण्णमएहिं विहूणं जं जूहं होइ सुट्ठुवि महल्लं । तं तरुण रहसपोइयमयगुम्मइयं सुहं हंतुं ।।' ( ओनि १४० ) । तल -- १ गांव का मुखिया, ग्रामेश । २ शय्या ( दे ५।१९ ) । तलऊडा -- गुच्छ वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।३।७३ ) । तलंगणी -- खाद्यपदार्थ-विशेष ( ओटी पृ ३९८ ) । तलकोड -- गुल्म-विशेष ( अंवि पृ ६३ ) । तलपत्तक -- कान का आभूषण-विशेष ( अंवि पृ ११६ ) । तलप्फल -- शालि, व्रीहि ( दे ५।७ ) । तलभ -- हाथ का आभूषण-विशेष ( अंवि पृ ६५ ) । तलयागत्ति -- कूप, कुआं - तलयागत्तिं वच्चइ णिसि••••' ( दे ५।८ ) । तलवत्त -- १ कान का आभूषण-विशेष । २ वरांग, उत्तमांग, शिर ( दे ५।२१) । तलवर -- १ नगर रक्षक, कोतवाल - 'राइणा तुट्ठेण चामीकरपट्टो रयणखइतो सिरसि बद्धो यस्स सो तलवरो भण्णति' ( अनुद्वाचू पृ ११ ) । २ राजा के सदृश सम्मान प्राप्त व्यक्ति - 'रायप्रतिमो चामरविरहितो तलवरो भण्णति' ( निचू २ पृ ४५० ) । तलवरी -- कोतवाल की पत्नी ( अंवि पृ ६८ ) । तलसारिअ -- १ छना हुआ, शुद्ध ( दे ५।९ ) । २ भोला, मूर्ख - 'अन्ये तु तलसारिओ नालिक इति पठन्तस्तलसारिअं मुग्धमाचक्षते' ( वृ ) । तला -- कृमि-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । तलार -- नगर आरक्षक ( दे ५।३ ) । तलाहण -- खाद्य-विशेष ( निचू ४ पृ २५६ ) । तलाहतिया -- खाद्य-विशेष - 'तलाहतियातो आवणातो आणिंति' ( दश्रुचू प ६६ ) । तलिका -- १ पात्र-विशेष ( दअचू पृ १५३ ) । तलिगे-थाली ( कन्नड़ ) । २ प्राणी-विशेष ( अवि पृ २२७ ) । तलिगा -- एक तले वाला जूता ( प्रसा ६७६ ) । तलिम -- १ शय्यागृह, वासभवन- 'परिणीया, तलिमे भत्तारस्स सब्भावो कहितो' ( दअचू पृ २३; दे ५।२० ) । २ शय्या ( ज्ञा १।१६।५५; दे ५।२० ) । ३ फरस-बन्द जमीन । ४ भूनने का भाजन । ५ घर के ऊपर की भूमी ( दे ५।२० ) । तलिमा -- वाद्य-विशेष ( भटी पृ ८८३ ) । तलिय -- आसन-विशेष ( अंवि पृ ६५ ) । तलिया -- १ पात्र-विशेष - 'अट्ठ सोवण्णियाओ तलियाओ' ( भ ११।१५९ ) । २ जूता ( बृभा २८८३ ) । तल्ल -- १ छोटा तालाब । २ 'बरु' नाम का तृण । ३ शय्या ( दे ५।१९ ) । तल्लकट्ट -- ( तलवत्त ? ) – मस्तक, सिर ( जीविप पृ ५४ ) । तल्लग -- सुरा-विशेष ( जंबूटी प ९९ ) । तल्लड -- शय्या, बिछौना ( दे ५।२ ) । तल्लिच्छ -- तत्पर, तल्लीन (ज्ञा १।२।११; दे ५।३ ) । तवअ -- व्यापृत, प्रवृत्त ( दे ५।२ ) । तवणी -- १ पकाने का पात्र, तवा ( ओटी प ९९ ) । २ भक्षणयोग्य कण ( दे ५।१ ) । ३ धान्य को क्षेत्र से काटकर भक्षणयोग्य बनाने की क्रिया । तवप्प -- संन्यासी का एक उपकरण ( आवचू १ पृ ४७१ ) । तव्वणिय -- बौद्ध, बुद्धदर्शन का अनुयायी तव्वणियाण बिय विसयसुहकुसत्थ-भावणाधणियं ( विसे १०४१ ) । तसिअ -- शुष्क ( दे ५।२ ) । तहरी -- पंकवाली सुरा ( दे ५।२ ) । तहल्लिआ -- गोवाट, गायों का बाडा ( दे ५।८ ) । ताइय -- पारस या अरब देश के व्यापारी ( कु पृ १५३ ) । ताज्जिक -- पारस या अरब देश के व्यापारी ( कुपृ १५३ ) । ताडक -- भूमीगत बिल में रहने वाला प्राणी-विशेष ( अंवि पृ २२७ ) । ताडिअय -- रोदन ( दे ५।१० ) । तामर -- सुन्दर, रम्य ( दे ५। १० ) । तामरस -- जल में पैदा होने वाला फूल ( प्रज्ञा १।४६ ; दे ५।१० ) । तारत्तर -- मुहूर्त्त ( दे ५।१० ) । तालप्फली -- दासी, चेटिका ( दे ५।११ ) । तालफली -- दासी ( दे ५।११ वृ ) । तालहल -- शालि, व्रीहि ( दे ५।७ ) । ताला -- लाजा, खोई, धान का लावा ( दे ५।१० ) । तालुक -- तालाब का जल ( अंवि पृ २६६ ) । तालूर -- १ फेन । २ कपित्थ-वृक्ष ( दे ५।२१) । ३ पानी का आवर्त्त (वृं)। ४ पुष्प का सत्त्व । ताहे -- तदा, तब ( उशाटी प १४८ ) । तिउड -- कलाप, मोर पिच्छ ( पा ९४६ ) । तिउडग -- १ धान्य-विशेष, मोठ ( दनि १५६ ) । २ लौंग, लवंग । तिउल -- मन, वचन और काया को पीड़ा पहुंचाने वाला - उदयपत्ते उज्जल-बल-विउल-तिउल-कक्खड-पगाढ-दुक्खे' ( प्र १०।९ ) । तिउल्लिका -- वाद्य-विशेष ( नंदीटि पृ ९९ ) । तिंगिआ -- कमलरज ( दे ५ । १२ ) । तिंगिच्छिक -- गले का आभूषण-विशेष ( अंवि पृ ६५ ) । तिंगिछि -- १ पराग - 'प्राकृते पुष्परजःशब्दस्य 'तिंगिछि' इति निपात: देशी शब्दो वा' (जंबूटी प ३०७; दे ५।१२) । २ पीला पुष्प ( अंवि पृ ७० ) । तिंतिणि -- बड़बड़ाने वाला ( पंक १९७५ ) । तिंतिणिय -- १ चिड़चिड़े स्वभाव वाला - 'तिंतिणिए एसणागोयरस्स पलिमंथू' (स्था ६ । १०२) । २ चंचल चित्त वाला ( बृटी पृ २३९ ) । तिंतिणिया -- बड़बड़ाहट ( बृभा ६३४० ) । तिंदुग -- त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष ( उ ३६।१३८ ) । तिंदूसय -- कन्दुक, गेंद - 'कणगतिंदूसएण कीलमाणी ( अंत ३।५८ ) । तिंबुरुकी -- वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । तिक्खालिअ -- तीक्ष्ण किया हुआ ( दे ५।१३ ) । तिडु -- अन्ननाशक कीट-विशेष, टिड्डी ( अनुटी पृ ४ ) । तिड्डय -- टिड्डी ( बूटी पृ ६७५ ) । तिणिस -- मधुमक्खियों का छत्ता, मधु-पटल (दे ५ । ११ ) । तित्ति -- १ आदेश । २ चिन्ता । ३ वार्ता ( आचू पृ ३३१ ) । ४ सार, तात्पर्य ( दे ५।११ ) । ५ गवेषणा, खोज । ६ पालन ( प्रटी प ६७ ) । तित्तिरिअ -- स्नान से आर्द्र ( दे ५।१२ ) । तित्तिल -- १ परिसर्प-जाति-विशेष ( अंवि पृ ६३ ) । २ उतना । तित्तुअ -- गुरु, भारी ( दे ५।१२ ) । तिधिणी -- देवी-विशेष ( अंवि पृ ६९ ) । तिन्न -- आर्द्र ( ज्ञाटी प १२१ ) । तिपिसाचक -- गले का आभरण-विशेष ( अंवि पृ १६२ ) । तिपुड -- धान्य-विशेष ( निभा १०३० ) । तिमिगिल -- १ मत्स्य की एक जाति ( प्रज्ञा १९।५६ ) । २ मीन, मछली ( दे ५।१३ ) । तिमिगर -- जलचर-विशेष ( निभा ३९६१ ) । तिमिच्छअ -- पथिक ( दे ५।१३ ) । तिमिच्छाह -- पथिक ( दे ५।१३ ) । तिमिण -- गीला काठ ( दे ५।११ ) । तिमिरक -- गुल्म-विशेष ( अंवि पृ ६३ ) । तिमिरिच्छ -- करंज का पेड़ ( दे ५।१३ ) । तिरिड -- तिमिर वृक्ष ( दे ५।११ ) । तिरिडिअ -- १ तिमिर-युक्त । २ विचित, संगृहीत ( दे ५।२१ ) । तिरिड्डि -- उष्ण वात, गरम पवन ( दे ५।१२ ) । तिरियाणी -- एक तट से दूसरे तट पर ऋजुगामिनी नावा ( निच १ पृ ६९ ) । तिरोवइ -- बाड़ से व्यवहित ( दे ५।१३ ) । तिलंडा -- तिलों के डंठल ( अनु ३।५२ ) । तिलितिलिय -- जलजन्तु-विशेष ( दश्रु ८।३१ ) । तिल्लहडिका -- गिलहरी ( नंदीटि पृ १३३ ) । तिविडा -- सूचिका, सूई ( दे ५।१२ वृ ) । तिविडी -- छोटा पुडवा ( दे ५।१२ ) । तिव्व -- १ दीवार का छिद्र - 'तिव्वेण व मालेण व वाउपवेसेण अहव सढयाए ( ओभा ५८ ) । २ दुःसह ( सू १।१।४५; दे ५।११ ) । ३ अत्यंत, प्रचुर ( सू १।१।४५; दे ५।११ वृ ) । तिसरा -- जाल-विशेष ( विपा १।८।१९ ) । तिसरिय -- एक प्रकार का वाद्य - 'अण्णा उण तिसरियं छिवइ' ( कु पृ २६ ) । तिसिग -- आसन-विशेष ( आचू पृ ३५२ ) । तीतिणि -- फल-विशेष ( अंवि पृ २३८ ) । तीसालिका -- पुष्प-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । तुंगी -- रात्री ( दे ५।१४ ) । तुंडिय -- थिग्गल, पैबंद - 'तुंडियं थिग्गलं देसीभासाए सामयिगी वा एस पडिभासा' ( निचू २ पृ ४१ ) । तुंडीर -- मधुर बिम्बी-फल ( दे ५।१४) । तुंडूअ -- जीर्णघट ( दे ५।१५ ) । तुंडेरग -- खाद्य-विशेष, बड़ा ( आवचू २ पृ १६८ ) । तुंतुक्खुडिअ -- त्वरायुक्त, उतावला ( दे ५।१६ ) । तुंबिल्ली -- १ मधुमक्खियों का छाता । २ उदूखल, ऊखल ( दे ५।२३ ) । तुंबुरु -- टिंबरू का वृक्ष ( औपटी पृ ९८; दे ४।३ ) । तुच्छ -- अवशुष्क, अत्यंत सूखा हुआ ( दे ५।१४ ) । तुच्छइय -- अनुरक्त, उत्कंठित ( दे ५।१५ ) । तुच्छय -- अनुरक्त, उत्कंठित ( दे ५।१५ ) । तुडिग -- हाथ का आभरण ( ज्ञा १।१।१२८ ) । तुडित -- वाद्य-विशेष ( दश्रुचू प ९१ ) । तुडिय -- १ संख्या विशेष, चौरासी लाख त्रुटितांग ( भ ५।१८ ) । २ अन्तःपुर ( भ १०।६७ ) । ३ वाद्य - विशेष (भ १०।६९ ) । ४ थिग्गल, पैबंद-'पायस्स एक्कं तुडियं तड्डेइ' (नि १।४१) । ५ हाथ का आभरण- 'तुडियं बाहुरक्खिया' (निचू २ पृ ३९८ ) । तुडियंग -- १ संख्या-विशेष, ८४ लाख पूर्व- पूर्वाणि चतुरशीतिलक्षगुणितानि त्रुटिताङ्गानि भवन्ति' ( स्था २।३८९ प ८२ ) । २ कल्पवृक्ष का एक प्रकार ( प्रसाटी प ३१४ ) । तुण -- तूण नाम का वाद्य ( नि १७।१३७ ) । तुणय -- १ तूण नाम का वाद्य ( आचूला ११।२ ) । २ झुंख नाम का वाद्य ( दे ५।१६ ) । तुहि -- सूकर, सुअर ( दे५।१४ ) । तुहिक्क -- १ निश्चल ( नंदीटि पृ १३४ ) । २ मृदु-निश्चल ( दे ५।१५ ) । ३ मृदु - ' तुण्हिक्को मृदुनिश्चलयोः' । तुन्न -- त्रुटित, फटा हुआ ( नंदीटि पृ १३९ ) । तुन्नक -- वाद्य-विशेष ( आवचू १ पृ ३०९ ) । तुप्प -- १ घृत, घी ( प्रसा २३३; दे ५।२२ ) । तुप्पा (कन्नड़ ) । २ कलेवर की चर्बी-तुप्पो पुण मययकलेवरवसा भण्णति' ( निचू १ पृ ७४ ) । ३ कलेवर की चरबी या घी आदि से चुपड़ा हुआ (बृभा २९२२; दे ५।२२) । ४ सरसों का धान्य ( प्रसाटी प २३३; दे ५।२२) । ५ विवाह । ६ कौतुक, उत्सुकता । ७ घी आदि भरने का चर्मपात्र ( दे ५।२२ ) । ८ वेष्टित ( अनुद्वा २६ ) । तुप्पग्ग -- चिकना, घृष्ट-तुप्पगतिक्खसिंग' ( दश्रु ८।२२ ) । तुष्पित -- म्रक्षित, चुपड़ा हुआ (अनुद्वाचू पृ १३ ) । तुप्पिय -- स्निग्ध, चुपड़ा हुआ - 'नेहतुप्पियगत्तं' (विपा १।१२।१४) । तुमंतुम -- तू-तू मैं-मैं, वाचिक - कलह ( भ २५।५६८ ) । तुरंत -- शीघ्र ( आवचू १ पृ ३०१ ) । तुरक्क -- १ देश-विशेष, तुर्किस्तान । २ अनार्य जाति विशेष, तुरक । तुरयमुह -- त्वरावाला, जल्दबाज ( से ४।३० )। तुरी -- १ पुष्ट, मोटा । २ चित्रकार का उपकरण, तूलिका ( दे ५।२२ ) । तुरुक्की -- तुर्किस्तान की लिपि-विशेष ( विभा ४६४ टी ) । तुलग्ग -- काकतालीय न्याय, अकस्मात् ( दे ५।१५ ) । तुलसी -- १ भूतों का चैत्य वृक्ष - 'कलंबो उ पिसायाणं, बडो जक्खाण चेइयं । तुलसी भूयाण भवे, रक्खाणं च कंडओ।" ( स्था ८।११७ ) । २ सुरसलता, तुलसी ( भ २१।२१ ; दे ५।१४ ) । तुवर -- रस-विशेष, कषैला रस ( दे ५।१७ वृ ) । तुसेअजंभ -- लकड़ी ( दे ५।१६ ) । तूअ -- ईख का काम करने वाला ( दे ५ । १६ ) । तूका -- मकड़ी ( अंवि पृ ७० ) । तूण -- रोग-विशेष ( अंवि पृ २०३ ) । तूणइल्ल -- तूण वाद्य को बजाने वाला ( जीव ३।६१६ ) । तूपरड -- १ क्लीब । २ कूबडा ( दअचू पृ १६८ ) । तूमणय ( णूमणय ? ) -- छिपाना, स्थगन - 'देशीपदमेतद् स्थगनमित्यर्थः' ( व्यभा ३ टी प ४१ ) । तूलिणिआ -- शाल्मली वृक्ष ( दे ५।१७ ) । तूलिणी -- शाल्मली वृक्ष ( दे ५।१७ वृ ) । तूविर -- कषैला रस ( सूचू १ पृ १९ ) । तूह -- पशुओं के जलपान करने का स्थान, घाट (बृभा ४८६० ) । तूहण -- पुरुष ( दे ५।१७ ) । तेआली -- तृण-विशेष ( प्रज्ञा १।४३।१ ) । तेंडुअ -- तुंबुरु - वृक्ष ( दे ५।१७ ) । तेंदूसय -- १ क्रीडा विशेष । इस खेल में विजेता बालक पराजित बालकों की पीठ पर बैठ कर निर्दिष्ट स्थान तक चंक्रमण करता है - 'सामी तंदूसएण अभिरमति... तत्थ सामिणा स जितो, तस्स य उवरिं विलग्गो सामी ( आवहाटी १ पृ १२१) । २ कन्दुक, गेंद ( ज्ञाटी प २४४ ) । तेंबरुय -- तेंदु का फल ( भ १५।१२५ ) । तेंबुरु -- क्षुद्र कीट, त्रीन्द्रिय जन्तु की एक जाति ( जीवटी प ३२ ) । तेजण -- चाबुक ( दजिचू पृ ३१५ ) । तेड्ड -- १ शलभ । २ पिशाच ( दे ५।२३ ) । तेदुरणमज्जिया -- त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष ( प्रज्ञा १।५० ) । तेयलि -- वलयाकार वृक्ष ( प्रज्ञा १।४३ ) । तेयाली -- वलयाकार वृक्ष ( प्रज्ञा १।४३ पा ) । तेयालीस -- तेतालीस ( सम ४३।१ ) । तेरणि -- वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । तेरिम -- तेली ( निचू २ पृ २४३ ) । तेलाल -- धान्य-विशेष ( अंवि पृ २५७ ) । तेल्लकेला -- मिट्टी से बना बिना पेंदे वाला तेल - पात्र - 'तेल्लकेला इव सुसंगोविया' ( ज्ञा १।१।१७ ) - सौराष्ट्रप्रसिद्धो मृत्यस्तैलस्य भाजनविशेष: ' ( ज्ञाटी प १५ ) । तेल्लग -- शराब-विशेष ( जीव ३।५८६ ) । तेवण्ण -- तिरेपन ( सम ५३।१ ) । तेवरुक -- त्रीन्द्रिय जंतु-विशेष ( अंवि पृ २६७ ) । तेह -- परत ( दजिचू पृ १५५ ) । तोअय -- चातक पक्षी ( दे ५।१८ ) । तोंतडी -- करम्ब, दही-चावल का बन। खाद्य पदार्थ ( दे ५।४ ) । तोक्कअ -- बिना ही कारण कार्य में तत्पर होने वाला ( दे ५।१८ ) । तोट्ठ -- चतुरिन्द्रिय जंतु-विशेष ( प्रज्ञा १।५१ ) । तोडण -- १ असहिष्णु ( दे ५।१८ ) । २ फल-विशेष ( अंवि पृ २३८ ) । तोडहिया -- वाद्य-विशेष ( कु पृ ८२ ) । तोडुका -- चतुष्पद परिसर्प की एक जाति ( अंवि पृ २२६ ) । तोडु -- क्षुद्र कीट, चतुरिन्द्रिय जीव-विशेष ( अंवि पु २३७ ) । तोड्डक -- १ वृक्ष पर रहने वाला प्राणी-विशेष (अंवि पृ २२६) । २ टिड्डी । ३ भ्रमर ( अंवि पृ २२७ ) । तोणी -- शरीर - 'आहारे ताव च्छिंदाहि गेहिं तोणिं चइस्ससि' ( व्यभा १० टी प ६९ ) । तोत्तडि -- करंब, दही-चावल से बना हुआ खाद्य ( पा ४४० ) । तोप्पड्डय -- अनिष्पन्न ( निचू २ पृ ४८ ) । तोप्पारुभणा -- उत्सव-विशेष ( ? ) ( अंवि पृ ९८ ) । तोमरिअ -- शस्त्र प्रमार्जक, शस्त्रास्त्रों पर धार चढाने वाला ( दे ५।१८ ) । तोमरिगुंडि -- लता-विशेष ( पा ३४५ ) । तोमरी -- वल्ली, लता ( दे ५।१७ ) । तोरण -- फल की एक जाति ( अंवि पृ ६४ ) । तोरविय -- उत्तेजित ( पा ५३५ ) । तोलण -- पुरुष ( दे ५।१७ ) । तोला -- वाद्य-विशेष ( आवचू १ पृ ३०९ ) । तोवट्ट -- १ 'त्रपुपट्टिक' नाम का आभूषण । २ कमल-कर्णिका ( दे ५।२३ ) । तोस -- धन, ऐश्वर्य ( दे ५।१७ ) । थ थइया -- १ नौली, कमर में बांधने की रुपयों की थैली - 'संबलथइयासणाहो' ( उसुटी प ६२ ) । २ थैला ( अंवि पृ २२१ ) । थउड्ड -- भल्लातक वृक्ष, भिलावा ( दे ५।२६ ) । थंडिक्क -- कांस्य-पात्र ( आचू पृ ३४५ ) । थंडिल्ल -- १ क्रोध ( सू १।९।११ ) । २ वह स्थान जहां शव को जलाया गया हो और जहां राख आदि न हो- 'छारचिता- विरहितं तु थंडिल्लं ( निभा १५३५ ) । ३ मंडल, वृत्त प्रदेश ( दे ५।२५ ) । ४ शुद्ध भूमि ( बृचू प २०७ ) । थंब -- १ विषम ( दे ५।२४ ) । २ पतवार ( पा ८८२ ) । थंभ -- बिंदु ( पा २१४ ) । थंभायण -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । थकित -- थका हुआ, श्रांत ( अंपृि २४५ ) । थक्क -- १ श्रान्त, थका हुआ-पच्चूसे पुणो पत्थिया, मज्झण्हे तहेव थक्का' ( उसुटी प ६३ ) । २ अवसर ( आवचू १ पृ ५३१; दे ५।२४ ) । ३ ध्वनि-विशेष ( जीवटी प २४८ ) । थगथगिंत -- थर थर कांपता हुआ ( उसुटी प ६५ ) । थग्गया -- चोंच ( दे ५।२६ ) । थग्घ -- थाह, अगाध, ऊंडा ( दअचू पृ १७४; दे ५।२४ ) । थग्घा -- अगाध, ऊंडा ( पा ८४४ ) । थट्टि -- पशु ( दे ५।२४ ) । थडिक्कग -- कांस्य पात्र ( आचू पृ ३४५ ) । थत्तिअ -- विश्राम ( दे ५।२६ ) । थमिअ -- विस्मृत ( दे ५।२५ ) । थर -- दही के ऊपर की मलाई, थिरकी ( दे ५।२४ ) । थरथरिंत -- कांपता हुआ - 'सत्तू इव उवट्ठिओ थरथरिंतो' ( निभा ५६१ ) । थरहरिअ -- प्रकंपित - 'थरहरिउमारद्धा गिरिणो' (उसुटी प २७८; दे ५।२७) । थरु -- तलवार की मूंठ ( दे ५।२४ ) । थलअ -- मण्डप ( दे ५।२५ ) । थली -- १ देवद्रोणी, गांव का ऐसा स्थान जहां देवी देवता का मंदिर बना हो और जहां भेंट-पूजा चढ़ाई जाती हो ( निचू ३ पृ ५२१ ) । २ वैसा स्थान जहां विभिन्न प्रकार के भिक्षुक भोजन लेने आते हों ( व्यभा ७ टी प ४२ ) । ३ सत्रशाला ( बृभा १७७५ ) । थव -- पशु ( दे ५।२४ ) । थवइल्ल -- जांघ फैलाकर बैठा हुआ ( दे ५।२६ ) । थविआ -- प्रसेविका - १ वीणा के अंतिम भाग में लगाया जाने वाला छोटा काष्ठ । २ थैला ( दे ५।२५ ) । थवी -- प्रसेविका - १ वीणा के अंतिम भाग में लगाया जाने वाला छोटा काष्ठ: ( दे ५।२५ वृ ) । २ थेला । थस -- विस्तीर्ण ( दे ५।२५ ) । थसल -- विस्तीर्ण ( दे ५।२५ ) । थह -- आश्रय, स्थान ( दे ५।२५ ) । थाइणी -- प्रतिवर्ष प्रसव करने वाली घोड़ी ( बृभा ३९५९ ) । थाणइल्लग -- पहरेदार, प्रातिहारिक - 'थाणइल्लगा वि न वारिंति पव्वइओ त्ति ( आवहाटी २ पृ १३४ ) । थाणय -- १ पुलिस चौकी, थाना । २ पहरेदार, चौकीदार ( कु पृ १३५ ) । थाणिज्ज -- गौरवान्वित, सम्मानित ( दे ४।५ वृ ) । थाम -- १ स्थान ( उसुटी प ६२ ) । २ विस्तीर्ण ( दे ५।२५ ) । थार -- मेघ ( दे ५।२७ ) - थारत्थणिअं सोउं' (वृ) । थारुगिणिया -- देश-विशेष की दासी ( ज्ञा १।१।८२ ) । थालग -- १ पिंड, समूह ( आचूला १।१३३ ) । २ ( फली का ) पाक ( आटी प ३५४ ) । थाली -- १ पिंड, समूह - 'थाली सव्वातो चेव, पिडो समूहो य' ( आचू पृ ३४४ ) । २ ( फली का ) पाक ( आटी प ३५४ ) । थासग -- १ दर्पण के आकार का पात्र ( विपा १।२।१४ ) । २ कुदाल ( आवटि प ५९ ) । थाह -- १ स्थान । २ ऊंडा गम्भीर जल वाला । ३ विस्तीर्ण । ४ दीर्घ ( दे ५।३० ) । थिक्क -- स्पृष्ट - 'वड्ढइ हायइ छाया तत्थिक्कं पूइयंपि व न कप्पे' ( पिनि १७४ ) । थिक्किल्ल -- सुन्दर ( आवचू १ पृ २५७ ) । थिग्गल -- १ घर का वह द्वार जो किसी कारणवश फिर से चिना हुआ हो ( द ५।१।१५ ) । २ मैल - ' थिग्गलं जल्लो भणति' ( निचू २ पृ २२१ ) । ३ छिद्र - 'थिग्गल त्ति गिम्हे वातागमणट्ठा गवक्खादि छिड्डे करेंति (निचू २ पृ ३३८ ) । ४ खंडित वस्तु को ठीक करने के लिए लगाई जाने वाली जोड़- 'अन्नेण चंदणेण य भेरीए यिग्गलं दिन्नं ' ( नंदीटि पृ १०९ ) । थिग्गलय--पैबंद- 'पडियाणिया थिग्गलय छंदंतो च एगट्ठा' ( निचू ३ पृ ५६ ) । थिग्गलिआ -- पैबंद ( आवहाटी १पृ ६५ ) । थिच्चण -- उपमर्दन, उत्पीड़न - 'हरियच्छेअण छप्पईअ थिच्चणं' ( बृभा १५३७ ) । थिण्ण -- १ निःस्नेह दयालु । २ अभिमानी ( दे ५।३० ) । थिन्न -- गर्वित ( पा १२९ ) । थिभग -- कंद-विशेष ( भ २३।२ ) । थिमिअ -- स्थिर, निश्चल - 'जहा मंधादए णाम थिमियं पियति दगं' ( सू १।३।७१; दे ५।२७ ) । २ मंथर, मंद (पा १५ ) । थिरणाम -- चलचित्त, चंचल, अधीर ( दे ५।२७ ) । थिरसीस -- १ निर्भीक । २ निर्भर । ३ जिसने सिर पर कवच बांधा हो वह ( दे ५।३१ ) । थिल्लि -- दो खच्चरों की बग्घी ( दश्रु ६।३ ) । थिल्ली -- १ वाहन विशेष (अनुद्वाचू पृ ५३ ) । २ दो घोड़ों या खच्चरों से वाह्य यान । ३ लाट देश में प्रसिद्ध यान-विशेष - 'अड्डपल्लाण' ( औपटी पृ ११२ ) । थिविथिविंत -- थिव-थिव आवाज करता हुआ ( विपा १।७।७ )। थोणद्धि -- घोर निद्रालु जिसकी चेतना जड़ीभूत हो जाती है - 'इद्धं चित्तं तं थीणं जस्स अच्चंतदरिसणावरण कम्मोदया सो थीणद्धी भण्णति' ( निचू १ पृ ५५ ) । थोहु -- कन्द-विशेष - लोहिणीहू य थीहू य' ( उ ३६।९८ )। थीहू -- कंद-विशेष ( भ ७।६६ ) । थुक्किअ -- १ जुगुप्सित, तिरस्कृत - धिक्कारथुक्यिाणं तित्थुच्छेदो दुलभवित्ती' ( बृभा ५९३७ ) । २ उन्नत ( दे ५।२८ ) । थुड -- स्कंध, तना ( स्थाटी प १७६ ) । थुडंकियय -- रोष-युक्त वचन (पा ६५१) । थुडुंकिअ -- १ मौन । २ अल्पकुपित मुंह का संकोच ( दे ५।३१ ) । थुड्डलिय -- स्वल्प ( आवचू २ पृ २८८ ) । थुड्डहीर -- चामर ( दे ५।२८ ) । थुण्ण -- दृप्त, अभिमानी ( दे ५।२७ ) । थुरग -- तृण-विशेष ( भ २१।१९ ) । थुरय -- तृण-विशेष ( प्रज्ञा १।४२।२ ) । थुरुणुल्लणय -- शय्या ( दे ५।२८ ) । थुलम -- पटकुटी, तंबू ( दे ५।२८ ) । थुल्ल -- परिवर्तित ( दे ५।२७ ) । थूण -- घोड़ा ( दे ५।२९ ) । थूणा -- शरीर का एक अवयव ( अंवि पृ ६६ ) । थूणिका -- धान्य-विशेष ( अंवि पृ २२० ) । थूर -- १ बिना किनारी वाला । २ अगर्हित ( निचू २ पृ ९७ ) । ३ थोड़ा ( निभा १६१४ ) । थूरक -- शरीर का अवयव विशेष ( अंवि पृ ६६ ) । थूरी -- तन्तुवाय का एक उपकरण ( दे ५।२८ ) । थूलघोण -- सूकर, वराह ( दे ५।२९ ) । थह -- १ प्रासाद का शिखर । २ चातक पक्षी । ३ वल्मीक ( दे ५।३२ ) । थेक्कार -- ध्वनि-विशेष ( आवमटी प १८८ ) । थेग -- कंद-विशेष ( प्रसा २३८ ) । थेच्चण -- उपमर्दन ( बृटी पृ ४५३ ) । थेणिल्लिअ -- १ छीना हुआ । २ डरा हुआ ( दे ५।३२ ) । थेर -- विधाता, ब्रह्मा ( दे ५।२९ ) । थेरासण -- कमल ( दे ५।२९ ) । थेव -- बिन्दु ( दे ५।२९ ) । थेवरिअ -- जन्म के समय बजने वाला वाद्य ( दे ५।२९ ) । थेव्विद्ध -- स्तब्ध ( अंवि पृ १४८ ) । थोअ -- १ धोबी । २ मूला, कंद - विशेष ( दे ५।३२) । थोर -- १ स्थूल ( ज्ञा १।१।१५९ ) । २ क्रमशः लम्बा और गोल-गोवच्छगं थोरगत्तं सेयं पिच्छइ' (उसुटी प १३५; दे ५।३० ) । ३ गांव में घूम घूम कर किया जाने वाला व्यापार - 'लग्गा थोरेसु कह वि दुक्खत्ता' ( कु पृ १९१ ) । ४ गोणी - मणथोरं भरिऊणं आगमभंडस्स गुरुसयासाओ' ( कु पृ १९३ ) । थोरुइणिया -- देश-विशेष की दासी ( ज्ञाटी प ४६ ) । थोल -- वस्त्र का एक देश ( दे ५।३० ) । थोह -- बल ( दे ५।३० ) । थोहर -- थूहर का पेड़ ( विपाटी प ८० ) । थोहरी -- थूहर का वृक्ष ( प्रसा २३७ ) । द दइअ -- रक्षित ( दे ५।३५ ) । दंडसंपुच्छणी -- बुहारने का साधन-विशेष ( राज १२ ) । दंडि -- सांधा हुआ जीर्ण वस्त्र ( निभा ७८२ ) । दंडिणी -- राज-पत्नी ( पिनि ५०० ) । दंडिया -- पत्र पर लगाई जाने वाली राजमुद्रा ( बृभा १९५ ) । दंडी -- १ सांधा हुआ जीर्ण वस्त्र - 'दंडीखंडनिवसणा', कृतसंधानं जीर्णवस्त्रम्' ( ज्ञा १।१६।२९ टी प २०७ ) । २ स्वर्ण-सूत्र ( दे ५।३३ ) । ३ सांधा हुआ वस्त्रयुगल ( वृ ) । दंत -- पर्वत का एक भाग ( दे ५।३३ ) । दंतवण -- दन्तकाष्ठ, दतौन - 'दन्तमलापकर्षणकाष्ठम्' ( उपाटी पृ १६ ) । दंताल -- दांती, घास काटने का उपकरण-विशेष ( निचू १ पृ ३१ ) । दंताली ( राजस्थानी ) । दंतिअ -- शशक, खरगोश ( दे ५।३४ ) । दंतिअय -- खरगोश ( दे ५।३४ वृ ) । दंतिक्क -- १ तन्दुल, चावल । २ चावल का आटा (बृभा ३०९४) । ३ दांतों से चबाकर खाये जाने वाले पदार्थ ( निचू ४ पृ १११ ) । दंतिक्कय -- मांस से मिश्रित खाद्य पदार्थ ( पंव ९९ ) । दंभन -- सूची की भांति तीक्ष्ण शस्त्र विशेष ( विपा १।६।२६ पा ) । दंसणीय -- उपहार, भेंट - 'गहियं दंसणीयं । दिट्ठो राया' ( कु पृ ६७ ) । दक्खज्ज -- गीध पक्षी ( दे ५।३४ ) । दगंगुलिगा -- छाल - 'दगंगुलिगा पुण वक्को भण्णति' ( निचू १ पृ ७१ ) । दगमालग -- स्फटिकमय प्रासाद ( जंबूटी प ४४ ) । दगर -- रोग विशेष ( जीवटी प १५३ ) । दगवीणिया -- जलप्रवाह, पानी की नाली ( नि १।१२ ) । दच्छ -- तीक्ष्ण, तीखा ( दे ५।३३ ) । दडवड -- १ धाटी, कपट से आक्रमण करना, छापा मारना ( दे ५।३५ ) । २ शीघ्र । दढक -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । दढगालि -- १ धोया हुआ वस्त्र - 'दढगालिधौतपोतिः' ( जीविप पृ ५१ ) । २ ब्राह्मणों का धोया हुआ किनारी वाला वस्त्र-विशेष ( प्रसा ६७९ ) । दढमूढ -- १ मूर्ख । २ एक ग्राही, एक ही वात को पकड़कर चलने वाला ( दे १।४ वृ ) । दत्थर -- कर-शाटक, रूमाल ( दे ५।३४ ) । दद्दर -- १ दद्दर नामक पर्वत - 'दद्द रमलयगिरिसिहर' ( ज्ञा १२।१६।२५८ ) । २ सघन, प्रचुर - 'गोसीससरस रत्तचंदणदद्दर दिण्णपं चंगुलितला' ( समप्र १४४ ) । ३ चपेटा का आघात - 'दर्दरेण - चपेटाभिघातेन' । ४ सोपानवीथी -- 'दर्दरेषु - सोपानवीथीषु' ( टी प १२८ ) । ५ प्रहार - 'पाददद्दरं करेंति' (आवचू १ पृ १४८) । ६ वचन का आटोप ( प्रटी प ४६ ) । ७ वाद्य-विशेष ( जंबू २ ) । ८ पात्र के मुंह पर बांधा जाने वाला कपड़ा, ढक्कन ( आवचू २ पृ १०१ ) । ९ वस्त्र से अवनद्ध मुंह वाला पात्र ( भटी पृ ८७७ ) । दद्दरग -- १ प्रहार - 'पायदद्दरगं करेइ' (भ ३।११२) । २ गोह के चर्म से मढा हुआ वाद्य - 'यस्य चतुर्भिश्चरणैरवस्थानं भुवि स गोधाचर्मावनद्धो वाद्यविशेष:' ( जंबूटी प १०१ ) । दद्दरय -- १ आच्छादन - :भायणे छुहित्ता पोत्तेण दद्दरओ कीरइ' ( आवहाटी २ पृ ९० ) । २ आघात, प्रहार - 'अप्पेगतिया पाददद्दरयं करेंति' ( राज २८१ ) । दद्दरिका -- वाद्य-विशेष ( अनुद्राचू पृ ४५ ) । दद्दरिगा -- वाद्य-विशेष - 'ताडिज्जंताणं दद्दरगाणं दद्दरिगाणं ' ( राज ७७ ) । दद्दरिया -- १ वाद्य-विशेष - 'गोधा चम्मावणद्धा गोहिता सा य दद्दरिया' ( अनुद्वाहाटी पृ ६६ ) । २ प्रहार, आघात ( ज्ञा १।१६।२६१ ) । दधिफोल्लइ -- वनस्पति--विशेष ( भ २२।६ ) । दप्पसायण -- एक प्रकार का बंधन - :दिण्णं से दप्पसायणं णाम बंध' ( कु पृ १३६ ) । दब्भमील -- म्लेच्छ-विशेष - ' ते य मिलक्खू दब्भमीलादि' ( निचू ३ पृ ३५० ) । दमग -- दरिद्र - 'तए णं से सागरदत्ते एगं महं दमग पुरिसं पासइ' ( ज्ञा १।१६।७२ ) । २ मंदबुद्धि - 'दमग मंदबुद्धि त्ति' ( जीभा ८६५ ) । दमय -- १ कर्मकर ( बुभा १८२२ ) । २ दरिद्र, निर्धन ( द ७।१४; दे ५।३४ ) । दय -- १ जल ( दे ५।३३ ) । २ शोक - 'दयं शोक इत्यन्ये' ( वृ ) । दयच्छर -- ग्रामस्वामी, गांव का प्रधान ( दे ५।३६ ) । दयरी -- सुरा, मद्य ( दे ५।३४ ) । दयाइअ -- रक्षित ( दे ५।३५ ) । दयावण -- निर्धन ( दे ५।३५ ) । दयावणय -- निर्धन ( दे ५।३५ वृ ) । दर -- १ ईषत्, अल्प ( बृभा ९९ ) । २ आधा ( ओभा २५४; दे ५।३३ ) । दरंदर -- उल्लास ( दे ५।३७ ) । दरमत्ता -- बलात्कार ( दे ५।३७ ) । दरवल्ल -- गांव का मुखिया ( दे ५।३६ ) । दरवल्लणिहेलण -- शून्यगृह ( दे ५।३७ ) । दरवल्लह -- १ प्रिय व्यक्ति ( दे ५।३७ ) । २ कातर, भीत । दरविंदर -- १ दीर्घ । २ विरल ( दे ५।५२ ) । दराल -- पुष्प-विशेष ( भ २१।२१ ) । दरि -- गर्त, विवर- दरिं ति श्रृगालादिकृतभूविवर विशेषम्' ( भटी पृ १२५५ ) । दरिय -- निम्न भूप्रदेश ( भटी पृ ८०० ) । दरिसाव -- दर्शन, साक्षात्कार ( निचू १ पृ ९ ) । दरी -- बिलों वाला प्रदेश - 'मूषिकादिकृता लघ्वी खड्डा दरी' ( जीवटी प २८२ ) । दरुम्मिल्ल -- सघन, निबिड़ ( दे ५।३७ ) । दलिअ -- १ अंगुली । २ टेढी नजर वाला । ३ काष्ठ. लकड़ी ( दे ५।५२ ) । दलुक -- गीध पक्षी ( अंवि पृ २३९ ) । दल्लभो -- दंडनायक की पत्नी ( अंवि पृ ६८ ) । दव -- गद्गद्, अस्पष्ट ध्वनि ( दे ५।३३ ) । दवर -- १ तन्तु, धागा ( दे ५।३५ ) । २ रज्जु । दवरक -- रस्सी ( आवहाटी २ पृ ८७ ) । दवरय -- रस्सी ( सू २।२।१२ ) । दवरिका -- पलाश आदि की छाल के तंतुओं को बंटकर बनाई जाने वाली डोरी ( नंदीटि पृ १२७ ) । दवहुत्त -- ग्रीष्मकाल का प्रारम्भ ( दे ५।३६ ) । दविउलंक -- भाजन-विशेष ( अंवि पृ १९३ ) । दव्वहलिया -- कुहन वनस्पति का एक प्रकार ( प्रज्ञा १।४७ ) । दव्वी -- हरित वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।४४ ) । दसतीण -- धान्य-विशेष ( प्रज्ञाटी प ३४ ) । दसियाल -- पतला धागा - 'उण्णामय दसियालं एयं पुण पिंछयं कत्तो' ( कु पृ १४१ ) । दसीरिका -- खाद्य-विशेष ( अंवि पृ १८२ ) । दसु -- शोक ( दे ५।३४ ) । दसेर -- स्वर्ण-सूत्र ( दे ५।३३ ) । दहफुल्लह -- वल्ली-विशेष ( प्रज्ञा १।४०।५ ) । दहबोल्ली -- स्थाली, पकाने का पात्र ( दे ५।३६ ) । दहर -- छोटा ( अंवि पृ ११९ ) । दहिउप्फ -- मक्खन-दहिउप्फकोमलंगी' ( दे ५।३५ ) । दहिट्ठ -- कपित्थ का वृक्ष ( दे ५।३५ ) । दहित्थर -- दधिसर, दही की मलाई ( दे ५।३६ वृ ) । दहित्थार -- दधिसर, दही की मलाई - 'सदहित्थारयदहिणा णवदहवोल्लीइ विरइयकरंबं' ( दे ५।३६) । दहिमुह -- बन्दर-दहिमुहशब्दोऽपि देश्यः कपिवाची कैश्चिदुक्तः' ( दे ५।४४ वृ ) । दहिवासइ -- वनस्पति-विशेष ( जीवटी प ३५१ ) । दाअ -- प्रतिभू, ऋण लेने वाले और ऋण देने वाले के बीच जमानत देने वाला ( दे ५।३८ ) । दाइत -- दर्शित ( आवचू २ पृ ३५ ) । दाइय -- दर्शित ( आचूला १।१३१ ) । दाढिया -- दाढी - 'दाढियाए लोमाई लुंचमाणे' ( भ १५।१२० ) । दाढीय -- दाढी ( आवचू २ पृ ३०४ ) । दाण -- शुल्क, चुंगी - 'करेह से ट्ठिस्स अद्धदाणं' ( उसुटी प ६५ ) । दाणामा -- प्रव्रज्या का एक प्रकार। इसमें भिक्षु चार पुट वाला लकड़ी का पात्र लेकर भिक्षा के लिए जाता है। पहले पुट की भिक्षा पथिकों के लिए, दूसरे की कौए कुत्तों के लिए, तीसरे की मच्छ-कच्छों के लिए और चौथे पुट की भिक्षा स्वयं के लिए होती है ( भ ३।१०२ ) । दादलिआ -- अंगुली ( दे ५।३८ ) । दामक -- रुपया, मूल्य ( व्यभा ४।३ टी प १० ) । दामणि -- स्त्री पुरुष के शरीरगत बत्तीस शुभ लक्षणों में से एक-दामणि त्ति रूढिगम्यम्' ( प्रटी प ८४ ) । दामणी -- १ प्रसव । २ आंख, नयन ( दे ५।५२ ) । दायणा -- दिखाना ( बृभा ६२६४ ) । दार -- कटिसूत्र, कांची ( दे ५।३८ ) । दारद्धंता -- पेटी ( दे ५।३८ ) । दारिआ -- वेश्या ( दे ५।३८ ) । दाल -- दाल ( प्रटी प १४१ ) । दालि -- १ रेखा ( ओनि ३२४ ) । २ दाल, दला हुआ चना आदि अन्न । दालिअ -- नेत्र, नयन ( दे ५।३८ ) । दालिमपूसिक -- पात्र-विशेष ( अंवि पृ ६५ ) । दावर -- द्वितीय, दूसरा - 'द्वापरः इति समयपरिभाषया द्वितीयः' ( बृटी पृ ३३९ ) । दासय -- फल-विशेष ( अंवि पृ २३८ ) । दासि -- नीले फूल वाली गुच्छ वनस्पति ( प्रज्ञा १।३६।५ ) । दाहा -- प्रहरण-विशेष ( ज्ञा १।१८।३५ ) । दाव ( बंगला ) । दिअ -- दिवस ( दे ५।३९ ) । दिअंड -- प्रावरण-विशेष ( अंवि पृ १६१ ) । दिअज्झ -- स्वर्णकार, सुनार ( दे ५।३९ ) । दिअधुत्त -- कौआ ( दे ५।४१ वृ ) । दिअधुत्तअ -- काक, कौआ ( दे ५।४१ ) । दिअलिअ -- मूर्ख ( दे ५।३९ ) । दिअली -- स्थूणा, खंभा ( पा ३६० ) । दिअसिअ -- १ नित्य-भोजन ( दे ५।४० ) । २ प्रतिदिन ( वृ ) । दिअहुत्त -- पूर्वाह्न का भोजन ( दे ५।४० ) । दिआहम -- भासपक्षी ( दे ५।३९ ) । दिक्करअ -- बच्चा ( आवमटी प १३६ ) । दिक्करिका -- दुहिता, पुत्री ( आवहाटी १ पृ २६७ ) । दीकरी ( गुजराती ) । दिक्करुय -- पतली डोरी ( व्यभा २ टी प ४४ ) । दिगिंछा -- क्षुधा, बुभुक्षा - 'दिगिंछत्ति देशीवचनेन बुभुक्षोच्यते' ( उशाटी प ८२ ) । दिट्ठिल्लिय -- देखा हुआ ( उसुटी प ६५ ) । दिण्णेल्लिय -- दिया ( आवहाटी १ पृ २८९ ) । दिप्पंत -- अनर्थ ( दे ५।३९ ) । दिय -- दिवस ( बृभा २७६७; दे ५।३९ ) । दियल -- शाखा - 'दियलम्मि ओलइया' (व्यभा १० टी प ८० ) । दिरुल -- तिर्यञ्च जाति-विशेष ( अंवि पृ २३८ ) । दिलिवेढय -- ग्राह-विशेष; जलजन्तु की एक जाति ( प्र १।५ ) । दिल्लिंदिलिअ -- शिशु, बालक ( दे ५।४० ) । दिल्लिंदिलिआ -- बालिका ( पा ९६ ) । दिव्वासा -- चामुण्डा देवी ( दे ५।३९ ) । दीणार -- सोने का सिक्का ( आवचू १ पृ ४४६ ) । दीणारमालिआ -- गले का आभूषण-विशेष - 'दीनाराद्याकृतिमणिकमाला' ( जंबूटी प १०५ ) । दीणारमासक -- स्वर्ण-सिक्का ( अंवि पृ ६६ ) । दीणारी -- सोने का सिक्का ( अंति पृ ७२ ) । दीपकाण -- काणा, एक आंख वाला - 'काणा दीपकाणा फरला इत्यर्थः' ( प्रटी प २५ ) । दीवअ -- कृकलास, गिरगिट ( दे ५।४१ ) । दीवालिका -- दीपावली के अवसर पर बनाया जाने वाला खाद्य-विशेष ( अंवि पृ १५२ ) । दीविआ -- १ उपदेहिका, उदई ( जीभा ५३८; दे ५।५३ ) । २ शाकुनिक पक्षीघातक व्यक्ति द्वारा अन्य पक्षियों को आकृष्ट करने के लिए पिंजरे में रखा गया तीतर पक्षी ( ज्ञाटी प २४० ) । ३ व्याध की हरिणी जो दूसरे हरिणों को आकृष्ट करने के लिए रखी जाती है ( दे ५।५३ ) । दीविका -- दर्वी - 'दव्वी तध कवल्ली य दीविक त्ति कडच्छको' ( अंवि पृ ७२ ) । दीविच्चग -- एक प्रकार का सिक्का । देखें- 'दीविच्चिक' ( निभा ९५८ ) । दीविच्चिक -- द्वीप-विशेष में होने वाला सिक्का जो एक रुपये के समान होता था - साहरको णाम रूपकः, सो य दीविच्चिको । तं च दीवं सुरट्ठाए दक्खिणेण जोयणमेत्तं समुद्दमवगाहित्ता भवति' ( निचू २ पृ ९५ ) । दीहजीह -- शंख ( दे ५।४१ ) । दुअक्खर -- नपुंसक ( दे ५।४७ ) । दुअग्ग -- दंपती ( उनि ३६७ ) । दुएक्का -- शौचक्रिया, देहचिन्ता ( आवटि प २५ ) । दुंदुमिअ -- गल-गर्जित, गले से चिल्लाना ( दे ५।४५ )। दुंदुमिणी -- रूपवती स्त्री ( दे ५।४५ ) । दुंबवती -- नदी, सरिता ( दे ५।४८ ) । दुक्कर -- माघ मास में रात्रि के चारों प्रहर में किया जाता स्नान ( दे ५।४२ ) । दुक्कुक्कणिआ -- पात्र, पीकदान ( दे ५।४८ ) । टुक्कुह -- १ असहन, असहिष्णु ( दे ५।४४) । २ रुचि रहित ( वृ ) । दुक्ख -- जघन ( दे ५।४२ ) । दुक्खरय -- दास ( बृभा ६२८५ ) । दुगंछणा -- संयम - 'पहू एजस्स दुगंछणाए' ( आ १।१४५ ) । दुगुंछा -- जुगुप्सा ( सम २१।२ ) । दुगुल्ल -- १ वृक्ष-विशेष । २ दुकूल वृक्ष की छाल से बना वस्त्र -- दुकूलो वृक्ष-विशेषस्तस्य वल्कं गृहीत्वा उदूखले जलेन सह कुट्टयित्वा बुसीकृत्य सूत्रीकृत्य च वूयन्ते यानि तानि दुकूलानि' ( प्रटी प ७०,७१ ) । ३ गौड देश में विशिष्ट रूई से निष्पन्न वस्त्र ( आटी प ३९३ ) । दुगूल -- १ वृक्ष-विशेष । २ दुकूल वृक्ष की छाल से बना वस्त्र । ३ दुकूल वृक्ष की छाल के सूक्ष्म रोओं से निर्मित वस्त्र । ( ज्ञा १।१।३३ टी प ३० ) । देखें - 'दुगुल्ल' । दुग्ग -- १ कष्टप्रद - 'वेयणं उदीरेंति - उज्जलं विउलं दुगं' ( भ ५।१३८ ) । २ दुःख - 'दुग्गजलोघदूरणिवोलिज्जमाण' ( प्र ३।३३ ) । ३ कमर ( दे ५।५३ ) । ४ युद्ध । दुग्गव -- दुष्ट बैल ( द ९।२।१९ ) । दुग्घुट्ट -- हाथी ( दे ५।४४ ) । दुघाण -- दुर्भिक्ष - 'दुघाणं ति वा दुभिक्खं ति वा एगट्ठं' ( बृचू प १४८ ) । दुच्चंडिअ -- १ दुर्ललित । २ दुःशिक्षित, दुर्विदग्ध ( दे ५।५५ ) । दुच्चंबाल -- १ झगड़ालू । २ दुश्चरित । ३ परुषभाषी ( दे ५।५४ ) । दुज्जाय -- कष्ट, दुःख, उपद्रव ( दे ५।४४ ) । दुट्ठ -- द्वेषयुक्त ( ओनि ७५८ ) । दुट्ठस्स -- गर्दभ ( बृटी पृ ४५० ) । दुणा -- दुर्गन्धयुक्त - 'जाणि एयाणि खारकडुयाणि दुणापाणियाणि उवभुंजेह' ( आवहाटी २ पृ ४४ ) । दुणियत्थ -- जांघ तक पहना हुआ वस्त्र ( बृभा ४११२ ) । दुण्णिअत्थ -- १ जघन पर पहना हुआ वस्त्र । २ जघन ( दे ५।५३ ) । दुण्णिक्क -- दुश्चरित ( दे ५।४५ ) । दुण्णिखित्त -- १ दुश्चरित ( दे ५।४५ ) । २ दुर्दर्श, जो कष्ट से देखा जा सके ( षीकाघावृ ) । दुत्ति -- शीघ्र ( दे ५।४१ ) । दुत्थ -- जघन ( दे ५।४२ ) । दुत्थुरुहंड -- कलहकारी पुरुष ( दे ५।४७ वृ) । दुत्थुरुहंडा -- कलह करने वाली स्त्री ( दे ५।४७) । दुत्थोह -- अभागा ( दे ५।४३ ) । दुद्दम -- देवर, पति का छोटा भाई ( दे ५।४४ ) । दुद्दोली -- वृक्ष पंक्ति ( दे ५।४३ ) । दुद्धअ -- समूह ( दे ५।४२ ) । दुद्धगंधिअमुह -- बालक, शिशु ( दे ५।४० ) । दुद्धगंधिअमुही -- छोटी लड़की ( पा ९६ ) । दुद्धट्टी -- १ खट्टी छाछ आदि से मिश्रित दूध, किला टिका- 'अंबिलजुयंमि दुद्धे दुद्धट्ठी ( प्रसाटी प ५४ ) । २ प्रसूति के बाद तीन दिन तक का गो-दुग्ध । दुद्धट्ठी -- १ खट्टी छाछ आदि से मिश्रित दूध, किल2इत्, बलाई ( प्रसाटी प ५४ ) । २ प्रसूति के बाद तीन दिन तक का गो-दुग्ध । दुद्धवलेही -- चावल का आटा डालकर पकाया गया दूध-तंडुलचुण्णयसिद्धंमि अवलेही' ( प्रसाटी प ५४ ) । दुद्धसाडी -- द्राक्षा डालकर पकाया गया दूध - 'दक्खमीसरद्धंमि पयसाडी' ( प्रसाटी प ५४ ) । दुद्धिअ -- लौकी, कद्दू ( आवनि १३१८ ) । दूधी ( गुज ) । दुद्धिग -- लौकी, कद्दू ( सूचू १ पृ १२५ ) । दुद्धिणिआ -- १ तुम्बी । २ तेल रखने का पात्र ( दे ५।५४ ) । दुद्धिणी -- १ तेल-भाजन । २ तुम्बी ( दे ५।५४ वृ ) । दुद्धोलणी -- वह गाय जिसका दुबारा दोहन किया जा सके - 'दुद्धोलणी दुहिअदुज्झाए' ( दे ५।४६ ) । दुद्धोली -- वृक्षों की कतार ( दे ५।४३ पा ) । दुप्परिअल्ल -- १ अशक्य । २ दुगुना । ३ अनभ्यस्त ( दे ५।५५ ) । दुब्बोडित -- दुर्मुण्ड, अपमानजनक संबोधन ( बृभा ३३५० ) । दुब्बोल्ल -- उपालम्भ ( दे ५।४२ ) । दुब्भपुप्फ -- सांप का एक प्रकार ( जीवटी प ३९ ) । दुमंतअ -- केश-बंध, जूड़ा ( दे ५।४७ ) । दुमण – १ परिताप - '•••••वणण-दुमण-वाहणादियाइ साहेति' ( प्र २।१२ ) । २ धवलन- '•••••छायण-दुमण-लिंपण••••••' ( प्र ८।९ ) । दुमणी -- सुधा चूना ( दे ५।४४ ) । दुम्मइणी -- कलह करने वाली स्त्री ( दे ५।४७ ) । दुम्मुह -- बन्दर ( दे ५।४४ ) । दुयग्ग -- १ दोनों - 'एहि दुयग्गा वि य वयामो' ( निचू ३ पृ १४३ ) । २ दम्पती - 'दुयग्गावि त्ति देशीपदं प्रक्रमाच्च द्वावपि दम्पती' ( उशाटी प ३९४ ) । दुरंदर -- दुःख से उत्तीर्ण ( दे ५।४६ ) । दुरालोअ -- अन्धकार ( दे ५।४६ ) । दुरियखारी -- वेश्या - 'दुरियखारिं सो उरि धरइ' ( उसुटी प ३० ) । दुरुक्क -- थोड़ा पीसा हुआ, अच्छी तरह से नहीं पीसा हुआ ( आचूला १।१११ ) । दुरुय -- दुर्गन्ध-युक्त ( ज्ञा १।१।१०९ ) । दुरुढ -- आरूढ ( स्था ९।६२ ) । दुख्य -- मलमूत्रयुक्त कीचड़ - 'दुरूयं णाम उच्चार-पासवण-कद्दमो' ( सूचू १ पृ १३१ ) । दुरूव -- विष्ठा, रक्त, मांस आदि का कर्दम - 'ते तत्थ चिट्ठंति दुरूवभक्खी' ( सू १।५।२० ) । दुलि -- कछुआ ( उशाटी प ४००; दे ५।४२ ) । दुल्ल -- वस्त्र ( दे ५।४१ ) । दुल्लग्ग -- अघटमान, अयुक्त ( दे ५।४३ ) । दुल्लसिआ -- दासी ( दे ५।४६ ) । दुवक्खरय -- दास ( पंक ४४७ ) । दुवग्ग -- दोनों देशीवचनत्वात् द्वावपि' ( बृटी पृ ४९१ ) । दुव्वाली -- वृक्ष पंक्ति ( पा ४०० ) । दुव्वोज्झ -- दुर्धात्य, कष्ट से मारने योग्य ( से ३।५) । दुसुंठ -- उद्दण्ड-'दुसुण्ठा उल्लण्ठा खिङ्गाः ( जीविप पृ ५२ ) । दुहअ -- चूर-चूर किया हुआ ( दे ५।४५ ) । दुहदुहग -- दुह दुह आवाज करना ( जीव ३।४४७)। दुहुदुहुग -- दुहु-दुहु की आवाज ( राज २८१ ) । दूण -- हाथी ( दे ५।४४ ) । दूणावेढ -- १ अशक्य । २ तालाब ( दे ५।५६ ) । दूमक -- पीडाकारक- 'अमणोरमाइं हिययमण-दुमकाइं' ( प्र २।१७ ) । दूमण -- उत्पीडन-'•••••पहार-दूमण- छविच्छेयण' ( प्र १।३० ) । दूमित -- झुलसा हुआ दवदूमितंजणदुमो' ( विभा १३०४ ) । दूमिय -- १ ईषत् भक्षित ( आचूला १।११६ ) । २ धवलित ( ज्ञा १।१।१८ ) । ३ पीडित । दुरुल्ल -- दूरवर्ती ( उसुटी प ७९ ) । दूलि -- मत्स्य-विशेष ( विपाटी प ७९ ) । दूसल -- मन्दभाग्य, अभागा ( दे ५।४३ ) । दूसि -- छाछ, तक्र - 'दूसिमिति देशीवचनत्वाद् दृष्यमेतत् मथितं तक्रम्' ( प्रज्ञाटी प ३५९ ) । दूहट्ठ -- लज्जा से उद्विग्न ( दे ५।४८ ) । दूहल -- मन्द-भाग्य ( दे ५।४३) । दे -- १ अपशब्द-सूचक अव्यय - 'दे ! मंदभग्ग ! घुक्किय तुससि तं णाममेत्तेणं' ( जीभा ८३८ ) । २ पादपूरक अव्यय । देअड -- दृतिकार, मशक वहन करने वाला ( अनुद्वा ३६० ) । देयड -- चर्मकार ( प्रज्ञा १।९७ ) । देवउप्फ -- पका हुआ पुष्प, पूर्ण विकसित फूल ( दे ५।४९ ) । देवड -- १ चर्मकार ( जीभा ४२५ ) । २ पुजारी ( अंवि पृ १६० ) । देवडिंगर -- वह सार्वजनिक स्थान जहां देवताओं की स्थापना की जाती है; एक प्रकार का मंदिर ( व्यभा ७ टी प ४१ ) । देस -- एक, दो या तीन प्रसृति का नाप - 'एक्का पसति दो वा तिण्णि वा पसतीतो देसो भण्णति' ( निचू ३ पृ ४६५ ) । देसराग -- जिस देश में जो रंगने की विधि हो उससे रंगा जाने वाला वस्त्र - 'जत्थ विसए जा रंगविधी ताए, देसे रत्ता देसरागा' ( निचू २ पृ ३९९ ) । देसियमेली -- व्यापारी - मंडल - 'स तत्थ देसियमेलीए गओ' ( कु पृ ६५ ) । देसी -- अंगूठा - 'देशीत्यङ्गुष्ठोऽभिधीयते,' 'देसी पोरपमाणा' ( व्यभा टी प ४ ) । देहंबलिया -- भिक्षावृत्ति - 'गेहंगेहेणं देहंबलियाए वित्तिं कप्पेमाणी विहरइ' ( ज्ञा १।१६।२९ ) । देहणी -- पंक, कर्दम ( दे ५।४८ ) । देहमाण -- देखता हुआ ( भ ९।१४७ ) । देहवच्च -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । देहिय -- देखकर ( सू १।२।३ ) । दोआल -- वृषभ ( दे ५।४१)। दोग्ग -- युगल ( दे ५।४९ ) । दोघट्ट -- हाथी ( पा ९ ) । दोच्च -- चोर आदि का भय - 'दोच्चं ति चौरादिभयम्' ( बृभा ३८६५ टी ) । दोच्चंग -- १ पकाया हुआ शाक ( बृभा ८०१ ) । २ तीमन ( ओभा २९७ ) । दोट्टग -- छिलका उतारा हुआ फल का गुदा - भाग - 'दोट्टगं छल्लीमोयगं' ( आचू पृ ३६७ ) । दोड्ढिय -- तुम्बा ( व्यभा १० टी प ६३ ) । दोणअ -- १ गांव का मुखिया, गांव का अधिकारी, आयुक्त ( दे ५।५१ ) । २ हल चलाने वाला ( वृ ) । दोणक्का -- सरघा, मधुमक्खी ( दे ५।५१ ) । दोण्णक -- दोना, पत्तों का पुडवा ( व्यभा ४।२ टी प ८४ ) । दोद्धिअ -- चर्मकूप, मशक ( जीभा ४०३ ; दे ५।४९ ) । दोद्धिग -- तुम्बा ( बृभा ६५८ ) । दोद्धियक -- तुंबे से बना पात्र - 'दोद्धियकं तुंबघटितं' ( निचू २ पृ ४६ ) । दोयडी -- दुसरसूत्री पटी ( जीविप पृ ५१ ) । दोर -- १ धागा ( आवनि १०३१ ) । २ छोटी रस्सी ( ओभा ९४ ) । ३ कटि-सूत्र ( दे ५।३८ ) । दोरक -- रज्जु - 'रज्जुओ दोरको त्ति वृत्तं भवति' ( निचू २ पृ ४० ) । दोरग -- डोरा ( निचू ४ पृ १३३ ) । दोरिया -- वस्त्र-विशेष, डोरिया ( प्रसाटी प १९१ ) । दोला -- चतुरिन्द्रिय जीव विशेष ( प्रज्ञा १।५१ ) । दोवेली -- सायंकालीन भोजन ( दे ५।५० ) । दोस -- १ द्वेष ( उ ३२।७ ) । २ आधा । ३ कोप ( दे ५।५६ ) । दोसणिज्जंत -- चन्द्रमा ( दे ५।५१ ) । दोसरिय -- चांदनी - 'दोसरियाणं मज्झे देवउले जोइया सिला तेणं' ( उसुटी प ९१ ) । दोसाकरण -- कोप ( दे ५। ५१ ) । दोसाणिअ -- निर्मल किया हुआ ( दे ५।५१ ) । दोसिणा -- ज्योत्स्ना ( स्था २।३९१ ) । दोसिणाभा -- चन्द्र की अग्रमहिषी ( स्था ४।१७५ ) । दोसिणी -- ज्योत्स्ना ( दे ५। ५० ) । दोसिल्ल -- द्वेषयुक्त ( विभा १११० ) । दोसीण -- बासी अन्न ( प्र १०।१७ ) । दोहणहारी -- १ दोग्ध्री, दोहने वाली स्त्री ( दे १।१०८ ) । २ पनीहारी, जललाने वाली । ३ पारिहारिणी - १ माला गूंथने वाली । २ पारी ( दुहने का पात्र ) लाने वाली ( दे ५।५६) । दोहणी -- पंक, कर्दम ( दे ५।४८ ) । दोहासल -- कमर ( दे ५।५० ) । दोहूअ -- शव ( दे ५।४९ ) । द्रवक्क -- भय ( प्रा ४।४२२ ) । द्रेहि -- दृष्टि ( प्रा ४।४२२ ) । ध धअ -- पुरुष ( दे ५।५७ ) । धंग -- भ्रमर ( दे ५।५७ ) । धंत -- अत्यधिक - 'धंतं पि दुद्धकंखी न लभइ दुद्धं अधेणूतो' ( बृभा १९४४ ) - 'देशीवचनत्वाद् अतिशयेन' ( टी पृ ५६६ ) । धंधा -- लज्जा ( दे ५।५७ ) । धंसाडिअ -- नष्ट, व्यपगत ( दे ५।५९ ) । धकंटि -- वृक्ष की एक जाति ( अंवि पृ ७० ) । धडहड -- वेग से - 'धडहड जीविउ जाइ चित्तु परलोयह दिज्ज उ' ( उसुटी प ११३ ) । धणिअ -- १ अत्यधिक, अतिशय ( भ ९।२०८ ; दे ५।५८ ) । २ स्वामी, पति । धणिआ -- १ भार्या, पत्नी ( दे ५।५८ ) । २ स्तुति - पात्र स्त्री, धन्या । धणित -- अत्यन्त ( आवचू २ पृ २८४ ) । धणिता -- तरुण स्त्री, प्रिया, गृहस्वामिनी ( अंवि पृ ६८ ) । धणिया -- गाढ - 'अणुप्पेहाए णं आउयवज्जाओ सत्तकम्मपगडीओ धणियबंधण-बद्धाओ सिढिलबंधणबद्धाओ पकरेइ' ( उ २९।२३ ) । धणी -- १ पत्नी । २ पर्याप्ति, पर्याप्त । ३ जो बंधा हुआ होने पर भी अभय हो ( दे ५।६२ ) । धणुहुल्लक -- छोटे धनुष का खिलौना ( सूचू १ पृ ११८ ) । धण्णक -- पशु-विशेष ( अंवि पृ ६२ ) । धण्णपहरण -- धान्य का मर्दन - 'जोवणं ति धान्यप्रकर:••••••••लाटविषये जोवणं धण्णपइरणं भण्णइ' ( ओटी प ७५ ) । धण्णाउस -- १ धन्य आयुष्मन् ! इस प्रकार कहा जाने वाला आशीर्वाद ( दे ५।५८ ) । २ आशीर्वाद ( वृ ) । धण्णारिया -- भ्रमरी ( निचू २ पृ १९७ ) । धत्त -- १ निहित, स्थापित ( आवहाटी १ पृ ३१८ ) । २ वनस्पति-विशेष । धनक -- घर के बाहर का कमरा ( ओटी प ५७ ) । धमधमिंत -- जाज्वल्यमान - 'रोसेण धमधमिंतो ( प्रसा १६५ ) । धम्मअ -- १ चार अंगुल का हस्त-व्रण । २ चण्डी देवी की नरबलि ( दे ५।६३ ) । धम्मकरक -- पानी छानने का कपड़ा ( निचू १ पृ ७४ ) । धम्मणग -- फल-विशेष ( धंवि पृ २३८ ) । धम्मण्ण -- वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ६३ ) । धयण -- गृह ( दे ५।५७ ) । धर -- तूल, रूई ( दे ५।५७ ) । धरग्ग -- कपास ( दे ५।५८ ) । धरच्छ -- आभूषण-विशेष - 'मगधकं धराक्षं च रूढिगम्यम्' ( औपटी पृ १०३ ) । धव -- वेग, तीव्रता - 'धवसगसद्देण जलमुट्ठाहियं' ( आवचू १ पृ ५५३ ) । धवल -- स्वजाति में उत्तम, जैसे- अश्वधवल - उत्तम घोड़ा ( दे ५।५७ ) । धवलसउण -- हंस ( दे ५।५६ ) । धवासि -- वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । धव्व -- वेग ( दे ५।५७ ) । धस -- गिरने की आवाज- कोट्टिमतलंसि धस त्ति सव्वंगेहिं संनिवडिया' ( भ ९।१६८ ) । धसल -- विस्तीर्ण ( दे ५।५८ ) । धाडण -- आक्रांत - 'वारेह सरडुवेक्खण, धाडण गयणास चूरणता' ( निभा २७८६ ) । धाडि -- १ हमला, आक्रमण, डाका - 'चोरधाडिभएण बहू गामा एगट्ठिता' ( निचू ३ पृ १६३ ) । २ निरस्त, निराकृत ( दे ५।५९ ) । धाडित -- तिरस्कृत, निष्कासित - ततिओ रुट्ठो घेत्तुं पिट्टिता धाडिता य ( आवचू १ पृ ८१ ) । धाडिय -- १ तिरस्कृत, निष्कासित - तेण दढं पिट्टिया धाडिया य' ( अनुद्वाहाटी पृ २९ ) । २ बगीचा ( दे ५।५९ ) । धाडी -- आक्रमण - 'गामे निवडिया चोरघाडी' ( उसुटी प १९३ ) । धाणग -- धनिया, धाना ( निचू २ पृ १०९ )। धाणूरिअ -- विशेष प्रकार का फल ( दे ५।६० ) । धात -- १ पीछा करने वाला- 'इतरेवि धाता नियत्ता' ( आवचू १ पृ ४९७ ) । २ सुभिक्ष । ३ विभव - 'धातं सुभिक्खं अथवा धातं विभवो ( उचू पृ ९४ ) । धाय -- सुभिक्ष - 'धायं ति वा सुभिक्खं ति वा एगट्ठं' ( निचू ३ पृ ७० ) । धार -- लघु, छोटा ( दे ५।५९ ) । धारधारी -- तापसों का काष्ठमय उपकरण जो कांख में धारण किया जाता है ( नंदीटि पृ १०१ ) । धारा -- रणभूमि का अग्रभाग, मोर्चा ( दे ५।५९ ) । धारावास -- १ बादल । २ मेंढक ( दे ५।६३ ) । धारिट्ठ -- साहस - 'पगब्भं ति धारिट्ठं' ( नंदीचू पृ ११ ) । धाह -- गहराई का अंत, थाह - 'जाहे कोति महासमुद्दं तरिऊण जाहे अणेण धाहो, (थाह) लद्धो भवति ताहे मुहुत्तं अच्छिऊण सेसं तरति' ( आवचू १ पृ १०६ ) । धाहा -- शोरगुल - सो धाहाओ करेइ' (उसुटी प २७) । धाहाधाह -- चिल्लाहट, क्रंदन - 'एसो अवकंदंतो बंधुयणो पिट्ठओ य रुयमाणो' । तणकट्ठ अग्गिहत्थो, धाहाधाहं करेमाणे ॥ ( कु पृ १८६ ) । धाहाविय -- पुकार, चिल्लाहट - तओ धाहावियं णेण' ( कुपृ ६७ ) । धिइल्लिया -- पुतली, शालभंजिका ( आवहाटी १ पृ २२९ ) । धिकुण -- क्षुद्र जन्तु, चींचड ( अंबिपृ २३७ ) । धिज्जा -- बालिका ( अंवि पृ ६८ ) । धितिगा -- पुतली ( आवहाटी २ पृ १४३ ) । धियइल्ल -- मगदंतिया, मल्लिका ( दजिचू पृ १९६ ) । धिवल -- दीन, मलिन - 'निस्सोयमइलं दीणं अट्ठमं धिवलागतं' ( अंवि पृ ४१ ) । धीउल्लिका -- पुतली ( अनुद्वामटी प १२ ) । धीउल्लिगा -- पुतली ( अनुद्वाहाटी पृ ७ ) । धीउल्लिया -- पुतली - 'अट्ठचकाणमुवरिं ठविया धीउल्लिया सा अच्छिम्मि विंधेयव्वा' ( उसुटी प ६६ ) । धीतर -- पुत्र - 'महपितुकधीतरं वा पित्तियधीतरं वा•••••जोणिभगिणिं वा' ( अंवि पृ २१९ ) । धीतरी -- पुत्री - 'पितुस्सियाधीतरिं बूया, मातुस्सियाधीतरिं वा' ( अंवि पृ २१९ ) । धीतिगा -- कठपुतली ( आवचू १ पृ ४४९ ) । धीतीगा -- पुतली - 'सा धीतीगा अच्छिंमि विद्धा' ( आवहाटी २ पृ १४३ ) । धोम्मरग -- धीवर ( आवहाटी २ पृ २२६ ) । धीया -- कठपुतली ( आवचू १ पृ ४५० ) । धीयार -- ब्राह्मण ( आवमटी प २७६ ) । धुअगाअ -- भ्रमर ( दे ५।५७ ) । धुंधुमारा -- इन्द्राणी ( दे ५।६० ) । धुक्कुद्धुअ -- उल्लसित ( दे ५।६० ) । धुक्कुद्धुगिअ -- उल्लसित ( दे ५।६० ) । धुत्त -- १ विस्तीर्ण ( व्यभा ८ टी प २९; दे ५।५८ ) । २ आक्रान्त । धुरुड -- कुमिविशेष ( अंवि पृ २२९ ) । धूण -- हाथी ( दे ५।६० ) । धूतुल्लिका -- भाजन-विशेष ( अंवि पृ ७२ ) । धूमंग -- भ्रमर ( दे ५।५७ ) । धूमणत्त -- भांड-विशेष ( अंवि पृ २३० ) । धूमद्दार -- गवाक्ष, वातायन ( दे ५।६१ ) । धूमद्धय -- १ तालाब । २ महिष, भैंसा ( दे ५।६३ ) । धूमद्धयमहिसी -- कृत्तिका नक्षत्र ( दे ५।६२ ) । धूममहिसी -- कुहरा, कुहासा ( दे ५।६१ ) । धूमरी -- १ नीहार, कुहासा ( दे ५।६१ ) । २ हिम । धूमसिहा -- नीहार, कुहासा ( दे ५।६१ ) । धूमा -- नीहार, कुहासा ( स्थाटी प ४५१ ) । धूमिआ -- नीहार, कुहासा ( स्था १०।२०; दे ५।६१ ) । धूयरा -- लड़की - 'पिहुण्डे ववहरन्तस्स वाणिओ देइ धूयरं' ( उ २१।३) । धूरिअ -- दीर्घ, लम्बा ( दे ५।६२ ) । धूरिअवट्ट -- अश्व ( दे ५।६१ वृ ) । धूलडिया -- धूल, रजकण ( प्रा ४।४३२ ) । धूलीवट्ट -- अश्व ( दे ५।६१ ) । धोक -- छात्र ( उचू पृ २० ) । धोयगि -- मद्य के नीचे एकत्रित होने वाला कर्दम - मज्जस्स हेट्ठा धोयगिमादिफिट्टिसंखेलो' ( निचू ४ पृ २२३ ) । धोरण -- गति चातुर्य ( जंबू ३।१७८ ) । धोरिगिणी -- नर्तकी ( आवहाटी २ पृ १४१ ) । प पइ -- मूत्र - 'पइ त्ति पासवणं' ( प्रसा ९६ ) । पइअ -- १ भर्त्सित, तिरस्कृत । २ रथ का चक्र ( दे ६।६४ ) । पइट्ठ -- १ रस को जानने वाला, ज्ञातरस । २ विरल । ३ मार्ग ( दे ६।६६) । ४ प्रेषित, भेजा हुआ । पइट्ठाण -- नगर ( दे ६।२९ ) । पइण्ण -- विपुल ( दे ६।७ ) । पइरिक्क -- १ एकान्त - 'पइरिक्कुवस्सयं लद्धुं••••तत्थऽहियासए' ( उ २।२३; दे ६।७१ ) । २ यथेच्छ ( आवहाटी १ पृ ४३ ) ।.३ तुच्छ ( से १।५८ ) । ४ विशाल । ५ शून्य ( दे ६।७१ ) । ६ प्रचुर (जीव ३।५९४ ) । पइरिक्कय -- प्रचुर ( ओनि २४९ ) । पइलाइय -- सर्प की एक जाति ( अंवि पृ ९ ) । पडल्ल -- १ ग्रह विशेष ( स्था २।३२५ ) । २ रोग विशेष, श्लीपद रोग ( प्र १०।१५ ) । पइहंत -- जयन्त, इन्द्र का एक पुत्र ( दे ६।१९ ) । पउअ -- दिन ( दे ६।५ ) पउट्ट -- परिवर्त-मरकर फिर उसी शरीर में उत्पन्न होना । देखें - पउट्टपरिहार ( भ १५।७५ ) । पउट्टपरिहार - मर कर पुनः उसी शरीर में बार-बार उत्पन्न होना -- 'पउट्टपरिहारो नाम परावर्त्य परावर्त्य तस्मिन्नेव सरीरके उववज्जंति' ( आवचू १ पृ २९९ ) । पउढ -- १ घर ( दे ६।४ ) । २ घर का पिछला भाग - पउढो गृहस्य पश्चिमदेश इति केचित्' ( वृ ) । पउण -- १ घाव का भरना, व्रण- प्ररोह । २ एक प्रकार का नियम ( दे ६।६५ ) । पउण्ण -- वस्त्र-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । पउत्थ -- १ प्रोषित, प्रवास में गया हुआ ( आवचू १ पृ ५३०; दे ६।६६ ) । २ गृह ( व्यभा ७ टी८८; ६।६६) । पउत्थपतिया - 'जिसका पति प्रवास में गया हो वह स्त्री' ( आवचू १ पृ ५३० ) । पउत्थवइआ -- जिसका पति देशान्तर गया हो वह स्त्री ( आवहाटी १ पृ २६६ ) । पउप्पय -- शिष्यसंतति - 'पउप्पएत्ति शिष्यसन्तान:' ( भटी पृ १२७१ ) । पउमलअ -- बसन्त ( दे ६।३३ ) । पउल -- वनस्पति-विशेष ( भ २३।८ ) । पउलण -- पचन, पाक ( प्र १।२५ ) । पउसिया -- 'पउस' देश में उत्पन्न स्त्री ( औप ७० ) । पउसी -- 'पउस' देश में उत्पन्न स्त्री ( नि ९।२९ ) । पऊढ -- घर ( दे ६।४ ) । पएणी -- वस्त्र-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । पएर -- १ बाड का छिद्र । २ मार्ग । ३ दुःशील, दुश्चरित्र । ४ कंठदीनार नाम का आभूषण । ५ गले का छिद्र । ६ दीन-नाद, आर्त्तस्वर ( दे ६।६७ ) । पएस -- १ प्रातिवेश्मिक, पडोसी ( दे ६।३ ) । २ एक प्रकार का वाद्य ( नि १७।१३६ ) । पएसिणी -- पड़ोसिन ( दे ६।३ वृ ) । पओत्थ -- प्रोषित, प्रवास में गया हुआ ( दश्रुचू पृ ४८ ) । पओप्पय -- १ शिष्य परम्परा, प्रशिष्य - 'विमलस्स अरहओ पओप्पए धम्मघोसे नामं अणगारे' ( भ ११।१६५ ) । २ प्रशिष्य की शिष्य परंपरा ( भटी पृ १००८ ) । पंखुडिआ -- पत्र - 'पंखुडिअब्व विकिण्णो' ( दे ६।८ वृ ) । पंखुडी -- पत्र, पत्ता ( दे ६।८ ) । पंगुलिगा -- आसन-विशेष ( दअचू पृ १७२ ) । पंचंगुलि -- एरण्ड का गाछ ( दे ६।१७ ) । पंचंगुलिया -- वल्ली-विशेष ( प्रज्ञा १।४०।१ ) । पंचपुल -- मछली पकड़ने का जाल विशेष ( विपा १।८।१९ ) । पंचमधारा -- अश्व की गति- विशेष ( उसुटी प २३७ ) । पंचमेजण -- उत्सव विशेष ( अंवि पृ ९८ ) । पंचवडय -- शौचालय - 'वच्चं नाम पंचवडओ' ( आचू पृ ३३८ ) । पंचवन -- शौचभूमी - 'अण्णया राया विरेयणं पीतो पंचवनगमतीति' ( दअचू पृ ५२ ) । पंचावण्ण -- पचपन की संख्या ( दे ६।२७ ) । पंजर -- १ आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर और गणावच्छेदक-इन पांचों का समुदाय । २ आचार्य आदि की परस्पर सारणा । ३ प्रायश्चित्त आदि के द्वारा अकुशल प्रवृत्ति से निवारण करना ( व्यभा २ टी प२८ ) । ४ जलवायु विशेषज्ञ - पंजरपुरिसेण उत्तरदिसाए दिट्ठं एक्कं सुप्पमाणं कज्जलकसिणं मेहपडलं' ( कु पृ १०६ ) । पंडरंग -- १ शिवभक्त संन्यासी ( बृटी पृ १३८६ ) । २ रुद्र, शिव ( दे ६।२३ ) । पंडरकुड्डग -- ग्वालों की जाति विशेष-अम्हे पंडरकुड्डगा रायगिहे गोवाला पसिद्धा' ( नंदीटि पृ १३४ ) । पंडविअ -- जलार्द्र, पानी से भीगा हुआ ( दे ६।२० ) । पंडु -- सफेद मिट्टी, धूसर मिट्टी - पाण्डुमृत्तिका नाम देशविशेषे या धूलिरूपा सती पाण्डू इति प्रसिद्धा' ( जीवटी प २३ ) । पंडुइय -- तिरस्कृत, प्रताड़ित ( निभा १६८५ ) - तम्मि घरासे पंडुइया भ्रंसिया' ( चू ) । पंडुल्लुइय -- पांडुर वर्ण वाला ( आवचू १ पृ २०९ ) । पंतावणा -- लकड़ी, मुष्टि आदि से मारना - यष्टिमुष्ट्यादिभिस्ताडना' ( बृभा ८९६ टी पृ २८५ ) । पंति -- वेणी, केश - रचना ( दे ६।२ ) । पंथुच्छुहणी -- ससुराल से पहली बार आनीत वधू ( दे ६।३५ ) । पंथोलग -- क्षुद्र जंतु-विशेष ( अंवि पृ २३८ ) । पंपुअ -- दीर्घ ( दे ६।१२ ) । पंपोट -- बहुबीज वाली वनस्पति ( प्रसाटी प ५८ ) । पंफुल्लिअ -- गवेषित, खोजा हुआ ( दे ६।१७ ) । पंसुल -- १ कोयल, कोकिल । २ जार, उपपति ( दे ६।६६) । ३ रुद्ध, रोका हुआ। पंसुलिगा -- पार्श्व की हड्डी ( प्र ३।१२ ) । पंसुलिया -- पार्श्व की हड्डी ( प्रसाटी प ४०२ ) । पंसुली -- पार्श्व की हड्डी, पसली ( तंदु १४२ ) । पांसली ( राज ) । पक्क -- १ दृप्त, उन्मत्त । २ समर्थ ( दे ६।६४ ) । पक्कग्गाह -- १ मगरमच्छ ( दं ६।२३ ) । २ पानी में रहने वाला सिंहाकार जलजन्तु - 'पक्कग्गाहो जलसिंहे देशी ( से ५।५७ ) । पक्कण -- १ म्लेच्छ जाति, चाण्डाल ( जंबू ३।११ ) । २ असहिष्णु । ३ समर्थ ( दे ६।६९ ) । ४ एक नीच जाति का घर, शबर- गृह । ५ अधम ( कु पृ ८१ ) । ६ एक अनार्य देश । पक्कणकुल -- गर्हित कुल - 'पक्कणकुले वसंतो सउणीपारोऽवि गरहिओ होइ' ( आवहाटी २ पृ २० ) । पक्कणय -- एक अनार्य देश ( प्रसा १५८३ ) । पक्कणि -- १ अत्यन्त शोभित । २ भग्न, टूटा हुआ । ३ प्रियभाषी ( दे ६।६५ ) । पक्कणिक -- अनार्य देश में रहने वाली जाति विशेष ( प्रटी प १५ ) । पक्कणिय -- म्लेच्छजाति-विशेष ( प्रटी प १४ ) । पक्कणी -- अनार्य देश-विशेष की दासी ( ज्ञा १।१।८२ ) । पक्कल -- १ प्रौढ । २ समर्थ ( कु पृ १९८ ) । ३ दर्पयुक्त, गर्वित । पक्कस -- सुरा आदि का पुराना मैल ( निचू ४ पृ २२३ ) । पक्कसावअ -- १ शरभ, अष्टापद । २ व्याघ्र ( दे ६।७५ ) । पक्काणिय -- म्लेच्छ जाति-विशेष ( प्र १।२१ ) । पक्खडिअ -- प्रस्फुरित ( दे ६।२० ) । पक्खपेंड -- त्रिकोण वस्तु-विशेष ( अंवि पृ ११७ ) । पक्खर -- १ पाखर, घोड़े का कवच ( आवचू १ पृ ५६७) । २ जहाज की रक्षा का एक उपकरण । पक्खरा -- घोड़े का कवच, अश्व-संनाह ( विपा १।२।१४; दे ६।१० ) । पक्खरिअ -- कवचित, कवच से सज्जित ( अश्व ) - 'पवखरिअपत्थिमहओ' ( दे ६।१० वृ ) । पक्खापविख -- नपुंसक का एक प्रकार - 'वामदक्खिणेसु पक्खापविखणो विण्णेया' ( अंवि पृ २२४ ) । पक्खोडिअ -- झाडा हुआ, निर्झटित ( व्यभा १० टी प ५२; दे ६।२७ ) । पखरगत -- वाद्य-विशेष - 'वीणा मसूरका पखरगतं दद्दरका आलिंगा मुरव' ( अंवि पृ २३० ) । पगढग -- पथ-दर्शक, नायक ( सूचू १ पृ २१३ ) । पग्गेज्ज -- निकर, समूह ( दे ६।१५ ) । पचलाक -- वृक्ष पर रहने वाला प्राणी-विशेष ( अंवि पृ २२६ ) । पच्चंगिर -- चोरी का दोष ( बृभा २०३८ ) । पच्चग -- मुंह से बजाया जाने वाला बाजा ( आवचू १ पृ ३०९ ) । पच्चड्डिय -- क्षरित ( प्रा २।१७४ ) । पच्चड्डिया -- मल्लों का एक प्रकार का करण ( विभा ३३५७ ) । पच्चत्तर -- खुशामद ( दे ६।२१ ) । पच्चबलोक्क -- आसक्त चित्तवाला पुरुष ( दे ६।३४ ) । पच्चर -- फलक - 'असति एगंगियस्स दो पच्चरा संघातिगा गहेयव्वा' ( निचू २ पृ १६२ ) । पच्चल -- १ समर्थ ( उशाटी प १०४; दे ६।६९) । २ असहनशील ( दे ६।६९ ) । पच्चवर -- १ श्रेष्ठ ( अंवि पृ १७ ) । २ क्षुद्र ( अंवि पृ २२६ ) । ३ मुसल ( दे ६।१५ ) । पच्चा -- तृण-विशेष, बल्वज ( स्था ५।१९१ ) । पच्चापिच्चिय -- बल्वज नाम की मोटी घास को कूटकर बनाया हुआ रजोहरण ( स्था ५।१९१ ) । पच्चारण -- उपालंभ ( पा ९६० ) । पच्चुअ -- प्रस्नुत, प्रक्षरित - 'पच्चुअं प्रस्नुतं इत्यन्ये' ( दे ६।२५ वृ ) । पच्चुच्छुहणी -- नया मद्य, ताजी मंदिरा ( दे ६।३५ ) । पच्चुत्थ -- प्रत्युप्त, पुनः बोया हुआ ( दे ६।१३ ) । पच्चद्धरिय -- सम्मुखागत, सामने आया हुआ ( दे ६।२४ वृ ) । पच्चुद्धार -- सम्मुख आगमन ( दे ६।२४ ) । पच्चुरस -- निकट ( व्यभा ५ टी प १६ ) । पच्चुल्ल -- प्रत्युत् - 'किं कारणं न तुमं रुट्ठो, पच्चुल्लं ममं पूएसि' ( व्यभा १ टी प ५२ ) । पच्चुहिअ -- प्रस्नुत, प्रक्षरित ( दे ६।२५ ) । पच्चूढ -- थाल, भोजन-पात्र ( दे ६।१२ ) । पच्चूह -- सूर्य, रवि ( दे ६।५ ) । पच्चेड -- मुसल ( दे ६।१५ ) । पच्चोणी -- सम्मुख आगमन ( पिभा ३३ ) । पच्चोयड -- १ मणि आदि के किनारे का उठा हुआ प्रदेश ( जीव ३।३२७ ) । २ अवच्छादित - 'वेरुलियमणिफालियपडलपच्चोयडाओ' ( राज १७४ ) । पच्चोवणिअ -- सम्मुख आया हुआ ( दे ६।२४ वृ ) । पच्चोवणी -- सम्मुख आगमन ( दे ६।२४ ) । पच्छयण -- पाथेय - 'गहियपच्छयणा निग्गया' ( कु पृ ५७ ) । पच्छि -- पिटिका, पिटारी ( भटी प ३१३; दे ६।१ ) । पच्छिया -- पात्र-विशेष ( जीभा १५५१ ) । पच्छियापिडय -- 'पच्छी' रूप पिटारी ( राज ७७२ ) । पच्छिलिय -- पश्चात् ( पंवटी प ५६ ) । पच्छेणय -- पाथेय, रास्ते में निर्वाह करने की भोजन-सामग्री ( दे ६।२४ ) । पच्छोकड -- जिसका पिछला भाग ऊंचा हो ( दे ६।१५ वृ ) । पच्छोलित -- छोला हुआ ( अंवि पृ १६८ ) । पज्जण -- १ पिलाना ( बृभा १७६७ ) । २ पीना, पान करना ( दे ६।११ ) । पज्जणय -- पिलाना, जल में डुवोना-पज्जणयं••••पायनं - 'जलनिबोलनं' ( भ १४।८५ टी पृ ११९५ ) । पज्जणी -- लाल मिट्टी ( अंवि पृ २३३ ) । पज्जय -- १ प्रपितामह, परदादा । २ परनाना ( भ ९।१७५ ) । पज्जा -- सीढी, निःश्रेणी ( दे ६।१ ) । पज्जिया -- १ परदादी । २ परनानी ( द ७।१५ ) । पज्जुणसर -- इक्षु के सदृश तृण-विशेष ( दे ६।३२ ) । पज्झरिय -- क्षरित, प्रवाहित - 'दंतीपज्झरियमयजलपवाहो' ( उसुटी प ८५ ) । पज्झुत्त -- जड़ित, खचित ( पा १४० ) । पट्ट -- १ कीट-विशेष ( पतंग ) की लार से निष्पन्न वस्त्र - '••••••पदंगकीडा आगच्छंति, तं तं मंसचीडाइयं आमिसं चरंता इतो ततो कीलंतरेसु संचरंता लालं मुयंति एस पट्टो' ( अनुद्वाचू पृ १५ ) । २ ललाट का आभूषण-विशेष ( विपाटी प ७० ) । पट्टइल -- पटेल, गांव का मुखिया ( जंबूटी प १९३ ) । पट्टइल्ल -- १ वस्त्रधारी ( उसुटी प २५ ) । २ पटेल, गांव का मुखिया । पट्टगभत्त -- पूज्य व्यक्तियों के लिए बनाया गया भोजन-पूया उक्खित्तं ति य, पट्टगभत्तं च एगट्ठा' ( बृभा ३६५५ ) । पट्टाढा -- घोड़े के बांधा जाने वाला चमड़े का पट्टाछोडिया पट्टाढा, ऊसारियं पल्लाणं' ( उसुटी प २३७ ) । पट्टाधा -- घोड़े के बांधा जाने वाला चमड़े का पट्टा ( उसुटी प २३७ ) । पट्टिस -- शस्त्र-विशेष ( प्र १।२८ ) । पट्टुआ -- पाद-प्रहार ( दे ६।८ पा ) । पट्टुहिअ -- कलुषित पानी, हिलाया-डुलाया हुआ पानी ( पा १५८ ) । पट्ठिसंग -- ककुद, बैल के कंधे का कूबड़ ( दे ६।२३ ) । पडंचा -- प्रत्यंचा, धनुष की डोरी ( दे ६।१४ ) । पडंसुआ -- प्रत्यंचा, धनुष की डोरी ( दे ६।१४ ) । पडक -- उद्भिज्ज जन्तु की एक जाति ( अंवि पृ २२९ ) । पडच्चर -- साले की भांति हंसी-मजाक करने वाला विदूषक आदि ( दे ६।२५ ) । पडप्पयार -- बहाना, मिष - 'इमेण दिव्व-चित्तयम्म-पडप्पयारेण कारणंतरं किं पि चिंतयंतो दिव्वो देवलोयाओ समागओ त्ति' ( कु पृ १९० ) । पडमट्ठ -- खाद्य-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । पडल -- नीव्र, मिट्टी का बना हुआ एक प्रकार का खपड़ा जिससे मकान छाये जाते हैं ( दे ६।५ ) । पडलग -- टोकरी - 'पुप्फपडलगं वा पुप्फछज्जियं वा' ( राज १२ ) । पडवा -- पट-कुटी, तम्बू ( दे ६।६ ) । पडहत्थिग -- भाजन-विशेष ( आवचू २ पृ ७० ) । पडाग -- मत्स्य का एक प्रकार ( प्रज्ञा १।५६ ) । पडाल -- फलक, मुष्टि ( दश्रुचू प ७४ ) । पडालिका -- गृह उपकरण, चटाई आदि ( अंवि पृ ७२ ) । पडाली -- १ कच्ची छत, चटाई आदि से छाया हुआ स्थान ( निचू २ पृ ४२० ) । २ छोटी कुटिया (आवटिप ३६ ) । ३ पंक्ति, श्रेणी ( बृभा ११०७; दे ६।९ ) । पडिअ -- विघटित, वियुक्त ( ६।१२ ) । पडिअंतअ -- कर्मकर, नौकर ( दे ६।३२ ) । पडिअग्गिअ -- १ परिभुक्त । २ वर्धापित । ३ पालित ( दे ६।७४ ) । ४ अनुव्रजित, अनुसृत ( वृ ) । पडिअज्झअ -- उपाध्याय ( दे ६।३१ ) । पडिअट्टलिय -- घृष्ट, घिसा हुआ ( से ६।३१ ) । पडिअर -- चूल्हे का मूल भाग ( दे ६।१७ ) । पडिअलि -- त्वरित, वेगयुक्त ( दे ६।२८ ) । पडिएल्लिअ -- कृतार्थ ( दे ६।३२ ) । पडिएल्लिआ -- कृतार्थता - 'पडिरंजिअपडिमाए किं रे पडिएल्लिआइ होइ फलं' ( दे ६।३२ वृ ) । पडिकक्कय -- प्रतिकृति ( अंवि पृ २५९ ) । पडिक्कय -- प्रतिक्रिया ( आवचू १ पृ ४०६; दे ६।१९ ) । पडिक्खर -- १ क्रूर, निर्दय ( दे ६।२५ ) । २ प्रतिकूल । पडिखंध -- १ जल वहन करने का दृति आदि साधन ( दे ६।२८ ) । २ जलवाह, पानी लाने वाला ( वृ ) । पडिखंधी -- १ जल वहन करने का दृति आदि साधन ( दे ६ । २८ ) । २ जलवाह, पानी लाने वाला (वृ ) । पडिखद्ध -- मृत - 'किमेइणा सुणहपाएण पडिखद्धेणं' ( उसुटी प ६४ ) । पडिच्छ -- मध्य - 'मणिरयणं छत्तरयणस्स पडिच्छभाए ठवेति' ( आवहाटी १ पृ १००)। पडिच्छअ -- १ अवान्तर गण का अधिपति ( व्यभा ६ टी प ५४ ) । २ समय ( दे ६।१६ ) । पडिच्छंद -- १ मुख ( दे ६।२४ ) । २ समान, तुल्य ( से १४,२४ ) । पडिच्छिआ -- १ प्रतीहारी ( दे ६।२१ ) । २ चिरकाल से ब्याई हुई भैंस - 'पडिच्छिआ चिरप्रसूता महिषीत्यन्ये' (वृ ) । पडिच्छिर -- सदृश, समान ( प्रा २।१७४ ) । पडिणायित -- विनष्ट ( अंवि पृ १६९ ) । पडिणिअंसण -- रात्री में पहनने का वस्त्र ( दे ६।३६ ) । २६५₹₹₹₹ पडितलिय -- पदत्राण, जूता-विशेष ( पंक ८४७ ) । पडिताणिय -- पैबंद, फटे वस्त्र में लगने वाली जोड़ (निचू २ पृ ५६ ) । पडित्थिर -- समान, सदृश ( दे ६।२० ) । पडिपिंडिअ -- प्रवृद्ध, बढ़ा हुआ ( दे ६ । ३४ ) । पडिमेय -- उपालंभ ( पा ९६० ) । पडिया -- वाचना - 'पेसेह मेहावी सत्त पडियाओ देमि' ( आवहाटी २ पृ १३८ ) । पडियाणय -- पर्याण के नीचे रखा जाने वाला एक उपकरण ( ज्ञाटी प २३९ ) । पडियाणिय -- पैबंद - 'वत्थस्स एगं पडियाणियं देइ' ( नि १।४७ ) । पडियाणिया -- पैबंद - 'पडियाणिया थिग्गलयं छंदतो य एगट्ठं' ( निचू २ पृ ५६ ) । पडिरंजिअ -- भग्न, टूटा हुआ ( दे ६।३२ ) । पडिलग्गल -- वल्मीक, कीट-विशेष द्वारा निर्मित मृत्तिका - स्तूप ( दे ६।३३ ) । पडिल्ली -- १ वृति, बाड़ । २ यवनिका, परदा ( दे ६।६५ ) । पडिवेस -- विक्षेप, फेंकना ( दे ६।२१ ) । पडिसंत -- १ प्रतिकूल ( दे ६।१८ ) । २ अस्तमित, अस्तप्राप्त पडिसंतं अस्तमितमिति तु सातवाहनः' ( वृ ) । पडिसराखारमणि -- कंठ का वह आभूषण जिसकी प्रत्येक लड में मणि पिरोया हुआ हो ( अंवि पृ १६३ ) । पडिसाअ -- घर्घर कण्ठ, बैठा हुआ गला ( दे ६।१७ ) । पडिसाइल्ल -- घर्घर कण्ठ वाला ( दे ६।१७ वृ ) । पडिसार -- १ स्मृति - पव्वसारस्स दिट्ठिवायस्स नत्थि पडिसारो' ( ति ७२३ ) । २ पटुता ( दे ६।१६ ) । ३ पटु, निपुण ( वृ ) । पडिसारिअ -- स्मृत, याद किया हुआ ( दे ६।३३ ) । पडिसारी -- यवनिका, परदा ( दे ६।२२ ) । पडिसिद्ध -- १ भीत । २ भग्न ( दे ६।७१ ) । पडिसुत्ति -- प्रतिकूल ( दे ६।१८ ) । पडिसूर -- प्रतिकूल ( दे ६।१८ ) । पडिहच्छ -- पूर्ण, भरा हुआ ( दे ६।२८ पा ) । पडिहत्थ -- १ अत्यधिक - 'देशी शब्दोऽयं पडिहत्थमुद्धुमायं अइरेइयं च जाण आउण्णं इति वचनात्' ( जंबूटी प ४२ ) । २ परिपूर्ण-पडिहत्थाओ त्ति परिपूर्णा: देशी शब्दोऽयम्' ( जंबूटी प ५७; दे ६।२८ ) । ३ प्रतिक्रिया ( दे ६।१९ ) । ४ वचन ( वृ ) । ५ अपूर्व । ६ प्रत्युपकार ( से १२।६६ ) । पडिहत्थी -- वृद्धि ( दे ६।१९ ) । पडीर -- चोरों का समूह ( दे ६।८ ) । पहुआलिय -- १ निपुण बनाया हुआ । २ ताडित । ३ धारित ( दे ६।७३ ) । पडुजुवइ -- तरुणी ( दे ६।३१ ) । पडुल्ल -- १ छोटा पिठर, छोटी थाली । २ चिरप्रसूत ( दे ६।६८ ) । पडुवइअ -- तीक्ष्ण, तेज ( दे ६।१४ ) । पडुवत्ती -- यवनिका, परदा ( दे ६।२२ ) । पडोअ -- बालक ( दे ६।९ ) । पडोगार -- उपकरण ( दश्रुचू प ५२ ) । पडोयार -- उपकरण, सामग्री ( पिनि २८ ) । पडोहर -- घर का पिछला भाग ( दे ६।२२ ) । पडु -- १ पाडा, भैंसा ( दजिचू पृ १७६ ) । २ धवल, सफेद ( उच् पृ १७८; दे ६।१ ) । पड्डंस -- गिरि गुहा, पहाड़ की गुफा ( दे ६।२ ) । पड्डच्छी -- भैंस-पड्डच्छिखीरं' ( ओनि ८७ ) । पड्डत्थी -- १ बहुदुग्धा, बहुत दूध देने वाली । २ दूध दुहने वाली स्त्री ( दे ६।७० ) । पड्डय -- भैंसा, पाडा ( उसुटी प १३५ ) । पडुला -- चरणघात, पाद-प्रहार ( दे ६।८ ) । पड्डस -- सुसंयमित ( दे ६।६ ) । पड्डिका -- १ छोटी भैंस, पाडी । २ छोटी गौ, बछिया ( विपाटी प ४८ ) । पड्डिच्छिर -- सदृश, समान ( प्रा २।१७४ ) । पड्डिया -- १ पाडी, छोटी भैंस । २ बछिया ( विपा १।२।२० ) । ३ प्रथम प्रसूता गाय । ४ नवप्रसूता महिषी ( व्यभा ४।३ टी प १० ) । पड्डी -- प्रथम प्रसूता, पहली बार ब्यानेवाली ( दे ६।१ ) । पड्डुआ -- चरण-घात, पाद-प्रहार ( दे६।८ ) । पढमालिया -- नाश्ता, प्रातराश ( आवचू १ पृ ८२ ) । पढमिल्लुय -- प्रथम ( राज ७६८ ) । पढमेल्ल -- प्रथम - 'देशीवचनमेतत्, यथा – पढमेल्ला एत्थ घरे' ( आवमटी प ११६ ) । पढमेल्लुग -- पहला - 'प्रथम एव प्रथमेल्लुका देशीवचन मेतत्' ( आवमटी प ११६ ) । पण -- पांच ( बृभा २४०८ ) । पणअत्तिअ -- प्रकटित ( दे ६।३० वृ ) । पणग - १ सूक्ष्म पंक- पंक-पणग-पासजाल भ्यं ( प्र ४।१ ) । २ काई ( द ८।१५ ) । ३ पञ्चक ( जीभा १७६७ ) । ४ वनस्पति-विशेष ( आ ९।१।१२ ) । पणपण्ण -- पचपन ( सम ५५।१ ) । पणपन्न -- पचपन ( जीव २।२० ) । पणय -- १ पंचक ( भ ६।१५०।१ ) । २ सूक्ष्म पंक ( प्र ४।१ पा ) । ३ तृण-विशेष, शैवाल ( पिनि २५ ) । ४ काई ( ओनि ३५० ) । ५ कर्म - पावे वज्जे वेरे पंके पणए य' ( उशाटी प ६७ ) । ६ कर्दम ( दे ६।७ ) । पणयत्तिअ -- प्रकटित, व्यक्त किया हुआ (दे ६।३० ) । पणयाल -- पैंतालीस ( सम ४५।७ ) । पणल -- प्रावरण-विशेष ( निचू २ पृ ३९८ ) । पणवण्ण -- पचपन की संख्या ( भ २।१२१ ; दे ६।२७ ) । पणसक -- १ थाली के आकार का पात्र ( अंवि पृ ६५ ) । २ नकुलिका का एक प्रकार ( अंवि पृ २२१ ) । पणहय -- पीना ( निर ४ टी पृ ३४ ) । पणामणिआ -- स्त्री विषयक प्रणय ( दे ६।३०) । पणाली -- देह प्रमाण यष्टि ( प्रटी प ५८ ) । पणिअ -- प्रकट, स्पष्ट ( दे ६।७ ) । पणिआ -- करोटिका, सिर की हड्डी ( दे ६।३ ) । पणुल्लिअ -- प्रेरित ( पा १४७ ) । पणोल्लि -- प्राजनक, चाबुक ( प्र ३।१५ ) । पण्ण -- पचास ( स्था ७।१२८।१ ) । पण्णगार -- शर्त ( निचू ३ पृ १४० ) । पण्णत्त -- १ बीज - वपन के योग्य भूमि ( औप १ ) । २ परिकर्मित ( सूर्यटी प २९३ ) । ३ स्वस्थ - सो य ( अस्सो ) पण्णत्तो' ( निचू ४ पृ ३०४ ) । पण्णा -- पचास ( सम ४९।१ ) । पण्णास -- पचास ( सम ५०।२ ) । पण्णासय -- पचास वर्ष की उम्र वाला ( तं ५७ ) । पण्णी -- एक प्रकार की नावा ( निचू १ पृ ७२ ) पण्णेलिका -- आभूषण-विशेष ( अंवि पृ ११६ ) । पण्हअ -- स्तन-धारा ( दे ६।३ ) । पतिरिक्क -- १ एकांत - 'देशीभाषया एकान्ते' ( उशाटी प ६६५ ) । २ प्रचुर ( बृभा ५२९७ ) । ३ यथेच्छ, अकेला ( आवहाटी १ पृ ४३ ) । पतुज्ज -- प्राणी-विशेष के रोओं से बना वस्त्र - 'पाणजोणिगतं वत्थं तिविधमाधारये कोसेज्जं पतुज्जं आविकं चेति' ( अंवि पृ १६३ ) । पतोप्पय -- प्रशिष्य ( भ ११।१६२ पा ) । पत्तउर -- गुच्छ वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।३६।३ ) । पत्तंबेल्लि -- खाद्य विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । पत्तट्ठ -- १ कुशल, बहु-शिक्षित ( भ १४।३ ; दे ६।६८ ) । २ सुन्दर ( दे ६।६८ ) । पत्तण -- १ बाण का अग्रभाग । २ पुंख, बाण का मूल भाग ( दे ६।६४ ) । पत्तणा -- १ पुंख में की जाने वाली रचना विशेष ( से ७।५२ ) । २ इषुफलक । ३ बाण का मूल भाग, पुंख ( से १५।७३ ) । पत्तपसाइआ -- पत्तियों की एक तरह की पगड़ी जिसे भील लोग पहनते हैं ( दे ६।२ ) । पत्तपिसालस -- पत्तियों की एक तरह की पगड़ी जिसे भील लोग पहनते हैं ( दे ६।२ ) । पत्तरक -- आभूषण-विशेष ( प्रटी प १४९ ) । पत्तल -- १ तीक्ष्ण, तेज ( औप ४७; दे ६।१४ ) । २ कृश ( वृ ) । पत्तला -- राजपत्र, अधिकार पत्र - 'समप्पिज्जंति सेवयाणं महापडिहारेहिं गाम - णयर खेडकब्बड पट्टणाणं पत्तलाओ त्ति' ( कु पृ १८ ) । पत्तवासित -- बंधा हुआ ( निचू ४ पृ २२१ ) । पत्तादार -- त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष ( प्रज्ञा १।५० ) । पत्तिसमिद्ध -- तीक्ष्ण ( दे ६।१४ ) । पत्ती -- पत्तों की बनी हुई एक तरह की पगड़ी जिसे भील लोग पहनते हैं ( दे ६।२ ) । पत्तुण्ण -- वल्कल से बना हुआ वस्त्र ( आचूला ५।१४ ) । पत्तुल्लक -- भाजन-विशेष - 'सा तीए रुट्ठाए पत्तुल्लकाणि धोवेंतीए मसिलित्तेण हत्थेण' ( दअचू पृ ४७ ) । पत्थर -- पाद-प्रहार - 'एस परक्कपडीरो पत्थरकुसलेण पड्डुअं दिन्तो' ( दे ६।८ वृ ) । पत्थरभल्लिअ -- कोलाहल करना ( दे ६।३६ ) । पत्थरा -- चरण-घात, पाद-प्रहार ( दे ६।८ ) । पत्थरिअ -- पल्लव, कोंपल ( दे ६।२० ) । पत्थार -- विनाश- पत्थारो णाम कुल-गण-संघविणासो भण्णति' ( निचू १ पृ ११९ ) । पत्थारी -- १ समूह । २ प्रस्तर, शैय्या ( दे ६।६९ ) । पथारी ( गुज ), पथरणा ( राज ) । पत्थिआ -- १ काष्ठ की बड़ी पट्टिका ( ओनि ४७८ ) । २ बांस का बना बड़ा भाजन ( टी पृ ३७४ ) । पत्थिय -- १ पुष्प करंडक - पुप्फचयं करेइ, पत्थियं भरेइ' ( अंत ६।२१ ) । २ शीघ्र ( दे ६।१० ) । पत्थियपिडग -- बांस का बना हुआ भाजन-विशेष ( विपा १।३।२० ) । पत्थीण -- १ मोटा कपड़ा ( दे ६।११) । २ स्थूल ( वृ ) । पथरा -- शस्त्र-विशेष ( कु पृ २७४ ) । पदकणु -- आभरण-विशेष - 'पदकणु इत्ययं शब्दो देशभाषायाः प्रतीयते' ( राजटी पृ ४८ ) । पदुम -- जल में रहने वाला प्राणी-विशेष ( अंवि पृ २२७ ) । पदोलि -- यान-विशेष - :संदण-रध-वलभी-पदोलि-पवहण....' ( अंवि पृ २०० ) । पद्द -- १ ग्राम-स्थान ( दे ६।१ ) । २ छोटा गांव ( पा ३९९ ) । पद्दिया -- अभिनव प्रसूता महिषी ( व्यभा ४।३ टी प १० ) । पद्धर -- १ ऋजु, सरल ( दे ६।१० ) । २ शीघ्र । पद्धार -- जिसकी पूंछ कटी हुई हो वह ( दे ६।१३ ) । पधकली -- वनस्पति-विशेष ( अंवि पृ २३२ ) । पनक -- सुक्ष्म पंक ( प्रटी प ६५ ) । पन्नग – दुर्गन्धित - 'कटुयं तेल्लं तु पन्नगतिलाणं' ( व्यभा ३ टीप १०६ ) । पन्नाडिअय -- मसला हुआ ( पा ५०२ ) । पप्पड -- पर्पट, पापड़ ( प्रसा ४३४ ) । पप्पडग -- गीली मिट्टी के सूख जाने पर उसके ऊपर की तह ( निचू १ पृ ६१ ) । पप्पडिग -- खाद्य वस्तु विशेष ( जीभा १५३७ ) । पप्पडी -- गीली मिट्टी के सुख जाने पर उसके ऊपर की तह ( निचू १ पृ ६१ ) । पप्पीअ -- चातकपक्षी ( दे ६।१२ ) । पप्फाड -- अग्नि का एक प्रकार ( दे ६।९ ) । पप्फिडिअ -- प्रतिफलित ( दे ६।२२ ) । पप्फुअ -- १ दीर्घ, लंबा । २ उड्डीयमान, उड़ता हुआ ( दे ६।६४ ) । पप्फोडिअ -- १ झाड़ा हुआ, निर्झटित ( दे ६।२७ ) । २ तोड़ा हुआ। पब्भार -- १ ईषत् कुब्ज ( प्रज्ञाटी प ७३ ) । २ संघात, समूह ( दे ६।६६ ) । ३ गिरि-गुहा, पर्वत - कन्दरा - 'पब्भारकंदर गया साहिती अप्पणो अट्ठे' ( त्रमहा ८१; दे ६२६६ ) । ४ आधा ( ५११८ ) । ५ अंश ( से ४।६ ) । ६ उपरि भाग ( से ४४२० ) । पब्भारगय -- अवनत, झुका हुआ - 'ईसिं पब्भार गएणं काएणं' ( अंत ३।८८ ) । पब्भोअ -- भोग, विलास ( दे ६।१० ) । पभवाल -- तरु-विशेष ( जंबूटी प ९८ ) । पम्हट्ठ -- १ प्रस्मृत, विस्मृत - अडवीए तण्हाए अभिभूए समाणे पम्हट्ठ - दिसाभाए' ( ज्ञा १।१८।४७ ) । २ प्रभ्रष्ट, विलुप्त ( से ४।४२ ) । ३ परिष्ठापित, प्रक्षिप्त - पम्हट्ठं ति परिठवियं ति एगट्ठं' ( व्यभा ८ टी प २९ ) । पम्हर -- अपमृत्यु, अकाल-मरण ( दे ६।३ ) । पम्हल -- कमल- केसर, किञ्जल्क ( दे ६।१३ ) । पम्हार -- अपमृत्यु ( दे ६।३ ) । पम्हुट्ठ -- १ विस्मृत - 'कियं तयं पहुट्ठं, जंथ तया भो ! जयंतपवरम्मि। वृत्या समयणिबद्धा देवा तं संभरह जाई ॥ ( ज्ञा १।८।१८० ) । २ गिरा हुआ- पम्हुट्ठं णाम पडियं वीसरियं वा' ( निचू २ पृ ४६१ ) । पम्हुसाविय -- विस्मारित ( उसुटी प १९ ) । पयंचुल -- मछली पकड़ने का जाल-विशेष ( विपा १।८।१९ ) । पयट्टिअ -- प्रवर्तित ( दे ६।२६ ) । पयडी -- नारियल की छाल - 'पयडी - णालिएरिचोदयं' ( निचू २ पृ ३८ ) । पयड्ढणी -- १ प्रतिहारी, द्वाररक्षिका । २ आकृष्टि, आकर्षण । ३ चिरप्रसूता महिषी ( दे ६।७२ ) । पयय -- प्रतिदिन, निरंतर ( दे ६।६ ) । पयरग -- पैरों का आभूषण- विशेष ( जीवटी प १४७ ) । पयरण -- प्रथम दी जाने वाली भिक्षा ( बृभा ३५४८ ) । पयरीक्क -- १ सुन्दर । २ अव्याबाध, एकान्त ( उचू पृ ६९ ) । पयरेक्क -- १ सुन्दर । २ अव्याबाध, एकान्त ( उचू पृ ६९ ) । पयल -- नीड, घोसला ( दे ६।७ ) । पयला -- १ खड़े या बैठे हुए जो निद्रा आए वह ( स्था ९।१४ ) । २ निद्रा ( दे ६।६ ) । ३ भुजपरिसर्प का एक प्रकार ( अंवि पृ २२६ ) । पयलाअ -- १ हर, महादेव । २ सांप ( दे ६।७२ ) । ३ भुजपरिसर्प की एक जाति ( जीवटी प ४० ) । पयलाइय -- हाथ से चलने वाले जन्तु की एक जाति ( सू २।३।८० ) । पयलाक -- परिसर्प की एक जाति ( अंवि पृ २२६ ) । पयलापयला -- चलते-फिरते जो नींद आए ( स्था ९।१४ ) । पयलायभत्त -- मयूर ( दे ६।३६ ) । पयल्ल -- प्रसृत, फैला हुआ (पा ५३३ ) । पयवई -- सेना ( दे ६।१६ ) । पयसाडी -- द्राक्षा डालकर पकाया गया दूध ( प्रसाटी प ५४ ) । पया -- चूल्हा ( व्य ९।९ ) । पयाम -- अनुक्रम ( दे ६।९ ) । पयुका -- आभूषण-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । पयुमक -- उद्भिज्ज जंतु-विशेष ( अंबिपृ २२९ ) । पयोट्टपरिहार -- मरकर पुन: उसी शरीर में बार-बार उत्पन्न होना ( आवचू १ पृ २९९ ) । परक्क -- लघु स्रोत ( दे ६।८ ) । परग -- १ बांस की बनी हुई टोकरी, छाब आदि ( आचूला १।१४२ ) । २ तृण-विशेष ( सू २।२।४ ) । ३ धान्य-विशेष ( सू २।२।६ ) । परज्झ -- १ परतन्त्र - 'जे संखया तुच्छ परप्पवाई, ते पिज्जदोसाणुगया परज्झा' ( उ ४।१३ ) । २ अपराध ( ज्ञा १।२।४५ ) । ३ पात्र-विशेष - 'अलंदिगा वा कुंडगं वा परज्झं मणिमयमादी विरूवरूवभायणाणि' ( आचू पृ ३४५ ) । परज्झा -- परतन्त्रता, पराधीनता ( स्था १०।१०८ ) । परडा -- विशेष प्रकार का सर्प ( दे ६।५ ) । परत्तिका -- वस्त्र-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । परद्ध -- १ पीड़ित - 'अणुबद्धखुहापरद्धा' ( प्र ३।१७ ) । २ पतित, गिरा हुआ । ३ भीरु ( दे ६।७० ) । ४ व्याप्त । परब्भंत -- निषिद्ध, निवारित ( निचू २ पृ १७७ ) । परब्भस -- घिरा हुआ - 'चोरो य णगरारक्खेण परब्भसमाणो तत्थेव अतिगतो' । ( निचू १ पृ १६ ) । परभाअ -- रति क्रीडा, मैथुन ( दे ६।२७ ) । परमासक -- पैरों का आभूषण- विशेष ( अंवि पृ ६५ ) । परसुहत्त -- वृक्ष ( दे ६।२९ ) । परस्सर -- १ दीर्घ नाखून वाला पशु-विशेष । २ गेंडा ( प्रज्ञा १।६६ ) । परहुत्त -- पराजित ( कु पृ १७३ ) । परा -- तृण-विशेष ( प्र ८।१० ) । परासर -- शरभ, महाकाय पशु- विशेष जो हाथी को भी अपनी पीठ पर उठा लेता है ( प्रटी प ९ ) । पराहुत्त -- पराङ्मुख - 'वविखत्तपराहुत्ते अ पमत्ते मा कया हु वंदिज्जा' ( आवनि ११९८ ) । परिअट्ट - धोबी, रजक ( दे ६।१५ ) । परिअट्टलिअ -- परिच्छिन्न ( दे ६।३६ ) । परिअडी -- १ वृति, बाड । २ मूर्ख ( दे ६।७३ ) । परिअत्त -- प्रसृत, फैला हुआ - 'सव्वासण-रिउसंभवहो करपरिअत्ता तावं' ( प्रा ४।३९५ ) । परिअर -- लीन, आसक्त ( दे ६।२४ वृ ) । परिअली -- थाली, भोजन-पात्र ( दे ६।१२ ) । परिउत्थ -- प्रवास पर गया हुआ ( दे ६।१३ ) । परिकट्टलिय -- एक स्थान पर एकत्रित किया हुआ ( पिनि २३९ ) । परिकल्ल -- धान का ऐसा ढेर जो राख या गोबर- जल से संस्कारित नहीं है ( बृभा ३३१२ ) । परिक्खार -- १ उत्तम । २ प्रचुर - 'कोऽत्थ परिक्खारं देज्ज वस्त्राणि ?" ( सूचू १ पृ २०१ ) । परिखंध -- काहार, जल आदि लाने वाला नौकर ( दे २।२७ ) । परिगोह -- १ आसक्ति । २ कीचड़ - 'परिगोहो णाम परिष्वङ्गः, दव्वे परिगोहो पंको' ( सूचू १ पृ ६३ ) । परिघासिय -- गुण्डित, लिप्त - 'रयसा वा परिघासियपुव्वे' ( आचूला १।३५ ) । परिघोलण -- विचार - उवओगदिट्ठसारा, कम्मपसंगपरिघोलणविसाला । साहुक्कारफलवती कम्मसमुत्था हवति बुद्धी ॥ ( नंदी ३८।८ ) - परिघोलनं विचार:' ( टी पृ ४८ ) । परिच्छड -- विधि, वृत्तान्त ( निचू १ पृ ९ ) । परिच्छूढ -- १ उत्क्षिप्त ( दे ६।२५ ) । २ परित्यक्त ( से १३।१७ ) । परिच्छेक -- लघु ( ज्ञाटी प २२८ ) । परिज्जुसित -- बुभुक्षित ( निचू २ पृ १२७ ) । परिज्झुसित -- बुभुक्षित ( निचू २ पृ १२७ ) । परिण -- पण्य, बेचने योग्य वस्तु ( अंवि पृ २५३ ) । परित्थड -- विधि, वृत्तान्त - 'दिट्ठो य रण्णो अंबगहणपरित्थडो' ( निचू १ पृ९ ) । परिपदणय -- अभिनय - 'सा अप्पणो परिपदणयं करेति' ( आवचू १ पृ ५२५ ) । परिपरि -- वाद्य-विशेष ( नि १७।१३९ ) । परिपरिया -- वाद्य-विशेष ( राज ७१ पा ) । परिपिरिया -- वाद्य-विशेष ( भ ५।६४ पा ) । परिपूणक -- १ सुघरी नामक पक्षी का घोसला । २ घी छानने का साधन-सुधरी पक्षी के घोसले से घी छाना जाता है । घी का कचरा भीतर रह जाता है और घी छनकर बाहर आ जाता है - 'परिपूणको नाम सुघरीचिटिकाविरचितो नीड विशेषः, तेन च घृतं गाल्यते ततस्तत्र कचवरमवतिष्ठते घृतं तु गलित्वा अध: पतति' ( नंदीटि पृ १०५ ) । परिपूणग -- छानने का एक साधन जिससे घेवर का 'घोल' छाना जाता है । सार-सार नीचे झर जाता है और कल्मष अन्दर रह जाता है - 'परिपूणको नाम येन घृतपूर्णयोग्यं पानं गाल्यते, तत्र सारो गलति कल्मषं तिष्ठति' ( बृटी पृ १०४ ) । परिब्भंत -- १ निषिद्ध । २ भीरु ( दे ६।७२ ) । परिम्भुसित -- बुभुक्षित - 'अहवा वि परिब्भुसितस्स मणुण्णं होति पंतं पि' ( निचू २ पृ १२७ ) । परिमास -- नौका का काष्ठ- विशेष ( ज्ञाटी प १६६ ) । परियच्छ -- दलाल ( स्थाटी प ३९ ) । परियल्ल -- परत ( निभा ५८०१ ) । परियाण -- परिपूर्ण - 'देंति फलं विज्जाओ, पुरिसाणं भागधेज्जपरियाणं । न हु भागधेज्जपरिवज्जियस्स विज्जा फलं देति ॥' ( चं १८ ) । परिरय -- १ पर्याय, समानार्थक शब्द - 'एगपरिरयं ति वा एगपडिरयं ति वा एगपज्जायं ति वा एगणामभेदं ति वा एगट्ठा ( आवचू १पृ २६ ) । परिलिअ -- लीन, आसक्त ( दे ६।२४ ) । परिली -- १ मुंह की हवा से बजाया जाने वाला एक प्रकार का बाजा - 'फूमिज्जताणं वंसाणं वेलूणं वालाणं परिलीणं बद्धगाणं' ( राज ७७ ) । २ गुच्छ वनस्पति की एक जाति ( प्रज्ञा १।३७।५ ) । परिल्ल -- अपर ( से ९।१७ ) । परिल्लवास -- अज्ञात गति वाला ( दे ६।३३ ) । परिवच्छ -- अवधारण, निश्चय - 'परिवच्छि त्ति देशीशब्दोऽयं निर्णयार्थे वर्तते ( बृटी पृ ६१५ ) । परिवारिअ -- घटित ( दे ६।३० ) । परिवास -- खेत में सोने वाला पुरुष ( दे ६।२६ ) । परिवाह -- दुविनय, अविनय ( दे ६।२३ ) । परिसित्तिय -- पानक-विशेष ( निभा १६६३ ) । परिसिल्ल -- परिषद् वाला - 'परिसिल्लस्स तु परिसा' ( निचू ४ पृ ७७ ) । परिह -- रोष, क्रोध ( दे ६।७ ) । परिहच्छ -- १ पटु, निपुण । २ क्रोध ( दे ६।७१ ) । परिहट्टि -- आकृष्टि, आकर्षण ( दे ६।२१ ) । परिहण -- परिधान, वेश ( दे ६।२१ ) । परिहत्थ -- १ जलजन्तु-विशेष ( प्र ३।२३ ) । २ दृप्त (ज्ञा १।१३।१७ ) । ३ परिपूर्ण - 'परिहत्थशब्दो देश्य: परिपूर्णतार्थे' ( राजटी पृ १२४ ) । परिहत्थग -- जलजंतु-विशेष - जलचर-पहगर-परिहत्थग-मच्छ....' ( दश्रु ८।३० ) । परिहत्थत्तण -- दक्षता, निपुणता - अहो, पेच्छ पेच्छ वणिय-धूयाए परिहत्थत्तणं' ( कु पृ २३२ ) । परिहरण -- परिधान ( स्था ५।१३१ ) । परिहलाविअ -- जल-निर्गम, मोरी, नाला ( दे ६।२९ ) । परिहाअ -- क्षीण, दुर्बल ( दे ६।२५ ) । परिहार -- परिभोग ( भटी पृ १२२७ ) । परिहारइत्तिआ -- ऋतुमती स्त्री, रजस्वला नारी ( दे ६।३७ ) । परिहारिणी -- चिरकाल से व्याई हुई भैंस ( दे ६।३१ ) । परिहाल -- जल-निर्गम, मोरी, नाला ( दे ६।२९ ) । परिहेरक -- १ जंघा का आभरण- विशेष - 'जंघासु गंडूपयकं णीपुराणि परिहेरकाणि' ( अंवि पृ १६३ ) । २ पांव का आभरण-विशेष ( औपटी पृ १०३ ) । परीयल्ल -- वेष्टन ( ओनि ७०९ ) । परीसह -- नापित ( व्यभा ४।३ टी प २१ ) । परेअ -- पिशाच ( दे ६।१२ ) । परेवय -- प्रणिपात करना, चरण स्पर्श करना ( दे ६।१८ ) । परोहड -- घर का पिछला आंगन ( ओनि ४१७; पा ९३४ ) । पल -- स्वेद, पसीना ( दे ६।१ ) । पलंजी -- भूसा, छिलका - 'जहा धन्नेसु पलंजी' ( उसुटी प १०९ ) । पलग -- पात्र-विशेष ( आचू पृ ३४४ ) । पलस -- १ कार्पास- फल । २ स्वेद, पसीना ( ६।७० ) । पलसु -- सेवा, भक्ति ( दे ६।३ ) । पलहिअ -- १ विषम, असम ( दे ६।१५ ) । २ चारदीवारी से घिरा हुआ ; मकान ( वृ ) । पलही -- कपास ( दे ६।४ ) । पलाअ -- चोर ( दे ६।८ ) । पलाडीका -- पक्षिणी-विशेष ( अंवि पृ ६९ ) । पलाल -- लेह्यभोज्य ( अंवि पृ १८२ ) । पलासि -- भल्ली, छोटा भाला ( दे ६।१४ ) । पलासिया -- छाल की बनी हुई बांसुरी ( सू १।४।३८ ) । पलिगोव -- कीचड़ - महया पलिगोवं जाणिया जा वि य वंदण-पूयणा इहं' ( सू १।२।३३ ) । पलिट्ठ -- १ फलक, तख्ता ( दजिचू पृ १७५ ) । २ उत्तम, अच्छा -- पलिट्ठं पज्जत्तं दव्त्रं पलोएति' (निचू २ पृ २०९ ) । पलिय -- १ कर्म- अणुवीइ पास णिक्खित्तदंडा, जे केइ सत्ता पलियं चयंति' ( आ ४।२७ ) । २ निंदित आचरण-'पलियं ति कर्म जुगुप्सित मनुष्ठानम्' ( टी प २४१ ) । पलियट्ठाण -- कर्मस्थान, कारखाना ( आ ९।२।२ ) । पलिहअ -- मूर्ख ( दे ६।२० ) । पलिहस्स -- ऊर्ध्व दारु, काष्ठ-विशेष ( दे ६।१६ ) । पलिहाअ -- ऊर्ध्व दारु, काष्ठ-विशेष ( दे ६।१६) । पलोट्टजीह -- रहस्य-भेदी, रहस्य को प्रकट करने वाला ( दे ६।३५ ) । पलोत्थित -- उभरा हुआ, भरा हुआ ( अंवि पृ २४३ ) । पल्ल -- धान्य भरने का कोठा ( बूटी पृ ९२६ ) । पल्लग -- धान्य रखने का बडा कोठा - 'पल्लगत्ति पल्लको नाम लाटदेशे धान्याधारं भवति' ( आवमटी प ६८ ) । पल्लट्ट -- १ चलित, पर्यस्त ( प्र ९।२ ) । २ काल-विशेष । पल्लत्थ -- पर्यस्त ( से २।५ ) । पल्लत्थिया -- पालथी का आसन ( उशाटी प ८ ) । पल्लवग्ग -- पर्थव परिमाण - 'पल्लवग्गोत्ति पर्यवपरिमाणं' ( समटी प १०५ ) । पल्लवाय -- क्षेत्र, खेत ( दे ६।२६ ) । पल्लविअ -- लाख से रंगा हुआ ( दे ६।१९ ) । पल्लालिय -- बेसवार का एक घटक ( निचू २ पृ ६५ ) । पल्लालु -- फल-विशेष ( अंवि पृ २३८ ) । पल्लालुक -- वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । पल्लुल -- कठोर शब्द, उत्त्रास पैदा करने वाले शब्द - 'पल्लुलं भणंति - हण छिन्द भिन्दधत्ति मारेत्ति पचे-पचे त्ति' ( सूचू १ पृ १३९ ) । पल्लोट्ट -- प्रवृत्त उत्पन्न - 'तुरियपहाविअ - पल्लोट्टफेणाउलं - पल्लोट्ट त्ति प्रवृत्तः उत्पन्न:' ( ज्ञा १।१।३३ टी प २९ ) । पल्लोय -- द्वीन्द्रिय कीट-विशेष ( उ ३६।१२९ ) । पल्ह -- अनार्य देश की एक जाति ( भ ३।६५ ) । पल्हत्थिअ -- विरेचित, रिक्त ( पा ५९२ ) । पल्हत्थी -- साधु का एक उपकरण ( जीविप पृ ५० ) । पल्हवि -- एक प्रकार का वस्त्र जो हाथी की पीठ पर बिछाया जाता है ( जीभा १७७० ) । पल्हविया -- देश-विशेष की दासी ( ज्ञा १।१।८२ ) । पवड्डय -- पर्दा, चटाई - कुटिका - पवड्डकेन कटकेन पश्यति' ( ओटी प ५२ ) । पवद्ध -- घन, हथौड़ा, लोहे को कूटने का साधन ( दे ६।११ ) । पवरंग -- शिर, मस्तक ( दे ६।२८ ) । पवलाइया -- भुजपरिसर्पिणी ( जीव २।९ ) । पवहाइअ -- प्रवृत्त ( दे ६।३४ ) । पविआ -- पक्षियों के पानी पीने का भाजन ( दे ६।४ ) । पवित्तय -- १ अंगूठी ( भ २।३१ ) । २ तांबे की अंगूठी - पवित्रकं ताम्रमयमंगुलीयकम्' ( ज्ञाटी प ११७ ) । पविरइअ -- त्वरित, वेगयुक्त ( दे ६।२८ ) । पविरंजिअ -- १ स्निग्ध, स्नेहिल । २ कृत - निषेध, निवारित ( दे ६।७४ ) । ३ भांगा हुआ ( वृ ) । पविरल्लिय -- विस्तृत ( प्र ५।१ ) । पविराय -- प्रस्फुटित ( जीव ३।११८ ) । पविरेल्लिय -- विस्तारवाला ( प्रटी प ९३ ) । पवीसग -- वाद्य-विशेष-तंतीवीणा-पवीसगादि ततंति भणंति' ( दश्रुचू प ९१ ) । पवुत्थ -- १ प्रवासी ( बूटी पृ ५३ ) । २ घर । पव्वइसेल्ल -- बालमय कंडक ( कंदुक ? ) शृंगार के लिए बालों में लगाया जाने वाला एक उपकरण ( दे ६।३१ ) - 'पडुजुवईण णिमित्तं पव्वइसेल्लाइ गुम्फेइ' ( वृ ) । पव्वज्ज -- १ नाखून, नख । २ बाण । ३ मृग-शावक ( दे ६।६९ ) । पव्वडिया -- भिडने की क्रिया विशेष ( निचू ३ पृ ३४८ ) । पव्वाय -- म्लान, अर्द्धशुष्क - ववहारस्स य सेसो मीसो पव्वायरोट्टाई ( पिनि ४४ ) । पव्वालिय -- प्लावित, जल व्याप्त ( पा १३६ ) । पव्विद्ध -- प्रेरित ( दे ६।११ ) । पव्वीसग -- वाद्य-विशेष ( प्र ४।४ ) । पव्वोणि -- सम्मुख - 'तण्हाइयस्स पाणं जोग्गाहारं च नेइ पव्वोणि' ( व्यभा ६ टी प ५३ ) । पसंडि -- स्वर्ण, कनक ( दे ६ । १० ) । पसढ -- जो विक्रेय वस्तु बहुत दिनों तक न बिक्री हो ( द ५।१।७२ ) । पसत -- १ मृग-विशेष । २ अटवी का प्राणी विशेष ( अंवि पृ २३९ ) । ३ गवय ( अंवि पृ २३८ ) । पसति -- गवयी, नीलगाय ( अंवि पृ ६९ ) । पसय -- १ मृग-विशेष ( भ ८।१०३; दे ६।४ ) । २ जंगली पशु-विशेष - 'आटविको द्विखुर: चतुष्पदविशेष:' ( अनुद्रामटी प ३५ ) । ३ मृग-शिशु ( विपा १।४।१६ ) । पसर -- १ प्रातःकाल - 'अहो समतिरेगं रंधिज्जासु जेण एयाणं पसरवेलाए आगयाणं होइत्ति' ( ओटी प १४८ ) । २ वस्त्र-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । पसरेह -- किञ्जल्क, कमल-केसर ( दे ६।१३ ) । पसलचित्त -- क्षुद्र जंतु-विशेष ( अंवि पृ २२९ ) । पसल्लिय -- पाश्र्ववर्ती ( अंवि पृ १८४ ) । पसवडक्क -- विलोकन, देखना ( दे ६।३० ) । पसाइया -- पत्तों की बनी हुई एक प्रकार की पगडी जिसे भील सिर पर पहनते हैं ( दे ६।२ ) । पसाणग -- उपकरण-विशेष ( अंवि पृ १९३ ) । पसिंडि -- सोना, स्वर्ण ( पा ८० ) । पसिय -- सुपारी ( भ २२।२ पा; दे ६।६ ) । पसिव्विका -- थैली का एक प्रकार ( अंवि पृ १७८ ) । पसुत्ति -- एक प्रकार का कुष्ठरोग ( निचू ३ पृ ३९२ ) । पसुहत्त -- वृक्ष ( दे ६।२९ ) । पसूअ -- कुसुम, पुष्प ( दे ६।९ ) । पसूइ -- धान्य-विशेष - 'सालि पसूई व गद्दर्भिया य छिन्ना' ( आवहाटी १ पृ २९०) । पसेवअ -- ब्रह्मा ( दे ६।२२ ) । पसेव्वक -- थैला ( अंवि पृ २२१ ) । पस्सिण्ण -- पसीने से गीला - 'तिलगो से खमगललाडं परिसण्णं संकतो' ( दअचू पृ २५ ) । पहएल्ल -- अपूप, पूआ ( दे ६।१८ ) । पहकर -- समूह-पहकरो त्ति देशीशब्दोऽयं समूहवाची' ( जंबूटी प १४५ ) । पहगर -- जलजंतु-विशेष - 'जलचर पहगर-परिहत्थग-मच्छपरिभुज्जमाणजल-संचयं' ( दश्रु ८।३० ) । पहट्ठ -- १ दृप्त, उन्मत्त ( तंदु पृ ४५ ; दे ६।९ ) । २ अचिरतर दृष्ट । पहण -- कुल ( दे ६।५ ) । पहणि -- सामने आए हुए का निरोध, रुकावट ( दे ६।५ ) । पहद -- सदा दृष्ट, सदा देखा हुआ ( दे ६।१० ) । पहम्म -- १ देवताओं द्वारा खोदा हुआ ( दे ६।११ ) । २ खात जल-कुण्ड । ३ विवर, छिद्र - मणिपहम्म' - मणिमयं विवरं यद्वा मणीनां प्रथमः खात इति देशी' ( से ९।४३ ) । पहयर -- समूह, निकर ( दे ६।१५ ) । पहिअ -- मथित, विलोड़ित ( दे ६।६ ) । पहेण -- १ विवाह के समय वधू के पीहर ( पितृगृह ) में किया जाने वाला भोज । २ अन्य घरों में ले जाई जाने वाली भोजन-सामग्री । ३ जो भोज्य पदार्थ वर के घर से वधू के घर में ले जाया जाता है वह । ४ अन्य घरों से वर-वधू के घर में ले जाई जाने वाली भोजन-सामग्री ( निचू ३ पृ २२३ ) । ५ खाद्य वस्तु का उपहार- पहेणंति वा उक्खित्तभत्तंति वा एगट्ठा' ( आचू पृ ७७ ) । ६ उपानत्, जूता ( व्यभा १० टी प ७३ ) । ७ उपहार । ८ उत्सव ( अंवि पृ २६८ ) । पहेणग -- वस्तु की भेंट, विवाह अथवा उत्सव के उपलक्ष में किसी दूसरे घर से भेंट स्वरूप प्राप्त भोजन-विशेष ( पिनि ३३५ ) । पहेणय -- १ खाद्य वस्तु का उपहार ( ओनि १०३ ; दे ६।७३ ) । २ उत्सव ( दे ६।७३ ) । पहेरक -- आभूषण-विशेष ( प्र १०।१४ ) । पहोइअ -- १ पर्याप्त ( दे ६।२६ ) । २ प्रभुत्व ( वृ ) । पहोलिर - इधर-उधर फेंकने वाला ( से ११।१२) । पाअ -- रथ का पहिआ, रथचक्र ( दे ६।३७ ) । पाइअ -- मुंह फाड़ना, मुंह बाना ( दे ६।३९ ) । पाइणग -- चाबुक - 'तुत्तयघातैश्च विषमवाहोऽथ पीड्यते, तुत्तगो-पाइणगो' ( आवहाटी २ पृ २०५ ) । पाइल्लग -- १ चटाई बनाने का लोहमय ओजार ( उशाटी प १९५ ) । २ छेदन करने का साधन, चाकू आदि ( निचू २ पृ ५ ) । पाउ -- १ भोजन । २ ईक्षु ( दे ६।७५ ) । पाउअ -- १ हिम ( दे ६।३८ ) । २ भोजन । ३ ईक्षु ( दे ६।७५ वृ ) । पाउक्क -- मार्गीकृत, प्रकटित ( दे ६।४१ ) । पाउक्खालय -- १ पाखाना, मलोत्सर्ग - स्थान - 'पाउक्खालयगेहे दुग्गंधेऽणेगसो वसिओ' ( भत्त ११२ ) । २ मलोत्सर्ग-क्रिया । पाउग्ग -- सभ्य, सभासद ( दे ६।४१ ) । पाउग्गिअ -- १ जुआ खेलाने वाला ( दे.६।४२ ) । २ सहन करने वालापाउग्गिओऽपि सोढः' ( वृ ) । पाउरणी -- कवच, बख्तर ( दे ६।४३ ) । पाउल्ल -- १ काष्ठ-पादुका ( सूचू १ पृ ११८ ) । २ मूंज से निर्मित पादुका ( सूटी १ प ११८ ) । पाउल्लग -- १ काष्ठपादुका - 'पाउल्लगाइं ति कट्ठपाउगाओ' ( सूचू १ पृ ११८ ) । २ मूंज की बनी पादुका ( सूटी १ प ११८ ) । पाए -- प्रभृति, वहां से प्रारम्भ कर - 'जत्तो पाए खेत्तं, गया उ पडिलेहगा ततो पाए' ( बृभा १५३८ ) । पांडविअ -- पानी से आर्द्र ( दे ६।२० ) । पागडा -- पैर का आभुषण - 'चरणमालिका-संस्थान विशेषकृतं पादाभरणं लोके पागडा इति प्रसिद्धं ( जंबूटी प १०६ ) । पाघट्टिका -- पैर का आभूषण- विशेष, पायजेब ( अंवि पृ ७१ ) । पाट्टालिका -- पाढल का फूल ( अंवि पृ ७० ) । पाडच्चर -- आसक्त चित्तवाला ( दे ६।३४ ) । पाडल -- १ हंस । २ वृषभ । ३ कमल ( दे ६।७६ ) । पाडलसउण -- हंस ( दे ६।४६ ) । पाडलसउणय -- हंस ( दे ६।४६ वृ ) । पाडवण -- पाद-पतन, प्रणिपात ( दे ६।१८ ) । पाडिअग्ग -- विश्राम ( दे ६।४४ ) - 'रे हलिय ! पाडिअग्गं कुण इण्हिं' ( वृ ) । पाडिअज्झ -- पिता के घर से वधू को पति के घर ले जाने वाला ( दे ६।४३ ) । पाडिया -- उत्तरीय वस्त्र ( भ १५।५१ ) । पाडिसार -- पटुता, निपुणता ( दे ६।१६ ) । पाडिसिद्धि -- १ स्वर्धा । २ सदृश । ३ समुदाचार ( दे ६।७७ ) । पाडिसिरा -- खलीनयुक्त ( दे ६।४२ ) । पाडिहच्छी -- मस्तक की माला ( दे ६।४२ वृ ) । पाडिहत्थी - मस्तक पर स्थित माला ( दे ६।४२ वृ) । पाडुंकी -- व्रणी शिविका, घायल के लिए बैठने की शिविका ( दे ६।३९ ) । पाडुंगोरि -- १ विगुण, गुणहीन । २ मद्य में आसक्त । ३ मजबूत वेष्टन वाली बाड ( दे ६।७८ ) - 'यदाह - पाडुंगोरी च वृतिर्दीर्घं यस्या विवेष्टनं परितः' ( वृ ) । पाडुक्क -- १ समालंभन, शरीर पर चन्दन आदि का उपलेप । २ पटु, निपुण ( दे ६।७६ ) । पाडुच्चिय १ -- सजा हुआ अश्व ( दे ६।३९ वृ ) । पाडुच्ची -- अश्व-मंडन, अश्व को सजाना ( दे ६।३९) । पाडुहुअ -- १ साक्षी ( आवहाटी १ पृ ४२ ) । २ प्रतिभू, जमानत करने वाला ( दे ६।४२ ) । पाढा -- वनस्पति-विशेष ( भ २३।६ ) । पाण --१ भाजन-विशेष - 'पाणशब्देन भाजनविशेष उच्यते' ( अनु ३।३८ टी ) । २ चाण्डाल - पाणा नाम ये ग्रामस्य नगरस्य च बहिराकाशे वसन्ति तेषां गृहाणामभावात्' ( व्यभा ४।३ टी प २१; दे ६।३८ ) । ३ वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ६३ ) । पाणंधि -- आने-जाने का मार्ग - 'पाणंधीति देशी पदमेतत् वर्तिनीवाचकं' ( व्याभा ४२ टी प ८ ) । पाणद्धि -- रथ्या, गली ( दे ६।३९ ) । पाणाअअ -- श्वपच, चांडाल ( दे ६।३८ ) । पाणामा -- १ सबको प्रणाम करने की पद्धति से अनुप्राणित प्रव्रज्या का एक प्रकार । ( भ ३।३४ ) । २ वैनयिकवादियों का एक भेद ( सूचू १ पृ २०७ ) । पाणाली -- दोनों हाथों का प्रहार ( दे ६।४० ) । पाणी -- वल्ली-विशेष ( प्रज्ञा १।४०।४ ) । पाण्णयिक -- द्वीन्द्रिय जंतु-विशेष ( अंवि पृ २३७ ) । पातंक -- मुद्रा विशेष, सिक्का ( नंदीटि पृ १४२ ) । पातिक -- त्रीन्द्रिय जंतु-विशेष ( अंवि पृ २६७ ) । पातिज्ज -- उत्सव-विशेष ( ? ) ( अंवि पृ ९८ ) । पादकुहडि -- पैरों को हिलाना, आगे-पीछे करना, पैरों से कुचेष्टा करना - 'हत्थणट्ट-पादकुहडि- सरीरमोडणाति परिहरंतो' ( दअचू पृ १९६ ) । पादखडुयग -- पैर का आभूषण-विशेष, बिछुआ ( अंवि पृ ६५ ) । पापढक -- पैरों का आभूषण-विशेष ( अंवि पृ ६५ ) । पापहिक -- सर्प की एक जाति ( अंवि पृ ६३ ) । पामद्दा -- पैरों से धान्य को मसलना ( दे ६।४० )। पामाड -- पमाड का पेड़ ( पा ३७० ) । पामिच्च -- उधार लिया हुआ - 'कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्ठं' ( आ ८।२१ ) । पामिच्चय -- उधार लिया हुआ ( आचूला १०।११ ) । पामेच्छा -- वनस्पति-विशेष ( अंवि पृ ९२ ) । पाय -- १ रथ चक्र, रथ का पहिया ( दे ६।३७ ) । २ फणी, सांप । पायंक -- विशेष प्रकार का सिक्का - 'पायंकाणं नाणगविसेसरूवाणं' ( आवमटी प ५३० ) । पायड -- आंगन ( दे ६।४० ) । पायप्पहण -- कुक्कुट, मुर्गा ( दे ६।४५ ) । पायय -- घोषणा- 'पायओ लंबिओ—जो हत्थिंम महइमहालयं तोलेइ तस्स य सयसहस्सं देमि' ( आवहाटी १ पृ २८० ) । पायल -- चक्षु, आंख ( दे ६।३८ ) । पारंक -- मदिरा को मापने का पात्र-विशेष ( दे ६।४१ ) । पारंपर -- राक्षस ( दे ६।४४ ) । पारदोच्च -- चोरों का भय ( बुभा ३९०५ ) - 'पारदोच्चं चौरभयम्' ( टी पृ १०७२ ) । पारद्ध -- १ पूर्वकृत कर्मों का परिणाम प्रारब्ध । २ आखेटक, शिकारी ( दे ६।७७ ) । ३ पीड़ित (ज्ञा १९ । १८।६२ ; दे ६।७७ ) । ४ विनाशित - 'दिणकरकरपरंपरोयारपारद्धंमि अंधयारे' ( ज्ञा १।१।२४ ) । पारद्धि -- शिकार - 'मंसक्खाया पारद्धिणिग्गया' ( निभा २५५३ ) । पारमाणि -- अत्यन्त कोप, परम क्रोध समुद्घात - 'अप्पे वि पारमाणिं, अवराधे वयति खामियं तं च' ( बृभा ५२०७ ) । पारय -- मदिरा-पात्र ( दे ३।३८ ) । पाराई -- लोहकुसी विशेष ( प्र ३।१३ ) । पारावण -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । पारावत -- फल-विशेष ( अंवि पृ ६४ ) । पारावर -- गवाक्ष, झरोखा ( दे ६।४३ ) । पारिग -- प्रावरण-विशेष ( निचू २ पृ ४०० ) । पारियल्ल -- पहिए के पृष्ठ भाग की बाह्य परिधि - 'संजम तवतुंबारयस्स णमो सम्मत्तपारियल्लस्स' ( नंदी ५ ) । पारियासिय -- रात्रि का बासी भोजन - पारियासियं णाम रातो पज्जुसियं' ( निचू ३ पृ २८७ ) । पारिहच्छी -- माला ( दे ६।४२ ) । पारिहट्ट -- चिरप्रसूता भैंस का दूध ( ओटी प ४१ ) । पारिहट्टी -- १ द्वारपाल । २ आकर्षण । ३ चिरप्रसूता महिषी ( दे ६।७२ ) । पारिहिट्टि -- चिरप्रसूता भैंस ( ओटी प ४८ ) । पारिहत्थी -- १ माला ( दे ६।४२ ) । २ शिरोमाल्य ( वृ ) । ३ पुष्प-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । पारिहेरग -- आभूषण-विशेष ( जीव ३।५९३ ) । पारी -- १ पात्र-विशेष ( जीव ३।५८७ ) । २ दूध दुहने का पात्र ( दे ६।३७ ) । पारुअग्ग -- विश्राम ( दे ६।४४ ) । पारुअल्ल -- पृथुक, चिउडा ( दे ६।४४ ) - 'तित्ति ण मण्णासे पारुमल्लअसणम्मि' ( वृ ) । पारुहल्ल -- मालीकृत, श्रेणीरूप में स्थापित ( दे ६।४५ ) । पाल -- १ कलवार, शराब बेचने वाला । २ जीर्ण, फटा- टूटा ( दे ६।७५ ) । पालंक -- पालक का शाक ( बृभा २०९४ ) । पालक्क -- पालक का शाक - 'पालक्कं महरट्ठविसए गोल्लविसए य सागो जायइ इति विशेष-चूर्णौ' ( बृटी पृ ६०३ ) । पालप्प -- १ विप्लुत, उपद्रुत । २ प्रतिसार - अपसरण, मरहमपट्टी, विनाश ( दे ६।७६ ) । पालिआ -- १ खड्ग मुष्टि, तलवार की मूठ । २ तलवार की धार ( पा २७५ ) । पालिका -- भाजन-विशेष ( अंवि पृ ७२ ) । पाली -- १ दिशा, दिक् ( दे ६।३७ ) । २ पल्योपम, समय का परिमाण-विशेष ( उ १८।२८ ) । ३ धान्य मापने का नाप । पालीक -- भोज्य पदार्थ-विशेष ( अंवि पृ १०९ ) । पालीबंध -- तालाब ( दे ६।४५ ) । पालीहम्म -- बाड, वृति ( दे ६।४५ ) । पालु -- अपान ( नि ३।४० ) । पालुकिमिय -- अपान में उत्पन्न होने वाले कृमि ( नि ३।४० ) । पाव -- सर्प ( दे ६।३८ ) । पावक्खालय -- मलोत्सर्ग का स्थान, पाखाना- 'वयंस ! पावक्खालयं पविसामो ' ( कु पृ ६७ ) । पाववल्ली -- वल्ली-विशेष ( प्रज्ञा १।४०।२ ) । पाविएक्क -- आच्छादित ( से ११।४८ ) । पावीर -- स्थान-विशेष ( अंवि पृ १३६ ) । पास -- १ एक प्रकार का भाला - 'तयाणंतरं च णं बहवे लट्ठिग्गाहा कुंतग्गाहा चामरग्गाहा पासग्गाहा चावग्गाहा....पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठिया' ( दश्रु १०।१४ ) । २ आंख । ३ शोभाहीन ( दे ६।७५ ) । ४ दांत ( वृ ) । ५ अन्य वस्तु का मिश्रण । पासणिअ -- साक्षी ( सू १।२।५०; दे ६।४१ ) । पासल्ल -- १ द्वार । २ तिर्यक, वक्र ( दे ६।७६ ) । ३ पार्श्व, समीप ( से ९।३८ ) । पासल्लइय -- टेढा किया हुआ ( से ९।७७ ) । पासाणिअ -- साक्षी ( दे ६।४१ ) । पासाला -- भल्ली, छोटा भाला ( दे ६।१४ ) । पासावअ -- गवाक्ष, झरोखा ( दे ६।४३ ) । पासिय -- सुपारी ( भ २२।२ ) । पासी -- जूड़ा, चोटी ( दे ६।३७ ) । पासुलिया -- पार्श्व की हड्डी ( अनु ३।५२ ) । पासुलीय -- पार्श्व की हड्डियों वाला ( तंदु १४७ ) । पासोअल्ल -- टेढा, तिर्यक् ( से ६।४७ ) । पाहडितिया -- गर्भवती स्त्री-पुणो पाडितियासंजतीवेसेण पुरतो ठितो'। ( दअचू पृ ५० ) । पाहुड -- कलह - 'पाहुडं कलहमित्यर्थः' ( निचू ३ पृ ३८ ) । पाहुडिया -- १ सार्वजनिक स्थान जहां बलि आदि के पदार्थ बिखेरे जाते हैं। ( बृभा ५५४ ) । २ पापकारी प्रवृत्ति ( बृभा १५३१ ) । ३ मकान की मरम्मत ( बृभा १६७४ ) । ४ भिक्षा । ४ अर्चनिका - 'प्राभृतिका भिक्षाऽपि भव्यते अर्चनिकाऽपि' ( बृभा ५५८ टी ) । पाहुण -- बेचने योग्य, विक्रेय ( दे ६।४० ) । पाहुणय -- संघ-स्थविर, कुल- स्थविर, गण- स्थविर – तीनों की संयुक्त संज्ञा ( वृभा ३७२६ ) । पाहुणिय -- ग्रहाधिष्ठाता देव-विशेष ( निचू ३ पृ २२४ पा ) । पाहुणी -- स्त्री-अतिथि ( कु पृ ९९ ) । पाहुय -- त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष ( प्रज्ञा १।५० ) । पाहेज्ज -- पाथेय ( दे ६।२४ ) । पाहेणं -- उत्सव पर किया जाने वाला भोज-विशेष ( जीभा १२३४ ) । पाहेणग -- जीमनवार में बनाई जाने वाली मिठाई, मोदक आदि ( पिनि २८८ ) । पिअण -- दुग्ध, दूध ( दे ६।४८ ) । पिअमा -- प्रियंगु वृक्ष ( दे ६।४९ ) । पिअमाहवी -- कोयल, कोकिला ( दे ६।५१ ) । पिउड -- १ मांस का बचा हुआ भाग हड्डी आदि- 'पोग्गले पिउडं' ( बुभा १७११ ) । २ कचरे का ढेर - 'पिउडं पुण उज्झं भण्णति' ( निचू १ पृ १०० ) । पिउली -- १ कपास । २ रूई की पूनी ( दे ६।७८ ) । पिंगंग -- बन्दर, मर्कट ( दे ६।४८ ) । पिंचु -- पक्व करीर, पका करील ( दे ६।४६ ) । पिंच्छोला -- गृह उपकरण-विशेष ( अंवि पृ ७२ ) । पिंछोली -- मुंह से हवा भरकर बजाया जाता एक प्रकार का तृण-वाद्य ( दे ६।४७ ) । पिंजरण -- सजावट, शृंगार-पाडुच्ची तुरयदेह पिंजरणं' ( पा ६३१ ) । पिंजरुड -- दो मुंह वाला पक्षी, भारुंड पक्षी ( दे ६।५० ) । पिंजिअ -- विधुत, कंपित ( दे ६।४९ ) । पिंजिअय -- विधुत, कंपित ( दे ६।४९ वृ ) । पिंडरय -- दाडिम ( दे ६।४८ वृ ) । पिंडलइय -- पिंडीकृत, एकत्रित ( दे ६।५४ वृ ) । पिंडलग -- पटलक, पुष्प का भाजन (स्था ७।२२) । पिंडिका -- वर्तुलाकार नौका ( अंवि पृ १६६ ) । पिडी -- मञ्जरी ( दे ६।४७ ) । पिंडीर -- दाडिम ( दे ६।४८ ) । पिंसुली -- मुंह से पवन भरकर बजाया जाता एक प्रकार का तृण-वाद्य ( दे ६।४७ ) । पिक्खुर -- म्लेच्छ जाति-विशेष ( आवचू १ पृ १९१ ) । पिगाण -- वस्त्र-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । पिचक -- मत्स्य की एक जाति ( अंवि पृ २२८ ) । पिचुगाल -- भीगे हुए गेहूं आदि का खाद्य ( आवहाटी २ पृ २४३ ) । पिच्च -- पानी - 'कोंकणादिषु पयः पिच्चं नीरमुदकमित्यादि' ( प्रसाटी प २६२ ) । पिच्चिय -- कूटी हुई छाल - 'पिच्चिउ त्ति वा, विच्चिउ त्ति वा कुट्टितो त्ति वा एगट्ठं' ( निचू २ पृ ६८ ) । पिच्छि -- पिटारी ( राज ७७२ पा ) । पिच्छिली -- लज्जा ( दे ६।४७ ) । पिच्छी -- जूड़ा, चोटी ( दे ६।३७ ) । पिच्छोला -- बांस की कोमल छाल से बनी हुई बांसुरी जिसे दांतों में बाएं हाथ से पकड़कर दाएं हाथ से वीणा की भांति बजाया जाता है ( सूचू १ पृ ११६ ) । पिट्ट -- पेट, उदर ( बृभा ५९८५ ) । पिट्टापिट्टी -- मारपीट, झगड़ा ( निचू ३ पृ ४१ ) । पिट्ठ -- मिट्टी का पात्र - 'पिट्ठं पुढविकायभायणं' ( निचू ३ पृ ४८४ ) । पिट्ठंत -- गुदा ( नि ६।१४; दे ६।४९ ) । पिट्ठखउरा -- कलुषित सुरा, पंकसुरा ( दे ६।५० ) । पिट्ठखउरिआ -- मदिरा, दारु ( पा ६३६ ) । पिडच्छा -- सखी, सहेली ( दे ६।४९ ) । पिडालुकि -- लता-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । पिणाअ -- बलात्कार ( दे ६।४९ ) । पिणाई -- आज्ञा, आदेश ( दे ६।४८ ) । पिण्णिया -- ध्यामक नाम का गंध-द्रव्य ( उशाटी प १४२ ) । पिण्ही -- क्षामा, कृश स्त्री ( दे ६।४६ ) । पितुच्छा -- सखी ( आवचू १ पृ १७६ ) । पिपिल्ली -- यान-विशेष ( जीवटी प १५२ ) । पिप्पअ -- १ मशक, मच्छर । २ उन्मत्त ( दे ६।७८ ) । ३ पिशाच ( पा ३९ ) । पिप्पडा -- ऊन में होने व ली कीड़ी ( दे ६।४८ ) । पिप्पडिअ -- जो बडबडाया हो, निरर्थक उल्लपित ( दे ६।५० ) । पिप्पर -- १ वृषभ, बैल । २ हंस ( दे ६।७९ ) । पिप्पल -- छोटा चाकू ( विपा १।६।२२ ) । पिप्पलमालिका -- गले का एक आभूषण ( अंवि पृ ७१ ) । पिब्ब -- पानी, जल ( दे ६।४६ ) । पियंगाल -- चतुरिन्द्रिय जीव-विशेष ( प्रज्ञा १।५१ ) । पिरली -- तृणमय वाद्य-विशेष ( जीव ३।५८८ ) । पिरिडी -- शकुनिका, चील ( दे ६।४७ ) । पिरिपिरिया -- वाद्य-विशेष - 'कोलिकपुटकावनद्धमुखो वाद्य-विशेष: ( भटी प २१६ ) । पिरिली -- पक्षिणी- विशेष ( अंवि पृ ६९ ) । पिलग -- पक्षी विशेष ( जंबू २।१३६ ) । पिलज -- जलचर पक्षि-विशेष - 'जधा ढंका य कंका य पिलजा मग्गुका सिही' ( सू १।११।२७ ) । पिलण -- फिसलने वाला स्थान, चिकना स्थान ( दे ६।४९ ) । पिलय -- पक्षी-विशेष (.अंवि पृ ६२ ) । पिला -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । पिल्ल -- शिशु, बच्चा ( दे ६।४६ पा ) । पिल्लक -- १ बालक - 'बालको दारको व त्ति सिंगको पिल्लको त्ति वा' ( अंवि पृ ९७ ) । २ हीन अंगवाला ( अंवि पृ १५३ ) । पिल्लग -- शिशु, बच्चा ( पंक ५३० ) । पिल्लणा -- उभरा हुआ - 'अइसिरिभर पिल्लणा विसप्पंत कंत- सोहंत चारुककुहं' ( दश्रु ८।२२ ) । पिल्लिका -- बालिका ( अंवि पृ ६८ ) । पिल्लितेल्लय -- अत्यन्त भयभीत - 'ताए सो पिल्लितेल्लओ' ( आवचू १ पृ ३१९ ) । पिल्लिय -- १ ग्रस्त, पीड़ित ( निचू १ पृ ८१ ) । २ बालक, शिशु ( उशाटी प १२१ ) । ३ भीत ( आवहाटी १ पृ १५० ) । पिल्लिरी -- १ गंडुत् नाम का तृण २ चीरी, झींगुर । ३ घर्म, पसीना ( दे ६।७९ ) । पिल्ह -- पक्षियों के बच्चे, लघुपक्षी ( दे ६।४६ ) । पिल्हय -- पक्षी का शिशु - 'पाडलसउणयपिल्हय ! तुमयं मरुमण्डलम्भि मा वञ्च' ( दे ६।४६ वृ ) । पिविपिण -- मत्स्य जाति-विशेष ( अंवि पृ ६३ ) । पिवियाइय -- पिलाया - 'भगवतो इक्खुरसं पिवियाइया' ( आवमटी प १९२ ) । पिसल्ल -- पिशाच ( प्रटी प २५ ) । पिसल्लय -- पिशाच ( प्रटी प १६२ ) । पिसायक -- धूम्रपान का साधन विशेष ( अंवि पृ २५४ ) । पिसुग -- क्षुद्र कीट-विशेष, चींचड़ ( जीव ३।६२४ ) । पिसुणिय -- कथित ( पा १४५ ) । पिहंड -- १ वाद्य-विशेष । २ विवर्ण ( दे ६।७९ )। पिहय -- नौका खेने का काष्ठ-विशेष ( आचूला ३।१९ ) । पिहूण -- मोरपंख ( द ४।२१ ) । पिहणमिंजिया -- पिहुणभज्जा, मध्यवर्ती अवयव - पिहुणमिंजियाइ वा भिसेइ वा मुणालियाइ वा' ( राज २९ ) । पिहुणहत्थ -- मोरपिच्छी ( नि १७।१३२ ) । पिहुल -- मुंह से पवन भरकर बजाया जाता एक प्रकार का तृण-वाद्य ( दे ६।४७ ) । पिहोअर -- कृश ( दे ६।५० ) । पीइ -- तुरंगम, अश्व ( दे ६।५१ ) । पीडरइ -- चोरपत्नी ( दे ६।५१ ) । पीडोलक -- लता-विशेष ( अंवि पृ ३० ) । पीढ - १ राज्य कर्मचारी (आवचू १४८०) । २ ईख पेरने का यंत्र ( दे ६।५१ ) । ३ समूह, यूथ । ४ पीठ, शरीर के पीछे का भाग । पीढमद्द -- १ मुंह पर मीठा बोलने वाला - 'पीठमर्दा नाम मुखप्रिय जल्पाः' ( व्यभा ६ टी प ८ ) । २ सभामंडप में राजा के समीप बैठने वाले अधीनस्थ राजा या मित्रराजा - 'पीठमर्दा - आस्थाने आसीना-सीनसेवकाः, वयस्था इत्यर्थ: ( ज्ञाटी प २६ ) । ३ समवयस्क तथा प्रीतिवहुल महाराजपुत्र जो सदा राजा के निकट बैठते हैं ( आवचू १ पृ २४५ ) । ४ महान् राजा - 'दासीदासपरिवुडो परिकिष्णो पीढमद्देहिं' ( आवभा ६९; टी पृ १२१ ) । पीढमुद्द -- मुंह पर प्रिय बोलने वाला - पीढमुद्दा मुहपियजंपगा' ( व्यभा ६ टी प ८ ) । पीण -- चतुष्कोण ( दे ६।५१ ) । पीणक -- प्याले के आकार का पात्र ( अंवि पृ ६५ ) । पीणाइय -- गर्व से किया हुआ - 'पीणाइय-विरस-रडिय-सद्देणं फोडयंतेव अंबरतलं' ( ज्ञा १।१।१५९ ) । पीनाया -- गर्व, हठ ( ज्ञाटी प ७३ ) । पीरव्वायणी -- वाद्य-विशेष ( आवचू १ पृ १८७ ) । पीरिपीरिया -- वाद्य-विशेष ( आचूला ११।४ ) । पीलु -- दूध-दुद्धं पओ पीलु खीरं च ( पिनि १३१ ) । पीलुट्ठ -- जला हुआ, दग्ध ( दे ६।५१ ) । पीहग -- दूध आदि ( आवचू १ पृ ३९१ ) । पीहय -- नवजात शिशु को पिलाई जाने वाली वस्तु (बृटी पृ ५६ ) । पुअंड -- तरुण - 'पुअंडमंडलई ति' ( कु पृ १६९; दे ६।५३ ) । पुआइ -- १ तरुण । २ उन्मत्त । ३ पिशाच ( दे ६।८० ) । पुआइणी -- १ भूताविष्ट महिला, पिशाचगृहीता ( दे ६।५४ ) । २ उन्मत्त स्त्री । ३ दुःशीला, कुलटा ( वृ ) । पुंजाय -- ढेर किया हुआ - 'पुंजायं पिंडलइयं' ( पा ६२२ ) । पुंडइअ -- पिंडीकृत, एकत्रित ( दे ६।५४ ) । पुंडे -- जाओ ( दे ६।५२ ) । पुंढ -- गतं, गढा ( दे ६।५२ ) । पुंपुअ -- संगम ( दे ६।५२) । पुंफली -- वल्ली-विशेष ( भटी पृ १४८३ ) । पुंसुलिया -- पार्श्व की हड्डी - 'तह छ पुंसुलिए होइ कडाहे' ( प्रसाटी प ४०३ ) । पुक्कली -- देश-विशेष की दासी ( भ ९।१४४ पा ) । पुक्का -- जोर से आवाज करना, पुकारना ( पा ६२१ ) । पुक्कार -- आवाज ( जीभा १७२२ ) । पुक्खरविग -- वनस्पति-विशेष ( आचूपृ ३४१ ) । पुक्खलग -- जल में होने वाली वनस्पति-विशेष ( आचू पृ ३४१ ) । पुक्खलच्छिभग -- जलीय वनस्पति-विशेष ( सू २।३।४३ ) । पुगारिया -- वस्त्र को काटने वाले जंतु- विशेष - 'मा से पुगारियाइ खज्जेज्ज ( सूचू १ पृ ११६ ) । पुच्चड -- अत्यन्त सघन ( प्र १।२३ ) । पुच्छलक -- कंठ का आभूषण-विशेष ( अंवि पृ १६२ ) । पुच्छिय -- धान्यभाजन-विशेष ( आवहाटी १ पृ २९० ) । पुट्ट -- उदर, पेट ( प्रसा ८८० ) । पुट्टलिका -- पोटली, छोटी गठरी ( आवचू २ पृ० १८४ ) । पुट्ठ -- पोंछा हुआ ( बृभा १७३४ ) । पुडइअ -- पिंडीकृत, एकत्रित ( दे ६।५४ ) । पुडइणी -- नलिनी, कमलिनी ( दे ६।५५ ) । पुडग -- तन्तु - 'लूतापुडगंपि- लूत तन्तुमपि ( आवहाटी १ पृ १९२ ) । पुडपुडि -- मुंह से सीटी बजाना ( प्रसा ४३६ ) । पुडाली -- फटी हुई जमीन ( आचू पृ ३३७ ) । पुडिंग -- १ मुख । २ बिन्दु ( दे ६।८० ) । पुडिया -- गुच्छा - 'पुप्फपुडियाइ जं पइ, गोरसघडओ करेइ कज्जाइं । मणिबंधम्मि पयलिते, साणुग्गह होंति सव्वगहा ।' ( बृटी पृ १० ) पुणइ -- श्वपच, चांडाल ( दे ६।३८ ) । पुण्णवत्त -- खुशी से हृत वस्त्र ( दे ६।५३ ) । पुण्णाली -- असती, कुलटा ( दे ६।५३ ) । पुताई -- पागल स्त्री ( बृभा ६०५३ ) । पुताकी -- उन्मत्त स्त्री - 'पुताकी देशीवचनत्वाद् उद्भ्रामिका' ( बूटी पृ १५९७ ) । पुत्त -- १ कटि-वस्त्र, धोती ( बृटी पृ ५३ ) । २ वस्त्र ( बृटी पृ ११२३ ) । पुत्तंजीवय -- जियापोता का वृक्ष जिसके बीजों की या फूलों की माला बच्चों को स्वस्थ रखने के लिए गले में पहनाते हैं ( प्रज्ञाटी प ३१ ) । पुत्तल -- पुतला - 'दब्भमया पुत्तला उ कायव्वा' ( आवहाटी २ पृ ९६ ) । पुत्तलग -- पुतला ( निचू १ पृ ६३ ) । पुत्तलिया -- पुतलिका - 'विंधेहि पुत्तलियं' ( उशाटी प १४९ ) । पुत्तल्ल -- पुतला ( निचू १ पृ ६८ ) । पुत्तल्लग -- पुतला - 'मंतेऊण व विंधइ पुत्तल्लगमादि पडिणीए' ( निभा १६७ ) । पुत्तिगा -- पुतली ( सूचू १ पृ ११८; दे ६।९२ ) । पुत्तिया -- चतुरिन्द्रिय जंतु-विशेष ( जीवटी प ३२ ) । पुत्ती -- वस्त्र ( उशाटी प ८ ) । पुत्तुय -- वाद्य-विशेष ( आवचू १ पृ ३०९ ) । पुत्थ -- मृदु ( दे ६।५२ ) । पुप्पुअ -- पीन, पुष्ट ( दे ६।५२ ) । पुप्फुय -- पीछे ( आवहाटी २ पृ १०२ ) । पुप्फल -- गंध द्रव्य-विशेष ( भत्त ४२ ) । पुप्फसि -- फेफड़ा ( आवचू १ पृ० ३० ) । पुप्फा -- फूफी, पिता की बहिन ( दे ६।५२ ) । पुप्फिआ -- बुआ, फूफी ( पा ८७१ ) । पुप्फितिका -- आभूषण-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । पुयलइ -- कंद-विशेष ( भ २३।१ ) । पुयली -- पुत-प्रदेश ( भ १५।१२० ) । पुरओट्ठी -- रुई का वस्त्र-विशेष - 'रुतपूरितः पट: पुरओट्ठी यदुच्यते' ( जीविप पृ ५१ ) । पुराण -- सिक्का, कार्षापण ( अंवि पृ ६६ ) । पुरिम -- प्रस्फोटन प्रतिलेखन की क्रिया-विशेष ( ओनि २६५ ) । पुरिल्ल -- १ प्रवर, श्रेष्ठ ( दे ६।५३ ) । २ पूर्ववर्त्ती ( विभा १३२९ ) । ३ अग्रगामी ( से १३।२ ) । पुरिल्लदेव -- असुर, दानव ( दे ६।५५ ) । पुरिल्लपहाणा -- सांप की दाढ ( दे ६।५६ ) । पुरुपुरिआ -- उत्कंठा ( दे ६।५५ ) । पुरुस -- कुम्भकार - 'पुरुष: कुम्भकार:' ( व्यभा १० टी प ६६ ) । पुरुहूअ -- घूक, उल्लू ( दे ६।५५ ) । पुरोहड -- ९ घर का पिछला भाग ( बृभा २०५९ ) । २ अग्रद्वार ( ओनि ६२२ ) । ३ विषम । ४ चारदीवारी से घिरा हुआ मकान ( दे ६।१५ ) । ५ पच्छोकड - पिछले भाग में उभरा हुआ ( ? ) (वृ) ६ गृह का कूड़ा-करकट डालने का स्थान ( आचू पृ ३७० ) । ७ बाड़ा, वाटक ( बृटी २ ) । पुल -- फोडा-फुंसी ( स्था १०।१५९ ) । पुलइय -- दृष्ट, देखा हुआ ( पा १३५ ) । पुलंपुल -- १ प्रभूत - 'वरफेणपउरधवलपूलंपुल -समुट्ठियट्टहास' ( प्र ३।७३ ) । २ अनवरत - 'पुलंपुलप्पभूयरोगवेयण' ( प्र ३।२३ ) । पुलग -- १ टुकड़ा, अंश । २ सार, वर्णातिशय ( ज्ञाटी प १० ) । पुलय -- गति-विशेष ( भटी प ८८१ ) । पुला -- अपान ( प्रज्ञा १।४९ ) । पुलाकिमिय -- द्वीन्द्रिय जंतु, अपान प्रदेश में उत्पन्न होने वाले कृमि - 'पुलाकिमिया नाम पायुप्रदेशोत्पन्नाः कृमय:' ( जीवटी प ३१ ) । पुलासिअ -- अग्नि का कण, स्फुलिंग ( दे ६।५५ ) । पुलोअण -- विलोकन, देखना ( दे ६।३० ) । पुल्ल -- पोल, शुषिर ( अचू पृ ३६२ ) । पुल्लि -- १ व्याघ्र । २ सिंह ( दे ६।७९ ) । हुली ( कन्नड ) । पुव्वड -- दुर्बल ( निरटी पृ ३४ ) । पुव्वाड -- पीन, पुष्ट ( दे ६।५२ ) । पुव्विय -- हलवाई, कंदोई - एगं पुव्वियावणे मोयगं गहाय इंदखीले ठवेहि ' ( आवहाटी १ पृ २७८ ) । पुव्विल्लय -- पुर्वज ( उशाटी प १३० ) । पूअ -- दही ( दे ६।५६ ) । पूआ -- भूताविष्ट महिला ( दे ६।५४ ) । पूइआलुग -- जलीय वनस्पति विशेष ( आटी प ३४८ ) । पूइकरंज -- एक अस्थिवाला वृक्ष ( प्रज्ञा १।३५ ) । पूइय -- १ वनस्पति-विशेष ( भ २२।२ ) । २ हलवाई - 'एवं सलाहिज्जंतो बलो गओ पूइयावणं' ( उसुटी प ४० ) । पूंडरिअ -- कार्य ( दे ६।५७ ) । पूडलग -- पुआ, खाद्य-विशेष ( निचू १ पृ १५ ) । पूण -- हाथी, गज ( दे ६।५६ ) । पूणअ -- छींके का ढक्कन - 'सिक्कयंतयं णाम तस्सेव पिहणं, मा तत्थ संपातिमा पडिस्संति, सो तु 'पूणउ' त्ति देसीभासाते वुच्चति' ( निचू २ पृ ३९ ) । पूणिआ -- पूणी, रूई का पहल ( दे ६।७८ ) । पूणी -- पूनी, रूई की पहल ( दजिचू पृ १४९; दे ६।५६ ) । पूतणा -- मादा पक्षि-विशेष ( अंवि पृ ६९ ) । पूतरग -- त्रस प्राणी-विशेष ( निचू ४ पृ ५४ ) । पूतिआलुग -- जलीय वनस्पति-विशेष ( आचूला १।११३ ) । पूतिकरंज -- पुष्प और फल वाला वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ २३२ ) । पूतिल -- फल-विशेष ( अवि पृ २३२ ) । पूयणा -- भेड़-पूयणा णाम ओरणीया' (सूचू १ पृ ९८ ) । पूयालिया -- पूपिका, खाद्य विशेष ( आचूला १।११९ ) । पूयली -- रोटी ( उचू पृ १७५ ) । पूरण -- १ खाद्य पदार्थ, पुरणपोली ( उपाटी पृ २२ ) । २ छाज, शूपं ( दे ६।५६ ) । पूरिमंस -- गोत्र विशेष ( अंवि पृ १५० ) । पूरी -- १ हाथी की पीठ पर बिछाया जाने वाला आस्तरण - 'पूरी पल्हवी हस्त्यास्तरणम्' ( जीविप पृ ५१ ) । २ तन्तुवाय का एक उपकरण ( दे ६।५६ ) । पूरोट्टी -- अवकर, कूड़ा-करकट ( दे ६।५७ ) । पूलिय -- घास का पूला - 'जइ अग्गिम्मि वि पबले खडपूलिय खिप्पमेव झामेइ' ( म २९२ ) । पूलिया -- खाद्य पदार्थ-विशेष ( निचू १ पृ २९ ) । पूस -- १ फली-विशेष ( भ २२।६ ) । २ सातवाहन राजा । ३ शुक, तोता ( दे ६।८० ) । पूसअ -- तोता ( पा २९१ ) । पूसमाणय -- मंगल पाठक ( भ ९।२०८ ) । पेंड -- १ टुकड़ा, खंड । २ वलय ( दे ६।८१ ) । पेंडअ -- १ तरुण ( दे ६।५३ ) । २ नपुंसक - पेंडओ षण्ढ इत्यन्ये' ( वृ ) । पेंडधव -- खड्ग, तलवार ( दे ६।५९ ) । पेंडपाली -- स्थान-विशेष ( अंवि पृ २३३ ) । पेंडबाल -- पिंडीकृत, एकत्रित ( दे ६।५४ ) । पेंडल -- रस ( दे ६।५८ ) । पेंडलिअ -- पिंडीकृत, एकत्रित ( दे ६।५४ ) । पेंडार -- १ गो-पाल, गायों को पालने वाला ( दे ६।५८ ) । २ महिषी-पाल, महिषियों को पालने वाला - 'पेंडारो गोपः । पेंडारो महिषीपाल इति देवराजः' ( वृ ) । पेंडिका -- खाद्य-विशेष ( अंवि पृ १८२ ) । पेंडी -- मंजरी ( अंवि पृ २३९ ) । पेंडोली -- क्रीड़ा ( दे ६।५९ ) । पेंढा -- कलुष-मदिरा, पंकसुरा ( दे ६।५० ) । पेचुका -- कण्ठ का आभूषण-विशेष ( अंवि पृ १६३ ) । पेच्छअ -- दृष्टमात्र का अभिलाषी, जो देखे उसी को चाहने वाला ( दे ६।५८ ) । पेच्छग -- प्रत्युत् - 'कि कज्जं तुमं न रुट्ठो, पेच्छगं मम पूएसि, पाएसु य पडसि' ( निचू ४ पृ ३१२ ) । पेज्जल -- प्रमाण ( दे ६।५७ ) । पेज्जाल -- विपुल, विशाल - 'सोहइ मइंदरुंदं णियंबबिंबं इमस्स पेज्जालं' ( कु पृ १८२; दे ६।७) । पेट्टग -- सेवक आदि को राजकुल से दिया जाने वाला भोजन - 'रायकुलातो पेट्टगादि भत्तं णिग्गच्छति' ( निचू २ पृ ४५५ ) । पेडइअ -- धान्य आदि बेचने वाला वणिक् ( दे ६।५९ ) । पेडय -- समूह - 'तम्मि य गामे एक्कं णडपेडयं' ( कु पृ ४६ ) । पेडु -- महिष, भैंसा ( दे ६।८० वृ ) । पेड्डा -- १ भींत । २ द्वार । ३ महिषी, भैंस ( दे ६।८० ) । पेढाल -- १ विपुल ( दे ६।७ ) । २ वर्तुल - पेढालं वर्तुलमिति द्रोण:' ( वृ ) । पेढी -- बैठने का आसन या स्थान विशेष ( बृटी पृ ५२६ ) । पेया -- बृहत् वाद्य-विशेष - 'पेया नाम महती काहला' ( राज ७१ टी पृ १२६) । पेयाल – १ प्रधान मुख्य - 'सम्मत्तस्स पंच अइयारा पेयाला जाणियव्वा......... ( उपा १।३१ ) । २ विचार - सुहं मोच्छिइ व सुदिट्ठपेयालो' ( विभा १३६१ ) । ३ प्रमाण ( विभा १६९ टी; दे ६।५७ ) । ४ सार ( स्थाटी प २०३ ) । ५ भरण-षोषण की चिन्ता - 'एयस्स पेयालं गहिएल्लयं' ( सूचू १ पृ ११९ ) । ६ प्रसिद्ध ( अंवि पृ ६४ ) । ७ परिमाण ( व्यभा ४।३ टीप ३२ ) । पेयालणा -- परिमाण की विवक्षा-पज्जवपेयालणा पिंडो' ( पिनि ६५ ) । पेयालन -- परिज्ञान, अभिगमन, ज्ञात-पेयालनं परिज्ञानं अभिगमन मित्यर्थः ( आवचू १ पृ ५५२ ) । पेयालिय -- १ विचारित - $पेयालियगुणदोसो जोग्गो जोग्गस्स भासेज्जा' ( विभा १४५२ ) । २ परिपूर्ण ( अंवि पृ २४१ ) । पेरण -- १ ऊर्ध्व- स्थान, ऊंचा स्थान ( दे ६।५९ ) । २ खेल तमाशा । पेरिज्ज -- सहायता, मदद ( दे ६।५८ ) । पेरुंड -- पर्वकाण्ड, नाल - 'तए णं ते सालीसल्लइयपत्तइया हरियपेरुंडा जाया' ( ज्ञा १।७।१४ ) । पेरुल्लि -- पिंडीकृत, एकत्रित ( दे ६।५४ ) । पेलग -- शिर का आभूषण- विशेष (अंवि पृ २४२ ) । पेलु -- पूणी, रूई की पहल रूयपडलं पिंजियं तमेव वलितं पेलू भण्णति' ( निचू २ पृ ३२६ ) । पेलुकरण -- पूनी कातने का उपकरण विशेष जिसे महाराष्ट्र में पेलु कहते हैं - 'पेलुकरणादि लाटविषये रूतप्राणिका, महाराष्ट्र विषये सैव पेलुरित्युच्यते ( सूचू १ पृ ५ टि ) । पेल्लग -- बालक, बच्चा ( उचू पृ८८ ) । पेल्लण -- १ क्षेपण । २ पीडन ( उसुटी प ३४ ) । ३ आक्रमण - 'पेल्लणं अक्कमणं' ( निचू ४ पृ १४० ) । पेल्लय -- बच्चा, शिशु ( विपा १।२।६८ ) । पेल्लिका -- गृह उपकरण-विशेष ( अंवि पृ ७२ ) । पेल्लित -- १ लूट लिया - 'जणे गते गोट्ठील्ल एहिं घरं पेल्लितं' ( आवहाटी २ पृ २२१ ) । २ आक्रान्त - 'अवि अंबखुज्ज पादेण पेल्लितो अंतरंगुलगओ वा ( निभा ९२८ ) । पेल्लिय -- १ शिशु ( जीभा ५३६ ) । २ पीड़ित ( जीभा १३७; दे ६५७ ) । ३ क्षिप्त, पातित ( व्या ४।२ टी प २० ) । पेस -- १ कार्य, प्रयोजन ( दश्रु ९ गा २८ ) । २ सिन्धु देश के सूक्ष्म चर्म वाले पशुओं की चमड़ी से निष्पन्न वस्त्र ( आचूला ५।१५ ) - 'पेसाणि त्ति सिन्धुविषय एव सूक्ष्मचर्माणः पशवः तच्चर्मनिष्पन्नानि ( टी प ३९३ ) । पेसण -- कार्य ( ज्ञा १।७।२६; दे ६।५७ ) । पेसणआरी -- दूती, दूतकर्म करने वाली ( दे ६।५९ ) । पेसणकारिया -- बाहरी कार्यों को निपटाने के लिए नियुक्त स्त्री - 'बाह्यानि प्रेषणानि कर्माणि करोति या सा' ( ज्ञाटी प १२६ ) । पेसलेस -- सिन्धु देश के पेश नामक पशु-चर्म के सूक्ष्म पक्ष्म से निष्पन्न वस्त्र ( आचूला ५।१५ ) । पेसी -- फल का चतुर्थांश ( आचू पृ ३६७ ) । पेहुण -- १ मोर पंख - 'पेहुणं मोरपिच्छगं वा' । २ अन्य किसी भी पक्षी का मोर जैसा पंख - अण्णं किंचि वा तारिसं पिच्छं' ( दजिचू पृ १५६ ) । ३ मयूर - पिच्छ से निष्पन्न - पेहुणं मोरगं' ( दअचू पृ ८९ ) । ४ पिच्छ, पंख - 'पिच्छम्मि पेहुणं' ( दे ६।५८ ) । ५ एक प्रकार की वनस्पति ( बृभा ४६३८ ) । पेहुणमिंजा -- मध्यवर्ती अवयव - 'पेहुणमिंजाति वा भिसेति वा मिणालियाति वा' ( जीव ३।२८२ ) । पोअ -- १ धव का वृक्ष । २ छोटा सांप ( दे ६।८१ ) । पोअइआ -- निद्राकरी लता ( दे ६।६३ ) । पोअंड -- १ तरुण- जुवाणो जोव्वणत्थो वा पोअंडो पुरिसो त्ति वा ' ( अंवि पृ ६२ ) । २ भयमुक्त, अभय ( दे ६।६१ ) । ३ नपुंसक ( वृ ) । पोअंत -- शपथ ( दे ६।६२ ) । पोअड -- उदग्र, कर्मठ ( अंवि पृ ९८ ) । पोअलअ -- १ आश्विन मास का एक विशेष उत्सव जिसमें पति अपनी पत्नी के हाथ से लेकर अपूप खाता है । २ अपूप, पूजा, खाद्य विशेष ( दे ६।८१ ) । ३ बालवसन्त – यदाह - 'भर्त्ता भुङ्क्तेऽपूपं यत्र गृहिण्या करात् समादाय । आश्वयुजे पोअलओ स उत्सवोऽपूपभेदश्च ॥ पोअलओ बालवसन्त इत्यन्ये' ( वृ ) । पोआअ -- गांव का मुखिया, ग्राम प्रधान ( दे ६।६० ) । पोआल -- १ शिशु ( ओनि ४४७ ) । २ वृषभ, बैल ( दे ६।६२ ) । पोइअ -- १ निमग्न ( ओनि १३७ ) । २ स्पंदित - 'देशीवचनत्वादितस्ततः स्पन्दितं ।' ३ त्रासित ( बृभा १४५९ टी पृ ४३४ ) । ४ हलवाई ( दे ६ । ६३ ) । ५ जुगनू ( वृ ) । पोइआ -- निद्राकरी लता ( दे ६।६३ ) । पोइत -- त्रासित - 'पोइता त्रासिताः इति चूर्णौ विशेषचूर्णौ च ( बृटी पृ ४३४ ) । पोइयल्लय -- पिरोया हुआ ( ओटी प १८० ) । पोई -- निद्राकरी लता ( प्रज्ञाटी प ३४ ) । पोउआ -- करीषाग्नि, कंडे की आग ( दे ६।६१ ) । पोंगिल्ल -- १ परिपूर्ण, खचित - 'दीसंति जीय एए पासाया रयणपोंगिल्ला' ( कु पृ १९० ) । २ परिपक्व । पोंट -- घूंट - 'खिप्पं पाणिय पाउं लग्गो.....कहवि पोटे ( घोट्टे ) करित्ता पलातो' ( व्यभा ४।१ टी प १८ ) । पोंड -- १ फल - 'सामलीपोंडघणनिचिय......... ( प्र ४।७ टीप ८२ ) । २ फूल - 'एगं सालियपोंडं बद्धो आमेलगो होइ' ( उनि ३ ) । ३ अविकसित कमल ( विभा १४२५ ) । ४ कपास ( अनुद्वाहाटी पृ २१ ) । ५ यूथ का अधिपति ( दै ६।६० ) । पोंडइ -- फल-विशेष ( भ २२।४ ) । पोंडग -- अविकसित कमल ( आवचू १ पृ २२३ ) । पोंडय -- कपास-'पोंडयं कप्पासो' ( निचू २ पृ ३८ ) । पोंडरीय -- लोमपक्षी ( जीवटी प ४१ ) । पोक्क -- पुकारने वाला, बुलाने वाला ( निचू २ पृ १८ ) । पोक्कड -- पुकार ( जीभा १३३२ ) । पोक्कण -- 'पोक्कण' देश में रहने वाली म्लेच्छ जाति ( प्रटी प १५ ) । पोक्कसालिय -- जुलाहा ( आचूला १।२३ ) । पोक्खलत्थिभय -- जलीय वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।४६ ) । पोच्च -- सुकुमार ( दे ६।६० ) । पोच्चड -- १ जुगुप्सित ( ज्ञा १।८।७२ ) । २ असार- मयूरीअंडए पोच्चडे....पोच्चडे जाए' ( ज्ञा १।३।२२ ) । ३ मलिन -- पोच्चडं - मइलं' ( निचू ३ पृ २७० ) । ४ अत्यंत सघन - 'पोच्चडं ति अतिनिबिडम्' ( प्रटी प १६ ) । पोच्चडग -- निस्सार, मलिन - 'असार: मलिनं वा देशीभाषायाम्' ( निचू ३ पृ २८ ) । पोट्ट -- पेट - 'पोट्टत्ति देश्यत्वाद् उदरम्' ( जंबूटी प १२५; दे ६।६० ) । पोट्टल -- १ पोटली अतिपरिणामो पोट्टल बंधूणं आगतो तत्थ' ( जीभा ५७७ ) । २ राशि, समूह - 'पुप्फरासी णिगरो वा पुप्फाणं पोट्टलो त्ति वा ' ( अंवि पृ ६४ ) । पोट्टलि -- पोटली ( व्यभा ६ टी प २ ) । पोट्टलिका -- पोटली ( अंवि पृ २१६ ) । पोट्टलिय -- पोटली उठाने वाला, भारवाहक - 'भारवहा पोट्टलिया वाहगा' ( निचू ४ पृ ११० ) । पोट्टलिया -- गठरी ( आवहाटी २ पृ १३६ ) । पोट्टसरणी -- अतिसार रोग - 'खाइत्ता रत्तिं पडिमं ठिओ, ...पोट्टसरणी जाया' ( आवहाटी २ पृ १३९ ) । पोट्टह -- गठरी-वाहक ( अंवि पृ ६२ ) । पोडइला -- तृण-विशेष ( प्रज्ञा १।४२ ) । पोणअ -- छींके का आच्छादन ( निभा ६४५ ) । पोणिअय -- पूर्ण ( दे ६।२८ ) । पोणिआ -- सुते से भरा हुआ तकुवा ( दे ६।६१ ) । पोतलय -- बछडा, बच्चा - 'तिर्वारसा गोणपोतलया हट्ठसरीरा उवट्ठिया' ( आवहाटी १ पृ १३२ ) । पोति -- निवसन, अधोवस्त्र ( अनुद्वाचू पृ ४८ ) । पोतित -- १ स्पन्दित - 'पोतितं ति देशीवचनत्वादितस्ततः स्पन्दितम्' २ त्रासित ( बृटी पृ ४३४ ) । पोतिय -- हलवाई ( निचू ३ पृ १०६ ) । पोत्तअ -- वृषण, अण्डकोश ( दे ६।६२ ) । पोत्तग -- सूती वस्त्र ( आचूला ५।१ ) । पोत्तणय -- वस्त्र-विशेष ( जीभा १७६९ ) । पोत्तय -- रूई से निष्पन्न वस्त्र - 'साणयं पोत्तयं खोमियं' ( आचूला ५।१७ ) । पोत्तिय -- १ रूई से पिष्पन्न वस्त्र ( स्था ५।१९० ) । २ तापसों का एक प्रकार ( औप ९४ ) । पोत्तिया -- चतुरिन्द्रिय जंतु-विशेष ( भ १५।१८६ ) । पोत्ती -- १ वस्त्र ( भ ९।१८८ ) २ काच ( दे ६।६३ ) । पोतुल्लया -- वस्त्रमय पुतली (ज्ञा १।१८।८ ) । पोदइल -- तृण-विशेष ( भ २१।१९ ) । पोप्पण -- हाथ का स्पर्श ( आवचू १ पृ ९० ) । पोप्पय -- हाथ का स्पर्श - 'तेण उदरपोप्पयं करेंतेणं कहवि सा जोणिद्दारे हत्थेण आहता' ( आवहाटी १ पृ ४४ ) । पोप्फस -- फेफड़ा, शरीर का अवयव विशेष ( प्र १।११ ) । पोम -- कुसुम्भ- रक्तवस्त्र - 'पोमं ति कुसुंभयं' ( निचू १ पृ १०० ) । पोमर -- कुसुम्भ से रंगा हुआ वस्त्र ( दे ६।६३ ) । पोयलि -- पूआ ( दअचू पृ ११४ ) । पोया -- वाद्य-विशेष ( भ ५।६४ ) । पोयाल -- १ बच्चा, शिशु ( ओनि ४४७ ) । २ वृषभ, बलिवर्द ( व्यभा ४।१ टी प २०) । पोर -- पर्व ( व्यभा ८ टी प ४ ) । पोरग -- हरित वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।४४।१ ) । पोरच्छ -- दुर्जन ( दे ६।६२ ) । पोरय -- खेत, क्षेत्र ( दे ६।२६ ) । पोरायाम -- अंगूठे के पर्व पर तर्जनी अंगुली के रखने पर जितनी पोलाल रहती है वह ( ओनि ७०७ ) । पोरु -- गांठ ( सूचू २ पृ ३७९ ) । पोरुस -- शरीर का अवयव-विशेष ( अंवि पृ १३४ ) । पोलंडण -- प्रोल्लंघन ( ज्ञा १।१।१८९ ) । पोलंडिअ -- प्रोल्लंधित ( ज्ञा १।१।१५५ ) । पोलच्चा -- हल से कृष्ट भूमि, सेटित भूमी ( दे ६।६३ ) । पोलिअ -- सौनिक, कसाई ( दे ६।६२ ) । पोलिंदि -- पुलिन्द देश की लिपि ( प्रज्ञा १।९८ ) । पोलिया -- पूरी, पोलिका - 'संपुण्णचंदमण्डलसरिसं पोलियं लहेसि' ( उशाटी प १४७ ) । पोल्ल -- पोला, शुषिर - 'पोल्लरुक्सेसु अंतो- अंतो झियायमाणेसु ( ज्ञा १।१।१५९ ) । पोल्लक -- कटनिवर्तक लोहमय उपकरण- विशेष ( आवहाटी १ पृ ३०४ ) । पोल्लड -- शुषिर, पोला - 'वंका कीडक्खइया चित्तलया पोल्लडा य दड्ढा य ( ओनि ७३५ ) । पोल्लडय -- पोल ( निचू २ पृ ३६६ ) । पोवलक -- खाद्य-विशेष ( अंवि पृ १८२ ) । पोवलिया -- पूपलिका - 'पोवलियं-पोलिकां' ( आवहाटी १ पृ २२९ ) । पोसंत -- योनि ( नि ६।१४ ) । पोसय -- उपस्थ ( स्था ९।२४ ) । पोसिय -- १ पूगफल, सुपारी ( भ २२।२ पा ) । २ दरिद्र, निर्धन ( दे ६।६१ ) । पोह -- भैंस, बैल आदि का गोबर ( पिनि २४५ ) - महिषी समागत्य छगणपोहं मुक्तवती' ( टी प ८३ ) । 'पोठा' ( राजस्थानी ) । पोहट्टी -- स्त्री, युवती - अंगणा महिला नारी पोहट्टी जुवति त्ति वा ' ( अंवि पृ ६८ ) । पोडण -- लघु मत्स्य ( दे ६।६२ ) । प्रेयंड -- धूर्त्त ( दे १।४ वृ ) । फ फंडण -- प्रवेश - 'अगणिफंडणट्ठाणेसु' ( आचूला १०।१९ ) । फंफसअ -- एक प्रकार की लता ( दे ६।८३ ) । फंसण -- १ युक्त । २ मलिन ( दे ६।८७ ) । फंसुल -- मुक्त, व्यक्त ( दे ६।८२ ) । फंसुली -- नवमालिका, पुष्प प्रधान वृक्ष-विशेष ( दे ६।८२ ) । फग्गु -- बसन्त का उत्सव, फगुआ ( दे ६।८२ ) । फग्गुपुग्ग -- बिखरे हुए केश वाला (उपा २।२१ पा) । फट्ट -- फटा हुआ - 'मइला फट्टा कुसंघाडी' ( निचू २ पृ २६९ ) । फड -- १ सांप का पूरा शरीर । २ सांप का फण ( दे ६ । ८६ ) । फडही -- कपास ( दे ६।८२ पा ) । फडु -- १ गणावच्छेदक के अधीन एक छोटा गण-गच्छागच्छिं गुम्मागुम्मिं फड्डाफड्डिं' ( औप ४५ टी ) । २ अवधिज्ञान का निर्गमस्थान - 'फड्डा य असंखेज्जा' ( विभा ७३८ ) । ३ पृथक्-पृथक् - 'फड्डगफड्ड पवेसो' ( बृभा १५६४ ) । फड्डक -- १ अवधिज्ञान का निर्गम स्थान । २ द्वार आदि का छोटा छिद्र - इह फड्डकानि अवधिज्ञाननिर्गमद्वाराणि अथवा गवाक्षजालादिव्यवहितप्रदीपप्रभाफड्डकानीव फड्डकानि' ( आवहाटी १ पृ २९ ) । ३ गणावच्छेदक के अधीन एक छोटा गण ( औपटी पृ ८६ ) । ४ विभाग, अंश ( ओटी पृ २०६ ) । फड्डग -- १ अंश, भाग ( पिनि २५३ ) । २ गण का अवान्तर विभाग ( निभा ६३१३ ) । ३ वर्गणा - समुदाय । फड्डगपतिय -- गण के अवान्तर विभाग का नायक ( निभा ६३१३ ) । फडुगवतिय -- गण के अवान्तर विभाग का नायक - 'फड्डगवतिया वि आगंतुं पक्खियादिसु मूलायरियस्स आलोएंति' ( निचू ४ पृ २८४ ) । फडुय -- १ साधुओं का छोटा समुदाय ( निभा २८४२ ) २ विभाग, अंश ( ओभा १११ ) । फड्डावती -- गण के अवान्तर विभाग का नायक ( जीभा ७८१ ) । फणक -- कंघी ( उसुटी प २८३ ) । फणग -- कंघी - 'अह सा भमरसन्निभे कुच्चफणगपसाहिए । सयमेव लुंचई केसे धिइमन्ता ववस्सिया ॥' ( उ २२।३० ) । फणज्जुय -- वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञाटी प ३४ ) । फणिका -- १ गृहउपकरण-विशेष ( अंवि पृ ७२ ) । २ कंघी ( अंवि पृ २३० ) । फणिगा -- केश संवारने का उपकरण ( कंघा ) - फणिगाए बाला जमिज्जंति ओलिहिज्जंति जूगाओ वा उद्धरिज्जंति' ( सूचू १ पृ ११७ ) । फणिज्जय -- वनस्पति-विशेष, मरुआ का वृक्ष ( प्रज्ञा १।४४ ) । फणित -- १ पका हुआ । २ रांधा हुआ - 'फणितं णाम पक्कं रद्धं वा' ( सूचू १ पृ ११७ ) । फणिह -- कंघा ( सू १।४।४२ ) । फणेज्जा -- वनस्पति-विशेष ( भ २१।२१ ) । फर -- १ अस्त्र-विशेष - 'दोण्णि वि फरम्मि णिउणा' ( कु पृ २५२ ) । २ ढाल, फलक ( दे १।७६ ) । फरअ -- फलक, ढाल - 'किं रे फरेसि फरयं' ( दे ६।८२ ) । फरखेड्ड -- शस्त्र-विशेष की विद्या- धणुवेओ फरखेड्डं असिधेणु..........( कु पृ १५० ) । फरल -- काना ( प्रटी प २५ ) । फरावेडु -- शस्त्र-विशेष की विद्या 'अण्णे फरावेड्ड उवज्झाया ( कु पृ १६ ) । फरुगद्दभ -- १ कीटिका-नगर । २ गर्दभाकार कीट - विशेष ( निचू ३ पृ ३७६) । फरुस -- १ कुम्भकार, कुम्हार ( बृभा ४२५३ ) । २ वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ २३१ ) । फरुसग -- कुम्हार, कुंभार - 'पोग्गल मोयग फरुसग, दंते वडसालभंजणे सुत्ते' ( बृभा ५०१७ ) । फल -- चपेटा का प्रहार - 'फलं चवेडाप्रहारः' ( सूचू १पृ ८२ ) । फलय -- शाक आदि उगाने की बाडी ( व्यभा ५ टी प ७) । फलह -- शाक आदि उगाने की बाडी ( व्यभा ५ टी प ७ ) । फलही -- १ कपास - 'फलहीओ उप्पाडेइ' ( उसुटी प ७९; दे ६।८२ ) । २ कपास की लता । फलि -- १ लिंग, चिह्न । २ वृषभ, बैल ( दे ६।८६ ) । फलिआरी -- दूर्वा, दूब ( दे ६।८३ ) । फलिका -- फली ( अंवि पृ ७१ ) । फलिय -- नाना प्रकार के व्यंजन और भक्ष्यपदार्थों द्वारा बनाया हुआ खाद्य-विशेष - 'फलियं पहेणगाई वंजणभक्खेहिं वा विरइयं तु' ( व्यभा ९ टी प १९ ) । फलिह -- १ आकाश - 'अगमे इ वा फलिहे इ वा अणंते इ वा' ( भ २०।१६ ) । २ कपास का टेंटा ( अनुद्वामटी प ३१ ) । ३ पाष्णि, एडी ( उशाटी प १९३ ) । फलिही -- कपास का टेंटा ( अनुद्वामटी प ३१ ) । फसल -- १ सारभूत । २ स्थासक, हस्तबिंब ( दे ६१८७) । ३ चितकबरा ( पा १६७ ) । फसलाणिअ -- विभूषित ( दे ६।८३ ) । फसलिअ -- विभूषित, जिसने विभूषा की हो वह ( दे ६।८३ ) । फसुल -- मुक्त ( दे ६।८२ ) । फालहिय -- शाक आदि की बाडी का स्वामी ( व्यभा ५ टी प ७ ) । फालि -- १ फली, छीमी ( आचू पृ २०० ) । २ शाखा - 'सिंबलिफालिव्व अग्गिणा दड्ढो' ( सं ८४ ) । ३ फांक, टुकड़ा । फालिय -- देशविशेष में होने वाला वस्त्र ( आचूला ५।१४ ) । फिक्कि -- हर्ष ( दे ६।८३ ) । फिज -- टखना - कुल्लेसु सुउप्पत्ती ऊरूहिं बंधुणो अणिट्ठं तु । पासेसु वल्लह्त्तं वाहणलाभो फिजे भणिओ ॥ ( उसुटी प १३०) । फिडित -- १ इधर-उधर बिखरे हुए - भत्तट्ठा अण्णण्णतो फिडिताणं' ( नंदीचू पृ ९ ) । २ अतिक्रांत - पडिलेहणिया काले फिडिए कल्लाणगं तु पच्छित्तं' ( ओभा १७४ ) । फिडिय -- अपगत, च्युत ( ओनि ११२ ) । फिड्ड -- वामन ( दे ६।८४ ) । फिप्प -- कृत्रिम ( दे ६।८३ ) । फिप्फिस -- फेफड़ा ( प्र १।११ ) । फिरडि -- फुर्-फुर् कर उड़ जाना (बुटी पृ ९१० ) । फिरिडि -- फुर्-फुर् कर उड़ जाना-फिरिडित्ति णिग्गया सुघरा', ( आवचू १ पृ ३४५ ) । फिलिय -- भ्रष्ट ( से ८।६८ ) । फिल्लसिय -- फिसला हुआ-सा तत्थ वच्चंती फिल्लसिया' ( बृटी पृ ९२९ ) । फिल्लुसण -- फिसलन ( बृचू प १४१ ) । फिहय -- नाव चलाने का साधन-विशेष ( नि १८।१४ ) । फुंटा -- केश-बंध का एक प्रकार, केश - रचना ( दे ६।८४ ) । फुंफमा -- करीषाग्नि ( सूचू १ पृ ११० ) । फुंफुअ -- करीषाग्नि - 'दट्टुं विओअफुंफुअतत्ता तरुणी सुहाइ व णिबुड्डा' ( दे ६।८४ वृ ) । फुंफुआ -- करीषाग्नि ( भटी पृ १२७९ ; दे ६।८४ ) । फुंफुंक -- करीषाग्नि, कण्डे की आग - फुम्फुकशब्दो देशीत्वात् कारीषः' ( जीवटी प ६५ ) । फुंफुग -- करीषाग्नि ( बृभा २२८५ ) । फुंफुगा -- करीषाग्नि ( दनि १११ ) । फुंफुम -- करीषाग्नि ( बृभा २०९८ ) । फुंफुमा -- १ कचवर-वह्नि ( उसुटी प ३ ) । २ करीषाग्नि । फुंफुया -- १ करीषाग्नि । २ कचवर वह्नि ( तंदु १५५ ) । फुक्क -- उभरा हुआ मोटा नाक ( उशाटी प ३५८ ) । फुक्का -- १ मिथ्या ( दे ६।८४ ) । २ फूंक । फुक्किय -- १ व्यर्थ - 'हे मंदभग्ग ! फुक्किय तूससि तं नाममेत्तेणं' ( आवहाटी २ पृ ८५ ) । २ फूमित, फुफकारा हुआ - फुक्किय....फूमि तस्त्वमिति देशीभाषया आक्रोश:' ( आवटि प ९४ ) । फुक्की -- धोबिन ( दे ६।८४ ) । फुग्ग -- शरीर का अवयव-विशेष, पुत ( सूनि ७९ ) । फुग्गफुग्ग -- विकीर्ण रोम वाला - 'तस्स भुमगाओ फुग्गफुग्गाओ' ( उपा २।२१ ) । फुट्ट -- १ टूटा हुआ, फूटा हुआ - 'फुट्टपत्थरं' ( बृभा ५८५७ ) । २ कठोर - णिण्णेहकं अणेहं वा फुट्टं ति फरुसं ति वा ( अंवि पृ १०६ ) । फुण्ण -- स्पृष्ट ( प्रसाटी प ३०४ ) । फुप्फुयायंत -- फुफकार करता हुआ - 'अवहोलंत फुप्फुयायंत सप्प बिच्छुय ( ज्ञा १।८।७२ ) । फुप्फुस -- फेफड़ा ( सूनि ७३ ) । फुमंत -- फूंक देता हुआ ( द ४।२१ ) । फुमण -- फूंक ( निभा १४९५ ) । फुरिअ -- निन्दित ( दे ६।८४) । फुल्ल -- १ निर्मल - णिम्मला-फुल्ला' ( निचू ३पृ ४२८ ) । २ आंख का रोग ( निचू १ पृ ९ ) । ३ फूल, पुष्प ( ओटी प ९७ ) । ४ पूर्णरूप से नष्ट ( दअचू पृ १४३ ) । फुल्लंधुअ -- भ्रमर ( दे ६।८५ ) । फुल्लग -- पुष्प की आकृतिवाला आभूषण-विशेष ( जीव ३।५९३ ) । फुल्लय -- आंखों का रोग-विशेष - 'एक्कं अच्छिए फुल्लयं भवउ' ( निचू १ पृ ९ ) । फूला ( राज ) । फुल्लवड -- पुष्प-विशेष, मदिरावामक पुष्प ( से निष्पन्न वस्त्र ? ) ( निचू ३ पृ ३२१ ) । फुल्लि -- काई ( आवहाटी २ पृ ५६ ) । फुल्ली -- काई ( ओटी प १३१ ) । फुसार -- फुहार, महिन बूंदों की झडी - :सुहुमफुसारेहिं पडमाणहिं फुसियं वरिसं' ( निचू ४ पृ २३० ) । फुसिया -- वल्ली-विशेष ( प्रटी प ३३ ) । फूअ -- लोहकार ( दे ६।८५ ) । फूमित -- फुक्कित, फूंक दिया हुआ ( अंवि पृ १६८ ) । फूमिय -- फूंक मारा हुआ, फुक्कित - 'भक्खणनिमित्तं फूमिया तिला नडेण' ( उसुटी प २५१ ) । फूसल्लि -- अल्प - बिन्दु वाली वृष्टि, तुषाकार वृष्टि फूसल्लि यत्थ वासति ण य होंतित्थ सारधण्णाणि' ( अंवि पृ २५७ ) । फेक्कार -- सियार की आवाज ( उसुटी प १३८ ) । फेट्टा -- वन्दन का एक प्रकार - 'फेट्टावंदणयं देइ' ( अनुद्वाहाटी पृ ३ ) । फेणक -- भोज्य-विशेष, फीनी ( अंवि पृ १८२ ) । फेणबंध -- वरुण, जलदेवता ( दे ६।८५ ) । फेणवड -- वरुण ( दे ६।८५ ) । फेफस -- फुप्फुस ( आवहाटी २ पृ १०७ ) । फेरंड -- पर्वकाण्ड, नाल - 'तए ते साली हरियफेरंडा जाया' ( ज्ञा १।७।१४ ) । फेलाया -- मातुलानी, मामी ( दे ६।८५ ) । फेल्ल -- निर्धन, दरिद्र - 'फेल्लमाहणेणं रत्थाए वइरहीरतो लद्वो । ( पंक १९७८; दे ६।८५) । फेल्लुसण -- १ पिच्छिलभूमि, वैसी भूमी जहां पांव फिसलते हैं । २ फिसलन, स्खलन ( दे ६।८६ ) । फेल्हसण -- फिसलन ( व्यभा ४।४ टी प ९ ) । फेस -- १ त्रास । २ सद्भाव ( दे ६।८७ ) । फेसय -- फुप्फुस ( कु पृ २२५ ) । फोअ -- भयोत्पादक ध्वनि, डराने की आवाज ( दे ६।८६ वृ ) । फोइअय -- १ मुक्त । २ विस्तारित ( दे ६।८७ ) । फोंफा -- भयोत्पादक ध्वनि, डराने की आवाज ( दे ६।८६ ) - 'तरुणिं दट्ठूण करइ तह फोंफ' ( वृ ) । फोक्क -- उभरा हुआ मोटा नाक - 'फोक्क' देशीपदं, अग्रे स्थूलोन्नता च नासाऽस्येति फोक्कनास: ( उसुटी प १७६ ) । फोड -- भक्षक - 'बहुफोडे त्ति बहुभक्षका : ' ( ओभा १९१ टी ) । फोडिअय -- १ राई से बघारा हुआ शाक आदि । २ रात्रि के समय जंगल में सिंह आदि हिंसक प्राणियों से बचने का एक उपाय ( दे ६।८८ ) । फोडित -- राई आदि से बघारा हुआ-उवरि धूमणेण धोवितं फोडितं 'भण्णति' ( निचू २ पृ ६५ ) । फोप्फल -- गंध द्रव्य-विशेष, एक प्रकार की औषधि जो मृदु रेचन के लिए काम आती है - :महुर विरेअणमेसो कायव्वो फोप्फलाइदव्वेहिं' ( भत्त ४२ ) । फोफल -- एक प्रकार की औषधि ( प्रसाटी प ७५ ) । फोफस -- शरीर का अवयव-विशेष ( तंदु ११६ ) । फोस -- १ अपानदेश, गुदा-सउणिप्कोस - :पिट्ठं तरोरुपरिणया' ( तंदु ६७ ) । २ उद्गम ( दे ६।८६ ) । ब बइट्ठ -- बैठा हुआ ( आवचू २ पृ ३५ ) । बइल्ल -- बैल ( दश्रुनि ९१ ; दे ६।९१ ) । बउसी -- देश-विशेष की दासी ( ज्ञा १।१।८२ ) । बउहारी -- बुहारी, झाडू ( दे ६।९७ वृ ) । बंदण -- कैदी, बंदी - 'जावज्जीवबंदणो कीरिस्सामि' ( नंदीटि पृ १३९ ) । बंध -- भृत्य, नौकर ( दे ६।८८ ) । बंधोल्ल -- मेल, संगति ( दे ६।८९ ) । बंभच्च -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । बंभणिआ -- कीट-विशेष ( दअचू पृ १८९; दे ६।९० ) । बंभणी -- कीट-विशेष ( दे ६।९० ) । बंभहर -- कमल ( दे ६।९१ ) । बक -- बक की आकृति का कर्णाभरण - 'कुंडलं वा बको व त्ति मत्थगो तलपत्तगं' ( अंवि पृ ६४ ) । बक्कर -- परिहास ( दे ६।८९ ) । बक्करय -- बकरा ( दअचू पृ १०५ ) । बज्झरस -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । बतिल्ल -- बैल - 'तस्स य एगो बतिल्लो सो मूलधुरे जुप्पति' ( आवचू १ पृ २७२ ) । बद्धअ -- 'त्रपुपट्ट' नामक कान का आभूषण ( दे ६।८९ ) । बद्धणिया -- काष्ठ का गडुलक - 'दगवारबद्धणिया उल्लंकायमणिवल्ललाऊ य ( निभा ४११३ ) । बद्धिल्लय -- बद्ध, गृहीत ( अनुद्वाहाटी पृ ८८ ) । बद्धीसग -- वीणा-विशेष ( नि १७।१३७ ) । बद्धेल्लय -- बंधा हुआ - 'ताहे धोवंतीए बाला बद्धेल्लया छुट्टा' ( आवहाटी १ पृ १४९ ) । बप्प -- १ पिता ( द ७।१८; दे ६।८८ ) । २ योद्धा ( दे ६।८८ ) - बप्पो सुभटः । पितेत्यन्ये' ( वृ ) । बप्पीकी -- पैतृकी - 'जा बप्पीकी भुंहडी चम्पिज्जइ अवरेण' ( प्रा ४।३९५ टी ) । बप्पीह -- चातक ( दे ६।९० ) । बप्फाउल -- अत्यधिक उष्ण, गरम ( दे ६।९२ ) । बब्बक -- एक प्रकार का तृण ( बृटी पृ ५९१ ) । बब्बग -- एक प्रकार का तृण ( बृभा २०४३ ) । बब्बरी -- १ देश-विशेष की दासी ( ज्ञा १।१।८२ ) । २ केशरचना ( दे ६।९० ) । बब्बीसय -- बाद्ययंत्र विशेष ( कु पृ २६ ) । बब्बूल -- बबूल ( स्थाटी प २३६ ) । बब्भ -- चर्ममयी रज्जू, पदयात्रा में उपकरणों को शरीर के साथ बांधने वाला चर्ममय पट्टा ( जीविप पृ ५१; दे ६।८८ ) । बमाल -- कोलाहल ( दे ६।९० ) । बयल्ल -- बैल, बलीवर्द ( उशाटी प १९२ ) । बरग -- बरट्टी, धान्य विशेष ( जंबूटी प १२४ ) । बरट्ट -- धान्य-विशेष ( प्रसा ९९९ ) । बरठ -- धान्य-विशेष ( प्रसाटी प २९७ ) । बरड -- खरदरा - 'थुल्लं वा बरडं वा थेरस्स पोत्तं होहिइ' ( आवहाटी १ पृ ६० ) । बरुअ -- इक्षु-सदृश तृण ( दे ६।९१ ) । बरुड -- चटाई बनाने वाला शिल्पी ( प्रसाटी प २३० ) । बलजंत -- व्यवसाय के लिए जाते हुए बालंजुयवणियाणं बलजंताणं वत्था पडंति' ( निचू ३ पृ १६४ ) । बलद्द -- बैल ( बृटी पृ ५३ ) । बलद ( राज ) । बलमड्डा -- बलात्कार ( दे ६।९२ ) । बलवट्टि -- १ सखी ( दे ६।९१ ) । २ श्रम को सहन करने वाली स्त्री ( वृ ) । बलहरण -- छांद का आधारभूत ऊंचा तथा लंबा काष्ठ ( भ ८।२५७ ) । बलामोडि -- बलात्कार ( बृचू प २०४; दे ६।९२ ) । बलामोडिय -- बलात्, जबरदस्ती से - 'तेण दंडिएण बलामोडिए पडिग्गहो गहिओ' ( उसुटी प ५५ ) । बलामोलि -- बलात्कार ( से १०।६४ ) । बलिअ -- १ पीन, पुष्ट ( भ ९।२३०; दे ६८८ ) २ गाढ, दृढ ( ज्ञाटी प ६४ ) । ३ अत्यर्थ - बलियतरं भीया तत्था तसिया' ( ज्ञा १।९।२७ ) । बलिमोडय -- चक्राकार पर्व-परिवेष्टन ( प्रज्ञाटी प ३७ ) । बले -- १ निश्चय । २ निर्धारण - इन अर्थों का सूचक अव्यय ( प्रा २।१८५ ) । बलेद्द -- बैल ( दअचू पृ २१७ ) । बव्वाड -- दाहिना हाथ ( दे ६।८९ ) । बव्वीस -- वाद्य-विशेष ( राज ७७ ) । बहल -- पंक ( दे ६।८९ ) । बहली -- देश-विशेष की दासी ( ज्ञा १।१।८२ ) । बहिणी -- बहिन ( निचू ३ पृ ४३० ) । बहिद्ध -- १ बाह्य वस्तु का ग्रहण ( सू १।९।१० ) । २ मैथुन । ३ परिग्रह - 'बहिद्धं मिथुनपरिग्रह गृह्येते ( सूचू १ पृ १७७ ) । बहिद्धा -- १ बाहर का । २ मैथुन । ३ परिग्रह, विशेष-परिग्रह - स्त्री आदि ( स्थाटी प १९० ) । बहिफोड -- बहुभक्षक ( आवहाटी १ पृ १३८ ) । बहिलग -- १ बैल ( निभा १४८६ ) । २ वह सार्थ जिसमें बैल, ऊंट आदि हो ( बृभा ३०६६ ) । बहुआरिआ -- बुहारी, झाड़ू ( दे ८।१७ बृ ) । बहुआरी -- संमार्जनी, झाडू ( दे ८।१७ वृ ) । बहुकरिका -- बुहारी, झाडू ( बृटी पृ ४९५ ) । बहुण -- १ चोर । २ धूर्त ( दे ६।९७ ) । बहुमुह -- दुर्जन ( दे ६।९२ ) । बहुराणा -- तलवार की धार ( दे ६।९१ ) । बहुरावा -- शृगाली (दे ६।९१ ) । बाउल्लिआ -- पुतली ( दे ६।९२ वृ० ) । बाउल्ली -- पंचालिका, पुतली ( दे ६।९२ ) । बाण -- १ सुभग । २ पनस का वृक्ष ( दे ६।६७ ) । बायालीस -- बयालीस ( ग ५७ ) । बाल -- कम्बल - 'बालत्ति कम्बलः' ( जीविप पृ ५० ) । बालअ -- वणिक् पुत्र ( दे ६।९२ ) । बालंजुय -- वस्त्र के व्यापारी - 'बालंजुयवणियाणं बलजंताणं वत्था पडंति' ( निचू ३ पृ १६४ ) । बालग्गपोइया -- १ चन्द्रशाला । २ जलाशय में निर्मित लघु प्रासाद ( उचू पृ १८३ ) । बालपज्जेय -- साधु का उपकरण विशेष ( व्यभा ४।४ टी प ५७ ) । बालवीरा -- प्रावारक-विशेष, प्राणिज-वस्त्र - 'अजिणप्पवेणी चम्मसाडीओ बालवीरा चेति' ( अंवि पृ २२१ ) । बालसाडी -- व्यजन - 'चामरं अजीणकंबलो बालसाडि बालमुंडिका बालव्वयणी' ( अंवि पृ २३० ) । बालेय -- आर्द्र ( अंवि पृ २६१ ) । बास -- बाज पक्षी ( अंवि पृ ६२ ) । बाहाड -- प्रचुर ( बृभा ४९६७ ) । बाहाडित -- भर्त्सित, तिरस्कृत ( बृभा ४१३२ ) । बाहाया -- वृक्षविशेष ( अंतटी पृ ५ ) । बिआया -- संलग्न भ्रमण करने वाला कीट-युग्म ( दे ६।९३ ) । बिंबवय -- भिलावां, फलविशेष ( पा ३८० ) । बिंबोवणय -- १ क्षोभ । २ विकार । ३ उच्छीर्षक, तकिया ( दे ६।९८ ) । बिग्गाइया -- संलग्न भ्रमण करने वाला कीट-युग्म- यौ कीटौ संलग्नौ भ्रमतो बिग्गाइया ख्यातौ' ( दे ६।९३ वृ ) । बिग्गाई -- संलग्न भ्रमण करने वाला कीट-युग्म ( दे ६।९३ ) । बिट्टी -- पुत्री, बेटी ( प्रा ४।३३० ) । बिट्ठ -- बैठा हुआ ( ओनि ४७१ ) । बिब्बोय -- उपधान, तकिया - 'सयणीयं तूलियं सबिब्बोयं' ( ग ११४ ) । बिब्बोयण -- उपधानक, तकिया ( भ ११।१३३ ) । बिरचिरालिया -- भुजपरिसर्पिणी ( जीवटी प ५२ ) । बिल -- कूप ( राजटी पृ १९१ ) । बिलकोलीकारक -- वे चोर जो दूसरों को व्यामूढ करने के लिए विस्वर वचन बोलते हैं ( प्र ३।३ ) । बीअअ -- असन-वृक्ष, विजयसार वृक्ष ( दे ६।९३ ) । बोअजमण -- खलिहान ( दे ६।९३ ) । बीअण -- असन वृक्ष, विजयसार वृक्ष ( दे ६।९३ वृ ) । बीडग -- पान का बीड़ा ( निचू २ पृ १९० ) । बीयय -- गुल्म-वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।३८ ) । बीलअ -- कान का एक आभरण, कुंडल - 'विणा पिअं बोलएहि किं इत्थ' ( दे ६।९३ ) । बीहणक -- भीषण ( प्र ३।९ ) । बीहणकर -- भयंकर ( प्र १।३९ ) । बीहणग -- भयानक ( प्र १।२४ ) । बीहणय -- भीषण ( प्र १।२ ) । बुंदि -- १ शरीर ( सूर्य २० ) । २ चुम्बन । ३ सूअर ( दे ६।९८ ) । बुंदिणी -- कुमारी समूह ( दे ६।९४ ) । बुंदी -- शरीर ( आवनि १४४६ ) । बुंदीर -- १ भैंसा । २ महान् ( दे ६।९८ ) । बुंबुअ -- समूह ( दे ६।१४ ) । बुंभल -- चोटी, शेखरक ( ज्ञा १।८।७२ पा ) । बुक्क -- १ विस्मृत ( व्यभा २ टी प २२ ) । २ छिलका । ३ वाद्य-विशेष । बुक्कण -- काक, कौआ ( दे ६।९४ ) । बुक्कण्णय -- पासा - 'बुक्कण्णण रमंति' ( निचू १ पृ १७ ) । बुक्कस -- अन्न-विशेष, मूंग-उड़द आदि की नखिका से निष्पन्न भोजन - 'मुद्गमाषादिन खिकानिष्पन्न मन्नम्' ( उसुटी प १२९ ) । बुक्का -- १ मुष्टि ( दे ६।९४ ) । २ व्रीहिमुष्टि ( वृ ) । ३ वाद्य-विशेष । बुक्कारिय -- पुकारा हुआ ( कु पृ ७४ ) । बुक्कास -- जुलाहा, तन्तुवाय ( आटी प ३२७ ) । बुक्कासार -- भीरु, डरपोक ( दे ६।९५ ) । बुक्किल्ल -- गृह-शूर, झूठा शुर ( दे ७।८० वृ ) । बुण्ण -- १ भीत, डरा हुआ । २ उद्विग्न ( दे ७।९४ वृ ) । बुत्ती -- ऋतुमती स्त्री, रजस्वला नारी ( दे ६।९४ ) । बुदिर -- भैंस ( दे ६।९८ पा ) । बुदीर -- भैंस ( दे ६।९८ पा ) । बुब्बुय -- बकरे की 'बें-बें' आवाज ( उसुटी प ५४ ) । बुलंबुला -- बुद्बुद, बुलबुला ( दे ६।९५ ) । बूर -- वनस्पति-विशेष ( भ ११।१३३ ) । बेक्किका -- शौचक्रिया, शरीर चिन्ता ( आवटि प २६ ) । बेट्टिया -- बेटी, राजकन्या ( बृभा ४९१५ ) । बेट्ठ -- बैठा हुआ - 'कहिं उ बेट्ठो कहेति' ( आवचू १पृ ३३३ ) । बेट्ठिय -- स्थापित ( अंवि पृ २४५ ) । बेड – नौका ( दे ६।९५ ) । बेडा -- नौका ( आवदी प ३६ ) । बेडिअ -- नाविक - 'रे बेडिअसुअ ! बोक्कडबोड्डर किं तुज्झ उग्गया बेड्डा' ( दे ६।९५ वृ ) । बेडिका -- जहाज, नौका ( प्रसाटी प १२५ ) । बेड्डा -- श्मश्रु, दाढ़ी-मूंछ ( दे ६।९५ ) । बेबे -- बें-बें - ऐसी आवाज, बकरे की आवाज ( उशाटी प १३८ ) । बेभेल -- सन्निवेश-विशेष - 'बेभेले नामं सण्णिवेसे होत्था' ( भ ३।१०० ) । बेभेलक -- फल-विशेष ( अंवि पृ ६४ ) । बेलि -- खूंटा ( बृभा ५८२; दे ६।९५ ) । बेसक्खिज्ज -- शत्रुता ( दे ७।७९ वृ ) । बेसण -- वचनीय, लोकापवाद ( दे ७।७५ वृ ) । बेहिम -- दो टुकड़े करने योग्य ( दहाटी प २१९ ) । बोंगिल्ल -- १ विभूषित । २ आटोप, आडंबर ( दे ६।९९ ) । बोंटण -- चूचुक, स्तन-वृन्त ( दे ६।९६ वृ ) । बोंड -- १ पद्म ( आवनि १३२ ) । २ कपास ( सूचू १ पृ ४ ) । ३ चूचुक, स्तनवृत्त ( दे ६।९६ ) । बोंडज -- सूती वस्त्र ( सूचू १ पृ ५४ ) । बोंडीवमण -- कपास ( निचू २ पृ ३९६ ) । बोंद -- मुख ( दे ६।९९ वृ ) । बोंदि -- १ शरीर ( भ ८।८८; दे ६।९९ ) । २ आकार, रूप - 'सुहुमबोंदिकलेवरे' ( भ १५।१०१ ; दे ६।९९ ) । ३ मुंह ( दे ६।९९ ) । ४ अव्यक्त अवयवों वाला शरीर ( भटी पृ १२९० ) । बोंदिया -- शाखा ( आचूला १।५४ ) । बोक्कड -- बकरा ( निचू ३ पृ ४१० ; दे ६।९६ ) । 'बोकडुं' ( गुज ) । बोक्कडी -- बकरी ( दे ६।९६ वृ ) । बोक्कस -- वर्णसंकर जाति - १ निषाद के द्वारा अम्बष्ठ जाति की स्त्री से उत्पन्न संतान । २ निषाद के द्वारा शूद्र स्त्री से उत्पन्न संतान - 'निसाएणं अंबट्ठीए जाओ बोक्कसोत्ति वुच्चइ, निसाएण सुद्दीए जातो सोवि बोक्कसो ( आचू पृ ६ ) । बोक्कसालिय -- तन्तुवाय, जुलाहा ( आचूला १।२३ चू ) । बोक्कार -- ध्वनि विशेष ( आवमटी प १८८ ) । बोक्किल -- गृह-शूर, झूठा शूर ( दे ७।८० वृ ) । बोगिल्ल -- चितकबरा ( पा १६७ ) । बोट्टी -- अपवित्र, उच्छिष्ट ( बृभा ३५९५ ) । बोड -- १ मुण्ड, मुण्डितमस्तक - 'एमेव अडइ बोडो लुक्कविलुक्को जह कवोडो' ( पिनि २१७ ) । २ बिना किनारों वाला घट - 'बोडो जस्स उट्ठाणत्थि' ( आवचू १ पृ १२२ ) । ३ धार्मिक ( दे ६।९६ ) । ४ तरुण ( वृ ) । बोडघेर -- 'छुइमुई' का पौधा ( पा ९०० ) । बोडमच्छक -- मत्स्य की एक जाति ( अंवि पृ ६३ ) । बोडावित -- मुण्डित - 'ण्हावियं वाहिरावित्ता सा चंदणा बोडाविता.... ( आवमटी प २९५ ) । बोडाविय -- मुण्डित ( आवहाटी १ पृ १४९ ) । बोडिगिणी -- ब्राह्मणी ( आवहाटी २ पृ १०० ) । बोडिगी -- ब्राह्मणी ( आवहाटी २ पृ १०० ) । बोडिय -- १ जैन संप्रदाय-विशेष - 'बोडियसिवभूइओ, बोडियलिंगस्स होई उप्पत्ती । कोडिन्नकोट्टवीरा, परंपरा फासमुप्पन्ना।' ( निभा ५६२० ) । २ मुंडितमस्तक ( ओभा ८३ ) । बोडियसाला -- मठ ( व्य ९।२७ ) । बोड्डर -- श्मश्रु, दाढ़ी-मूंछ ( दे ९।९५ ) । बोड्डिआ -- कपर्दिका, कौडी-गुणहिं न संपइ कित्ति, पर फललिहिआ भुञ्जन्ति । केसरि न लहइ बोड्डिअ, वि गय लक्वेहिं घेप्पन्ति। ' ( प्रा ४।३३५ ) । बोदर -- विशाल ( दे ६।९६ ) । बोद्द -- १ मूर्ख ( पंक ४८३ ) । २ मुण्डित-मस्तक ( आवचू १ पृ २८६ ) । ३ तरुण ( आवचू २ पृ ३०; दे ७।८ ) । बोद्दह -- १ मूर्ख - 'जद तुमं बोद्दहो ता किं अम्हेवि बोद्दहा' ( आवमटी प १३९ ) । २ तरुण ( बृटी पृ ४६६ ) । बोद्रह -- तरुण ( दे ७।८० वृ ) । बोब्बड -- मूक, भाषा-जड़ ( व्यभा १० टी प १०६ ) । बोरक -- बोरी, गोणी ( बृटी पृ १०२२ ) । बोल -- १ कलह - डमा इ वा कलहा इ वा बोला इ वा' ( भ ३।२५८; दे ६।९० ) । २ कोलाहल ( औप ४६ ) । ३ समूह ( बृभा २२७३ ) । ४ मुख पर हाथ रखकर उच्च स्वर से किसी को पुकारना - 'बोलो नाम मुखे हस्तं दत्त्वा महता शब्देन पूत्करणम्" ( सूर्यटी पृ २८१ ) । बोलग -- १ खिंचाव । २ निमज्जन - अप्पेगइए अगडंसि ओचूलं बोलगं पज्जेइ' ( विपा १।६।२३ ) । बोलेअव्व -- लंघनीय ( से २।१ ) । बोल्ल -- बातचीत - 'बोल्लालाव संकहाए अच्छिस्सामि' ( निचू ४ पृ ४९ ) । बोल्लित -- कथित ( आवहाटी २ पृ २२१ ) । बोव्व -- क्षेत्र, खेत - 'बोडाण पुण्णबोवे' ( दे ६।९६ वृ ) । बोहहर -- स्तुति पाठक, मागध ( दे ६।९७ ) । बोहारी -- बुहारी, झाडू ( दे ६।९७ ) । बोहिग -- म्लेच्छ विशेष ( बृभा १९६८ ) । बोहित्थ -- नौका ( प्रटी प ३९; दे ६।९६)। बोहिय -- म्लेच्छ-विशेष ( बृभा १९७० ) । भ भंगिय -- तृण-विशेष - 'भंगिय त्ति तृणभेदविशेषः' ( भटी पृ १४७६ ) । भंजुलिका -- वनस्पति-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । भंड -- १ मण्डन, आभूषण ( भ ९।१५० ; दे ६।१०९ ) । २ क्षुर, उस्तरा । ३ मुण्डन ( बृभा ५१७७ ) । ४ मिट्टी । ५ रूई - 'राइणा भंडहत्थी काराविओ' (.दहाटी प ९९ ) । ६ बैंगन ( दे ६।१०० ) । ७ स्तुति पाठक । ८ मित्र । ९ दोहित्र, पुत्री का पुत्र । १० छिन्नमूर्धा, सिरकटा ( दे ६।१०९ ) । भंडक्किय -- भांड की कुचेष्टा - 'भाण्डानां विटानां कक्षावादनादिका क्रिया' ( प्रसाटी प १०५ ) । भंडखाइय -- एक प्रकार का रसायन जो लोहे को भी गला देता है ( आवचू २ पृ २४ ) । भंडग -- आभूषण, मंडन ( औप ५९ ) । भंडण -- १ वाक्कलह, गाली-गलौज ( भ १२।१०३; दे ६।१०१ ) । २ क्रोध ( सम ५२।१ ) । भंडमुल्ल -- मूल पूंजी खीणम्मि भंडमुल्ले किं करिही अन्नजम्मम्मि ( सा ११३ ) । भंडमोल्ल -- मूल पूंजी - 'तत्थ वि य णत्थि किंचि वि जेण भवे भंडमोल्लं ति' ( कु पृ १९१ ) । भंडिय -- १ गुप्तचर । २ चोर - 'णूणं एते चारिया भंडिया, चोरा वा वेसपरिच्छण्णा' ( निचू १ पृ ५३ ) । भंडियालिंछ -- विशेष प्रकार का चूल्हा ( जीव ३।११८ ) । भंडिवडेंसय -- मथुरा नगरी का एक उद्यान जिसमें विशिष्ट वृक्षों की बहुलता थी ( ज्ञा २।८।५ ) । भंडी -- १ शिरीष वृक्ष ( ज्ञा २।८।५; दे ६।१०९ ) । २ गुच्छवनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।३७ ) । ३ कुलटा ( आचू पृ ३३५; दे ६।१०९ ) । ४ गाड़ी - 'आभीरो भंडीए उवरिं ठितो घयगकुंडं पणामेति' ( आवचू १ पृ १२४; दे ६।१०९ ) । ५ अटवी ( आवचू २ पृ २७९ ; दे ६।१०९ ) । भंडु -- १ मुंडन - भंडुत्ति मुण्डनम्' (आवहाटी २ पृ ९१; दे ६।१०० ) । २ क्षुर, उस्तरा - भंडुत्ति खुरो, तेण सो मुंडिज्जति' ( निचू ३ पृ २५१ ) । भंतिय -- तृण-विशेष ( भ २१।१९ ) । भंभब्भूय -- दुःख में निकलने वाली भाँ भाँ की आवाज (भ ७।११७) । भंभल -- १ अप्रिय । २ मूर्ख ( दे ६।११० ) । भंभा -- वाद्य-विशेष ( भ ५।६४; दे ६।१०० ) । भंभाभूय -- दुःख में निकलने काली भां-भां की ध्वनि ( भ ७।११७ पा ) । भंभी -- १ रसायन शास्त्र ( व्यभा ३ टी प १३२ ) । २ असती, कुलटा ( दे ६।९९ ) । ३ नीति-विशेष । भंसला -- कलह - 'विसयप्पसिद्धासु भंसलासु' ( आवहाटी २ पृ १६६ ) । भंसुरुला -- म्लेच्छ जाति का उत्सव विशेष जहां अनेक संन्यासी एकत्रित होते हों ( निचू ३ पृ ३५० ) । भंसुल -- क्रीडा के समय उछलने वाले रजकण - :भंसुला क्रीडोत्क्षिप्तरेण्वादिनिकरा इति' ( आवटि प १०९ ) । भगव -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । भग्ग -- लिप्त ( दे ६।९९ ) । भच्चय -- भानजा (बृभा ५११५ ) । भज्जि -- विशेष भोजन-सामग्री ( बृभा ३६१८ ) । भट्ट -- १ आदरसूचक संबोधन ( द ७।१९ ) । २ गारुडिक, मंत्र-तंत्र से विष उतारने वाला ( उसुटी प १७४ ) । भट्टि -- आदरसूचक संबोधन ( दअचू पृ १६९ ) । भट्टिअ -- विष्णु ( दे ६।१०० ) । भट्ट -- १ पुत्र रहित स्त्री के लिए प्रयुक्त संबोधन- 'भट्टेति अब्भरहितवयणं पायो लाडेसु' ( दअचू पृ १६८ ) । २ ननद- 'भट्टेति लाडाणं पतिभगिणी भण्णइ' ( दजिचू पृ २५० ) । भट्ठि -- धूलरहित मार्ग ( भ ७।११७ ) । भत्तिजग -- भतीजा ( निचू ४ पृ ६७ ) । भत्तिज्जय -- भतीजा ( भ १२।३० ) । भत्तिय -- तृण-विशेष ( प्रज्ञा १।४२ ) । भत्तोह -- 'भूने हुए चने, गेहूं आदि - भक्तं च तद् भोजनमोषं च दाह्यं भक्तौषं रूढितः परिभ्रष्टचनकगोधूमादिः' ( प्रसाटी प ५१ ) । भद्द -- आमलक, आंवला ( प्रज्ञा १६।५५; दे ६।१०० ) । भद्दसिरी -- श्रीखंड, चन्दन ( दे ६।१०२ ) । भद्दाकरि -- प्रलंब, अति लंबा ( दे ६।१०२ ) । भममुह -- आवर्त्त ( दे ६।१०१ ) । भमस -- इक्षु सदृश तृण ( दे ६।१०१ वृ ) । भमाड -- भ्रमण, घूम कर जाना - 'सो परिरएणं-भमाडेण वच्चइ' ( ओटी प २० ) । भमाडण -- घुमाना ( जीविप पृ ३४ ) । भमाडय -- घुमाने वाला ( ओटी प ५९ ) । भमास -- इक्षु सदृश तृण ( प्रज्ञा १।४१।१; दे ६।१०१ ) । भयवग्गाम -- मोढेरक, गुजरात का एक गांव ( दे ६।१०२ ) । भरयाल -- भारवाही पशु - 'आरोविय-गोणिभरयाला' ( कु पृ १९१ ) । भरिउल्लट्ट -- १ विकसित ( पा ५५९ ) । २ भरकर खाली किया हुआ । भरिय -- १ हाथ से फेंका जाने वाला पाश, फंदा - भरिएहि ति हस्तपाशितैः ( विपा १।३।२४ टी प ५९ ) । २ स्मृत - 'भरिअं लढिअं सुमरिअं ( पा ५६४ ) । भरिली -- चतुरिन्द्रिय जंतु-विशेष ( जीवटी प ३२ ) । भरोच्छय -- ताल का फल ( दे ६।१०२ ) । भरोलग -- एक प्रकार का धान्य ( आवचू २ पृ ३१७ ) । भलंत -- स्खलित होता हुआ ( दे ६।१०१ ) । भलि -- लक्ष्य, आग्रह - :कमलइं मेल्लवि अलि उलइं करि गंडाइं महन्ति । असुलह मेच्छण जाहं, भलि ते ण वि दूर गणन्ति । ( प्रा ४ । ३५३) । भल्लु -- भालू, रीछ ( दे ६।९९ ) । भल्लुंकी -- शृगाली, शिवा ( अंवि पृ ६९; दे ६।१०१ ) । भव्व -- भागिनेय, भानजा ( दे ६।१०० )। भव्वग -- भानजा - "भव्वगत्ति भागिनेयः' ( जीविप पृ ५५ ) । भसल -- भ्रमर ( दे ६।१०१ वृ ) । भसुंडिया -- मादा सुअर ( ति ९४९ ) । भसुया -- शृगाली, सियारिन - 'फेक्कारंति भेरवं भसुयाओ' ( उसुटी प १३८; दे ६।१०१ ) । भसेल्ल -- धान्य आदि का तीक्ष्ण अग्रभाग- 'सालि-भसेल्ल-सरिसा से केसा कविलतेएणं दिप्पमाणा' ( उपा २।२१ ) । भसेल्लग -- धान्य आदि का तीक्ष्ण अग्रभाग ( आवचू १ पृ २४६ ) । भसोल -- एक नाट्य-विधि - 'चउव्विहे णट्टे पण्णत्ते, तं जहा - अंचिए, रिभिए, आरभडे, भसोले' ( स्था ४।६३३ ) । भाअ -- बड़ी बहिन का पति ( दे ६।१०२ ) । भाइर -- भीरु, डरपोक ( दे ६।१०४ वृ ) । भाइल -- १ जातिवान् अश्व । २ हल में जुतने योग्य अश्व - 'कोसलरण्णा मह दिण्णाइं महंताइं भाइलतुरंगेहिं समं गयपोययाइं" ( कु पृ ६५ ) । भाइल्ल -- किसान, हालिक ( दश्रु ६।३; दे ६।१०४ ) । भाइल्लग -- किसान ( दश्रुचू प ३८ ) । भाउअ -- १ ज्येष्ठ भगिनी का पति ( दे ६।१०२ वृ ) । २ आषाढ मास में मनाया जाता पार्वती का उत्सव ( दे ६।१०३ ) । भाउज्जा -- भाभी, भोजाई ( आचूपृ १८८; दे ६।१०३ ) । भाओज्जातिया -- भाभी ( आवचू १ पृ ५२६ ) । भाणिज्ज -- भानजा, बहिन का लड़का ( आचू पृ ३४८ ) । भाणी -- जलज वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।४६ ) । भायल -- जातिवान् अश्व ( दे ६।१०४ ) । भारंदुदुह -- भारवाही - 'खद्धोवहिणा भारंदुदुहु त्ति उड्डाहं करेति' ( निचू २ पृ १२२ ) । भालुंकी -- शृगाली - 'भालुंकीए करुणं खज्जंतो घोरवेयणत्तो वि' ( भत्त १६० ) । भावइआ -- धार्मिक गृहिणी ( दे ६।१०४ ) । भाविअ -- गृहीत ( दे ६।१०३ ) । भास -- कौआ - 'अत्र भासशब्देन काक इत्यर्थ: सम्भाव्यते' ( सूचू १ पृ १६४ टि ) । भासल -- दीप्त ( दे ६।१०३ ) । भासिअ -- दत्त, दिया हुआ ( दे ६।१०४ ) । भासुंडणा -- विनाश, भ्रंसना - सपडिदुवारे उवस्सए, निग्गंथीण न कप्पई वासी । दट्ठूण एक्कमेक्कं, चरित्तभासुंडणा सज्जो' ( बृभा २२४१ ) । भासुंडि -- निःसरण, निर्गमन ( दे ६।१०३ ) । भिउडी -- मकड़ी की जाति विशेष ( अंवि पृ ७० ) । भिंग -- १ कृष्ण, काला ( दे ६।१०४ ) । २ नीला । ३ स्वीकृत । भिंगारी -- १ चतुरिन्द्रिय कीट-विशेष, चीरी ( उ ३६।१४७; दे ६।१०५ ) । २ मशक, मच्छर ( अंवि पृ २३७ ) । ३ सर्प की एक जाति ( अंवि पृ २३८ ) । भिंजा -- अभ्यंग, मालिश ( सू १।४।३९ पा ) । भिंड -- १ मिट्टी । २ रूई ( दहाटी प ९९ ) । भिंडिया -- ललकार, आह्वान - 'मुंचति अ भिंडियाओ, एक्केक्कं भेऽतिवाएमि' ( निभा ५६१ ) । भिंडियालिंग -- विशेष प्रकार का चूल्हा - 'अग्नेराश्रय विशेषः' ( जीवटी प १२३ ) । भिंभिया -- वाद्य-विशेष ( दश्रुचू प ९० ) । भिच्छुंड -- १ भिक्षा से निर्वाह करने वाला । २ बौद्ध साधु ( ज्ञा १।१५।६ टी प २०२ ) । भिच्छुंडग -- भिक्षा से निर्वाह करने वाला ( आचूला १५।१३ ) । भिडिय -- जिसने मुठभेड़ की हो वह - भिडिया महइ वेलं, जाव न एगो वि तीरए छलिउं' ( उसुटी प ६३ ) । भिणासि -- पक्षि-विशेष ( प्रटी प ८ ) । भिणिभिणेंत -- भनभनाती हुई - 'भिणिभिणेंत-मच्छियं सडसडेंत-चम्मयं' ( कु पृ २२५ ) । भित्त -- १ आधा भाग - अद्धं भित्तं' ( निचू ३ पृ ४८१ ) । २ चौथा भाग - 'भित्तं चउभागादी' ( निचू ३ पृ ४८२ ) । ३ द्वार । ४ गृह ( दे ६।११० ) । भित्तग -- १ खंड, टुकड़ा ( आचूला ७।२६ ) । २ आधा भाग ( आटी प ४०५ ) । ३ चौथा भाग - भित्तगं चतुब्भागो' ( निभा ४७०० ) । भित्तय -- १ खंड, टुकड़ा । २ आधा भाग - अंबभित्तयं आम्रार्द्धम्' ( आटी प ४०५ ) । ३ चौथा भाग ( निचू ३४८२ ) । भित्तर -- १ द्वार ( दे ६।१०५ ) । २ भीतर, अन्दर । भित्ति -- नदी का तट - नईणं वा तडी भित्ती' ( निचू ३ पृ ३७८ ) । भित्तिरूव -- टंक से छिन्न ( दे ६।१०५ ) । भिब्मियमच्छ -- मत्स्य की जाति-विशेष ( जीवटी प ३६ ) । भिब्भिसमाण -- अत्यंत दीप्यमान ( ज्ञा १।१।८९ ) । भिमोर -- हिम का मध्य भाग ( ? ) ( प्रा २।१७४ ) । भिरिंड -- कुए की मेंढ- 'जुण्णकूवभिरिंडे तणपूलितं गहाय उस्सिंचति' ( आवचू १ पृ २१० ) । भिरुइय -- ठगा जाना, वंचित- कयाइ कहं पि न भिरुइओ होमि, ता णिहुयं होऊण पेच्छामि' ( कु पृ २५१ ) । भिलंग -- १ धान्य विशेष, मसूर ( दश्रु ६।१८ ) । २म्रक्षण ( सूचू १ पृ ११६ ) । भिलंगाय -- प्रक्षणक, चुपडना, अभ्यंगन - 'तेल्लं मुहे भिलंगाय - मुहमक्खणयं तेल्लं आणेहि' ( सूचू १ पृ ११६ ) । भिलिंग -- १ म्रक्षण - तेल्लं मुहे भिलिंगाय' ( सू १।४।३९ ) । २ धान्य-विशेष, मसूर ( आवचू २ पृ १२० ) । भिलिंगाय -- म्रक्षणक, चुपड़ना, 'भिलिंगाय त्ति देसीभासाए मक्खण मेव' ( सूचू १ पृ ११६ ) । भिलिंजाय -- म्रक्षण, अभ्यंग ( सू १।४।३९ पा ) । भिलुंग -- हिंसक पक्षी वणसंडंसि बहवे भिलुंगा नाम पावसउणा परिवसंति ( राज ७०३ ) । भिलुगा -- फटी हुई जमीन- भिलुगत्ति स्फुटितकृष्णभूराजि:' ( आचूला १।५३ टी प ३३७ ) । भिलुया -- फटी हुई जमीन, जमीन की दरार ( आचूला १०।१७ ) । भिलुहा -- भूमी की दरार - कण्हभूमिदली मिलुहा' ( दअचू पृ १५६ ) । भिल्लिरी -- मछली पकड़ने का एक प्रकार का जाल ( विपा १।८।१९ ) । भिल्लुगा -- भूमी की रेखा ( आचूला १।५३ पा ) । भिसंत -- अनर्थ ( दे ६।१०५ ) । भिसमाण -- दीप्यमान ( ज्ञा १।१।८९ ) । भिसरा -- जाल-विशेष ( विपा १।८।१९ ) । भिसिगा -- आसन-विशेष ( सू २।२।२५ ) । भिसिया -- बृसी, ऋषि का आसन ( भ २।३१; दे ६।१०५ ) । भिसोल -- नृत्य-विशेष ( स्थाटी प २७२ ) । भीराहि -- सर्प की जाति-विशेष - 'भीराहि गोणसो व त्ति अजो अजगरो त्ति वा' ( अंवि पृ ६३ ) । भीरुय -- वृक्ष-विशेष - 'दधिवण्णो सत्तिवण्णो त्ति कोसंबो भीरुओ त्ति वा' ( अंवि पृ ६३ ) । भुअ -- भूर्जपत्र, वृक्ष- विशेष की छाल ( दे ६।१०६ ) । भुंड -- सूकर ( दे ६।१०६ ) । भुंडीर -- सूकर ( दे ६।१०६ ) । भुंदण -- एक प्रकार का काष्ठ ( निचू २ पृ ३६४ ) । भुंभर -- शेखरक ( ज्ञा १।८।७२ ) । भुंभल --१ शेखरक, चोटी ( ज्ञा १।८।७२ पा ) । २ मद्यस्थान ( प्राक १ टी प ६२ ) । भुंभलक -- मद्यपात्र ( प्राक १ टी प ६२ ) । भुंभलय -- चोटी, शेखरक ( उपाटी पृ १०३ ) । भुंहडी -- भूमि ( प्रा ४।३९५ टी ) । भुक्कण -- १ कुत्ता, श्वा । २ मद्य आदि का मान ( दे ६।११० ) । भुक्ख -- १ भूखा, बुभुक्षित ( निर १।३५ ) । २ रूक्ष - सुक्केणं भुक्खेणं पायजंघोरुणा' ( अनु ३।५२ ) । भुक्खा -- भूख ( ज्ञा १।१।३४; दे ६।१०६ ) । भुक्खालु -- जिसे भूख अधिक लगती हो वह ( निचू २ पृ ४२८ ) । भुक्खित -- १ भूखा ( दअचू पृ १५५ ) । २ चूर चूर किया हुआ - 'भिन्ने भुक्खिते भेदिते' (अंवि पृ १४८) । भुक्खुत्त -- भूख से पीडित ( व्यभा ६ टी प १६ ) । भुज्जित -- भुना हुआ ( आवचू २ पृ ३१७ ) । भुज्जिय -- भुना हुआ ( आचूला १।६ ) । भुज्झग -- भुने हुए गेहूं ( आचू पृ ३२९ ) । भुण्ण -- भग्न - 'भुण्णकोट्ठा ( णावं ) ' ( सूचू १ पृ ३९ ) । भुत्तूण -- भृत्य, नौकर ( दे ६।१०६ ) । भुरुंडिया -- शृगाली, शिवा ( दे ६।१०१ ) । भुरुकुंडिय -- उद्धूलित, धूल से लिप्त ( दे ६।१०६ वृ ) । भुरुहुंडिय -- उद्धूलित, धूल से लिप्त ( दे ६।१०६ ) । भुल्लुंकी -- शृगाली ( पा २९७ ) । भुस -- भूसा, बुस ( भ २१।१९ ) । भुसुट्ट -- भूसे का ढेर ( निचू १ पृ ९८ ) । भूअ -- यंत्रवाहक पुरुष या यंत्र की देखरेख करने वाला पुरुष ( दे ६।१०७ ) । भअण्ण -- जोती हुई खल-भूमि में किया जाने वाला यज्ञ ( दे ६।१०७) । भूणग -- बालक - 'देशी पदमेतत् बालके' ( व्यभा ४।२ टी प ६६ ) । भूणिया -- लड़की - 'सो सेज्जातरभूणियाते सह खेड्डं करेति' ( निचू ३ पृ २४३ ) । भूमिपिसाअ -- ताड का वृक्ष ( दे ६।१०७ ) । भूयणा -- वनस्पति-विशेष (भ २१।२१ ) । भेंड -- १ रूई । २ मिट्टी - 'रण्णा भेंडमतो हत्थि कतो' भेंडमतो-रूतमयः मृण्मयो वा' ( दअचू पृ ४७ ) । ३ वनस्पति-विशेष -' थुल्लसारं भेंड एरंडकट्ठं वा' ( आचू पृ १५५ ) । भेंडिता -- ललकार, आह्वान - 'मुंचति य भेंडितातो एक्केक्कं भे निवादेमि' ( बृभा ४९२७ ) । भेज्ज -- भीरु ( दे ६।१०७ ) । भेज्जक -- मस्तिष्क ( प्रटी प ११ ) । भेजा ( राजस्थानी ) । भेज्जलअ --भीरु ( दे ६।१०७ ) । भेड -- भीरु ( दे ६ । १०७ ) । भेडिगा -- जालिका रहित केंचुली - 'भेडिगत्ति जालिकारहिता कञ्चुलिकोच्यते' ( आवटि प ९२ ) । भेडिय -- भिडाना, लडाना - तेणावि कड्ढिऊणालक्खं पिव सूइओ भेडिओ नियकुक्कुडो' ( उसुटी प १९१ ) । भेणासि -- पक्षि-विशेष - 'बीरल्ल-सेण-वायस-विहंगभेणासि-चास-वगुलि' ( प्र १।९ ) । भेणी -- बहिन - 'इमीए सिरिसोमाए भेणीए समप्पिऊण वच्चामि णडं दट्ठुं' ( कु पृ ४६ ) । भेरुंड -- १ चीता, चित्रक ( दे ६।१०८ एैै़ऐजद़झंोैरंशं) । २ निर्विष सर्प । भेलअ -- बेडा, नौका ( दे ६।११० वृ ) । भेली -- १ आज्ञा । २ नौका, बेडा । ३ चेटी, दासी ( दे ६।११० ) । भेल्लिय -- मिलाया - 'कोसलेण रण्णा ओक्खंदं दाऊण भेल्लियं तं सन्निवेसं' ( कु पृ ९९ ) । भेल्लिया -- नौका ( सूचू १ पृ ११८ ) । भेसुंडिया -- सूअर की मादा ( ति ९४९ ) । भोअ -- भाड़ा, किराया ( दे ६।१०८ ) । भोइ -- १ सम्मान-सूचक सम्बोधन - भोइ त्ति भवति ! आमंत्रणमेतत्' ( उसुटी प २१० ) । २ पत्नी - 'भोइत्ति भारिया' ( निचू ४ पृ ६७ ) । भोइक -- गृहस्वामी, पति ( निचू २ पृ १८२ ) । भोइत -- गृहस्वामी, पति ( निभा १३६४ ) । भोइय -- १ ग्रामप्रधान, गांव का मुखिया ( उ १५।९; दे ६।१०८ ) । २ गारुडिक, मंत्र तंत्र से विष उतारने वाला (उसुटी प १७४ ) । ३ पति ( उसुटीप २ ) भोइया -- १ भार्या, पत्नी ( निचू ३पृ ४८८ ) । २ वेश्या ( व्यभा ७ टी प ४३ ) । भोई -- भार्या ( पिनि ३६८ ) । भोज्ज -- गुरुस्थानीय व्यक्ति विशेष - 'भोज्जा गुरुत्थाणीया' ( आचू पृ ३३१ ) । भोतिग -- पति ( निचू २ पृ ३८३ ) । भोतिगा -- पत्नी ( आचू पृ ३४८ ) । भोतिया -- पत्नी (निचू ३ पृ ९२ ) । भोत्ती -- भार्या ( व्यभा ४।२ टी प ६७ ) । भोत्तूण -- भृत्य, नौकर ( दे ६।१०६ वृ ) भोयग -- १ ग्राम का मुखिया ( आवचू २ पृ १८० ) । २ पति ( निभा ५०८१ ) । भोयगुग्गुलि -- कापालिक के पात्र का ढक्कन-विशेष ( निचू २ पृ ३८ ) । भोयडा -- लाट देश में जिसे 'कच्छा' कहा जाता है, उसीको महाराष्ट्र में 'भोयडा' कहते हैं । कन्याएं इसे बचपन से लेकर विवाहित होने तथा गर्भवती होने तक पहनती हैं। जब वे गर्भधारण कर लेती हैं, तब सामूहिक भोज किया जाता है । उस भोज में सगे-संबंधी एकत्रित होते हैं और वे तब उस गर्भवती कन्या को अन्य शाटक पहनने के लिए देते हैं। उसके पश्चात् वह कन्या 'भोयडा' पहनना छोड़ देती है-'भोयडा णाम जा लाडाणं कच्छा सा मरहट्ठयाणं भोयडा भण्णति । तं च बालप्पभितिं इत्थिया ताव बंधंति जाव परिणीया, जाव य आवण्णसत्ता जाया ततो भोयणं कज्जति सयणंमेलेऊण पडओ दिज्जति, तप्पभिडं फिट्टइ भोयडा ( निचू १ पृ ५२ ) । भोरुड -- भारुण्ड पक्षी ( दे ६।१०८ ) । भोलिय -- वंचित, ठगा हुआ-विसएहि भोलियहं ( उसुटी प ४७ ) । भोल्लय -- पाथेय-विशेष प्रबन्ध-प्रवृ पाथेय, य त्रा - पाथेय ( दे ६।१०८ ) । म मआई -- शिरोमाला ( दे ६।११५ ) । मइअ -- भर्त्सित, तिरस्कृत ( दे ६।११४ ) । मइमोहणी -- सुरा, मदिरा ( दे ६।११३ ) । मइय -- बोए हुए खेत को सम करने के लिए उपयोग में आने वाला कृषि काएक उपकरण - 'वाहितच्छेत्तोवरि समीकरणबीयसारणत्यं समं कट्ठंक्षमइयं' ( द ७।२८ अचू पृ १७२ ) । मइल -- १ मलिन ( भ ७।११७ ) । २ कलकल, कोलाहल । ३ निस्तेज ( दे ६।१४२) । मइलवुत्ती -- रजस्वला स्त्री ( दे ६।१२५ पा ) । मइलिय -- दूषित - कम्म-मल-मइलियस्स ' ( जीचू पृ २ ) । मइल्लय -- मृत ( बुभा ६३२० ) । मइल्लिय -- मलिन ( भ ६।२३ ) । मइहर -- ग्राम प्रधान, गांव का मुखिया ( दे ६।१२१ ) । मई -- मदिरा ( दे ६।११३ ) । मउ -- पर्वत ( दे ६।११३ ) । मउअ -- दीन ( दे ६।११४ ) । मउड -- धम्मिल्ल, केशकलाप, जूड़ा ( पा ९३ ) । मउडि -- जूट, जूड़ा ( दे ६।११७ ) । मउर -- अपामार्ग का पौधा ( दे ६।११८ ) । मउरंद -- अपामार्ग का पौधा ( दे ६।११८ ) । मउलि -- हृदय रस का उच्छलन, वमन के संवेदन से होने वाली उथलपुथल ( दे ६।११५ ) । मएल्लय -- मृत ( बृटी पृ १६६९ ) । मंख -- अण्ड, वृषण ( दे ६।११२ ) । मंगरिया -- वाद्य-विशेष ( राज ४६ ) । मंगल -- १ अग्नि- 'अग्गिस्स मंगलोति णामं केसुवि देसेसु भवति' ( आवचू १ पृ ५ ) । २ डोरा बुनने का साधन । ३ बन्दनमाला ( विभा २७ ) । ४ सदृश, समान ( दे ६।११८ ) । मंगलय -- सदृश - 'एगेण मज्झे इत्यो छूढो, दड्ढो रोवइ, ताए भण्णइचाणक्कमंगलयं ' ( आवहाटी १ पृ २९० ) । मंगलसज्झ -- वह खेत जिसमें बीज बोना बाकी हो ( दे ६।१२६ ) । मंगुल -- १ असुन्दर (स्था ४।५४३।१ ) । २ अशुभ, अनिष्ट - सो हु तवो कायव्वो जेण मणो मंगुलं न चिंतेइ' ( पंव २१४; दे ६।१४५ ) । ३ पाप ( दे ६।१४५ ) । ४ चोर ( वृ ) । मंगुली -- अनिष्ट, असुन्दर ( उपा ६।२० ) । मंगुस -- नकुल, नेवला ( सू २।३।८०; दे ६ । ११८ ) । मुंगि, मुंगिसि नेवला ( कन्नड़ ) । मंच -- बंधन ( दे ६।१११ ) । मंचुलक -- प्राणी-विशेष ( अंवि पृ २३८ ) । मंचुल्लिया -- छोटी खाट, मंचिका ( आवचू १ पृ ११२ ) । मंचिगे - ( कन्नड़ ) । मंजरिया -- मत्स्य की जाति विशेष ( जीवटी प ३६ ) । मंजिआ -- तुलसी ( दे ६।११६ वृ ) । मंजीर -- सांकल, जंजीर ( दे ६।११६ ) । मंजुआ -- तुलसी ( दे ६।११६) । मंट -- विकलांग ( आवनि ११०९ ) । मंठ -- १ शठ ( दे ६।१११ ) । २ बन्धन - 'मंठो बंध इति केचित् पठन्ति' ( वृ ) । मंड -- १ स्थूल, मोटा - मंडं ति बहलं व त्ति पुत्थव्वा मेदितं ति' ( अंवि पृ ११४) । २ मिष्टान्न-विशेष - मंडकोंडगादीणि खतिताणि । ( निचू १ पृ १५ ) । मंडक -- मांडा, एक प्रकार की रोटी ( प्रसा २०७ ) । मंडगे - मैदा से निर्मित एक खाद्य पदार्थ ( कन्नड़ ) । मंडल -- १ कुत्ता ( दे ६।११४ ) । २ एक प्रकार का कुष्ठ रोग ( निचू ३ पृ ३९२ ) । मंडिल्ल -- अपूप, पूआ ( दे ६।११७ ) । मंडिल्लका -- चक्राकार खाद्य-विशेष ( अंवि पृ १८२ ) । मंडी -- १ पात्र-विशेष - 'बिरालो पुव्वमंडीए दुद्धं तत्थेव ण पिबति' ( आवचू १ पृ १२३) । २ अन्न का अग्रभाग- 'मंडीएत्ति सिद्धान्तशैल्या किलाग्रकूरसंस्कृत भक्तशिखागतोदनलक्षणं मण्डी शब्देनोच्यते' ( आवटि प ९१ ) । ३ पिधानिका, ढक्कन ( दे ६।१११ ) । ४ शिरीष वृक्ष ( प्रज्ञा १।३७।५ ) । मंडक्किय -- शाक-विशेष ( उपा १२ ) । मंडुक्की -- हरित वनस्पति, ब्राह्मी ( प्रज्ञा १।४४ ) । मंतक्ख -- १ लज्जा । २ दुःख ( दे ६।१४१ ) । ३ अपराध । मंति -- विवाह का मुहूर्त्त बताने वाला ज्योतिविद् ( ६।१११) । मंतिक -- कर्माजीवी ( अंवि पृ १६० ) । मंतुआ -- लज्जा ( दे ६।११६) । मंतुलित -- दीन, पतित ( अंवि पृ १२१ ) । मंतेल्लि -- सारिका, मैना ( दे ६।११९ ) । मंथर -- १ बहुत, प्रचुर । २ कुसुम्भ, कुसूम का वृक्ष । ३ कुटिल ( दे ६।१४५ ) । मंथरा -- कुसूम का वृक्ष ( पा ७०७ ) । मंथु -- १ बेर का चूर्ण ( द ५।१।९८ ) - 'बदरामहितचुण्णं मंथू' ( अचू पृ १२४ ) । २ बेर, जौ आदि का चूर्ण - मंथू नाम बोरचुन्न जवचुन्नादि ( जिचू पृ १९० ) । ३ फलों का चूर्ण - मंथु नाम फलचूर्ण एव' (आचू पृ ३४१) । ४ मट्ठा और माखन के बीच की अवस्था - क्षीरादिकं यावन्नवनीतमस्तु' ( पिटी प ९१ ) । मंदीर -- १ शृंखला । २ मन्थान ( दे ६।१४१ ) । मंदुक्क -- जलजन्तु-विशेष ( अंविपृ २२८ ) । मंदुक्कडिबिया -- जलजंतु-विशेष, मेंढकी- अंडके जीवंते चेव सप्पा गस्संति, मणूसावि केइ छुहाइंता जीवंतिया चेव मंदुक्क डिबिया' ( सूचू २ पृ ३७६ ) । मंदुय -- जलजंतु-विशेष ( प्र १।५ ) । मंदुलय -- विकलाङ्ग, रोगग्रस्त - पंगुलय-मंदुलय-मडहय-बामणय' ( कु पृ ५५ ) । मंधातइ -- मेष, मेंढा - 'मंधातइ णाम मेसो' ( सूचू १ पृ ९८ ) । मंधादय -- मेंढा - जहा मंधादए णाम थिमियं पियति दगं' ( सू १।३।७१ ) । मंधाय -- आढ्य, समृद्ध ( दे ६।११९ ) । मंस -- भुजपरिसर्प ( जीवटी प ४० ) । मंसखल -- वह स्थान जहां मांस सुखाया जाता है ( आचूला १।४२ ) । मंसुडग -- मांस-खंड - 'बालाई मंसुडग मज्जाराई विराहेज्जा' ( पिनि ५८६ ) । मकण्णी -- कान का आभूषण-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । मकरिय -- वाद्य-विशेष ( नि १७।१३८ ) । मकसक -- सूखा क्षेत्र ( अंदि पृ १६२ ) । मक्कड -- जाल बुनने वाला कीड़ा ( दे ६।११९ वृ ) । मक्कडबंध -- स्वर्णसूत्र से निर्मित गले का आभरण-विशेष जो जनेऊ की भांति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाएं कंधे के नीचे पहना जाता है ( दे ६।१२७ ) । मक्कोड -- यंत्र से गुंफित करने के लिए किया जाने वाला ढेर - मक्कोडो यन्त्रगुम्फनार्थं राशिश्च' ( दे ६।१४२ वृ ) । मक्कोडग -- चींटा, मकोड़ा ( आचू पृ २९० ) । मक्कोडय -- मकोड़ा, चींटा ( ओनि ५५८ ) । मक्कोडा -- ऊर्जापिपीलिका, मकडी ( दे ६।१४२ ) । मगइय -- हाथ से फेंका जाने वाला पाश ( विपा १।३ । ४३ ) । मगदंतिगा -- मालती ( दअचू पृ १२८ ) । मगदंतिया -- १ मालती ( द ५।२।१४ ) । २ मोगरा । २ मल्लिका ( बेला ) ( अचू पृ १२८; हाटी प १८५) । ४ मेंहदी का गाँछ । मगरिग -- आभूषण-विशेष ( जीव ३।५९३ ) । मगसक -- चतुरिन्द्रिय जीव-विशेष ( अंकि पृ २३७ ) । मगसिर -- चतुरिन्द्रिय जंतु-विशेष ( जीवटी प ३२ ) । मगहगधरच्छ – आभरण-विशेष ( औप ५१ टि ) । मगा -- पश्चात् ( दे १।४ वृ ) । मग्ग -- पश्चात्, पीछे ( आवचू १ पृ ५६ ; दे ६॥१११ ) । मग -- पीछे ( मराठी ) । मग्गय -- पश्चात्, पीछे ( पा ९९४ ) । मग्गइय -- हस्तपाशित, हाथ से फेंका जाने वाला फंदा ( विपाटी प ६२ ) । मग्गओ -- पीछे ( नंदी १३ ) । मग्गण्णिर -- अनुगमनशील ( दे ६।१२४ ) । मग्गतो -- पृष्ठतः, पीछे से - अण्णयरे पुरिसे मग्गतो आगम्म' ( भ १।३७० ) । मग्गमग्गी -- पीछे-पीछे ( आवहाटी १ पृ २५९ ) । मग्गरिमच्छ -- एक प्रकार का मत्स्य ( प्रज्ञा १।५६ ) । मग्गवच्छक -- वनस्पति-विशेष ( अंवि पृ २३८ ) । मग्गिल्ल -- १ पीछे का, पश्चाद्वर्ती ( पंक ४८८ ) । २ पहले का, पूर्ववर्ती ( व्यभा ४।४ टी प ९६ ) । मग्गिल्लिय -- पीछे ( आवचू १ पृ २१७ ) । मघोण -- इन्द्र ( प्रा २।१७४ ) । मच्च -- कचरा, मैल ( दे ६।१११ ) । मच्चिअ -- मलयुक्त, मैला ( दे ६।१११ वू ) । मच्छंधुल -- मत्स्यबन्ध - उपकरण ( विपा १।८।१९ ) । मज्जा -- १ माता, देवी-विशेष ( अनुद्वाचू पृ १३ ) । २ सीमा, मर्यादा ( दे ६।११३ ) । मज्जाया -- सीमा, व्यवस्था - मज्जाया सीमा ववत्था' ( निचू १ पृ १३७ ) । मज्जार -- वायु-विशेष - 'मार्जारो वायुविशेष: ( भटी पृ १२७० ) । मज्जिअ -- १ अवलोकित । २ पीत ( दे ६।१४४ ) । मज्जोक्क -- प्रत्यग्र, नवीन ( दे ६।११८ ) । मज्झअ -- नापित, नाई ( दे ६ । ११५) । मज्झआर -- मध्य ( दे ६।१२१ ) । मज्झंतिअ -- मध्याह्न ( दे ६।१२४ ) । मज्झंतिक -- मध्य ( अंवि पृ ७७ ) । मज्झमिल्ल -- मध्यम ( जीचू पृ २३ ) । मज्झयार -- मध्य - 'सिवियाए मज्झयारे, दिव्वं वररयणरूवचेवइयं । सीहासणं महरिहं, सपादपीढं जिणवरस्स । (आचूला १५।२८।८ ) 'जो न विवट्टइ रागे नवि दोसे दोण्ह मज्झयारम्मि । सो होइ उ मज्झत्थो सेसा सव्वे अमज्झत्था ॥ ( विभा २६९१ ) । मज्झरस -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । मज्झिमगंड -- उदर, पेट ( दे ६।१२५ ) । मट्ट -- शृगविहीन ( दे ६।११२ ) । मट्टग -- घडा ( निचू २ पृ २५३ ) । मट्टुहिअ -- १ विवाहित स्त्री का कोप । २ कलुष । ३ अशुचि ( दे ६।१४६ ) । मट्ठ -- अलस, आलसी ( दे ६।१२२ ) । माठा ( राजस्थानी ) । मट्ठोरु -- आलसी ( कु पृ १५१ ) । मड -- १ मृत, मरा हुआ ( दश्रु ८।५४; दे ६।१४१ ) । २ कण्ठ ( दे ६।१४१ ) । मडंब -- वह ग्राम-विशेष जिसके चारों ओर एक योजन तक दूसरा गांव न हो ( सू २।२।७ ) । मडगगिह -- म्लेच्छ जाति के व्यक्तियों के घर का वह अभ्यंतर भाग जहां शव गाडा जाता है - 'मडगगिहं णाम मेच्छाणं घरब्भंतरे मत छोढुं विज्जति ण डज्झति ( निचू २ पृ २२५ ) । मडप्फर -- १ उत्साह- को दूरमग्गेण मडप्फरो ते' ( व्यभा ४।४ टी प १९ ) । २ गर्व, अभिमान - 'भग्गमयणमडप्फरो कुमारो' ( उसुटी प २९३; दे ६।१२० ) । मडभ -- १ ठिगना ( बृटी पृ १६१० ) । २ कुब्ज - 'मडभा: कुब्जा:' ( व्यभा ४।३ टी प २१ ) । मडय -- १ आराम, बगीचा ( दे ६।११५ ) । २ मृतक ( निचू २ पृ २२५ ) । मडवोज्झा -- शिविका ( दे ६।१२२ ) । मडह -- १ लघु एवं स्थूल - 'लडहमडहजाणुए' ( उपा २।२२ ) । २ ठिगना ( बृभा ६०९० ) । ३ लघु ( दे ६।११७ ) । ४ स्वल्प । मडहक -- छोटा ( अंवि पृ ११५ ) । मडहर -- गर्व ( दे ६।१२० ) । मडहिया -- बौनी स्त्री ( अंवि पृ ६८ ) । मडाइ -- प्रासुकभोजी ( भ २।१३ ) । मडासय -- श्मशान - :मसाणासण्णे आणेत्तुं मडयं जत्थ मुच्चति तं मडासयं' ( निचू २ पृ २२५ ) । मडिआ -- आहत स्त्री ( दे ६।११४ ) । मडुवइअ -- १ हत, विध्वस्त । २ तीक्ष्ण ( दे ६।१४६ ) । मड्डय -- वाद्य-विशेष ( राज ७७) । मड्डु-ढोल ( कन्नड़ ) । मड्डा -- १ जबरदस्ती - अम्हे मड्डाए पव्वाविया ( उसुटी प २६; दे ६।१४० ) । २ हठ, गर्व ( ज्ञाटी प ७३ ) । ३ आज्ञा ( दे ६।१४० )। मढणा -- कटु और कठोर वचन - 'मढणाहिं निवारणं सउणिदिट्ठंतो' ( व्यभा २ टी प २८ ) । मढिअ -- १ परिवेष्टित ( दे २।७५ ) । २ खचित । मण -- १ लोकवाद्य-विशेष ( कु पृ २६ ) । २ निषेधार्थक अव्यय । मणगुलिया -- पीठिका ( जीव ३।४१२ ) । मणाम -- मन के लिये प्रिय, सुन्दर ( स्था २।२३३ ) । मणामत्त -- मन के लिए प्रियता आपादित करने वाला ( भ ६।२२ ) । मणावण -- मनाना ( निभा ३४५ ) । मणिणायहर -- समुद्र ( दे ६।१२८ ) । मणिरइआ -- स्त्रियों की करधनी, कटिसूत्र ( दे ६।१२६ ) । मणिसोमाणक -- गले का आभूषण-विशेष ( अंवि पृ १६३ ) । मणोगुलिया -- पीठिका ( जीव ३।३२६ ) । मणोज्जा -- गुल्म वनस्पति-विशेष ( म २२।५ ) । मण्ह -- मसूण, चिकना ( औपटी पृ १७ ) । मतिय -- कृषि का उपकरण विशेष ( प्रटी प १३ ) । मतिलित -- मैला ( निभा ४४९१ ) । मतेल्लित -- मृत ( आवचू १ पृ २७८ ) । मत्तग -- प्रस्रवण, मूत्र - मत्तग सुवणं च जयणाए' ( बृभा २३३१ ) । मत्तबाल -- मदोन्मत्त, मत्त ( दे ६।१२२ ) । मत्तल्ली -- बलात्कार ( दे ६।११३ ) । मत्तवाल -- मदोन्मत्त ( दे ६।१२२ पा ) । मत्तालंब -- मतवारण, वरंडा ( दे ६।१२३ ) । मत्थकत -- खाद्य-विशेष ( अंवि पृ १८२ ) । मत्थग -- कान का आभूषण-विशेष - 'कुंडलं वा बको व त्ति मत्थगो तलपत्तगं' ( अंवि पृ ६४ ) । मत्थयधोय -- दासत्व से मुक्त किया हुआ - धौतमस्तकाः•••••अपनीतदासत्वाः ( ज्ञा १।१।७५ टी प ४३ ) । मत्थयपच्छालण -- दासत्व से मुक्ति ( व्यभा ६ टी प ३८ ) । मदगंतिया -- १ मालती, मोगरा । २ मल्लिका- 'मदगंतिआ -- मेत्तिया, अन्ने भणंति - 'धियइल्लो मदगंतिया भण्णइ' ( दजिचू पृ १९६ ) । मद्दग -- गुच्छ-वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।३७।४ ) । मद्दल -- मृदंग ( दश्रु १०।२४ ) । मधुरक -- मुख का आभूषण-विशेष ( अंवि पृ १८३ ) । मधुला -- पादगण्ड ( निचू २ पृ ९० ) । मधूला -- पाद-गण्ड ( बृभा ३८६५ ) । मन्नक्ख -- महान् दौर्मनस्य ( बुभा ४१५९ ) । मन्ने -- वितर्क अर्थवाला अव्यय - मन्ने इति वितर्कार्थी निपातः' ( अंतटी प ८ ) । मप्पक -- नाप तोल - 'जं वागियगा परस्स चक्खुं वंचेऊण मप्पकं करेंति' ( निचू १ पृ ११५ ) । मब्भीसडी -- अभय-वचन ( प्रा ४।४२२ ) । ममच्चय -- मेरा ( निचू २ पृ १६२ ) । मम्मक्का -- १ उत्कण्ठा । २ गर्व ( दे ६।१४३ ) । मम्मण -- १ मदन, कामदेव । २ रोष ( दे ६।१४१ ) । सम्मणिआ -- नीलमक्षिका ( दे ६।१२३ ) । मम्मी -- मामी, मामा की पत्नी ( दे ६।११२ ) । मयंसल -- कृमि-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । मयगल -- हाथी ( दे ६।१२५ वृ ) । मयड -- बगीचा ( दे ६।११५ ) । मयणसलाया -- सारिका, मैना ( दे ६।११९ ) । मयणसाल -- सारिका, मैना ( आवचू १ पृ ४७६ ) । मयणसाला -- सारिका, मैना ( प्र १।९ ) । मयणिवास -- कन्दर्प, कामदेव ( दे ६।१२६ ) । मयधुत्त -- गीदड़ ( दे ६।१२५ वृ ) । मयरंद -- कुसुम-रज, पराग ( दे ६ । १२३) । मयल -- मलिन ( उशाटी प २१५ ) । मयलबुत्ती -- रजस्वला स्त्री ( दे ६।१२५ ) । मयलवुत्ती -- रजस्वला स्त्री ( दे ६।१२५ पा ) । मयल्लय -- मलिन ( बृटी पृ १०६ ) । मयहर -- १ गांव का मुखिया ( उसुटी प १४३ ) । २ मुखिया, नायक । मयहरिया -- मुख्या साध्वी - 'सच्छंदा समणीओ मयहरियाए न ठायंति' ( ग ११८ ) । मयाई -- शिरो माला ( दे ६।११५ पा ) । मयार -- एक प्रकार का अपशब्द - 'जत्थ जयार-मयारं समणी जंपइ गिहत्थपच्चक्खं' ( ग ११० ) । मयाली -- निद्राकरी लता ( दे ६।११६ ) । मर -- १ मशक, मच्छर । २ उल्लू ( दे ६।१४० ) । मरकल -- पक्षी-विशेष ( अंवि पृ २३८ ) । मरट्ट -- गर्व ( दे ६।१२० ) । मराल -- १ अविनीत - 'खलुंका गली मरालो शठो प्रतिलोमो अविनीतः इत्येकार्थ:' ( उचू पृ २७० ) । २ आलसी ( दे ६।११२ ) । ३ हंस - 'मरालो हंस इति सातवाहनः' ( वृ ) । मरालि -- आलसी बैल या घोड़ा-गंडी गली मराली अस्से गोणे य हुंति एगट्ठा ( उनि ६४ ) । मराली -- १ सारसी, मादा सारस । २ दूती । ३ सखी ( दे ६।१४२ ) । मरिंचग -- कुंथु आदि सूक्ष्म प्राणी ( दश्रुचू प ५१ ) । मरुल -- भूत, पिशाच आदि - 'काममरुलमडिआ सा मउआ' ( दे ६।११४ ) । मल -- स्वेद, पसीना ( दे ६।१११ ) । मलंपिअ -- अहंकारी ( दे ६।१२१ ) । मलक -- मणि-विशेष - 'गोमेदका अंका मलका सासका सिलप्पवाला' ( अंवि पृ २३३ ) । मलय -- १ आस्तरण-विशेष ( ज्ञा १।१७।२२ ) । २ पर्वत का एक भाग । ३ उपवन ( दे ६।१४४ ) । मलवट्टी -- तरुणी ( दे ६।१२४ ) । मलहर -- तुमुल ध्वनि, कोलाहल ( दे ६।१२० ) । मलिअ -- १ लघु क्षेत्र । २ कुण्ड ( दे ६।१४४ ) । मल्ल -- १ मैल - 'जल्ल मल्लकलंक सेय- रहियसरी रे' ( ज्ञा २।१।१९ ) । २ बलि - मल्लंति बलीए णामं ' ( आवचू १ पृ ३३२ ) । ३ सिकोरा ( आवहाटी १ पृ ४२ ) । ४ भींत का आधारभूत काष्ठ ( भटी प ३७७ ) । मल्लग -- पात्र-विशेष, शराव ( नंदी ५१ ) । मल्लय -- १ शराव, सिकोरा ( ज्ञा १।१६।२९ ; दे ६।१४५ ) । २ पूआ, अपूप का एक भेद । ३ कुसुम्भ-रक्त । ४ चषक, प्याला ( दे ६।१४५ ) । मल्ला -- दीवार का आधारभूत काष्ठ ( भ ८।२५७ ) । मल्लाणी -- मामी, मातुलानी ( दे ६।११२ ) । मल्लुंडी -- जलचर प्राणि-विशेष ( अंवि पृ ६९ ) । मल्हण -- लीला, मनोरंजन ( दे ६।११९ ) । मसार -- कसौटी का पत्थर - 'मसारो मसृणीकारकः स चात्र कषपट्टः संभाव्यते ( औपटी पृ १९ ) । मसिण -- १ रम्य ( दे ६।११८ ) । २ मन्द, धीमा ( से १।४५ ) । मसूरक -- वाद्य-विशेष जो चर्म से मढा हुआ हो - 'वीणा मसूरका पखरगतं दद्दरका' ( अंवि पृ २३० ) । महंग -- ऊंट ( दे ६।११७ ) । महंत -- आकांक्षा करते हुए - 'परधणं महंता' ( प्र ३।५ ) । महच्चय -- मेरा ( उशाटी प ५१ ) । महण -- पितृ-गृह, पीहर ( दे ६।११४ ) । महत्थार -- १ भाण्ड, भाजन ( दे ६।१२५ ) । २ भोजन - महत्थारं भोजनमिति सातवाहन : ' ( वृ ) । महमहिय -- १ प्रसृत ( प्रा १।१४६ ) । २ सुरभित । महयर -- गह्वरपति, निकुंज या गुफा का मालिक ( दे ६।१२३ ) । महर -- असमर्थ ( दे ६।११३ ) । महल्ल -- १ बड़ा ( ज्ञा १।२।११ ) । २ वृद्ध - 'डहरा य महल्ला य जुवाणा य ( अंत ६।५५; दे ६।१४३ ) । ३ दीर्घ-महान्तो दीर्घतया' ( प्रटी प ६१) । ४ समूह । ५ पृथुल, विस्तीर्ण । ६ मुखर । ७ समुद्र ( दे ६।१४३ ) । महल्लय -- बड़ा ( आचूला ४।२८ ) । महल्लिय -- बड़ा, विस्तीर्ण ( आचूला १।२९ ) । महाणड -- रुद्र, महादेव ( दे ६।१२१ ) । महापाली -- गणनातीत ( उपमेय ) काल, सागरोपम-प्रमाण कालमान ( उ १८।२८ ) । महाबिल -- आकाश ( दे ६।१२१ ) । महायत्त -- आढ्य, समृद्ध ( दे ६।११९ ) । महाल -- जार, उपपति ( दे ६।११९ ) । महालक्ख -- तरुण ( दे ६।१२१ ) । महालवक्ख -- श्राद्ध पक्ष, भाद्रव मास में होने वाला श्राद्ध पक्ष ( दे ६।१२७ ) । महावल्ली -- नलिनी, कमलिनी ( दे ६।१२२ ) । महाविडिम -- वृक्ष ( प्र ९।१ ) । महासउण -- उल्लू ( दे ६।१२७ ) । महासद्दा -- शिवा, शृगाली ( दे ६।१२० ) । महि -- छाछ ( आवचू २ पृ १०१ ) । महिआ -- मेघ-समूह ( पा ४१९ ) । महिट्ठ -- मट्ठे से संसृष्ट, तक्र-संस्कारित ( विपा १।८।१२ ) । महिय -- तक्र, छाछ ( बृटी पृ ५३ ) । महियाडुक -- घी का मल ( बृटी पृ ५०५ ) । महियाडुव -- घी का किट्ट, घृत मैल - 'घृतघट्टः महियाडुवं' ( पंवटी प ६३ ) । महिलाथूभ -- कूपतट - 'महिलास्तूपं च कूपतट मित्यर्थ: ( आवमटी प ३६० ) । महिलिया -- महिला, स्त्री ( जीभा १६२२ ) । महिसंद -- शिशु का वृक्ष ( दे ६।१२० ) । महिसवक -- महिषी-समूह ( उसुटी प ७ ; दे ६।१२४ पा ) । महिसिंदु -- १ खज्जूरी वृक्ष - 'महिसिंदु-रुक्खस्स त्ति खज्जूरीवृक्षस्येत्यर्थः' ( आवटि प २३ ) । २ शिशु का वृक्ष, सहिंजना का पेड । महिसिवक -- महिषीसमूह ( दे ६।१२४ ) । महिसेंद -- शिग्रु का वृक्ष ( आवचू १ पृ २७६ ) । महुअ -- १ स्तुति कर याचना करने वाला, मागध । २ वह पक्षी जो 'श्री', 'श्री' ऐसी आवाज करता है, श्रीवद पक्षी ( दे ६।१४४ ) । महुंडिम -- ग्रहाधिष्ठाता देव-विशेष ( निचू ३ पृ २२४ ) । महुमुह -- पिशुन, चुगलखोर ( दे ६।१२२ ) । महुरालिअ -- परिचित ( दे ६।१२५ ) । महुला -- चिलोड़ी, फोड़ा-विशेष - पादे गण्डं महुला भणति' ( निचू २ पृ ९० ) । महुसित्थ -- कर्दम-विशेष, स्त्री के पैरों में लगे अलक्तक तक लगने वाला कर्दम ( ओनि ३३ टी ) । महेड्ड -- पंक, कीचड ( दे ६।११९ ) । माअलिआ -- मातृष्वसा, मौसी ( दे ६।१३१ ) । माइ -- पक्ष्मल, बालों से युक्त ( ज्ञाटी प २४६; दे ६।१२८ ) । २ मयूरित, पुष्पित । माइं -- मा, मत, नहीं ( दे ६।१२८ वृ ) । माइंदा -- आमलकी, आंवला का गाछ ( दे ६।१२९ ) । माइघर -- योगिनी का मंदिर - 'वच्च माइघरे सुसाणे कण्हचउद्दसीए बलिं देहि ' ( उसुटी प ७५ ) । माइय -- पक्ष्मल, रूक्ष बालों से युक्त ( ज्ञा १।१८।३५ ) । २ जिसके हाथ में पाश - फंदा हो वह - 'माइय त्ति हस्तपासिकाः ( प्रटी प ४७ ) । ३ मयूरित, पुष्पित ( ओप ५ ) । माइलि -- मृदु ( दे ६।१२९ ) । माइवाह -- द्वीन्द्रिय जंतु-विशेष ( जीवटी प ३१ ) । माइवाहय -- द्वीन्द्रिय जंतु-विशेष ( उ ३६।१२८ ) । माईण -- जटाधारी देवी - 'उब्भडजडाकडप्पा खरफरुसा - दोहकेसणहरिल्ला । चक्कलपीणपओहर माईण व आगया एक्का।' ( कुपृ १२२ ) । माईवाह -- द्वीन्द्रिय जंतु-विशेष ( प्रज्ञा १।४९ ) । माउआ -- १ मूंछ ( ज्ञा १।९।१६ ) । २ सखी । ३ माता- 'माउयाउ उत्तरौष्ठरोमाणि सम्भाव्यन्ते अथवा माउया - सख्यो मातरो वा' ( ज्ञाटी प १६६; दे ६ । १४७ ) । ४ दुर्गा ( अंवि पृ २२३ ; दे ६।१४७ ) । माउक्क -- मृदु ( दे ६।१२९ वृ ) । माउग -- वस्त्र का आदि भाग ( बृभा ३९५२ ) । माउग्गाम -- १ स्त्री - मरहट्ठविसयभासाए वा इत्थी माउग्गामो भण्णति' ( निचू २ पृ ३७१ ) । २ स्त्रीवर्ग - समयपरिभाषया स्त्रीवर्गः' ( बृटी पृ ६०४ ) । माउच्छ -- मृदु ( दे ६।१२९ ) । माडंबिय -- मडंब का नायक - सन्निवेशविशेष -- नायकः' ( भटी पृ ९५० ) । माडिअ -- गृह ( दे ६।१२८ ) । माढ -- शिखर ( जंबूटी प ४९ ) । माणं -- १ निषेधसूचक अव्यय ( ज्ञाटी प १६ ) । २ वाक्यालंकार में प्रयुक्त अव्यय - माणमिति वाक्यालंकारे' ( व्यभा ४।४ टी प ४८ ) । माणंसि -- १ मायावी । २ चन्द्रवधू, वीरबहूटी, कीटविशेष ( दे ६।१४७ ) । ३ मनस्वी ( वृ ) । माणक -- एक प्रकार का घट-अरंजरो अलिंदो त्ति कुंडगो माणको त्ति वा ( अंवि पृ ६५ ) । माणिअ -- अनुभूत ( दे ६।१३० ) । मात -- दुर्बल, कृश - 'ओझीणं परिहीणं ति मातं ति' ( अंवि पृ ११४ ) । मातलाहणग -- खाद्य-विशेष ( निचू २ पृ २५१ ) । माथु -- खाद्य-विशेष, दही के ऊपर का द्रवपदार्थ ( आवटि प २४ ) । मादलिआ -- माता ( दे ६।१३१ ) । माभाइ -- अभय-दान ( दे ६।१२९ ) । माभीसिअ -- अभय-दान ( दे ६।१२९ वृ ) । मामणा -- ममता, ममकार - 'मामण त्ति ममीकारार्थे देशीवचनम्' ( आवहाटी १ पृ ८६ ) । मामा -- मातुलानी, मामी ( दे ६।११२ ) । मामि -- सखी का आमंत्रण-शब्द ( दे ६।१२८ वृ ) । मामिया -- मामी, मातुलानी ( विपा १।३।१४ ) । मामी -- मामा की पत्नी, मामी- मामी शब्दोऽपि देश्य:' ( दे ६।११२ वृ ) । मायंद -- आम्र ( दे ६।१२८ ) । मायंदी -- श्वेतपटा साध्वी, श्वेत वस्त्र धारण करने वाली संन्यासिनी ( दे ६।१२९ ) - 'मायंदी उवदिसइ' ( वृ ) । मायार -- मदारी, बन्दर पकड़ने वाला ( बृटी पृ ८९ ) । मार -- मणि का लक्षण-विशेष ( जंबूटी प ३२ ) । मारामारी -- मारपीट ( पिटी प १५० ) । मारिलग्गा -- कुत्सिता ( दे ६।१३१ ) । माल -- १ खाद्य पदार्थ आदि रखने के लिए ऊपर बनाया गया मंच ( द ५।१।६९ ) । २ घर का ऊपरि भाग, दूसरी मंजिल - मालो घरोवरिं होति' ( भटी प २७४ ) । ३ समूह ( आवहाटी २ पृ ८९ ) । ४ मञ्च, आसन-विशेष ( ज्ञाटी प ७२; दे ६।१४६ ) । ५ आराम, बगीचा । ६ सुन्दर ( दे ६।१४६ ) । ७ गुच्छ वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।३७।५ ) ८ चिनकर बनाई हुई पाल - :सण्हकट्ठेहि य मालं करेंति, चिक्खिल्लेणं लिंपइ कंटयछायाए व उच्छाएइ' ( आवहाटी २ पृ ८९ ) । ९ देश-विशेष । मालग -- घर का ऊपरी भाग, मंजिल ( जीभा १२७० ) । मालय -- म्लेच्छ विशेष जो मनुष्यों का अपहरण करते हैं ( व्यभा ४।४ टी प १३ ) । मालां -- ज्योत्स्ना, चांदनी ( दे ६।१२८ ) । मालाकुंकुम -- प्रधान कुंकुम, श्रेष्ठ कुंकुम ( दे ६।१३२ ) । मालि -- वृक्ष-विशेष ( समप्र २३१ ) । मालुका -- पक्षिणी-विशेष - उलुकी मालुका व त्ति सेणा' ( अंवि पृ ६९ ) । मालुग -- त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष ( उ ३६।१३७ ) । मालुय -- तीन इन्द्रिय वाले जन्तु-विशेष ( प्रज्ञा १।५० ) । मालूर -- १ कपित्थ, कैथ ( दे ६।१३० ) । २ बिल्व का गाछ ( वृ ) । ३ बिल्व फल । मासाल -- उच्च आसन-विशेष - 'मासालो मचको वत्ति पत्लंको पडिसेज्जको' ( अंवि पृ ६५ ) । मासिअ -- पिशुन, चुगलखोर ( दे ६।१२२ ) । मासी -- छाछ-एगस्स पिया छासी मासी अण्णस्स वेसरी' ( आचू पृ १६६ ) । मासुरी -- श्मश्रु, दाढी के बाल ( दे ६।१३० ) - ता माहिल ! तुज्झ मुहे किमुग्गया मासुरी एसा' ( वृ ) । माह -- कुन्द-पुष्प ( दे ६।१२८ ) । माहकी -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । माहय -- चतुरिन्द्रिय कीट-विशेष ( उ ३६।१४८ ) । माहारयण -- १ वस्त्र ( दे ६।१३२ ) । २ वस्त्रविशेष ( वृ ) । माहिल -- महिषीपाल, भैंसों को चराने वाला ( दे ६।१३० ) । माहिवाअ -- १ शिशिर - पवन ( दे ६।१३१ ) । २ माघ का पवन । माहुर -- शाक ( दे ६।१३० ) । माहुरग -- खाद्य-विशेष ( निचू २ पृ २५१ ) । मिंचणक्कीला -- चक्षुःस्थगनक्रीडा, आंखमिचौनी ( दे ३।३० ) । मिजिक -- त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष ( अंवि पृ २६७ ) ! मिंठ -- महावत ( दजिचू पृ ९१ ) । मिंढिय -- ग्राम-विशेष ( आवमटी प २९७ ) । मिंढिया -- मेषी ( पा ६६९ ) । मिंथ -- महावत ( दजिचू पृ ९१ ) । मिगंड -- कस्तूरी- 'मिगंड - कप्पूरागरु-कुंकुम - चंदण' ( निचू २ पृ ४६७ ) । मिणाय -- बलात्कार ( दे ६।११३ ) । मित्तल -- कंदर्प, कामदेव ( दे ६।१२६ वृ ) । मित्तलय -- कन्दर्प, कामदेव ( दे ६।१२६ ) । मित्तिवअ -- ज्येष्ठ, पति का बड़ा भाई ( दे ६।१३२ ) । मिय -- हरिण के आकार का पशु विशेष जो हरिण से छोटा होता है और जिसका पुच्छ लंबा होता है - 'मिएहिंतो लहुतरा मृगाकृतयो बृहत्पिच्छा' ( अनुद्वाचू पृ १५ ) । मिरा -- मर्यादा ( पिनि २३७ ) । मिरिआ -- कुटी, झोंपडी ( दे ६।१३२ ) । मिलाण -- पर्याण ( औप ६४ टी ) । मिलिंदक -- सर्प की एक जाति ( अंवि पृ ६३ ) । मिलिमिलिमिलंत -- चमकता हुआ ( प्र ३।५ ) । मिसिमिसंत -- अत्यन्त चमकता हुआ ( औप ६३ ) । मिसिमिसिंत -- अत्यन्त चमकता हुआ - 'वेरुलियवरिट्ठरिट्ठअंजणनिउणोवियमिसिमिसिंतमणिरयणमंडियाओ' ( दश्रु ८।१० ) । मिसिमिसेमाण -- उत्तेजित - 'कुविया चंडिक्किया मिसिमिसेमाणा' ( भ ३।४५ ) । मिस्सिग -- पूज्य - 'अह उवज्झाओ से पिट्टेइ अपढंते ताहे साहेंति माइमिस्सिगाणं' ( आवहाटी २ पृ १४२ ) । मिहिआ -- मेघसमूह ( दे ६।१३२ ) । मिहुज्जुहिय -- विवाह का मंडप, वर-वधू का परिणयन-स्थल - 'वधुवरपरिआणं ति मिहुज्जूहिया' ( निचू ३ पृ ३४८ ) । मीअ -- समकाल, उसी समय ( दे ६।१३३ ) । मीढ -- भास पक्षी - 'भासो मीढसउणओ' ( बृटी पृ २४८ ) । मीरा -- दीर्घ चुल्ली, बड़ा चूल्हा ( सूनि ७६ ) । २ सीमा ( निचू २ पृ १६६ ) । मीराकरण -- द्वार को चटाई आदि से ढकना - मीराकरणं नाम - 'कटेर्द्वारादेराच्छादनम्' ( बृटी पृ ५९१ ) । मीसालिअ -- मिश्र, संयुक्त ( दे ६।१३३ वृ ) । मुअंगी -- चींटी ( दे ६।१३४ ) । मुआइणी -- डुम्बी, चंडालिन ( दे ६।१३५ ) । मुइअ -- योनिशुद्ध, निर्दोषमातृक - 'मुइओ जो होइ जोणिसुद्धो त्ति' ( औप १४ टी पृ २१ ) । मुइअंगा -- चींटी ( पिनि ३५१ ) । मुइंगा -- चींटी ( ओनि ५५८ ) । मुईग -- मकोडा - 'मुईगत्ति देशीपदमेतत् मत्कोटवाचकम्' ( व्यभा ३ टी प ७७ ) । मुंगसी -- नेवली ( अंवि पृ ६९ ) । मुंजापिच्चिय -- मूंज को कूटकर बनाया हुआ (रजोहरण) ( स्था ५।१९१ ) । मुंड -- १ स्थाणु-विशेष जो भैंसों के बाड़े में अर्गला के रूप में काम आता है ( अनु ३।३८ टी ) । २ तीक्ष्ण - मुंडपरसूहिं' ( प्रटी प ६० ) । मुंडग -- पात्र-विशेष, प्याला ( अंवि पृ ६५ ) । मुंडा -- मृगी, हरिणी ( दे ६।१३३ ) । मुंडी -- नीरंगी, घूंघट ( दे ६।१३३ ) । मुंदिका -- फल-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । मुक्क -- पर्याप्त, उचित, योग्य ( व्यभा ७ टी प १६ ) । मुक्कय -- किसी कन्या के विवाह में निमंत्रित अन्य कन्याओं का विवाह ( दे ६।१३५ ) । मुक्कल -- १ मुक्त, स्वतंत्र ( बृटी पृ ६०० ) । २ उचित । ३ स्वैर, स्वच्छंद ( दे ६।१४७ ) । मुक्कलिअ -- बन्धन मुक्त, स्वतंत्र ( दे १।१५६ वृ ) । मुक्किल्लय -- मुक्त, व्यक्त ( अनुद्वाहाटी पृ ८८ ) । मुक्कुंडी -- जूट, जूड़ा ( दे ६।११७ ) । मुक्कुरुड -- राशि, ढेर ( दे ६।१३६ ) । मुक्केल्लय -- मुक्त, व्यक्त ( अनुद्वाहाटी पृ ८८ ) । मुगुंस -- नकुल, न्यौला - मुगुंसपुच्छं व तस्स भुमकाओ फुग्गफुग्गाओ' ( उपा २।२१ ) । मुगुंसिया -- भुजपरिसर्पिणी ( जीव २।९ ) । मुगुसिआ -- भुजपरिसर्पिणी ( जीवटी प ५२ ) । मुग्गड -- मोगल, म्लेच्छ- जाति-विशेष ( प्रा ४।४०९ ) । मुग्गस -- नकुल, न्यौला ( दे ६।११८ ) । मुग्गिल्ल -- पर्वत-विशेष ( भत्त १६१ ) । मुग्गुसु -- नकुल, न्यौला ( दे ६।११८ ) । मुग्घड -- मोगल, म्लेज्छ जाति-विशेष ( प्रा ४।४०९ ) । मुग्घुरुड -- राशि, ढेर ( दे ६।१३६ ) । मुट्ठि -- पुस्तक का एक प्रकार - 'चउरंगुल दीहो वा वट्टागिइ मुट्ठिपुत्थगो अहवा चउरंगुलदीहो च्चिय चउरंसो होइ विन्नेओ' ( प्रसा ६६६ ) । मुट्ठिक्का -- हिक्का, हिचकी ( दे ६।१३४ ) । मुण -- मुक्त ( आवदी प १०१ ) । मुणमुणंती -- बड़बडाहट करती हुई ( व्यभा ५ टी प ५ ) । मुणि -- अगस्ति-वृक्ष ( दे ६।१३३ ) । मुणिय -- १ पागल, भूताविष्ट - मुणिओत्ति काउं मुक्को, मुणिओ पिसाओ ( आवहाटी १ पृ १३७ ) । २ ज्ञात ( उसुटी प २ ) । मुत्तोली -- १ धान्य का वह कोठा जो ऊपर-नीचे संकरा तथा मध्य में विशाल हो - 'मोट्टी हेट्ठुवरि संकडा इसि मज्झे विसाला' ( अनुद्वाचू पृ ५० ) २ मूत्राशय ( तंदु १३६ ) । ३ प्राणि-विशेष ( अंवि पृ २५३ ) । मुदग्ग -- जीव पुद्गल - निर्मित ही है - ऐसा मिथ्या ज्ञान ( स्था ७।२ )। देखें - मुयग्ग' । मुदिंग -- चींटी ( निभा ४२६० ) । मुदिय -- योनि-शुद्ध - मुदिओ जो होति जोणिसुद्धो तु' ( जीभा १९९७ ) । मुदुग -- ग्राह-विशेष, जलजन्तु की एक जाति ( प्रज्ञा १।५८ ) । मुद्दी -- चुम्बन ( दे ६।१३३ ) । मुद्धड -- मूर्ख, भोला ( कु पृ २१० ) । मुद्धय -- जलचर-विशेष, ग्राह ( प्रज्ञा १।५८ ) । मुद्धुय -- ग्राह-विशेष ( प्रज्ञा १।५८ पा ) । मुधुलूक -- पक्षि-विशेष, उलूक की एक जाति ( अंवि पृ ६२ ) । मुब्भ -- घर के मध्य का तिर्यक् काष्ठ (दे ६ । १३३ ) । 'मोभ' ( गुजराती ) । मुम्मुई -- १ अस्पष्टभाषी । २ मूक हो जाना - 'से मुम्मुई होइ अणाणुवाइ' ( सू १।१२।५ ) । मुम्मुर -- १ तुषाग्नि ( सू १।४।१० ) । २ भस्मच्छन्न अग्नि ( प्र १।२३ ) । ३ करीषाग्नि ( द ४।२०; दे ६।१४७ ) । ४ करीष, गोइंठा ( दे ६।१४७ ) । मुम्मुलक -- जन्तु-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । मुयग्ग -- जीव पुद्गल - निर्मित ही है- ऐसा मिथ्या ज्ञान - मुयग्गे त्ति बाह्याभ्यन्तरपुद्गलरचित शरीरो जीव इत्यवष्टम्भवत्, भवनपत्यादिदेवानां बाह्याभ्यन्तरपुद्गल-पर्यादानतो वैक्रियकरणदर्शनात्' ( स्थाटी प ३६४ ) । मुरई -- असती, कुलटा ( दे ६।१३५ ) । मुरग -- त्रीन्द्रिय जंतु-विशेष ( जीवटी प ३२ ) । मुरल -- धान्य का माप-विशेष ( ज्ञाटी प १२६ ) । मरली -- नालिका, मुरली - 'णालियत्ति अपव्वा भवति, सा पुण लोए मुरली भण्णति' ( निचू १ पृ ८४ ) । मुरव -- १ धान्य रखने का कोठार । २ धान्य मापने का पात्र-विशेष ( अनुद्वा ३७५ ) । ३ धान्य से भरी गाड़ी के ऊपर दिया जाने वाला ढक्कन - मुरवं गन्त्र्या उपरि यद्दीयते' ( अमुद्वामटी प १४० ) । मुरवि -- आभूषण-विशेष ( भ ९।१९० ) । मुरवी -- मुरज के आकार का आभरण ( भटी पृ ८७६ ) । मुरिअ -- १ त्रुटित ( दे ६।१३५ ) । २ मुडा हुआ । मुरुंडी -- अनार्य देश-विशेष की दासी ( ज्ञा १।१।८२ ) । मुरुंब -- मिट्टी-विशेष - 'कण्हमत्तिका पंडुमत्तिका तंबभुमी मुरंबो कडसक्करा' ( अंवि पृ २३३ ) । मुरुमुंड -- धम्मिल्ल, बंधे हुए बालों का जूडा ( दे ६।११७ ) । मुरुमुरिअ -- कामासक्ति से होने वाली उत्सुकता, रणरणक ( दे ६।१३६ ) । मुरुव -- चिकनी मिट्टी - 'मिदूसु कण्हमत्तिका मुरुवो तंबो वेति विण्णेया' ( अंवि पृ २३३ ) । मुलासिअ -- स्फुलिंग, चिनगारी ( दे ६।१३५ ) । मुसंढी -- १ अनंतकाय वनस्पति-विशेष ( भ ७।६६ ) । २ लोहमय गोल कांटों से जटित दारुमय प्रहरण-विशेष ( उ १९।६१ ) । मुसली -- दुष्प्रतिलेखना का एक प्रकार ( पंव २४० ) । मुसह -- मन की आकुलता ( दे ६।१३४ ) । मुसुंढि -- १ अनन्तकाय वनस्पति-विशेष ( भ ८।२२१ ) । २ प्रहरण-विशेष ( औप १ ) । मुसुमूरणा -- चबाया जाना - 'करवत्त करालदाढावली-मुसुमूरणा चुक्कस्स' ( कु पृ २२३ ) । मुसुमूरिअय -- चूर्णित, टूटा हुआ ( पा ५१६ ) । मुसुमूरिय -- त्रुटित, तोड़ा हुआ - 'दिण-पक्ख-णक्खत्त-करवत्त-दंतावली-मुसुमूरिओ महाकालमच्चुवेयालेणं ति' ( कु पृ २१३ ) । मुहत्थडी -- मुख के बल पर गिरना ( दे ६।१३६ ) । मुहमक्कडिय -- मुंह को मोड़ना, मुंह मचकाना ( आवचू २ पृ १६४ ) । मुहरोमराइ -- भौंह, भ्रू ( दे ६।१३६ ) । मुहल -- मुख ( दे ६।१३४ ) । मुहिअ -- वैसे ही करना ( दे ६।१३४ ) । मुहिआ -- वैसे ही करना, व्यर्थ ही करना ( दे ६।१३४ वृ ) - जिणसासणं पि कहमवि लद्धुं हारेसि मुहियाए' । मुहुमुह -- दुर्जन, खल ( पा १२३ ) । मूअल -- मूक ( दे ६।१३७ ) । मूअल्ल -- मूक ( दे ६।१३७ ) । मूअल्लइअ -- मूक ( से ५।४१ ) । मूइंग -- चींटी - 'मूइंगमाति खइते' ( निभा २१८६ ) । मूइंगलिया -- पिपीलिका, चींटी ( पंव २३८ ) । मूइंगा -- चींटी ( ओनि ५६० ) । मूइंगुलिया -- चींटी ( सं ८५ ) । मूइयंग -- चींटी - 'जीवा मुइयंगमूसादी' ( जीभा १२६३ ) । मूएल्लि -- मूक ( कु पृ ८२ ) । मूड -- अन्न का एक दीघं परिमाण-चउत्थीए भाउयखेत्तेसु आरोविऊण वुड्ढि नीया, जाया वरिसपणगेण मूडसहस्सा' ( व्यभा ४।४ टी प ३५ ) । मूढक -- शरासन, आसनविशेष ( ज्ञाटी प ४७ ) । मूढत्थ -- धान्य-विशेष - 'मासा मूढत्थ चणका कुलत्थ त्ति सण त्ति वा' ( अंवि पृ ६६ ) । मूढिगाह -- धान्य आदि भरने के लिए जमीन को खोदकर, ऊपर से संकरा और नीचे से विस्तीर्ण बनाया गया भूगृह जो अग्नि से संस्कारित किया जाता है। इसमें एकत्रित धान चिरकाल तक सुरक्षित रहता है - 'मूढिगाहा भूमी एगा खणितु भूमीघरगं उवरिं संकडं हेट्ठा विच्छिन्नं अग्गिणा दहित्ता कज्जति, ताहिं तु चिरंपि गोधूमादि वत्थुं अच्छति' (आचू पृ ३३९ ) । मूतिंगलिया -- चींटी, पिपीलिका ( जीभा २१ ) । मूयंगा -- चींटी ( आचू पृ ३२८ ) । मूयग -- मेवाड़ देश में होने वाला तृण-विशेष - 'मेदपाटप्रसिद्धस्तृणविशेषः' ( प्रटी प १२८ ) । मूरग -- भञ्जक, तोड़ने वाला ( प्र ४।४ ) । मूरण -- तोडने वाला -'जय महामोहमूरण' ( कु पृ २४२) । मूरय -- भञ्जक, तोड़ने वाला-पंचविहो ववहारो, दुग्गइभवमूरएहिं पण्णत्तो ( जीभा ८ ) । मूलवेलि -- घर के छप्पर का आधारभूत स्तम्भ - पट्ठीवंसो दो धारणउ चत्तारि मूलवेलीओ' ( प्रसा ८७१ ) । मूलिल्ल -- मूल पूंजीवाला - 'अत्थि य देवदत्ताए गाढाणुरत्तो मूलिल्लो मित्तसेणो' ( उसुटी प ६१ ) । मूसरि -- भग्न ( दे ६।१३७ ) । मूसल -- पुष्ट, मांसल ( दे ६।१३७ ) । मूसा -- छोटा द्वार ( दे ६।१३७ ) । मूसाअ -- लघु द्वार ( दे ६।१३७ ) । मेअज्ज -- धान्य ( दे ६।१३८ ) । मेअर -- असहन, असहिष्णु ( दे ६।१३८ ) । मेंट -- विकलांग ( आवचू २ पृ २१ ) । मेंठ -- महावत ( निभा २४६१; दे ६।१३८ ) । मेंठी -- मेषी, भेड़ ( दे ६।१३८ ) । मेंढिय -- ग्राम-विशेष ( आवचू १ पृ ३१६ ) । मेंढी -- भेड़, मेषी - 'मेण्ढी शब्दोऽपि यदि देश्यः तदा पर्यायभङ्ग्या निबद्धः' ( दे ६।१३८ वृ ) । मेज्जुक -- पक्षी-विशेष ( अंवि पृ १४५ ) । मेज्जुल्लअ -- मज्जा मिज्जं मेज्जुल्लउत्ति वृत्तं भवति' ( निचू २ पृ २१ ) । मेडंभ -- मृगतंतु, मृगजाल ( दे ६।१३९ ) । मेढ -- वणिक्-सहाय, व्यापारी का सहयोगी ( दे ६।१३८ ) । मेढक -- काठ का छोटा डंडा ( प्र १।१८ ) । मेती -- चाण्डालिन - 'पुरोहितसुतो तीए दुगुंछाए रायगिहे मेतीपोट्टे आगतो' ( आवचू १ पृ ४९४ ) । मेत्तिया -- मगदंतिका, मालती ( दअचू पृ १२८ ) । मेरा -- १ मर्यादा, सीमा ( भ ७।२४; दे ६।११३ ) । २ तृण-विशेष ( प्र ८।१० ) । मेलिमिंद -- फण वाले सर्प की जाति विशेष ( प्रज्ञा १।७० ) । मेली -- संहति, समूह ( दे ६।१३८ ) । मेसर -- लोमपक्षी-विशेष ( जीवटी प ४१ ) । मेहच्छीर -- जल, पानी - 'पेडंभखलिज्झन्ता मेहच्छीरं पि कह वि अपिअन्ता' ( दे ६।१३९ ) । मेहर -- गांव-प्रमुख-आगओ निजमेहरपेसितो नडो' ( उसुटी प २५०; दे ६।१२१ वृ ) । मेहुण -- म मा का पुत्र ( बृभा २८२२ ) । मेहुणय -- फूफा का लड़का ( दे ६।१४८ ) । मेहुणि -- १ मामे की लड़की । २ बुआ की लड़की - 'मेहुणि त्ति माउलपिउस्सय धाता' ( निचू ४ पृ १३५ ) । मेहुणिआ -- १ मामा की लड़की - 'मेहुणिया माउलदुहिया' ( निचू २ पृ २४; दे ६।१४८ ) । २ भार्या ( व्यभा ७ टी प ४३ ) । ३ साली, पत्नी की बहिन ( दे ६।१४८ ) । मेहुल -- मामा का बेटा - मेहुलो (णो) माउलपुत्तो' ( निचू ३ पृ ५८६ ) । मो -- पादपूरक अव्यय ( उ ९।१४ ) । मोअ -- १ अधिगत, प्राप्त । २ ककड़ी आदि का बीजकोश ( दे ६।१४८ ) । मोंढ -- म्लेच्छ जाति-विशेष ( प्रज्ञा १।८९ ) । मोकलि -- वनस्पति-विशेष ( भ २२।९ ) । मोक्कणिआ -- कमल का काला मध्य भाग, कृष्ण-कर्णिका ( दे ६।१४० ) । मोक्कणी -- कृष्ण-कर्णिका ( दे ६।१४० वृ ) । मोक्कल -- स्वतंत्र ( निचू २ पृ २२२ ) । मोक्कलय -- खुला छोड़ना ( ओटी प ९७ ) । मोगरावड -- मत्स्य की एक जाति ( जीवटी प ३६ ) । मोगली -- वल्ली-विशेष ( प्रज्ञा १।४०।५ ) । मोग्गड -- १ नीच जाति विशेष ( पंवटी प ३७ ) । २ व्यन्तर-विशेष । मोग्गर -- १ गुल्म-विशेष ( जीव ३।५८० ) । २ मुकुल, कलिका ( दे ६।१३९ ) । ३ मोगरा, मगदंतिका का पुष्प ( निचू ३ पृ ५१७ ) । मोग्गरग -- मोगरा ( निभा ४८३८ ) । मोग्गरिअ -- संकुचित, मुकुलित - भयमोग्गरिअमुहा तुह रिउणो गयमोचया वणे जंति' ( दे ६।१३९ वृ ) । मोच -- १ अर्धजंधी, एक प्रकार का जूता ( दे ६।१३९ ) । २ मूत्र, प्रस्रवण ( सूचू १ पृ ११८ ) । मोचय -- एक प्रकार का जूता ( दे ६।१३९ वृ ) । मोट्टा -- छोटा कोठा ( अनुद्वामटी प १४० ) । मोट्ठा -- धान का वह कोठा जो ऊपर-नीचे से संकरा और मध्य में विशाल हो ( अनुद्वाहाटी पृ ७५ ) । मोड -- जूट, शिर पर बंधे हुए केशों का जूडा, धम्मिल्ल ( दे ६।११७ ) । मोडाउड -- अहमहमिका - 'जेणुम्मत्तपमत्तउ हिंडइ पुरिपहिहिं । मोडाउडि करंतउ वेढिउ बहुनरहिं । ( उसुटी प १३५ ) । मोढरी -- वनस्पति-विशेष ( भ २३।६ ) । मोद्दालक -- वृक्ष-विशेष ( जीव ३।५८० ) । मोब्भ -- घर के ऊपर का तिर्यक् काष्ठ ( दे ८।४ ) । मोभ -- घर के ऊपर का तिर्यक् काष्ठ - 'धरणयोरुपरिवर्ति तिर्यगायतकाष्ठं 'मोभं' इति यत्प्रसिद्धम् ' ( भटी पृ ६९१ ) । मोय -- १ मूत्र ( स्था २।२४७ ) । २ बीजकोश, गिरी- 'मोयं पुण छल्लिपरिहीणं' ( निभा ५४११ ), 'मोय अब्भंतरो गीरो' ( निचू ४ पृ ६६ ) । मोयइ -- देश-विशेष में प्रसिद्ध एक अस्थिवाला वृक्ष ( प्रज्ञा १।३५।१ ) । मोयमेहा -- प्रस्रवण - कोसं च मोयमेहाए' ( सु १।४।४३ ) । मोयारग -- मदारी ( अनुद्वाहाटी पृ १२ ) । मोयारय -- बंदर पकड़ने वाला - मोयारएहिं गहिओ' ( अनुद्वाहाटी पृ १२ ) । मोर -- श्वपच, कुत्तों को पकाकर खान वाले चांडालों की एक जाति ( दे ६।१४० ) । मोरउल्ला -- मुधा, व्यर्थ ( प्रा २।२१४ ) । मोरंग -- कान का आभूषण-विशेष - 'घडेहि मे एत्थ मोरंगाइं' ( निचू ३ पृ २६९ ) । मोरंड -- १ तिल आदि के मोदक बेचने वाला ( बृभा ३२८१ ) । २ तिल आदि के मोदक । ३ खाद्य-विशेष - मोरंडा नाम रोट्टमया गोलया जारिसया कीरंति इति विशेष चूणौ' ( टो पृ ९१९ ) । मोरंडक -- तिल आदि के मोदक बेचने वाला ( बृभा ३२८१ ) । मोरकुल्ला -- अवज्ञा, व्यर्थ - 'मोरकुल्ला, मुहा य मुहियत्ति नायव्वा' इति बचनात् अवज्ञयेति भावः । उक्तञ्च मूलटीकायां 'मुधिकया अवज्ञया' ( जीवटी प १०९ ) । मोरग -- १ कुण्डल - 'लोभेण मोरगाणं, भच्चग ! छेज्जेज्ज मा हु ते कन्ना' ( बृभा ५२२७ ) । २ तृण-विशेष ( आवचू २ पृ १२८ ) । ३ मयूर की पांख से निष्पन्न ( पंक ४८३ ) । मोरड -- क्षाररसवाला एक पौधा ( व्यभा २ टी प ४० ) । मोरत्तअ -- १ श्वपच, श्वपाक ( दे ६।१४० ) । २ चण्डाल - मोरत्तओ चण्डाल इत्यन्ये' ( वृ ) । मोरत्तिय -- चांडाल जाति ( निचू २ पृ २४३ ) । मोरेंडक -- तिलमोदक ( अंवि पृ १८२ ) । मोसली -- दुष्प्रतिलेखना का एक प्रकार ( स्था ६।४५।१ ) । र र -- निश्चयार्थक अव्यय-तेण र विसमं नायं वासतणा तस्स पडिसे हे' , ' र इति निपात: किलशब्दार्थ:' ( दनि १४७ हाटी प ७९ ) । रइगेल्ल -- अभिलषित ( दे ७।३ ) । रइगेल्ली -- रतितृष्णा, मैथुन - लालसा - रइगेल्ली रतितृष्णेति केचित्' ( दे ७।३ वृ ) । रइलक्ख -- १ रति-संयोग, मैथुन । २ नितम्ब ( दे ७।१३ ) । रइल्लय -- प्रियंगु - आहाकम्माणि भक्खाणि रइल्लयाणि' ( ओटी पृ ३५६ ) । रंखोलिर -- झूलने वाला ( पा ५३२ ) । रंग -- त्रपु, रांगा, धातु- विशेष ( दे ७।१ ) । रंघड -- दरिद्र - किं एतेहिं रंघडकुलेहिं ? इस्सरकुलेहिं...?' ( दअचू पृ १३१ ) । रंजण -- १ घट ( दे ७।३ ) । २ कुण्ड - रंजणं कुण्डमिति केचित्' ( वृ ) । रंढुअ -- रज्जु ( दे ७।३ ) । रंभ -- आन्दोलनफलक, झूले का पाटिया ( दे ७।१ ) । रकि -- भाण्ड, उपकरण-विशेष - 'कुंडगतं वा उक्खलिगतं वा रकिगतं वा' ( अंवि पृ २१४ ) । रक्ख -- राख, भस्म ( आवहाटी १ पृ २१४ ) । रगडा -- एक सन्निवेश का नाम ( कु पृ ४५ ) । रगतिया -- वाद्य-विशेष ( जीव ३।५८८ ) । रग्गय -- कौसुंभ वस्त्र ( दे ७।३ ) । रच्छाभित्ति -- भोज्य पदार्थ-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । रच्छामअ -- कुत्ता ( दे ७।४ ) । रज्जवइ -- स्वतंत्र रज्जवई राया भविस्सइ - 'रज्जवइ त्ति स्वतंत्र इत्यर्थ:' ( भ ११।१३४ ; टी पृ ९९४ ) । रज्जुग -- लिखने का काम करने वाला ( दश्रुचू प ६५ ) । रज्जुगसभा -- १ लेखक - गृह ( श्रु ८।८३ ) । २ शुल्क-गृह । रज्जुगोज्ज -- संघर्ष - 'रज्जुगोज्जं करोति संघसं करोतीत्यर्थः' ( आवचू २ पृ ४३ ) । रडिय -- कलहयुक्त - 'कल हाइअं रडिअं' ( पा ७४६ ) । रणरणय -- १ अधृति - 'अदिही अरई य रणरणओ' ( पा ४४७ ) । २ उत्सुकता ( दे १।१३६ ) । ३ निःश्वास । रण्हक -- दीर्घ, लंबा ( अंवि पृ ११५ ) । रत्तक्खर -- सीधु, मद्य-विशेष ( दे ७।४ ) । रत्तच्छ -- १ हंस । २ व्याघ्र ( दे ७।१३ ) । रत्तय -- बंधूक वृक्ष का फूल ( दे ७।३ ) । रति -- आज्ञा ( दे ७।१ ) । रत्तीअ -- नापित, नाई ( दे ७।२ ) । रद्धि -- प्रधान, मुख्य ( दे ७।२ ) । रप्फ -- १ वल्मीक, बांबी ( निचू १ पृ ६६ ; दे ७।१ ) । २ रोग-विशेष । रप्फग -- खराब फोडा- दुट्ठवणो रप्फगादि, किरियाए विणा ण विसुज्झति ण णप्पति' ( निचू २ पृ २४ ) । रप्फडिआ -- गोह, गोधा ( दे ७।४ ) । रप्फा -- बांबी, वल्मीक ( पा ४७६ ) । रब्बा -- १ राब, यवागू - एहि किल शीतलीभवति रब्बा' ( आवहाटी १ पृ ६१ ) । २ रूक्ष पदार्थ ( बृटी पृ ४१४ ) । रयणिद्धय -- कुमुद ( दे ७।४ ) । रयवली -- बाल्य, शिशुत्व ( दे ७।३ ) । रल्लक -- १ त्रीन्द्रिय जीव-विशेष (आवटि प २५ ) । २ एक प्रकार के मृग या भेड़ के रोओं से बना कंबल ( कु पृ १८ ) । रल्लग -- प्रावरण-विशेष ( जीव ३।५९५ ) । रल्ला -- १ दही में उत्पन्न होनेवाला त्रीन्द्रिय प्राणी ( आवचू २ पृ १०१ ) । २ प्रियंगु, मालकंगनी ( दे ७।१ ) । रल्लिका -- एक प्रकार का कंबल ( कु पृ १८ ) । रवअ -- मंथान-दंड, बिलौने की लकड़ी ( दे ७।३ ) । रविउ -- टुकड़े-टुकड़े किया हुआ - रविउ' त्ति द्रावितः खण्डशो नीतो मयाऽसौ' ( नंदीटि पृ १०३ ) । रसद्द -- चूल्हे का मूल भाग ( दे ७।२ ) । रसय -- वसा, मेद आदि ( बृभा १७११ ) । रसाअ -- भ्रमर, भौंरा - 'रसाऊ तथा रोलंबो भ्रमरः । रसाअशब्दोऽयमित्यन्ये । यद् गोपालः - अलिरपि रसाओ स्यात्' ( दे ७:२ वृ ) । रसाउ -- भ्रमर, भौंरा ( दे ७।२ ) । रसाल -- खाद्य-विशेष - 'खंड तुलादसभागो दस खंडपला हवंति णायव्वा । ते तम्मि पक्खिवित्ता मज्जिय णामं रसालोत्ति ॥' ( पंक ७३५ ) । रसाला -- पेय-विशेष, मार्जिता ( दे ७।२ ) । रसालु -- राजा के लिए निर्मित खाद्य पदार्थ-विशेष - दो पल घी, एक पल मधु, आधा आढक दही, बीस मिर्च तथा दस पल चीनी से बना हुआ पाक-विशेष - 'दो घतपला महुपलं दहिस्स अद्धाढ्यं मरिय वीसा। खंडतुलादसभागो, एस रसालू निवइजोगो ॥' ( पंक ७३४ ) । रसिगा -- पीव ( व्यभा ६ टी प ६१ ) । रसिय -- रसी, पीव - किडिभं जंघासु कालाभं रसियं वहति' ( निचू ३ पृ ६२ ) । रसिया -- १ पीव ( प्र १।२३ ) । २ छंद-विशेष । रसोतीगिह -- रसोईघर ( अंवि पृ १३६ ) । रहिअ -- १ एकाकी, अकेला - रहिए विहारइत्ता, जहारिहं देंति पच्छित्तं' ( जीभा ६६१ ) । २ रहा हुआ, स्थित । राअ -- चटक, गौरैया पक्षी ( दे ७।१ ) । राअला -- प्रियंगु, मालकंगनी ( दे ७।१ ) । राइल्ल -- १ रंगा हुआ ( निचू २ पृ २१२ ) । २ शोभित ( कु पृ १२८ ) । राइल्लेऊण -- चीरकर - 'ओट्टियं सयलगं राइल्लेऊण रयणाणि छूढाणि' ( आवहाटी १ पृ २८३ ) । राडि -- १ चिल्लाहट - 'ते हम्मंता राडिं करेंति' ( उसुटी प २६ ) । २ कलह ( उशाटी प १०० ) । 'राड़' ( राजस्थानी ) । ३ संग्राम ( दे ७।४ ) । राणयभोत्ति -- राज्य - 'राणयभोत्ती रज्जं भण्णति' ( निचू १ पृ १३३ ) । राणिया -- रानी ( निचू १ पृ १७ ) । रातण -- राजादन फल ( अंवि पृ २३८ ) । राती -- संध्या - 'संझा राती भणिया ( दश्रुचू प १५ ) । रायंछुअ -- वेतस का पेड़ ( पा ८९९ ) । रायंबु -- १ वेतस, बेंत का पेड़ । २ शरभ, अष्टपाद पशु ( दे ७।१४ ) । रायगइ -- जलौका, जौंक ( दे ७।५ ) । राला -- प्रियंगु, मालकांगनी ( आवहाटी १ पृ २८३; दे ७।१ ) । रावग -- राजपुरुष ( निचू ३ पृ ४३६ ) । राविअ -- आस्वादित ( दे ७।५ ) । रावित -- रसी, पीव ( आवमटी प २९७ ) । राह -- १ दयित, प्रिय । २ निरंतर । ३ शोभित । ४ सनाथ । ५ पलित, सफेद केशों से युक्त ( दे ७।१३ ) । ६ रुचिर, सुन्दर ( पा १४ ) । रिंगणी -- वल्ली-विशेष, कण्टकारिका ( दे २।४ ) । रिंगिअ -- भ्रमण ( दे ७।६ ) । रिंगिणिका -- वल्ली-विशेष, कण्टकारिका - 'रिंगिणिका कंटको अश्वशरीरेऽनुप्रविष्ट:' ( व्यभा २ टी प ४४ ) । रिंगिसिगि -- घर्षण - वाद्य, घर्षण से स्वर उभारने वाला वाद्य ( जंबूटी प १०१ ) । रिंछोली -- श्रेणि, पंक्ति- 'कुंदुज्जलपवरदसणरिंछोलिं' ( नंदीटि पृ १०९ ; दे ७।७ ) । रिंडी -- कन्था की भांति फटा वस्त्र ( दे ७।५ ) । रिकिसिक -- पक्षी-विशेष ( अंवि पृ ६२ ) । रिकिसिका -- आपस के संघट्टन से बजने वाला वाद्य-विशेष - 'घट्टिज्जंतीणं रिकिसिकाणं' ( आवचू १ पृ ३०९ ) । रिक्क -- अल्प - 'जाओ रिक्को मे वित्तवयो' ( निचू २ पृ ३२६; दे ७।६ ) । रिक्कविरिक्क -- अत्यन्त भारहीन - 'तुमं पुण समणगस्स रिक्कविरिक्कस्स मग्गं देसि ' ( आवचू १ पृ ५३९ ) । रिक्किअ -- शटित, सडा हुआ ( दे ७।७ ) । रिक्ख -- १ वृद्ध ( दे ७।६ ) । २ बुढापा - 'रिक्खो वय:परिणाम इति केचित्' ( वृ ) । रिक्खण -- १ उपलंभ, अधिगम । २ कथन ( दे ७।१४ ) । रिक्खा -- थकान - :अण्णा रिक्खाओ अवणेइ' ( कु पृ १०१ ) । रिगिसिगि -- वाद्य-विशेष ( आवचू १ पृ १८७ ) । रिगिसिगिआ -- वाद्य-विशेष - 'घर्ष्यमाणवादित्र-विशेषः' ( जंबूटी प १०१ ) । रिग्ग -- प्रवेश ( दे ७।५ ) । रिच्छ -- वृद्ध ( दे ७।६ ) । रिच्छभल्ल -- भालू ( दे ७।७ ) । रिट्ठ -- १ कौआ ( दे ७।६ ) । २ दैत्य-विशेष ( से १।३ ) । रिणकंठ -- एक जनपद, जहां की भूमि वर्षाकाल में पानी से भर जाती है और शेष समय में उसमें दरारें पड़ जाती हैं ( निचू २ पृ १५० ) । रित्तूडिअ -- शाटित, झडवाया हुआ ( दे ७।८ ) । रिद्ध -- पका हुआ ( दे ७।६ ) । रिद्धि -- राशि, समूह ( दे ७।६ ) । रिप्प -- पृष्ठ, पीठ ( दे ७।५ ) । रिमिण -- रोदनशील ( दे ७।७ ) । रिरिअ -- लीन, आसक्त ( दे ७।७ ) । रीढ–अवगणना, अनादर ( दे ७।८ ) । रीढा -- यदृच्छा, इच्छा के अनुसार ( बृभा २१६२ ) । रुअरुइआ -- उत्कण्ठा ( दे ७।८ ) । रुंचण -- रूई से कपास को अलग करने की क्रिया ( पिनि ५८८ ) । रुंचणी -- घरट्टी, दलने का प्रस्तर-यंत्र ( दे ७।८ ) । रुंचिय -- पिष्ट, पीसा हुआ ( बृटी पृ ३९२ ) । रुंजग -- वृक्ष - 'कुहा महीरुहा वच्छा रोवगा रुंजगाई य' ( दनि १ ) । रुंटणया -- अवज्ञा ( पिनि २१० ) । रुंटणा -- अवज्ञा - 'बहूहिं खिज्जणियाहि य रुंटणाहि य उवलंभणाहि य' ( ज्ञा १।१८।१० ) । रुंटणिया -- १ अवज्ञा, अनादर । २ रोदन क्रिया (ज्ञा १।९६।६७ ) । रुंढ -- आक्षिक, जूआरी ( दे ७।८ ) । रुंढिअ -- सफल ( दे ७।८ ) । रुंद -- १ दीर्घ - रुंदाई पलोएमाणे' ( भ १५।१२० ) । २ विस्तीर्ण ( औप ४६ ) । ३ महान्, विशाल - 'संघसमुद्दस्स रुंदस्स' ( नंदी गा ११ ) । रुंद्र - विशाल ( कन्नड़ ) । ४ विपुल । ५ वाचाल ( दे ७।१४ ) । रुक्क -- बैल की भांति शब्द करना - रुक्कं ति सद्दकरणं' ( अनुद्राचू पृ १३ ) । रुगण -- कृष्ण वस्तु-विशेष - 'अंजणं कज्जलं व त्ति रुगणं' ( अंवि पृ ९२ ) । रुण्णमाला -- कंठ या वक्षस्थल का आभूषण ( कु पृ १९४ ) । रुप्फय -- सर्प आदि के काटने पर किया जाने वाला उपचार विशेष'तहविय अठायमाणो गोणसखइयाइ रुप्फए वावि । कीरइ तयंगछेओ समट्ठिओ सेसरक्खट्ठा' ( आवनि १४२४ ) । रुल्ल -- विकलांग - 'रुल्ला अजंगम च्चिय पंगुलया चलण-परिहीणा' ( कु पृ ४० ) । रूय -- रूई, तूल ( भ ११।१३३; दे ७।९ ) । रूरुइअ -- काम का आवेग, उत्कंठा - मुरुमुरिअं रूरुइअं' ( पा ५१८ ) । रूवमिणी -- रूपवती स्त्री ( दे ७।९ ) । रूवि -- गुच्छ-विशेष, अर्क-वृक्ष ( प्रज्ञा १।३७।१; दे ७।९ ) । रेअविअ -- १ शून्य किया हुआ, क्षणीकृत ( दे ७।११ ) । २ मुक्त, व्यक्त ( वृ ) । रेंकिअ -- १ आक्षिप्त । २ लीन । ३ लज्जित ( दे ७।१४ ) । रेक्खण -- १ उपलंभ, अधिगम । २ कथन ( दे ७।१४ वृ ) । रेग -- विविक्त अवसर - 'रेगो नत्थि दिवसतो रंतिपि न जग्गते समुव्वातो' ( व्यभा ६ टी प २५ ) । रेणि -- पंक, कर्दम ( दे ७।९ ) । रेल्लग -- प्रवाह - 'जह वप्प - कूव- सारणि नइरेल्लगसालि रोप्पाई' ( आवहाटी २ पृ ६१ ) । रेल्लण -- प्लावन ( पिटी प १६४ ) । रेल्लिया -- जल प्रवाह से युक्त ( निचू १ पृ ६१ ) । रेवई -- मातृका, देवी ( दे ७।१० ) । रेवज्जिअ -- उपालब्ध, जिसको उलाहना दिया हो वह ( दे ७।१० ) । रेवट्ट -- धान्य-विशेष ( आचू पृ ३३८ ) । रेवय -- प्रणाम, नमस्कार ( दे ७।९ ) । रेवलिआ -- धूल का आवर्त्त ( दे ७।१०) । रेसणिया -- कांस्य-भाजन-विशेष ( पा ८१५ ) । रेसणी -- १ अक्षि-निकोच । करोटिका, एक प्रकार का कांस्य भाजन ( दे ७।१५ ) । रेसि -- लिए, निमित्त, वास्ते - पंचह दिवसह रेसि राय ! मं पाविहिं वट्टह' ( उसुटी प १२५ ) । रेसिअ -- छिन्न, काटा हुआ ( दे ७।९ ) । रेहंत -- शोभित होता हुआ ( ज्ञा १।१।२४ ) । रेहिअ -- जिसकी पूंछ काट दी गई हो वह, छिन्नपुच्छ ( दे ७।१० ) । रेहिर -- शोभित ( कु पृ ११७ ) । रोअणिआ -- डाकिनी ( दे ७।१२ ) । रोंकण -- रंक, निर्धन ( दे ७।११ ) । रोक्कणि -- १ शृंगी, सींग वाला प्राणी । २ नृशंस, क्रूर ( दे ७।१६ ) । रोक्कणिअ -- १ शृंगी, सींग वाला प्राणी । २ नृशंस ( दे ७।१६ वृ ) । रोघस -- रंक, निर्धन ( दे ७।११ ) । रोज्झ -- रोझ, नील गाय ( प्रज्ञा १।६४ ; दे ७।१२ ) । रोट्ट -- चावल का आटा ( निभा १४८; दे ७।११ ) । रोट्टग -- रोटी - 'लभिहिसि तुमं अज्ज घयगुलसम्पन्नं महंतं रोट्टगं ( उसुटी प ६३ ) । रोड -- १ अनादर । २ हैरानी ( निचू १ पृ १६४ ) । ३ गृहप्रमाण, घर का मान ( दे ७।११ ) । रोडी -- १ इच्छा । २ व्रणी की शिविका ( दे ७।१५ ) । रोढ -- भूमिगत स्रोत से रुका हुआ पानी ( अंवि पृ २६६ ) । रोद्ध -- १ कूणिताक्ष । २ मल ( दे ७।१५ ) । रोमराइ -- जघन, नितम्ब ( दे ७।१२ ) । रोमलयासय -- उदर, पेट ( दे ७।१२ ) । रोमूसल -- जघन, नितम्ब ( दे ७।१२ ) । रोर -- १ कोलाहल । २ रंक, निर्धन ( उसुटी प ८६ ; दे ७।११ ) । रोल -- १ कोलाहल - 'वंदणवोलं रोल करेंता विसंति' ( निचू २ पृ १३ ) । २ कलह ( ओटी प १०३; दे ७।१५ ) । रोलंब -- भ्रमर ( दे ७।२ ) । रोसाणिय -- मृष्ट, परिमार्जित ( पा ६९४ ) । रोह -- १ प्रमाण । २ नमन ( दे ७।१६ ) । ३ मार्गण - रोहो मार्गण इत्यन्ये' ( वृ ) । रोहणिक -- त्रीन्द्रिय जंतु-विशेष - 'कुंथु-पिपीलिका-उपचिक-रोहणिक-तेवरुक' ( अंवि पृ २६७ ) । रोहिणिक -- १ द्वीन्द्रिय जंतु-विशेष ( अंवि पृ २२९ ) । २ अरुण रंग का पक्षी ( अंवि पृ २२५ ) । रोहिणीय -- त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष - 'ओवइया रोहिणीया कुंथू पिपीलिया' ( प्रज्ञा १।५० ) । रोहिय -- रोझ, नील गाय ( प्र १।६ ; दे ७।१२ ) । रोहियंस -- तृण-विशेष ( प्रज्ञा १।४२ ) । ल लइअ -- १ परिहित, पहना हुआ - 'एकावलि-कंठलइय-वच्छा' ( समप्र २४१; दे ७।१८ ) । २ अंग में पिनद्ध ( वृ ) । लइअल्ल -- वृषभ ( दे ७।१९ ) । लइणी -- लता ( दे ७।१८ ) । लउस -- वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ २३८ ) । लउसिया -- देश-विशेष की दासी ( ज्ञा १।१।८२ ) । लंका -- १ शरीर का एक अवयव - कंडरा पण्हिका लंका' ( अंवि पृ ६६ ) । २ शाखा । लंखक -- गायक, चंडाल-विशेष जो गाना गाते हैं ( व्यभा १० टी प ६६ ) । लंगंती -- धीरे-धीरे चलती हुई, लंगडाती हुई - 'करिणी••••••लंगंती ओसरइ' ( उशाटी प ५३ ) । लंगवलग -- धान्य-विशेष ( निचू २ पृ १०९ ) । लंच -- कुक्कुट, मुर्गा ( दे ७।१७ ) । लंचापलि -- वृक्ष की एक जाति (अंवि पृ ७० ) । लंचिक्क -- हीरा, माणक आदि - 'हयगयलंचिक्कारं तेणेंतो तेणओ उ उक्कोसो' ( निभा ३६५४ ) । लंछ -- चोर-विशेष ( विपा १।१।४९ ) । लंद -- काल, समय - लंदं तु होइ कालो । समयपरिभाषया लन्दशब्देन कालो भण्यते' ( प्रसा ६११ टी प १७३ ) । लंदय -- गाय आदि पशुओं का भोजन-पात्र ( प्रसा ११६ ) । लंपिक्क -- १ चोर । २ लुब्ध, आसक्त ( कु पृ १७२ ) । लंपिक्ख -- चोर ( दे ७।१६ ) । लंब --- गोवाट, गायों का बाड़ा ( दे ७।२६ ) । लंबण -- १ एक प्रकार का भोज्य पदार्थ ( पंक ७७८ ) । २ कवल ( पंव ३५८ ) । ३ हाथ ( ओटी पृ २१ ) । लंबा -- १ केश, बाल ( दे ७।२६ ) । २ वल्लरी । लंबाली -- पुष्प-विशेष ( दे ७।१९ ) । लंबूस -- कन्दुक के आकार का एक आभरण ( आवचू १ पृ २२४ ) । लंबूसग -- कन्दुक के आकार का एक आभरण - 'ते णं दामा तवणिज्जलंबूसगा' ( राज ४० ) । लंभण -- मत्स्य की एक जाति ( विपाटी प ७९ ) । लंभूसास -- वाद्य-विशेष ( अंवि पृ १४७ ) । लकड -- आभरण-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । लक्कुड -- लकड़ी, यष्टि ( दे ७।१९ ) । लक्ख -- १ छद्म ( निचू १ पृ १२७ ) । २ शरीर ( दे ७।१७ ) । लगंड -- वक्र काष्ठ ( उसुटी प ३४६ ) । लगड्ड -- लकड़ी का भारा, लक्कड - 'गोणातिपिट्ठीए लगड्डादिएसु आणिज्जति' ( निचू २ पृ २०९ ) । लग्ग -- १ असंबद्ध, ऊंची-नीची-सडिय-पडिय-भग्गलग्गाओ' ( आचू पृ ३१८; दे ७।१७ वृ ) । २ चिह्न ( दे ७।१७ ) । लचय -- गण्डुत् नामक तृण ( दे ७।१७ ) । लज्जालुइणी -- १ लज्जावती ( प्रा २।१७४ ) । २ कलहकारिणी स्त्री । लट्ट -- कुसुंभ धान्य ( बृभा २०९४ ) । लट्टणी -- यष्टि ( आवहाटी १ पृ २७८ ) । लट्टय -- १ कुसुम्भ - 'लट्टयवसणा कहं होही' ( दे ७।१७ ) । २ खसखस आदि का तेल । लट्टा -- कुसुंभ धान्य ( बृटी पृ ६०३ ) । लट्ठ -- १ सुन्दर, मनोज्ञ ( दश्रु ८।२२; दे ७।२६ ) । २ अन्यासक्त, दूसरे में आसक्त । ३ प्रियभाषी ( दे ७।२६ ) । ४ प्रधान, मुख्य । लट्ठिय -- खाद्य-विशेष - 'जेट्टाहिं लट्ठिएणं भोच्चा कज्जं साहिंति' ( सूर्य १०।१७ ) । लडभ -- मनोज्ञ, सुन्दर ( बृटी पृ ६५३ ) । लडह -- १ सुन्दर, लावण्य युक्त - 'लडहसुकुमाल-मउयरमणिज्जरोमराइं' ( दश्रु ८।२४; दे ७।१७ ) । २ लटकते हुए शिथिल बन्धन युक्त ( जानुवाला ) । ३ गाड़ी के पिछले भाग में लटकता हुआ काष्ठ जो गाड़ी के अग्र भाग की रक्षा करता है - 'इह लडहशब्देन गन्त्र्याः पश्चाद्भागवर्ति तदुत्तराङ्गरक्षणार्थं यत्काष्ठं तदुच्यते' ( उपाटी पृ १०२ ) । ४ विदग्ध, विद्वान् ( दे ७।१७ वृ ) । ५ कोमल । ६ प्रधान । लडहक्खमिय -- विघटित, वियुक्त ( दे ७।२० ) । लड्डुग -- लड्डू, मोदक ( आवचू १ पृ ४०९ ) । लड्डुय -- लड्डू, मोदक ( बृभा ६१४६ ) । लढिय -- स्मृत, याद किया हुआ - 'भरिअं लढियं सुमरिअं' ( पा ५६४ ) । लत्तग -- आतोद्य-विशेष - 'घणं लत्तगादी' ( सूचू २ पृ ३६० ) । लत्ता -- पाद-प्रहार, लात- 'लत्ताहि य हंतुं गता' ( निचू २ पृ ६० ) । लत्तिका -- आतोद्य-विशेष ( आवचू १ पृ ३०९ ) । लत्तिगा -- यष्टि ( दश्रुचू प ९१ ) । लत्तिया -- १ वाद्य-विशेष ( नि १७।१३८ ) । २ पार्ष्णिप्रहार - 'लत्तिय ति कंसिकाः, ता हि आतोद्यत्वेन न विवक्षिता इति, अथवा लत्तियासद्दे त्ति पार्ष्णिप्रहारशब्दः' ( स्थाटी प ५९ ) । लद्दितय -- लदा हुआ, भारयुक्त - 'उट्टो वा लद्दितओ' ( सूचू १ पृ ११९ ) । लद्वीय -- स्वस्थ - 'वेज्जेण संसोहण-वमण-विरेयणकिरियाहिं णिक्कसाएत्ता लद्धीओ कओ' ( निचू ४ पृ ३०६ ) । लप्पसिया -- लापसी, एक प्रकार का मिष्टान्न ( प्रसा २३४ ) । लय -- नव दंपती का आपस में नाम लेने का उत्सव- णवदंपईण अण्णुण्णणामगहणोसवम्मि लयं' ( दे ७।१६ ) । लयण -- १ तनु । २ मृदु । ३ वल्ली, लता ( दे ७।२७ ) । लयणी -- लता ( पा ३३४ ) । लयापुरिस -- वह स्थान जहां पद्महस्त वधू का चित्रण किया जाए - 'पउमकरा जत्थ वहू लिहिज्जए सो लयापुरिसो' ( दे ७।२० ) । लल्ल -- १ उत्सुक, तत्पर, सस्पृह । २ न्यून ( दे ७।२६ ) । लल्लवक -- १ भयंकर - लल्लक्कं वा सीतं पडतं ण सहंति' ( निचू ३ पृ १६७ ; दे ७।१८ ) । ललकार, आह्वान । लल्लाय -- अस्पष्ट - वाक्, 'लल्लर' वाणी से बोलने वाला - 'आरियकुले वि जाया अंधा बहिरा य होंति लल्लाया' ( कु पृ ४० ) । लल्लि -- खुशामद ( प्रटी प १०९ ) । लल्लिरी -- मछली पकड़ने का जाल-विशेष ( विपाटी प ८५ ) । लवय -- गोंद ( पा ८८६ ) । लवइत -- अंकुरित ( आवचू १ पृ ४७७ ) । लवइय -- पल्लवित ( भ १।५० ) । लवली -- लता-विशेष ( कु पृ १६७ ) । लसइ -- कंदर्प, काम ( दे ७।१८ ) । लसक -- तरु क्षीर, पेड़ का दूध ( दे ७।१८ ) । लसिया -- पीब, रसी ( अंवि पृ १७७ ) । लसुअ -- तेल ( दे ७।१८ ) । लहुअवड -- न्यग्रोध, बरगद का वृक्ष ( दे ७।२० ) । लहुइय -- तोला हुआ ( पा ५३९ ) । लाइम -- १ लाजा के योग्य, खोई के योग्य । २ रोपणयोग्य, बोने लायक ( आचूला ४।३३ ) । लाइय -- १ भूमी को गोबर आदि से लीपना ( प्रज्ञा २।४१ ) । २ गृहीत ( बृटी पृ १०७; दे ७।२७ ) । ३ आभूषण । ४ चर्मार्ध, आधी चमड़ी ( दे ७।२७ ) । घुष्ट ( से २।२६ ) ॥ लाइल्ल -- वृषभ ( दे ८।१९ ) । लाडल्लोइय -- गोमय आदि से भूमि का लेपन और खड़ी आदि से भींत आदि का पोतना ( दश्रु ८।६२ ) । लाउल्लोपिक -- लिपाई-पुताई ( अंवि पृ १८३ ) । लाउल्लोयिक -- लिपाई-पुताई ( अंवि पृ २१० ) । लागतरण -- भूने हुए चावलों से बनाया गया पेय-विशेष ( जीभा ६०५ ) । लाजिका -- वेश्या ( अंवि पृ ६८ ) । लाढ -- १ आत्मनिग्रही मुनि- 'लाढे त्ति साधुणो अक्खा' ( निचू ४ पृ १२५ ) ।२ निर्दोष आहार से संयम - यात्रा का निर्वाह करने वाला मुनि । ३ प्रशस्य - 'लाढयति प्रासुकेषणीयाहारेण साधुगुणैर्वा आत्मानं यापय तीति लाढ:, प्रंशसाभिधायि वा देशीपदमेतत् ( उशाटी प १०७ ) । ४ प्रधान ( उशाटी प ४१४ ) । ५ एक जैन आचार्य । लाढय -- साधु-गुणों से जीवन यापन करने वाला ( उचू पृ ६६ ) । लाणी -- पुष्प-विशेष ( अंवि पृ १०४ ) । लातुल्लोइय -- गोबर से भूमी का लेपन करना तथा खड़ी आदि से भींत को पोतना ( आवचू १ पृ २२६ ) । लाम -- सुन्दर ( जंबू ३।१७८ ) । लामंजय -- पानी को शीतल एवं सुगंधित करने वाला घास-विशेष ( पा ३८५ ) । लामा -- डाकिनी ( दे ७।२१ ) । लाय -- १ आग - 'दिण्णाओ लायंजलीओ । समप्पिया य तस्स करंजली कुवलय मालाए' ( कु पृ १७१ ) । २ भूना हुआ धान - 'लाया नाम वीहिया भुज्जिया' (जीविप पृ ३४ ) । लायतर -- भूने हुए आर्द्र व्रीहि का तंडुल के साथ बनाया जाने वाला पेय ( निभा ४८७ ) । लायतरण -- चावल से बना पेय पदार्थ - 'कते वा विकिट्ठतवे पारणए लायतरणादी पिएज्ज' ( निचू १ पृ १६२ ) । लालंपिअ -- १ प्रवाल । २ घोड़े की लगाम । ३ आक्रन्दित ( दे ७।२७ ) । लालस -- १ मृदु ( दे ७।२१ ) । २ इच्छा ( वृ ) । लाला -- १ दीपक की बाती ( बृभा ३४६५ ) । २ लार - अहिस्स मूसगस्स वा उस्सिंघमाणस्स लाला पडेज्ज' ( निचू ४ पृ १३३ ) । लाली -- दीपक की बाती ( निभा ५३७७ ) । लावंज -- सुगंधित तृण-विशेष, उशीर ( दे ७।२१ ) । लावणी -- गुड़ - निष्पन्न खाद्य पदार्थ-विशेष - गुलकत तह लावणी य बोद्धव्वा ( पंक ७३२ ) । लासयविहअ -- मयूर ( दे ७।२१ ) । लासिया -- देश-विशेष की दासी ( ज्ञा १।१।८२ ) । लाहण -- भोज्य का एक प्रकार ( दे ७।२१ ) । लाहणय -- प्रहेणक, उत्सव के उपलक्ष में किसी दूसरे घर से भेंटस्वरूप प्राप्त भोजन-विशेष ( पिटी प ६३ ; दे ७।२१ वृ ) । लिंक -- बालक ( दे ७।२२ ) । लिंकिअ -- १ आक्षिप्त । २ लीन ( दे ७।२८ ) । लिंगिच्छी -- वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । लिंछ -- १ चूल्हा ( स्था ८।१० ) । २ अग्नि-विशेष ( स्थाटी प ४१९ ) । लिंड -- १ हाथी की विष्ठा ( ज्ञा १।१।१५९ ) । २ शैवालरहित पुराना पानी - 'अशैवालपुराणजलम्' ( प्रटी प १६३ ) । लिंडा -- ऊंट, बकरी आदि की विष्ठा, मेंगनी - उब्भामिगा य महिला जावगहेउंमि उंटलिंडाई' ( दनि ८८ ) । लिंडिया -- विष्ठा, लिंडी, मेंगनी ( नंदीटि पृ १३४ ) । लिंब -- १ कोमल, मृदु - 'णवतयकुसंतलिंब केसरपच्चत्थुयाभिरामे' ( राज ३७ ) । २ बाल उरभ्र का रोओं सहित चर्म - बालोरभ्रस्योर्णायुक्ता कृत्तिः' ( ज्ञाटी प १७ ) । ३ आस्तरण-विशेष ( ज्ञा १।१।१८ ) । लिक्ख -- १ कोमल ( राज ३७ ) । २ लघु स्रोत ( दे ७।२१ वृ ) । लिक्खा -- १ परिमाण-विशेष ( अनुद्वा ३९५ ) । २ छोटा स्रोत ( दे ७।२१ ) । लिच्च -- कोमल ( जीव ३।३११ ) । लिच्छारिय -- लिप्त ( आवभा २२१ ) । लिट्टिअ -- १ खुशामद, चाटुकारिता ( दे ७।२२ ) । २ लम्पट । लित्त -- कोमल ( जीवटी प २१० ) । लित्ति -- खड्ग आदि शस्त्रों का दोष ( दे ७।२२ ) । लित्थारिय -- खरंटित, लिप्त ( बृभा ५१५ ) । लिव्व -- कोमल ( ज्ञा १।१।१८ पा ) । लिसय -- तनूकृत, क्षीण ( दे ७।२२ ) । लिहिअ -- १ तनु । २ सुप्त ( दे ७।२८ ) । लीच्छुभ -- तुषशाला, कुंभकार जहां जौ, गेहूं आदि का पलाल एकत्रित करता है - 'लीच्छुभ त्ति तुससाला कुंभकारा जत्थ तुसा ठबेंति' ( आचू पृ ३६९ ) । लीय -- बच्चा ( कु पृ ४५ ) । लील -- यज्ञ ( दे ७।२३ ) । लीव -- बालक ( दे ७।२२ ) । लीसना -- सन्धान, जोड़ - 'लीसना नाम सन्धनैव' ( सूचू १ पृ १५९ ) । लुअ -- छिन्न, काटा हुआ ( दे ७।२३ ) । लुंक -- सुप्त ( दे ७।२३ ) । लुंकडी -- लोमड़ी ( प्रज्ञाटी प २५४ ) । लुंकणिया -- तिरोभाव ( दे ७।२४ वृ ) । लुंकणी -- लुकना, छिपना ( दे ७।२४ ) । लुंख -- नियम ( दे ७।२३ ) । लुंखाअ -- निर्णय - 'रे अलस ! इत्थ लीलो होहि त्ति सलुंखयाण लुंखाओ' ( दे ७।२३ ) । लुखिय -- १ मलिन ( से १५।४२ ) । २ स्पृष्ट ( से १।२१ ) । लुंठण -- १ कोलाहल । २ कलह ते - 'विसेसलुंठणाणि विग्घाणि करेंति' ( उशाटी प १४९ ) । लुंबिया -- गुच्छा - 'न दुक्करं तोडिय अंबलुंबिया, न दुक्करं नच्चिउ सिक्खियाए । तं दुक्करं तं य महाणुभाव, जं सो मुणी पमणवणंमि वुच्छो ॥ ( आवहाटी २ पृ १३८ ) । लुंबी -- १ स्तबक, फूलों का गुच्छा (-भटी प ३७; दे ७।२८ ) । २ लता ( ज्ञाटी प ६; दे ७।२८ ) । लुक्क -- १ लुञ्चित, मुण्डित ( पिनि २१७ ) । २ छिपा हुआ - बोहिगादिभएण णस्संतो लुक्को' ( निचू ३ पृ ३५५ ) । ३ रोगी ( प्रा २।२ ) । ४ भग्न । ५ सुप्त । लुक्कणी -- लुकना, छिपना ( दे ७।२४ पा ) । लुक्ख -- वृक्ष ( उशाटी प १३८ ) । लुग्ग -- १ शुष्क ( व्यभा ५ टी प ७ ) । २ भग्न ( दे ७।२३ ) ।३ रोगी ( प्रा ४।२५८ ) । लुरणी -- वाद्य-विशेष ( दे ७।२४ ) । लूया -- १ वात-रोग ( कु पृ ४१ ) । २ मृगतृष्णा- 'कथइ लूयाए हओ' ( कु पृ २७४; दे ७।२४ ) । लेंड -- हाथी आदि की लीद - 'ताहे तत्थ नलगिरिणा मुत्तियं लेंडं च मुक्कं' ( आवचू १ पृ ४०० ) । लेंडि -- लीद ( पंक १५४१ ) । लेंडिया -- लिंडी, लीद ( आवहाटी १ पृ २७८ ) । लेखा -- वस्त्र-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । लेच्छारिय-- लिप्त, खरंटित - 'लेच्छारियतुंडेण' ( निभा ६१०८ ) । लेडुअ -- ढेला ( पा ४०३ ) । लेडुक्क -- १ लम्पट । २ लोष्ट, रोड़ा ( दे ७।२९ ) । लेड्डु -- पत्थर का टुकड़ा, ढेला ( आवहाटी १ पृ १४६ ) । लेढिअ -- स्मरण, स्मृति ( दे ७।२५ ) । लेढुक्क -- लोष्ट, मिट्टी का ढेला ( दे ७।२४ ) । लेण -- मृतक की स्मृति में बनाया जाने वाला देवकुल- "मडयस्स उवरि जं देवकुलं सं लेणं भण्णति' ( निचू २ पृ २२५ ) । लेत्थरिय -- लिप्त ( निचू २ पृ ३०१ ) । लेत्थारण -- लेप ( निभा १८७४ ) । लेत्थारिय -- खरंटित, लेप से युक्त - 'लेत्थारियाणि देशीपदमेतत् खरंटितानि' ( बृटी पृ १५० ) । लेलु -- मिट्टी का ढेला ( द ४।१८ ) । लेस -- १ स्त्री की योनि ( व्यभा ६ टी प ६६ ) । २ लिखित । ३ आश्वस्त । ४ निद्रा । ५ निःशब्द ( दे ७।२८ ) । लेहड -- लंपट ( दे ७।२५) । लेहुड -- लोष्ट, मिट्टी का ढेला ( दे ७।२४ ) । लोअडी -- कंबल ( प्रा ४।४२३ ) । लोआणी -- वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञाटी प ३६ ) । लोंक -- सुप्त, सोया हुआ ( दे ७।२३ वृ ) । लोट्ट -- १ कच्चा चावल ( दअचू पृ ११० ) । २ हाथी का छोटा बच्चा ( आवहाटी २ पृ १६५ ) । लोट्टक -- कुमार-अवस्था वाला हाथी ( ज्ञाटी प ७२ ) । लोट्टय -- हाथी का छोटा बच्चा ( ज्ञा १।१।१५७ ) । लोट्टिय -- उपविष्ट ( दे ७।२५ ) । लोट्टिया -- १ हाथी की छोटी बच्ची ( ज्ञा १।१।१५७ ) । २ काष्ठपात्र ( निचू ३ पृ ३४३ ) । लोट्ठ -- पत्थर, लेष्टु ( व्यभा ६ टी प ५१ ) । लोढ -- १ लोढा - 'लोढेण वावि लेवेण, सिलेसेण व केणइ' ( द ५।१।४५ ) । २ पद्मिनी कंद ( प्रसा २३७ ) । ३ स्मृत । ४ शयित ( दे ७।२९ ) । लोढणी -- कपास निकालने अथवा ऊन आदि को साफ करने का यंत्र ( ओनि ४७४ ) । लोढिनी -- कपास के बीज निकालने का यन्त्र ( पिटी प १०३ ) । लोपक -- बिल में रहने वाला पंचेन्द्रिय जंतु-विशेष ( अंवि पृ २२७ ) । लोपा -- सियारिन - 'वाणर-सस-लोयासु' ( अंवि पृ २३८ ) । लोभिल्ल -- लालची ( ओभा १३३ ) । लोमंथिक -- नट ( आवटि प ६१ ) । लोमंथिय -- नट - 'णट्टं लोमंथियं वा' ( आवचू २ पृ ३०३ ) । लोमंधिय -- नट ( आवचू १ पृ ५५६ ) । लोमटक -- लोमड़ी ( आटी प ३३७ ) । लोमठिका -- लोमड़ी ( जीवटी प ३८ ) । लोमसिका -- ककड़ी ( अंवि पृ ७१ ) । लोमसिगा -- ककड़ी ( अंवि पृ २३८ ) । लोमसिया -- ककड़ी ( आवचू १ पृ ५४६ ) । लोमसी -- १ ककड़ी, खीरा - लोमसी कर्कटिकादीनां देशीवचनम्' ( निचू १ पृ ३ ) । २ ककड़ी का गाछ ( व्यभा २ टी ) । लोय -- १ रससंपन्न और मनोज्ञ भोजन - :पिंडं वा लोयं वा खीरं वा दधिं वा' ( आचूला १।४६ ) । २ रूक्ष भोजन- 'इमे लोए इमे तित्तए इमे कडुयए' ( आचूला १।१३८ ) । लोयक -- १ शटित धान्य ( अंवि पृ ३३ ) । २ पशु-विशेष - लोयको वा ससो वेत्ति' ( अंवि पृ ६२ ) । लोयय -- खाद्य-विशेष ( बृ २।८ ) । लोलंठिअ -- खुशामद, चाटुकारिता ( दे ७।२२ ) । लोलग -- गुटिका, गोली - 'गुलिग त्ति लोलगे काउं रुक्खकोटरे वा ठवेति' ( निचू ३ पृ २०६ ) । लोलुंचाविअ -- सतृष्ण, लालसायुक्त ( दे ७।२५ ) । लोलुग -- प्रगाढ़ - 'लोलुगं भृशं गाढं प्रगाढं निरन्तरम्' ( सूचू १ पृ १३०) । लोहि -- कन्द-विशेष ( उ ३६।९८ ) । लोहिणी -- कन्द-विशेष ( प्रज्ञा १।४८।१ ) । लोहिल्ल -- १ अविशुद्ध ( निचू ४ पृ १४४ ) । २ लम्पट ( दे ७।२५ ) । लोही -- १ कन्द-विशेष ( भ ७।६६ ) । २ मंडक आदि पकाने का भाजन ( भ ८।३६१ ) । ल्हिक्क -- १ नष्ट ( प्रा ४।२५८ ) । २ गत । व वइअ -- १ पीत, जिसका पान किया गया हो वह ( दे ७।३४ ) । २ ढका हुआ ( पा ५०५ ) । वइउला -- फणरहित सर्प की एक जाति ( प्रज्ञा १।७१ ) । वइंदबुद्धि -- पुष्प-विशेष ( धंवि पृ ७० ) । वइद्ध -- छोटा गांव - 'खेत्तओ वइद्धदेसे महुराए वा' ( आवचू १ पृ ४०९ ) । वइरोअण -- बुद्ध, बुद्धदेव ( दे ७।५१ ) । वइरोड -- जार, उपपति ( दे ७।४२ ) । वइल्ल -- बैल ( व्यभा १० टी प ६३ ) । वइवलय -- दुंदुभ सर्प ( दे ७।५१ ) । वइवेला -- सीमा ( दे ७।३१ ) । वउ -- लावण्य, शरीर - कान्ति ( दे ७।३० ) । वउणी -- कपास ( दे ३।५७ ) । वउलिअ -- शुला में पिरोया हुआ मांस खंड ( दे ७।४४ ) । वओवउप्फ -- विषुवत्, समान रात और दिन वाला काल ( दे ७।५० ) । वओवत्थ -- विषुवत्, समान रात और दिन वाला काल ( दे ७।५० ) । वंक -- कलंक, दाग ( दे ७।३० ) । वंग -- वृन्ताक, भंटा ( दे ७।२९ ) । वंगच्छ -- प्रमथ, शिव के अनुचर-विशेष ( दे ७।३९ ) । वंगेवडु -- सूअर ( दे ७।४२ ) । वंजण -- भोजन ( दअचू पृ १६० ) । देखें - संदेण । वंजर -- नीवी, कटि-वस्त्र ( दे ७।४१ ) । वंटग -- विभाग - 'वडो वंटगो विभागो वा एगट्ठं' ( निचू ४ पृ २४४ ) । वंठ -- १ कपट- वेश, ठग ( आवचू १ पृ ३१ ) । २ जो अविवाहित है और मजदूरी से अपनी आजीविका चलाता है वह - 'अकयविवाहा भीतिजीविणो य वंठिति' ( ऑटो पृ १९६ ) । ३ अविवाहित ( ओनि २१९; दे ७।८३ ) । ४ नि:स्नेह, स्नेहहीन । ५ गण्ड, गाल ६ खंड । ७ भृत्य, दास ( दे ७।८३ ) । वंड -- पीडित ( ति ६७४ ) । वंडुअ -- राज्य ( दे ७।३६ ) । वंडुर -- घुड़साल, अस्तबल - 'ततो वासुदेवस्स आसरयणं गहाय पधावितो, सो वंडुरापालएण णाओ' ( आवहाटी १ पृ ६५ ) । वंढ -- बन्ध ( दे ७।२९ ) । वंदालग -- पूजापात्र ( सू १।४।४४ ) । वंफ -- उल्लाप - 'वंफेति णाम देसी भासाए उल्लावो वुच्चति' ( सूचू १ पृ १८० ) । वंफिअ -- १ भुक्त, खाया हुआ ( दे ७।३५ ) । २ अभिलषित । वंस -- कलंक ( दे ७।३० ) । वंसकवेल्लुय -- लंबे बांस पर रखे जाने वाले तिरछे बांस ( जीव २६४ ) । वंसकवेल्लुया -- छत के नीचे दोनों ओर तिरछे रखे जाते बांस ( राज १३० ) । वंसटोक्कर -- बांस की डोरी या खपाची ( बृटी पृ १६४१ ) । वंसप्फाल -- १ प्रकट, व्यक्त ( दे ७।४८ ) । २ ऋजु, सरल ( वृ ) । वंसी -- मस्तक पर अवस्थित माला ( दे ७।३० ) । वक्कड -- १ दुर्दिन, मेघकृत अन्धकार ( दे ७।३५ ) । २ निरन्तर वृष्टि - 'वक्कडं निरन्तरवृष्टिरित्येके' ( वृ ) । वक्कडबंध -- कान का आभूषण ( दे ७।५१ ) । वक्कल्लय -- आगे किया हुआ ( दे ७।४६ ) । वक्कस -- १ पुराना धान का चावल । २ पुराना सत्तुपिंड । ३ बहुत दिनों का बासी गोरस । ४ गहूं का मांड ( उ ८।१२ पा ) । वक्काडय -- तृण-विशेष ( आचू पृ ३५७ ) । वक्किक -- वनस्पति-विशेष ( अंवि पृ २३२ ) । वक्खर -- सामान, भाण्ड ( बृभा ४४७७ ) । वक्खार -- १ एकान्त कमरा ( व्यमा ६ टी प ६१ ) । २ गोदाम । वक्खारय -- १ रतिगृह ( दे ७।४५ ) । २ अन्तःपुर ( वृ ) । वक्खीर -- तृण-विशेष ( भ २१।१९ ) । वक्खोइलिया -- छिपकली ( दजिचू पृ २७८ ) । वक्खोड -- विघ्न-विग्घोत्ति वा वक्खोडत्ति वा एगट्ठा' ( आचू पृ १०६ ) । वगडा -- परिक्षेप, परिधि ( ब्य ९।१ ) । वग्गंसिअ -- युद्ध, लड़ाई ( दे ७।४६ ) । वग्गय -- वार्ता, बात ( दे ७।३८ ) । वग्गली -- रोग-विशेष, वमन की व्याधि - 'जेमणवेलाए जिमितो वा तं संभरिता उड्ढं करेति । एवं तस्स वग्गली वाही जातो, विणट्ठो य ( निचू ३ पृ ८१ ) । वग्गुडाव -- पत्नी के अधीन रहने वाले पति की एक अवस्था - 'इति्थवयणातो दगमाणेति, सो य लोगसंकितो अप्पभाए चेव सुहसुत्ते पगे रोडेंतो आणेति त्ति वग्गुडावो' ( निचू ३ पृ ४२० ) । बग्गुरी -- अंगुलियों और पैर के ऊपरी भाग को आच्छादित करने वाला जूता - 'उवरिं तु अंगुलीओ जा छाए सा तु वग्गुरी होति' ( निभा ९१८ ) । वग्गुलिया -- व्याधि-विशेष - 'तस्स संकाए वग्गुलिया वाही जातो' ( निचू १ पृ १५ ) । बग्गेज्ज -- प्रचुर ( दे ७।३८ ) । बग्गोअ -- नकुल, न्यौला ( दे ७।४० ) । वग्गोरमय -- रूक्ष, रूखा ( दे ७ ५२ ) । बग्घरणसाला -- तोसलि देश में प्रसिद्ध विवाह मंडप (बृभा ३४४६ ) - 'व्याघरणशाला नाम तोसलिविषये ग्राममध्ये शाला क्रियते, तत्राग्निकुण्डं स्वयंवरहेतोर्नित्यमेव प्रज्वलति, तत्र च बहवरचेटका: एका च स्वयंवरा चेटिका प्रवेश्यन्ते इत्यर्थः । यस्तेषां मध्ये तस्यै प्रतिभाति तमसौ वृणीते, एषा व्याधरणशाला' ( टी पृ ९६३ ) । वग्घाअ -- १ साहाय्य, मदद । २ विकसित, खिला हुआ ( दे ७।८६ ) । वग्घाडिया -- १ उपहास के लिए की जाने वाली-विशेष ध्वनि ( ज्ञा १।८।१४६ ) । २ विभिन्न देशों की भाषाओं को इस प्रकार बोलना जिससे सब हंसने लग जायें ( बुभा ६३२४ ) । बग्घाडी -- उपहास के लिए की जाती एक प्रकार की आवाज- अप्पे गइया वग्घाडीआं करेंति' ( ज्ञाटी प १५१ ) । वग्धारित -- प्रलंबित ( जीव ३।३९७ ) । वग्घारिय -- प्रलम्बित-वग्धारिय-पाणी एगपोग्गल निविट्ठदिट्ठी' ( भ ३।१०५ ) । बच्चाई -- क्षुद्र जंतु-विशेष - 'भिंगारी अरका व त्ति वचाई इंदगोविगी ( अंवि पृ ६९ ) । वच्च -- १ घर के चारों ओर की भूमी - 'गिहस्स समंततो वच्चं भण्णति' ( निचू २ पृ २२४ ) । २ मृतक के दग्ध-स्थान के चारों ओर की भूमि । ३ श्मशान के चारों ओर की भूमि-'मडयपेरंतं वच्चं भण्णति । सव्वं वा सीताणं सीताणस्स वा पेरंतं वच्चं भण्णति' ( निचू २ पृ २२५ ) । ४ कूड़ा-करकट का स्थान ( आचूला १०।२६ ) वच्चक -- दर्भ जैसा तृण ( बृभा ३६७५ ) । वच्चग -- १ तृणरूप वाद्य-विशेष ( जीव ३।५८८ ) २ तृण-विशेष - 'वच्चगो दब्भागिती तणं' ( निचू २ पृ ३८ ) । वच्चयचिप्प -- वल्वज घास को कूटकर बनाया हुआ ( रजोहरण ) ( बुभा ३६७४ ) । वच्चाचिप्पय -- तृण-विशेष को कूटकर बनाया हुआ ( रजोहरण ) ( बृटी पृ १०२१ ) । वच्चाडक -- अपान अवाणे वच्चाडकगतं बूया' ( अंवि पृ २२२ ) । वच्चापिच्चिय -- वल्वज नाम की मोटी घास को कूटकर बनाया हुआ ( रजोहरण ) ( बृ २।२९ ) । वचिचक्का -- स्तबक, बिन्दु ( व्यभा ७ टी प ६७ ) । वच्छ -- पार्श्व, समीप ( दे ७।३० ) । वच्छाणी -- गजपीपर की बल्ली ( प्रज्ञा १।४०।४ ) । वच्छिउड -- गर्भाशय - 'वच्छिउडो गर्भाश्रय इत्यन्ये ( दे ७।४४ वृ ) । वच्छिमअ -- गर्भाशय ( दे ७।४४ ) । वच्छीउत्त -- नापित, नाई ( दे ७।४७ ) । वच्छीव -- गोप, ग्वाला ( दे ७।४१ ) । वज्जरण -- कथन ( प्रा ४।२ ) । वज्जरा -- नदी ( दे ७।३७ ) । वज्जरिय -- कथित ( प्रा ४।२ ) । वज्जलाढ -- म्लेच्छ - 'अरे वज्जलाढा ! एस पंथो कहिं वच्चइ ? वज्जलाढा नाम मेच्छा' ( आवहाटी १ पृ १४१ ) । वज्जा -- १ माता, देवी-विशेष ( अनुद्वाचू पृ १३ ) । २ अधिकार ( दे ७।३२ ) । वज्जिअ -- १ अवलोकित, दृष्ट ( दे ७।३९ ) । २ बजाया हुआ । वज्जियाव -- इक्षु वज्जियावो नाम देशीवचनत्वादिक्षुः' ( व्यभा २ टी प २२ ) । वाज्जियावग -- इक्षु - 'वाज्जियावगो उच्छु इति' ( व्यभा २ टी प २२ ) । वज्जिर -- लोकवाद्य-विशेष ( कु पृ ९६ ) । वज्झार -- एक प्रकार का शिल्पी ( प्रज्ञा १।९७ ) । वज्झुक्क -- वाह्य क्रीडा-विशेष, एक प्रकार की क्रीड़ा जिसमें पीठ पर बैठा जाता है - 'अण्णया वज्झक्केण रमंति' ( आवहाटी २ पृ २१७ ) । वट्ट -- १ एक प्रकार का लड्डू ( प्र १०।६ ) । २ प्याला ( अनु ३।३९ ) । ३ छात्र - उवज्झायनिउत्ता वट्टा दिवसे दिवसे धणुगेहिं गहिएहिं रक्खंति' ( आवहाटी २ पृ ४७ ) । ४ नट आदि की विद्या से आजीविका कमाने वाला - जूइयरसोलमेंटा बट्टा ( आवहाटी २ पृ ६८ ) । ५ लोढा, शिला पुत्रक ( भटी पृ १४१३ ) । ६ गाढी कढी, खाद्य-विशेष ( प्रटी प १५३ ) । ७ हानि । ८ मार्ग । वट्टखिडु -- जादू का खेल, इन्द्रजाल - एकस्मिन् हस्ते गोलकद्वयमेकस्मिन्गो लकत्रयं दर्शयित्वा पुनरिन्द्रजालप्रयोगेन केचिद् व्यत्ययेन गोलकान्यत्र दर्शयन्तीन्द्रजालिकाः तद् वट्टखिड्डमुच्यते' ( आवटि प ५३ ) । वट्टखेड -- इन्द्रजाल - 'किमेयं वट्टखेडं' ( आवचू १ पृ ५२८ ) । वट्टखेड्ड -- वृत्तक्रीडा, इन्द्रजाल ( सम ७२।७ ) । वट्टण -- दो धागों को एक साथ बंटना - सिक्कगदोरो वलणं वा वट्टणं' ( निचू २ पृ २२३ ) । वट्टमाण -- १ अंग, शरीर । २ गन्ध - द्रव्य की एक प्रकार की सुगंध ( दे ७।८७ ) । वट्टय -- १ कटोरा - 'गहिया वट्टयम्मि सत्तुया' ( उसुटी प ६२ ) । २ लाख आदि से बना खिलौना ( ज्ञा १।१८।८ ) । वट्टा -- मार्ग - 'सगडवट्टाए लोलइ' ( आवमटी प ४६७; दे ७।३१ ) । वट्टावरय -- लोढा, शिला-पुत्रक - तिक्खेणं वइरामएणं वट्टावरएणं' ( भ १९।३४ ) । वट्टिम -- अतिरिक्त, अधिक ( दे ७।३४ ) । वट्टिय -- १ पीसा हुआ, चूर्ण किया हुआ ( निचू २ पृ ६५ ) । २ परिवेषित, भोजन परोसना - 'थेरीए पुत्तभंडाणं विलेवी वट्टिया' ( आवहाटी १पृ २९० ) । वट्टिव -- पर कार्य ( दे ७।४० ) । वट्ठिफोड -- बहुभक्षक - सो य वट्ठिफोडो ण चेव धाति' ( आवचू १ पृ २९१ ) । वड -- १ क्षेत्र का एक देश, एक विभाग - 'वडो वडूगो विभागो एगट्ठं' ( आवचू २ पृ २३४; दे ७।८२ ) । २ दरवाजे का एक भाग ( दे ७।८२ ) । ३ मत्स्य की एक जाति ( प्रटी प ४७ ) । वडंवग -- बड़े परिवार वाला - 'बहुसयणो वडंवगो' ( निचू ३ पृ २५३ ) । वडक -- उद्भिज्ज जंतु-विशेष - 'तत्थ उब्भिज्जा संखणा काकुंथिका वडका सिरिवेट्ठका' ( अंवि पृ २२९ ) । वडग -- सूती वस्त्र ( भ ११।१५९ ) । वडगर -- मत्स्य-विशेष ( जीवटी प ३६ ) । वडप्प -- १ लता-गहन । २ निरंतर वृष्टि ( दे ७।८४ ) । वडभ -- वामन, कुब्ज, जिसका पीछे के या आगे के शरीर का भाग उभरा हुआ हो ( निचू ३ पृ २७१ ) । वडय -- सूती वस्त्र - 'कोसेज्जा वडओ भण्णति । टसर इति भाषायाम्' ( निचू २ पृ ६८ ) । वडह -- पक्षि-विशेष ( दे ७।३३ ) । वडा -- वृति, परिक्षेप - 'एगवडाए इत एकवृतिपरिक्षेपायाम्' ( व्यभा ३ टी प ६६ ) । वडार -- विभाग ( व्यमा ७ टी प ६३ ) । वडालि -- पंक्ति, श्रेणी ( दे ७।३६ ) । वडिसर -- चूल्हे का मूल ( दे ७।४८ ) । वडी -- बड़ी, शाक-विशेष ( प्रसा ४३४ ) । वड्ड -- १ उद्दंड ( ति ११९३ ) । २ उच्च, महान्-'वड्डेणं सद्देणं जोक्कारोत्ति भणितं' ( आवहाटी १ पृ ४३ ) । ३ कलह ( उशाटी प १७९ ) । ४ बड़ा ( ज्ञा २।१।१८; दे ७।२९ ) । वड्डंवग -- बड़े परिवार वाला ( निभा ३६२२ ) । वड्डखेड्ड -- जादू का खेल, इन्द्रजाल देखें - 'बट्टखिड्ड' ( आवटि प ५३ ) । वड्डग -- १ पात्र ( बृभा ४८०६ ) । २ बड़ा ( भ १९।७८ ) । वड्डवास -- मेघ ( दे ७।४७ ) । वड्डहुल्लि -- मालाकार, माली ( दे ७।४२ ) । वड्ढ --१ पौ फटते-फटते, शीघ्र - 'ते वड्ढे पभाए उट्ठेत्ता गया' ( आवहाटी १ पृ १३७ ) । २ बड़ा ( निचू १ पृ ९ ) । वड्ढइ -- वर्धकी, बढइ ( सम १४।७ ) । वड्ढणसाल -- पुच्छहीन, जिसकी पूंछ कट गई हो वह ( दे ७।४९ ) । वड्डर -- गृहस्थ के प्रयोजन के लिए जादू-टोना करना ( व्यमा ४।३ टी प ४९ ) । वड्ढवण -- १ वस्त्र का आहरण । २ बधाई, अभ्युदय-निवेदन ( दे ७।८७ ) । वड्ढाविअ -- समाप्त किया हुआ ( दे ७।४५ ) । वड्ढिआ -- कूपतुला, कूए से पानी ऊपर खींचने का साधन-विशेष ( दे ७।३६ ) । वण -- १ अधिकार । २ श्बपच, चाण्डाल ( दे ७।८२ ) । वणइ -- वन-राजि, वृक्ष- पंक्ति ( दे ७।३८ ) । वणण --बुनना ( द १।१ टी ) । वणति -- पुष्प--विशेष ( अंवि पृ ७० ) । वणद्धि -- गायों का समूह ( दे ७।३८ ) । वणपक्कसावअ -- शरभ, श्वापद-विशेष ( दे ७।५२ ) । वणव -- दावानल ( दे ७।३७ ) । वणसवाई -- कोयल ( दे ७।५२ ) । वणाय -- शिकारी से आकुल, व्याध से त्रस्त ( दे ७।३५ ) । वणार -- दमनीय बछड़ा ( दे ७।३७ ) । वणुल्लय -- वन - 'वीसमइ खणे एला - वणुल्लए' ( कु पृ ३३ ) । वण्ण -- १ चन्दन आदि का चूर्ण - 'वण्णेहि वा उव्वट्टेइ' ( नि १।५ ) । २ अच्छ, स्वच्छ । ३ रक्त, लाल ( दे ७।८३ ) । वण्णग -- चंदन - 'चाउरंतचक्क वट्टिस्स वण्णगपेसिया तरुणी बनवं' ( भ १९।३४ ) । वण्णय -- १ श्रीखण्ड, चन्दन ( दे ७।३७ ) । २ सुगंधित चूर्ण ( वृ ) । वतिभेदक -- क्षुद्र जन्तु-विशेष ( अंवि पृ २३८ ) । वतु -- समूह ( दे ७।३२ ) । वत्तट्ठ -- १ सुंदर । २ बहुशिक्षित ( दे ७।८५ पा ) । वत्तणासी -- जलचर प्राणी-विशेष ( धंवि पृ ६९ ) । वत्तद्ध -- १ सुन्दर । २ बहु-शिक्षित ( दे ७।८५ ) । वत्ता -- सूत्र वल नक यंत्र, सूत्र वेष्टन यंत्र ( प्रटी प ८० ) । वत्तार -- गर्वित, अभिमानी ( दे ७।४१ ) । वत्ति -- सीमा ( बुभा २०१; दे ७।३१ ) । वत्तुस्सय -- वृद्ध ( अंवि पृ १०० ) । वत्थउड -- तंबू, वस्त्र से निर्मित आश्रय स्थान ( दे ७।४५ ) । वत्थरिका -- बिछाने का आस्तरण ( अंवि पृ ७२ ) । वस्थाणो -- वल्ली-विशेष ( प्रज्ञा टी प ३३ ) । वत्थाणीय -- खाद्य-विशेष - 'हत्थेण वत्थाणीए भोच्चा कज्जं साघेंति' ( सूर्य १०।१७ ) । वत्थी -- तापसों की कुटिया ( दे ७।३१ ) । वत्थुल्ल -- वनस्पति-विशेष, बथुआ ( निचू ३ पृ १५९ ) । वदिकलिअ -- वलित, लौटा हुआ ( दे ७।५० ) । वद्दल -- १ बादल - 'समोहणित्ता अब्भवद्दलए विउव्वंति' ( राज १२ ) । २ दुर्दिन, मेघकृत अन्धकार ( दे ७।३५ ) । ३ छठी नरक का दूसरा नरकेन्द्रक, नरकस्थान । वद्दलग -- बादल ( आबचू १ पृ १३७ ) । वद्दलिया -- १ बदली, छोटा बादल ( आवचू १ पृ ३८५ ) । २ घटाटोप, मेघाडंबर ( स्था ९।६२ ) । वद्धणिया -- झाडू ( दे ८।१७ ) । वद्धणी -- संमार्जनी, झाडू ( दे ७।४१ वृ ) । वद्धमाण -- १ स्कन्धारोपित पुरुष । २ स्वस्तिक पञ्चक । ३ प्रासाद-विशेष ( ज्ञाटी प ६२ ) । वद्धय -- प्रधान, मुख्य ( दे ७।३६ ) । वद्धिय -- नपुंसक-विशेष जिसका अंडकोश छेदकर गला दिया गया हो ( निचू १ पृ ४० ; दे ७।३७ ) । वद्धी -- अवश्य कृत्य, आवश्यक कर्त्तव्य ( दे ७।३० ) । वद्धीसक -- वाद्य-विशेष ( प्र १०।१४ टी ) । वद्धीसग -- वाद्य-विशेष ( अनु ३।४९ ) । वधूज्ज -- विवाह ( अंवि पृ १४१ ) । वधूपुत्ती -- सुहागरात्री में वधू के रक्त- खरंटित वस्त्रों को देखकर स्वजन प्रसन्न होते हैं । वे उस वस्त्र को घर-घर ले जाकर गुरुजनों को सविनय दिखाते हैं । यह इसलिए कि सभी जान जाएं कि लड़की अक्षतयोनि वाली है अर्थात् गर्भ धारण करने में समर्थ है - 'का एसा वधूपुत्ती ? भण्णति-पढमे वासहरे भत्तुणा जोणिभेए कते तच्छोणियेण पोत्तिं खरंडियं सूरुदए सयणो से परितुट्ठो पडलकं तं तं पोत्तिं घरंघरेण गुरुजणपुरतो परिवंदइ दंसेति य, णज्जते रुहिरदंसणातो अक्खयजोणि त्ति' ( अनुद्वाचू पृ ४८ ) । देखें - 'आणंदवड' । वपू -- थूभ ( भ १५।८७ पा ) । वप्प -- १ तमु, कृश । २ बलिष्ठ, बलवान् । ३ भूतगृहीत, भूताविष्ट ( दे ७।८३ ) । वप्पक -- बालक - 'पिल्लक-वप्पक-सिंगक-खुड्डक' ( अंबि पृ १६९ ) । वप्पग -- खेत, क्षेत्र ( निभा १२९५ ) । वप्पडी -- खाद्य-विशेष ( अंवि पृ २४६ ) । वप्पिण -- १ खेतों वाला प्रदेश । २ तटों वाला प्रदेश ( भटी प २३८ ) । ३ खेत ( प्र १।१४; दे ७।८५ ) । ४ बसा हुआ ( दे ७।८५ ) । वप्पिणी -- छोटी बावड़ी ( प्र १०।१५ ) । वप्पीअ -- घातक पक्षी ( दे ७।३३ ) । वप्पीह -- १ स्तूप, मिट्टी आदि का ढेर ( दे ७।४० ) । २ चातक पक्षी ( दे ६।९० वृ ) । वप्पु -- ढूह, थूभ, बांबी - 'इमस्स णं वम्मीयस्स चत्तारि वप्पूअ अब्भुग्गयाओ' ( भ १५।८८ ) । वप्पूअ -- थूभ ( भ १५।८७ ) । वप्फलिग -- असन्य ( आवमटी प ५३० ) । वप्फाउल -- अधिक-उष्ण ( दे ६।९२ ) । वब्भय -- कमल का मध्यभाग ( दे ७।३८ ) । वमणि -- कपास ( निचू ३ पृ ५७ ) । वमनी -- कपास (अनुद्वामटी प ३१ ) । वमारक -- थलचर प्राणी -विशेष ( धंवि पृ २२७ ) । वमाल -- १ कलकल, कोलाहल ( दे ६।९० वृ ) । २ राशि । वमालिय -- पुंजीभूत, उपलिप्त - 'असुइमलरुहिरकद्दम-वमालिओ गब्भवास मज्झम्मि' ( कु पृ २५४ ) । वमालीभूत -- पुंजीभूत - 'अह ण सक्केति रक्खिउं वमालीभूतं, ताहे कप्पं पत्थरेत्ता सव्वोचकरणं बंधति' ( निचू २ पृ १७९ ) । वम्मिका -- पैरों का आभूषण - 'पामुद्दिक त्ति वा बूया वम्मिका पायसूचिका' ( अंवि पृ ७१ ) । वम्मीसर -- कामदेव, कन्दर्प ( दे ७।४२ ) । वम्ह -- वल्मीक ( दे ७।३१ ) । वम्हल -- कमल-फेसर, किंजल्क ( दे ७।३३ ) । वय -- गृध्रपक्षी, गोध ( दे ७।२९ ) । वयड -- वाटिका, बगीचा ( दे ७।३५ ) । वयण -- १ घर, गृह । २ शय्या, बिछौना ( दे ७।८५ ) । वयर -- चूर्णित ( दे ७।३४ ) । वयल -- १ विकसित होता हुआ, खिलता हुआ । २ कलकल, कोलाहल ( दे ७।८४ ) । वयली -- निद्राकरी लता ( दे ७।३४ ) । वर -- धान्य-विशेष ( भ २१।१६ ) । वरअ -- शालि-विशेष एक प्रकार का धान्य ( दे ७।३६ ) । वरइ -- जलचर प्राणी-विशेष व पृ ६९ ) । वरइअ -- धान्य-विशेष ( दे ७।४९ ) । वरइत्त -- दुलहा ( दे ७।४४ ) । वरउप्फ -- मृत ( दे ७।४७ ) । वरंड -- १ प्राकार, किला । २ कपोतपाली, कबूतरों का दरबा ( दे ७।८६ ) । ३ तृणपुंज । ४ समूह । वरंडग -- प्राकार ( निभा २३८७ ) । वरंडा -- बरामदा, वरण्डा ( जीविप पृ ३४ ) । वरक -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । वरक्क -- प्रावरण-विशेष - 'कोयवगो वरक्को' ( निचू ३ पृ ३२१ ) । वरक्खु -- व्याघ्र ( बृटी पृ २२१ ) । वरग -- १ शालि-विशेष, एक प्रकार का धान्य ( भ ६।१३१ ) । २ मूल्यवान पात्र ( अचूला १।१४३ ) । वरट्ट -- धान्य विशेष ( स्था ७।९० ) । वरट्टग -- धान्य-विशेष ( आव २ पृ १२८ ) । वरड -- अति स्थूल, बहुत मोटा ( बृटी पृ ५३ ) । धरडी -- १ वंश भ्रमर के जहर को उतारने की विद्या- 'राइणा वाहराविया गारुडिया भोइयभट्टचट्टाइणो इति । अपि य - 'जो वरडिं पि न याणइ सो वि तत्य वाहरिओ' ( उसुटी प १७४ ) । २ ततैया गंघोली । ३ दंश-भ्रमर, काटनेवाली मधुमक्खी ( दे ७।८४ ) । वरढ -- स्थूल, परिवृद्ध - 'थूलं वड्डं वरढं ति परिवूढं ति वा पुणो' ( अंवि पृ ११४ ) । वरण -- सेतुबंध, पुल - 'वरणेन सेतुबन्धेन व्रजति ( ओनि ३० टी ) । वरवरिका -- ईप्सित वस्तु के दान देने की घोषणा, जो मांगो वह मिलेगा - 'इस प्रकार घोषणापूर्वक दिया जाने वाला दान - वरवरिका घोष्यते-वरं याचध्वं वरं याचध्वमित्येवं घोषणा समयपरिभाषया वरवरिकोच्यते' ( आवहाटी १ पृ ९१ ) । वरसरक -- खाद्य-विशेष - 'सक्कुलि वेढिम-वरसरक- चुण्णकोसग' ( प्र १०।६ ) । वरिल्लिया -- जिसकी सगाई की गई हो वह 'सा य उग्गसेणनत्तुस्स धणदेवस्स वरिल्लिया' ( बृटी पृ ५६ ) । वरिसाल -- वर्षावास ( उसुटी प ९० ) । वरिसोलग -- पक्वान्न-विशेष, खाद्य वस्तु ( प्रसाटी प ५६ ) । वरुअ -- इक्षुसदृश तृण ( दे ६।९१ वृ ) । वरुंड -- एक प्रकार के शिल्पी (अनुद्वा ३६० पा ) । वरुट्ट -- मयूर पंख के शिल्पी ( प्रज्ञा १९७ ) । वरुंड -- एक प्रकार के शिल्पी (अनुद्वा ३६०) । वरेइत्थ -- फल, लाभ, प्रयोजन ( दे ७।४७ ) - 'वरउप्फमारणे तुज्झ किं वरेइत्थं' ( वृ ) । वरेल्ल -- रोम पक्षी-विशेष ( प्रज्ञा १।७९ ) । वलअंगी -- बाड़वाली ( दे ७।४३ ) । वलंगणिआ -- बाड़वाली ( दे ७।४३ ) । वलग्गंगणी -- वृति, बाड़ ( दे ७।४३) । वलद्द -- बैल ( आवहाटी २ पृ १२३ ) । वलभी -- यान-विशेष - 'संदण - रथ - वलभी- पदोलि' ( अंवि पृ २०० ) । वलमय -- शीघ्र, जल्दी - 'किमागओ वच्च वलमयं तत्थ' ( दे ७।४८ वृ ) । वलय -- १ धान्यशाला - 'कडपल्लाणं सण्णा तणपल्लाणं च देसितो वलया' ( बृभा ३२९८ ) । २ खेत, क्षेत्र ( आचूला ३।४८; दे ७।८५ ) । ३ घर ( दे ७।८५ ) । वलयणी -- वृति, बाड़ ( दे ७।४३ ) । वलयबाहा -- जहाज में स्थापित एक दीर्घ काष्ठ जिस पर ध्वजा आदि बांधी जाती है - 'संसारियासु वलयबाहासु ऊसिएसु सिएसु झयग्गेसु' ( ज्ञाटी प १४३ ) । वलयबाहु -- १ लंबा काष्ठ जिस पर ध्वजा आदि बांधी जाती है, आवेल्लक ( ज्ञाटी प १४३ ) । २ हाथ का आभूषण-विशेष, चूडा ( दे ७।५२ ) । वलया -- १ माया ( सू १।१३।२३ ) । २ वेला, समुद्रतट - 'तिबलागमुहम्मुक्को, तिक्खुत्तो वलयामुहे । तिसत्तक्खुत्तो जालेणं, सइ छिन्नोदए दहे ॥ एयारिसं ममं सत्तं, सढं घट्टियघट्टणं । इच्छसि गलेण घेत्तुं, अहो ते अहिरीयया ॥ ( पिनि ६३२,६३३ ) । वलवट्टि -- १ सखी । २ परिश्रमशील स्त्री ( दे ६।९१ वृ ) । वलवाडी -- वृति, बाड़ ( दे ७।४३ ) । वलविअ -- शीघ्र ( दे ७।४८ ) । वलही -- कपास ( दे ७।३२ ) । वलामोडिय -- बलपूर्वक - 'वला मोडिय घेप्पंति' ( कु पृ ८ ) । वलिअ -- भुक्त, भक्षित ( दे ७।३५ ) । वलिआ -- धनुष की डोरी ( दे ७।३४ ) । वलिमोडअ -- चक्राकार वेष्टनवाली वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।४८।४७ ) । वलुक्की -- वीणा विशेष-मुच्छिज्जंतीणं वीणाणं विवच्चीणं वलुक्कीणं' ( आवचू १ पृ ३०९ ) । वल्ल -- १ निष्पाव, काली उरद ( पिनि २४५ ) । २ शिशु ( दे ७।३१ ) । वल्लई -- १ गाय ( दे ७।३६ ) । २ गोपी । ३ वीणा ( बृ ) । वल्लर -- १ अरण्य ( सूचू १ पृ १५८ ; दे ७।८६ ) । २ खेत ( प्र १।२०; दे ७।८६ ) । ३ लता-निकुंज ( उ १९।८१ ) । ४ अरण्य का खेत ( पा ३५६ ) । ५ भैंसा । ६ युवा, तरुण । ७ पवन, समीर । ८ निर्जल- देश । ९ वन ( दे ७।८६ ) । १० आलिंगन करने की आदतवाला । ११ वेष्टनशील । १२ वालुकायुक्त क्षेत्र । १३ जनप्रिय । वल्लरी -- केश, बाल ( दे ७।३२ ) । वल्लवाय -- खेत, क्षेत्र ( दे ६।२६ वृ ) । वल्लाअ -- १ श्येनपक्षी । २ नकुल, न्यौला ( दे ७।८४ ) । वल्लादय -- आच्छादन, ढकने का साधन ( दे ७।४५ ) । वल्लि -- अशुचिमय 'बल्लिक रेसु आहारेति' ( निचू १ पृ १६ ) । वल्लिका -- कान का आभूषण-विशेष, बाली - 'कुंडल वल्लिका तलपत्तक' ( अंवि पृ १८३ ) । वल्लिपरिपल्लक -- दीर्घकाल - 'दुक्खं उव्वेल्लेउं वल्लिपरिपल्लकं ति गुपितं ति । एयादीया सद्दा पडिरूवा दिग्घकालस्स।' ( अंबि पृ २४० ) । वल्ली -- १ पलाशकंद - 'विरालिया गोल्लविसए वल्ली' ( आचू पृ ३४० ) । २ केश, बाल ( दे ७।३२ ) । ववण -- कपास, रूई - 'ववणसरिसाओ महिलियाओ त्ति' ( कु पृ २४१ ) । ववणी -- कपास ( दे ७।३२ ) । ववत्थंभ -- बल, पराक्रम ( दे ७।४९ ) । ववसिअ -- बलात्कार ( दे ७।४२ ) । ववहिअ -- मत्त, उन्मत्त ( दे ७।४१ ) । वव्वय -- आतोद्य-विशेष ( आवचू १ पृ १८७ ) । वव्वाड -- अर्थ, प्रयोजन ( दे ७।३९ ) । वव्वीसक -- लोकवाद्य-विशेष ( कु पृ २६ ) । वसभुद्ध -- काक, कौआ ( दे ७।४९ ) । वसल -- दीर्घ ( दे ७।३३ ) । वसिम -- वसतिवाला स्थान - 'अंतराले य दिट्ठं वसिमं' ( उसुटी प ६३ ) । वसुआअ -- शुष्क - 'वसुआअशब्द: शुष्कवाची' ( से १।२० टी ) । वसुआइय -- शुष्क किया गया ( से ९।२५ ) । वसुग -- मधुर और स्नेहिल आमंत्रण - 'गोलवसुगावि महुरं सप्पिवासं आमंतणं' ( दजिचू पृ २५० ) । वसुल -- १ युवा का प्रिय संबोधन शब्द - 'वसुल जुवाण प्रियवयणं' ( दअचू पृ १६९ ) । २ अवज्ञा सूचक तुच्छ संबोधन - 'वसुलो सुद्दपरिभववयणं' ( दअचू पृ १६८ ) । ३ निष्ठुर आमंत्रण-शब्द ( दहाटी प २१५ ) । वसुला -- स्त्री के लिए प्रिय संबोधन ( द ७।१६ ) । वस्सासण -- एक प्रकार का आसन ( दर्भासन ? ) ( ति १०५१ ) । वह -- १ वृष- स्कन्ध ( विपा १।२।२४ ) । २ स्कन्ध-व्रण, कन्धे पर होने वाला व्रण ( दे ७।३१ ) । ३ व्रण, घाव - सामान्येन व्रण इत्यन्ये' ( वृ ) । वहड -- दम्य वत्स, दमनीय बछड़ा ( दे ७।३७ ) । वहढोल -- चक्राकार वायु, आंधी ( दे ७।४२ ) । वहिल्ल -- शीघ्र ( प्रा ४।४२२ ) । वहु -- चिविड़ा, गन्ध द्रव्य-विशेष ( दे ७।३१ ) । वहुधारिणी -- नववधू ( दे ७।५० ) । वहुण्णी -- जेठानी, पति के बड़े भाई की पत्नी ( दे ७।४१ ) । वहुमास -- वह मास जिसमें पति नवोढा के साथ रमण करता हुआ उसके घर से बाहर नहीं निकलता - प्रथमोढायाः सदनाद्यत्र पतिर्नापयाति बहिः । स स्याद् रमणविशेषो वहुमासो । ( दे ७।४६ वृ ) । वहुरा -- शिवा, शृगाली ( दे ७।४० ) । वहुव्वा -- छोटी सास ( दे ७।४० ) । वहुहाडिणी -- एक स्त्री के रहते हुए ब्याही जाती दूसरी स्त्री ( दे ७।५० ) । वहूपोत्ति -- देखें 'वधूपुत्ती' ( अनुद्वा ३१४।६ ) । वहोल -- छोटा जल-प्रवाह ( दे ७।३८ ) । वाअड -- शुक, तोता ( दे ७।५६ पा ) । वाइंगण -- बैंगन ( प्रज्ञा १।३७; दे ७।२९ ) । वाइंगणी -- वृन्ताकी, बैंगन का गाछ ( भ २२।४ ) । वाइंगिणी -- बैंगन का गाछ ( प्रज्ञाटी प ५२७ ) । वाइग -- १ मद्य - 'वाइगं णाम मज्जं' ( निचू १ पृ १६४ ) । २ बैंगन - वाइग-पलंडु-लसुणाई' ( बृभा ६०४९ ) । वाइद्ध -- वक्र - 'वाइद्धं ति वक्रामिति वृद्धाः' ( भटी पृ १२९७ ) । वाइल -- इस नाम का वणिक् - 'तत्थ वाइलो नाम वाणिओ जत्ताए पधावितो' ( आवमटी प २९६ ) । वाइव -- पूर्ववर्ती ( अंवि पृ १९ ) । वाउ -- इक्षु, ईख ( दे ७।५३ ) । वाउक -- आस्तरण-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । वाउत्त -- १ विट, भडुआ । २ जार, उपपति ( दे ७।८८ ) । वाउप्पइय -- भुजपरिसर्प की एक जाति ( प्र १।८ ) । वाउप्पइया -- भुजपरिसर्पिणी-विशेष - 'वातोत्पतिका रूढ्यावसेया' ( प्रटी प १० ) । वाउप्पिया -- भुजपरिसर्प-विशेष ( प्रटी प १० ) । वाउलग्ग -- १ पुरुष का पुतला ( निभा १५५ ) । २ सेवा, भक्ति । वाउलि -- वातूल ( ज्ञा १।१।१५९ ) । वाउल्ल -- प्रलाप करने वाला, वाचाल ( दे ७।५६ ) । वाउल्लग -- पुरुष का पुतला - 'वाउल्लगं णाम पुरिसपुत्तलगो' ( निचू १ पृ ६१ ) । वाउल्लय -- पुतला - 'जाओ मणिमयवाउल्लओ विय दारओ त्ति' ( कु पृ २१२ ) । वाउल्लिआ -- पुतली ( दे ६।९२ वृ ) । वाउल्ली -- पाञ्चालिका, पुतली ( दे ६।९२ वृ ) । वाऊलिय -- नास्तिक ( दनि ७० ) । वागली -- वल्ली-विशेष ( प्रज्ञा १।४० ) । वागुरा -- एक प्रकार का जूता - 'अंगुलिं च्छादित्ता पादावुपरि च्छादयति सा वागुरा' ( निचू २ पृ ८७ ) । वाघारि -- लंबित - 'वाघारि' लंबियभुजो' ( आवहाटी २ पृ १०६ ) । वाघारिय -- प्रलंबित - 'वाघारियलंबिअभुओ ( प्रसा ५८८ ) । वाड -- टवकर ( निभा ४१२३ ) । वाडंतरा -- कुटीर, झोंपड़ी ( दे ७।५८ ) । वाडकम्म -- खेती, कृषि ( उसुटी प २५१ ) । वाडहिया -- गर्भवती - 'पुणो वाडहियासंजतिवेसेण पुरओ ठिओ' ( निचू १ पृ २० ) । वाडा -- भींत या वृति से परिवेष्टित स्थान-विशेष ( नन्दीटि पृ १३९ ) । बाड़ा ( राज० ) । वाडि -- बाड, वृति ( बृभा १०९६ ) । वाडिम -- गण्डकमृग, गेंडा ( दे ७।५७ ) । वाडिल्ल -- कृमि, कीट ( दे ७।५६ ) । वाडी -- वृति, बाड़ ( दे ७।४३ ) । वाडु -- विनाश- 'देशीवचन मेतत् नशनं' ( व्यभा ३ टी प १०३ ) । वाढि -- वणिक्-सहाय, वैश्य-मित्र ( दे ७।५३ ) । वाढिअ -- वैश्य मित्र ( दे ७।५३ वृ ) । वाण -- पूरणार्थक अव्यय - 'बाणमिति पुरणार्थो निपात: ' ( आवहाटी १ पृ १७३ ) । वाणअ -- वलयकार, कंकण बनाने वाला शिल्पी ( दे ७।५४ ) । वाणमंतर -- १ व्यन्तरदेव ( स्था १।१६२ ) । २ देवकुल, मन्दिर ( बृभा १०९३ ) । वाणमंतरी -- देवों की एक जाति, व्यन्तरी ( आबचू २ पृ ३५ ) । वाणवाल -- इन्द्र ( दे ७।६० ) । वाणीर -- जम्बू-वृक्ष, जामुन का वृक्ष ( दे ७।५६ ) । वातंड -- वायुरोग-विशेष ( अंवि पृ २०३ ) । वातंदविस -- प्राणी-विशेष ( ? ) ( अंवि पृ २२६ ) । वातंसु -- बिल में रहने वाला जंतु-विशेष - कसका वातकुरीला वातंसु कुतिषि एवमादयो•••••एतेसु बिलासया भवंति' ( अंवि पृ २२९ ) । वातकुरील -- बिल में रहने वाला जंतु-विशेष ( अंवि पृ २२९ ) । वातकोणय -- क्षुरप्र, अस्त्र-विशेष - 'वातकोणएण णक्काणि छिण्णाणि ( आवहाटी १ पृ २६४ ) । वातिंगण -- बैंगन ( दअचू पृ २०३ ) । वातोली -- आंधी ( तंदु पृ ५८ ) । वाधुज्ज -- १ विवाह से संबंधित ( अंवि पृ ४० ) । २ विवाह ( अंवि पृ १९३ ) । वाधेज्ज -- विवाह ( अंवि पृ १३४ ) । वाम -- १ मृत ( दे ७।४७ ) । २ आक्रान्त । वामणिअ -- खोई हुई वस्तु को पुनः प्राप्त करने वाला ( दे ७।५९ ) - तुह वासवारवाला वामणिआ हुन्ति कुमारवाल णिव!' ( वृ ) । वामणिआ -- दीर्घ काष्ठ की बाड ( दे ७।५८ ) । वामपार -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । वामरि -- सिंह ( दे ७।५४ ) । वामी -- महिला ( दे ७।५३ ) । वाय -- १ वनस्पत्ति-विशेष ( सु २।३।२२ पा ) । २ गन्ध ( दे ७।५३ ) । ३ शुष्क ( से ५।५७ ) । वायउत्त -- १ विट, भडुआ । २ जार, उपपति ( दे ७।८८ बृ ) । वायंगण -- बैंगन ( प्रसा २४६ ) । वायडघड -- वाद्य-विशेष, दर्दुर नामक वाद्य ( दे ७।६१ ) - वायडघडो दर्दुरकाख्यो वाद्यविशेषो भरते प्रसिद्धः' ( वृ ) । वायडाग -- सर्प की एक जाति ( प्रज्ञाटी प ५१ ) । वायण -- १ बुनना - तन्तुवायनं शिल्पमस्य इति तान्त्रिकः' ( अनुद्वाहाटी पृ ७४ ) । २ भोज्योपायन, खाद्य पदार्थ का उपहार ( दे ७।५७ ) । वायणय -- भोज्य पदार्थों की भेंट ( पा ६१३ ) । वायलिय -- सपेरा ( प्रटी प ३७ ) । वायाड -- शुक, तोता ( दे ७।५६ ) । वायार -- शिशिर ऋतु का पवन ( दे ७।५६ ) । वार -- १ चषक, पान-पात्र ( सूचू २ पृ ३५८; दे ७।५४ ) । २ प्रहार ( निरटी पृ २२ ) । वारंग -- वृक्ष-विशेष ( अंति पृ ६३ ) । वारग -- मंगल घट - 'वारकः मरुदेशप्रसिद्धनामा मांगल्यघटः' ( जंबू १०१ ) । वारडिय -- रक्त वस्त्र, लाल कपड़ा - 'जत्थ य वारडियाणं तत्तडियाणं' ( ग ८१ ) । वारमट्ठिय -- फल-विशेष - सेलुफल-कोलफल-वारमट्ठिएसु य तधेव' ( अंवि पृ २३८ ) । वारवत्त -- द्वीन्द्रिय जंतु-विशेष ( अंवि पृ २३७ ) । वारसिआ -- मल्लिका, पुष्प-विशेष ( दे ७।६० ) । वारिअ -- नापित ( दे ७।४७ ) । वारिक -- नापित - 'नापिता नखशोधका व रिका इत्यर्थ:' ( व्यभा १० टी प १५ ) । वारिखल -- परिव्राजक-विशेष - वारिखलाणं बारस मट्टीया छच्च वाणपत्थाणं ( बृभा १७३८ ) । वारिज्ज -- विवाह ( अनुद्वाचू पृ ४८; दे ७।५५ ) । वारिज्जिय -- विवाह-संबंधी - 'पत्तो वारिज्जियवासरो' ( उसुटी प २७९ ) । वारिणील -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । वारुअ -- १ शीघ्र ( दे ७।४८ ) । २ शीघ्रतायुक्त - ण वारुआ अम्हे' ( वृ ) । वारुआ -- १ शीघ्र । २ शीघ्रता से - 'आरूढो य एक्कं वारुआसज्जं करिणिं' ( कु पृ ३३ ) । वारेज्ज -- विवाह ( अनुद्वा ३१४ ) । वारेज्जय -- विवाह ( उसुटी प २७९ ) । वाल -- १ मुंह से बजाया जाने वाला वाद्य ( आवचू १ पृ ३०९ ) । २ शकुनि-गृह - 'वालं सउणिघर ए ( आचू पृ ३४० ) । वालंक -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । वालंजक -- कपड़े का व्यापारी ( औपटी पृ ६४ ) । वालंजुय -- वणिक् - 'वाणिय त्ति वालंजुओ' ( निचू ३ पृ १६३ ) । वालंफोस -- कनक, सोना ( दे ७।६० ) । वालंभ -- मुकुट का प्रालंब - 'वालंभा मउडादिसु ओचूला' ( निचू २ पृ ३९८ ) । वालकल्लि -- भोज्य-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । वालग -- १ पात्र-विशेष ( आचला १।१०४ ) । २ शकुनी - गृह ( आचू पृ ३४० ) । वालगपोतिया -- जलमंदिर ( सूर्यटी प ७० ) । वालग्गपोइया -- १ वलभी, अट्टालिका । २ तालाब के मध्य में स्थित छोटा प्रासाद - 'वालग्गपोइयातो य त्ति देशीपदं वलभीवाचकं, अन्ये त्वाकाशतडागमध्य स्थितं क्षुल्लक प्रासादमेव वालग्गपोइया य त्ति देशीपदाभिधेयमाहुः' ( उशाटी प ३१२ ) । वालग्गपोतिका -- तालाब के मध्य क्रीड़ा करने का लघु प्रासाद - 'वालाग्रपोतिकाशब्दो देशीशब्दत्वादाकाशतडागमध्ये व्यवस्थितं क्रीडास्थानं लघुप्रासादमाह' ( सूर्यटी प ७० ) । वालग्गपोत्तिया -- १ वलभी - :वालग्गपोत्तियाओत्ति देशीयपदं वलभीवाचकम्' ( उसुटी प १४८ ) । २ जलमंदिर । वालप्प -- पुच्छ, पूंछ ( दे ७।५७ ) । वालवास -- मस्तक का आभूषण ( दे ७।५९ ) । वालिआफोस -- कनक, सोना ( दे ७।६० ) । वालिंजुक -- १ व्यापार के लिए एक गांव से दूसरे गांव जाने वाले ( ओटी पृ १९६ ) । २ कपड़े का व्यापारी ( बृटी पृ ११५८ ) । वालिका -- कान की बाली, आभूषण-विशेष - 'वालिका कण्णवल्लीका कण्णिका कुंडमालिका' ( अंवि पृ ७१ ) । वालिखरग -- जलीय वनस्पति-विशेष ( आचू पृ ३४१ ) । वालिया -- वाद्य-विशेष ( नि १७।१३८ ) । वाली -- वाद्य-विशेष, मुंह के पवन से बजाया जाने वाला तृण-वाद्य ( राज ७७; दे ७।५३) । वालीण -- मत्स्य-विशेष - 'वालीणा सुंसुमारा कच्छपमगरा' ( अंवि पृ २२८ ) । वालु -- दूध - एगट्ठ णाणवंजण दुद्ध पयो वालु खीरं च ' ( जीभा ११३२ ) । हालु ( कन्नड ) । पाल ( तमिल ) । वालुंक -- पक्वान्न-विशेष-खीर-दधि-पूव-कट्टरलंभे गुड-सप्पि-वडग-वालुंके' ( पिनि ६३७ ) । वालुंजुक -- व्यापार के लिए एक गांव से दूसरे गांव जाने वाले ( ओटी पृ १९६ ) । वालुंडय -- रोमकूप ( तंदु ११६ ) । वालेपतुंद -- कर्माजीवी ( अंवि पृ १६१ ) । वावअ -- आयुक्त, गांव का प्रमुख ( दे ७।५५ ) । वावड -- १ कुटुम्बी, गृहस्थ ( दे ७।५४ ) । २ व्याकुल ( वृ ) । वावडय -- विपरीत मैथुन ( दे ७।५८ ) । वावडया -- विपरीत मैथुन ( पा ४३२ ) । वावणी -- छिद्र, विवर ( दे ७।५५ ) । वावदारी -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । वाविअ -- विस्तारित ( दे ७।५७ ) । वावोणय -- विकीर्ण, बिखरा हुआ ( दे ७।५९ ) । वासंदी -- कुन्द का पुष्प ( दे ७।५५ ) । वासपडाग -- सर्प की एक जाति ( प्रज्ञा १।७१ पा ) । वासवार -- १ तुरंग, घोड़ा ( दे ७।५९ ) । २ कुत्ता । वासवाल -- श्वान, कुत्ता ( दे ७।६० ) । वासाणिया -- वनस्पति-विशेष ( सू २।३।२२ ) । वासाणी -- रथ्या, गली ( दे ७।५५ ) । वासिय -- पर्युषित, रात का बचा हुआ ( खाद्य आदि ) - 'अच्छइ जाव पभायं वासियभत्तं च से वसभा' ( ओनि १२ ) । वासीमुह -- द्वीन्द्रिय जंतु-विशेष, वासीमुख ( उ ३६।१२८ ) । वासुरुल -- स्थान-विशेष, उपद्रुत स्थान ( अंवि पृ २२२ ) । वासुल -- १ कुन्द का फूल ( अंवि पृ ७० ) । २ गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १४९ ) । वासुली -- कुन्द का पुष्प ( दे ७।५५ ) । वासेलिका -- जलक्रीड़ा ( अंवि पृ २५५ ) । वाहगण -- मंत्री ( दे ७।६१ ) । वाहगणय -- मंत्री ( दे ७।६१ वृ ) । वाहड -- भरा हुआ, परिपूर्ण - 'बहुवाहडा अगाहा, बहुसलिलुप्पिलोदगा' ( द ७।३९ ) । वाहणा -- ग्रीवा, गला ( दे ७।५४ ) । वाहली -- लघु जल-प्रवाह ( दे ७।३९ ) - वाहली शब्दः लघुजलप्रवाहवाचको देश्य एव वक्ष्यते' ( दे ३।२७ वृ ) । वाहा -- बालुका, रेत ( दे ७।५४ ) । वाहाडिया -- गर्भवती ( बृटी पृ १०३१ ) । वाहाया -- वृक्ष-विशेष - 'समिसंगलिया इ वा वाहायासंगलिया इ वा' ( अनु ३।४१ ) । वाहि -- चिरप्रसूता गाय - 'न वि वच्छएसु सज्जंति वाहिओ नेव वच्छमाऊसु' ( बृभा २१२० ) । वाही -- एक कला-विशेष - 'पत्तच्छेज्जाणि वा वाहीणि वा वेहिमाणि वा' ( निचू ३ पृ ३४९ ) । वाहुया -- त्रीन्द्रिय जंतु-विशेष ( जीवटी प ३२ ) । विअओलिअ -- मलिन, मैला ( दे ७।७२ ) । विअंगिअ -- निन्दित ( दे ७।६९ ) । विअंसअ -- व्याध, बहेलिया ( दे ७।७२ ) । विअडिय -- सुरा-संधानकारी, मद्य बनाने वाला ( व्यभा ६ टी प ४३ ) । विअलंबल -- दीर्घ ( दे ७।३३ ) । विआरिआ -- पूर्वाह्ण का भोजन ( दे ७।७१ ) । विआल -- १ संध्या - राओ य विआले य पविसमाणे ( विपा १।५।२६; दे ७।९० ) । २ चोर ( दे ७।९० ) । विआलुअ -- असहन, असहिष्णु ( दे ७।६८ ) । विउव्वाढ -- १ विस्तीर्ण । २ दुःखमुक्त ( दे १।१२९ वृ ) । विऊरिअ -- नष्ट ( दे ७।७२ ) । विएऊण -- चुनकर - 'सुयसागरा विएऊण जेण सुयरयणमुत्तमं दिण्णं' ( प्रज्ञाटी प ४ ) । विओल -- उद्विग्न ( दे ७।६३ ) । विंख -- वाद्य-विशेष ( आवचू १ पृ ३०९ ) । विंचिणिअ -- १ पाटित, विदारित । २ धारा, प्रवाह ( दे ७।९३ ) । विंटल -- वशीकरण - विद्या - 'निमित्तादिना विण्टलेन कृते - भाविते' ( बृटी पृ ६३३ ) । विंटलिया -- १ वशीकरण - विद्या । २ निमित्त आदि का प्रयोग-विंटलियाणि पउंजंति' ( ग ११९ ) । विंटिया -- १ गठरी, पोटली ( उशाटी प ८७ ) । २ मुद्रिका, बींटी । विकडुभ -- शालनक ( बृटी पृ ३१२ ) । विकालिका -- आभूषण-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । विकिच्चिका -- रोग-विशेष - 'कुट्ठं किडिभं दद्दू विकिच्चिका पामा' ( निचू २ पृ २१४ ) । विक्कमण -- चतुर चाल वाला घोड़ा ( दे ७।६७ ) । विक्किय -- संस्कृत, सुधारा हुआ ( दहाटी प २२१ ) । विक्केणुअ -- विक्रेय, बेचने योग्य ( दे ७।६९ ) । विक्ख -- नपुंसक का एक प्रकार - 'विक्खो य संढो वा वि णरेतरो' ( अंवि पृ ७३ ) । विक्खंभ -- १ बीच का भाग, अंतराल ( आवचू २ पृ १२३; दे ७।८८ ) । २ स्थान ( दे ७।८८ ) । ३ छिद्र, विवर ( से ३।१४ ) । विक्खण -- कार्य ( दे ७।६४) । विक्खास -- विरूप, कुत्सित ( दे ७।६३ ) । विक्खिण्ण -- १ आयत, लम्बा । २ जघन ( दे ७।८८ ) । ३ अवतीर्ण ( वृ ) । विगड -- निर्जीव, प्रासुक - 'विगतजीवं विगडं' ( आचू पृ ३०८ ) । विगरणी -- भंजन - 'तओ सा आयरिएहिं चड त्ति विगरणी कया' ( बृटी पृ १३१६ ) । विगलि -- अरण्य - 'धीरा वाएण उदीरिएण विगलिम्मि ओलाइया' ( म ४८१ ) । विग्गुत -- विपरीत, विप्रतिपन्न ( सूचू १ पृ २३० ) । विग्गोव -- व्याकुलता ( दे ७।६४ ) । विचिक्की -- वाद्य-विशेष ( राज ७७ ) । विच्च -- १ बीच में - 'णहमलो णहविच्च रेणू' ( निचू २ पृ २२१ ) । २ स्तूप - इट्टगादिचिया विच्चा थूभो भण्णति' ( निचू २ पृ २२५ ) । ३ बुनने की क्रिया - 'ण य ताण कुच्चविच्चाणि निज्झातियव्वाणि' ( आवचू १ पृ ३५४ ) । ४ मार्ग ( प्रा ४।४२१ ) । ५ जटित । विच्चग -- स्तूप - 'थूभा पुण विच्चगा होंति' ( निभा १५३५ ) । विच्चोअअ -- उपधान, तकिया ( दे ७।६८ ) । विच्छडु -- १ समूह, निकर ( से २।२ ; दे ७।३२ ) । २ ठाटबाट, धूमधाम - 'पूइओ महाविच्छड्डेण कुसुमवत्थाईहिं' ( उसुटी प १३६ ) । विच्छिअ -- १ पाटित, विदारित । २ विचित, चुना हुआ । ३ विरल ( दे ७।९१ ) । विच्छेअ -- १ विलास । २ जघन ( दे ७।९० ) । विच्छोलिअ -- धौत, धोया हुआ - 'धोअं विच्छोलिअं' ( पा ९२० ) । विच्छोह -- विरह, वियोग ( दे ७।६२ ) । विजढ -- परित्यक्त ( उ ३६।८२ ) । विजाय -- लक्ष्य - 'लक्खं विजायं' ( पा ८४० ) । विज्जल -- १ पंकिल मार्ग ( द ५।४ ) । २ चिकने कीचड़ वाला स्थान - 'स्निग्ध कर्दमाविलस्थानं यत्र जनोऽतर्कित एव पतति' ( जंबूटी प १२४ ) । विज्जुल -- पंकिल मार्ग ( आटी प ४०९ ) । विज्झडावेउं -- डांट-फटकार कर - 'रायपुरिसेहि य घेत्तुं पिट्टित्ता रण्णो य णीओ पासं, सिट्ठे रण्णा विज्झडावेउं वज्झो आणत्तो' ( आचू पृ १८७ ) । विज्झडित -- व्याप्त - 'बहुखंडंतरेसु वा कंटगेसु विज्झडितं किज्जति वा' ( निचू २ पृ ९३ ) । विज्झडिय -- व्याप्त - 'सीयउण्हखरफरुसवायविज्झडियमलिणपंसुरउग्गुंडियंगमंगं' ( भ ७।११९ ) । विज्झिडि -- मत्स्य की एक जाति ( विपाटी प ७९ ) । विज्झिडिय -- मत्स्य की जाति-विशेष ( प्रज्ञा १।५६ ) । विटपोल्लक -- ललकार, विस्वर ( प्रटी प ५८ ) । विट्टाल -- नीच - 'अहमो चिलीणकम्मो पावो अह विट्टलो णिहीणो य' ( कु पृ २२३ ) । विट्टाल -- उच्छिष्टता, अपवित्रता ( प्रा ४।४२२ ) । [ मराठी-विटाल ] विट्टालणा -- अपवित्रता, उच्छिष्टता ( बृटी पृ ९९९ ) । विट्टालित -- भ्रष्ट, उच्छिष्ट ( निचू ३ पृ १३७ ) । विट्टी -- गठरी ( ओनि ३२४ पा ) । विट्ठ -- १ ऐसा स्थान जिसके चारों ओर पानी हो - 'जूवयं णाम विट्ठं पाणियपरिक्खित्तं' ( निचू ४ पृ ५४ ) । २ सुप्तोत्थित, सोकर उठा हुआ । विट्ठर -- भाजन-विशेष ( जंबूटी प १०० ) । विड -- विष्ठा - विडित्ति विट्ठा ( प्रसा ९६ ) । विडअ -- राहु, ग्रह-विशेष ( दे ७।६५ ) । विडओलण -- धाडा, लूट ( ओटी प ४४ ) । विडंकिआ -- वेदिका, वेदी ( दे ७।६७ ) । विडप्प -- राहु, ग्रह-विशेष ( दे ७।६५ ) । विडसण -- स्वाद लेकर खाना - विडसणं पि णेच्छामो ( निभा ४८४३ ) । विडसणा -- स्वाद लेते हुए थोड़ा-थोड़ा खाना - विडसणा णाम आसादेंतो थोवं थोवं खायति' ( निचू ३ पृ ५१८ ) । विडिंचिअ -- विकराल, भयंकर ( दे ७।६९ वृ ) । विडिच्चिर -- विकराल, भयंकर ( दे ७।६९ ) । विडिम -- १ वृक्ष ( प्र ९।१ ) । २ वृक्ष का मध्य भाग । ३ वृक्ष का विस्तार ( ज्ञाटी प ५ ) । ४ बाल मृग । ५ गेंडा ( दे ७।८९ ) । ६ शाखा ( दअचू पृ ७ ) । विडिमा -- प्रशाखा - 'तत्थ जे खंधाओ ते साला भण्णंति, सालाहिंतो जे णिग्गया ते विडिमा भण्णंति' ( दजिचू पृ २५५ ) । विडिमी -- वृक्ष - दुमा य पायवा रुक्खा विडिमी य अगा तरू' ( दनि १४ ) 'विडिमाणि जेसि विज्जंति ते विडिमी' ( दअचू पृ ७ ) । विडोमिअ -- गण्डकमृग, गेंडा ( दे ७।५७ ) । विड्ड -- १ प्रपंच, विस्तार ( दे १।४ वृ ) । २ दीर्घ, लंबा ( दे ७।३३ ) । विड्डर -- १ आभोग । २ भयंकर ( दे ७।९० पा ) । ३ आडंबर । विड्डिर -- १ । २ रौद्र, भयंकर ( दे ७।९० ) । ३ आटोप, आडंबर ( पा ९१४ ) । विड्डिरिल्ला -- रात्री ( दे ७।६७ ) । विड्डेर -- नक्षत्र-विशेष, पूर्वद्वार वाले नक्षत्रों में पूर्व दिशा से जाने के बदले पश्चिम दिशा से जाने पर प्राप्त होने वाला नक्षत्र - 'पूर्वद्वारिकेषु नक्षत्रेषु पूर्वदिशा गन्तव्ये अपरया गच्छतो पिड्डेरम्' ( विभामहेटी २ पृ ३२७) । 'जं जत्थ गमणकम्म समारंभादिसु अणिभिहियं तं विड्डेरं विगतद्वारमित्यर्थ: ( निचू ४ पृ ३०१ ) । विड्ढर -- गृहस्थ के लिए जादू-टोना में प्रवृत्त होना ( व्यभा ४।३ टी प ४९ ) । विढणा -- पार्ष्णि, एडी ( दे ७।६२ ) । विढत्त -- अर्जित ( प्रा ४।२५८ ) । विणडिअ -- व्याकुल- रायउत्तविरहुव्विग्गा य गब्भभरविणडिया चिंतिउं पयत्ता' ( कुपृ ७५ ) । विणण -- बुनना ( निचू ३ पृ ५७३ ) । विणाड -- ढेंढरा, टेंटर, आंख का एक रोग जिसमें मांस उभर भाता है ( दअचू पृ १६७ ) । विणिव्वर -- पश्चात्ताप ( दे ७।६८ ) । वितत -- कार्य ( दे ७।६४ ) । वितिहव -- परिचित - 'संजयभावियखेत्ते तस्स असतीए उ चक्खुवितिहवेचक्षुर्विटिहते दृष्ट्या परिचिते' ( व्यभा ८ टी प ५५ ) । वित्त -- दीर्घ, लम्बा ( दे ७।३३ वृ ) । वित्तइ -- १ गर्वित, अभिमानी । २ विलसित ( दे ७।९१ ) । ३ गर्व, अहंकार - 'वित्तई गर्व इत्यन्ये' ( वृ ) । वित्तीकप्प -- प्रायः पूर्ण- 'अट्टमे मासे वित्तीकप्पो हवइ ' ( तंदु १९ ) । वित्थक्कंत -- १ स्थिर होता हुआ । २ विलंब करता हुआ ( से १३।७० ) । विदर -- जलस्थान-विशेष ( ज्ञाटी प ४० ) । विद्दंडिय -- विनाशित ( दे ७।७० ) । विद्दणा -- लज्जा ( दे ७१६५ पा) । विद्दूणा -- लज्जा, शरम ( दे ७।६५ ) । विधित्तिका -- फल-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । विपित्त -- विकसित ( दे ७।६१ ) । विप्प -- पुच्छ पूंछ ( दे ७।५७ ) । विप्पय -- १ खल-भिक्षा । २ वैद्य । ३ दान । ४ वापित, बोया हुआ ( दे ७।८९ ) । विप्परद्ध -- विशेष-पीड़ित - 'कर चरण-दंत मुसलप्पहारेहिं विप्परद्धे समाणं' ( ज्ञा १।१।१६१ ) । विप्पराद्ध -- हत प्रहत ( ज्ञाटी प ७३ ) । विप्पवर -- भल्लातक, भिलावा ( दे ७।६६ ) । विप्पावग -- हास्यकर्त्ता, उपहास करने वाला - 'तेण वि विप्पावगो त्ति नाऊण संजायमाणकोवेण भणियं' ( उसुटी प ४ ) । विप्पास -- मल-मूत्र-वित्ति-विष्ठा-पत्ति-प्रश्रवणं-मूत्रं ( प्रटी प १०५ ) । विप्पिंडिय -- विनाशित ( दे ७।७० ) । विप्पित -- १ विघ्नयुक्त - विग्घतत्ति विप्पितत्ति एगट्ठा' ( आचू पृ २४२ ) । २ विकलांग । विप्पिय -- कूटा हुआ, छिन्न - पिच्चिउ त्ति वा विप्पिउ त्ति वा कुट्टितो त्ति वा एगट्ठं' ( निचू ४ पृ २०९ ) । विप्फाडिअ -- नाशित, नष्ट किया हुआ ( दे ७।७० ) । विप्फाल -- पृच्छा - 'देशीवचनमेतत् ' ( व्यभा २ टी प २१ ) । विप्फालण -- पृच्छा ( व्यभा २ टी प २१ ) । विप्फालणा -- प्रश्न, पृच्छा - विप्फालणा णाम वियडणा' ( निचू ३ पृ ३६ ) । विब्बोक -- शरीर का एक प्रकार का वकार - 'विब्बोकः देशीपदं अंगजविकारार्थे' ( मनुद्वाहाटी पृ ६९ ) । विब्बोय -- १ स्त्री की शृंगार-चेष्टा-विशेष । २ काम-विकार ( अनुद्वा ३११ ) । विब्बोयण -- उपधानक, तकिया ( सूर्य २०।७ ) । विब्भवण -- उपधान, तकिया ( दे ७।६८ ) । विब्भिडिय -- मत्स्य की एक जाति ( प्रज्ञा १।५६ पा ) । विब्भेइअ -- सूई से विद्ध ( दे ७।६७ ) । विभंगु -- तृण-विशेष ( प्रज्ञा १।४२ ) । विभमण -- उपधान, तकिया ( दे ७।६८ वृ ) । विमइअ -- भर्त्सित, तिरस्कृत ( दे ७।७१ ) । विमय -- पर्व-वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।४१ ) । विमलहर -- कोलाहल ( दे ७।७२ ) । विमलिअ -- १ मत्सर से उक्त । २ शब्द - सहित, शब्दवाला ( दे ७।९२ ) । विमा -- बांस का एक प्रकार ( भ २१।१७ ) । विमिसिंत -- प्रकाशित ( अंवि पृ ६ ) । विम्हराइय -- १ मूर्छित । २ विस्मापित ( से ९।४१ ) । वियंछिय -- विकर्षण- मा तेण अंछवियंछियं कज्जिहिति' ( आवहाटी २ पृ २२८ ) । वियट्ट -- आकाश - अट्टे इ वा वियट्टे इ वा आधारे इ वा ' ( भ २०।१६ ) । वियड -- १ प्रासुक, निर्जीव-जं किंचि पावगं भगवं, तं अकुव्वं वियडं भुंजित्था' ( आ ९।१।१८ ) । २ जल - 'वियडं समयभाषया जलम् ( ज्ञाटी प २९८ ) । ३ मद्य ( पिनि २३९ ) । ४ तुच्छ ( से ९।२९ ) । वियडग -- प्रासुक, निर्जीव ( दश्रू ८।२४० ) । वियडत्ता -- मदिरापान का नशा, मत्तता - पच्छा वियडत्ता जाया' ( उसुटी प ३४ ) । वियडासय -- चुल्लू - वियडासय चुलुकमाहुर्वृद्धाः' ( भटी पृ १२२७ ) । वियडि -- अटवी, जंगल - वियडिशब्देन लोके अटवी उच्यते' ( ज्ञाटी प ७२ ) । वियड्डि -- तलाई - 'वियड्डि त्ति देशीवचनतः तडागिका' ( उशाटी प १३८ ) । वियर -- १ नदी आदि के सूख जाने पर पानी निकालने के लिए किया जाने वाला गर्त्त ( स्थाटी प २६९ ) । २ गर्त्त ( ज्ञाटी प २३६ ) । वियरग -- १ नदी आदि जलाशय के सूख जाने पर पानी के लिए किया जाने वाला गढा ( ज्ञा १।१।१५९ ) । २ कूपिका, छोटाकूप-वियरगोत्ति-कूविया' ( निचू ३ पृ ५८४ ) । वियरय -- १ लघु स्रोत वाला जलाशय जो सोलह हाथ विस्तृत होता है । नदी या महागर्त में इसका संकुचन तीन हाथ विस्तृत होता है ( व्यभा ४।३ टी प ६ ) । २ गर्त ( ज्ञा १।१७।२२ ) । वियली -- घर के चार कोनों में रखा जाने वाला छोटा स्तंभ - यूणाओ होति वियली' ( निभा ४२६८ ) । वियाउया -- पैर फटना, बिवाई - 'सीतेण वि पव्वीसु वियाउआसु फुट्टंती सु खल्लगादि पुडगे बंधति' ( निचू ३ पृ २३ ) । वियार -- १ विस्तीर्ण - 'सवियारो त्ति वित्थिन्नो' ( बृभा २०२२ चू ) । २ शौच-स्थान ( निचू १ पृ ४४ ) । वियाल -- संध्या - 'वियाले त्ति सन्ध्यायाम्' ( विपाटी प ६९ ) । वियावड -- आकुल ( ओटी प १३८ ) । वियावत्त -- जीर्णशीर्ण, अपरिलक्षित-विधावत्तं नाम अव्यक्तमित्यर्थः, भिन्नपडियं अपागडं' ( आवहाटी १ पृ १५२ ) । विरमालिय -- प्रतीक्षित ( पा ५७० ) । विरय -- १ लघु स्रोत वाला जलाशय जो सोलह हाथ विस्तृत होता है। नदी या महागर्त में इसका संकुचन तीन हाथ विस्तृत होता है ( व्यमा ४।३ टी प ९ ) । २ छोटा जल-प्रवाह ( दे ७।३९ ) । विरलि -- वस्त्रविशेष, डोरिया ( प्रसाटी प १९१ ) । विरली -- चतुरिन्द्रिय प्राणी-विशेष ( उ ३६।१४७ ) । विरल्लिअ -- जलार्द्र, जल से भीगा हुआ ( दे ७।७१ ) । विरल्लित -- विकीर्ण, विस्तारित ( स्था ४।५७७ ) । विरल्लिय -- विस्तारित - 'जह उल्ला साडीया आसुं सुक्कइ विरल्लिया संती' ( विभा विरस -- वर्ष (दे ७।६२) । विरसमुह -- काक, क आ विरह -- १ एकान्त ( विपा १।६।३१; दे ७।९१ ) । २ कुसुंभ रंग से रंगा हुआ वस्त्र ( विरहाल -- कुसुंभ रंग से रंगा हुआ वस्त्र ( दे ७।६८ ) । विराय -- विलीन, पिघल हुआ ( पा ८०२ ) । विराली -- आस्तरण-विशेष ( जीविप पृ ५१ ) । विरिंचिअ -- १ विमल, निर्मल । २ विरक्त, उदासीन ( दे ७।९३ ) । विरिंचिर -- १ अश्व, घोड़ा । २ विरल ( दे ७।९३ ) । विरिंचिरा -- धारा प्रवाह - 'विरिंचिरा धारेति केचित्' ( दे ७।९३ वृ ) । विरिक्क -- १ अपना विभाग लेकर जो अलग हो गया हो वह - 'दो भाउया वाणिया ते य परोप्परं विरिक्का' ( ओटी पृ ३८७ ) । २ पाटित, विदारित ( दे ७।६४ ) । विरिक्का -- बिंदु, लेश ( उसुटी प ३६ ) । विरिज्जअ -- अनुचर ( दे ७।६६ ) । विरुअ -- १ खराब, कुत्सित ( दे ७।६३ ) । २ विरुद्ध प्रतिकूल । विरुंगण -- १ उपद्रुत । २ छिन्न ( बृभा ९०४ ) । विरुंगिय -- १ उपद्रुत । २ छिन्न ( निचू ३ पृ २०० ) । विरुंचण -- विरूप, कुडौल ( बृभा २५०२ ) । विरूग -- १ व्याघ्र । २ भेडिया ( नंदिटि पृ १३३ ) । विरुव - १ भेड़िया - तं चरंतस्स ण हायइ बलं विरूवं च पेच्छंतस्स भएण ण वड्डइ' ( आवहाटी १ पृ २७८ ) । २ व्याघ्र - 'वग्घो त्ति विरूवो' ( निचू ३ पृ ४९२ ) । विरेग -- १ अवसर । २ विश्राम - दिवसतो विरेगो नत्थि, रत्तिंपि पडिपुच्छण-सिक्खगाईहिं सुइयं न लहइ' ( उशाटी प १२९ ) । विरेल्लिय -- विस्तृत ( ज्ञा १।१७।३६ ) । विरोलिअ -- मथित ( पा ५५५ ) । विलअ -- सूर्य का अस्त होना, सूर्य की अस्तमन वेला ( दे ७।६३ ) । विलइय -- १ अधिज्य, धनुष्य की डोरी पर चढाया हुआ । २ दीन, गरीब ( दे ७।९२ ) । ३ नियोजित, आरोपित । ४ शिरोधार्य - 'पढुमं चिअ रहुवइणा उवरिं, हिअअ तुलिओ भरो व्व विलइओ' ( से ३।५ ) । विलउलग -- लुटेरा - 'लुंटागा विलउलगा' ( निचू ३ पृ २१९ ) । बिलउलय -- लुटेरा ( निचू ३ पृ २१९ ) । विलउली -- १ तलाशी ( प्र ३।१३ ) । २ ठगने के लिए विस्वर वचन ( बोलना ) ( प्र ३।१४ ) । विलओलग -- लुटेरा ( बुटी पृ ८२५ ) । विलओलण -- धाड़ी, डाका ( ओनि ८५ ) । विलओलय -- लुटेरा- देशीपदत्वाद् लुण्टाका:' ( बृटी पृ ८२५ ) । विलओली -- १ ललकार, विस्वर । २ तलाशी ( प्रटी प५८ ) विलंक -- मांस - 'अविलंको न सक्केमि पातुं' ( दअचू पृ २७ )। विलका -- तरुण स्त्री - 'जोसिता धणिता व त्ति विलक त्ति विलासिणी' ( अंवि पृ ६८ ) । विलमा -- धनुष की डोरी ( दे ७।३४ ) । विलय -- पक्षी-विशेष ( भ १२।१६१ ) । विलया -- वनिता, स्त्री ( तंदु १६३ ) । विलालु -- पर्वत के बिलों में रहने वाला प्राणी- विशेष, बिडाल ( अंवि पृ २२७ ) । विलिंजर -- पुष्प-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । विलिंजरा -- धाना, भुने हुए जौ ( दे ७।६९-) । विलिप्पिल -- कीचड ( निचू ३ ) । विलिय -- १ लज्जित - 'सो उड्डाहिओ समाणो विलिओ अग्गओ गच्छइ' ( उसुटी प ५५ ) । २ लज्जा ( दे ७।६५ ) । ३ विप्रिय ( वृ ) । विलियंध -- वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ६३ ) । विलिव्विली -- कोमल और निर्बल शरीर वाली स्त्री ( दे ७।७० ) । विलुंगयाम -- साधु, निर्ग्रन्थ - 'विलुंगयामो त्ति निर्ग्रन्थः अकिञ्चनः' ( आटी प ३२९ ) । लुंपअ -- कीट, कीड़ा ( दे ७।६७ ) । विलुंपिअ -- १ अभिलषित, कांक्षित ( दे ७।६६ ) । २ अशित, कवलित - 'असिअं विलुंपिअं वंफिअं खइअं' ( पा १३४ ) । विलुक्क -- १ छिपा हुआ ( आवमटी प ४६३ ) । २ विमुण्डित, सर्वथा लुंचित ( पिनि २१७ ) । विलुत्तहिअअ -- जो समय पर काम करना न जानता हो वह ( दे ७।७३ ) । विल्ल -- १ अच्छ, स्वच्छ । २ विलसित, विलासयुक्त ( दे ७।८८ ) । ३ सुगंधी द्रव्य-विशेष जो धूप खेने में काम आता है । विल्लरी -- १ पक्षिणी, राजहंसिनी- विल्लरी रायहंसि त्ति कलहंसि त्ति वा पुणो' ( अंबि पृ ६९ ) । २ केश, बाल ( दे ७।३२ ) । विल्लहल -- १ स्फीत, तीव्र - 'सललिय-विल्लहलगई' ( आवनि १२५७ ) । कोमल । ३ विलासी ( दे ७।९६ पा ) । विल्ह -- धवल, सफेद ( दे ७।६१ ) । विवच्चि -- पैर में बिवाई फटना - 'पुडगविवच्चि सीते' ( निभा ३४३२ ) । विवणिज -- फेरी कर माल बेचने वाला व्यापारी ( बृटी पृ ९१८ ) । विवहार -- कष्ट ( आवहाटी १ पृ ३०१ ) । विवाहेंडल -- अल्पश्रुत, मंदबुद्धि - 'तं पुण ण को ति जाणति पूएति वा, मयमायवच्छदो विवाहेंडलो, अणाढितो सव्वलोयस्स' ( निचू ३ पृ २५ ) । विवित्त -- मुषित, लूटित - अद्धाणंमि विवित्ता, अद्धाणे ।विवित्ता मुषिता इत्यर्थः' ( निचू १ पृ ८३ ) । विव्वाअ -- १ अवलोकित । २ विश्रान्त ( दे ७।८९ ) । विसंवाय -- मलिन, मैला ( दे ७।७२ ) । विसकुंभ -- १ मकडी, लूता - विसकुंभो त्ति लूता भण्णति' ( निचू १ पृ ७५ ) । २ मकडी के काटने से होने वाला विषैला फोड़ा-विशेष ( बृटी पृ १०७२ ) । विसट्ट -- १ विघटित, विश्लिष्ट ( पा ८१० ) । २ विशीर्ण, विदलित ( भ ८।२२ ) । ३ विकसित - 'हरिसवसविसट्टकंटयकरालो' ( भत्त ३० ) । ४ उत्थित । विसट्टमाण -- विदलित करता हुआ ( स्था ४।५१४ ) । विसढ -- १ नीराग, रागरहित ( दे ७।६२ ) । २ नीरोग, स्वस्थ । ३ ( वृ ) । ४ विशीर्ण ( से ६।६६ ) । ५ आकुल-व्याकुल ( से ११।८९ ) । ६ सहन किया हुआ । विसमय -- भल्लातक, भिलावा ( दे ७।६६ ) । विसमिअ -- १ विमल, निर्मल । २ उत्थित, उठा हुआ ( दे ७।९२ ) । विसर -- सेना, लश्कर ( दे ७।६२ ) । विसरा -- जाल-विशेष ( विपा १।८।१९ ) । विसरिया -- गिरगिट - ' विसरिया सरडो भण्णति' ( निचू ३ पृ ६० ) । विसलाइत -- विकीर्ण - 'विक्खिन्नं णिक्खिन्नं विसलाइतं' ( अं विपृ ८० ) । विसारण -- फल-फूल आदि के टुकड़ों को सुखाने के लिए धूप में रखना ( पिनि ५९० ) । विसारय -- धृष्ट, ढीठ ( दे ७।६६ ) । विसारि -- कमलासन, ब्रह्मा ( दे ७।६२ ) । विसालअ -- जलधि, समुद्र ( दे ७।७१ ) । विसालिस -- विसदृश, विभिन्न - 'विसालिसेहिं ति मागधदेशीयभाषया विसदृशः ( उशाटी प १८७ ) । विसि -- गज-पर्याण, हाथी की झूल ( दे ७।६१ ) । विसिण -- रोमश, प्रचुर रोमवाला ( दे ७।६४ ) । विसिरा -- एक प्रकार का मत्स्य-जाल ( विपाटी प ८१ ) । विसुयावण -- सुखाना ( निभा ८४५ ) । विसुयावेंत -- सुखाता हुआ ( नि २।८ ) । विसूरणा -- खेद, खिन्नता - 'आयासविसुरणाकलहपकंपियग्गसिहरो' ( प्र ५।१ ) । विसूरिय -- खिन्न ( से १०।७६ ) । विसोवद -- कौडी का बीसवां भाग - 'विसोवदेण घेत्तुं ठावेहि ससक्खितं णगरद्दारेण मोदगं' ( दअचू पृ २९ ) । विस्कल्ल -- कर्दम विस्कल्लो देश्यां संस्कृतेऽपि ( अचि १०।९० ) । विस्सामण -- वैयावृत्य ( दश्रुचू प १३ ) । विह -- १ मार्ग ( ८।४।५८ ) । २ अंटवी ( बृभा ७४२ टि ) । ३ लंबा मार्ग, अनेक दिनों में उल्लंघनीय मार्ग ( आचूला ३।१२ ) । ४ कला-विशेष ( नि १२।१७) । विहई -- बृन्ताकी, बैंगन का गाछ ( दे ७।६३ ) । विहडप्फड -- १ व्याकुल, व्यग्र - 'जइ घडियं विहडिज्जइ घडियं घडियं पुणो वि विहडे । ता घडण विहडणाहिं होहिइ विहडप्फडो देव्वो।' ( कु पृ ६६ ) । २ त्वरित । विहण्ण -- पींजना, धुनना ( दे ७।६३ ) । विहय -- पिंजित, धुना हुआ ( दे ७।६४ ) । विहरिअ -- सुरत, संभोग ( दे ७।७० ) । विहलंघल -- व्याकुल, मूर्च्छित - 'नट्टचेयणो सिंहासणाओ मुच्छाविहलंघलो निवडिओ' ( उसुटी प २३५ ) । विहलंघलि -- उन्मत्त - 'पुरिसो विसयासत्तो विहलंघलिउव्व मज्जेण' ( प्रटी प ६५ ) । विहल्लप्फलय -- प्रसन्नता से व्याप्त सो णत्थि कोइ पुरिमो महिला वा तम्मि नयरमज्झम्मि । जो ण विहल्लप्फलओ कुवलयमालाविवाहेण । ( कु पृ १७०) । विहसिव्विअ -- विकसित ( दे ७।६१ ) । विहाडण -- अनर्थ ( दे ७।७१ ) । विहाण -- १ विधि, विधाता । २ प्रभात, प्रातःकाल ( दे ७।९० ) । ३ पूजा, अर्चा । विहुंडअ -- राहु, ग्रह-विशेष ( दे ७।६५ ) । विहोढ -- अनादर करना, लज्जित करना ( निभा ४७८२ ) । वीअ -- १ विधुर चंचल, अत्यंत व्याकुल । २ तत्काल ( दे ७।९३ वृ ) । वीअजमण -- खलिहान ( दे ६।९३ वृ ) । वीचि -- संकरी गली, संकीर्ण मार्ग ( दे ७।७३ ) । वीडक -- चावल आदि खाने का साधन ( निचू ३ पृ ५२१ ) । वीणण -- १ बीनना ( आवदी प ११४ ) । २ प्रकट करना । ३ ज्ञापन । वीणिया -- नाला, जल प्रवाह - 'जे भिक्खू दगवीणियं•••••करेति' ( नि १।१२ ) । वीय -- राशि - 'वीयं रासी' ( अंवि पृ २४१ ) । वीयरग -- कूपिका, छोटा कूप ( निभा ५०७४ ) । वीलण -- पिच्छिल, फिसलन युक्त ( दे ७।७३ ) । वीलणी -- पिच्छिल, फिसलन युक्त ( अंवि पृ २४३ ) । वीलय -- कर्णाभूषण, ताडंक ( दे ६।९३ वृ ) । वीली -- १ तरंग, कल्लोल ( दे ७।७३ ) । २ वीथी, पंक्ति, श्रेणी । वीवाह -- वधूपक्ष-संबंधी भोज ( व्यभा ९ टी प ८ ) । वीसंदण -- अधजले घी में डाले हुए तंदुल से बना खाद्य-विशेष - 'वीसंदणं अद्धनिद्दड्ढ घयमज्झछूढतंदुलनिष्फन्नं ( बृभा १७१० ) । वीसु -- युतक, पृथग् ( दे ७।७३ ) । वीसुंभण -- विष्वग्भाव, पृथग्भाव ( स्थाटी प २९५ ) । वंफ -- बातचीत - वुंफं करेंतो जाति' ( आचू पृ ३५८ ) । वुक्कड -- विकट, भयंकर - 'विसयमच्छकच्छवुक्कडं इंदियमहामयरसमाउलं... जोव्वणमहासागरं' ( कु पृ ७४ ) । वुक्कस -- १ मूंग, उड़द आदि की नखिका से निष्पन्न भोजन । २ अत्यन्त नीरस भोजन ( उशाटी प २९५ ) । वुक्कार -- गर्जन ( राज २८१ पा ) । वुक्ख -- वृक्ष ( अंवि पृ २२२ ) । बुखण -- विशेष प्रकार का बाज पक्षी - 'वुखणसेणे व्व हरणे व सण्णिरुद्धे वा ( अंबि पृ २५५ ) । वुच्छ -- १ विनष्ट, अवदग्ध - देशीपदत्वाद् अवदग्धं विनष्टमिति यावत्' ( बृटी पृ ३९२ ) । २ निर्वासित - वुच्छो अमेज्झमज्झे असुइप्पभवे असुइयम्मि' ( तंदु ४१ ) ॥ वुज्झण -- बहाकर ले जाना - वुज्झणं अपोहनं पानीयेन हरणं स्यात्' ( बृटी पृ १६३५ ) । वुणाविय -- बुनाया - 'तीए दुक्ख दुक्खेण छुहाए मरंतीए कत्तिऊण एक्का पोत्ती वुणाविया' ( आवहाटी १ पृ २०५ ) । वुण्ण -- १ त्रस्त, भीत - 'भय वुण्णलोयणा गच्छामो' ( उसुटी प ३९; दे ७।९४ ) । २ उद्विग्न ( दे ७।९४ ) । वुन्न -- भीत, त्रस्त ( प्रा ४।४२१ ) । वुप्पसुत्त -- मस्तक की माला ( अंवि पृ १६३ ) । वुप्फ -- शेखर, शिरोभूषण ( दे ७।७४ ) । वुब्भण -- १ डूबना ( बृभा ५६३२ ) । २ बहा कर ले जाना ( बृभा ६१८९ ) । वुय -- १ बुना हुआ । २ बुनवाया हुआ ( प्रसा ८४९ ) । वुल्लुवंत -- बोलता हुआ- अह विसरिसं वल्लुवंतो य आलोएति' ( निभा ६३९५ ) । वूरुट्ठी -- रूई से भरा हुआ वस्त्र-विशेष - रूतपूरितः पट: वूरुट्ठीति यदुच्यते' ( प्रसाटी प १९१ ) । वेअडिअ -- १ फिर से बोया हुआ ( दे ७।७७ ) । २ खचित, जडित ( पा १४० ) । ३ मोती वींधने वाला शिल्पी, जोहरी । वेअड्ढ -- भल्लातक, भिलावा ( दे ७।६६ ) । वेअल्ल -- १ मृदु, कोमल ( दे ७।७५ ) । २ असामर्थ्य ( वृ ) । वेआरिअ -- १ प्रतारित, ठगा हुआ । २ केश, बाल ( दे ७।६५ ) । वेआल -- १ अन्धा । २ अन्धकार ( दे ७।६५ ) । वेइआ -- १ पनीहारी, पानी लाने वाली स्त्री ( दे ७।७६ ) । २ अंगूठी ( वृ ) । वेइद्ध -- १ ऊर्ध्वीकृत, ऊंचा किया हुआ । २ विसंस्थल, विषम, चंचल । ३ आविद्ध, बींधा हुआ । ४ शिथिल ( दे ७।९५ ) । वेउट्टिया -- बार-बार पुनः पुनः ( व्य ४।२१ ) । वेंगी -- बाड़वाली ( दे ७।४३ ) । वेंट -- साधु का एक प्रकार - संविग्ग णितियवासी, कुसील ओसण्ण तह य पासत्था संसत्ता वेंटा वा, अहछंदा चेव अट्ठमगा ।।' ( निभा ३०९४ ) । वेंटक -- अंगूठी - 'अंगुलेयक मुद्देयकं वेंटकं' ( अंवि पृ १६३ ) । वेंटल -- वशीकरण-विद्या , निमित्त-शास्त्र ( ओनि ४२४ ) । वेंटिया -- गठरी ( निभा २८७ ) । वेंढसुरा -- कलुषित मदिरा ( दे ७।७८ ) । वेंढि -- पशु ( दे ७।७४ ) । वेंढिअ -- वेष्टित, लपेटा हुआ ( दे ७।७६ ) । वेगपक्क -- मांस पकाने की विधि-विशेष-जम्मपक्काणि वेगपक्काणि य त्ति रूढिगम्यम्' ( विपाटी प ८० ) । वेगल -- दूरवर्ती - 'एवं तुब्भं पि पुरेकम्मकओ कम्मबंधदोसो ब्रह्महत्यावद् वेगलो भवति' ( बृटी पृ ५४४ ) । वेग्गल -- दूरवर्ती ( प्रा ४।३७० ) । वेच्च -- जटित ( जीवटी प २१० ) । वेज्झल -- विह्वल ( भटी प ३०७ ) । वेट्टावण -- बैठाना - 'अस्संजतस्स वेट्ठावणादि पडिसिद्धं' ( दअचू पृ १७७ ) । वेट्ठि -- बेगार - ण बला कारिज्जति । वेट्ठि वा मण्णति' ( आचू पृ २८६ ) । वेड -- नौका, नाव ( दे ६।९५ वृ ) । वेडइअ -- वर्णिक्, व्यापारी ( दे ७।७८ ) । वेडंतिय -- धातु-विशेष - 'रयय जायरूव काय वेडंतिय वट्टलोह' ( औप १०५ ) । वेडयकारि -- रेश्मी वस्त्र बनाने वाला ( निचू ३ पृ २७१ ) । वेडिअ -- मणिकार, जौहरी ( दे ७।७७ ) । वेडिकिल्ल -- संकीर्ण, जनसंकुल ( दे ७।७८ ) - किं लोअवेडिकिल्ले वेंढसुरं देसि पाणिअं खिविअ' ( वृ ) । वेडुंबंक -- नृपादि-कुल में उत्पन्न ( आवदी २ प ७० ) । वेडुल्ल -- गर्वित, अभिमानी ( दे ७।४१ ) । वेड्ड -- लज्जित, अपमानित - 'ततेणं से राया लज्जिते विलिए वेड्ड तुसिणीए संचिट्ठति' ( आवचू १ पृ ४८४ ) । वेढल -- एक प्रकार का ग्राह ( प्रज्ञा १।५८ ) । वेण -- नदी का विषम घाट ( दे ७।७४ ) । वेणिअ -- वचनीयता, लोकापवाद ( दे ७।७५ ) । वेणुणास -- भ्रमर, भौंरा ( दे ७।७८ ) । वेतव्वग -- खाद्य-विशेष ( निचू २ पृ २४१ ) । वेतालिया -- किनारा, तट, देखो -- 'वेताली' ( आवहाटी १ पृ २३७ ) । वेताली -- १ स्थान - विशेष, नदी आदि का तट - 'मए य सव्ववेतालीओ तुज्झचएण गवेसाविताओ' ( आवचू १ पृ ४६८ ) । २ वेताला नदी का तट -- ' वैतालीशब्दोऽत्र देशीवचनत्वात् वेतालातटवाची' ( प्रज्ञाटी प ३३० ) । ३ रथ्या, गली । वेत्त -- स्वच्छ वस्त्र ( दे ७।७५ ) । वेदूणा -- लज्जा ( दे ७।६५ ) । वेध -- वस्त्र-वेध, एक प्रकार का द्यूत ( सू १।९।१७ ) । वेप्प -- भूत आदि से आविष्ट चेतना, भूतगृहीत ( दे ७।७४ ) । वेप्पुअ -- १ शिशुत्व, बचपन ( दे ७।७६ ) । २ भूत-गृहीत, भूताविष्ट ( वृ ) । वेयडित -- सुरापायी -- 'अजसो य सपक्ख परपक्खे एस वेयडितो त्ति' ( दअचू पृ १३४ ) । वेयारणिय -- प्रतारण से उत्पन्न ( स्थाटी प ४० ) । वेयारिऊण -- ठगकर, बहकाकर- 'केण वि पासंडिएण वेयारिऊण पव्वाविओ' ( कु पृ १२५ ) । वेयावत्त -- जीर्ण-शीर्ण चैत्य ( आवटि प २८ ) । वेरिज्ज -- १ असहाय, एकाकी ( दे ७।७६ ) । २ सहायता ( वृ ) । वेल -- दन्त-मांस, दान्त के मूल का मांस ( दे ७।७४ ) । वेलंब -- विडंबना ( दे ७।७५ ) । वेलंबक -- १ विदूषक ( प्र ९।४ टीप १३७ ) । २ विडंबना करने वाला ( जीव ३।६१६ टी प २८१ ) । वेलंबग -- विदूषक ( ज्ञा १।१।७६ ) । वेलंबिय -- विडम्बित ( आवहाटी १ पृ २८७ ) । वेलणअ -- १ साहित्य-प्रसिद्ध रस-विशेष, लज्जारस ( अनुद्वा ३०९ ) । २ लज्जा, शर्म ( दे ७।६५ वृ ) । वेलयण -- क्रीडन - 'संभलि विणोयकेयण वेलयणं चिहुरगंडेसु' ( व्यभा ५ टी प १७ ) । वेलवण -- ठगाई, वंचना - णाणावेलवणेहि य वीवाहेयव्वाओ ( कु पृ ७८ ) । वेलविअ -- वञ्चित, ठगा हुआ ( पा ५३७ ) । वेलविका -- आस्तरण-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । बेला -- दन्त-मांस ( दे ७।७४ वृ ) । वेलाइअ -- १ मृदु, कोमल । २ दीन, गरीब (दे ७।९६) । वेलागय -- लोमपक्षी ( जीवटी प ४१ ) । वेलातिक -- खाद्यपदार्थ-विशेष ( अंवि पृ १८२ ) । वेली -- १ घर के चार कोनों में रखा जाने वाला छोटा स्तंभ ( निचू ३ पृ ३७८ ) । २ निद्राकरी लता ( दे ७।३४ ) । वेलु -- १ भाला ( आवहाटी १ पृ २३४ ) । २ चोर । ३ मुसल ( दे ७।९४ ) । वेलुंक -- विरूप, कुत्सित ( दे ७।६३ ) । वेलुय -- बेल का गाछ ( अचूला १।११८ ) । वेलुलिअ -- वैडूर्य मणि, रत्न की एक जाति विशेष ( दे ७।७७ ) । वेलूणा -- लज्जा ( दे ७।६५.) । वेल्ल -- १ पल्लव । २ विलास । ३ केश । ४ वल्ली ( दे ७:९४ ) । ५ मूर्ख । ६ कामपीडा । ७ ऊपर से ढकी हुई गाड़ी । वेल्लरी -- १ वेश्या, वारांगना ( दे ७।७६ ) । २ वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । वेल्लविय -- विलिप्त, पोता हुआ ( से १।२६ ) । वेल्लहल -- १ स्फीत ( आवहाटी २ पृ ५१ ) । २ कोमल । ३ विलासी ( दे ७।९६ ) । ४ सुन्दर ( कु पृ १४१ ) । वेल्ला -- १ वल्ली, लता । २ केश ( दे ७।९४ ) । वेल्लाइअ -- संकुचित - 'लज्जावेल्लाइअं इमं बालं' ( दे ७।७६ वृ ) । वेल्लियकम्म -- चित्रकर्म - 'धीउल्लिगा दिवेल्लियकम्मादि निव्वत्तियं च जाणाहि' ( अनुद्वाहाटी पृ ७ ) । वेवा -- एक प्रकार का वाद्य - 'खरमुहिसद्दाणि वा परिपरिसद्दाणि वा वेवासद्दाणि वा ' ( नि १७।१३९ ) । वेवाइअ -- उल्लसित ( दे ७।७९ ) । वेव्व -- १ भय । २ वारण । ३ विषाद । ४ आमंत्रण - इन अर्थों का सूचक अव्यय ( प्रा २।१९३,१९४ ) । वेसंभरा -- गृहगोधा, छिपकली ( दे ७।७७ ) । वेसक्खिज्ज -- द्वेष, शत्रुता ( दे ७।७९ ) । वेसण -- लोकापवाद ( दे ७।७५ ) । वेसरी -- खाद्य पदार्थ-विशेष - 'एगस्स पिया च्छासी मासी अण्णस्स वेसरी' ( आचू पृ १६६ ) । वेसविलया -- दासी - 'संपत्ता मम भत्तं घेतून एक्का वेसविलया' ( कु पृ ५६ ) । वेहविअ -- १ अनादर । २ क्रोधी ( दे ७।९६ ) । ३ वंचित, प्रतारित ( वृ ) । वेहारुग -- विहरणशील मुनि जिसका शरीर, वस्त्र आदि मैला हो और जो एक पात्र रखता हो ( निचू ३ पृ ४४० ) । वोंड -- चूचुक, स्तनवृन्त ( ज्ञा १।१७।१४ ) । वोकिल्ल -- गृह-शूर, वीरत्व का बहाना करने वाला मिथ्याबीर ( दे ७।८० ) । वोकिल्लिअ -- रोमन्थ, चबाई हुई चीज को पुनः चबाना'उप्पाइउमसमत्था जे चव्विअचव्वणं कुणन्ति कई । वोभीसणा फुडं ते वोकिल्लिअकारिणो पसुणो ॥' ( दे ७.८२ वृ ) । वोविकतक्क -- खाद्य पदार्थ-विशेष - 'पोवलिकं वा वोक्कितक्कं वा पोवलके वा पप्पडे वा' ( अंवि पृ १८२ ) । वोच्चत्थ -- विपरीत मैथुन ( दे ७।५८ ) । वोज्झ -- बोझ, भार ( आवचू १ पृ २५५ ; दे ७।८० ) । वोज्झमल्ल -- भार, बोझ ( दे ७।८० ) । वोज्झर -- १ अतीत । २ भीत, त्रस्त ( दे ७।९६ ) । वोट्टित -- अपवित्र किया हुआ ( व्यभा ७ टी प ८५ ) । वोडाण -- वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।४४ ) । वोडिय -- मुंडित-मस्तक ( उशाटी प १८१ ) । वोडु -- मूर्ख ( व्यभा ६ टी प ५ ) । वोण्ण -- कर्म - 'कम्मं ति वा खुहं ति वा वोण्णं ति वा कलुसं ति वावज्जं ति वा वेरं ति वा पंको त्ति वा मलो त्ति वा एते एगट्ठिता' ( निचू ४ पृ २७४ ) । वोण्णमंत -- लकड़हारा ( सू २।२।३१ ) । वोद्द -- तरुण ( निचू ३ पृ २६७ ) । वोद्दह -- तरुण - 'वोद्दहजणस्स उस्सुयकरं' ( ज्ञा १।१६।१६३ ) । वोद्रह -- तरुण, युवा ( दे ७।८० ) । वोद्रही -- तरुणी ( प्रा २।८० ) । वोभीसण -- वराक, दीन, गरीब ( दे ७।८२ ) । वोमज्झ -- अनुचित वेष ( दे ७।८० ) । वोमज्झिअ -- अनुचित वेष का ग्रहण ( दे ७।८० वृ ) । वोमीका -- परिसर्प की एक जाति ( अंबि पृ ६९ ) । वोयाण -- वनस्पति-विशेष ( भ २१।२० ) । वोरच्छ -- तरुण, युवा ( दे ७।८० ) । वोरल्ली -- १ श्रावण शुक्ला चतुर्दशी को होने वाला उत्सव-विशेष ( दे ७।८१ ) । २ श्रावण शुक्ला चतुर्दशी ( वृ) । वोरुट्ठी -- रूई से भरा हुआ वस्त्र-विशेष ( प्रसा ६८० ) । बोल -- १ कोलाहल ( दे ६।९० वृ ) । २ एक प्रकार का पौधा । बोलिय -- १ गत, गया हुआ ( उसुटी प १४२ ) । २ अतिक्रांत, उल्लंधित ( से ४।४८ ) । ३ अपगत ( से १।३ ) । बोलीण -- १ अतीत, व्यतीत - 'वोलीणा चक्कवट्टिणो बारसवि, विणस्सिहिसि तुमं' ( दहाटी प ५१ ) । २ अतिक्रांत ( प्रा ४।२५८ ) । ३ व्यतिक्रांत (पा १४१) । वोल्लाह -- उत्तम जाति का अश्व ( कु पृ २३ ) । वोवाल -- वृषभ, बैल ( दे ७।७९ ) । वोव्वड -- मूक, भाषा-जड ( व्यभा १० टी प १०६ ) । वोसट्ट -- १ भरकर खाली किया हुआ ( दे ७।८१ ) । २ विकसित ( प्रा ४।२५८ ) । वोसट्ठ -- ऊपर तक भरा हुआ ( बृभा ४०४८ ) । वोसेअ -- उन्मुख-गत, उफना हुआ ( दे ७।८१ ) । वोहत्तिय -- गृहीत - 'एक्केण परिग्गहिता सव्वे वोहत्तिया होन्ति' ( जीभा २०८२ ) । बोहार -- जल-वहन, पानी ले जाना ( दे ७:८१ ) । स स -- अथ ( व्य ३।५ ) । सअअ -- १ शिला । २ घूर्णित ( दे ८।४६ ) । सअढ -- लम्बा केश ( दे ८।११ पा ) । सइज्झ -- पड़ोसी ( दे ८।१०) । सइज्झक -- प्रातिवेश्मिक, पड़ोसी - 'सइज्झका नाम सहवासिनः प्रातिवेश्मिका इत्यर्थ:' ( बृटी पृ ९४० ) । सइज्झिय -- १ पड़ोसी ( निचू १ पृ ८ ) । २ पड़ोसीपन, प्रातिवेश्य ( दे ८।१० वृ ) । सइज्झिया -- पड़ोसिन ( पिनि ३४२ टी ) । सइदंसण -- मनोदृष्ट, विचारों में प्रतिभासित ( दे ८।१९ ) । सइविट्ठ -- मनोदृष्ट ( दे ८।१९ ) । सइरवसह -- धर्म के अभिप्राय से त्यक्त बैल, स्वैरवृषभ, स्वच्छन्द बैल ( दे ८।२१ ) । सहलंभ -- मनोदृष्ट, चित्त में प्रतिभासित ( दे ८।१९ ) । सइलासय -- मयूर, मोर ( दे ८।२० ) । सइसिलिंब -- स्कन्द, कार्तिकेय ( दे ८।२०) । सइसुह -- मनोदृष्ट ( दे ८।१९ ) । सईणा -- रहर, तुवरी ( दश्रु ६।३ ) । सउडि -- रजाई - 'पवेसिओ सउडिमज्झे हत्थो' ( बृटी पृ ५८ ) । सउण -- रूढ, प्रसिद्ध ( दे ८।३ ) । सउलिअ -- प्रेरित ( दे ८।१२ ) । सउलिया -- १ शकुनिका, चील ( अनुद्वा १४१ ) । २ एक महौषधि । सउली -- १ चील, शकुनिका ( दे ८।८ ) । २ एक महौषधि । सएज्जिया -- पडोसिन ( ओनि १६७ ) । सएज्झअ -- पड़ोसी ( बृभा ३३४९ ) । सएज्झि -- पड़ोसिन ( बृभा १५३६ ) । सएज्झिग -- पड़ोसी, साधर्मिक ( निचू ४ पृ ९० ) । सएज्झिया -- पड़ोसिन, सखी ( आवहाटी १ पृ २३५ ) । संकडिल्ल -- निश्छिद्र ( दे ८।१५ ) । संकर -- रथ्या, मार्ग ( व्याभा ८ टी प ३३; दे ८।६ ) । संकाइयग -- तापसों का पात्र विशेष ( भ ११।६४ ) । संख -- १ शरीर का अवयव-विशेष - 'दंता संखा य गंडा य करमज्झो तहेव य' ( अंवि पृ ७७ ) । २ स्तुतिपाठक ( दे ८।२ ) । संखड -- कलह, झगड़ा ( पिनि ३२४ ) । संखडि -- सरस भोजन, जीमनवार ( आ ९।१२।१९ ) । संखद्रह -- गोदावरी नदी का ह्रद ( दे ८।१४ ) । संखबइल्ल -- किसान की इच्छानुसार उठकर खड़ा होने वाला बैल ( दे ८।१९ ) । संखलय -- शम्बूक, शुक्ति के आकार का जल-जंतु-विशेष ( दे ८।१६ ) । संखलि -- कर्णभूषण-विशेष, शंखपत्र का बना हुआ ताडङ्क ( दे ८।७ ) । संखाल -- शंबर नाम का मृग ( दे ८।६ ) । संखिल्ल -- संख्येय - 'णरवसभा के वणंतसंखिल्ल' ( कु पृ २०१ ) । संखेण -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । संगइ -- मित्रता ( ज्ञाटी प ३८ ) । संगइय -- मित्र - 'दच्छिसि णं गोयमा ! पुव्वसंगइयं ( भ २।३२ ) । संगय -- मसूण, चिकना ( दे ८।७ ) । संगरिगा -- फली-विशेष ( प्रसा २२९ ) । सांगरी ( राजस्थानी ) । संगलिक -- फल-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । संगलिग -- फली ( अंवि पृ २४४ ) । संगलिया -- फली - 'एगाए तिलसंगलियाए सत्त तिला पच्चायाइस्संति' ( भ १५।७२ ) । संगह -- घर के ऊपर का तिरछा काष्ठ ( दे ८।४ ) । संगा -- वल्गा, घोड़े की लगाम ( दे ८।२ ) । संगार -- संकेत - 'एगंतमंते संगारं कुठवंति' ( भ १५।१३४ ) । संगिणेल्ली -- समूह ( ज्ञाटी प ६४ ) । संगिल्ल -- १ गायों का समूह - 'संगिल्लो नाम गोसमुदायः' । ( व्यभा ४।२ टी प ७) । २ समूह ( व्या ४।४ टी प २९ ) । संगुलिया -- समूह ( आचू पृ ३२९ ) । संगेल्ल -- समूह ( दे ८।४ ) । संगेल्लि -- समूह - 'पिट्ठओ रहसंगेल्लि' ( दश्रु १०।१६ ) । संगेल्ली -- १ परस्पर अवलम्बन - "ते••••हत्थसंगेल्लीए•••' ( ज्ञा १।३।१६ ) । २ समूह - संगेल्ली समुदाय: देश्योऽयं शब्दः' ( जंबूटी प २६५ ) । संगोढण -- व्रण युक्त ( दे ८।७१ ) । संगोली -- समूह ( दे ८।४ ) । संघट्ट -- १ अर्ध जंघा-प्रमाण जल - 'जंघद्धा संघट्टो' ( ओभा ३४ ) । २ वल्ली-विशेष ( प्रज्ञा १।४०।३ ) । संघड -- निरन्तर ( आ ४।५२ ) । संघडिय -- मित्र - 'संघडिय त्ति देशीपदमव्युत्पन्नमेव मित्राभिधायि' ( उशाटी प ३९४ ) । संघयण -- १ शरीर ( आटी प ३९२ ; दे ८।१४ ) । २ धृति चिरसंघयणे - दृढकायो दृढधृतिश्च' ( आटी प ३९२ ) । ३ अस्थि-रचना ( स्था ६।३०) । ४ अस्थि रचना का कारणभूत कर्म ( समटी प ६७ ) । संघयणि -- अस्थि, शिरा एवं स्नायु से युक्त शरीर वाला ( समप्र १८७ ) । संघरिस -- स्पर्धा- 'संघरिसो जमलिओ तू, को सिग्घगति त्ति वच्चति तु' ( जीमा १७२०) । संघाड -- १ युग्म ( निचू ३ पृ ३५७ ) । २ प्रकार संघाड त्ति वा लय त्ति वा पगारो त्ति वा एगट्ठं' ( बृटी पृ ८११ ) । ३ जलयान ( अंवि पृ १६६) । ४ ज्ञाताधर्मकथा आगम का दूसरा अध्ययन ( सम १९।१ ) । संघाडय -- सहयोग ( नि ४।२७ ) । संघाडि -- जैन साध्वी का उत्तरीय वस्त्र ( ज्ञा १।१६।१०७ ) । संघाडी -- १ प्रावरण-विशेष - 'प्रायेण संघातिज्जंति त्ति संघाडी, गुणसंघाय-कारणी वा संघाडी, देसीभासातो वा पाउरणे संघाडी' ( निचू ३ पृ ३२६ ) । २ युगल, युग्म ( दे ८।७ ) । संघासय -- स्पर्धा ( दै ८।१३ ) । संघोडी -- व्यतिकर, मिश्रण ( दे ८।८ ) । संचक्कार -- अवकाश - संचक्कारं व से दिण्णं' ( कु पृ १६४ ) । संचर -- १ स्नान कराने वाला । २ शरीर का शोधन-परिकर्म करने वाला- 'संचरो ण्हाणिया सोधओ' ( निचू २ पृ २७६ ) । संचारी -- दूती ( पा ८०४ ) । संछूढ -- परित्यक्त ( ज्ञा १।१७।१३ ) । संछोभ -- संक्रामण, परावर्तन ( बृभा १९७९ ) । संछोभण -- परिवर्तन, परावर्त्त ( बृभा २३३० ) । संजत्थ -- १ क्रुद्ध, कुपित ( दे ८।१० ) । २ क्रोध - संजत्थो कोप इत्यन्ये' ( वृ ) । संजमिअ -- संगोपित, छिपाया हुआ ( दे ८।१५ ) । संजविअ -- संगोपित ( पा ६४४ ) । संजीहार -- ललकार - 'तहा गुरवो वसभा वा संजीहारं करेंति' ( निचू ४ पृ ४४) । संजुकारक -- कर्मोपजीवी ( अंवि पृ १६० ) । संजुद्ध -- स्पन्दनयुक्त, प्रकम्पित ( दे ८।६ ) । संडपट्ट -- धूर्त ( विपाटी प ७२ ) । संडिब्भ -- बालकों का क्रीडास्थल - 'डिब्भाणि - चेडरूवाणि णाणाविहेहिं खेलणएहिं खेलंताणं तेसिं समागमो संडिब्भं' ( दअचू पृ १०२ ) । संडो -- घोड़े की लगाम ( दे ८।२ ) । संडेव -- पानी को लांघने के लिए रखा जानेवाला पाषाण आदि - 'पडिवक्खेण उ गमणं तज्जाइयरे व संडेव' ( ओनि ३१ ) । संडेवग -- पैर रखने के लिए पानी में रखा जाने वाला पत्थर ( निचू १ पृ ७२ ) । संडोलिअ -- अनुगत ( दे ८।१७ ) । संति -- बहुवचनान्त अव्यय ( आचूला १५।६५ ) । संथड -- १ राज्य - 'संथडं नाम राज्यं' ( व्यभा ७ टी प ९१ ) । २ अविभक्त, सामान्य - साहारण सामन्नं अविभत्तमच्छिन्नसंथडेगट्ठं' ( व्यभा ९ टी प ६ ) । संथडिअ -- तृप्त ( बृचू प २०८ ) । संथोभ -- संक्रामण, परावर्तन - 'सो णिज्जति गिलाणो, अंतरसभ्मेलणाए संथोभो' ( निभा ३०८० ) । संदट्ट -- १ संबद्ध । २ संघट्ट, संघर्षण ( दे ८।१८ ) । संदट्टय -- संलग्न ( दे ८।१८ ) । संदुमिअ -- प्रदीप्त ( पा १६ ) । संदेण -- भोजन - 'भिण्णदेसिभासेसु जणवदेसु एगम्मि अत्थे संदेण-वंजण-कुसण-जेमणाति भिण्णमत्थपच्चायणसमत्थमविप्पडिवत्तिरूवेण' १ ( दअचू पृ १६० ) । संदेज -- १ सीमा, मर्यादा ( दे ८।७ ) । २ नदी संगम- 'संदेवो सीमा, नवी-मेलक इत्येके' ( वृ ) । संधारिअ -- योग्य ( दे ८।१ ) । संधिअ -- दुर्गन्ध ( दे ८।८ ) । संधुक्किअ -- १ प्रदीप्त ( पा १६ ) । २ उत्तेजित । संपडिअ -- लब्ध, प्राप्त ( दे ८।१४ ) । संपडिका -- करधनी - 'कंची व रसणा व त्ति, जंबूका मेखल त्ति वा । कंटिक त्ति व जो बूया तधा संपडिक त्ति वा । ( अंवि पृ ७१ ) । संपणा -- घेवर बनाने के लिए तैयार किया हुआ गेहूं का आटा ( दे ८।८ ) । संपण्णा -- घेवर ( मिष्टान्न-विशेष ) बनाने के लिए तैयार किया हुआ गेहूं का आटा ( ८८ ) । संपत्तिआ -- १ बालिका, बाला ( दे ८।१८ ) । २ पीपल का पत्ता - पिप्पली-पत्रवाचकोऽपि संपत्तिआशब्दो लक्ष्येषु दृश्यते' (वृ ) । संपत्ती -- भवितव्यता - 'तेवि संपत्तीए सयाहि सयाहि गया' ( आवहाटी २ पृ २२२) । संपत्थिअ -- शीघ्र ( दे ८।११ ) । संपर -- १ नाई । २ वस्त्रशोधक ( निभा ३७०८ ) । संपा -- काञ्ची, मेखला ( दे ८।२ ) । संपासंग -- दीर्घ, लम्बा ( दे ८।११ ) । संफ -- कुमुद, चन्द्रकमल ( दे ८।१ ) । संफाणि -- प्रासुक शीत या उष्ण जल से प्रक्षालन - सीतेण व उसिणेण व वियडेणं धोवणा तु संफाणि' ( निभा १९३९ ) । संफाणित -- धुला हुआ ( निभा १९४३ ) । संफाणिय -- धुला हुआ ( नि ५।१४ ) । संफाली -- पंक्ति ( दे ८।५ ) । संफाह -- बहुत दिनों के वस्त्र एकत्रित करके एक दिन धोना ( निभा १९३६ ) । संफोडिउं -- संयुक्त करके, मिलाकर - 'संफोडिउं मेलितुमित्यर्थ:' ( निचू २ पृ ३१४ ) । संबर -- कचरा उठाने वाला ( व्यभा ७ टी प ८० ) । संबलिका -- बांस की टोकरी वेणुफलाईं ति वेलुमयी संबलिका संकोसको पेलिया करण्डको वा' ( सूचू १ पृ ११६ ) । संभरण -- संस्मरण, स्मृति ( ज्ञाटी प ७६ ) । संभराविअ -- स्मारित, याद कराया हुआ ( दे ८।२५ ) । संभली -- १ दूती ( व्यभा ५ टी प १७ ; दे ८।९ ) । २ कुट्टनी, पर-पुरुष के साथ अन्य स्त्री का योग कराने वाली स्त्री । संभव -- प्रसव-जरा, प्रसवजन्य दौर्बल्य ( दे ८।४ ) । संभारिय -- १ संस्मारित, याद कराया हुआ - मेहे कुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं संभारिय- पुव्वभवे ( ज्ञा १।१।१९१ ) । २ संस्मृत याद किया हुआ - 'संभारिअक्खणिहणो ओत्थरइ सरेहिं मारुइं धुम्मक्खो' ( से १४।६५ ) । संभुल्ल -- दुर्जन ( दे ८।७ ) । संभोएत्ता -- मिश्रण करके ( आचूला १।१०२ ) । संल -- पत्नी का भाई, साला ( अंकि पृ २१९ ) । संवट्टि -- संवृत, संकुचित, एकत्रित ( उशाटी प १९२ ) । संवट्टिअ -- संवृत, संकोचित ( दे ८।१२ ) । संवणिय -- परिचित - 'ताहे एवं रिसिआसमपयं दिट्ठं, सा तत्थ अल्लीणा संवणिया य अणाए रिसओ' ( उशाटी प ५३ ) । संवर -- १ शौचवादी ( बृभा ३८०४ ) । २ बारहसिंगा ( प्रटी प ९ ) । संवाअअ -- १ नकुल, नेवला । २ बाज पक्षी ( दे ८।४८ ) । संविल्लिय -- संकुचित - 'संविल्लियग्गसोण्डं' ( उपाटी पृ ११० ) । संवेल्ल -- संकुचित ( भटी पृ १३११ ) । संवेल्लिअ -- संवृत ( राज ६९ ; दे ८।१२ ) । संसप्पिअ -- कूदकर जाना ( दे ८।१५ ) । संसाहण -- अनुगमन ( दे ८।१६ ) । संसाहणा -- अनुगमन ( दनि ३२२ ) । संसुरुला -- कलह, लड़ाई ( निचू ४ पृ २३४ ) । संहिय -- विरल ( प्र ४।८ ) । सकराह -- १ एक बार । २ एक साथ - 'सकराहं ति सकृत् अहवा सकराहंति संववहारात् युगपत् स्याद्' (अनुद्वाचू पृ ५६ ) । सकह -- १ तापसों का उपकरण-विशेष - 'सकहं वक्कलं ठाणं सिज्जाभंडं कमंडलुं' ( भ ११।६४.) । २ दाढा ( जंबूटी प १५८ ) । सकहा -- अस्थि, हड्डी- 'वयरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु बहुयाओ जिण-सकहाओ संनिखित्ताओ चिट्ठंति ( राज २४० ) । सकुचिक -- जलचर-विशेष ( अंवि पृ २२८ ) । सकुलिया -- शकुनिका ( अनुद्वा ३२१ ) । सगय -- श्रद्धा ( दे ८।३ ) । सगल -- बाहरी छाल - 'सगलं पुण तस्स बाहिरा छल्ली' ( निचू ४ पृ ६६ ) । सगलग -- टुकड़ा - 'मोदगच्छोडियतं उच्छुसगलगं' ( आचू पृ ३६७ ) । सगेद्द -- निकट, समीप ( दे ८।६ ) । सग्गह -- मुक्त ( दे ८।४ वृ ) । सचक्कार -- सशंकित, भयभीत - पडिणीयापि दुज्जणो सचक्कारा य सासंका भवंति' ( निभा १७३६ ) । सचिल्लय -- अपचक्षु, खराब आंख वाला ( प्र १।३७ ) । सच्चविय -- १ देखा, प्राप्त किया- 'जहा ण अम्हेहिं कोइ कहिंचि सच्चविओ' ( उसुटी प १९३ ) । २ अभिप्रेत, इष्ट ( दे ८।१७ ) । सच्चिल्लय -- सत्य ( दे ८।१४ ) । सच्चेविअ -- रचित, निर्मित ( दे ८।१८ ) । सच्छह -- सदृश ( उसुटी प८७; दे ८।९ ) । सज्ज -- प्रत्युत्तर - 'साहूहिं वा ओतप्रोतं संबाधुवस्सए या सज्ज अलंभंतो उल्लंघिउं वयंतस्स...' ( निचू ३ पृ १० ) । सज्जअ -- १ नाई । २ धोबी । ३ आगे किया हुआ पुरस्कृत । ४ दीप्त, चमकीला ( दे ८।४७ पा ) । सज्जंतिया -- भगिनी ( व्यभा ४।३ टी प ५२ ) । सज्जण -- १ गच्छ - 'सज्जणोत्र गच्छो' ( बृचू प २०५ ) । २ वस्त्र में मांड देना ( निचू ३ पृ ५७३ ) । सज्जाय -- कुहन वनस्पति का एक प्रकार ( प्रज्ञा १।४७ ) । सज्जिअ -- १ नापित, नाई । २ रजक, धोबी । ३ पुरस्कृत, आगे किया हुआ । ४ दीप्त ( दे ८।४७ ) । सज्जुक्क -- नया, तरोताजा ( पा ४३७ ) । सज्जोक्क -- प्रत्यग्र, नवीन, ताजा ( दे ८।३ ) । सज्झंतिग -- साधर्मिक ( निचू २ पृ ३७९ ) । सज्झंतिय -- १ सहदीक्षित ( बृभा ५४२१ ) । २ ब्रह्मचारी । सज्झय -- कल्यपाल, कलाल - सज्झया कल्लालगिहा इति चूर्णी विशेषचूर्णौं च ( बृढी पृ १५९७ टि ) । सज्झविय -- साधर्मिक, पड़ोसी ( निचू २ पृ ३७९ ) । सज्झिअ -- १ नाई । २ धोबी । आगे किया हुआ, पुरस्कृत । ४ दीप्त, चमकीला ( दे ८।४७ पा ) । सज्झिलक -- १ सगा भाई-एगाम्मि गामे दो सज्झिलका, भायरो इत्यर्थ:' ( बृटी पृ १६५२ ) । २ गुरुभाई - 'गुरुसज्झिलक: गुरूणां सहाध्यायी पितृव्यस्थानीय:' ( बृटी पृ १४३८ ) । सज्झिलग -- १ साधर्मिक ( निभा २३६८ ) । २ भ्राता ( बृभा ६२५८ ) । सज्झिलगा -- बहिन, भगिनी ( पिनि ३१६ ) । सज्झिलय -- भ्राता - 'गुरुसज्झिलओव्व तस्स सीसो वा' ( पंक २५९० ) । सज्झिलिया -- बहिन ( निभा ४४९४ ) । सट्टती -- बांस की टोकरी - 'कलिंजो णाम वंसमयो कडबल्लो सट्टती वि भण्णति' ( निचू ४ पृ १९२ ) । सट्टर -- ऊटपटांग बातें- 'सट्टरं आलजालं कुर्वतः' ( बृभा ५२८४ टी ) । सट्ठर -- आलजाल, व्यर्थ ( निभा ४१६३ ) । सडसडेंत -- सडता हुआ ( कु पृ २२५ ) । सडिका - पक्षिणी-विशेष - 'सडिक त्ति बलाक त्ति चक्कवायि त्ति वा पुणो' ( अंवि पृ ६९ ) । सढ -- १ केश । २ विषम ३ स्तम्ब, गुच्छा ( दे ८।४६ ) । । ४ पाल, जहाज का बादवान । सढअ -- १ स्तम्ब, गुच्छा ( बृभा ४२३० ) । २ फूल ( दे ८।३ ) । सढि -- सिंह ( दे ८।१ ) । सणालिय -- वाद्य-विशेष ( नि १७।१३८ ) । सणिअ -- १ साक्षी, गवाह । २ ग्राम्य, ग्रामीण ( दे ८।४७ ) । सण्णत्तिअ -- परितापित ( दे ८।१८ ) । सण्णविअ -- १ चिन्तित । २ सान्निध्य, निकटता ( दे ८।५० ) । सण्णा -- भुजपरिसर्पिणी ( जीवटी प ५२ ) । सण्णाड -- उत्सर्ग की संज्ञा से युक्त - 'जोयणमवि गच्छेज्जा सण्णाडो थंडिलऽसती' ( पंक १८७२) । सण्णि -- गीला ( दे ८।५ ) । सण्णिअ -- आर्द्रा, गीला ( दे ८।५ ) । सण्णुमिअ -- १ सन्निहित । २ मापित । ३ अनुनीत, अनुनययुक्त ( दे ८।४८ ) । ४ प्रच्छादित, ढका हुआ ( वृ ) । सण्णेज्झ -- यक्ष ( दे ८।६ ) । सण्हाई -- दूती ( दे ८।९ ) । सण्होर -- लज्जा सहित - 'धुत्तेण सण्होरं जेमावेत्ता सगडभरो विसज्जितो' ( दअचू पृ २८ ) । सतपत्त -- पक्षी-विशेष - 'वंजुलो सतपत्तो त्ति उवो कपिलको त्ति वा' ( अंवि पृ ६२ ) । सतिर -- तिरोहित - 'अचित्त सचित्तेणं, अतिरं सतिरं च जं भवे पिहितं' ( जीभा १५५० ) । सतीण -- तुवरी, धान्य-विशेष ( भ २१।१५ ) । सतीहत्थ -- शक्ति - 'पुव्वं मए भणितं मम बहु सतीहत्थो इदाणिं पच्चक्खं' ( निचू १ पृ ११५ ) । सतेरक -- मुद्रा-विशेष, सिक्का - 'काहापणो खत्तपको पुराणो••• सतेरको त्ति' ( अंवि पृ ६६ ) । सत्तत्थ -- अभिजात, कुलीन ( दे ८।१० ) । सत्तल्ली -- शेफालिका, सुगंधित फूल वाली लता-विशेष ( दे ८।४) । सत्तावीसंजोअण -- चन्द्रमा ( दे ८।२२ ) - 'सत्तावीसंजो अणमुही समरसद्यहय तुह कए सा ( वृ ) । सत्ति -- १ तिपाई, तीन पाया वाला गोल काष्ठ-विशेष ( दे ८।१ ) - पल्लङ्कपायसरिसं तिदारुअं उद्धणिमिअआयरिसं, तं जाणसु सत्तिं । २ घड़ा रखने का ऊंचा काष्ठ-विशेष - सत्ती कलसाधारो दारु भवेत्तल्पसमसमुच्छ्रयणम्' ( वृ ) । सत्तिअणा -- कुलीनता ( दे ८।१६ ) । सत्थ -- १ लीला - 'ताहे देवा सत्थं साहरिता' ( ओटी पृ ३५९ ) । २ गत, गया हुआ ( दे ८।१ ) । सत्थइअ -- उत्तेजित ( दे ८।१३ ) । सत्थर -- १ समूह ( दे ८।४ ) । २ शय्या ( वृ ) । सदुम्मणिआ -- रूपवती स्त्री ( दे ८।४० वृ ) । सदुय -- वाद्य-विशेष ( नि १७।१३६ ) । सद्द -- उद्भिज्ज जंतु-विशेष - 'तत्थ उब्भिज्जा संखणा काकुंथिका वडका••••• पयुमका सद्दा तीलका इति' ( अंकि पृ २२९ ) । सद्दाल -- नूपुर ( दे ८।१० ) । सन्नाड -- १ मलोत्सर्ग की इच्छा - 'सन्नाडोप्पीलितेण सिग्धं वोसिरिता' ( दअचू पृ २४ ) । २ शौचसंज्ञाकुल ( आवहाटी १ पृ २४७ ) । सन्निर -- पत्र-शाक-कंद मूलं पलंब वा, आमं छिन्नं व सन्निरं' ( द ५।१।७० ) । सप्पक -- बालक-सप्पक-वच्छक बालक-साडक' ( अंवि पृ १७० ) । सप्फ -- १ कुमुद, कैरव - 'चंदुज्जयं च कुमुयं गद्दहयं केरवं सप्फं' ( पा ५८ ) । २ बाल तृण ( कु पृ १६१ ) । सप्फाय -- कुहन वनस्पति का एक प्रकार ( प्रज्ञा १।४७ ) । सफा -- वनस्पति-विशेष ( भ २३।४ ) । सब्बल -- १ गदा ( प्र ३।५ ) । २ भाला ( प्रटी प ४८ ) । समर -- गीध पक्षी ( दे ८।३ ) । समइंछिय -- अतिक्रांत ( से १२।७२ ) । समइच्छमाण -- अतिक्रांत करते हुए ( भ ९।२०९ ) । समइच्छिअ -- अतिक्रांत ( दे ८।२० ) । समगुण्हिक -- भोज्य पदार्थ - 'समगुण्हिक त्ति वा बूया जागु त्ति कसरि त्ति वा' ( अंवि पृ ७१ ) । समर -- १ लोहार की शाला । २ स्त्रियों के साथ सम्पर्क - संबंध स्थापित करने का गुप्त स्थान - समरं नाम जत्थ हेट्ठा लोह्यारा कम्मं करेंति । अहवा समरं नाम दिवादिट्ठी संबंधो तासिं' ( उचू पृ ३७ ) । ३ खरकुटी, नाई की दुकान ( उसुटी प १० ) । समरसद्दहय -- समवयस्क ( दे ८।२२ ) । समसीस -- १ सदृश । २ निर्भर ( दे ८।५० ) । ३ स्पर्धा ( से ३।८ ) । समसीसी -- स्पर्धा ( दे ८।१३ ) । समहुत्त -- अभिमुख - 'केई पुरिसे परसुं गहाय अडवीसमहुत्तो गच्छेज्जा' ( अनुद्वाहाटी पृ ४१ ) । समाय -- उत्सव - उस्सयं वा समायं वा ' ( अंवि पृ १३४ ) । समायोग -- सैनिकवर्दी - 'परिहिज्जंति समायोगे' ( कु पृ १९८ ) । समास -- उत्सव - 'उस्सयो त्ति समासो त्ति विहि जण्णो छणो त्ति वा ' ( अंवि पृ १२१ ) । समिला -- युग कीलक, गाड़ी की धोंसरी में दोनों ओर डाला जाता लकड़ी का कीलक ( उ २७।४ ) । समीखल्लय -- छोंकर की पत्ती, शमी वृक्ष का पत्र-पुट ( दश्रुचू पृ ८ ) । समीज्झुक्खर -- शमी वृक्ष की शाखा ( आवहाटी २ पृ १६ ) । समुइ -- १ अभ्यास - :समुइं ति देशीवचनत्वाद् अभ्यासम्' ( बृटी पृ ४१४ ) । २ स्वभाव ( व्यभा ७ टी प २१ ) । समुग्गिअ -- १ प्रतीक्षित ( दे ८।१३ ) । २ प्रतिपालित (वृ) । समुच्छणी -- संमार्जनी, झाड़ू ( दे ८।१७ ) । समुच्छिअ -- १ तोषित, संतुष्ट किया हुआ । २ समारचित । ३ अंजलिकरण ( दे ८।४९ ) । समुत्तइत -- गर्वित ( निचू २ पृ १०० ) । समुत्तइय -- गर्वित - 'ओच्छाहिओ परेण व, लद्धिपसंसाहि वा समुत्तइओ । अवमाणिओ परेण य, जो एसइ माणपिंडो सो ॥ ( पिनि ४६५ ) । समुद्दणवणीअ -- १ अमृत । २ चन्द्र ( दे ८।५० ) । समुद्दहर -- जलगृह ( दे ८।२१ ) । समुद्देस -- १ भोज । २ सूर्यमंडल ( जीचू पृ ९ ) । समुप्पिजल -- १ अयश । २ रज ( दे ८।५० ) । समोसिअ -- १ पड़ोसी । २ प्रदोष, सायंकाल । ३ वध्य ( दे ८।४९ ) । समोसितग -- पड़ोसी ( निचू २ पृ १५४ ) । समोसितिया -- पड़ोसिन ( दअचू पृ ५२ ) । समोसियग -- साधर्मिक, पड़ोसी - 'सेज्जगो समोसियगो' ( निचू २ पृ २७२ ) । सम्म -- भुजपरिसर्प की एक जाति - 'देशविशेषतो वेदितव्याः' ( जीवटी प ४० ) । सम्मिका -- कान का आभूषण-विशेष - 'सासा सम्मिका-वतंसक्र-ओवास-कण्णपीलक' (अंवि पृ १८३ ) । सयक्खगत्त -- द्यूतकार, जुआरी ( दे ८।२१ ) । सयग्धी -- घरट्टी, चक्की ( दे ८।५ ) - 'रदसंफालिसयग्घी ण हु थक्कइ सण्णिअम्मि सुक्के अ' ( वृ ) । सयज्झिया -- पड़ोसिन ( पिनि ३४२ ) । सयढा -- लंबे बालों वाली ( दे ८।११ ) । सयत्त -- मुदित, प्रसन्न ( दे ८।५ ) । सयराह -- एक साथ, युगपत् - 'सयराहेण पणट्ठाइं जाण चत्तारि पुव्वाइं' ( ति ८०२ ) । सयराहं -- १ युगपत् - 'सयराहमिति देशीवचनं युगपदर्थाभिधायकम्' ( आवहाटी १ पृ १०० ) । २ एकबार ( अनुद्वामटी प १६३ ) । ३ शीघ्र ( दे ८।११ ) । ४ अकस्मात् - अक्खसोयप्पमाण मेत्तंपि जलं सयराहं उत्तरित्तए' ( औप १२२ ) । सयराहा -- युगपत् ( विभा ६५६ ) । सयराहु -- १ एकसाथ । २ शीघ्र - 'सयराहु-पुगपत्तूर्णं वा ( आवदी प ७४ ) । सरंड -- भुजपरिसर्प की एक जाति ( जीवटी प ४० ) । सरग -- बांस के छोंके के आकार का भाजन ( जीव ५।८७ ) । सरड -- सरड - 'भोजन करते समय होने वाला शब्द' ( ओटी प १८७ ) । सरडीभूत -- वह फल जो पकता नहीं ( निचू ३ पृ ४८५ ) । सरडु -- कोमल पुप्फाणं पत्ताणं सरडुफलाणं तहेव हरियाणं' ( पिनि ४५ ) । सरडुय -- वह फल जिसमें अभी गुठली न बनी हो ( आचूला १।११० ) । सरत्ति -- सहसा, अभी ( दे ८।२ ) । सरभेअ -- स्मृत, याद किया हुआ ( दे ८।१३ ) । सरल -- वृक्ष-विशेष, चीड ( प्रज्ञा १।४३ ) । सरली -- चीरिका, झींगुर ( दे ८।२ ) । सरलीआ -- १ श्वावित नाम का प्राणी, साही ( दे ८।१५ ) । २ कीटविशेष ( वृ ) । सरह -- १ वेतसवृक्ष । २ सिंह ( दे ८।४७ ) । सरा -- माला ( दे ८।२ ) । सराह -- गर्व से उद्धत ( दे ८।५ ) । सराहअ -- सर्प ( दे ८।१२ ) । सरिका -- भाजन-विशेष - 'करोडी कंसंपत्ति ति पालिका सरिक त्ति वा ( अंवि पृ ७२ ) । सरिभरी -- समानता- 'तओ जाया दोण्ह वि सरिभरी' ( उसुटी प १९१ ) । सरिया -- मोतियों की माला - वरमउड - सरिय - कुंडल' ( प्र ४।४ ) । सरिवाअ -- आसार, तेज वर्षा ( दे ८।१२ ) । सरिसाहुल -- सदृश ( दे ८।९ ) । सरेवअ -- १ हंस । २ घर का जल बहने का नाला, मोरी ( दे ८।४८ ) । सरोडुअ -- वह फल जिसमें अभी गुठली न पड़ी हो ( आचू पृ ३४१ ) । सरोडुग -- काष्ठपात्र, दर्वी ( आचू पृ ३४१ ) । सलली -- सेवा ( दे ८।३ ) । सलहत्थ -- कड़छी आदि का हत्था ( हस्तक ) ( दे ८।११ ) । सलेट्ठुग -- समूल, मूल सहित - ततो गोपालेण असद्दहंतेण ओसरिऊण सलेट्टुगो उप्पाडिओ एगंते पडिओ' ( आवहाटी १ पृ १४२ ) । सल्ल -- सर्प की एक जाति ( सु २।३।८० ) । सल्लग -- सर्प की जाति-विशेष ( प्र १।८ ) । सल्लिका -- साली - 'रमा त सुव्ह सावत्ती सल्लिका मेधुण त्ति वा' ( अंवि पृ ६८ ) । सल्ली -- १ भुजपरिसर्पिणी ( जीव २।६ ) । २ साली ( अवि पृ २१९ ) । सवडंमुह -- अभिमुख, सम्मुख - 'सवडंमुहं वलंतो कालो व्व अकारणे कुद्धो" ( उसुटी प ८५; ८।२१ ) । सवडहुत्त -- सम्मुख - 'सो तस्स निवट्टमाणो दंडियस्सेव सवडहुत्तो गओ' ( उसुटी प ५५ ) । सवडी -- उत्तरीय वस्त्र - ' संघाडी णाम सवडी' ( निचू २ पृ ३१२ ) । सवलाहिका -- जलचर प्राणी-विशेष ( अंवि पृ २२७ ) । सवाअ -- बाज पक्षी ( दे ८।७ ) । सवार -- प्रातःकाल ( बृटी पृ ५७६ ) । सवास -- ब्राह्मण ( दे ८।५ ) । सविस -- सुरा, मदिरा - बुद्धिविहूणा संभवगयव्व सविसं विसं ति ण मुणन्ति' ( दे ८।४ ) । सविहोढ -- चोरी के माल से युक्त ( निचू ३ पृ ५०२ ) । सव्वल -- कुंत, बर्छा ( कु पृ ४० ) । सव्वला -- कुशी, लोहे का अस्त्र-विशेष ( प्र १।२८; दे ८।६ ) । सव्वाबंति -- सर्व, सब- 'एआवन्ती सव्वावन्ती ति एतौ द्वौ शब्दौ मागधदेशी-भाषाप्रसिद्धया एतावन्तः सर्वेऽपीरयेतस्पर्यायौ' ( आ १।७ टी प २६ ) । ससबिंदु -- बल्ली-विशेष ( प्रज्ञा १।४०।५ ) । ससबिंदुक -- फल-विशेष ( अंवि पृ ६४ ) । ससराइअ -- निष्पिष्ट, पिसा हुआ ( दे ८।२० ) । सह -- १ सहायक, समर्थ ( सू १।३।२३ ) । २ योग्य ( दे ८।१ ) । सहउत्थिआ -- दूती, संदेशवाहिनी ( दे ८।९ ) । सहगुह -- उल्लू ( दे ८।१६ ) - संखलयदंत हिण्डसि जं बाहिं सहगुहो व्व राईसु' ( वृ ) । सहज्झय -- पड़ोसी ( कु पृ २२४ ) । सहण -- साथ - सहणं ति देसीभासा सहेत्यर्थ: ( सूचू १ पृ १०७ ) । सहत्थकारी -- दक्ष, निपुण ( अंबि पृ ९८ ) । सहरला -- महिषी, भैंस ( दे ८।१४ ) । सहिणग -- वस्त्र-विशेष ( जीव ३।५९५ ) । सहोढ -- चोरी की वस्तु सहित - 'सहोढ गहितो पलंबठाणेसु' ( निभा ४७८२ ) । साइ -- कमल केसर, किंजल्क ( दे ८।२२ ) - सालतले सारिठिआ अच्चइ चण्डिं ससाइपउमेहिं' ( वृ ) । साइअ -- १ संस्कार ( दे ८।२५ ) । २ आलिंगन । साइज्जिअ -- अवलम्बित ( दे ८।२६ ) । साइतंकार -- स-प्रत्यय, विश्वस्त - 'जं च राएण उल्लवियं साइतंकारो तेण तं पत्तए लिहियं' ( आवहाटी २ पृ १४२क्ष) । साइयंकार -- विश्वस्त - 'पुच्छा समणे कहणं साइयंकारसुमिणाई' ( पिभा ३३ ) । साउल्ल -- अनुराग, प्रेम ( दे ८।२४ ) । सांड -- सांड, वृषभ ( व्यभा ४।२ टी प २० ) । साकिज -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५०) । सागारिय -- मैथुन - 'जे छेए से सागारिथं ण सेवए- सागारियं मेहुणं ससमयवण्णो वा' ( आ ५।१० चू ) । साडक -- बालक - 'सिंगक खुद्दक - बालक-साडक' ( अंवि पृ १६९ ) । साणइअ -- उत्तेजित ( दे ८।१३ ) । साणुप्पग -- प्रभात - 'सानुप्रगे-प्रत्यूषवेलायां लभ्यते या भिक्षा' ( बृभा १९७६ टी ) । साणुप्पय -- दिन का अन्तिम प्रहर - 'साणुप्पओ णाम चउभागावसेसचरिमाए' ( निचू २ पृ २९७ ) । साणुप्पाय -- दिवस का अन्तिम प्रहर ( नि ४।१०८ पा ) । साणुवेला -- प्रभात - 'जाव जणो ण संचरति ताव साणुवेलाए दोसीणं तक्कं वा गेण्हंति' ( निचू ४ पृ १२२ ) । साणूर -- देवालय, देवमंदिर ( दे ८।२४ ) । साधी -- क्रम, पंक्ति ( निचू ४ पृ २३८ ) । साभरग -- रुपया, सिक्का - 'साभरग त्ति देशीवचनाद् रूपका:' ( बृटी पृ १५९ ) । सामंती -- समभूमि ( दे ८।२३ ) । सामग्गिअ -- १ चलित । २ अवलम्बित । ३ पालित, रक्षित ( दे ८।५३ ) । ४ आलिंगित ( पा १५१ ) । सामच्छण -- मंत्रणा, पर्यालोचन ( बृभा ११६१ ) । सामच्छिय -- पर्यालोचित, सुचिंतित ( उसुटी प ७ ) । सामत्थ -- मंत्रणा, पर्यालोचन ( व्यभा ४।३ टी प ५२ ) । सामत्थण -- पर्यालोचन - 'सामत्थणं देशीवचनतः पर्यालोचनं भण्यते' ( आवहाटी १ पृ ७३ ) । सामरि -- शाल्मली, सेमर का पेड़ ( दे ८।२३ ) । सामाइत -- १ वह व्यक्ति जिसको रात्री में नहीं दिखता, रात्री - अन्धक । २ कृषक (दअचू पृ ५१ ) । सामिअ -- दग्ध ( दे ८।२३ ) । सामिणी -- स्त्री का संबोधन ( द ७।१६ ) - सामिणित्ति सव्वदेसेसु, सामिणीगोमिणीओ चाटुवयणं' ( दअचू पृ १६८ ) । सामुंडुय -- तृणविशेष, वरु ( पा ३७३ ) । सामुद्द -- इक्षु सदृश तृण ( दे ८।२३ ) । साय -- १ महाराष्ट्र - का एक नगर । २ दूर ( दे ८।५१ ) । सायंकार -- सत्यंकार, सत्य-करण ( स्था १०।९६ ) । सायंदूर -- महाराष्ट्र का एक नगर ( दे८।५१ वृ ) । सायंदूला -- केतकी, केवड़े का गाछ ( दे ८।२५ ) । सायमंडुक्कि -- वनस्पति-विशेष ( भ २१।२० ) । सारमिअ -- स्मारित, याद कराया हुआ ( दे ८।२५ ) । सारवण -- १ समारचन, सम्माजंन । २ निष्क्रिय ( ओटी प ४१ ) । सारविय -- साफ किया हुआ ( बृभा १५५१; दे ८।४९ ) । सारा -- भुजपरिसर्पिणी ( जीव २।९ ) । साराडि -- आटी पक्षी, शरारी पक्षी ( दे ८।२४ ) । सारि -- ऋषि का आसन-विशेष ( पा ६५४ ) । सारिकह -- गृहस्थ, शय्यातर- सारिकह त्ति सागारिक:- शय्यातरः' ( बृटी पृ ३९३ ) । सारिच्छिआ -- दूर्वा, दूब ( दे ८।२७ ) । सारित -- आहूत, आकारित- आरिओ आगारितो सारितो वा एगट्ठं' ( निचू ४ पृ २४४) । सारी -- १ वृसी, ऋषियों का आसन ( दे ८।२२ ) । २ मिट्टी -- सारी मृत्तिकेत्यन्ये' ( वृ ) । ३ मैना, पक्षि-विशेष ( अंवि पृ २५८ ) । साल -- १ छाल - 'बाहिरा छल्ली सालं भण्णइ ( निचू ३ पृ ४८१ ) । २ अच्छिन्न छल्ली - 'नखादिभि: अक्खुण्णं सालं भण्णति' ( निचू ३ पृ ४८२) । सालंकी -- सारिका, मैना ( दे-८।२४ ) । सालंगणी -- अधिरोहिणी, सीढी ( दे ८।२६ ) । सालग -- १ रस, गिरी ( आचूला ७।२९ ) । २ बाहरी छाल ( निचू ४ पृ ६५ ) । ३ लम्बी शाखा । सालहिया -- सारिका, मैना ( प्रसाटी प ६३; दे ८।२४ ) । सालही -- सारिका, मैना ( दे ८।२४ ) । साला -- शाखा ( सू २।२।२३; दे ८।२२ ) । सालाका -- पक्षिणी-विशेष - 'कीरी मदणसलाग त्ति सालाका कोकिल त्ति वा' ( धंवि पृ ६९ ) । सालाकालिक -- गोल खाद्यपदार्थ - 'पेंडिका वा पप्पडे वा मोरेंडकाणि वा सालाकालिकं वा अंबट्टिकं वा' ( अंवि पृ १८२ ) । सालाणअ -- १ स्तुत, जिसकी स्तुति की गई हो वह ( दे ८।२७ ) । २ स्तुत्य, स्तुति-योग्य ( वृ ) । सालिंगणवट्टिय -- शरीर प्रमाण वाले उपधान वाला- 'सहालिंगनवर्त्त्याशरीरप्रमाणोपधानेन यत् तत् सालिंगनवर्त्तिकम्' ( ज्ञाटी प १७ ) । सालिका -- एक प्रकार की नौका - 'णावा पोतो कोट्टिंबो सालिका तप्पको' ( अंवि पृ १६६ ) । सालिभ -- पर्वत की गुफा में रहने वाला प्राणी-विशेष - अच्छभल्ला तरच्छा सालिभा सेधका' ( अंवि पृ २२७ ) । सालुअ -- १ शम्बूक, शंख । २ शुष्क यव आदि धान्य का अग्रभाग ( दे ८।५२ ) । सालुग -- शालि, यव आदि का अग्रभाग- सालि-जव-अच्छि-सालुग, णिस्सरणं मासमुग्गमादीसु' ( बृभा ३३०७ ) । सावअ -- १ शरभ, श्वापद पशु-विशेष ( दे ८।२३ ) । २ बालों की जड़ में होने वाला क्षुद्र कीट-विशेष । सासवुल -- कपिकच्छू, कवाछ का पौधा ( दे ८।२५ ) । सासा -- कान का आभूषण - 'सासा-सम्मिकावतंसक-ओवास कण्णपीलक' ( अंवि पृ १८३ ) । सासेरा -- यान्त्रिक नर्तकी - 'देशीपदत्वाद् यन्त्रमयी नर्तकी' ( बृटी पृ १६४५ ) । साह -- १ बालू । २ उल्लू । ३ दधिसर, दही की मलाई ( दे ८।५१ ) । ४ प्रिय, पति । साहंजण -- गोक्षुर, गोखरू ( दे ८।२७ ) । साहंजय -- गोक्षुर, गोखरू ( दे ८।२७ ) । साहणा -- कथन ( व्यभा ६ टी प १९ ) । साहरअ -- मोहरहित ( दे ८।२६ ) । साहरक -- रुपया - 'साहरको णाम रूपकः ' ( निचू २ पृ ९५ ) । साहस -- परदारगमन - 'साहसमिति परदारगमनम्' ( सूचू १ पृ १०५ ) । साहि -- १ ईरान देश का सामन्त - 'तत्थ एगो साहित्ति राया भण्णति' ( निचू २ पृ ५९ ) । २ राजमार्ग - 'साहिशब्दो राजमार्गे देशी' ( से १२।९२ ) । साहिअय -- कथित, प्रतिपादित ( पा १४५ ) । साहिणिया -- गीतिका - 'तरुणा सूरजुवाणा इमं साहिणियं गायंति' ( आवहाटी २ पृ ४५ ) । साहिय -- कथित ( आ ८।८।१२ ) । साहिलय -- मधु, शहद ( दे ८।२७ ) । साही -- १ छोटा दरवाजा, खिड़की - 'साही पुरोहडे वा उवस्सए मत्तगम्मि वा णिसिरे' ( ओनि ६२२ ) । २ मार्ग, रास्ता - 'नोघरंतरऽणेगविहं वाडग साही निवेसण गिहेसु' ( पिनि ३३४) । ३ मुहल्ला, रथ्या ( दअचू पृ ४७; दे ८।६ ) । ४ गृहपंक्ति - 'घरपंती साही भण्णति' ( निचू २ पृ २०९ ) । साहीय -- गृहपंक्ति ( बृभा २२१० ) । साहुली -- १ शाखा ( निचू १ पृ ८५ ; दे ८।५२ ) । २ वस्त्र । ३ भौंह, भ्रू। ४ भुजा । ५ सदृश । ६ कोयल । ७ सखी ( दे ८।५२ ) । ८ कटिवस्त्र (-पा ११७ ) । ९ मयूर पिच्छ । साहेज्जअ -- अनुगृहीत ( दे ८।२६ ) । सिअ -- चंवर - 'से सिएण वा विहुयणेण वा.... न फुमेज्जा' ( द ४ सूत्र २१ ) । सिअंग -- वरुण, जलदेवता ( दे ८।३१ ) । सिआली -- डमर, राष्ट्रविप्लव ( दे ८।३२ ) । सिइ -- सीढी ( पिनि ४७३ ) । सिउंठा -- साधारण वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञाटी प ३५ ) । सिउंढि -- साधारण वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।४८।९ ) । सिंखल -- नूपुर, घुघरू ( दे ८।१० ) । सिंग -- कृश, दुर्बल (दे ८।२८ ) । सिंगक -- बालक ( अंवि पृ १६९ ) । सिंगग -- पानी छिड़कने का पात्र-विशेष - 'सिंचिज्जइ सिंगगादिणा' ( निचू ४ पृ ४७ ) । सिंगणा -- १ याचना । २ पहचान - 'मा तस्स पुव्वसामी सिंगणं करिस्सति' ( निचू ३ पृ ४६२ ) । देशी शब्दकोश सिंगनाइय– संघ का कार्य (नंदीटि पृ १६२ ) । सिंगय – तरुण ( दे ८३१) । सिंगरेवाणिय – कर्माजीवी (अंवि पृ १६०) । सिंगा - फली (आचू पृ ३४१ ) । सिंगा (गुजराती, मराठी, कन्नड़ ) । सिंगाडय - गले का हार, आभूषण ( कुपृ८३) । सिंगालक-पक्षी विशेष (अंवि पृ २३८ ) । सिंगिका–बालिका - 'दारिया बालिया व त्ति सिंगिका पिल्लिक त्ति वा ( अंवि पृ ६८ ) सिंगिणी - गाय ( दे ८।३१) । सिगिरिड– चतुरिन्द्रिय जन्तु विशेष ( प्रज्ञा १९५१ ) । सिँगिरीडि- चतुरिन्द्रिय जंतु विशेष (उ ३६।१७) । सिंगेरिवम्म – वल्मीक (८१३३ ) । सिंगुग्गु – वनस्पति विशेष (धंवि पृ २३२) । सिघाडय - राहु का नाम- राहुस्स णं देवस्स नव नामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा - सिंघाडए जडिल ए' ( भ १२ । १२३ ) । अ - राहु ( दे ८।३१) । सिटी – नाक छींकने का शब्द ( आवचू १ पृ ३०) । सिंड – मोटित, मोड़ा हुआ ( दे ८।२६) । सिंढ- मयूर, मोर ( दे ८४२० ) । सिंढा–नासिका - नाद, नाक की आवाज ( दे ८२६) । सिढिय - मलैष्मिक (व्यभा १० टीप ३) । सिंद - खजूर ( आवहाटी १ पृ १४८ ) । सिंदवासि - वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । सिंदि - खजूरी सिंदि-खज्जूरी' (आवचू १ पृ ३१६) । सिंदी - खजूरी - सिंदिकंदयेण आहह्णामित्ति पहावितो, सिंदी-खजूरी (आवहाटी ११४८; ८२६) । सिंदीर - नूपुर (दे ८।१०) । सिंदु - रस्सी (८२८ ) । सिंदुरय - १ राज्य । २ रज्जु (दे ८॥५४) । सिंदुषण-अग्नि (दे८३२)। Jain Education International For Private & Personal Use Only ४१५ www.jainelibrary.org सिंदोल -- खजूर ( पा ३६८ ) । सिंदोला -- खजूरी, खजूर का पेड़ ( दे ८।२९ ) । सिंपुअ -- भूतगृहीत, भूताविष्ट ( दे ८।३० ) । सिंबलि -- शाल्मली वृक्ष ( भ ७।१३ ) । सिंबलिगि -- शाल्मली वृक्ष - 'सिबलिंगि विउव्वित्ता तथारुभिऊणं कड्ढेंति' ( सूचू १ पृ १२६ ) । सिंबाडी -- नाक से होने वाली आवाज ( दे ८।२९ ) । सिंबीर -- पलाल ( दे ८।२८ ) । सिंभ -- श्लेष्म, कफ ( प्र १०।९ ) । सिंव -- नाव के बीच का स्तंभ जहां पाल बांधा जाता है ( निचू १ पृ ७४ ) । सिंहलिआ -- शिखा, चोटी ( पा ९४ ) । सिकुत्थी -- जलचर परिसर्प-विशेष ( अंवि पृ ६९ ) । सिकूवाली -- जलचर परिसर्प-विशेष ( अंवि पृ ६९ ) । सिक्क -- छींक ( कु पृ २२ ) । सिक्कगणंतअ -- छींके का आच्छादन - 'सिक्कगणंतओ उ पोणओ उच्छाडणं भण्णति' ( निचू २ पृ ३८ ) । सिक्कगणंतग -- छींके का आच्छादन ( नि १।१३ ) । सिक्कडि -- डाकिनी ( उसुटी प ८० ) । सिक्कणंतग -- छींके का आच्छादन ( निचू २ पृ ३७ ) । सिक्कयंतय -- छींके का ढक्कन - 'अह सिक्कयंतयं पुण, सिक्कतओ पोणओ मुणेयव्वो' ( निभा ६४५ ) । सिक्कर -- खंड, टुकड़ा - 'सयसिक्करे गओ' ( उसुटी प ४२ ) । सिगिला -- जलचर परिसर्प-विशेष ( अंवि पृ ६९ ) । सिगिलि -- प्राणी-विशेष ( धंवि पृ २३७ ) । सिग्ग – १ परिश्रम - 'सिग्गत्ति देशी पदमेतत् परिश्रम इत्यर्थ:' ( व्यभा ४।४ टी प ९ ) । २ श्रांत, थका हुआ ( ओनि २४; दे ८।२८ ) । सिग्गअ -- श्रम ( ओटी प ६२ ) । सिग्गड -- कला-विशेष ( कुपृ १५० ) । सिचकत -- वस्त्र-विशेष ( अंवि पृ १४१ ) । सिज्जूर -- राज्य ( दे ८।३० ) । सिज्झिया -- साथ में रहने वाली, पड़ोसिन ( बृभा १७२५ ) । सिट्टर -- चेष्टा - 'छेदणादिसिट्टरेहि अच्छंति' ( निचू २ पृ ५ ) । सिण्हक -- वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ६३ ) । सिण्हा -- १ ओस, कुहरा ( पंव ८० ; दे ८।५३ ) । २ हिम ( दे ८।५३ ) । ३ शिशिर - 'सिण्हा शिशिरे देशी' । सिण्हालय -- फल-विशेष ( अनु ३।५१ ) । सित -- चंवर- 'सितं चामरं ( दअचू पृ ८९ ) । सिति -- सीढी ( जीभा ३२९ ) । सितीय -- १ शिविका । २ निःश्रेणी ( अंवि पृ ३१ ) । सित्थ -- १ जीवा, धनुष्य की डोरी- सित्थं जीवा गुणो पडंचा य ( पा २७७ ) । २ मत्स्य की जाति-विशेष (अंबिपृ २२८ ) । सित्था -- १ लार, लाला । २ जीवा, धनुष की डोरी ( दे ८।५३ ) । सित्थि -- मरस्य ( दे ८।२८ ) । सिद्ध -- परिपाटित, विदारित ( दे ८।३० ) । सिद्धत्थ -- रुद्र, महादेव ( दे ८।३१ ) । सिप्प -- पलाल, तृण विशेष ( दे ८।२८ ) । सिप्पिका -- सीप, घोंघा ( अंवि पृ २६७ ) । सिप्पिय -- पलाल, तृण-विशेष ( भ २१।१९ ) । सिप्पिर -- तृण-विशेष ( प्रज्ञाटी प ३३ ) । सिप्पिसंपुड -- द्वीन्द्रिय जन्तु-विशेष ( प्रज्ञा १।४९ ) । सिप्पी -- सूई ( निचू १ पृ ५२ ) । सिब्भ -- श्लेष्म ( भ ७।११९ ) । सिय - चामर ( द ४।२१ ) । सियलिया -- रोग-विशेष ( निचू २ पृ २१५ ) । सियवल्ली -- वृक्ष-विशेष ( आचू पृ ३७३ ) । सियाण -- श्मशान ( व्यभा ७ टी प ७६ ) । सिरिंग -- विट, लम्पट (दे ८।३२ ) । सिरिद्दह -- पक्षियों का पान-पात्र ( राजटी पृ १०५ ) । सिरिद्दही -- पक्षियों का पानपात्र ( दे ८।३२ ) । सिरिमुह -- मदमुख, जिसके चेहरे पर नशे की झलक हो ( दे ८।३२ ) । सिरियक -- गुल्म-विशेष ( अंवि पृ १४१ ) । सिरिली -- कन्द-विशेष ( भ ७।६६ ) । सिरिवअ -- हंस ( दे ८।३२ ) । सिरिवच्छीव -- गोपाल, ग्वाला ( दे ८।३३ ) । सिरिवेट्टक -- उद्भिज्ज जंतु-विशेष ( अंवि पृ २२९ ) । सिलअ -- उञ्छ, गिरे हुए अन्नकणों का ग्रहण ( दे ८।३० ) । सिलंब -- बालक, बच्चा ( पा ९५ ) । सिलिंका -- शलाका - 'दढवज्जसिलिंकाणिम्मवियं पिव तुह हिययं' ( कु पृ २३ ) । सिलिंब -- शिशु ( दे ८।३० ) । सिलेच्छिय -- मत्स्य की एक जाति ( जीवटी प ३६ ) । सिल्लि -- रज्जु, रस्सी ( उसुटी प ३१६ ) । सिल्हा -- शीत - 'सिल्हा शीते देशी' ( से १२।७ ) । सिव्वणी -- १ सिलाई ( निचू ३ पृ ६० ) । २ सूची, सूई ( नंदीटि पृ १३८ ) । सिव्विणी -- सूची, सूई ( दे ८।२९ ) । सिव्वी -- सूई ( दे ८।२९ ) । सिसिर -- दही ( दे ८।३१ ) । सिस्सिरिली -- कन्द-विशेष ( उ ३६।९७ ) । सिहंड -- चोटी ( पा ९४ ) । सिहंडइल्ल -- १ बालक । २ दधिसर, दही की मलाई । ३ मयूर ( दे ८।५४ ) । सिहरिणी -- सिखरन, दही-चीनी से बना खाद्य-विशेष ( प्र १०।६; दे ८।३३) । सिहरिल्ला -- सिखरन, दही-चीनी से बना खाद्य-विशेष ( दे ८।३३ ) । सिहि -- कुक्कुट, मुर्गा ( दे ८।२८ ) । सिहिण -- स्तन ( दे ८।३१ ) । सिहिरिणी -- दही और चीनी से बना खाद्य विशेष (आचू पृ ३३६ ) । सीअ -- सिक्थक, मोम ( दे ८।३३ ) । सीअउरय -- गुच्छ वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञाटी प ३२ ) । सीअणय -- १ दुग्धपारी, दूध दोहने का पात्र । २ श्मशान ( दे ८।५५ ) । सीअल्लि -- १ हिमकाल में होनेवाला मेघाच्छन्न दिन । २ झाड़ी, लतागहन ( दे ८।५५ ) । सीआलोयय – १ चन्द्रमा । २ हिमऋतु ( से ३।४७ ) । सीइआ -- झड़ी, निरन्तर वृष्टि ( दे ८।३४ ) । सीई -- सीढ़ी, निःश्रेणी ( पिनि ९८ ) । सीउक -- मस्तक का आभूषण-विशेष ( अंवि पृ ६४ ) । सीउग्गय -- सुजात, कुलीन ( दे ८।३४ ) । सीकवल्लोकी -- वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । सीकुंडी -- छोटा मत्स्य-विशेष ( अंवि पृ २२८ ) । सीकूणिक -- जलज प्राणी-विशेष ( चंवि पृ २२९ ) । सीडा -- फल-विशेष - 'रातण-तोडण-सीडा लउसु तुंबुरु पिप्पलफलेसु' ( अंवि पृ २३८ ) । सीत -- चामर - सीतं चामरं भण्णइ' ( दजिचू पृ १५६ ) । सीता -- शरीर का अवयव-विशेष - 'णासिका कण्णपालीओ थूणा सीता य तालुका' ( अंबि पृ ६६ ) । सीताण -- श्मशान ( निभा ६११२ ) । सीतिय -- सोपान, सीढी - सोमाणे सीतियं वा वि' ( अंवि पृ ३३ ) । सीपिंजुला -- पक्षिणी-विशेष - 'उलुकी मालुका व त्ति सेणा सीपिंजुल त्ति वा' ( अंवि पृ ६९ ) । सीमर -- १ समान, तुल्य - 'तत्थवि सीभरमेव उवदिसियव्वं' ( आचू पृ २६२ ) । २ बोलते हुए थूक उछालने वाला ( व्यभा ४।३ टी प २९ ) । सीभरग -- बोलते समय थूक उछालने वाला ( व्यभा ४।३ टीप २९ ) । सीमंतय -- सीमंत - 'बालों की रेखा-विशेष ( मांग ) में पहना जाने वाला अलंकार-विशेष ( दे ८।३५ ) । सीय -- १ शिविका–'सीय त्ति शिविका कूटाकारेणाच्छादितो जम्पान विशेषः ( भटी पृ ७३० ) । २ मोम ( आवचू १ पृ ५ ) । सीयउरय -- गुच्छ वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।३७।३ ) । सीयाण -- श्मशान ( व्यभा ७ टी प ५५ ) । सीयालु -- जिसे सर्दी अधिक लगती हो वह ( निचू २ पृ ४२८ ) । सीरिय -- भिन्न ( पा ९२४ ) । सीरोवहासिआ -- लज्जा ( दे ८।३६ ) । सीलुट्ट -- खीरा, फकड़ी ( पा ४७७ ) । सोलुट्टय -- त्रपुस, खीरा ( दे ८।३५ ) । सीवणी -- सूई तेण सीवणीए सीविऊण विसज्जियं' ( आवहाटी १ पृ २८५ ) । सीसक्क -- शिरस्राण, शिर की रक्षा के लिए पहना जाने वाला फौलादी टोप ( दे ८।३४ ) । सीसपुच्छ -- पीठ की चमड़ी ( सूनि ६८ ) । सीसय -- प्रवर, श्रेष्ठ ( दे ८।३४ ) । सोहंडअ -- मत्स्य ( दे ८।२८ ) । सीहकेसरय -- विशेष प्रकार के मोदक ( पिनि ४६१ ) । सीहणही -- १ करमन्दिका, करौंदी का वृक्ष ( दे ८।३५ ) । २ करौंदी का पुष्प - 'सीहणही करमन्दिका । तत्कुसुममित्यन्ये' ( वृ ) । सीहपुच्छ -- पीठ की चमड़ी - 'कप्पति कागणीमंसगाणि छिदंति सीहपुच्छाणि' ( सूनि ७७ ) । सीहरअ -- आसार, तेजवर्षा ( दे ८।१२ ) । सीहलय -- वस्त्र आदि को धूपित करने का यन्त्र ( दे ८।३४ ) । सीहलिआ -- १ शिखा, चोटी । २ नवमालिका, नवारी का गाछ ( दे ८।५५ ) । सोहलिपासग -- वेणी बांधने के लिए काम में आने वाला ऊन या स्वर्ण का कंकण ( सू १।४।४२ ) । सुअणा -- अतिमुक्तक वृक्ष ( दे ८।३८ ) । सुई -- बुद्धि ( दे ८।३६ ) । सुंकय -- किंशारु, जौ आदि का अग्रभाग ( दे ८।३८ वृ ) । सुंकल -- किशारु, धान्य आदि का अंग्रभाग ( दे ८।३८ ) । सुंकलि -- तृण-विशेष ( भ २१।१९ ) । सुंकलिकडय -- क्रीडा-विशेष - 'यह खेल वृक्ष को केन्द्र मानकर खेला जाता है' । खेलने वाले सभी बच्चे वृक्ष की ओर दौड़ते हैं । जो बच्चा सबसे पहले वृक्ष पर चढ़कर उतर आता है, वह विजेता माना जाता है । विजेता बच्चा पराजित बच्चों के कंधों पर बैठकर दौड़ के प्रारम्भ बिन्दु तक जाता है - भगवं च पमदवणे चेडरूवेहिं समं सुकलिकडएण अभिरमति' ( आवचू १ पृ २४६ ) । सुंग -- वर्षात्राण के उपकरण का एक प्रकार - वालो सुत्तो सुंगो' ( जीविप पृ १७) । सुंघिअ -- घात, सूंघा हुआ ( दे ८।३७ ) । सुंठय -- पकाने का भाजन-विशेष - 'मीरासु सुंठएसु य कंडूसु य पयणगेसु य पयंति' ( सूचू १ पृ १२४ ) । सुंडक -- पकाने का भाजन-विशेष - 'मीरासु मुंडएसु य कंडूसु पयणगेसु य पयंति' ( आवहाटी २ पृ १०७ ) । सुंभल -- चोटी, शेखरक ( ज्ञा १।८।७२ पा ) । सुंभलग -- मदिरा-विशेष ( अंवि पृ २४७ ) । सुंसुमारित -- वाद्य-विशेष (आवचू १ पृ ३०९) । सुकुमालिअ -- सुघटित ( दे ८।४० ) । सुक्ख -- कंडा- 'गोब्बरो त्ति करीसा त्ति सुक्खं वा छगणं पुणो' ( धंवि पृ १०६ ) । सुग -- सूची, सूई- 'तण सुगादी साधू अणा भोगेण अणणुण्णवित गेण्हेज्ज' ( दअचू पृ८४ ) । सुगिम्हअ -- फाल्गुन का उत्सव ( दे ८।३९ वृं ) । सुग्ग -- १ आत्मकुशल । २ निर्विघ्न । ३ विसर्जित ( दे ८।५६ ) । सुघर -- गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १५० ) । सुजड्डिय -- भली भांति बंद किया हुआ - "चाणक्कघर मणुप्पविट्टो ओव्वरगं सुजड्डियं दट्ठे चितेति' ( दअचू पृ ४२ ) । सुज्झ -- धातु-विशेष ( राज १७४ ) । सुज्झय -- १ रौप्य, चांदी । २ धोबी ( दे ८।५६ ) । सुज्झरअ -- रजक, धोबी ( दे ८।३९ ) । सुढिअ -- १ श्रान्त, थका हुआ ( दे ८।३९ ) । २ संकुचित अंग वाला ( बृभा ३४९ ) । सुढित -- चरणों में गिरा हुआ-'छन्नालयम्मि काऊण कुंडियं अभिमुहंजली सुढितो' ( बृभा ३७४ ) । सुणेलूग -- श्रोता, सुनने वाला ( सूचू १पृ १८५ ) । सुण्हसिअ -- स्वपनशील, सोने की आदत वाला ( दे ८।३९ ) । सुत्त -- १ कांजी ( बृभा ८०१ ) । २ मद्य के नीचे का कर्दम । ३ द्रव्य-विशेष - 'सुत्तं मदिराखोलः देशविशेषप्रसिद्धो वा कश्चिद् द्रव्यविशेषः ' ( बृटी पृ १५५७ ) । सुत्तजगलिका -- त्रीन्द्रिय जंतु-विशेष - 'सुत्तजगलिका कुंथू उरणी सुयम्मुत्ता' ( अवि पृ २३७ ) । सुदारुण -- चण्डाल ( दे ८।३९ ) । सुदुम्मणिआ -- रूपवती स्त्री ( दे ८।४० ) । सुद्ध -- ग्वाला ( दे ८।३३) । सुद्धवाल -- शुद्ध और पवित्र ( दे ७।३८ ) । सुफणी -- जिसमें आसानी से पकाया जाये वह बर्तन, बटलोई आदि - 'सुखं फणिज्जति जत्थ सा भवति सुफणी लाडाणं जहि कड्ढति तं सुफणि त्ति वुच्चति' ( सूचू १ पृ ११७ ) । सुब्भ -- धातु-विशेष - 'सुवण्ण-सुब्भ-यय-वालुयाओ' ( जीव ३।२८९ ) । सुमंगल -- द्वीन्द्रिय प्राणी-विशेष - 'णीपुर-सुमंगल-संबुक्कादयो एवं विधा फार्सिदिय-जिब्भिंदियोपेता' ( अंवि पृ २६७ ) । सुमुंगुमंती -- भिनभिनाने वाली - पज्जणघडियाए मच्छियाओ पविट्ठाओ हत्थेण ओहाडिया व सुमुंगुमंतीउ होउ त्ति' ( आवहाटी २ पृ १६ ) । सुय -- तृण-विशेष ( प्रज्ञा १।४२ ) । सुयम्मुत्त -- श्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष ( षंवि पृ २३७ ) । सुयल्लिय -- सुप्त ( आटी पृ ४६५ ) । सुरंगि -- शिग्रु वृक्ष ( दे ८।३७ ) । सुरजेट्ठ -- वरुण देव ( दे ८।३१ ) । सुरसुर -- अनुकरणवाची शब्द, भोजन के समय होने वाला शब्द ( भ ७।२५ ) । सुरूचि -- १ आसन-विशेष । २ आभरण-विशेष - भद्रासनं सिंहासनं सुरूची रूढिगम्या आभरण विशेष इति केचित्' ( प्रटी प ७० ) । सुलस -- कुसुम्भरक्त वस्त्र ( दे ८।३७ ) । सुलसमंजरी -- तुलसी ( दे ८।४० ) । सुलसा -- तुलसी ( पा ३७५ ) । सुलसुलंत -- किलबिलाना - 'गलंतपूइनिवहं सुलसुलंतकिमिजालं' ( उसुटी प २३९ ) । सुली -- उल्का ( दे ८।३६ ) । सुलुब्व -- तांबा, ताम्र ( कु पृ १९६ ) । सुवण्ण -- अर्जुन वृक्ष ( दे ८।३७ ) । सुवण्णबिंदु -- विष्णु ( दे ८।४० ) । सुवरी -- सूअर की मादा - 'वराही सुवरी कोली खारका घरकोइला' ( अंवि पृ ६९ ) । सुवुण्णा -- संकेत ( दे ८।३७ ) । सुव्व -- तांबा - जेण कणयं ति चिंतियं सुव्वं जायं' ( कु पृ १९५ ) । सुव्विआ -- माता ( दे ८।३८ ) । सुसंठिआ -- शूलाप्रोत मांस ( दे ८।३९ ) । सुहउत्थिआ -- दूती ( दे ८।९ ) । सुहरा -- गोरैया पक्षी, सुघरा, वह पक्षि-विशेष जिसके घोंसले का मुंह नीचे की ओर होता है ( दे ८।३६ ) । सुहराअ -- १ वेश्यागृह । २ चटक, गोरैया पक्षी ( दे ८।५६ ) । सुहल्ली -- सुख, आनन्द ( दे ८।३६ वृ ) । सुहिल्लि -- आनन्द ( कु पृ ८३ ) । सुहिल्लिया -- सुख, आनन्द - 'न लहइ जहा लिहंतो सुहिल्लियं अट्ठियं रसं सुणओ' ( भत्त १४२ ) । सुहेल्लि -- सुख ( दे ८।३६ ) । सूअरिआ -- यन्त्र-पीडन ( दे ८।४१ वृ ) । सूअरी -- यन्त्र-पीडन ( दे ८।४१ ) । सूअल -- किंशारु, जौ आदि का अग्रभाग ( दे ८।३८ ) । सूइअ -- चण्डाल ( दे ८।३९ ) । सूइत -- प्रोत, पिरीया हुआ - 'सुत्तेण सुइत त्ति य अत्था तह सुइता य जुत्ता य' ( सूचू १ पृ १२ ) । सूइय -- भीगा हुआ खाद्य ( आ ९।४।१३ ) । सूई -- मञ्जरी ( दे ८।४१ ) । सूकमिंड -- कृमि-विशेष - 'तत्थ किमिगत आसातिका किमिका........सूकमिंडा वेति एवमादयो विण्णेया भवंति' ( अंवि पृ २२९ ) । सूकमिद्द -- क्षुद्र जंतु-विशेष ( अंवि पृ २३० ) । सूडण -- विनाशक ( प्रसा १५१४ ) । सूतय -- तोता, शुक्र - 'मायादोसेण रुक्खकोट्टरे सूतओ जाओ' ( आवहाटी १ पृ २६४ ) । सूदी -- परिमाण-विशेष, एक अंगुल लंबी एक प्रदेश वाली श्रेणी - 'पयरघणा सब्वेसी सेढी सूदी य आयत-विसेसो' ( सूचू १ पृ ८ ) । सूमालिया -- तैल का किट्ट ( बृभा १७१० ) । सूय -- सूजनयुक्त - 'सूयमुहं सूयहत्थं सूयपायं' ( विपा १।७।७ ) । सूरंग -- प्रदीप ( दे ८।४१ ) । सूरण -- कन्द-विशेष ( भ ७।६६; दे ८।४१ ) । सूरणय -- कन्द-विशेष, सूरन ( उ ३६।९८ ) । सूरद्धय -- दिन ( दे ८।४२ ) । सूरमल्लि -- तृण-विशेष ( राजटी पृ १९८ ) । सूरल्लि -- १ मध्याह्न । २ ग्रामणी नामक तृण । ३ मशक की आकृति वाला कीट ( दे ८।५७ ) । सूरिल्लि -- ग्रामणी नामक तृण ( राज १८४ ) । सूरुल्लिया -- वनस्पति-विशेष ( जीवटी प ३५१ ) । सूलच्छ -- पल्वल, छोटा तालाब ( दे ८।४२ ) । सूलत्थारी -- चण्डी, दुर्गा ( दे ८।४२ ) । सूला -- वेश्या ( दे ८।४१ ) । सूहव -- सुभग ( दे ८।४२ वृ ) । से -- इन अर्थों का सूचक अव्यय - १ अथ ( भ १।४२८ ) । २ प्रश्न ( भ १।४५ ) । ३ अनन्तरता - 'आनन्तर्यार्थ: - से शब्दार्थ:' ( स्था १०।९६ टी प ४६९ ) । ४ तत्, वह - से शब्द: मागधदेशीप्रसिद्धो निपातस्तच्छब्दार्थ:' ( आवहाटी २ पृ २२१ ) । ५ प्रस्तुत वस्तु का परामर्श, उपन्यास - से नूणं मए पुव्वं - सेशब्दो मागधप्रसिद्ध्याऽथ शब्दार्थ उपन्यासे' ( उ २।४० शाटी प १२६ ) । सेआल -- १ ग्रामप्रधान । २ सांनिध्यकर्त्ता यक्ष आदि ( दे ८।५८ ) । ३ कृषक ( पा १२२ ) । सेआली -- दूब ( दे ८।२७ ) । सेआलुअ -- मनौती की सिद्धि के लिए उत्सृष्ट बैल ( दे ८।४४ ) - 'सेआलुओ उपयाचितसिद्ध्यर्थं वृषभः । उपयाचितं केनापि कामेन देवता राधनम्' ( वृ ) । सेइआ -- परिमाण-विशेष, दो प्रसृति का एक नाव ( अनुद्वामटी प १३९ ) । सेइंगाल -- चतुरिन्द्रिय जंतु-विशेष ( जीवटी प ३२ ) । सेंगलिया -- फली ( आवमटी प २८७ ) । सेंगा -- १ शंख की तरह बजाया जाने वाला वाद्य ( आवचू १ पृ ३०९ ) । २ फली ( निचू २ पृ २३७ ) । सेंटा -- नाक छींकने का शब्द - छेलिय सेंटा भण्णति' ( जीभा १७२३ ) । सेंदसप्प -- फण वाले सर्प की एक जाति ( प्रज्ञा १।७० ) । सेंवाडअ -- चप्पुटिकानाद, चुटकी की आवाज ( दे ८।४३ ) । सेक्क -- छींक ( कु पृ २२ ) । सेज्जारिअ -- आंदोलन, झूलना ( दे ८।४३ ) । सेज्झंतिय -- सहायक - 'तम्हा तस्सायरिओ, मग्गति सेज्झंतिआदी वा' ( पंक १११४ ) । सेज्झगा -- पड़ोसिन ( बृभा २३४६ ) । सेट्ठि -- ग्रामेश, गांव का अधिपति ( ज्ञा १।१।२४; दे ८।४२ ) । सेट्ठिणी -- सेठानी ( निचू ३ पृ ४०८ ) । सेडंगुलि -- खाद्य वस्तु-विशेष - सेडंगुलिमादीहि पाएहि एत्थ भत्तट्ठ' ( जीभा १३९७ ) । सेडंगुली -- पत्नी के अधीन पति की एक अवस्था - जदा इत्थी भणिता रंधेहि, तदा भणति - अहं उट्ठेमि, ताव तुमं अधिकरणीतो छारं अवणेहि त्ति । तस्स छारे अवणीते सेडंगुलीतो भणति' ( निचू ३ पृ ४२० ) । सेडि -- सफेदी, चूना ( अंदि पृ १०४ ) । सेडिय -- तृण-विशेष ( भ २१।१९ ) । सेडिया -- खड़िया मिट्टी ( आचूला १।७६ ) । सेडीका -- पक्षि-विशेष ( अंवि पृ २३८ ) । सेडीवड -- पंचेन्द्रिय लोमपक्षी ( जीवटी प ४१ ) । सेडुअ -- कपास-सेडुओ कप्पासो' ( निचू २ पृ ३२६ ) । सेडुकारी -- भ्रमरी - हितगट्ठजाणणट्ठा, विच्छ्य तह सेडुकारी य ( निभा १४३६ ) । सेडुग -- कपास ( निभा १९९२ ) । सेडुयारिया -- भ्रमरी ( निचू २ पृ १९७ ) । सेढिया -- सफेद मिट्टी ( दजिचू पृ १७६ ) । सेण -- रक्षक - 'ताओ गुत्तो य सेणो य रक्खितो य परक्कमा' ( अंवि पृ १५७ ) । सेतगुलिका -- बिल में रहने वाला प्राणी विशेष-तत्थं बिलासएसु कण्हगुलिका सेतगुलिका खुल्लिका आहाडका' ( अंवि पृ २२९ ) । सेतिया -- परिमाण-विशेष - द्वे प्रसृती सेतिका, सा च नेह प्रसिद्धा गृह्यते, मागधदेशप्रसिद्धस्यैवात्र मानस्य प्रतिपिपादयिषितत्वाद्' ( अनुद्वामटी प १४० ) । सेधक -- पर्वतीय पशु-विशेष - 'तत्थ सेलबिलासया' अच्छभल्ला तरच्छा सालिभा सेधका दीपिका' ( अंवि पृ २२७ ) । सेधा -- साही, जाहक ( जीव २।९ ) । सेय -- १ कीचड़ ( ज्ञा १।१।१६० ) । २ गणेश, गणपति ( दे ८।४२ ) । सेयाल -- १ भविष्यत् काल ( उ २९।७१ ) । २ कृषक ( पा १२२ ) । सेरडी -- भुजपरिसर्पिणी ( जीवटी प ५२ ) । सेराह -- अश्व की एक उत्तम जाति ( कु पृ २३ ) । सेरिभ -- १ महिष, भैंसा ( उसुटी प १३०; दे ८।४४ वृ ) । २ धुर्य वृषभ, गाड़ी का बैल ( वृ ) । सेरिभअ -- घुर्य वृषभ ( दे ८।४४ ) । सेरिय -- १ गुल्म-विशेष ( जीवटी प १४५ ) । २ वाद्य-विशेष । सेरियक -- वनस्पति-विशेष ( भ २२।५ ) । सेरियय -- गुल्म-वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।३८।२ ) । सेरिही -- महिषी, भैंस ( पा ६७० ) । सेरी -- १ यंत्र निर्मित नर्तकी - 'देशीवचनमेतत् यंत्रमयी नर्तकी' ( व्यभा ४।२ टी प ३४ ) । २ दीर्घा । ३ भद्र आकृति ( दे ८।५७ ) । ४ रथ्या । सेलु -- श्लेष्मनाशक वृक्ष-विशेष ( भ ८।२१९ ) । सेलूडक -- फल-विशेष - 'तिंदुकं बदरं व त्ति तधा सेलूडकं ति वा ' ( अंवि पृ ६४ ) । सेलूस -- द्यूतकार, जुआरी ( दे ८।२१ ) । सेलेसिंद -- सर्प की एक जाति ( जीवटी प ३९ ) । सेल्ल -- १ शलाका ( निभा ५१३ ) । २ मृगशिशु । ३ बाण, शर ( दे ८।५७ ) । ४ कुन्त, भाला ( प्रा ४।३८७ ) । सेल्लय -- शाकभाजी - 'सासवनालसेल्लयं' ( जीविप पृ ५६ ) । सेल्लि -- रज्जु, रस्सी - 'छिन्नाले छिदइ सेल्लिं' ( उ २७।७ ) । सेवपूति -- वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । सेवाल -- पंक ( दे ८।४३ ) । सेह -- १ जिसके शरीर में कांटे होते हैं वह प्राणी, साही ( प्र १।८ ) । २ रोमपक्षी विशेष ( प्रज्ञा १।७९ ) । सेहरअ -- चक्रवाक ( दे ८।४३ ) । सेहि -- गत, गया हुआ - तं च निग्गंथीओ नो इच्छेज्जा, सेहिमेव नियं ठाणं' ( व्य ७।३ ) । सेहिअ -- गत, गया हुआ ( दे ८।१ ) । सेही -- साध्वी - 'दुट्ठा सेहि ! कत्तो सि आगया' ( उसुटी प ५४ ) । सेहुलक -- साही, ऐसा जन्तु जिसके शरीर में कांटे होते हैं ( नंदीटि पृ १०७ ) । सोअ -- निद्रा, स्वपन ( दे ८।४४ ) । सोअमल्ल -- सुकुमारता ( दे ८।४५ वृ ) । सोइल्लिय -- सुप्त ( ओटी पृ ४६५ ) । सोंडियालिंछ -- विशेष प्रकार का चूल्हा ( जीव ३।११८ ) । सोगिल -- सूजन-रोग से ग्रस्त ( विपा १।७।७ ) । सोज्झय -- धोबी ( पा ७७३ ) । सोट्ट -- सूखी लकड़ी - 'सोट्टा नाम शुष्ककाष्ठानि' ( बृटी पृ ९७९ ) । सोणंद -- त्रिपादिका - 'साहतसोणंद-मुसल- दप्पण- सोणंदं त्रिकाष्ठिका' ( प्र ४।७ टी प ८० ) । सोत्ती -- नदी ( दे ८।४४ ) । सोमइअ -- स्वपनशील ( दे ८।३९) । सोमंगल -- द्वीन्द्रिय जंतु-विशेष ( उ ३६।१२८ ) । सोमंगलग -- द्वीन्द्रिय जंतु-विशेष ( प्रज्ञा १।४९ ) । सोमहिंद -- उदर, पेट ( दे ८।४५ ) । सोमहि -- पंक ( दे ८।४३ ) । सोमाण -- १ श्मशान ( दे ८।४५ ) । २ सोपान ( अंवि पृ ३१ ) । सोमाल -- १ मांस ( दे ८।४४ ) । २ सुकुमार ( दे ८ ₹।४५ वृ ) । सोमित्तिकी -- वस्त्र-विशेष ( अंवि पृ ७१ ) । सोल -- १ अश्वपाल - 'सोला तुरगपरियट्टगा' ( निचू २ पृ ४४० ) । २ प्रिय- 'सोलवादो प्रियभाष इव' ( सूचू १ पृ १८१ ) । सोलग -- घोडों की देख करने वाला ( बृभा २०६६ ) । सोलहावत्त -- शंख ( दे ८।४६ वृ ) । सोलहावत्तअ -- शंख ( दे ८।४६ ) । सोल्ल -- १ पक्व ( विपा १।२।२४ ) । २ अश्वपाल - मेंठ-आरामिय-सोल्ल-घोड-गोवाल-चक्किय' ( निचू ३ पृ २४५ ) । ३ मांस ( उपाढी पृ १४७; दे ८।४४ ) । ४ कलाल ( आवहाटी २ पृ ६८ ) । सोल्लय -- मांस (उपाटी पृ १४७ ) । सोल्लित -- उछालना, फेंकना - सो सूतियाए गावीए सोल्लितो पडिततो' ( आवचू १ पृ २३१) । सोल्लिय -- १ पकाया हुआ - पंचग्गितावेहिं इंगालसोल्लियं कंदुसोल्लियं कट्ठसोल्लियं ( भ ११।५९ ) । २ पुष्प- विशेष ( औप १९४ ) । सोवण -- १ वासगृह, शय्यागृह । २ स्वप्न । ३ मल्ल ( दे ८।५८ ) । सोवण्णमक्खिआ -- मधुमक्षिका ( दे ८।४६ ) - चालुक्क सोलहावत्तसेअजस भग्गरज्जमहुछत्ता। सोवण्णमक्खिआउ व दिसो दिसं जन्ति वेरिणो तुज्झ।।' ( वृ ) । सोवत्थ -- १ उपकृति, उपकार ( दे ८।४५ ) । २ उपभोग्य -- 'संवित्थं उपभोग्यमित्यन्ये' ( वृ ) । सोवीरिणी -- कांजिका - 'कल्लं ठवेहि अन्नं महल्लं सोवीरिणिं गेहे' ( बृभा १७५० ) । सोव्वअ -- दंतहीन ( दे ८।४५ ) । सोसण -- वायु ( दे ८।४५ ) । सोसणी -- कटी, कमर ( दे ८।४५ ) । सोहंजण -- शिग्रु सहिंजना का पेड़ ( दे ८।३७ ) । सोहणी -- संमार्जनी, झाडू ( दे ८।१७ ) । सोहि -- १ भूतकाल । २ भविष्य काल ( दे ८।५८ ) । ह हंजअ -- शरीर-स्पर्शपूर्वक किया जाने वाला शपथ - सौगन्ध ( दे ८।६१ ) । हंजे -- १ दासी का संबोधन ( प्रा ४।२८१ ) । २ सखी का आमन्त्रणसुचक अव्यय । हंदि -- इन अर्थों का सूचक अव्यय - १ उपदर्शन - हंदि धम्मत्थकामाणं निग्गंथाणं सुणेह मे' ( द ६।४ ) । २ आमंत्रण - 'हंदि णमो साहाए' ( स्था ८।२४ ) । ३ खेद - खेआइसु अव्वो हंदि उ त्ति' ( पा ९९५ ) । ४ विषाद । ५ विकल्प । ६ पश्चात्ताप । ७ निश्चय । ८ यह सत्य ही है ( प्रा २।१८० ) । ९ ग्रहण करो ( प्रा २।१८१ ) । हंभी -- हंभी नामका रसायनशास्त्र ( सुचू १ पृ १६६ ) । हंस -- १ आसन-विशेष - 'पावीढ भिसिय करोडियाओ पल्लंकए य पडिसिज्जा । हंसाईहिं विसिट्ठा आसणभेया उ अट्ठट्ठ ( ज्ञाटी प ४७ ) । २ रजक, धोबी - 'वत्थधुवा हवंति हंसा वा ( सू १।४।४८ ) । ३ पतंग, चतुरिन्द्रिय जंतु ( अनुद्वामटी प ३१ ) । हंसोलीण -- पीछे से आकर लिपट जाना ( निचू १ पृ १७ ) । हंसोवल्लीली -- पीछे से आकर लिपट जाना - 'तुज्झं रममाणस्स तुट्ठीए हंसोवल्लीली काही तं जाणिज्जासि' ( आवहाटी २ पृ २१७ ) । हकुव -- वनस्पति-विशेष ( अनु ३।४५ ) । हकुवी -- वनस्पति-विशेष ( अनुटी पृ ५ ) । हक्कविऊण -- बुलाकर ( आवहाटी २ पृ १२४ ) । हक्कार -- दुःख से निकलने वाली 'हाय-हाय' की आवाज ( निभा २७२१) । हक्कारिय -- आकारित, बुलाया हुआ - हक्कारिया आयाया' ( ओटी प १९८ ) । हक्कारेमाण -- बुलाता हुआ, पुकारता हुआ ( ज्ञा १।१८।४५ ) । हक्कोद्ध -- अभिलषित ( दे ८।६० ) । हक्खुत्त -- उत्पाटित, उखाड़ा हुआ ( आवहाटी १ पृ ९७; दे ८।६० ) । हगे -- १ मैं । २ हम ( प्रा ४।२९९ ) । हट्ठमहट्ठ -- १ स्वस्थ, नीरोग । २ दक्ष ( दे ८।६५ ) । ३ स्वस्थ युवा । हड -- १ जलकुम्भी, अबद्धमूल जलीय वनस्पति-'वायाइद्धो व्व हडो अयप्पा भविस्ससि' ( द २।९ ) । २ हृत, हरण किया हुआ ( द ७।४१; दे ८।५९ ) । हडकारक -- अपहरण करने वाला चोर ( प्र ३।३ ) । हडक्क -- पागल ( कुत्ता ) ( बृटी प ८।२९ ) । हडप्प -- १ सिक्के रखने का पात्र । २ ताम्बूल-पात्र ( भ ९।२०४ ) । ३ आभूषण-पेटी- आभरणभंडयं हडप्पो' ( निचू २ पृ ४६९ ) । हडप - ताम्बुल रखने की छोटी थैली ( कन्नड़ ) । हडप्फ -- १ आभरण का करण्डक ( आचू पृ ७१ ) । २ द्रम्म आदि का पात्र । ३ ताम्बूल - पात्र- 'हडको द्रम्मादिभाजनम्, ताम्बूलार्थे पूग-फलादिभाजनं वा' ( औपटी पृ १३१ ) । हडहड -- १ अनुराग । २ ताप (दे ८।७४) । हडाहड -- अत्यन्त - 'फुट्ट-हडाहड-सीसा ' ( ज्ञा १।१६।२९ ) हाडोहाड ( राज ) । हडि -- १ बंधन-विशेष, काठ की बेड़ी - 'इमं हडिबंधणं करेइ' ( दश्रु ६।३ ) । २ हड - हड की आवाज - छु त्ति हडि त्ति अनुकरणशब्दावेतौ' ( बृभा २३४८ टी ) । ३ हट, दूर हो - ललकार भरा स्वर- पासति सीहं आगच्छमाणं । तेण हडि त्ति जंपियं, ण गतो' ( निचू १ पृ १०१ ) । ४ कारावास ( व्यभा १० टी प ६३ ) । हड्ड -- हड्डी, अस्थि ( नि ७।१; दे ८।५९ ) । हड्डमालिया -- हड्डियों की माला - सिंगमालियं वा संखमालियं वा हड्डमालियं वा भिंडमालियं वा कट्ठमालियं वा' ( नि ७।१ ) । हड्डसरक्ख -- शैव मतावलंबी - 'चरग-परिव्वायग-हड्डस रक्खादिएहिं तडिय - कप्पडिएहिं य जा आइण्णा आकुला' ( निचू २ पृ २०७ ) । हड्डागिद्धिसी -- कटि के अधोभाग में होने वाला संधि-वायु ( निचू ४ पृ १०८ ) । हढ -- जल में होनेवाली वनस्पति, जलकुम्भी ( भ २३।८ ) । हण -- दूर ( दे ८।५९ ) । हणु -- सावशेष, बाकी बचा हुआ ( दे ८।५९ ) । हणुदाणि -- उसके पश्चात्, अब - वाइज्जंति अपत्ता, हणुदाणि वयं वि एरिसा होमो' ( बृभा ५२०९ ) । हत्थ -- १ शीघ्र ( औप ५७ ) । २ जल्दी करने वाला ( दे ८।५९ ) । हत्थखड्डुग -- हाथ की अंगूठी ( अंवि पृ ६५ ) । हत्थच्छुहणी -- नववधू ( दे ८।६५ ) । हत्थल -- १ चोर ( प्रटी प ४३ ) । २ क्रीडा के लिए हाथ में लिया हुआ पदार्थ । ३ चंचल हाथ वाला ( दे ८।७३ ) । हत्थल्ल -- क्रीडा के लिए हाथ में लिया हुआ ( दे ८।६० ) । हत्थल्लिअ -- हस्तापसारित, हाथ से हटाया हुआ ( दे ८।६४ ) । हत्थल्ली -- हाथ में ले जाया जाने वाला आसन विशेष ( दे ८।६१ ) । हत्थार -- सहायता, मदद ( दे ८।६० ) । हत्थिअचक्खु -- वक्र अवलोकन ( दे ८।६५ ) । हत्थिमल्ल -- ऐरावण हाथी ( दे ८।६३ ) । हत्थियार -- १ शस्त्र ( अनुद्वाचू पृ १२ ) । २ युद्ध । हत्थिवअ -- ग्रह-भेद ( दे ८।६३ ) । हत्थिहत्थ -- दुस्तर - 'संसारहत्थिहत्थं पावति'- 'दुस्तरं संसारमा पततीति भावः' ( व्यभा ३ टी प ६३ ) । हत्थिहरिल्ल -- वेष, पोशाक ( दे ८।६४ ) । हत्थेव्वग -- हाथ में पहनने योग्य - 'हत्थेव्वगा आभरणगा कडगादी पादे करेति ( निचू ३ पृ ४०७ ) । हत्थोडी -- १ हाथ का आभूषण । २ हाथ से दिया जाता उपहार ( दे ८।७३ ) । हत्थोपक -- हाथ का आभूषण ( अंवि पृ १६२ ) । हद -- बालक का मलमूत्र ( पिटी प ८६ ) । हद्दन्नय -- बालक का मल-मूत्र साफ करने वाला ( पिनि ४७१ ) । हद्धअ -- हास, हंसी ( दे ८।६२ ) । हप्पिच्छ -- अश्व का प्रिय खाद्य-धान्य-विशेष - 'आसो हप्पिच्छं ( हरिमत्थं ) मुग्गमादि मधुरं' ( निचू २ पृ २४७ ) । हम्मिअ -- गृह, घर ( आचूला २।१८ ; दे ८।६२ ) । हयमार -- कणेर का गाछ ( पा ३७४ ) । हरतणु -- भूमि को भेदकर निकलने वाले जलबिंदु - 'हरतणू महिया हिमे ( उ ३६।८५ ) । हरतणुग -- भूमि को भेदकर निकले हुए जल-बिंदु-किंचि सणिद्धं भूमिं भत्तूण कहिंचि समस्सयति सफुसितो सिणेहविसेसो हरतणुतो' ( दअचू पृ ८८ ) । हरतणुय -- भूमि को भेदकर निकले हुए जलबिंदु - हरतणुओ भूमिं भेत्तूण उट्ठेइ, सो य उबुगाइसु तिंताए भूमीए ठविएसु हेट्ठा दीसति' ( दजिचू पृ १५५ ) । हरपच्चुअ -- १ स्मृत, याद किया हुआ । २ नामोल्लेखपूर्वक दिया हुआ ( दे ८।७४ ) । हरहरा -- उचित अवसर, युक्त प्रसंग - निद्धूमगं च गामं महिलायूभं च सुन्नयं दट्ठ़ुं । नीअं च कागा ओलिंति जाया भिक्खस्स हरहरा। ' ( विभा २०६४ .) । हरि -- शुक, तोता ( दे ८।५९ ) । हरिआली -- दुर्वा ( दे ८।६४ ) । हरिचंदण -- कुंकुम ( दे ८।६५ ) । हरिडय -- कोंकण देश में प्रसिद्ध वृक्ष-विशेष ( प्रज्ञाटी प ३१ ) । हरितग - कोंकण देश में प्रसिद्ध वृक्ष-विशेष ( प्रज्ञा १।४४ ) । हरिमंथ -- चना ( उसुटी प ५९ ) । हरिमिग्ग -- लाठी, डंडा ( दे ८।६३ ) । हरिमेला -- वनस्पति-विशेष ( औप ६४ ) । हरियवण्णी -- १ वैसा प्रदेश जहां प्रायः दुर्भिक्ष होता हो और वहां के लोग हरित शाक आदि खाकर जीते हों । २ वैसे प्रदेश में राजा किन्हीं घरों में दंड देकर पुरुष की बलि देता है । उस घर पर आर्द्र वृक्ष की शाखा का चिह्न कर दिया जाता है, ताकि वहां कोई भिक्षा के लिए न जाए ( व्यभा ४।४ टी प ७० ) । हरियालिया -- दूर्वा-'सिद्धत्यग-हरियालियाकयमंगलमुद्धाणा' ( भ ११।१४० ) । हरियाहडिया -- चोरों द्वारा अपहृत ( वृ १।४५ ) । हरिसय -- आभूषण-विशेष ( जीव ३।५९३ ) । हलप्प -- बहुभाषी, वाचाल ( दे ८।६१ ) । हलप्फलिअ -- १ शीघ्र ( दे ८।५९ ) । २ आकुलता ( वृ ) । हलबंभ -- हलकर्ष, हल से विदारित भूमी- रेखा- 'एक्केक्कं हलबंभं देह' ( उशाटी प ११९ ) । हलबोल -- कोलाहल ( कु पृ १९८; दे ८।६४ ) । हलबोलिय -- कोलाहल - 'हलबोलिए वट्टमाणे ( कुपृ १३५ ) । हलमलि -- प्रसिद्ध ( से १२।८६ टी ) । हलहल -- १ कोलाहल । २ कुतूहल ( दे ८।७४ ) । ३ युद्ध की उत्कंठा-'हलहलशब्दो युद्धोत्कण्ठायां देशी' ( से १२।८६ ) । ४ क्षोभ-विशेष - 'शब्दोऽयं देशी' ( से १५ । ३३ ) । हलहलय -- १ हलचल - 'हियउग्गयहलहलयं वियरंतं परियणं पुरओ' ( कु पृ २०० ) । २ त्वरा ( पा ८२७ ) । हलहला -- हडबडी, कोलाहल ( कुपृ १९८ ) । हलहलि -- प्रकंपित - 'ताव य हलहलीहूओ परियणो, खुहिया णयरी' ( कु पृ १८० ) । हला -- सखी का सम्बोधन ( उसुटी प ६१ ) । हलाहला -- बाम्हणी, जन्तु-विशेष (दे ८।६३) । हलि -- स्त्री का संबोधन- 'लाडविसए समाणदयमण्णं वा आमंतणं जहा हलि त्ति' (दअचू पृ १६८) । हलिया -- १ छिपकली ( दश्रु ८।२६८ ) । २ बाम्हणी, कोट-विशेष ( दअचू पृ १८८ ) । हलूर -- सतृष्ण, तृष्णा सहित ( दे ८।६२ ) । हले -- तरुणी का संबोधन ( द ७।१६ ) - हले त्ति मरहट्ठेसु तरुणित्थीसाऽऽमंतणं, हले हलित्ति अण्णेत्ति एयाणी वि देसं पप्प आमंतणाणि, तत्य वरदातडे हले त्ति आमंतणं' ( दअचू पृ १६८ ) । हल्ल -- गोपालिका नामक तृण के आकार वाला कीट-विशेष ( भटी पृ १२५८ ) । हल्लप्फल -- चंचल, कंपित ( कु पृ ८३ ) । हल्लप्फलिअ -- १ शीघ्र । २ आकुलता ( दे ८।५९ ) । ३ व्याकुल। हल्लप्फुल्ल -- हलफल, आकुल-व्याकुल ( कु पृ ८३ ) । हल्लफल -- १ शीघ्रता, हड़बड़ी ( दजिचू पृ १२) । २ आकुल-व्याकुल ( कु पृ ५८ ) । हल्ला -- एक प्रकार का कीट ( भ १५।१२८) । हल्लिअ -- चलित, हिला हुआ (दे ८।६२) । हल्लिया -- छिपकली ( दश्रुचू प ६८ ) । हल्लिर -- चंचल, चलनशील ( कुपृ ४१ ) । हल्लिस -- मंडलाकार होकर स्त्रियों का नाचना (अंवि पृ २४३ ) । हल्लीस -- रास, स्त्रियों का मंडलाकार नृत्य ( दे ८।६१)। हल्लोहल -- १ कोलाहल । २ आकुलता (उसुटी प १९५ ) । ३ चंचल । ४ त्वरा । हल्लोहलि -- गिरगिट ( दअचू पृ १८८ ) । हल्लोहलिय -- १ गिरगिट ( दश्रु ८।२६८ ) । २ शीघ्र । ३ व्याकुल । ४ व्याकुलता । हल्लोहली -- व्याकुल ( उसुटी प २३८ ) । हविअ -- चुपडा हुआ ( दे ८।६२ ) । हव्व -- १ अर्वाक, इस ओर - णो हव्वाए णो पाराए' ( आ २।३४ ) । २ शीघ्र (भ ७।१८४) । ३ सहसा (निचू १ पृ ४३ ) । ४ गृहवास । हसिरिआ -- हास, हंसी (दे ८।६२) । हसुडोलक -- आभूषण-विशेष ( अंवि पृ ६५ ) । हाडहड -- तत्काल - ' हाडहडं देशीपदमेतत्त त्कालमित्यर्थः' ( व्यभा २ टी प ३० ) । हाडहडा -- ओरापणा, प्रायश्चित्त का एक प्रकार ( स्था ५।१४९ ) । हावण -- अतिसार - 'अहवा अतिप्पमाणो, आतुरभूतो तु भुंजए जं तु । तं होति अतिपमाणं, हादणदोसा उ पुव्वुत्ता' ( जीभा १६२९ ) । हारपुट -- लोहे का पात्र-विशेष - 'हारपुटं ते लोहिगं चेव पादं' ( आचू पृ ३६५ ) । हारपुड -- लोहे आदि धातु के पात्र-विशेष - 'हारपुडं णाम अयमाद्याः पात्रविशेषाः मौक्तिकलताभिरुपशोभि ता' ( निचू ३ पृ १७२ ) । हारा -- लिक्षा, प्राणी-विशेष ( दे ८।६६ ) । हारीड -- पक्षी-विशेष - 'पारेवयो कपोतो त्ति हारीडो कुक्कुडो त्ति वा' ( अंवि पृ ६२ ) । हाल -- १ स्वामी के लिए प्रयुक्त होने वाला संबोधन-शब्द - 'हाल इति पहुवयणं यथा-परियंदति सुण्हा गहवतिस्स पुत्ता ! तुमं सि मे राया चागणडियस्स पुत्तय ! हालस्स व किं घरे अत्थि ?" ( दअचू पृ १६९ ) । २ गोत्र-विशेष ( अंवि पृ १४९ ) । ३ सातवाहन राजा ( दे ८।६६ ) । हालक -- कीट-विशेष - 'कीडो त्ति वा पतंगो त्ति संखो खुलुक-हालको' ( अंवि पृ ६३ ) । हालाहल -- १ भरपूर । २ त्रीन्द्रिय जंतु-विशेष - 'कहमहं एते हालाहले जीवे पिविस्सं' ( उचू पृ ५५ ) । ३ मालाकार । ४ छिपकली ( दे ८।७५ ) । हालुअ -- क्षीब, मत्त ( दे ८।६६ ) । हाव -- तीव्र गति से चलने वाला ( दे ८।७५ वृ ) । हाविर -- १ तीव्र गति से चलने वाला । २ दीर्घ, लम्बा । ३ मन्थर । ४ विरत ( दे ८।७५ ) । हासीअ -- हास, हंसी ( दे ८।६२ ) । हिंग -- जार ( दे १।४ वृ ) । हिंगोबल -- मृतभोज ( आचू पृ ३३५ ) । हिंगोल -- १ मृतक-भोज ( आचूला १।४२ ) । २ यक्ष आदि की यात्रा में होनेवाला जीमनवार - 'हिंगोलं ति मृतकभक्तं यक्षादियात्राभोजनं वा' ( आटी प ३३४ ) । हिंचिअ -- एक पैर से चलने की बाल क्रीडा ( दे ८।६८ ) । हिंछाघोडा -- वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ७० ) । हिंडिक -- पुररक्षक ( व्यभा ३ टी प ६७ ) । हिंडोल -- खेत की रखवाली करने का यंत्र - 'हिंडोलं क्षेत्ररक्षणयन्त्रमिति केचित्' ( दे ८।६९ वृ ) । हिंडोलण -- १ रत्नावली, रत्नमाला । २ खेत की रखवाली करने के समय किया जाने वाला नाद ( दे ८।७६ ) । हिंडोलणय -- १ रत्नावली, रत्नमाला । २ क्षेत्र - रक्षण के लिए किया जाने वाला नाद ( दे ८।७६ ) । हिंडोलय -- खेत में पशुओं को रोकने की आवाज ( दे ८।६९ ) । हिंबिअ -- एक पैर से चलने की बाल क्रीडा ( दे ८।६८ ) । हिक्का -- धोबिन ( दे ८।६६ ) । हिक्कास -- पंक, कर्दम ( दे ८।६९ ) । हिक्किअ -- घोडे की आवाज, हिनहिनाहट ( दे ८।६८ ) । हिज्जा -- १ गतकल । २ आगामी कल ( दे ८।६७ ) । हिज्जो -- १ आगामी कल - 'अज्ज हिज्जो त्ति कालं हरइ' ( आवहाटी २ पृ १३५ ) । २ बीता हुआ कल ( भ १२।१८ ) । हिट्ठ -- आकुल ( दे ८।६७ ) । हिट्ठा -- नीचे ( उसुटी प २२ ) । हिट्ठाहिड -- आकुल ( दे ८।६७ ) । हिडा -- चोरी, द्यूत आदि नीच कर्म - काहिंति बहुं चोरा संजमजोगे हिडाकम्मं ( इ ३५।१९ ) । हिड्ड -- वामन, बौना ( दे ८।६७ ) । हिणिल्लसमाण -- घृष्यमाण ( उचू पृ ७९ ) । हितिहिति -- व्यक्त, शून्य ( ? ) - 'हितिहिति गुरुकुलवासो मंदा य मती य समणधम्मम्मि । एयं तं संपत्तं, बहुमुंडे अप्पसमणे य' ॥ ( ति ८९८ ) । हित्थ -- १ हिंसित, मारा हुआ - 'हित्थोत्ति देशीपदमेतत् हिंसितः' ( व्यभा १ टी प ३६ ) । २ त्रस्त, भीत ( दे ८।६७ ) । ३ लज्जित - 'हित्यो लज्जित इत्यन्ये' ( वृ ) । हित्थत -- त्वरित-तुरिते अ हित्थतं ( अंवि पृ ४१ ) । हित्था -- लज्जा ( दे ८।६७ ) । हित्थिय -- जलचर प्राणी-विशेष - 'कद्दमगहित्थिय-कच्छभक' ( अंबि पृ २२७ ) । हिमोर -- हिम का मध्यभाग (?) ( प्रा २।१७४ ) । हियउड्डावण -- १ मंत्र तंत्र से चित्त को आकृष्ट करना ( ज्ञा १।१४।४३ ) । २ चित्त को शून्य करने का प्रयोग ( विपा १।२।७२ ) । हिरडिक्क -- पाणजातीय लोगों का यक्ष-विशेष ( व्यभा ७ टी प ५५ ) । हिरडी -- शकुनिका, चील-पक्षी ( दे ८।६८ ) । हिरिंब -- छोटा तालाब ( दे ८।६९ ) । हिरिबेर -- खस खस के दाने - 'हिरिबेरं णाम उसीरं' ( सूचू १ पृ ११६ ) । हिरिमंथ -- चना ( निभा १०३० ; दे ८।७० ) । हिरिमिंथ -- चना ( दनि १५६ ) । हिरिमिक्क -- मातंगों का यक्ष-विशेष - 'मातंगा तेसिं आडंबरो जक्खो हिरिमिनको वि भण्णति' ( निचू ४ पृ २३८ ) । हिरिलि -- कन्द-विशेष ( भ ७।६६ ) । हिरिवंग -- लाठी, डंडा ( दे ८।६३ ) । हिला -- १ बालू, रेती ( दे ८।६६ ) । २ भुजा, हाथ । हिलिमिंत्थ -- चना ( दअचू पृ १९२ ) । हिलिहलय -- ज्वालारहित अंगारे - णिज्जाया हिलिहलया इंगाला ते भवे मुणेतव्वा' ( जीभा १५३१ ) । हिल्ला -- बालुका, बालू ( दे ८।६६ ) । हिल्लिय -- कीट-विशेष, त्रीन्द्रिय जन्तु की एक जाति ( प्रज्ञा १।५० ) । हिल्लिरी -- जाल-विशेष ( विपा १।८।१९ ) । हिल्लूरी -- लहरी, तरंग ( दे ८।६७ ) । हिल्लोडण -- खेत में पशुओं को रोकने के लिए की जानेवाली आवाज ( दे ८।६९ ) । हिसोहिसा -- स्पर्धा ( दे ८।६९ ) । हीर -- १ सूई की भांति तीक्ष्ण नोक वाला काष्ठ आदि पदार्थ ( बृ ६।३; दे ८।७० ) । २ भस्म - केचित् हीरशब्दं भस्मन्यपि प्रयुञ्जते' ( वृ ) । ३ अन्त-भाग । हीरणा -- लज्जा ( दे ८।६८ ) । हीरय -- बारीक छोटा तृण ( जीव ३।६२२ ) । हीसमण -- ह्रेषा, अश्व की आवाज, हिनहिनाहट ( दे ८।६८ ) । हुअहुअंत -- अव्यक्त ध्वनि करता हुआ, बड़बड़ाता हुआ- मूयव्व हुअहुअंतो तहेव छिज्जंतमाईसु' ( आवहाटी २ पृ २०५ ) । हुंकअ -- अंजलि ( दे ८।७१ ) । हुंकुरुव -- अंजलि ( दे ८।७१ ) । हुंडी -- घटा, समूह ( पा ९३९ ) । हुँबउट्ठ -- वानप्रस्थ तापस की एक जाति ( औप ९४ ) । हुड -- १ मेष ( दे ८।७० ) । २ कुत्ता । हुडुअ -- प्रवाह ( दे ८।७० ) । हुडुक्क -- वाद्य-विशेष, मृदंग ( भ ९।१८२ ) । हुडुक्की -- वाद्य-विशेष ( आवचू १ पृ ३०९ ) । हुडुम -- पताका, ध्वजा ( दे ८।७० ) । हुड्डा -- शर्त, दांव ( प्रसा ४३५; दे ८।७० ) । हुत्त -- अभिमुख, सम्मुख ( प्र ३।२३; दे ८।७० ) । हुत्ति - अभिमुखा- 'उत्तराहुत्तिं पवहित्ता' ( सम ७४।२ ) । हुरत्था -- १ बाहर - 'हुरत्था णाम देसीभासातो बहिद्धा' ( आचू पृ १६१ ), 'हुरत्था देशीपदं बहिरर्थाभिधायकम्' ( बृटी पृ ९५२ ) । २ गांव कें बाहर उद्यान आदि स्थान- 'हुरत्थं बहिता गामादीणं देसीभासा उज्जाणादिसु' ( आचू पृ २६१ ) । ३ उपाश्रय - घर के बाहर का परिक्षेप, वगडा - 'देसीभासाइ कयं जा बहिया सा भवे हुरत्था उ' ( बृभा ३४०४ ), 'या विवक्षितोपाश्रयाद् बहिर्वर्तिनी वगडा सा 'हुरत्था' इति शब्देनोच्यते' ( बृटी पृ ९५२ ) । हुरब्भ -- १ वाद्य-विशेष ( उपाटी पृ ९७ ) । २ मेष ( प्रटी प ९ ) । हुरवत्था -- बाहर ( आटी प ३३० ) । हुरुडी -- विपादिका, बिवाय ( दे ८।७१ ) । हुलायक -- बाज पक्षी ( बृटी पृ १०२७ ) । हुलि -- शीघ्र, तेज ( कु पृ १३६ ) । हुलित -- शीघ्र ( प्र १।२३ ) । हुलिय -- १ शीघ्र ( प्र ३।७; ८।५९ ) । २ क्षिप्त । हुलियक -- शीघ्र ( प्र ३।७ पा ) । हुलुक -- लघु, हल्का ( पंवटी प १२४ ) । हुलुव्वी -- निकट भविष्य में प्रसव करने वाली स्त्री ( दे ८।७१ ) । हुहुय -- संख्याविशेष ( जीव ३।८४१ ) । हुहुयमाण -- अत्यन्त जाज्वल्यमान ( जीव ३।११८ ) । हूम -- लोहकार, लोहार ( दे ८।७१ ) । हूहूय -- संख्या-विशेष ( भ ५।१८ ) । हूहूयंग -- संख्या-विशेष ( भ ५।१८ ) । हेआल -- हाथ की विशेष आकृति से निषेध, सांप के फण की भांति किए हुए हाथ से निवारण । ( दे ८।७२ ) - यदाह भरतः 'अंगुल्य : संहिताः सर्वाः सहांगुष्ठेन यस्य तु । तथा निम्नतलश्चैव स तु सर्पशिराः कर:' ( वृ ) । हेट्ठ -- नीचे ( सु १।६।१० ) । हेट्ठाहुत्त -- नीचे की ओर ( उसुटी प २७ ) । हेट्ठाहुत्ती -- नीचे ( आवहाटी २ पृ १२३ ) । हेट्ठिल्ल -- अधस्तन ( सम ७९।१ ) । हेडित -- प्रेरित ( अंवि पृ १४८ ) । हेमप्प -- वस्त्र-विशेष ( जीव ३।५९५ ) । हेरंग -- मत्स्य से बना खाद्य विशेष ( विपा १।८।१२ ) - हेरंगाणि यत्ति रूढिगम्यम्' ( टी ) । हेरंब -- १ महिष, भैंसा । २ डिंडिम, वाद्य-विशेष ( दे ८।७६ ) । हेरिंब -- गणेश, विनायक ( दे ८।७२ ) - हेरिंबं पूअन्ती अम्बा बाले करेइ हेआलं' ( वृ ) । हेरिका -- कारावास, अवरोधक स्थान ( सूचू १ पृ १३२ ) । हेरु -- हेरुताल वृक्ष ( जीव ३।६३१ ) । हेला -- १ वेग, तीव्रता - कहिंचि वीईहेलुल्लालिओ' ( कु पृ ६७ ) । २ सरलता ( से १।५९ ) । ३ स्त्री की शृंगारसंबंधी चेष्टा ( कु पृ ८३ ) । ४ ताप - 'तुज्झाणुराय हुयवहजालाहेलाहि सा विलुट्ठंगी' ( कु पृ २३६ ) । हेलिअ -- पालित पोषित - एसो माणुसाणं हेलिओ' ( कु पृ २४१ ) । हेलिय -- मत्स्य की जाति-विशेष ( जीवटी प ३६ ) । हेलुअ -- छींक ( दे ८।७२ ) । हेलुक्का -- हिचकी ( दे ८।७२ ) । हेल्ल -- १ पुकार - 'सितालो आगतो, हेल्लं दाऊण धाडितो' ( दअचू पृ ५५ ) । २ लाटदेश में प्रयुक्त समवयस्क का आमंत्रण-शब्द - 'यथा लाटानां 'कांइ रे हेल्ल त्ति' ( सूचू १ पृ १८१ ) । हेल्ला -- १ पुकार - 'णवरं एगाए चेव हेल्लाए आविहितो' ( आवचू १ पृ ११४ ) । २ वेग, तीव्रता ( दे ८।७१ ) । हेल्लि -- सखी का आमंत्रण ( प्रा ४।४२२ ) । हेल्लुसित -- फिसला हुआ ( बृचू प १४१ ) । हेहंभूत -- गुण-दोष के ज्ञान से विकल और निर्दम्भ - हेहंभूतो नाम गुणदोषपरिज्ञान - 'विकलोऽशठभाव:' ( व्यभा १ टी प ५९ ) । होक्कार -- हुंकार ( आवहाटी १ पृ १८२ ) । होडिअ -- लुटेरा सैनिक- सा सह धूयाए एगेण होडिएण गहिया' ( आवहाटी १ पृ १४९ ) । होडीय -- लुटेरा - 'होडीओ नाम लूषकः पुरुषः' ( आवटि प २७ ) । होड्ड -- स्पर्धा ( जीविप पृ ४९ ) । होढ -- १ चोरी का माल ( निचू ३ पृ ५०२ ) । २ झूठा आरोप- 'होढं दाऊण य पलादी' ( बृभा ६१२२ ) - होढं गाढमलीकं दत्त्वा पलायन्ते' ( टी पृ १६१८ ) । होढक -- चोर, तस्कर ( अंवि पृ २५३ ) । होढा -- दे ही दिया, कर ही दिया - 'होढा' इति देशीपदमेतत् दत्तमेव कृतमेवेत्यर्थ:' ( व्यभा ३ टी प ६६ ) । होण -- हूण देश, अनार्य देश ( प्रसा १५८३ ) । होत्तिय -- तृण-विशेष ( प्रज्ञा १।४२ ) । होद्द -- होड, बाजी, शर्त ( ज्ञाटी प १०२ ) । होरंभ -- वाद्य-विशेष, महाढक्का ( भ ५।६४ ) । होरण -- वस्त्र, कपड़ा ( दे ८।७२ ) । होल -- १ अवज्ञासूचक तुच्छ संबोधन - 'होले त्ति निठुरमामंतणं देसीए भविलवचनमिव' ( दअचू पृ १६८ ) । २ विभिन्न देशों में प्रयुक्त आदर एवं अनादरसूचक संबोधन - 'पुरुषाद्यामंत्रणवचनं गौरवकुत्सादिगर्भाणि' ( ज्ञाटी प १७४ ) । ३ वाद्य-विशेष - 'आढत्तं मज्जपाणं, वायावेइ होलं' ( उसुटी प ५८ ) । ४ पक्षि-विशेष । होला -- १ समवयस्क का संबोधन-शब्द - 'होला इति देसीभाषातः समवया आमन्त्र्यते' ( सूचू १ पृ १८१ ) । २ झल्लरी ( आवहाटी १ पृ २९० ) । होलावाय -- ओछे शब्दों से पुकारना ( सू १।९।२७ ) । होले -- स्त्री के लिए प्रिय सम्बोधन ( द ७।१६ ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International परिशिष्ट १. अवशिष्ट देशी शब्द २. देशी धातु चयनिका For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ अवशिष्ट देशी शब्द [ प्रस्तुत ग्रन्थ 'देशी शब्दकोश के मूलभाग में हमने जैन आगमों, उनके विभिन्न व्याख्या ग्रन्थों तथा आचार्य हेमचन्द्रकृत 'देशी नाममाला' के शब्दों का सप्रमाण और ससन्दर्भ संग्रहण किया है। लेकिन इनके अतिरिक्त उत्तरकालीन प्राकृत ग्रन्थों में प्रयुक्त देशी शब्द अवशिष्ट रह जाते हैं। उन अनेक ग्रन्थों के विद्वान् संपादकों ने अपने-अपने संपादित उन प्राकृत ग्रन्थों में देशी शब्दों का अलग से परिशिष्ट भी दिया है। उन शब्दों का हमने ज्यों का त्यों इस परिशिष्ट में संग्रहण किया है। हमने मूल देशी शब्द तथा उसके अर्थ / अर्थों का निर्देश मात्र किया है । 'पाइअसद्दमहण्णवो' में संगृहीत उत्तरवर्ती प्राकृत ग्रन्थों के देशी शब्दों का भी इसमें संग्रहण किया है। यह परिशिष्ट शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। ] अ अ-१ उपमा । २ सादृश्य । ३ उत्प्रेक्षा इन अर्थों का सूचक अव्यय अइअड्ड – अतिविकट - अड्ड विकटार्थे । देशी अइभल्ल — अतिभद्र अइरवण्ण - अतिरम्य अइणिरुत्त – अति निश्चित अइणीय - आनीत, लाया हुआ अइन्नदुवार – बिना दरवाजा बंद अकोप्प - अपराध किए अक्कसाल - बलात्कार अक्का - माता अक्खण - आसक्ति अक्खणिय - व्याकुल अखंपण – स्वच्छ, निर्मल अखुट्ट–अखूट अखुट्टिअ - अखूट, परिपूर्ण अगंडिगोह - यौवन का उभार अगिल – 1 अविच्छिन्न स्वर से रुदन अइरिप्प-कथाबंध अइरंब — विपुल अउस - उपासक, पुजारी अं - स्मरणद्योतक अव्यय अंकिइल्ल - नट, नर्तक अंगुमिय–पूरित अंगुलिय - ईख का टुकड़ा अंघो- भयसूचक अव्यय अंछविअंछी - आकर्षणविकर्षण Jain Education International अंतल्ली - १ पेट । २ लहर का मध्य अंदुया - शृंखला अंबभित्त - आम का टुकड़ा अंबुपिसाय - राहु अंभु - पत्थर अकासिअ - पर्याप्त For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४४४ अग्गल – अधिक अग्गलय—अधिक अग्गहणिया— सीमंतोन्नयन, गर्भाधान के बाद किया जाने वाला एक संस्कार और उसके उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला उत्सव अग्गहर-घर का अगला भाग अग्गहिय – १ निर्मित, विरचित । २ स्वीकृत अग्गिआय–इन्द्रगोप, क्षुद्रकीटविशेष अग्गोवय – घर का एक भाग अग्गुच्छ - प्रमित, निश्चित अग्गोयर – उपहार अचियंत अनिष्ट, अप्रीतिकर अच्छक्क – असमय, अनवसर अच्छरा- चुटकी, चुटकी की आवाज अच्छुक्क–अक्षि-कूप-तुला, आंख का कोटर अच्छुद्धसिरि– इच्छा से अधिक फल की प्राप्ति, असंभावित लाभ अच्छोडाविय- बंधित, बंधाया हुआ अच्छोडिय--आकृष्ट, अजड - १ शीघ्र करने वाला । खींचा हुआ २ जार, उपपति अजणिक्क- सायंकालीन भोजन अजम-१ सरल । २ अजवाइन अज्जम -- ऋजु अज्झोलिया - बार-बार दोहन करने योग्य गाय अट्टण्ण- आर्तज़ Jain Education International देशी शब्दकोश.. अट्टल -- अनपराध अट्टवसट्ट- — अत्यन्त खिन्न अट्ठिलिय– अस्थि अड- उद्यान, बगीचा अडपल्लण-वाहन-विशेष अडयण – कुलटा, व्यभिचारिणी अडवडण- -स्खलना, रुक-रुककर चलना अडा- प्रलंबित केश अडाल-बलात् अड्डुवियड्डु-अस्त-व्यस्त अड्डय – शस्त्र - विशेष अड्डाय – वऋ अड्डिम्म-अतिरिक्त अणउंछिय– अपृष्ट, अनपूछा — * अणक्ख - १ लज्जा । २ क्रोध । ३ अपवाद अणखालय — अस्खलित अणग्गपल्लट्ट – पुनरुक्त अणड-- अनृत, झूठा अणरहू - नववधू अणहवणय – तिरस्कृत, भत्सित अणहुल्लिय- जिसका फल प्राप्त न हुआ हो वह अणालि – वक्रता अणिभ – मुख, मुंह अणियच्छिय – देखने में असमर्थ अणिरिक्क - परतंत्र, पराधीन अणुअज्झिय--प्रयात, प्रतिजागरित, अणुअत्थ-प्रचुर अणुझिअअ – १ प्रयत, प्रयत्नशील २ सावधान For Private & Personal Use Only । www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ अणुत्तुण- निरभिमानी अणुदिव - प्रभात, प्रातःकाल अणुमग्ग-पीछे-पीछे अणुव्वाय--अखिन्न अणुहंडिय–अनुभुक्त अणोलिया - गिल्ली, डोली अण्णसअ-आस्तृत अण्णासय–विस्तृत, अण्णोल-प्रभात बिछाया हुआ अत्तिल्ल - अत्यन्त अत्तिहरी- दूती, समाचार पहुंचाने वाली स्त्री अत्थक्क अनवसर अत्थविक -अकस्मात् अत्थाईया - गोष्ठी-मण्डप अत्थोडिय - आकृष्ट, खींचा हुआ अथक्क अस्थिर अट्टुमाअ- पूर्ण, भरा हुआ अद्धधरणी-नववधू अद्धच्छिपेच्छिअ– इधर-उधर दृष्ट अद्धच्छिपेच्छिरि-इधर उधर देखना अद्धद्धा- -दिन अथवा रात्रि का एक भाग अद्धर- प्रच्छन्न, गुप्त अन्नाहुत--पराङ्मुख अपंडिअ -- विद्यमान अपिट्ट - पुनरत, फिर से कहा हुआ अपुण्ण - आक्रान्त अप्पाअप्पि - उत्कण्ठा, औत्सुक्य अप्पाण-निर्बल अप्पुण–स्वयं Jain Education International अप्पुण्ण पूर्ण अप्फरिअ—अधिक खाने से होने वाला पेट का उभार - आफरा इति भाषायां - 'अप्फरियपोट्टो' अप्फाहेत - संदेश देता हुआ अबहिट्ठ - मैथुन अब्बा- माता अब्बो- माता का सम्बोधन अब्भडवंच – पहुंचाने जाना अब्भहर--अभ्रक अन्भिट्ट - अभिगत अबिभट्ट - संगत, सामने आकर भिड़ा हुआ अब्भिड - संग्राम अब्भिडिअ - समागत अभिणिव्वागड-भिन्न परिधि ४४५ वाला अभिमर - हत्या अभुल्ल – अभ्रान्त इत्य देशी अमयघडिय-चन्द्रमा, चांद अमल - तेजहीन अमार - १ नदी के मध्य का द्वीप २ कमठ अम्मच्छ – असंबद्ध अम्मण - कितना अम्माहीरय - राग, ध्वनि-विशेष --अभ्रान्त अम्हत्त – प्रमृष्ट प्रमार्जित अयंगम - शिथिल शरीर For Private & Personal Use Only अयडणा--कुलटा अयुजरेवइ अचिर युवति, नवोढा अरणि- १ रास्ता । २ पंक्ति www.jainelibrary.org ४४६ अरणेट्टय- पत्थरों के टुकड़ों से मिली हुई सफेद मिट्टी अरलाअ - १ चिरिका । २ मशक अरि — चक्र अरोर – धनाढ्य, दरिद्रता से मुक्त अलंड-आरोप अलवलवसह- दुष्ट बैल अलियल्ल - व्याघ्र अलियल्लि – व्याघ्री अलिल्लह – १ छन्द - विशेष । २ अप्रयोजक, नियम रहित अलिसार-क्षीर अलीढा - मिथ्याचारिणी कुलटा अल्ल -१ कम्प- कम्पे देशी । २ आलीन अल्लय- आंवला अल्लविअ - दिया गया अल्लि -व्याघ्र अल्लिय–भौंरा अल्लिल्ल-भ्रमर अवअण्ह-उलूखल अवआर – लोकयात्रा अवइज्झिय-त्यक्त अवउडग – गले को मरोड़ कर बांधना, बंधन का एक प्रकार अवऊढ – व्यलीक अवंग - अपामार्ग अवंगु – खुला, अनावृत अवकुम्माणिका - विलास अवक्ख – निस्तेज अवखा-चिंता अवगद — आक्रान्त Jain Education International cont अवगल 'आक्रान्त अवगिंचण - पृथक्करण अवडक्किय – कूप में गिरकर मरा हुआ अवडल्लिय – कूप आदि में गिरा हुआ अवमिच्चअ-उधार पर खरीदा गया अवरज्ज - गत दिवस अवरत्तय -- अनुताप, पश्चात्ताप अवरिज्ज - १ अद्वितीय । २ उत्तरीय अवरुंडिय- आलिङ्गित, व्याप्त अवरुप्पर- परस्पर अवरोप्पर-परस्पर अवलय - चित्तखेद अवसण्ण-झरा हुआ, टपका हुआ अवसरिअ - विरह अवसेरी - चिंता अवहाडिय-उत्क्रुष्ट, जिस पर आक्रोश किया गया हो वह अवहट्ट – १ अभिमानी । २ मैथुन अवहोअ-विरह, वियोग अवाडिअ – वञ्चित, प्रतारित अवाहिय–अध्यासित अविउत्थग – स्थान विशेष अविउल – अनुद्विग्न अवियज्झ — आयत्त, प्राप्त अविरिक्क–सायंकालीन भोजन अविहंग - स्वभाव से स्वभावतः Scraft अविहंडिय-परिपूर्ण अविहिअ[-मत्त, For Private & Personal Use Only उन्मत्त www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ अव्यारिट्टि – नटखटपन अब्बो - अहो असआणा— बुभुक्षा, भूख असइ - अभाव, अविद्यमानता असराल - १ विकराल । २ अश्वशाला असालिय - सर्प की एक जाति असाहार - अतुल, अनुपम असुहावणय–अशोभन अस्संगिअ—आसक्त अहट्ट — प्रपंच अहद्ध — स्नेह-रहित अहासंखड - निष्कम्प, निश्चल अहिउत्त - व्याप्त, खचित अहिट्ठिय- हर्षित अहिरिअ - शोभाहीन, विच्छाय अहिरीमाण - १ अमनोहर २ अलज्जाकारक अहिरेइअ - परिपूर्ण अहिरोइय-पूर्ण अहिहरअ – देवालय अहेल्ल – ईश्वर आ १ स्मरण, याद । २ समन्तात्, चारों ओर आआअ - दही आअद्विआ–१ परायत्त । २ नववधू आअर - मुसल आअलण - रतिगृह आअल्ल–केशबंध आअल्लय-आकांक्षा आअल्लियय – उत्कण्ठित Jain Education International आइंधण–परिधान आउल्लय -- जहाज चलाने का काष्ठमय उपकरण- विशेष आकड्डिय– बाहर निकाला हुआ आकासिय– पर्याप्त काफी आगमेसि - आगामी आडंबर – पटह आडविअ - चूर्णित आडियत्तिय - १ शिविका वाहक गुरष । २ सुभट आडुंभण - गड़बड़ आडोर-चंडाल, श्वपच आणक्क – तिर्यक, तिरछा आणिक्क – तिर्यक् - तिर्यगर्थे देशी आदअ - दर्पण आप्पण-पिष्ट, आटा आबिभट्ट - भिडना आभिट्ट - १ प्रवृत्त । २ समभिगत, जाना हुआ आभिट्ट - भिड़ना आभिडिय- १ भिड़ा हुआ । २ प्रवृत्त आभेडिय– प्रवृत्त आमल्लअ – धम्मिल्ल रचना, जूडा बांधने की कला आयल्ल - १ व्याकुल । २ चाह । ३ कामपीडा आयल्लया— बेचैनी आयल्लिय – १ आक्रान्त, व्याप्त । २ उत्कंठित । ३ पीड़ित आरंतिअ - मालाकार आरायण-युद्ध रचना For Private & Personal Use Only 1 www.jainelibrary.org ४४८ आरोग्गरिअ – रक्त, रंगा हुआ आहित्यविहत्य–आकुल-व्याकुल आरोख – १ प्रवृद्ध, बढ़ा हुआ । २ आहिद्ध – १ रुद्ध, रुका हुआ । २ गृहागत, घर में आया हुआ गलित, गला हुआ आलक्क - पागल कुत्ता आलत्थअ- मयूर आलस – बिच्छू आलिद्ध– १ आलिङ्गित । २ व्याप्त आलिसिंदय- धान्य-विशेष आलुंखिय–आस्वादित आलुंघिअ - स्पृष्ट – स्पृष्टार्थे देशी आलुयार- निरर्थक, व्यर्थ आलोल - केशबंधन आवग्ग- -१ आरूढ । २ स्वाधीन आवग्गी-स्वाधीना आवरिल्ल - १ आवृत । २ चंचल आवसण-रतिगृह आवाह – इक्षुवाटी आविलिअ-कुपित, क्रुद्ध आवील – शिरोभूषण, माला आवृत्त— भगिनी-पति, बहनोई आवेढिअ-आवेष्टित आवेवअ - १ विशेष आसक्त । २ प्रवृद्ध, बढ़ा हुआ आसंघ–आस्था आसंघिय - आश्रित आसकलिय– प्राप्त आसगलिअ -- १ प्राप्त । २ आक्रान्त आहट्ट - १ आडंबर । २ उपाधि आड्ड-सीत्कार आहर जाहर — गमनागमन आहविअ - चूर्णित आहित्य - व्याकुल, त्रस्त Jain Education International आहुट्ट - साढ़े तीन आहुट्ठ - अर्धचतुर्थ, साढे तीन आहुत्त — सम्मुख, सामने इक्कुसी – नील कमल इच्छाउत्त– १ योगिनी- पुत्र । २ ईश्वर देशी शब्दकोश इदुर — १ गाड़ी के ऊपर लगाने का आच्छादन विशेष । २ ढकने का पात्र विशेष इद्धग्गिधम - हिम इल्लपुलिव- व्याघ्र इल्लिय – आसिक्त इवहि- अभी इसअ— विस्तीर्ण ईरिण– स्वर्ण ईसोसि - अल्प उअआर-समूह उअविअ-उच्छिष्ट उइत्तण — वस्त्र, निवसन उएट्ट – शिल्प- विशेष उओग्गिअ - संबद्ध, संयुक्त उं-- १ निंदा, क्षेप । २ विस्मय । ३ खेद ।४ वितर्क । ५ सूचनइन अर्थों का सूचक अव्यय उंगाहिअ—– उत्क्षिप्त For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ उंबरय – कुष्ठ रोग का एक भेद उकुरुडिया—कूडा डालने का स्थान उक्कअ – प्रसृत, फैला हुआ उक्कंछण – काठ पर काठ के हाते से घर की छत बांधना, घर का संस्कार विशेष उक्कंडिअ – १ आरोपित । २ खण्डित उक्कंद – विप्रलब्ध, ठगा हुआ उक्कंपिय – धवलित, सफेद किया हुआ उक्कवण- - घर का संस्कार विशेष, काठ पर काठ के हाते से घर की छत बांधना उक्कग्ग अनवस्थित उक्कज्ज - अनवस्थित, चञ्चल उक्कट्टी - कूपतुला उक्कनाह- उत्तम अश्व की एक जाति उक्करड-१ अशुचि राशि । २ जहां मैला इकट्ठा किया जाता है वह स्थान उक्करिअ - १ विस्तीर्ण । २ आरोपित । ३ खंडित उक्कास-- १ उत्कृष्ट । २ उत्कृष्ट उक्कासार —भीरु फैला हुआ उक्किअ -- प्रसृत, उक्कुइय-ऊंचा उठाया हुआ उक्कुंडड– ठगा हुआ, विप्रलब्ध उक्कुरड – कूड़े-कचरे का स्थानउत्करसमूहस्थाने देशी उक्कोइय-उत्पादित - उत्पादित Jain Education International इस्य देशी उक्कोट्टिय–अवरोध रहित किया हुआ, घेरा उठाया हुआ उक्कोडिय – रिश्वतखोर, घूसखोर उक्कोसिअ – पुरस्कृत, आगे किया हुआ उक्खय - उद्गल उक्खुत्त -- काटा हुआ उक्खडिय-- उखड़ा हुआ उग्गाल – लघु स्रोत उग्गाविर – उद्गमक उग्गाहिअ - उत्क्षिप्त ४४६ उग्धक्क - प्रलपित उग्घय -- विस्तीर्ण उग्धवियय – पूर्ण उग्घोसिय- मार्जित उघूण–पूर्ण, भरपूर उच्चंड-पराक्रम से रचित चरित उच्चंडिग - १ निःसीम । २ प्रचुर उच्चंडिय–– ऊंचा चढ़ाया हुआ उच्चंत - - गाढ उच्चत्ता – थोक में बेचना उच्चदिअ - मुषित, चुराया हुआ उच्चल्ल– १ दृष्ट । २ अध्यासित । ३ विदारित उच्चाइय– उत्थापित, उठाया हुआ उच्चाडन - १ उपवन । २ शीत जूठा उच्चुग – अनवस्थित उच्चुरण- उच्छिष्ट, उच्चोड - शोषण उच्चोली - कटि-वस्त्र उच्छड्डिअ – चुराया हुआ, मुषित उच्छलय - गृह, घर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४५० उच्छल्ल - उत्क्षुब्ध उच्छल्लणा-अपवर्त्तना, उच्छिरण-- उच्छिष्ट, जूठा उच्छुण्ण–परिपूर्ण उच्छुरिअ - आपूर्ण उच्छूढ–आरूढ, ऊपर बैठा हुआ उच्छूरण- उच्छिष्ट उच्छोला - प्रभूत जल उज्जगिर- उजागर अपप्रेरणा उज्जाडिअ – उजाड किया हुआ उज्जाविय - विकसित उज्जोगल – भट उज्झ--अरम्य उज्झंसिय-- तिरस्कृत उज्झणिअ - १ विक्रीत, बेचा हुआ । २ निम्नीकृत, नीचा किया हुआ उज्झमाण–पलायित भागा हुआ उज्झल - प्रबल, बलिष्ठ उज्झलिअ - १ प्रक्षिप्त, फेंका हुआ । २ विक्षिप्त उज्झसिअ -- उत्कृष्ट, उत्तम उज्झिय – १ शुष्क, सूखा हुआ । २ नीचा किया हुआ उटेंट- उन्मत्त उदृद्ध - नियंत्रित उडंब - लिप्त, पोता — हुआ उडाहिअ - उत्क्षिप्त, फेंका हुआ हुआ उडिअ - अन्विष्ट, खोजा उडिल्लय - उर्द, माष उड्डमर – उद्भट, उत्कृष्ट उड्डामर – सुंदर, उत्कृष्ट उड्डाहिअ - उत्क्षिप्त Jain Education International उड्डिय – उत्क्षिप्त उड्डुइय - डकार उड्ढंक – मार्ग का उन्नत भूभाग उड्डण - उत्तरीय वस्त्र उड्डि — गाड़ी का एक अवयव उड्डिया – १ पात्र विशेष । २ कंबल आदि वस्त्र उणाइ – प्रिय, पति उणिआ - कुसरा, यवागू उण्णाह- तीव्र प्रवाह उण्हालय -- ग्रीष्मकाल उत्त – वनस्पति विशेष उत्तण -- गर्वित उत्तत्त - अध्यासित, आरूढ उत्तह - तंत्र, उधर उत्ताणफल - एरंड उत्तार - आवास स्थान उत्ताल - गर्वित देशी शब्दकोश उत्तावलय - उतावल, शीघ्रता उत्तावलिय - त्वरणशील उत्तिरिविडिअ - एक के ऊपर एक चिना हुआ उत्तिवडा – एक के ऊपर एक रखे हुए भाजनों का ढेर उत्तुप्पिय - लिप्त, चुपड़ा हुआ उत्तेडिय - बूंद-बूंद कर फैला हुआ उत्तोलिय–छुटकारा उत्थय – आच्छादित उत्थार - आक्रमण - उत्थिअ— रण में प्राप्त उथाउ- अथवा उदूग - पृथ्वी शिला For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ उदूलिय – अवनत उद्दअ - श्रान्त, थका हुआ उद्दच्छिानिषिद्ध उद्दाण - १ कुरर । २ सगर्व । ३ प्रतिध्वनि उद्दारिअ '-उत्खात उद्दालिअ - १ रणद्रुत । २ झपटना उद्धअ— शान्त, ठंडा उद्धच्छ - लिप्त उद्धण- उद्धत, अविनीत उद्धरिअ-१ पीडित । २ विनाशित उद्धल — दोनों तरफ की अप्रवृत्ति उद्धव - प्रमोद, उत्सव उद्धारय -- उधार पर खरीदना उद्बुधलिय - धुंधलाया हुआ उद्धधुल - धुंधला उद्धसिअ - रोमांचित उद्घ लिअ - अवनत उप्पंग – समूह, राशि उप्पक्किआ - धोबिन उप्पड्डिअ-नष्ट उप्पत्त - १ गलित । २ विरक्त उप्प६ – घर, गृह उप्परवट्ट - श्रेष्ठ उप्पा-मणि आदि रत्नों पर 'ओप' चढाना उप्पालअ- रणरणक, कामदेव उप्पिअ - १ अपहृत । २ रुष्ट । वियुक्त उप्पिंग रिअ - हस्तोत्क्षेप उप्पिणिर - शून्य उप्पुलपोलिअ -- कुतूहलपूर्वक त्वरा उप्पेत्थ - उन्मत्त Jain Education International उप्पेलिअ – उन्नमित उप्फाल–पटह-ध्वनि उप्फालिअ --१ कथित । २ सूचित उप्फेर -भय उप्फोडिआ–संवारी हुई उब्बाल – अध्यासित, सहन किया हुआ उब्बिबिर - खिन्न, उद्विग्न उब्बुडणनिब्बुडण - उन्मज्जननिमज्जन ४५१ उब्भग्ग- मुंडित उब्भिट्ट – उच्छिन्न उब्भिय – ऊंचा किया हुआ उम्मंथिय – दग्ध, जला हुआ उम्मत्तय - धतूरे का फल उम्माहय – अत्याकांक्षा से उत्पन्न व्याकुलता उम्माहिअ - उत्साहित, उत्कंठित उम्मिठ – हस्तिपक रहित, महावतरहित उम्मिट्ट – बाहर निकला हुआ उम्मेंठ - महावत रहित उम्मेट्ठ- महावतरहित उय्यकिअ - इकट्ठा किया हुआ उरअ - ऋजु उरणी - पशु उरविय - १ आरोपित । २ खण्डित उरितिय - त्रिसरा हार, तीन लड़ वाला हार उरुमल्ल – प्रेरित उलुओसिअ - रोमाञ्चित, पुलकित उलुकुसिअ - रोमांचित उलुडुंडिय– हिनहिनाहट For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४५२ उलुहुलअ- अवितृप्त, तृप्ति रहित उलुहुलिअ - अवितृप्त उल्ल- ऋण, कर्जा उल्लकक – १ भग्न, टूटा हुआ । २ स्तब्ध उल्लक्किअ—त्रोटित, तोड़ा हुआ उल्लट्ट – उल्लुंठित, खाली किया हुआ उल्लद्दिय - भाराकान्त, जिस पर बोझा लादा गया हो उल्ललण-उत्प्लवन उल्लाय – रोग मुक्त उल्लाय- - लात मारना, पाद-प्रहार उल्लालिय उन्नमित उल्लिचिय- उद्रिक्त, खाली किया हुआ उल्लिक्क - दुश्चेष्टित उल्लिया- राधावेध का निशाना उल्लिर- गीला उल्लिहड – आसक्त उल्लुअ—१ पुरस्कृत, आगे किया हुआ । २ रक्त, रंगा हुआ । ३ उदय प्राप्त उल्लुक - स्तब्ध उल्लुज्झण– पुनरुत्थान, कटे हाथ-पांव की फिर से उत्पत्ति — उल्लुसिअ - रोमांचित उल्लुहंडिअ - उन्नत, उच्छ्रित उल्लूरिय - हलवाई उल्लोक- त्रुटित, छिन्न उल्हविय - बुझाया हुआ, शान्त किया हुआ Jain Education International देशी शब्दकोश उवइय — त्रीन्द्रिय जीव-विशेष उवक्खेव – बालउत्पाटन, मुण्डन उवज्झिय - आकारित, बुलाया हुआ उवडिअ – अवनत, नमा हुआ उर्वाडं डिम-डुगडुगी उवयासिय -- आलिङ्गित उवरिहत्त– ऊर्ध्वाभिमुख उवलंडंत - चूडावलय उवसड – सारथि उबसेर – रथ के योग्य उवह – 'देखो' अर्थ को बताने वाला अव्यय उविय - शीघ्र उव्वत्ताल – अविच्छिन्न स्वर से रोदन उव्वरियय—अवशिष्ट -उजड जाना उव्वसउव्वार - उद्धरण, रक्षण, उबारना उव्वारुय - अवशिष्ट उब्वाहुल – उत्सुक उब्वाहुलिय - उत्सुक, उत्कण्ठित उव्विक्क- प्रलपित, प्रलाप उव्विड– १ चकित, भीत । २ क्लान्त, क्लेशयुक्त उव्विल - १ चकित । २ क्लान्त उब्वेल–कौशल उसड्ड - ऊंचा उसलिअ - रोमाञ्चित, पुलकित उस्सिघिय - आघात, सूंघा हुआ उस्सिक्किअ - मुक्त, परित्यक्त उहर — अवाङ्मुख, अधोमुख उहार-जन्तुविशेष उहिंजल - चतुरिन्द्रिय जन्तु-विशेष For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ ऊगिय – अलंकृत ऊढ-त्यक्त कमिणिय - प्रोञ्छित, पोंछा हुआ ऊमिण्ण- प्रोंखणक, चूमना ऊरिसंकिअ— रुद्ध, रोका हुआ ऊससिअ - तकिया ऊसाअत्त - खेद से शिथिल ऊसुग- मध्यभाग ऊसुम्मिअ – तकिया ए एक्कंतर – संग्राम एक्कक्कम-परस्पर, अन्योन्य एक्कट्टय- एक ओर एक्कल - प्रबल एक्कल्ल -- १ बलवान् । २ अकेला एक्कल्लपुडिंगय– फुंहार, बूंदाबूंदी एक्कसिरिआ-शीघ्र, जल्दी एक्कोवर - सहोदर एत्तूण- अधुना, इस समय एलविल– धनवान्, पुण्यवान् ओ ओअंदण - १ नाश । २ जबरदस्ती से छीनना ओअंम्मअ – अभिभूत, पराभूत ओअल्ल - अवनत - अवनते देशी ओअल्लअ - विप्रलब्ध, प्रतारित ओअल्लिअ-कंपित ओअल्लिय-आद्रित ओआमिअ-- अभिभूत, पराजित ओइल्लअ – वंचित, विप्रलब्ध Jain Education International ४५३ ओउल्लिय– पुरस्कृत, आगे किया हुआ ओऊल - प्रलंब ओंदुर-- चूहा ओक्खलिअ- त्रुटित ओग्गालिर-पगुराने वाला, चबाई हुई वस्तु को पुनः चबाने वाला ओग्गिव - नीहार ओच्छंदिअ – १ अपहृत । २ व्यथित, पीड़ित ओच्छल्ल – चोर ओच्छोअअ - घर की छत के प्रान्त भाग से गिरता पानी ओज्जर- भीरु ओज्झरय – निर्भर ओज्झरिअ - १ प्रक्षिप्त । २ विक्षिप्त ओट्टअ – अभिभूत ओवृद्धय- नियंत्रित ओड्डिगा - ओढ़नी ओढण - १ वस्त्र । २ अवगुंठन ओढिय - ओढा हुआ ओणल्लिय - अवनत ओप्प – ओप, चमक — ओमंस — अपसृत, अपगत ओमल्ल – घनीभूत, कठिन ओमहिअ – पुरस्कृत ओमिस - अप्रवृत्त ओम्माहिय- उत्कण्ठित ओरल्लि - मधुर- दीर्घ शब्द ओराल - सिंहनाद ओरालिय आक्रन्दन For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४५४ ओराली - दीर्घ आवाज ओरिल्ल – पश्चात् ओरी – समीप ओलअण - १ पत्नी । २ नववधू ओलगा - सेवा, भक्ति ओलग्गा–सेवा ओलग्गिय – सेवित ओलाव - बाज पक्षी ओलुक्को – आंखमिचौनी ओलुग्ग-शोभाशून्य ओलुग्गाविय – १ बीमार २ विरह-पीड़ित ओल्ली - पनक, काई ओवग्गिअ - अवगृहीत ओवरिय - राशीकृत ओवाअअ - जल समूह की गरमी ओवारिअ – ढेर किया हुआ, —— राशीकृत ओसक्कण – अपसरण, पीछे हटना ओसक्किअ – मुक्त — ओसट्ट – विकसित, प्रफुल्ल ओसडिअ - आकीर्ण, व्याप्त ओसत्त- अवनत ओसत्थ - आलिंगन ओसरी – अलिंदक ओसविअ - अवसन्न ओसाअण - १ महीशान, जमीन का मालिक । २ आपोशान — ओसिरण – व्युत्सर्जन, परित्याग ओसुद्ध - निपतित, अवपतित ओहली - ओघ, समूह ओहल्ली दूर हटना, अपसू ति ओहामिय – १ तुलित । Jain Education International देशी शब्दकोश २ अभिभूत ओहारइत्तु - दूसरे पर मिथ्याभियोग लगाने वाला ओहिअ—अधोमुख ओहुल्ल - १ खिन्न । २ अवनत, नीचे झुका हुआ ओहुल्लिय- म्लान क कइवार – स्तुति - पाठ कउड - ककुद, बैल के कंधे का कूबड़ कउसोस – मंदिर का शिखर कओहुत्त - किस तरफ कंकअसुकअ - अल्प सुकृत लभ्य कंकर–कंकर कंकसो-कंधी कंकाल - वर्षाकाल कंगणी-- वल्ली विशेष कंची रय – पुष्प- विशेष कंछुल्ली – हार कंटी--- उपकण्ठ, पर्वत की निकटवर्ती भूमि कंटोल्ल – वनस्पति विशेष कंठाल – कडाह कंडच्छारिय – १ गांव । २ ग्रामप्रमुख । ३ देश । ४ देश प्रमुख । ५ लुटेरा, हत्यारा । ६ लुटेरों का सहायक कंडदोणार - बाड़ का विवर कंडपडव – चंदोवा कंडारिय-- कुपित For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ कंडोहिय – मथित - मथित इत्यर्थे देशी , कंद –– मेघ, बादल कंदल – शोरगुल कंदुब्बय – कन्द- विशेष कंधार - स्कन्ध कंपर - विज्ञान, निपुणता कंबिया – यष्टि ककाणि – मर्मस्थान कक्कड - कर्कश कक्कर – पर्वत शिखर कक्काल – कंकाल कक्कोलय - फल - विशेष कक्खड - कठोर कचोर- काचरी, कच्चरा कच्च - काच कच्चरा-१ कचरा, कच्चा खरबूजा । २ कचरे को सुखाकर, तलकर और मसाला डालकर बनाया हुआ खाद्य-विशेष कच्चवार-कतवार, कूड़ा कच्चोल कटोरा - पात्रविशेषे देशी कच्चोलिय – थाली, पात्र विशेष कच्छकर ~~ काछिआ, सब्जी बेचने वाला कच्छट्टी–कछोटी, लंगोटी कच्छादब्भ - रोग विशेष कच्छुट्टिया-कछोटी, लंगोटी कच्छोटी- कछोटी कच्छोट्ट— लंगोटी कच्छोट्र्य- लंगोटी कट्या विय --- व्यथित Jain Education International कट्टराय – छुरी, शस्त्र-विशेष कट्टोरग–कटोरा कड-घर के पीछे का आंगन कडउल्ला - आभूषण-विशेष कडक्क – 'कडाक' से टूटना कडत्तय – क्षीणत्व कडत्तरिअ - दारित, विदारित कडद्दरिअ – १ छिन्न, काटा हुआ । २ छिद्र कडमड- उद्वेग कडयड - वृक्ष के गिरने की आवाज कडयडंत ४५५ - कडकडाता हुआ कडय डिअ - परावर्तित फिराया हुआ कडा — कड़ी, जंजीर की लड़ी कडिअ – खुश किया हुआ कडिभिल्ल – शरीर के एक भाग में होने वला कुष्ठ रोग कडिल्लिय – १ कटी वस्त्र । २ जंगल कडुयाविय – १ प्रहृत, जिस पर प्रहार किया गया हो वह । २ व्यथित । ३ हराया हुआ । ४ विपदा में फंसा हुआ कड्डय – चुम्बक - पाषाण कड्ढाकडि - परस्पर आकर्षणविकर्षण करसी- श्मशान करिठाण - पैंतरा करिमरि – बंदिनी स्त्री करीट- हाथी का प्रतिक्षेपक कलंतराजीवअ - रुपये उधार देकर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४५६ आजीविका करने वाला कलबू - तुम्बा ू कलमल – १ कामपीडा । २ कंपन, थरथराहट कलमलय — कालुष्य, ईर्ष्याजनित खेद ( मराठी - कलमल- तलमल) कलय – अर्जुन वृक्ष कलयज्जल - ओष्ठ लेप, होठ पर लगाया जाता लेप- विशेष कलरोल - मधुर रव कलवलय – कलरव कलि-बेहडा कलिय -- पोतना कलुयाल – छोटी मछली कल्ल – १ अनिश्चित बोलने वाला । २ लज्जा । ३ कल कल्लवण – तीमित खाद्य पदार्थ कल्ला विअ - तरल पदार्थ से मिश्रित कल्लू रिय - हलवाई कल्लोडय - दमनीय बैल कवण -कौन कवलिआ - ज्ञान का एक उपकरण कवसीस— मंदिर- शिखर कविलडोला - क्षुद्र जन्तु विशेष कवड्डी – कौडी कव्वट्ठ -बालक कव्वाडिअ-कांवर उठाने वाला, बहंगी से भार ढोने वाला कस किसिर – जकड़ा हुआ कसमस – कसमसाहट कड्डिअ – बाहर निकला हुआ कड्ढोयडिढ–कर्षण - विकर्षण Jain Education International कणआ -- नीवी कणई – शाखा कणखल - उद्यान विशेष कणवी - कन्या देशी शब्दकोश कण्णमाण - विनयशील कण्णारय – १ तीखी आर । २ पशुओं को तीखी आर लगाने वाला कण्णाराम– मुकुट कण्णोविआ – १ चंचु । २ मुकुट कत्त - नारी, पत्नी कत्तर – कूड़ा-कचरा कत्ति- 'अंधिका' नामक द्यूत में प्रयुक्त होने वाली कोडी कत्तिवविय-- कृत्रिम कत्तोच्चय - कहां से कथ – १ मृत । २ क्षीण, दुर्बल कन्नारिय – विभूषित कब्बड – वसति विशेष कब्बाड - कबाडखाना कब्बाडभयय – ठेके पर जमीन खोदने का काम करने वाला मजदूर कमड- भिक्षा - पात्र कमल – १ मुंह । २ चोर कम्मंत – कर्म बन्धन का कारण कम्मरिअ – कर्मकर कयर – धूलि कयरस - स्वर्ण कयवरुज्झिया – कूड़ा साफ करने वाली दासी कयसेहर - कूकड़ा, मुर्गा करअड - स्थूल वस्त्र, मोटा कपड़ा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ करअडी– स्थूल वस्त्र करंड - १ शार्दूल । २ कौआ । ३ अर्गला करकट्ट - ले जाने योग्य पदार्थ करकड - कठिन करकडी – चिथड़ा जो प्राचीन काल में वध्य पुरुष को पहनाया जाता था करचंड - अनर्थ करने वाला करट्ट — अपवित्र अन्न को खाने वाला ब्राह्मण करड – कठिन – कठिन इत्यर्थे देशी करणिल्ल - समान करतक्कड – ध्वनिपरक सादृश्य करयरंत -करकर आवाज करना – शब्दानुकरणे देशी करल्ल – अवशुष्क करव - जलपात्र करविया - पान - पात्र विशेष कसर – १ बलीवर्द, बैल । २ पांडुर कसरक्क – कुड्मल, अर्ध विकसित फूल कसार- एक प्रकार की मिठाई — कसेर तृण- विशेष कसेरु– तृण- विशेष कसोति - खाद्य विशेष कहकहंत – कह कह की आवाज शब्दानुकरणे देशी कहोड - तरुण काउल–कोल जाति काऊसाय – कायोत्सर्ग काणड्डी -- परिहास Jain Education International काणि – वैर काणिक्क – बड़ी ईंट कायपिउला – कोकिला कायमाण-आसन कारंड - नीड़ कारट्टय - मृत भोज कारायणी – शाल्मली- वृक्ष कारिल्ली – वल्ली विशेष कालक्खरिअ - १ उपलब्ध, निर्भत्सित । २ निर्वासित कालण - मनुष्य कॉलिंबअ - १ शरीर । २ मेघ कालिया – १ ऋणवृद्धि । २ मेघमाला कालियावअ - तूफान - अश्व की एक उत्तम जाति ४५७ कालुय कावंजय – पक्षी - विशेष कावड - कांवर कावडिअ – कांवर से भार ढोने वाला कावाइय - चालाकी काहल - - अधीर, उतावला किं किय- सफेद, धवल किंजुक्ख - शिरीष का वृक्ष किक्किडी - सर्प किडिकि डिजंत - किड-किड की आवाज करता हुआ किणइय– शोभित किणो - प्रश्नवाचक अव्यय किण्णरस -वाद्य विशेष किण्हग – वर्षाकाल में घड़े आदि में होने वाली एक तरह की काई किपाड – स्खलित, गिरा हुआ For Private & Personal Use Only A www.jainelibrary.org ४५८ किमिघरवसण - रेशम का वस्त्र किम्मिय --जड़ता किम्मीर - विचित्र किर - संबंधार्थक अव्यय किरिकिरिआ - १ कर्णोपकणिका । २ कुतूहल किरो - वराह, सूअर किलिंचिअ – छोटी लकड़ी किलिकिंचिअ – रमण, क्रीड़ा किलिकिलित - बन्दरों का किलकिलाना किलिगिलिय-- अनुकरणवाची शब्द किलिणी - १ प्रतोली । २ गली किवाडस्खलित कोव - पक्षि विशेष कीस – प्रश्नसूचक अव्यय कुइमाण म्लान, शुष्क कुई -- बलाका कुंट – १ कुब्ज । २ हस्त विकल कुंठी- चिमटा कुंडभी– छोटी पताका कुंडिय–खरण्टित कुंढ – १ हस्तहीन । २ वामन कुंभी – कपड़े में बांधा हुआ स्वर्ण आदि द्रव्य कंयरी - कुमारी कुक्क – कुत्ता कुक्कयय – आभरण- विशेष कुक्की–कुत्ती कुक्कु – अग्नि कुक्कुडिया – खाद्य विशेष कुच्छिणी - बाड का छिद्र Jain Education International कुट्ट – १ कोट, किला । २ नगर, शहर कुट्टण – कूटना कुट्टमिअ – महिष देशी शब्दकोष कुट्टवाल – कोतवाल, नगररक्षक कुट्टार - चर्मकार कुट्टोअर – कूटादर, शयनागार कुडंबीअ - सुरत, संभोग कुडुंग – लतागृह कुडुंगण - लतागृहलतागृहमित्यर्थे देशी कुडुंबिय – मैथुन कुटुंबीय – रतिक्रीड़ा विशेष कुडुव —–— बजाने का काष्ठ कुडु - कुतूहल कुड्डाल - हल के ऊपर का विस्तृत अश For Private & Personal Use Only कुढ - पीठ कुढिलग्ग - न्यायालय में जिसकी जांच हो रही हो वह कुण्हरिया – वनस्पति विशेष कुत्ती – कुत्ती, कुतिया कुद्दहीर – १ बालक । २ चन्द्रमा कुप्पास-चोली कुबड – कूबडा, कुब्ज कुरुमालण- खुजलाना कुरुया – शरीर प्रक्षालन कुरुलिअ-कौए की आवाज कुरूढ – १ पवित्र । २ निपुण कुललय – कुल्ला, गंडूष कुलुक्किय – जला हुआ कुल्लूरिय – हलवाई कुवलय – बदर www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ कुवली – वृक्ष-विशेष कुविल – चोर कुहणी – १ रथ्या । २ कोहनी, कूपर कुहाडय – कुठार कुहिण – कूपर, कोहनी कुहिणी - मार्ग कर – ओदन- ओदनायें देशी कूरपिउड -- भोजन- विशेष कूवार – १ चिल्लाहट । २ पुकार केआ – क्रीडा के ऊरपुत्त -- गाय तथा भैंस का बच्चा केंजू -- १ रज्जु । २ असती । ३ कन्द केक्कार – पक्षियों का शब्द - विशेष केडु -- १ व्यापकता २ । फेन । ३ साला । ४ दुर्बल केणअ - पूजाद्रव्य केत्तडय - कितना केयरी – वृक्ष विशेष केर – १ सेवा । २ आज्ञा केवइय – कितना कोकाविअ – 'को' शब्द से आहूत कोक्कत–'को' ऐसा शब्द करने वाला कोक्कय - आमंत्रित करने वाला कोक्काविअ - माहूत, आकारित कोक्किय – आहूत कोच्छभास --काक, कौआ कोणेट्टिया- गुञ्जा कोण्णाअम्लान केरअ – यह उसका है- इस अर्थ में कोत्थुअवस्थ– नीवी प्रयुक्त अव्यय कोदूमिय–सुरत, संभोग कोद्दाल – कुदाल कोप्पर - १ वर्णसंकर । २ जाल कोमाणय – म्लान कोर – अनुपभुक्त वस्त्र - ईषत्, थोड़ा कोव Jain Education International कोच्छर – १ कुशल । २ कुत्सित कोज्जरिअ – पूरित कोट्ट – प्राकार भित्ति, कोट कोट्टमिय - रतिक्रीड़ा विशेष कोट्टवाल – नगररक्षक कोट्टा - प्राकार कोड कौतुक कोडमिय–रतिक्रीड़ा विशेष कोडि — मुर्गा कोडिय - - पिशुन, चुगलखोर ४५६ कोड्डुमिय - रतिक्रीड़ा-विशेष कोड्डय – आश्चर्य कोड्डावण – कौतुक करना - कौतुककरणं इत्यर्थे देशी कोड्डावणय – कौतुकोत्पादक कोड्डावणिय – कौतुक करने वालाकौतुककारक इत्यर्थे देशी कोड्डिय– कुतुहली. कोड्डी - कुतूहलो कोणाली-गोष्ठी कोसिअ - जुलाहा कोह — कोवली, थैला For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४६० खंचण - कर्षण, खीचना खंडपयार -- एक प्रकार की मिठाई खंडसोल्ल – चीनी से बना खाद्य पदार्थ खंडिआ - माप-विशेष, बीस मन का एक माप खंडीधारा – अति उष्ण पानी की धौरा खंडुअ - हाथ का आभूषण- विशेष, बाजूबंद खंदजी - स्थूल इन्धन की अग्नि खंधलट्ठि– हाथ, भुजा खंपण – कलंक खंपणय – वस्त्र खक्खरग-सूखी रोटी खग उड - पक्ष-पुट खट्टावण्ण - खट्टा तीमन खट्टिक्क- कसाई खट्टिग – कसाई खडक्क – पर्वत, शिलाखंड खडट्टोबिल – एक म्लेच्छ जाति खडफड - छटपटाहट खडयासी – तृणभक्षक खडरिअ - कलुषित खडहडरव -- बादलों का गर्जारव खडहडिय - शिथिल किया हुआ खडहार - तृणभार खडिअ— दवात, स्याही का पात्र खडु - खेल खड्डिक्क – कसाई खड्डोलय – खड्डा, गर्त्त Jain Education International खत्ति ~ एक म्लेच्छ खत्थ - संतप्त खत्थय -- भीत खम्नवाइ – वह व्यक्ति जो यह मानता हो कि खान से बहुमूल्य रत्न आदि निकालने से वह धनाढ्य होगा खप्पिअपरिपूर्ण देशी शब्दकोश जाति खब्बण- दक्ष खयाल - १ वंस २ पर्वत - गर्त्त खरंसूया-वनस्पति विशेष खरडिय- खरंटित खरुण्णा - विषम भूमि खलभल-खलबलाहट, क्षोभ खल भलिअ - - क्षुब्ध खलिण - लगाम खलहल – क्षुब्ध खलि – संबोधन- सूचक अव्यय जाल, झाड़ी । खलियारिय - कदर्थित खली- चीनी खल्लि – सिर की वह चमड़ी जिसमें बाल पैदा न हों खल्लिहडअ— खल्वाट, गंजा खल्ली-खाली खवल — क्षोभ, खलबलाहट खसर- कर्कश For Private & Personal Use Only खसिअ - १ आपूर्ण । २ खिसका हुआ खसु – रोग विशेष खाण–एक म्लेच्छ जाति खारिक्क --- फल - विशेष, छुहारा खिल – १ ऊषर भूमि । २ अकृष्ट भूमि www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ खिल्लहड – कन्द- विशेष खिल्लहल – कन्द - विशेष खिल्लुहड – कंद विशेष खोसण – खींसना, क्रूरना खुइय – १ विच्छिन्न । २ विध्यात, शांत खुंगाह-अश्व की एक उत्तम जाति खुंट – १ स्तम्भ-स्तम्भ इत्यर्थे देशी । २ खूंटी खुंटण — त्रोटन, खोंटना खुंटमोडय – १ खूंटे को मोड़ने खुडुक्खिय – शल्य की भांति चुभा हुआ खुड्डमड्डा-१ बहु, अत्यन्त । २ पुनः पुनः खुत्त – क्षिप्त, प्रहृत खुप्पण– निमज्जन खुरप्प – खुरपा, क्षुरप्र ( मराठीखुरपे ) खुरहखुडी – प्रणय प्रकोप खुरुप्प – शस्त्र विशेष खुलुखी - मिथ्या घटित होना वाला । २ इस नाम का एक हाथी खुज्जुल्लिय – कुब्ज खुडिया- स्वल्प रति क्रीडा खुडुक्किअ – १ शल्य की तरह चुभा हुआ । २ रोष-मूक, गुस्से में मौन । खोड्डी – दासी धारण करने वाला खुल्लासय – खलासी, जहाज का कर्मचारी विशेष खेआलुअ - - १ हास । २ हास्य के समय हंसना खेड – आलिङ्गन खेडय - अग्राहार, बलि खेड्डिया – १ बारी, दफा । २ खिड़की Jain Education International खेर – १ एक म्लेच्छ- जाति । २ द्वेष खेरि --द्वेष खेल – जहाज का कर्मचारी विशेष खेव-आलिङ्गन खेह - धूलि खोंटग-खूंटी खोटय – खूंटा, खूंटी खोंडग-खूंटी खोज्ज खोट्टिय – बनावटी लकड़ी खोट्टिया- कुट्टिनी, दासी - मार्ग-चिह्न खोर–१ कलुषित, तुच्छ । २ मार्मिक खोल - लघु, तुच्छ खोल्ल – गंभीर – गम्भीर इत्यर्थे देशी । ( मराठी खोल) खोसला – दन्तुल स्त्री, वह स्त्री जिसके दांत बाहर निकले हुए हौं खोहत्त- हाथों से आहत पानी ग ४६१ गउसाउल्ल-विरक्त गंगली - मौन, चुप्पी गंजुल्लिय – पुलकित गंजोल - पीड़ित For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४६२ गंजोलिय - रोमाञ्चित गंजोल्लिय क्षुब्ध - क्षुब्ध इत्यर्थे देशी गंडधारा - गाड़ी का मार्ग गंडपब्भालण-गंडमाला रोग गंडलय – टुकड़ा गंडली - गंडेरी, इक्षु-खण्ड गंडिली - इक्षु खण्ड गंधिल्ली - छाया गंधुत्तमा– मदिरा गग्गर - गद्गद् आवाज वाला गज्जिलिअ - १ अंग-स्पर्श से होने वाला हास्य । २ पुलक गज्जिल्लिअ - १ गुदगुदी । २ अंगस्पर्श से होने वाला रोमांच गडयड - गडगडाहट गडवड- - गड़बड़, गोलमाल गडियड - गर्जन गड्डुरियपवाह - गड्डुरिका प्रवाह, गतानुगतिकता गड्डुरिया - भेड़ो गड्डुल -- कर्दम से निःसृत गणियारी - हथिनी गद्द- गाढ गहिला - बैल आदि को चलाने के लिए त्राजन में लगाई जाती आर, लोहे की कील गमरोट्ट – शेखरक, शिरोमाल्य गमार - अविदग्ध, मूर्ख गमिअ - अवधूत गमिद - १ अपूर्ण । २ गूढ़ । Jain Education International देशी शब्दकोश ३ स्खलित गरुड - एक प्रकार का ब्रीहि धान गरुलिया-- शास्त्राभ्यास की स्थली गलगिज्ज - घुग्घुरावलि, कि किणीपंक्ति गलच्छण – फेंका हुआ गलच्छिय -- पीड़ित, प्रेरित-प्रेरित इत्यर्थे देशी गलत्थ – १ क्षेपक, विनाशक । २ ग्रस्त गलत्था - प्रेरणा गलत्थिय – कदर्थित गलद्धअ – प्रेरित, क्षिप्त गलमोडी - गले की वक्रता गलहत्थण -- ग्रसित करना गल्लक्क - स्फटिक मणि गल्लूरण – मांस खाते हुए कुपित शेर की आवाज गवत्थिय- आच्छादन गवार - ग्रामीण — गविअ - अवधूत, निश्चित गविल – उत्तम कोटि की चीनी, शुद्ध मिश्री गव्विय – कथित गहगह- - आनन्द से आप्लावित गहणय - गहना, आभूषण गहर - गृध्र गहिलिय - उन्मत्त गहिल्लिय – आवेशयुक्त, पागल गहेर - बन्दी गाउय – गव्यूति, दो कोस गांडी — मंजरी गामण - भू-सर्पण, भूमि में गमन For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ गामणह- ग्राम- स्थान गामरेड – जो छलपूर्वक ग्राम का उपभोग करता है वह गामहण- - सामान्य गामार – ग्रामीण, गंवार गालवाहिया–छोटी नौका, डोंगी गाव – गत, गया हुआ गिंभारि - वर्षाऋतु गिरिडी - पशुओं के दांत बांधने का उपकरण विशेष गिलोइया - गृह-गोधा, छिपकली गिलोई – छिपकली गिल्लगंड - गीला - आर्द्र इत्यर्थे देशी गीढ – धृत, व्याप्त गीर-गुदा, गिरि गुंजावित्र--हासित, हंसाया हुआ गुंजोल्लिअ— विकसित गुंदल - - १ आनन्द ध्वनि । २ आनन्द - वृद्धि । ३ आनन्द-मग्न गुंदवडय- एक प्रकार की मिठाई गंदि-मंजरी गुंफण - गोफन, पत्थर फेंकने का शस्त्र - विशेष गुज्जणिअ— संघटित गुज्जलिअसंघटित गुडसोल्ल - - गुड से बना भोज्य पदार्थ गुडिअ -सन्नद्ध गुड्डुर — वस्त्र- गृह, तंबू गुड्डुर – शोर मचाना गुणा - मिष्टान्न विशेष Jain Education International ४६३ गुत्तिय - आसक्त-सक्त इत्यर्थे देशी (मराठी-गुंतलेली ) गुत्थिअ— उन्मूलित गुप्पी--इच्छा गुमिअ -- भ्रमित, घुमाया हुआ गुमुगुमुगुमंत -- भिनभिनाना गुम्मडिअ-मुग्ध, मोहित गुम्मिअ - मूल से उत्सन्न गुरुहार – गर्भवती गुलिणी - लतागृह गुलियारय – मधुरतर गुवालिया - वर्षा ऋतु में उत्पन्न होने वाला कीट - विशेष गेज्ज - ग्रैवेयक, गले का आभूषण गेडण – १ फेंकना । २ दे देना गेड्डा – यव, जौ धान्य गेड्डी – गेंद खेलने की लकड़ी गोंछ – गुच्छ गोंजल -- गले से संबंधित गोंदल - - १ संग्राम (मराठीगोंधल ) । २ समूह । ३ व्यापार गोंदलिय - मिलित गोच्छड - गोबर गोजा – कलशी गोड - गोडा, पैर गोड्डु - १ स्तनों पर दी जाने वाली वस्त्र की गांठ । २ पंक गोणत्तय - वैद्य का औजार रखने का थैला गोदा - नदी - विशेष, गोदावरी गोद्द हिल्ल - नागरिक गोप्पी - बाला For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४६४ गोमिआ— कनखजूरा, श्रीन्द्रिय जन्तु विशेष गोय – उदुम्बर, गूलर आदि का फल गोर - १ ग्रीवा । २ आंख । ३ हल की रेखा, सीता गोरडित -- स्रस्त, ध्वस्त गोरप्पडिआ-गोधा गोरिहिअ - त्रस्त गोला - गाय गोसाविआ - १ वेश्या । २ मूर्खजननी गोसिय – प्राभातिक, प्रातःकालसम्बन्धी गोहत्तण-पौरुष गोहली-गोधूमाली घ घअअंद-दर्पण घई -- शीघ्रवाची अव्यय घंघलिअ- घबराया हुआ घंचिय - तेली (घांची- गुज) घग्घत्थण – खेद घग्घर - १ घरघराहट ।२ क्षुद्र घंटिका । ३ घाघरा घग्घरय - क्षुद्रघण्टिका घग्घरा - क्षुद्र घंटिकाकिंकिणी शब्दार्थ देशी घट्टसुअ-वस्त्र-विशेष, बूटेदार कौसुम्भ-वस्त्र घड - सृष्टीकृत, बनाया हुआ घडइय-संकुचित घडाघडी – गोष्ठी, घण - बहुत Jain Education International सभा घणवाहिअ - इन्द्र घणघण-सातिशय घणघणा- रथ के चक्कों की ध्वनि घत्ति - शीघ्र घसिय-प्रेरित देशी शब्दकोश घत्थ- ग्रस्त घरघरग-ग्रीवा का आभूषण घरफरि-धरपटक करना घलंजिया- गृहदासी- गृहदासीत्यर्थे देशी घल्लय - द्वीन्द्रिय जीव की एक जाति घल्लियय-क्षिप्त घल्लोय-द्वीन्द्रिय जंतु- विशेष घवक्कड - उद्दीप्त घसणिअ—अन्विष्ट, गवेषित घाडेरुय - १ खरगोश की एक जाति । २ बन्धन- च्युत घाणय – कोल्हू, घाणी घार - १ गीध । २ प्रकार घारिअ - जहर आदि के कारण होने वाली सुषुप्ति घित्त - १ गृहीत । २ क्षिप्त घित्तय-क्षिप्त घिरिहोल – मक्खी घिवण-क्षेपण घुंघुस्सिअ -- निःशंक कथन घुग्घरय - उल्लू की आवाज घुग्घुरुड - राशि, ढेर — घुग्घुस – घू-घू शब्द करने वाला घुग्घुस्सुअ— निःशंक होकर गया हुआ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ घुणहुणिय–कर्णोपकणिका घुत्तिअअ – गवेषित घुम्ममाण - घूमता हुआ घुयग – वह पत्थर जो पात्र आदि को चिकना करने के लिए उस पर घिसा जाता है घुरुक्क -- सिंहनाद घुरुक्कार - सूअर आदि की आवाज धुरुधुरुधुरंत – घुर्राना घुरुल्लय — खिलोने का छोटा घर घुरहुरिअ-घरघराहट घुलिकि- हाथी की आवाज घुलिय – १ चंचल । २ घूर्णित घुसिम - - १ चन्दन । २ कुंकुम घ्यड - उल्लू घेउर–घेवर, घृतपूर घोडि – बदरीफल घोणस - सर्प- विशेष घोलवडय -- दही बड़ा घोस – गुच्छ गुच्छायें देशी ( मराठी-घोस ) घोसय - दर्पण रखने का उपकरणविशेष च चडक्किआ-आंगन चउज्झाइया - नाप-विशेष चउरय - चबूतरा चउरि – लग्नमंडप - लग्नमण्डप इत्य देशी चाउरिया - विवाह मण्डप चउरी – विवाह मण्डप चउसर – चार लड़ी वाला हार Jain Education International चउहट्ट - शहर का चौराहा चओर - पात्र विशेष चंगत्तण -- चारुत्व, सौन्दर्य चंगय–उत्तम चंचिक्किय - विभूषित चंचुप्पर - मिथ्या चंचेल – वक्र चंटिअ –आच्छादित चंडार- भंडार चंद – स्वर्ण - चंदकव – मयूर चंदणया— शौचालय चंदिण - चन्द्रिका चंदुज्जय- कुमुद चंदेरी – नगरीविशेष चंदोयय-चंदोवा चंपडण – प्रहार चंपण – चांपना, दबाना चक्करगह-मगरमच्छ चक्कडिअ - प्रीणित चक्कम्मविअ – घुमाया हुआ चक्कयर – भिक्षुक चक्कलिय – वक्रीकृत ४६५. चक्कय - चक्रवाक चक्खुरक्खणा - लज्जा चच्चरिय - भौंरा चच्चिक्किय – चर्चित, लिप्त चट्टण- १ नाशक, भक्षक-भक्षक इत्यर्थे देशी । २ चाटना चट्टय – उत्पूत - उत्पूत इत्यर्थे देशी चट्ठीचडआणा–केश, कुंतल -चाट चडक्का– १ विद्युत् । २ आघात For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org चडण--आरोहण चडफडंत - तड़फड़ाना चडयर - आडम्बर चडावण-आरोहण चडाविय - आरोहित - आरोहित इत्यर्थे देशी चडिआस- आटोप चडिण्णअ – आरूढ ( चडिर-आरोहणशील चडीण - आरूढ चडीय - आरूढ़ चडुत्तरिया – १ उतरचढ, चढ़नाउतरना । २ वाद-विवाद चडुलंग - तुरंग चडुलिया – अंत भाग में जला हुआ घास का पूला चड्डण – १ भोजन । २ मर्दन चड्डिय – १ मसला हुआ । २ पिष्ट, पीसा हुआ चत्ता - सूत कातने का साधन, तर्क चदुरूढ - राजा शातवाहन दबोचना चप्पणय – दबाना, चप्परण- तिरस्कार चप्परि- शीघ्र चप्पलअ- १ असत्य । २ बहुमिथ्यावादी चप्पिय – आक्रांत चप्पिवि—१ हठात् । २ दृढ़ चप्फलिय– मिथ्याभाषी चमढणा-भोजन चम्मचिडअ - चमगीदड़ पक्षी चरड-चोर चरिया - पौरुषी Jain Education International चरुव – कलश चलणाओह -- मुर्गा चलवलण- चंचलता चलवलय - चञ्चल चल्लणग– कटि-वस्त्र चल्लि - १ नाचते समय की एक देशी शब्दकोश प्रकार की गति । २ काम वेदना चव – वार्ता चविअ – कथित चव्व विकअ—धवलित, चूने से पोता हुआ चहंतिया-चुटकी चहुट्ट-आघात चहुट्टिय - चिपका हुआ चहोड – मनुष्य की जाति विशेष चाइय- समर्थ चाउरिशय्या ——— चा उल्लग - पुरुष का पुतला चामुंडचंड – भयंकर चारहडि— शौर्य चालंकिय – पूरे शरीर को चालनी बना लेना चालुय – चलनी चालिनी इत्यर्थे देशी चाहिय- १ वांछित । २ अपेक्षित ३ याचित । ४ दृष्ट चिंधिय-वस्त्रखण्ड चिक्क – १ अल्प । २ छींक चिक्खअण - १ असहनशील । २ सहिष्णु चिक्खल – कीचड़ चिक्खिल – कीचड़ चिखल्ल–कीचड़ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ चिडउल्ल–चटक, चिड़िया चित्तअव्याघ्र चित्तविअअ – परितोषित चिद्दाविअ – विनाशित चिप्पंडी - १ व्रत विशेष । २ उत्सव - विशेष चिब्बिर- चिपटी नाक वाला चिरअ - १ सारणी । २ कृत्रिम छोटी नदी चिरडी वर्णमाला चिरहं— मध्याह्न चिरिचिरिआ – चिरि चिरि की आवाज वाली जलधारा चिरिडी-- वर्णमाला चिलसावणय – ग्लानि उत्पादक चिलि चिडिआ-चिलि चिलि की आवाज वाली जलधारा चिलिचिलिआ— धारा, वृष्टि चिलिव्विल – १ गीला । २ बीभत्स चिलिसावण - घृणा करने वालाजुगुप्साकर इत्यर्थे देशी चिल्लड – श्वापद - पशु-विशेष चिल्हय - चक्र - मार्ग, पहिए की लकीर चीहाडी---- चीत्कार चुचुमालिअ–आलसी, मंद चचलिआर- चुल्लू, चुलुक चुंछिअ--सुखा हुआ चुदिणी - कुमारी चुंधल-अक्षिरोग-युक्त चुपालय - गवाक्ष, वातायन चुक्किय - भ्रष्ट Jain Education International चुक्ख – शुद्ध, पवित्र चुच्चुलिअ-चुलूक, चुल्लू चुट्टी-चोटी चुडिय- कुथित, खराब चुण्णुग्घ-अग्नि चुरिम — खाद्य- विशेष, चूरमा चुरुलि – ज्वाला चुल्लग – १ संदूक । २ छोटा चुल्लबप्प- चाचा चुल्हेत्तय – चूल्हे की ईंट चूडल्ल- चूडाबन्ध चूरी - मिठाई विशेष चली– कुक्कुटी, मुर्गी चचइय–अलंकृत ४६७ चेलय - तुला पात्र चोंभल – १ बीभत्स । २ समूह (मराठी-चुंबल, चुंभल ) चोक्खलि-शुद्धिकारक चोज - आश्चर्य चोज्ज - चिंता चोज्जुक्कोयण–आश्चर्यजनक चोड -- १ कंचुक । २ एक देश का नाम चोडय--पोशाक चोड्डु - वृन्त, फल और पत्ती का बंधन चोण्ण --१ कलह । २ काष्ठानयन अदि जघन्य कर्म चोप्पडिय - १ चुपड़ा हुआ । २ घी, तैल आदि स्निग्ध पदार्थ चोल --- गन्धद्रव्य-विशेष चोलअ -- कवच चोवाण – गेंद को मारने की टेढ़ी लकड़ी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४६८ छइल्ल - विद्वान् छंडिआ - मुक्त छंडिय – १ छन्न, गुप्त । २ छोड़ा हुआ छकण्ण- एक प्रकार का जूता छच्छूंदर - छछूंदर, चूहे की एक जाति छज्ज- - शोभा-शोभायां देशी छट्ट- मर्म छट्टा–छटा छुट्टा- जल का छींटा छडउल्लय- संमार्जन, पानी छिड़कना छडय-१ उपलेप - उपलेप इत्यर्थे देशी । २ समूह छडयण -- भ्रमर छड्डणय – आच्छादन छड्डयआच्छादन छड्डाविअ – छुड़ाया, मोचित छणयंद– पूर्णिमा का चांद छणिज्जंत-निरंतर ताडित छत्तरिय - विस्तारित छन्नाल--तापस का उपकरण विशेष छप्पत्तिआ - १ चपेटा, थप्पड़ । २ चपाती. रोटी छप्पन्नय - शृंगार गाथा का कोश-विशेष छयल्ल - चतुर, विदग्ध छव्वग- वंशपिटक, छानने का उपकरण छह-षट्, छह घृत आदि Jain Education International छायणिया – डेरा, पडाव छायणी-पड़ाव, छावनी छाली - अजा, बकरी छाह — गगन, आकाश छाहि — छाया, छांह छिउर – बुझाना छिक–छोंक छिक्किय - छींकना छिच्छअ-नयनों की प्रीति के अयोग्य होने के कारण अक्षि क्षत छिच्छअण–असहिष्णु छिच्छई – कुलटा, असती छिच्छि– धिक्-धिक् छिच्छिणरमण-आंखमिचौनी की देशी शब्दकोश क्रीडा छित्तरय – छाज, सूप छित्तिर- जीर्ण छाज छिरि-भालू की आवाज छिविअ-समूह छिवोल्लअ - १ निन्दार्थक मुख विकूणन । २ विकूणित मुख छिव्वर - चिपटा छिहंडहिल्ल- दही छोद - छेद, विवर छुज्जत- पीड़ित छुट्टहीर- मणिजटित हीरा छुट्टिय- मुक्त छुटु १ लिप्त । २ फेंका हुआ छुडुछुडु – १ हड़बड़ी । २ पुनः पुनः छुडु - शीघ्र छुत्ति - अस्पृश्य का स्पर्शन, छुद्ध-~~-क्षिप्त, प्रेरित For Private & Personal Use Only छूत www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ छुप्पलय - शेखर, शिरोमाल्य छुरमट्टी - नाई छुल्लुच्छुलय-अधीर, शीघ्र छुहइद्धिआ - १ द्वेष्या । २ अस्पृश्या छूहिअ - पार्श्व का परिवर्तन छेअ – विदग्ध छँछई – कुलटा छेण – चोर छेत्तसोवणी- खेत में जागने वाला छेय - हानि छेलग- अज, बकरा छेलिआ - थोड़े फूलों की माला छेव – प्रांत, अंत छोक्करी - लड़की छोट्टिय - छोटा, लघु छोडण- छोड़ना छोडय – १ छोटा । २ भूल छोडाविय – छुड़ाया छोडि-- छोटी छोडिय— छोड़ा हुआ, मुक्त छोत्ति – छूत, अस्पृश्य छोप्प - स्पृश्य, स्पर्श-योग्य छोयर – छोकरा लड़का छोल्लिया – छोटी बालिका Cat छोहर – लड़का छोहिय -- १ क्षुब्ध, व्याकुल । २ जुए में पराजित जअल - छन्न, ढका हुआ जंगल - मांस जंपाण-यान- विशेष शिविका जंपे क्खि रमग्गिर - जिसको देखे उसी Jain Education International की याचना करने वाला जंभगंभण -- स्वतंत्र भाषण जगड-- कलह, झगड़ा जगडण - १ झगड़ा करने वाला २ कदर्थना करने वाला जगडणा - १ झगड़ा । २ कदर्थना, पीड़ा जगडावण-पीडक जडिल- कुंकुम जडु ~~ इव, तरह ४६६ जड्डा - जाड़ा, शीत जणंगम - चांडाल जण्णयत्ता-बरात, विवाह-यात्रा जण्णयत्तिय - बराती, वर के साथ जाने वाले लोग जण्णु - इव जत्ति - १ चिंता । २ सेवा जद्दर - वस्त्र - विशेष, चद्दर जन्नत्ता -बरात जन्ना - बरात, जान जन्नावास – जानिवास, दुलहे के संबंधियों को दिया जाने वाला निवास स्थान जमण -- बालशिखा जव– पुमान्, पुरुष जवण - १ अश्व । २ चन्द्रमुखी जवणि - जीमनवार का निमंत्रण जवली - वेग जववारय - जव का अंकुर जहणूसुअ- अर्धोरुक, आधी साथल तक पहनने का वस्त्र जाउंड - मंत्र कार्य, जादूटोना For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org जाएवय - गमन जांवाय - जामाता जाणण- बारात जालवणी - संवाद, खबर जाला - जब जिम - यथा, जैसे- यथा इत्यर्थ देशी जीरवण - जीरण, पाचन जीविअमई - मृग को आकृष्ट करने के लिए व्याध की कृत्रिम मृगी जुअण - युवा, जवान जुआरि — जुआरी, अन्न-विशेष जुंजम-हरा तृण-विशेष जुंजुमय - एक प्रकार की हरी घास जिसे पशु इच्छापूर्वक खाते हैं जुट्ठ - झूठ जुडिअ ---आपस में जुटा हुआ, भिड़ा हुआ जयगेहकसकरण – संयुक्त परिवार से अलग होकर नया घर बसाना जुयलुल्ल – युगल जरवणी - खेद करने वाली जूराविअ - क्रुद्ध किया हुआ जूरिअ - - खेदित- खेदित इत्यर्थे देशी जूरिय – निर्भत्सित जूसअ— उत्क्षिप्त जूसिअ – क्षिप्त जेवणय – दायां हाथ जेवनार - जीमनवार जोअंगण --कीट- विशेष, इन्द्रगोप जोअड–खद्योत, कीट- विशेष जोइअ'-व्याध Jain Education International जोक्कारिय- प्रशंसित जोक्खिय-तोलित जोडि – युग्म जोडिऊण — जोड़कर जोविय - दृष्ट जोव्वणजोअ- बुढापा, जरा जोव्वणणी - जरा, बुढापा जोव्वणिर – जरा, बुढापा ज्जिअ - निश्चयसूचक अव्यय ज्जेअ – निश्चयसूचक अव्यय — जमहुराविअ - निवासित देशी शब्दकोश झंकोलिय - झकझोरित झंज्झडिय- झगड़ालू झंटण - परिभ्रमण झंटिलिया— चंक्रमण, गमन झंदिय– प्रद्रुतं, पलायित झंपड - १ विकराल । २ अर्ध निमीलित नयन झंपडिय–मुक्त, विरल - मुक्तविरल इत्यर्थे देशी झंपण - १ अपकीर्ति । २ पर्यटन । ३ पर्यटक झंपिअ- आच्छादित झगड- झगड़ा झगडअ – कलह करने वाला, झगडालू झग्गुली – अभिसारिका झड - प्रहार झडक्क – आकस्मिक प्रहार झडक्किय – झिड़का हुआ झडप्प --१ शीघ्रता । २ आक्रमण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ झडप्पण - १ आक्रमण । २ ताडन झडप्पिय - झडप, झपट झडा-झपट झडी – गुल्म झपिअ - पर्यस्त, उत्क्षिप्त - उष्मा- उष्मा इत्यर्थे देशी झल झलकंत- झालर वाला छत्र झलक्क - १ पूर्णाञ्जलि । २ उष्णता झलझलिय – ध्वन्यात्मक अनुकरण www. शब्द झलहलिय- क्षुब्ध झलुक्किअ— संतापित झल्लरी – १ गुल्म । २ बाड़, वृति । ३ बकरी झल्लिर – धारायुक्त-धारायुक्त इत्यर्थे देशी झल्लोज्झल्लिअ - संपूर्ण झव्वरी–अजा, बकरी झसर – शस्त्र - विशेष झिकिरी - वाद्य - विशेष झिखण – १ गुस्सा । २ क्रोधी झिझिणी - लता - विशेष झिझिरी-लता-विशेष झिंडुअ- गेंद झिंदु वय – गेंद झिविकरि-वाद्य झिलिअ – पकड़ी हुई वह वस्तु जो ऊपर से गिरती हो झिल्लिर झींगुर झुंबक – भूमका, गुच्छा झुंबिर – लम्बमान झुंबुक - स्तबक, गुच्छा Jain Education International झुंबुक्क - स्तबक झुटु – झूठ झुणक्क – वाद्य-विशेष झुणिअ - निन्दित, घृणित झुम्सुक्क - झूमका, गुच्छा झुलिक्किअ- दग्ध झलिक्किल – झुलसा हुआ झुलु किय– झुलसा हुआ झुलुक्क – अकस्मात् प्रकाश झुलुक्किअ - १ आन्दोलित । २ झुलसा हुआ झुलुक्की – दग्ध स्त्री झुल्लंत - कांपता हुआ झुल्लण – छन्द - विशेष झेंदुय -- कन्दुक झेंदुलिया – कुलटा झोटिंग - देव - विशेष झोल्लिआ – झोली, थैली झोसिय – १ व्यक्त । २ ध्वस्त ट टउया – पुकारने की आवाज टंकवत्थुल – कन्द - विशेष टंकार – तेज टक्कर - शिला का टुकड़ा टच्चक– लकड़ी आदि के आघात की आवाज टट्टरी - वाद्य विशेष टणटणंत – टन टन आवाज करता हुआ टमालिअ – इन्द्रजालिक टलिअ- - टला हुआ, हटा हुआ टहरिय-ऊंचा किया हुआ ४७१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४७२ टालिय–विनाशित टिटा – १ कुलटा । २ जुआखाना, द्यूतगृह टिबरुणी- तेंदू का पेड़ टिल्ल – तिलक टिल्लिविकय - विभूषित टिविल-वाद्य- विशेष टिविला-वाद्य-विशेष टुंबय-~आघात - विशेष टुप्परग — जैन साधु का एक छोटा पात्र टेंट – १ मध्यस्थित मणि-विशेष । २ द्यूत गृह । ३ वृन्त टेंबरूय – फल - विशेष - टेवंत - तीक्ष्ण करता हुआ टोपरी-टोपी, टोप टोपिआ - १ टोपी । २ पात्र - विशेष टोप्प – श्रष्ठि- विशेष टोप्पर - शिरस्त्राणविशेष, टोपी टोप्परिया-नारियल की कच्चोलिका, टोपसी टोप्पी-टोपी टोल – रहने के मकान ट्ठग - ठग 어 ठउंड – वाद्य - विशेष ठउल - द्यूत में दाय-भाग ठग - ठग, वञ्चक ठगिय – वंचित, ठगा हुआ ठट्ठार - तात्र, पीतल आदि धातु के बर्तन बनाकर जीविका चलाने वाला, ठठेरा Jain Education International ठलिय – खाली ठवल — क्रीत ठाकुर - ठाकुर ठिक्करिआ— ठीकरी ठेण ---१ स्थासक, गुप्तचर । ३ चोर ठोक्कर - ठाकुर ठोड - १ ज्योतिषी, दैवज्ञ । पुरोहित डंडसिअ – ग्राम- वृक्ष डंडा – कर्दम डक्क डंक-काक डंकिय–दष्ट डंगा - डांग, लाठी - डंडर - ईर्ष्या से होनेवाला कलह डंडरिआ – कर्दम २ वाद्य-विशेष देशी शब्दकोश हस्तबिम्ब । २ -१ युद्ध का कोलाहल डक्कार – लीला-गर्जित डक्खर - युवा, तरुण ▬▬▬▬ - त्रस्त डमडक्किय–डक्का वाद्य का शब्द डमडमिअ- - डमरू का शब्द डर- भय डरिअ – भयभीत डल्लिर - पीने वाला डवडव – ऊंचा मुंह करके वेग से इधर-उधर गमन For Private & Personal Use Only डसरी – १ उष्ण जल । २ स्थाली डहरक - १ वृक्ष-विशेष । २ पुष्पविशेष www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ डावि - मुद्रा, मुद्रिका डाहर – देश- विशेष डाहाल- देश - विशेष डिखाआतंक, त्रास डिंड – फेन डिंडव – जल में पतित डिढअ - जल में गिरना डिमिलवाद्य-विशेष डिल्ली – जल-जन्तु-विशेष डिवअ - वाम हाथ डिविडिक्किय – अलंकृत डुंडुक्का – वाद्यद्य-विशेष डुंग – समूह डुंबडअ –डोम, चांडाल डुंभिय – आन्दोलित डुज्जय – कपड़े का छोटा गट्ठा, वस्त्र खण्ड डुलि –– कच्छप, कछुआ - बलाका डुल्लरयडेंडी डेंडुह — मेंढक डेकुण – मत्कुण, खटमल डेड - डेढ़ डेडुरी - क्रीडा डेड्डुर — ददुर, मेंढक डेर – केकटाक्ष, नीची-ऊंची आंख -कपदिकाओं का आभरण वाला डेविय-प्रीणित डोंबलिय --- चण्डाल-संबंधी डोक्क – कूपतुला डोक्करी – बूढ़ी स्त्री, बुढ़िया डोड्डु – एक मनुष्य-जाति, ब्राह्मण डोड्डि – दुष्टा ब्राह्मणी Jain Education International डोढिणी - ब्राह्मणी डोबरुय – गुरुहारिक, अधिक भार ढोने वाला डोमणिया – डोमिनी डोर — १ सूत्र, धागा । मेखला डोल्लिय – डोली, शिविका डोसिणी – ज्योत्स्ना, चन्द्र प्रकाश डोहंत – गहरा पानी ४७३. ढ ढंकिय – आच्छादित ढंख - १ शुष्क – शुष्क इत्यर्थे देशी २ पुष्प - फलरहित वृक्ष । ३ कौआ ढंखर — पत्र-पुष्प-विहीन शाखा ढंखरय - ढेला ढंढ – दाम्भिक, कपटी ढंढल्लिअ - भ्रान्त ढक्क -ढक्कन ढक्करी – वाद्य- विशेष २ कांची, ढड्डर - राक्षस आदि ढड्डस - साहस, ढाढस ढड्डिय – वाद्य विशेष ढड्डिया - वाद्य- विशेष ढणिय – शब्दित, ध्वनित ढग्गढग्गा - ढग-ढंग की आवाज ढड्ढ – किवाड बंद करने का बाहर साधन For Private & Personal Use Only ढलंत – झुकता हुआ ढलहलय - मृदु, कोमल ढलहलिय -चालित ढलिअ - १ झुका हुआ । २ गिरा हुआ www.jainelibrary.org ४७४ ढस – धस्, गिरने से होने वाली आवाज ढसर - १ भ्रान्ति । २ भ्रान्त वचन ढालण- -नीचे गिराना ढालिअ – नीचे गिराया हुआ ढाव- आग्रह, निर्बन्ध ढिंक --पक्षि विशेष M ढिकण - क्षुद्र जन्तु विशेष, गौ आदि के लगने वाला कीट विशेष ढिकलोआ - पात्र विशेष ढिबायरिय-दांभिक, कपटी ढिबारिय–कपटी, दांभिक ढिड्डिस - पिष्ट ढिल्ल - ढीला, शिथिल ढिविय-उपस्थिति ढुंग - समूह, ढेर ढुंढुल्लण- - खोज ढुक्क – १ उपस्थित । १ मीलित । ३ प्रवृत्त ढुक्कलुक्क – चमड़े से मढ़ा हुआ वाद्य-विशेष ढुक्काढुविक – निकटता से लडना ढुलिय - गिरा हुआ ढेक्कुण – खटमल 1 ढोर - पशु ढोरि - पशु - प्रश्न और उपमासूचक अव्यय णंगअ - रुड, रोका हुआ जंगल – चञ्चु, चोंच णंडिक्क -- व्याध Jain Education International देशी शब्दकोश णक्खन्नण नख काटने और कांटा निकालने का शस्त्र विशेष णग्गठ - निर्गत, बाहर निकला हुआ 1 णग्गुड - नग्न णग्गुडि -- चारण आदिचारणादिवन्दिवर्ग इत्यर्थे देशी णग्गोर -- कर्पूर णढरी - क्षुरिका णलुअ – १ बाड का छिद्र २ कर्दमयुक्त । ३ निमित्त । ४ प्रयोजन णवरि – शीघ्र, जल्दी णसा-नस, नाड़ी णहरण - १ श्वापद पशु । २ नाखून काटने का शस्त्र णाई - समानता का द्योतक अव्यय णाइत – जहाज द्वारा व्यापार करने वाला सौदागर णाइत्तग-सांयात्रिक, सामुद्रिक व्यापारी णाडय – रस्सी, नाड़ा णाणावट्ट - रुपये उधार देने वालों की दूकान (गुज - नाणावट) णामण-नाक में डाला जाने वाला बिन्दु णाममंतक्ख – अपराध, गुनाह णायत्त -- समुद्र मार्ग से व्यापार करने वाला वणिक् णायत्तग– सांयात्रिक, सामुद्रिक व्यापारी णारियर-नारियल णाल- त्रस्त For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ णालि – स्रस्त, गिरा हुआ णित्तल–अनिवृत्त णावइ – उपमा और उत्प्रेक्षा के अर्थ णित्तुलिय - निश्चय में प्रयुक्त अव्यय णिद्धाडिय- निष्काशित गाहल - शबर, भील - अरण्य चाण्डाल इत्यर्थे देशी णिअद्धण-परिधान, पहनने का वस्त्र णिअरण–दण्ड, शिक्षा णिआर - १ ऋजु । २ रिपु । '३ प्रकट णिउड - निमग्न णिउत्त – निमग्न णिउत्तउ-शाल्मली वृक्ष णिउल-गांठ, गठरी णिदणिआ – लोच कराया हुआ णिक्कसरिअ— गलितसार, सार रहित णिक्कुण– गुपचुप णिक्ांत- आरोपित णिक्खाविअ – शान्त, उपशम प्राप्त णिक्खस– निश्चित अवश्य णिक्खम्म निरन्तर णिगमिअ - निवासित AND > णिच्चणिआ--- पानी से धोया हुआ णिच्चोइय- निचोडा हुआ णिच्छडु – निर्दय णिच्छुट्ट- निर्मुक्त, छूटा हुआ णिज्जर – १ जीर्ण । २ खिन्न णिज्जीवय---गोताखोर णिज्ज हग – गवाक्ष णिज्झुण--छुपना ड्डुिरिय – १ भयोत्पादक । २ निष्काशित Jain Education International णिपट्ट- गाढ़ णिवत्तउ – शाल्मली वृक्ष णिप्पणिअ - जल-धौत, पानी से धोया हुआ णिफंस-निर्दय णिबिभट्ट - आक्रान्त णिमिअ-निहित, न्यस्त णिम्मिअ-स्थापित णिम्मीसुअ – १ युवा । २ बिना दाढ़ी-मूंछ वाला णियच्छिय-दृष्ट णिययणी -- रज्जु णिरारिअ - १ निरंतर । २ अतिशय । ३ निरर्थक ४७५ णिरास-नृशंस णिरित्त-नत णिरु - १ निरन्तर । २ निश्चय । ३ अतिशय णिरुत्तिय – निश्चित रूप से णिरोव- आदेश, आज्ञा णिरोविय–अर्पित णिरोसह - घर-रहित णिलाड - ललाट णिलाप - पात्र जिल्लुक्क - निलीन, प्रच्छन्न णिल्लुहण -- परिमार्जन पिल्लरिय - छिन्न णिवली - आघात णिविड्डु – सोकर जागा हुआ णिव्वक्कर- परिहास रहित, सत्य For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org णिव्वरण - दुःख निवेदन णिव्वाइय–प्रसारित णिव्वाणि - विकास णिव्विच्च – विस्तृत कर णिव्विर - चपटा, दबा हुआ णिव्वोलण – क्रोध से होठ मलिन करना णिसा – हल्दी णिसाड - निशाचर, राक्षस णिसायर – कपूर णिस्सीमिअ- निर्वासित — णिहल - कुल णिहव -- सुप्त, सोया हुआ णिहेल - - नील रत्न णिहोडण-निवारक, निषेधक णीअअ - समीचीन, सुन्दर णोरण - घास, चारा णीलुय ----अश्व की एक उत्तम जाति णीसंक- वृष णीसाम - विनाशक णीसावण्ण - समस्त गुज्जिय - बन्द किया हुआ, मुद्रित णेलंछण – नपुंसक णेलच्छिआ – कूपतुला णेवत्थ – वस्त्र णेवत्थण -- उत्तरीय वस्त्र का अञ्चल णेव्व – तीव्र णेसणय – वस्त्र णसर – सूर्य णेसरी - सूर्य णेसु - १ होठ । २ पांव णेहीर- कुंकुम Jain Education International देशी शब्दकोश णो - १ खेद । २ आमन्त्रण । ३ वितर्क । ४ विचित्रता । ५ प्रकोप- इन अर्थों का सूचक अव्यय णोक्ख— अनोखा णोखी-अपूर्वा, अनोखी पहु- निश्चयसूचक अव्यय त तंडय समूह तंती - चिन्ता तंबटंकारि - शेफालिका की लता तंबार – मृत्यु, विनाश तंबालुय-भाजन - विशेष तंबुक्क – वाद्य-विशेष तक्कारि – सारथि तक्कुय - स्वजन वर्ग तक्कोडिण--स्वजन वर्ग तक्खड - उद्यत तच्छिल - तत्पर तट्टवट्ट - आभरण, आभूषण तट्ठय - घृष्ट - घृष्ट शब्दार्थो देशी तडकडिअ - १ अनवस्थित । २ व्याकुल तडयड – क्रियाशील, सदाचारी तडहडिअ - अनवस्थित तडु – १ पिशाच । २ शलभ तणय – 'यह उसका है' इस अर्थ में प्रयुक्त प्रत्यय - तस्येदमित्यर्थे देशी प्रत्ययः तणव - वाद्य - विशेष तत्तिया - तत्परता, चिन्ता For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ तत्तिल - तत्पर तत्तुरिअ— रञ्जित तत्तोहुत्त – तदभिमुख, उसके सामने तप्पणग – जैन मुनि का पात्र विशेष, — तरपणी आलिआ-सत्तुमिश्रित तप्पणाड़ भोजन तभत्ति-शीघ्र तमणी - १ लता । २ व्यधिकरण तमुय – १ जन्मान्ध, जात्यन्ध । २ अत्यन्त अज्ञानी तम्मि – वस्त्र, कपड़ा तम्मिर – खेद करनेवाला तरंडय-नौका तरट्ट - प्रगल्भ समर्थ, चतुर तरट्टा - प्रगल्भा, प्रौढा नायिका तरट्टिया–विदग्ध स्त्रीं तरट्टी – चतुर स्त्री तरिडी– अनुष्ण वायु, शीत पवन तरिया – दूध आदि का सार, मलाई तरु - शीघ्र तलपत्त - योनि । २ वरांग, मस्तक तलप्प-कर-प्रहार तलप्पंत - उछल कर आते हुए तलवट्ट – तलपत्र, आस्तरण- विशेष तलवाहय–तलस्पर्शी गति से तैरना तलहट्टियां--पर्वत का मूल, तलहटी तलारक्ख -नगर रक्षक तंलेर-नगर-रक्षक तल्ल वग- सेवक तल्लवेल्ल – व्याकुलता तल्लुब्वेल्ल – अकुलाहट तल्लू विल्लि – तड़फड़ना Jain Education International तल्लोविल्लि - तड़फड़ाहट, अकुलाहट तल्लोवेल्लि - १ निरंतर पार्श्वपरिवर्तन करना । २ व्याकुलता, तड़फड़ाहट तवंग – ऊपर का भाग, गृहविभागविशेष तव्वन्निग - तृतीय वर्णिक, वानप्रस्थी तसरी - एक प्रकार का रेशम तहल्ली – अपसृति तारुय – कर्णधार तालफली-दासी ताला - तब तिउक्खर -- वाद्य - विशेष तिउडय-१ लौंग । २ मालव देश में प्रसिद्ध धान्य विशेष तिंगआ - पुष्परज तिगिंछा - मकरन्द, पराग तिंगिच्छ – कमलरज, पराग'पद्मरज इत्यर्थे देशी' तिदुइणी–वृक्ष विशेष तिट्ठा - सेवा तिडिक्क–स्फुलिङ्ग तिडिविकय – छींटो से युक्त तिडिपिडंत - तड़फड़ाते हुए । तिड्डिक्क – स्फुलिंग तित्त- आर्द्रा तित्ति – अल्प, थोड़ा तित्तिरिअ— निरन्तर तित्तिल्ल ४७७ - द्वारपाल, प्रतीहार तिमिरिस-वृक्ष विशेष तिमिल - वाद्य-विशेष तिम्मण-आचार, चटनी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४७८ तियाउस – भस्म तिरिडिक्किया— वाद्य-विशेष तिलबट्टी - तिलपपड़ी, खाद्यविशेष तिलमअ-स्नेहिल तिलिम – वाद्य-विशेष तिविडी-सूई तिहासरी-वाद्य विशेष तोरिया – तरकश, तूणीर तीरी – तूणीर तुंड – मुख-मुखशब्दार्थों देशी तुंबाहि- गण्डूपद तुक्खार--- एक उत्तम जाति का अश्व तुडी – शीघ्र तुप्पइअ - घृत से अवलिप्त तुप्पलिअ - घृत से संलिप्त तुप्पविअ - घृत से संलिप्त तुलग्गा ~~ स्वेच्छा, अभीप्सा - तुलाकोडि – नूपुर तुसलो - धान्य विशेष तुहारी–तुम्हारी तूरी - एक प्रकार की मिट्टी तेआलीसा - तयालीस की संख्या तेरसया – जैन मुनियों की एक शाखा तेवण्णा – तिरेपन की संख्या तोंड – मुख तोंतडिल्ल - मिश्रण तोंद – उदर तोखार – अश्व-विशेष तोडर – टोडर, माल्य-विशेष Jain Education International तोडी - चंचु तोमर – मधुमक्खी का छत्ता तोरा – तुम्हारा तोरामदा-- नेत्र का रोग विशेष तोल - १ पिशाच । २ शलभ थंत - स्थित थक्क - स्तब्ध - स्तब्धः स्थित इत्यर्थे देशी देशी शब्दकोश थक्कय - रखा हुआ थक्किअ – १ थका हुआ । २ स्थित थट्ट - १ भीड़ । २ आडम्बर । ३ पंक्ति थड. -१ यूथ, समूह । वन -- घन थडा - समूह थड्ढ-थड्डिम - - गर्व यणुल्लय - बाल स्तन थत्ति – १ स्थान – स्थान इत्यर्थे देशी । २ विश्राम २ पंक्ति । ३ । For Private & Personal Use Only थप्पड - चपेटा थब्भर – अयोध्या नगरी के समीप का एक द्रह थरहरंत – कम्पायमान थरहरण – कम्पन थलहिंगा – मृतक - स्मारक, शव को गाड़कर उस पर किया गया एक प्रकार का चबूतरा थल्लिया - थलिया, छोटा थाल थव- -स्तबक थवक्क – थोक, समूह www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ ४७६ थागत – जहाज के भीतर घुसा हुआ । थोरियगरिल्ल - गोलाई से मोटा पानी और ऊंचा लपेटा हुआ शिरोवस्त्र थाणग- -१ चौकी, पहरा । २ पदार, चौकीदार थामलय - स्थान थाला - धारा थाव- स्थान थावर — दो हलों से बोने जितना खेत थास - पृथु, बडा थाहिअ – आलाप, स्वर- विशेष थिउल्लिया – पुत्तलिका, गुड़िया थिंदिणी-छन्द - विशेष थिप्पमाण - गलित होता हुआ थिप्पिर -विगलित थिरणास–चलचित्त, चंचल थिरण्णेस- अस्थिर थिल्ल – गुप्त थुडुक्किय—मौन, चुप्पी - अश्व – अश्व शब्दार्थ देशी थूणधूथ - घृणा-सूचक अव्यय थेंभ – बिन्दु थेट्ट — गृह, घर थेणिल्लअ थेव - थोड़। थोट्ट - १ टूटे हुए हाथ वाला छिन्न हस्त इत्यर्थे देशी । - अपहृत २ स्थाणु, ठूंठ थोर - १ सुडौल । २ विस्तीर्ण थोरिय – भैंसों की देखभाल करने वाला Jain Education International थोवड - स्थूल द दअर -१ पिशाच । २ ईर्ष्या दंडवण – घृत दंडिक्किअ - अपमानित दंतिक्कग – मांस दंतुल्लि - छोटा दांत दंसण - कवच दडक्क - दहाड़ दडत्ति – १ झटपट, तुरन्त । २ अनुकरणवाची शब्द दडि – वाद्य-विशेष दडिक्क – वाद्य- विशेष दड्ढालि – दव-मार्ग दबक्किय - द्रुतकृत, दुबकना दमदंड - भ्रमर - दम्म-दाम दयावणिय – दयनीय दरमलिअ - आहत, चूर्णित दरवलिअ – उपभुक्त दलवट्टण - १ निर्दलन । २ विनाशक दलवट्टिय– निर्दलित दवक्कडी – वज्रपात दवट्टि – शीघ्र दवत्ति - शीघ्र दवहवस्स - शीघ्रता से दहिय-पक्षि-विशेष दाढा – दाढा - दंष्ट्रा शब्दार्थ देशी वाढियाल – दाढ़ीवाला दाणि–शुल्क, चुंगी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४६० दाव - १ दास । २ गर्दभ -- दाविअ—दर्शित दिक्करिया – कन्या दिरिआ कृत्रिम मृगी दिलंदिलिअ – बालक, शिशु दिसेव-पथिक दीयड – सर्पविशेष जो अष्टमी और चतुर्दशी के अतिरिक्त शेष दिनों में विप रहित होता है दोवड - सर्प विशेष दुक्कह — अरुचिवाला दुक्खित्त – कंपन दुगुंछिय-जुगुप्सित दुग्गुच्छ – भ्रमित दुग्धोट्ट - हाथी दुघोट्ट - हाथी दुच्चवण- दुर्भणित दुट्ठहण - चोर दुणाम - डाकिनी दुद्दोलणा- बार-बार दुहने योग्य गाय दुन्नियस्थ – निंदनीय वेष धारण करने वाला दुप्परिल्ल - दुराकर्ष दुब्बोलिय दुवंचन दुब्भ – भ्रमर दुरिअ – द्रुत, शीघ्र दुवालि - नेटखटपन दुव्वाइय - शुष्क दुव्विवरेरय - जो कठिनता से मोड़ा जाए दुसुरुल्लय – गले का आभूषण- विशेष Jain Education International देशी शब्दकोश दुहरीण - खिग्न - खिन्नार्थं देशी दूयडिया – दूतिका ट्र्याकार – कला - विशेष दुष्कर दूसंथवय वॅट - वृन्त देक्खालिअ - दिखाया हुआ देखण - प्रेक्षण देवरिअ – पुत्रोत्सव पर बजाया जाने वाला तूर्य देसिय- पथिक, प्रवासी देसियाली - देशाटन देहलिय – मर्यादा दोग्घट्ट – हाथी दोच्छिय – तिरस्कृत दोडि – सायंकालीन भोजन दोबुर - स्वर्ग-गायक, तुम्बुरु दोरी-छोटी रस्सी दोसारअण – चन्द्रमा दोसिय – वस्त्र का व्यापारी ध धगधगंत – धगधगायमान धग्गीकय - जलाया हुआ धड-धड़ धडहडिअ— गर्जना, गर्जारव धडि – कुण्डल धणि तृप्ति धन्नाउसदाण-आशीर्वचन धम - विलास धष- तृप्ति धवक्क–धौंकना धवक्कय -- समूह धवक्किय - धड़का हुआ, भय से For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ व्याकुल बना हुआ धसक्क - हृदय की घबराहट की आवाज धसक्किय-अत्यन्त घबराया हुआ धाडय- डाका डालने वाला ( राज) धाडेती धारायर - निशाचर धाह – आक्रोश, क्रन्दन ( मराठी-धाय) धाहाविय-शोकयुक्त धाहिय – पलायित, भागा हुआ धिज्जाइय– ब्राह्मण धिरत्थु – धिक्कार है धिसि धिसि - धिक्-धिक् धोया - पुत्री (पंजाबी - धी) ध्रुअराय – भ्रमर, भौंरा धुंधुमारि – १ कोलाहल । २ धूल-धक्कड धुक्कोडिअ - संशय धुक्कोडिया – शंका धुड़की- मौन धुत्तीरय-धतूरे का पौधा धुत्तीरिअ - धतूरे के पान से ग्रस्त धुम्मुक्क – वाद्य-विशेष ध्रुवगाय – भ्रमर धुहअ – पुरस्कृत, आगे किया हुआ धूमद्धमअहिसोअ- कृत्तिका नक्षत्र धूमवत्ति- सुगंधित पानी धूलिहडी – पर्व - विशेष धोरण- वाहन धोरणी- पंक्ति धोवी - धोबी, रजक Jain Education International प पइ – 'तुमने' अर्थ का द्योतक अव्यय पइअ— विस्तीर्ण पइद - प्रवृत्त पइसइ – कोमल पओलि – मार्ग ४८१ पओलिय – पक्व पंगुत्त - १ ढका हुआ - प्रावृत्त इत्यर्थे देशी । २ प्रावरण पंगुरण – प्रावरण पंगुरुण – प्रावरणप्रावरण इत्यर्थे देशी पंचरिअ - जहाज का कर्मचारीविशेष पंचावण्णा–पचपन की संख्या पंचेडिम–विनाशित पंजिअ— यथेच्छ दान, मुंह मांगा दान पंजोहार – धान्यादि प्रदेश पंडरंगु- - ग्राम का अधिपति पंडार – ग्वाला पंभल – सुन्दर अक्षि-लोम वाला पकोक्किय– आहूत, बुलाया हुआ आहूत इत्यर्थे देशी पक्कड्डिअ - प्रस्फुरित पक्कण – १ अति शोभावान् । २ भग्न । ३ श्लक्ष्ण पक्खखारिय- सन्नद्ध पक्खुलिया— दासी पक्खोडिय–कम्पित पगल-पग, पांव पग्गल - पागल पच्चल - प्रचुर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४५२ पच्चार-उपालम्भ पच्चारिअ --उपालंभ प्राप्त पच्चालिय-प्लावित पच्चा वेणिअ –सन्मुख आगत पच्चुअ - दीर्घ पच्चुच्छाहण--मंदिरा, सुश पच्चुडरिअ – प्रत्युद्गत पच्चोल्लिड – प्रत्युत पच्छल – पश्चात् पझामुर – वृद्ध पट्ट-वस्त्र पड - ग्राम की सीमा का स्थान पडअसाइमा - भील के सिर पर पहनी जाने वाली पत्रपुटी पडंसुआ— प्रतिध्वनि पडंसुगा--मौर्वी, धनुष्य की डोरी पडड्डाली – क्रीडा पडमा - तंबू पडहच्छ -१ समूह । २ प्रतिपूर्ण पडहत्य - प्रतिपूर्ण पडार — चोरों का समूह पडिअ - १ मंगलपाठक । २ आचार्य पडिउंचण–प्रतिकार पडिक्किआ - प्रतिकृति पडिज्झय - विसर्जक पडिपल्लिल - पूजनीय पडिरिग्गअ – भग्न पडिसिद्धि – प्रतिस्पर्धा पडिसोत्त- प्रतिकूल पडिहस्थिय - परिपूर्ण पडुज्जइणी-युवती, तरुणी पडोल्लिय – अध्यन्त आक्रुष्ट Br Jain Education International पडु - बायां हाथ पडल्ल - निर्धन देशी शब्दकोश पढुक्क – प्रवृत्त - प्रवृत्त इत्यर्थे देशी पत्तण्णी - रथ्या पत्तल -१ पतला, कृश, छोटायवीयस इत्यर्थे देशी । २ सुन्दर पत्तलि -- पत्तों का बना भाजन पत्तलिया – दुबली - कृशा इत्यर्थे देशी पत्तुट्ठ - प्रवीण पत्थण- मोटा वस्त्र पत्थर - मौर्वी, प्रत्यंचा पत्थरी - १ बिछौना । २ समूह पत्थी – पात्र, भाजन पत्थेवाअ - पाथेय पथिप्पिर -गलता हुआ पबोल्लिअ – प्रकथित, कहा हुआ पमय-मर्कट पम्हलिअ-धवलित, सफेद किया हुआ पहुट्ठ - १ प्रमुषित । २ प्रमृष्ट परइ - प्रभात परट्ट - १ भीत । २ पतित । ३ पीडित परभत्त - १ भीरु । २ निष्पीड परय – १ प्रभात । २ आने वाला दिन परवाली - पर स्त्री परिअंभअ – कर्मकृत् परिअट्टविअ - परिच्छिन्न परिअट्टिअ - प्रकटित, व्यक्त परिअड्डिअ - प्रकटित For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ परिअम्मिअ - अलंकृत परिअल - थाल परिआल - परिवृत परिआली–भोजन-पात्र — परिओस - विद्वेष विशेष परिक्खाइअअ - परिक्षीण परिचड्डण - १ परिमर्दक । २ परिमर्दन परिचड्डिय - १ आस्वादित । २ आरूढ परिचुक्किय - परिभ्रष्ट- परिभ्रष्ट इत्यर्थे देशी परिच्चड – उत्क्षिप्त परिछंडिय– परित्यक्त परिणडिअ-वंचित परिमोक्कल - स्वैर, स्वच्छन्द परियंदणय - लोरी परियल – थाली परिसक्किर – चलित परिहाइअ --- परिक्षीण पलहिअअ - मूर्ख, पाषाण हृदय पलिहइ–क्षेत्र, खेत पल्लक - लम्पट पल्लट्टिय-परिवर्तित पल्लिअ – १ आक्रान्त । २ ग्रस्त । ३ प्रेरित पहिलत्त – पर्यस्त पल्लीवण – चोरों की पल्ली पल्हस्थ – पर्यस्त पवट्ठ - दक्ष पवत्तिया–संन्यासी का एक उपकरण पविग्ध - विस्मृत Jain Education International पविसट्ट - विकसित पववंचलक्क – अशक्त पसव – नकुल – नकुल इत्यर्थे देशी पसविय – नकुल – नकुल इत्यर्थे देशी पसाइमा – भील के सिर पर पर्णपुटी पसुल-जार पहिल – पहला, प्रथम पहिल्लय - प्रथम, पहला पहुत्त – प्राप्त पहुल्ल प्रभूत पाइक्क – पदाति पाउरण - कवच, वर्म पाउल - १ प्रसन्न स्त्रियों का समूह । २ याचक पाउहारी - भातपानी लाने वाली पाडय -उपनगर पाडहुअ— साक्षी, प्रतिभू पाडहुक–प्रतिभू, मनौतिया पाडिग्गह-विश्राम पाडिहेर - प्रातिहार्य पाडी — भैंस की बछिया पाडुअ— प्रिय, पंडा पाडोस – पडोस पाडोसिअ – पडोसी पाढा - शोभा — पाणट्ठी – रथ्या पाणाअ - दोनों हाथों का आघात पादुग्ग-सभ्य पामर - किसान पाम्मि–पाणि, हाथ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४८४ पायमूल -नतंक की जाति विशेष पारक्कय – शत्रु पारग्गह-युद्ध पारत्ति- कुसुम-विशेष पारद्धिय-व्याध, शिकारी – व्याघ इत्यर्थे देशी पारमर - राक्षस पाराउट्ठय--वृक्ष - विशेष पालखी - शिविका, पालकी पालिद्धय - बांस से वेष्टित पताका पावय - वाद्य-विशेष पासण्ण- १ घर का द्वार । २ तिरछा पालित्तिअ – १ राजधानी । २ मूल पिहुण– पिच्छी नीवी । ३ भण्डार । ४ भंगी, प्रकार पासुय- शुद्ध प्रासुक पाहड - परिपूर्ण पाहिआवडा-- ललना, स्त्री पाहुण-~-अतिथि (पाहुण- मराठी, राज ) पिउच्चा - सखी पिउच्छा-सखी पिउसिआ - पिता की बहिन पिंजर - १ हंस । २ वृष पिंजल- प्रमाण पिंजुरुअ-भारंड पक्षी पिंडरव - तैल आदि बेचने व्यापारी पिंडवास- सेवक पिच्छल्ल – लज्जा पिडय- आविग्न Jain Education International पिडिल्लिक – क्रूर पिड्डइअ - प्रशान्त पिप्पिया - दन्त मैल पियलि-तिलक पियल्लिया- प्रिया पिल्लि -यान-विशेष वाला पिल्लुग–छींक पिसक्क – पिशाच-पिशाच इत्यर्थे देशी देशी शब्दकोश पीईय- वृक्ष-विशेष, गुल्म का एक प्रकार पीढी–काष्ठ- विशेष पोलु – हस्ति- शावक पुअइ - चांडाल पुइअ— चांडाल पु खणग– चुमाना, विवाह में होने वाली एक रीति (पोंखणुं - गुज) पुं॰गल श्रेष्ठ, उत्तम पुंजय – कतवार (पुंजो-गुज) पुंडरिआ - उत्कलिका पुंडरीय - जल व्याघ्र पुंभ - नीरस, दाडिम का छिलका पुंसुल - विसंवाद पुग्ग-वाद्य-विशेष पुट्टल - गठरी, पोटली पुट्टलय-गट्ठर, पोटली पुत्तर — योनि पुष्फस – फेफड़ा पुष्फी - पिता की बहिन, फूफी पुर – प्रचुर पुरिअ - देस्य, दानव For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ पुप्फुआ- करीष की अग्नि पुलंधअ— भ्रमर, भ्रमरा पुल्लि - शबरजाति विशेष-शबरजातिविशेषे देशी पुथ्वंग – मुण्डित पुसिय - मार्जित - मार्जित इत्यर्थे देशी पूण- गवत पूल - - ढेर, पुञ्ज पेंड इय– पिंडित पेक्किअ - बैल की आवाज - पेज्जलिअ - संघटित पेद्र – पेट पोरत्थ-ईर्ष्यालु पोरवग्ग - विश्राम पोली – दरवाजा, पोल पेदंड – लुप्त दण्डक, जुए में जो हार पोल्लर - तप- विशेष गया हो पेलव – मादंव पेल्लावेल्लि – संभ्रम पेल्ल । वोल्लि – इधर से उधर और उधर से इधर खींचना पेसणआली - दूती, दूतकर्म करने वाली स्त्री पेहुणय- पिच्छ– पिच्छशब्दार्थे देशी पोअग्ग-निर्भय पोइअ - इन्द्रगोप पोंग – पाक, पोक्का-पुकार, चिल्लाहट पकना पोक्किय चिल्लाहट पोट - उदर पोट्ट - गठरी पोट्टरिय - - - पिण्डी पोट्टलय -- पोटली, गठरीग्रन्थिशब्दार्थ देशी Jain Education International पोट्टलिक - नौली आदि साधन पोट्टि - उदर पेशी पोट्टुल्ल – पेट पोत्त – वस्त्र पोष्फली – सुपारी का वृक्ष पोमाइय - १ प्रशंसित । २ अवलोकित पोमाइयय-प्रशंसित पोमासणु -- पद्मासन पोमिणी- – कमल का सरोवर फंफाव – बंदि - विशेष फंफावय-- बंदी, चारण-- बंदिचारणादय इत्यर्थे देशी फडस - खंड ४८५ फर - काष्ठ का पट्ट फरअ - १ काष्ठ-पट्ट । २ शस्त्रविशेष फरक्किद – फरका हुआ, हिला हुआ फरहत्थ-~फहराता हुआ फलस - कार्पास फार - - प्रचुर - प्रचुर इत्यर्थे देशी फारक्क १ स्फारक अस्त्र । २ स्फारक अस्त्र को धारण करने वाला । ३ ध्वज फारक्किय–स्फारक अस्त्र को धारण करने वाला फिफर - कठूमर, फल-विशेष For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४८६ फिक्कार–फेत्कार, सर्प की फूंकार फिट्टा -- मार्ग, रास्ता फिरक्क - भार ढोने वाली गाड़ी फिरिक्का — गाड़ी फिल्लुस - फिसलना फोणिया – एक प्रकार की मिठाई फुंका – फूंक, मुंह से हवा निकालना -स्पष्ट फुन्न – छिपा हुआ फुल्लंधअ – भ्रमर फुल्लुद्धय -भ्रमर फेंद - नर्तक फेडावणिय – विवाह-समय की एक रीति, वधू को प्रथम बार लज्जापरिहार के वक्त दिया जाता उपहार फेफस – फेफड़ा फेरण- फेरना, घुमाना फेरिअ - घुमाया हुआ फेला – जूठन, उच्छिष्ट फेलिय – उच्छिष्ट धान्य फोणिया – एक प्रकार की मिठाई बंकड---बकरा बंडि — १ अपहृत स्त्री । २ कैदी बंद - कैदी, कारा-बद्ध मनुष्य बंदिण–बन्दी बंदिर – समुद्रवाणिज्य- प्रधान नगर, बंदरगाह बंबुल – बबूल का वृक्ष बंहल – आवेश बग्गड - देश - विशेष बट्टाउ – बटोही, पथिक Jain Education International बड --- महान् बड़हिला – धुरा के मूल में दी जाती कील बत्तीस - बत्तीस बप्प- -१ पुत्र का सम्बोधन- शब्द । २ मूर्ख बप्पडय– बेचारा बप्पही- चातक बप्पीहय--चातक बबूल ~~ बबूल वृक्ष बब्बरिया – चेटी देशी शब्दकोश बब्भासा - नदी - भेद, वह नदी जिसके पानी में धान्य बोया जाता है बम्हहर -कमल बम्हाणी - गोधा बम्हाल – अपस्मार, वायु रोग विशेष बम्ही – वाणी . बलय – बैल बलहट्ट्या - चने की रोटी बलायण- •१ उद्यान आदि में मनुष्यों के बैठने के लिए बनाया जाता स्थान । २ द्वार, दरवाजा बलिआ - सूर्प, अन्न को तुषादि रहित करने का एक उपकरण बलिद्द – वृषभ, बैल बलिमड्डा - बलात्कार बलिवंडा – बलात्कार बलीमुह – वानर, बंदर बहिअ - मथित, विलोडित बहिणुल्ली-छोटी बहिन बहिहुत्त -- बहिर्मुख बहुजाण – १ चोर । २ धूतं बहुधारिणी - नववधू For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ बहुरा - सियारिन बहुराण - असिधारा बहुली – माया, कपट बहुल्लिआ – बड़े भाई की स्त्री बहुल्ली – क्रीडोचित शालभञ्जिका, खेलने की पुतली बाअ -- बाल, शिशु बाइगा-माता बाइया - मां, माता बाउल्लय - १ भित्तिचित्र । २ खिलौना । ३ गुड़िया बाउल्लया-पञ्चालिका, पुतली बापीकी - पैतृकी बारह - द्वादश, बारह बालालुंबी- तिरस्कार बाल्ल- बोल बाहिरि-बाहर बाहुडिय–लज्जित, भयभीत बोयत्तिय - १ बीज बोने वाला । २ पिता बुंध - मूल बुंबा-चिल्लाहट, पुकार बुवकार - बूत्कार, पुकार बुक्कावण – मुष्टि प्रक्षेप बुडिर--- महिष, भैंसा बुड्ढ-बुढा बुर – बुरादा, काठ का चूरा बुल–बोड, धार्मिक बुलबुल - बुलबुला बुलुबुल - बुद्बुद बुल्लाविय–कथित -बूढा बढउ Jain Education International बूल – मूक, वागशक्ति से शून्य बूहक्क – चिल्लाहट बे - दो बेट्टिका—बेटी, राजकन्या बेडय - नौका, जहाज बेडिया नौका, जहाज बेडी --- नौका, जहाज बेण्णि-दो बेल्ल-बैल बेल्लग - बलीवर्द, बैल बोगुवारिय-विभूषित बोज्झ – भार बोट्ट - जूठा करना, उच्छिष्ट बोलण- डूबना बोलिंदी - लिपि- विशेष, ब्राह्मीलिपि का एक प्रकार बोलिय - व्याप्त Co बोलोण -- व्यतिक्रान्त बोल्ल - कोलाहल ww बोल्लाविअ - १ बुलाया हुआ । २ भाषित, उक्त बोल्लिअ – कथित बोहित्थिय - नौका-स्थित भइल – भया, जात ( ? ) भंगोठण– व्रणित, व्रणयुक्त भंभेरी-वाद्य विशेष भंवरि - विवाह में फेरे देना भंहलअ – मूर्ख भगुंडिय- उद्धूलित भग्गलअ - अप्रिय भच्च -- भागिनेय, भानजा ४८७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४८८ भडक्क — आडंबर, ठाठबाट भडभेडी - - दास दासी भडारी – भट्टारिका भडित्त - पका हुआ भडिल – संबोधनसूचक शब्द भत्थ - तूणीर, तरकस भट्ठलय - चूहा भप्पर – भस्म - भस्म इत्यर्थे देशी भमरटेंटा – १ भ्रमर की तरह अक्षिगोलक वाली । २ भ्रमरवत् अस्थिर आचरण वाली । ३ शुष्क व्रण के धब्बे वाली भम्म – सुवर्ण भरवसय - भरोसा भलहुल्ल - भौंकने वाला, कुत्ता भलावण – दायित्व देना भलिम – भलाई भल्ल - भद्र, भला भल्लार --अधिक भद्र, भद्रतर भल्लारय - शुभ, उत्तम भल्लोड – शर का अग्रभाग भसआ - शृगाली भसत्त भसल -१ अग्नि । २ दीप्त - भौरे का शब्द - भृंगशब्दार्थ देशी भाउल - भ्रम से आकुल भाण–म्लेच्छ जाति विशेष भाणवी -- शनिश्चर भाल्ल -मदन- वेदना, काम-पीड़ा भावई-गृहिणी भावुक — वयस्क, मित्र भिउड –– शरीर का अवयव विशेष ... Jain Education International देशी शब्दकोश भिटिया-भंटा का गाछ भिभल – विह्वल मिट्टण-भेंट, उपहार भिट्टा - भेंट, उपहार भिडंत - युद्ध भिडण – लड़ाई, मुठभेड़ भिडिअ—आक्रान्त भिडिय - जिसने मुठभेड़ की हो वह, लड़ा हुआ भिलिंगु – धान्य- विशेष, मसूर भिल्ल - भील - शबरजातिविशेषे देशी भिसया - आसन-विशेष भोड - मिलना, सटना भोडिअ - जिसने मुठभेड़ की हो वह भीतर- दरवाजा भोयर - भयंकर भोसावण - भीषण भुंगल – वाद्य-विशेष भुंभुरभोलय – अत्यन्त भोला भुंभुरभोलिया–अत्यंत भोली भुत्थल्ल - बिल्ली को फेंका जाता भोजन- विशेष भुरकंडिय-लम्पट भुरुट्ट-कंटीला पौधा, भरूंट TE भुल्ल - भूला हुआ भुल्लय[ - भ्रान्त - भ्रान्त इत्यर्थे देशी भुसुंढि – शस्त्र - विशेष भूमणया-- स्थगन, आच्छादन भूहरी -- तिलक- विशेष भेक्खस – १ राक्षस, भयदाता । २ राक्षस का प्रतिपक्षी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट १. भेखस-राक्षस भेज्जल्ल – भीरु, डरपोक मेड चित्त - भीरुचित्त, कायर मेल – अतिवृद्ध भोट्टणभूतक भोल – १ भद्र, सरल चित्तवाला । २ मूढ भोलवणा - वञ्चना, प्रतारण भोलविय-वञ्चित, ठमा हुआ महअ - विस्तीर्ण मइयवट्ट - विनाशक, मर्दक मइलण मलिनीकरण मइलपुती- पुष्पवती, रजस्वला मइल्ल ~ मलिन महब्वण - क्षेत्रपाल मंकण बंदर मंकुस – नेवला मंगि – स्त्री मंजर - मार्जार मंजीरय - पैर का आभूषण- विशेष मंट - १ मूक । २ आलसी । ३ बौना मंटिय-बौना मंठ - १ ऊंचा नीचा । २ मंद । ३ मृष्ट मंठुवयंठ - समीपस्थ प्रदेश मंड - बलात्कार मंडय - चपाती, मांडा मंडल काक मंडिअ - १ रचित, बनाया हुआ । २ बिछाया हुआ । ३ आगे धरा Jain Education International हुआ । ४ आरब्ध मंतक्खर'-लज्जा. मंदीरय – मंथानक मंभोस- अभय देना मक्खण – नवनीत मडक्क – १ गर्व । २ मटका मडक्किया-छोटा मटका मडप्पर - गर्व, अभिमान मडहिब-अल्पीकृत, न्यून किया हुआ मडहुल्ल – लघु महु - अलस मडुल्ल - गर्वित मढिगा- कुटीर मदोली- दूती मद्द - बलात्कार मद्दणसलामा - सारिका, मैना मन - निषेधार्थक अव्यय, मत, नहीं मन्नुसिय – उद्विग्न मप्प - माप, बाट मप्पा - आज्ञा ४५६ मभक्खर - सुरा मम्भोसिय– डरो मत- ऐसा अभय वचन मम्मक्क १ गर्व । २ उत्कंठा मम्मण - अव्यक्त वचन मम्मोस - अभय वचन मयण -१ मैना, सारिका । २ मोम सिक्थ मयहरिगा - वेश्यामाता मयासि – देव मरजीब – मोती के लिए समुद्र में कोता लगाने वाला For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४६० मरजीवय–समुद्र के भीतर उतर कर जो वस्तु निकालने का काम करता है वह मरट्टा – उत्कर्ष मरट्टिय-गवित मरह - गर्व मरिअ - १ टूटा हुआ, त्रुटित । २ विस्तीर्ण मरुकुंद – मरुआ, मरुवे का गाछ मलइअ - १ हत । २ तीक्ष्ण । मलहड – १ तुमुल ध्वनि २ गर्जित । ३ शोक मलहल – कलकल, कोलाहल मलिय – मदित मल्हंत — मौन करता हुआ मल्हूण - भदयुक्त महइ- १ श्मशान । २ इच्छा महण–पूजक महत्पुर- प्रभाव, माहात्म्य महल्लिया — अंतःपुर की महत्तरिका महाइय – १ महात्मा । २ महद्धिक महारअण- वस्त्र महारुंद - परिपूर्ण - पूर्ण इत्यर्थे देशी महिअदुअ - घी का किट्ट महिड कर्दम माअली ~ मृदु माइय–समाविष्ट, समाया हुआ माउच्चा– सखी माउसिआ–फूफी मांड - मंडी, कलप माडा-समकाल Jain Education International घठितो जिरह इति टीकायाम् माण–परिमाण-विशेष, माप माभोस – अभय वचन माम – १ आमन्त्रण सूचक अव्यय । २ मामा । ३ श्वसुर मामि – आधा मायइ – वृक्ष-विशेष मायव्हिया - मृगतृष्णा मायबप्प - माता-पिता मारिव - गौरव माला - डाकिनी देशी शब्दकोश रामदासदस सेर का माहुंडल – सर्प विशेष मिअ – १ अलंकृत । २ विघटित मिंढ – हस्तिपालक, महावत मिढय - मेष, भेड़- मेषशब्दार्थ देशी मिढी – मेषी, मेढी - मेषस्त्री इत्यर्थे देशी मिरिक्क – मत्सरी मिलाअ - बलात्कार मिल्लिय – मुक्त, रहित मिसिमिसिय– उद्दीप्त, उत्तेजित मोण - सिक्थ, मोम मुअग्ग- आत्मा बाह्य और अभ्यन्तर पुद्गलों से निर्मित है - ऐसा मिथ्या ज्ञान मुंकुरुड – राशि, ढेर मुंगुरुड – राशि, ढेर माढी–कवच - 'माढी सन्नाहिका इति देशीसारः, देश्यां लौहाङ्गुलीय- । मुकुंडी - जूडा For Private & Personal Use Only मुंट – हीन शरीर वाला मुंडिय - अश्वशाला के दोनों ओर गाडा जाने वाला काष्ठद्वय www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ मुक्कोट्ठिय–उद्वेष्टित मुग्गरय - मुग्धा के साथ रमण मुग्गुअन्यौला, नकुल मुचमुंड-जूडा मुट्टिम - गर्व मुद्द ग – १ उत्सव । २ सम्मान मुद्धड - १ उद्धत । २ अकुटिल, प्रांजल मुद्धयंद- पूर्णिमा में उदय काल का भास्वर चांद मुम्मिअ – शीलित मुयंगलिया - चींटी मुरुअ – त्रुटित मुरुंडी — शृगाली मुरुक्क – मुडा हुआ मुरुविक – पक्वान्न विशेष मुल्लिअ - शीलित मुसमूरण-भंजन, दलन मुसल–मांसल, पुष्ट मुसुमूरण-भंजन, दलन मुसुमूरविअ - भंगाया हुआ मुसुमूरिअ – भांगा हुआ मुहला – कोलाहल मुहुल – बन्दी मअल्लिअ – मूक बना हुआ मूरविअ तापित मेइणी- -चंडालिनी मेंढअ – मेष, मेंढा मेक्ख--पास का खेत आदि मेट्ठ महावत मेठिअ— गृह, घर मेडय-मंजिल, तला Jain Education International मेमण --में में शब्द करना मेम्मायंत – अनुकरणवाची शब्द मेर --मर्यादा, सीमा मेरय -मर्यादा मेलय - समूह मेलावक्क - संगम मेल्लअ - मोचक मेल्लाविय—मोचित मेल्लिय – मुक्त – मुक्त इत्यर्थे देशी मेहरि - काष्ठ-कीट, घुण मेहरिया - मेहरी, गाने वाली स्त्री मेहलिया – भार्या मेहली- भार्या मोइल – मत्स्य विशेष मोकल्लिअ-मोचित मोक्कलिय – मुक्त, मोचित मोक्कल्ल — भेजना मोट्टाइय - रति क्रीडा, मैथुन मोट्टाविय - बलात्कारपूर्वक रति क्रीडा मोट्टिम - बलात्कार मोट्टिया – मोटी स्त्री मोट्टियार-मोटे आकार वाला मोडी -भगिनी ४६१ मोड्डिय – भग्न मोणावणा–प्रथम प्रसूति के समय पिता की ओर से किया जाता उत्सवपूर्वक निमन्त्रण मोरअ - अपामार्ग मोरह - अपामार्ग मोरुल्ल – मयूर मोलग – बांधने के लिए गाडा हुआ खूंटा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४६२ रउताणिया - रोग विशेष, खुजली रंकुय-क्षुद्रप्राणी । रंखोलिय–कम्पित रंडत्तण-रंडापा रंडिय- विधवा बनी हुई रंति – काम-क्रीडा रंपण - तनूकरण, पतला करना रंफण - पतला करना, तनूकरण रंभडिआ- गोधा, छिपकली रक्खणिया – रखी हुई स्त्री, रखेलिन रक्खवाल -रखवाला, रक्षक रगिल्ल - अभिलषित रच्चण १ अनुराग । २ अनुराग करने वाला रच्चिर - राचने वाला रज्जु -- लेखक, लिखने का काम करने वाला रज्जुसभा-शुल्कगृह रडि — आक्रन्दन रड - खिसक कर गिरा हुआ रणझणंत - घंटों की झंकार रमण - नितम्ब रलिया-अभिलाषा रल्लि – लम्बा मधुर शब्द रवण्ण - रमणीय - रमणीय इत्यर्थे देशी रव्वरिअ – दूत रसमस -- मिसमिसाना रसोई – रसोई रसोयणी - रसोई बनाने वाली रहण - १ स्थिति । २ त्याग । Jain Education International ३ विरति, विराम रहमान - १ यवन मत का एक तत्त्ववेत्ता । २ खुदा, अल्ला रहल्लि - तरङ्ग रहसोयर– उत्तेजक रहाविअ – स्थापित रहिय – १ आच्छादित । २ रहा हुआ राअल्ल – तृण धान्य, प्रियंगु राढाल–अतिविभूषाप्रिय —( राण - दान रायंबुय- -शरभ रारडंत - चिल्लाहट देशी शब्दकोष रावण- रंजक, रंगनेवाला रावणहत्थ – वाद्य-विशेष राहा--शोभा रिअ - लून, काटा हुआ रिंगिर – भ्रमणशील रिंगिसिया-वाद्य-विशेष रिंछ - तोता रिछोलीरिह - रेखा रोडण–अलंकरण रोण - १ दीन । २ क्लिष्ट । ३ श्रांत - श्रान्त इत्यर्थे देशी -परम्परा रीरिअ - शोभित रुजिय - शब्द, गर्जना रुटण - आवाज रुटिर - भौंरे का गुनगुनाना रुदिम - लम्बाई, विस्तार रुंदी – विस्तीर्णता, लम्बाई रुप – १ त्वचा । २ उल्लिखन रुक्ख - वृक्ष ( रूंख - राज ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ रुज्झिअ - रोका हुआ रुट्टिया - रोटी रुणरुण-करुण क्रन्दन रुणुरुणिय – करुण क्रन्दन करने वाला रुमिल्ल – अभिलषित रुअरूड्आ - उत्कण्ठा रूई – अर्कद्रुम, रूई रूविय – अर्कवृक्ष रेक्किअ- आक्षिप्त रेल्ल - चालन रेल्ल विय-प्लावित रेल्लि - प्रवाह रेल्लिय स्रोत, प्रवाह रेवंगि – अस्त्र - विशेष रेहा – शोभा रोक्क – रोकड, जमा रोक्कअ-प्रेक्षित रोझ — रोभ, नील गाय रोप्पल – गवाक्ष, झरोखा रोयर– रुचिकर शेरव – दारिद्र्य रोरसणिय – गांव के दरिद्र लोग रोल – दरिद्र रोव-पौधा रोह – इच्छा, मति रोहिआ – व्रणित व्यक्ति की शिविका ल लअण १ तनु । २ कोमल लइ - १ अच्छा, ठीक । २ शीघ्र । ३ आज्ञा । ४ अतिशयवाचक अव्यय । ५ वाक्यालंकार में Jain Education International प्रयुक्त अव्यय लइणा - लता लंगिम – १ जवानी । २ ताजापन, नवीनता लंजि - प्रदेश लंजिया – १ दासी - दासी शब्दार्थ देशी । २ लंगड़ लंडुअ-- उत्क्षिप्त लंबुसय - एक प्रकार का आभरण लक्कड - काष्ठ लक्खणा - सारसी, मादा सारस लक्खिअ - विघटित लग – निकट लगड — गधों पर रखा जाने वाला उपकरण-1 - विशेष लगुण – लगन, इच्छा लट्ठरी - सुंदर लडहा – विलासवती स्त्री लड्डिय - लाड, प्यार लद्दण - भार-क्षेप, लादना लद्दी - हाथी आदि की विष्ठा लम्मिक्क – चोर लयअ-लिया ललललिय – चञ्चल - चंचल इत्यर्थे देशी ललाविय--प्रसारित लल्ल - अस्पष्ट भाषी-अस्पष्टभाषी इत्यर्थे देशी लल्लक - रौद्र - रौद्र इत्यर्थे देशी लवअ-सुप्त लवव--सुप्त लसअ - तरु क्षीर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४६४ लहग - बासी अन्न में पैदा होने वाला द्वीन्द्रिय कीट- विशेष लहरी - १ तरंग । २ प्रवाह लाग– चुंगी, लगान लाड — वस्त्र विशेष लाणि - १ मर्यादा । २ अन्त लावणा - भोजन जो उपहाररूप में घर-घर भेजा जाता है लासअविम्हअ - मयूर लाहिल्ल – लम्पट लिंबोहली- निम्ब फल लिज्जिअ - गृहीत लिल – यज्ञ लिल्लिर – १ हरा । २ हरे रंगवाला लिल्लिरय – वस्त्र खण्ड लिहअ – सुप्त लोह - रेखा लुवक - सुप्त लुक्किअ - १ टूटा हुआ । २ छिपा हुआ लुच्छी – बाल, कुंतल लुट्ट - लूटा गया लुणालुणि — वह क्रीडा जिसमें परस्पर पेंतरे बदले जाते हैं लुलिअ – लेटा हुआ लुल्लक्क – यमदूत लुहण - शुद्धि, मार्जन लूड — लूटनेवाला लूडण – लूट, चोरी लूरिअ— काटा हुआ, छिन्न ▬▬ लूह – रुक्ष लेवि - पक्षी लेसुरुडयतरु– लसोड़ा, गूंदा Jain Education International लेहाल - लम्पट लोअग-गुण-रहित अन्न, खराब अनाज लोट्ट – १ अति आसक्त । २ स्मृत लोट्ठ – स्मृत लोडाविअ – घुमाया हुआ लोण लोर - १ नेत्र । २ आंसू लोहल – शब्द - घृत देशी शब्दकोश द-विशेष, अव्यक्त शब्द ल्हसण - खिसकना, स्रंसन ल्हसिअ - १ हर्षित । २ स्रस्त, खिसका हुआ लिहक्कविअ - छिपाया हुआ व वअणीअ - १ उन्मत्त । २ दुःशील वअल - १ कलकल । २ वट वृक्ष वइ --१ बदि, कृष्ण पक्ष । २ मर्यादा वइरिक्क - विजन, एकान्त वइसणय-आसन-विशेष वडवलअ-विषरहित सर्प वंजर – मार्जार वंडइअ - पीडित वंदणिया— शौचगृह वक्क – पिष्ट, पिसान वक्खल -आच्छादित वक्खलिअ – पुरस्कृत वग्धसिअ - युद्ध वच्छीत - नापित For Private & Personal Use Only वच्छीपुत्त - नाई वच्छुद्धलिय– प्रत्युद्धत वच्छोमी – काव्य की एक रीति वज्जघट्टिता - मंदभाग्य स्त्री वज्जिर - बजने वाला www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ घट्टइ – निश्चित बट्टउ - कटोरी वट्टमग–मार्ग बट्टाविअ - समापित घट्टु – पात्र - विशेष वटुत्तिविडि–बर्तनों या घड़ों को एक पर एक चिनना (वडेरराजस्थानी ) वडप्फर--बड़ा फलक वडलसर-जपवान् वडिणाय - घर्घर कण्ठ वडिया – उद्देश वडिसाअ - टपका हुआ वडुमग – मार्ग, रास्ता वड्डइअ - चर्मकार वड्डारय - महत्तर वड्डिम – १ टपका हुआ । २ बड़ाई, श्लाघा वांडुल – बड़ा, महान् वड्डुअ - बड़ा वड्डुल–बढ़ा बड्डया-वाटिका चड्ढारय – बड़ा वड्ढुअर - बृहत्तर वढ - १ मूक । २ मूढ । ३ वट वढत्तण-मूढता वणनत्तडिअ - पुरस्कृत, आगे किया हुआ वण सुणअ - भेड़िया वत्ता रहण - रस्सी पर नाचने वाला नट चन्द्र- समूह Jain Education International वपक्षअ भार वप्प - १ पिता । २ बाप रे वप्पाहय – चातक पक्षी वप्पिअ - परिपूर्ण वप्पिक्की - पतकी वप्पिवअ खेत वप्पीह – कुमार वम्मल – कोलाहल वम्मीसण – कामदेव वम्मुल्लूरण -- मर्मवेधक वम्मुल्लूरिय–मर्मविद्ध वयंग – फल विशेष वयणुल्ल – मुख वयाल - - कोलाहल वयालिय–व्याप्त वरंडिया -- छोटा बरंडा वरडा -- १ तैलाटी, कीट-विशेष । २ दंश भ्रमर वरत्त - १ पीत । २ पतित । ३ पेटित, संहत वरय - वराक, बेचारा वरह - रज्जु वरालय - वाहन-विशेष ४६५ वराहव - राहु वरिल्ल ----वस्त्र वरुय – वृक, भेड़िया वलइल्ल - वल्लभ वल विकअ - उत्संगित, उत्संग स्थित वलत्थ - पर्यस्त वलविअ – जपवान् वल हिय – बरामदा चलाएल्लण-वल्लभ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org चलाणय- द्वार चलिअ-मौर्वी, प्रत्यंचा वलिमंड – बलात्कार वलिवंड – बलात्कार वलुंकी–– ककडी वल्लंक - भीषण वल्लव — गायों का समूह वल्लविअ --- लाक्षा से रंगा हुआ वल्लूरय - खाद्य- विशेष वल्ल रिय – मांसपेशी 2 ववडअ - ब्राह्मण वव्वीस – वाद्य-विशेष वव्वीह – चातक पक्षी बसचोप्पड – वसा से लिपटा हुआवसावलिप्त इत्यर्थे देशी वसतुंड -काक वसुआविअ - शुष्क किया गया वसेरय – बसेरा, निवास स्थान वसेरी – गवेषणा वस्सोक - एक प्रकार की क्रीडा वहअ - मणिकार वहइअ - पर्याप्त वहलप्पण - मूर्ख बहिअ – मथित वहिय – अवलोकित बहियवड --बही खाता वहिया–बही, हिसाब लिखने की किताब वहिलग – ऊंट, बैल आदि पशु वहुज्जा - छोटी सास बहुणिआ - बडे भाई की पत्नी वहोलिया – छोटा जल-प्रवाह वाइअ – मंत्रवादी Jain Education International वाइगा - माता वाउलिआ-छोटी खाई वाउल्ल- पुतला वाउल्लआ— पुतली वाओलि झंझावात - बाखर देशी शब्दकोश वाक्खरु वाघेल - - एक क्षत्रियवंश वाड - रहने का स्थान वाडुंबी-घोडे का आभूषण वाणुंजुअ-वणिक् वामरोर - वल्मीक वामलूर - वल्मीक वायड – १ एक श्रेष्ठ वंश । २ तोता वारहु — अभिपीड़ित वाराय--अतिथि वाख्या — हस्तिनी, हथिनी वालाहिय – सरोवर झील वालिअ - गर्वित वावंफिर श्रमशील वावल-व्याप्त वावल्ल - १ शस्त्र - विशेष, भाला । २ बावला, पागल वासण - पात्र, बरतन वासिया--स्त्री वासी - कर्दम वासूया - हथिनी वाहडिया - कांबर, बहंगी वाहयाली – अश्वखेलनभूमि वाहलिय - खेलने का मैदान वाहलिया - छोटा जल प्रवाह वाहस–अजगर वाहियालि-अश्व-वाहन मार्ग For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ वाहुडण-गमन बाहुडिअ—-गत, चलित वाहोलिया-छोटा जल-प्रवाह विअंटूत – १ अवरोपित । २ मुक्त विआलिउ – व्यालू, सायंकाल का भोजन विउंचिआ - पामा-रोग विउडण – १ विनाश । २ विनाशक विउडिअ – विनाशित विउल - १ क्षीर । २ आविग्न विओलय - उद्विग्न विटलिआ -- गठरी विढिया-- अंगूठी विदुरिल्ल – १ उज्ज्वल । २ कलकंठ । ३ म्लान । ४ विस्तृत विभइय - विस्मित - विस्मितार्थे देशी विभय - विस्मय विक्खणय – कार्य विगिचणया – १ परित्याग । २ विनाश विगत्त – पीडित विग्गुत्त - व्याकुल किया हुआ विग्गोवय - व्याकुलता विच्चल-नंगा, वस्त्र रहित विच्छडु – १ वैभव । २ विस्तार विच्छेड्डी – वैभव विच्छा-पिशाच विच्छरिअ-अपूर्व विच्छढ – विरहित विच्छोइय-विरहित विच्छोम-विदर्भ नगर विच्छोय - विरह Jain Education International विच्छोलिअ – कंपित विजयाइ – खाद्य विशेष विज्ज - देश - विशेष विज्जे- १ रास्ते से । २ लिए विज्झ - धक्का - समूह विज्झडुविट्टलय — अपवित्र अपवित्रार्थे देशी विट्टालि –अपवित्र करने वाला विट्टालिअ- उच्छिष्ट किया हुआ विद्रित अर्जित विडत्त अर्जित विडाविड – निर्मित विडिरिल्ल – भयंकर विडुच्छ – निषिद्ध विडुबिल्ल – भीषण बिड्डुम – भय विडय – चमत्कार बिड्डर - १ विस्तार । २ असंभावित आपदा ४६७ विड्डरिल्ल – १ आटोप, आडंबर । २ आटोपित विड्डरी-आडंबर विड्डिरिआ - रात्री विड्डिरिल्ल - आडंबर विड्डुरी – आडंबर विढवण-उपार्जन विणड – १ व्याकुल । २ विडम्बना विणडिय-वंचित-वंचित इत्यर्थे देशी वित्थक्क – १ विरोधी के रूप में प्रस्तुत । २ आक्रमण । ३ निरुद्ध वित्थिर - विस्तार, फैलाव विद्धवयण - विदग्ध वचन For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४६५ विप्पत्ती - १ व्रत । २ उत्सव विशेष । विव्वोयण-उपधान -11 विप्पलय – विविधता, विचित्रता विसंभर-तन्तुवाय विसग्ग- व्युत्सर्ग विप्फइ - विशाल विभाडण- १ विनाश । २ विनाशक विसत - १ विकसित । २ उत्थित । ३ विघटित विब्भाडिय - १ नाशित । २ अपमानित विभिय–विस्मय विम्हरावण- स्मरण कराने वाला वियज्झ-परवश वियड – विशेषरूप से शीतल वियाइय– बच्चे देना वियारिय – १ कान मरोडना । २ चपेटा देना विरण्णिअ— आर्द्र, गीला विरहि- वृक्ष-विशेष विरामइल्ली – विराम करने वाली विरिचर- - धारा विरिचिर- - धारा से विरेचन करने वाला विसट्टण - विकास विसट्टय - विकसित विसङ्ग-शोभित Jain Education International विसद्धंत -- विसरय-वाद्य-विशेष विसार - सेना विसिड – १ विरत । २ विसंस्थल, चंचल --पतन देशी शब्दको विसुराविय- खिन्न किया हुआ विस्साणिज्जंत- मृष्ट विस्सुअ-उन्मत्त विहडण-अनर्थ विहल -- मौर्वी विहलंखल-विह्वल विरुवय – कुत्सित विरोलण – १ बिलौना करने वाला । विहाणय-प्रभात २ विनाशक विरोल्लिय– कदर्शित विल - योनि विवरम्मुह – पराङ्मुख विवराहुत्त - विपराङ्मुख विवरेर - वर्णन करने वाला विवरेरय - विपरीत विवाविड–अतिशय गौरव विवोल - विशेष कोलाहल विवोलिअ— व्यतिक्रान्त विहडप्फड - विस्फुरित वस्त इत्यर्थे देशी विहिम – जंगल, अरण्य विहिमिहिय- विकसित, प्रफुल्लित विहोय – वैभव वोअदुहिय - भृत वीबी - तरंग वोवी – वीचि, तरंग वीसालिअ – मिश्रित वुक्करंत - भौंकता हुआ वुक्करिय- शब्दित, शब्द किया हुआ बुक्कारिय-गर्जना For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ बुज्जण– स्थगन, आच्छादन बुड - विनष्ट बुजण-बुनना बुणिय - बुना हुआ बुण्णउ - दीन, उद्विग्न : वृष्णिय – भयभीत बुल्लाह बुल्लीण–भ्यतीत वूणक-- बालक वूय - बुना हुआ वेइड - १ तनु । २ शिथिल । ३ आविद । ४ ऊर्ध्वोकृत । ५ विसंस्थल, विषम, चंचल वेला - मर्यादा वेल्लंत - व्याकुल होता हुआ वेल्लडिया – वल्लरी वेल्लरिअ - बाल, केश वेल्लरिया - वल्ली, लता वेल्लव – १ विलास । २ लता अश्व की एक उत्तम जाति वेल्लबल्ल – १ कोमल । २ विलासी ३ सुन्दर वेहल्ल – विचकिल का पुष्प वेउब्विया – पुनः पुनः वेंड सुरापिष्ट वेंभल-विह्वल वेखास – विरूप वेखासअ – विरूप वेगड - पोतविशेष वेगर - द्राक्षा, लोंग आदि से मिश्रित वोक्खारिय-विभूषित चीनी आदि वेच्छिल्ल - कोरंट - वृक्ष वेझ – धक्का बेट्ठिय–वेष्टित वेड - श्मश्रु वेडणी - लज्जा वेणुसाअ-भौंरा वेण्ण - आक्रान्त वेमइअ - भग्न वेयडिय- खचित वेयथंड - हाथी Jain Education International वेल्ल हल्ल – सुन्दर वेसंत – पल्वल, छोटा तालाब वेसिणी–वेश्या वेहाविद्ध– कोपाविष्ट वेहाविद्धय-कोपाविष्ट बेहाविय–वञ्चित वेहियर - जहाज वोक्क – यकृत, कलेजा वोक्कअ - १ अनिमित्त । २ तात्पर्य वोक्कड–बकरा- अज इत्यर्थे देशी वोक्का – १ वाद्य - विशेष । २ पुकार, व्याहृति वोग्गिण्ण– अलंकृत वोट्ठि – आसक्त, लीन वोड– १ दुष्ट । २ छिन्न-कर्ण ४६६ वोडही – १ तरुणी । २ कुमारी वोढ - १ दुष्ट । २ छिन्न-कर्ण वोद्दही - तरुणी वोल - १ आर्द्र- आर्द्र इत्यर्थे देशी । २ समूह वोलाविअ - अतिक्रामित वोल्लिय–आर्द्र किया हुआ वोसट्टिअ— विकसित For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ५०० वोसिरण व्युत्सर्जन वोहित्त – प्रवहण, नौका व्युड - विट, भडुआ व्वे - संबोधन-सूचक अव्यय सअली-शृगाली सइकोडी – वज्र सइत्त-मुदित सइत्तय - १ स्वस्थ । २ मुदित सइलासिय– मयूर सइसिलिप्प – तरुण, युवा संकेल्लिअ-संकुचित संखुडण- सुरतक्रीडा संखोडी - व्यतिकर संगहण - जारिणी-युगल संगोल्ल – समूह संच - १ शरीर बन्ध । २ समूह संचडिय–आरूढ संचाइय - १ समर्थ । २ आरूढ संचल्ल–चुगलखोर संजत्ति - तैयारी, निर्माण संजत्तिअ -- तैयार किया हुआ संजूत्ति- तैयारी संजोइय– निरीक्षित, दृष्ट संढी - ऊंटनी, सांढनी संतिय - सम्बन्धी संतो - मध्य-अंतो संतो च मध्यार्थे संपुअ- भूताविष्ट संफिट्ट - संयोग संभडिय- भिडा हुआ संभिन्न - आघात संभेड – संघट्टन, आक्रमण Jain Education International संवती - नदी संविड्डाणा – कुलीन संसाअ - १ आरूढ । २ चूर्णित । ३ पीत । ४ उद्विग्न संसोइअ'-आरूढ संसूडिय–संभग्न संसोसिअ - १ चूर्णित । २ भीत । ३ आरूढ । ४ उद्विग्न सकप्प – १ आर्द्र । २ अल्प । ३ धनुष्य । ४ प्रचुर सखर - गीध सचराह – एकाएक, शीघ्र सचीसग– वाद्य-विशेष सच्चवण- अवलोकन, दर्शन सच्चवय - द्रष्टा सच्चीसय–वाद्य-विशेष सच्छिह-सदृश सज्झंतिया - बहिन देशी शब्दकोश M सझडप्प - झटपट सट्ट – १ सटा हुआ । २ विनिमय, सट्टा सट्टि – विनिमय सडा- प्रलंब केश सडिअग्गिअ - १ बढाया हुआ ! २ प्रेरित सड्डी - विनिमय सत्त — गत, गया हुआ सद्धा - दोहद (साधर गुज ) सन्निअत्थ - परिहित, पहना हुआ सन्नुमिय— आच्छादित सप्पडोड्डिय - जहरीले वृक्ष का फल सप्पत्तिआ–बालिका सप्पा-कांची For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ सप्पासंग – दीर्घ सफर - मुसाफिरी सबिस-मदिरा. समाणिय-भुक्त समारोडिय-रौंदा गया समुत्तुण - गर्वित समुप्पित्थ- भयभीत समुप्पुसिअ-प्रोंछित, पोंछा हुआ समुव्वग्ग – उद्वेलित समोलइल – समुत्क्षिप्त समचाइअ-बलवान् समन्भिडिय- भिड़ा हुबा सविला - पासा समरट्ट - गर्व युक्त - सगर्व इत्यर्थे देशी सहर – सहायक साइआ- सारिका साउली - - १ वस्त्र । २ वस्त्राञ्चल समराइअ - पिसा हुआ, आटा समलहिय – अभिलिप्त समसोसिआ - स्पर्धा समहत्य - पैंतरा साड - विध्वंसक साडी - साड़ी समाणण- भोजन, भक्षण सम्हर-स्मरणीय सय - हाथ सरवद- स्वरोदय सरसरट-छिपकली सरिवअ - हंस सरिस - १ साथ । २ तुल्यता, समानता सरी — माला, हार सरोल्लइ–काम-पीडा सरु जा-वाद्य-विशेष सरेबाअ - हंस सल -- चिता सलवट्टि सलवट, सिकुड़ना सलवल-- अनुकरणवाची शब्द सवलहण — विलेपन सवलिआ——भरोच जैन मन्दिर सवातिष्णि- सवा तीन, Jain Education International का एक प्राचीन साणिअ - शान्त सामिसाल - स्वामी सारिनर - महावत सारी - अच्छा सारोवही - लज्जा साल - वृक्ष सालक्किआ - सारिका, मैना ५०१ साहग – कथक, कहने वाला साहाणुसाहि- शक देश का सम्राट् साहार -- १ साहुकार । २ सहारा, उपकार । ३ साधारण । ४ आम्र साहालय – दघिशाला साहिण - कहने वाला साहुल- मयूर पिच्छ साहुलिआ - १ वस्त्र । २ शिरोवस्त्रखंड । ३ शाखा । ४ भौं । ५ हाथ । ६ कोयल । ७ सदृश । ८ सखी । ६ मयूर पिच्छ सिअणअ - श्मशान सिअल्लि – वृक्ष विशेष सिंचाण- बाज पक्षी सिंजिर - ध्वनि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ५०२ सिंथ - धनुष की डोरी सिंदाण- विमान सिंदुर रज्जु सिंदूरिआ - राज्य सिंधुवणअ-अग्नि सिंबासिबि - अतिशीघ्र, चटपट सिंहलअ— वस्त्र आदि को धूपित करने का यंत्र सिक्कड - खटिया सिक्करिअ— शृंगार से उत्पन्न कुतूहल सिक्करिआ --- जहाज का आभरणविशेष सिक्किरि - छत्र सिगरि – ध्वज चिन्ह सिग्गिरि -- १ पताका । २ छींका । ३ नीलवर्ण - नीलवर्ण इत्य देशी सिज्जमाण- पकता हुआ-पच्यमान इत्य देशी । ( सीजना-राज ) सिट्टा -- सोए हुए व्यक्ति के नाक का शब्द सिट्ठ -- सोकर उठा हुआ सिडिंग - विदूषक, प्रहासक सिडी—–—सीढी, निःश्रेणी सिणिसिव – तन्तुवाय सिणी-लज्जा सिप्पि- शुक्ति सिप्पीर - तुष, पलाल - धान्यादीनां तुषमित्यर्थे देशी सिलिधय - बालक — सिलिप -- बालक, बच्चा सिल्ल - १ भाला । २ जहाज का Jain Education International देशी शब्दकोश एक प्रकार सिहंडहिल्ल- बालक सिहड - सोए व्यक्ति का नासा- शब्द सीउग्ग - शीतकाल का दुर्दिन सोउट्ट - हिमकाल का दुर्दिन. सोडल्लि – शीत ऋतु का दुर्दिन सीकोत्तरी--महिला सीसक्क - तुष सीसम - शिशपा, सीसम का गाछ सोहली - १ शिखा । २ नवमालिका सुइयाणिया – सूति-कर्म करने वाली स्त्री सुंकाणिअ-पतवार खेने वाला व्यक्ति संचल – काला नमक सुक्कड – शुष्क - शुष्क इत्यर्थ देशी सुक्कतरु -- अग़रु सुक्काणय – जहाज के आगे का ऊंचा काष्ठ सुज्झुअ - धोबी सुढिय – दुखित-दुःखित इत्यर्थे देशी सुदारुणी- चांडालिन सुप्पाडोस–अच्छा पड़ोस सुमंठ - घुटा हुआ, सुमृष्ट सुरावण -- कुत्रिकापण सुलोस – कुसुम्भ वस्त्र सुवन्नालुगा - दतवन करने का पात्र, लोटा आदि सुवासिणी - जिसका पति जीवित हो वह स्त्री, सुहागिन सुविसत्थ व्यभिचारी सुविवजा--माता For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट १ सुहच्छी-आसन- विशेष, सुखासिका सुहाग - सौभाग्य ( सुहाग राज ) सुहावण - सुहावना सुहिल्ल— सुखी, आनन्दित सुहेल्लिय- सुखपाल सूडिय- भांगा हुआ सूणार - १ वधस्थान । २ वध सूरल - सुरक्ष सेआलिआ - दूर्वा सेर–परिमाण- विशेष, र सेलग - भाला सेहली – गणिका सेहीर - सिंह सोअण-मल्ल सोआल- देवता को भेंट सोज्झिअ- निद्रालु सोण्णार- स्वर्णकार सोमालिया - हाथी की सूंड सोरी - कसाई सोलत्तग- अपहृत धन के साथ सोवणय - १ शयनगृह । २ शयन - सोहल - उत्सव ( सोहलो-गुज) सोहलय - उत्सव • सोहिल्ल- पिष्ट ho Jain Education International ह हंसल - आभूषण- विशेष हक्क – १ निषेध । २ हांक । ३ ललकार, पुकार हक्कंत - निषेधमान हक्का – १ पुकार । २ प्रेरणा हक्कारअ - दूत, हलकारा हक्किऊण - हांक कर ५०३ हक्किय – १ हांका हुआ । २ प्रेरित । ३ निषिद्ध । ४ आहूत । ५ उन्नत हक्खुविअ - उत्पाटित हच्छं -- शीघ्र हडहड - १ अत्यंत बिखरे बालों वाला । २ भोजन - वस्त्र आदि से रहित हडाविय हटाना-दूरोत्सारित इत्यर्थ देशी हडि – अभ्यस्त, हठी अभ्यस्त इत्यर्थे देशी हड्डुव – कलह हड्डाल-अस्थियुक्त - अस्थियुक्त इत्य देशी हणिअ-सुना हुआ हत्थर – सहायता हत्थावार - सहायता हत्थिहार - युद्ध हत्थुत्थल्ल — हाथ के इशारे से आज्ञा देना हथलेव - पाणि-ग्रहण हद्धिण -- आंखमिचौनी हर – तृण — हरण - १ स्मरण । २ ग्रहण । ३ वस्त्र हरहाइ - चरागाह हरिकिडि - वराह हरिवर–मण्डूक हरिसोल्लिय - उल्लसित हरे - संबोधन- सूचक अव्यय हलफलय -- प्रक्षोभ हलबोलिय - स्वरा, हलफल For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org H ५०४ हलब्बोल – कोलाहल हलहलिअ-कम्पित हलिणि - किसान की पत्नी हलुव – लघु हल्लंत - १ शोभमान । २ वेपमान लसद देशी हल्लपविअ - त्वरित हल्लम्फलय – १ शीघ्रता, हड़बड़ । २ कंपनशीलता । ३ आकुलता हल्लाविअ - हिलाया हुआ हल्लियय - चलित हल्लुत्ताल - शीघ्रता हल्लुत्तावल – शीघ्रता, उतावल हल्लुप्फलिय – १ आकुल । २ आकुलता । ३ शीघ्र हल्लोहलि - व्याकुल हवाइद्ध – कुपित हाम – इस प्रकार हालिणि - किसान की स्त्री हुआ हासिअ – दत्त, दिया हिंडिर – घूमने वाला हिंडोली – खेत की रक्षा करने का यंत्र हिंबिआ – शिशुओं की एक पैर की क्रीडा - विशेष हिहु -- हिन्दू हिज्ज - दुःखसूचक अव्यय कुलटा हित्त – असती, हुआ हिद्ध - स्रस्त, खिसका हिलट्ठम - वृक्ष - विशेष हिलिहिलिय - हिनहिनाते हुए हिल्लर – झूला होर – महादेव, शिव होला —अवहेलना Jain Education International देशी शब्दकोश हुडुमा - ध्वजा हुर – दुःख हुरड - कुछ-कुछ पकाया हुआ चना आदि धान्य, होला हुरुडुक्खिय — डमरु हुरुहूं डिअ - अवनत हुरुहुल्लरु – हर्षध्वनि हुलुभुलि – कपट हुलुविआ - प्रसव करने वाली हुल्लि - १ पुष्पवती बेल । २ बालक हूलण – शूली पर चढानाशूलायारोपणे देशी हूलिय–पिरोया हुआ हुहुइय – शंख ध्वनि हेविकअ – १ उन्नत । २ उत्तम । ३ चुम्बित हेट्टाउय – अधोमुख हेट्ठामुह – अधोमुख हेडा–१ समूह । २ अखाड़ा । ३ बृहत् मृत्युभोज । ४ द्यूतक्रीडास्थल हेडाउड ~~ परिभ्रमणशील व्यापारी हेडावइ – पशुओं का व्यापारी हेडावणिय - पशुओं का व्यापारी हेडि - १ श्रृंखला । २ होड हेपिअ – उन्नत हेरिय- दृष्ट, अन्वेषित हेला - अविच्छिन्न स्वर से रुदन हेल्लि – अद्भुत हेवाइय - गर्व प्राप्त, आसक्ति प्राप्त हेसमण -उन्नत हेसिअ – शब्द करना होहल्लर – कोलाहल For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org परिशिष्ट - २ देशी धातु-चयनिका [ इस परिशिष्ट में देशी धातुओं तथा आदेश प्राप्त धातुओं का चयन किया गया है । आगम, उनके व्याख्याग्रंथों तथा प्राकृत व्याकरण की धातुएं सप्रमाण एवं क्वचित् ससन्दर्भ संगृहीत हैं । त्रिविक्रम व्याकरण, पाइअसद्दमहण्णवो तथा कुछ अन्य प्राकृतग्रंथों से गृहीत धातुएं बिना प्रमाण के संकलित हैं । आदेश प्राप्त धातुओं के संस्कृत धातु रूप भी कोष्ठक में दे दिए गए हैं । ] अ अइच्छ ( गम् ) -- गमन करना ( प्रा ४।१६२ ) । अइच्छ ( अति + क्रम् ) – उल्लंघन करना ( ओनि ५१८ ) । अइमल्ह -- धीमे चलना । अई ( गम् ) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२ ) । अंगुम ( पूरय् ) -- पूरा करना ( प्रा ४।१६९ ) । अंगोहल -- स्नान करना ( व्यभा १० टी प ५२ ) । अंच ( कृष् ) -- १ खींचना ( दश्रु ८।१० ) । २ खेती करना । ३ रेखा करना ( प्रा ४।१८७ ) । अंच -- झुकाना - 'अंचेति त्ति वा णामेति त्ति वा एगट्ठं' ( सूचू १ पृ २४० ) । अंछ ( कृष् ) -- १ खींचना - 'अंछंति वासुदेवं अगडतडम्मि ठियं संतं' ( विभा ७९४ ) । २ लम्बा होना ( विभा ७९५ ) । अंछाव ( कृष् ) -- खींचना - 'अब्भंतरियं जवणियं अंछावेइ' ( भ ११।१३८ ) । अंछि -- निकालना, आकर्षण करना ( आवहाटी १ पृ १५१ ) । अंबाड ( तिरस् + कृ ) -- तिरस्कार करना ( उसुटी प २ ) । अंबाड ( खरण्ट् ) -- लेप करना - 'चमढेति खरण्टेति अंबाडेति त्ति वुत्तं भवति' ( निचू ४ ) । अकु -- 'खाना - 'अकु भक्षणे' (आचू पृ ३४४) । अक्कुस ( गम् ) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२ ) । अक्खड -- ( आ + स्कन्द् ) आक्रमण करना । अक्खुंद -- १ चखकर छोड़ना । २ नखों से कुरेदना ( निचू २ पृ १२४ ) । अक्खोड ( आ + स्फोटय् ) -- थोड़ा या एक बार झटकना ( द ४ सू १९ ) । अक्खोड ( कृष् ) -- तलवार को म्यान में से खींचना ( प्रा ४।१८८ ) । अग्गुम ( पृ ) -- पूरित करना । अग्घ ( अर्ह् ) -- प्राप्त होना ( उ ९।४४ ) । अग्घ (राज् ) -- शोभमा, चमकना ( प्रा ४।१०० ) । अग्घव (पूर्) -- पूरा करना ( प्रा ४।१६९ ) । अग्घाड (पूर्) -- पूरा करना ( प्रा ४।१६६ ) । अग्घोड ( पृ ) -- पूर्ण करना । अच्चुक्क ( वि + ज्ञापय् ) -- विज्ञापन करना । अच्छ ( कृष् ) -- खींचना । अच्छ ( आस् ) -- बैठना, ठहरना ( उशाटी प १४७ ) । अच्छिज्ज -- आच्छादन करना ( से १४।७ ) । अच्छुर -- बिछाना - 'संथारयं अच्छुरंति' ( ओटी प ८३ ) । अट्ट ( क्वथ् ) -- उबालना, पकाना ( प्रा ४।११९ ) । अट्ट ( शुष् ) -- सूखना - 'अट्टंति णहअले च्चिअ मारुअभिण्णलहुआ सलिल कल्लोला' ( से ५।६१ ) । अड -- वंदना करना ( आवचू १ पृ २७१ ) । अडखम्म -- देखभाल करना - 'अडखम्मिज्जंति सवरिआहि वणे' ( दे १।४१ वृ ) । अड्डक्ख (क्षिप् ) -- फेंकना ( प्रा ४।१४३ ) । अड्डव -- गिरवी रखना । अड्ढ -- रोकना ( आवहाटी २ पृ ८७ ) । अणच्छ ( कृष् ) -- खेती करना ( प्रा ४।१८७ ) । अणुचिट्ठ ( अनु + स्था ) – १ स्थिर रहना, टिकना - 'सामण्णमणु चिट्ठइ' ( द ५।१३० ) । २ अनुष्ठान करना । ३ करना । अणुवज्ज -- सेवा-शुश्रूषा करना ( दे १।४१ वृ ) । अणुवज्ज ( गम् ) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२ ) । परिशिष्ट २ अणुसंभर (अनु + स्मृ ) -- याद करना । अण्ण ( भुज् ) -- खाना । अण्ह ( भुज् ) --१ भोजन करना । २ पालन करना । ३ ग्रहण करना ( प्रा ४।११० ) । अदुयाल -- मिश्रित करना ( आवमटी प ४५२ ) । अद्धुम ( पृ ) -- पूर्ण करना, भरुना । अप्पाह ( अधि + आपय् ) -- पढ़ाना, सिखाना ( से १०।७४ ) । अप्पाह ( आ+भाष् ) -- संभाषण करना । अप्पाह ( सं + विश् ) -- संदेश देना ( व्यभा ७ टी प ७९ ) । अप्फड -- आहत्त होना - 'पाएण वा खाणुए अप्फडइ' ( निचू ३ पृ १२२ ) । अप्फुंद ( आ+ क्रम् ) -- १ जाना ( से ६।५७ ) । २ आक्रमण करना । अप्फोड -- १ ताली बजाना ( कु पृ १३२ ) । २ ताड़न करना । अब्बुत्त ( प्र + दीप् ) -- जलना । अब्भड -- पीछे जाना । अब्भिड ( सं + गाम् ) -- संगति करना ( प्रा ४।१६४ ) । अब्भुत्त ( स्ना ) -- स्नान करना ( प्रा ४।१४ ) । अब्भुत्त ( उत् + क्षिप् ) -- फेंकना । अब्भुत्त ( प्र + दीप् ) -- १ प्रकाशित होना । २ उत्तेजित होना । ( प्रा ४।१५२ ) । अम्माहि -- काटना, पकड़ना, पीछा करना - 'न मे सो सप्पो अम्माहिती ' ( व्यभा ४।१ टी प १३ ) । अयंछ ( कृष् ) -- १ खेती करना । २ खींचना । ३ रेखा करना ( प्रा ४।१८७ ) । अलिल्ल ( कथय् ) -- कहना । अल्ल -- चिल्लाना । अल्ल ( नम् ) -- नीचे झुकना । अल्लत्थ ( उत् + क्षिप् ) -- ऊंचा फेंकना ( प्रा ४।१४४ ) । अल्लव -- समर्पण करना । अल्लि ( आ + ली ) -- १ आना । २ प्रवेश करना । ३ जोड़ना । ४ आश्रय करना । ५ आलिंगन करना । ६ संगत होना ( प्रा ४।५४ ) । अल्लिय ( उप + सृप् ) -- समीप में जाना ( आवचू १ पृ २१२ ) । अल्लिय ( आ + ली ) -- आलिङ्गन करना ( प्रा ४।५४ ) । अल्लिव ( अर्पय् ) -- अर्पण करना ( प्रा ४।३९ ) । अव -- कहना । अवअच्छ (ह्लाद्) -- आनन्द पाना, खुश होना ( प्रा ४।१२२ ) । अवअच्छ ( ह्लादय् ) -- खुश करना ( प्रा ४।१२२ ) । अवआस ( दृश् ) -- देखना ( प्रा ४।१८१ ) । अवंगुण -- खोलना - 'दुवारवयणाइं अवंगुणंति' ( भ १५।१४२ ) । अवक्ख ( दृश् ) -- देखना ( प्रा ४।१८१ ) । अवखेर -- खिन्न करना । अवज्जस ( गम् ) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२ ) । अवज्झ ( दृश् ) -- देखना । अवडक्क -- आत्महत्या करना । अवडाह ( उत् + क्रुश ) -- ऊंचे स्वर से रुदन करना ( दे १।४७ वृ ) । अवपंगुण -- खोलना - 'णो पीहे ण यावपंगुणे' ( सू १।२।३५ ) । अवपंगुर -- खोलना ( द ५।१।१८ ) । अवपुस -- संयुक्त करना । अवयक्ख ( अव + ईक्ष् ) -- १ देखना । २ पीछे मुड़कर देखना ( ओभा १८८ ) । अवयच्छ ( दृश् ) -- देखना ( प्रा ४।१८१ ) । अवयक्ख ( अप + ईक्ष् ) -- अपेक्षा करना । अवयज्झ ( दृश् ) -- देखना ( प्रा ४।१८१ ) । अवयास ( श्लिष् ) -- गले लगाना ( प्रा ४।१९०) । अवरुंड -- आलिंगन करना ( दे १।११ वृ ) । अववाह ( अव + गाह् ) -- अवगाहन करना । अवसिज्ज ( अव + सद् ) -- हारना, पराजित होना ( विभा २४८४ ) । अवसेह ( गम् ) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२ ) । अवसेह ( नश् ) -- पलायन करना, भागना ( प्रा ४।१७८ ) । अवह ( रच् ) -- निर्माण करना ( प्रा ४।९४ ) । अवहर ( नश् ) -- पलायन करना, भागना ( प्रा ४।१७८ ) । परिशिष्ट २ अवहर ( गम् ) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२ ) । अवहाड -- आक्रोश करना ( दे १।४७ वृ ) । अवहाव ( ऋप् ) -- दया करना ( प्रा ४।१५१ ) । अवहेड ( मुच् ) -- छोड़ना ( प्रा ४।९१ ) । अवुक्क ( वि + ज्ञपय् ) -- विज्ञप्ति करना, प्रार्थना करना ( प्रा ४।३८ ) । अहिऊल ( बह् ) -- जलाना ( प्रा ४।२०८ ) । अहिखीर -- १ पकड़ना । २ आघात करना । अहिपच्चुअ ( आ + गम् ) -- आना ( प्रा ४।१६३ ) । अहिपच्चुअ ( ग्रह् ) -- ग्रहण करना ( प्रा ४।२०९ ) । अहिरेम ( पूरय् ) -- पूरा करना ( प्रा ४।१६९ ) । अहिलंख ( कांक्ष् ) -- अभिलाषा करना ( प्रा ४।१९२ ) । अहिलंघ ( कांक्ष् ) -- अभिलाषा करना ( प्रा ४।१९२ ) । अहिलक्ख ( कांक्ष् ) -- इच्छा करना । आ आअंछ ( कृष् ) -- १ खींचना । २ जोतना, चास करना । ३ रेखा करना । आअच्छ ( कृष् ) -- खींचना । आअड्ड ( व्या + पृ ) -- व्याप्त होना ( प्रा ४।८१ ) । आअड्ड -- परवश होकर चलना । आअव्व ( वेप् ) -- कांपना । आइंच -- आक्रमण करना । आइंछ ( कृष् ) -- खेती करना ( प्रा ४।१८७ ) । आइग्घ ( आ + घ्रा ) -- सूंघना ( प्रा ४।१३ ) । आउंट ( आ + कुञ्च् ) -- संकोचना । आउट्ट ( आ + वृत् ) – १ करना, व्यवस्था करना ( उशाटी ३२९ ) । २ भूलना । ३ तत्पर होना । ४ निवृत्त होना । ५ घूमना । आउड ( लिखू ) -- लिखना ( जंबूटी प २५० ) । आउड ( आ + जोडय् ) – संबंध करना । आउडाव -- घुसेड़ना ( विपा १।६।२३ ) । आउड्ड ( मस्ज् ) -- डूबना, मज्जन करना ( प्रा ४।१०१ ) । आऊड -- जुए में शर्त लगाना ( दे १।६९ वृ ) । आओड ( आ+ खोटय् ) -- प्रवेश कराना । आओडाव -- प्रवेश कराना - 'आओडावेइ त्ति आखोटयति प्रवेशयति' ( विपाटी प ७२ ) । आखंच ( आ + कृष् ) -- पीछे खींचना । आगंप ( आ + कम्पय् ) -- कंपाना, हिलाना । आघव ( आ + ख्या) -- १ निरूपण करना ( नन्दी ८१ ) । २ ग्रहण करना । आघुम्म -- डोलना, हिलना, कांपना । आचिक्ख -- कथन करना ( अंवि पृ ८३) । आजत्थ ( आ + गम् ) -- आना । आडुआल -- मिश्रण करना ( दे १।६९ वृ ) । आडोह -- भीतर घुसकर गड़बड़ी करना । आढप्प ( आ + रभ् ) -- शुरू करना ( प्रा ४।२५४ ) । आढव ( आ + रम् ) -- आरम्भ करना ( निचू १ पृ ९ ) । आढा ( आ + दृ ) -- आदर करना ( विपा १।९।१४ ) । आणक्ख ( परि + ईक्ष् ) -- परीक्षा करना ( निभा ४२५३ ) । आणच्छ ( कृष् ) -- खींचना । आयंब ( वेप् ) -- कांपना ( प्रा ४।१४७ ) । आयज्झ ( वेप् ) –कांपना ( प्रा ४।१४७ ) । आयड्ड -- परवश होकर चलना ( दे १।६९ वृ ) । आरड -- १ चिल्लाना । २ रोना । आराअ -- १ ग्रहण करना । २ प्राप्त करना । आरुण्ण ( आ + श्लिष् ) -- आलिंगन करना । आरेअ -- पुलकित होना । आरोअ ( उत् + लस् ) -- खुश होना ( प्रा ४।२०२ ) । आरोक्क -- रोकना । आरोग्ग -- भोजन करना ( दे १।६९ वृ ) । आरोड -- आक्रमण करना । आरोड ( नि + रुध् ) -- रोकना । परिशिष्ट - २ आरोल ( पुञ्ज् ) -- एकत्र करना ( प्रा ४।१०२ ) । आलिह ( स्पृश् ) -- स्पर्श करना ( प्रा ४।१८२ ) । आलुंख ( स्पृश् ) -- स्पर्श करना ( प्रा ४।१८२ ) । आलुंख ( दह् ) -- जलाना ( प्रा ४।२०८ ) । आलुंघ ( स्पृश् ) -- छूना । आलुक्ख ( स्पृश् ) -- छूना । आलुक्ख ( वह् ) -- जलाना । आव ( आ + या ) -- आना, आगमन करना । आवआस ( उप + गूह् ) -- आलिंगन करना । आसंघ -- आश्रय लेना - 'आ + श्रि इत्यर्थे देशी।' आसंघ ( सं + भावय् ) -- १ संभावना करना । २ अध्यवसाय करना । ३ निश्चय करना ( से १५।६० ) । आसगल -- १ आक्रान्त करना । २ प्राप्त करना । आसर -- सम्मुख आना । आह ( कांक्ष् ) – अभिलाषा करना ( प्रा ४।१९२ ) । आह ( बूञ् ) -- कहना । आहम्म ( गम् ) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२ ) । आहल्ल -- हिलना, चलना । आहुड -- गिरना ( दे १।६९ वृ ) । आहोड ( ताडय् ) -- ताडन करना ( प्रा ४।२७ ) । इ इंघ -- सूंघना । इग्घ -- तिरस्कृत करना । इज्झा ( इन्ध् ) -- चमकना ( प्रा २।२८ ) । इल्ल -- आसिक्त करना, सींचना । ई ईजिह -- तृप्त होना । ईस -- वश में करना । उ उअ -- विलोकन करो, देखो ( दे १।८६ वृ) । उंघ -- ऊंघना, नींद लेना- 'सो उंघेउं पवत्तो' ( निचू १ पृ १०६ ) । उंच ( वञ्चय् ) -- ठगना । उंछ -- खोज करना - 'उंछंति - गवसंतेत्यर्थ:' ( सूचू १ पृ १०७ ) । उंज ( सिच् ) -- सींचना, प्रदीप्त करना - 'सुद्धागणिं वा उक्कं वा न उंजेज्जा, न घट्टेज्जा' ( द ४ सू २० ) । उक्कंक -- धनुष्य पर डोरी चढ़ाना । उक्कुक्कुर ( उत् + स्था ) -- उठना ( प्रा ४।१७ ) । उक्कुर ( उत् + स्था ) -- उठना । उक्कुस ( गम् ) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२ ) । उक्खंभ -- उत्पाटित करना, उखाड़ना ( से ६।३३ ) । उक्खण -- खांडना, निस्तुष करना ( दे १।११५ वृ) । उक्खलुंप -- खुजलाना ( आचूला १।६२ ) । उक्खिल्ल -- उखाड़ना । उक्खुड ( तुड् ) -- तोड़ना ( प्रा ४।११६ ) । उक्खुड्ड -- उखाडना, तोड़ना ( कु पृ १२९ ) । उक्खुलंप -- खुजलाना (आचूला १।६२ ) । उग्ग ( उद् + घाटय् ) -- खोलना ( प्रा ४।३३ ) । उग्ग ( उद् + गम् ) -- उगना, उदित होना । उग्गलच्छाव -- खोलना ( राज ७५४ ) । उग्गह ( रचय् ) -- निर्माण करना ( प्रा ४९४ ) । उग्घ ( नि + द्रा ) -- ऊंघना । उग्घस ( मृज् ) -- मार्जन करना ( प्रा ४।१०५ ) । उच्चंप -- कहना ( अंवि पृ १०७ ) । उच्चाड -- १ रोकना, निवारण करना । २ अफसोस करना ( प्रा २।१९३ टी ) । उच्चिट्ठ ( उत् + स्था ) -- खड़ा होना । उच्चिड -- लगना, चिपकना । उच्चुप्प -- ( चट् ) चढ़ना ( प्रा ४।२५९ ) । परिशिष्ट - २ उच्छिंद -- उधार लेना । उच्छुभ (अप + क्षिप् ) -- आक्रोश करना ( प्र १।२७ ) । उच्छोड -- खोलना - 'उवहीए दोरयं उच्छोडेंति' ( ओटी प ८३ ) । उच्छोल ( उत् + क्षालय् ) -- प्रक्षालन करना - 'उच्छोलेंति पधोवेंति सिचंति सिणावेंति' ( आचूला ७।१९ ) । उच्छोल ( उत् + मूलय् ) -- उखाड़ना । उज्जीर -- अपमानित करना - 'उज्जीरेइ सहीओ कुसुमसरोक्खंडिआ कए तुज्झ' ( दे १।११२ वृ ) । उज्जुर -- क्षीण करना । उज्झ -- बुझाना ( निचू ४ पृ ३५४ ) । उज्झर -- १ टेढ़ी नजर से देखना । २ फेंकना । उट्ठ ( उत् + स्था ) – उठना ( प्रा ४।१७ ) । उड्ड -- १ वन्दन करना ( आवनि ११०९ ) । २ उड्डाह करना, उपहास करना ( निचू ३ पृ २९ ) । उड्डरुस्स -- प्रद्वेष करना - 'दाउं व उड्डरुस्से' ( बृभा ६२२ ) । उड्डुयाल -- मथना ( दहाटी प ६० ) । उण्णाल ( उद् + नमय् ) -- ऊंचा करना । उत्तुण -- गर्व करना ( व्यभा ५ टीप १९ ) । उत्थंघ ( उद् + गमय् ) -- उठाना ( प्रा ४ । ३६) । उत्थंघ (रुघ् ) -- रोकना ( प्रा ४।१३३ ) । उत्थंघ ( उत् + क्षिप् ) -- ऊंचा फेंकना ( प्रा ४।१४४ ) । उत्थग्घ ( उत् + क्षिप् ) -- फेंकना । उत्थल ( उत् + चल् ) -- चलना । उत्थल्ल ( उत् + शल् ) -- उछलना, कूदना ( प्रा ४।१७४ ) । उत्थार ( आ + क्रम् ) -- आक्रमण करना ( प्रा ४।१६० ) । उद्दा -- निर्माण करना । उद्दाय ( शुभ् ) -- शोभित होना । उद्दाल ( आ + छिद् ) -- हाथ से छीन लेना ( उशाटी प ३०१ ) । उद्धुम ( पूरय् ) -- पूरा करना ( प्रा ४।१६९ ) । उद्धमा ( उद् + ध्मा ) -- १ प्रदीप्त करना । २ आवाज करना ( प्रा ४।८ ) । उप्पण ( उत् + पू ) -- धान्य को सूप आदि से साफ करना ( आचूला १।८२ ) । उप्पाल ( कथ् ) -- कहना ( प्रा ४।२ ) । उप्पुस -- पोंछना ( से १।३३ ) । उप्पेल ( उद् + नमय् ) -- ऊंचा करना ( प्रा ४।३६ ) । उप्फाल ( उत् + पाटय् ) -- १ उखाड़ना । २ उठाना ( प्रा २।१७४ ) । उप्फाल ( कथ् ) -- कहना । उप्फिण -- उफनना । उप्फुस -- मिटा देना । उप्फुस ( उत् + स्पृश् ) -- खींचना । उप्फोस -- त्रस्त करना ( निचू २ पृ २०८ ) । उबुस ( मृज् ) -- मांजना, परिमार्जन करना । उम्भाल -- सूप से धान्य साफ करना । उब्भाव ( रम् ) -- क्रीड़ा करना, खेलना ( प्रा ४।१६८ ) । उब्भुत्त ( उत् + क्षिप् ) -- ऊंचा फैकना ( प्रा ४।१४४ ) । उमच्छ ( वञ्च् ) -- ठगना ( प्रा ४।९३ ) । उमच्छ ( अभ्या + गम् ) -- सामने आना । उम्मंथ -- जलाना । उम्मत्थ ( अभि + आ + गम् ) -- सामने आना ( प्रा ४।१६५ ) । उयध -- देखें ( बृभा ४१५६ ) । उयह -- देखें - 'उयह पश्यत मदीयानि वस्त्राणि इति' ( वृभा ४१५६ टी ) । उलंड -- उल्लंघन करना, लांघना ( दजिचू पृ ११ ) । उलूव -- बुझाना । उल्ल -- १ उपसर्पण करना । २ चीरमा । ३ उलाहना देना । उल्लाल ( उद् + नमथ् ) -- १ ऊंचा करना । २ ऊपर फेंकना ( प्रा ४।३६ ) । उल्लिंच ( उद् + रिच् ) -- निकालना, उलीचना - 'उल्लिंचइ ओयणाइ' ( पिनि ३९९ ) । उल्लुंट -- खंड-खंड करना । उल्लुंड ( वि + रेचय् ) -- भरना ( प्रा ४।२६ ) । उल्लुक्क ( तुड् ) -- तोड़ना ( प्रा ४।११६ ) । परिशिष्ट २ उल्लुड्ड ( वि + रेचय् ) -- विरेचन करना । उल्लुह ( निस् + सु ) -- निकलना । उल्लुडुंड -- १ उन्नत होना । २ उन्नत करना । उल्लूढ ( आ + रुह् ) -- १ चढ़ना । २ अंकुरित होना । उल्लूर ( तुड् ) -- १ तोड़ना । २ नाश करना ( प्रा ४।११६) । उल्हव ( वि + ध्मापय् ) -- गीला करना, बुझाना ( प्रा ४।४१६) । उल्हा ( वि + ध्मा ) -- १ बुझना । २ तमतमाना । उल्हाव ( निर्वापय् ) -- बुझाना। उवग्घ -- अवगाहन करना, परीक्षा करना (निचू ३ पृ ३७३) । उववुत्थ -- उपाय करना ( कु पृ १५० ) । उवसंखड ( उपसं + कृ ) -- राधना, पकाना ( आचूला १।४४ ) । उवहट्ट ( समा + रम् ) -- आरम्भ करना । उवहत्थ ( समा + रच् ) -- १ रचना, बनाना । २ उत्तेजित करना ( प्रा ४।९५ ) । उवेल्ल ( प्र + सृ ) -- पसरना ( प्रा ४।७७ ) । उव्वक्क -- उबाक आना, वमन करना । उव्वर -- उबरना, शेष रहना । उव्वाल ( कथ् ) -- कहना । उव्वाल (छादय् ) -- आच्छादित करना । उव्विल्ल ( प्र + सु ) -- फैलना । उव्वेल ( प्र + सु ) -- फैलना । उव्वेल्ल -- उद्घाटित करना, परतें उतारना - 'कयलीखंभो व जहा, उव्वेल्लेउं सुदुक्करं होति' ( बृभा ४१२८ ) । उव्वेल्ल ( उद् + नमय् ) -- ऊँचा करना । उस्सर -- १ बोना ( बृभा ४०३५ ) । २ चढ़ना-उतरना ( बृभा ४२२२) । उस्सिक्क ( मुच् ) -- छोड़ना ( प्रा ४।९१ ) । उस्सिक्क ( उत् + क्षिप् ) -- ऊंचा फेंकना ( प्रा ४।१४४ ) । ऊ ऊढ -- आच्छादित करना । ऊमिण -- पोंछना । ऊसल ( उत् + लस् ) -- खुश होना ( प्रा ४ ।२०२ ) । ऊसाअ -- १ विक्षिप्त होना । २ शिथिल होना । ऊसिक्क -- प्रदीप्त होना । ऊसुंभ ( उत् + लस् ) -- खुश होना ( प्रा ४।२०२ ) । ऊसुक -- परित्याग करना । ऊसुम्म -- सिरहाना लगाना । ऊसुरुसुंभ -- उल्लसित होना । ए एड -- १ उत्सर्ग करना ( भ १४।१०९ ) । २ हटाना, दूर करना । एस -- करना - 'तम्हा विणयमेसेज्जा, सीलं पडिलभे जओ' ( उ १।७ ) । ओ ओअंद ( आ + छिद् ) -- १ बलात्कार से छीन लेना । २ नाश करना ( प्रा ४।१२५ ) । ओअक्ख ( दृश् ) -- देखना ( प्रा ४।१८१ ) । ओअग्ग ( वि + आप् ) -- व्याप्त करना ( प्रा ४।१४१ ) । ओअग्घ -- सूंघना । ओअल्ल -- १ चलित होना, कांपना । २ प्रतारित होना । ओअव ( साधय् ) -- साधना, वश में करना ( जंबू ३ ) । ओंगण ( क्वण् ) -- अव्यक्त आवाज करना । ओंघ ( नि+द्रा ) -- नींद लेना ( प्रा ४।१२ टी ) । ओंबाल ( छादय् ) -- ढकना, आच्छादित करना ( प्रा ४।२१ ) । ओंबाल ( प्लावय् ) -- १ डुबाना । २ व्याप्त करना ( प्रा ४।४१ ) । ओग्गाल ( रोमन्थाय् ) -- पगुराना ( प्रा ४।४३ ) । ओच्छुंद ( आ + क्रम् ) -- १ गमन करना ( से १०।५५ ) । २ आक्रमण करना ( से १३।१९ ) । ओजिम्ह ( ध्रा ) -- तृप्त होना । ओड -- कंधा देना । ओड्ढ -- ओढ़ना, आच्छादित करना । ओढ -- धारण करना, ओढ़ना - 'अन्नया भोइओ पावारयं ओढिऊण अगुरुणा धूवेइ' ( विभाकोटी पृ ४०९ ) । परिशिष्ट २ ओत्थ ( स्थग् ) -- ढकना । ओप्प -- शाण आदि पर घर्षण करना । ओब्भाल -- सूप आदि से धान्य साफ करना । ओयव -- सिद्ध करना - 'सिंधुदेवीं ओयवेइ' ( आवटि प २० ) । ओरंप -- १ छीलना । २ नष्ट करना । ओरस ( अव + तृ ) -- नीचे उतरना ( प्रा ४।८५ ) । ओरुम्मा ( उद् + वा ) -- सूखना, शुष्क होना ( प्रा ४।११ ) । ओलंड ( उत् + लङ्घ् ) -- उल्लंघन करना, लांघना- 'अप्पेगइया मेहं कुमारं हत्थेहिं संघट्टेंति......अप्पेगइया ओलंडेंति....' ( ज्ञा १।१।१५३ ) । ओलग्ग -- सेवा करना । ओलि -- घर के चारों ओर घूमना - 'ओलिंतित्ति गृहाणि प्रति परिभ्रमन्ति' ( आवहाटी १ पृ १८३ ) । ओलिंप -- खोलना ( पिनि ३५४ ) । ओलुंड ( वि + रेचय् ) -- झरना, टपकना ( प्रा ४।२६ ) । ओलुह -- अवरोहण करना, नीचे उतरना ( आवहाटी १ पृ १२१ ) । ओले -- घर के चारों ओर घूमना- 'णीयं च कागा ओलेंति जाया भिक्खस्स हरहरा' ( आवहाटी १ पृ १८३ ) । ओल्लर -- शयन करना । ओल्लुड्ड ( वि + रेचय् ) -- विरेचन करना । ओवग्ग (अव + क्रम् ) -- १ व्याप्त करना ( से ३।११ ) । २ ढकना, आच्छादित करना ( से ४।२५ ) । ओवास ( अव + काश् ) -- शोभित होना ( प्रा ४।१७९ ) । ओवाह ( अव + गाह् ) -- हृदयंगम करना ( प्रा ४।२०५ ) । ओवेड -- १ निक्षिप्त करना, रखना (ओटी प १६ ) । २ फेंकना ( ओटी प ३५ ) । ओव्वाल ( प्लावय् ) -- प्लावित करना । ओसर ( अव + तृ ) -- १ उतरना । २ अवतरित होना, जन्म लेना । ओसिंघाव -- सूंघाना - 'सो भीतो अण्णं पुरिसं तं चुण्णगं ओसिंघावेति' ( दअचू पृ ४३ ) । ओसिर -- परित्याग करना । ओसीस ( अप + वृत् ) -- १ पीछे हटना । २ घूमना ( दे १।१५२ वृ ) । ओसुंख -- उत्प्रेक्षा करना, कल्पना करना । ओसुंभ (अव + पातय् ) -- १ गिराना । २ नष्ट करना ( से ४।५४ ) । ओसुक्क ( तिज् ) -- तीक्ष्ण करना ( प्रा ४।१०४ ) । ओसुब्भ (अव + पातय्) -- नष्ट करना । ओह ( अव + तृ ) -- नीचे उतरना ( प्रा ४।८५ ) । ओहच्छ ( अव+आस् ) -- बैठना । ओहट्ट -- १ पीछे हटना । २ ह्रास पाना, कम होना । ३ हष्टाना । ४ तिरस्कृत होना । ओहर ( अव + तृ ) -- अवतरित होना । ओहाड -- बंद करना ( निचू ३ पृ ४८४ ) । ओहाम ( तुलय् ) -- तुलना करना ( प्रा ४।२५ ) । ओहाव ( आ + क्रम् ) -- आक्रमण करना ( प्रा ४।१६० ) । ओहिर ( नि + द्रा ) -- नींद लेना । ओहीर ( सद् ) -- खिन्न होना ( पा ५०७ ) । ओहीर ( नि + द्रा ) -- निद्रा लेना ( बृभा १२८ ) । क कंठाल -- गले में बांधना ( कु पृ १३५ ) । कज्जल -- पानी से भर जाना - 'कज्जलेतित्ति पाणिते भरिज्जति' ( आचू पृ ३५७ ) । कज्जलाव ( ब्रुड् ) -- डूबना - 'उवरुवरि वा णावा कज्जलावेति' ( आचूला ३।२२ ) । कट्ट ( कृत् ) -- काटना । कडयड -- कटकट आवाज करना । कड्ढ ( कृष् ) -- १ बाहर निकालना ( उशाटी प १६३ ) । २ पढना, उच्चारण करना ( पंवटी पृ ७९ ) । ३ खेती करना । ४ रेखा करना ( प्रा ४।१८७ ) । कण्णाहिड -- कान लगाकर सुनना - 'पिण्डेन सूत्रकरणं मा भूत् कश्चित् पदं वाक्यं वा कण्णाहिडिस्सति' ( आटी प ९२ ) । कमवस ( स्वप् ) -- शयन करना ( प्रा ४।१४६ ) । कम्म ( कृ ) -- हजामत करना ( प्रा ४।७२ ) । परिशिष्ठ २ कम्म ( भुज् ) -- भोजन करना ( प्रा ४।११० ) । कम्मव ( उप + भुज् ) -- उपभोग करना ( प्रा ४।१११ ) । करंज (भञ्ज् ) -- भांगना ( प्रा ४।१०६ ) । करयर -- 'कर' 'कर' की आवाज करना, चहचहाना - 'करयरेंति सउणया' ( कु पृ १९८ ) । कसमस -- कसमसाना । काण -- काना करना, छेद करना- 'कीस मे कोलालाणि काणेसि !" ( आवचू १ पृ ६१४ ) । कालक्खर -- १ निर्भर्त्सना करना । २ निर्वासित करना । किलकिल -- किलकिल करना । किलिकिंच ( रम् ) क्रीड़ा करना, खेलना ( प्रा ४।१६८ ) । किलिकिल -- किलकिल आवाज करना । कुंट -- पैर में चुभे कांटे आदि को खोदना - 'अण्णत्तो च्चिय कुंटसि, अण्णत्तो कओ वतं जातं' ( बृभा ६१६७ ) । कुट्ट -- पीटना ( निचू २ पृ ९ ) । कुण ( कृ ) -- करना ( प्रा ४।६५ ) । कुण -- नकल करना ( निचू ३ पृ ३९ ) । कुरकुर -- बड़बडाना - 'भातुजायाओय कुरकुरायति' ( आवचू १ पृ ५२६ ) । कुरुड -- काटना । कुवार -- पुकार करना । केलाय ( समा + रच् ) -- रचना, बनाना ( प्रा ४।९५ ) । केवलाअ ( सम् + आ + रच् ) -- रचना करना । केवलाअ ( समा + रभ् ) -- आरम्भ करना । कोआस ( वि + कस् ) -- विकसित होना ( प्रा ४।१९५) । कोषक (व्या + हृ ) -- पुकारना, बुलाना ( प्रा ४।७६ ) । कोट्ट कूटना, पीटना ( आवहाटी १ पृ २६४ ) । कोट्टुम ( रम् ) -- क्रीड़ा करना, खेलना ( प्रा ४।१६८ ) । कोड्डुम ( रम् ) खेलना, क्रीड़ा करना । कोर -- पात्र के किनारा लगाना, बांधना ( निचू ४ पृ २१७ ) । ख खउर ( क्षुम् ) -- क्षुब्ध होना ( प्रा ४।१५४ ) । खंकार -- खेंखारना । खंच ( कृष् ) -- १ खींचना । २ वश में करना । खंप ( सिच् ) -- छिड़कना । खडखड -- खटखटाना - 'पाएहि खडखडे इ' ( उशाटी प १३८ ) । खडखडाव -- बजाना - 'सव्वा उज्जाणिय खडखडावेह' ( आवहाटी १ पृ १३६ ) । खडुक्क ( आविस् + भू ) -- प्रकट होना । खड्ड ( मृद् ) -- मर्दन करना ( प्रा ४ । १२६ ) । खरंट -- भर्त्सना करना ( आवहाटी १ पृ २६७) । खरड ( लिप् ) -- लीपना । खरवड -- कुरेदना, इधर उधर करना - 'तं गंतूण पाएहि खरवडे इ' ( उसुटी प ५४ ) । खरियाल -- कदर्थना करना । खलहल -- 'खलखल' शब्द करना । खलाहि -- दूर हटो - 'गच्छक्खलाहि किमिहं ठिओसि ? ' ( उ १२।७ ) ; 'देशीपदमपसरेत्यस्यार्थे ( उशाटी प ३५९ )। खस -- खिसकना, गिरना । खिज्ज -- १ खेद करना । उद्विग्न होना । खिर ( क्षर् ) -- गिरना, टपकना ( प्रा ४।१७३ ) । खिल्ल ( खेल ) — क्रीड़ा करना । खिल्ल ( कीलय् ) – रोकना । खिस -- खिसकना, सरकना । खील -- कीलना । खुंद ( क्षुद् ) -- १ जाना । २ पीसना । खुंद ( क्षुध् ) -- भूख लगना । खुज्ज ( परि + अस् ) -- १ फेंकना । २ निरसन करना । खुट्ट ( तुड् ) -- १ तोड़ना । २ खूटना, क्षीण होना । ३ टूटना ( प्रा ४।११६ ) । परिशिष्ट २ खुड ( तुड् ) -- तोड़ना ( प्रा ४।११६ ) । खुडुक्क ( खुट्शब्दं कृ ) -- खुट् शब्द करना । खुडुक्क -- १ शल्य की तरह चुभना, खटकना ( आटी प २२ ) । २ गुस्से से मौन रहना । ३ नीचे उतरना । ४ स्खलित होना । ५ प्रारंभ करना । खुडुक्क ( अप + क्रमय् ) -- हटाना । खुड्ड ( तुड् ) -- तोड़ना से तिलसंगलियं खुड्डइ' ( भ १५।७४ ) । खुड्ड ( मृद् ) -- मसलना । खुड्डुक्क -- १ नीचे उतरना । २ स्खलित होना । ३ शल्य की तरह चुभना । ४ गुस्से से मौन होना । खुप्प ( प्लुष् ) -- जलाना । खुप्प ( मस्ज् ) -- मज्जन करना, डूबना ( ओनि २४ ) । खुप्प -- फेंकना । खुम्म ( क्षुध् ) -- भूख लगना । खुव्व -- डरना, घबराना ( अंवि पृ २४५ ) । खेड -- १ हांकना, ले जाना - 'सगडाइं उप्पहेण खेडंति' ( उसुटी प ५१ ) । २ खेती करना । ३ शिकार करना । खेड्ड ( रम् ) -- क्रीड़ा करना, खेलना ( प्रा ४।१६८ ) । खेव -- नौका को खेना ( नि १८।१३ ) । खोक्ख -- वानर का बोलना । खोट्ट -- खटखटाना, ठकठकाना । खोड -- १ छोड़ देना, निषेध करना - 'सेसाओ खोडेयव्वाओ'' ( भ १२।१७५ ) । २ स्खलित करना ( आवहाटी १ पृ २१५ ) । ३ फोड़ना; खंडित करना ( अंवि पृ१४८ ) । खोहिव -- विचलित करना ( कु पृ १०१ ) । ग गउड ( गम् ) -- जाना -'.......थलपहेण गउडइ' ( निचू १ पृ ७२ ) । गंज -- १ पराजित करना । २ तिरस्कार करना । ३ मर्दन करना । ४ उल्लंघन करना । गंठ ( ग्रन्थ् ) -- गूंथना ( प्रा ४।१२० ) । गडयड -- गर्जन करना । गड्ड -- गाडना । गढ ( घट् ) -- १ बनाना ( प्रा ४।११२ ) । २ मिलाना । ३ संचालन करना । गमेस ( गवेषय् ) -- खोजना ( प्रा ४।१८९ ) । गलत्थ ( क्षिप् ) -- फेंकना ( प्रा ४।१४३ ) । गहगह -- हर्ष से भर जाना । गहग्गहाव -- आनन्द से भर देना ( बृटी पृ ११२३ ) । गुंज -- ( हस् ) हंसना ( प्रा ४।१९६ ) । गुंजोल्ल ( उत् + लस् ) -- खुश होना ( प्रा ४।२०२ ) । गुंजोल्ल ( वि + लुल् ) -- बिखेरना । गुंठ ( उद् + धूलय् ) -- धूसरित करना ( प्रा ४।२९ ) । गुप्प -- व्याकुल होना ( स्था ३।४६५ ) । गुम ( भ्रम् ) -- घूमना फिरना ( प्रा ४।१६१ ) । गुम्म ( मुह् ) -- मुग्ध होना ( प्रा ४ । २०७) । गुम्मड ( मुह् ) -- मुग्ध होना ( प्रा ४ । २०७)। गुम्ह ( गुम्फ् ) -- गूंथना । गुलगुंछ ( उत् + क्षिप् ) -- ऊंचा फेंकना ( प्रा ४।१४४ ) । गुलगुंछ ( उद् + नमय् ) -- उन्नत करना । गुलगुल -- हाथी का चिंघाड़ना । गुलल ( चाटौ कृ ) -- खुशामद करना ( प्रा ४।७३ ) । गुलल -- स्पर्श करना, सहलाना - 'गुललइ हत्थेहि, चुंबइ मुहेण' ( कु पृ २२५ ) । गुलुगुंछ ( उद् + नमय् ) -- ऊंचा करना ( प्रा ४।३६ ) । गुलुगुंछ ( उत् + क्षिप् ) -- ऊंचा फेंकना । गुलुगुच्छ ( उद् + नमय् ) -- ऊंचा करना । गुव्व -- व्याकुल होना ( भटी पृ १२३६ ) । गेण्ह ( ग्रह् ) - ग्रहण करना ( प्रा ४।२०९ ) । घ घंघल -- घबराना, व्यग्र होना । घड -- मन्त्रणा करना - 'अण्णरायाण एहिं समं घडामि' ( आवहाटी २ पृ १४१ ) । घत्त ( क्षिप् ) -- फेंकना ( प्रा ४।१४३ ) । घत्त ( यत् ) -- प्रयत्न करना - 'घत्तिस्सामि त्ति यतिष्ये' ( अंत ३।४७ टी प ८ ) । परिशिष्ट २ घत्त ( गवेषय् ) -- खोजना ( प्रा ४।१८९ ) । घत्त ( ग्रह् ) -- ग्रहण करना । घल्ल ( क्षिप् ) -- फेंकना, रखना - 'सायरू उप्परि तणु घरइ, तलि घल्लइ रयणाइं' ( प्रा ४।३३४ टी ) । घवघव -- गंध फैलना - 'गंधप्रसरणे देशी धातु ।' घा -- तृप्त होना, अघाना - 'तृप् अर्थे देशी ।' घिप्प ( ग्रह ) -- ग्रहण करना ( उसुटी प २ ) । घिव -- फेंकना - 'क्षिप् इत्यर्थे देशी ।' घिस ( ग्रस् ) -- निगलना ( प्रा ४।२०४ ) । घुट्ट -- पेय पीते समय आवाज करना । घुडुक्क ( घडघडाशब्दं कृ ) -- गर्जन करना, घड-घड शब्द करना । घुम ( घूर्ण् ) -- चक्राकार घूमना ( अंवि पृ ८० ) । घुम्म -- घूमना (उसुटी प २३७) 'भ्रमणे देशी धातु ।' घुरघुर -- घूरना । घुरुक्क -- घुड़कना, गरजना - 'घुरुक्कंती वग्घा' ( उसुटी प १३८ ) । घुरुधुर -- घुरघुराना, सूकर की घुर्र्-घुर् आवाज - 'घुरुघुरंति वराहा' ( उसुटी प १३८ ) । घुरुहुर -- घुर्-घुर् करना । घुल ( घूर्ण् ) -- कंपित होना ( प्रा ४।११७ ) । घुसल ( मथ् ) -- मथना, विलोड़न करना ( दश्रुचू प २५ ) । घुसुल ( मथ् ) -- दही आदि बिलौना (पिनि ५८७) । घे -- ग्रहण करो - 'गृहाण इत्यर्थे देशी ।' घेप्प ( ग्रह् ) -- ग्रहण करना ( प्रा ४।२५६ ) । घोट्ट ( पा ) -- पीना ( अंवि पृ २५८ ) । घोल -- लुढकना । घोल ( घूर्ण् ) -- घूमना, कांपना ( निचू ४ पृ २४८ ) । च चंछ ( तक्ष् ) -- छीलना । चंड ( पिष् ) -- पीसना । चंप -- चांपना, दबाना ( प्रा ४।३९५ ) । चंप ( आ + रुह् ) -- आरोहण करना, चढ़ना । चंप ( चर्च् ) -- चर्चा करना । चक्कम ( भ्रम् ) -- घूमना ( दे २।६ वृ ) । चक्कम्म ( भ्रम् ) -- घूमना फिरना ( प्रा ४।१६१ ) । चक्ख ( आ + स्वादय् ) -- चखना ( उसुटी प ११८ ) । चक्ख ( आ + चक्ष् ) -- कहना । चच्चार ( उप + आ + लभ् ) -- उपालंभ देना । चच्चुप्प ( अर्पय् ) -- अर्पण करना ( प्रा ४।३९ ) । चच्छ (तक्ष् ) -- काटना ( प्रा ४।१९४ ) । चज्ज ( दृश् ) -- देखना ( दे ३।४ वृ ) । चट्ट -- चाटना - 'न य अलोणियं सिलं को वि चट्टेइ' ( उसुटी प ६१ ) । चड ( आ + रुह् ) -- आरोहण करना ( निचू ३ पृ ५०१ ) । चडचड -- चड-चड की आवाज करना । चडपड -- छटपटाना, क्लेश पाना । चडप्फड -- छटपटाना, क्लेश पाना ( उसुटी प ३०५ ) । चडाव -- चढ़ाना ( व्यभा ३ टी प २७ ) । चड्ड -- खिन्न होना ( दअचू पृ ५५ ) । चड्ड ( भुज् ) -- भोजन करना (प्रा ४।११० ) । चड्डु ( मृद् ) -- मर्दन करना ( प्रा ४।१२६ ) । चड्डु ( पिष्) -- पीसना ( प्रा ४।१८५ ) । चढ ( आ + रुह् ) -- चढ़ना ( व्यभा ३ टी प २.७ ) । चप्प ( आ + क्रम् ) -- आक्रमण करना, दबाना । चप्प (चर्चा ) -- १ कहना । २ अध्ययन करना । ३ भर्त्सना करना । ४ चन्दन आदि से विलेपन करना । चप्पड -- १ आक्रान्त होना ( सूचू १ पृ १९१ ) । २ तेल की मालिश करना - 'तैलाभ्यङ्गने देशी ।' चबचब -- चबाना, चब-चब शब्द करना ( ओटी प १८७ ) । चमड ( भुज् ) -- भोजन करना । चमढ ( भुज् ) -- भोजन करना ( प्रा ४।११० ) । चमढ -- १ मर्दन करना । २ प्रहार करना । ३ कदर्थना करना । ४ निन्दा करना । ५ आक्रमण करना । ६ खिन्न करना । परिशिष्ट २ चय ( शक् ) -- समर्थ होना ( सू १।३।१८ ) । चय ( त्यज् ) -- छोड़ना ( आ ६।२६ ) । चव ( कथय् ) -- कहना ( प्रा ४।२ ) । चहुट्ट -- चिपकना, लगना । चाह ( वाञ्छ् ) -- १ चाहना । अपेक्षा करना । ३ याचना करना । चिंच ( मण्डय् ) -- विभूषित करना ( प्रा ४।११५ ) । चिंचअ ( मण्डय् ) -- विभूषित करना ( प्रा ४।११५ ) । चिंचिल्ल ( मण्डय् ) -- मंडित करना ( प्रा ४।११५ ) । चिच्च ( त्यज् ) -- छोड़ना ( उ १४।५० ) । चिट्ठ ( स्था ) – ठहरना ( आ २।६६ ) । चिडु -- गीला होना। चिप्प -- १ कूटना ( बृभा ३६७५ ) । २ दबाना । चिम्मक -- १ चमत्कृत करना । २ घूमना । चिरमाल ( प्रति + पालय् ) -- परिपालन करना । चिराव -- विलंब करना । चिलिचिल -- पक्षी का आवाज करना ( कु पृ ८२ ) । चिलिस -- घृणा करना । चिल्लुंप ( कांक्ष् ) -- इच्छा करना । चीर -- चीरना । चुक्क ( भ्रंश् ) -- १ स्खलित होना ( उशाटी प १४९ ) । २ वञ्चित होना । ३ नष्ट करना ( प्रा ४।१७७ ) । चुण ( चि ) -- चुगना, पक्षियों का खाना ( प्रा ४।२३८ ) । चुमचुम -- तोते का शब्द करना । चुलचुल -- १ स्पंदित होना, फडकना ( कु पृ २२१ ) । २ उत्सुक होना । चुलुचुल ( स्पन्द् ) -- फरकना, स्पन्दित होना ( प्रा ४।१२७ ) । चुलुवुल -- स्फुरित होना- कुकहलं चुलुवुलेइ' ( कु पृ ११६ ) । चुल्लुच्छल -- छलकना, उछलना ( सूचू १ पृ १६४-) देखें- छुल्लुच्छल । चुहुट्ट -- चिपकना, लगना । चेव -- जागना । चोंपय -- चुगली करना ( दश्रुचू प ४० ) । चोप्पड ( म्रक्ष् ) - स्निग्ध करना ( प्रा ४।१९१ ) । छ छंट ( सिच् ) -- पानी के छींटे देना, छिड़काव करना ( आवहाटी २ पृ २०७ ) । छंट -- छांटना, छड़ना ( प्रसाटी प १५२ ) । छंटय -- छांटना, चावल आदि को छिलके रहित करना ( प्रसाटी प १५२ ) । छंड ( मुच् ) -- छोड़ना । छज्ज ( राज् ) -- शोभना, चमकना ( प्रा ४।१०० ) । छज्ज -- छप्पर डालना, घर छवाना - 'गामेसु घराइं छज्जंति' ( कु पृ १०१ ) । छड ( आ + रुह् ) -- आरूढ होना, चढ़ना । छड्ड ( मुच् ) -- १ छोड़ना ( प्रा ४।९१ ) । २ गिराना । ३ वमन करना । छमछम -- छम छम की आवाज करना । छिक्क -- छींक करना । छिग्ग ( छुप् ) -- छूना । छिप्प ( स्पृश् ) -- छूना, स्पर्श करना ( प्रा ४।२५६ ) । छिव ( स्पृश् ) -- स्पर्श करना ( प्र ७।५ ) । छिव -- धारण करना ( प्रटी प ११५ ) । छिह ( स्पृश् ) -- स्पर्श करना ( प्रा ४।१८२ ) । छुंद ( आ + क्रम् ) -- आक्रमण करना ( प्रा ४।१६०) । छुक्क ( भ्रंश् ) -- नष्ट होना । छुछुकार -- छु-छु की आवाज करना ( आ ९।३।४ ) । छुट्ट -- छूटना ( निचू ३ पृ १४४ ) । छुर -- १ ढकना । २ लेप करना । ३ छेदन करना । ४ व्याप्त करना । छुल्ल ( भ्रंश् ) -- नष्ट होना । छुल्लुच्छुल -- छलकना, उछलना - 'छुल्लुच्छुलेति जं होति ऊणयं रित्तयं कणकणेइ । भरियाइं ण खुब्भंती सुपुरिसविण्णाणभंडाइं ।।' ( सूचू १ पृ १६४ ) । छुह ( क्षिप् ) -- डालना, रखना - 'प्रस्तरान शून्यगृहस्यान्तः छुहइत्ति प्रवेशयति' ( व्यभा ३ टी प १०२ ) । छेर -- १ लीद करना, शौच करना ( उशाटी प १६९ ) । २ चिल्लाना । परिशिष्ट २ छोड -- १ छीलना - 'उच्छुखंडियाओ छोडेतुं चाउज्जातएणं वासेतुं' ( दअचू पृ ५५ ) । २ आहत करना, विदारित करना ( निचू २ पृ २२४ ) । ३ छोड़ना ( उसुटी प ६२ ) । ४ गांठ खोलना । छोल्ल ( तक्ष् ) -- छीलना - 'सा' (सालिअक्खए) छोल्लेइ, छोल्लेत्ता अणुगिलइ' ( ज्ञा १।७।८ ) । ज जअड ( त्वर् ) -- शीघ्रता करना ( प्रा ४।१७० ) । जंप ( कथय् ) -- कथन करना ( सू १।१।१० ) । जगजग ( चकास् ) -- चमकना । जगड -- १ उत्तेजित करना । २ कदर्थना करना । ३ झगड़ना ( चं १४१ ) । ४ पीटना । ५ उठाना, जागृत करना । जड -- बांधना, संलग्न करना - 'भाणं सिक्कएण जडिज्जइ' ( आवहाटी २ पृ ८७ ) । जड ( त्वर् ) -- शीघ्रता करना । जप्प ( कथय् ) -- कहना । जम -- जमना - 'फणिगाए बाला जमिज्जंति' ( सूचू १ पृ ११७ ) । जम्म ( जन् ) -- उत्पन्न होना ( प्रा ४।१३६ ) । जम्म -- खाना, भक्षण करना । जर -- छुपाना - 'हाउं वा जरेउं वा' (बृभा ४७४८)। जव ( यापय् ) -- १ गमन करवाना, भेजना ( प्रा ४।४० ) । २ काल-यापन करना ( पिनि ६१९ ) । ३ व्यवस्था करना । जा ( जन् ) -- उत्पन्न होना ( प्रा ४।१३६ ) । जाण ( ज्ञा ) -- जानना ( आ १ । ३ ) । जाम ( मृज् ) -- मार्जन करना । जिंघ ( घ्रा ) -- सूंघना । जिम ( भुज् ) -- भोजन करना ( प्रा ४।११० ) । जिम्म -- भोजन करना - 'भुज् धात्वर्थे देशी ।' जीरव -- पचाना । जीह ( लस्ज् ) -- लज्जा करना ( प्रा ४।१०३ ) । जुंज ( युज् ) -- जोड़ना ( प्रा ४।१०९ ) । जुज्ज ( युज् ) -- जोड़ना ( प्रा ४।१०९ ) । जुप्प ( युज् ) -- जोड़ना ( प्रा ४।१०९ ) । जुप्प -- जोतना । जूर ( क्रुध् ) -- गुस्सा करना ( प्रा ४।१३५ ) । जूर ( खिद् ) -- खेद करना, अफसोस करना ( प्रा ४।१३२ ) । जूर ( गर्ह् ) -- निंदा करना ( सू २।१।४२ ) । जूर -- १ झूरना, सूखना । २ वध करना । जूरव ( वञ्च् ) -- ठगना ( प्रा ४।९३ ) । जूह -- लाना, आनयन -- 'देशीशब्दत्वाद् आनयन्ति' ( बृटी पृ १९३० ) । जेंव -- भोजन करना । जेम ( भुज् ) -- भोजन करना ( प्रा ४।११० ) । जो ( दृश् ) -- देखना । जोअ -- १ निरूपण करना- 'जोएइत्ति देशीवचनमेतत् निरूपयति' ( व्यभा १ टी प ३० ) । जोअ ( द्युत् ) -- प्रकाशित होना ( सू १।६।१३ ) । जोक्ख -- तोलना ( मराठी - जोखणें ) । जोड -- जोड़ना, युक्त करना । जोय ( दृश् ) -- देखना । जोव ( दृश् ) -- देखना ( उसुटी प ८७ ) । जोहार -- जुहारना, प्रणाम करना ( जुहार - राजस्थानी ) । झ झंख -- १ क्रुद्ध होना ( अनुद्वाहाटी पृ २९ ) । २ बार बार कहना ( पिनि २८६ ) । ३ स्वीकार करना । ४ आच्छादन करना । झंख ( सं + तप् ) -- संताप करना ( प्रा ४।१४० ) । झंख ( उपा + लभ् ) -- उलाहना देना ( प्रा ४।१५६ ) । झंख ( वि + लप् ) -- विलाप करना ( प्रा ४।१४८ ) । झंख ( निर् + श्वस् ) -- निःश्वास लेना ( प्रा ४।२०१ ) । झंट ( भ्रम् ) -- घूमना, फिरना ( प्रा ४।१६१ ) । झंट ( गुञ्ज् ) -- गुञ्जारव करना । झंप ( भ्रम् ) -- घूमना, फिरना ( प्रा ४।१६१ ) । परिशिष्ट २ झंप ( आ + क्रामय् ) -- आक्रमण करना । झंप ( आ + च्छादय् ) -- झांपना, ढकना । झंप -- गोता लगाना । झड ( शब् ) -- १ झड़ना, टपकना, फल आदि का गिरना । २ हीन होना ( प्रा ४।१३० ) । झड -- भगाना - 'झड विद्रावणे देशी ।' झडप्प -- आक्रमण करना । झडप्प ( आ + छिद् ) -- भपटना, छीनना । झण ( जुगुप्स् ) -- घृणा करना । झणज्झण -- झन-झन आवाज करना । झप्प ( जुगुप्स् ) -- घृणा करना । झर ( स्मृ ) -- याद करना, परावर्तन करना ( व्यभा ४।४ टी प १०३ ) । झर -- ध्यान करना ( आवचू १ पृ ४१० ) । झर ( क्षर् ) -- गिरना, झरना ( प्रा ४।१७३ ) । झलक्क ( दह् ) -- जलना । झलज्झल ( जाज्वल् ) -- झलकना, चमकना । झलझल ( जाज्वल् ) -- झलकना, चमकना । झलहल ( जाज्वल् ) -- झलकना, चमकना । झलहल -- विचलित होना, क्षुब्ध होना । झलुंक -- जलना । झलुंस -- जलना । झल्लोज्झल्ल -- परिपूर्ण होना, भरपूर होना । झा ( ध्यै ) -- चिंतन करना, ध्यान करना ( आ ६।१।५ ) । झाम ( दह् ) -- जलाना । झिंख -- झींखना, गुस्सा करना ( विभाकोटी पृ २९३ ) । झिंझ -- झनझनाना । झिज्झ ( क्षि ) -- १ क्षीण होना ( उ २०।४९ ) । २ झेंपना । झिल -- झेलना, पकड़ना । झिल्ल ( स्ना ) -- झीलना, स्नान करना । झुंब -- लंबा होना । झुण ( जुगुप्स् ) -- घृणा करना ( प्रा ४।४ ) । झुलुक्क -- चमकना । झुल्ल ( अन्दोल् ) -- झूलना, डोलना । झूण ( जुगुप्स् ) -- घृणा करना । झूर ( जुगुप्स् ) -- निन्दा करना । झूर ( स्मृ ) -- स्मरण करना ( प्रा ४।७४ ) । झूर ( क्षि ) -- झुरना, क्षीण होना । झूर -- खेद करना - 'खेदे देशी धातु।' झूरव ( खिद् ) -- झुरना, क्षीण होना । झोड ( शाटय् ) -- पेड़ आदि से पत्र वगैरह को गिराना । झोस -- दूर करना ( जीत ७८ ) । झोस ( गवेषय् ) खोज करना, अन्वेषण करना - 'झोसेह त्ति देशीवचनत्वाद् गवेषयत' ( बृभा ३३३५ टी ) । ट टंक -- फैलना । टक्कर -- ठोकर लगाना । टरटर -- टरटराना, मेंढक का शब्द करना । टल -- १ हिलना । २ टलना । टलटल -- टल-टल आवाज करना । टलवल -- १ तड़पना । २ घबराना । टहर -- ऊंचा करना । टाल -- टालना, हटाना । टिंटियाव -- 'टि-टि' की आवाज करना ( उसुटी प २८९ ) । टिक्क -- टीका लगाना, तिलक लगाना । टिट्टियाव -- १ टिट्-टिट् की आवाज करना- 'मयूरीअंडयं ..कण्णमूलंसि टिट्टियावेइ' ( ज्ञा १।३।२१ ) । २ बोलने की प्रेरणा करना । टिरिटिल्ल ( भ्रम् ) -- घूमना, फिरना ( प्रा ४।११५ ) । टिल्लिक्क -- विभूषित करना । टिविडिक्क ( मण्डय् ) -- मंडित करना ( प्रा ४।११५ ) । टुंटुण्ण -- टुनटुन आवाज करना । टुट्ट ( त्रुट् ) -- टूटना ( से ६।६३ ) । परिशिष्ट २ ठ ठग -- ठगना, वंचित करना । ठर -- आदर करना । ठल -- खाली करना । ठा ( स्था ) -- ठहरना ( प्रा ४।१६ ) । ठाअ ( स्था ) -- ठहरना ( प्रा ४।१६ टी ) । ठिव्व ( वि + घुट् ) -- मोड़ना । ठुक्क ( हा ) -- त्याग करना । ड डंडल्ल ( भ्रम् ) -- घूमना । डंडोल ( गवेषय् ) -- गवेषणा करना । डंभ -- दागना ( आवहाटी २ पृ ८८ ) । डक्क -- लूटना, डाका डालना ( निचू ३ पृ ८७ ) । डक्क ( छादय् ) -- आच्छादित करना । डक्कुर -- पीड़ित होना । डगमग -- हिलना, डगमगाना । डमडम -- डमडम आवाज करना । डर ( अस् ) -- भय खाना ( प्रा ४।१९८ ) । डल्ल ( पा ) -- पान करता (प्रा ४।१० ) । डव ( आ + रम् ) -- आरंभ करना । डिंफ -- जल में गिरना। डिंभ ( त्रंस् ) -- खिसकना ( प्रा ४।१९७ ) । डिक्क ( वृषकर्तृकं गर्ज् ) -- वृषभ का गर्जना । डिप्प ( वि + गल् ) -- १ सड़ जाना । २ गिरना । डिप्प ( दीप् ) -- चमकना । डिव -- लांघना ( व्यभा १ टी प ३५ ) । डुंडुल्ल ( भ्रम् ) -- घुमना । डुंडुल्ल ( गवेषय् ) -- गवेषणा करना । डुम ( भ्रम् ) -- घूमना । डुल -- डोलना, कांपना। डुल्ल -- कंपित होना। डुस ( भ्रम् ) -- घूमना । डेव -- १ उल्लंघन करना ( व्यभा १० टी प ८२ ) । २ संभोग करना - 'डेवेंति - परिभुंजंतीत्यर्थ: ' ( निचू ४ पृ ३ ) । डोल्ल -- कंपित होना, डोलना । डोह -- अवगाहन करना । ढ ढंक -- ढांकना- 'ढंक - आच्छादने देशी ।' ढंढल्ल ( भ्रम् ) -- घूमना, फिरना ( प्रा ४।१६१ ) । ढंढुल्ल -- घूमना । ढंढोल ( गवेषय् ) -- खोजना ( प्रा ४।१८९ ) । ढंढोल्ल ( गवेषय् ) -- अन्वेषण करना । ढंस ( वि + वृत् ) -- घसना, गिरना ( प्रा ४।११८ ) । ढक्क ( छादय् ) -- आच्छादित करना ( बृभा ३३७७ ) । ढक्क -- वृषभ का आवाज करना । ढग्गढग्ग -- ढग-ढग शब्द करना । ढण -- शब्द करना । ढल -- १ टपकना, नीचे पड़ना । २ झुकना । ३ क्षीण होना - 'ढल हाने देशी।' ढाल -- १ नीचे गिराना 'ढालइ सिहरीण सिहराइं' ( उसुटी प २४९ ) । २ झुकाना । ३ चंवर डुलाना । ४ फेंकना - ढाल क्षेपणे देशी ।' ढिंढ -- जल में गिरना। ढिक्क ( गर्ज् ) -- वृषभ का शब्द करना ( प्रा ४।९९ ) । ढिल्ल -- शिथिल होना । ढुंढुल्ल ( गवेषय ) -- खोजना ( प्रा ४।१८९ ) । ढुंढुल्ल ( भ्रम् ) -- घूमना फिरना ( प्रा ४।१६१ ) । ढुक्क ( प्र + विश् ) -- १ जाना, प्रवेश करना ( आवहाटी २ पृ १२८ ) । २ प्रवृत्त होना ( बृटी पृ ४६६ ) । ३ छूना - 'मा ढुक्कह' ( बृटी पृ १५४५ ) । परिशिष्ट २ ढुम ( भ्रम् ) -- घूमना, फिरना ( प्रा ४।१६१ ) । ढुरुढुल्ल ( भ्रम् ) -- घूमना । ढुस ( भ्रम् ) -- घूमना, फिरना ( प्रा ४।१६१ ) । ढेंक ( गर्ज् ) -- वृषभ का आवाज करना । ढेंक -- धूपित करना, धूप देना । ढोंघ -- भ्रमण करना । ढोक्क -- बंद करना ( आवहाटी २ पृ ४८ ) । ढोल -- नीचे गिराना ( आवचू १ पृ १२३ ) । ( ढोलना - राज ) । ण णज्ज ( ज्ञा ) -- जानना ( प्रा ४।२५२ ) । णड ( गुप् ) -- १ व्याकुल करना, बाधित करना ( आवहाटी १ पृ १४६ ) । २ व्याकुल होना ( प्रा ४।१५०) । णत्थ -- नाक में नथ डालना ( निभा ४३३० ) । णप्प ( ज्ञा ) -- जानना ( निचू २ पृ २४ ) । णवज्ज -- नमस्कार करना । णवर ( कथय् ) -- कहना । णव्व ( ज्ञा ) -- जानना ( प्रा ४।२५२ ) । णि ( गम् ) -- जाना । णिअ ( दृश् ) -- देखना ( प्रा ४।१८१ ) । णिअंस ( नि + वस् ) -- पहनना । णिअक्क ( दृश् ) -- देखना । णिअच्छ ( दृश् ) -- देखना ( प्रा ४।१५१ ) । णिअच्छ ( नि + गम् ) -- १ अनुभव करना, भोगना ( सूचू १ पृ २५ ) । २ अवश्य प्राप्त करना ( सूटी १ प२० ) । णिअड्ढ ( नि + कृष् ) -- खींचना । णिआर ( काणेक्षितं कृ ) -- कानी नजर से देखना ( प्रा ४।६६ ) । णिउड्ड ( मस्ज् ) -- मज्जन करना, डूबना ( प्रा ४।१०१) । णिक्कल ( निर् + कस् ) -- बाहर निकलना - 'वसहीपालो बाहिं णिक्कलिस्सति' ( निचू २ पृ १७४ ) । णिक्काल ( निर् + कासय् ) -- बाहर निकालना । णिक्कोर -- पात्र आदि के मुख का अपनयन करना ( निभा ४६७० ) । णिक्खुस्स -- निकालना - 'णिसारेति णिक्खुस्सति विकड्ढति' ( अंवि पृ १०८ ) । णिगुड -- मुक्त करना ( आवहाटी १ पृ २९० ) । णिच्चल ( क्षर् ) -- गिरना, टपकना ( प्रा ४।१७३ ) । णिच्चल ( मुच् ) -- दुःख को छोड़ना ( प्रा ४।९२ टी ) । णिच्चोय -- निचोड़ना । णिच्छट्ट -- स्खलित होना । णिच्छल्ल ( छिद् ) -- छेदना, खण्डित करना ( प्रा ४।१२४ ) । णिच्छुभ ( नि+ क्षिप् ) -- रखना ( ज्ञा १।४।१३ ) । णिच्छुह ( नि + क्षिप् ) -- बाहर निकालना, निस्सारण करना ( ज्ञा १।८।१४६ ) । णिच्छोड -- १ आक्रोश करना ( उपा ७।२५ ) । २ निर्भर्त्सना करना । णिज्झ ( स्निह् ) -- स्नेह करना । णिज्झर ( क्षि ) -- नष्ट होना ( प्रा ४।२० ) । णिज्झोड ( छिद् ) – छेदना, खण्डित करना ( प्रा ४।१२४ ) । णिट्टुअ ( क्षर् ) -- गिरना, टपकना ( प्रा ४।१७३ ) । णिट्टुह ( वि + गल ) -- गल जाना ( प्रा ४।१७५ ) । णिट्टुंघ -- निकालना ( अंवि पृ ८० ) । णिट्टुह ( नि + ष्ठीव् ) -- थूकना । णिट्टुह ( नि + स्तम्भ् ) -- निश्चेष्ट करना, स्तब्ध करना ( प्रा ४।६७ ) । णिड्डार -- आंखें फाड़ना । णिड्डुह ( क्षर् ) -- टपकना । णिण ( गम् ) -- जाना । णिण्णक्खु -- निकालता है - 'बहिया वा णिण्णक्खु' ( आचूला २।१२ ) । णिण्णा -- नीचे की ओर जाना' - 'णिण्णाइंई ति देशीपदत्वादधोगच्छति' ( उशाटी प २६३ ) । णिद्दुक्ख -- उड्डाह करना ( निभा ६११५ चू ) । णिप्पण -- जल से धोना । णिप्पा ( वि + श्रम् ) -- विश्राम करना । परिशिष्ट २ णिबुड्ड ( नि + मस्ज् ) -- निमग्न होना, डूबना ( उशाटी प २३२ ) । णिबोल ( नि+ मस्ज् ) -- निमज्जन करना । णिब्बल ( दुःखं मुच् ) -- दुःखमुक्त होना । णिब्बल ( क्षर् ) -- क्षरित होना । णिब्बल -- जलना ( से १५।३८ ) । णिब्बुड -- डूबना - 'मस्ज् धात्वर्थे देशी ।' णिब्भिड -- आक्रांत करना । णिम ( नि + अस् ) -- स्थापना करना ( प्रा ४।१९९) । णिम -- सूंघना । णिमि ( नि + युज् ) -- जोड़ना । णिम्मह ( गम् ) -- १ गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२ ) । २ फैलना ( से ७।६२ ) । णिय -- देखना - 'अवलोकने देशी धातु।' णियंसाव -- वस्त्र पहनाना ( जंबू ३।२११ ) । णियच्छ -- देखना - 'दृश् धात्वर्थे देशी।' णिरणास ( नश् ) -- पलायन करना, भागना ( प्रा ४।१७८ ) । णिरप्प ( स्था ) -- ठहरना ( प्रा ४।१६ ) । णिरव ( आ + क्षिप् ) -- आक्षेप करना । णिरव ( बुभुक्ष् ) -- खाने की इच्छा करना । णिरिग्घ ( नि + ली ) -- १ आश्लेष करना । २ छिपना ( प्रा ४।५५ ) । णिरिणास ( गम् ) -- जाना ( प्रा ४।१६२ ) । णिरिणास ( नश् ) -- पलायन करना ( प्रा ४।१७८ ) । णिरिणास ( पिष् ) -- पीसना ( प्रा ४।१८५ ) । णिरिणिज्ज ( पिष् ) -- पीसना ( प्रा ४।१८५ ) । णिलिज्ज -- १ स्पर्श करना । २ संबाधन करना ( सू १।४।५१ टी ) । णिलीअ ( नि + ली ) -- १ आलिंगन करना । २ छिपना ( प्रा ४।५५ ) । णिलुक्क ( नि + ली ) -- १ आश्लेष करना । २ छिपना ( प्रा ४।१५५ ) । णिलुकक -- प्राप्त करना - कि सक्का एत्ताहे निलुक्किउं' ( आवहाटी पृ २१३ ) । णिलुक्क ( तुड् ) -- तोड़ना ( प्रा ४।११६ ) । णिलेज्ज -- करना ( सूच १ पृ १२० ) । णिल्लस ( उत् + लस् ) -- खुश होना ( प्रा ४।२०२ ) । णिल्लुंछ ( मुच् ) -- छोड़ना ( प्रा ४।९१ ) । पिल्लूर ( छिद् ) -- छेदना, खण्डित करना ( प्रा ४।१२४ ) । णिवज्ज ( नि + सद् ) -- १ सोना - 'एगो पडइ पासेणं, निवेसइ निवज्जई' ( उ २७।५ ) । २ बैठना । णिवह (गम्) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२ ) । णिवह ( नश् ) -- पलायन करना, भागना ( प्रा ४।१७८) । णिवह ( पिष् ) -- पीसना ( प्रा ४।१८५ ) । णिव्वड ( भू ) -- १ पृथक् होना । २ स्पष्ट होना ( प्रा ४।६२ ) । णिव्वड ( मुच् ) -- दुःखमुक्त होना । णिव्वड ( निर् + पद् ) -- निष्पन्न होना, बनना । णिव्वण्ण -- देखना ( से ३।४४ ) । णिव्वम -- परिभोग करना । णिव्वर ( कथय् ) -- दुःख प्रकट करना ( प्रा ४।३ ) । णिव्वर ( छिद् ) -- छेदना, खण्डित करना ( प्रा ४।१२४ ) । णिव्वल -- पृथक् होना ( से ६।८० ) । णिव्वल ( मुच् ) -- दुःख को छोडना ( प्रा ४।९२ ) । णिव्वल ( निर् + पद् ) -- निष्पन्न होना ( प्रा ४।१२८ ) । णिव्वल ( क्षर् ) -- क्षरित होना ( प्रा ४।१७३ टी ) । णिव्वव ( निर् + वापय् ) -- बुझाना । णिव्वह ( उद् + वह् ) -- १ धारण करना । २ ऊपर उठाना । णिव्वा ( वि + श्रम् ) -- विश्राम करना ( प्रा ४।१५९ ) । णिव्वुड्ड ( नि + मस्ज् ) -- निमज्जन करना । निव्वुब्भ ( निर् + वह् ) -- निर्वाह करना । णिव्वेढ -- त्याग करना । णिव्वोल -- डुबोना - 'अंतोजलंसि निव्वोलेमि' ( ज्ञा १।८।७४ ) । णिव्वोल ( ओष्ठमालिन्यं कृ ) -- क्रोध से होठ मलिन करना ( प्रा ४।६९ ) । णिसम्म ( नि + सद् ) -- १ बैठना । २ रखना, स्थापित करना ( से ६।१७ ) । णिसर ( रम् ) -- क्रीड़ा करना । णिसव्व -- बैठना ( व्यभा ८ टी प ५ ) । णिसिक्क ( नि+सिद् ) -- प्रक्षेप करना । णिसुड ( नम् ) -- झुकना । णिसुढ ( ब्रम् ) -- झुकना ( प्रा ४।१५८ ) । णिसुढ ( नि + शुम्भ् ) -- मारना। णिसुढ -- गिरना ( निचू ३ पृ १५६ ) । णिसुम्म -- गिराना - 'तुंगं तटं णिसुम्मइ ण अ णइवप्पं समत्थलिं व वणगओ ( से १५।५७ ) । णिसूड ( नि + शुम्भ् ) -- मारना । णिसूढ ( नि + सह् ) -- सहन करना । णिस्सम्म ( निर् + अम् ) -- बैठना ( से ९।३८ ) । णिह -- छलना करना - 'तं आइइत्तु ण णिहे' ( आ ४।५ ) । णिहम्म ( गम् ) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२ ) । णिहर ( आ + ऋन्द् ) -- चिल्लाना, आक्रन्दन करना । णिहर ( निर् + सृ ) -- बाहर निकलना । णिहव ( कामय् ) -- संभोग की इच्छा करना । णिहा ( वृश् ) -- देखना । णिहाल -- देखना । णिहुव ( कामय् ) -- संभोग की अभिलाषा करना ( प्रा ४।४४ ) । णिहोड ( नि + वारय् ) -- निवारण करना ( बृभा ३९० ) । णिहोड ( पातय् ) -- १ गिराना । २ नाश करना ( प्रा ४।२२ ) । णी ( गम् ) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२ ) । णीण ( गम् ) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२ ) । णीरंज ( भञ्ज् ) -- तोड़ना ( प्रा ४।१०६ ) । णीरव ( आ + क्षिप् ) -- दोषारोपण करना ( प्रा ४।१४५ ) । णीरव ( बुभुक्ष् ) -- खाने की इच्छा करना ( प्रा ४।५ ) । णील ( निर् + सृ ) -- बाहर निकलना ( प्रा ४।७९ ) णोलुंछ ( कृ ) -- १ गिरना । २ कूदना ( प्रा ४।७१ ) । णीलुक्क ( गम् ) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२ ) । णीव -- १ शीतल होना । २ बुझाना । णीसर ( रम् ) -- क्रीडा करना, खेलना ( प्रा ४।१६८ ) । णीहम्म ( गम् ) – गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२ ) । णीहर ( निर् + सृ ) -- बाहर निकलना ( प्रा ४।७९ ) । णीहर ( निर् + सारय् ) -- बाहर निकालना - 'तं सल्लं णो सयं णीहरति' ( सू २।२।१३ ) । णीहर ( आ + ऋन्द् ) -- चिल्लाना ( प्रा ४।१३१ ) । णुज्ज -- बन्द करना, मुद्रित करना । णुम ( छादय् ) -- आच्छादित करना ( प्रा ४।२१ ) । णुम ( नि + अस् ) -- स्थापना करना ( प्रा ४।१९९ ) । णुमज्ज ( नि + सद् ) -- बैठना ( प्रा ४।१२३ ) । णुमज्ज ( शी ) -- सोना, शयन करना । णुल्ल ( क्षिप् ) -- फेंकना । णुवज्ज ( नि + सद् ) -- बैठना - 'उवागच्छित्ता सागरस्स पासे णुवज्जइ' ( ज्ञा १।१६।५९ ) । णुव्व ( प्रकाशय् ) -- प्रकाशित करना ( प्रा ४।४५ ) । णूम ( छादय् ) -- आच्छादित करना - 'एगट्ठियं णू मेंति, णूमेत्ता कण्हं वासुदेवं ........' ( ज्ञा १।१६।२८२ ) ।। णोल्ल ( क्षिप् ) -- फेंकना ( प्रा ४।१४३ ) । णोल्लस ( क्षिप् ) -- कंपित करना, प्रेरित करना - 'अंचेति कंपेति णोल्लसति' ( सूचू १ पृ २४० ) । त तक्क -- ताकना, इच्छा करना - 'परलाभं नो आसाएइ नो तक्केइ' ( उ २९।३३ ) । तड -- चढ़ना - 'आरुह्, इत्यर्थे देशी धातु।' तड ( तन् ) -- विस्तार करना ( प्रा ४।१३७ ) । तडप्फड -- व्याकुल होना, तड़फडना ( निचू २ पृ २२३ ) । तडफड -- तड़फना । तड्ड -- लगाना - 'तड्डेति लाएत्ति ( लग्गइ ) वुत्तं भवति' ( निचू २ पृ ५१ ) । तड्ड ( तन् ) -- विस्तार करना ( प्रा ४।१३७ ) । तड्डव ( तन् ) -- विस्तार करना ( प्रा ४।१३७ ) । परिशिष्ट २ तमाड ( भ्रमय् ) -- घुमाना ( प्रा ४।३० ) । तर ( शक् ) -- समर्थ होना ( ओनि ३२४ ) । तर -- कुशल रहना ( पिनि ४१७ ) । तल -- बी, तैल आदि में तलना ( विपाटी प ५८ ) । तलअंट ( भ्रम् ) -- घूमना, फिरना ( प्रा ४।१६१ ) । तलप्प ( तप् ) -- तपना, गरम होना । तलहट्ट ( सिच् ) -- सींचना । तालिअंट ( भ्रमय् ) -- घुमाना ( प्रा ४।३० ) । तिउट्ट ( त्रुट् ) -- १ टूटना (सू १।१।१) । २ मुक्त होना (सू १।१५।५) । तिक्खाल ( तीक्ष्णय् ) -- तीक्ष्ण करना, तीखा करना । तिडितिड -- १ बकवास करना, टनटनाहट करना । २ अग्नि जलने का शब्द, तड तड आवाज - 'तेंदुरुयदारुयं पिव अग्गिहितं, तिडितिडेति दिवसं पि' ( निभा ६१९९ ) । तिड्डव ( ताडय् ) -- ताडन करना । तिण्ण ( तिम् ) -- १ आर्द्र होना । २ आर्द्र करना । तिप्प -- १ देना । २ झरना, चूना । ३ रोना । ४ पीड़ित करना । तिम्म -- १ आर्द्र होना । २ आर्द्र करना । तिम्मिर -- आर्द्र होना, लथपथ होना । तिय -- दूर रखना । तीर ( शक् ) -- सकना - 'घरे न तीरइ पढिउं' ( उसुटी प २३ ) । तुंग -- घूमना । तुट्ट ( तुङ् ) -- १ टूटना, खंडित होना ( प्रा ४।११६ ) । २ खूटना, घटना । तुट्ठ -- सहन करना - 'चाएति साहति सक्के वासेइ तुट्टाएति वा धाडेति वा एगट्ठा' ( आचू पृ १०७ ) । तुप्प -- १ स्निग्ध होना । २ स्निग्ध करना । तुवर ( त्वर् ) -- शीघ्रता करना ( प्रा ४।१७० ) । तूमण -- स्थगित करना । तेअव ( प्र + दीप् ) -- १ प्रकाशित होना । २ जलाना ( प्रा ४।१५२ ) । तेड -- बुलाना, न्योता देना ( तेड़ना-राज ) । तोड ( तुङ् ) -- तोड़ना ( प्रा ४।११६ ) । तोप्प -- चुपड़ना - 'ण य तोप्पिज्जइ घयं व तेल्लं वा' ( सूचू १ पृ १०९ ) । थ थंग ( उद् + नामय् ) -- ऊंचा करना । थक्क ( स्था ) -- रहना, स्थिर होना -'अणत्थमिए आदिच्चे थक्कति' ( निचू ४ पृ ११३ ) । थक्क ( फक्क् ) -- नीचे जाना ( प्रा ४।८७ ) । थक्क ( श्रम् ) -- श्रान्त होना, थकना । थक्कव ( स्थापय् ) -- स्थापित करना । थगथग -- धड़कना, कांपना । थग्घ -- थाह लेना, जल की गहराई को नापना । थणिल्ल ( चोरय् ) -- चुराना, चोरी करना । थप्प -- थप्पी करना, स्थापित करना । थम -- विस्मृत करना । थरत्थर -- थरथराना, कांपना । थरथर -- थरथराना, कांपना । थरहर -- कम्पित होना – 'कंपने देशी धातु ।' थाण -- रक्षा करना, पहरा देना । थिंप ( तृप् ) -- तृप्त होना । थिज्ज -- सघन होना ( आवहाटी १ पृ २२८ ) । थिप्प ( वि + गल् ) -- गल जाना ( प्रा ४।१७५ ) । थिप्प ( तृप् ) -- संतुष्ट होना ( प्रा ४।१३८ ) । थिम्म -- १ आर्द्र करना । २ आर्द्र होना । थिविथिव -- थिव थिव आवाज करना । थुक्क -- १ थूकना । २ तिरस्कार करना । थुण ( स्तु ) -- स्तुति करना ( प्रा ४।२४१ ) । थुव्व -- १ स्तुति करना ( दअचू पृ ४ ) । २ परिभ्रमण करना ( भटी पृ १२३६ ) । थेणिल्ल -- १ छीनना । २ डरना । थेप्प -- १ तृप्त होना, संतुष्ट होना । २ विगलित होना । द दंस ( दर्शय् ) -- दिखलाना - 'काये अहे वि दंसंति' ( सू १।४।३ ) । दक्ख ( दृश् ) -- देखना ( भ ५।८० ) । दक्ख ( दर्शय ) -- दिखलाना । दक्खव ( दर्शय ) -- दिखलाना ( प्रा ४।३२ ) । दच्छ ( दृश् ) -- देखना । दड -- दहाड़ना । दरमल ( मर्दय् ) -- १ विदारित करना । २ आहत करना । दल ( वा ) -- देना - 'भद्दा देवदिन्नं........पंथगस्स हत्थे दलाइ' ( ज्ञा १।२।३१ ) । दलय ( वा ) -- देना - 'भूमिचवेडयं द लयइ ' ( भ ३।११२ ) । दलय ( दापय् ) -- दिलाना । दलवट्ट ( निर् + बल् ) -- दलन करना । दलवट्ट ( मर्दय् ) -- चूर्णित करना । दलाव ( दापय् ) -- दिलाना । दवाव ( दापय् ) -- दिलाना । दाअ ( दर्शय् ) -- दिखलाना । दाक्खव ( दर्शय् ) -- दिखलाना । दाढ ( निर् + सू ) -- निकलना । दाव ( दृश् ) -- देखना । दाव ( दर्शय् ) -- दिखलाना ( प्रा ४।३२ ) । दिसड ( मुच् ) -- छोड़ना । दीस ( दृश् ) -- देखना । दुउंछ ( जुगुप्स् ) -- घृणा करना । दुउच्छ ( जुगुप्स् ) -- घृणा करना । दुगुंछ (जुगुप्स् ) -- घृणा करना ( प्रा ४।४ ) । दुगुच्छ ( जुगुप्स् ) -- घृणा करना ( प्रा ४।४ ) । दुम ( धवलय् ) -- सफेद करना ( प्रा ४।२४ ) । दुरुढुल्ल ( भ्रम् ) -- भ्रमण करना । दुरुह -- आरोहण करना - 'दुरुह, आरोहणे देशी' ( निरटी पृ २२ ) । दुरूह ( आ + रुह् ) -- आरोहण करना ( भ ७।१९६ ) । दुलुदुल -- इधर-उधर घूमना - 'मा मुयमाउयडिंभयं पिव इओ तओ दुलुदुलेमो' ( निचू ३ पृ ३४ ) । दुहाव ( छिद् ) -- छेदना, खण्डित करना ( प्रा ४।१२४ ) । दूइज्ज ( द्रु ) -- चलना, विहार करना ( आ ५।८२ ) । दूम ( दावय् ) -- पीड़ा पहुंचाना ( प्रा ४।२३ ) । दूम ( धवलय् ) -- चूने से पोतना, सफेदी करना ( प्रा ४।२४ ) । देक्ख ( दृश् ) -- देखना ( प्रा ४।१८१ ) । देह ( दृश् ) -- देखना - 'मुच्चेज्ज पयपासाओ, तं तु मंदो ण देहई' ( सू १।१।३५ ) । ध धंसाड ( मुच् ) -- छोड़ना ( प्रा ४।९१ ) । धगधग -- १ तीव्रता से जलना । २ धग्-धग् आवाज करना । धगधग्ग -- अतिशय जलना । धवक्क -- धड़कना, भय से व्याकुल होना । धाड -- सहन करना - चाएति साहति सक्केइ वासेइ तुट्टाएति वा धाडेति वा एगट्ठा' ( आचू पृ १०६ ) । धाड -- एक स्थान से दूसरे स्थान में जाना - 'धाडेंति त्ति प्रेरयन्ति स्थानात्स्थानान्तरं प्रापयन्तीत्यर्थ:' ( सूटी १ प १२४ ) । धाड ( निर् + सॄ ) -- बाहर निकलना ( बृटी पृ १३९७ ) । धाड ( निर् + सारय् ) -- बाहर निकालना ( निचू २ पृ ५४ ) । धाह -- १ रोना । २ पुकारना । ३ पलायन करना । धाहाव -- हाहाकार मचाना । धिप्प ( दीप् ) -- दीप्त होना, चमकना । धुक्क ( क्षुध् ) --भूख लगना । धुक्काधुक्क ( कम्प् ) -- कांपना । धुगधुग -- धुग्-धुग् आवाज करना । धुट्ठुअ ( शब्दाय् ) -- शब्द करना । धुद्दुअ ( शब्दाय् ) -- आवाज करना । धुप्प ( दीप् ) -- चमकना । धुव ( धू ) -- कम्पित करना ( प्रा ४।५९ ) । धुव -- धोना । धुव्व -- घोना । धोअ ( धाव् ) -- धोना, शुद्ध करना । न निअ ( वृश् ) -- देखना ( प्रा ४।१८१ ) । निअच्छ ( दृश् ) -- देखना ( प्रा ४।१८१ ) । निम्मव ( निर् + मा ) -- निर्माण करना ( प्रा ४।१९ ) । निम्माण ( निर् + मा ) -- निर्माण करना ( प्रा ४।१९ ) । निरंज ( भञ्ज् ) -- तोड़ना । निरप्प ( स्था ) -- ठहरना ( प्रा ४।१६ ) । निरुवार ( ग्रह् ) -- ग्रहण करना ( प्रा ४।२०९ ) । निल ( निर् + सु ) -- निकलना । निलुक्क ( नि + ली ) -- छिपना - पडिसुणेत्ता कवाडंतरेसु निलुक्कंति' ( अंत ६।२२ ) । निव्वल ( निर् + पद् ) -- निष्पन्न होना ( प्रा ४।१२८ ) । निव्वोल -- डुबोना- 'अंतो जलंसि निव्वोलेमि' ( ज्ञा १।८।७४ ) । निव्वोल -- कोष से होठ मलिन करना । निसुड (-भाराकान्तः नम् ) -- भार से आक्रान्त हो नीचे झुकना । निहर ( निर् + सृ ) -- बाहर निकलना । नीरंज ( भञ्ज् ) -- भांजना ( प्रा ४।१०६ ) । नील ( निर् + सृ ) -- बाहर निकलना ( प्रा ४।७९ ) । नुम ( छादय् ) -- आच्छादित करना । नूम ( छादय् ) -- आच्छादित करना ( प्रा ४।२१ ) । प पअव -- पीना ( से २।२४ ) । पइर ( वप् ) -- बोना, वपन करना ( आचूला १०।१६ पा ) । पइसर -- प्रवेश करना । पइसार ( प्र + वेशय् ) -- प्रवेश कराना । पउल ( पच् ) -- पकाना ( प्रा ४।९० ) । पउल्ल ( पच् ) -- पकाना । पंग ( ग्रह ) -- ग्रहण करना ( प्रा ४।४०९ ) । पंगुर ( प्रा + वृ ) -- ढकना, आच्छादित करना । पंताव -- ताड़न करना, मारना ( पिनि ३२५ ) । पक्खर ( सं + नाहय् ) -- सन्नद्ध करना । पक्खोड ( वि + कोशय् ) -- खोलना ( प्रा ४।४२ ) । पक्खोड ( शद् ) -- झड़ना, टपकना ( प्रा ४।१३० ) । पक्खोड ( प्र + छादय् ) -- ढकना । पगंथ -- गाली देना ( आ ६।४२ ) । पग्ग ( ग्रह् ) -- ग्रहण करना । पघोल ( प्र + घूर्णय् ) -- मिलना । पच्चड ( क्षर् ) -- गिरना, टपकना ( प्रा ४।१७३ ) । पच्चडु ( गम् ) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२ ) । पच्चार ( उपा + लभ् ) -- उलाहना देना ( प्रा ४।१५६ ) । पच्छंद ( गम् ) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२ ) । पज्ज -- १ कराना । २ पिलाना - "पज्जेइ त्ति पाययति खादयतीत्यादिलौकिकी भाषा कारयतीति तु भावार्थः" ( विपाटी प ७२ ) । पज्जर ( कथय् ) -- कहना ( प्रा ४।२ ) । पज्झर ( क्षर् ) -- गिरना, टपकना ( प्रा ४।१७३ ) । पज्झल ( क्षर् ) -- झरना । पझंझ -- शब्द करना ( जीव ३।२६५ ) । पट्ट ( पा ) -- पान करना ( प्रा ४।१० ) । पट्टव ( प्र + स्थापय् ) -- स्थापित करना ( प्रा ४।३७ ) । पड -- विघटित होना । पडिअग्ग ( अनु + व्रज् ) -- अनुसरण करना ( प्रा ४।१०७ ) । पडिउंच -- अपकार का बदला लेना । पडियासूर -- चिड़ना, गुस्सा होना । पडिसा ( शम् ) -- शान्त हो जाना ( प्रा ४।१६७ ) । पडिसा ( नश् ) -- पलायन करना, भागना ( प्रा ४।१७८ ) । पडिहत्थ -- प्रत्युपकार करना ( से १२।६६ ) । पड्डुह ( क्षुभ् ) -- क्षुब्ध होना ( प्रा ४।१५४ ) । पणाम ( अर्पय् ) -- अर्पित करना....कुंतग्गेणं लेहं पणामेइ' ( ज्ञा १।१६।२४४ ) । पणाम ( उप + नी ) -- उपस्थित करना । पण्णप्प -- पनपना, स्वस्थ होना- 'इमो रोगो........ कहेहि मे जेण पण्णप्पामि' ( निचू ३ पृ ४१७ ) । पतणतणाय -- जोर से गर्जना ( भटी पृ १२२१ ) । पतिरि ( वप् ) -- बोना, वपन करना - 'कुलत्थाणि वा, जवाणि वा, जवजवाणि वा, पतिरिंसु वा पतिरिंति वा पतिरिस्संति वा' ( आचूला १०।१६ ) । पत्तवास -- बांधना ( निभा ६०४० ) । पत्ताण -- मिटाना । पदअ ( गम् ) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२ ) । पदेक्ख ( प्र + दृश् ) -- विशेष रूप से देखना । पधोव ( प्र + धाव् ) --धोना । पन्नाड ( मृद् ) -- मर्दन करना ( प्रा ४।१२६ ) । पबोल्ल -- बोलना - 'वद् धात्वर्थे देशी।' पब्बाल ( छादय् ) -- आच्छादित करना । पमेल्ल -- छोड़ना - 'मुच् इत्यर्थे देशी ।' पम्मेल -- छोड़ना । पम्हस ( वि + स्मृ ) -- विस्मृत करना । पम्हुस ( वि + स्मृ ) -- भूलना ( प्रा ४।७५ ) । पहुस ( प्र + मुष् ) -- चोरी करना ( प्रा ४।१८४ ) । पम्हुस ( प्र + मृश् ) -- स्पर्श करना ( प्रा ४।१८४ ) । पम्हुह ( स्मृ ) -- स्मरण करना ( प्रा ४।७४ ) । पयंस ( प्र + दर्शय् ) -- दिखलाना ( कु पृ २४९ ) । पयर ( स्मृ ) -- स्मरण करना ( प्रा ४।७४ ) । पयल्ल ( कृ ) -- १ शिथिल करना । २ लटकना ( प्रा ४।७० ) । पयल्ल ( प्र + सृ ) -- पसरना ( प्रा ४।७७ ) । पर ( भ्रम् ) -- घूमना ( प्र ३।९ ) । परिअंज ( परि + भञ्ज् ) -- तोड़ना । परिअंत ( श्लिष्) -- १ गले लगाना । २ संसर्ग करना ( प्रा ४।१९० ) । परिअल ( गम् ) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२ ) । परिअल्ल ( गम् ) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२ ) । परिआल ( वेष्टय् ) -- वेष्टित करना ( प्रा ४।५१) । परिघुम ( परि + घूर्ण ) -- झुलना, घूमना ( अंवि पृ ८० ) । परिघोल ( परि + घूर्ण् ) -- परिभ्रमण करना ( अंत ६।४३ ) । परिणाव -- विवाह करना । परिनिय ( परि + दृश् ) -- देखना । परिभुज्ज -- १ बांधना । २ मुक्त करना - 'बध्यते छोड्यते च' ( पिटी प ६७ ) । परियंद -- कंपित करना । परियच्छाव -- दलाल होना ( स्थाटी प ३९ ) । परिल्हस ( परि + स्त्रंस् ) -- खिसकना ( प्रा ४।१९७ ) । परिवाड ( घटय् ) -- १ निर्माण करना । २ संगत करना ( प्रा ४।५० ) । परिसाम ( शम् ) -- शान्त हो जाना ( प्रा ४।१६७ ) । परिहट्ट ( मृद् ) -- मर्दन करना ( प्रा ४।१२६ ) । परिहर -- करना ( भटी पृ १२२७ ) । परी ( भ्रम् ) -- घूमना, फिरना ( प्रा ४।१६१ ) । परी ( क्षिप् ) -- फेंकना ( प्रा ४।१४३ ) । पलोट्ट -- परिवर्तित होना, पलटना -- अथिरे पलोट्टइ, नो थिरे पलोट्टइ' ( भ १।४४० ) । पलोट्ट ( प्रत्या + गम् ) -- वापिस आना ( प्रा ४।१६६ ) । पलोट्ट ( परि + अस् ) -- १ फेंकना । २ मार गिराना । ३ प्रवृत्ति करना । ४ गिरना ( प्रा ४।२०० ) । पलोट्ठ -- आगे बढ़ना । पल्लट्ट -- पलटना । पल्लट्ट ( परि + अस् ) -- फेंकना ( प्रा ४।२०० ) । पल्हत्थ ( परि + अस् ) -- फेंकना ( प्रा ४।२०० ) । पवड्ढ -- पोढना, सोना- 'जाव राया पवड्ढइ ताव कहेहि किंचि अक्खाणयं' ( उसुटी प १४२ ) । पविरंज ( भञ्ज् ) -- भांबना, तोड़ना ( प्रा ४।१०६ ) । पविरज्ज ( भञ्ज् ) -- तोड़ना । पवोल्ल -- बोलना - 'वद् इत्यर्थे देशी धातुः।' पव्वाय ( म्लै ) -- मुरझाना ( प्रा ४।१८ ) । पव्वाल ( छादय् ) -- आच्छावित करना ( प्रा ४।२१ ) । पव्वाल ( प्लावय् ) -- खूब भिगोना ( प्रा ४।४१ ) । पहम्म ( गम् ) -- गमन करना ( प्रा ४ । १६२ ) । पहल्ल ( घूर्ण् ) -- घूमना, कांपना ( प्रा ४।११७ ) । पहाड – इधर-उधर घुमाना - 'पहाडेंति त्ति स्वेच्छयेतश्चेतश्चानाभं भ्रमयन्ति' ( सूटी १ प १२४ ) । पहिल्ल -- पहल करना, आगे करना । पहुच्च ( प्र + भू ) -- पहुंचना, प्राप्त करना - 'गामे य कालभाणे पहुच्चमाणे हवंति भंगट्ठा' ( ओनि ५०५ ) । पहुच्च ( पर्याप्त्यर्थे भू ) -- पर्याप्त होना । पहुप्प ( प्र + भू ) -- १ पहुंचना, प्राप्त करना - काले अपहुप्पंते नियत्तई सेसए भयणा' ( ओनि ५०५ ) । २ समर्थ होना ( प्रा ४।६३ ) । पाउण ( प्र + आप् ) -- प्राप्त करना ( उ १६।४ ) । पांगु -- धारण करना, ढकना ( अंवि पृ ८४ ) । पामिच्च -- उधार लेना- 'दारुयाइं भिंदेज्ज वा, किणेज्ज वा, पामिच्चेज्ज वा' ( आचूला २।२९ ) । पार ( शक् ) -- समर्थ होना ( प्रा ४।८६ ) । पाराव -- पारणा कराना, भोजन कराना ( ओनि १४२ ) । पासल्ल -- वक्र होना - 'पासल्लंति महिहरा' ( से ६।४५ ) । पिअरंज ( भञ्ज् ) -- भांगना, तोड़ना । पिच्च -- पकना । पिज्ज ( पा ) -- पान करना - पिज्जंतो तरुणियणणयणमालाहिं' ( कु पृ १८३ ) । पिट्ट ( भ्रंश् ) -- नीचे गिरना । पिडव ( अर्ज् ) -- उपार्जन करना । पिड्ड ( भ्रंश् ) -- नीचे गिरना । पिण -- प्राप्त करना, एकत्रित करना ( आबचू १ पृ ४४८ ) । पिप्पड -- बकवास करना, बडबडाना - 'सा तुह विरहुम्मत्ता पिहोअरा पिप्पडइ निच्चं' ( दे ६।५० वृ ) । पिसुण ( कथय् ) -- कहना ( प्रा ४।२ ) । पुंछ ( मृज् ) -- मार्जन करना ( प्रा ४।१०५ ) । पुंस ( मृज् ) -- मार्जन करना ( बृभा ४५९ ) । पुक्क -- चीत्कार करना ( प्र ३।५ ) । पुक्कर -- पुकारना । पुच्छ ( प्रच्छ् ) -- पूछना ( प्रा ४।९७ ) । पुट्ट ( भ्रंश ) -- नीचे गिरना । पुट्ट ( प्र + उञ्छ् ) -- पोंछना। पुड ( भ्रंश ) -- नीचे गिरना । पुढक्क -- प्रसरित होना । पुणअ ( दृश् ) -- देखना । पुम्म ( दृश् ) -- देखना । पुल ( दृश् ) -- देखना । पुलअ ( दृश् ) -- देखना ( प्रा ४।१८१ ) । पुलआअ ( उत् + लस् ) -- खुश होना ( प्रा ४।२०२ ) । पुलोअ ( दृश् ) -- देखना ( व्यभा ५ टी प ६ ) । पुव (प्लु) गति करना । पुव्व -- कूदना, जाना ( भटी पृ १२३६ ) । पुस ( मृज् ) – मार्जन करना ( प्रा ४।१०५ ) । पूस -- पूछना - 'प्रच्छ्धात्वर्थे देशी ।' पेंडव ( प्र + स्थापय् ) -- १ स्थापित करना । २ प्रस्थान कराना ( प्रा ४।३७ ) । पेच्छ ( दृश् ) -- देखना ( प्रा ४।१८१ ) । पेट्ट -- पीटना । पेट्ठव ( प्र + स्थापय् ) -- प्रस्थापित करना । पेड्डव ( प्र + स्थापय् ) -- प्रस्थापित करना । पेल्ल ( क्षिप् ) -- फेंकना ( प्रा ४।१४३ ) । पेल्ल ( पोडय् ) -- पीलना । पेल्ल ( पूरय ) -- भरना । पेल्ल ( प्र + ईरय् ) -- प्रेरित करना ( व्यभा ७ टी प ९५ ) । पोअ ( प्र + वे ) -- पिरोना । पोर -- करना - 'आहेवच्चं पोरोबच्च पोरेति' ( आचू पृ ३४६ ) । पोलंड ( प्रोत् + लङ्घ ) -- उल्लंघन करना ( ज्ञा १।१।१५३ ) । फ फंफ ( उद् + गम् ) -- उछलना । फंस ( विसम् + वद् ) -- अप्रमाणित होना ( प्रा ४।१२९ ) । फंस ( स्पृश् ) -- स्पर्श करना ( प्रा ४।१८२ ) । फरिस ( स्पृश् ) -- स्पर्श करना ( प्रा ४।१८२ ) । फणिल्ल ( चोरय् ) -- चोरी करना । फव्व -- प्राप्त करना ( आवहाटी १ पृ २७० ) । फव्वीह ( लम् ) -- यथेष्ट लाभ प्राप्त करना - फव्वीहामोत्ति देशीपदत्वाद्य दृच्छया भक्तपानं लभामहे' ( बृटी पृ ६३३ ) । फसफस -- फुस-फुस करना ( कु पृ २२५ ) । फसल -- विभूषा करना । फसलाण -- विभूषा करना । फास ( स्पृश् ) -- १ स्पर्श करना । २ पालन करना ( प्रा ४।१८२ ) । फिक्कर -- पिशाच का चिल्लाना । फिट्ट ( भ्रंश् ) -- फटना, नष्ट होना ( निचू १ पृ ९ ) । फिट्ट -- १ दूर जाना ( उसुटी प २६९ ) । २ एकमेक करना ( उसुटी प ७४ ) । ३ नीचे गिरना । ४ टूटना । ५ भागना । फिड ( भ्रंश् ) -- फटना, नष्ट होना ( प्रा ४।१७७ ) । फिर ( गम् ) -- चलना । फिर -- परावर्तन करना - 'परावर्तने देशी ।' फिल्लस -- फिसलना ( बृटी पृ ९२९ ) । फिल्लुस -- फिसलना । फुंफुल -- १ उत्पाटन करना । २ कहना । फुंफुल्ल ( कथय् ) -- कहना ( प्रा २।१७४ ) । फुंफुल्ल -- १ कहना । २ उखाड़ना ( प्रा २।१७४ ) । फुंस ( मृज् ) -- मार्जन करना । फुक्क -- फूंक देना । फुट ( भ्रंश् ) -- फटना, नष्ट होना । फुट्ट ( भ्रंश ) -- फटना, नष्ट होना ( प्रा ४।१७७ ) । फुड ( भ्रंश् ) -- फटना ( प्रा ४।१७७ ) । फुप्फुव -- चिल्लाना । फुम ( फूत् + कृ ) -- मुंह से हवा करना ( द ४।२१ ) । फुम ( भ्रम् ) -- घूमना, फिरना ( प्रा ४।१६१ ) । फुर ( अप + हृ ) -- अपहरण करना । फुराव -- अपहरण कराना - 'फुरावेंति देशीपदमेतद् अपहारयन्ति' ( व्यभा ४।३ टी प ४१ ) । फुरुफुर -- तड़फड़ाना ( प्र ३।५ ) । फुस ( मृज् ) -- मार्जन करना ( प्रा ४।१०५ )। फुस ( भ्रम् ) -- घूमना, फिरना ( प्रा ४।१६१ ) । फुस्स ( मृज् ) -- मांजना । फूम -- फूंक मारना ( निचू १ पृ ८४ ) । फेक्कार -- शृगाल का आवाज करना । फेड -- १ खोलना, उद्घाटन करना ( आवचू १ पृ ५५४ ) । २ छोड़ना - 'मुच् इत्यर्थे देशी ।' फेर -- फिराना, घुमाना - 'रासहारूढो काऊण फेरितो सव्वत्थ' ( उसुटी प २८६ ) । फेल्ल ( क्षिप् ) -- फेंकना । फेल्लुस -- फिसलना, खिसकना ( दे ६।८६ वृ ) । फोल्ल -- छीलना ( ज्ञाटी प १२५ ) । ब बइस ( उप + विश् ) -- बैठना । बइसार ( उप + वेशय् ) -- बैठाना । बइसावय -- बैठाना - 'उपवेशय् इत्यर्थ देशी ।' बडबड ( वि + लप् ) -- बडबडाना । बल ( ज्वल् ) -- जलना । बल ( ग्रह् ) -- ग्रहण करना । बल ( खाद् ) -- खाना ( प्रा ४।२५९ ) । बिंबुल -- बोलना। बीह ( भी ) -- डरना ( प्रा ४।५३ ) । बुंब -- चिल्लाना । बुक्क ( गर्ज् ) -- गरजना ( राज २८१ ) । बुक्क ( भष् ) -- भौंकना । बुक्कर -- शब्द करना । बुक्कार -- गर्जन करना ( राज २८१ ) । बृज्झ -- बुझना ( भ १।४४ ) । बुडबुड -- बुडबुड की आवाज करना ( निचू ३ पृ २५४ ) । बुड्ड ( मस्ज् ) -- मज्जन करना ( प्रा ४।१०१ ) । बुण्ण -- बोलना । बुल्ल ( कथय् ) -- बोलना, कहना । बुल्लुबुल -- छलकना, उछलना ( सूचू १पृ २०६ ) । देखें - छल्लुच्छुल । बोक्किज्ज -- वमन करना । बोज्ज ( त्रस् ) -- भय खाना ( प्रा ४।१९८ ) । बोट्ट -- १ चखना, उच्छिष्ट करना । २ धान्य रंधा या नहीं, उसका परीक्षण करना - 'रंधंतीओ बोट्टिंति वंजणे..' ( बृभा १७४६ ) । बोट्टि -- भ्रष्ट करना ( निचू ३ पृ ४४२ ) । बोल ( ब्रोडय् ) -- डुबाना ( बृभा १६६७ ) । बोल ( व्यति + क्रम् ) -- १ पसार होना । २ उल्लंघन करना । बोल्ल ( कथय् ) -- बोलना ( निचू २ पृ २७ ) । बोल्लाव -- बुलाना । भ भंड -- कलह करना ( बृभा ३०१३ ) । भभड ( भ्रम् ) -- घूमना फिरना ( प्रा ४।१६१ ) । भमाड ( भ्रम् ) -- घूमना, फिरना ( प्रा ४।१६१ ) । भम्मड ( भ्रम् ) -- घूमना, फिरना ( प्रा ४।१६१ ) । भर ( स्मृ ) -- स्मरण करना ( प्रा ४।७४ ) । भल ( स्मृ ) -- स्मरण करना ( प्रा ४।७४ ) । भल -- स्खलित होना, गिरना । भलीह -- मिलना, सम्मिलित होना ( कु पृ १२२) । भा (भी) - डरना ( प्रा ४।५३) । भासुंड -- बाहर निकलना ( दे ६।१०३ वृ ) । भिज्ज -- भीगना ( निचू ३ पृ ३७३ ) । भिट्ट -- भेंटना । भिड ( आक्रम् ) -- भिडना । भिड -- अभिगमन करना - 'अभिगमने देशी धातु ।' भिणिभिण -- भिनभिनाना - 'भिणिभिणेंत मच्छियं' ( कु पृ २२५ ) । भिणिहिण -- भ्रमर का गुंजारव करना । भिलिंग -- मालिश करना । भिस ( भास् ) -- चमकना ( प्रा ४।२०३ ) । भिसण -- फेंकना । भीसाव -- डराना । भुंज ( भुज् ) -- भोजन करना ( प्रा ४।११० ) । भुकुंड -- लिप्त करना - 'दद्दरमलयसुगंधगंधिएहिं गंधेहिं गाताइं भुकुंडेति' ( जीव ३।४५१ ) । भुक्क ( भष् ) -- भौंकना ( प्रा ४।१८६ ) । भुम ( भ्रम् ) -- घूमना फिरना ( प्रा ४।१६१ ) । भुरुंड -- उद्धूलित करना, लिप्त करना । भुरुकुंड -- लिप्त करना - 'चुण्णाणि जेण गायाई मुरुकंडेत्ता' ( सूचू १ पृ ११६ ) । भुरुहुंड -- लिप्त करना । भुल्ल ( भ्रंश् ) -- १ भ्रष्ट होना, च्युत होना - 'विसएहिं भुल्लउ हियय ! काइं परमत्थु मुणंतउ' ( उसुटी प ५५ ) । २ भुलना । भेल -- मिश्रित करना ( भेलना - राज ) । भोल -- ठगना । भोलव -- ठगना । म मइल -- निस्तेज होना ( से ३।४७ ) । मंड -- १ आगे धरना । २ रचना करना । ३ बिछाना । ४ प्रारंभ करना । मंभीस -- अभय देना । मग -- गमन करना । मघमघ ( प्र + सृ ) -- गंध फैलना ( भ ११।१३३ ) । मच्च -- १ मलिन होना । २ गर्व करना । मज्ज -- १ अवलोकन करना । २ पीना । मज्ज ( नि + सद् ) -- बैठना । मड ( मृद् ) -- मसलना । मडमड -- मड-मड की आवाज करना । मड्ड ( मृद् ) -- मर्दन करना ( प्रा ४।१२६ ) । मढ ( मृद् ) -- मर्दन करना ( प्रा ४।१२६ ) । मणाव -- मनाना ( निचू १ पृ १२० ) । ममाय -- ग्रहण करना - 'जे नियागं ममायंति' ( द ६।४८ ) । ममीकर -- ग्रहण करना - 'ममीक रेति गेण्हंति' ( दअचू पृ १५३ ) । ममूर ( चूर्णय् ) -- चूर्ण करना । मर -- १ टूटना । २ विस्तृत होना । मरह ( मृष् ) -- क्षमा करना । मल ( मृद् ) – मर्दन करना ( प्रा ४।१२६ ) । मलवल -- मुंह बनाना । मल्ह -- मौज मानना, लीला करना ( दे ६।११९ वृ ) । मसमसाविज्ज -- जलकर राख हो जाना ( भ ३।१४८ ) । मसरंक्क -- सकुचना, सिमटना । मह ( काङ्क्ष ) -- चाहना ( प्र ३।५ ) । महमह ( प्र + सृ ) -- गन्ध फैलना, महकना ( प्रा ४।७८ ) - 'गन्धोद्द्वाने देशी ।' महम्म -- आघातित होना । महुण ( मथ् ) -- १ विलोडन करना । २ विनाश करना । माण -- अनुभव करना । मिट -- मिटाना । मिलिमिलिमिल -- चमकना । मिल्ल -- छोड़ना । मिसमिस -- १ अत्यंत चमकना । २ खूब जलना । मिसिमिस -- चमकना ( आचूला १५।२८ ) । मीसाल ( मिश्रय् ) -- मिश्रित करना । मुकलाव -- भिजवाना । मुक्कल -- बन्धनमुक्त करना । मुग्गाह ( प्र + सृ ) -- फैलना । मुण ( ज्ञा ) -- जानना ( प्रा ४।७ ) । मुणमुण -- गुनगुनाहट करना, बड़बड़ाना ( उसुटी प १४३ ) । मुम्मुर ( चूर्णय् ) -- चूर्ण करता । मुर ( स्फुट् ) -- मुस्कराना ( प्रा ४।११४ ) । मुर -- १ विलास करना । २ उत्पीड़न करना । ३ व्याप्त करना । ४ बोलना । ५ फेंकना । ६ टूटना । ७ मुड़ना । मुव्वह -- उद्वहन करना ( प्रा २।१७४ ) । मुसुमूर ( भञ्ज् ) -- भांगना ( प्रा ४।१०६ ) । मूयल -- मूक होना ( कु पृ १३५ ) । मूर (भञ्ज् ) -- भांगना ( प्रा ४।१०६ ) । मेल -- छोडना । मेलव ( मिश्रय् ) -- मिलाना ( प्रा ४।२८ ) । मेल्ल ( मुच् ) -- छोड़ना ( प्रा ४।९१ ) । मेल्लाव -- छुड़ाना । मेल्ह -- छोड़ना ( आवहाटी १ पृ २३४ ) । मोकल्ल -- भेजना । मोक्कल -- भेजना । मोग्गाह -- फैलना । मोट्टाय ( रम् ) -- क्रीड़ा करना, खेलना ( प्रा ४।१६८ ) । र रहआव ( रचय् ) -- बनवाना । रंखोल ( दोलय् ) -- १ झूलना, हिलना । २ कांपना ( प्रा ४।४८ ) । रंघ -- पकाना, रांघना - 'पच्छा धन्नं रंघेंति' ( आचू पृ ३३० ) । रंप ( तक्ष् ) -- छीलना, काटना ( प्रा ४।१९४ ) । रंफ ( तक्ष् ) -- काटना ( प्रा ४।१९४ ) । रंभ ( गम् ) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२ ) । रंभ ( आ + रम् ) -- प्रारंभ करना । रक्खोल ( बोलय् ) -- झुलना। रच्च ( रञ्ज् ) – राचना, आसक्त होना । रप्प ( आ + क्रम् ) -- आक्रमण करना । रप्प -- खेलना । रम्ह ( तक्ष् ) -- छीलना । रव -- आद्र करना । रह -- रहना । रा ( ली ) -- श्लेष करना । रा -- १ बुलाना ( अंवि पृ १०७ ) २ देना । राण ( वि + नम् ) -- विशेष नमना । राव -- आर्द्र करना - 'से उदगबिंदू जेणं तं मल्लगं रावेहिति' ( नंदी ५३ ) । राव ( रञ्जय् ) -- खुश करना ( प्रा ४।४९ ) । रिअ ( प्र + विश् ) -- प्रवेश करना ( प्रा ४।१८३ ) । रिअ -- गमन करना । रिंक -- रेंकना । रिक्क -- छोड़ना ( आ ९।१।४ ) । रिग्ग ( गम् ) -- गति करना ( प्रा ४।२५९ ) । रिग्ग ( प्र + विश् ) -- प्रवेश करना ( प्रा ४।२५९ ) । रिज्ज -- रीझना । रिड ( मण्डय् ) -- विभूषित करना । रिर ( राज् ) -- शोभित होना । रिल्ल -- शोभना । रिह ( प्र + विश् ) -- प्रवेश करना । रिह ( राज् ) -- शोभित होना । रीड ( मण्डय् ) -- मंडित करना ( प्रा ४।११५ ) । रीर ( राज् ) -- शोभना, चमकना ( प्रा ४।१०० ) । रुंज ( रु ) -- आवाजकरना ( प्रा ४।५७ ) । रुंट ( रु ) -- आवाज करना, चिल्लाना ( कु पृ ७७ ) । रुंभ -- स्थिर होना । रुंव -- पीसना - 'रुविज्जंतासु कणिक्कासु' ( कु पृ १०० ) । रुच -- पीसना । रुच्च -- १ पीसना - 'खेट्टादि भज्जति रुच्चति वा' (आचू पृ ३३८ ) । २ ब्रीहि आदि को यंत्र में निस्तुष करना । रुणरुण -- करुण क्रन्दन करना ( कुपृ २९ ) । रुणुरुंट -- गुंजारव करना । रुल ( लुठ् ) -- लेटना । रुल -- भटकना - 'नट्ठअडवीए रुलंतं अच्छेज्ज' ( निचू ३ पृ ३१७ ) । रुलघुल -- निःश्वास डालना । रुलुघुल -- निःश्वास डालना । रुहरुह -- मन्द मन्द बहना । रूस -- खोज करना, गवेषणा करना - 'रूसेह त्ति देशीवचनत्वाद् गवेषयत' ( बृटी पृ ८५३ ) । रेअव ( मुच् ) -- छोड़ना ( प्रा ४।९१ ) । रेल्ल ( प्लावय् ) -- सराबोर करना । रेल्ल -- १ शोभना, चमकना - 'शुभ् धात्वर्थे देशी । २ बोलना - 'भाष् धात्वर्थे देशी ।' रेह ( राज् ) – शोभना, चमकना ( प्रा ४।१०० ) । रोंच ( पिष् ) -- पीसना ( प्रा ४।१८५ ) । रोक्किर - दांत पीसना - 'सीहो गज्जइ रोक्किरइय' ( व्यभा ४।३ टी प ८ ) । रोड -- १ स्खलित करना, अटकाना, रोकना ( आवचू १ पृ ४५० ) । २ अनादर करना । ३ हैरान करना ( आवहाटी २ पृ १४२ ) । रोव -- गीला करना । रोसाण ( मृज् ) -- मार्जन करना ( प्रा ४।१०५ ) । ल लअ -- पहनना, मंडित करना- 'लएज्जत्ति अप्पणो आभरेज्ज' ( निचू ४ पृ ३ ) । लट्ट -- विकसित होना । लढ ( स्मृ ) -- स्मरण करना ( प्रा ४।७४ ) । लद्द -- भार लादना, बोझ डालना । लय ( ला ) -- ग्रहण करना । लल ( लड् ) -- १ विलास करना । २ झुलना। लव ( प्र + वर्तय् ) -- प्रवृत्ति कराना - ' णो विज्जू लवंति' ( सूर्य २० ) । लाढ -- यापन करना - 'लाढयन्ति यापयन्ति' ( बृटी पृ ११२६ ) । लालंप ( वि + लप् ) -- विलाप करना । लिंप ( लिप् ) -- लीपना ( प्रा ४।१४९ ) । लिक्क ( नि + ली ) - छिपना ( प्रा ४।५५ ) । लिज्ज -- ग्रहण करना । लिस ( स्वप् ) -- शयन करना ( प्रा ४।१४६ ) । लीस -- जोड़ना, सांघना - 'लीसएज्जा वि वत्थं' ( सूचू १ पृ १५९ ) । लुंचपलुंच -- पीड़ित करना । लुंछ ( मृज् ) -- मार्जन करना ( प्रा ४।१०५ ) । लुक्क ( तुड् ) -- टूटना ( प्रा४।११६) । लुक्क ( नि + ली ) -- छिपना ( प्रा ४।५५ ) । लुच्छ ( मृज् ) -- मांजना । लुढ ( स्मृ ) -- याद करना । लुभ ( मृज् ) -- मार्जन करना । लुह ( मृज् ) -- मार्जन करना ( प्रा ४।१०५ ) । लूड ( लुण्ठ ) -- लूटना । लूर ( छिद् ) -- छेदना, खण्डित करना ( प्रा ४।१२४ ) । लोट्ट ( स्वप् ) -- शयन करना ( प्रा ४।१४६ ) । लोट्ट ( लुठ् ) -- १ प्रवृत्त होना - 'चक्कं अंतेण लोट्टति' ( सू १।१५।१४ ) । २ लेटना । लोड -- घुमाना । लोढ -- १ निकालना, अवतारण करना ( आवहाटी २ पृ ९० ) । २ कपास निकालना, लोढना । लोल ( लुठ् ) -- १ लेटना ( पिनि ४२२ ) । २ विलोडन करना । ल्हस -- हर्षित होना । ल्हस ( स्रंस् ) -- खिसकना ( प्रा ४।१९७ ) । ल्हसाव ( स्त्रंसय् ) -- खिसकाना । ल्हिक्क ( नि + ली ) -- छुपना ( प्रा ४।५५ ) । व वअल ( प्र + सृ ) -- फैलना । वअल्ल ( प्र + सू ) -- फैलना । वइसर -- बैठना । वंच ( उद् + नमय् ) -- ऊंचा उठाना । वंफ -- १ उल्लाप, बोलना - 'णो य वंफेज्ज मम्मयं ( सू १।९।२५ ) ; 'वंफेति णाम देसीभासाए उल्लावो वुच्चति' ( सूचू १ पृ १८० ) । २ खाना, भोजन करना । वंफ ( वल् ) -- लौटना, वापिस आना ( प्रा ४।१७६ ) । वंफ ( कांक्ष् ) -- अभिलाषा करना ( प्रा ४।१९२ ) । वक्कार -- गर्जन करना ( राज २८१ पा ) । वग्गाल ( रोमन्थय् ) -- उगाली करना । बग्गोल ( रोमन्थय् ) -- पगुराना ( प्रा ४।४३ ) । वच्च (कांक्ष् ) -- अभिलाषा करना ( प्रा ४।१९२ ) । वच्छड्ड ( गम् ) -- जाना । वज्ज ( त्रस् ) -- भय खाना ( प्रा ४।१९८ ) । वज्ज ( वद् ) -- बजना, वाद्य आदि की आवाज होना ( प्रा ४।४०६ ) । वज्ज ( दृश् ) -- देखना ( प्रा ४।१८१ ) । वज्जर ( कथय् ) -- कहना ( उसुटी प १३९ ) । वट्ट -- बांटना, पीसना । वडअ ( गम् ) -- जाना । वडवड ( वि + लप् ) -- विलाप करना ( प्रा ४।१४८ ) । बड्ड -- कलह करना - 'वड्डेति - कलहयति' ( उशाटी प १७९ ) । वड्ढ -- कलह करना - ताहे मातरं वड्ढति ममवि पायसं देहि' ( आवच् १ पृ ४६६ ) । वड्ढाव -- १ बधाई देना । २ समाप्त करना । वद्धार ( वर्धय् ) -- बढाना । ( वधारवुं-गुज ) । वप्प -- ढकना, आच्छादित करना । वप्फ -- भोजन करना ( अंवि पृ १०७ ) । वमाल ( पुञ्ज् ) -- एकत्र करना ( प्रा ४।१०२ ) । वरहाड ( निर्+सृ ) -- बाहर निकलना ( प्रा ४।७९ ) । वरिअल ( गम् ) -- जाना । वरिअल्ल ( गम् ) -- जाना । वरिसण -- हाहाकार ध्वनि करना । वल ( आ+ रोपय् ) -- ऊपर चढाना ( प्रा ४।४७ ) । वल ( ग्रह् ) -- ग्रहण करना ( प्रा ४।२०९ ) । वलग्ग ( आ+ रह् ) -- आरोहण करना ( प्रा ४।२०६ ) । वलवल -- चमकना - 'विज्जुला वलवलेइ' ( कु पृ १०१ ) । वल्लव -- लाक्षा से रंगना । वसुआ ( उद् + वा ) -- शुष्क होना, सूखना ( प्रा ४।११ ) । वसुआअ ( उद् + वा ) -- शुष्क होना । वह -- अवलोकन करना । वा ( म्लै ) -- मुरझाना ( प्रा ४।१८ ) । वाडि -- तेज गति से दौड़ना (जीभा १७२०) । वाडु -- भाग जाना - 'देशीवचनमेतत् नशनं करोति नश्यतीत्यर्थः' ( व्यभा ३ टी प १०३) । वाण ( वि + नम् ) -- विशेष झुकना, नत होना । वापम्फ ( श्रमं कृ ) -- श्रम करना । वाय ( म्लै ) -- सूखना । वावंफ ( श्रमं कृ ) -- श्रम करना ( प्रा ४।६८ ) । वावाअ ( अव + काश् ) -- अवकाश पाना, स्थान पाना । वास ( अब + कास् ) -- खांसना । वाह ( अव + गाह ) -- अवगाहन करना । वाहिप्प ( व्या + हृ ) -- आह्वान करना ( ति ७२५ ) । वाहुड -- चलना । विअक्ख ( वि + ईक्ष् ) -- देखना ( ओभा १८८ ) । विअट्ट ( विसं + वद् ) -- अप्रमाणित करना ( प्रा ४।१२९ ) । विअल ( ओजय् ) -- मजबूत होना । विआय ( वि + जनय् ) – जन्म देना । ( वियावं - गुज ) । विउड ( वि + नाशय् ) – विनाश करना ( प्रा ४।३१ ) । विंचिण -- विदारित करना । विंछ ( वि + घट् ) -- अलग होना । विंट ( वेष्टय् ) -- वेष्टन करना, लपेटना । (विंटवुं गुज ) । विकड्ढ -- खींचना । विक्के ( वि + क्री ) -- बेचना ( प्रा ४।५२ ) । विक्खर ( वि + कृ ) – १ छितरना । २ बिखेरना । ३ इधर उधर फेंकना । विक्खिर ( वि + कृ ) -- बिखेरना, फैलाना ( बृचू प १४१ ) । विक्खोड -- निन्दा करना । ( वखोडवुं - गुज ) । विखुड्ड -- क्रीड़ा करना ( आवहाटी २ पृ १४७ ) । विग्गोव -- निंदा करना । विघुम्म ( वि + घूर्णय् ) -- डोलना । विच्च ( वि + अय् ) -- व्यय करना । विच्च -- समीप में आना । विच्छ -- विदारित करना । विच्छिप्प ( वि+स्पृश् ) -- विशेष रूप से स्पर्श करना ( भ ९।२०९ ) । विच्छिव ( वि + स्पृश् ) -- विशेष रूप से स्पर्श करना । विच्छुह ( वि + क्षिप् ) -- फेंकना ( से १०।७३ ) । विच्छोल ( कम्पय् ) -- कंपित करना ( प्रा ४।४६ ) । विच्छोव -- वियुक्त करना, विरहित करना । विज्झ ( वि + घट् ) -- अलग होना । विट्टाल -- अपवित्र करना, भ्रष्ट करना - 'अहो इमे असुइणो सव्वलोगं विट्टालेंति' ( निचू २ पृ २२६ ) । विट्ठ -- अर्जित करना । विडव ( अर्जय् ) -- अर्जित करना । विडविड ( श्चय् ) -- निर्माण करना । विडविड -- छटपटाना, बिलबिलाना । विडविड्ड ( रचय् ) -- निर्माण करना ( प्रा ४।९४ ) । विडस -- स्वाद लेकर खाना । विढज्ज ( वि + दह् ) -- जलाना । विढप्प -- अर्जन करना - 'विढप्पति गुणा' ( से १।१० ) । विढप्प ( व्युत् + पद् ) -- व्युत्पन्न होना । विढव ( अर्ज् ) -- अर्जन करना, उत्पन्न करना - 'ताहे केणावि उवायेण विढ-विज्जा सुवण्णं' ( उशाटी प १४६ ) । विण -- फटकना, बीनना, छाज से अलग करना - 'एगा थेरी सुप्पं गहाय ते विणेज्जा' ( उशाटी प १४६ ) । विणड ( वि + गुप् ) -- व्याकुल करना । विणभ ( खेदय् ) -- खिन्न करना । वितुट्ठ -- प्रतिषेध करना । वित्थक्क ( वि + स्था ) -- १ स्थिर होना । २ विलम्ब करना । ३ विरोध करना । विद्द -- बुझाना - 'सो ते डहिउं अपच्चलो सिग्धं विद्दाति - उज्झाति त्ति वुत्तं भवति' ( निचू ४ पृ ३५४ ) । विप्फाड -- फाड़ना, नष्ट करना । विप्फाल -- प्रश्न करना, पूछना - 'विप्फालेइ देशीवचनमेतत् पृच्छतीत्यर्थः ( व्यभा २ टी प २१ ) । विफाल -- पूछना । विब्भाड -- नष्ट करना । विभर ( वि + स्मृ ) -- भूलना । विम्हर ( स्मृ ) -- स्मरण करना ( प्रा ४।७४ ) । विम्हर ( वि + स्मृ ) -- भूलना ( प्रा ४।७५ ) । विर ( भञ्ज् ) -- भांजना, तोड़ना ( प्रा ४।१०६ ) । विर ( गुप् ) -- व्याकुल होना ( प्रा ४।१५० ) । विरमाण ( प्रति + पालय् ) -- पालन करना, रक्षण करना । विरमाल ( प्रति + ईक्ष् ) -- राह देखना ( प्रा ४।१९३ ) । विरल्ल ( तन् ) -- विस्तार करना ( प्रा ४।१३७ ) । विरा ( वि + ली ) -- १ पिघलना, द्रवित होना- 'ततो सा उन्हेण नवणीयमिव विराओ' ( आवमटी प ३९६ ) । २ नष्ट होना । ३ निवृत्त होना ( प्रा ४।५६ ) । विराव -- १ द्रावित करना । २ आहत करना, पराजित करना-पुक्खल-संवट्टओ भणति जहा णं एगाए धाराए विरावेमि' ( आवचू १ पृ १२१ ) । ३ भोजन करना - 'विरावेमि - भक्षयामि ।' विरिंच ( वि + भज् ) -- भाग लेना, बांट लेना । विरिल्ल ( वि + स्तृ ) -- फैलाना । विरीह ( प्रति + पालय् ) -- रक्षण करना । विरोल ( वि + लग् ) -- १ अवलम्बन करना । २ आरोहण करना । विरोल ( मन्थ् ) -- विलोडन करना ( प्रा ४।१२१ ) । विल ( व्रीड् ) -- लज्जित होना । विलभ ( खेदय् ) -- खिन्न करना । विलिज्ज -- पिघलना - 'अग्गिसमीवे व घयं विलिज्ज चित्तं तु अज्जाए' ( ग ६६ ) । विलुंप -- कवलित करना, खाना । विलुंप ( काङ्क्ष् ) -- चाहना, अभिलाषा करना (प्रा ४।१९२ ) । विलोट्ट ( विसं + वद् ) -- १ अप्रमाणित होना ( प्रा ४।१२९ ) । २ विपरीत होना । विवोल -- १ कोलाहल करना । २ गुजरना, बीतना । विसट्ट ( वि + कस् ) -- खिलना, विकसित होना ( स्था ४।५१४ ) । विसट्ट ( वि + कासय् ) -- विकसित करना । विसट्ट ( पत् ) -- गिरना - 'फुट्टंता तडत्ति विसट्टंति महीयले' ( उसुटी प ३९ ) । विसट्ट ( दल् ) -- फटना, टूटना ( प्रा ४।१७६ ) । विसुयाव -- शोषण करना ( बृभा २०७४ ) । विसुराव -- खिन्न करना । विसूर ( वि + स्मृ ) -- भूल जाना । विसूर ( खिद् ) -- खेद करना - 'बिले य जाणामि अदुट्ठ दुट्ठे, मा ता विसूराहि अजाणि एवं' ( बृभा ३२४८ ) । विहर ( प्रति + ई ) -- प्रतीक्षा करना । विहल्ल -- आवाज करना । विहिमिह -- विकसित होना । विहिविल्ल ( वि + रचय् ) -- निर्माण करना । विहीर ( प्रति + ईक्ष् ) -- राह देखना ( प्रा ४।१९३ ) । विहोड ( ताडय् ) -- ताडन करना ( प्रा ४।२७ ) । विहोढ -- जुगुप्सा करना, विडंबित करना ( बृभा ९२३) । वीण ( वि + चारय् ) -- विचार करना । वीसर ( वि + स्मृ ) -- भूलना ( प्रा ४।७५ ) । वीसाल ( मिश्रय् ) -- मिश्रण करना ( प्रा ४।२८ ) । वीसुंभ -- १ मरना, मृत्यु प्राप्त करना - 'आयरिय- उवज्झाया वा से वीसुंभेज्जा' ( स्था ५।१०० ) । २ पृथक् होना, अलग होना । वुंज ( उद् + नमय् ) -- ऊंचा करना । वुक्कार -- गर्जन करना । वुज्ज ( त्रस् ) -- डरना । वुण -- बुनना । वेअड ( खच् ) -- जड़ना ( प्रा ४।८९ ) । वेआर -- ठगना, प्रतारण करना । वेंटल -- जादूटोना करना ( आचू पृ ३३७ ) । वेंढ -- वेष्टित करना, लपेटना । वेढ ( वेष्ट् ) -- लपेटना ( प्रा ४।२२१ ) । वेमय ( भञ्ज् ) -- भांगना ( प्रा ४।१०६ ) । वेलव ( वञ्च् ) -- १ ठगना ( प्रा ४।९३) । २ पीड़ित करना । वेलव ( उपा + लभ् ) -- उलाहना देना ( प्रा ४।१५६ ) । वेलव -- १ कंपाना । २ व्याकुल करना । ३ व्यावृत्त करना, हटाना। ४ मजाक करना । वेलाव ( वि + लम्बय् ) -- विलम्ब करना । वेल्ल ( रम् ) -- क्रीड़ा करना ( प्रा ४।१६८ ) । वेहव ( वञ्च् ) -- ठगना ( प्रा ४।९३ ) । वोक्क ( व्या + हु, उद् + नद् ) -- पुकारना । वोक्क ( उद् + नट् ) -- अभिनय करना । वोक्क ( वि + ज्ञपय् ) -- विज्ञप्ति करना, प्रार्थना करना ( ( प्रा ४।३८ ) । वोक्ख ( उद् + नद्) -- आह्वान करना । वोक्खार -- विभूषित करना । वोज्ज ( वोजय् ) -- हबा करना ( प्रा ४।५ ) । वोज्ज ( त्रस् ) -- डरना ( प्रा ४।१९८ टी ) । वोज्झ -- धारण करना । वोल ( गम् ) -- १ अतिक्रमण करना ( बृभा १५३९ ) । २ मिश्रण करना ( उसुटीप २५० ) । ३ गुजरना । ४ गुजारना, पसार करना । वोलट्ट ( व्युप + लुट् ) -- छल कना । वोलाव -- जाने के लिए प्रेरित करना । वोल्ल ( आ + क्रम् ) -- आक्रमण करना । वोसग्ग ( वि + कस् ) -- विकसित होना । वोसट्ट ( वि + कस् ) --१ विकसित होना ( प्रा ४।१९५ ) । २ बढना । वोसट्ट ( वि + कासय् ) -- १ विकास करना । २ बढाना । वोहार -- बुहारना । स संकेल्ल -- संकुचित करना । संखा ( सं + स्त्यै ) -- संहत होना, सघन होना (दे८।११ वृ) । संखुड्ड ( रम् ) -- क्रीड़ा करना, खेलना ( प्रा ४।१६८) । संगल ( सं + घटय् ) -- संघटित करना ( प्रा ४ । ११३) । संघ ( कथय् ) -- कहना ( प्रा ४ । २ ) । संचाय ( सं + शक् ) -- सकना, समर्थ होना - 'एगमवि रोगायंकं नो चेव णं संचाएंति उवसामित्तए' ( विपा १।१।५५ ) । संचिक्ख ( सं + स्था ) -- १ रहना । २ अनुशीलन करना- 'जे अचेले परिवुसिए संचिक्खति ओमोयरियाए' ( आ ६।४० ) । संछिव -- स्पर्श करना । संछुह ( सं + क्षिप् ) -- एकत्रित कर रखना ( पिनि ३११ ) । संजत -- तैयार करना । संजम -- छिपाना ( दे ८।१५ वृ ) । संजव -- छिपाना । संजोअ ( सं + दृश् ) -- निरीक्षण करना । संठव -- १ तीक्ष्ण करना । २ संवास्ना ( निचू २ पृ २२०) । ३ रखना । ४ आश्वासन देना । संतुम ( छादय् ) -- आच्छादित करना । सदाण ( कृ ) -- अवलम्बन करना ( प्रा ४।६७ ) । संदुक्ख ( सं + दीप् ) -- जलना । संदुम ( प्र + दीप् ) -- जलाना, प्रकाशित करना ( प्रा ४।१५२ ) । संधुक्क ( प्र + दीप् ) -- जलाना, प्रकाशित करना ( प्रा ४।१५२ ) । संधुम ( प्र + दीप् ) -- प्रदीप्त करना । संनाम ( आ + दृ ) -- आदर करना । संपणोल्ल ( संप्र + नुद् ) -- प्रेरणा करना, चालित करना ( द ५।१।३० ) । संपसार -- मंत्रणा करना ( व्यभा ४।३ टी प ८ ) । संफाण -- धोना, प्रक्षालन करना ( नि ५।१४ ) । संफोड -- मिलाना ( निचू २ पृ ३१४ ) । संभर ( सं + स्मृ ) -- स्मरण करना । संभाव ( लुभ् ) -- आसक्ति करना ( प्रा ४ः१५३ ) । संवेल्ल -- सकेलना, समेटना । सक्क ( सूप् ) -- सरकना । सक्खुड्ड (रम्) -- क्रीड़ा करना । सग्ध ( कथ् ) -- कहना । सच्चव ( दृश् ) -- देखना । सच्छर ( दृश् ) -- देखना । सज्ज -- शक्ति ग्रहण करना - 'णाणुज्जोया साहू, दव्वुज्जोतंमि मा हु सज्जिस्था' ( निभा २२५ ) । सज्झव - ठीक करना, स्वस्थ - 'ममं चेव ओलग्गसि तो ते सज्वेमि ( उसुटी प २७ ) । सडिअग्ग -- बढाना । सद्दह ( श्रद् + धा ) -- श्रद्धा करना ( प्रा ४।९ ) । सन्नाम ( आ + वृ ) -- आदर करना ( प्रा ४।८३ ) । सन्नुम ( छादय् ) -- आच्छादित करना ( प्रा ४।२१ ) । समइच्छ ( समति + क्रम् ) -- १ उल्लंघन करना । २ गुजरना । समच्छ ( सम् + आस ) -- १ बैठना । २ अवलम्बन करना । ३ अधीन रखना । समब्भिड -- भिड़ना, लड़ना । समराअ -- पीसना । समाढप्प -- आरंभ करना ( कु पृ १९९ ) । समाण ( भुज् ) -- भोजन करना ( प्रा ४।११० ) । समाण ( सम् + आप् ) -- समाप्त करना ( प्रा ४।१४२ ) । समार ( समा + रचय् ) -- रचना, बनाना ( प्रा ४।९५ ) । समार ( समा + रभ् ) -- प्रारंभ करना । समुच्छ ( समुत् + छिद् ) -- १ प्रमार्जन करना ( सू १।२।३५ ) । २ उन्मूलन करना ( सू २।१।२२ ) । समुच्छ -- १ संतुष्ट करना । २ ठीक करना । समुत्तअ -- गर्व करना । समुप्फुंद ( समा + क्रम् ) -- आक्रमण करना ( से ४।४३ ) । समुस्सिणा ( समुत् + श्रु ) -- निर्माण करना - 'आवसहं वा समुस्सिणासि' ( आ ८।२२ ) । समोलय -- उठाकर फेंकना । समोसव -- टुकड़े-टुकड़े करना । सर -- पर्याप्त होना । सरास -- कहना - 'कथ् इत्यर्थे देशी । ' सलह ( श्लाघ् ) -- प्रशंसा करना ( प्रा ४।८८ ) । सलिस ( स्वप् ) -- सोना । सल्ल -- प्रिय लगना । सव्वव ( दृश् ) -- देखना ( प्रा ४।१८१ ) । सह ( राज् ) -- शोभना, चमकना ( प्रा ४।१०० ) । सह ( आ + ज्ञा) -- आदेश देना । साअड्ढ ( कृष् ) -- १ खेती करना ( प्रा ४।१८७ ) । २ खींचना । साण -- शान्त होना । सामग्ग ( श्लिष् ) -- गले लगाना ( प्रा ४।१९० ) । सामच्छ -- मंत्रणा करना । सामत्थ -- पर्यालोचन करना । सामय ( प्रति + ईक्ष् ) -- प्रतीक्षा करना ( प्रा ४।१९३ ) । सार ( प्र + हृ ) -- प्रहार करना ( प्रा ४।८४ ) । सारव ( समा + रच ) -- ठीक करना, दुरुस्त करना ( प्रा ४।९५ ) । सारव -- गोपन करना, संरक्षण करना - 'तेण तं पत्तए लिहियं सो सारवेइ' ( उशाटी प १४६ ) । सारव ( समा + रम् ) -- प्रारम्भ करना । सास ( कथय् ) -- कथन करना । साह ( कथय् ) -- कथन करना - साहइ त्ति देशीवचनतः कथयति' ( आवहाटी १पृ १६०) । साहट्ट ( सं + वृ ) -- संवरण करना ( प्रा ४।८२ ) । साहर ( सं + वृ ) -- संवरण करना ( प्रा ४।८२ ) । साहस -- अविचारित कार्य करना - ' मा साहस' ( कु पृ १३७ ) । सिंच ( सिच् ) -- सींचना ( प्रा ४।९६ ) सिंप ( सिच् ) -- सींचना ( प्रा ४।९६ ) । सिज्ज -- प्राप्त होना । सिप्प ( सिच् ) -- सींचना (प्रा४।२५५) । सिप्प ( स्निहय् ) -- प्रीति कराना ( प्रा ४।२५५ ) । सिमसिम -- उबलने के समय होने वाला शब्द - 'क्वथनशब्दानुकरणे देशी ।' सिरिहाय -- सराहना करना । सिह ( स्पृहय् ) -- इच्छा कराना ( प्रा ४।३४ ) । सिह ( कांक्ष् ) -- अभिलाषा करना ( प्रा ४।१९२ ) । सिहरवय -- इच्छा करना, आकांक्षा करना ( आचू पृ ३३६ ) । सीतिज्ज -- निमज्जन करन ( बृभा ६१८८ ) । सीमंत -- बेचना । सीय -- फलित होना ( पिनि ८२ ) । सीस ( कथय् ) -- कहना ( निभा १२५४ ) । सुंघ -- सूंघना । सुग्गाह ( प्र + सृ ) -- फैलना । सुज्झ -- सूझना, दीखना । सुढ ( स्मृ ) -- याद करना । सुणुसुणाय -- सुन्-सुन् आवाज करना । सुप ( मृज् ) -- मार्जन करना । सुमर ( स्मृ ) -- स्मरण करना ( प्रा ४।७४ ) । सुम्म -- सुनना - 'सुम्मइ बहुसो घुणाहुणी' (उसुटीप १९२) । सुरसुर -- सुरसुर की आवाज करना । सूअर -- यन्त्र-पीड़न करना । सूख -- सूखना, शुष्क होना - 'फूमंतस्स मुहं सूखति' ( निचू १ पृ ८६ ) । सूड ( भञ्ज् ) -- भांगना ( प्रा ४।१०६ ) । सूर ( भञ्ज ) -- भांजना ( प्रा ४।१०६ ) । सूसुव -- सूं-सूं करना । सेह ( नश् ) -- पलायन करना, भागना ( प्रा४।१७८ ) । सो -- १ दारु बनाना । २ पीड़ा करना । ३ मन्थन करना । ४ स्नान करना । सोग्गह ( प्र + सृ ) -- फैलना । सोच -- सोचना । सोल्ल ( पच् ) -- पकाना ( विपा १।३।२१ ) । सोल्ल ( क्षिप् ) -- फेंकना ( प्रा ४।१४३ ) । सोल्ल ( ईर्, सम् + ईर् ) - प्रेरणा करना । सोह -- पीसना, चूर्ण करना । ह हंग -- मलोत्सर्ग करना (वृचू प १४२ ) । हंद ( ग्रह् ) -- ग्रहण करना ( आचूला १।१३८ ) । हंदोल -- झुलना, घूमना ( अंवि पृ ८० ) । हंक -- गलहत्था देना - 'कि मं हंफेह' ( बृभा ६०८३ ) । हक्क -- १ खदेड़ना ( उसुटी प ५८ ) । २ प्रेरणा करना । ३ पुकारना । ४ ऊंचा करना । हक्क ( नि + षिध् ) -- निवारण करना ( प्रा ४।१३४ ) । हक्कार ( आ + कारय् ) -- बुलाना । हक्कार -- ऊंचे फैलाना । हक्खुव ( उत् + क्षिप् ) -- १ ऊंचा फेंकना । २ ऊंचा उठाना ( प्रा ४।१४४ ) । हम -- शौच करना, विष्ठा करना - 'छगलओ हगति' ( आवचू १ पृ ४६४ ) । हडहड -- हडहड ध्वनि करना । हण ( श्रु ) -- सुनना ( प्रा ४।५८ ) । हम्म ( गम् ) – गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२ ) । हम्म -- पीटना ( विपा १।२।१४ ) । हर ( ग्रह् ) -- ग्रहण करना ( प्रा ४।२०९ ) । हर -- स्मरण करना । हरुयाल -- कोष उपजाना, कुपित करना ( ज्ञाटी प १५५ ) । हलबोल -- कोलाहल करना - 'हलबोलिज्जइ जणेण सव्वेण' ( कु पृ १८५ ) । हलहल -- १ हलफल करना ( कु पृ ८३ ) । २ कम्पित होना । ३ कोलाहल करना । हलहलाय -- उत्सुक होना - 'हलहलायइ कुमारदंसणूसवपसरमाणुक्कंठणिब्भरोणायरलोओत्ति' ( कु पृ १९९ ) । हल्ल -- १ हिलना, चलना । २ नृत्य करना । हल्लपव -- त्वरा करना । हल्लप्फल -- १ त्वरा करना । २ आकुल होना । हल्लफल -- १ शीघ्रता करना । २ व्याकुल होना । हल्लाव -- हिलाना । हल्लुत्ताल -- उतावल करना । हव ( भू ) -- होना ( प्रा ४।६० ) । हव -- १ चुपड़ना । २ प्राप्त करना । हसहस -- दीप्त होना ( बृभा २०९९ ) । हाक -- बुलाना । हाव -- द्रुतगामी होना । हिंच -- एक पैर से चलना । हिंड -- घूमना । हिंद ( ग्रह् ) -- ग्रहण करना । हिण्ण ( ग्रह् ) -- स्वीकार करना । हिलिहिल -- अश्व का हिनहिनाना । हुण्णिप्प -- सुनना - 'हुण्णिप्पर पुष्वपक्खो' ( कु पृ १७२ ) । हुप्प ( प्र + भ ) -- समर्थ होना । हुल ( मृज् ) -- मार्जन करना ( प्रा ४।१०५ ) । हुल ( क्षिप् ) -- फेंकना ( प्रा ४।१४३ ) । हुल -- शीघ्रता करना । हुल्ल ( लक्ष्यात् स्खल ) -- लक्ष्य से च्युत होना । हुव ( भू ) -- होना ( प्रा ४।६० ) । हेर -- १ देखना, निरीक्षण करना । २ अन्वेषण करना । हेरुयाल -- क्रोध उपजाना, कुपित करना ( ज्ञा १।८।१४६ ) । हेस -- चीत्कार करना । हो ( भू ) -- होना ( प्रा ४।६० ) । होक्ख -- होना ( अंवि पृ ८४ ) । होप्पे -- गला पकड़कर निकालना ( बृभा ६०७९ ) । होल -- डोलना, संदेह करना ( ज्ञाटी प १४५ ) । होस ( भू ) -- होना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org